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इस्राइली शासन के चैनल 12 की रिपोर्ट के अनुसार इस्राइल तेजी से यूरोपीय देशों में नशीले पदार्थों की तस्करी का मुख्य केंद्र बनता जा रहा है।

इस्राइल के टेलीविजन चैनल 12 ने एक रिपोर्ट में कहा: यूरोप में नशीले पदार्थों की मांग बढ़ने के साथ इन पदार्थों की इस्राइल से यूरोपीय देशों में तस्करी की घटना भी बढ़ गई है। पार्स टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, क़ब्ज़ा किए गए क्षेत्रों में संगठित नेटवर्क इस रास्ते से हर साल लाखों शेकेल कमाते हैं और युवा, बेरोज़गार और सेवा समाप्त कर चुके इस्राइली सैनिकों को रोजगार में शामिल करते हैं।

 रिपोर्ट के अनुसार तस्कर विदेश यात्रा, होटलों में ठहरने और प्रत्येक यात्रा के लिए हजारों शेकेल का वादा करके उन्हें लुभाते हैं, लेकिन इन आकर्षक प्रलोभनों के पीछे भयंकर जोखिम छिपे होते हैं जबकि नेटवर्क के प्रमुख तस्करी से भारी मुनाफा कमाते हैं सभी जोखिम तस्करी के शिपरों पर पड़ते हैं, जो विदेशों में पकड़े जाते हैं और कभी-कभी लंबी जेल की सजा भुगतते हैं और एक छोटे प्रलोभन के लिए भारी कीमत चुकानी पड़ती है।

 एक पेशेवर नशीले पदार्थों का तस्कर, जो कब्ज़ा किए गए क्षेत्रों के दक्षिण में शफेला क्षेत्र के एक गाँव का रहने वाला है, ने कहा कि हाल के महीनों में उसने सैकड़ों किलो नशीले पदार्थ इंग्लैंड, स्विट्ज़रलैंड, जर्मनी, चेक गणराज्य और डेनमार्क भेजे हैं और हर तस्करी अभियान के लिए उसे लगभग 8,000 शेकेल मिलते थे, जिसमें हवाई टिकट, होटल और खर्चों के लिए कुछ सौ यूरो भी शामिल थे और यह राशि यात्रा से पहले नेटवर्क के प्रमुख द्वारा उसे दी जाती थी।

 इस्राइली शासन के नेटवर्क 12 टेलीविजन की रिपोर्ट के अनुसार हाल के वर्षों में कई इस्राइली नशीले पदार्थों की तस्करी के आरोप में गिरफ्तार हुए हैं। उदाहरण के लिए "डैनियल ओका" को तुर्किये में गिरफ्तार किया गया और उसे 10 साल की जेल की सजा सुनाई गई। मार्च 2023 में "चिन एल्काइम" को फ्रांस के हवाई अड्डे पर कुछ किलो नशीले पदार्थ तस्करी की कोशिश के आरोप में गिरफ्तार किया गया।

 यूरोप में इथियोपियाई नशीले पदार्थों की मांग अपने उच्चतम ऐतिहासिक स्तर पर है। वर्तमान में कब्ज़ा किए गए क्षेत्रों में लगभग पांच बड़े व्यापारी सक्रिय हैं, जो नशीले पदार्थों को इथियोपिया से आयात कर यूरोप में तस्करी करते हैं। इस दौरान स्थानीय किसान इस पदार्थ के उत्पादन में सस्ते दामों पर प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। यूरोप में नशीले पदार्थ का एक किलो लगभग 200 यूरो में बिकता है और एक इस्राइली व्यापारी का वार्षिक मुनाफ़ा लाखों शेकेल तक पहुँच सकता है।

 नशीले पदार्थों के नेटवर्क के मालिक बेरोज़गार युवाओं और पूर्व सैनिकों के दर्जनों शिपरों को नियुक्त करते हैं और हर यात्रा के लिए 5,000 से 9,000 शेकेल की पेशकश करते हैं, जबकि यूरोपीय पासपोर्ट रखने वालों को अतिरिक्त इनाम भी मिलता है। 

