
رضوی
हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व. की बेसत का लक्ष्य
हज़रत रसूल अल्लाह स.अ.की बेसत का सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य न्याय प्रणाली और समानता को स्थापित करना था जैसा कि क़ुरआन फ़रमाता है कि, हम ने अपने पैग़म्बरों को लोगों की हिदायत और उन्हें सही दिशा दिखाने के लिए दलीलों और न्याय प्रणाली के साथ भेजा ता कि लोग न्याय और समानता के उसूलों पर चलें।
आपकी बेसत का सबसे अहम लक्ष्य लोगों को हिदायत का रास्ता दिखाया जाना है, जिस से लोगों को असली सुख, सफ़लता और निजात प्राप्त हो सके।
इंसान नबियों और अल्लाह की ओर से नबियों पर आने वाली ख़बरों के बिना उन सुख, सफ़लता और निजात तक नहीं पहुँत सकता, क्योंकि इंसान की अपनी बुध्दि और ज्ञान उसके जीवन की बहुत सी आवश्यकताओं को तो पूरा कर सकते हैं लेकिन व्यक्तिगत, सामाजिक, आध्यात्मिक, दुनिया और आख़ेरत सुख और सफ़लता और निजात तक नहीं पहुँचा सकते, इसलिए अगर इंसानी बुध्दि और उसके निजी ज्ञान के अलावा इन तक पहुँचने के लिए कोई और रास्ता न हो तो अल्लाह की रचना पर सवाल खड़ा हो जाएगा।
ऊपर दिये गए विश्लेषण के बाद यह परिणाम सामने आता है कि अल्लाह की हिकमत ने इस आवश्यकता को समझते हुए इंसानी बुध्दि और ज्ञान से मज़बूत चीज़ को इंसान के जीवन के सभी क्षेत्र के विकास के लिए रखा, अब इंसान ख़ुद अपने आपको इतना पवित्र कर ले कि उस स्थान तक पहुँच जाए या कुछ दूसरे पवित्र लोगों द्वारा वह फ़ार्मूला हासिल कर ले, और उस सिलसिले का नाम वही (وحی)है,
जिसको अल्लाह ने नबियों से विशेष कर रखा है, नबी सीधे अल्लाह से और बाक़ी सभी नबियों के द्वारा अल्लाह के संदेश को हासिल करते हैं, और वह सारी चीज़ें जो असली सुख, सफ़लता औल निजात के लिए अनिवार्य हैं उन्हें हासिल कर लेते हैं। (आमूज़िशे अक़ाएद, पेज 178)
आपकी बेसत का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य न्याय प्रणाली और समानता को स्थापित करना था, जैसा कि क़ुर्आन फ़रमाता है कि, हम ने अपने पैग़म्बरों को लोगों की हिदायत और उन्हें सही दिशा दिखाने के लिए दलीलों और न्याय प्रणाली के साथ भेजा ता कि लोग न्याय और समानता के उसूलों पर चलें। (सूरए हदीद, आयत 25)
क्या आप जानते हैं कि, अल्लाह ने नबियों और रसूलों क्या लक्ष्य दे कर भेजा है, क्या बेसत पूजा से रोकें? या बेसत का लक्ष्य यह था कि हर दौर से अन्याय, अत्याचार और जेहालत को हमेशा के लिए उखाड़ कर इंसानी सभ्यता को स्थापित कर सकें? या लक्ष्य यह था कि लोगों को नैतिक सिध्दांत और समाजिक प्रावधानों से परिचित करा सकें जिस से लोग इसी आधार पर अपने जीवन संबंधों को सुधार सकें?
इस सवाल का जवाब इस प्रकार उचित होगा कि ऊपर जो भी कहा गया नबी का लक्ष्य और उद्देश्य इन सब से ऊँचे स्तर का होता है, ऊपर लक्ष्यों का नाम लिया गया है वह नबी के लक्ष्य और उद्देश्य का एक हिस्सा है, और वह लक्ष्य अत्याचार और अन्याय का सफ़ाया कर के व्यक्तिगत और समाजिक क्षेत्र में न्याय प्रणाली की स्थापना है, और हक़ीकत में यह लक्ष्य दूसरे तमाम लक्ष्यों को हासिल करने का बुनियादी ढ़ाँचा और पेड़ है,
बाकी लक्ष्य इसी के टहनी हैं, क्योंकि अल्लाह की इबादत, नैतिक सिध्दांत, समाजिक प्रावधान और इंसानी सभ्यता से दूरी का कारण सही न्याय प्रणाली का न होना है।
नहजुल बलाग़ा की दृष्टि में मुहासिब ए नफ़्स का महत्व
अमीरुल मोमिनीन अलैहिस सलाम, नहजुल बलाग़ा में मनुष्य जाति को अपने नफ़्स के हिसाब की तरफ़ ध्यान दिलाते हुए फ़रमाते हैं:
अपने आपको अपने लिये परख लो और अपना हिसाब किताब कर लो, चूंकि दूसरों को परखने और उनका हिसाब करने के लिये तुम्हारे अलावा कोई दूसरा मौजूद है।
हर काम में प्रगति की रफ़तार को मुअय्यन करना, परखना और हिसाब करना लक्ष्य तक पहुचने के कारणों में से एक कारण है। किसी भी केन्द्र की व्यवस्था व मार्गदर्शन में एक वह चीज़ जिस पर वहां के प्रबंधक के हमेशा ध्यान में रखना चाहिये वह मुहासिबा और हिसाब करना, परखना है।
किसी काम या केन्द्र की प्रगति उसके सही और बारीक़ हिसाब किताब के बिना संभव नही है कि उनके काम के तरीक़े का सही होना और सफलता की उम्मीद की जा सके और उस पर संतोष प्रकट किया जा सके। उस काम में लापरवाही से बहुत से भारी नुक़सान पहुचा सकती है और सहूलत और मौक़े के हाथ से निकल जाने का कारण बन सकती है जिससे सारे प्रयत्न और कार्यवाही बेकार रह जाते हैं।
हर इंसान अपने काम के तरीक़े, अंतिम फ़ैसले और बुनियादी कार्यवाही में व्यवस्था और मार्ग दर्शन का मोहताज है। ऐसी व्यवस्था जो उसी के हाथ में है जिसके बिना उसके लिये अपने लक्ष्य की राह में आगे बढ़ना और अपनी इच्छाओं तक पहुच हासिल करना संभव नही होता है।
इंसान का सबसे महत्वपूर्ण दायित्व भी यही है कि वह अपने सहूलत और सीमा के अनुसार अपने लक्ष्य और पसंद पर ध्यान देते हुए, कमाल और सफलता तक पहुचने के लिये अपने रवैये और तरीक़े में बुद्धिमता पूर्वक व्यवस्था व नज़्म रखें ता कि बिना मंसूबे और मक़सद अपनी सलाहियत का प्रयोग न करें और क्षति और नुक़सान से दोचार न हों।
इंसान के लिये अपने इंतेज़ाम का एक बुनियादी पहलु, इंसान का अपना हिसाब किताब और रुख़ है। यह हिसाब किताब और जांच पड़ताल जितनी ज़्यादा वास्तविकता, आलोचना और सही की बुनियाद पर होगी और बारीकियों से की जायेगी तो उतना ही इंसान की इस्लाह व भलाई की राह में और दोबारा ग़ल्तियां न करने में प्रभावित रोल अदा कर सकती है।
इस मुहासेबे और हिसाब किताब का मक़सद यह नही है कि उसका परिणाम दूसरों के सामने ऐलान किया जाये या दूसरों की शाबासी व आपत्ती का प्रमाण बने। नही बल्कि यह काम अपने लिये और ज़ाती होगा ताकि वह अपनी जांच पड़ताल कर सके कि कब कब और कौन कौन की सहुलतें और मौक़े उसे मिले हैं और उसने उन मौक़ों को कैसे भुनाया है?
