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रिपोर्ट ढाका ट्रिब्यून न्यूज एजेंसी के अनुसार, इस्लामी सहयोग संगठन के स्थायी मानवाधिकार आयोग ने कल 6 जनवरी को रोहिंगया मुस्लिमों के मानवाधिकारों के बड़े पैमाने पर व्यवस्थित उल्लंघन से संबंधित ऐक बयान जारी करने के साथ अपना विरोध व्यक्त किया।
इस आयोग ने अपने बयान में कहा: रोहिंगया मुसलमानों की स्थित एक संगठित जातीय सफाई को दर्शाती है, जो अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार मानवता के खिलाफ अपराध है और किसी भी तरह इसे रोकना चाहिए।
यान में कहा गया है कि रोहिंगया मुसलमान जो नस्ल, धर्म और मूल के लिए बलि चढ़ रहे हैं, दुनिया में मानव जाति के खिलाफ अपराधों और नस्लीय सफाई का सबसे बुरा उदाहरण है।
इस्लामी सहयोग संगठन के मानव अधिकारों के स्थायी आयोग ने इस बयान में म्यांमार सरकार से मांग की है कि वह रोहंग्या मुसलमानों के खिलाफ हिंसा को तुरंत समाप्त करने और अपराधों के अपराधियों को दंडित करने के लिए निर्णायक कदम उठाए।
इसी तरह रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ भेदभावपूर्ण नीतियों को बदलने और मानवीय सहायता तक उनकी पहुंच को मुम्किन बनाने पर जोर दिया।
ओआईसी के स्थायी मानवाधिकार आयोग ने इसी तरह अंतरराष्ट्रीय समुदाय से सामान्य और ओआईसी सदस्य देशों से ख़ास तौर पर आग्रह किया है कि म्यांमार पर दबाव के साथ इस देश की सरकार को रोहिंग्या मुसलमानों के बारे में अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून का पालन करने के लिए मजबूर करें।

 

जमीअते ओलमाए हिंद के महासचिव ने घोषणा की है कि उनका संगठन, नेतनयाहू की भारत यात्रा का खुलकर विरोध करेगा।

भारत के पूर्व सांसद और जमीअते ओलमाए हिंद के महासचिव का कहना है कि ज़ायोनी शासन के प्रधानंत्री की भारत यात्रा का पुरज़ोर विरोध किया जाएगा। 

महमूद मदनी ने शुक्रवार को देवबंद में अपने निवास पर संवाददाताओं से बात करते हुए कहा कि भारत ने सदैव ही फ़िलिस्तीन, का समर्थन किया है और फ़िलिस्तीन आरंभ से ही भारत का मित्र रहा है।  उन्होंने कहा कि जमिअते ओलमाए हिंद, प्रधानमंत्री मोदी से मांग करता है कि वे नेतनयाहू को भारत आने से रोकें।  मदनी ने कहा कि नेतनयाहू के भारत आने से देश के मुसलमानों को ग़लत संदेश जाएगा।  महमूद मदनी ने कहा कि भारत की विदेश नीति में बदलाव नहीं किया जाना चाहिए।  उन्होंने कहा कि देश की विदेश नीति सदैव फ़िलिस्तीन के हित में रही है।

उल्लेखनीय है कि भारत के कुछ अन्य इस्लामी संगठनों ने भी घोषणा की है कि अगर नेतनयाहू भारत दौरे पर आते हैं तो वे उनको काले झंड़े दिखाएंगे।  नेतनयाहू को काला झंड़ा दिखाने की चेतवानी देने वाले संगठनों के अनुसार हम फ़िलिस्तीन की जनता के प्रति अपना समर्थन और एकजुटता दिखाने के लिए एसा करेंगे। ज्ञात रहे कि कार्यक्रम अनुसार ज़ायोनी शासन के प्रधानमंत्री नेतनयाहू 14 जनवरी को भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निमंत्रण पर भारत की यात्रा पर आने वाले हैं। 

 

