رضوی

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 रामपुर की ऐतिहासिक रज़ा लाइब्रेरी ने पवित्र रमज़ान के महीने में क़ुरआन के नवीनतम संग्रह की प्रदर्शनी का आयोजन किया है।

इस प्रदर्शनी को देखने के लिए आम लोगों से लेकर विद्वानों तक का तांता लगा हुआ है। रज़ा लाइब्रेरी दक्षिण एशिया में प्राचीन हस्तलिपियों के संग्रह के लिए प्रसिद्ध है।

लाइब्रेरी के प्रमुख प्रोफ़ैसर सैय्यद हसन अब्बास का कहना है कि लाइब्रेरी ने पहली बार अपने क़ुरआन संग्रह का प्रदर्शन किया है और वह भी रमज़ान के महीने में।

लाइब्रेरी में 13वीं शताब्दी में बग़दाद के प्रसिद्ध सुलेखक याक़ूत मुसतासेमी द्वारा लिखा गया क़ुरआन भी मौजूद है। यह क़ुरआन सोने और अनमोल लापीस लाजुली (lapis lazuli) से जड़ा हुआ है।

प्रदर्शनी के लिए रखी गई कुछ हस्तलिपियां अरबी सुलेखन के सबसे पुराने नमूनों में से हैं।

सातवीं शताब्दी में हज़रत अली के हाथ से चमड़े पर लिखा गया एक क़ुरआन भी इस प्रदर्शनी में रखा गया है। इस अनमोल क़ुरआन की ज़ियारत के लिए लोगों को लम्बी लम्बी लाईनों में लगना पड़ रहा है।

इसके अलावा आठवीं शताब्दी से संबंधित इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) के हाथ से लिखा हुआ क़ुरआन भी प्रदर्शनी के लिए रखा गया है, यह इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) की अद्वितीय शिल्पकला का नमूना है।  

 

 

बिस्मिल्लाह हिर्रहमानिर्हीम
हज़रत अली अ0 की वसीयत
जब आप पर इबने मुल्जिम ज़रबत लगा चुका तो आपने इमाम हसन अ0 और इमाम हुसैन अ0 से फ़रमायाः
• मैं तुम दोनो को वसीयत करता हूँ कि अल्लाह से डरते रहना।
• दुनिया के इच्छुक ना होना, अगरचे वह तुम्हारे पीछे लगे।
• और दुनिया की किसी ऐसी चीज़ पर न कुढ़ना जो तुमसे रोक ली जाए।
• जो कहना हक़ के लिए कहना।
• और जो करना सवाब के लिए करना।
• ज़ालिम के दुश्मन और मज़लूम के मददगार बने रहना।
• मैं तुमको (इमाम हसन अ0 और इमाम हुसैन अ0 को)....अपनी तमाम संतानों को....अपने परिवार को....और जिन जिन तक (रहती दुनिया तक) मेरी यह वसीयत पहुँचे सब को वसीयत करता हुँ कि अल्लाह से डरते रहना।
• अपने मामलात दुरुस्त और आपस के सम्बंध सुलझाए रखना क्योंकि मैंने तुम्हारे नाना रसूल अल्लाह स0 को फ़रमाते सुना है कि आपस की दूरियों को मिटाना आम नमाज़ रोज़े से अफ़ज़ल है।
• देखो यतीमों के बारे में अल्लाह से डरते रहना, उनके फ़ाक़े की नौबत न आये......और तुम्हारी मौजूदगी में.....वह तबाह व बरबाद न हो जाएँ।
• अपने पड़ोसियों के बारे में अल्लाह से डरते रहना..... क्योंकि उनके बारे में पैग़म्बर स0 ने बराबर हिदायत की है और आप इस हद तक उनके लिए सिफ़ारिश फऱमाते रहे कि हम लोगों को ये गुमान होने लगा कि आप उन्हें भी विरासत दिलाएँगे।
• क़ुर्आन के बारे में अल्लाह से डरते रहना..... ऐसा ना हो दूसरे इस पर अमल करने में तुम पर सबक़त ले जाएँ।
• नमाज़ के बारे में अल्लाह से डरते रहना।
• क्योंकि ये तुम्हारे दीन का सुतून है।
• अपने परवरदिगार के घर के बारे में अल्लाह से डरते रहना.....और उसे जीते जी ख़ाली न छोड़ना।
• क्योंकि अगर ये ख़ाली छोड़ दिया गया, तो फिर (अज़ाब से) मोहलत ना पाओगे।
• जान व माल और ज़बान से अल्लाह की राह में जिहाद को न भूलना।
• और तुम पर लाज़िम है कि आपस में मेल मुलाक़ात रखना।
• और एक दूसरे की तरफ़ से पीठ फेरने और तअल्लुक़ात तोड़ने से परहेज़ करना।

 

हज़रत अली अलैहिस्सलाम के शहादत दिवस के अवसर पर पैग़म्बरे इस्लाम और उनके परिजनों से गहरी श्रद्धा रखने वाले मुसलमान शोक में डूब गए हैं।

