رضوی

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पहली ज़ीक़ादा सन 173 हिजरी क़मरी को हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम की सुपत्री और हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की बहन हज़रत फ़ातेमा का जन्म हुआ।

इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम हज़रत फ़ातेमा मासूमा के पिता थे।  उनकी माता का नाम हज़रत नज्मा ख़ातून था।  इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम, फ़ातेमा मासूमा के बड़े भाई थे।  हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम, हज़रत फ़ातेमा मासूमा के बारे में कहते हैं कि ईश्वर का हरम मक्का में है, उसके पैग़म्बर का हरम मदीना में है, हज़रत अली का हरम कूफ़ा में है जबकि हम अहलेबैत का हरम, क़ुम है।  जान लो कि स्वर्ग के आठ दरवाज़े हैं जिनमें से तीन का रुख़, क़ुम की ओर है।  मेरे ही वंश की एक महिला का क़ुम में मज़ार होगा।  वह हमारे मानने वालों की शिफ़ाअत करेगी जिसके कारण वे लोग स्वर्ग में जाएंगे।  श्रोताओ, मासूमा क़ुम के शुभ जन्म दिवस के अवसर पर आप सबकी सेवा में हार्दिक बधाई प्रस्तुत करते हैं।

हज़रत मासूमा क़ुम वह महान महिला हैं जो अपनी निष्ठा, उपासना, पवित्रता और ईशावरीय भय के माध्यम से परिपूर्णता के शिखर पर पहुंचीं।  मुसलमान महिलाओं के मध्य वे एक आदर्श महिला बन गईं। ज्ञान और ईमान के क्षेत्र में हज़रत फ़ातेमा मासूमा की सक्रिय उपस्थिति, इस्लामी संस्कृति व इतिहास में महिला के मूल्यवान स्थान की सूचक है।  इस्लाम ने महिलाओं को हर क्षेत्र में प्रगति करने का अवसर प्रदान किया है।  इसी अवसर का लाभ उठाकर कुछ महान महिलाएं, पुरुषों के लिए आदर्श बन गईं जिनमें से एक हज़रत मासूमा क़ुम हैं।

हज़रत फ़ातेमा मासूमा की एक प्रमुख विशेषता यह थी कि उन्हें इस्लामी ज्ञान की भरपूर जानकारी थी।  वे दूसरों को भी उसे बताया करती थीं। इस्लामी विद्वानों और इतिहासकारों का मानना है कि इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम की बेटियों में हज़रत फ़ातेमा मासूमा को एक विशेष स्थान प्राप्त रहा।  जब इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम घर पर मौजूद नहीं होते थे तो हज़रत फ़ातेमा मासूमा, लोगों के प्रश्नों का उत्तर देतीं और उनकी भ्रांतियों को दूर किया करती थीं।

हज़रत फ़ातेमा की कुछ प्रसिद्ध उपाधियां हैं जैसे मासूमा, मोहद्देसा, ताहिरा और हमीदा आदि। इनमें से हर उपाधि हज़रत फ़ातेमा मासूमा के सदगुणों के एक भाग की ओर संकेत करती है। यह उपाधियां इस बात की सूचक हैं कि हज़रत मासूमा विद्वान, वक्ता, दक्ष शिक्षक, उपासना और दूसरे समस्त सदगुणों से सुसज्जित थीं।  हज़रत फ़ातेमा मासूमा ने अपने पिता हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम और अपने बड़े भाई इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के मार्गदर्शन की छत्रछाया में अपने जीवन को महान ईश्वर की याद में बिताया और इस प्रकार उन्होंने ज्ञान और तक़वा के शिखर को प्राप्त किया।  आध्यात्मिक पवित्रता के कारण ही हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने अपनी बहन को मासूमा की उपाधि दी थी।  उन्होंने कहा था कि जो भी क़ुम में मासूमा की ज़ियारत करेगा वह उस व्यक्ति की भांति है जिसने हमारी ज़ियारत की है।

जैसाकि हमने आपको बताया कि इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की बहन हज़रत मासूमा, सदगुणों की स्वामी थीं।  उन्होंने यह गुण और विशेषताएं, अथक प्रयासों और ईश्वर की उपासना से हासिल किये थे।  उनके भीतर ईश्वरीय भय पाया जाता था जिसके माध्यम से उन्होंने आध्यात्मक के उच्च चरणों को प्राप्त किया।  बहुत से इस्लामी विद्धानों का कहना है कि एक आम इन्सान भी ईश्वर की उपासना करके आध्यात्म के उच्च चरणों को प्राप्त कर सकता है।  हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि आध्यात्मक के उच्च चरणों तक पहुंचने का सबसे अच्छा मार्ग ईश्वरीय भय है।

इस्लाम में श्रेष्ठता का मापदंड तक़वा अर्थात ईश्वरीय भय व सदादारिता है। इसी प्रकार ज्ञान और ईमान भी श्रेष्ठता का मापदंड हैं। दूसरे शब्दों में यह कह सकते हैं कि ज्ञान और ईमान के कारण ही इंसान में ईश्वर के प्रति भय उत्पन्न होता है। जिस इंसान के पास न तो ज्ञान हो और न ही ईमान तो कभी भी उसके अंदर ईश्वरीय भय उत्पन्न नहीं होगा। पवित्र क़ुरआन एक इंसान की दूसरे इंसान पर हर प्रकार की श्रेष्ठता का इंकार करते हुए कहता है कि किसी को किसी पर श्रेष्ठता प्राप्त नहीं है।  हां जिसमे तक़वा या ईश्वरीय भय अधिक हो वह दूसरों पर श्रेष्ठता रखता है। दूसरे शब्दों में महान ईश्वर के निकट सबसे अधिक प्रतिष्ठित वही व्यक्ति वही है जिसका तक़वा सबसे अधिक हो।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि ईश्वरीय भय या तक़वे के बाद जिस विशेषता का नंबर आता है उसे “इबरत” कहते हैं अर्थात विगत की बातों से पाठ लेना।  इमाम अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि देखो उन लोगों का क्या हुआ जो सांसारिक मायामोह में फंसे हुए थे।  देखों उन लोगों का अंजाम क्या रहा जो केवल धन-दौलत बटोरने में लगे रहे।  याद रखो दुनिया ने किसी के साथ भी वफा नहीं की।  एसे में केवल वे ही लोग सफल रहेंगे जिन्होंने दुनिया पर नहीं बल्कि ईशवर पर भरोसा किया।  हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि हमें यह देखना चाहिए कि हमसे पहले वालों का क्या हुआ? उन्होंने कौन से एसे काम किये जिसके कारण वे तबाह हो गए और उनका भविष्य अंधकारमय हो गया।  हमको एसा कोई काम नहीं करना चाहिए जिसके कारण हमारे साथ भी वैसा ही हो।  वे कहते हैं कि हमें अपनी आंतरिक इच्छाओं का दास नहीं बनना चाहिए।  हज़रत अली अलैहिस्सलाम का कहना है कि मनुष्य को चाहिए कि वह आंतरिक इच्छाओं के मुक़ाबले में अडिग रहे, उनके सामने आत्मसमर्पण न करे।