भारत की राजधानी नई दिल्ली के प्रगति मैदान पर चल रहे अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक मेले में ईरानी प्रकाशकों ने बढ़चढ़कर भाग लिया।

प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार, इस अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक मेले में ईरानी प्रकाशकों ने 1200 पुस्तकें पेश कीं। रिपोर्ट में बताया गया है कि ईरानी प्रकाशकों के तीन बुक स्टाल है जिन पर क्लासिकल साहित्य, कला, उपन्यास, धार्मिक, बाल्य, इस्लामी और ईरानी जैसे अनेक विषयों पर पुस्तकें पेश की गयी थीं।

ईरानी प्रकाशकों ने इसी पवित्र प्रतिरक्षा, समकालीन शायरों के दीवान तथा ईरानी व इस्लामी संस्कृति व सभ्यता की पहचान के लिए उर्दू, अंग्रेज़ी और फ़ारसी भाषा की पुस्तकें किताब मेले में पेश कीं।

इस अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक मेले में दुनिया के चालीस देशों के प्रकाशक भाग ले रहे हैं। इस पुस्तक मेले का मुख्य विषय, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन है और इस पुस्तक मेले में इस विषय पर 500 से अधिक किताबें पेश की गयी हैं।

 

ईरान और भारत ने माल गाड़ी के इंजन या लोकोमोटिव की ख़रीदारी के एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।

ईरान की रेलवे कंपनी एवं परिवहन योजना के उप निदेशक और भारत की रेलवे कंपनी राइट्स लिमिटेड के प्रबंधकों ने लोकोमोटिव की ख़रीद के समझौते पर हस्ताक्षर किए।

शुक्रवार को प्राप्त रिपोर्ट के मुताबिक़, इस समझौते के मुताबिक़ भारत की राइट्स लिमिटेड कंपनी ईरान की रेलवे कंपनी को 60 करोड़ डॉलर मूल्य के 200 लोकोमोटिव उपलब्ध कराएगी।

ईरान के सड़क एवं शहरी विकास मंत्री अब्बास आख़ूंदी ने इस संदर्भ में कहा है कि "इस समझौते के मुताबिक़, कुछ लोकोमोटिव का उत्पादन ईरान में ही किया जाएगा।"

उन्होंने कहा कि लोकोमोटिव की ख़रीद का समझौता, ईरान और भारत के बीच एक महत्वपूर्ण औद्योगिक सहकारिता होगी।

आख़ूंदी का कहना था कि भारतीय रेलवे में 13 लाख कर्मचारी काम करते हैं और यह देश लोकोमोटिव के उत्पादन में आधुनिक तकनीक का प्रयोग करता है।

ईरान के सड़क एवं शहरी विकास मंत्री बुधवार को दिल्ली में आयोजित भारत-ईरान व्यापार सहयोग सम्मेलन में भाग लेने के लिए नई दिल्ली पहुंचे थे।  

 

 

ईरान के पूर्वी प्रांत आज़रबाइजान के वरिष्ठ ईसाई धर्मगुरू ने कहा है कि ईरान की इस्लामी व्यवस्था, ईश्वरी प्रणाली के सिद्धांतों पर आधारित है और हम मानते हैं कि इस व्यवस्था के दुश्मन, सभी धर्मों के दुश्मन हैं।

ईरान के तबरेज़ शहर में ईसाई समुदाय के शहीदों की याद में आयोजित कार्यक्रम में लोगों को संबोधित करते हुए वरिष्ठ ईसाई धर्मगुरू ग्रिकोर चुफ़्तचियान ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मामलों में इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई की सूझबूझ और मार्गदर्शन के महत्व का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि ईरान की पवित्र इस्लामी व्यवस्था का मुख्य स्तंभ वरिष्ठ नेता हैं और हम सबको ईश्वर का आभार व्यक्त करना चाहिए कि उसने ऐसा विद्वान और महान नेता हमें दिया है।

