
رضوی
अल-अक्सा मस्जिद में ईद-उल-फितर की नमाज
लगभग 60,000 फिलिस्तीनी येरुशलम में अल-अक्सा मस्जिद पहुंचे और ईद-उल-फितर की नमाज अदा की।
बेइत अल-मकदीस के अवकाफ इंस्टीट्यूशन ने घोषणा की है कि ज़ायोनी बाधाओं के बावजूद, हजारों फिलिस्तीनी अल-अक्सा मस्जिद पहुंचे, जहां मस्जिद के प्रांगण भी फिलिस्तीनियों से भरे हुए थे और उन्होंने ईद की नमाज़ अदा की।
फ़िलिस्तीनी ज़ायोनी बाधाओं को पार करके अल-अक्सा मस्जिद तक पहुँचने में सफल रहे। ईद-उल-फितर की नमाज ख़त्म होते ही ज़ायोनी सरकार की हमलावर सेना ने मस्जिद पर हमला कर दिया। ईद की नमाज के मौके पर अल-अक्सा मस्जिद में फिलिस्तीनियों के जमावड़े का बेहतरीन नजारा देखने को मिला.
इस्राईल ने ग़लती कर दी, उसे सज़ा मिलनी चाहिए और सज़ा मिलेगी: आयतुल्लाह ख़ामेनेई
आयतुल्लाह ख़ामेनेईः दूतावास देश की सरज़मीन के अर्थ में है जब हमारी काउंसलेट पर हमला किया तो समझिए उन्होंने हमारी सरज़मीन पर हमला किया है। यही दुनिया की आम समझ है। इस्राईल ने ग़लती कर दी, इस मामले में उसे सज़ा मिलनी चाहिए और सज़ा मिलेगी।
ईद-उल-फितर की फजीलत
इस्लाम के पैगंबर, शांति और आशीर्वाद उन पर हो, और अहल-अल-बैत अतहर, शांति और आशीर्वाद उन पर हो, दिन-रात ईद-उल-फितर को अधिक महत्व देने के लिए विश्वासियों से आग्रह किया गया है इस अवसर का उपयोग करें और इसकी उपेक्षा न करें।
एक महीने के उपवास के बाद, विश्वासी आश्वस्त और संतुष्ट हैं कि उनका स्वभाव और इरादे स्पष्ट और पारदर्शी हो गए हैं, सर्वशक्तिमान ईश्वर के भोज और आतिथ्य के परिणामस्वरूप, वे लगातार एक महीने तक सांसारिक जीवन से दूर रह सकते हैं और लाभ उठा सकते हैं। ईश्वर का प्रकाश। परिणामस्वरूप, आप स्वयं को ईश्वर के एक ईमानदार सेवक और आज्ञाकारिता और पूजा के मार्ग पर देखना चाहते हैं।
सर्वशक्तिमान ईश्वर ने इस दिन [ईद-उल-फितर] को भी एक विशेष भव्यता प्रदान की है ताकि यह पिछले दिन की तुलना में अधिक विश्वासियों का ध्यान आकर्षित कर सके, ईश्वर उन्हें आशीर्वाद दें और उन्हें शांति प्रदान करें, इस संबंध में कहते हैं: अल -फ़ित्र अल्लाह ने पूरे देश में फ़रिश्ते भेजे, और वे धरती पर उतरे और सिक्कों के मुँह पर खड़े होकर कहा, "हे मुहम्मद का राष्ट्र निकलेगा, हे भगवान, जो महिमा देता है और महानों को क्षमा करता है।
ईद-उल-फितर की सुबह, सर्वशक्तिमान ईश्वर सभी शहरों में स्वर्गदूतों को भेजता है, स्वर्गदूत धरती पर उतरते हैं और हर सड़क और सड़क के मोड़ पर खड़े होते हैं और कहते हैं, हे उम्माह मुहम्मद! [प्रार्थना के लिए] सर्वशक्तिमान अल्लाह की ओर एक कदम बढ़ाएं कि वह एक बड़ा इनाम देगा और आपके पापों को माफ कर देगा।
और एक अन्य परंपरा में, पवित्र पैगंबर ने कहा: "जब वे प्रार्थना करने आए, तो अल्लाह ने स्वर्गदूतों से कहा: मेरे स्वर्गदूतों! मज़दूरी करने वाले का इनाम क्या है? उन्होंने कहा: और फ़रिश्तों ने कहा: भगवान और हमारे भगवान! मौत की सज़ा ही उसका इनाम है।
जब [उपासक] ईद की नमाज़ के लिए अपने ईदगाह की ओर कदम बढ़ाते हैं, तो सर्वशक्तिमान ईश्वर अपने स्वर्गदूतों को संबोधित करते हैं और कहते हैं; हे मेरे देवदूतों! कार्य पूरा करने वाले श्रमिक का वेतन क्या है? स्वर्गदूतों ने उत्तर दिया, हे मेरे परमेश्वर और मुखिया! कि मजदूरी का पूरा भुगतान किया जाए।
1: अमली मुफ़ीद मजलिस 27 पी
ईद; दैनिक स्व-जवाबदेही
पवित्र क़ुरआन के शब्दों के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपनी ऊर्जा और शक्ति का ज्ञान है कि वह अपने लक्ष्य में कितना सफल हुआ है और कितना असफल हुआ है: बल्कि, मनुष्य स्वयं अपनी आत्मा की स्थितियों से भली-भांति परिचित है चाहे वह कितने भी बहाने प्रस्तुत करे, वे लोग जो खोजते हैं और प्रयास करते हैं, जो लोग नौकरी और काम करते हैं, जो लोग नौकरी और कर्तव्य करते हैं और जो लोग शिक्षा प्राप्त करें, क्या आप अपने बारे में बेहतर जानते हैं कि आपने अपने वज़ीफ़ा पर सही ढंग से काम किया है या नहीं?