इमाम अली कहते हैं कि जीवन में सफलता प्राप्त करने के मार्ग में धैर्य को भी विशेष स्थान प्राप्त है।  वे कहते हैं कि जीवन में कठिनाइयों का मुक़ाबला हमें धैर्य से करना चाहिए।  हज़रत अली का कहना है कि धैर्य करना कोई सरल काम नहीं है लेकिन इसमें परिणाम बहुत अच्छे होते हैं।  उनका कहना है कि धैर्यवान व्यक्ति अपनी इच्छाओं पर उचित ढंग से नियंत्रण प्राप्त कर सकता है।  ऐसे व्यक्ति का अपने मन-मस्तिष्क पर पूरा अधिकार रहता है।  यही विशेषाधिकार उसे अपने जीवन में सफलता के शिखर की ओर ले जाता है।  हज़रत अली कहते हैं कि मनुष्य की आंतरिक इच्छाएं, बेलगाम घोड़े की तरह होती हैं।  इन अनियंत्रित इच्छाओं की लगाम धैर्य या सब्र है।  मनुष्य को धैर्य के माध्यम से अपनी इच्छाओं को नियंत्रित करते रहना चाहिए क्योंकि इनके नियंत्रण की स्थिति में ही मनुष्य संसार में सफल जीवन व्यतीत कर सकता है।

विद्धवानों का कहना है कि हज़रत मासूमा क़ुम की विशेषताओं में से एक विशेषता, शिफाअत है जो बहुत बड़ी विशेषता है।  यह विशेषता पैग़म्बरे इस्लाम (स) से ही विशेष है।  पवित्र क़ुरआन मे भी इस विशेषता का उल्लेख मिलता है।  पैग़म्बरे इस्लाम की सुपुत्री हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के बाद इस विशेषता की स्वामी हज़रत मासूमा क़ुम हैं जिनके बारे में हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम कहते हैं कि मेरे ही वंश की एक महिला का क़ुम में मज़ार होगा।  वह हमारे मानने वालों की शिफ़ाअत करेगी जिसके कारण वे लोग स्वर्ग में जाएंगे।

आपको बताते चलें कि मासूमा क़ुम, अपने भाई इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम से मुलाक़ात के लिए पवित्र नगर मदीना से मर्व जा रही थीं।  23 रबीउल अव्वल 201 हिजरी क़मरी को वे पवित्र नगर क़ुम पहुंची। जब हज़रत फ़ातेमा मासूमा क़ुम पहुंचीं तो इस नगर के लोगों में ख़ुशी की लहर दौड़ गई।  पैग़म्बरे इस्लाम (स) तथा उनके परिजनों से श्रृद्धा रखने वाले लोग उनके स्वागत के लिए उमड़ पड़े।  मासूमा क़ुम, 17 दिनों तक क़ुम में बीमारी की स्थिति में रहीं।  बाद में 27 साल की उम्र में पवित्र नगर क़ुम में उनका स्वर्गवास हो गया। क़ुम नगर में ही उनका मज़ार है।  ईरान के पवित्र नगर क़ुम में हज़रत फ़ातेमा मासूमा का रौज़ा, आज भी लाखों श्रृद्धाओं की आध्यात्मिक शांति का केन्द्र बना हुआ है। ईरान ही नहीं बल्कि विश्व के कोने-कोने से श्रृद्धालु वहां दर्शन के लिए जाते हैं।  उनके शुभ जन्म दिवस के अवसर पर हम आप सबकी सेवा में पुनः बधाई प्रस्तुत करते हैं।

 

शिया मुसलमानों के आठवें इमाम हज़रत इमाम अली रज़ा (अ) के शुभ जन्म दिवस की पूर्व संध्या पर ईरान ने सैटेलाइट्स को अंतरिक्ष में लांच करने वाले राकेट सीमूर्ग़ का सफल परीक्षण करके इमाम ख़ुमैनी अंतरिक्ष केन्द्र का उद्घाटन किया है।

हमारे संवाददाता की रिपोर्ट के मुताबिक़, इमाम ख़ुमैनी अंतरिक्ष केन्द्र ईरान का पहला स्थायी लॉंचिग पैड है। यह एक विशाल कॉम्पलैक्स है, जिसमें उपग्रहों को अंतरिक्ष में लांच करने वाले राकेट के निर्माण से लेकर कंट्रोल तक का कार्य किया जाता है।

यह आधुनिक तकनीक से लैस एक अंतरिक्ष केन्द्र है, जिसे दुनिया की आधुनिक तकनीक को नज़र में रखकर डिज़ाइन किया गया है।

इमाम ख़ुमैनी अंतरिक्ष केन्द्र अपने अंतिम चरण में पृथ्वी कक्ष एलईओ में देश की जरूरतों को पूरा करने में सक्षम है।

सीमूर्ग़ 250 किलो के उपग्रहों को पृथ्वी के 500 किलोमीटर तक के कक्ष में लांच कर सकता है।

 

 

फ़िलिस्तीन के हमास संगठन के नेता इसमाईल हनीया ने इस्लामी गणतंत्र ईरान के राष्ट्रपति डाक्टर हसन रूहानी को एक पत्र लिखा है और मस्जिदुल अक़सा के ख़िलाफ़ ज़ायोनी शासन की अतिक्रमणकारी हरकतों पर प्रकाश डाला है।

इसमाईल हनीया ने ईरान के अलावा दूसरे भी इस्लामी देशों के राष्ट्राध्यक्षों के नाम पत्र लिखे हैं।