इस्लमी गणतंत्र ईरान में मंगलवार की रात से ही नौहा और मजलिस का सिलसिला शुरू हो गया जो लगातार जारी है। पवित्र नगर मशहद में जहां पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र हज़रत इमाम अली रज़ा अलैहिस्सलाम का मज़ार है, इसी प्रकार पवित्र नगर क़ुम में जहां इमाम अली रज़ा अलैहिस्सलाम की बहन का मज़ार है, मस्जिदों, इमाम बारगाहों तथा धार्मिक स्थलों में शोक सभाएं जारी हैं जिनमें हज़रत अली अलैहिस्सलाम की जीवनशैली तथा उन पर इब्ने मुल्जिम नामक दुष्ट व्यक्ति के हमले की घटना को बयान किया जा रहा है।

तेहरान के इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में मजलिस हुई जिसमें इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनई ने भी भाग लिया देश के वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित हुए।

इराक़ में पवित्र नगर नजफ़ और उससे लगे कूफ़ा शहर में श्रद्धालुओं का बहुत बड़ा मजमा लगा हुआ है। लोग हज़रत अली अलैहिस्सलाम के रौज़े पर पहुंचे हैं जबकि श्रद्धालुओं की संख्या लगातार बढ़ रही है। पवित्र नगर कर्बला, काज़मैन, अलबलद और सामर्रा में भी हज़रत अली अलैहिस्सलाम के सिर पर नमाज़ की हालत में होने वाले हमले की बर्स के उपलक्ष्य में शोक सभाओं का आयोजन किया गया है और अंजुमनें मातमी जुलूस निकाल रही हैं।

लेबनान, सीरिया तथा अन्य अरब देशों इसी प्रकार पश्चिमी देशों में हज़रत अली अलैहिस्सलाम के शहादत दिवस पर शोक सभाओं का सिलसिला जारी है।

भारत और पाकिस्तान से हमारे संवाददाताओं ने रिपोर्ट दी है कि सभी छोटे बड़े शहरों और गावों में हज़रत अली अलैहिस्सलाम की याद में शोक सभाओं का आयोजन किया गया है और मातमी जुलूस निकाले गए हैं। लखनऊ से हमारे संवाददाता ने बताया कि गेलीम का ताबूत निकाला गया जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया।

पाकिस्तान में कराची, इस्लामाबाद, लाहौर, सहित छोटे बड़े शहरों में शोक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया है।

भारत में भी मुंबई, दिल्ली, लखनऊ, हैदराबाद और कोलकाता सहित लगभग सभी छोटे बड़े शहरों में जुलूस निकाले गए।

मंगलवार की रात को लोगों ने क़द्र की रात की विशेष उपसानाएं कीं और दुआएं पढ़ी साथ ही हज़रत अली अलैहिस्सलाम का शोक मनाया जिन्हें 19 रमज़ान की सुबह नमाज़ की हालत में हमला करके इब्ने मुलजिम नामक दुष्टि व्यक्ति ने घायल कर दिया और 21 रमज़ान की सुबह हज़रत अली अलैहिस्सलाम शहीद हो गए।

 

मुसलमानों के सामने आने वाले नए राजनीतिक और सामाजिक मुश्किलों को देखते हुए आज मौलाना सैयद कल्बे जवाद नकवी ने एक बयान जारी करके कहा कि हमें देखना चाहिए कि कैसे पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद स. ने मक्का और मदीना में जीवन बिताया है, मक्के और मदीने की राजनीतिक- सामाजिक स्थिति अलग थी और पैग़म्बरे इस्लाम हजरत मोहम्मद स. ने उसी स्थिति के अनुसार जीवन बिताया, हमारे इमामों अ. की जीवनशैली भी यही रही है क्योंकि सभी सरकारें उनकी विरोधी होती थीं इसलिए हमें कठिन परिस्थितियों में रसूले इस्लाम हजरत मोहम्मद स. और इमामों अ. के जीवन से सबक लेना चाहिए। मौलाना ने कहा कि धैर्य, सहनशीलता और अल्लाह पर भरोसा ही हर मुसीबत से नजात का रास्ता है। मौलाना ने कहा कि हमें उम्मीद है कि हमारी कौम पर जो जुल्म और अत्याचार पिछली सरकार में हुए हैं वह इस सरकार में नहीं होंगे। हमें उम्मीद है कि हमें हमारे अधिकार दिए जाएंगे।
मौलाना ने कहा कि हमारी कौम को किसी भी सरकार से भीख नहीं चाहिए बल्कि अपना हक चाहिए, हमारी वक्फ संपत्तियां, हुसैनाबाद ट्रस्ट, इमामबाड़े और हमारी अन्य संपत्तियां हमें वापस कर दी जाएँ, मौलाना ने कहा कि कौम के बेईमान व्यक्तियों, सरकारों और प्रशासन की मिली भगत से ही कौमी धरोहरें ,कौमी संपत्तियों को नुकसान पहुंचा है। मौलाना ने समाजवादी सरकार की ज्यादतियों और अन्याय की निंदा करते हुए कहा कि इमाम का कथन है कि यदि अत्याचारी को सजा मिलने में देर हो तो घबराना नहीं क्योंकि सजा देने में वह जल्दी करता है जिसे अपराधी के भाग जाने का डर हो। अल्लाह ने जालिम सरकार को सजा दी है और हमें इस चुनाव में कम से कम ये लाभ हुआ कि जो आरोप हमारी कौम पर लगते थे अब वो इलजाम नही लगेंगे।

 

