
رضوی
इमाम सज्जाद (अ) ने 'जिहाद तबीन' के माध्यम से बनी उमय्या को अपमानित किया
इमाम रज़ा (अ) के हरम के खतीब ने कहा: हज़रत इमाम सज्जाद (अ) ने उमय्या सरकार के खिलाफ जिहाद के माध्यम से बनी उमय्या को अपमानित किया।
हुज्जतुल-इस्लाम वल-मुस्लेमीन मुहम्मद हुसैन रजाई खोरासानी ने इमाम रज़ा (अ) की दरगाह में इमाम सज्जाद (अ) के शहादत दिवस पर आयोजित एक मजलिस को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा: कर्बला की घटना की योजना बनी उम्याय ने बनाई थी, वे इस्लाम का नामोनिशान नहीं रहने देंगे, यही कारण था कि उन्होंने खय्याम हुसैनी में आग लगा दी।
उन्होंने आगे कहा: इमाम ज़ैन अल-अबिदीन (अ) आशूरा के दिन बीमार थे, इसलिए हज़रत इमाम हुसैन (अ) की शहादत के बाद, जब बंदियों का कारवां रवाना हुआ, तो इमाम के खिलाफ जिहाद रद्द कर दिया गया इमाम ज़ैन अल-अबिदीन (अ) ने इसकी शुरुआत की, आपने लोगों को बताया कि कैसे उमय्यद इस्लाम को मिटा देना चाहते थे और कैसे इमाम हुसैन (अ) को बेरहमी से मार डाला गया था।
खतीब हरम इमाम रज़ा ने कहा: जब इमाम सज्जाद (अ) इस यात्रा के दौरान कैद थे, तो उन्होंने अपने उपदेशों से यज़ीद और यज़ीदियों को हिला दिया।
उन्होंने आगे कहा: इमाम सज्जाद (अ) को वाक्पटुता का उपहार अमीरुल मोमिनीन (अ) से विरासत में मिला था, यज़ीद के दरबाह के लोग, जो सुनने के बाद मानते थे कि इमाम हुसैन (अ) बनी उम्याय के प्रचार के कारण खवारिज से थे। इमाम के उपदेश से, इमाम यज़ीद के प्रति क्रोधित हो गए और उसका विरोध करने लगे, यहाँ तक कि यज़ीद को अपना दरबार छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा।
खतीब हरम इमाम रज़ा (अ) ने कहा: हज़रत इमाम सज्जाद (अ) ने उमय्या सरकार के खिलाफ जिहाद के माध्यम से उमय्यदों को अपमानित किया।
आशूरा महाआंदोलन, अमवियों की ग़ुमराही से अक़्ल और धर्म को बचाने के लिए इमाम हुसैन अलै. का प्रयास
ईरान के एक महान विद्वान और धर्मगुरू आयतुल्लाह जवादी आमूली का कहना है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने इंसानों को जागरुक व बेदार होकर उपासना करने के लिए आमंत्रित किया ताकि इंसान अपनी ज़िन्दगी के समस्त मामलों में विशुद्ध धार्मिक शिक्षाओं का पालन कर सके।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन के समय से लेकर आज तक दुनिया के बहुत से बुद्धिजिवी, विद्वान यहां तक कि सामान्य लोग यह सवाल करते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम के नाती और शिया मुसलमानों के तीसरे इमाम, इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने जो महाआंदोलन किया उसका अस्ली कारण क्या था?
