رضوی

رضوی

मौलाना सय्यद करामत हुसैन शऊर जाफ़री ने कहा है कि 9 रबीअ उल अव्वल मुस्लिम उम्माह के लिए निष्ठा के नवीनीकरण और आध्यात्मिक जागृति का दिन है, लेकिन यह कहना अफ़सोस की बात है कि कुछ जगहों पर इस दिन को इसके मूल उद्देश्य के विपरीत तुच्छ गतिविधियों और शब्दाडंबर के साथ मनाया जाता है, जो कुरान, सुन्नत और अहले-बैत (अ) की शिक्षाओं के बिल्कुल विपरीत है।

प्रसिद्ध विचारक, लेखक और दैनिक सदाक़त के प्रधान संपादक मौलाना सय्यद करामत हुसैन शऊर जाफ़री ने कहा है कि 9 रबीअ उल अव्वल मुस्लिम उम्माह के लिए निष्ठा के नवीनीकरण और आध्यात्मिक जागृति का दिन है, लेकिन यह कहना अफ़सोस की बात है कि कुछ जगहों पर इस दिन को इसके मूल उद्देश्य के विपरीत तुच्छ गतिविधियों और शब्दाडंबर के साथ मनाया जाता है, जो कुरान, सुन्नत और अहले-बैत (अ) की शिक्षाओं के बिल्कुल विपरीत है।

उन्होंने बताया कि इमाम हसन असकरी (अ) की शहादत के बाद, हज़रत हुज्जत बिन अल-हसन अल-महदी (अ) के व्यक्तित्व में इमामत जारी रही और इस लिहाज़ से यह दिन मोमिनों के लिए खुशी और संतुष्टि का स्रोत है, और अहले-बैत (अ) के चाहने वाले इसे "ईद-उल-ज़हरा (अ)" के रूप में मनाते हैं। हालाँकि, यह खुशी केवल बाहरी अभिव्यक्तियों का नाम नहीं है, बल्कि ज्ञान, आज्ञाकारिता और ज़िम्मेदारी का ऐलान है।

सय्यद करामत हुसैन शऊर जाफ़री ने कहा कि पवित्र क़ुरआन में मोमिनों का गुण भाषावाद से दूर रहना बताया गया है, जबकि इमाम जाफ़र सादिक (अ) ने कहा, "हमारे लिए शोभा का स्रोत बनो, शर्म और अपमान का स्रोत मत बनो।" इसी प्रकार, पवित्र पैगंबर (स) ने भी कहा कि उनके मिशन का उद्देश्य अख़लाक़ को पाय तकमील तक पहुचाना था।

उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि 9 रबीअ उल-अव्वल को, दुआ ए अहद, ज़ियारत आले-यासीन और ज़ियारत आशूरा के माध्यम से, इमाम अस्र (अ) के प्रति अपने लगाव को नवीनीकृत करना चाहिए। साथ ही, उन्होंने वैज्ञानिक और बौद्धिक सभाओं के आयोजन, युवाओं के धार्मिक प्रशिक्षण और गरीबों व अनाथों की सेवा को इस दिन की सच्ची भावना बताया।

उन्होंने कहा कि अगर हम इस दिन को केवल लहो लइब और खेल कूद में बर्बाद करते हैं, तो यह इमाम (अ) के सामने शर्म की बात होगी, लेकिन अगर हम इसे इबादत, सेवा और आज्ञाकारिता के साथ बिताएँ, तो यह दिन हमारी सामूहिक महानता का आधार बन सकता है। कुरान कहता है: "अल्लाह किसी कौम की हालत तब तक नहीं बदलता जब तक कि वे अपनी हालत न बदल लें।"

अंत में, उन्होंने अपील की कि 9 रबीअ उल अव्वल को न केवल ईद के रूप में मनाया जाना चाहिए, बल्कि अहद के नवीनीकरण के दिन के रूप में भी मनाया जाना चाहिए और जलसों को अल्लाह, कुरान, दुआ और मानवता की सेवा के स्मरण से सजाया जाना चाहिए ताकि दुनिया देख सके कि इमाम (अ) के अनुयायी एक प्रतिष्ठित और जागरूक राष्ट्र हैं।

हज़रत इमाम ए ज़माना अ.स. की गैबत की दो हैसियतें थीं एक सुग़रा और दूसरी कुबरा। ग़ैबते सुग़रा की मुद्दत 5 साल थी। उसके बाद ग़ैबते कुबरा शुरू हो गई। ग़ैबते सुग़रा के ज़माने में आपका एक नायबे ख़ास होते थे, जिसके ज़ेरे एहतमाम हर क़िस्म का निज़ाम चलता था। सवाल व जवाब ,ख़ुम्स व ज़क़ात और दिगर मराहिल उसी के वास्ते से तै होते थे। ख़ुसूसी मक़ामात पर उसी के ज़रिये और सिफ़ारिश से सुफ़रा मुक़र्र किए जाते थे।

हज़रत इमाम ए ज़माना अ.स. की गैबत की दो हैसियतें थीं एक सुग़रा और दूसरी कुबरा। ग़ैबते सुग़रा की मुद्दत 5 साल थी। उसके बाद ग़ैबते कुबरा शुरू हो गई। ग़ैबते सुग़रा के ज़माने में आपका एक नायबे ख़ास होते थे, जिसके ज़ेरे एहतमाम हर क़िस्म का निज़ाम चलता था। सवाल व जवाब ,ख़ुम्स व ज़क़ात और दिगर मराहिल उसी के वास्ते से तै होते थे। ख़ुसूसी मक़ामात पर उसी के ज़रिये और सिफ़ारिश से सुफ़रा मुक़र्र किए जाते थे।

हज़रत उस्मान बिन सईद अमरी सब से पहले जिन्हें नायबे ख़ास होने की सआदत नसीब हुई, उनका नामे नामी, व इस्मे गिरामी उस्मान बिन सईद अमरी था। आप हज़रत इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम और इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम के मोतमिद और मुख़लिस असहाब में से थे। आपका ताल्लुक़ क़बीला -ए- बनी असद से था। आपकी कुन्नियत अबू उमर थी और आप सामरा के क़रिय -ए- असकर के रहने वाले थे। वफ़ात के बाद आपको बग़दाद में दरवाज़ा जबला के क़रीब मस्जिद में दफ़्न किया गया।

मुहम्मद बिन उस्मान बिन सईद हज़रत उस्मान बिन सईद अमरी की वफ़ात के बाद इमाम अलैहिस्सलाम ने आपके फ़रज़न्द मुहम्मद बिन उस्मान बिन सईद इस अज़ीम मंज़िल पर फ़ाइज़ किया। आपकी कुन्नियत अबू जाफ़र थी। आपने वफ़ात से 2 माह क़ब्ल अपनी क़ब्र ख़ुदवा दी थी।

आपका कहना था कि मै यह इस लिए कर रहा हूँ कि मुझे इमाम अलैहिस्सलाम ने बता दिया है और मैं अपनी तारीख़े वफ़ात से भी वाक़िफ़ हूँ। आपकी वफ़ात जमादिल अव्वल सन् 305 हिजरी में वाक़े हुई और आप माँ के क़रीब बमक़ाम दरवाज़ा -ए- कूफ़ा सरे राह दफ़्न हुए।

हुसैन बिन रूह (र.)मुहम्मद बिन उस्मानकी वफ़ात के बाद हज़रत इमाम अलैहिस्सलाम के हुक्म से हज़रत हुसैन बिन रूह (र.) इस मनसबे अज़ीम पर फ़ाइज़ हुए।जाफ़र बिन मुहम्मद बिन उस्मान सईद का कहना है कि मेरे वालिद मुहम्मद बिन उस्मान ने मेरे सामने जनाब हुसैन बिन रौह को अपने बाद इस मनसब की ज़िम्मेदारी के मुताअल्लिक़ इमाम अलैहिस्सलाम का पैग़ाम पहुँचाया था।

जनाब हुसैन बिन रौह की कुन्नियत अबू क़ासिम थी। आप महल्ले नौ बख़्त के रहने वाले थे। आप ख़ुफ़िया तौर पर तमाम इस्लामी मुमालिक का दौरा किया करते थे। आप दोनों फ़िर्क़ों के नज़दीक मोतमिद, सिक़ा और सालेह क़रार दिये गये हैं। आपकी वफ़ात शाबान 326, हिजरी में हुई और आप महल्ले नौ बख़्त कूफ़े में दफ़न हुए।

अली बिन मुहम्मद अल समरी हुसैन बिन रौह (र0) की वफ़ात के बाद इमाम अलैहिस्सलाम के हुक्म से जनाब अली बिन मुहम्मद अल समरी इस ओहदा -ए- जलील पर फ़ाइज़ हुए। आपकी कुन्नियत अबुल हसन थी। आप अपने फ़राइज़ अंजाम दे रहे थे, जब वक़्त क़रीब आया तो आपसे कहा गया कि आप अपने बाद का क्या इन्तेज़ाम करेंगें। आपने फ़रमाया कि अब आईन्दा यह सिलसिला न रहेगा।
(मजालेसुल मोमेनीन, सफ़ा 89 व जज़ीर ?ए- ख़िज़रा, सफ़ा 6, व अनवार उल हुसैनिया, सफ़ा 55)