बुधवार, 14 जून 2017 06:24

फ़ारसी सीखें, 21वां पाठ

ईरान में लकड़ी के हस्तकला उद्योगों में से एक क़लमकारी भी है जो बहुत ही सूक्ष्म कला है। आज की चर्चा में हम आपको क़लमकारी से परिचित कराएंगे। क़लमकारी में क़लमकार, अनेक प्रकार की लकड़ियों, हाथी के दांत, हड्डी और सीप को प्रयोग करता है। इन वस्तुओं को त्रिभुज से लेकर दसभुजाओं के आकार में काटा जाता है। इन्हें बहुत ही छोटे आकार में काटा जाता है और हर भुजा से कई भुजाएं निकलती हैं जो दो से पांच मिलीमीटर की होती हैं। इन टुकड़ों को एक दूसरे से मिलाकर चिपकाया जाता है जिससे बहुत ही सुंदर आकार अस्तित्व में आता है। क़लमकार कई भुजाओं वाले टुकड़ों को बड़ी दक्षता के साथ चिपकाता है और उन्हें सान देता है ताकि एक जैसे दिखाई दें। इस विषय पर मोहम्मद और सईद के बीच बातचीत से पूर्व इससे जुड़े मुख्य शब्दों पर ध्यान दीजिए।

बीता हुआ कल       ديروز

बाज़ार की मस्जिद      مسجد بازار

कला       هنر

तक्षणकला        منبت

लकड़ी पर चित्रकारी           معرق

मैं परिचित हुआ          من آشنا شدم

हस्तकला उद्योग                   صنايع دستي

लकड़ी का          چوبي

वे हैं        آنها هستند

बहुत          بسيار

सूक्ष्म          ظريف

सुंदर           زيبا

ठीक है या सही है         درست است

किन्तु        ولي

अधिक सूक्ष्म            ظريفتر

हमारे पास है          ما داريم

नाम          اسم

क़लमकारी या जड़ाउ का काम       خاتم كاري

कलाकार         هنرمند

ईरानी या ईरान का         ايراني

लकड़ी              چوب

लकड़ियां           چوبها

छोटा           کوچک

कई कोणीय            چند ضلعي

वह चिपकाता है          او مي چسباند

जैसे        مثل

त्रिकोण        مثلث

एक साथ मिला कर        كنار هم

लगाए जाते हैं         آنها قرار مي گيرند

सब      همه

सतह        سطح

उसे छिपा देते हैं          آنها مي پوشانند

किन स्थानों पर          چه جاهايي

उसे प्रयोग किया जाता है           آن به کار مي رود

छोटा बक्सा         صندوقچه

क़लमदान          قلمدان

दूसरी वस्तुएं        چيزهاي ديگر

इमारत        ساختمان

संसद        مجلس

राष्ट्रीय        ملي

ढका हुआ        پوشيده از

वास्तव में           واقعا

क्या ऐसा नहीं है           اين طور نيست ؟

वह है        او است

उसे होना चाहिए          او بايد باشد

इसके साथ ही या इसके अतिरिक्त      ضمنا

हाल         سالن

आधार         بنا

दीवार       ديوار

छत          سقف

अन्य       ساير

उपकरण, औज़ार,        وسايل

सुंदर       زيبا

और अब आइए एक नज़र डालते हैं दोनों की बातचीत पर

मोहम्मदः कल बाज़ार की मस्जिद में तक्षणकला और लकड़ी पर चित्रकारी की कला से परिचित हुए।                 محمد - ديروز در مسجد بازار با هنرهای منبت و معرق آشنا شدم .  

सईदः तक्षणकला और लकड़ी पर चित्रकारी ईरान के हस्तकला उद्योग में हैं।

سعيد - منبت و معرق از صنايع دستي چوبی ايران هستند .

मोहम्मदः ये कलाएं बहुत की सूक्ष्म व सुंदर हैं।       محمد - آنها بسيار ظريف و زيبا هستند .

सईदः ठीक है। किन्तु तक्षकणकला और लकड़ी पर चित्रकारी से भी अधिक सूक्ष्म कलाएं मौजूद हैं।           سعيد - درست است . ولي از منبت و معرق ، هنر ظريفتری هم داريم .

मोहम्मदः इस कला का क्या नाम है ?                     محمد - اسم اين هنر چيست ؟

सईदः क़लमकारी, इस कला में ईरानी कलाकार बहुत ही छोटी व कई कोणीय आकार में कटी हुयी लकड़ियों को एक साथ चिपकाते हैं।

سعيد - هنر خاتم کاري . در اين هنر ، هنرمند ايرانی چوبهای بسيار کوچک و چند ضلعی را به هم مي چسباند

मोहम्मदः लकड़ी पर चित्रकारी की भांति               محمد - مثل معرق ؟

सईदः नहीं। क़लमक़ारी में बहुत ही छोटे छोटे त्रिकोण एक के बाद एक इस प्रकार एक साथ चिपकाए जाते हैं कि पूरी सतह छिप जाती है।

سعيد - نه . در خاتم کاری ، مثلثهای بسيار کوچک کنار هم قرار مي گيرند و همه ی سطح کار را می پوشانند .

मोहम्मदः इस सूक्ष्म कला को कहां कहां प्रयोग किया जाता है ?

