رضوی

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इमाम हसन असकरी (अ) ने अब्बासी शासन के सख्त दबाव और कड़ी निगरानी के बीच इमामत का भार उठाया। उन्होंने सूझ-बूझ से काम लेकर वफादार प्रतिनिधियों का एक नेटवर्क तैयार किया और सबसे कठिन परिस्थितियों में भी शियो से संपर्क बनाए रखा। इसके साथ ही, उन्होंने उन्हें ग़ैबत कुबरा के दौर के लिए तैयार किया।

इमाम हसन असकरी (अ) की शहादत दिवस के मौके पर उनकी ज़िंदगी और इमामत से जुड़े चार महत्वपूर्ण सवालों का जवाब दिया जा रहा है ताकि उनकी ज़िंदगी के विभिन्न पहलुओं को बेहतर तरीके से समझा जा सके। इसका मकसद इमाम की शख्सियत और उनके आध्यात्मिक नेतृत्व को गहराई से जानना है।

सवाल 1: इमाम अस्करी (अ) सामर्रा में क्यों बसे?

जवाब: इमाम हसन अस्करी (अ) को उनके वालिद इमाम हादी (अ) के साथ बचपन से ही अब्बासी खलीफाओं ने जबरन सामर्रा बुला लिया था। सामर्रा अब्बासीयो की सैन्य राजधानी थी, और इस शहर में इमामों को स्थापित करके, वे लोगों के साथ उनके संपर्क को सीमित करना चाहते थे और उन पर कड़ी निगरानी रखना चाहते थे। एक ओर, सरकार इमाम अस्करी (अ) के वंश से महदी मौऊद के जन्म की धार्मिक खबरों के कारण इस आंदोलन को नियंत्रित करने और यहाँ तक कि नष्ट करने की कोशिश कर रही थी; और दूसरी ओर, उसे उनके सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव और अलवी आंदोलनों के खतरे का डर था। इस कारण, इमाम अस्करी (अ) सामर्रा की सैन्य छावनी तक ही सीमित थे और स्वतंत्र रूप से कार्य करने में असमर्थ थे। हालाँकि, समर्थकों के एक गुप्त नेटवर्क के साथ, उन्होंने शियो का मार्गदर्शन किया और अब्बासियों की इमामत को समाप्त करने की योजना के सफल हुए बिना इमाम महदी (अ) के पवित्र अस्तित्व की रक्षा की।

सवाल 2: इमाम हसन अस्करी (अ) के कितने बच्चे थे?

जवाब: कुछ स्रोतों में कई बच्चों के नामों का उल्लेख है; हालाँकि, शिया विद्वानों के बीच प्रचलित मत यह है कि इमाम हसन अस्करी (अ) का केवल एक ही बच्चा था; एक ऐसा बच्चा जिसका नाम और उपनाम रसूल अल्लाह (स) के समान था और जिसकी माँ नरजिस नाम की एक कुलीन महिला थीं।

शेख मुफ़ीद ने अपनी रचनाओं में इस बात पर ज़ोर दिया है कि इमाम अस्करी (अ) के इस बच्चे के अलावा, न तो खुले तौर पर और न ही गुप्त रूप से, कोई और संतान नहीं थी। शेख कुलैनी ने "काफ़ी" में, शेख तबरसी ने "आलाम उल वरा" में और अन्य बुज़ुर्गों ने भी यही राय व्यक्त की है, और अल्लामा मजलिसी ने "बिहार उल अनवार" में भी अन्य संतानों से संबंधित कथाओं को अस्वीकार किया है और उन्हें अविश्वसनीय माना है।

ऐतिहासिक प्रमाण भी इस मत की पुष्टि करते हैं। उदाहरण के लिए, इमाम अस्करी (अ) की शहादत के बाद, यह दिखाने के लिए कि उनकी कोई संतान नहीं है, उनकी विरासत को उनकी माँ और भाई के बीच बाँटने का आदेश दिया गया। यह दर्शाता है कि इसम महदी (अ) के अलावा कोई और शामिल नहीं था।

इन सभी प्रमाणों के आधार पर, शिया विद्वानों का दृढ़ विश्वास है कि इमाम हसन अस्करी (अ) के इकलौते पुत्र इमाम महदी (अ) हैं।

सवाल 3: इमाम हसन अस्करी (अ) अपनी नज़रबंदी के दौरान शियो से कैसे संवाद करते थे?

जवाब: कुछ रवायतों से पता चलता है कि इमाम हसन के जीवन में कम से कम एक ऐसा दौर ज़रूर आया जब इमाम से उनके घर पर सीधे मिलना संभव नहीं था, और शियो को आमतौर पर इमाम के शासन केंद्र से आने-जाने के दौरान उनसे मिलने का मौका मिलता था। "अल-ग़ैबा तूसी" किताब में बताया गया है कि नबाह के दिन (जिस दिन इमाम शासन केंद्र में जाते थे) लोगों में उत्साह और खुशी का माहौल होता था और सड़कें भीड़ से भर जाती थीं। जब इमाम सड़क पर दिखाई देते, तो शोर-शराबा शांत हो जाता और इमाम लोगों के बीच से गुज़रते। अली इब्न जाफ़र हलबी से रिवायत करते हैं: एक दिन जब इमाम ख़िलाफ़त के लिए रवाना होने वाले थे, हम उनके आने का इंतज़ार करने के लिए अस्कर में इकट्ठा हुए; इसी दौरान, इमाम की ओर से हमें एक संदेश मिला, जिसमें लिखा था: "ألّا یسلمنّ علیّ أحد و لا یشیر الیّ بیده و لا یؤمئ فإنّکم لا تؤمنون علی أنفسکم अल्ला यस्लेमन्ना अलय्या अहदुन वला योशीरो एला बेयदेहि वला यूमी फ़इन्नकुम ला तूमेनूना अला अंफ़ोसेकुम।" कोई भी मुझे सलाम न करे, न ही कोई इशारा करे, क्योंकि तुम सुरक्षित नहीं हो!

इसलिए, शियो के लिए इमाम से संवाद करना बहुत मुश्किल था; वे गुप्त रूप से इमाम को प्रश्न और पत्र भेजते थे, कुछ लोग काम के बहाने उनसे मिलने आते थे, और कोई भी संपर्क जानलेवा हो सकता था।

इस संवाद को व्यवस्थित करने के लिए, इमाम ने विभिन्न शहरों में विश्वसनीय प्रतिनिधियों का एक नेटवर्क बनाया था जो उनके और शियो के बीच संपर्क सूत्र थे। इमाम की शहादत के बाद, यह तरीका जारी रहा और उस समय के इमाम (अ) के विशेष प्रतिनिधियों के रूप में विस्तारित हुआ।

सवाल 4: इमाम हसन असकरी (अ) ने हज़रत नरजिस खातून (स) से कैसे विवाह किया और क्या वह रोमन सम्राट की पोती थीं?

जवाब: विश्वसनीय शिया स्रोतों में हज़रत नरजिस खातून (स) को पूर्वी रोमन सम्राट के पुत्र "येशुआ" की पुत्री और पैग़म्बर ईसा (अ) के शिष्य "शमून" की वंशज के रूप में वर्णित किया गया है। उन्हें, जिन्हें "मलिका" और "सिकल" के नाम से भी जाना जाता है, अल्लाह की मरज़ी से इमाम हसन असकरी (अ) की पत्नी चुना गया था।

आख्यानों के अनुसार, हज़रत नरजिस खातून, प्रेरणादायक स्वप्न देखने और धर्म स्वीकार करने के बाद, मुसलमानों और रोमनों के बीच हुए एक युद्ध में बंदी बना ली गईं और सामर्रा पहुँचीं। इमाम अली नक़ी (अ) ने ईश्वरीय कृपा से उनके लिए अहले बैत परिवार में शामिल होने का मार्ग तैयार किया और उन्हें इस्लाम की शिक्षाएँ सिखाने के लिए अपनी बहन हकीमा खातून को सौंप दिया। फिर इमाम हसन असकरी (अ) ने उनसे विवाह किया और इमाम हादी (अ) ने उनकी स्थिति का परिचय देते हुए कहा: "वह मेरे पुत्र हसन की पत्नी और क़ायम ए आले मुहम्मद (अ) की माँ हैं।"

हज़रत नरजिस ख़ातून के जीवन और वंश का वर्णन शेख़ तूसी द्वारा रचित अल-ग़ैबा, कमालुद्दीन शेख़ सदूक़ और अल्लामा मजलिसी द्वारा रचित बिहार उल अनवार जैसे विश्वसनीय स्रोतों में मिलता है, और इतिहासकारों ने उनके रोमन मूल और सामर्रा में उनके आगमन की कहानी का भी उल्लेख किया है।

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इमाम हज़रत इमाम हसन असकरी अ.स. 232 हिजरी में मदीना शहर में पैदा हुए चूंकि आप भी अपने वालिद इमाम अली नक़ी अ.स. की तरह सामर्रा के असकर नामी इलाक़े में मुक़ीम थे इसलिए आप असकरी के नाम से मशहूर हुए, आपकी कुन्नियत अबू मोहम्मद और मशहूर लक़ब नक़ी और ज़की है, आपने 6 साल इमामत की ज़िम्मेदारी संभाली और 28 साल की उम्र में मोतमद अब्बासी के हाथों शहीद हो गए।

हज़रत इमाम हसन असकरी अ.स. 232 हिजरी में मदीना शहर में पैदा हुए चूंकि आप भी अपने वालिद इमाम अली नक़ी अ.स. की तरह सामर्रा के असकर नामी इलाक़े में मुक़ीम थे इसलिए आप असकरी के नाम से मशहूर हुए, आपकी कुन्नियत अबू मोहम्मद और मशहूर लक़ब नक़ी और ज़की है, आपने 6 साल इमामत की ज़िम्मेदारी संभाली और 28 साल की उम्र में मोतमद अब्बासी के हाथों शहीद हो गए।