मुल्ला जामी अपनी किताब शवाहेदुन नुबूव्वत के सफ़ा 214 में लिखते है कि मुहम्मद समरी के इन्तेक़ाल से 6 दिन पहले इमाम अलैहिस्सलाम का एक फ़रमान नाहिया मुक़द्दसा से बरामद हुआ। जिसमें उनकी वफ़ात का ज़िक्र और सिलसिल ?ए- सिफ़ारत के ख़त्म होने का तज़किरा था। इमाम मेंहदी अलैहिस्सलाम के ख़त के अल्फ़ाज़ यह हैं।
بسم الله الرحمن الرحيم يا علي يابن محمداعظم الله اجرا خوائنك فيك فعنك ميت ما بينك و بين سنت ايام فاعظم امرك ولا ترض الي احد يا قوم مقامك بعد وفاتك فقد وقعت الغيبة التامة فلا ظهور الي بعد باذن الله تعالي و ذلك بعدة العامد
तर्जमाः- ऐ अली बिन मुहम्मद ! ख़ुदा वन्दे आलम तुम्हारे भाईयों और दोस्तों को अजरे जमील अता करे। तुम्हें मालूम है कि तुम 6, दिन में वफ़ात पाने वाले हो, तुम अपने इन्तेज़ामात कर लो और आइन्दा के लिये आपना कोई क़ायम मक़ाम तजवीज़ व तलाश न करो। इस लिए कि ग़ैबत कुबरा वाक़े हो गई होगी और इज़्ने ख़ुदा के बग़ैर ज़हूर ना मुमकिन होगा। या ज़हूर बहुत तवील अर्से के बाद होगा।

ग़रज़ कि 6, दिन गुज़रने के बाद हज़रत अबुल हसन अली बिन मुहम्मद अल समरी बतारीख़ 15 शाबान 329 हिजरी इन्तेक़ाल फ़रमा गये और फ़िर कोई ख़ुसूसी सफ़ीर मुक़र्र नही हुआ और ग़ैबते कुबरा शुरू हो गई

इमामे जमाा (अ) की मारफ़त और मुंतज़ेरान के कर्तव्य " पुस्तक डॉ. इब्राहिम शफ़ीई सर्वस्तानी द्वारा लिखित एक मूल्यवान संकलन है, जो महदीवाद के सही सिद्धांतों को समझाने और गुप्तकाल के दौरान प्रतीक्षितों के कर्तव्यों का वर्णन करने का एक उत्कृष्ट प्रयास है।

इस पुस्तक में लेखक ने इमामे ज़माना (अ) की मारफ़त के आवश्यक सिद्धांतों की व्याख्या की है और साथ ही गुप्तकाल के दौरान प्रतीक्षित पर लगाए गए दायित्वों और कर्तव्यों पर भी प्रकाश डाला है।

नौवीं रबी-उल-अव्वल के अवसर पर, यह पुस्तक हज़रत हुज्जत बिन अल-हसन (अ) के संबंध में ज्ञान और अंतर्दृष्टि को बढ़ाने का एक साधन बनने हेतु पवित्र पैगंबर (स) के संबंध में एक मूल्यवान कृति के रूप में प्रस्तुत की गई है।

इस पुस्तक में, लेखक ने महदीवाद के विभिन्न पहलुओं को शोध-आधारित और प्रामाणिक दृष्टिकोण से परखने का प्रयास किया है। इसमें इमाम ज़माना (अ) की विशेषताएँ, ग़ैबत का इतिहास, प्रतीक्षारत लोगों के व्यक्तिगत और सामूहिक कर्तव्य, तथा इमाम ज़माना (अ) का ज़ुहूर, स्थापना और अंतिम क्रांति जैसे विषय शामिल हैं।

इस पुस्तक की संरचना निम्नलिखित सात भागों में विभाजित है:

  1. इमाम महदी (अ) का जीवन और व्यक्तित्व
  2. इमाम महदी (अ) की शनाख्त
  3. प्रतीक्षा के सिद्धांत और कार्य
  4. ज़ुहूर और आख़ेरुज़ ज़मान
  5. ज़ुहूर के वक्त का निर्धारण
  6. ज़ुहूर के बाद की दुनिया
  7. महदी संस्कृति के विस्तार और प्रतीक्षा की अभिव्यक्तियों के आवश्यक मुद्दे

यह पुस्तक महदीवाद और ज़माना (अ) के ग़ैबत के दौरान प्रतीक्षारत लोगों के कर्तव्यों के विषय में रुचि रखने वालों के लिए एक मूल्यवान स्रोत मानी जाती है।

बहरैन में इज़राइली राजदूत की वापसी के बाद पूरे देश में तनाव बढ़ गया है और जनता ने सरकार के इस फैसले का कड़ा विरोध किया है। मनामा समेत कई शहरों में लोग सड़कों पर उतर आए और इज़राइल के साथ संबंध सामान्य करने के खिलाफ जोरदार नारे लगाए। प्रदर्शनकारियों और सुरक्षा बलों के बीच झड़पों की भी खबरें आई हैं।

बहरैन में इज़राइली राजदूत की वापसी के बाद पूरे देश में तनाव बढ़ गया है और जनता ने सरकार के इस फैसले का कड़ा विरोध किया है। मनामा समेत कई शहरों में लोग सड़कों पर उतर आए और इज़राइल के साथ संबंध सामान्य करने के खिलाफ जोरदार नारे लगाए। प्रदर्शनकारियों और सुरक्षा बलों के बीच झड़पों की भी खबरें आई हैं।

प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, प्रदर्शनकारियों ने देर शाम प्रदर्शनों के दौरान इज़राइल विरोधी नारे लगाए और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को यह संदेश देने की कोशिश की कि बहरीन के लोग इज़राइल समर्थक नीतियों के खिलाफ हैं। प्रदर्शनकारियों ने इस बात पर ज़ोर दिया कि "बहरैन राष्ट्र" सरकार के ज़ायोनी एजेंडे के लिए ज़िम्मेदार नहीं है।

यह विरोध प्रदर्शन तब शुरू हुआ जब बहरीन के विदेश मंत्री अब्दुल्लातिफ़ बिन राशिद अल-ज़यानी ने 27 अगस्त, 2025 को नए इज़राइली राजदूत "शमूएल रोएल" के परिचय पत्र स्वीकार किए। गौरतलब है कि 2023 में ग़ज़्ज़ा युद्ध के बाद बहरैन ने तेल अवीव से अपने राजदूत को वापस बुला लिया था और दोनों देशों के बीच संबंध निलंबित कर दिए गए थे।

दो साल बाद इज़राइली राजदूत की वापसी ने बहरैन के विभिन्न हिस्सों में जनाक्रोश को और भड़का दिया है। विरोध प्रदर्शन मनामा, दाराज़ और अन्य शहरों में फैल गए हैं, जहाँ प्रदर्शनकारियों ने सरकार के फैसले को खारिज कर दिया और इज़राइल के साथ संबंधों को "राष्ट्र-विरोधी नीति" बताया।

विरोध प्रदर्शनों के वीडियो सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से साझा किए जा रहे हैं, जिनमें सार्वजनिक नारेबाजी और सुरक्षा बलों द्वारा बल प्रयोग के दृश्य दिखाई दे रहे हैं।

 गुरुवार को सना में इज़राईली शासन की हवाई हमले में शहीद हुए यमन के प्रधानमंत्री अहमद अलरहवी" और उनके साथियों के शवों का अंतिम संस्कार समारोह आज सुबह आयोजित किया गया।

अलमसीरा के हवाले से यमन के हज़ारों लोग देश के अधिकारियों, जिनमें प्रधानमंत्री और कई मंत्री शामिल हैं, के आधिकारिक अंतिम संस्कार समारोह में भाग लेने के लिए यमन की राजधानी के अलसबीन चौक की ओर जा रहे हैं, जो इजरायल के हवाई हमले में शहीद हुए थे।

वादा की गई विजय और सियोनिस्ट शासन के आतंकवादी हमले में शहीद हुए लोगों की अंतिम संस्कार प्रार्थना सना के "अल-शाब" मस्जिद में आयोजित की गई।

यमन के परिवर्तन और पुनर्निर्माण सरकार के कार्यवाहक प्रमुख "मोहम्मद मफ्ताह" ने शहीदों के अंतिम संस्कार समारोह में भाग लेते हुए कहा, हम जोर देकर कहते हैं कि हम एक सम्मानजनक स्थिति में हैं और हम गाजा का समर्थन करने से कभी पीछे नहीं हटेंगे। यमन ने आज सच्चाई के समर्थन में अपने लोगों को आगे बढ़ाया है और हम इस पर गर्व और संतुष्ट हैं, लेकिन इस संबंध में हम अभी भी अपर्याप्त महसूस करते हैं।

