رضوی

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ज़ायोनी सेना ने पश्चिमी यमन में सेना के कई ठिकानों पर हमले किए हैं, जिसमें कम से कम तीन लोग मारे गए और 87 घायल हो गए। जबकि पिछले दिन तल अवीव में यमन सेना ने फिलीस्तीन के समर्थन में एक घातक ड्रोन हमला किया था।

यमन के पश्चिमी बंदरगाह शहर हुदैदह में कई 'सैन्य ठिकानों' पर हमला किया गया। ज़ायोनी सेना ने कहा कि यह हमला हाल के महीनों में अवैध राष्ट्र के खिलाफ हुए 'सैकड़ों हमलों' के जवाब में किया गया है।

 

ख़तीब अहले-बैत, शिया संप्रदाय के उपदेशक,  जनाब हाजी मौलाना सैयद मुनवर रज़ा साहब किबला मुमताज़ुल फ़ाज़िल, आज 20 जुलाई, शनिवार, इस दारेफ़ानी से दारे जावदानी तक अचानक गुज़र गया।

एक शमा और बुझी और अंधेरा बढ़ गया है, यह खबर बड़े दुख के साथ दी जा रही है कि ख़तीब अहले-बैत, शिया संप्रदाय के उपदेशक,  जनाब हाजी मौलाना सैयद मुनवर रज़ा साहब किबला मुमताज़ुल फ़ाज़िल, आज 20 जुलाई, शनिवार, इस दारेफ़ानी से दारे जावदानी तक अचानक निधन हो गया।

मौलाना दिवंगत सिरसी सादात के निवासी थे, लेकिन ज्ञान और अभ्यास की रोशनी मिहराब और मिम्बर के माध्यम से फैलाई और देश और विदेश में शिक्षण और उपदेश के माध्यम से, अहल अल-बैत का स्कूल हमेशा उज्ज्वल और चमकदार रहेगा।

ईश्वर मृतक को ज्वारे अहल-बैत में जगह दे और सभी शोक संतप्तों और शोक संतप्तों को धैर्य और दया प्रदान करे।

ईरान के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ने बल देकर कहा है कि शहीद जनरल क़ासिम सुलैमानी का मार्ग एकता और समरसता का मार्ग था और इस शहीद के मार्ग और मक़सद का अनुसरण करना चाहिये।

ईरान के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति मसऊद पिज़िश्कियान ने शहीद जनरल क़ासिम सुलैमानी के घर जाकर उनके परिजनों से मुलाक़ात की। पार्सटुडे की रिपोर्ट के अनुसार इस मुलाक़ात में पिज़िश्कियान ने शहीद जनरल क़ासिम सुलैमानी को श्रद्धासुमन अर्पित की और उन्हें संघर्ष व जेहाद और स्वयं से पद को दूर करने का आदर्श बताया।

ईरान के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ने उम्मीद जताई कि नई सरकार में पूरी निष्ठा के साथ लोगों की सेवा कर सकें और शहीदों के सामने शर्मिन्दा न हों और उनके सामने सर बुलंद हो।

 इस मुलाक़ात में शहीद सुलैमानी के परिजनों ने भी जनरल सुलैमानी की सेवाओं को बयान किया और कहा कि शहीद सुलैमानी ने अपनी पूरी उम्र ईरानी लोगों की सेवा में बिता दी और उनका एक प्रसिद्ध जुमला था कि मेरी और मेरे जैसे हज़ारों लोगों की जान ईरानी राष्ट्र पर क़ुर्बान।

प्रतिरोध के महानायक शहीद जनरल क़ासिम सुलैमानी के परिजनों ने कहा कि शहीद सुलैमानी जहां राष्ट्रीय हस्ती थे वहीं वह इस्लामी जगत के लिए एक महान व्यक्तित्व के स्वामी थे और वह पार्टी व धड़े से हटकर देखते थे और लोगों को एक विशेष धड़े व गुट के रूप में नहीं देखते थे।

जनरल शहीद क़ासिम सुलैमानी के परिजनों ने इसी प्रकार प्रतिरोध पर ध्यान देने और शहीद सुलैमानी के सम्मानजनक मार्ग को जारी रखने को नई सरकार से ईरानी लोगों की मांग व अपेक्षा बताया और कहा कि इंशा अल्लाह शोहदा मदद करेंगे कि जो लोगों की सेवा का रास्ता है उसमें आप कामयाब रहें।