हमेशा से यह सुन्नत रही है कि ऐसे बुज़ुर्गों की ज़िंदगी और उनके किरदार ने लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया है जिनमें इंसानी पहलू मौजूद रहा हो, उनमें अल्लाह के भेजे हुए नबी और अलवी मकतब के रहनुमा वह ऐसे लोग हैं जो अल्लाह की ओर से सारे इंसानों के लिए बेहतरीन आइडियल बनाए गए हैं।

शियों के गयारहवें इमाम हज़रत इमाम हसन असकरी अ.स. 232 हिजरी में मदीना शहर में पैदा हुए, चूंकि आप भी अपने वालिद इमाम अली नक़ी अ.स. की तरह सामर्रा के असकर नामी इलाक़े में मुक़ीम थे इसलिए आप असकरी के नाम से मशहूर हुए, आपकी कुन्नियत अबू मोहम्मद और मशहूर लक़ब नक़ी और ज़की है, आपने 6 साल इमामत की ज़िम्मेदारी संभाली और 28 साल की उम्र में मोतमद अब्बासी के हाथों शहीद हो गए।

इमाम हसन असकरी अ.स. की रणनीति

इमाम हसन असकरी अ.स. ने हर तरह के दबाव और अब्बासी हुकूमत की ओर से कड़ी निगरानी के बावजूद दीन की हिफ़ाज़त और इस्लाम विरोधी विचारधारा का मुक़ाबला करने के लिए अनेक राजनीतिक, सामाजिक और इल्मी कोशिशें अंजाम देते रहे और अब्बासी हुकूमत की इस्लाम की नाबूदी की साज़िश को नाकाम कर दिया, आपकी इमामत के दौरान कुछ अहम रणनीतियां इस तरह थीं.

इस्लाम की हिफ़ाज़त के लिए इल्मी कोशिशें, विरोधियों के कटाक्ष का जवाब, हक़ीक़ी इस्लाम और सही विचारधारा का प्रचार, ख़ुफ़िया राजनीतिक क़दम, शियों की विशेष कर क़रीबी साथियों की जो हर तरह का ख़तरा मोल ले कर हर समय इमाम अ.स. के इर्द गिर्द रहते थे उनकी माली मदद करना, कठिनाईयों से निपटने के लिए बुज़ुर्ग शियों का हौसला बढ़ाना और उनके राजनीतिक दृष्टिकोण को मज़बूत करना, शियों के अक़ीदों और इमामत का इंकार करने वालों के लिए इल्मे ग़ैब का इस्तेमाल करना और अपने बेटे इमाम महदी अ.स. की ग़ैबत के लिए शियों की फ़िक्र को तैयार करना।

इल्मी कोशिशें

हालांकि इमाम हसन असकरी अ.स. के दौर में हालात की ख़राबी और अब्बासी हुकूमत की ओर से कड़ी पाबंदियों की वजह से आप समाज में अपने इलाही इल्म को नहीं फैला सके लेकिन इन सब पाबंदियों के बावजूद ऐसे शागिर्दों की तरबियत की जिनमें से हर एक अपने तौर पर इस्लामी मआरिफ़ और इमाम अ.स. के इल्म को लोगों तक पहुंचाने में अहम रोल निभाता रहा, शैख़ तूसी र.ह. ने आपके शागिर्दों की तादाद सौ से ज़्यादा नक़्ल की है, जिनमें अहमद इब्ने इसहाक़ क़ुम्मी, उस्मान इब्ने सईद और अली इब्ने जाफ़र जैसे बुज़ुर्ग शिया उलमा शामिल हैं, कभी कभी मुसलमानों और शियों के लिए ऐसी मुश्किलें और कठिनाईयां पेश आ जाती थीं कि उन्हें केवल इमाम हसन असकरी अ.स. ही हल कर सकते थे, ऐसे मौक़ों पर इमाम अ.स. अपने इमामत के इल्म और हैरान कर देने वाली तदबीरों से कठिन से कठिन मुश्किल को हल कर दिया करते थे।

शियों का आपसी संपर्क

इमाम हसन असकरी अ.स. के दौर में अनेक इलाक़ों और कई शहरों में शिया फैल चुके थे और कई इलाक़ों में अच्छी ख़ासी तादाद में थे जैसे कूफ़ा, बग़दाद, नेशापुर, क़ुम, मदाएन, ख़ुरासान, यमन और सामर्रा शियों के बुनियादी मरकज़ में से थे, शिया इलाक़ों का इस तरह तेज़ी से फैलने और कई इलाक़ों में शियों का अच्छी ख़ासी तादाद में होने को देखते हुए ज़रूरी था कि उनके बीच आपस में एक दूसरे से संपर्क बनाए रहें ताकि उनकी दीनी और सियासी रहनुमाई हो सके और उन सभी को एक साथ मंज़िल तक पहुंचाया जा सके, यह ज़रूरत इमाम मोहम्मद तक़ी अ.स. के दौर ही से महसूस हो रही थी और वकालत से संबंधित सिस्टम को ईजाद कर के और अलग अलग इलाकों में वकीलों को भेज कर इस काम को शुरू किया जा चुका था, इमाम हसन असकरी अ.स. ने भी इसी को जारी रखा, जैसाकि तारीख़ी हवाले से यह बात साबित है कि आपने शियों के अहम और बुज़ुर्ग लोगों में से अपने वकीलों को चुन कर उनको अलग अलग इलाक़ों में भेज दिया।

ख़त और दूत (क़ासिद) का सिलसिला

वकालत का सिस्टम क़ायम करने के अलावा इमाम हसन असकरी अ.स. अपने सफ़ीर और क़ासिद को भेज कर भी अपने शियों और मानने वालों से संपंर्क करते थे और इस तरह उनकी मुश्किलों को दूर करते थे, अबुल अदयान (जोकि आपके क़रीबी सहाबी थे) के काम उन्हीं कोशिशों का नतीजा हैं, वह इमाम के ख़तों को आपके शियों तक पहुंचाते और उनके ख़तों, सवालों, मुश्किलों, ख़ुम्स और दूसरे माल शियों से लेकर सामर्रा में इमाम अ.स. तक पहुंचाते थे।

क़ासिद और दूत के अलावा इमाम अ.स. ख़तों द्वारा भी अपने शियों से संपर्क में रहते थे और उनकी अपने ख़तों से हिदायत करते थे, इसकी मिसाल इमाम अ.स. का वह ख़त है जो आपने इब्ने बाबवैह र.ह. (शैख़ सदूक़ र.ह. के वालिद) को लिखा था, इसके अलावा इमाम अ.स. ने क़ुम और आवह के शियों को भी ख़त लिखे थे जिनका मज़मून शिया किताबों में मौजूद है।

ख़ुफ़िया राजनीतिक क़दम

इमाम हसन असकरी अ.स. सारी पाबंदियों और हुकूमत की ओर से कड़ी निगरानी के बावजूद कुछ ख़ुफ़िया राजनीतिक क़दम उठा कर शियों की रहनुमाई करते रहते थे, और आपके यह राजनीतिक क़दम दरबारी जासूसों से इसलिए छिपे रहते थे क्योंकि आप बहुत ही सूझबूझ से वह क़दम उठाते थे, जैसे आपके बहुत क़रीबी सहाबी उस्मान इब्ने सईद का तेल की दुकान की आड़ में इमाम अ.स. का पैग़ाम शियों तक पहुंचाना, इमाम हसन असकरी अ.स. के शिया जो भी चीज़ या माल इमाम अ.स. तक पहुंचाना चाहते थे वह उस्मान को दे दिया करते थे और वह यह चीज़ें घी के डिब्बों और तेल की मश्कों में छिपा कर इमाम अ.स. तक पहुंचा दिया करते थे, इमाम अ.स. की कड़ी निगरानी के बावजूद दुश्मन की नाक के नीचे ऐसी बहादुरी वाले क़दम उठाने की वजह से आपकी 6 साल की इमामत अब्बासियों के ख़तरनाक क़ैदख़ानों में गुज़री।

शियों की माली मदद

आपका एक और अहम क़दम शियों की विशेष कर क़रीबी असहाब की माली मदद करना था, इमाम अ.स. के कुछ असहाब माली मुश्किल लेकर आते थे और आप उनकी मुश्किल को दूर करते थे, आपके इस अमल की वजह से वह लोग माली परेशानियों से घबरा कर हुकूमती और दरबारी इदारों की ओर आकर्षित होने से बच जाते थे।

इस बारे में अबू हाशिम जाफ़री कहते हैं कि मैं आर्थिक तंगी से गुज़र रहा था, मैंने सोंचा कि एक ख़त द्वारा अपने हाल को इमाम हसन असकरी अ.स. तक पहुंचाऊं, लेकिन मुझे शर्म आई और मैंने अपना इरादा बदल दिया, जब मैं घर पहुंचा तो देखा कि इमाम अ.स. ने मेरे लिए 100 दीनार भेजे हुए हैं और एक ख़त भी लिखा है कि जब कभी तुम्हें ज़रूरत हो तो शर्माना नहीं, हमसे मांग लेना इंशा अल्लाह तुम्हारी मुश्किल दूर हो जाएगी।

बुज़ुर्ग शियों और उनके राजनीतिक मतों को मज़बूत करना

इमाम हसन असकरी अ.स. की एक बहुत अहम राजनीतिक गतिविधि यह थी कि आप शियों के अज़ीम मक़सद को हासिल करने की राह में आने वाली तकलीफ़ों और अब्बासी हाकिमों की साज़िशों का मुक़ाबला करने के लिए शिया बुज़ुर्गों की सियासी हवाले से तरबियत करते और उनके राजनीतिक मतों को मज़बूत करते थे, चूंकि शिया बुज़ुर्ग शख़्सियतों पर हुकूमत का सख़्त दबाव होता था इसलिए इमाम अ.स. हर एक को उसके विचारों और उसकी फ़िक्र के हिसाब से उसका हौसला बढ़ाते और उनकी रहनुमाई करते थे ताकि कठिन समय में उनका सब्र और हौसला बना रहे और वह अपनी राजनीतिक ज़िम्मेदारियों को सही तरीक़े से निभा सकें, इस हवाले से इमाम अ.स. ने जो ख़त अली इब्ने हुसैन इब्ने बाबवैह क़ुम्मी र.ह. को लिखा उसमें फ़रमाते हैं कि हमारे शिया कठिन दौर से गुज़रेंगे यहां तक कि मेरा बेटा ज़ुहूर करेगा, यही मेरा वह बेटा होगा जिसके बारे में अल्लाह के रसूल ने बशारत दी है कि वह ज़मीन को अदालत और इंसाफ़ से इस तरह भर देगा जिस तरह वह ज़ुल्म और अत्याचार से भरी होगी।

