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अफगानिस्तान के कुनार प्रांत में देर रात आए भीषण भूकंप ने तबाही मचा दी। रिपोर्टों के अनुसार अब तक 600 लोगों की मौत हो चुकी है और एक हज़ार से अधिक लोग घायल हुए हैं।

अफगानिस्तान के कुनार प्रांत में देर रात आए भीषण भूकंप ने तबाही मचा दी। प्रारंभिक रिपोर्टों के अनुसार अब तक 600 लोगों की मौत हो चुकी है और एक हज़ार से अधिक लोग घायल हुए हैं।

भूकंप का केंद्र जलालाबाद शहर से 8 किलोमीटर भूगर्भ में था, जिसकी तीव्रता 6 रिकॉर्ड की गई। भूकंप के बाद पांच और झटके (आफ्टरशॉक) भी महसूस किए गए, जिनकी तीव्रता 4.3 से 5.2 के बीच रही।

प्राकृतिक आपदाओं से निपटने वाली अफगान एजेंसी ने बताया कि सबसे अधिक जानहानि नूरगल, सुवाकी, वाटापुर, मनोगी और चपा दर्रा जिलों में हुई, जहां कई गांव पूरी तरह से मलबे में दब गए हैं। आशंका जताई जा रही है कि अभी भी सैकड़ों लोग मलबे में फंसे हुए हैं।

बचाव कार्य जारी है और रक्षा, आंतरिक मामलों और स्वास्थ्य मंत्रालयों की टीमें मौके पर पहुंच चुकी हैं। हेलीकॉप्टरों के जरिए घायलों को नंगरहार क्षेत्रीय अस्पताल पहुंचाया जा रहा है।

अफगानिस्तान की इस्लामी अमीरात के प्रवक्ता ज़बीहुल्लाह मुजाहिद ने सभी अधिकारियों को निर्देश दिया है कि पीड़ितों की जान बचाने के लिए अपनी पूरी क्षमता का इस्तेमाल करें।

भूकंप के झटके नंगरहार, लगमान, काबुल और खैबर पख्तूनख्वा के कुछ इलाकों में भी महसूस किए गए।

8 रबीउल अव्वल सन 260 हिजरी क़मरी को इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम की शहादत हुई थी आपकी क़ब्र इराक़ के सामर्रा नगर में है। 

8 रबीउल अव्वल सन 260 हिजरी क़मरी को इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम की शहादत हुई थी आपकी क़ब्र इराक़ के सामर्रा नगर में है। 

इमाम हसन असकरी की शहादत के दुखद अवसर पर कल रात से ईरान में शोक सभाओं का क्रम जारी है वक्ता और धर्मगुरू इस संबन्ध में अपने प्रवचनों को इमाम की विशेषताएं एवं उनके बलिदान का उल्लेख कर रहे हैं। 

मजलिसों के साथ ही साथ मातम और सीनाज़नी की जा रही है।  हर ओर शोक का समा बंधा हुआ है ईरान के धार्मिक नगरों मशहद और क़ुम में श्रद्धाुलओं की संख्या बहुत अधिक है जो इमाम की शहादत मनाने के लिए ईरान के विभिन्न नगरों से वहां पहुंचे हैं।  

इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने मात्र 6 वर्षों तक इमामत की थी। आठ रबीउल अव्वल सन 260 हिजरी कमरी को अब्बासी खलीफा ने ज़हर दिलवा कर आपको शहीद कर दिया। उस समय इमाम की उम्र मात्र 28 साल थी। उस दिन पूरा इस्लामी जगत विशेषकर सामर्रा शोक में डूब गया। 

इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के पार्थिव शरीर को उसी घर में अपने पिता की समाधि के बगल में दफ्न कर दिया गया जिसमें आपको नज़रबंद करके रखा गया था।

