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फ़िलिस्तीन के इस्लामी प्रतिरोध आन्दोलन हमास ने एेलान किया है कि वह किसी भी स्थिति में अवैध ज़ायोनी शासन को मान्यता नहीं देगा।

हमास के राजनैतिक मामलों के प्रभारी सालेह अलआरूरी ने कहा है कि न तो हम इस्राईल को मान्यता देंगे और न ही उसके विरूद्ध संघर्ष को रोकेंगे।  उन्होंने कहा कि अवैध ज़ायोनी शासन के विनाश तक इस्राईल के विरुद्ध संघर्ष जारी रहेगा।

हमास के राजनैतिक मामलों के प्रभारी सालेह अलअआरूरी ने यह बात तेहरान में अलआलम टीवी चैनेल को दिये अपने साक्षात्कार में कही।  उन्होंने कहा कि ईरान, वास्तविक रूप में हमास और फ़िलिस्तीनियों का समर्थन करता है।  सालेह अलआरूरी ने कहा कि क्षेत्र के प्रभावी देश के रूप में ईरान, सदैव फ़िलिस्तीनी जतना के साथ रहा है और उसने हर प्रकार से फ़िलिस्तीनियों की सहायता की है।  उन्होंने कहा कि ईरान के साथ हमास के संबन्ध अधिक विस्तृत होंगे।

उल्लेखनीय है कि हमास के राजनैतिक मामलों के प्रभारी सालेह अलआरूरी के नेतृत्व में हमास का एक प्रतिनिधिमण्डल ईरान आया है।  

 

 

इराक़ी कुर्दिस्तान क्षेत्र का एक प्रतिनिधिमंडल आयतुल्लाह अली सीस्तानी से मुलाक़ात के लिए पवित्र नगर नजफ़ गया है।

स्काई प्रेस ने जानकार सूत्रों के हवाले से बताया कि इस प्रतिनिधिमंडल में तग़यीर दल और कुर्दिस्तान पेट्रयॉटिक यूनियम दल के सदस्य शामिल हैं। यह प्रतिनिधिमंडल इराक़ी कुर्दिस्तान क्षेत्र के हालिया संकट के बारे में बातचीत के लिए गुरुवार को नजफ़ रवाना हुआ।

इस जानकार सूत्र के अनुसार, कुर्द प्रतिनिधिमंडल इसी तरह इराक़ के सद्र दल के नेता मुक़्तदा सद्र से भी भेंटवार्ता करेगा।

ग़ौरतलब है कि इराक़ी कुर्दिस्तान में इस क्षेत्र के प्रमुख मसऊद बारेज़ानी के आग्रह पर 25 सितंबर को रेफ़्रेन्डम के आयोजन और कर्कूक में पीशमर्गा फ़ोर्सेज़ की ग़ैर क़ानूनी तैनाती के कारण बग़दाद-अर्बील के बीच तनाव पैदा हो गया था।

इराक़ी सेना ने सोमवार को देश के उत्तरी भाग में पीशमर्गा फ़ोर्स के नियंत्रण वाले क्षेत्रों से इस फ़ोर्स को निकालने के लिए कार्यवाही शुरु की और कर्कूक सहित कुछ दूसरे क्षेत्रों का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया। 

 

 

विश्व मीडिया ने अमेरिकी राष्ट्रपति के भाषण पर इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता के बयान को व्यापक कवरेज दी है।

समाचार एजेंसी तसनीम के अनुसार अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के पिछले दिनों ईरान विरोधी बयान पर इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई द्वारा दिए गए बयान को विश्व मीडिया ने विशेष कवरेज दी है।

समाचार एजेंसी रोएटर्ज़ ने वरिष्ठ नेता के इस बयान को "अगर अमेरिका ने परमाणु समझौते को फाड़ दिया तो हम उसके टुकड़े-टुकड़े कर देंगे" अपना शीर्षक करार दिया और लिखा कि ईरान के सर्वोच्च नेता का बयान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा ईरान और परमाणु समझौते के ख़िलाफ़ दिए गए भाषण के पाँच दिन बाद सामने आया है।