 

यूरोपीय कमिशन स्टेटिस्टिक्स आफ़िस European Commission Statistics Office (यूरोस्टेट) ने एलान किया है कि मई 2025 में यूरोपीय संघ में लगभग 13.1 मिलियन लोग बेरोज़गार थे।

इस समय बेरोज़गारी पूरे यूरोप की सबसे गंभीर चुनौतियों में से एक बन गयी है। दूसरी ओर, यूरोप गहरी संरचनात्मक समस्याओं का भी सामना कर रहा है। इस महाद्वीप में ऊर्जा लागत, विशेष रूप से बिजली और गैस की कीमतों में वृद्धि, यहाँ प्रतिस्पर्धात्मक माहौल को नष्ट कर रही है।

यूरोपीय आयोग के सांख्यिकी कार्यालय (यूरोस्टेट) के अनुमानों के आधार पर, इस साल मई में यूरोपीय संघ में लगभग 13.1 मिलियन लोग बेरोज़गार थे। यह तब है जब यूरोपीय आयोग ने हाल के वर्षों में संघ में रोज़गार और सामाजिक समस्याओं से निपटने के लिए विभिन्न उपाय किए हैं, लेकिन फिर भी लाखों नौकरियां खाली पड़ी हुई हैं।

 "यूरोन्यूज़" ने हाल ही में एक रिपोर्ट में पुष्टि की कि 2025 की दूसरी तिमाही में यूरोप की आर्थिक विकास दर लगभग ठप हो गई है और आर्थिक विकास और औद्योगिक उत्पादन में तेज़ी से कमी आई है, इस मुद्दे ने इस क्षेत्र में संभावित आर्थिक तेज़ी के मुख्य रास्ते से भटकने को लेकर चिंताएं पैदा कर दी हैं।

 यूरोस्टेट की रिपोर्ट के अनुसार, चालू वर्ष जून में समाप्त हुए तिमाही में यूरोज़ोन में सीज़नली समायोजित सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में मात्र 0.1% की वृद्धि हुई है, जो प्रारंभिक अनुमान के समान है। यूरोपीय संघ के सकल घरेलू उत्पाद में भी 0.2% की वृद्धि हुई, जो पिछले अनुमानों के अनुरूप है।

 ये आंकड़े 2025 की पहली तिमाही की तुलना में यूरोप की आर्थिक विकास दर में भारी गिरावट को दर्शाते हैं, जब निर्यात में वृद्धि के कारण सकल घरेलू उत्पाद में यूरोज़ोन में 0.6% और पूरे यूरोपीय संघ में 0.5% की वृद्धि हुई थी।

 इसी बीच, 'यूरोन्यूज़' ने यूरोपीय संघ भर में आर्थिक सुधार की प्रक्रिया को असमान बताया है और लिखा है कि यूरोज़ोन की अर्थव्यवस्था ने वर्ष 2025 की दूसरी तिमाही में मुश्किल से ही वृद्धि दर्ज की है, और इस अवधि में जर्मनी और इटली की अर्थव्यवस्थाएँ सिकुड़ गई हैं।

 आँकड़ों के अनुसार, मजबूत घरेलू मांग और निवेश के परिणामस्वरूप स्पेन 0.7% की वृद्धि दर के साथ यूरोप के आर्थिक विकास का नेतृत्व कर रहा था। इसके बाद पुर्तगाल 0.6% और फ्रांस 0.3% के साथ थे।

 लेकिन यूरोज़ोन की दो प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं, जर्मनी और इटली, में आर्थिक विकास में 0.1% की कमी दर्ज की गई।