इस एक महीने की अवधि के दौरान, मनुष्य सर्वशक्तिमान ईश्वर और दयालु दुनिया का मेहमान था, उसे कई अवसर प्रदान किये गये, क्या उसने इस अवसर का सदुपयोग किया? बरकतों से भरा यह महीना समाप्त हो गया है और ईद-उल-फितर भी हमारे सामने है, यह समय है कि व्यक्ति अपनी स्थिति का मूल्यांकन करे कि उसकी स्थिति क्या है और उसे कितनी प्रतिशत सफलता मिली है और कितनी प्रतिशत असफलता मिली है। उसने सामना किया अर्थात् इस दिव्य परीक्षा में उसके कितने अंक हैं और उसे कितने अंक प्राप्त हुए? जब हम हदीसों को देखते हैं तो हमें यह महान शिक्षा मिलती है: हर किसी को अपने कार्यों का आकलन करना चाहिए।
इस संबंध में हज़रत इमाम जाफ़र सादिक (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) कहते हैं कि "मैंने उन्हें रमज़ान के महीने में माफ़ नहीं किया, मैंने उन्हें रमज़ान के महीने तक माफ़ नहीं किया कि वह अरफ़ा के मैदान में मौजूद हों।" अगर हम इस हदीस और पिछले एते-करीमा को एक साथ रखें तो पता चलेगा कि इंसान को खुद का हिसाब करना चाहिए कि उसने इस पाक महीने में खुदा का मेहमान बनकर कितनी रहमत बटोरी और कितनी मगफिरत नदी में गोता लगाते हुए उसने अपना क्षमा उपकरण उपलब्ध कराया है।
1: क़ाज़ी नुमान मग़रिबी, दायिम अल-इस्लाम खंड 1, पृष्ठ 269
माहे रमज़ान के उनतीसवें दिन की दुआ (29)
माहे रमज़ानुल मुबारक की दुआ जो हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व.ने बयान फ़रमाया हैं।
اَللَّـهُمَّ غَشِّني فيهِ بِالرَّحْمَةِ، وَارْزُقْني فيهِ التَّوْفيقَ وَالْعِصْمَةَ، وَطَهِّرْ قَلْبي مِنْ غَياهِبِ التُّهَمَةِ يا رَحيماً بِعِبادِهِ الْمُؤْمِنينَ.
अल्लाह हुम्मा ग़श्शिनी फ़ीहि बिर्रहमति, वर-ज़ुक्नी फ़ीहित तौफ़ीक़ा वल इसमता, व तह्हिर क़ल्बी मिन ग़याहिबित तोहमति, या रहीमन बे इबादिहिल मोमिनीन (अल बलदुल अमीन, पेज 220, इब्राहिम बिन अली)
ख़ुदाया! इस महीने में मुझे अपनी रहमत से ढांप दे, और मुझे नेकी की तौफ़ीक़ दे, और बुराई से दूर रख, और मेरे दिल को तोहमत के अंधेरों से पाक कर दे, ऐ अपने बन्दों पर बहुत रहम करने वाले...
अल्लाह हुम्मा स्वल्ले अला मुहम्मद व आले मुहम्मद व अज्जील फ़रजहुम.