कर्बला में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आन्दोलन पर दृष्टि डालने से ज्ञात होता है कि यह न तो दस दिन के भीतर लिए गए किसी अचानक निर्णय का परिणाम था और न ही इसकी योजना यज़ीद के शासन को देखकर तैयार की गई थी।  पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वआलेही वसल्लम के जीवन में ही इस स्थिति का अनुमान लगा लिया गया था कि इस्लाम के समानता और जनाधिकारों पर आधारित मानवीय सिद्धांत, जब भी किसी अत्याचारी के मार्ग में बाधा उत्पन्न करेंगे, उन्हें मिटाने का प्रयास किया जाएगा और इस्लाम के नाम पर अपनी मनमानी तथा एश्वर्य का मार्ग प्रशस्त किया जाएगा।  पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वआलेही वसल्लम के जीवन में अनके अन्यायी और दुराचारी व्यक्तियों ने वाह्य रूप से तो इस्लाम स्वीकार कर लिया था परन्तु वे सदैव पैग़म्बरे इस्लाम और उनकी शिक्षाओं को अपने हितों के विपरीत समझते रहे और इसी कारण उनसे और उनके परिजनों से सदैव शत्रुता करते रहे।  दूसरी ओर हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वआलेही वसल्लम ने अपने परिजनों का पालन-पोषण, शिक्षा-दीक्षा और चरित्र निर्माण सबकुछ ईश्वरीय धर्म के अनुसार किया था और उनको एसी आध्यात्मिक एवं मानसिक परिपक्वता प्रदान कर दी थी कि वे बचपन से ही अपने महान सिद्धांतों पर अडिग रहते थे।  यह रीति उनके समस्त परिवार में प्रचलित थी।  इस विषय में पुत्र और पुत्रियों में किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं था।  इसीलिए जिस गोदी में पलने वाले पुत्र हसन व हुसैन बनकर मानव जाति के लिए आदर्श बन गए उसी प्रकार उसी गोदी और उसी घर में पलने वाली बेटियों ने ज़ैनब और उम्मे कुल्सूम बनकर यज़ीदी शासन की चूलें हिला दीं।  इस परिवार में पुरुषों और महिलाओं के महत्व में कोई अंतर नही था।  यदि अंतर था तो बस उनके कार्यक्षेत्रों में।  इस्लामी आदर्शों की सुरक्षा के क्षेत्र में ही यही अंतर देखने में आता है।  बचपन मे तीन महीने की अवधि में नाना और फिर माता के स्वर्गवास के पश्चात समाज तथा राजनीति के विभिन्न रूप, लोगों के बदलते रंग और इस्लाम को मिटाने के अत्याचारियों के समस्त प्रयास हुसैन और ज़ैनब ने साथ-साथ देखे थे और उनसे निबटने का ढंग भी उन्होंने साथ-साथ सीखा था।

 हज़रत ज़ैनब का विवाह अपने चाचा जाफ़र के पुत्र अब्दुल्लाह से हुआ था।  अब्दुल्लाह स्वयं भी अद्वितीय व्यक्तित्व के स्वामी थे और अली व फ़ातिमा की सुपुत्री ज़ैनब भी अनुदाहरणीय थीं।  विवाह के समय उन्होंने शर्त रखी थी कि उनको उनके भाइयों से उन्हें अलग रखने पर विवश नहीं किय जाएगा और यदि भाई हुसैन कभी मदीना नगर छोड़कर गए तो वे भी उनके साथ जाएंगी।  पति ने विवाह की इस शर्त का सदैव सम्मान किया।  हज़रत ज़ैनब, अब्दुल्लाह इब्ने जाफ़र के दो पुत्रों, औन और मुहम्मद की माता थीं।  यह बच्चे अभी दस बारह वर्ष ही के थे कि इमाम हुसैन को यज़ीद का समर्थन न करने के कारण मदीना नगर छोड़ना पड़ा।  हज़रत ज़ैनब अपने काल की राजनैतिक परिस्थितियों को भी भलि-भांति समझ रही थीं और यज़ीद की बैअत अर्थात आज्ञापालन न करने का परिणाम भी जानती थीं।  वे व्याकुल थीं परन्तु पति की बीमारी को देखकर चुप थीं।  इसी बीच अब्दुल्लाह इब्ने जाफ़र ने स्वयं ही उनसे इस संवेदनशील स्थिति में भाई के साथ जाने को कहा और यह भी कहा कि बच्चों को भी अपने साथ ले जाओ तथा यदि समय आजाए, जिसकी संभावना है, तो एक बेटे को अपनी ओर से और दूसरे की मेरी ओर से पैग़म्बरे इस्लाम से सुपुत्र हुसैन पर से न्योछावर कर देना।   इन बातों से एसा प्रतीत होता है कि अब्दुल्लाह इब्ने जाफ़र भी जानते थे कि इमाम हुसैन का मिशन, ज़ैनब के बिना पूरा नहीं हो सकता।

