समाचार वेबसाइट हिल ने एक लेख में डोनाल्ड ट्रंप की ज़ायोनी शासन के प्रति नीति, विशेष रूप से हालिया पश्चिमी एशिया यात्रा के दौरान तेल अवीव में न रुकने की उनकी उपेक्षा का विश्लेषण करते हुए लिखा है कि बिन्यामिन नेतन्याहू अमेरिका के सहयोगी नहीं हैं।
जब हाल ही में डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी पश्चिम एशिया यात्रा के दौरान इस्राइल को नज़रअंदाज़ कर फ़ार्स खाड़ी के अरब देशों का रुख करना ज़्यादा उचित समझा, तो इसका कारण न तो घृणा थी और न ही विश्वासघात बल्कि यह दूरी और यथार्थवाद का संदेश था। दूसरे शब्दों में, यह याद दिलाने के लिए था कि संयुक्त राज्य अमेरिका एक महाशक्ति है, न कि किसी पर आश्रित, वित्त-पोषक या सेवक देश।
कांग्रेस से संबंधित इस न्यूज़ एजेन्सी के विश्लेषक ने लिखा: यह दूरी उस सच्चाई की ओर इशारा करती है जिसे अमेरिकी राजनीतिक वर्ग लम्बे समय से कहने से डरता रहा है: बिन्यामिन नेतन्याहू अमेरिका का दोस्त नहीं है। वह ख़ुद को मित्र कह सकता है, कांग्रेस के मंच से भाषण दे सकता है, पश्चिमी मूल्यों की पोशाक पहन कर पश्चिमी सभ्यता की बातें कर सकते हैं लेकिन अगर आप ध्यान से देखें तो सामने एक ऐसा व्यक्ति नज़र आता है जो सत्ता से बुरी तरह चिपका हुआ है और राजनीति में अपनी बक़ा के लिए वैश्विक स्थिरता को ख़तरे में डालने, युद्ध की आग भड़काने तथा उस देश के साथ सेतु तोड़ने को भी तैयार है, जिसके प्रति वह सम्मान दिखाने का नाटक करता है।
लेखक के दृष्टिकोण से ऐसा प्रतीत होता है कि ट्रंप ने अंततः इस बात को समझ लिया है और पहले के राष्ट्रपतियों के विपरीत, जो इस्राइल को वाइट चेक अर्थात बिना शर्त समर्थन देते समय नर्म लहज़े में बात किया करते थे, ट्रंप दृढ़ता से बोलते हैं, क्योंकि उन्होंने यह समझ लिया है कि अमेरिका के पास ही असली "ट्रंप कार्ड" है यानी सत्ता और प्रभाव की असली कुंजी अमेरिका के पास है।
इस समाचार वेबसाइट के अनुसार, इस्राइल के प्रधानमंत्री ने ग़ज़ा में जारी वहशी व बर्बर युद्ध को किसी ज़रूरत के चलते नहीं, बल्कि राजनीतिक हताशा के कारण लंबा खींचा है। हर बम जो वह ग़ज़ा पर गिराता है और हर अस्पताल जिसे वह तबाह करता है उसके कारण उसे भ्रष्टाचार के आरोपों में कटघरे में खड़ा करना चाहिये पर इसके बजाये वह इस्राइल का प्रधानमंत्री बना हुआ है।
हिल के विश्लेषक के अनुसार, बिन्यामिन नेतन्याहू एक ऐसा व्यक्ति है जो अमेरिका की शक्ति का उपयोग घरेलू जवाबदेही से बचने के लिए करने की कोशिश कर रहा है।
लेखक का मानना है कि ट्रंप की वर्तमान नीति इस्राइल के प्रति नेतन्याहू के वर्षों पुराने विश्वासघात की प्रतिक्रिया है जो अब जाकर सामने आ रही है।
नेतन्याहू ने वर्षों से अमेरिका की सद्भावना का फ़ायदा उठाया है और अमेरिकी वफ़ादारी का दुरुपयोग करते हुए तथा AIPAC (अमेरिका-इस्राइल पब्लिक अफ़ेयर्स कमेटी) पर निर्भर रहकर उसने आलोचकों की आवाज़ दबाई है।
हर बार जब किसी ने उसके इरादों व कारणों पर सवाल उठाने की हिम्मत की तो उसे यहूदी-विरोधी करार दिया गया।