और उसके काम और कार्यवाही, उसकी कोशिशें कितनी उसके लक्ष्य और मक़सद तक पहुचने में सहायक सिद्ध हो रही है? वह जिस मंज़िल तक पहुचना चाहता है उसमें उसे कितनी सफलता मिली है? उसकी कितनी सलाहियतें या सहूलते बेकार बर्बाद हुई है? वह उन्हे बर्बाद होने से कैसे रोक सकता था? वह इस काम के लिये किन लोगों से सहायता ले सकता था? पिछले कामों में उसकी सफलता या असफलता के कारण क्या क्या रहे हैं? और अंत में वह इस जांच पड़ताल से यह मुअय्यन कर ले कि वह भविष्य में इस राह पर चलने के लिये उसे क्या क्या करना पड़ेगा ताकि सफलता ही उसके हाथ लगे?
और उसे अपने काम के तरीक़े, उस काम में प्रयोग होने वाले औज़ार और उपयोग में क्या क्या सुधार करना पड़ेगा? और संभवत वह कौन सी ग़लतियां और कमियां हैं जिन्हे दूर किया जा सकता है? कैसे और किस तरह से ऐसा किया जा सकता है।
अलबत्ता बहुत कम लोग ऐसे हैं जो साठ और सत्तर साल की उम्र में अपने आप अपना मुहासिबा और हिसाब किताब न करते हों, लेकिन उस वक़्त तक देर हो चुकी होती है और वह प्रभावित नही होता। चूंकि अब उसके परिणाम से फ़ायदा हासिल करने का मौक़ा और शक्ति ख़त्म हो चुकी होती है।
अहम यह है कि हम नौजवानी और जवानी में याद कर कर के और दोहरा दोहरा कर अपनी अपनी जांच पड़ताल और मुहासिब को एक महत्वपूर्ण काम मान कर उसकी तरफ़ ध्यान दें और ज़िन्दगी की शुरुवात में ही अपने रास्ते को मुअय्यन कर लें और अपने बुलंद लक्ष्यों और सदैव बाक़ी रहने वाले कमाल की तरफ़ लगातार ध्यान लगा कर अपनी सलाहियत और मिलने वाले मौक़ों का सही प्रयोग करें।
लेकिन अब भी देर नही हुई है। अपनी ज़िन्दगी के रूटीन में एक लम्हे, एक वक़्त ग़ौर व फिक्र, विचार, आलोचना, अध्धयन और हिसाब किताब, मुहासेबा, संभवत इंसान को नुक़सान और क्षति पहुचने से पहले रोक सकता है और अपने रास्ते और तरीक़े को बदलने में मदद कर सकता है।
हज़रत अमीरुल मोमिनीन अली अलैहिस सलाम, इस कड़वे सच की तरफ़ आकर्षित होने के कारणवश इंसान आम तौर से अपने जांच पड़ताल और हिसाब व मुहासेबे से ग़ाफ़िल हैं बल्कि दूसरों के आमाल व आचरण की जांच में पड़े हुए हैं, इसी की तरफ़ ध्यान दिलाते हुए फ़रमाते हैं कि अपना मुहासेबा, हिसाब किताब करो, लेकिन दूसरों के लिये नही और न ही दूसरों को दिखाने के लिये बल्कि ख़ुद अपने लिये।
और जान लो कि दूसरों को तुम्हारी जांच पड़ताल और मुहासेबे और हिसाब की कोई आवश्यकता नही है।
कोई दूसरा मौजूद है जो दूसरों का हिसाब किताब रखता है और उनकी जांच पड़ताल कर सकता है। तुम इससे ज़्यादा कि दूसरों की कमियों और बुराईयों पर ध्यान दो, अपनी बुराईयों औक कमियों पर ध्यान दो। चूंकि तुम्हारी तवज्जो से फ़ायदा उठाने और सुधार करने, जिसके लिये तुम्हारी तवज्जो की आवश्यकता है, उसके सबसे ज़्यादा पात्र तुम हो न कोई और। इस लिये कि जो समय तुम्हे ख़ुद अपनी जांच पड़ताल में ख़र्च करना चाहिये वह तुम दूसरों की जांच में ख़र्च कर रहे हो?