 इस चिंता को और बढ़ाने वाली बात यह है कि जून महीने में यूरोज़ोन में औद्योगिक उत्पादन में 1.3% की गिरावट आई, जिसने मई में दर्ज 1.1% की वृद्धि की प्रवृत्ति को उलट दिया और 1% की औसत गिरावट के अनुमानों को पूरा नहीं किया।

 यूरोपीय संघ में औद्योगिक उत्पादन में 1.0% की कमी आई, और संघ के सदस्य देशों में, आयरलैंड में वार्षिक आधार पर औद्योगिक उत्पादन में सबसे अधिक 11.3% की गिरावट दर्ज की गई। आयरलैंड के बाद पुर्तगाल और लिथुआनिया में औद्योगिक उत्पादन में सबसे ज्यादा गिरावट देखी गई।

 इस्लामी गणराज्य ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने सोमवार की शाम कहा: हम यूरोपियों के साथ सर्वोत्तम समाधान तक पहुँचने के लिए बातचीत करने के लिए तैयार हैं लेकिन हमें नहीं लगता कि स्नैप-बैक की धमकी को एक तलवार की तरह लहराना उपयोगी या रचनात्मक है।

इस्माईल बक़ाई ने एक जर्मन मीडिया से बातचीत में परमाणु समझौते और स्नैप-बैक को सक्रिय करने की यूरोपीय धमकियों के प्रति ईरान की स्थिति को स्पष्ट करते हुए, इस तंत्र के क्रियान्वयन को अवैध, अव्यावहारिक और हानिकारक बताया और इस बात पर ज़ोर दिया कि प्रस्ताव 2231 के पारित होने के 10 वर्ष बाद, इस्लामी गणराज्य का शांतिपूर्ण परमाणु कार्यक्रम अब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के कार्यसूची में नहीं रहना चाहिए।

 ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने यह कहते हुए कि तेहरान हमेशा परमाणु समझौते के प्रति वचनबद्ध रहा है, अमेरिका के इस अंतरराष्ट्रीय समझौते से एकतरफ़ा बाहर निकलने और यूरोपियों द्वारा अपने वचनों का पालन न करने को ईरान की प्रतिबद्धताओं में कमी का कारण बताया।

 ईरानी राजनयिक ने यूरोपियों की ओर से विश्वास बहाली की माँगों के जवाब में इसे द्विपक्षीय कार्रवाई की आवश्यकता वाला बताया और कहा: इस्लामी गणराज्य का विश्वास बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुआ है और ईरान को अधिकार है कि वह अन्य पक्षों से यह माँगे कि वे अपने विश्वसनीय होने को साबित करें।

 ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने अंत में यह भी चेतावनी दी कि यदि स्नैप-बैक हुआ तो सभी परिदृश्य संभव होंगे और परिस्थितियाँ पूरी तरह बदल जाएँगी। 

हुज्जतुल इस्लाम मुहम्मद हसन अख़्तरी ने कहा: ग़ज़्ज़ा के लोगों का दर्द हर इंसान को दुखी करता है। इस्लामी देशों के नेताओं की गंभीरता और मुसलमानों की जागरूकता से यह घेराबंदी जल्द खत्म होगी।

फिलिस्तीनी जनता की इस्लामी क्रांति के समर्थन समिति के प्रमुख हुज्जतुल इस्लाम मुहम्मद हसन अख़्तरी ने कहा: यरुशलम की आज़ादी और फ़ीलिस्तीनी लोगों के दुखों का अंत शहादत और मुसलमानों के प्रतिरोध से जल्द ही हो जाएगा। ईरान और प्रतिरोध मोर्चा इस गैर-इंसानी हालात को जारी नहीं रहने देंगे, जिसके लिए क़ब्ज़ाधारी इज़राइली सरकार जिम्मेदार है।