हमास के नेता इसमाईल हनीया ने अपने पत्र में लिखा कि अतिग्रहणकारी ज़ायोनी शासन मस्जिदुल अक़सा पर कब्ज़ा करने की अपनी योजना पूरी करने के प्रयास में है और वह मस्जिदुल अक़सा का संचालन अपने एकाधिकार में लेना चाहता है। मस्जिदुल अक़सा आप सबसे मदद की गुहार लगा रही है, ज़ायोनी शासन इस मस्जिद पर जो नए तथ्य थोपने के प्रयास कर रहा है उस पर चुप नहीं रहा जा सकता।

हमास संगठन के राजनैतिक विभाग के प्रमुख ने अपने पत्र में आगे लिखा कि अरब जगत और ओआईसी ने मस्जिदु अक़सा के समर्थन में कई प्रस्ताव पारित किए हैं और अब समय आ गय है कि बैतुल मुक़द्दस के निवासियों की मदद के लिए इन प्रस्तावों को लागू किया जाए।

इसमाईल हनीया ने अपने पत्र में लिखा कि इस्लामी व अरब देशों के पास अनेक कूटनयिक, वैधानिक व प्रचारिक साधन मौजूद हैं और आज मस्जिदु अक़सा को इन साधनों की ज़रूरत है ताकि इस तरह ज़ायोनी शासन पर दबाव डाला जा सके। इस संदर्भ में कम से कम यह किया जा सकता है कि ज़ायोनी शासन को अलग थलग करने के लिए क़दम उठाए जाएं।

इसमाईल हनीया ने अपने पत्र में लिखा कि इस्लामी व अरब सरकारों ने साबित किया है कि उनके दिल आज भी मस्जिदुल अक़सा की मुहब्बत में धड़कते हैं, इसी लिए कई इस्लामी देशों में अलअक़सा के लिए गतिविधियां शुरु हो गईं। यदि आज हम ज़ायोनी शासन पर मिलकर दबाव डाल सकें तो मस्जिदुल अक़सा के ख़िलाफ़ ज़ायोनी शासन के अतिग्रहणकारी मंसूबों पर हमेशा के लिए रोक ल गा सकते हैं।

हमास के नेता ने अपने पत्र में लिखा कि इस एतिहासिक मोड़ पर हम आशा करते हैं कि इस्लामी जगत मस्जिदुल अक़सा के समर्थन में एकजुट हो जाएगा। पत्र में इसमाईल हनीया ने लिखा कि मस्जिदुल अक़सा पर केवल मुसलमानों का अधिकार है।

हमास के नेता इसमाईल हनीया ने कहा कि हम कामना करते हैं कि मस्जिदुल अक़सा स्वतंत्र होगी और इस्लामी गणतंत्र ईरान के राष्ट्रपति इसमें नमाज़ अदा करने का गौरव प्राप्त करेंगे।

 

 इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने अपने जीवनकाल में इस्लाम के प्रचार- प्रसार के लिए अथक प्रयास किये।

 उन्होंने उस समय के अंधकारमय काल में लोगों का मार्गदर्शन किया और ज्ञान को व्यापक स्तर पर फैलाया।  उन्होंने 34 वर्षों तक ईश्वरीय मार्गदर्शन के दायित्व का निर्वाह किया।  इस दौरान लोगों के मार्गदर्शन के साथ ही साथ उन्होंने बहुत बड़े पैमाने पर लोगों को शिक्षित किया।  65 वर्ष की आयु में 25 शव्वाल सन् 148 हिजरी क़मरी को अब्बासी ख़लीफ़ा मंसूर दवानीक़ी के षडयंत्र से इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम को ज़हर देकर शहीद कर दिया गया।  उनके शहादत दिवस पर हम आपकी सेवा में हार्दिक संवेदनाएं प्रस्तुत करते हैं।

यहां हम इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम के जीवन की एक घटना का उल्लेख करने जा रहे हैं।  एक बार की बात है एक व्यक्ति इमाम की सेवा में उपस्थित हुआ।  उसने कहा कि आप मुझे कुछ नसीहत करें ताकि मैं उससे लाभ उठा सकूं। उसके कहने पर इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने रोज़ी या आजीविका के बारे में उससे कुछ बातें कहीं।  इमाम ने फरमाया कि हर मनुष्य की आजीविका को ईश्वर ने निश्चित कर दिया है।  अब मनुष्य यदि ईश्वर पर भरोसा करता है और उसकी आजीविका भी सुनिश्चित की जा चुकी है तो फिर इस बारे में चिंता कैसी? अपने इस कथन से इमाम यह समझाना चाहते हैं कि जब यह सुनिश्चित हो चुका है कि किसी व्यक्ति की आजीविका क्या होगी तो फिर सीमा से अधिक प्रयास का लाभ क्या है। मोमिन वह है जो ईश्वर पर भरोसा करते हुए अपनी आजीविका के बारे में निश्चिंत रहे।  यहां पर मुश्किल यह है कि लोग इस संबन्ध में अपने पालनहार और अन्नदाता पर भरोसा न करके स्वयं को समस्याओं में ग्रस्त कर लेते हैं।  इमाम सादिक़ कहते हैं कि मुख्य समस्या यह नहीं है कि मनुष्य अपनी आजीविका को लेकर चिंतित है बल्कि वास्तविकता यह है कि आजीविका देने वाले पर उसे पूरा विश्वास नहीं है।  इसी अविश्वास के कारण वह परेशान रहता है और हमेशा पैसे के लिए दौड़ता रहता है।  यहां पर कहने का तात्पर्य यह नहीं है कि मनुष्य आजीविका के लिए प्रयास करना बंद कर दे बल्कि उसके बारे में अधिक परेशान न हो क्योंकि वह तो मिलकर रहेगी।  आजीविका के बारे में हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि मोमिन को चाहिए कि वह अपनी दिनचर्या को तीन भागों में विभाजित करे।  उसके एक भाग को ईश्वर की उपासना में, दूसरे भाग को आजीविका हासिल करने में और तीसरे भाग को लोगों से मिलने-जुलने या स्वस्थ व अच्छे मनोरंजन के लिए विशेष करे।