ईसाई धर्मगुरू ग्रिकोर चुफ़्तचियान ने फ़िलिस्तीन की धरती पर हज़रत ईसा के जन्म का उल्लेख करते हुए कहा कि दुनिया का सबसे बड़ा शैतान और साम्राज्यवादी शक्तियां फ़िलिस्तीन को टुकड़ों में बांटना चाहती हैं, जबकि फ़िलिस्तीन और  बैतुल मुक़द्दस (यरूशलेम) सभी ईश्वरीय धर्मों के मानने वालों का पवित्र स्थल है। उन्होंने कहा कि यह पवित्र स्थल किसी विशेष समुदाय या मत से विशेष नहीं है। ईसाई धर्मगुरू ने फ़िलिस्तीन के ख़िलाफ़ सभी साम्रज्यवादी शक्तियों के षड्यंत्रों की कड़े शब्दों की निंदा की।

ईसाई धर्मगुरू ग्रिकोर चुफ़्तचियान ने विभिन्न धर्मों के बीच परस्पर एकता के लिए ईरान की प्रभावी भूमिका का उल्लेख किया और कहा कि दुनिया, ईरान में इस मज़बूत एकता और स्थिरता को स्पष्ट रूप से देख सकती है। उन्होंने कहा कि हमारी एकता हमारे दुश्मनों को बर्दाश्त नहीं हो रही है।

ईसाई धर्मगुरू ग्रिकोर चुफ़्तचियान ने कहा कि हमें इस बात पर गर्व है कि ईरान की इस्लामी लोकतांत्रिक व्यवस्था सभी धर्मों को समान अधिकार और क़ानून के तहत स्वतंत्रता प्रदान करती है। उन्होंने कहा कि आज ईरान में मौजूद हर धर्म का व्यक्ति पूरी आज़ादी, आपसी एकता और प्रेम के साथ अपना जीवन गुज़ार रहा है और इसी सबको देखकर हमारा दुश्मन हर दिन ग़ुस्से में जलता जा रहा है।  

 

तुर्क राष्ट्रपति ने कहा है कि अमरीका ईरान, पाकिस्तान और अन्य मुस्लिम देशों के प्राकृतिक स्रोतों को लूटने के लिए इन देशों में हस्तक्षेप कर रहा है।

तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैय्यब अर्दोगान ने शुक्रवार को इंस्ताबुल में पत्रकारों से बात करते हुए कहा, हम ईरान और पाकिस्तान के आंतरिक मामलों में अमरीका और इस्राईल के हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं करेंगे।

मंगलवार को अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने ट्वीट करके ईरान में होने वाले प्रदर्शनों का समर्थन करते हुए हिंसा भड़काने का प्रयास किया था।

अमरीका जहां ख़ुंद दाइश जैसे ख़ूंख़ार आतंकवादी गुटों का समर्थन करता रहा है, वहीं अब पाकिस्तान को आतंकवाद का समर्थक बताकर उसके ख़िलाफ़ कार्यवाही की बात कर रहा है।

अर्दोगान का कहना था कि अमरीका और इस्राईल यह सब कुछ मुस्लिम देशों के प्राकृतिक स्रोतों को लूटने के लिए कर रहे हैं।

तुर्क राष्ट्रपति ने कहा, वाशिंगटन और तेल-अवीव प्रमुख रूप से मुस्लिम देशों को निशाना बना रहे हैं और उन्हें एक दूसरे के ख़िलाफ़ भड़का रहे हैं, इस तरह के हस्तक्षेप का नतीजा हम सीरिया, इराक़, मिस्र और लीबिया में देख चुके हैं।

वास्तव में अर्दोगान ने तेहरान के उस बयान का समर्थन किया है, जिसमें कहा गया था कि अमरीका, इस्राईल और सऊदी अरब देश में हिंसा भड़काने का प्रयास कर रहे हैं।  

 

दुनिया में वरिष्ठ नेताओं, पार्टी प्रमुखों और राष्ट्राध्यक्षों के वेतन को लेकर चर्चाएं तो होती रहती हैं।