उल्लेखनीय है कि इस मुलाक़ात के अंत में शहीद जनरल क़ासिम सुलैमानी के परिजनों ने प्रतिरोध के शहीदों के सरदार जनरल क़ासिम सुलैमानी की एक तस्वीर ईरान के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति को भेंट किया।

शहीद जनरल क़ासिम सुलैमानी के जेहाद की वर्दी के साथ ईरान के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति पिज़िश्कियान की तस्वीर

शहीद जनरल क़ासिम सुलैमानी सिपाहे पासदारान की क़ुद्स ब्रिगेड और पश्चिम एशिया में अमेरिका और ज़ायोनी सरकार के मुक़ाबले में प्रतिरोध के कमांडर थे। इराक़ और सीरिया में आतंकवादी गुट दाइश के ज़ाहिर होने के बाद उन्होंने इन देशों में उपस्थित होकर आतंकवाद से मुक़ाबले की कमान संभाली और इन देशों की सरकारों के सहयोग से आतंकवादी गुट दाइश से मुक़ाबला किया और इराक़ और सीरिया के जिन क्षेत्रों पर दाइश ने क़ब्ज़ा कर लिया था उन क्षेत्रों से दाइश को ख़त्म करने में शहीद जनरल क़ासिम सुलैमानी ने उल्लेखनीय भूमिका निभाई।

शहीद जनरल क़ासिम सुलैमानी सैनिक टैक्टिकों को लागू करने और साम्राज्यवादियों के षडयंत्रों को नाकाम बनाने में इतने माहिर व दक्ष थे कि उन्होंने जनरल क़ासिम सुलैमानी को छायारहित जनरल की उपाधि दे रखी थी।

अंततः 63 साल की उम्र में 13 दैय 1398 हिजरी शमसी को शुक्रवार की सुबह को इराक़ में अमेरिका की एक आतंकवादी कार्यवाही में जनरल क़ासिम सुलैमानी शहीद हो गये।

अमेरिका की यह आतंकवादी कार्यवाही इस बात का कारण बनी कि ईरान ने इराक़ में अमेरिका की सैनिक छावनी एनुल असद पर जवाबी हमला करके मिसाइलों की बारिश कर दी और उसके बाद ईरान ने पश्चिम एशिया में अमेरिकी सैनिकों के ख़िलाफ़ ग़ैर आधिकारिक युद्ध आरंभ कर दिया।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत के तीसरे दिन बनी असद कबीले की महिलाएं हमेशा की तरह फिर कर्बला पहुंची और इमाम हुसैन के साथ अपने कबीले के वादे को फिर से दोहराया और सांकेतिक रूप से वही काम अंजाम दिया जो इमाम की शहादत के बाद किया था ।

 

इजरायली युद्धक विमानों ने गाजा में एक फिलिस्तीनी पत्रकार के घर को निशाना बनाया और उनके परिवार के सभी सदस्यों सहित उनकी हत्या कर दी।

इजरायली लड़ाकू विमानों ने गाजा में एक फिलिस्तीनी पत्रकार के घर को निशाना बनाया और उनके परिवार के सभी सदस्यों सहित उनकी हत्या कर दी।

गाजा पट्टी के कमाल अदवान अस्पताल के एक व्यक्ति ने आज (शनिवार) अनादोलु एजेंसी को बताया कि मुहम्मद जस्सर नाम के एक फिलिस्तीनी पत्रकार पर उत्तरी गाजा के जबालिया शिविर में उनके घर पर इजरायली युद्धक विमानों ने हमला किया है।

उक्त व्यक्ति ने कहा कि इस हमले में फिलिस्तीनी पत्रकार अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ शहीद हो गए।

इस फ़िलिस्तीनी पत्रकार की शहादत के साथ, गाजा पट्टी में अल-अक्सा ऑपरेशन शुरू होने के बाद से शहीद पत्रकारों की संख्या 161 तक पहुँच गई है।

यह हमला तब किया गया जब इजरायली सेना ने बीती रात गाजा पट्टी के अलग-अलग इलाकों में कई घरों पर बमबारी की, जिसके परिणामस्वरूप 25 फिलिस्तीनी शहीद हो गए और कई घायल हो गए।