यह सही है कि ईश्वर ने हर मनुष्य की आजीविका को उसके हित के अनुरूप निर्धारित किया है।  हालांकि बहुत से लोग यह समझते हैं कि यदि उनके माल और संपत्ति में वृद्धि होगी तो उनका जीवन सफल होगा जबकि एसा कुछ नहीं है।  कभी-कभी माल के अधिक होने से समस्याएं अधिक हो जाती हैं।  यहां पर एक ध्यान योग्य बिंदु यह है कि अधिक से अधिक धन कमाने के चक्कर में मनुष्य लोभी हो जाता है।  इस बारे में इमाम कहते हैं कि जब ईश्वर ने तुम्हारी आजीविका को निर्धारित कर दिया है तो फिर उससे अधिक कमाने की लालसा में अपना समय व्यर्थ करना कैसा? पवित्र क़ुरआन में कई स्थान पर इस बात उल्लेख किया गया है कि ईश्वर सबको आजीविका देता है और इस बारे में मनुष्य को चिंतित नहीं होना चाहिए।  हां इसका यह अर्थ नहीं है कि इन्सान आजीविका कमाने के लिए प्रयास करना ही छोड़ दे बल्कि उसे चाहिये कि अपनी क्षमता व सीमा के अनुसार काम करे। मनुष्य को निंरतर प्रयास करते रहने चाहिए और परिणाम ईश्वर के ऊपर छोड़ देना चाहिए।

जहां कुछ लोग अधिक से अधिक पैसा कमाने के लिए परेशान रहते हैं वहीं कुछ लोग एसे भी हैं जो अधिक से अधिक बचाने के लिए प्रयासरत रहते हैं।  एसे लोगों को कंजूस कहा जाता है। कंजूस निर्धनों की तरह ज़िन्दगी गुज़ारता है वह सदैव ही व्याकुल रहता है।  वह अपने पैसों को बचाने के चक्कर में शांतिपूर्ण ढंग से जीवन व्यतीत नहीं कर पाता।  उसकी मुख्य समस्या यह होती है कि पैसा होने के बावजूद वह ग़रीबों जैसा जीवन व्यतीत करता है।  इमाम कहते हैं कि कंजूसी के मुक़ाबले में मनुष्य को दान देने की प्रवृत्ति सीखनी चाहिए।  वे कहते हैं कि यदि मनुष्य के भीतर यह बात जगह कर जाए कि वह ईश्वर की राह में जितना भी ख़र्च करेगा ईश्वर उसको दस बराबर देगा तो वह कभी भी कंजूस नहीं हो सकता।  कंजूसी एसी आदत है जिसकी इस्लामी शिक्षाओं में बहुत निंदा की गई है।

श्रोताओ यहां पर हम एक घटना का उल्लेख करने जा रहे हैं जो इस बारे में है कि ईश्वर पर भरोसा करके दान देने या ईश्वर के नाम पर किसी को क़र्ज़ देने का क्या परिणाम होता है।  एक महापुरूष का कहना है कि आरंभ में जब मैं छात्र था मैं निर्धन था और मेरे पास पैसा बहुत कम था।  एक बार एसा हुआ कि मैं बाज़ार से कुछ ख़रीदने गया।  मेरी जेब में कुल पांच पैसे  थे। उन्हीं पैसों से मैं अपने लिए कुछ ख़रीदना चाहता था।  रास्ते में मुझे एक व्यक्ति मिला।  उसने कहा कि इस समय मैं बहुत पेराशान हूं और मेरे पास एक पैसा भी नहीं है क्या आप मुझको कुछ पैसे उधार दे सकते हैं?  इस पर महापुरूष ने कहा कि मेरे पास केवल 5 पैसे हैं अगर तुम चाहो तो मैं तुमको वह पैसे दे सकता हूं।  उसने मुझसे पैसे ले लिए और मैं खाली हाथ बाज़ार से वापस घर की ओर जाने लगा।  जब मैं उदासी के हाल में ख़ाली हाथ अपने घर जा रहा था तो रास्ते में मुझको एक सज्जन मिले।  उन्होंने मुझे सलाम किया और मुझसे रोक कर बातें करने लगे।  विदा होने से पहले उन्होंने अपना हाथ जेब में डाला और मेरे हाथ में कुछ देते हुए उन्होंने मेरी मुट्ठी बंद कर दी।  यह करने के बाद वे आगे बढ़ गए।  जब मैंने अपना हाथ खोला तो देखा कि उन्होंने मुझको पांच रूपये दिये हैं।  पांच रूपये पाकर मैं बहुत ख़ुश हुआ और वापस बाज़ार की ओर जाने लगा।  कुछ क़दम चलने के बाद किसी ने मेरे कांधे पर हाथ रखते हुए मुझसे कहा कि क्या आप मुझे कुछ पैसे दे सकते हैं।  मैंने उस व्यक्ति को दखते हुए उसके हाथ पर वही पांच रूपये रख दिये।  अब वह बाज़ार की ओर जा रहा था और मैं अपने घर की ओर।  कुछ दूर चलने के बाद हमारे एक परिचित मिल गये जो मुझसे बातें करने लगे।  बातें ख़त्म करके जब उन्होंने विदा ली तो बोले यह कुछ पैसे हैं जो मैं आपको देना चाहता हूं।  यह कहते हुए उन्होंने मुझको पचार रूपये दे दिये।  पचास रूपये पाकर मैं बहुत प्रसन्न हुआ।  मैं सोचने लगा कि मैंने पांच पैसे दिये तो पांच रूपये मिले।  बाद में जब पांच रूपये दिये तो अब मुझको पचास रूपये मिल गए।  अब एसा करता हूं कि यह पचास रूपये किसी को उधार दे दूंगा तो मुझको इसके दस गुने मिल जाएंगे।  यह सोचकर मैं बाज़ार में बहुत देर तक टहलता रहा किंतु अब न तो कोई मुझसे उधार ही लेने आया और न ही मुझको कुछ देने।  जब काफ़ी समय गुज़र गया और कोई नहीं आया तो यह बात मेरी समझ में आई कि पहले मैंने बिना किसी लालच के दिया तो मुझको दस बराबर मिले किंतु जब मेरे मन में लालच आ गई तो सब कुछ बदल गया।