बंदगी की बहार- 29
आज पवित्र रमज़ान या दूसरे शब्दों में ईश्वर के दस्तरख़ान पर मेहमान होने का आख़िरी दिन है।
ईश्वर हम सभी रोज़ा रखने वालों को इस महीने की बर्कतों से मालामाल करे। हम सभी आध्यात्मिक मन के साथ ईदुल फ़ित्र का स्वागत करें। इस साल पवित्र रमज़ान के अंतिम दिन इस्लामी क्रान्ति के संस्थापाक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह की बरसी पड़ रही है। ईरानी जनता इस्लामी क्रान्ति के संस्थापाक की तीसवीं बरसी का शोक मना रही है। दोनों घटनाओं का एक साथ होना इस बात का बहाना बना कि हम इस पवित्र महीने में निहित व्यापक बर्कतों को महाआत्मज्ञानी इमाम ख़ुमैनी के शब्दों में बयान करें ताकि हमें इस विशाल दस्तरख़ान से ज़्यादा से ज़्यादा लाभान्वित होने में मदद मिले और इस महीने में कुछ हासिल करके निकलें।
इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह ने पवित्र क़ुरआन की आयतों, पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों की रिवायतों के आधार पर रमज़ान के महीने को ईश्वर की मेहमानी के महीने का नाम दिया है और ईश्वर का मेहमान बनने के अर्थ की व्याख्या में सांसारिक इच्छाओं को छोड़ने को इस मेहमानी में दाख़िल होने और इस महीने से लाभान्वित होने की शर्त बताया है। इस बारे में इमाम ख़ुमैनी फ़रमाते हैः "ईश्वर की मेज़बानी क्या है? ईश्वर की मेज़बानी भौतिक जगत में सभी सांसारिक इच्छाओं को छोड़ना है। जो भी इस मेहमानी में बुलाए गए हैं, जान लें कि ईश्वर का मेहमान बनने के इस चरण में इच्छाओं से दूरी करना है। शारीरिक इच्छाओं को छोड़ना, मानसिक इच्छाओं को छोड़ने से आसान है। ईश्वर का मेहमान बनने का अर्थ इन इच्छाओं को छोड़ना है।"
इमाम ख़ुमैनी ईश्वर का मेहमान बनने की शर्त ग़लत इच्छाओं को छोड़ना बताते हुए कहते हैं कि अगर इंसान के मन में तनिक भी बुरी इच्छाएं होंगी तो वह ईश्वर का मेहमान नहीं बन सकता और अगर मेहमान बन भी जाए तो उस मेहमानी से वह ज़रूरी फ़ायदा नहीं उठा पाएगा। इमाम ख़ुमैनी कहते हैः आप सब ईश्वर की मेहमानी के लिए बुलाए गए हैं। सभी ईश्वर के मेहमान हैं। अगर मन में तनिक भी बुरी इच्छा होगी तो ईश्वर की मेहमानी में दाख़िल नहीं हुए और अगर हुए भी तो उससे फ़ायदा नहीं उठा पाए। यह दुनिया में नज़र आने वाले लड़ाई झगड़े इस वजह से हैं कि आप ने ईश्वर की मेहमानी से फ़ायदा नहीं उठाया। इस मेहमानी में पहुंचे ही नहीं। ईश्वर के निमंत्रण को स्वीकार ही नहीं किया। कोशिश कीजिए इस निमंत्रण को स्वीकार कीजिए ताकि आपको यहां जाने दें और अगर जाने दिया तो सारे मामले हल हैं। ये हमारे मामले हल नहीं होते इसकी वजह यह है कि हम ईश्वर की मेहमानी में पहुंचे ही नहीं। दरअस्ल हम पवित्र रमज़ान में दाख़िल ही नहीं हुए हैं।
इमाम ख़ुमैनी आम दावत और ईश्वर की मेहमानी में अंतर को स्पष्ट करने के लिए इस बिन्दु की ओर इशारा करते हैं कि ईश्वर की मेहमानी में लोग अलौकिक दस्तरख़ान की नेमतों से फ़ायदा उठाते हैं ताकि इच्छाओं से मुक़ाबला करने के लिए अपने इरादे को मज़बूत करें और ख़ुद को शबे क़द्र नामक विशेष रात में दाख़िल होने के लिए तय्यार कर सकें। इमाम ख़ुमैनी के शब्दों मेः लोगों की मेहमानी और ईश्वर की मेहमानी में अंतर यह है कि जब कोई आदमी आप को दावत देता है तो आपके लिए खाने पीने और मनोरंजन की चीज़ें मुहैया करता है लेकिन ईश्वर की मेहमानी का एक हिस्सा रोज़ा है और उसकी एक अहम चीज़ आसमानी व अलौकिक दस्तरख़ान क़ुरआन है। आपके मेज़बान ने आपको रोज़ा रखने के लिए कहा है ताकि अपनी इच्छाओं पर क़ाबू पाइये और शबे क़द्र के लिए तय्यार हो जाइये।