इल्मे ग़ैब का इस्तेमाल

हमारे सभी इमाम अल्लाह से संपंर्क में रहने की वजह से इल्मे ग़ैब रखते थे और ऐसे हालात में जब इस्लाम की सच्चाई या मुसलमानों के सामाजिक फ़ायदे ख़तरे में पड़ जाएं तो उस समय उस इल्म का इस्तेमाल करते थे, हालांकि इमाम हसन असकरी अ.स. की ज़िंदगी को अगर देखा जाए तो यह बात अच्छी तरह सामने आ जाएगी कि आपने दूसरे इमामों को देखते हुए इल्मे ग़ैब का ज़्यादा इज़हार किया है, और उसकी सीधी वजह उस दौर के भयानक हालात और ख़तरनाक माहौल था, क्योंकि जबसे आपके वालिद इमाम अली नक़ी अ.स. को सामर्रा ले जाया गया तबसे आप कड़ी निगरानी में थे, अब्बासी हुकूमत की सख़्तियों और निगरानी की वजह से हालात ऐसे हो गए थे कि आप अपने बाद आने वाले इमाम अ.स. को खुल कर नहीं पहचनवा पा रहे थे, जिसकी वजह से कुछ शियों के दिलों में शक बैठने लगा था, इमाम अ.स. उन शक और मन की शंकाओं को दूर करने और उस दौर के ख़तरों से अपने असहाब को बचाने के लिए और गुमराहों की हिदायत करने के लिए आप इल्मे ग़ैब का इस्तेमाल करते हुए ग़ैब की ख़बरें दिया करते थे।

इस्लामी तालीमात की हिफ़ाज़त

हुकूमतों द्वारा इमामों का आम मुसलमानों से संपंर्क न बनाने देने के पीछे का राज़ यह है कि कुछ हाकिम चाहते थे कि इस्लामी ख़ेलाफ़त की आड़ में आम मुसलमानों को अपनी ओर खींच लिया जाए और फिर जिस तरह चाहें और जो चाहें अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ उनको रखा जाए, नतीजे में जवानों के अक़ीदों को कमज़ोर किया जाता था और उनको ऐसे बातिल अक़ीदों और नीच सोंच में उलझा देते थे ताकि आम मुसलमानों को गुमराह करने का प्लान कामयाब हो सकें।

इमाम हसन असकरी अ.स. का दौर एक कठिन दौर था जिसमें अनेक तरह की फ़िक्रें और विचारधाराएं इस्लामी समाज के लिए ख़तरा बन चुकी थीं, लेकिन आपने अपने वालिद और दादा की तरह एक पल के लिए भी इस साज़िश से ध्यान नहीं हटाया बल्कि पूरी सावधानी और गंभीरता के साथ इस्लाम की ग़लत तस्वीर बताने वालों, सूफ़ियत, ग़ुलू करने वालों, शिर्क और भी इसके अलावा बहुत सारी ख़ुराफ़ात और वाहियात जो मज़हब के नाम पर दीन का हिस्सा बताई जा रही थीं उन सबका मुक़ाबला किया और इनमें से किसी को भी अपने दौर में पनपने नहीं दिया।

इमाम हसन असकरी अ.स. और इस्लाम का ज़िंदा बाक़ी रखना

अब्बासी हुकूमत दौर और ख़ास कर इमाम हसन असकरी अ.स. का दौर उन सबसे बुरे दौर में से एक था जिसमें हाकिमों की अय्याशी, उनके ज़ुल्म और अत्याचार, दीनी मामलात से बे रुख़ी, और दूसरी ओर मुसलमानों के इलाक़ों में ग़रीबी के फैलने की वजह से दीनी वैल्यूज़ ख़त्म हो चुकी थीं, इसलिए अगर इमाम हसन असकरी अ.स. द्वारा दिन रात की जाने वाली मेहनतें और कोशिशें न होतीं तो अब्बासियों की सियासत की वजह से इस्लाम का नाम भी लोगों के दिमाग़ से मिट जाता, हालांकि इमाम अ.स. ख़ुद अब्बासी हाकिमों की कड़ी निगरानी में थे लेकिन आपने हर इस्लामी शहर में अपने वकीलों को तैनात कर रखा था जिनके द्वारा मुसलमानों के हालात मालूम करते रहते थे, कुछ शहरों की मस्जिदें और इमारतें भी इमाम अ.स. के हुक्म से बनाई गईं, जिसमें ईरान के क़ुम शहर में मौजूद इमाम हसन असकरी (अ.स.) मस्जिद शामिल है, इससे पता चलता है कि आप अपने वकीलों और इल्मे इमामत से मुसलमानों की हर तरह की मुश्किल और उनकी पिछड़ेपन को जानते और उसे दूर करते थे।

इमाम हसन अस्करी (अ) के शहादत दिवस के अवसर पर, अख़लाक़, ईमान और जीवन के तौर-तरीकों से संबंधित इमाम हम्माम की 31 हदीसें मुसलमानों के व्यक्तिगत और सामूहिक जीवन के लिए एक व्यावहारिक मार्गदर्शन के रूप में प्रकाशित की जा रही हैं।

ग्यारहवें इमाम, हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ) की हदीसें इस दुनिया और आख़िरत के लिए, हर मुसलमान और हर जगह आज़ाद इंसान के लिए मार्गदर्शन और जलती हुई मशाल हैं, जिसका दिल रहमते इलाही  से लाभ उठाने के लिए तत्पर है, इस दुनिया और आख़िरत के लिए एक मार्गदर्शक प्रकाश और एक चमकती हुई मशाल हैं। इस अज़ीम इमाम की शहादत दिवस के अवसर पर उनकी कुछ प्रमाणित और विश्वसनीय हदीसों का दिल और जान से अध्ययन करेंगे:।

1- ईमान की निशानी

قالَ (علیه السلام) : عَلامَهُ الاْیمانِ خَمْسٌ: التَّخَتُّمُ بِالْیَمینِ، وَ صَلاهُ الإحْدی وَ خَمْسینَ، وَالْجَهْرُ بِبِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحیم، وَ تَعْفیرُ الْجَبین، وَ زِیارَهُ الاْرْبَعینَ क़ाला अलैहिस्सलामोः अलामतुल ईमाने ख़म्सुनः अत तख़त्तमो बिल यमीने, व सालतुल एहदा व खम्सीना, वल जहरो बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्राहीम, व तअफ़ीरुल जबीन, व ज़ियारतुल अरबईना

इमाम (अ) ने फ़रमाया: ईमान की पाँच निशानियाँ: दाहिने हाथ में अंगूठी पहनना, इक्यावन रकअत नमाज़ (वाजिब और मुस्तहब) पढ़ना, (ज़ोहर और अस्र की नमाज़ मे) ज़ोर से "बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्राहीम" पढ़ना, सजदा करते समय पेशानी को खाक पर रखना, और इमाम हुसैन (अ) ज़ियारत अरबईन अंजाम देना।

2- हक़ीक़ी इबादत

قالَ (علیه السلام) : لَیْسَتِ الْعِبادَهُ کَثْرَهُ الصّیامِ وَالصَّلاهِ، وَ إنَّمَا الْعِبادَهُ کَثْرَهُ التَّفَکُّرِ فی أمْرِ اللهِ क़ाला अलैहिस्सलामोः लैसतिल इबादतो कसरतुस सियामे वस सलाते, व इन्नमल इबादतो कसरतुत तफ़क्कुरे फ़ि अमरिल्लाहे

इमाम (अ) ने फ़रमाया: इबादत ज़्यादा नमाज़ और रोज़ा नहीं है, बल्कि विभिन्न मामलों में अल्लाह की असीम शक्ति में चिंतन और भय के साथ इबादत है।

3- सबसे अच्छी विशेषता

قالَ (علیه السلام) : خَصْلَتانِ لَیْسَ فَوْقَهُما شَیْءٌ: الاْیمانُ بِاللهِ، وَنَفْعُ الاْخْوانِ क़ाला अलैहिस्सलामोः खस्लताने लैसा फ़ौक़होमा शैउनः अल ईमानो बिल्लाह, व नफ़्उल अख़्वान

 इमाम (अ) ने फ़रमाया:  गुण और स्थितियाँ जिनसे ऊपर कोई चीज़ भी महत्वपूर्ण नहीं हैं: अल्लाह पर ईमान और विश्वास, दोस्तों और परिचितों को लाभ पहुँचाना।

4- लोगों के साथ अच्छा व्यवहार

قالَ (علیه السلام) : قُولُوا لِلنّاسِ حُسْناً، مُؤْمِنُهُمْ وَ مُخالِفُهُمْ، أمَّا الْمُؤْمِنُونَ فَیَبْسِطُ لَهُمْ وَجْهَهُ، وَ أمَّا الْمُخالِفُونَ فَیُکَلِّمُهُمْ بِالْمُداراهِ لاِجْتِذابِهِمْ إلَی الاْیِمانِ क़ाला अलैहिस्सलामोः क़ूलू लिन्नासे हुसना, मोमेनोहुम व मुख़ालेफ़ोहुम, अम्मल मोमेनूना फ़यब्सेतो लहुम वज्हहू, व अम्मल मुख़ालेफ़ूना फ़योकल्लोमोहुम बिल मुदाराते लेइज्तेज़ाबेहिम एलल ईमान 

आपने फ़रमाया: दोस्तों और दुश्मनों के साथ दोस्ताना और मित्रवत व्यवहार करो, लेकिन ईमान वाले दोस्तों के साथ, एक कर्तव्य के रूप में, उन्हें हमेशा एक-दूसरे के साथ प्रसन्नतापूर्वक व्यवहार करना चाहिए, लेकिन विरोधियों के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार करना चाहिए, ताकि सहिष्णुता और इस्लाम और उसके अहकाम की ओर आकर्षित रहे।