अपने उपदेश को आगे बढ़ाते हुए इमाम जाफ़र सादिक अलैहिस्सलाम कहते हैं कि मनुष्य को पता है कि पाप करने के बदले उसे अवश्य दंडित किया जाएगा।  जब उसको यह बात पता है तो वह पाप क्यों करता है? एसा कैसे हो सकता है कि कोई पाप करे और उसको उसके बदले में दंडित न किया जाए।  पवित्र क़ुरआन में इस बारे में ईश्वर कहता है कि उस दिन एसा होगा कि पापी, अपने पापों के दंड से बचने के लिए चाहेगा कि उसकी संतान या उसके सगे -संबन्धी दंड को भुगतें।  प्रलय का दंड इतना कठोर होगा कि पापी, का पूरा प्रयास रहेगा कि वह किसी भी सूरत में दंड से बच जाए।  हालांकि एसा होगा नहीं और उसको अवश्य दंड दिया जाएगा।

इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम एक अन्य विषय की ओर संकेत करते हुए कहते हैं कि प्रलय के दिन पुले सेरात से गुज़रना सबके लिए ज़रूरी है।  वे कहते हैं कि यदि एसा है तो फिर घमण्ड किस बात का? घमण्ड एसी चीज़ है जिसकी निंदा इस्लामी शिक्षाओं में बहुत अधिक की गई है।  घमण्डी व्यक्ति सामान्यतः अपनी धन संपत्ति, सुन्दरता, वंश, रंगरूप या इसी प्रकार की चीज़ों पर घमण्ड करता है।  एसा व्यक्ति दूसरों को बहुत ही गिरी नज़र से देखता है।  वह सोचता है कि मैं ही सब कुछ हूं और अन्य लोग कुछ नहीं हैं।  हालांकि होता इसके बिल्कुल विपरत है।  इस्लाम में घमण्ड के स्थान पर विनम्रता की शिक्षा दी गई है।  हम देखते हैं कि हमारे महापुरूष विनम्र स्वभाव के हुआ करते थे घमण्डी नहीं।

अंत में इमाम एक अन्य बिंदु की ओर ध्यान केन्द्रित करना चाहते हैं।  वे कहते हैं कि जीवन में जितने भी सुख और दुख हैं उन सब से ईश्वर भलिभांति अवगत है।  यदि कोई व्यक्ति दुखों पर संयम करता है और धैर्य से काम लेता है तो फिर वह समस्याओं के समय व्याकुल नहीं होता।  इस बारे में इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम कहते हैं कि यदि सब कुछ अल्लाह की ओर से है तो फिर परेशानियों के समय रोने-धोने से क्या फ़ाएदा? निश्चित रूप से अपने जीवन में पूरी तरह से ईश्वर पर भरोसा करने से मनुष्य के भीतर धैर्य पैदा होता है और मुश्किल के समय ईश्वर की ओर से उसकी सहायता भी की जाती है।

श्रोताओ इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम की शहादत के दुःखद अवसर पर एक बार फिर आपकी सेवा में हार्दिक संवेदना प्रस्तुत करते हैं।

 

 

अमरीकी कांग्रेस मे रिपब्लिकन और डेमोक्रेट सांसदों ने मिलकर एक प्रस्ताव रखा है जिसमें लेबनान के हिज़्बुल्लाह संगठन पर नए प्रतिबंध लगाने का प्रावधान है।

इस प्रस्ताव के माध्यम से उन बैंकों पर दबाव डाला जाएगा जो हिज़्बुल्लाह की आर्थिक सहायता में सहयोग कर रहे हैं साथ ही उन देशों पर दबाव डाला जाएगा जो हिज़्बुल्लाह के मुख्य मददगार माने जाते हैं जिनमें सबसे प्रमुख ईरान है।

प्रस्ताव पेश करने वाले अमरीकी सांसदों का कहना है कि उन्होंने यह प्रस्ताव इस लिए रखा है कि हिज्बुल्लाह ने इस्राईल से लगने वाली लेबनान की पूरी सीमा पर मिसाइलों का नेटवर्क स्थापित कर दिया है। इस बात से यह भी साफ़ हो गया है कि हिज़्बुल्लाह के विरुद्ध यह प्रस्ताव कांग्रेस में पेश करने में अमरीका में मौजूद ज़ायोनी लाबी का हाथ है। इस लिए कि यह लाबी इस्राईल के हितों को अमरीका के हितों पर भी प्राथमिकता देती है।

हिज़्बुल्लाह पर अमरीका की ओर से प्रतिबंध लगाया जाना कोई नई बात नहीं है लेकिन यह भी सच्चाई है कि इन प्रतिबंधों का कोई असर नहीं होता इस  लिए कि हिज़्बुल्लाह के लोग बड़े निष्ठावान हैं और वो पैसे के पुजारी नहीं हैं और न ही उन्हें पद और संपत्ति में कोई ख़ास रूचि है, यह बड़े जियाले और निडर लड़ाके हैं जो ज़मीनों पर ग़ैर क़ानूनी रूप से क़ब्ज़ा करने वाले ज़ायोनी शासन से लड़ने में दक्ष हैं।

जब वर्ष 2006 की लड़ाई  तथा इससे पहले के युद्ध हिज़्बुल्लाह को परास्त करने में विफल हो गए तो क्या अमरीकी प्रतिबंध वह लक्ष्य प्राप्त कर पाएंग जो एफ़16 विमान और मीरकावा टैंक नहीं प्राप्त कर सके।

यदि हिज़्बुल्लाह ने दक्षिणी लेबनान को इस्राईली क़ब्ज़े से आज़ाद कराने की लड़ाई न लड़ी होती, सैयद हसन नसरुल्लाह के बेटे सैयद हादी हसन नसरुल्लाह सहित हज़ारों शहीदों की क़ुरबानी पेश न की होती, ज़ायोनी बस्तियों पर हज़ारों राकेट न बरसाए होते तो अमरीका हिज़्बुल्लाह के महासचिव सैयद हसन नसरुल्लाह के लिए रेड कारपेट बिछाता।

अमरीका द्वारा लगाए जाने वाले प्रतिबंध हिज़्बुल्लाह के लिए गौरव की बात है इससे हिज़्बुल्लाह के नेताओं का संकल्प और मज़बूत होगा और इस्राईल के विरुद्ध उनक प्रतिरोध में कहीं से कोई कही नहीं आएगी।

जब अधिकतक 200 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र ग़ज़्ज़ा दस साल से इस्राईली घेराबंदी का डट कर मुक़ाबला कर रहा है और अपने मिसाइल व अन्य हथियार लगातार विकसित कर रहा है तो क्या हिज़्बुल्लाह पर इस प्रकार के प्रतिबंधों का कोई असर होगा?!