पिछले साल 15 अक्टूबर से इजरायली सेना ने गाजा पट्टी में विनाशकारी युद्ध शुरू कर दिया है, जिसके परिणामस्वरूप 38 हजार से ज्यादा फिलिस्तीनी शहीद हो गए हैं।

गाजा के स्वास्थ्य मंत्रालय ने घोषणा की है कि शहीदों में अधिकतर महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग शामिल हैं और करीब 10,000 फिलिस्तीनी अभी भी लापता हैं।

अवैध राष्ट्र के खिलाफ कड़ा रुख अपनाते हुए पाकिस्तान की सरकार ने कहा है कि वह इस्राईल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को आतंकवादी मानती है। पाकिस्तान ने मांग की कि फिलिस्तीनियों के खिलाफ युद्ध अपराध के लिए नेतन्याहू को न्याय के कटघरे में लाया जाना चाहिए।

प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के राजनीति और सार्वजनिक मामलों पर सलाहकार राणा सनाउल्लाह ने कहा कि 'नेतन्याहू एक आतंकवादी है और युद्ध अपराध का दोषी है।'

राणा सनाउल्लाह ने कहा कि पाकिस्तान में ऐसी कंपनियों और उत्पादों की पहचान के लिए एक समिति भी गठित की गई है, जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इस्राईल या फिलिस्तीनियों के खिलाफ युद्ध अपराध करने वाली ताकतों को बढ़ावा दे रही हैं।

 

 

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने रविवार 21 जुलाई 2024 की सुबह तेहरान में इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में संसद सभापति और सांसदों से मुलाक़ात की।

आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने इस मुलाक़ात में अपने ख़ेताब के दौरान क़ानून बनाने और उसकी ज़रूरी व ग़ैर ज़रूरी बातों के मैदान में संसद की ज़िम्मेदारियों के बारे में अहम बिंदु बयान करते हुए सरकार के साथ सहयोग, मुल्क के सभी अहम विभागों की ओर से एक ही आवाज़ सुनाई देने और विदेशी मसलों और विदेश नीति के मैदान में संसद की सक्रियता और उसकी ओर से गंभीर किरदार अदा किए जाने पर बल दिया।

उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय मसलों के संबंध में संसद की सलाहियतों और गुंजाइशों की ओर इशारा करते हुए कहा कि संसद एक अहम स्तंभ है और दुनिया की सरकारें अपने अहम मामलों में संसद से मदद लेती हैं।

उन्होंने ग़ज़ा के मसले को विदेशी मसलों में संसद की सरगर्मियों का एक उदाहरण बताया और इस सिलसिले में काम की अहमियत पर बल देते हुए कहा कि ग़ज़ा का मसला बदस्तूर इस्लामी दुनिया का सबसे अहम मसला है। उन्होंने कहा कि दुष्ट व क़ाबिज़ ज़ायोनी सरकार के अपराध शुरू होने को महीनों बीत जाने के बाद कुछ लोगों में इन अपराधों की भर्त्सना और उनके मुक़ाबले के सिलसिले में पाया जाने वाला आरंभिक जोश कम हो गया है लेकिन ग़ज़ा के मसले की अहमियत आरंभिक दिनों से भी ज़्यादा है।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने प्रतिरोध की दिन- प्रतिदिन बढ़ती ताक़त की ओर इशारा करते हुए कहा कि अमरीका जैसी एक बड़ी राजनैतिक, आर्थिक और सैन्य ताक़त क़ाबिज़ ज़ायोनी सरकार के साथ मिलकर प्रतिरोध के नाम वाले एक छोटे से गिरोह से लड़ रही है और चूंकि ये दोनों दुष्ट ताक़तें हमास और प्रतिरोध को ख़त्म करने में कामयाब नहीं हुई हैं इसलिए अपने बम अस्पतालों, स्कूलों, बच्चों, औरतों और मज़लूम लोगों पर गिरा रही हैं।

उन्होंने कहा कि यह अपराध और बर्बरता दुनिया के लोगों की नज़रों के सामने हो रही है और वो क़ाबिज़ व दुष्ट सरकार के ख़िलाफ़ फ़ैसला कर रहे हैं और यह मसला बदस्तूर जारी है।

आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने विदेशी मसलों में संसद की ओर से किरदार अदा किए जाने के सिलसिले में कहा कि संसद इस सिलसिले में सरकार के हाथ मज़बूत कर सकती है और विदेश नीति के सिलसिले में संसद के अच्छे व प्रभावी कामों में से एक ग्यारहवीं संसद का स्ट्रैटेजिक ऐक्शन क़ानून है, अलबत्ता कुछ लोगों ने इस क़ानून पर एतेराज़ किया और इसमें कमियां निकालीं जो पूरी तरह बेबुनियाद हैं।

 उन्होंने विश्व स्तर पर बदलाव और कूटनीति के क्षेत्र में संसद की ओर से किरदार अदा किए जाने को प्रभावी बताया और कहा कि ब्रिक्स की बैठक में संसद सभापति की प्रभावी मौजूदगी सहित संसद सभापति और सांसदों के दौरे और मुलाक़ातें प्रभावी रही हैं और विदेश नीति के मसलों के बारे में कभी कभी सांसदों का सिर्फ़ एक बयान या घोषणापत्र भी बहुत अहम और प्रभावी होता है।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने सरकारों की ओर से संसद के उपयोग को दुनिया में एक प्रचलित शैली बताया और कहा कि इसकी एक मिसाल सीसादा (CISADA) के नाम से जाना जाने वाला इस्लामी गणराज्य के ख़िलाफ़ अमरीका की व्यापक पाबंदियों का क़ानून है जिसे अमरीकी संसद ने पास किया और उस वक़्त के रिपब्लिकन राष्ट्रपति ने जो पाख़ंडी इंसान था, इस पर दस्तख़त किए।

उन्होंने पाबंदियों और उन्हें नाकाम बनाने में संसद के रोल पर रौशनी डालने हुए कहा कि हम पाबंदियों को अच्छे तरीक़ों से दूर कर सकते हैं बल्कि नाकाम बना सकते हैं। पाबंदियों को नाकाम बनाने के साधन हमारे हाथ में हैं और उसके लिए अच्छे रास्ते भी पाए जाते हैं और संसद इस मसले में अहम किरदार अदा कर सकती है।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने सरकार, न्यायपालिका और विधिपालिका के बीच सहयोग और समन्वय पर बल देते हुए कहा कि सिस्टम के मुख़्तलिफ़ तत्वों को एक संयुक्त प्लेटफ़ॉर्म बनाना चाहिए और इसके लिए उनके दरमियान सहयोग, एकता और कभी कभी अनदेखी भी ज़रूरी है।

उन्होंने कहा कि संसद को जो एक काम फ़ौरन करना है वह जनाब पिज़िश्कियान साहब के मंत्रीमंडल को विश्वास का वोट देना है। उन्होंने निर्वाचित राष्ट्रपति के मंत्रीमंडल के लिए ज़रूरी ख़ुसूसियतों और मानकों के बारे में कहा कि ऐसे शख़्स को मैदान में लाना चाहिए जो मोमिन, ईमानदार, सच्चा, घर्मपरायण, दिल से इस्लामी गणराज्य पर भरोसा करने वाला और भविष्य की ओर से आशावान हो। 

इस्लामी क्रांति के नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने आर्थिक, सांस्कृतिक, अंतरराष्ट्रीय और दूसरे मामलों में श्री पिज़िश्कियान की कामयाबी को सबकी कामयाबी बताया और कहा कि सबको चाहिये कि दायित्वों के निर्वाह में ईरान के निर्वाचित राष्ट्रपति की मदद करें और दिल की गहराइयों से विश्वास करें कि उनकी कामयाबी हम सबकी कामयाबी है।

इस्लामी क्रांति के नेता से सांसदों की मुलाक़ात में ईरान के निर्वाचित राष्ट्रपति उपस्थित

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने उम्मीद जतायी कि इन मानकों पर अमल और राष्ट्रपति व संसद की ओर से संयुक्त ज़िम्मेदारी अदा किए जाने से एक अच्छे, उपयोगी, धर्मपरायण, और इंक़ेलाबी मंत्रिमडल का गठन होगा जो मुल्क के मामलों को आगे बढ़ा सकेगा।