दुनिया के आम लोग वरिष्ठ नेताओं के भारी भरकम वेतन को लेकर काफ़ी हंगामे मचाते हैं। उनका यही कहना है कि हम को दो समय की रोटी नहीं मिलती किंतु देश के नेता मौज कर रहे हैं और मज़े में जीवन व्यतीत कर रहे हैं। यदि देखा जाए तो टीवी एंकर को यदि मौक़ा मिलता है तो सबसे पहले वह सामने वाले नेता के वेतन और उनकी आय के बारे में पूछता है, यही हुआ हिज़्बुल्लाह के महासचिव सैयद हसन नसरुल्लाह के साथ। अलमयादीन टीवी चैनल के एक कार्यक्रम के दौरान जब उनसे उनके वेतन के बारे में पूछा गया तो उनके जवाब ने सबको हैरान कर दिया। अलमयादीन टीवी चैनल के एक कार्यक्रम " राष्ट्रों का खेल" के दौरान टीवी एंकर ने हिज़्बुल्लाह के महासचिव सैयद हसन नसरुल्लाह के वेतन के बारे में पूछ लिया तो हिज़्बुल्लाह के महासचिव ने कहा कि उनको मासिक 1300 अमरीकी डॉलर लगभग ( 82000 रुपए) मिलते हैं और यह राशि उनके और उनके परिवार का ख़र्चा पूरा करने के लिए काफ़ी है।

टीवी एंकर ने पूछा कि आप कौन सा खेल पसंद करते हैं तो उनका कहना था कि वह फ़ुटबॉल पसंद करते हैं और समय मिलने पर फ़ुटबॉल के कुछ मैच टीवी पर देखते हैं। उन्होंने कहा कि वह कला और संगीत और लोगों पर इसके पड़ने वाले प्रभाव को मानते हैं किन्तु हलाल या वैध सीमा है।

उन्होंने कहा कि उन्हें लिखना पढ़ना पसंद है किन्तु कुछ समय से वह इससे दूर हैं किन्तु क्षेत्रीय हालात के कारण संवेदनशील बातों पर ध्यान दे रहे हैं।

 

तेहरान की केन्द्रीय नमाज़े जुमा के इमाम आयतुल्लाह सैयद अहमद ख़ातेमी ने कहा कि हालिया दिनों ईरान में जो घटनाएं हुईं वह अमरीकियों और उनके घटकों की कुंठा को दर्शाती हैं।

ज्ञात रहे कि ईरान के कुछ शहरों में हालिया दिनों प्रदर्शन हुए जिनमें भाग लेने वालों ने महंगाई, बेरोज़गारी तथा सरकार के कमज़ोर प्रबंधन के खिलाफ़ नारे लगाए इस बीच कुछ उपद्रवी तत्वों ने विदेशी मदद से मौक़े का फ़ायदा उठाया और उपद्रव फैला दिया।

अमरीका, ज़ायोनी शासन तथा सऊदी अरब के अधिकारियों और संचार माध्यमों ने इन प्रदर्शनों को ईरान की इस्लामी व्यवस्था के ख़िलाफ़ प्रदर्शनों का नाम दिया और एक अलग ही तसवीर पेश करने की कोशिश की लेकिन बुधवार और गुरुवार को पूरे ईरान में प्रदर्शन हुए और ईरानी जनता ने दुशमनों की साज़िशों तथा प्रदर्शनों में उपद्रवी तत्वों की हरकतों और सरकारी सम्पत्ति को नुक़सान पहुंचाने की कोशिशों की निंदा की।

आयतुल्लाह सैयद अहमद ख़ातेमी ने तेहरान की केन्द्रीय नमाज़े जुमा के ख़ुतबों में कहा कि इलाक़े के देशों विशेष रूप से सीरिया और इराक़ में बार बार पराजय का मुंह देखने के बाद अमरीकी तथा उनके घटकों में कुंठा भर गई है और अब वह इस्लामी प्रतिरोध ब्लाक के ध्वजवाहक का दर्जा रखने वाले इस्लामी गणतंत्र ईरान पर वार करने के लिए मौक़े की तलाश में हैं।