हज़रत अमीरुल मोमिनीन अली अलैहिस सलाम के इस प्रकाशमय व जीवन बख़्श कलाम को उस समय बयान फ़रमाया है कि जब आप अहले ज़िक्र की विशेषता व ख़ूबियां बयान करने में व्यस्त थे और उनका तौर व तरीक़ा बयान फ़रमा रहे थे कि अहले ज़िक्र वह हैं कि दुनियावी व्यस्तता और रोज़ाना का मामले उनको कमाल की राह और लक्ष्य से ग़ाफ़िल नही करते, यह लोग लोगों को न्याय व इंसाफ़ का आदेश देते हैं और ख़ुद भी न्याय और इंसाफ़ से काम लेते हैं, लोगों को बुरे कामों से रोकते हैं और खुद भी बुरे कामों से बचते हैं।
ऐसा लगता है कि यह लोग दुनिया से कट कर ज़िन्दगी जी रहे हों और उसका गहराई से अध्धयन कर रहे हों।
आख़िर में इमाम अलैहिस सलाम एक बार फिर होशियार और ख़बरदार करते हैं कि अपनी जांच पडताल करो और देखो कि क्या तुम अहले ज़िक्र हो या नही? यह न हो कि तुम दूसरों को विशेषताओं और ख़ूबियों को अपने तराज़ू में तौलने लगो। दूसरों को तुम्हारे जांच पडताल, हिसाब और मुहासेबे की ज़रुरत नही है।
अलबत्ता यह ख़्याल नही किया जा सकता कि हज़रत अली अलैहिस सलाम का इस बात से ख़बरदार करना, समाजी ज़िम्मेदारियों को न निभाने के मायना में हो। चूंकि अहले ज़िक्र की एक ख़ूबी ख़ुद समाजी ज़िम्मेदारियों और अम्र बिल मारुफ़ और नही अनिल मुनकर की तरफ़ ध्यान देना है। बल्कि यह होशियार करना अपनी जांच पडताल और नफ़्स के मुहासेबे व हिसाब पर ज़्यादा ताकीद को मौज़ू क़रार देता है।
जो कि मनचाहे कमाल तक इंसान के पहुचने की कामयाबी की बुनियादी और असली शर्त है। बिना लगातार मुहासेबे व हिसाब व जांच पड़ताल के वह गफ़लत, बे ध्यानी, ग़लती, भूल चूक, सुस्ती, रुकावट, गुमराही में पड़ कर अपनी मनचाही कामयाबी व मंज़िल तक न पहुचने से दोचार हो जायेगें।
अपना वास्तविक व ध्यान पूर्वक विचार विमर्श और जांच पड़ताल, हिसाब व मुहासेबा और उसके परिणाम को अपनी ग़लती व कमी के सुधार मे प्रयोग करना एक अहम क़दम है। जिसके बिना हज़रत अली अलैहिस सलाम की राह से कोई नाता नही जोड़ा जा सकता है और उसके बिना ऐसा हरगिज़ नही हो सकता है।
ईरान यूरोपीय देशों और अमेरिका के साथ सम्मान और पारस्परिक हितों के आधार पर बातचीत के लिए तैयार है
ईरान के विदेश मंत्री सैयद अब्बास अराक़ची ने ईरान और यूरोपीय एवं अमेरिकी पक्षों के बीच बातचीत की हालिया स्थिति के बारे में कहा कि तेहरान आदर और पारस्परिक हितों के आधार पर यूरोपीय देशों और अमेरिका के साथ बातचीत के लिए तैयार है।
इस ख़बर में यूरोप में फ़िलिस्तीन समर्थकों के प्रदर्शन, इस्तांबुल में तुर्किये सरकार के विरोधियों की बड़ी रैलियाँ, यमन के ड्रोन विमानों द्वारा नक़ब, इयालत, अश्कलॉन, अश्दूद और तेल अवीव पर निशाना और ईरान के शांतिपूर्ण परमाणु कार्यक्रम के प्रति चीन के स्वागत का जिक्र भी शामिल है।
इराकची: हम यूरोपीय देशों और अमेरिका के साथ आदर और पारस्परिक हितों के आधार पर बातचीत के लिए तैयार हैं
इस्लामी गणराज्य ईरान के विदेश मंत्री सैयद अब्बास इराकची ने रविवार को ईरान और यूरोपीय तथा अमेरिकी पक्षों के बीच बातचीत की नवीनतम स्थिति पर कहा कि तेहरान आदर और पारस्परिक हितों के आधार पर यूरोपीय देशों और अमेरिका के साथ बातचीत के लिए तैयार है। उन्होंने यह भी कहा कि ईरान के पड़ोसी देशों के साथ संबंध सर्वोत्तम स्तर पर हैं।
उल्यानोव: परमाणु समझौते का उल्लंघन करने वाले देशों को ईरान पर प्रतिबंध लौटाने का अधिकार नहीं
वियना स्थित अंतरराष्ट्रीय संगठनों में रूस के स्थायी प्रतिनिधि मिखाइल उल्यानोव ने तीन यूरोपीय देशों और अमेरिका के व्यवहार की कड़ी आलोचना करते हुए उन्हें परमाणु समझौते और प्रस्ताव 2231 का स्पष्ट उल्लंघन करने का आरोप लगाया। उन्होंने प्रेस टीवी के साथ विशेष साक्षात्कार में कहा कि ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी ने परमाणु समझौते का महत्वपूर्ण उल्लंघन किया है इसलिए उनके पास ईरान को दोषी ठहराने के लिए इस समझौते का हवाला देने का अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा: अगर कोई पक्ष किसी समझौते का उल्लंघन करता है तो उसे दूसरे पक्ष को उसी समझौते के आधार पर दोषी ठहराने का अधिकार नहीं है।
चीन ने ईरान के शांतिपूर्ण परमाणु कार्यक्रम के प्रति प्रतिबद्धता का स्वागत किया