इमाम ख़ुमैनी पवित्र क़ुरआन से लगाव और शाबान और रमज़ान महीनों की दुआएं पढ़ने पर बल देते हैं ताकि पवित्र रमज़ान की बर्कतें ज़्यादा से ज़्यादा हासिल हो सकें। इस बारे में इमाम ख़ुमैनी कहते हैः "पवित्र रमज़ान और शाबान के महीनों से विशेष दुआएं हमारा गंतव्य की ओर मार्गदर्शन करने वाली हैं। इन दुआओं में जिन सूक्ष्म बातों का उल्लेख है वह कहीं नहीं है। इन बिन्दुओं पर ध्यान दीजिए। ये दुआएं इंसान को हरकत में ला सकती हैं।"
इमाम ख़ुमैनी ईदुल फ़ित्र को उस व्यक्ति के लिए वास्तविक ईद मानते हैं जो ईश्वर की मेहमानी में शामिल होने में सफल हुआ और अपने मन में सुधार किया। मन में सुधार का चिन्ह यह है कि इंसान दुनिया में घटने वाली घटनाओं को चाहे वह सफलता हो या असफलता, ख़ुशी हो या दुख उसे अस्थायी व सामयिक समझता है। इमाम ख़ुमैनी कहते हैः "मुझे उम्मीद है कि यह ईदुल फ़ित्र सभी मुसलमानों के लिए वास्तविक अर्थ में ईद होगी। वास्तविक ईद तब होगी जब इंसान ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त और मन में सुधार कर ले। इस दुनिया से जुड़े मामले जल्द ही ख़त्म हो जाते हैं। इस दुनिया की सफलता, असफलता, ख़ुशियां और दुख कुछ दिनों के होते हैं। जो चीज़ हमारे और आपके लिए बाक़ी रहेगी वह जो हमने अपने भीतर हासिल की हैं। हमें यह विश्वास होना चाहिए कि ईश्वर हर जगह मौजूद है। हमें यह विश्वास होना चाहिए कि सब कुछ उसी के हाथ में है। हम कुछ नहीं हैं। हमें यह विश्वास होना चाहिए कि हम ईश्वर की अनुकंपाओं का आभार व्यक्त करने में नाकाम हैं।"
इमाम ख़ुमैनी मानसिक सुधार को पवित्र रमज़ान की उपलब्धियों में बताते हुए कहते हैः रमज़ान के महीने में हमें ख़ुद को सुधारने की ज़रूरत है। हमें मन को सुधारने की ज़रूरत है। बड़े पैग़म्बरों को भी इस बात की ज़रूरत थी। उन्होंने इसे समझा और उसके अनुसार कर्म किया। हमारी बुद्धि के सामने चूंकि पर्दे पड़े हुए हैं इसलिए हम नहीं समझ पाए और अपने कर्तव्य के अनुसार कर्म नहीं कर सके। पवित्र रमज़ान के बर्कतों वाला महीना होने का अर्थ यही है कि ईश्वर ने जो कर्तव्य निर्धारित किए हैं उन्हे पूरा करें।"
इमाम ख़ुमैनी कहते हैं कि किसी के मन के पवित्र रमज़ान के महीने में सुधरने का एक नतीजा यह है कि ऐसा व्यक्ति अत्याचार और अत्याचारियों का विरोध करता है। आप इस्लामी सरकारों और मुसलमानों को संबोधित करते हुए कहते हैः "अगर पवित्र रमज़ान के महीने में मुसलमान सामूहिक रूप से ईश्वर की मेहमानी में पहुंचे होते, मन को पवित्र किया होता तो मुमकिन नहीं था कि वे अत्याचार को सहन करते। अत्याचार को सहन करना भी अत्याचार की मदद है। इन दोनों का विदित कारण मन का पवित्र न होना है। अगर हम इस स्थिति में होते तो कभी भी अत्याचार और अत्याचारियों को सहन न करते। इन सबकी वजह यह है कि हमने अपने मन को पाक ही नहीं किया। सरकारें सही नहीं हैं। वही राष्ट्र अत्याचार सहन करते हैं जिनका मन पवित्र नहीं होता।"
इमाम ख़ुमैनी पवित्र रमज़ान के दिन और रात की मन की शुद्धि के लिए अहमियत के मद्देनज़र, अपने व्यक्तिगत जीवन में पवित्र रमज़ान के लिए विशेष कार्यक्रम बनाते थे। वह रमज़ान के पूरे महीने दूसरों से भेंट के कार्यक्रम को स्थगित कर देते थे ताकि ईश्वर की मेहमानी के इस महीने से ज़्यादा से ज़्यादा लाभान्वित हो सकें। इमाम ख़ुमैनी के निकट रहने वाले बहुत से लोगों का कहना है कि इमाम ख़ुमैनी अपने बहुत से काम रमज़ान के महीने में छोड़ देते थे। जब उनसे इस बारे में कोई पूछता था तो कहते थेः "पवित्र रमज़ान का महीना ख़ुद एक काम है।" इमाम ख़ुमैनी के पवित्र रमज़ान के कार्यक्रम में एक, पवित्र क़ुरआन की कई बार तिलावत करना शामिल था। जिन दिनों इमाम ख़ुमैनी नजफ़ में थे, उनके साथ रहने वाले एक व्यक्ति का कहना है कि इमाम ख़ुमैनी एक दिन में एक तिहाई क़ुरआन की तिलावत करते थे अर्थात तीन दिन में पूरे क़ुरआन की तिलावत करते थे। इसी तरह जब नजफ़ में इमाम ख़ुमैनी आंख के डॉक्टर के पास गए तो चिकित्सक ने उनसे कहा कि आप अपनी आंख को सुकून देने के लिए कई दिन क़ुरआन की तिलावत छोड़ दें। चिकित्सक के इस मशविरे पर इमाम ख़ुमैनी ने कहा कि मैं पवित्र क़ुरआन की तिलावत के लिए चाहता हूं कि मेरी आंख अच्छी हो जाए। उस आंख से क्या फ़ायदा जिसके होने के बाद भी क़ुरआन न पढ़ सकूं। कुछ ऐसा कीजिए कि मैं क़ुरआन पढ़ सकूं।