तेहरान की केन्द्रीय नमाज़े जुमा के इमाम ने कहा कि अमरीका और उसके घटकों को यह लगता है कि उपद्रवियों का समर्थन करके वह इस्लामी गणतंत्र ईरान पर वार कर ले जाएंगे लेकिन ईरान की समझदार जनता ने हमेशा की तरह इस बार भी मैदान में उतर कर अमरीका और उसके घटकों के सारे मंसूबों पर पानी फेर दिया।

आयतुल्लाह सैयद अहमद ख़ातेमी ने कहा कि हालिया उपद्रव के संबंध में अमरीका ने योजनाकार और सऊदी अरब ने स्पांसर की भूमिका निभाई।

भारत में शिया मुसलमानों के वरिष्ठ धर्मगुरू मौलाना कल्बे जवाद ने कहा है कि ईरान में हालिया दिनों मंहगाई के ख़िलाफ़ हुए प्रदर्शनों को विद्रोह बताकर साम्राजवादी शक्तियां ईरान को कमज़ोर दिखाने की कोशिश में लगी हुई हैं।

प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश राज्य की राजधानी लखनऊ के इमामे जुमा और भारत में शिया मुसलमानों के वरिष्ठ धर्मगुरू मौलाना कल्बे जवाद नक़वी ने कहा है कि ईरान में हुए हालिया दिनों में महंगाई के ख़िलाफ़ प्रदर्शनों को साम्राज्यवादी शक्तियों ने ग़लत ढंग से पेश करके ईरान को कमज़ोर दिखाने की एक नाकाम कोशिश थी, जिसको ईरान की समझदार जनता ने अपनी एकजुटता और वहां कि धार्मिक नेतृत्व पर अपना विश्वास जताकर विफल बना दिया है।

मौलाना कल्बे जवाद ने कहा कि छोटी-छोटी घटनाओं को ईरान की इस्लामी व्यवस्था के दुश्मन, मीडिया के माध्यम से ऐसे पेश कर रहा है कि जैसे ईरान की जनता वहां की सरकार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रही हो, जबकि सच्चाई यह है कि कुछ छोटे-छोटे प्रदर्शन बढ़ती महंगाई के विरुद्ध हुए थे। उन्होंने कहा कि कुछ अमेरिकी, इस्राईली और सऊदी एजेंटों ने उन प्रदर्शनकारियों के बीच घुसकर उप्रदव करने का प्रयास किया जिसको ईरान की जनता और अधिकारियों ने बड़ी सूझबूझ से विफल बना दिया।

मौलाना कल्बे जवाद ने कहा की मंहगाई के ख़िलाफ़ हुए प्रदर्शनों में एक महिला द्वारा बुर्क़ा उतारने के वीडियो को इस्लाम दुश्मन मिडिया जिस तरह हाईलाइट कर रहा है उससे साफ़ अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि अमेरिकी और पश्चिमी देशों की मीडिया किसके इशारे पर इस तरह की झूठी ख़बरे फैला रहे हैं।

मौलाना ने कहा कि इस्लाम में हिजाब का आदेश ईरान की इस्लामी क्रांति के संस्थापक इमाम ख़ुमैनी (र.ह) या इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई की तरफ़ से नहीं है बल्कि ख़ुदा की ओर से दिया गाया आदेश है जिसको मानना हर मुसलमान पर अनिवार्य है।

भारत में शिया मुसलमानों के वरिष्ठ धर्मगुरू मौलाना कल्बे जवाद ने कहा कि ईरान में इस्लामी व्यवस्था को कमज़ोर करने का साम्रज्यवादी शक्तियां जो सपना देख रही हैं वह कभी साकार नहीं होगा, क्योंकि जब कभी भी इस इस्लामी व्यवस्था को कमज़ोर करने की कोशिश की गयी है तो वह पहले से ज़्यादा ताक़तवर बनकर उभरी है।  