محمد - اين هنر ظريف در چه جاهايی به کار مي رود ؟

सईदः छोटे छोटे बक्सों, क़लमदानों सहित दूसरी वस्तुओं पर। ईरान की राष्ट्रीय संसद की इमारत पर क़लमकारी की गयी है।

سعيد - در صندوقچه ها ، قلمدانها و چيزهای ديگر . ساختمان مجلس ملی ايران پوشيده از خاتم کاری است.

सईदः जी हां। इस इमारत के हाल की दीवारों के साथ ही, छत सहित अन्य सुंदर वस्तुओं पर क़लमकारी की गयी है।

سعيد - بله . ضمنا" در سالن اين بنا ، خاتم كاری ديوارها ، سقف و ساير وسايل زيبا است

मोहम्मदः वास्तव में यह इमारत तो बहुत बड़ी होगी ?  क्या ऐसा नहीं  है ?

محمد : واقعا" ؟ اين ساختمان بايد بزرگ باشد . اين طور نيست ؟

 

मोहम्मद और सईद के बीच फ़ारसी वार्तालाप पर एक बार फिर नज़र डालते हैं,

 

محمد - ديروز در مسجد بازار با هنرهای منبت و معرق آشنا شدم . سعيد - منبت و معرق از صنايع دستي چوبی ايران هستند . محمد - آنها بسيار ظريف و زيبا هستند . سعيد - درست است . ولی از منبت و معرق ، هنر ظريفتری هم داريم . محمد - اسم اين هنر چيست ؟ سعيد - هنر خاتم کاری . در اين هنر ، هنرمند ايرانی چوبهای بسيار کوچک و چند ضلعی را به هم می چسباند . محمد - مثل معرق ؟ سعيد - نه . در خاتم کاری ، مثلثهای بسيار کوچک کنار هم قرار مي گيرند و همه ی سطح کار را مي پوشانند . محمد - اين هنر ظريف در چه جاهايی به کار مي رود ؟ سعيد - در صندوقچه ها ، قلمدانها و چيزهای ديگر . ساختمان مجلس ملی ايران پوشيده از خاتم کاری است . محمد : واقعا" ؟ اين ساختمان بايد بزرگ باشد . اين طور نيست ؟ سعيد - بله . ضمنا" در سالن اين بنا ، خاتم كاری ديوارها ، سقف و ساير وسايل زيبا است .

क़लमकारी बहुत ही प्रशंसनीय कला है। इस सूक्ष्म कला का इतिहास ईरान में बहुत पुराना है। उदाहरण के लिए इस्फ़हान की अतीक़ जामा मस्जिद का मिंबर जिस पर क़लमकारी की गयी है, एक हज़ार से अधिक पुराना है। इस मस्जिद के मुख्य बरामदे की पूरी छत पर क़लमकारी की गयी जो कम से कम 600 वर्ष पुरानी है। क़लमकारी में अनेक प्रकार के रंगों का प्रयोग किया है। इसी प्रकार सीप हाथी दांत, हड्डी, धात के तारों की इस प्रकार प्रयोग किया गया है कि इस कला में चार चांद लग गया है। अच्छी क़लमकारी उसे कहा जाता है जिसमें छोटे आकार के चित्र चित्र हों और शीराज़, इस्फ़हान व तेहरान को इस कला का केन्द्र समझा जाता है।अलबत्ता तेहरान में अधिकांश क़लमकार शीराज़ और इस्फ़हान के हैं।

 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने सोमवार की शाम वरिष्ठ अधिकारियों और पालिकाओं के प्रमुखों से भेंट में कहा कि देश के सही संचालन के लिए अनुभवों से फायदा उठाना चाहिए और सब से अहम अनुभव राष्ट्रीय एकता और अमरीका पर भरोसा न करना है।

वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने गत 19 मई को ईरान में आयोजित राष्ट्रपति चुनाव का उल्लेख करते हुए कहा कि हालिया राष्ट्रपति और नगर व ग्रामीण परिषद चुनाव बहुत बड़ा काम था और चुनाव से ईरानी जनता के दिल में इस्लामी व्यवस्था और क्रांति की शक्ति का प्रदर्शन हुआ हालांकि अंतरराष्ट्रीय मीडिया  इस महत्वपूर्ण बिंदू की ओर कोई इशारा नहीं करता। 

वरिष्ठ नेता ने ईरान में राष्ट्रपति चुनाव के बाद प्रतिबंध लगाने की अमरीका की आलोचनीय कार्यवाही का उल्लेख करते हुए कहा कि इस प्रकार की शत्रुता के मुक़ाबले में देश के विकास के संयुक्त मक़सद के लिए नया वातावरण बनाए जाने की ज़रूरत है और इस में हरेक की भूमिका होनी चाहिए। 

वरिष्ठ नेता ने कहा कि साम्राज्यवादी ताक़तें अपनी इच्छा को थोपने के लिए विभिन्न प्रकार के हथकंडे अपनाती हैं और उनका एक हथकंडा अंतरराष्ट्रीय नियम के ढांचे में अपने उद्देश्यों की पूर्ति है और इस रास्ते से वह अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष करने वाले स्वाधीन देशों पर अंतरराष्ट्रीय नियमों के उल्लंघन का आरोप लगाते हैं। 