यह दसअसल अमरीका और इस्राईल का भय और बौखलाहट है जो बड़े स्पष्ट रूप से सामने आ रहा है हम हिज़्बुल्लाह के बारे में फ़िलिस्तीन के नेता यासिर अरफ़ात का मशहूर जुमला दोहराएंगे कि हे पहाड़ तुझे हवाएं हिला नहीं सकतीं!

भारत के राज्य गुजरात में भारी बारिश और बाढ़ के कारण मरने वालों की संख्या 75 से अधिक हो गई है।

भारी बारिश की वजह से बनासकांठा का धानेरा पूरी तरह पानी में डूब गया है। सोमवार रात लगातार बारिश के चलते 25,000 से ज्यादा लोगों को सुरिक्षत स्थान पर ले जाया गया।

इस बीच प्रशासन ने भारी बारिश की संभावना के चलते 100 से ज्यादा गांवों को खाली करने का आदेश दिया है।

धानेरा में बाढ़ ने ऐसा कहर बरपाया है कि लोग अपने घरों के अंदर भी सुरक्षित नहीं हैं।

पिछले 24 घंटों में धानेरा में 250 एमएम, पालनपुर में 255 एमएम, दांतिवाडा में 342 एमएम बारिश दर्ज की गई। घरों में पानी भर जाने की वजह से लोग छत पर रहने को मजबूर हैं।

दुसरी ओर राजस्थान के सिरोही ओर माउंट आबु में हुई भारी बारिश के कारण लोगों को काफ़ी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है और बनास और सीपु नदियां ख़तरे के निशान से ऊपर बह रही हैं।

 

बुधवार, 19 जुलाई 2017 07:04

फारसी सीखें, 23वां पाठ

पर्वतारोही शूरवीरों में से एक और एवरेस्ट की चोटी पर चढ़ने वाली ईरानी महिला नसरीन नेअमती हैं। उन्होंने विश्वविद्यालय के व्यायाम हाल में पर्वतारोही टीम के मध्य भाषण दिया। उनके भाषण के बाद मोहम्मद और उसके मित्र बहादुरी और पहलवानी के बारे में एक दूसरे से बात करते हैं। पहलवान फार्सी भाषा का शब्द है और बहुत सी भाषाओं में इसका अनुवाद नहीं है बल्कि पहलवान शब्द ही प्रयोग होता है। पहलवान, व्यायामी शूरवीर को कहा जाता है कि जो अच्छे, नैतिक और शिष्टाचारिक गुणों से सुसज्जित हो, कमज़ोर एवं अत्याचारग्रस्त लोगों की सहायता करता हो और अत्याचारियों के मुक़ाबले में प्रतिरोध करता हो। पहलवान उदारचित्त भावना का स्वामी होता है और कभी भी अपनी स्थिति से सांसारिक लक्ष्यों को प्राप्त करने का प्रयास नहीं करता है। पहलवान स्वयं को पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम के पवित्र परिजनों एवं हज़रत अली अलैहिस्सलाम का अनुयाई व अनुसरणकर्ता समझता है। ईरान में शूरवीरता को पहलवानी के साथ महत्व प्राप्त है और उसे मान- सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। बातचीत में प्रयोग होने वाले नये शब्दों पर ध्यान दें।

 

शूरवीर, बहादुर या पराक्रमी           قهرمان

पहलवान                   پهلوان

बहुत सारे पहलवान                پهلوانان

होना               بودن

अच्छा                 خوب

महत्वपूर्ण           مهم

उससे अधिक महत्वपूर्ण               مهم تر

यह दोनों                اين دو

अंतर            تفاوت

उनके पास है             آنها دارند

कोई         كسي

जो            که

मुक़ाबला, प्रतिस्पर्धा या मैच             مسابقه

व्यायाम या कसरत                 ورزش

व्यायाम संबंधी                     ورزشي

उत्तम          بهتر

सर्वोत्तम               بهترين

दर्जा, स्थान, श्रेणी या पद            رتبه

वह लेता या पकड़ता है               او مي گيرد

यानी क्या ?            يعني چه ؟

गुण या विशेषता                    صفت

बहुत सारे गुण          صفات

भला या अच्छा        نيك

व्यवहार          اخلاق

व्यवहार संबंधी           اخلاقي

सुसज्जित             آراسته

वह सुसज्जित है           او آراسته است

तो          پس

बढ़कर या हटकर          فراتر

व्यायामी         ورزشكار

सही या ठीक है ?          درست است ؟

मनुष्य          انسان

योग्य                شايسته   

उदारचित्त, महानुभाव,पुरुषोचित         جوانمرد

लोग         مردم  

वह सहायता करता है          او کمک مي کند

कौन लोग ?           چه کساني ؟

पूरिया वली           پورياي ولي

तख्ती          تختي

जीवित           زنده

वर्षों               سالها

मृत्त            مرده

वह मर गया है           او مرده است

सब           همه

अच्छाई          خوبي

वे बात करते हैं          آنها صحبت مي کنند

किस विषय या संबंध में ?       چه رشته اي ؟

वह व्यायाम करता था          او ورزش مي كرد

मूल           اصيل

कुश्ती            کشتي

कुश्ती लड़ने वाला              كشتي گير

बहुत से हैं        خيلي هستند

 

व्यायाम हाल में मोहम्मद और उसके मित्र के पास चलते हैं और उनकी बातों पर एक नज़र डालते हैं।

 

सईदःशूरवीर होना अच्छी बात है परंतु पहलवान होना उससे भी महत्वपूर्ण है।

سعيد - قهرمان بودن خوب است ، ولي پهلوان بودن مهم تر

मोहम्मदः इन दोनों में क्या अंतर है ?

محمد - اين دو چه تفاوتي با هم دارند ؟

सईदः शूरवीर वह है जो व्यायाम के मुक़ाबलों में अच्छा स्थान प्राप्त करता है।

سعيد - قهرمان کسي است که در مسابقه ورزشي ، بهترين رتبه را مي گيرد .

मोहम्मदः पहलवान यानी क्या ?

محمد - پهلوان يعني چه ؟

सईदःपहलवान उस शूरवीर को कहते हैं जो शिष्टाचारिक गुणों से सुसज्जित हो।

سعيد - پهلوان به قهرماني مي گويند که به صفات نيك اخلاقي آراسته است .