इमाम ख़ुमैनी इसी तरह रात की विशेष नमाज़ जिसे नमाज़े शब या तहज्जुद की नमाज़ कहते हैं, पूरी ज़िन्दगी ख़ास तौर पर पवित्र रमज़ान के महीने में पढ़ते थे। इमाम ख़ुमैनी के एक निकटवर्ती शख़्स का कहना है कि जब मैं रात के अंधेरे में आधी रात को इमाम के कमरे में जाता तो उन्हें ईश्वर की याद में लीन पाता। उन्हें बड़ी तनमयता से नमाज़ पढ़ने में लीन पाता तो मैं सोचता था कि आज की रात शबे क़द्र है। इमाम ख़ुमैनी की यह हालत एक दो रात नहीं बल्कि पूरी उम्र रही। इमाम ख़ुमैनी ने पचास साल नमाज़े शब पढ़ी । इमाम ख़ुमैनी के कार्यालय के एक व्यक्ति का कहना है कि इमाम ख़ुमैनी स्वस्थ, बीमार, जेल, रिहाई, देशनिकाला यहां तक कि अस्पताल के बेड पर भी नमाज़ शब पढ़ते रहे। इमाम ख़ुमैनी की पवित्र रमज़ान के महीने में उपासना का अलग ही जलवा था। इमाम ख़ुमैनी के एक अंगरक्षक का कहना है कि पवित्र रमज़ान की एक रात आधी रात को मुझे मजबूरन इमाम के कमरे के सामने से गुज़रना पड़ा। जिस समय मैं गुज़र रहा था तो मुझे लगा कि इमाम रो रहे हें। इमाम के रोने की आवाज़ का मुझ पर बहुत असर पड़ा कि किस तरह इमाम उस रात को अपने ईश्वर की उपासना में लीन थे।
इमाम ख़ुमैनी क़द्र की रात को ईश्वरीय कृपा के उतरने की रात बताते हुए सभी को इस रात से फ़ायदा उठाने के लिए प्रेरित करते थे ताकि आत्मा पवित्र हो जाए। इमाम ख़ुमैनी के शब्दों में हमें इस महीने और दूसरे महीनों में अंतर को समझना चाहिए। हमें शबे क़द्र को पाने की कोशिश करनी चाहिए कि इस रात में ही ईश्वरीय कृपा की वर्षा होती है। इस दृष्टि से यह दुनिया की सभी रातों से बेहतर है और उस ईश्वरीय दस्तरख़ान से जो क़ुरआन और दुआएं हैं, लाभान्वित होना चाहिए। पवित्र मन के साथ हमें दाख़िल होना चाहिए।
इमाम ख़ुमैनी पवित्र रमज़ान के महीने में नाफ़िला नामक विशेष नमाज़ को ज़रूर पढ़ते और दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करते थे। कहते हैं कि जिन दिनों इमाम ख़ुमैनी पवित्र नगर नजफ़ में थे, उस भीषण गर्मी में भी उस समय तक रोज़ा इफ़्तार नहीं करते थे जब तक मग़रिब की नमाज़ को नाफ़िले के साथ नहीं पढ़ लेते थे। पूरी रात सुबह की नमाज़ तक नमाज़ें और दुआएं पढ़ते थे।
ईश्वरीय आतिथ्य- 29
रमज़ान का पवित्र महीना समाप्त होने जा रहा है।
ईश्वर की ओर से धैर्य तथा बंदगी के अभ्यास का समय अब समाप्त होता जा रहा है। यह पवित्र महीना ईश्वर से निकटता प्राप्त करने के लिए एक प्लेटफार्म के रूप में था जो बहुत तेज़ी से अपने अंत की ओर जा रहा है। अब अगर जीवन रहा तो अगले साल ही इससे मुलाक़ात हो सकेगी। इस बारे में इमाम ज़ैनुल आबेदीन कहते हैं कि यह पवित्र महीना, बड़ी ही शालीनता के साथ हमारे बीच रहा जिसने रोज़ेदारों को अद्वितीय लाभ पहुंचाए। यह अब हमसे अलग हो रहा है।
रमज़ान के पवित्र महीने में उपासना वास्तव में अपनी प्रवृत्ति की ओर वापसी का एक बहुत अच्छा अवसर है। यह महीना, आध्यात्मिक अनुभवों को प्राप्त करने का बहुत बेहरीन मौक़ा था। इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ) कहते हैं कि रमज़ान में हासिल किये गए अनुभव, बेहतरीन लाभ हैं। ईश्वर की कृपा कुछ इस प्रकार है कि वह अपने बंदे को उपासना करने का अवसर भी देता है और फिर उनका बहुत अच्छा बदला भी इन बंदों को प्रदान करता है।
जिस प्रकार से रोज़े के लिए विभिन्न उपलब्धियों क उल्लेख किया गया है उसी प्रकार से ईश्वर की ओर से रोज़ेदारों के लिए रोज़े के बदले में दिये जाने वाले उपहार के भी बताया गया है। वास्तविक रोज़ेदारों के लिए उनके रोज़े के बदले में जो चीज़ें दृष्टिगत रखी गई हैं उनमें से कुछ इस प्रकार हैः पापों का प्रायश्चित, स्वर्ग में जाने की अनुमति और दुआओं की स्वीकृति आदि।