रोएटर्ज़ ने यह भी लिखा है कि "अयातुल्लाह ख़ामेनई ने यूरोपीय स्टैंड का स्वागत किया है लेकिन साथ ही यह भी कहा है केवल बयान पर्याप्त नहीं हैं।"

ब्रिटिश समाचार पत्र ऐज यूके ने लिखा कि "ट्रम्प द्वारा शुक्रवार को दिए गए भाषण ने वाशिंगटन को परमाणु समझौते में शामिल सभी देशों विशेषकर यूरोपीय देशों के मुक़ाबले में ला खड़ा किया है"  इन देशों ने बल दिया है कि वॉशिंगटन अकेले ईरान के साथ हुए परमाणु समझौते से बाहर नहीं निकल सकता है।

यूरो न्यूज़ ने भी वरिष्ठ नेता के बयान को ब्रेकिंग न्यूज़ के रूप में कवरेज दी और अपने शीर्षक में लिखा कि "ट्रम्प की बेहूदा बातों का जवाब देने की ज़रूरत नहीं है।"

इस्राईली समाचार पत्र हारेत्स ने लिखा कि वरिष्ठ नेता के बयान का हवाला देते हुए लिखा है कि "अमेरिका, ज़ायोनी शासन का एजेंट और दाइश को अस्तित्व देने वाला है इसलिए दुख और ग़ुस्से से पीड़ित है कि तेहरान ने लेबनान, इराक़ और सीरिया में उसकी सारी साज़िशों से पर्दा उठाकर दुनिया के सामने अमेरिका का असली चेहरा पेश कर दिया है।"

इकोनॉमिक टाइम्स ने इस बारे में लिखा है कि "ईरान के सर्वोच्च नेता ने ट्रम्प के बेहूदा और नकारात्मक भाषण को ख़ारिज कर दिया"।

बीबीसी लंदन ने भी इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता के बयान की ओर इशारा किया और लिखा कि आयतुल्लाह ख़ामनेई ने अमेरिकी राष्ट्रपति के शुक्रवार को दिए गए भाषण पर तीव्र प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि "वे नहीं चाहते कि अमेरिका के बदज़बान और असभ्य राष्ट्रपति के बेहूदा और नकारात्मक भाषण का जवाब देकर अपने समय को ख़राब किया जाए।"

एसोसिएटेड प्रेस ने लिखा था कि "ईरान के सुप्रीम लीडर ने यूरोप से परमाणु समझौते के समर्थन में केवल बातचीत न करके प्रभावी क़दम उठाने का आग्रह किया है।"

फ्रांस की समाचार एजेंसी ने लिखा कि "ईरान के वरिष्ठ नेता ने ट्रम्प भाषण के संबंध मे कहा है कि “अनुचित व्यक्ति का बेहूदा भाषण।"

इसके अलावा दुनिया भर के सैकड़ों समाचार पत्रों और समाचार चैनलों ने वरिष्ठ नेता के बयान को विशेष स्थान दिया है। दैनिक इंडिपेंडेंट, सीएनबीसी, दैनिक हिंदुस्तान टाइम्स, सोवियत टाइम्स और अन्य समाचार एजेंसियों ने भी ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई के बयान को कवरेज दी है।

 

 

अंतरराष्ट्रीय कुरान समाचार एजेंसी समाचार एजेंसी «andaluspress.com» ؛ के मुताबिक, दो ब्राज़ीलियाई गायकों ने हाल ही में वीडियो क्लिप के रूप में एक गीत का निर्माण किया है जिसमें कुरानिक आयतों का इस्तेमाल किया गया है।

इस वीडियो क्लिप में, जिसमें नृत्य दृश्य और अनुचित चित्र शामिल हैं, अपमान जनक रूप से कुरानिक आयतों का इस्तेमाल किया गया है कि अरबी और इस्लामी देशों में उसके प्रकाशन से मुसलमानों द्वारा बड़े पैमाने पर प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ रहा है।