उन्होंने कहा,हम एक बड़े और प्रभावी युद्ध में शामिल हो गए हैं और अमेरिका से टकरा गए हैं यह युद्ध केवल सैन्य नहीं था बल्कि एक आर्थिक युद्ध था और दुश्मन ने हर लक्ष्य पर हमला किया।

यमन के कार्यवाहक प्रधानमंत्री ने कहा,दुश्मन ने यमन को घेरने के लिए यमन के बंदरगाहों को निशाना बनाया लेकिन उसके लक्ष्य विफल रहे क्योंकि बंदरगाह अभी भी सक्रिय हैं और कोई संकट पैदा नहीं हुआ है। सरकार की गतिविधियों के बारे में कोई चिंता नहीं है और शहीदों का खून हमें अपने मिशन और कर्तव्यों को पूरा करने के लिए प्रेरित और दृढ़ करता है। सरकार की गतिविधियाँ बाधित नहीं हुई हैं।

मोहम्मद मिफ्ताह ने कहा,स्थिति अच्छी है और दुश्मन हार गया है। हम यमन के लोगों की हर मोर्चे पर उपस्थिति की सराहना करते हैं और यह उपस्थिति है जिसने दुश्मन को हराया है। जो कुछ भी देशद्रोही, भाड़े के लोग प्रचार कर रहे हैं वह बिना किसी आधार के है।

यमन सरकार के शहीदों के अंतिम संस्कार समारोह शुरू होने से पहले, यमन सशस्त्र बलों के प्रवक्ता ब्रिगेडियर जनरल "यहया सरीय" ने एक बयान जारी कर घोषणा की थी कि देश की मिसाइल इकाई ने लाल सागर में एक इजरायली तेल टैंकर को निशाना बनाया है।

उन्होंने अपने बयान में जोर देकर कहा कि यमन सशस्त्र बलों ने गाजा के समर्थन में इस ऑपरेशन को बैलिस्टिक मिसाइल से किया है।

गुरुवार को सियोनिस्ट कब्जे वाले शासन के सना पर हवाई हमले में, परिवर्तन और पुनर्निर्माण सरकार के प्रधानमंत्री "अहमद गालिब नासिर अल-रहवी" उनके साथ कई मंत्री शहीद हो गए।

यमन के अंसार अल्लाह आंदोलन ने आज घोषणा की कि पिछले गुरुवार को सना में सियोनिस्ट शासन के हवाई हमले में प्रधानमंत्री और 9 मंत्री, जिनमें न्याय, अर्थव्यवस्था, विदेश मामले और सूचना मंत्री शामिल हैं शहीद हो गए

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन जाफ़र ज़ादेह ने कहा,हालाँकि मिम्बर मस्जिद में उपदेश देने का स्थान महत्वपूर्ण है, लेकिन सोशल मीडिया पर भी ध्यान देना चाहिए।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मंसूर जाफ़र ज़ादेह क़ुम के हौज़ा ए इल्मिया के एक शिक्षक, ने हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के संवाददाता के साथ बातचीत में, अधिक प्रभावी प्रचार के लिए हौज़े को मौके देने की आवश्यकता की ओर इशारा करते हुए कहा, हमने पिछले दंगों में दुश्मन का हाथ साफ़-साफ़ देखा।वह दुश्मन जो पुलिस की गला काटता है।

विश्वविद्यालयों और शैक्षणिक केंद्रों में अशांति फैलाता है शिया महिला से हिजाब खींचता है। ये घटनाएँ हमारे लिए एक सबक होनी चाहिए, हमने देखा कि महिला महसा अमीनी की मृत्यु के बाद कुछ लोगों ने भावुकतापूर्ण व्यवहार किया और दुश्मन का हाथ नहीं देखा।

उन्होंने कहा,उन साधनों में से एक जिसका दुश्मन ने भरपूर फायदा उठाया, वह "सोशल मीडिया" है। कई युवा इस प्लेटफॉर्म पर थे जिन्होंने इस खुले और बिना सीमा वाले माहौल में धोखा खाया और नुकसान उठाया, एक ऐसा मंच जहाँ अच्छा काम भी किया जाए तो उसे महत्वहीन दिखाया जाता है।

सोशल मीडिया को बिना नियंत्रण और उपेक्षित छोड़कर उसमें अच्छा काम नहीं किया जा सकता। हमारे युवा पिछले कुछ वर्षों में गहराई से नकारात्मक रूप से प्रभावित हुए हैं और हम इसके नुकसान देख रहे हैं।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन जाफ़र ज़ादेह ने कहा,सार्वजनिक संस्कृति में विभिन्न संस्थाएँ शामिल थीं हौज़ा ए इल्मिया की भूमिका को भी इन संस्थाओं में से एक के रूप में जाँचा जाना चाहिए, हालाँकि यह नहीं कहा जा सकता कि हौज़ा ने अपनी सारी क्षमताओं का उपयोग किया है, लेकिन वास्तव में हौज़ा ए इल्मिया ने अपने पास मौजूद क्षमता के आधार पर बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है। हौज़े ने अलग-अलग समय पर विभिन्न तरीकों से विभिन्न प्रचारों को व्यवस्थित किया है जो उसकी सकारात्मक भूमिका को दर्शाता है।

उन्होंने जोर देकर कहा, हालाँकि मिम्बर (मस्जिद में उपदेश देने का स्थान) महत्वपूर्ण है, लेकिन सोशल मीडिया पर भी ध्यान देना चाहिए।

क़ुम के हौज़ा ए इल्मिया के शिक्षक ने यह सवाल उठाते हुए कहा,क्या प्रचार का महत्वपूर्ण मंच हौज़ा के हाथ में है कि हम हौज़ा से इतनी उम्मीद रखें? उन्होंने कहा,जो लोग काम कर सकते हैं, वे विश्वविद्यालय, इस्लामी प्रचार मंत्रालय और इस तरह की अन्य संस्थाएँ हैं।

हाँ, हममें कमियाँ हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम कुछ न करें। प्रचार का मंच और महत्वपूर्ण नीतियाँ हौज़े के हाथ में नहीं हैं; अगर वे देते तो हौज़ा अधिक प्रभावी ढंग से काम करता। हौज़े से उम्मीद उतनी ही होनी चाहिए जितनी सुविधाएँ उसे दी गई हैं, लेकिन इस सीमा के भीतर भी उसने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है और और भी बेहतर कर सकता है।

उन्होंने स्पष्ट किया,हम देख रहे हैं कि हौज़ा ने सामग्री के निर्माण में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है और काम आगे बढ़ाया है लेकिन समस्या युवाओं और अधिकारियों तक संदेश पहुँचाने में है, यह काम सूचना तंत्र, रेडियो-टेलीविजन और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स द्वारा किया जाना चाहिए।

आज के युवाओं से संवाद का माध्यम सिनेमा, टेलीग्राम, इंस्टाग्राम और इस तरह के अन्य प्लेटफॉर्म हैं। समस्या यह नहीं है कि हमारे पास शासन संबंधी इस्लामी न्यायशास्त्र (फ़िक़्ह) नहीं है; समस्या यह नहीं है कि सामग्री का निर्माण नहीं हुआ है, बल्कि समस्या यह है कि यह सामग्री युवाओं तक अच्छी तरह से नहीं पहुँच पा रही है।