रोज़े के दौरान रोज़ा रखने वाले को हर अच्छे काम का अलग-अलग बदला दिया जाएगा। स्वभाविक सी बात है कि रोज़ेदार की जो भी उपासना पूरी निष्ठा के साथ होगी उसका बदला भी उसी के हिसाब से दिया जाएगा। ईश्वर की ओर से दिये जाने वाले सवाब अर्थात पुष्य में से एक, मन व मस्तिष्क की पवित्रता है। जब इन्सान एक महीने तक पूरी निष्ठा के साथ अच्छे काम करता रहता है तो उसका मन हर प्रकार की बुराई से पवित्र हो जाता है। यह रमज़ान की बहुत बड़ी उपलब्धि है।
समय व्यतीत होने के साथ ही साथ अज्ञानता और लापरवाही के कारण मनुष्य का मन विभिन्न प्रकार के पापों से दूषित हो जाता है। इस प्रकार से वह अपनी वास्तविकता से दूर होता जाता है। ऐसा व्यक्ति बाद में ईश्वर से भी दूर हो जाता है लेकित रमज़ान के आध्यात्मिक वातावरण में अथक प्रयासों और निष्ठा से भरी उपासना के कारण उसे एक नया जीवन हासिल होता है। इसको स्वयं की ओर वापसी भी कहा जा सकता है। दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि पवित्र रमज़ान में निष्ठा के साथ उपासना करने के बाद रोज़ेदार ऐसा हो जाता है जैसे उसने नया जीवन प्राप्त किया है।
वास्तविक रोज़ा मनुष्य के अन्तर्मन को पवित्र कर देता है। ऐसा व्यक्ति ईश्वर की कृपा का पात्र बन सकता है। जब रोज़ेदार, ईश्वर से निकटता प्राप्त करने के उद्देश्य से अपनी आंतरिक इच्छाओं का दमन करते हुए उसके आदेशों का पालन करता है तो कृपालु ईश्वर भी उसको मूल्यवान उपहार देता है और वह होता है मन का पवित्र होना तथा उसकी आंतरिक पवित्रता। यह एसा मूल्यवान उपहार है जिसकी सुरक्षा की आवश्यकता है। जिस मनुष्य को यह उपहार मिल जाए उसको चाहिए कि वह अपनी पूरी क्षमता के साथ इसकी सुरक्षा करे।
रमज़ान के पवित्र महीने में ईश्वर की ओर से दी जाने वाली अनुकंपाओं में से एक, ईश्वर की कृपा का पात्र होना है। यद्यपि हर उपासना की एक अलग मिठास होती है। वह अपने महत्व के हिसाब से बंदे को ईश्वर से निकट करती है किंतु रमज़ान के दौरान ईश्वर की निकटता का एक अलग महत्व है। रोज़ेदार, रमज़ान के महीने में अपने पूरे अस्तित्व के साथ ईश्वर की कृपा का आभास करता है। इस महीने में ईश्वर केवल अच्छे बंदों पर ही नहीं बल्कि पापियों पर भी कृपा करता है।
रमज़ान में आने वाली वे कुछ महान रातें जिन्हें शबेक़द्र कहा गया है, ईश्वर की कृपा का एक अन्य उदाहरण है। यह रातें इतनी महत्वपूर्ण हैं कि इन्हें एक हज़ार महीने से भी अधिक बेहतर बताया गया है। इन रातों में ईश्वर अपने बंदों के पापों को माफ़ करता है और उनपर अपनी कृपा की वर्षा करता है। बहुत से पापी और अपराधी इस रात में माफ़ कर दिये जाते हैं। इस रात की यह विशेषता है कि पापियों को माफ़ किया जाता है और जो अच्छे लोग होते हैं उनकी अच्छाइयों में वृद्धि होती है और उनके आध्यात्मिक दर्जें बढ़ते जाते हैं। इस प्रकार से मनुष्य का हर गुट चाहे वह पापी हो या अच्छा अपनी योग्यताओं और क्षमताओं के हिसाब से लाभान्वित होता है।
ईश्वर की हर उपासना एक स्पष्ट मानदंड के आधार पर मनुष्य की आत्मा को उन्नति देती है जिसके माध्यम से उसे ईश्वर के सामने सिर ऊंचा रखने की हिम्मत पैदा होती है। यह बात कही जा सकती है कि रमज़ान में रखे जाने वाले रोज़ों से मनुष्य की आत्मा को जो उच्चता मिलती है वह किसी अन्य उपासना से नहीं मिली सकती। यही कारण है कि इस महीने में की जाने वाली उपासना का बदला भी अलग है। इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि रमज़ान में सांस लेना तसबीह पढ़ने अर्थात ईश्वर रका गुणगान करने जैसा है। इस महीने में सोना भी उपासना समान है। यह सब इसलिए है कि मनुष्य रमज़ान जैसे महान महीने में उपासना करके ईश्वर की निकटता हासिल कर सके।