इस सवाल का जवाब जानने के लिए ईरान के महान विद्वान, धर्मगुरू, धर्मशास्त्री, दार्शनिक, रहस्यवादी, पवित्र क़ुरआन के व्याख्याकर्ता और शिया मुसलमानों के मरजये तक़लीद आयतुल्लाह अब्दुल्लाह जवादी आमूली के विचारों और भाषणों पर एक नज़र डालेंगे।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के बुनियादी क़दम
आयतुल्लाह जवादी आमूली इस संबंध में कहते हैं कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अमवियों की ग़ुमराही और बंधन से ईश्वरीय धर्म को मुक्ति दिलाने के लिए प्रयास किया ताकि धर्म और वास्तविकता के संबंध में लोगों की जानकारी को विस्तृत कर सकें। इस आधार पर उन्होंने एकेश्वरवाद की शिक्षाओं के विस्तार व प्रचार प्रसार की दिशा में प्रयास किया ताकि लोग बेदार व जागरुक होकर महान ईश्वर की उपासना करें।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम इंसान के पैदा होने के उद्देश्य के बारे में इस प्रकार फ़रमाते हैं महान ईश्वर ने इंसानों को इसलिए पैदा किया ताकि वे उसे पहचानें और जब उसके बंदे उसे पहचान जायेंगे तो उसकी उपासना व इबादत करेंगे और जब इंसान उसकी इबादत करेंगे तो अल्लाह के सिवा की इबादत करने से आवश्यकता मुक्त व बेनियाज़ हो जायेंगे।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के कथन का यह मतलब नहीं है कि इंसान महान ईश्वर को पहचाने और नमाज़ पढ़े, रोज़ा रखे और कुछ न करे। यह अर्थ वास्तविक इबादत का एक भाग है। इंसान की ज़िन्दगी का हर गोशा व आयाम इबादत है। दूसरे शब्दों में इंसान चाहे तो अपनी ज़िन्दगी के हर पहलु को या कुछ पहलु को इबादत बना सकता है।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने इस प्रकार की बातों से इंसानों को बेदार व जागरुक करके महान ईश्वर की उपासना के लिए आमंत्रित किया ताकि अपने जीवन के समस्त आयामों में धर्म का अनुसरण करे और यह धर्म है जो इंसान को लोक- परलोक में सफ़ल बनाता है।
महाआंदोलन का आ पहुंचना
मोआविया के मरने के बाद उसका बेटा यज़ीद राजगद्दी पर बैठा। वह एक भ्रष्ठ और अपराधी जवान था। वह खुल्लम- खुल्लाह न केवल इस्लामी आदेशों की उपेक्षा व अवहेलना करता था बल्कि उनका मज़ाक़ भी उड़ाता था। आंदोलन के लिए बेहतरीन समय आ गया था। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने भ्रष्टाचारी यज़ीद से मुक़ाबला करने का फ़ैसला किया। बहुत से लोगों ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के फ़ैसले का विरोध किया परंतु इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम यज़ीद के मुक़ाबले में उठ खड़े होने पर बल देते थे।
इस आधार पर जब एक व्यक्ति ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को उस समय की विषम व अनुचित स्थिति से अवगत किया तो इमाम ने उसके जवाब में फ़रमाया ईश्वर की सौगंद जब हमारे लिए कोई आश्रयस्थल नहीं है और कोई पनाहगाह नहीं है तो मैं कदापि यज़ीब बिन मोआविया की बैअत नहीं करूंगा।
इसी प्रकार जब वलीद ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से यज़ीद की बैअत करने के लिए कहा था तो इमाम ने फ़रमाया था कि यज़ीद एक भ्रष्ट आदमी, शराब पीने वाला, नफ़्से मोहरतमा की हत्या करने वाला, खुल्लम -खुल्ला बुराई करने वाला और मेरे जैसा उस जैसे की बैअत नहीं करेगा।