तेहरान में चीन के राजदूत ने यूरोप द्वारा अनैतिक तरीके से मैकेनिज़्म ऑफ़ ट्रिगर सक्रिय करने की कार्रवाई पर कहा कि चीन ईरान की परमाणु हथियार न बनाने की प्रतिबद्धता और साथ ही परमाणु ऊर्जा तक पहुँच के अधिकार का स्वागत करता है। झोंग पि वू ने कहा कि बीजिंग अनैतिक प्रतिबंधों के पूरी तरह विरोधी है। अमेरिका द्वारा परमाणु समझौते से एकतरफा बाहर निकलना और ईरान के परमाणु प्रतिष्ठानों पर हमला, दोनों ही तनाव बढ़ाने और इस मामले को जटिल बनाने वाले कदम हैं।
तुर्की में सरकार विरोधी बड़े प्रदर्शन और सोशल मीडिया का अवरुद्ध होना
तुर्किये में सरकार के विरोधी धड़ों के हजारों समर्थकों ने रविवार को इस्तांबुल में प्रदर्शन किया। बताया जा रहा है कि यह शहर में बड़े आंदोलन की शुरुआत हो सकती है। इसी बीच समाचार सूत्रों ने रिपोर्ट किया कि तुर्किये में सोशल मीडिया नेटवर्क्स जैसे X, इंस्टाग्राम, फेसबुक और टिकटॉक गंभीर व्यवधानों का सामना कर रहे हैं और उपयोगकर्ताओं को इंटरनेट की अत्यधिक धीमी गति का सामना करना पड़ रहा है।
यूरोप में फ़िलिस्तीन समर्थक प्रदर्शन
रविवार को कई यूरोपीय शहरों, जिनमें ब्रसेल्स और मैड्रिड शामिल हैं, में फ़िलिस्तीनी लोगों के समर्थन में प्रदर्शन हुए। ब्रसेल्स में, बील्जियम के लाखों लोगों ने रैलियाँ आयोजित कर ग़ाज़ा के समर्थन में अपनी आवाज़ उठाई और ज़ायोनी शासन पर प्रतिबंध लगाने की मांग की। इसी तरह, मैड्रिड में प्रदर्शनकारियों ने ग़ाज़ा पट्टी में शहीद हुए फ़िलिस्तीनी बच्चों को याद किया। इस बीच, ब्रिटिश पुलिस ने बताया कि फ़िलिस्तीन के समर्थन में प्रदर्शन करने वाले 890 प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया गया।
हंगरी: यूरोपीय संघ पतन की ओर
हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ऑरबान ने चेतावनी दी कि यदि यूरोपीय संघ पतन से बचना चाहता है तो उसे आंतरिक रूप से मौलिक बदलाव करने होंगे। उन्होंने कहा कि यूरोपीय संघ अब पतन के चरण में प्रवेश कर चुका है और आगामी सात वर्षीय बजट (2028–2035) संभवतः इस संघ का अंतिम बजट हो सकता है।
यमन की सेना: नक़ब, ईलात, अश्कलॉन, अश्दूद और तेल अवीव को 8 ड्रोन से निशाना बनाया
रविवार को यमन की सशस्त्र सेनाओं ने आठ ड्रोन का इस्तेमाल करते हुए नक़ब, ईलात, अश्कलॉन, अश्दूद और याफ़ा अर्थात तेल अवीव पर हमला किया। इसी समय यमन के अन्सारुल्लाह आंदोलन के राजनीतिक कार्यालय के सदस्य मोहम्मद अल-बुख़ैती ने कहा कि यमन की सेनाओं द्वारा ज़ायोनी अतिग्रहणकारियों पर हमले ग़ाज़ा के लोगों का समर्थन करने के उद्देश्य से जारी रहेंगे।
ज़ायोनी शासन दुनिया का सबसे अलग-थलग और सबसे नफ़रत किए जाने वाला शासन
इस्लामी क्रांति के नेता इमाम ख़ामेनेई ने ज़ायोनी शासन को दुनिया का सबसे अलग-थलग और सबसे नफ़रत किए जाने वाला शासन बताया।
इमाम ख़ामेनेई ने रविवार को ईरान के राष्ट्रपति और मंत्रिपरिषद से मुलाकात में कहा कि शापित ज़ायोनी शासन के अपराध और हैरान कर देने वाली त्रासदियाँ लगातार बिना किसी शर्म या हिचक के अंजाम दी जा रही हैं। उन्होंने जोर दिया कि भले ही ये अपराध अमेरिका जैसी ताक़त के समर्थन से किए जा रहे हों, फिर भी इस स्थिति का सामना करने का रास्ता बंद नहीं है।
उन्होंने यह भी कहा कि विरोध करने वाले देश, विशेष रूप से इस्लामी देश, ज़ायोनी शासन के साथ अपने व्यापारिक और राजनीतिक संबंध पूरी तरह से तोड़ें और इसे अलग-थलग करें। इमाम ख़ामेनेई ने कहा कि हमारी कूटनीति की मुख्य दिशा में से एक यह भी होनी चाहिए कि सरकारों को इस अपराधी शासन के साथ व्यापारिक और राजनीतिक संबंध समाप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।
इस मुलाकात में इस्लामी क्रांति के नेता इमाम ख़ामेनेई ने ईरान के राष्ट्रपति, अधिकारियों, प्रबंधकों और कर्मचारियों का धन्यवाद किया विशेष रूप से उन विभागों का जिन्होंने 12 दिवसीय युद्ध में सचमुच त्याग, समर्पण और निष्ठा का परिचय दिया। उन्होंने राष्ट्रपति की प्रेरणा, उत्साह और परिश्रम की भी सराहना की और कहा कि राष्ट्रपति की चीन यात्रा ने संभावित आर्थिक और राजनीतिक अवसरों को सामने लाया, जिनके लाभकारी नतीजों को आगे बढ़ाना चाहिए।
इमाम ख़ामेनेई ने यह भी कहा कि राष्ट्रीय शक्ति और राष्ट्रीय गौरव को मजबूत करना सरकारों का कर्तव्य है। उन्होंने जोर दिया कि इनका सबसे महत्वपूर्ण तत्व जनता का उत्साह, एकता और आशावाद है, जिसे शब्दों और कर्मों दोनों में बनाए रखना, सुदृढ़ करना और कमजोर होने से रोकना व बचाना आवश्यक है।
क्या अमेरिका वेनेज़ुएला पर हमला करेगा?