इस वीडियो को यूट्यूब पर मुस्लिमों द्वारा बड़े पैमाने पर विरोध के बाद बंद कर दिया गया था, लेकिन एक अन्य सामाजिक नेटवर्क पर "ऐसा गीत जिसने मुस्लिमों को वर्ग़ला दिया"के शीर्षक से प्रसारित किया गया है।

यह ध्यान देने योग्य है कि यूट्यूब पर वीडियो के निषेध के बाद भी, दो ब्राजीली गायकों की ओर से इस इस्लाम और मुसलमानों का अपमान करने वाले गीत का निर्माण करने के लिए कोई औचित्य तर्कसंगत नहीं बताया गया है।

यह ध्यान देने योग्य है कि इटली, ग्रीस, आयरलैंड, फिनलैंड, जर्मनी और ... जैसे कुछ यूरोपीय देशों में मुक़द्दसान का अपमान करना ऐक अपराध माना जाता और कानूनी दंड भी है।

 

 

अंतर्राष्ट्रीय कुरान समाचार ऐजेंसी  समाचार एजेंसी नून इराक के अनुसार, ग्रैंड अयातुल्ला मोहम्मद सईद अल-हकीम ने, Arbaeen तीर्थयात्रा की पूर्व संध्या पर तीर्थयात्रियों के प्रतिनिधिमंडलों और इमाम हुसैन के रौज़ के लिए अहलेबैत (अ.स) के प्रेमियों से मिल्यून लोगों की रैली, जिन्हों ने इराक़ की यात्रा की, के साथ मुलाकात में कहाः Arbaeen तीर्थयात्रा को, अहले बैत(अ.) के मज़्हब के विचारों और उदात्त सिद्धांतों व इसी तरह मुसलमानों के बीच सहयोग, अच्छे संस्कारों से सजने, अच्छे ब्यवहार, ईमानदारी और सच्चाई, माता-पिता के साथ अच्छाई, धैर्य और सहन के बारे में जागरूकता के लिए एक अवसर बताया।

अयातुल्ला हकीम ने कहाः कि इन विशेषताओं के साथ शियाओं के होने से अहले बैत (अ.) पूरी दुनिया के लिए सम्मान का कारण बनेंगे, और उन्हें Ashura समारोह का लाभ उठाने और ऐसे शरीफ़ समारोहों को पाक दामनी,वाजेबात के पालन, बलिदान, दुश्मन न करने,दूसरों से मोहब्बत करने व अन्य नैतिक मूल्यों के रूप में अवधारणाओं और सिद्धांतों को व्यक्त करने की ओर बुलाया जो कि इमाम हुसैन की जीवनी व क्रांति में पाऐ जाते हैं।

 

संयुक्त राष्ट्र संघ बाल कोष (यूनीसेफ़) ने बांग्लादेश में रोहिंग्या मुसलमानों की दयनीय स्थिति के संबंध में चेतावनी दी है।

बांग्लादेश-म्यांमार सीमा पर रोहिंग्या मुसलमानों के शरणार्थी शिविर का दौरा करने वाले यूनीसेफ़ के एक अधिकारी ने रविवार को बताया कि लगभग 90 प्रतिशत रोहिंग्या शरणार्थी कुपोषण का शिकार हैं और अत्यंत दुर्दशा में जीवन बिता रहे हैं। अधिकारी ने बताया कि रोहिंग्या शरणार्थी 24 घंटे में केवल एक बार खाने खाते हैं और लगभग डेढ़ लाख बच्चों और महिलाओं को कुपोषण की स्थिति से बाहर निकलने  लिए तुरंत मदद की ज़रूरत है। 

 

पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों समेत ईश्वर के प्रिय बंदों का शुभ जन्म दिवस या शहादत का दिन उनके जीवन की अहम घटनाओं पर एक सरसरी नज़र डालने का अवसर होता है।