उस समय अब्बासी शासक मोतमिद के हाथ में सत्ता थी। वह सोचता या कि इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम को अपने मार्ग से हटाकर वह उनकी याद को भी लोगों के मन से मिटा देगा और वे सदैव के लिए भुला दिए जाएंगे किन्तु जिस दीपक को पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम और उनके परिजनों ने जलाया हो वह कभी बुझ नहीं सकता बल्कि वह मानवता का सदैव मार्गदर्शन करता रहे गा।
जैसाकि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने फ़रमाया हैं: मेरे परिजन नूह की नौका की भांति हैं जिसने उनके दामन में पनाह ली वह मुक्ति पाएगा और जो उनसे दूर होगा वह डूब जाएगा।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की शहादत के अवसर पर पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों पर ईश्वर का सलाम हो हम इस बात के लिए ईश्वर का आभार व्यक्त करते हैं कि उसने मानवता के मार्गदर्शन के लिए इस महान हस्ती को संसार में भेजा।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम धार्मिक बंधुओं के अधिकारों की पहचान और उनके समक्ष विनम्रता के बारे में कहते हैं: जिसे अपने धार्मिक बंधुओं के अधिकारों की अधिक पहचान हो और वह उसके लिए अधिक प्रयास करे, ईश्वर के निकट उसका स्थान बहुत ऊंचा होगा। जो अपने धार्मिक बंधुओं से विनम्रता से मिले तो ईश्वर के निकट उसकी गणना सत्यवादियों व सत्य के अनुयाइयों में होगी।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की इमामत अर्थात ईश्वरीय आदेशानुसार जनता के मार्गदर्शन का काल, अब्बासी शासन श्रृंखला का सर्वाधिक हिंसाग्रस्त काल था। अब्बासी शासकों की अयोग्यता और दरबरियों में आपस में अंतरकलह, जनता में असंतोषत और निरंतर विद्रोह, दिगभ्रमित विचारों का प्रसार, उस काल की राजनैतिक व सामाजिक उथल पुथल के कारणों में थे। शासक, जनता का शोषण कर रहे थे और वंचितों व बेसहारा लोगों की संपत्ति बलपूर्वक हथि रहे थे। वे जनता के पैसों से भव्य महलों का निर्माण करते थे और जनता की निर्धनता व समस्याओं की ओर तनिक भी ध्यान नहीं देते थे।
अब्बासी शासक अपने अत्याचारी शासन को चलाने के लिए किसी भी अपराध की ओर से संकोच नहीं करते थे और समाज के सभी वर्गों के साथ उनका व्यवहार कठोर था। उस दौरान पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के परिजनों को और अधिक घुटन भरे वातावरण का सामना था। क्योंकि ये हस्तियां अत्याचार व भ्रष्टाचार के समक्ष मौन धारण नहीं करती थीं बल्कि उनके विरुद्ध आवाज़ उठाती थीं।
अब्बासी शासकों ने इमाम हसन अस्करी और उनके पिता इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम को मदीना नगर से जो पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों का केन्द्र था, तत्कालीन अब्बासी शासन की राजधानी सामर्रा नगर पलायन के लिए विवश किया। सामर्रा नगर में इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम अब्बासी शासन के अधिकारियों के नियंत्रण में थे। उन्हें सप्ताह में कुछ दिन अब्बासी शासन के दरबार में उपस्थित होना पड़ता था। अब्बासी शासक, इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम पर विभिन्न शैलियों से दबाव डालते थे क्योंकि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम का यह कथन सब को याद था कि विश्व को उत्याचार से मुक्ति दिलाने वाला उन्हीं का पौत्र होगा। वह मानवता को मुक्ति दिलाने वाले वही मोक्षदाता हैं जिन के प्रकट होने से संसार से अत्याचार जड़ से समाप्त हो जाएगा। ऐसे किसी शिशु के जन्म की कल्पना, अत्याचारी अब्बासी शासकों को अत्यधिक भयभीत करने वाली थी।
अब्बासी शासकों के व्यापक स्तर पर प्रयासों के बावजूद इस शिशु के जन्म लेने का ईश्वर का इरादा व्यावहारिक हुआ और इमाम महदी अलैहिस्सलाम ने इस संसार में क़दम रखा। इमाम मेहदी अलैहिस्सलाम के जन्म के पश्चात, इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने कठिन भविष्य का सामना करने के लिए समाज को तैयार करने का बीड़ा उइया।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम उचित अवसरों पर ग़ैबत अर्थात इमाम मेहदी अलैहिस्सलाम के लोगों की दृष्टि से ओझल रहने के काल की विशेषताओं तथा संसार के भावी नेतृत्व में अपने सुपुत्र की प्रभावी भूमिका का उल्लेख करते थे।

इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम बल दिया करते थे कि उनके सुपुत्र के हातों पूरे विश्व में न्याय व शांति स्थापित होगी।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम का व्यक्तित्व इतना आकर्षक था कि जिसकी भी दृष्टि उन पर पड़ती वह ठहर कर उन्हें देखने लगता और बरबस उनकी प्रशंसा करता था।

अब्बासी शासन की इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम से शत्रुता के बावजूद इस शासन का एक मंत्री इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के महान व्यक्तित्व का उल्लेख इन शब्दों में करता है। मैंने सामर्रा में हसन बिन अली के जैसा किसी को न पाया। गरिमा, सुचरित्र और उदारता में कोई उनके जैसे नहीं मिला।लांकि वह युवा हैं किन्तु बनी हाशिम उन्हें अपने वृद्धों पर वरीयता देते हैं। वह इतने महान हैं कि मित्र और शत्रु दोनों ही प्रशंसा किए बिना नहीं रह सकते।
वंचितों और बेसहारों पर इमाम की कृपादृष्टि उनके लिए आशा की किरण थी इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की कृपा से लाभान्वित होने वाला एक व्यक्ति कहता है: मेरी और मेरे पिता की आर्थिक स्थिति इतनी दयनीय हो चुकी थी कि लोगों की दान दक्षिणा से बड़ी मुश्किल से जीवन व्यतीत हो रहा था। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम से भेंट करना बहुत कठिन था क्योंकि अब्बासी शासन ने उन पर बहुत रोकटोक लगा रखी थी। इमाम हसन अलैहिस्सलाम की उदारता विख्यात थी। वे समस्याओं में घिरे लोगों की सहायता के लिए जाने जाते थे। इसलिए मुझे आशा थी कि वे मेरी आर्थिक समस्या का निदान करेंगे। मार्ग में पिता ने मुझसे कहा कि यदि इमाम पॉच सौ दिरहम दे दें तो मेरी बहुत सी समस्याओं का निदान हो जाएगा। मैं भी मन ही मन सोच रहा था कि यदि इमाम मुझे तीन सौ दिरहम दे दें तो में जबल नगर जाकर अपना नया जीवन आरंभ करुंगा। हम लोग इमाम के घर में प्रविष्ट हुए और एक कमरे में प्रतीक्ष करने लगे। उनके एक संबंधी, कमरे में आए और पॉंच सौ और तीन सौ दिरहम की दो थेलियां पिता को और मुझे दे दीं। में आश्चर्य में पड़ गया, समझ में नहीं आ रहा था कि क्या कहूं। मैं और पिता आश्चर्य की स्थिति में थे कि इमाम के दूत ने मुझसे कहा: इमाम ने तुम्हें जबल नगर जाने से रोका है बल्कि जीवन यापन के लिए सूरा नगर का सुझाव दिया है। ईश्वर का आभार व्यक्त करते हुए बहुत प्रसन्न हो कर इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के घर से निकला मैं इमाम के सुझाव के अनुसार सूरा नगर गया और इमाम की सहायता से वहॉ अच्छा जीवन व्यतीत करने लगा। यह सब पैग़म्बरे इस्लाम के महान पौत्र इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की कृपा दृष्टि का फल था।

उस समय लोगों के विचारों पर संकीर्णता छाई हुई थी और धर्म में नई नई बातें शामिल की जा रही थीं, ऐसी स्थिति में इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने धर्म के वास्तविक रुप को लोगों के सामने स्पष्ट किया। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के पास भी पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेहि व सल्लम के अन्य परिजनों की भांति ज्ञान का अथाह सागर था। लोगों की ज़बान पर इमाम अलैहिस्सलाम के ज्ञान की चर्चा रहती थी। वे सत्य के मार्ग की खोज करने वालों का मार्गदर्शन करते थे। शास्त्रार्थों में इमाम ऐसे प्रभावी र्तक देते थे कि तत्कालीन अरब दार्शनिक याक़ूब बिन इस्हाक़ कन्दी ने इमाम से शास्त्रर्थ के पश्चात उस किताब को जला दिया जिसमें उसने कुछ धार्मिक बातों की आलोचना की थी। उस समय इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम को लोगों तक अपना दृष्टिकोण पहुंचाने में भी कठिनाइयों का सामना था। इसलिए इमाम अनेक शैलियों तथा अपने विश्वस्नीय प्रतिनिधियों के माध्यम से जनसंपर्क बनाते थे और सुदूर क्षेत्रों के मुसल्मानों की स्थिति से अवगत होते थे।

इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ईश्वर की इतनी उपासना करते थे कि बहुत से पथभ्रष्ट उनकी उपासना को देखकर सत्य के मार्ग पर आ जाते थे। ऐसे ही लोगों में सालेह बिन वसीक़ नामक जेलर भी था। जिस समय इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम को जेल ले जाया गया उस समय सालेह बिन वसीक़ जेलर था। वह इमाम के व्यक्तित्व से इतना प्रभावित हुआ कि उसकी गणना उस समय के महाउपासकों व धर्मनिष्ठों में होने लगी। वह कहता है:जैसे ही में इमाम को देखता हूं, मेरे भीतर ऐसा परिवर्तन होने लगता है कि मैं स्वंय पर नियंत्रण नहीं रख पाता और ईश्वर की उपासना करने लगता हूं।

इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम फ़र्माते हैं: मिथ्या, व्यक्ति को झूठ , बेइमानी, वचन तोड़ने और छल कपट की ओर ले जाती है और सत्य के मार्ग से दूर कर देती है। मिथ्याचारी व्यक्ति भरोसे के योग्य नहीं है। जान लो कि मिथ्या को समझने के लिए पैनी दृष्टि और बहुत चेतना की आवश्यक्ता होती है।

एक अन्य स्थान पर फ़रमाते हैं: तुम्हारा जीवन बहुत सीमित और इसके दिन निर्धारित है और मृत्यु अचानक आ पहुंचती है। जो सदकर्म करता है उससे लाभानिवत होता है और जो बुराई करता उसके परिणाम में उसे पछतावा होता है तुम्हें धर्म को समझने, शिष्टाचार अपनाने, और सदकर्म की अनुशंसा करता हूं।