यहां पर यज़ीद जैसे व्यक्ति की बात नहीं है बल्कि हुसैनी सोच यज़ीद और उसके जैसे इंसानों की सोच से नहीं मिलती। जो इंसान महान ईश्वर की उपासना करता हो और उसने उसकी राह में अपनी जान व माल बेच दिया हो वह कभी भी ईश्वर के दुश्मन से समझौता नहीं करेगा।
जब मरवान ने इमाम हुसैन अलैहिस्लाम से यज़ीद की बैअत करने के लिए कहा था तो इमाम ने उसके जवाब में भी फ़रमाया जब लोगों को यज़ीद जैसे शासक का सामना है तो इस्लाम को ख़ैरबाद व अलविदा कहना चाहिये। यानी जिसकी सोच और जिसका विचार मेरे जैसा होगा वह कभी भी अत्याचारी व ज़ालिम सरकार की बैतअ नहीं करेगा।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम पैग़म्बरों के वारिस हैं
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम पैग़म्बरों के वारिस हैं और उनका मिशन वास्तव में पैग़म्बरों और ईश्वरीय दूतों का मिशन है। जिस तरह पैग़म्बरों को इंसानों की अक़्ल व बुद्धि को विकसित करने के लिए भेजा गया है उसी तरह इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने भी उसी मक़सद के लिए आंदोलन किया। इस आधार पर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने जो आंदोलन किया उसके विभिन्न नतीजे व परिणाम सामने आये जिनमें से हम चार की ओर संकेत कर रहे हैं।
आंदोलन व शहादत ईश्वरीय प्रेम और वास्तविक ज़िन्दगी को बयान करने के लिए
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने ईश्वरीय प्रेम को दिखाने व बताने के लिए पूरा प्रयास किया और लोगों को यह समझाने का प्रयास किया कि महान ईश्वर ने बंदों को प्रेम के आधार पर पैदा किया और वह उनके अस्तित्व को विकसित करना चाहता है और इंसानों को मुक्ति देना चाहता है।
2— इंसान और समाज की इज़्ज़त और प्रतिष्ठा के लिए आंदोलन करना और शहादत देना
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के ज़माने में नैतिक व अख़लाक़ी सद्गुणों को अमवी परिवार ने बंधक बना लिया था। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपने महाआंदोलन से सद्गुणों और धर्म को अमवी परिवार के बंधन से मुक्त कराया और अपनी अमर क़ुरबानी से इस्लामी समाज और सद्गुणों में नई जान फ़ूंक दी और इंसानों को इज़्ज़त, प्रतिष्ठा और दूसरे मानवीय सद्गुणों की याद दिला दी।
3 — पैग़म्बरे इस्लाम की सुन्नत व परम्परा को याद दिलाने के लिए आंदोलन किया और शहादत दी
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कूफ़ा के लोगों के नाम एक पत्र लिखा
उस पत्र में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने लिखा था कि पैग़म्बरे इस्लाम की सुन्नत को मिटा दिया गया और बिदअतें प्रचलित हो गयी हैं। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपने आंदोलन से ईश्वरीय शिक्षाओं, ईश्वरीय आदेशों की सीमाओं और पैग़म्बरे इस्लाम की सुन्नत को दिखा व बता दिया और इन चीज़ों के भविष्य में ज़िन्दा होने का कारण बना।
4— पैग़म्बरों की राह को ज़िन्दा करने के लिए आंदोलन किया और शहादत दी
इस बात को ध्यान में रखना चाहिये कि महान ईश्वर ने पैग़म्बरों को इंसान की अक़्लों में विकास व निखार के लिए भेजा और पूरे इतिहास में अमवियों जैसी शक्तियां भी रही हैं जो लोगों की अक़्लों के विकास के मार्ग की बाधा थीं परंतु महान ईश्वर ने पैग़म्बरों को भेजा ताकि वे इंसानों की अक़्लों के विकास के मार्ग की रुकावट को दूर कर सकें। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपने आंदोलन से लोगों को बताया कि बनी उमय्या हक़ पर हमल नहीं कर रही है और जो हक़ पर अमल नहीं कर रहा है और अक़्ल के शिखर पर नहीं पहुंच सकता।