5- दोस्ती की निरंतरता

قالَ (علیه السلام) : اللِّحاقُ بِمَنْ تَرْجُو خَیْرٌ مِنَ المُقامِ مَعَ مَنْ لا تَأْمَّنُ شَرَّهُ क़ाला अलैहिस्सलामोः अल लेहाक़ो बेमन तरजू ख़ैरुम मिनल मुकामे मआ मन ला ताम्मनो शर्राहू

आपने फ़रमाया: किसी ऐसे व्यक्ति के साथ दोस्ती और संगति जारी रखना बेहतर है जिसके साथ आपके रिश्ते अच्छे होने की संभावना हो, बजाय किसी ऐसे व्यक्ति के जिसके साथ व्यक्तिगत, वित्तीय, धार्मिक, आदि नुकसान की संभावना हो।

6- अफवाहें फैलाना और सत्ता की लालसा

قالَ (علیه السلام) : إیّاکَ وَ الاْذاعَهَ وَ طَلَبَ الرِّئاسَهِ، فَإنَّهُما یَدْعُوانِ إلَی الْهَلَکَهِ क़ाला अलैहिस्सलामोः इय्याका वल इज़ाअता व तलबर रियासते, फ़इन्नहोमा यदओवाने एलल हलकते

इमाम (अ) ने फ़रमाया: सावधान रहो कि तुम अफ़वाहें न फैलाओ, न ही बातें करो, न ही कोई पद और राज्य पाने की चाहत रखो और न ही उसके लिए प्यासे रहो, क्योंकि ये दोनों ही इंसान को बर्बाद कर देते हैं।

7- अक़्ल की खूबसूरती

قالَ (علیه السلام) : حُسْنُ الصُّورَهِ جَمالٌ ظاهِرٌ، وَ حُسْنُ الْعَقْلِ جَمالٌ باطِنٌ क़ाला अलैहिस्सलामोः हुस्नुस सूरते जमालुन ज़ाहेरुन, व हुस्नुल अक़्ले जमालुन बातेनुन

आप (अ) ने फ़रमाया: चेहरे की सुन्दरता और सौन्दर्य मनुष्य के बाहरी रूप में दिखाई देता है, और बुद्धि और ज्ञान की सुंदरता और सौन्दर्य मनुष्य के अंदर होती है।

8- गुप्त नसीहत

قالَ (علیه السلام) : مَنْ وَعَظَ أخاهُ سِرّاً فَقَدْ زانَهُ، وَمَنْ وَعَظَهُ عَلانِیَهً فَقَدْ شانَهُ  क़ाला अलैहिस्सलामोः मन वअज़ा अख़ाहो सिर्रन फ़क़द ज़ानहू, व मन वअज़ा अलानियतन फ़क़द शानहू 

इमाम (अ) ने फ़रमाया: जो कोई अपने दोस्त या भाई को गुप्त रूप से नसीहत करता है, उसने उसको सम्मानित किया; और अगर यह सार्वजनिक है, तो उसका अपमान किया।

9- इलाही तक़वा

قالَ (علیه السلام) : مَنْ لَمْ یَتَّقِ وُجُوهَ النّاسِ لَمْ یَتَّقِ اللهَ  क़ाला अलैहिस्सलामोः मन लम यत्तक़े वजूहन नासे लम यत्तक़िल्लाह

आप (अ) ने फ़रमाया: जो लोगों के सामने निडर रहता है और लोगों के नैतिक मुद्दों और अधिकारों का सम्मान नहीं करता, वह इलाही तक़वा का भी सम्मान नहीं करता।

10- मोमिन का अपमान

قالَ (علیه السلام) : ما أقْبَحَ بِالْمُؤْمِنِ أنْ تَکُونَ لَهُ رَغْبَهٌ تُذِلُّهُ क़ाला अलैहिस्सलामोः मा अक़्बहा बिल मोमिने अय तकूना लहू रग़बतुन तोज़िल्लोहू

इमाम (अ) ने फ़रमाया: एक मोमिन के लिए सबसे बुरी स्थिति और चरित्र यह है कि वह ऐसी इच्छा रखता है जो उसे अपमानित और लज्जित करती है।

11- सबसे अच्छे दोस्त

قالَ (علیه السلام) : خَیْرُ إخْوانِکَ مَنْ نَسَبَ ذَنْبَکَ إلَیْهِ क़ाला अलैहिस्सलामोः ख़ैरो इख़वानेका मन नसबा ज़म्बका इलैह

इमाम (अ) ने फ़रमाया: सबसे अच्छा दोस्त और भाई वह है जो तुम्हारी गलतियों की ज़िम्मेदारी लेता है और खुद को दोषी मानता है।

12- अधिकार का त्याग

قالَ (علیه السلام) : ما تَرَکَ الْحَقَّ عَزیزٌ إلاّ ذَلَّ، وَلا أخَذَ بِهِ ذَلیلٌ إلاّ عَزَّ क़ाला अलैहिस्सलामोः मा तरकल हक़्क़ा अज़ीज़ुन इल्ला ज़ल्ला, वला अख़ज़ा बेहि ज़लीलुन इल्ला अज़्ज़ा

आप (अ) ने फ़रमाया: "किसी भी पद या प्रतिष्ठा वाले व्यक्ति ने सत्य का परित्याग नहीं किया, सिवाय उस व्यक्ति के जिसे अपमानित किया गया हो, और कोई भी व्यक्ति सत्य को न्याय के कटघरे में नहीं लाया, सिवाय उस व्यक्ति के जिसे सम्मानित किया गया हो।"

13- शियो की विशेषता

قالَ (علیه السلام) لِشیعَتِهِ: أوُصیکُمْ بِتَقْوَی اللهِ وَالْوَرَعِ فی دینِکُمْ وَالاْجْتِهادِ لِلّهِ، وَ صِدْقِ الْحَدیثِ، وَأداءِ الاْمانَهِ إلی مَنِ ائْتَمَنَکِمْ مِنْ بِرٍّ أوْ فاجِر، وِطُولِ السُّجُودِ، وَحُسْنِ الْجَوارِ  क़ाला अलैहिस्सलामोः लेशीअतेहिः ऊसीकुम बे तक़वल्लाहे वल वरऐ फ़ी दीनेकुम वल इज्तेहादे लिल्लाहे, वस सिद्क़िल हदीसे, व अदाइल अमानते ऐला मनेतमेनकुम मिन बिर्रिन औ फ़ाजेरिन, व तूलिस सुजूदे, व हुस्नि जवारे

इमाम (अ) ने अपने शियो से कहा: अल्लाह का तक़वा इख़्तियार करो और दीन के मामलों में नेक बनो, अल्लाह के क़रीब रहने की कोशिश करो और अपनी संगति में ईमानदारी दिखाओ, जो भी तुम्हें सौंपा गया है उसे सकुशल लौटाओ, अल्लाह के सामने सजदे को तूलानी करो और अपने पड़ोसियों के साथ नेकी और भलाई करो।

14- विनम्रता

قالَ (علیه السلام) : مَنْ تَواضَعَ فِی الدُّنْیا لاِخْوانِهِ فَهُوَ عِنْدَ اللهِ مِنْ الصِدّیقینَ، وَمِنْ شیعَهِ علیِّ بْنِ أبی طالِب (علیه السلام)حَقّاً  क़ाला अलैहिस्सलामोः मन तवाज़आ फ़िद दुनिया लेइख़्वानेहि फ़होवा इन्दल्लाहे मिनस सिद्दीक़ीना, व मिन शीअते अली इब्ने अबि तालिब (अलैहिस सलामो) हक़्क़न

इमाम (अ) ने फ़रमाया: जो कोई इस दुनिया में अपने दोस्तों और साथियों के सामने खुद को नम्र बनाएगा, वह अल्लाह के सामने नेक लोगों में और इमाम अली (अ) के शियो में से होगा।

15- बुखार की समाप्ति

قالَ (علیه السلام) : إنَّهُ یُکْتَبُ لِحُمَّی الرُّبْعِ عَلی وَرَقَه، وَ یُعَلِّقُها عَلَی الْمَحْمُومِ: «یا نارُکُونی بَرْداً»، فَإنَّهُ یَبْرَءُ بِإذْنِ اللهِ क़ाला अलैहिस्सलामोः इन्नहू युकतबो लेहुम्मर रब्ऐ अला वरक़ते व योअल्लेक़ोहा अल महमूमेः या नारो कूनि बरदा, फ़इन्नहू यबरओ बेइज़्निल्लाह

इमाम (अ) ने फ़रमाया: जो कोई भी दर्द और बुखार से पीड़ित है, वह कुरान की "सूरह अंबिया, आयत 69" में इस आयत को एक कागज़ पर लिखकर उसकी गर्दन मे लटका दे, ताकि वह अल्लाह तआला की इजाज़त से ठीक हो जाए।

16- अल्लाह की याद

قالَ (علیه السلام) : أکْثِرُوا ذِکْرَ اللهِ وَ ذِکْرَ الْمَوْتِ، وَ تَلاوَهَ الْقُرْآنِ، وَالصَّلاهَ عَلی النَّبیِّ (صلی الله علیه وآله وسلم)، فَإنَّ الصَّلاهَ عَلی رَسُولِ اللهِ عَشْرُ حَسَنات क़ाला अलैहिस्सलामोः अक़्सेरु ज़िक्रिल्लाहे व ज़िक्रिल मौते, व तलावतिल क़ुरआने, वस सलाता अलन नबीय्ये (सललल्लाहो अलैहे वा आलेहि व सल्लम) फ़इन्नस सलाता अला रसूलिल्लाहे अश्रो हसनात 

आपने फ़रमाया: अल्लाह तआला का ज़िक्र और मौत का ज़िक्र और उसके हालात, क़ुरआन की तिलावत और हज़रत रसूल और अहले बैत (अ) पर बार-बार सलाम भेजो, बेशक उन पर सलाम का सवाब दस नेकियाँ का सवाब है।