रमज़ान के महीने की एक अन्य अनुकंपा, पापों का माफ़ किया जाना है। इस बारे में इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ) कहते हैं कि जब रसूले ख़ुदा की नज़र, रमज़ान के चांद पर पड़ती थी तो वे अपना मुंह क़िबले की ओर करके कहा करते थे कि हे ईश्वर, उसको हमारे लिए फिर नया कर। इसके माध्यम से हमें ईमान की शक्ति, सुरक्षा और स्वास्थ्य प्रदान कर। हमारी आजीविका में बढ़ोत्तरी कर। हमें क़ुरआन पढने का अवसर प्रदाना कर। नमाज़ और रोज़े में हमारी सहायता कर। रमज़ान के दौरान हमने जो कुछ किया है उसे अगले रमज़ान तक हमारे लिए सुरक्षित रख और हमें माफ़ कर दे। वे लोगों को संबोधित करते हुए कहा करते थे कि हे लोगो! जब रमज़ान आता है तो शैतान को ज़ंजीरों में जकड़ दिया जाता है। ईश्वर की कृपा के दरवाज़े खुल जाते हैं। नरक के दरवाज़ें बंद और स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं। इस महीने में दुआएं स्वीकार की जाती हैं। इफ़्तरा के समय ईश्वर, बहुत से रोज़ेदारों को नरक की आग से मुक्ति दिलाता है। इसकी हर रात में एक आवाज़ देने वाला पुकारता है कि क्या कोई सवाल करने वाला है? क्या कोई पापों का प्रायश्चित करने वाला है। ईश्वर हर ख़र्च करने वाले को उसका बदला देता है। जब शव्वाल का चांद निकलता है तो मोमिनों से कहा जाता है कि कल अपने उपहार लेने के लिए हाज़िर हो क्योंकि कल का दिन उपहार लेने का दिन है।
एक अन्य कथन में मिलता है कि ईश्वर के कुछ फ़रिश्ते हैं जो रोज़ा रखने वालों से विशेष हैं। यह फ़रिश्तें रमज़ान के आरंभ से अंत तक हर दिन रोज़ेदारों की ओर से प्रायश्चित करते हैं। इफ़तार के समय रोज़ेदारों को संबोधित करते हुए कहते हैं कि कितनी खुशी की बात है कि तुम कुछ समय तक भूखे रहे जबकि बहुत जल्दी तुम्हारा पेट भरा जाएगा। तुमको मुबारक हो। वे बंदों को संबोधित करते हुए कहते हैं कि हे रोज़ेदारों, निश्चित रूप से तुम्हारे पाप माफ़ कर दिये गए। अब तुमको देखना है कि आगे तुम कैसे रहते हो।
रमज़ान की उपलब्धियों में से एक, ईश्वर से निकटता हासिल करना है। वास्तव में वे लोग जो रमज़ान में रोज़ा रखते हैं वे ईश्वर से निकटता का सौभाग्य हासिल करते हैं। रमज़ान के बारे में स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी कहते हैं कि रोज़ा रखने वालों को यह देखना चाहिए कि रमज़ान के बाद यदि उनके भीतर और उनके व्यवहार में कोई परिवर्तन हुआ है तो उन्होंने उसी अनुपात में ईश्वर की निकटता हासिल की है। अब यदि रमज़ान गुज़र जाने के बाद भी तुम्हारे भीतर कोई परिवर्तन नहीं आया तो समझो कि तुमको रमज़ान से कोई लाभ नहीं पहुंचा। स्पष्ट है कि हमारे कर्मों में जितना अधिक प्रायश्चित का प्रभाव दिखाई देगा उसी हिसाब से हम पापों की ओर कम जाएंगे। ऐसे में हमारे भीतर ईश्वर की उपासना की भावना भी उसी अनुपात में बढ़ेगी जिस अनुपात में हमने रमज़ान से लाभ उठाया है।
वास्तव में प्रशंसनीय हैं वे लोग जिन्होंने पवित्र रमज़ान के महीने में ईश्वरीय भय या तक़वा प्राप्त किया। इस प्रकार से वे ईश्वर से एक दर्जा निकट हुए हैं। ये वही लोग हैं जो ईश्वर की ओर से उपहार हासिल करेंगे और उनका स्थान स्वर्ग होगा।
अमेरिकी कांग्रेस : ईरानी वाणिज्य दूतावास पर इजरायल का हमला मूर्खतापूर्ण
अमेरिकी कांग्रेस के रिपब्लिकन सदस्य और खुफिया समिति के अध्यक्ष माइक टर्नर ने कहा है कि दमिश्क में ईरानी वाणिज्य दूतावास पर इजरायल का हमला नासमझी थी।
अमेरिकी कांग्रेस की इंटेलिजेंस कमेटी के चेयरमैन माइक टर्नर ने सीएनएन से बातचीत में कहा है कि इजराइल ने दमिश्क में ईरानी दूतावास पर ऐसे समय में हमला किया है, जब वाशिंगटन तेहरान को गाजा से दूर रखने की कोशिश कर रहा है. युद्ध. उन्होंने कहा कि इजराइल का यह हमला बुद्धिमानी भरा नहीं था.