जो समाज भी हक़ और हक़्क़ानियत पर अमल नहीं करता है वह भी अक़्ल के शिखर पर नहीं पहुंचेगा और वह दुनिया की चुनौतियों में फ़ंस जायेगा। क्योंकि हक़ का अनुसरण व अनुपालन करने के परिप्रेक्ष्य में ही अक़्ल परिपूर्णता के शिखर पर पहुंचती है और यह कार्य अमवी जैसे अत्याचारी शासकों की हुकूमत में व्यवहारिक नहीं हो सकता।
इमाम हुसैन का वो पहला सफर जो कर्बला पे जा के ख़त्म हुआ
ये बात २० रजब सन ६० हिजरी की है जब मुआव्विया की मृत्यु हो गयी और यज़ीद ने खुद को मुसलमानो का खलीफा घोषित कर दिया ।इमाम हुसैन (अ.स ) हज़रत मुहम्मद (स.अ व ) के नवासे थे और यह कैसे संभव था कि वो यज़ीद जैसे ज़ालिम और बदकार को खलीफा मान लेते ? इमाम हुसैन ने नेकी की दावत देने और लोगों को बुराई से रोकने के लिए अपना पहला सफर मदीने से मक्का का शुरू करने का फैसला कर लिया ।
अबू मख़नफ़ के लिखने के अनुसार इमाम-ए-हुसैन अलैहिस्सलाम ने 27 रजब की रात या 28 रजब को अपने अहलेबैत के साथ इस आयत की तिलावत फ़रमाई (वक़अतुत तफ़, पे 85, 186)
जो मिस्र से निकलते समय असुरक्षा के एहसास के कारण क़ुर्आन हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की ज़बानी बयान कर रहा हैः
मूसा शहर से भयभीत निकले और उन्हें हर क्षण किसी घटना की आशंका थी, उन्होंने कहा कि ऐ परवरदिगार मुझे ज़ालिम व अत्याचारी क़ौम से नेजात दे। (सूरए क़ेसस, 21)
इमाम हुसैन (अ.स ) मस्जिद ए नबवी में गयी चिराग़ को रौशन किया और हज़रत मुहम्मद (स.अ व ) की क़ब्र के किनारे बैठ गए और अपने गाल क़ब्र पे रख दिया यह सोंच के की क्या जाने फिर कभी मदीने वापस आना भी हो या नहीं और कहाँ नाना आपने जिस दीन को फैलाया था उसे उसकी सही हालत में बचाने के लिए मुझे सफर करना होगा । अल्लाह से दुआ कीजेगा की मेरा यह सफर कामयाब हो ।
उसके बाद इमाम हुसैन अपनी माँ जनाब ऐ फातिमा स अ की क़ब्र पे आये और ऐसे आये जैसे कोई बच्चा अपनी माँ के पास भागते हुए आता है और बस चुप चाप बैठ गए और थोड़ी देर के बाद जब वहाँ से जाने लगे तो क़ब्र से आवाज़ आई जाओ बेटा कामयाब रहो और घबराओ मत मैं भी तुम्हारे साथ साथ रहूंगी ।
अपने नाना हज़रत मुहम्मद (स.अ व ) और माँ जनाब ऐ फातिमा से विदा लेने के बाद इमाम अपनी बहन जनाब ऐ ज़ैनब के पास पहुंचे और अपने बहनोई अब्दुल्लाह इब्ने जाफर ऐ तैयार इब्ने अबु तालिब से इजाज़त मांगी की ज़ैनब और दोनों बच्चों ऑन मुहम्मद को सफर में साथ जाने की इजाज़त दे दें । जनाब अब्दुल्लाह ने इजाज़त दे दी ।
इधर मर्दो में हज़रत अब्बास ,जनाब ऐ क़ासिम , सब सफर पे जाने की तैयारी करने लगे यहां तक की ६ महीने के जनाब ऐ अली असग़र का झूला भी तैयार होने लगा । यह सब बिस्तर पे लेटी इमाम हुसैन की ८ वर्षीय बेटी सुग़रा देख रही थी और इंतज़ार कर रही थी की बाबा हुसैन आएंगे और उसे भी चलने को कहेंगे ।
इमाम हुसैन बेटी सुग़रा के पास आये और कहा बेटी जब तुम पैदा हुयी थी तो तुम्हारा नाम मैंने अम्मा के नाम पे फातिमा रखा था और मेरी माँ साबिर थी तुम भी सब्र करना और यहीं मदीने में उम्मुल बनीन और उम्मे सलमा के साथ रहना । बीमारी में सफर तुम्हारे लिए मुश्किल होगा और हम सब जैसे ही किसी मक़ाम पे अपना ठिकाना बना पाएंगे वैसे ही तुमको भी बुला लेंगे । बाबा का कहा बेटी कैसे टाल सकती थी बस आँख में आंसू आये और उन्हें पी गयी और चुप रही लेकिन एक आस थी की चाचा अब्बास है शायद उनके कहने से उसे बाबा साथ ले जाएँ ।