अमेरिकी पत्रिका न्यूज़वीक ने अंतर्राष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञों के माध्यम से वेनेज़ुएला पर अमेरिकी हमले के यक़ीनी होने का आकलन किया और संभावित हमले के आयामों पर रोशनी डाली है।
अमेरिकी पत्रिका न्यूज़वीक ने एक रिपोर्ट में दोनों पक्षों के बीच बढ़ते तनाव के मद्देनज़र वेनेज़ुएला पर अमेरिकी हमले के संभावित हमलों की समीक्षा की और लिखा कि विशेषज्ञों को संदेह है कि दक्षिणी कैरिबियाई क्षेत्र में अमेरिकी सैन्य तनाव में वर्तमान वृद्धि वेनेज़ुएला पर हमले की शुरुआती कार्रवाई है।
इस सवाल के जवाब में कि क्या अमेरिका वेनेज़ुएला पर हमला करेगा, अमेरिकी पत्रिका ने लिखा कि हमले की संभावना कम है क्योंकि वाशिंगटन ने हमले का स्पष्ट इरादा नहीं दिखाया है। हालाँकि वेनेज़ुएला के राष्ट्रपति निकोलस मादुरो ने सैन्य तैनाती को एक ऐतिहासिक ख़तरा माना है, लेकिन सैन्य विशेषज्ञ इसे वास्तविक हमले की पूर्वसूचना के बजाय केवल "शक्ति प्रदर्शन" मानते हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, विशेषज्ञों का मानना है कि यह संभावना नहीं है कि वाशिंगटन वेनेज़ुएला जैसे जटिल भौगोलिक देश में बड़े पैमाने पर सैन्य अभियान का जोखिम उठाएगा, जहाँ पहाड़, जंगल और शहरी केंद्र हैं जिन्हें नियंत्रित करना मुश्किल है। विशेषकर इसलिए क्योंकि इस क्षेत्र में तैनात अमेरिकी सेना की संख्या कुछ हजार सैनिकों से अधिक नहीं है, जो पूर्ण पैमाने पर हमले के लिए पर्याप्त नहीं है।
लंदन के चैटम हाउस में दक्षिण अमेरिकी शोधकर्ता क्रिस्टोफर सबातिनी ने कहा कि कोई भी समझदार व्यक्ति यह नहीं सोचेगा कि 4,500 सैनिक पहाड़ों, जंगलों और कई शहरी केंद्रों वाले देश पर आक्रमण कर पाएँगे। यह दोनों पक्षों की ओर से शक्ति प्रदर्शन मात्र है। ब्रिटेन की भू-रणनीतिक परिषद में राष्ट्रीय सुरक्षा शोधकर्ता विलियम फ्रायर ने भी न्यूज़वीक को बताया: वेनेज़ुएला की भूमिका पर अपनी नाराज़गी के बावजूद, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन ने अब तक सैन्य हस्तक्षेप का कोई स्पष्ट इरादा नहीं दिखाया है।
संभावित हमले की स्थिति
न्यूज़वीक ने लंदन स्थित रॉयल यूनाइटेड सर्विसेज इंस्टीट्यूट के शोधकर्ता कार्लोस सोलर के हवाले से कहा है कि अगर अमेरिका वेनेज़ुएला पर हमला करता है, तो वह लंबी दूरी की टॉमहॉक मिसाइलों से शुरुआत करेगा ताकि वेनेज़ुएला की रक्षा प्रणालियों और सैन्य क्षमताओं को नष्ट किया जा सके, मिसाइल स्थलों और गोला-बारूद के डिपो, रडार, संचार केंद्रों और ड्रोन प्लेटफार्मों को नष्ट किया जा सके। उन्होंने आगे कहा कि युद्ध की स्थिति में, अमेरिकी सेनाएँ संभवतः दूसरे चरण में टॉरपीडो, निर्देशित गोला-बारूद और विमान-रोधी मिसाइलों का उपयोग करके अपने हमले जारी रखेंगी। इस बीच, क्यूबा ने जोर देकर कहा कि अमेरिका का यह दावा कि वेनेजुएला की वैध सरकार और उसके राष्ट्रपति निकोलस मादुरो का मादक पदार्थ तस्करी गिरोहों से संबंध है, एक हास्यास्पद और निराधार बहाना है।
क्या पश्चिमी देशों द्वारा फ़िलिस्तीन को मान्यता देना एक वास्तविक क़दम है या दिखावा?
ऑनलाइन पत्रिका "972+" ने कुछ पश्चिमी सरकारों की फ़िलिस्तीन राज्य को मान्यता देने की नीति पर चर्चा की।
ऑनलाइन पत्रिका "972+" ने हाल ही में फ़िलिस्तीनी पत्रकार "अला सलामेह" का एक लेख प्रकाशित किया और लिखा: हालाँकि फ़िलिस्तीन राज्य को मान्यता देने की वैश्विक लहर दुनिया में इज़राइल के बढ़ते अलगाव का संकेत देती है, लेकिन इस राजनीतिक नाटक से धोखा नहीं खाना चाहिए क्योंकि पश्चिमी तट पर इज़राइल के निरंतर कब्जे और गज़ा में उसके साथ-साथ हो रहे नरसंहार को देखते हुए, द्वि-राज्य समाधान का समर्थन करना बेतुका और निरर्थक है। पारस टुडे के अनुसार, 77 वर्षों के बाद द्वि-राज्य योजना एक आक्रामक और सैन्यवादी शासन के अस्तित्व की मुख्य समस्या का कोई समाधान नहीं प्रस्तुत करती है जो दूसरे राष्ट्र पर हावी होना चाहता है। कृपया फ़िलिस्तीनी जीवन के 30 और वर्ष एक ऐसी विभाजन योजना पर बर्बाद न करें जो एक औपनिवेशिक समस्या का औपनिवेशिक समाधान है।
इज़राइल ने बहुत पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि वह फ़िलिस्तीनी राज्य को कभी स्वीकार नहीं करेगा। जब कोई समाधान न तो न्यायसंगत होता है और न ही संभव, तो वह शांति योजना नहीं, बल्कि निष्क्रियता का एक बहाना बन जाता है जो इज़राइल को अपनी हत्याएँ जारी रखने, अपने विस्तार को तेज़ करने और अपने रंगभेदी शासन को गहरा करने का मौका देता है।
एक सवाल, सचमुच: इस समाधान में फ़िलिस्तीनी कहाँ हैं? हमसे किसने कभी पूछा है कि हम इन समाधानों के बारे में क्या सोचते हैं? जिस तरह संयुक्त राष्ट्र ने 1947 में हमारी सहमति के बिना विभाजन योजना तैयार की थी, उसी तरह अब हमारे लोगों की राय उन यूरोपीय शक्तियों के लिए कोई मायने नहीं रखती जो द्वि-राज्य योजना को आगे बढ़ा रही हैं।
फ्रांस अपने अहंकार के साथ, इज़राइल को फ़िलिस्तीन राज्य को मान्यता देने की धमकी देता है, लेकिन फ़्रांस ख़ुद इस बात पर अड़ा है कि फ़िलिस्तीनी राज्य का निरस्त्रीकरण किया जाना चाहिए, जबकि वह इज़राइल को हथियार देना जारी रखे हुए है। एक हथियार विक्रेता नरसंहार के पीड़ितों से हथियार डालने के लिए कहने की स्थिति में नहीं है!