 

 

आज ही के दिन महान महिला हज़रत फ़ातेमा मासूमा का स्वर्गवास हुआ। आप अपने भाई हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम से मिलने के लिए मदीना से मर्व के लिए चलीं लेकिन घटनाओं से भरे इस सफ़र के कारण आप अपने भाई से न मिल सकीं और अंततः उन्हें पवित्र नगर क़ुम को अपने अमर स्थान के रूप में चुनना पड़ा। इस अवसर पर पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों से श्रद्धा रखने वालों को संवेदना प्रस्तुत करने के साथ ही हज़रत मासूमा के जीवन के कुछ अहम पहलुओं से आपको अवगत करा रहे हैं।

वास्तविक परिपूर्णतः व कल्याण ईश्वर पर दृढ़ आस्था और उसके आदेश के अनुसार शुद्ध कर्म से ही हासिल होता है। यही वजह है कि इस दृष्टि से मर्द और औरत के बीच कोई अंतर नहीं है। मर्द और औरत शारीरिक व आत्मिक दृष्टि से एक दूसरे से भिन्न होते हैं लेकिन दोनों ही परिपूर्णतः व कल्याण तक पहुंचने की दृष्टि से जो ईश्वर का सामिप्य है, समान संभावना रखते हैं। दोनों के बीच कोई अंतर नहीं है। औरत भी ईश्वर पर आस्था और शुद्ध कर्म के ज़रिए ईश्वर की निकटता हासिल कर सकती है और इसी तरह मर्दों के लिए वास्तविक कल्याण व परिपूर्णतः तक पहुंचने के लिए मार्ग समतल है। जैसा कि ईश्वर ने नहल नामक सूरे की आयत नंबर 97 में पवित्र जीवन की प्राप्ति को उस पर आस्था और शुद्ध कर्म से सशर्त किया है। इस आयत में ईश्वर कहता है, "जो भी चाहे वह मर्द हो या औरत, अगर ईमान रखता है, तो उसे अमर पवित्र जीवन देंगे। और उन्हें जो बेहतरीन कर्म करते हैं, उसका फल देंगे।"

पूरे इतिहास में ऐसी बहुत सी औरतें गुज़री हैं जो अपने कर्म से ईश्वर पर आस्था व अध्यात्म के उच्च चरण तक पहुंचीं। इनमें से कुछ नमूनों का ईश्वर ने क़ुरआन में उल्लेख किया है ताकि वे उनके बाद के लोगों के लिए आदर्श बनें। हज़रत ईसा मसीह की मां हज़रत मरयम भी उन्हीं औरतों में हैं। ईश्वर ने आले इमरान नामक सूरे की आयत नंबर 42 में हज़रत मरयम के चरित्र की गवाही देते हुए कहा है, "हे मरयम! ईश्वर ने तुम्हें चुना और पवित्र बनाया और तुम्हें दूसरी महिलाओं पर वरीयता दी है।"

महान महिला का एक और नमूना हज़रत आसिया हैं जो फ़िरऔन की बीवी थीं। जिस वक़्त इस महान महिला ने जादूगरों के मुक़ाबले में हज़रत मूसा के चमत्कार को देखा तो उनका हृदय ईश्वर पर आस्था के प्रकाश और हज़रत मूसा की पैग़म्बरी पर आस्था से भर गया। लेकिन वह अपनी इस आस्था को ज़ाहिर नहीं करती थीं यहां तक कि फ़िरऔन को उनकी आस्था की भनक लग गयी। जिसके बाद फ़िरऔन ने हज़रत आसिया के हाथ पैर पर कील ठोंकने, उन्हें धूप में रखने और उनके सीने पर भारी पत्थर रखने का आदेश दिया। इस महान महिला ने अपने जीवन के अंतिम क्षणों में यह दुआ की, "हे पालनहार! मुझे फ़िरऔन और उसके कर्म से मुक्ति दे और मुझे स्वर्ग में अपने पास जगह दे।" ईश्वर ने पवित्र क़ुरआन की आयत के अनुसार, उनकी इस दुआ को क़ुबूल किया।                  