 ज़ैनब कर्बला में आ गईं। कर्बला में उनके साथ आने वाले अपने बच्चे ही नहीं बल्कि भाइयों के बच्चे भी उन्ही की गोदी मे पलकर बड़े हुए थे और यही नहीं माता उम्मुलबनीन की कोख से जन्में चारों भाइयों का बचपन भी उन्ही की गोदी में खेला था।

 ज़ैनब कर्बला में अपने भाई हुसैन के लिए पल-पल बढ़ते ख़तरों का आभास करके ही कांप जाती थीं।  इसीलिए वे भाई से कहती थीं कि पत्र लिखकर अपने मित्रों को सहायता के लिए बुला लीजिए।  विभिन्न अवसरों पर देखा गया कि इमाम हुसैन अपनी बहन से संवेदनशील विषयों पर राय लिया करते थे और परिस्थितियों को नियंत्रित करने में भी हज़रत ज़ैनब सदैव अपने भाई के साथ रहीं।

 नौ मुहर्रम की रात्रि जो हुसैन और उनके साथियों के जीवन की अन्तिम रात्रि थी, हज़रत ज़ैनब ने अपने दोनों बच्चों को इस बात पर पूरी तरह से तैयार कर लिया था कि उन्हें इमाम हुसैन की रक्षा के लिए रणक्षेत्र मे शत्रु का सामना करना होगा और इस लक्ष्य के लिए मृत्यु को गले लगाना होगा।  बच्चों ने भी इमाम हुसैन के सिद्धांतों की महानता को इस सीमा तक समझ लिया था कि मृत्यु उनकी दृष्टि में आकर्षक बन गई थी।

 आशूर के दिन जनाब ज़ैनब ने अपने हाथों से बच्चों को युद्ध के लिए तैयार किया और उनसे कहा था कि औन और मुहम्मद हे मेरे प्रिय बच्चो! हुसैन और उनके लक्ष्य की सुरक्षा के लिए तुम्हारा बलिदान अत्यंत आवश्यक है वरना यह मां तुम्हें कभी मौत की घाटी में नहीं जाने देती।  देखो रणक्षेत्र में मेरी लाज रख लेना।  और बच्चों ने एसा ही किया।

कई सालों की देरी और संघर्ष के बाद, इराकी संसद की मंजूरी और बगदाद व वाशिंगटन के बीच समझौते के तहत कल शनिवार को इराक से अमेरिकी सैनिकों की वापसी की औपचारिक शुरुआत होने जा रही है।

कई सालों की देरी और संघर्ष के बाद, इराकी संसद की मंजूरी और बगदाद व वाशिंगटन के बीच समझौते के तहत कल शनिवार को इराक से अमेरिकी सैनिकों की वापसी की औपचारिक शुरुआत होने जा रही है।

इराकी सुरक्षा सूत्रों के मुताबिक अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन के सैनिक सबसे पहले अलअसद एयर बेस, बगदाद एयरपोर्ट और संयुक्त ऑपरेशन कमांड मुख्यालयों से निकलेंगे और फिर उन्हें अर्बिल कुर्दिस्तान इराक का केंद्र स्थानांतरित किया जाएगा।

सूत्रों ने स्पष्ट किया कि समझौते के मुताबिक केवल अमेरिकी सैन्य प्रशिक्षक इराक में मौजूद रहेंगे जिनका गठबंधन की वापसी से कोई संबंध नहीं है।

उल्लेखनीय है कि बगदाद और वाशिंगटन ने सितंबर 2024 में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके तहत अमेरिका की सैन्य उपस्थिति खत्म करके चरणबद्ध वापसी कार्यान्वित की जानी थी।

अमेरिकी सैनिक पहली बार 2003 में इराक पर हमले के बाद इस देश में दाखिल हुए थे। 2011 में उनकी बड़ी संख्या वापस बुलाई गई, लेकिन 2014 में दाएश (आईएसआईएस) के नाम पर दोबारा इराक लौट आए।

याद रहे कि जनवरी 2020 को इराकी संसद ने एक प्रस्ताव पारित किया था, जिसमें विदेशी सेनाओं की वापसी की मांग की गई थी। यह फैसला जनरल कासिम सुलेमानी और अबू मेंहदी अलमुहंदिस की अमेरिकी हमले में शहादत के कुछ दिनों बाद किया गया था।