अपने प्रियः अध्ययन कर्ताओं के लिए हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के कुछ मार्ग दर्शक कथन प्रस्तुत किये जारहे हैं।
1- अल्लाह
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने कहा कि अल्लाह वह है कि जब प्राणी विपत्तियों व कठिनाईयों मे फस कर चारो ओर से निराश हो जाता है और प्रजा से उसकी आशा समाप्त होजाती है तो वह फिर उसकी (अल्लाह) शरण लेता है।
2- हक़ को छोड़ना
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने कहा कि जिस आदरनीय व्यक्ति ने हक़ को छोड़ा वह अपमानित हुआ और जिस नीच ने हक़ पर अमल किया वह आदरनीय हो गया।
3- तक़लीद
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने कहा कि जनता को चाहिए कि अपनी आत्मा की रक्षा करने वाले, धर्म की रक्षा करने वाले, इन्द्रीयो का विरोध करने वाले, तथा अल्लाह की अज्ञा पालन करने वाले फ़कीह (धर्म विद्वान) की तक़लीद(अनुसरन) करें।
4- भविष्य
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने कहा कि शीघ्र ही मानवता पर एक ऐसा समय आने वाला है जिसमे मनुषय चेहरे से प्रसन्न दिखाई देगें परन्तु उनके हृदय अँधकार मय होंगे। ऐसे समय मे अल्लाह ने जिन कार्यो का आदेश दिया है वह क्रियात्मक रूप प्राप्त नही कर पायेंगे और अल्लाह ने जिन कार्यो से दूर रहने का आदेश दिया है लोग उन कार्यों को करेंगे। ऐसे समय मे इमानदार व्यक्ति को नीच समझा जायेगा तथा अल्लाह के आदेशो का खुले आम उलंघन करने वाले को आदर की दृष्टि से देखा जायेगा।
5- नसीहत (सदुपदेश)
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने कहा कि जिसने अपने मोमिन भाई को छुप कर सदुपदेश दिया उसने उसके साथ भलाई की। तथा जिसने खुले आम उसको सदुपदेश दिया उसने उसके साथ बुराई की।
6- सर्वोत्तम भाई
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने कहा कि तुम्हारा सर्वोत्तम भाई वह है जो तुम्हारी बुराईयों को भूल जाये व तुमने जो इस पर ऐहसान किया है उसको याद रखे।

7- मूर्ख व बुद्धिमान
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने कहा कि मूर्ख का दिल उसकी ज़बान पर होता है। और बुद्धि मान की ज़बान उसके दिल मे होती है।
8- लज्जा का घर
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने कहा कि जो व्यक्ति अनुचित कार्य रूपी (घोड़े) पर सवार होगा वह उससे लज्जा के घर मे उतरेगा। अर्थात जो व्यक्ति अनुचित कार्य करेगा वह अपमानित व लज्जित होगा।
9- क्रोध
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने कहा कि क्रोध समस्त बुराईयों की कुँजी है।
10- व्यर्थ का वाद विवाद
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने कहा कि व्यर्थ का वाद विवाद न करो वरना तुम्हारा आदर समाप्त हो जायेगा और मज़ाक़ न करो वरना लोगों का (तुम्हारे ऊपर) साहस बढ़ जायेगा।
11- अपमान का कारण
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलामने कहा कि मोमिन के लिए यह बात बहुत बुरी है कि वह ऐसी वस्तु या बात की ओर उन्मुख हो जो उसके अपमान का कारण बने।
12- दो सर्व श्रेष्ठ बातें
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलामने कहा कि दो विशेषताऐं ऐसी हैं जिनसे श्रेष्ठ कोई विशेषता नही है। (1) अल्लाह पर ईमान रखना व (2) अपने मोमिन भाई को लाभ पहुचाना।
13- बुरा पड़ोसी
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलामने कहा कि अच्छी बात को छिपाने व बुरी बात का प्रचार करने वाला पड़ोसी कमर तोड़ देने वाली विपत्ति के समान है।
14- इन्केसारी (नम्रता)
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलामने कहा कि नम्रता एक ऐसा गुण है जिससे ईर्श्या नही की जासकती।
15- ग़मगीन (शोकाकुल)
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलामने कहा कि शोकाकुल व्यक्तियों के सम्मुख प्रसन्नता प्रकट करना शिष्ठाचार के विऱुद्ध है।
16- द्वेष
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलामने कहा कि द्वेष रखने वाले व्यक्ति सबसे अधिक दुखित रहते है।
17- झूट बुराईयों की चाबी (कुँजी)
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलामने कहा कि समस्त बुराईयों को एक कमरे मे बन्द कर दिया गया है, व इस कमरे की चाबी झूट को बनाया गया है। अर्थात झूट समस्त बुराईयों की जड़ है।
18- नेअमत (अल्लाह से प्राप्त हर प्रकार की सम्पत्ति)
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलामने कहा कि नेअमत को धन्यवाद करने वाले के अतिरिक्त कोई नही समझ सकता और आरिफ़ ( ज्ञानी) के अतिरिक्त अन्य नेअमत का धन्यवाद नही कर सकते।
19- अयोग्य की प्रशंसा
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने कहा कि अयोग्य व्यक्ति की प्रशंसा करना तोहमत(मिथ्यारोप) लगाने के समान है।
20- आदरनीय
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने कहा कि धूर्तता के आधार पर सबसे निर्बल शत्रु वह है जो अपनी शत्रुता को प्रकट कर दे।
21- आदत का छुड़ाना
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलामने कहा कि मूर्ख को प्रशिक्षित करना और किसी वस्तु के आदी से उसकी आदत छुड़ाना मौजज़े के समान है। अर्थात यह दोनो कार्य कठिन हैँ।
22- माँगने मे गिड़गिड़ाना
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलामने कहा कि (किसी व्यक्ति) से कुछ माँगने के लिए गिड़गिड़ाना अपमान व दुख का कारण बनता है।
23- शिष्ठा चारी
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलामने कहा कि तुम्हारे शिष्टा चीरी होने के लिए यही पर्याप्त है, कि तुम दूसरों की जिस बात को पसंद नही करते उसे स्वंय भी न करो।
24- दानशीलता व कायरता
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलामने कहा कि दानशीलता की एक सीमा होती है उससे आगे अपव्यय है। इसी प्रकार दूर दर्शिता व सावधानी की भी एक सीमा है अगर इस से आगे बढ़ा जाये तो यह कायरता है।
25- कंजूसी व वीरता
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलामने कहा कि कम व्यय की भी एक सीमा होती है अगर इस से आगे बढ़ा जाये तो यह कँजूसी है। इसी प्रकार वीरता की भी एक सीमा होती है अगर इस से आगे बढ़ा जाये तो वह तहव्वुर है। अर्थात अत्यधिक वीरता।

26- मित्रों की अधिकता
हज़रत इमाम अस्करी अलैहिस्सलाम ने कहा कि जिसको अल्लाह से डरने की आदत हो, दानशीलता जिसकी प्रकृति मे हो तथा जो गंभीरता को अपनाये हुए हो ऐसे व्यक्ति के मित्रों की संख्या अधिक होती है।
27- हार्दिक प्रसन्नता
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलामने कहा कि जब हृदय प्रसन्न हो उस समय ज्ञान प्राप्ति के लिए प्रयास करो। व जिस समय हृदय प्रसन्नता की मुद्रा मे न हो उस समय स्वतन्त्र रहो।
28- रोज़े को अनिवार्य करने का कारण
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलामने कहा कि अल्लाह ने रोज़े को इस लिए अनिवार्य किया ताकि धनी लोग भूख प्यास की कठिनाईयों समझ कर निर्धनो पर दया करें।
29- जीविका
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलामने कहा कि जिस जीविका का उत्तरदायित्व अल्लाह ने अपने ऊपर लिया है उसकी प्राप्ती को वाजिब कार्यों के मार्ग मे बाधक न बनाओ।
30- इबादत
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलामने कहा कि रोज़े नमाज़ की अधिकता इबादत नही है। अपितु अल्लाह के आदेशों के बारे मे (उनको समझने के लिए) चिंतन करना इबादत है।
31- हमारे लिए शोभा बनो
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने अपने अनुयाईयों से कहा कि अल्हा से डरो व हमारे लिए शोभा का कारण बनो हमारे लिए बुराई का कारण न बनो।
32- लालची
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलामने कहा कि लालची व्यक्ति अपने मुक़द्दर से अधिक प्राप्त नही कर सकता।
33- व्यर्थ हंसना
आदरनीय इमाम हसन अस्करी ने कहा कि आश्चर्य के बिना हंसना मूर्खता का लक्षण है।
34- पाप से न डरना
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने कहा कि जो लोगों के सामने पाप करने से नही डरता वह अल्लाह से भी नही डरता।
35- प्रसन्नता व लज्जा
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने कहा कि तुमको अल्प आयु प्रदान की गयी है और जीवित रहने के लिए गिनती के कुछ दिन दिये गये हैं मृत्यु किसी भी समय आकस्मिक आसकती है। जो (इस संसार) मे पुण्यों की खेती करेगा वह प्रसन्न व लाभान्वित होगा। व जो पापों की खेती करेगा वह लज्जित होगा। प्रत्येक व्यक्ति को वही फल मिलेगा जिसकी वह खेती करेगा। अर्थात जैसे कार्य इस संसार मे करेगा उसको उन्ही कार्यो के अनुसार बदला दिया जायेगा।