वरिष्ठ नेता ने कहा कि हालिया दिनों में अमरीकियों ने ईरान के बारे में अपने बयानों में क्षेत्र को अस्थिर करने की बात की है उनके जवाब में कहना चाहिए कि पहली बात तो यह है कि इस क्षेत्र से आप लोगों का क्या संबंध और दूसरी बात यह है कि इस क्षेत्र की अस्थिरता के ज़िम्मेदार आप और आप के एजेन्ट हैं। 

वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने आतंकवादी गुट दाइश के गठन और उसकी सैन्य मदद के सिलसिले में अमरीकियों के रोल का उल्लेख करते हुए कहा कि दाइश के खिलाफ गठजोड़ बनाने का दावा, झूठ है अलबत्ता अमरीकी, बेक़ाबू दाइश के विरोधी हैं किंतु अगर कोई वास्तव में दाइश को खत्म करना चाहता है तो यह अमरीकी उसके सामने खड़े हो जाते हैं। 

वरिष्ठ नेता ने ईरान व अमरीका के संबंधों के बारे में कहा कि अमरीका के साथ हमारी बहुत सी समस्याओं का मूल रूप से समाधान संभव नहीं है क्योंकि हम से अमरीका की परेशानी की अस्ल वजह, परमाणु ऊर्जा और मानवाधिकार नहीं है बल्कि उनकी समस्या, इस्लामी गणतंत्र के सिद्धान्त से है। 

वरिष्ठ नेता ने कहा कि ईरानी राष्ट्र जीवित और इस्लामी क्रांति उत्साह से भरी है और यह निश्चित रूप से उज्जवल भविष्य का शुभ संकेत है और हमें उम्मीद है कि ईरानी जनता की दशा बेहतर से बेहतर होती जाएगी और वह चुनौतियों से भली भांति निपट सकेगी। 

वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई के भाषण से पहले राष्ट्रपति डॅाक्टर हसन रूहानी ने चुनाव के लिए जनता और वरिष्ठ नेता के प्रति आभार प्रकट किया और कहा कि चुनाव में विजय जनता की हुई है और प्रतिस्पर्धा का दौर गुज़र गया और अब जनता की मांगों और ज़रूरतों पर ध्यान देना चाहिए।

 

अंतर्राष्ट्रीय कुरान समाचार एजेंसी ने «albawabhnews» समाचार एजेंसी के अनुसार बताया कि हिफ्ज़े और तज्वीदे कुरान प्रतियोगिता (मिस्र के अल अजहर विश्वविद्यालय अल अजहर शेख के कार्यालय के कर्मचारियों के लिए चौथे वर्ष के लिए 11 जून को काहिरा में आयोजित किया जाएगा।

हिफ्ज़े और तज्वीदे कुरान प्रतियोगिता कुरान चार भाग़ हिफ्ज़, पुरे कुरआन की तज्वीद, आधे कुरआन की तज्वीद, एक चौथाई कुरआन की तज्वीद, के लिए एक दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा करेंगे।

अजहर Mshykhh कार्यालय रमजान के पवित्र महीने के लेने वाले अपना नाम 12 रमज़ान से पहले रजिस्टर का सकते हैं

 

अंतरराष्ट्रीय कुरान समाचार एजेंसी ने "एबीसी"समाचार के अनुसार बताया कि मुस्लिम और पर्थ के ईसाई चर्च समुदाय के लोग़ इस साल पहली बार पर्थ चर्च में इस्लाम और ईसाइयत के सहयोग़ से इफ्तार का आयोजन किया ताकि एक दुसरे के साथ अधिक परिचित हों।

पर्थ शहर के मुसलमानों के इमामे जुमा "फैज़ल" का इरादा है कि चर्च की इमारत के प्रवेश द्वार के बगल में जल्द ही मस्जिद बनाई जाए उन्होंने इस बारे में कहा: कि इस समय जब इस्लाम गलतफहमी में घिरा हुआ है, इस्लाम और ईसाइयत के सहयोग़ से इफ्तार सबसे अच्छा तरीका है।

ईसाई मुस्लिम "Humphreys" ने कहा: कि इस्लाम और ईसाइयत एक कहानी का हिस्सा है और इसके पुराने के सभी निशान एक इंसान और एकता को दर्शाता है।

मुसलमानों की वकील "आयशा नोवाकोविच" ने कहा कि मुसलमानों के इमामे जुमा और पीटर"चर्च के पादरी के बीच दोस्ती आकर्षण है वो भी एसे समय में जब दुनिया लोग़ों के बीच फुट डालना चाहती है इन दो धार्मिक नेता के बीच दोस्ती हमें और पूरी दुनिया को बताती है कि जब नेतृत्व अच्छा होता है तो हम एकता तक पहुँच सकते हैं

यूरोपीय संघ ने फ़िलीस्तीनी क्षेत्रों में नई यहूदी बस्तियों के निर्माण पर ज़ायोनी शासन की कड़े शब्दों में आलोचना की है।

प्राप्त समाचारों के अनुसार यूरोपीय संघ ने इस्राईल की निंदा करते हुए कहा है कि फ़िलिस्तीनी क्षेत्रों में यहूदी बस्तियों के निर्माण के कारण मध्यपूर्व की स्थिति अधिक जटिल होती जा रही है।