हज़रत अब्बास अलमदार और जनाब ऐ अली अकबर सुग़रा से मिलने आये लेकिन सुग़रा को वही जवाब दिया जो इमाम हुसैन ने दिया था और जब हर उम्मीद टूट गयी सुग़रा की तो बोली भैया अली अकबर जब तुम्हारी शादी हो जाय और मैं तुम्हारे मदीने वापस आने पे दुनया से चली जाऊं तो अपनी बीवी के साथ मेरी क़ब्र पे ज़रूर आना ।
हज़रत अब्बास और जनाब ऐ अली अकबर ने आंसुओं से भरी आँखों से सुग़रा को रुखसत किया ।
काफिला सुबह का सूरज निकलते ही चलने के लिए तैयार हो गया । एक तरफ उम्मे सलमा थी तो दूसरी तरफ उम्मुल बनीन और सुग़रा ने सभी को अलविदा कहा और सुग़रा ने अपने भाई जिसके साथ खेल करती थी उसे भी प्यार किया और अली असग़र माँ लैला के हवाले कर दिया ।
काफिला चल पड़ा सुग़रा सबको मुस्करा के अलविदा कह रही थी और बाबा हुसैन मुड मुड़ के बेटी को देखते जाते थे और अली अकबर तो आंसुओं को कहीं सुग़रा देख ना ले इसलिए मुड़ भी नहीं रहे थे । जब काफिला नज़रों से दूर हो गया और इमाम को सुग़रा के लिए देख सकता मुमकिन ना था बस हुसैन आंसुओं से रो पड़े उधर अली अकबर के आंसू बने लगे और बेटी को अलविदा कहा । िस्ञ्ा आसान नहीं होता बाप के लिए बेटी को छोड़ के जाना ।
इमाम-ए-हुसैन अलैहिस्सलाम जुमे की रात 2 शाबान स0 60 हीजरी को वारिदे मक्का हुए और उसी साल की 8 ज़िलहिज्जा तक उस शहर में अपनी सरगर्मियों में मसरूफ़ रहे।
घमंड और हरामख़ोरी पैग़म्बरे इस्लाम के नाती इमाम हुसैन अलै. के हत्यारों की विशेषता
ईरान के प्रसिद्ध धर्मगुरू हुसैन अंसारियान ने कहा कि दुश्मनी और घमंड इंसान के भौतिकवाद की जड़ है और यह दुनिया से अतिवादी प्रेम का नतीजा है। उन्होंने कहा कि इब्लीस का घमंड, घमंडियों के घमंड की जड़ है।
धार्मिक शिक्षाकेन्द्र के उस्ताद हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन शैख़ हुसैन अंसारियान ने कहा कि कुछ लोग, चाहे वे पैग़म्बरों के ज़माने में थे या अहलेबैत अलै. के काल में थे तब से लेकर आजतक घमंड की वजह से हक़ को पसंद नहीं करते हैं यहां तक कि पैग़म्बरों और अहलेबैत अलै. की ओर से चमत्कार दिखाये जाने की स्थिति में भी वे बहुत अधिक घमंड के कारण सच व हक़ को स्वीकार नहीं करते थे।
वह कहते हैं कि क़ुरआने करीम कहता है कि वे चमत्कार का मज़ाक़ उड़ाते थे और पैग़म्बरों और ईश्वरीय दूतों की बातों को अफ़साना बताते थे और अपनी बातों को सिद्ध करने के लिए उनके पास न तो कोई अक़्ली दलील थी न इल्मी और वे अपनी दुश्मनी और घमंड पर हमेशा आग्रह करते थे। मिसाल के तौर पर आशूरा के दिन जब हज़रत ज़ैनब स. ने इमाम हुसैन अलै. से कहा कि आप ख़ुद को इन लोगों को पहचनवाइये शायद ये लोग बेदार हो जायें तो इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया हे बहन मैं गया था और मैंने ख़ुद का परिचय कराया मैंने बताया कि पैग़म्बरे इस्लाम कौन थे और मेरी मां कौन थीं उन सबने केवल एक जवाब दिया और वह पत्थरों की बारिश थी।
इस धार्मिक मामलों के विशेषज्ञ हुसैन अंसारियान के अनुसार उनके इस कृत्य व जवाब की वजह दुश्मनी और घमंड था। शैख़ अंसारियान ने कहा कि महान ईश्वर समस्त सदगुणों व परिपूर्णता का स्वामी है और वही समस्त वस्तुओं को पैदा करने वाला है और शैतान इस बात को जानता था कि महान ईश्वर ने समस्त वस्तुओं को पैदा किया और उनकी रचना की है मगर इन सबके बावजूद घमंड की वजह से उसने पालनहार के आदेश को नहीं माना। इब्लीस क़यामत को भी बहुत अच्छी तरह जानता था।