उन्होंने कहा: आज दुनिया के लोग गाजा में हो रहे नरसंहार के बारे में जानते हैं और इसके खिलाफ प्रतिक्रिया दे रहे हैं। अमेरिका और यूरोप के विश्वविद्यालयों में इज़राइली सरकार के खिलाफ और अमेरिकी नेताओं की इज़राइली युद्ध अपराधों में सहभागिता के विरुद्ध जो प्रदर्शन हुए, वे हज़ारों क्रांतिकारी आंदोलनों का सिर्फ एक उदाहरण हैं। लेकिन आज़ादी और मानवाधिकार के झूठे दावेदारों ने छात्रों की न्याय की माँग और आज़ादी की आवाज़ को कड़ाई से दबा दिया।

हुज्जतुल इस्लाम अख़्तरी ने कहा: आज दुनिया में इज़राइल की बच्चों को मारने वाली सरकार के खिलाफ लड़ने के लिए बहुत अच्छा माहौल है। इसलिए हमें सही जानकारी फैलाकर और इज़राइली सरकार के बुरे चेहरे को उजागर करके फ़िलिस्तीनी लोगों की आखिरी आज़ादी का रास्ता तैयार करना चाहिए। यह महत्वपूर्ण मौका आसानी से नहीं गँवाना चाहिए।

आख़िर में उन्होंने कहा: यूरोपीय देशों में से किसी ने भी क़ब्ज़ाधारी इज़रइयली सरकार के कार्यों की पूरी तरह से निंदा नहीं की है। इसलिए इस्लामी देशों के नेताओं और मुसलमानों को इन देशों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों से फ़िलिस्तीन के शोषित और संघर्षरत लोगों की मुक्ति के लिए कोई उम्मीद नहीं रखनी चाहिए। बल्कि आज़ादी का एकमात्र रास्ता प्रतिरोध, बलिदानऔर मुसलमानों की एकता है।

इराक़ के विदेश मंत्री फ़ुआद हुसैन ने फ़िलिस्तीनी लोगों के साथ पूरी एकजुटता जताते हुए कहा है कि बगदाद ग़ज़्ज़ा के पुनर्निर्माण और प्रभावित लोगों की मदद के लिए तैयार है।

इराक़ के विदेश मंत्री फ़ुआद हुसैन ने फ़िलिस्तीनी लोगों के साथ पूरी एकजुटता जताते हुए कहा है कि बगदाद ग़ज़्ज़ा के पुनर्निर्माण और प्रभावित लोगों की मदद के लिए तैयार है।

फ़ुआद हुसैन जेद्दा में इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) की आपातकालीन बैठक में शामिल हुए। बैठक को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि इराक पूरी ताकत से फिलिस्तीनी लोगों के साथ खड़ा है और गाजा में इजरायली अत्याचारों को नरसंहार और खुली आक्रामकता मानता है।

उन्होंने जोर देकर कहा कि इजरायली हमले और गैरकानूनी कार्रवाइयाँ अंतरराष्ट्रीय कानूनों और मानवाधिकारों की सीधी उल्लंघन हैं, जिनके खिलाफ तत्काल और सख्त वैश्विक प्रतिक्रिया जरूरी है। उनके अनुसार, अवैध इजरायली बस्तियों का विस्तार तनाव कम करने की हर कोशिश को विफल कर रहा है।

उन्होंने अरब और इस्लामी देशों तथा दुनिया के सभी देशों से एक साथ मिलकर काम करने का आग्रह करते हुए तुरंत युद्ध विराम, बिना किसी विलम्ब के लोगो की सहायता और संयुक्त राष्ट्र के नियमों विशेष रूप से नियम नंबर 2334 का पालन किया जाए।

उन्होंने कहा कि इराक़ फिलिस्तीनी लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार और एक स्वतंत्र राष्ट्र की स्थापना के अपने रुख पर दृढ़ता से कायम है। इराक़ गाजा के पुनर्निर्माण और पीड़ित लोगों के घावों को भरने के लिए सक्रिय भूमिका निभाने को तैयार है।