प्रस्ताव में सरकार को बाध्य किया गया था कि वह देश की संप्रभुता की सुरक्षा के लिए इराकी सुरक्षा बलों को मजबूत करे और विदेशी सेनाओं के साथ हर तरह के समझौते को रद्द करे हालांकि अमेरिका ने इस पर अमल नहीं किया।

इराकी सूत्रों के मुताबिक हाल के दिनों में अलअसद बेस से अमेरिकी सामान के स्थानांतरण के सबूत भी मिले हैं, जो इस समझौते पर अमल का सबूत हैं।

अमेरिका और इराक के बीच तय समझौते के मुताबिक यह वापसी दो चरणों में पूरी होगी:

पहला चरण: सितंबर 2024 से सितंबर 2025 तक, जिसमें बगदाद और अन्य अड्डों से अमेरिकी सेनाएं निकलेंगी।

दूसरा चरण: सितंबर 2025 से सितंबर 2026 तक, जिसमें कुर्दिस्तान इराक से भी अमेरिकी सैनिक वापस जाएंगे।

इस तरह अगले साल से अमेरिकी सैनिकों की उपस्थिति केवल अर्बिल और उत्तरी इराक तक सीमित हो जाएगी, और सितंबर 2026 तक उनकी पूरी वापसी की उम्मीद है।

 संयुक्त राष्ट्र में रूस के उप प्रतिनिधि ने कहा कि यूरोपीय देशों द्वारा ईरान के ख़िलाफ स्नैपबैक मैकेनिज्म का उपयोग अप्रभावी है।

संयुक्त राष्ट्र में रूस के उप प्रतिनिधि ने यूरोपीय देशों द्वारा ईरान के ख़िलाफ स्नैपबैक मैकेनिज्म को सक्रिय करने के कदम पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि यह कदम कानूनी रूप से किसी हैसियत का हामिल नहीं है।

उन्होंने आगे कहा कि रूस यह नहीं मानता कि सुरक्षा परिषद को यूरोपीय ट्रायका के इस कदम के आधार पर कोई फैसला करना चाहिए।

रूसी उप प्रतिनिधि ने स्पष्ट किया कि रूस और चीन ने अभी तक अपने प्रस्ताव के मसौदे पर सुरक्षा परिषद में मतदान के लिए कोई अनुरोध जमा नहीं किया है।

पहले सूत्रों ने बताया था कि रूस और चीन ईरान के परमाणु समझौते की अवधि को और छह महीने के लिए बढ़ाने के लिए सुरक्षा परिषद में पेश करने के लिए एक प्रस्ताव का मसौदा तैयार कर रहे हैं।

क़ुम के इमाम ए जुमआ आयतुल्लाह सैयद हाशिम हुसैनी बुशहरी ने अपने संबोधन में कहा कि यूरोप हालांकि स्पष्ट रूप से अमेरिका की तरह बरजम (परमाणु समझौता) से खुलकर बाहर नहीं निकला, लेकिन उसके साथ खड़ा रहा और अब "स्नैपबैक मैकेनिज्म" के जरिए ईरान को डराने और दबाव में रखने की कोशिश कर रहा है।

क़ुम के इमाम ए जुमआ आयतुल्लाह सैयद हाशिम हुसैनी बुशहरी ने अपने संबोधन में कहा कि यूरोप हालांकि स्पष्ट रूप से अमेरिका की तरह बरजम (परमाणु समझौता) से खुलकर बाहर नहीं निकला, लेकिन उसके साथ खड़ा रहा और अब "स्नैपबैक मैकेनिज्म" के जरिए ईरान को डराने और दबाव में रखने की कोशिश कर रहा है।

उन्होंने कहा कि इमाम हसन अस्करी अ.स.के उपदेश हमें तक़्वा गुनाहों से दूरी और फ़राइज़ के पालन की ओर ध्यान दिलाते हैं। इमाम अस्करी (अ.स.) फरमाते हैं कि सबसे अधिक परहेज़गार इंसान वह है जो संदिग्ध चीजों में सावधानी बरते, सबसे अच्छा आबिद (इबादत करने वाला) वह है जो फ़राइज़ को अंजाम दे, ज़ाहिद वह है जो हराम से दूर रहे और सबसे अधिक जिहाद करने वाला वह है जो गुनाहों को छोड़ दे।