धार्मिक शिक्षाकेन्द्र के उस्ताद शैख़ हुसैन अंसारियान ने कहा कि घमंडी लोग इब्लीस के मदरसे के शिष्य हैं और दुनिया के घमंडियों का अज़ाब इब्लीस के अज़ाब जैसा होगा। महान ईश्वर उन सबको इब्लीस के साथ नरक में डालेगा और नरक को उन लोगों से भर देगा।
अहलेबैत और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के अज़ादारों को ख़ुशहाल होना चाहिये कि वे इब्लीस के शिष्यों में से नहीं हैं। जो भी शैतान का शिष्य होगा वह अहलेबैत और इमाम हुसैन अलै. की मज़लूमियत पर आंसू नहीं बहायेगा और महान ईश्वर ने उनके लिए जो दायित्व निर्धारित कर रखा है उसे छोड़ देंगे।
इसी प्रकार हुसैन अंसारियान कहते हैं कि घमंडी धर्म और वास्तविकता के दुश्मन हैं। वे घमंड करने से कभी भी बाज़ नहीं आयेंगे। पवित्र क़ुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम के अहलेबैत दो मापदंड हैं जिनके ज़रिये इंसान सफ़ल हो सकता है। इस आधार पर इंसान को चाहिये कि वह अपनी पूरी ज़िन्दगी में इन्हीं दोनों मापदंडों के आदेशों पर अमल करे।
उस्ताद अंसारियान पवित्र क़ुरआन के सूरे नह्ल की आयत नंबर 97 की ओर संकेत करते हुए कहते हैं कि इस आयत में आया है कि नेक अमल में इस बात से कोई अंतर नहीं पड़ता कि उसका अंजाम देने वाला मर्द है या औरत मगर एक अंतर है और वह अंतर एकेश्वरवाद, नबुव्वत, इमामत और क़यामत की आस्था रखने में है। महान ईश्वर कहता है कि मेरी जगह दुःखी लोगों के दिल हैं। तो महान ईश्वर की जगह इमाम हुसैन अलै. के अज़ादारों के दिल हैं। पाक व अच्छा जीवन उस इंसान का प्रतिदान व बदला है जो महान ईश्वर पर ईमान रखता हो और अच्छे कार्यों को अंजाम दिया हो।
उस्ताद अंसारियान कहते हैं कि महान ईश्वर की उपासना के साथ हलाल आजीविका कमाने की बात की गयी है। इमाम हुसैन अलै. से जंग करने के लिए 30 हज़ार लोग सामने आ गये थे उसका कारण क्या था? उन लोगों ने समय के इमाम को शहीद कर दिया इसका कारण हराम नेवाला था। उनके दिल वास्तविकता के लिए बंद हो गये थे और क़ुरआन का प्रकाश उनके दिलों में नहीं जा रहा था इमामत और हक़ व सच की बात क़बूल करने के लिए उनके दिलों पर ताले लग गये थे।
धार्मिक शिक्षाकेन्द्र के उस्ताद हुसैन अंसारियान कहते हैं कि अगर लोग शुद्ध उपासना चाहते हैं तो उन्हें चाहिये कि वे अपनी रोज़ी व नेवाले को हलाल कर लें। हराम माल इस बात का कारण नहीं बनेगा कि इंसान इबादात करके नजात पा जायेगा। स्वच्छ व पाक जीवन हलाल रोज़ी व नेवाले से संभव है। शैतान हमेशा इंसान को बुरा काम अंजाम देने और झूठ बोलने के लिए उकसाता है।
हमने तेल अवीव पर हमला किया: यमनी सेना
यमनी सशस्त्र बल के प्रवक्ता याहया साड़ी ने एक बयान में घोषणा की है कि यमनी सेना ने एक विशेष अभियान चलाकर अधिकृत फ़िलिस्तीन में तेल अवीव को निशाना बनाया है, जिसका विवरण बाद में घोषित किया जाएगा।
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, यमनी सशस्त्र बलों के प्रवक्ता याह्या साड़ी ने एक बयान में घोषणा की है कि यमनी सेना ने एक विशेष अभियान चलाकर फिलिस्तीन के कब्जे वाले तेल अवीव को निशाना बनाया है, जिसका विवरण बाद में घोषित किया जाएगा। .