36- बैठने मे शिष्ठा चार
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलामने कहा कि जो व्यक्ति किसी सभा मे निम्ण स्थान पर प्रसन्नता पूर्वक बैठ जाये तो उसके वहाँ से उठने के समय तक अल्लाह व फ़रिश्ते उस पर दयावान रहते है।
37- मित्रता व शत्रुता
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलामने कहा कि
क-अच्छे व्यक्तियों की अच्छे व्यक्तियों से मित्रता अच्छे व्यक्तियों के लिए पुण्य है।
ख-बुरे लोगों की अच्छे लोगों से मित्रता यह अच्छे लोगों के लिए श्रेष्ठता है।
ग-बुरे लोगों की अच्छे लोगों से शत्रुता यह अच्छे लोगों के लिए शोभनीय है
घ-अच्छे लोगों की बुरे लोगों से शत्रुता यह बुरे लोगों के लिए लज्जा है।
38- सलाम करना
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलामने कहा कि अपने पास से गुज़रने वाले प्रत्येक व्यक्ति को सलाम करना शिष्टाचार है।
।।अल्लाहुम्मा सल्लि अला मुहम्मदिंव व आलि मुहम्मद।।

इमाम हसन असकरी (अ) ने अब्बासी शासन के सख्त दबाव और कड़ी निगरानी के बीच इमामत का भार उठाया। उन्होंने सूझ-बूझ से काम लेकर वफादार प्रतिनिधियों का एक नेटवर्क तैयार किया और सबसे कठिन परिस्थितियों में भी शियो से संपर्क बनाए रखा। इसके साथ ही, उन्होंने उन्हें ग़ैबत कुबरा के दौर के लिए तैयार किया।

इमाम हसन असकरी (अ) की शहादत दिवस के मौके पर उनकी ज़िंदगी और इमामत से जुड़े चार महत्वपूर्ण सवालों का जवाब दिया जा रहा है ताकि उनकी ज़िंदगी के विभिन्न पहलुओं को बेहतर तरीके से समझा जा सके। इसका मकसद इमाम की शख्सियत और उनके आध्यात्मिक नेतृत्व को गहराई से जानना है।

सवाल 1: इमाम अस्करी (अ) सामर्रा में क्यों बसे?

जवाब: इमाम हसन अस्करी (अ) को उनके वालिद इमाम हादी (अ) के साथ बचपन से ही अब्बासी खलीफाओं ने जबरन सामर्रा बुला लिया था। सामर्रा अब्बासीयो की सैन्य राजधानी थी, और इस शहर में इमामों को स्थापित करके, वे लोगों के साथ उनके संपर्क को सीमित करना चाहते थे और उन पर कड़ी निगरानी रखना चाहते थे। एक ओर, सरकार इमाम अस्करी (अ) के वंश से महदी मौऊद के जन्म की धार्मिक खबरों के कारण इस आंदोलन को नियंत्रित करने और यहाँ तक कि नष्ट करने की कोशिश कर रही थी; और दूसरी ओर, उसे उनके सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव और अलवी आंदोलनों के खतरे का डर था। इस कारण, इमाम अस्करी (अ) सामर्रा की सैन्य छावनी तक ही सीमित थे और स्वतंत्र रूप से कार्य करने में असमर्थ थे। हालाँकि, समर्थकों के एक गुप्त नेटवर्क के साथ, उन्होंने शियो का मार्गदर्शन किया और अब्बासियों की इमामत को समाप्त करने की योजना के सफल हुए बिना इमाम महदी (अ) के पवित्र अस्तित्व की रक्षा की।

सवाल 2: इमाम हसन अस्करी (अ) के कितने बच्चे थे?

जवाब: कुछ स्रोतों में कई बच्चों के नामों का उल्लेख है; हालाँकि, शिया विद्वानों के बीच प्रचलित मत यह है कि इमाम हसन अस्करी (अ) का केवल एक ही बच्चा था; एक ऐसा बच्चा जिसका नाम और उपनाम रसूल अल्लाह (स) के समान था और जिसकी माँ नरजिस नाम की एक कुलीन महिला थीं।

शेख मुफ़ीद ने अपनी रचनाओं में इस बात पर ज़ोर दिया है कि इमाम अस्करी (अ) के इस बच्चे के अलावा, न तो खुले तौर पर और न ही गुप्त रूप से, कोई और संतान नहीं थी। शेख कुलैनी ने "काफ़ी" में, शेख तबरसी ने "आलाम उल वरा" में और अन्य बुज़ुर्गों ने भी यही राय व्यक्त की है, और अल्लामा मजलिसी ने "बिहार उल अनवार" में भी अन्य संतानों से संबंधित कथाओं को अस्वीकार किया है और उन्हें अविश्वसनीय माना है।

ऐतिहासिक प्रमाण भी इस मत की पुष्टि करते हैं। उदाहरण के लिए, इमाम अस्करी (अ) की शहादत के बाद, यह दिखाने के लिए कि उनकी कोई संतान नहीं है, उनकी विरासत को उनकी माँ और भाई के बीच बाँटने का आदेश दिया गया। यह दर्शाता है कि इसम महदी (अ) के अलावा कोई और शामिल नहीं था।

इन सभी प्रमाणों के आधार पर, शिया विद्वानों का दृढ़ विश्वास है कि इमाम हसन अस्करी (अ) के इकलौते पुत्र इमाम महदी (अ) हैं।

सवाल 3: इमाम हसन अस्करी (अ) अपनी नज़रबंदी के दौरान शियो से कैसे संवाद करते थे?

जवाब: कुछ रवायतों से पता चलता है कि इमाम हसन के जीवन में कम से कम एक ऐसा दौर ज़रूर आया जब इमाम से उनके घर पर सीधे मिलना संभव नहीं था, और शियो को आमतौर पर इमाम के शासन केंद्र से आने-जाने के दौरान उनसे मिलने का मौका मिलता था। "अल-ग़ैबा तूसी" किताब में बताया गया है कि नबाह के दिन (जिस दिन इमाम शासन केंद्र में जाते थे) लोगों में उत्साह और खुशी का माहौल होता था और सड़कें भीड़ से भर जाती थीं। जब इमाम सड़क पर दिखाई देते, तो शोर-शराबा शांत हो जाता और इमाम लोगों के बीच से गुज़रते। अली इब्न जाफ़र हलबी से रिवायत करते हैं: एक दिन जब इमाम ख़िलाफ़त के लिए रवाना होने वाले थे, हम उनके आने का इंतज़ार करने के लिए अस्कर में इकट्ठा हुए; इसी दौरान, इमाम की ओर से हमें एक संदेश मिला, जिसमें लिखा था: "ألّا یسلمنّ علیّ أحد و لا یشیر الیّ بیده و لا یؤمئ فإنّکم لا تؤمنون علی أنفسکم अल्ला यस्लेमन्ना अलय्या अहदुन वला योशीरो एला बेयदेहि वला यूमी फ़इन्नकुम ला तूमेनूना अला अंफ़ोसेकुम।" कोई भी मुझे सलाम न करे, न ही कोई इशारा करे, क्योंकि तुम सुरक्षित नहीं हो!

इसलिए, शियो के लिए इमाम से संवाद करना बहुत मुश्किल था; वे गुप्त रूप से इमाम को प्रश्न और पत्र भेजते थे, कुछ लोग काम के बहाने उनसे मिलने आते थे, और कोई भी संपर्क जानलेवा हो सकता था।

इस संवाद को व्यवस्थित करने के लिए, इमाम ने विभिन्न शहरों में विश्वसनीय प्रतिनिधियों का एक नेटवर्क बनाया था जो उनके और शियो के बीच संपर्क सूत्र थे। इमाम की शहादत के बाद, यह तरीका जारी रहा और उस समय के इमाम (अ) के विशेष प्रतिनिधियों के रूप में विस्तारित हुआ।

सवाल 4: इमाम हसन असकरी (अ) ने हज़रत नरजिस खातून (स) से कैसे विवाह किया और क्या वह रोमन सम्राट की पोती थीं?