17- उम्र का उपयोग

قالَ (علیه السلام) : إنَّکُمْ فی آجالِ مَنْقُوصَه وَأیّام مَعْدُودَه، وَالْمَوْتُ یَأتی بَغْتَهً، مَنْ یَزْرَعُ شَرّاً یَحْصَدُ نِدامَهً क़ाला अलैहिस्सलामोः इन्नकुम फ़ी आजाले मंक़ूसते व अय्यामे मअदूदते, वल मौतो याती बग़्ततन, मन यज़्रओ शर्रन यहसदो निदामतन

आपने फ़रमाया: बेशक, तुम इंसानों की मौत एक छोटी सी अवधि में होगी, जो पहले से तय और निर्धारित है, और मौत अचानक और बिना किसी पूर्व सूचना के आती है और इंसान को मार देती है, इसलिए सावधान रहो कि जो कोई भी क़यामत के दिन इबादत, सेवा और नेक कामों में हर संभव कोशिश करेगा, उसे ईर्ष्या होगी क्योंकि उसने ज़्यादा नहीं किया, और जो कोई बुरा काम और पाप करेगा, उसे पछतावा और दुःख होगा।

18- नमाज़े शब

قالَ (علیه السلام) : إنّ الْوُصُولَ إلَی اللهِ عَزَّ وَ جَلَّ سَفَرٌ لا یُدْرَکُ إلاّ بِامْتِطاءِ اللَّیْلِ  क़ाला अलैहिस्सलामोः इन्नल वुसूला एलल्लाहे अज़्ज़ा व जल्ला सफ़रुन ला युदरको इल्ला बे इम्तेताइल लैले 

आपने फ़रमाया: बेशक, अल्लाह तआला और सर्वोच्च स्थानों तक पहुँचना एक ऐसी यात्रा है जो रात में जागकर इबादत और संतुष्टि और विभिन्न मामलों में तलाश करने के अलावा हासिल नहीं की जा सकती।

19- वाजेबात में सुस्ती

قالَ (علیه السلام) : لا یَشْغَلُکَ رِزْقٌ مَضْمُونٌ عَنْ عَمَل مَفْرُوض क़ाला अलैहिस्सलामोः ला यशग़लोका रिज़्क़ुन मज़्मूमुन अन अमलि मफ़रूज़िन

आपने फ़रमाया: ध्यान रहे कि रोज़ी की तलाश - जिसकी गारंटी अल्लाह तआला ने दी है - आपको काम और वाजिब कामो से न रोके (अर्थात, ध्यान रहे कि आप अत्यधिक खोज और काम के कारण अपने वाजेबात के संबंध में आलसी और लापरवाह न हो जाएँ)।

20- आक़े वालेदैन

قالَ (علیه السلام) : جُرْأهُ الْوَلَدِ عَلی والِدِهِ فی صِغَرِهِ تَدْعُو إلَی الْعُقُوقِ فی کِبَرِهِ क़ाला अलैहिस्सलामोः जुर्अतुल वलदे अला वालेदेहि फ़ि सिग़रेहि तदऊ एलल उक़ूक़े फ़ि केबरहि

आपने फ़रमाया: बचपन में पिता के सामने बच्चे का रोना और दुस्साहस करना, वयस्क होने पर पिता द्वारा उसके शाप और क्रोध का कारण बनेगा।

21- ज़ुहर और अस्र की नमाज़ों को मिलाना

قالَ (علیه السلام) : أجْمِعْ بَیْنَ الصَّلاتَیْنِ الظُّهْرِ وَالْعَصْرِ، تَری ما تُحِبُّ क़ाला अलैहिस्सलामोः अज्मेअ बैनस सलातैनिज़ ज़ोहरे वल अस्रे, तरा मा तोहिब्बो

आपने फ़रमाया: ज़ोहर और अस्र की नमाज़ें एक के बाद एक - जितनी जल्दी हो सके, अदा करो, जिससे गरीबी और कठिनाई दूर हो जाएगी और तुम अपने लक्ष्य तक पहुँच जाओगे।

22- सबसे नेक लोग

قالَ (علیه السلام) : أوْرَعُ النّاسِ مَنْ وَقَفَ عِنْدَ الشُّبْههِ، أعْبَدُ النّاسِ مَنْ أقامَ الْفَرائِضَ، أزْهَدُ النّاس مَنْ تَرَکَ الْحَرامَ، أشَدُّ النّاسِ اجْتِهاداً مَنْ تَرَکَ الذُّنُوبَ क़ाला अलैहिस्सलामोः औरउन नासे मन वक़फ़ा इंदश शुब्हते, आबदुन नासे मन अक़ामल फ़राएज़े, अज़हदुन नासे मन तरकल हरामे, अशद्दुन नासे इज्तेहादन मन तरकज़ ज़ोनूबे

आपने फ़रमाया: सबसे नेक इंसान वह है जो विभिन्न संदिग्ध मामलों से दूर रहता है; सबसे नेक इंसान वह है जो हर चीज़ से पहले इलाही वाजेबात का पालन करता है; सबसे तपस्वी वह व्यक्ति है जो हराम कान नहीं करता; सबसे शक्तिशाली व्यक्ति वह है जो हर परिस्थिति में हर पाप और त्रुटि का त्याग करता है।

23- पहचान नेमत है

قالَ (علیه السلام) : لا یَعْرِفُ النِّعْمَهَ إلاَّ الشّاکِرُ، وَلا یَشْکُرُ النِّعْمَهَ إلاَّ الْعارِفُ क़ाला अलैहिस्सलामोः ला यअरेफ़ुन्नेअमता इल्लश शाकेरो, वला यशकोरुन्नेअमता इल्लल आरेफ़ो

आपने फ़रमायाः कृतज्ञ के अलावा कोई भी नेमत का मूल्य नहीं जानता, और ज्ञानी के अलावा कोई भी नेमत के लिए कृतज्ञता व्यक्त नहीं कर सकता।

24- पाखंड की बुराई

قالَ (علیه السلام) : بِئْسَ الْعَبْدُ عَبْدٌ یَکُونُ ذا وَجْهَیْنِ وَ ذالِسانَیْنِ، یَطْری أخاهُ شاهِداً وَ یَأکُلُهُ غائِباً، إنْ أُعْطِیَ حَسَدَهُ، وَ إنْ ابْتُلِیَ خَذَلَهُ क़ाला अलैहिस्सलामोः बेसल अब्दो अब्दुन यकूनो ज़ा वज्हैने व ज़ा लेसातैने, यतरा अख़ाहो शाहेदन व याकोलोहू ग़ाएबन, इन ओतेया हसदहू, व इब्तला ख़ज़लहू

आपने फ़रमाया: एक बुरा व्यक्ति वह है जिसके दो चेहरे और दो ज़बानें हों; वह अपने दोस्तों और भाइयों की उपस्थिति में प्रशंसा और महिमा करता है, लेकिन उनकी अनुपस्थिति में और उनकी पीठ पीछे, निंदा करता है, जो शरीर का मांस खाने के समान है।

25- विनम्रता की निशानी

قالَ (علیه السلام) : مِنَ التَّواضُعِ السَّلامُ عَلی کُلِّ مَنْ تَمُرُّ بِهِ، وَ الْجُلُوسُ دُونَ شَرَفِ الْمَجْلِسِ क़ाला अलैहिस्सलामोः मिनत तवाज़ेइस सलामो अला कुल्ले मन तमोर्रो बेहि, वल जुलूसो दूना शरफ़िल मजलिसे

इमाम (अ) ने फ़रमाया: विनम्रता की एक निशानी यह है कि आप जिस किसी से भी मिलें, उसका अभिवादन करें और सभा में प्रवेश करते समय जहाँ भी हों, वहीं बैठ जाएँ - दूसरों को अपने लिए रास्ता खोलने के लिए मजबूर न करें।

26- जेदाल की बुराई

قالَ (علیه السلام) : لا تُمارِ فَیَذْهَبُ بَهاؤُکَ، وَ لا تُمازِحْ فَیُجْتَرَأُ عَلَیْکَ क़ाला अलैहिस्सलामोः ला तोमारे फ़यज़्हबो बहाओका, वला तोमाज़ेहो फ़युज्तरओ अलैका

इमाम (अ) ने फ़रमाया: ऐसी किसी भी बहस या विवाद में न पड़ो जिससे तुम्हारी गरिमा कम हो जाए, अनुचित या अनावश्यक मज़ाक या हंसी-मज़ाक न करो, वरना लोग तुमसे नाराज़ हो जाएँगे।

27- औलिया ए इलाही की आज्ञाकारिता को प्राथमिकता देना

قالَ (علیه السلام) : مَنْ آثَرَ طاعَهَ أبَوَیْ دینِهِ مُحَمَّد وَ عَلیٍّ عَلَیْهِمَاالسَّلام عَلی طاعَهِ أبَوَیْ نَسَبِهِ، قالَ اللهُ عَزَّ وَ جَلَّ لِهُ: لاَُؤَ ثِرَنَّکَ کَما آثَرْتَنی، وَلاَُشَرِّفَنَّکَ بِحَضْرَهِ أبَوَیْ دینِکَ کَما شَرَّفْتَ نَفسَکَ بِإیثارِ حُبِّهِما عَلی حُبِّ أبَوَیْ نَسَبِکَ क़ाला अलैहिस्सलामोः मन आसरा ताअता अबवय दीनेहि मुहम्मदिन व अलीयिन अलैहेमस्सलामो अला ताआते अबवय नसबेहि, क़ालल्लाहो अज़्ज़ा व जल्ला लहूः लेऊसेरन्नका कमा आसरतनी, वला ओशर्रेफ़न्नका बेहज़्रेहि अबवय दीनेका कमा शर्रफ़ता नफ़सका बेइसारे हुब्बेहेमा अला हुब्बे अबवय नसबेका