लेकिन अगर कोई चमत्कार भी हो जाए और इज़राइल अंततः पश्चिमी तट और गज़ा से हट जाए, तो इस नए राज्य में फ़िलिस्तीनियों की सुरक्षा की क्या गारंटी होगी? एक राज्य होने से कब से किसी को इज़राइली आक्रमण और विस्तारवाद से सुरक्षा मिली है? लेबनान और सीरिया, दोनों स्वतंत्र देश हैं जिनकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त सीमाएँ हैं, फिर भी वे अपने शहरों पर इज़राइली कब्ज़े और बमबारी देख रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र में फ़िलिस्तीनी झंडा बस्तियों के विकास को नहीं रोकेगा, इज़राइल के सैन्य शासन को ख़त्म नहीं करेगा, या उसके क्षेत्रीय युद्धों को समाप्त नहीं करेगा।
अब, इन प्रतीकात्मक संकेतों का विनाशकारी प्रभाव ऐसा है कि इन्हें केवल बेकार कहकर खारिज नहीं किया जा सकता, जैसा कि वे पहले थे; क्योंकि ये योजनाएँ युद्ध अपराध करने वाले शासन के लिए समय खरीदती हैं और एकमात्र महत्वपूर्ण समाधानों की तात्कालिकता को कम करती हैं: नरसंहार को समाप्त करना, अपराधियों का बहिष्कार करना, रंगभेद व्यवस्था को अलग-थलग करना, और समान अधिकारों और वापसी के अधिकार पर ज़ोर देना। फ़िलिस्तीनी राज्य को मान्यता देने का दबाव लोगों को कार्रवाई का भ्रम देता है और वास्तविक समाधानों में देरी करता है, जैसे कि इज़राइल के रंगभेदी शासन का बहिष्कार और अलगाव।
असली समाधान दो-राज्य समाधान नहीं है, बल्कि इज़राइल को एक रंगभेदी शासन के रूप में मान्यता देना है। यह भविष्य की ओर पहला आवश्यक कदम है। इज़राइली शासन को रंगभेदी शासन के रूप में आधिकारिक मान्यता, भले ही कुछ देशों द्वारा, दुनिया में इज़राइल के लिए निरंतर सैन्य और आर्थिक समर्थन को कानूनी और राजनीतिक रूप से अस्थिर बना देगी। यह प्रतिबंधों और राजनयिक संबंधों के विच्छेद का मार्ग भी प्रशस्त करेगा।
अंततः, ज़ायोनीवाद विफल हो गया है; क्योंकि जातीय सफ़ाई और अब नरसंहार का सहारा लेकर, उसने ऐसे अपराध किए हैं जिन्होंने उसे दुनिया में अलग-थलग और घृणास्पद बना दिया है। इसके अलावा, फिलिस्तीनी लोग अपनी ज़मीन छोड़ने को तैयार नहीं हैं।
हफ्ता ए वहदत और एकता का संदेश
हफ्ता ए वहदत दरअसल उम्मत ए मुस्लिमा के लिए एक बड़ा उपहार है, जिसकी नींव हज़रत रूह अल्लाह मूसवी मशहूर इमाम खुमैनी रहमतुल्लाह अलैह ने रखी थी। यह हफ्ता हर साल 12 से 17 रबीउल आव्वल तक मनाया जाता है ताकि दुनिया भर के मुसलमान पैग़म्बर अक़रम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा स.ल.व. की पैदाइश के इस खुशगवार और बरकत वाले मौक़े पर एक दूसरे के करीब आएं, अपने इख़्तेलाफ़ात को पीछे छोड़ कर क़ुरआन और सुन्नत की असली तालीमात की तरफ़ ध्यान दें।
ईरान के धार्मिक शहर क़ुम अलमुकद्देसा मे रहने वाले भारतीय शोधकर्ता और इस्लामिक स्टड़ीज़ के छात्र हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मौलाना हाफिज़ मोहम्मद सय्यद फरज़ान रिज़वी से हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के प्रतिनिधि के साथ हफ़ता ए वहदत के अवसर पर विशेष बात मे मौलाना ने कहा,हफ्ता ए वहदत दरअसल उम्मत ए मुस्लिमा के लिए एक बड़ा उपहार है, जिसकी नींव हज़रत रूह अल्लाह मूसवी मशहूर इमाम खुमैनी रहमतुल्लाह अलैह ने रखी थी। हौज़ा न्यूज़ के पत्रकार और मौलाना के बीच हुई बात चीत को प्रशन उत्तर के रूप मे अपने प्रिय पाठको के लिए प्रस्तुत कर रहे है।
हफ्ता-ए-वहदत क्या है?
मौलाना हाफिज़ सय्यद मोहम्मद फरज़ान रिज़वी : हफ्ता-ए-वहदत मुस्लिम समुदाय के लिए एक बहुत बड़ा तोहफा है। इसे हर साल 12 से 17 रबीउल-अव्वल के बीच मनाया जाता है इस हफ्ते का मकसद दुनिया भर के मुसलमानों को एक-दूसरे के करीब लाना है ताकि वे पैगंबर मोहम्मद (स) की पैदाइश के इस खुशहाल मौके पर अपने मतभेद भूलकर एकजुट हों।
इस हफ्ते वहदत का असली मकसद क्या है?
मौलाना हाफिज़ सय्यद मोहम्मद फरज़ान रिज़वी : इसका असली मकसद है सभी मुसलमान शिया, सुन्नी और बाकी सभी अपने मतभेदों को छोड़कर भाईचारे और मोहब्बत के साथ एक-दूसरे की मदद करें। क्योंकि दुश्मन चाहता है कि हम बंट जाएं, लेकिन अगर हम एक साथ रहें तो वो कभी सफल नहीं हो पाएगा।
इस्लाम में एकता और भाईचारे की अहमियत क्या है?
मौलाना हाफिज़ सय्यद मोहम्मद फरज़ान रिज़वी : इस्लाम हमें एकता और भाईचारे की सीख देता है। क़ुरआन ने फरमाया,
وَاعْتَصِمُوا بِحَبْلِ اللَّهِ جَمِيعًا وَلَا تَفَرَّقُوا (سورۃ آلِ عمران 103)
सब मिलकर अल्लाह की रस्सी को मजबूती से थाम लो और आपस में भेदभाव और तफ़रक़ा मत डालो! पैगंबर मोहम्मद (स) ने भी मदीने में उखुव्वत और भाई चारे का संदेश दिया ताकि तमाम मुसलमान एक परिवार की तरह रहें।
हमें इस हफ्ते को कैसे मनाना चाहिए?