ईश्वर का सामिप्य प्राप्त करने व परिपूर्णतः तक पहुंचने वाली महानतम महिलाओं में हज़रत फ़ातेमा मासूमा भी हैं। उन्होंने अपने पिता हज़रत इमाम मूसा काज़िम और अपने भाई हज़रत इमाम रज़ा जैसी दो हस्तियों की छत्रछाया में प्रशिक्षण पाने के साथ ही ईश्वरीय सामिप्य हासिल करने के लिए अद्वितीय प्रयास किया। इसका अंदाज़ा उनके जीवन की एक महा घटना से लगाया जा सकता है। एक बार पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों पर आस्था रखने वालों का एक समूह कई शहरों से मदीना पहुंचा ताकि अपने धार्मिक सवालों व गुत्थियों का हल इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम से पूछे। जब वे मदीना में इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के घर के दरवाज़े पर पहुंचे तो उन्हें पता चला कि इमाम सफ़र पर गए हैं। इमाम को ना पाकर इन श्रद्धालुओं की सफ़र की थकान कई गुना बढ़ गयी। वे वापस लौटने के बारे में सोच रहे थे कि अचानक हज़रत फ़ातेमा मासूमा जो उस समय बच्ची थीं, दरवाज़े पर पहुंची और उन लोगों से कहा कि अपने अपने सवाल उन्हें दे दें। हज़रत मासूमा ने उनके एक एक सवाल के जवाब लिख कर उनके ख़त उन्हें लौटा दिए। इन लोगों को बहुत आश्चर्य हुआ कि इतनी छोटी बच्ची ने धर्मशास्त्र से संबंधित उनके सवालों के जवाब दिए।  

जब ये लोग मदीना से लौट रहे थे तो रास्ते में उनकी इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम से मुलाक़ात हुयी जो मदीना वापस आ रहे थे। वे लोग बड़ी उत्सुकता से इमाम की ओर बढ़े कि उन्हें सारी घटनाएं बताएं। इन लोगों ने हज़रत मासूमा की दस्तख़त वाला पत्र इमाम को दिखाया। इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने ख़त खोला और अपनी बेटी द्वारा सवालों के दिए गए जवाब देख कर कहा, "ऐसी बेटी पर बाप न्योछावर हो जाए।"

इंसान ईश्वर की उपासना व वंदना द्वारा अध्यात्म के ऐसे चरण पर पहुंच सकता है कि ईश्वरीय कृपा के उतरने का माध्यम और उसके इरादे का प्रतीक बन जाए। इस बारे में हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं, "ईश्वर की वंदना व आज्ञापालन ऐसा रत्न है जिससे अन्य प्राणियों पर साम्राज्य हासिल होता है।"

हज़रत फ़ातेमा मासूमा भी ईश्वर की वंदना व आज्ञापालन के ज़रिए जो उच्च स्थान हासिल किया, उसकी वजह से अपने जीवन में भी और उसके बाद भी करिश्मों का स्रोत बन गयीं। यह करिश्मा सिर्फ़ जीवन के भौतिक आयाम तक सीमित नहीं हैं बल्कि वे लोग भी लाभान्वित होते हैं जो आध्यात्मिक स्थान पाना चाहते हैं। मिसाल के तौर पर सफ़वी शासन काल के मशहूर दार्शनिक मुल्ला सदरा कहते हैं, "जब भी दर्शनशास्त्र की कोई गुत्थी नहीं सुलझती थी तो मैं पैदल कहक से क़ुम जाता और हज़रत फ़ातेमा मासूमा की क़ब्र पर खड़ा होकर उनसे मदद मांगता। इस तरह मेरी मुश्किल हल हो जाती और फिर मैं अपने गांव कहक लौट आता।" यह करिश्मा हज़रत मासूमा की महान आत्मा को दर्शाता और यह बताता है कि उनका कृपा के अनन्य स्रोत ईश्वर से संपर्क था। संगीत