फ़ुआद हुसैन ने इस प्रतिज्ञा को दोहराया कि इराक़ अरब-इस्लामी देशों और वैश्विक समुदाय के साथ निरंतर संपर्क में रहते हुए फिलिस्तीनी लोगों के अधिकारों की रक्षा और क्षेत्र में स्थायी शांति के लिए अपने प्रयास जारी रखेगा।

हौज़ा ए इल्मिया क़ुम के उप प्रमुख ने हौज़ा ए इल्मिया की सुप्रीम काउंसिल मे "आज़ाद स्कूल" योजना के मंजूर होने और इसके परीक्षण कार्यान्वयन की घोषणा की।

हौज़ा ए इल्मिया क़ुम के उप प्रमुख हुज्जतुल इस्लाम हमीद मलकी, ने मंगलवार शाम को हौज़ा हाए इल्मिया के प्रबंधको की आयतुल्लाह आराफ़ी के साथ होने वाली एक बैठक में कहा: नई प्रबंधन टीम के आने के बाद "आज़ाद स्कूल" योजना को गंभीरता से शुरू किया गया। शिक्षकों और प्रबंधकों की कई बैठकें हुईं ताकि उनके सुझाव लिए जा सकें और सुप्रीम काउंसिल को भेजे जा सकें। इन सुझावों के आधार पर विशेषज्ञों की समीक्षा के बाद ही फैसला लिया गया।

उन्होंने आगे कहा: सुप्रीम काउंसिल ने फैसला किया कि "आज़ाद स्कूल" योजना दो साल के लिए परीक्षण के तौर पर चलाई जाएगी। हर साल के अंत में इस योजना का मूल्यांकन किया जाएगा। अगर यह सफल रही, तो इसे जारी रखा जाएगा और दो साल बाद स्थायी रूप से लागू कर दिया जाएगा। इस योजना को "2040 योजना" का नाम दिया गया है और यह कक्षा 4, 5 और 6 के छात्रों के लिए है। जो छात्र उच्च स्तर की फ़िक़्ह और उसूल ले रहे हैं, वे अपनी मर्जी से अपने शिक्षक चुन सकते हैं। उन पर कोई जबरदस्ती नहीं की जाएगी।

इस योजना के लिए एक मार्गदर्शक समिति बनाई गई है जिसकी अगुवाई हुज्जतुल इस्लाम रज़ाई कर रहे हैं। अब तक इसकी तीन बैठकें हो चुकी हैं। दूसरी बैठक में योजना में कुछ बदलाव किए गए, जैसे कि चौथी कक्षा को इस योजना से हटा दिया गया क्योंकि चौथी कक्षा के छात्रों को पहले से ही कुछ मुश्किलें आ रही थीं।

हुज्जतुल इस्लाम हमीद मलकी ने कहा जो शिक्षक अपने स्कूलों में फ़िक़्ह और उसूल पढ़ा रहे हैं, वे "आज़ाद स्कूल" में भी पढ़ा सकते हैं। साथ ही, छात्र भी स्थानांतरण या अतिथि के रूप में इस स्कूल में भाग ले सकते हैं। ट्रांसफर की स्थिति में छात्र का पूरा रिकॉर्ड और आईडी नए स्कूल में स्थानांतरित हो जाएगी।अतिथि की स्थिति में छात्र का रिकॉर्ड और लाभ मूल स्कूल में रहेंगे। "आज़ाद स्कूल" में छात्रों की उपस्थिति और गतिविधियों की पूरी निगरानी इस स्कूल के प्रबंधक की जिम्मेदारी होगी।

उन्होंने कहा: इस योजना में स्कूल प्रबंधकों की भूमिका छात्रों का समर्थन और मार्गदर्शन करना है। प्रबंधकों को चाहिए कि वे छात्रों को आज़ादी से चुनाव करने दें, उन्हें सलाह और राह दिखाएँ, और साथ ही शिक्षण की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए निगरानी भी रखें। इस योजना का मुख्य उद्देश्य एक ऐसा माहौल बनाना है जहाँ  छात्रों को चुनाव की आज़ादी मिले साथ ही समझदारी से निगरानी भी हो शिक्षा का स्तर ऊँचा बना रहे।