समाचार सूत्रों ने बताया कि शुक्रवार सुबह तेल अवीव में एक जोरदार विस्फोट सुना गया।
अल-जज़ीरा समाचार चैनल ने विस्फोट स्थल की घोषणा "बिन येहुदा" सड़क के रूप में की, जो राजनयिक स्थलों के बहुत करीब स्थित है, और कहा कि एक ड्रोन इमारत में दुर्घटनाग्रस्त हो गया और जोरदार विस्फोट हुआ।
इज़रायली मीडिया का कहना है कि यह अभी भी स्पष्ट नहीं है कि ड्रोन तेल अवीव पर हमला करने में कैसे कामयाब रहा।
लेबनान पर जायोनी सेना के बर्बर हमले, हिज्बुल्लाह कमांडर समेत कई लोग शहीद
लेबनान पर जायोनी सेना के बर्बर हमले, हिज्बुल्लाह कमांडर समेत कई लोग शहीद
सूत्रों ने बताया कि जायोनी सेना के ड्रोन ने एक कार पर तीन मिसाइलें दागीं।
दक्षिण-पश्चिम लेबनान के जिबल अल-बुत्म में गुरुवार को जायोनी सेना के हवाई हमले में लोकप्रिय जनांदोलन हिज्बुल्लाह के एक सैन्य अधिकारी की मौत हो गई।
समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने लेबनानी सैन्य सूत्रों के हवाले से यह जानकारी दी है । सूत्रों ने बताया कि जायोनी सेना के ड्रोन ने एक कार पर तीन मिसाइलें दागीं। यह हमला सिद्दीकीन और जिबकिन शहरों के बीच जिबल अल-बुत्म इलाके में किया गया। हमले में कार चला रहे हसन मुहन्ना की मौत हो गई। वह एक स्थानीय सैन्य अधिकारी थे जो दक्षिणी लेबनान में पश्चिमी सीमा पर सैन्य गतिविधियों का संचालन करते थे।
बांग्लादेश के हालात बेकाबू, हिंसा में 32 से अधिक की मौत
बांग्लादेश में हिंसा से हालात और भी बेकाबू हो गए हैं। आक्रोशित छात्रों ने गुरुवार को देश के सरकारी प्रसारक में आग लगा दी। ढाका में हुई हिंसा में कम से कम 32 लोगों की मौत हो गई।
प्रधानमंत्री शेख हसीना बढ़ती झड़पों को शांत करने की अपील कर रही हैं। मौजूदा आरक्षण को खत्म करने और सिविल सेवा भर्ती नियमों में सुधार की मांग कर रहे सैकड़ों प्रदर्शनकारियों पर पहले तो पुलिस ने रबर की गोलियां चलाईं। मगर बाद में दंगाइयों ने जवाबी कार्रवाई की और पुलिस पर काबू पा लिया। आक्रोशित भीड़ ने पीछे हट रहे अधिकारियों को राजधानी ढाका में बीटीवी के मुख्यालय तक खदेड़ा, फिर नेटवर्क के रिसेप्शन भवन और बाहर खड़े दर्जनों वाहनों में आग लगा दी। इससे राजधानी ढाका धूं-धूं कर जल उठी। बेकाबू होते हालात को देखते हुए मोबाइल और इंटरनेट सेवाओं को बंद कर दिया गया है।
असम में मुस्लिम विवाह और तलाक कानून को भाजपा सरकार ने किया रद्द
असम की भाजपा सरकार ने मुस्लिम विवाह कानून रद्द कर दिया है। मुस्लिम विवाह के साथ तलाक रजिस्ट्रेशन कानून को भी राज्य सरकार ने रद्द कर दिया है।
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (X) पर लिखा है, 'हमने बाल विवाह के खिलाफ अतिरिक्त सुरक्षा उपाय करके अपनी बेटियों और बहनों के लिए न्याय सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है।
आज असम कैबिनेट की बैठक में Assam Repealing Bill 2024 के माध्यम से असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम और नियम 1935 को निरस्त करने का निर्णय लिया है।
असम निरसन विधेयक 2024 को विधानसभा के अगले मानसून सत्र में चर्चा के लिए प्रस्तुत किया जाएगा। मंत्रिमंडल ने यह भी निर्देश दिया है कि मुस्लिम विवाह के पंजीकरण के लिए कानून लाया जाए।