इमाम (अ) ने फ़रमाया: जो कोई भी अपने भौतिक माता-पिता का अनुसरण करने की अपेक्षा पैगम्बर मुहम्मद (स) और अमीरुल मोमेनीन इमाम अली (अ) की आज्ञाकारिता और अनुसरण को प्राथमिकता देता है, अल्लाह उसे आशीर्वाद दे और उसे शांति प्रदान करे, अल्लाह तआला उसे संबोधित करता हैं: जिस प्रकार तुमने मेरे आदेशों को हर चीज़ पर प्राथमिकता दी, उसी प्रकार मैं तुम्हें दान और आशीर्वाद में प्राथमिकता देता हूँ, और मैं तुम्हें धार्मिक माता-पिता, अर्थात् हज़रत रसूल और इमाम अली (अ) का साथी बनाता हूँ, उसी प्रकार जैसे कि रुचि और प्रेम - व्यावहारिक और धार्मिक। उन्होंने खुद को हर चीज़ से पहले रखा।

28- बे अदब की निशानी

قالَ (علیه السلام) : لَیْسَ مِنَ الاْدَبِ إظْهارُ الْفَرَحِ عِنْدَ الْمَحْزُونِ क़ाला अलैहिस्सलामोः लैसा मिनल अदबे इज़्हारुल फ़रहे इंदल महज़ूने

आप (अ) ने फ़रमाया: किसी पीड़ित और दुखी व्यक्ति की उपस्थिति में ख़ुशी और आनंद व्यक्त करना शिष्टाचार और मानवीय तथा इस्लामी नैतिकता नही है।

29- दूसरों के हुक़ूक़ पहचानना

قالَ (علیه السلام) : أعْرَفُ النّاسِ بِحُقُوقِ إخْوانِهِ، وَأشَدُّهُمْ قَضاءً لَها، أعْظَمُهُمْ عِنْدَاللهِ شَأناً क़ाला अलैहिस्सलामोः आरफ़ुन्नासे बेहुक़ूक़े इख़वानेहि, व अशद्दोहुम क़ज़ाअन लहा, आज़मोहुम इंदल्लाहे शानन

इमाम (अ) ने फ़रमाया: जो कोई अपने ही लोगों के अधिकारों को पहचानता और उनका सम्मान करता है और उनकी कठिनाइयों और ज़रूरतों को दूर करता है, उसे अल्लाह के यहाँ महानता और एक विशेष अवसर प्राप्त होगा।

30- इमाम का सम्मान

قالَ (علیه السلام) : اِتَّقُوا اللهُ وَ کُونُوا زَیْناً وَ لا تَکُونُوا شَیْناً، جُرُّوا إلَیْنا کُلَّ مَوَّدَه، وَ اَدْفَعُوا عَنّا کُلُّ قَبیح، فَإنَّهُ ما قیلَ فینا مِنْ حُسْن فَنَحْنُ أهْلُهُ، وَ ما قیلَ فینا مِنْ سُوء فَما نَحْنُ کَذلِکَ  क़ाला अलैहिस्सलामोः इत्तक़ुल्लाहो व कूनू जैनन वला तकूनू शयनन, जुर्रू इलैना कुल्ला मव्वदा, अदफ़ऊ अन्ना कुल्लो क़बीह, फ़इन्नहू मा क़ीला फ़ीना मिन हुस्ने फ़नहनो अहलोहू, व मा क़ीला फ़ीना मिन शूइन फ़मा नहनो कज़ालेका

आपने फ़रमाया: हर मामले में अल्लाह के तक़वा का सम्मान करो, और ज़ीनत बनो, और न ही शर्म का कारण बनो, लोगों को मेरे प्रेम और रुचि की ओर आकर्षित करने की कोशिश करो, और बुरी चीज़ों को मुझसे दूर रखो; वे हमारे गुणों के बारे में जो कुछ कहते हैं वह सही है और हम हर प्रकार के दोषों से मुक्त होंगे।

31- धर्मी विद्वान

قالَ (علیه السلام) : یَأتی عُلَماءُ شیعَتِنَاالْقَوّامُونَ لِضُعَفاءِ مُحِبّینا وَ أهْلِ وِلایَتِنا یَوْمَ الْقِیامَهِ، وَالاْنْوارُ تَسْطَعُ مِنْ تیجانِهِمْ عَلی رَأسِ کُلِّ واحِد مِنْهُمْ تاجُ بَهاء، قَدِ انْبَثَّتْ تِلْکَ الاْنْوارُ فی عَرَصاتِ الْقِیامَهِ وَ دُورِها مَسیرَهَ ثَلاثِمِائَهِ ألْفِ سَنَه क़ाला अलैहिस्सलामोः याती उलामाओ शीअतेनल कव्वामूना लेज़ोअफ़ाए मोहिब्बीना व अहले विलायतेना यौमल क़यामते, वल अनवारो तस्तओ मिन तीजानेहिम अला रासे कुल्ले वाहेदिन मिनहुम ताजो बहाए, क़दिन बस्सत तिलकल अनवारो फ़ी अरसातिल क़यामते व दूरेहा मसीरहा सलासेमेअते अलफ़े सनातिन 

इमाम (अ) ने फ़रमाया: वे शिया विद्वान और विद्वान जिन्होंने मार्गदर्शन और कठिनाइयों के निवारण के लिए मेरे मित्रों और समर्थकों की तलाश की है, क़यामत के दिन महशर रेगिस्तान में ऐसी स्थिति में प्रवेश करेंगे कि उनके सिरों पर सम्मान का मुकुट रखा जाएगा और प्रकाश पूरे स्थान को प्रकाशित करेगा और महशर के सभी लोग उस प्रकाश से लाभान्वित होंगे।

स्रोत:
1-उसूले काफ़ी,  भाग 1, पेज 519, हदीस 11

2- हदीक़ा तुश शिया, भाग 2, पेज 194, वाफ़, भाग 4, पेज 177, हदीस 42

3- मुस्तद्रिक अल-वसाइल, भाग 11, पेज 183, हदीस 12690

4- तोहफ़ उल उक़ूल, पेज 489, पेज 13, बिहार उल अनवार, भाग  75, पेज 374, हदीस 26,  अग्तान तबरसी: भाग 2, पेज 517, हदीस 340

5- तफसीर इमाम हसन अस्करी (स), पेज 345, हदीस 226

हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम का एक काम महामुक्तिदाता इमाम मेंहदी अलैहिस्सलाम की ग़ैबत के काल से मोमिनीन को अवगत करना और यह बताना था कि ग़ैबत अर्थात नज़रों से ओझल होना।

हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम का एक काम महामुक्तिदाता इमाम मेंहदी अलैहिस्सलाम की ग़ैबत के काल से मोमिनीन को अवगत करना और यह बताना था कि ग़ैबत अर्थात नज़रों से ओझल होना किस प्रकार का होगा।

इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम के 11वें उत्तराधिकारी हैं उनका जन्म 232 हिजरी क़मरी में हुआ था उनके पिता मुसलमानों के 10वें इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम और उनकी माता का नाम हदीसा था।

इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की सबसे प्रसिद्ध उपाधि हादी थी। इमाम हादी अलैहिस्सलाम को समय के अत्याचारी शासक बनी अब्बास ने शहीद करवा दिया था और उनकी शहादत के बाद लोगों के मार्गदर्शन का ईश्वरीय दायित्व 11वें इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने संभाला।

इस्लामी रिवायतों के अनुसार इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम का एक कार्य इमाम ज़मान अलैहिस्सलाम की ग़ैबत के संबंध में मोमिनों के मध्य भूमि प्रशस्त करना था और मोमिनों को यह बताना व समझाना था कि इमाम मेंहदी अलैहिस्सलाम की ग़ैबत किस प्रकार की होगी।

इमाम महदी अलैहिस्सलाम की फ़ज़ीलत और उनकी पहचान के संबंध में बहुत हदीसें हैं जिनका स्रोत महान ईश्वर है परंतु इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम द्वारा इस बात पर बल दिये जाने का महत्वपूर्ण व उल्लेखनीय महत्व है।

मूसवी बग़दादी कहते हैं कि मैंने इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम से सुना है कि वह फ़रमाते थे कि आगाह व सावधान रहो कि जो पैग़म्बरे इस्लाम के बाद के इमामों को क़बूल करे परंतु वह इमाम मेहदी का इंकार करे तो वह उस व्यक्ति की भांति है जो समस्त ईश्वरीय पैग़म्बरों और उसके रसूलों को मानता हो परंतु पैग़म्बरे इस्लाम की नबुअत का इंकार कर दे इमाम मेंहदी के लिए ऐसी ग़ैबत है जिसके बारे में लोग संदेह करेंगे मगर वह जिसकी रक्षा अल्लाह करे।

अली बिन हमाम भी मोहम्मद बिन उस्मान अम्री से और वह अपने पिता से रिवायत करते हैं कि मैं इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के पास बैठा हुआ था कि उनसे उस रिवायत के बारे में सुना जो उनके पूर्वजों से सुनी गयी थी जिसमें कहा गया था कि ज़मीन प्रलय तक हुज्जते ख़ुदा अर्थात अल्लाह के प्रतिनिधि से ख़ाली नहीं होगी और अगर कोई मर जाये और अपने ज़माने के इमाम को न पहचाने तो वह अज्ञानता की मौत मरता है।

इमाम ने इस हदीस का अर्थ बयान करते हुए फ़रमाया यह हक़ और सही बात है। यह बात रोज़े रौशन की तरह हक़ीक़त रखती है। इसके बाद लोगों ने इमाम से पूछा हे पैग़म्बरे इस्लाम के बेटे! आपके बाद कौन इमाम है?