इस सीमित समय में उन महान हस्तियों की जीवनी पर भी सरसरी नज़र डालना संभव नहीं है बल्कि उनके जीवन के कुछ पन्नों पर ही नज़र डाली जा सकती है। बारह मुहर्रम की तारीख़ एक रिवायत के अनुसार पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के सुपुत्र हज़रत इमाम अली इब्ने हुसैन ज़ैनुल आबेदीन की शहादत की तारीख़ है जबकि एक अन्य रिवायत के अनुसार उनकी शहादत 25 मुहर्रम को हुई थी।

इमाम अली इब्ने हुसैन के कई उपनाम थे जिनमें सज्जाद, सैयदुस्साजेदीन और ज़ैनुल आबेदीन प्रमुख हैं। उनकी इमामत का काल कर्बला की घटना और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद शुरू हुआ। इस काल की ध्यानयोग्य विशेषताएं हैं। इमाम सज्जाद ने इस काल में अत्यंत अहम और निर्णायक भूमिका निभाई। कर्बला की घटना के समय उनकी उम्र 24 साल थी और इस घटना के बाद वे 34 साल तक जीवित रहे। इस अवधि में उन्होंने इस्लामी समाज के नेतृत्व की ज़िम्मेदारी संभाली और विभिन्न मार्गों से अत्याचार व अज्ञानता के प्रतीकों से मुक़ाबला किया।

इस मुक़ाबले के दौरान इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के चरित्र में जो बात सबसे अधिक स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है वह कर्बला के आंदोलन की याद को जीवित रखना और इस अमर घटना के संदेश को दुनिया तक पहुंचाना है। इमाम सज्जाद को वर्ष 95 हिजरी में 12 मुहर्रम को उस समय के उमवी शासक वलीद इब्ने अब्दुल मलिक के आदेश पर एक षड्यंत्र द्वारा ज़हर देकर शहीद कर दिया गया।

 

कभी कभी एक आंदोलन को जारी रखने और उसकी रक्षा करने की ज़िम्मेदारी, उसे अस्तित्व में लाने से अधिक मुश्किल व संवेदनशील होती है। ईश्वर की इच्छा थी कि इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम कर्बला की घटना के बाद जीवित रहें ताकि पूरी सूझ-बूझ व बुद्धिमत्ता के साथ अपने पिता इमाम हुसैन के आंदोलन का नेतृत्व करें। उन्होंने ऐसे समय में इमामत का पद संभाला जब बनी उमय्या के शासकों के हाथों धार्मिक मान्यताओं में फेरबदल कर दिया गया था और अन्याय, सांसारिक मायामोह और संसार प्रेम फैला हुआ था। उमवी शासन धर्मप्रेम का दावा करता था लेकिन इस्लामी समाज धर्म की मूल शिक्षाओं से दूर हो गया था। सच्चाई यह थी कि उमवी, धर्म का चोला पहन कर इस्लामी मान्यताओं को नुक़सान पहुंचाने की कोशिश कर रहे थे। उन्होंने आशूरा की घटना को अपने हित में इस्तेमाल करने और इमाम हुसैन व उनके साथियों के आंदोलन को विद्रोह बताने की कोशिश की।