हौज़ा ए इल्मिया क़ुम के उप प्रमुख ने बताया: "आज़ाद स्कूल" योजना छात्रों की चुनाव की आज़ादी और शिक्षकों के लिए स्कूली बंदिशों से बाहर पढ़ाने की सुविधा पर आधारित है। इसका मकसद यह है कि सभी छात्र, यहाँ तक कि जिनके पास किसी खास शिक्षक तक पहुँच नहीं है, वे भी शैक्षिक संसाधनों का लाभ उठा सकें।

गाज़ा में नासिर मेडिकल कॉम्प्लेक्स पर ज़ायोनी हमले के परिणामस्वरूप शहीद हुए पत्रकारों की संख्या बढ़कर 6 हो गई है। इन पत्रकारों को तब निशाना बनाया गया जब वे बमबारी की पहली लहर की रिपोर्टिंग कर रहे थे।

गाज़ा में नासिर मेडिकल कॉम्प्लेक्स पर ज़ायोनी हमले के परिणामसरूप शहीद हुए पत्रकारों की संख्या बढ़कर 6 हो गई है। इन पत्रकारों को तब निशाना बनाया गया जब वे बमबारी की पहली लहर की रिपोर्टिंग कर रहे थे।

फिलिस्तीनी सरकार के मीडिया कार्यालय के अनुसार, अख़बार अलहयात अलजदीदा के पत्रकार हसन दोहान को कब्ज़े वाली सेना ने सीधे निशाना बनाया, जिसके बाद पत्रकारों की कुल शहादतों की संख्या युद्ध की शुरुआत से अब तक 246 तक पहुँच गई है।

इससे पहले इस्राइली हवाई हमले में पाँच अन्य पत्रकार शहीद हुए थे जिनमें शामिल हैं:

मोहम्मद सलामा (अलजज़ीरा के कैमरामैन)

हुसाम अलमिस्री (रॉयटर्स के पत्रकार)

मरियम अबू दक़ा (स्वतंत्र पत्रकार)

मुआज़ अबू ताह (ग्राउंड रिपोर्टर)

अहमद अबू अज़ीज़ (जो घायल होने के बाद शहीद हुए)

यह हमला दो चरणों में किया गया। पहले इमारत अल-यासीन की चौथी मंजिल को निशाना बनाया गया जिसमें कई मरीज़ और नागरिक शहीद या घायल हुए। इसके बाद जब पत्रकार और राहतकर्मी घटनास्थल पर पहुँचे तो इस्राइल ने दोबारा बमबारी की।

फिलिस्तीनी सरकार के मीडिया कार्यालय ने इस दुर्घटना को "पत्रकारों की सुनियोजित और जानबूझकर हत्या" करार देते हुए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से तत्काल प्रतिक्रिया की अपील की है। बयान में कहा गया कि अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस भी इस्राइली अपराधों में सहभागी और जिम्मेदार हैं।

कार्यालय ने अंतर्राष्ट्रीय पत्रकार संगठनों और मीडिया संस्थानों से माँग की कि वे इस्राइली अत्याचारों की खुलकर निंदा करें और अंतर्राष्ट्रीय अदालतों में इसके अपराधियों का संज्ञान सुनिश्चित करें। साथ ही अंतर्राष्ट्रीय समुदाय पर जोर दिया गया कि नरसंहार को रोका जाए और पत्रकारों को निशाना बनने से बचाया जाए।

समाज तभी मज़बूत और शांतिपूर्ण होगा जब शादी को प्यार, सम्मान और सुकून का रिश्ता समझा जाए, न कि अत्याचार और शोषण का साधन। इस्लाम का संदेश बिल्कुल स्पष्ट है,शादी प्यार और रहमत का रिश्ता है, ज़ुल्म और जबरदस्ती का नहीं।