मोहम्मदः तो पहलवान एक व्यायामी से बढ़कर है यह सही है ?

محمد - پس پهلوان فراتر از يک ورزشکار است . درست است ؟

सईदः जी हां पहलवान एक योग्य और महानुभाव व्यक्ति है जो लोगों की सहायता करता है।

سعيد - بله . پهلوان يک انسان شايسته و جوانمرد است ، کسي که به مردم کمک مي کند

मोहम्मदः ईरानी पहलवान कौन लोग हैं ?

محمد - پهلوانان ايراني چه کساني هستند ؟

सईदः पूरिया वली और तख़्ती पहलवानों में से थे।

سعيد - پورياي ولي و تختي از پهلوانان بودند .

मोहम्दः पूरिया वली जीवित हैं ?

محمد - پورياي ولي زنده است ؟

सईदः नहीं उनके मरे हुए वर्षों का समय बीत रहा है परंतु सभी लोग उनकी अच्छाई की बात करते हैं।

سعيد - نه . او سالهاست که مُرده است . اما همه مردم از خوبي هاي او صحبت مي کنند .

मोहम्मदः पूरिया वली कौन का व्यायाम करते थे ?

محمد - پورياي ولي در چه رشته اي ورزش مي كرد ؟

सईदः वह कुश्ती लड़ते थे। कुश्ती मूलरूप से ईरानी व्यायाम है और बहुत से ईरानी पहलवान कुश्ती लड़ते हैं।

سعيد - او کشتي گير بود . کشتي ورزش اصيل ايراني است و خيلي از پهلوانان ايراني کشتي گير هستند .

 

एक बार फिर मोहम्मद और सईद की बात पर ध्यान दीजिये। वे ईरानी पहलवानों एवं शूरवीरों के बारे में बात करते हैं।

 

سعيد - قهرمان کسي است که در مسابقه ورزشي ، بهترين رتبه را مي گيرد .

سعيد - قهرمان بودن خوب است ، ولي پهلوان بودن مهم تر است .

محمد - اين دو چه تفاوتي با هم دارند ؟

محمد - پهلوان يعني چه ؟

سعيد - پهلوان به قهرماني مي گويند که به صفات نيك اخلاقي آراسته است .

محمد - پس پهلوان فراتر از يک ورزشکار است . درست است ؟

سعيد - بله . پهلوان يک انسان شايسته و جوانمرد است ، کسي که به مردم کمک مي کند .

محمد - پهلوانان ايراني چه کساني هستند ؟

سعيد - پورياي ولي و تختي از پهلوانان بودند .

محمد - پورياي ولي زنده است ؟

سعيد - نه . او سالهاست که مُرده است . اما همه مردم از خوبي هاي او صحبت مي کنند .

محمد - پورياي ولي در چه رشته اي ورزش مي كرد ؟

سعيد - او کشتي گير بود . کشتي ورزش اصيل ايراني است و خيلي از پهلوانان ايراني کشتي گير هستند .

 

सईद, मोहम्मद को पूरिया वली की कहानी बताता है। पूरिया वली सातवीं शताब्दी के अंत और आठवीं शताब्दी हिजरी के आरंभ के पहलवान हैं और वह ईरान में पैदा हुए थे। वह वर्षों पहले खारज़्म में रहते थे। ख़ारज़्म प्राचीन ईरान का एक क्षेत्र है जो अब तुर्कमनिस्तान में है। पूरिया वली कुश्ती लड़ते थे और कोई भी उनको पराजित नहीं कर पाता था। वह महानुभाव एवं बहुत ही दयालु पहलवान थे। वह ग़रीबों व निर्धनों की सहायता करते थे। सभी लोग उनसे प्रेम करते थे। एक रात पूरिया वली नमाज़ पढ़ने और दुआ करने के लिए मस्जिद में गये। क्योंकि अगले दिन उनका एक युवा पहलवान से मुक़ाबला था। वहां पर उन्होंने एक नेत्रहीन बूढ़िया को देखा जो मस्जिद के कोने में बैठी रो रही थी और ईश्वर से प्रार्थना करने में लीन थी। पहलवान पूरिया वली ने उससे पूछा हे मां आप क्यों रो रही हैं? बूढ़ि महिला ने उत्तर दियाः कल मेरे बेटे का पूरिया वली से मुक़ाबला है और मैं डरती हूं कि मेरा बेटा पूरिया वली से हार जाये। मेरी इच्छा व आकांक्षा है कि कल मेरा बेटा जीत जाये। पूरिया वली ने कुछ नहीं कहा। वह सोच में डूब गये। अगले दिन उन्होंने उस बूढ़ी नेत्रहीन महिला को देखा कि वह उस स्थान पर आई है जहां मुक़ाबला होने वाला है और वह मुक़ाबले के परिणाम की प्रतीक्षा में है। उदारचित्त व महानुभाव पूरिया पहलवान ने उस नेत्रहीन बूढ़िया की आकांक्षा को पूरा करने के लिए इस प्रकार कुश्ती लड़ी कि उनके मुक़ाबले में आने वाला बूढ़िया का बेटा कुश्ती जीत गया। पूरिया पहलवान का मानना था कि वास्तविक पहलवान वह है जो अपनी आंतरिक इच्छा व अंतर्मन को नियंत्रित कर ले। पूरिया वली ने अपने इस परित्याग से नेत्रहीन बूढ़िया के हृदय को प्रसन्न कर दिया जबकि वह बड़ी सरलता से अपने मुक़ाबले में आने वाले युवा को पराजित कर सकते थे। पहलवानी, ईरान में कुश्ती लड़ने वाले कुछ प्रवीण युवाओं की विशेषता है। इसी कारण ईरान में कुश्ती एक व्यायाम से बढ़कर है और कुश्ती लड़ने वालों से लोग प्रेम करते हैं।

 

आज जब अधिकांश अरब देशों में इस्राईल से प्रभावित होकर उससे संबंध स्थापित करने की होड़ लगी हुई है, ईरान में इस्राईल के विनाश की उलटी गिनती शुरू हो गई है।

वास्तव में आज से लगभग 2 साल पहले ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनई ने अगले 25 वर्षों में इस्राईल के विनाश की भविष्यवाणी की थी।