इन परिस्थितियों में इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने अपने दायित्वों को दो चरण में अंजाम दिया, अल्पकालीन चरण और दीर्घकालीन चरण। अल्पकालीन चरण, इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत और इमाम सज्जाद व उनके अन्य परिजनों की गिरफ़्तारी के तुरंत बाद आरंभ हुआ था। इमाम ज़ैनुल आबेदीन के दायित्व का दीर्घकालीन चरण उनके दमिश्क़ से मदीना वापसी के बाद शुरू हुआ। इमाम हुसैन की शहादत के बाद इमाम सज्जाद और हज़रत ज़ैनब समेत उनके परिजनों को उमवी शासन के अत्याचारी सैनिकों ने गिरफ़्तार कर लिया था। उन्हें गिरफ़्तार करने के बाद कूफ़ा नगर लाया गया जहां इमाम सज्जाद ने लोगों के बीच इस प्रकार भाषण दिया कि उसी समय वहां के लोगों की आंखों से पश्चाताप के आंसू बहने लगे और उन्होंने इमाम ज़ैनुल आबेदीन से माफ़ी मांगी। इमाम ने उनके जवाब में कहा था। हे लोगो! मैं हुसैन का बेटा अली हूं। उसका बेटा जिसका तुमने सम्मान न किया। हे लोगो! ईश्वर ने हम पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों को अच्छी तरह से आज़माया है और कल्याण, न्याय व ईश्वरीय भय व पवित्रता को हमारे अस्तित्व में रखा है। क्या तुमने मेरे पिता को पत्र नहीं लिखा था और उन्हें आज्ञापालन का वचन नहीं दिया था? लेकिन इसके बाद तुमने धोखा दिया और उनसे लड़ने के लिए उठ खड़े हुए, कितने बुरे लोग हो तुम!

इमाम अली इब्ने हुसैन की बातें आशूरा के आंदोलन और लोगों के मन व विचारों के बीच एक पुल के समान थीं। उन संवेदनशील परिस्थितियों में यद्यपि मर्म स्पर्षी दुख इमाम सज्जाद को तड़पा रहे थे लेकिन वे अच्छी तरह जानते थे कि इमाम हुसैन की सत्यता को लोगों के समक्ष बयान करने का सबसे प्रभावी मार्ग, उमवी शासकों की पोल खोलना है ताकि सोई हुई आत्माओं को जगाया जा सके और इमाम हुसैन व उनके साथियों के ख़िलाफ़ उमवियों के झूठे व विषैले प्रोपेगंडों को नाकाम बनाया जा सके। बंदि बनाए जाने के दिन इमाम सज्जाद और पैग़म्बरे इस्लाम के अन्य परिजनों के लिए बहुत कड़े थे। इस दौरान इमाम ज़ैनुल आबेदीन और हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा का अस्तित्व अन्य बंदियों के लिए बहुत बड़ा सहारा था।

कर्बला के आंदोलन के संदेशवाहक इमाम सज्जाद के जीवन के अहम आयामों में से एक वर्तमान सीरिया की उमवी मस्जिद में उनका ठोस भाषण भी है। जब उन्हें गिरफ़्तार करके मुआविया के पुत्र यज़ीद के दरबार में लाया गया तो उन्होंने देखा कि यज़ीद जीत के नशे में चूर है। यज़ीद सोच रहा था कि हालात उसके हित में हैं लेकिन इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम पूरे साहस के साथ मिम्बर पर गए और उन्होंने एक ज़बरदस्त भाषण दिया। उन्होंने कहाः हे लोगो! ईश्वर ने हम पैग़म्बर के परिजनों को ज्ञान, धैर्य, दानशीलता, महानता, शब्दालंकार और साहस जैसी विशेषताएं प्रदान की हैं और ईमान वालों के दिलों में हमारा प्रेम रखा है। हे लोगो! जो मुझे नहीं पहचानता मैं उसे अपना परिचय देता हूं। इसके बाद उन्होंने अपने आपको पैग़म्बर इस्लाम का नाती बताया और कहाः मैं सबसे उत्तम इंसान का पुत्र हूं, मैं उसका बेटा हूं जिसे मेराज की रात मस्जिदुल हराम से मस्जिदुल अक़सा ले जाया गया। फिर उन्होंने हज़रत अली अलैहिस्सलाम के शौर्य और पैग़म्बर की सुपुत्री हज़रत फ़ातेमा अलैहस्सलाम के गुणों व विशेषताओं का उल्लेख किया और फिर अपने पिता इमाम हुसैन के बारे में कहा। मैं उसका बेटा हूं जिसे प्यासा शहीद कर दिया गया। उसे अत्याचार के साथ ख़ून में नहला दिया गया और उसका शरीर कर्बला की ज़मीन पर गिर पड़ा। उसकी पगड़ी और वस्त्र को चुरा लिया गया जबकि आसमान पर फ़रिश्ते रो रहे थे। मैं उसका बेटा हूं जिसके सिर को भाले पर चढ़ाया गया और उसके परिजनों को बंदी बना कर इराक़ से शाम लाया गया। इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम के बातें इतनी झिंझोड़ देने वाली थीं कि यज़ीद और उमवी शासन हिल कर रह गया और उन्हें कर्बला के आंदोलन की उफनती हुई लहरों में अपना तख़्त डूबता हुआ महसूस हुआ। यही कारण था कि उन्हों ने जल्द से जल्द बंदियों के कारवां को मदीना लौटाने का फ़ैसला किया।