महिलाएं किसी भी समाज की बुनियादी स्तंभ और पारिवारिक व्यवस्था की आधार होती हैं। शादी के बाद उनकी जिम्मेदारियां बढ़ जाती हैं और वे परिवार की शांति, परवरिश और पीढ़ियों के पालन-पोषण की जिम्मेदार बन जाती हैं।

लेकिन भारत जैसे बड़े लोकतांत्रिक देश में आज भी लाखों शादीशुदा महिलाएं घरेलू हिंसा, दहेज की मांग, मारपीट, मानसिक प्रताड़ना और यौन उत्पीड़न का शिकार हैं।

यह न केवल मानवाधिकारों का उल्लंघन है बल्कि सामाजिक संतुलन को बिगाड़ने वाला एक गंभीर संकट है जिसके परिणामस्वरूप परिवार टूटते हैं, महिलाएं आत्महत्या को मजबूर होती हैं और बच्चे वंचिताओं का शिकार रहते हैं।

घरेलू हिंसा और कानून

भारत में घरेलू हिंसा विभिन्न रूपों में प्रकट होती है जैसे दहेज की मांग, शारीरिक उत्पीड़न, मौखिक गालियां, वित्तीय शोषण और यौन जबरदस्ती। सरकार ने इस समस्या के समाधान के लिए कई कानून बनाए हैं जिनमें घरेलू हिंसा अधिनियम 2005, दहेज निषेध अधिनियम 1961 और आईपीसी की धारा 498A शामिल हैं।

हालांकि यह कानून कागज पर महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करते हैं, लेकिन व्यावहारिक रूप से प्रभावी साबित नहीं हुए हैं क्योंकि ज्यादातर महिलाएं सामाजिक दबाव या अज्ञानता के कारण शिकायत दर्ज नहीं कराती हैं, और अक्सर मामले न्याय के बजाय समझौते या दबाव में खत्म कर दिए जाते हैं।

इस्लामी दृष्टिकोण

इस्लाम ने महिला को अतुलनीय सम्मान, गरिमा और सुरक्षा दी है। कुरान कहता है,और उनके साथ अच्छे तरीके से रहो" यानी पत्नियों के साथ अच्छा व्यवहार करो। पैगंबर मुहम्मद (स.अ.व.) ने फरमाया,तुम में सबसे अच्छा वह है जो अपनी पत्नी के लिए सबसे अच्छा हो।

इस्लाम के अनुसार शादी मन की शांति, इज्जत की हिफाजत, नस्ल की निरंतरता और धर्म की पूर्ति का साधन है। इसलिए महिला पर अत्याचार और हिंसा न केवल नैतिक पतन है बल्कि एक गंभीर पाप भी है। दुर्भाग्य से भारतीय समाज में शादी के इस पवित्र रिश्ते को दहेज और घरेलू अत्याचारों ने विकृत कर दिया है।

सुझाव और निष्कर्ष

भारत में महिलाओं की सुरक्षा के लिए जरूरी है कि दहेज विरोधी कानूनों को सख्ती से लागू किया जाए, घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं के लिए हर जिले में संरक्षण केंद्र स्थापित किए जाएं, शादीशुदा महिलाओं की शिक्षा और कौशल को बढ़ावा दिया जाए और सामाजिक जागरूकता अभियान चलाए जाएं।

सरकार को एक पारदर्शी डिजिटल प्रणाली भी स्थापित करनी चाहिए ताकि महिलाओं की समस्याओं का प्रभावी समाधान निकाला जा सके। नतीजतन, समाज तभी मजबूत और शांतिपूर्ण होगा जब शादी को प्यार, सम्मान और सुकून का रिश्ता समझा जाए, न कि अत्याचार और शोषण का साधन। इस्लाम का संदेश बिल्कुल स्पष्ट है शादी प्यार और रहमत का रिश्ता है, ज़ुल्म और जबरदस्ती का नहीं।