एक ईरानी महिला पर्वतारोही ने पैग़म्बरे इस्लाम के नाती हज़रत इमाम हुसैन का नाम लेकर जॉर्जिया की काज़बेक चोटी को सर करने में कामयाब रहीं जिसे मिनी एवरेस्ट के रूप में याद किया जाता है। 

5047  मीटर ऊंची काज़बेक की चोटी जॉर्जिया में सेंट्रल काकेशस पर्वत श्रृंखला के पूरब में स्थित है जिसे स्माल एवरेस्ट का नाम दिया गया है। से जाना जाता है।

ईरान की महिला पर्वतारोही ज़हरा अब्बासी ने कहा: लगभग 24 घंटे की निरंतर कोशिशों और ग्लेशियरों, बर्फ़ के पहाड़ों और टीलों से गुज़रते हुए बर्फ़ीली हवाओं का सामना करते हुए अस्थिर मौसम की परेशानियों से गुजरने के बाद, वह काज़बेक चोटी पर चढ़ने में कामयाब हुईं जिस पर चढ़ना और इसकी परेशानी व कठिनाई की डिग्री हिमालय की चोटी के बराबर ही है।

इस ईरानी महिला ने 14 साल पहले पर्वतारोहण शुरू किया था थी और अब तक ईरान के 31 प्रांतों की कई चोटियां फतह कर चुकी हैं।

 उन्होंने कहा: पर्वतारोहण मेरी जीवनशैली है और विशेष और प्राकृतिक दृश्यों को देखकर मुझे एहसास होता है कि सृष्टि के निर्माता ने दुनिया को कितना व्यवस्थित बनाया है।

उनका कहना था कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि ऊंचाई और ख़राब मौसम की समस्या, मुझे मेरी मंज़िल तक ले जाती है और मुझे याद दिलाती है सर्वशक्तिमान ईश्वर का नाम जिस चीज़ ने पर्वतारोण की ख़राब परिस्थितियों में हमेशा मेरी आत्मा हज़रत फ़ातेमा ज़हरा और उनके प्राण प्रिय पुत्र हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के गुणगान से शांत बनाए रखा।

 

 

ईरान और इराक समेत दुनिया के कई देशों में खिदमत करने वाले मशहूर धार्मिक विद्वान आयतुल्लाह अब्दुल करीम क़ज़वीनी का निधन हो गया।

वह आयतुल्लाह खुई और शहीद बाकिर अल सद्र के विशेष शागिर्दों में शामिल थे । मस्जिदे इमाम हसन असकरी से हज़रत मासूमा ए कुम के रौज़े तक तशी के बाद उनके शव‌ को नजफे अशरफ़ भेज दिया गया जहां उन्हें सुपुर्द-ए-खाक किया गया।

किताबे " चेहरये दरख़शाँ हुसैन इबने अली अलैहिमस्सलाम " के पेज न0 227 और 230 पर इस तरह लिखा है महान आलिम हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लमीन जनाब हाज मुर्तज़ा मुज्तहेदी सीस्तानी इस तरह बयान करते हैः

मेरे चाचा जनाब सय्यद इब्राहीम मुज्तहेदी सीस्तानी इमाम-ए-रज़ा अलैहिस्सलाम के पुराने ज़ाकरीन में से थे. मेरे स्वर्गीय चाचा ने एक सपने मे सिद्दीक़ए कुबरा हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाहे अलैहा को देखा कि एक सूची उन के सामने रखी है जो खुली हुई है मैं ने उन इस बारे में पूछा कि यह किस की सूची है ?

सिद्दीक़ए कुबरा हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाहे अलैहा ने फ़रमायाः मेरे बेटे हुसैन की मजलिस पढ़ने वालों का नाम इस सूची में है।

मेरे स्वर्गीय चाचा ने देखा कि कुछ मजलिस पढ़ने वालों का नाम उस सूची में है और वह पैसा कि जो उन को मजलिस पढ़ने का उस मोहर्रम में दिया गया था वह भी उस सूची में लिखा है।

मेरे स्वर्गीय चाचा ने अपना भी नाम उस सूची में देखा और यह भी देखा कि उन के नाम के आगे लिखा था 30 तूमान (ईरानी पैसे को तूमान कहते हैं।)