मदीने में इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम की वापसी के बाद उनका दायित्व एक नए चरण में पहुंच गया। उन्होंने इस चरण में दीर्घकालीन लक्ष्यों को हासिल करने की कोशिश की। उस समय की अनुचित परिस्थितियों के दृष्टिगत इमाम सज्जाद ने लोगों की धार्मिक आस्थाओं को सुधारने और उन्हें मज़बूत बनाने की कोशिश की। इसी कारण उन्होंने अपनी इमामत के 34 वर्षीय काल में अत्यंत मूल्यवान धार्मिक शिक्षाएं अपनी यादगार के रूप में छोड़ीं और ज्ञान व सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए मार्ग प्रशस्त किया।

कर्बला की घटना के बाद इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम का एक मूल्यवान काम, अत्यंत समृद्ध दुआओं का वर्णन है। उनकी ये दुआएं सहीफ़ए सज्जादिया नामक एक पुस्तक में एकत्रित कर दी गई हैं। इस किताब में बंदा अपने पालनहार से अपने दिल की बातें करता है लेकिन अगर इन दुआओं को गहरी नज़रों से देखा जाए तो पता चलता है कि इमाम सज्जाद ने दुआ के माध्यम से जीवन, सृष्टि, आस्था संबंधी मामलों और व्यक्तिगत व सामूहिक नैतिकता को बड़ी गहराई से बयान किया है बल्कि इन दुआओं के ज़रिए उन्होंने कुछ राजनैतिक मामलों की भी समीक्षा की है।

सहीफ़ए सज्जादिया, इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के ज्ञान व अध्यात्म की महानता के एक आयाम को समझने का उत्तम माध्यम है। हम इस मूल्यवान किताब को जितना अधिक ध्यान से पढ़ते जाएंगे उतना ही नए नए क्षितिज हमारे सामने खुलते चले जाएंगे। उन्होंने दुआ के सांचे में ईश्वर के आदेशों और इस्लामी शिक्षाओं के प्रसार के मार्ग में बहुत बड़े बड़े क़दम उठाए हैं जिस पर विद्वान और बुद्धिजीवी आश्चर्यचकित हैं। एक वरिष्ठ धर्मगुरू शैख़ मुफ़ीद कहते हैं। सुन्नी धर्मगुरुओं ने इमाम सज्जाद से इतने अधिक ज्ञान हासिल किए हैं कि जिन्हें गिना नहीं जा सकता। दुआओं, उपदेशों और क़ुरआने मजीद की हलाल व हराम बातों के बारे में उनसे बहुत अधिक हदीसें उद्धरित की गई हैं। अगर हम उनके बारे में विस्तार से बात करना चाहेंगे तो फिर बात बहुत लम्बी हो जाएगी।

इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम को अपनी इमामत की पूरी अवधि में उमवी शासकों के द्वेष व शत्रुता का सामना रहा। उनमें से हर एक शासक ने इस्लाम के इस प्रकाशमान दीपक को बुझाने की कोशिश की। वर्ष 95 हिजरी में उनमें से एक दुष्ट शासक की कोशिशें सफल हो गईं और वलीद बिन अब्दुल मलिक ने उन्हें ज़हर के माध्यम से शहीद करवा दिया। इस प्रकार ज्ञान व अध्यात्म की सेवा में असंख्य यादगारें छोड़ने के बाद इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम अपने पालनहार से जा मिले। इस अवसर पर हम एक बार फिर आप सबकी सेवा में हार्दिक संवेदना प्रकट करते हैं।

म्यांमार में कुछ दिनों की शांति के बाद एक बार फिर से रोहिंग्या मुसलमानों के नरसंहार का सिलसिला शुरू हो गया है।

अलआलम टीवी चैनल की रिपोर्ट के अनुसार म्यांमार की सेना और चरमपंथी बौद्धों द्वार रोहिंग्या मुसलमानों का लगातार नरसंहार किया जा रहा है। शुक्रवार को एक बार फिर म्यांमार के कई क्षेत्रों में कट्टरपंथी बौद्ध इस देश की सेना के साथ मिलकर रोहिंग्या मुसलमानों पर हमला करते दिखाई दिए हैं।

राष्ट्र संघ की ताज़ा रिपोर्ट में भी यह बात सामने आई है कि बांग्लादेश की ओर पीड़ित रोहिंग्या मुसमलानों के पलायन का सिलसिला न केवल जारी है बल्कि इसमें वृद्धि हुई है। इस बीच बांग्लादेश के स्थानीय मानवाधिकार संगठनों ने सूचना दी है कि पीड़ित रोहिंग्या महिलाओं और बच्चों में विभिन्न तरह की बीमारियां फैल रही हैं।

 

 

न्यूज़ एजेंसी के मुताबिक बताया कि यह भोज "पडोसी के साथ प्रेम" शीर्षक के तहत आयोजित किया गया था, जिसमें लंदन पार्क के फिंसबरी मस्जिद पर हालिया घटना की निंदा की गई।

इसके अलावा इस सभा में ब्रिटिश समुदाय की मुस्लिम सेवाओं की सराहना की ग़ई।

यह सम्मेलन अन्य धर्मों के अनुयायियों के साथ दया और दोस्ती और अतिवादी समूहों से लड़ने और उनके लक्ष्यों को कार्यान्वित करने से रोकने के लिए आयोजन किया गया।

कुछ ही दिन पहले लंदन में इस्लामिक समूहों द्वारा एक शांतिपूर्ण मार्च आयोजित किया गया था जिसमें मुस्लिम और गैर-मुस्लिम ने आईएसआई के अपराधों की निंदा करते हुए कहा कि यह लोग़ धार्मिक शिक्षाओं से दुर हैं।

 

 

ने रायटर के मुताबिक बताया कि पिछले पांच हफ्तों में म्यांमार के सैनिकों ने पांच लाख से अधिक रोहंगिया मुस्लिम परीशान किया जिस की वजह से बांग्लादेश भाग गए हैं।

म्यांमार का यह दावा है कि मुस्लिम जातीय के साथ युद्ध आतंकवादियों की सफाई है।

बांग्लादेश और म्यांमार ने सोमवार को सहमति व्यक्त किया कि इस देश में मुसलमान जिनका नाम शरणार्थियों रूप में पंजीकृत है म्यांमार लौट आएंगे, लेकिन बांग्लादेश के शिविरों में रहने वाले को इस पर कोई भरोसा नहीं है।

रोहंग्या का अब्दुल्ला नामी शरण लेने वाला आदमी का कहना है कि "सब कुछ जलाया जा चुका है, यहां तक कि लोगों को भी जलाया ग़या है।कीसी के पस म्यांमार में रहने का कोई भी अधिकार नहीं है

रशीदा बेग़म जो सोमवार को बांग्लादेश आई हैं कहती हैं कि फौजी लोग घर आकर बचे लोगों को घर छोड़ने की चेतावनी दे रहे हैं। लोगों को घरों से बाहर निकाल कर घरों को जला दिया।