मौलाना हाफिज़ सय्यद मोहम्मद फरज़ान रिज़वी : हमें इसे सिर्फ एक औपचारिकता नहीं बनाना चाहिए। असली मकसद है दिलों को जोड़ना, मतभेद कम करना और मुसलमानों को एक आवाज़ बनाना। अगर हम ऐसा करेंगे तो इस्लाम और मुसलमानों की ताकत बढ़ेगी।
कोई खास बात जो आप साझा करना चाहेंगे?
मौलाना हाफिज़ सय्यद मोहम्मद फरज़ान रिज़वी : हां, इमाम ख़ुमैनी र.ह. ने फरमाया था:
"तुम उस बात पर झगड़ रहे हो कि नमाज़ में हाथ बांधना है या खोलना, जबकि दुश्मन तुम्हारे हाथ काटने में लगा हुआ है।इसका मतलब है कि छोटे-छोटे मतभेदों में उलझ कर हम अपनी असली ताकत, यानी एकता, खो देते हैं।
आख़िरी संदेश क्या है?
मौलाना हाफिज़ सय्यद मोहम्मद फरज़ान रिज़वी : इस हफ्ते हम सब वादा करें कि अपने मतभेद भूलकर एक-दूसरे से प्यार और भाईचारा बढ़ाएंगे। अपने भाइयों का सहारा बनेंगे और दुश्मन के खिलाफ एक मजबूत ताकत बनेंगे। यही पैगंबर मोहम्मद (स) का असली संदेश है।
पैग़म्बर मुहम्मद (स) का जीवन और शिक्षाएँ सभी के लिए हैं: मौलाना अबुल कासिम रिज़वी
पैग़म्बर मुहम्मद (स) के जन्म के 1500 वर्ष पूरे होने पर, कादरी हाउस द्वारा विक्टोरिया संसद में एक ऐतिहासिक सेमिनार का आयोजन किया गया, जिसमें विभिन्न धर्मों के नेताओं और हस्तियों ने भाग लिया और सहिष्णुता और एकता का संदेश दिया।
पैग़म्बर मुहम्मद (स) के जन्म के 1500 वर्ष पूरे होने पर, कादरी हाउस द्वारा विक्टोरिया संसद में एक अद्भुत सेमिनार का आयोजन किया गया। इस अवसर पर, प्रसिद्ध नात ख़्वान श्री वकार कादरी साहब ने अत्यंत गरिमापूर्ण ढंग से संचालक का दायित्व निभाया।
इस समारोह के आयोजन का उद्देश्य सर्वधर्म, सर्वधर्म सहिष्णुता और सम्मान के आंदोलन का प्रचार करना था। आयोजकों के अनुसार, इस उद्देश्य के लिए संसद से बेहतर कोई जगह नहीं हो सकती थी।
मंत्रियों, सांसदों, राजदूतों, विभिन्न संप्रदायों के मुस्लिम विद्वानों और हिंदू, सिख, ईसाई और बौद्ध धर्मों के नेताओं ने न केवल कार्यक्रम में भाग लिया, बल्कि पवित्र पैगंबर (स) को श्रद्धांजलि भी अर्पित की। इस अवसर पर सहिष्णुता, भाईचारे और प्रेम को बढ़ावा देने पर विशेष जोर दिया गया।
अंत में, शिया उलेमा काउंसिल ऑस्ट्रेलिया के अध्यक्ष और मेलबर्न में जुमे की नमाज़ के इमाम, हुज्जतुल इस्लाम वल मुसलमीन मौलाना सय्यद अबुल कासिम रिज़वी ने सभा को संबोधित किया। उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत इन शब्दों से की: "आज से ठीक पंद्रह सौ साल पहले, एक अनाथ ने दुनिया बदल दी। उसने एक ऐसी व्यवस्था दी जिसकी आवश्यकता हर युग और हर समाज को क़यामत तक है। उसने शांति, समानता, न्याय और उच्च नैतिकता का संदेश दिया।"
मौलाना सय्यद अबुल कासिम रिज़वी ने कहा कि आज जब दुनिया अत्याचार, भ्रष्टाचार और अनैतिकता की चपेट में है, ऐसे कार्यक्रमों की ज़रूरत और भी बढ़ गई है। हमें पैगम्बर मुहम्मद (स) के जीवन और शिक्षाओं का प्रसार करने का प्रयास करना चाहिए, क्योंकि ये शिक्षाएँ सिर्फ़ इंसानों या दुनिया के लिए नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए हैं।
उन्होंने कहा कि आज सभी धर्मों के नेताओं की भागीदारी ने यह साबित कर दिया है कि हम सब एक हैं और पैगम्बर मुहम्मद (स) का सार सभी के लिए है। ऐसे आयोजन नफ़रत को खत्म करने और प्रेम को बढ़ावा देने का ज़रिया बनेंगे।
अपने संबोधन के अंत में, मौलाना ने कहा: "अंधकार बढ़ रहा है, हमारा काम प्रकाश को बढ़ाना है। जब दुनिया में लोग फूट डालने और बांटने का काम कर रहे हैं, तो हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम लोगों को जोड़ने का काम करें, और यह प्रक्रिया रुकनी नहीं चाहिए।"
हलाल रोज़ी बच्चों को हक़ पज़ीर बनाती हैः
हरम ए हज़रत फातेमा मासूमा स.ल. में ख़िताब करते हुए हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सययद अली रज़ा तराशीयून ने कहा कि हराम माल का दाख़िल होना ज़िंदगी को तबाही में मुब्तिला कर देता है, जबकि हलाल रोज़ी न सिर्फ़ इंसान की ज़िंदगी में बरकत डालती है बल्कि औलाद को भी हक़ क़बूल करने वाला बनाती है।
हरम ए हज़रत फातेमा मासूमा स.ल. में ख़िताब करते हुए हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सय्यद अली रज़ा तराशीयून ने कहा, कि हराम माल का दाख़िल होना ज़िंदगी को तबाही में मुब्तिला कर देता है, जबकि हलाल रोज़ी न सिर्फ़ इंसान की ज़िंदगी में बरकत डालती है बल्कि औलाद को भी हक़ कबूल करने वाला बनाती है।