जवाब: विश्वसनीय शिया स्रोतों में हज़रत नरजिस खातून (स) को पूर्वी रोमन सम्राट के पुत्र "येशुआ" की पुत्री और पैग़म्बर ईसा (अ) के शिष्य "शमून" की वंशज के रूप में वर्णित किया गया है। उन्हें, जिन्हें "मलिका" और "सिकल" के नाम से भी जाना जाता है, अल्लाह की मरज़ी से इमाम हसन असकरी (अ) की पत्नी चुना गया था।

आख्यानों के अनुसार, हज़रत नरजिस खातून, प्रेरणादायक स्वप्न देखने और धर्म स्वीकार करने के बाद, मुसलमानों और रोमनों के बीच हुए एक युद्ध में बंदी बना ली गईं और सामर्रा पहुँचीं। इमाम अली नक़ी (अ) ने ईश्वरीय कृपा से उनके लिए अहले बैत परिवार में शामिल होने का मार्ग तैयार किया और उन्हें इस्लाम की शिक्षाएँ सिखाने के लिए अपनी बहन हकीमा खातून को सौंप दिया। फिर इमाम हसन असकरी (अ) ने उनसे विवाह किया और इमाम हादी (अ) ने उनकी स्थिति का परिचय देते हुए कहा: "वह मेरे पुत्र हसन की पत्नी और क़ायम ए आले मुहम्मद (अ) की माँ हैं।"

हज़रत नरजिस ख़ातून के जीवन और वंश का वर्णन शेख़ तूसी द्वारा रचित अल-ग़ैबा, कमालुद्दीन शेख़ सदूक़ और अल्लामा मजलिसी द्वारा रचित बिहार उल अनवार जैसे विश्वसनीय स्रोतों में मिलता है, और इतिहासकारों ने उनके रोमन मूल और सामर्रा में उनके आगमन की कहानी का भी उल्लेख किया है।

………………………

इमाम हज़रत इमाम हसन असकरी अ.स. 232 हिजरी में मदीना शहर में पैदा हुए चूंकि आप भी अपने वालिद इमाम अली नक़ी अ.स. की तरह सामर्रा के असकर नामी इलाक़े में मुक़ीम थे इसलिए आप असकरी के नाम से मशहूर हुए, आपकी कुन्नियत अबू मोहम्मद और मशहूर लक़ब नक़ी और ज़की है, आपने 6 साल इमामत की ज़िम्मेदारी संभाली और 28 साल की उम्र में मोतमद अब्बासी के हाथों शहीद हो गए।

हज़रत इमाम हसन असकरी अ.स. 232 हिजरी में मदीना शहर में पैदा हुए चूंकि आप भी अपने वालिद इमाम अली नक़ी अ.स. की तरह सामर्रा के असकर नामी इलाक़े में मुक़ीम थे इसलिए आप असकरी के नाम से मशहूर हुए, आपकी कुन्नियत अबू मोहम्मद और मशहूर लक़ब नक़ी और ज़की है, आपने 6 साल इमामत की ज़िम्मेदारी संभाली और 28 साल की उम्र में मोतमद अब्बासी के हाथों शहीद हो गए।

हमेशा से यह सुन्नत रही है कि ऐसे बुज़ुर्गों की ज़िंदगी और उनके किरदार ने लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया है जिनमें इंसानी पहलू मौजूद रहा हो, उनमें अल्लाह के भेजे हुए नबी और अलवी मकतब के रहनुमा वह ऐसे लोग हैं जो अल्लाह की ओर से सारे इंसानों के लिए बेहतरीन आइडियल बनाए गए हैं।

शियों के गयारहवें इमाम हज़रत इमाम हसन असकरी अ.स. 232 हिजरी में मदीना शहर में पैदा हुए, चूंकि आप भी अपने वालिद इमाम अली नक़ी अ.स. की तरह सामर्रा के असकर नामी इलाक़े में मुक़ीम थे इसलिए आप असकरी के नाम से मशहूर हुए, आपकी कुन्नियत अबू मोहम्मद और मशहूर लक़ब नक़ी और ज़की है, आपने 6 साल इमामत की ज़िम्मेदारी संभाली और 28 साल की उम्र में मोतमद अब्बासी के हाथों शहीद हो गए।

इमाम हसन असकरी अ.स. की रणनीति

इमाम हसन असकरी अ.स. ने हर तरह के दबाव और अब्बासी हुकूमत की ओर से कड़ी निगरानी के बावजूद दीन की हिफ़ाज़त और इस्लाम विरोधी विचारधारा का मुक़ाबला करने के लिए अनेक राजनीतिक, सामाजिक और इल्मी कोशिशें अंजाम देते रहे और अब्बासी हुकूमत की इस्लाम की नाबूदी की साज़िश को नाकाम कर दिया, आपकी इमामत के दौरान कुछ अहम रणनीतियां इस तरह थीं.

इस्लाम की हिफ़ाज़त के लिए इल्मी कोशिशें, विरोधियों के कटाक्ष का जवाब, हक़ीक़ी इस्लाम और सही विचारधारा का प्रचार, ख़ुफ़िया राजनीतिक क़दम, शियों की विशेष कर क़रीबी साथियों की जो हर तरह का ख़तरा मोल ले कर हर समय इमाम अ.स. के इर्द गिर्द रहते थे उनकी माली मदद करना, कठिनाईयों से निपटने के लिए बुज़ुर्ग शियों का हौसला बढ़ाना और उनके राजनीतिक दृष्टिकोण को मज़बूत करना, शियों के अक़ीदों और इमामत का इंकार करने वालों के लिए इल्मे ग़ैब का इस्तेमाल करना और अपने बेटे इमाम महदी अ.स. की ग़ैबत के लिए शियों की फ़िक्र को तैयार करना।

इल्मी कोशिशें

हालांकि इमाम हसन असकरी अ.स. के दौर में हालात की ख़राबी और अब्बासी हुकूमत की ओर से कड़ी पाबंदियों की वजह से आप समाज में अपने इलाही इल्म को नहीं फैला सके लेकिन इन सब पाबंदियों के बावजूद ऐसे शागिर्दों की तरबियत की जिनमें से हर एक अपने तौर पर इस्लामी मआरिफ़ और इमाम अ.स. के इल्म को लोगों तक पहुंचाने में अहम रोल निभाता रहा, शैख़ तूसी र.ह. ने आपके शागिर्दों की तादाद सौ से ज़्यादा नक़्ल की है, जिनमें अहमद इब्ने इसहाक़ क़ुम्मी, उस्मान इब्ने सईद और अली इब्ने जाफ़र जैसे बुज़ुर्ग शिया उलमा शामिल हैं, कभी कभी मुसलमानों और शियों के लिए ऐसी मुश्किलें और कठिनाईयां पेश आ जाती थीं कि उन्हें केवल इमाम हसन असकरी अ.स. ही हल कर सकते थे, ऐसे मौक़ों पर इमाम अ.स. अपने इमामत के इल्म और हैरान कर देने वाली तदबीरों से कठिन से कठिन मुश्किल को हल कर दिया करते थे।

शियों का आपसी संपर्क

इमाम हसन असकरी अ.स. के दौर में अनेक इलाक़ों और कई शहरों में शिया फैल चुके थे और कई इलाक़ों में अच्छी ख़ासी तादाद में थे जैसे कूफ़ा, बग़दाद, नेशापुर, क़ुम, मदाएन, ख़ुरासान, यमन और सामर्रा शियों के बुनियादी मरकज़ में से थे, शिया इलाक़ों का इस तरह तेज़ी से फैलने और कई इलाक़ों में शियों का अच्छी ख़ासी तादाद में होने को देखते हुए ज़रूरी था कि उनके बीच आपस में एक दूसरे से संपर्क बनाए रहें ताकि उनकी दीनी और सियासी रहनुमाई हो सके और उन सभी को एक साथ मंज़िल तक पहुंचाया जा सके, यह ज़रूरत इमाम मोहम्मद तक़ी अ.स. के दौर ही से महसूस हो रही थी और वकालत से संबंधित सिस्टम को ईजाद कर के और अलग अलग इलाकों में वकीलों को भेज कर इस काम को शुरू किया जा चुका था, इमाम हसन असकरी अ.स. ने भी इसी को जारी रखा, जैसाकि तारीख़ी हवाले से यह बात साबित है कि आपने शियों के अहम और बुज़ुर्ग लोगों में से अपने वकीलों को चुन कर उनको अलग अलग इलाक़ों में भेज दिया।

ख़त और दूत (क़ासिद) का सिलसिला

वकालत का सिस्टम क़ायम करने के अलावा इमाम हसन असकरी अ.स. अपने सफ़ीर और क़ासिद को भेज कर भी अपने शियों और मानने वालों से संपंर्क करते थे और इस तरह उनकी मुश्किलों को दूर करते थे, अबुल अदयान (जोकि आपके क़रीबी सहाबी थे) के काम उन्हीं कोशिशों का नतीजा हैं, वह इमाम के ख़तों को आपके शियों तक पहुंचाते और उनके ख़तों, सवालों, मुश्किलों, ख़ुम्स और दूसरे माल शियों से लेकर सामर्रा में इमाम अ.स. तक पहुंचाते थे।

क़ासिद और दूत के अलावा इमाम अ.स. ख़तों द्वारा भी अपने शियों से संपर्क में रहते थे और उनकी अपने ख़तों से हिदायत करते थे, इसकी मिसाल इमाम अ.स. का वह ख़त है जो आपने इब्ने बाबवैह र.ह. (शैख़ सदूक़ र.ह. के वालिद) को लिखा था, इसके अलावा इमाम अ.स. ने क़ुम और आवह के शियों को भी ख़त लिखे थे जिनका मज़मून शिया किताबों में मौजूद है।