इसी भविष्यवाणी के आधार पर तेहरान की महानगरपालिका ने शहर के एक प्रसिद्ध चौक पर एक डिजिटल घड़ी लगाई है, जो इस्राईल के विनाश में बाक़ी रहने वाला टाइम दिखाती है।

यह घड़ी तेहरान के फ़िलिस्तीन चौक पर इसी साल रमज़ान के अंतिम शुक्रवार या जुमअतुल विदा को लगाई गई, ताकि लोग वरिष्ठ नेता की भविष्यवाणी को याद रखें और उसे सही होता हुआ देखें।

इस घड़ी के बारे में एक महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि ईरानी जनता अपने वरिष्ठ नेता की बात पर पूर्ण भरोसा करती है और यह उलटी गिनती इस बात की दलील है।

हालांकि इस्राईली प्रधान मंत्री बेंजामिन नेतनयाहू ने इस्राईल के विनाश की उलटी गिनती बताने वाली इस घड़ी पर कड़ी प्रतिक्रिया जताई है।

2040 में इस्राईल के विनाश का समय बताने वाली इस घड़ी पर नेतनयाहू ने आपत्ति जताते हुए कहा है कि हमसे जहां तक हो सकेगा हम मैदान में डटे रहेंगे।

तेहरान महानगरपालिका में बसीज संगठन के एक अधिकारी मेहदी बाबाई का कहना है कि अगर हम अन्य इस्लामी देशों में भी इस प्रकार की घड़ियां लगाने में सफल रहे, जो इस्राईल की उलटी गिनती को दर्शाएं तो विश्व भर में एक आंदोलन के रूप में इसकी लहर शुरू हो जाएगी।

ग़ौरतल है कि इस्राईल एक अवैध शासन है, जिसकी नींव 14 मई 1948 को फ़िलिस्तीनियों की क़ब्ज़ा की गई ज़मीनों और बस्तियों पर रखी गई।

चरमपंथी यहूदी आंदोलन या ज़ायोनिज़्म ने इस इलाक़े में पश्चिमी साम्राज्यवाद के समर्थन से फ़िलिस्तीनियों पर अत्याचारों के पहाड़ तोड़ दिए और हज़ारों फ़िलिस्तीनियों की हत्या कर दी गई, लाखों लोगों को उनके घरों से निकाल दिया गया और 70 वर्ष बीत जाने के बाद भी वे विभिन्न देशों में शरणार्थियों का दुख भरा जीवन व्यतीत कर रहे हैं।

ईरान समेत विश्व के अनेक देशों ने आज तक इस्राईल को मान्यता नहीं दी है, बल्कि ईरान ने हमेशा पीड़ित फ़िलिस्तीनियों का समर्थन किया है और उसका कहना है कि फ़िलिस्तीनियों को उनका देश वापस मिलने तक वह अपने प्रयास जारी रखेगा।

 

मंगलवार की शाम इस्राईली सैनिकों ने मस्जिदुल अक़सा के क़रीब फ़िलिस्तीनियों पर हमला कर दिया जिसके दौरान मस्जिद के इमाम शैख़ अकरमा सब्री तथा कई फ़िलिस्तीनी घायल हो गए। ज़ायोनी सैनिकों ने हमले में प्लास्टिक की गोलियों का इसतेमाल किया।

शैख़ अकरमा और अन्य घायल फ़िलिस्तीनियों को असपताल में भर्ती कराया गया है।

प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि मंगलवार की रात इशा की नमाज़ के बाद असबात द्वार के निकट झड़प शुरू हो गई और ज़ायोनी सैनिकों ने प्लास्टिक की गोलियों की इसतेमाल किया।

रेड क्रीसेंट के सूत्रों ने बताया कि कुछ घायलों का वहीं इलाज हो गया जबकि कुछ को असपताल में भर्ती कराना पड़ा।

ज़ायोनी शासन ने मस्जिदुल अक़सा के इलाक़े में सैनिकों की संख्या बढ़ा दी है सारे दरवाज़ों पर इलेक्ट्रानिक स्कैनर लगा दिए हैं जिनसे सभी नमाज़ियों को गुज़रना होता है।

ज़ायोनी शासन के इस क़दम के विरोध में फ़िलिस्तीनी कई दिन से असबात द्वार के सामने प्रदर्शन कर रहे थे।

सीआईए के पूर्व एजेंट ने ख़ुलासा किया है कि 11 सितंबर 2001 घटना में स्वयं सीआईए शामिल है।

यूरो समाचार वायर की रिपोर्ट के अनुसार, सीआईए के एक पूर्व एजेंट मैक्कलम हावर्ड ने कहा है कि इमारतों को ध्वस्त करने के उनके लंबे अनुभव के कारण सीआईए के उच्य अधिकारियों ने उन्हें न्यूयॉर्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के ट्विन टावरों के तबाह करने की परियोजना पर काम करने के लिए मजबूर किया था।

 सीआईए के पूर्व एजेंट के इस ख़ुलासे के साथ ही, ग्यारह सितंबर की घटना की रिकॉर्ड की गई फिल्मों और प्रत्यक्षदर्शियों के ऐसे बयान सामने आए हैं जिनसे इस बात की पुष्टि होती है कि वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की ट्विन इमारतें, पहले से रखे गये विस्फोटक पदार्थों के कारण गिरी थीं। उल्लेखनीय है कि इससे पहले भी बहुत से संचार माध्यम और विशेषज्ञ यह बात कह चुके हैं कि वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की इमारतें उनमें पहले से रखे गए विस्फोटक पदार्थों के कारण ध्वस्त हुईं थीं।

याद रहे कि 11 सितंबर 2001 की घटना के बारे में अभी तक पूरी जानकारी सामने नहीं आ सकी है। व्हाइट हाउस ने भी आजतक इस बारे में होने वाली जांच की कोई संपूर्ण रिपोर्ट प्रकाशित नहीं की है। साथ ही इस घटना में सऊदी अरब के लिप्त होने से संबंधित रिपोर्टों के भागों को विशेष रूप से गुप्त रखा जा रहा है।

 ज्ञात रहे कि 11 सितंबर 2001 को आतंकवादियों ने दो यात्री विमानों को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की जुड़वां इमारतों से टकरा दिया था जिसके दोनों इमारतें पूरी तरह ध्वस्त हो गई थीं। आतंकवादी गुट अलक़ाएदा ने इसकी ज़िम्मेदारी ली थी।