मुस्लिम विवाह और तलाक रजिस्ट्रेशन अधिनियम 1935 में मुसलमानों के निकाह और तलाक के पंजीकरण का प्रावधान है। इस अधिनियम में समय के साथ बदलाव भी किए गए। आखिरी बार संशोधन 2010 में किया गया था। इस संशोधन में स्वैच्छिक की जगह अनिवार्य शब्द जोड़ा गया था। पहले निकाह और तलाक का रजिस्ट्रेशन करवाना स्वैच्छिक था, लेकिन 2010 के बाद यह अनिवार्य हो गया।
शामे ग़रीबां की मजलिस इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में आयोजित की गई सुप्रीम लीडर भी उपस्थित हुए
तेहरान के इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में मंगलवार 10 मुहर्रम की रात को शामे ग़रीबां की मजलिस आयोजित की गई जिसमें हज़रत आयतुल्लाह ख़ामेनेई और मोमिनीन भी उपस्थित हुए
तेहरान के इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में मंगलवार 10 मुहर्रम की रात को शामे ग़रीबां की मजलिस आयोजित की गई जिसमें हज़रत आयतुल्लाह ख़ामेनेई और मोमिनीन भी उपस्थित हुए
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन जवाद मोहम्मद ज़मानी ने मजलिस पढ़ी जिसके बाद जनाब महदी समावाती ने कर्बला के मसाएब का ज़िक्र किया और दुआए तवस्सुल पढ़ी जबकि जनाब महदी सलहशूर ने नौहा और मरसिया पढ़ा।
तेहरान के इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में जुमे से शुरू होने वाला मजलिसों का सिलसिला 12 मुहर्रम तक जारी रहेगा
कश्मीर में निकल गया मोहर्रम का जुलूस
मुहर्रम के मौके पर हज़ारों कश्मीरी शियाओं ने जुलूस निकालकर श्रीनगर की सड़कों पर मातम किया इस मौके पर मौलाना ने तकरीर करते हुए इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के मसाएब बयान किए मसाएब सुनने के बाद मोमिनीन की आंखों से आंसू छलक पड़े।
मुहर्रम के मौके पर हज़ारों कश्मीरी शियाओं ने जुलूस निकालकर श्रीनगर की सड़कों पर मातम किया इस मौके पर मौलाना ने तकरीर करते हुए इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के मसाएब बयान किए मसाएब सुनने के बाद मोमिनीन की आंखों से आंसू छलक पड़े।
1989 में कश्मीर में आज़ादी के विद्रोह के बाद से 2023 तक 34 वर्षों तक मुहर्रम जुलूस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
इस प्रतिबंध के बावजूद शिया मुहर्रम की 9वीं और 10वीं तारीख को इन मार्गों पर मार्च करते थे, जब पुलिस लोगों से हिंसा का सामना करती थी।हालाँकि, 2023 में यह प्रतिबंध हटा दिया गया और हुसैनी जुलूस शुरू करने की अनुमति दी गई।
आज आठवीं मुहर्रम का जुलूस अधिकारियों की पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था के साथ निर्विघ्न संपन्न हो गया हालाँकि, सरकार ने मार्च करने वालों से सरकार विरोधी भाषणों या राजनीतिक नारों से परहेज करने को कहा था।
सुबह साढ़े पांच बजे हजारों शोक संतप्त लोग गुरु बाजार में एकत्र हुए क्योंकि अधिकारियों ने जुलूस का समय सीमित कर दिया था ताकि सामान्य जनजीवन प्रभावित न हो काले कपड़े पहने हुए, मार्च करने वालों ने इमाम हुसैन अ.स. और शहीदों के शोक कक्ष में नारे लगाए।