ख़ुफ़िया राजनीतिक क़दम

इमाम हसन असकरी अ.स. सारी पाबंदियों और हुकूमत की ओर से कड़ी निगरानी के बावजूद कुछ ख़ुफ़िया राजनीतिक क़दम उठा कर शियों की रहनुमाई करते रहते थे, और आपके यह राजनीतिक क़दम दरबारी जासूसों से इसलिए छिपे रहते थे क्योंकि आप बहुत ही सूझबूझ से वह क़दम उठाते थे, जैसे आपके बहुत क़रीबी सहाबी उस्मान इब्ने सईद का तेल की दुकान की आड़ में इमाम अ.स. का पैग़ाम शियों तक पहुंचाना, इमाम हसन असकरी अ.स. के शिया जो भी चीज़ या माल इमाम अ.स. तक पहुंचाना चाहते थे वह उस्मान को दे दिया करते थे और वह यह चीज़ें घी के डिब्बों और तेल की मश्कों में छिपा कर इमाम अ.स. तक पहुंचा दिया करते थे, इमाम अ.स. की कड़ी निगरानी के बावजूद दुश्मन की नाक के नीचे ऐसी बहादुरी वाले क़दम उठाने की वजह से आपकी 6 साल की इमामत अब्बासियों के ख़तरनाक क़ैदख़ानों में गुज़री।

शियों की माली मदद

आपका एक और अहम क़दम शियों की विशेष कर क़रीबी असहाब की माली मदद करना था, इमाम अ.स. के कुछ असहाब माली मुश्किल लेकर आते थे और आप उनकी मुश्किल को दूर करते थे, आपके इस अमल की वजह से वह लोग माली परेशानियों से घबरा कर हुकूमती और दरबारी इदारों की ओर आकर्षित होने से बच जाते थे।

इस बारे में अबू हाशिम जाफ़री कहते हैं कि मैं आर्थिक तंगी से गुज़र रहा था, मैंने सोंचा कि एक ख़त द्वारा अपने हाल को इमाम हसन असकरी अ.स. तक पहुंचाऊं, लेकिन मुझे शर्म आई और मैंने अपना इरादा बदल दिया, जब मैं घर पहुंचा तो देखा कि इमाम अ.स. ने मेरे लिए 100 दीनार भेजे हुए हैं और एक ख़त भी लिखा है कि जब कभी तुम्हें ज़रूरत हो तो शर्माना नहीं, हमसे मांग लेना इंशा अल्लाह तुम्हारी मुश्किल दूर हो जाएगी।

बुज़ुर्ग शियों और उनके राजनीतिक मतों को मज़बूत करना

इमाम हसन असकरी अ.स. की एक बहुत अहम राजनीतिक गतिविधि यह थी कि आप शियों के अज़ीम मक़सद को हासिल करने की राह में आने वाली तकलीफ़ों और अब्बासी हाकिमों की साज़िशों का मुक़ाबला करने के लिए शिया बुज़ुर्गों की सियासी हवाले से तरबियत करते और उनके राजनीतिक मतों को मज़बूत करते थे, चूंकि शिया बुज़ुर्ग शख़्सियतों पर हुकूमत का सख़्त दबाव होता था इसलिए इमाम अ.स. हर एक को उसके विचारों और उसकी फ़िक्र के हिसाब से उसका हौसला बढ़ाते और उनकी रहनुमाई करते थे ताकि कठिन समय में उनका सब्र और हौसला बना रहे और वह अपनी राजनीतिक ज़िम्मेदारियों को सही तरीक़े से निभा सकें, इस हवाले से इमाम अ.स. ने जो ख़त अली इब्ने हुसैन इब्ने बाबवैह क़ुम्मी र.ह. को लिखा उसमें फ़रमाते हैं कि हमारे शिया कठिन दौर से गुज़रेंगे यहां तक कि मेरा बेटा ज़ुहूर करेगा, यही मेरा वह बेटा होगा जिसके बारे में अल्लाह के रसूल ने बशारत दी है कि वह ज़मीन को अदालत और इंसाफ़ से इस तरह भर देगा जिस तरह वह ज़ुल्म और अत्याचार से भरी होगी।

इल्मे ग़ैब का इस्तेमाल

हमारे सभी इमाम अल्लाह से संपंर्क में रहने की वजह से इल्मे ग़ैब रखते थे और ऐसे हालात में जब इस्लाम की सच्चाई या मुसलमानों के सामाजिक फ़ायदे ख़तरे में पड़ जाएं तो उस समय उस इल्म का इस्तेमाल करते थे, हालांकि इमाम हसन असकरी अ.स. की ज़िंदगी को अगर देखा जाए तो यह बात अच्छी तरह सामने आ जाएगी कि आपने दूसरे इमामों को देखते हुए इल्मे ग़ैब का ज़्यादा इज़हार किया है, और उसकी सीधी वजह उस दौर के भयानक हालात और ख़तरनाक माहौल था, क्योंकि जबसे आपके वालिद इमाम अली नक़ी अ.स. को सामर्रा ले जाया गया तबसे आप कड़ी निगरानी में थे, अब्बासी हुकूमत की सख़्तियों और निगरानी की वजह से हालात ऐसे हो गए थे कि आप अपने बाद आने वाले इमाम अ.स. को खुल कर नहीं पहचनवा पा रहे थे, जिसकी वजह से कुछ शियों के दिलों में शक बैठने लगा था, इमाम अ.स. उन शक और मन की शंकाओं को दूर करने और उस दौर के ख़तरों से अपने असहाब को बचाने के लिए और गुमराहों की हिदायत करने के लिए आप इल्मे ग़ैब का इस्तेमाल करते हुए ग़ैब की ख़बरें दिया करते थे।

इस्लामी तालीमात की हिफ़ाज़त

हुकूमतों द्वारा इमामों का आम मुसलमानों से संपंर्क न बनाने देने के पीछे का राज़ यह है कि कुछ हाकिम चाहते थे कि इस्लामी ख़ेलाफ़त की आड़ में आम मुसलमानों को अपनी ओर खींच लिया जाए और फिर जिस तरह चाहें और जो चाहें अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ उनको रखा जाए, नतीजे में जवानों के अक़ीदों को कमज़ोर किया जाता था और उनको ऐसे बातिल अक़ीदों और नीच सोंच में उलझा देते थे ताकि आम मुसलमानों को गुमराह करने का प्लान कामयाब हो सकें।

इमाम हसन असकरी अ.स. का दौर एक कठिन दौर था जिसमें अनेक तरह की फ़िक्रें और विचारधाराएं इस्लामी समाज के लिए ख़तरा बन चुकी थीं, लेकिन आपने अपने वालिद और दादा की तरह एक पल के लिए भी इस साज़िश से ध्यान नहीं हटाया बल्कि पूरी सावधानी और गंभीरता के साथ इस्लाम की ग़लत तस्वीर बताने वालों, सूफ़ियत, ग़ुलू करने वालों, शिर्क और भी इसके अलावा बहुत सारी ख़ुराफ़ात और वाहियात जो मज़हब के नाम पर दीन का हिस्सा बताई जा रही थीं उन सबका मुक़ाबला किया और इनमें से किसी को भी अपने दौर में पनपने नहीं दिया।

इमाम हसन असकरी अ.स. और इस्लाम का ज़िंदा बाक़ी रखना

अब्बासी हुकूमत दौर और ख़ास कर इमाम हसन असकरी अ.स. का दौर उन सबसे बुरे दौर में से एक था जिसमें हाकिमों की अय्याशी, उनके ज़ुल्म और अत्याचार, दीनी मामलात से बे रुख़ी, और दूसरी ओर मुसलमानों के इलाक़ों में ग़रीबी के फैलने की वजह से दीनी वैल्यूज़ ख़त्म हो चुकी थीं, इसलिए अगर इमाम हसन असकरी अ.स. द्वारा दिन रात की जाने वाली मेहनतें और कोशिशें न होतीं तो अब्बासियों की सियासत की वजह से इस्लाम का नाम भी लोगों के दिमाग़ से मिट जाता, हालांकि इमाम अ.स. ख़ुद अब्बासी हाकिमों की कड़ी निगरानी में थे लेकिन आपने हर इस्लामी शहर में अपने वकीलों को तैनात कर रखा था जिनके द्वारा मुसलमानों के हालात मालूम करते रहते थे, कुछ शहरों की मस्जिदें और इमारतें भी इमाम अ.स. के हुक्म से बनाई गईं, जिसमें ईरान के क़ुम शहर में मौजूद इमाम हसन असकरी (अ.स.) मस्जिद शामिल है, इससे पता चलता है कि आप अपने वकीलों और इल्मे इमामत से मुसलमानों की हर तरह की मुश्किल और उनकी पिछड़ेपन को जानते और उसे दूर करते थे।