यूरोपीय संघ की ओर से जारी बयान में इस बात पर बल दिया गया है कि यूरोपीय संघ अपने वैश्विक और क्षेत्रीय सहयोगियों के साथ फ़िलिस्तीन और ज़ायोनी शासन के बीच शांति प्रयासों को आगे बढ़ाने के लिए तैयार है।

उल्लेखनीय है कि इससे पहले शांति के लिए काम करने वाले एक संगठन ने कहा था कि इस्राईल, अधिकृत फ़िलिस्तीनी क्षेत्रों में पंद्रह सौ नई आवासीय इकाई स्थापित करना चाहता है। प्राप्त सूचना के अनुसार ज़ायोनी शासन द्वारा बनाई जा रही अधिकांश बस्तियां एक नए शहर के रूप में स्थापति की जाएंगी। ज्ञात रहे कि इन नई कालोनियों के निर्माण का आदेश इस्राईल ने हाल ही में जारी किया है।

याद रहे कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने दिसम्बर 2016 में एक विधेयक के माध्यम से इस्राईल से फ़िलिस्तीनी क्षेत्रों में नई बस्तियों का निर्माण रोकने की मांग की थी। राष्ट्र संघ के विधेयक के बाद ज़ायोनी शासन के प्रधानमंत्री ने कहा था कि इस्राईल के लिए राष्ट्र संघ का यह विधेयक बाध्यकारी नहीं होगा।

 

 

पवित्र रमज़ान का महीना इस्लामी जगत की उस महान महिला के स्वर्गवास की याद दिलाता है जो पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम की बहुत अच्छी जीवन साथी थीं।

ऐसी महिला जिसने पैग़म्बरे इस्लाम के हर सुख-दुख में साथ दिया और ईश्वरीय दायित्व पैग़म्बरी के निर्वाह में पैग़म्बरे इस्लाम के हमेशा साथ खड़ी रहे।

सलाम हो हज़रत ख़दीजा पर! ऐसी महान महिला जिससे पैग़म्बरे इस्लाम विभिन्न मामलों में सलाहकार के तौर पर मदद लेते थे। सलाम हो सत्य की गवाही देने वाली महान महिला हज़रत ख़दीजा पर।

  

हज़रत ख़दीजा सदाचारिता, सौंदर्य, व्यक्तित्व व महानता की दृष्टि से अपने समय की महिलाओं की सरदार थीं। वह ऐसे वंश से थीं जो अपने अदम्य साहस के लिए मशहूर था। वह उच्च व्यक्तित्व, स्थिर विचार और सही दृष्टिकोण की स्वामी महिला थीं।

मोहद्दिस क़ुम्मी कहते हैं, “हज़रत ख़दीजा अलैहस्सलाम का ईश्वर के निकट इतना उच्च स्थान था कि उनकी पैदाइश से पहले ईश्वर ने हज़रत ईसा को संदेश में हज़रत ख़दीजा को मुबारका अर्थात बरकत वाली और स्वर्ग में हज़रत मरयम की साथी कहा था क्योंकि बाइबल में पैग़म्बरे इस्लाम के चरित्र चित्रण की व्याख्या में आया है कि उनका वंश एक महान महिला से चलेगा।”

वह इस्लाम के प्रसार में दृढ़ता और न्याय के मार्ग में आश्चर्यजनक हद तक क्षमाशीलता के कारण न सिर्फ़ क़ुरैश की महिलाओं बल्कि दुनिया की महिलाओं की सरदार कही गयीं। पैग़म्बरे इस्लाम ने उनकी प्रशंसा में फ़रमाया, “ईश्वर ने महिलाओं में 4 श्रेष्ठ महिलाओं हज़रत मरयम, हज़रत आसिया, हज़रत ख़दीजा और हज़रत फ़ातिमा ज़हरा को चुना।” उसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम ने आगे फ़रमाया, “हे ख़दीजा! तुम ईमान लाने वालों की बेहतरीन मां हो, दुनिया की महिलाओं में सर्वश्रेष्ठ और उनकी सरदार हो।”                       

अरब में अज्ञानता के काल में बहुत सी महिलाएं उस दौर की बुराइयों में ग्रस्त थीं लेकिन हज़रत ख़दीजा उस दौर में भी चरित्रवान थीं और इसी शुचरित्रता की वजह से उन्हें पवित्र कहा जाता था। उस काल में हज़रत ख़दीजा का हर कोई सम्मान करता और महिलाओं की सरदार कहता था।

वह अपने यहां काम करने वाले उच्च नैतिक मूल्यों से संपन्न एक महान इंसान के व्यक्तित्व से सम्मोहित हो गयीं। उस महान इंसान का नाम मोहम्मद था जो हज़रत ख़दीजा का व्यापारिक काम करते थे। हज़रत ख़दीजा ने तत्कालीन समाज की रीति-रिवाजों के विपरीत ख़ुद अपने विवाह का प्रस्ताव इस निर्धन जवान के सामने रखा जो निर्धन तो था मगर उसकी ईमानदारी का चर्चा था। हज़रत ख़दीजा ने पैग़म्बरे इस्लाम के साथ संयुक्त जीवन ईश्वर पर आस्था, प्रेम व बुद्धिमत्ता के माहौल में शुरु किया। हज़रत ख़दीजा अपने जीवन साथी से अथाह श्रद्धा रखती थीं, काम में उनकी मदद करतीं थीं और जीवन के हर कठिन मोड़ पर पैग़म्बरे इस्लाम का साथ देती थीं। हज़रत ख़दीजा पहली महिला हैं जो पैग़म्बरे इस्लाम पर ईमान लायीं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम क़ासेआ नामक अपने भाषण में कहते हैं, “जिस दिन पैग़म्बरे इस्लाम ईश्वरीय दूत नियुक्त हुए, इस्लाम का प्रकाश पैग़म्बरे इस्लाम और हज़रत ख़दीजा के घर के सिवा किसी और घर में न पहुंचा और में उनमें तीसरा था जो ईश्वरीय संदेश वही व ईश्वरीय दायित्व के प्रकाश को देखता और पैग़म्बरी की ख़ुशबू को सूंघता था।”