नींद से जागे तो जो सपना उन्हों ने देखा था बहुत आश्चर्यचकित हुए क्योंकि 30 तुमान उस ज़माने में एक मजलिस का बहुत ज़्यादा पैसा था मगर दो महीने और ज़्यादा मजलिसों के कारण इत्ना पैसा हो सकता था लेकिन संजोग से उसी वर्ष वह बीमार हो गए यहाँ तक कि घर से निकलने की भी ताक़त नही थी और उन की बीमारी हर दिन बढ़ती ही जा रही थी यहाँ तक कि मोहर्रम और सफ़र को महीना ख़तम होने का था। इस दो महीने में सिर्फ़ एक दिन उन की हालत कुछ ठीक हुई और सिर्फ़ एक ही मजलिस में जा सके मजलिस के बाद जिसने मजलिस करवाई थी उस ने उन को एक पैकेट दिया कि जिस में 30 तूमान था ।

इस बात से उन के सपने को सच होना सिध्द है और यह भी सिध्द होता है कि सिद्दीक़ये कुबरा हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाहे अलैहा मजलिस पढ़ने वालों पर कृपा करती हैं और सब कुछ उस महान हस्ती के कन्टरोल में है ।

मजलिस पढ़ने वालों का सिद्दीक़ये कुबरा हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाहे अलैहा की नज़र में क्या पद है और वह लोग कित्ने महान है उन की नज़र में, इस बात का पता इमाम-ए-जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम की इस बात से चलता हैः

कोई भी ऐसा नहीं है कि जो इमाम-ए-हुसैन अलैहिस्सलाम पर आंसू बहाये और रोये मगर यह कि उस का रोना सिद्दीक़ये कुबरा हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाहे अलैहा तक पहुँचता है और सिद्दीक़ये कुबराहज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाहे अलैहा इमाम-ए-हुसैन अलैहिस्सलाम पर रोने वालों की सहायता करती हैं, और उस का रोना रसूले ख़ुदा तक भी पहुंचता है और वह इन आंसूओं की क़ीमत अदा करते हैं।

एक दूसरी रेवायत मे भी इमाम-ए-हुसैन अलैहिस्सलाम पर रोने के सिलसिले में इमाम-ए-जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम से वारिद हुआ है कि आप ने फ़रमायाः

जो कोई इमाम-ए-हुसैन अलैहिस्सलाम पर रोता है इमाम उस को देखते हैं और उस के लिए इस्तिग़फ़ार करते हैं और हज़रत अली अलैहिस्सलाम से भी कहते हैं कि वह भी रोने वालों के लिए इस्तिग़फ़ार करें और रोने वालों से कहते हैः

अगर तुम लोगों को मालूम हो जाये कि इश्वर ने तुम लागों के लिए क्या तय्यार किया है तो तुम जित्ना ज़्यादा दुखी होते उस से ज़्यादा उस के लिए ख़ुश होते और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम उस के लिए इस्तिग़फ़ार करते हैं हर उस गुनाह के लिए जो उस ने किया है।

इमामे हुसैन अलैहिस्सलाम के दुख में एक बूंद आँसु सारे गुनाह को ख़त्म कर देता है रेवायतों में आया है कि जो भी व्यक्ति इमाम-ए-हुसैन अलैहिस्सलाम की मजलिस में आता है उस को चाहिए कि उन के सम्मान का ध्यान रखे।

एक अहम बात यह है कि जो कोई इमाम-ए-हुसैन अलैहिस्सलाम कि मजलिस में रोता है उस को चाहिए कि वह इमाम-ए-ज़माना आज्जल्लाहू फ़रजहुश्शरीफ़ के ज़हूर के लिए दुआ करे और ईश्वर से यह दुआ करे कि वह इमाम के ज़हूर में जल्दी करे ताकि इमाम-ए-ज़माना की दुआ का मुस्तहेक़ हो।

एक जगह इमाम-ए-ज़माना आज्जल्लाहू फ़रजहुश्शरीफ़ ने फ़रमायाः

मैं हर उस व्यक्ति के लिए दुआ करता हूँ जो इमाम-ए-हुसैन अलैहिस्सलाम की मजलिस मे मेरे लिए दुआ करता है।