उन्होंने कहा कि इस्लाम ने बार-बार अहले ख़ाना की तरबीयत पर जोर दिया है और कुछ बुनियादी अंसूर इंसान की ज़िंदगी को या तो कामयाब बनाते हैं या नाकाम। इन अंसूरों में ख़ुदा से तआल्लुक, झूठ से परहेज़, हलाल रोज़ी और अन्य दीनी मामले शामिल हैं।
ख़तीब हरम हज़रत मासूमा (स) ने नमाज़ की अहमियत बयान करते हुए कहा कि घरों में नमाज़ की बे-तवज्जुही ज़िंदगियों को मुश्किलात से दो चार कर देती है। उन्होंने हज़रत फातिमा ज़हेरा सलाम अल्लाहु अलैहा का फ़रमान नक़ल किया कि बे नमाज़ी फ़रद दुनिया में नौ मसीबतों और मौत के वक़्त छ बड़ी बलाओं में मुब्तिला होता हैं।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सय्यद अली रज़ा तराशीयून ने आगे कहा कि माजाज़ी दुनिया और सोशल मीडिया के मंफ़ी असरात तेज़ी से ख़ानदानी निज़ाम को कमज़ोर कर रहे हैं। उनके कौल सोशल मीडिया की फितरत सर्द है और जितना हम सोशल मीडिया को ज़िंदगी से दूर रखेंगें, मियां बीवी के ताल्लुकात उतने मज़बूत होंगे।
उन्होंने वाज़िह किया कि सोशल मीडिया इंसान को कंट्रोल न करे बल्कि इंसान को मीडिया पर क़ाबू पाना चाहिए। साथ ही यह भी कहा कि घरानों में काग़ज़ी किताबों के मुतालिए को ज़्यादा अहमियत दी जाए क्योंकि मोबाइल और सोशल मीडिया से हासिल होने वाला मुतालिया पायदाद असरात नहीं रखता।
यूरोप की मिसाल देते हुए उन्होंने बताया कि कई मुल्कों ने हालिया बरसों में अपने स्कूलों को दुबारा "गैर स्मार्ट" बना दिया है क्योंकि स्मार्ट औज़ार इंसानी fitrat से हमआहंग नहीं और नुक़सानदेह साबित हुए हैं।
उन्होंने मियां बीवी के बाहमी अहद-व-वफ़ा को ख़ानदान के इस्तिहकाम की बुनियाद करार दिया और कहा कि शादी का मकसद ऐसा रिश्ता है जिसे सिर्फ़ मौत अलग कर सके।
झूठ की मज़ममत करते हुए उन्होंने इमाम सादिक अलैहि सलाम का फ़रमान याद दिलाया कि तमाम बुराइयाँ एक घर में जमा हैं और उसका दरवाज़ा झूठ है। इसी तरह अमीरुल मुमिनीन अलैहि सलाम का क़ौल नक़ल किया कि नजात और कामयाबी सच्चाई में है।
अपनी गुफ्तगू के इख़्तिताम पर उन्होंने कहा कि उलमा-ए-कराम ने हमेशा इस बात पर जोर दिया है कि इंसान को खाने वाले हर लम्हे में एहतियात बरतनी चाहिए क्योंकि हराम लम्हा इंसान की ज़िंदगी पर तलवार के वार से ज़्यादा असर डालता है, जबकि हलाल लुकमा औलाद को हक़ शनास और हक़ पज़ीर बनाती है।
पैग़म्बर (स) का व्यक्तित्व गरिमा, सुरक्षा, भलाई और आशीर्वाद का स्रोत है
फ़ातिमिया एजुकेशनल कॉम्प्लेक्स, मुज़फ़्फ़राबाद में पैग़म्बर (स) के जन्म के अवसर पर आयोजित समारोह में बड़ी संख्या में छात्राओं और महिलाओं ने भाग लिया। वक्ताओं ने अपने संबोधन में पैग़म्बर (स) के जीवन के व्यावहारिक पहलुओं पर प्रकाश डाला और उन्हें मानवता के लिए दया और मार्गदर्शन का स्रोत बताया।
ख़ातम-उन-नबियीन हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स) के पवित्र जन्म के अवसर पर मुज़फ़्फ़राबाद के फ़ातिमा एजुकेशनल कॉम्प्लेक्स में एक शानदार और प्रेरणादायक सभा आयोजित की गई, जिसमें शहर भर से बड़ी संख्या में छात्राओं के साथ-साथ महिलाओं ने भी भाग लिया।
समारोह की शुरुआत पवित्र कुरान की तिलावत से हुई, जिसके बाद नातिया कलाम के माध्यम से पैग़म्बर (स) के प्रति समर्पण और प्रेम का इज़हार किया गया। छात्रों ने नाटकों और झांकियों के माध्यम से पैग़म्बर (स) के काल के प्रसंगों को खूबसूरती से प्रस्तुत किया, जबकि तोशी ख्वानी ने समागम को और भी आध्यात्मिक रंग दिया।
इस अवसर पर, जामिया सानिया ज़हरा की प्रधानाचार्या सुश्री सैयदा रख्शंदा काज़मी और फ़ातिमा एजुकेशनल कॉम्प्लेक्स की प्रधानाचार्या सुश्री सैयदा फ़िदा मुख्तार नक़वी ने अपने विचार रखे और पैग़म्बर (स) के जीवन के व्यावहारिक पहलुओं पर प्रकाश डाला। सुश्री सैयदा फ़िज़्ज़ा मुख्तार नक़वी ने हज़रत अली (अ) के कथन के आलोक में समझाया कि अल्लाह के रसूल (स) का सार सर्वोच्च और सर्वोत्तम स्रोत है, जो गरिमा, शांति और भलाई का केंद्र है। पैगम्बर (स) की कृपा से नेक दिल अल्लाह की ओर मुड़े, दुश्मनी और बदले की आग बुझी, भाईचारा स्थापित हुआ और सही-गलत का अंतर स्पष्ट हुआ। पैग़म्बर (स) ने कमज़ोरों को सम्मान दिया और अहंकारी और घमंडी लोगों का अहंकार तोड़ा। पैग़म्बर (स) का हर शब्द और मौन सत्य को व्यक्त करता है।
मारोह के दौरान, चतुर्थ वर्ष के छात्रों को प्रमाण पत्र वितरित किए गए, जबकि "शिक्षक दिवस" के अवसर पर सभी शिक्षकों को पुरस्कार प्रदान किए गए।