इस्लाम का प्रकाश हज़रत ख़दीजा के अस्तित्व में समा गया और उस प्रकाश ने उनका मार्गदर्शन किया। इस्लाम की एक विशेषता यह है कि यह क्रान्तिकारी आस्था इंसान की बुद्धि व प्रवृत्ति से समन्वित है। यह प्रकाश जिस मन में पहुंच जाए उसमें बलिदान व त्याग की भावना पैदा कर देता है। यही भावना हज़रत ख़दीजा में भी जागृत हुयी।

हज़रत ख़दीजा उस समय की कटु राजनैतिक व सामाजिक बातों के प्रभाव को कि जिनसे पैग़म्बरे इस्लाम को ठेस पहुंचती थी, अपनी साहसी बातों से ख़त्म कर देती थीं और पैग़म्बरे इस्लाम की ईश्वरीय मार्ग पर चलने में मदद करती थीं। इसी आस्था व बलिदान के नतीजे  में हज़रत ख़दीजा उस स्थान पर पहुंची कि ईश्वर ने उन्हें सलाम कहलवाया।

अबू सईद ख़दरी कहते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमाया, “जब मेराज की रात जिबरईल मुझे आसमानों पर ले गए और उसकी सैर करायी तो लौटते वक़्त मैने जिबरईल से कहा, मुझसे कोई काम है? जिबरईल ने कहा, “मेरा काम यह है कि ईश्वर और मेरा सलाम ख़दीजा को पहुंचा दीजिए।” पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम जब ज़मीन पर पहुंचे तो हज़रत ख़दीजा तक ईश्वर और जिबरईल का सलाम पहुंचाया। हज़रत ख़दीजा ने कहा, ईश्वर की हस्ती सलाम है, सलाम उसी से है, सलाम उसी की ओर पलटता है और जिबरईल पर भी सलाम हो।”

                

हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाह अलैहा ने पैग़म्बरे इस्लाम के साथ 24 साल वैवाहिक जीवन बिताया। इस दौरान उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम और इस्लाम की बहुत सेवा की। उन्होंने उस समय पैग़म्बरे इस्लाम की आत्मिक, भावनात्मक और वित्तीय मदद की और उनकी पैग़म्बरी की पुष्टि की जब पैग़म्बरे इस्लाम को पैग़म्बर मानने के लिए कोई तय्यार न था। अनेकेश्वरवादियों के मुक़ाबले में हज़रत ख़दीजा की पैग़म्बरे इस्लाम को मदद, उनकी मूल्यवान सेवा का बहुत बड़ा भाग है। हज़रत ख़दीजा जब तक ज़िन्दा रहीं उस वक़्त तक अनेकेश्वरवादियों को इस बात की इजाज़त न दी कि वे पैग़म्बरे इस्लाम को यातना दें। जब पैग़म्बरे इस्लाम दुख से भरे घर लौटते थे तो हज़रत ख़दीता उनकी ढारस बंधातीं और उनके मन को हलका करती थीं। हज़रत ख़दीजा अरब प्रायद्वीप की सबसे धनवान महिला थीं। वह कितनी धनवान थी इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनके पास लगभग 80000 ऊंट थे और ताएफ़, यमन, सीरिया और मिस्र सहित दूसरे क्षेत्रों में दिन रात उनके व्यापारिक कारवां का तांता बंधा रहता था। उन्होंने अपने सारे दास-दासियों और धन को पैग़म्बरे इस्लाम के अधिकार में दे दिया था और अपने चचेरे भाई वरक़ा बिन नोफ़ल से कहा, “लोगों के बीच एलान करो कि ख़दीजा ने अपनी सारी संपत्ति हज़रत मोहम्मद को भेंट की है। हज़रत ख़दीजा की संपत्ति इस्लाम के आगमन के आरंभ से इस्लाम की सेवा व प्रसार में ख़र्च होने लगी। यहां तक कि हज़रत ख़दीजा के धन का अंतिम भाग हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने मक्के से मदीना पलायन के समय ख़र्च किया।”

इस संबंध में पैग़म्बरे इस्लाम फ़रमाते हैं, “कोई भी संपत्ति मेरे लिए ख़दीजा अलैहस्सलाम की संपत्ति से ज़्यादा लाभदायक न थी।”