इमाम ने फ़रमाया मेरा बेटा मोहम्मद (महदी) वह मेरे बाद इमाम है जो मर जाये और उसे न पहचाने वह अज्ञानता की मौत मरता है।

जान लो कि उसके लिए ग़ैबत है कि नादान व नासमझ लोग उससे विमुख हो जायेंगे और गुमराह लोग हलाक व बर्बाद हो जायेंगे और जो भी उसके ज़ुहूर के लिए नियत समय की बात करे वह झूठा है। महदी लोगों की मुक्ति के लिए अंतिम समय में आयेगा उसका ध्वज सफ़ेद होगा जो उसके सिर पर कूफ़ा और नजफ़ में लहरायेगा।

 लेबनान के हिज़्बुल्लाह के उप महासचिव शेख़ नईम कासिम ने यमन के प्रधानमंत्री और मंत्रियों की शहादत पर शोक संदेश में कहा कि ज़ायोनी सरकार का यह कायरतापूर्ण हमला उसकी विफलता और युद्ध के मैदान में मुजाहिदीन के सामने कमज़ोर पड़ने को दर्शाता है।

लेबनान के हिज़्बुल्लाह के उप महासचिव शेख़ नईम कासिम ने यमन के प्रधानमंत्री अहमद ग़ालिब अलरहवी और कई मंत्रियों की शहादत पर शोक संदेश जारी करते हुए कहा है कि ज़ायोनी सरकार का यह आपराधिक हमला उसकी पूर्ण विफलता और बर्बर व्यवहार को दर्शाता है।

उन्होंने अपने संदेश में अन्सारूल्लाह के नेता सैय्यद अब्दुल मलिक बदरुद्दीन अल-हौसी को संबोधित करते हुए कहा कि इज़राइल ने यह कायरतापूर्ण हमला इसलिए किया क्योंकि वह युद्ध के मैदान में मुजाहिद कमांडरों और सशस्त्र बलों का मुकाबला करने की शक्ति नहीं रखता।

स्पष्ट रहे कि इससे पहले यमन की उच्च राजनीतिक परिषद के अध्यक्ष मेंहदी अलमशात ने भी प्रधानमंत्री और मंत्रियों की शहादत पर संवेदना व्यक्त करते हुए स्पष्ट शब्दों में कहा था कि यमन का बदला निश्चित है।

उन्होंने दुश्मनों को चेतावनी दी कि यमन की दृढ़ता को हराया नहीं जा सकता क्योंकि हमारा भरोसा ईश्वर पर है और उसका वादा है कि विजय विश्वासियों का नसीब है।

अंसारुल्लाह के नेता अब्दुल मलिक अल-हौसी ने घोषणा की है कि यमन अपने सिद्धांतवादी और ईमानदार रुख पर कायम रहते हुए ज़ायोनी सरकार के खिलाफ सैन्य और जनता के मोर्चे पर पूरी तरह से प्रतिरोध जारी रखेगा।

सना में यमनी प्रधानमंत्री और कैबिनेट पर ज़ायोनी सरकार के हमले के बाद अंसारुल्लाह के नेता सैय्यद अब्दुल मलिक बदरुद्दीन अल-हौसी ने अपने संबोधन में कहा कि इजरायली हमलों के बावजूद यमन अपने सिद्धांतवादी और ईमानदार रुख पर कायम रहेगा।

हम दुश्मन के मुकाबले में अपना रुख बनाए रखते हुए कार्रवाइयों का सिलसिला जारी रखेंगे। हम इस पवित्र जंग में दाखिल हो चुके हैं जो दुश्मन ज़ायोनी के खिलाफ है; ऐसा दुश्मन जो न सिर्फ मुस्लिम उम्माह बल्कि पूरी इंसानियत और मानवता के लिए खतरा है।

अलहौसी ने कहा कि हम दुश्मन के खिलाफ सभी मोर्चों पर डट कर खड़े हैं। हमारे बहादुर पुरुष, महिलाएं और बच्चे ईमान और इरादे के साथ इस महान जंग में शामिल हैं और लगातार सक्रिय हैं; चाहे वह बड़े पैमाने पर जुलूस और प्रदर्शन हों या फिर बौद्धिक और सामाजिक गतिविधियां। हमारे लोगों की यह हरकत समझदारी और जागरूकता पर आधारित है और दुश्मन का कोई भी खतरा या कार्रवाई उनके संकल्प को कमजोर नहीं कर सकती।

उन्होंने कहा कि यमनी राष्ट्र अल्लाह तआला के वादे पर ईमान रखते हुए खुदा की राह में स्थिरता का मुज़ाहरा कर रहा है। इस रास्ते में हम सब्र और स्थिरता से काम लेंगे क्योंकि अल्लाह सब्र करने वालों को पसंद करता है।

अंसारुल्लाह के नेता ने कहा कि देश की सुरक्षा एजेंसियों ने व्यापक कोशिशों के ज़रिए आंतरिक मोर्चे की बेहतरी में अहम कामयाबियां हासिल की हैं और यह सिलसिला पूरी जनता और राष्ट्रीय समर्थन के साथ जारी है।

यमनी राष्ट्र ने कबायली राष्ट्रीय घोषणापत्र पर दस्तखत, दुश्मनों के खिलाफ प्रदर्शनों में शिरकत और कबायली जमावड़ों के आयोजन के ज़रिए अपनी सुरक्षा एजेंसियों और उनकी ज़िम्मेदारियों की भरपूर हिमायत का एलान किया है। किसी भी स्तर पर, राजनीतिक या गैर-राजनीतिक, कोई भी गद्दारी क़बूल नहीं है।

यमनी राष्ट्र चौकन्नेपन के साथ हर उस साजिश के मुकाबले में खड़ा है जो ज़ायोनी दुश्मन से सहयोग या उसकी स्कीमों और जुर्मों को अंजाम देने के लिए की जाती हो। जो भी शख्स दुश्मन की खिदमत करे, वह असल मायनों में गद्दार है और आम लोग ऐसी गद्दारी पर खामोशी या सब्र नहीं दिखाएंगे।

उन्होंने कहा कि यमनी राष्ट्र का रुख एक है और कुरान करीम, शरीयत इस्लामिया और उससे लिए गए कानूनों की बुनियाद पर दुश्मन के मुकाबले में स्थिरता इख्तियार करती है।

अंसारुल्लाह के नेता ने आगे कहा कि यमन की सुरक्षा एजेंसियां कामयाबी के साथ अपनी ज़िम्मेदारियां अदा कर रही हैं। यह सिलसिला आने वाले दिनों में भी जारी रहेगा। यह कामयाबियां ज़ायोनी दुश्मन के जुर्मों को नाकाम बनाने में बड़ी भूमिका अदा कर रही हैं, चाहे वह यमनी राष्ट्र के खिलाफ हों या सरकारी और जनता की संस्थाओं के खिलाफ।

उन्होंने कहा कि दुश्मनों के दबाव और हमलों के बावजूद यमनी मिल्लत का रुख स्थिर और मजबूत है। अल्लाह के वादे पर पूरा भरोसा ने उन्हें बड़ी कामयाबियों से हमकिनार किया है और उनके लिए ईमानी इज्जत रची है।

यमनी जनता उम्मीद के साथ अल्लाह की नस्र पर भरोसा रखते हुए, प्रतिरोध का रास्ता जारी रखेगी और कैदियों की आज़ादी, ज़ख्मियों के सेहतयाब होने और मज़लूम कौमों खासकर फिलिस्तीन की फतह के लिए दुआगो रहेगी।

सोमवार आठ रबीउल अव्वल बराबर 1 सितंबर हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम का शहादत दिवस है।

आठ रबीउल सन 260 हिजरी क़मरी को पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र हज़रत इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम इराक़ के सामर्रा शहर में शहीद कर दिए गये। उन्होंने अपनी 29 साल की ज़िन्दगी में दुश्मनों की ओर से बहुत से दुख उठाए और तत्कालीन अब्बासी शासक ‘मोतमिद’ के किराए के टट्टुओं के हाथों इराक़ के सामर्रा इलाक़े में ज़हर से शहीद हो गए।

हज़रत इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम को उनके महान पिता हज़रत इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की क़ब्र के निकट दफ़्न किया गया। इस अवसर पर हर साल इस्लामी जगत में पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों से श्रद्धा रखने वाले, हज़रत इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम का शोक मनाते हैं।

हज़रत इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम ने बहुत से शिष्यों और बुद्धिजीवियों का प्रशिक्षण किया जो अपने समय के प्रसिद्ध और महान बुद्धिजीवी बनकर सामने आए। हज़रत इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम के जीवन काल को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है।

पहला तेरह वर्षीय चरण उन्होंने पवित्र नगर मदीने में व्यतीत किया, दूसरा दस वर्षीय काल, इमामत का ईश्वरीय दायित्व संभालने के बाद सामर्रा में व्यतीत किया और तीसरा काल छह वर्षीय था जो उनकी इमामत का काल था।

उन्हें असकरी इसलिए कहा जाता है क्योंकि तत्तकालीन अब्बासी शासक ने हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम और उनके पिता हज़रत इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम को असकरिया नामक एक सैन्य क्षेत्र में रहने पर मजबूर किया था ताकि अब्बासी शासक उन पर नज़र रख सके।

यही कारण है कि हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम और इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम अस्करीयैन के नाम से भी प्रसिद्ध हैं।

पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की शहादत के अवसर पर  हौज़ा न्यूज़ अपने समस्त श्रोताओ और पाठकों के सेवा में हार्दिक संवेदना प्रस्तुत करता है।

फ़्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों द्वारा फ़िलिस्तीन को एक संप्रभु राज्य के रूप में मान्यता देने के फ़ैसले के बाद, अन्य पश्चिमी देशों ने भी इसी तरह के कदम उठाए हैं, जिससे इज़राइल और उसके सहयोगी अमेरिका नाराज़ हैं।

फ़्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों द्वारा फ़िलिस्तीन को एक संप्रभु राज्य के रूप में मान्यता देने के फ़ैसले के बाद, अन्य पश्चिमी देशों ने भी इसी तरह के कदम उठाए हैं, जिससे इज़राइल और उसके सहयोगी अमेरिका नाराज़ हैं। इस फ़ैसले ने एक बार फिर ग़ज्ज़ा में विनाशकारी युद्ध को समाप्त करने के कूटनीतिक प्रयासों के केंद्र में द्वि-राज्य समाधान को ला दिया है। पिछले हफ़्ते इज़राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को लिखे एक पत्र में, राष्ट्रपति मैक्रों ने कहा: "फ़िलिस्तीनी लोगों को अपना राज्य देने का हमारा दृढ़ संकल्प इस विश्वास पर आधारित है कि इज़राइल की सुरक्षा के लिए स्थायी शांति आवश्यक है।" मैक्रों ने आगे कहा: "फ्रांस के कूटनीतिक प्रयास ग़ज़्ज़ा में व्याप्त भयानक मानवीय संकट पर हमारे गुस्से का परिणाम हैं, जिसे उचित नहीं ठहराया जा सकता।"