मुसलमान घरानों में एक दूसरे से जुड़ी हुई और आपस में एक दूसरे को हक़ और सब्र की नसीहत करने वाली ‎इकाई मौजूद है। क़ुरआन कहता है कि ऐ ईमान वालो! अपने आपको और अपने परिवार के लोगों को जहन्नम की ‎उस आग से बचाओ जिसका ईंधन आदमी और पत्थर हैं।

हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने फरमाया,मुसलमान घरानों में एक दूसरे से जुड़ी हुई और आपस में एक दूसरे को हक़ और सब्र की नसीहत करने वाली ‎इकाई मौजूद है। क़ुरआन कहता है कि ऐ ईमान वालो! अपने आपको और अपने परिवार के लोगों को जहन्नम की ‎उस आग से बचाओ जिसका ईंधन आदमी और पत्थर हैं। (सूरए तहरीम, आयत-6)

अपनी भी हिफ़ाज़त कीजिए और अपने परिवार के ‎लोगों की भी। यह ख़ेताब मर्दों और औरतों दोनों से है। यहाँ हर इंसान के परिवार और रिश्तेदार मुराद हैं।‏

‏आप ‎ख़ुद को भी आग का ईंधन बनने से बचाए और अपने परिवार को भी आग में डाले जाने से बचाइए। इसके ‎अलावा ख़ानदान के अंदर मौजूद उसके बुनियादी सुतूनों की हिफ़ाज़त ख़ुद इंसान की हिफ़ाज़त में भी मददगार ‎साबित हो सकती है।
मियां बीवी एक दूसरे को, औरतें, मर्दों को और मर्द, औरतों को जहन्नम में जाने से बचा ‎सकते हैं और जन्नत में पहुंचा सकते हैं।

इंसान स्वभाविक रूप से अपने आप से और अल्लाह से प्यार करता है और जीवन का मकसद इसी इलाही प्यार को ज़ाहिर करना है। जो शख़्स अपनी ज़िंदगी में अल्लाह से दोस्ती बढ़ाना चाहता है, वह दरअसल कमाल की तरफ बढ़ रहा है। इस मकसद को हासिल करने का सबसे आसान और असरदार तरीका यह है कि आशिक़ाना नीयत और ईमान के साथ ज़्यादा से ज़्यादा दुरूद भेजी जाए।

मरहूम आयतुल्लाह बहजत ने अपने एक दरस-ए-ख़ारिज के दौरान "कमाल-ए-इलाही तक पहुँचने के असरदार तरीकों" के बारे में बात करते हुए फ़रमाया:

इंसान अपनी ज़ात को स्वभाविक तौर से प्यार करता है और यही मख़्लूक अपने ख़ालिक की महबूब भी है। अंततः, इंसान को ऐसा अमल करना चाहिए जिससे यह मोहब्बत-ए-इलाही ज़ाहिर और आज़ाद हो।

ज़िंदगी के सफ़र और विविध गतिविधियों में अगर मकसद यह हो कि बंदा अपने और अल्लाह के दरमियान मोहब्बत को बढ़ाए तो वह हक़ीक़तन कमाल की तरफ रवाँ दवाँ है।

मेरी नज़र में, इस राह में सबसे आसान और सबसे प्रभावशाली अमल, "कसरत से सलवात भेजना" है, वह भी ऐसी नीयत के साथ जो सरासर इश्क़ और इख़लास पर आधारित हो।

जब बंदा मोहब्बत और इख़लास से सलवात भेजता है तो वह महसूस करता है कि किस तरह यह मोहब्बत परवान चढ़ती है और हक़ीकत बन कर जलवा-गर होती है।

हालांकि इस राह में अस्ल और बुनियाद ईमान और यक़ीन पर साबित-क़दम रहना है।