हज़रत ख़दीजा अलैहस्सलाम का इस्लाम के समर्थन में साहसिक दृष्टिकोण वह भी अज्ञानता भरे काल में, बहुत बड़ा कारनामा था जिसने इस्लाम के प्रसार का रास्ता खोला। इस बारे में तबरसी लिखते हैं, “ख़दीजा और अबू तालिब पैग़म्बरे इस्लाम के दो सच्चे व भरोसेमंद साथी थे। दोनों ही एक साल में इस नश्वर संसार से चल बसे और इस प्रकार पैग़म्बरे इस्लाम को दो दुख सहने पड़े। हज़रत अबू तालिब और ख़दीजा की मौत का दुख! यह ऐसी हालत में था कि हज़रत ख़दीजा एक बुद्धिमान व वीर सलाहकार थीं और उनके निडर व वीरता भरे समर्थन ने पैग़मबरे इस्लाम की बड़ी बड़ी समस्याओं का सामना करने में मदद की और वह अपनी मोहब्बत से उनके मन को सुकून पहुंचाती थीं।”

यह चीज़ हज़रत ख़दीजा और पैग़म्बरे इस्लाम की अन्य महिलाओं के बीच अंतर को स्पष्ट करती है। यही वह अंतर था जिसकी वजह से पैग़म्बरे इस्लाम उनके जीवन के अंतिम क्षण तक उनसे प्रेम करते रहे।

पैग़म्बरे इस्लाम की एक पत्नी हज़रत आयशा कहती हैं, “पैग़म्बर की किसी भी पत्नी से मुझे इस हद तक ईर्ष्या नहीं थी जितनी ख़दीजा से थी क्योंकि वह पैग़म्बरे इस्लाम के मन के संवेदनशील भाग पर इस तरह विराजमान थीं कि पैग़म्बरे इस्लाम हर उस चीज़ व व्यक्ति को जिसका उनसे संबंध होता था, अलग ही नज़र से देखते थे।”

पैग़म्बरे इस्लाम की कुछ बीवियां यह सोचती थीं कि पैग़म्बरे इस्लाम चूंकि समाज के मुखिया व मार्गदर्शक हैं, भविष्य में उन्हें धनवानों जैसा जीवन प्रदान करेंगे लेकिन वर्षों बीतने के बाद भी धनवानों जैसे जीवन की कोई ख़बर न थी। इस्लाम के प्रसार के बाद कुछ बीवियां हर जगह हर चीज़ में पैग़म्बरे इस्लाम से बहस करतीं और उनसे ज़्यादा ख़र्च की मांग करती थीं यहां तक कि पैग़म्बरे इस्लाम की नसीहत भी उन पर असर न करती थी। रवायत में है कि एक दिन हज़रत अबू बक्र पैग़म्बरे इस्लाम के पास पहुंचे तो देखा कि पैग़म्बरे इस्लाम की बीवियां भी उनके पास मौजूद थीं। उन्होंने देखा कि पैग़म्बरे इस्लाम दुखी हैं। जब उन्हें लगा कि उनकी बेटी हज़रत आयशा ने अपनी मांगों से पैग़म्बरे इस्लाम को दुखी किया है तो वे अपनी जगह से उठे ताकि उन्हें सज़ा दें। उस समय अहज़ाब सूरे की आयत नंबर 28 और 29 नाज़िल हुयी जिसमें पैग़म्बरे इस्लाम की बीवी को यह अख़्तियार दिया गया कि वे विलासमय जीवन और पैग़म्बरे इस्लाम के बीच किसी एक को चुनें। तब उन्हें पता चला कि सबसे बड़ी संपत्ति पैग़म्बरे इस्लाम का साथ है।

हज़रत ख़दीजा ने, जिन पर ईश्वर का दुरूद हो, उस समय जब पैग़म्बरे इस्लाम और उनके साथियों की दुश्मनों ने शेबे अबु तालिब नामक घाटीमें आर्थिक व सामाजिक नाकाबंदी कर रखी थी, कुछ लोगों को खाना-पानी ख़रीदने के लिए भेजती जो छिप कर बहुत महंगी क़ीमत पर खाना पानी ख़रीदते और उसे नाकाबंदी में घिरे पैग़म्बरे इस्लाम और उनके साथियों तक पहुंचाते। हज़रत आयशा कहती हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम जब कोई भेड़-बकरी ज़िबह करते तो पहला हिस्सा हज़रत ख़दीजा की सहेलियों को भिजवाते थे। एक बार मैंने इस पर आपत्ति की कि आप कब तक हज़रत ख़दीजा का गुणगान करते रहेंगे? उन्होंने कहा, क्योंकि वह उस समय मुझ पर ईमान लायीं जब लोग नास्तिक थे। उस समय उन्होंने मेरी पुष्टि की जब लोग मुझे झूठा कहते थे और अपनी संपत्ति मेरे हवाले कर दी जब लोगों ने मुझे वंचित कर रखा था।

अलख़साएसुल फ़ातेमिया नामक किताब में आया है, “यह बात मशहूर है कि जिस समय हज़रत ख़दीजा का देहांत हुआ, ईश्वर ने फ़रिश्तों के हाथों हज़रत ख़दीजा के लिए विशेष कफ़न पैग़म्बरे इस्लाम को भिजवाया। यह चीज़ हज़रत ख़दीजा की महानता का पता देने के साथ साथ पैग़म्बरे इस्लाम के सुकून का सबब भी बनी।”