आयतुल्लाह हुसैनी बुशहरी ने इमाम अस्करी अ.स. की शहादत और इमाम ज़माना अ.स.की इमामत के आगाज़ की मौके पर कहा कि हालांकि हम ग़ैबत के दौर में हैं, लेकिन इमाम (अ.स.) हमारे अमल पर नज़र रख रहे हैं, इसलिए हमें अपनी ज़िम्मेदारियों को पहचानना चाहिए।

उन्होंने सरकारी सप्ताह और शहीद राजाई, शहीद बहुनर और आयतुल्लाह रईसी की याद में कहा कि ये दिन सरकारी प्रदर्शन पेश करने का सबसे अच्छा मौका हैं। उन्होंने मौजूदा सरकार की खासियत बयान करते हुए कहा कि रहबर-ए मोअज़्ज़म (सर्वोच्च नेता) की पैरवी इसकी सबसे बड़ी ताकत है, इसलिए सभी को इस रास्ते पर रहना चाहिए।

उन्होंने जोर देकर कहा कि हम इस वक्त युद्ध की स्थिति में हैं, इसलिए सरकार को कमजोर करने के बजाय उसका समर्थन जरूरी है। आलोचना होनी चाहिए लेकिन रचनात्मक और हल पेश करने वाली, ताकि मुश्किलें हल हों।

क़ुम के जुमे के खतीब ने कहा कि आम लोग सब्र व इस्तिक़ामत के साथ सरकार का साथ दे रहे हैं, यहां तक कि बिजली के कुछ घंटों के व्यवधान को भी बर्दाश्त करते हैं। जरूरी है कि सरकार महंगाई, अर्थव्यवस्था और बुनियादी सुविधाओं की समस्याओं पर ज्यादा ध्यान दे।

उन्होंने कहा कि युद्ध का साया आम लोगों के सिर से हटना चाहिए ताकि लोग शांतिपूर्ण माहौल में काम कर सकें। साथ ही फिलिस्तीन और गाजा की स्थितियों की ओर इशारा करते हुए कहा कि सियोनीस्ट (जायोनी) सरकार आज सबसे ज्यादा घृणित है और ईरान को हर संभव तरीके से मजलूम फिलिस्तीनियों की मदद करनी चाहिए।

आयतुल्लाह बुशहरी ने अंत में याद दिलाया कि एकता और एकजुटता नस्रते इलाही की बुनियादी शर्त है और मतभेद इस सहायता को समाप्त कर देते हैं।

शाही आसिफी मस्जिद में, हौज़ा इल्मिया गुफरान माआब (र) के प्रधानाचार्य हुज्जत-उल-इस्लाम वल-मुस्लिमीन मौलाना सय्यद रज़ा हैदर ज़ैदी के नेतृत्व में जुमा की नमाज़ अदा की गई; जहाँ उन्होंने अपने खुत्बो में अहले-बैत (अ) की शिक्षाओं की रोशनी में मज़लूमों की मदद करने पर ज़ोर दिया।

शाही आसिफी मस्जिद में, हौज़ा इल्मिया गुफरान माआब (र) के प्रधानाचार्य हुज्जत-उल-इस्लाम वल-मुस्लिमीन मौलाना सय्यद रज़ा हैदर ज़ैदी के नेतृत्व में जुमा की नमाज़ अदा की गई; जहाँ उन्होंने अपने खुत्बो में अहले-बैत (अ) की शिक्षाओं की रोशनी में मज़लूमों की मदद करने पर ज़ोर दिया।

मौलाना सययद रज़ा हैदर ज़ैदी ने कहा कि 10 मुहर्रम को इमाम हुसैन (अ) की शहादत हुई, लेकिन इमाम हुसैन (अ) का व्यक्तित्व जन्मा। वह महान व्यक्तित्व जो दाता है, जिसने दुनिया को सम्मान दिया, मानवता को सम्मान दिया, उत्पीड़ितों को साहस दिया, सत्य के मार्ग पर चलने वालों को साहस दिया, असावधान राष्ट्र को जागृति प्रदान की और क़यामत तक पापियों को सिफ़ारिश प्रदान की।