न्यूज़ीलैंड, फ़िनलैंड और पुर्तगाल सहित कुछ अन्य देश भी इसी तरह के कदम पर विचार कर रहे हैं। नेतन्याहू ने फ़िलिस्तीनी राज्य का दर्जा अस्वीकार कर दिया है और ग़ज़्ज़ा में सैन्य अभियान को और तेज़ करने की योजना बना रहा हैं। इज़राइल और अमेरिका का कहना है कि फ़िलिस्तीनी राज्य को मान्यता देने से चरमपंथियों का हौसला बढ़ेगा। गौरतलब है कि ग़ज़्ज़ा स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, 7 अक्टूबर, 2023 को इज़राइल पर हमास के नेतृत्व वाले हमले के साथ शुरू हुए युद्ध में अब तक 63,000 से ज़्यादा फ़िलिस्तीनी मारे जा चुके हैं। फ़्रांस, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और माल्टा ने घोषणा की है कि वे 23 सितंबर से शुरू होने वाले संयुक्त राष्ट्र महासभा के वार्षिक सत्र के दौरान फ़िलिस्तीन को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में मान्यता देने की अपनी प्रतिबद्धता को औपचारिक रूप देंगे।

 "ग्लोबल सॉलिडैरिटी फ्लोटिला" स्पेन से खाद्य सहायता, डॉक्टरों और मानवाधिकार स्वयंसेवकों के साथ रवाना हुआ;जिसमें 44 देशों के 300 से ज़्यादा स्वयंसेवक और हज़ारों टन सहायता सामग्री थी।  4 सितंबर को ट्यूनीशिया से और नावें जुड़ेंगी।

50 से ज़्यादा नावों वाला "ग्लोबल सॉलिडैरिटी फ़्लोटिला" रविवार को स्थानीय समयानुसार दोपहर 3:30 बजे गाज़ा के लिए रवाना हुआ, जिसमें 44 देशों के 300 से ज़्यादा स्वयंसेवक और हज़ारों टन सहायता सामग्री थी। यह अब तक का सबसे बड़ा स्वतंत्रता फ़्लोटिला है और इज़राइल के ख़िलाफ़ वैश्विक जन विरोध का प्रतीक भी है। इस काफ़िले में बड़ी संख्या में डॉक्टर भी शामिल हैं जो गाज़ा की अवैध घेराबंदी को तोड़ना चाहते हैं और वहाँ घायलों के इलाज के लिए अपनी सेवाएँ देना चाहते हैं। स्पेन के बार्सिलोना बंदरगाह पर "ग्लोबल सॉलिडैरिटी फ़्लोटिला" को रवाना होते देखने के लिए हज़ारों लोग जमा हुए। दुनिया भर से 26,000 से ज़्यादा लोगों ने इस काफ़िले का हिस्सा बनने के लिए आवेदन किया है। शुरुआत में, इस काफ़िले में 50 से ज़्यादा नावें शामिल हैं, लेकिन गुरुवार को ट्यूनीशिया के तट से कई और नावें और जहाज़ इसमें शामिल होंगे।

फ़्लोटिला को विदा करने के लिए उमड़ी भीड़

फ़्लोटिला में शामिल "फ़मिलिया" नाव पर सवार पत्रकार मौरिसियो मोरालेस ने अल जज़ीरा को बताया, "यहाँ (काफिले के रवाना होने के समय) लोगों की संख्या आश्चर्यजनक थी। किसी ने भी उम्मीद नहीं की थी कि इतने सारे लोग स्वयंसेवकों को अलविदा कहने आएंगे। हमारा मनोबल ऊँचा है। इस नाव पर सवार लोग एक-दूसरे के लिए अजनबी हैं, लेकिन गाज़ा के मुद्दे में हर किसी की अपनी विशिष्ट भूमिका है।"

ग्रेटा थुनबर्ग का मीडिया को संबोधन

रवाना होने से कुछ घंटे पहले, स्वीडिश युवा कार्यकर्ता ग्रेटा थुनबर्ग और फ़्लोटिला की कई अन्य प्रमुख हस्तियों ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित किया और फ़िलिस्तीनियों के नरसंहार के लिए इज़राइल की कड़ी आलोचना की। थुनबर्ग ने कहा, "फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ इज़राइल के नरसंहार के इरादे बिल्कुल साफ़ हैं। वह फ़िलिस्तीनी लोगों का सफ़ाया करना चाहता है और गाज़ा पट्टी पर कब्ज़ा करना चाहता है।" उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय और नेताओं पर भी निशाना साधते हुए कहा कि वे "अंतर्राष्ट्रीय क़ानून लागू करने में विफल रहे हैं।"

बार्सिलोना स्थित फ़िलिस्तीनी कार्यकर्ता सैफ़ अबू काश्चेक ने फ़िलिस्तीनियों के नरसंहार की निंदा करते हुए कहा, "गाज़ा में फ़िलिस्तीनी लोग भूख से मर रहे हैं क्योंकि सरकार जानबूझकर उन्हें भूखा मार रही है।"

काफिले में कितनी नावें हैं

"ग्लोबल समूद फ़्लोटिला" स्वयंसेवकों का एक स्वतंत्र समूह है जिसका किसी भी सरकार या राजनीतिक दल से कोई संबंध नहीं है। अरबी में समूद का अर्थ "दृढ़ता" या "साहस" होता है। इसमें शामिल लोग इस तथ्य के बावजूद दृढ़ हैं कि इज़राइल ने 2010 से किसी भी "फ़्रीडम फ़्लोटिला" को गाज़ा में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी है।

रविवार को काफिले के रवाना होने के बाद अभी भी यह स्पष्ट नहीं है कि इसमें कितनी नावें हैं, लेकिन अल जज़ीरा ने बताया कि काफिले में 50 से ज़्यादा नावें और एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया है कि लगभग 100 नावें थीं।

44 देशों के नागरिक काफिले का एक हिस्सा

समुद फ्लोटिला की आयोजकों में से एक, यास्मीन अकार ने पुष्टि की कि इस काफिले में, जिसमें 44 देशों के प्रतिनिधिमंडल शामिल हैं, ग्रीस, इटली और ट्यूनीशिया के विभिन्न बंदरगाहों से आने वाली नौकाओं के साथ संख्या बढ़ेगी।

सितंबर के मध्य में ग़ज़्ज़ा पहुँचेगा

यह नौसैनिक काफिला, जिसमें कार्यकर्ता, यूरोपीय सांसद और विभिन्न देशों के प्रमुख हस्तियाँ शामिल हैं, सितंबर के मध्य तक गाजा पहुँचने की उम्मीद है। पुर्तगाल की वामपंथी सांसद मारियाना मोराटागुआ, जो इस मिशन में शामिल होंगी, ने कहा कि यह फ्लोटिला "अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत एक वैध मिशन" है।

 हज़रत इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम के शहादत दिवस की मजलिस के बाद इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने इमाम मुहम्मद तक़ी इमाम अली नक़ी और इमाम हसन अस्करी अलैहेमुस्सलाम के बारे में रिसर्च और लेखन पर ताकीद की गई हैं।

एक रिपोर्ट के अनुसार ,आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने मिंबरों और किताबों में इमाम मोहम्मद तक़ी, इमाम अली नक़ी और इमाम हसन अस्करी अलैहेमुस्सलाम के कम ज़िक्र होने पर टिप्पणी करते हुए कहा कि किसी दौर में शिया तादाद और इल्मी सतह की नज़र से इतना नहीं फैले जितना इन तीन इमामों के दौर में फैले।  

उन्होंने शनिवार को दोपहर में इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम के शहादत दिवस की मजलिस के अंत में, इस साहसी इमाम, उनके पिता और बेटे के, शिया मत के दायरे और ख़ुसूसियत के लेहाज़ से विस्तार में बेजोड़ योगदान की ओर इशारा किया और कहा कि इस्लामी इतिहास के किसी भी दौर में, शिया मत इन तीन इमामों के दौर जितना नहीं फैला।

इमाम अली नक़ी और इमाम मोहम्मद तक़ी के दौर में बग़दाद और कूफ़ा शियों के मुख्य केन्द्र बन गए और इन हस्तियों का शिया मत की शिक्षाओं के प्रचलन में बेमिसाल योगदान रहा है।  

उन्होंने इतिहास और कला के अनेक क्षेत्रों में इन इमामों की ज़िंदगी और शिक्षाओं पर प्रकाश डालने पर बल दिया और इन क्षेत्रों में इन तीनों महान इमामों का कम ज़िक्र होने पर टिप्पणी करते हुए कहा कि अफ़सोस की बात है कि इतिहास लेखन, किताब लेखन यहाँ तक कि हमारे मिंबरों पर इन तीन महान इमामों की ज़िंदगी और इनकी शिक्षाओं का कम ज़िक्र होता है, बहुत ही मुनासिब होगा कि इस क्षेत्र में रिसर्च स्कालर और कलाकार काम करें और ज़्यादा रचनाएं वजूद में आएं।  

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने ज़ियारते जामिया को अनमोल रत्न की संज्ञा दी और कहा कि अगर इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की कोशिशें न होतीं तो आज हमारे पास ज़ियारते जामिआ कबीरह न होती, इस ज़ियारत में मौजूद इल्म और अध्यात्म कि जिनकी बुनियाद क़ुरआनी आयतें और शियों की शुद्ध हक़ीक़तें हैं, इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की इल्मी गहराई और व्यापाकता का आइना हैं।   

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने एक नावेल का ज़िक्र किया जो हाल ही में उनकी नज़र से गुज़रा और जिसमें इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के एक चमत्कार का ज़िक्र था। उनका कहना था कि इस मैदान में इस अंदाज़ से बहुत कम काम हुआ है और ज़रूरत है कि इस तरह की रचनाएं ज़्यादा तादाद में सामने आएं।