अमेरिकी कांग्रेस के रिपब्लिकन सदस्य और खुफिया समिति के अध्यक्ष माइक टर्नर ने इस साक्षात्कार में कहा कि दमिश्क में ईरानी वाणिज्य दूतावास पर इजरायल के हमले से तनाव बढ़ गया है और ईरान द्वारा जवाबी कार्रवाई की धमकी के बाद पूरा क्षेत्र तनावपूर्ण हो गया है .
अमेरिका गाजा में ज़ायोनी शासन के नरसंहार का समर्थन करता है
संयुक्त राष्ट्र में ईरान के स्थायी प्रतिनिधि ने कहा है कि संयुक्त राज्य अमेरिका ने गाजा में ज़ायोनी सरकार के नरसंहार का पूरा समर्थन किया है।
संयुक्त राष्ट्र में ईरान के राजदूत और स्थायी प्रतिनिधि, अमीर सईद एरवानी ने फ़िलिस्तीन के बारे में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा आयोजित सत्र में कहा कि गाजा में युद्ध रोकने के लिए सभी अंतरराष्ट्रीय मांगों और सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 27 के बावजूद 28वें के अनुसमर्थन, सभी अंतरराष्ट्रीय कानूनों के प्रति इजराइल की अवहेलना और गाजा के लोगों के खिलाफ नरसंहार ने क्षेत्र को अस्थिर करना जारी रखा है, और गाजा में सुरक्षा और मानवीय स्थिति खराब हो गई है।
संयुक्त राष्ट्र में ईरान के वरिष्ठ राजनयिक ने कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका ने विनाशकारी भूमिका निभाते हुए युद्धविराम को रोकने के लिए सभी राजनीतिक और राजनयिक तरीकों को बेअसर कर दिया है और जानबूझकर पश्चिम एशिया क्षेत्र में अपने स्वयं के एजेंडे को आगे बढ़ाया है और इसके तहत बहुपक्षीय प्रयासों को कमजोर किया है संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में.
दमिश्क में इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान के कांसुलर सेक्शन पर इज़राइल के आतंकवादी हमले के बारे में, जिसमें सात सैन्य अधिकारी और कर्मी शहीद हो गए, एरवानी ने कहा कि इसने अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामान्य सिद्धांतों, यानी राजनयिक पदों, वाणिज्य दूतावासों और उनके कर्मचारियों का उल्लंघन किया है परिणाम दण्ड से मुक्ति की बू है, और यह बहुत शर्म की बात है।
सीरिया के राष्ट्रपति और ईरान के विदेश मंत्री के बीच बैठक
इस्लामी गणतंत्र ईरान के विदेश मंत्री होसैन अमीर अब्दुल्लाहियन ने कहा है कि ज़ायोनी सरकार को सज़ा मिलना तय है।
ईरान के विदेश मंत्री ने सोमवार को दमिश्क में सीरियाई राष्ट्रपति से मुलाकात की और चर्चा की. इस बैठक में विदेश मंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्लायान ने कहा कि ज़ायोनी सरकार को इस आतंकवादी हवाई हमले का जवाब और सज़ा मिलेगी।
उन्होंने इस बैठक में हमास और जिहाद इस्लामिक फ़िलिस्तीन के प्रमुखों के साथ हुई अपनी मुलाक़ातों का ज़िक्र किया और कहा कि कई रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि कब्ज़ा करने वाली ज़ायोनी सरकार अंदर से बिखर चुकी है, उसके आंतरिक मतभेद इस हद तक बढ़ गए हैं कि अतीत में भी ऐसा नहीं हुआ है मिसाल.
इस बैठक में सीरिया के राष्ट्रपति बशर असद ने ईरानी वाणिज्य दूतावास पर ज़ायोनी शासन के आतंकवादी हवाई हमले में ईरान के सैन्य सलाहकारों की शहादत पर अपनी संवेदना व्यक्त की। उन्होंने इस आतंकी हमले के बाद ईरान के राष्ट्रपति से फोन पर हुई बातचीत का जिक्र करते हुए कहा कि आपके शहीद हमारे शहीद हैं और इस मामले में आपकी और हमारी भावनाएं और स्थिति एक जैसी हैं.
सीरिया के राष्ट्रपति बशर असद ने कहा कि ईरान और सीरिया इस समय साझा युद्ध का सामना कर रहे हैं. बशर अल-असद ने सीरिया के ख़िलाफ़ ज़ायोनी शासन के हमलों की तीव्रता को उसके पागलपन का संकेत बताया और कहा कि ये अपराध ज़ायोनी शासन की हार की भरपाई करने में मदद नहीं कर सकते।
ईरान के विदेश मंत्री होसैन अब्दुल्लाहियन ने दमिश्क में ईरानी वाणिज्य दूतावास पर ज़ायोनी शासन द्वारा 1 अप्रैल को किए गए आतंकवादी हवाई हमले में शहीद हुए ईरानी सैन्य सलाहकारों के शहीद स्थल का निरीक्षण करने के बाद नए वाणिज्य दूतावास भवन का उद्घाटन किया।