हज़रत मासूमा की आत्मिक महानता के पीछे एक वजह उनकी नैतिकता भी थी। उनमें ईश्वर के मार्ग में धैर्य व दृढ़ता और उसके फ़ैसलों के सामने रज़ामंदी जैसी विशेषता पायी जाती थी। वे अपनी छोटी सी उम्र में ही इन विशेषताओं की वजह से मशहूर थीं। हज़रत मासूमा ने अपने परिवार के लोगों के साथ अब्बासी शासकों की ओर से होने वाले अत्याचार सहन किए। सबसे बड़ी मुसीबत जो उन पर पड़ी वह उनके पिता इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम का क़ैद होना और बग़दाद की जेल में तत्कालीन अब्बासी शासक हारून रशीद के एजेंटों के हाथों उनका शहीद होना था। इसके बाद इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का मदीना से पूर्वोत्तरी ईरान के मर्व शहर पलायन के लिए मजबूर किया जाना। ये सब हज़रत मासूमा के लिए बहुत बड़ी मुसीबत थी लेकिन उन्होंने अब्बासी शासकों की ओर से होने वाले अत्याचार पर धैर्य से काम लिया और अपनी वैज्ञानिक गतिविधियों को जारी रखा। इसके साथ ही आपने अपने भाइयों के साथ सामाजिक-राजनैतिक आंदोलन के लिए क़दम उठाया और मौजूदा स्थिति पर आपत्ति जताने के लिए पलायन को इसका माध्यम चुना।

हज़रत मासूमा 201 हिजरी क़मरी में एक कारवां की अगुवाई करती हुयी जिसमें उनके भाई और संबंधी थे, ईरान के लिए निकलीं। आप जिस शहर, गांव व स्थान पर पहुंचतीं, अपने भाई इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की पीड़ा व मज़लूमियत का बखान करतीं और अब्बासी शासन से अपने और पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के विरोध को बयान करतीं। इस चीज़ को तत्कालीन अब्बासी शासन सहन नहीं कर पा रहा था क्योंकि उसे डर था कि लोग उसके अत्याचार से अवगत हो जाएंगे तो शासन का वजूद ख़तरे में पड़ जाएगा। जिस वक़्त हज़रत मासूमा का कारवां क़ुम से लगभग 70 किलोमीटर दूर सावेह शहर पहुंचा तो पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के कुछ विरोधियों ने शासन के इशारे पर कारवां पर हमला कर दिया और इस असमान जंग में कारवां के सभी मर्द शहीद हो गए। इस त्रासदी का हज़रत मासूमा के मन पर इतना असर पड़ा कि आप बीमार हो गयीं। आपने बीमारी की हालत में कहा, "मुझे क़ुम शहर ले चलो! क्योंकि मैने अपने पिता से सुना है कि क़ुम शहर शियों का केन्द्र है।" क़ुम शहर के लोगों को जब यह शुभसुचना मिली तो वे हज़रत मासूमा के स्वागत के लिए निकल पड़े। हज़रत मासूमा 23 रबीउल अव्वल सन 201 हिजरी क़मरी में क़ुम पहुंचीं और 16 दिन जीवित रहने के बाद इस नश्वर संसार से सिधार गयीं।

हज़रत मासूमा के पवित्र शव को क़ुम में दफ़्न किया गया ताकि पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों से श्रद्धा रखने वाले उन्हें श्रद्धांजलि दे सकें। हज़रत मासूमा के वजूद की बर्कत है कि आज क़ुम इस्लामी शिक्षाओं के प्रसार का केन्द्र बन गया है। आज पूरी दुनिया से इस्लामी शिक्षाओं में रूचि रखने वाले बड़ी संख्या में क़ुम में धार्मिक केन्द्रों में शिक्षा हासिल कर रहे हैं।