मौलाना सय्यद रज़ा हैदर ज़ैदी ने इब्न शादान की किताब में अब्दुल्लाह बिन उमर से रिवायत किया है कि अल्लाह के रसूल (स) ने फ़रमाया: "मेरे ज़रिए तुम्हें चेतावनी दी गई है, अली (अ) के ज़रिए तुम्हें हिदायत दी गई है, हसन (अ) के ज़रिए तुम्हें भलाई दी गई है, और हुसैन (अ) के ज़रिए तुम्हें खुशी और कामयाबी हासिल होगी।" उन्होंने कहा कि रिवायतों की रौशनी में जो भी इमाम हुसैन (अ) से मोहब्बत करेगा वो कामयाब होगा और जो इमाम हुसैन (अ) से दुश्मनी करेगा वो बदनसीब और बदनसीब होगा और उसे जन्नत की खुशबू भी नसीब नहीं होगी।

मौलाना सय्यद रज़ा हैदर ज़ैदी ने आगे कहा कि इमाम हुसैन (अ) जन्नत के दरवाज़ों में से एक हैं, इसलिए यह हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम इस दरवाज़े को सभी लोगों के लिए खुला रखें और ऐसा कुछ न करें जिससे लोग इससे दूर हो जाएँ और किसी की आज़ादी में रुकावट न बनें।

मौलाना सय्यद रज़ा हैदर ज़ैदी ने इस हफ़्ते के अहम मौक़े, इमाम हसन असकरी (अ) की शहादत की सालगिरह का ज़िक्र करते हुए कहा कि दुश्मन ने सामरा के पवित्र मज़ार पर दो बार हमला किया। वे नासमझ और अज्ञानी लोग सोचते हैं कि अगर इन मज़ारों को गिरा दिया गया तो उनकी यादें मिट जाएँगी, जबकि उन्हें मालूम नहीं कि ये इमारतें एक नज़ीर हैं, वरना हज़रत मुहम्मद (स) के मज़ार हर मोमिन के दिल में मौजूद हैं।

मौलाना सय्यद रज़ा हैदर ज़ैदी ने इस्लामी प्रतिरोध में लगे कुछ अज्ञानी दोस्तों का ज़िक्र करते हुए कहा कि हमें वापसी का यक़ीन है, यानी हज़रत मुहम्मद (स) लौटेंगे, इमाम हुसैन (अ) की वापसी होगी, इसलिए अगर वे समझदारी से काम लें और सोचें कि अगर इमाम हुसैन (अ) लौटकर आएँगे, तो क्या वे दुनिया के ज़ालिमों का साथ देंगे या उस वक़्त के मज़लूमों का? क्या वे ग़ज़ा के भूखे-प्यासे बच्चों को नज़रअंदाज़ करेंगे? ऐसा कभी नहीं होगा, इसलिए यदि आप उत्पीड़ितों की मदद नहीं कर सकते, तो मदद करने वालों का विरोध भी न करें।

उन्होंने उम्मत के मार्गदर्शन के संबंध में इमाम हसन अस्करी (अ) की जीवनी का उल्लेख किया और कहा कि इमाम हसन अस्करी (अ) का कुल धन्य जीवन 28 वर्ष का था। उन्होंने सामरा में अब्बासिद खलीफाओं की कड़ी निगरानी और कठिनाइयों के बीच अपनी इमामत का समय बिताया और कठिनाइयाँ इतनी बड़ी थीं कि कोई भी उनसे मिल नहीं सकता था, लेकिन इसके बावजूद, उन्होंने मार्गदर्शन के लिए ऐसी व्यवस्था की कि क़यामत तक कोई भी गुमराह न हो सके, और उन्होंने लोगों को गुप्त युग के लिए भी प्रशिक्षित किया।

कश्मीर विश्वविद्यालय में तिबयान कुरानिक शोध संस्थान द्वारा "बलिदान, प्रेम और आशूरा की कलाकृतियाँ" नामक एक दिवसीय कला प्रदर्शनी का आयोजन किया गया, जिसमें स्थानीय कलाकारों की कलाकृतियाँ प्रस्तुत की गईं और छात्रों, स्कूली बच्चों और अन्य लोगों ने भाग लिया।

श्रीनगर स्थित कश्मीर विश्वविद्यालय के गांधी भवन, सम्मेलन कक्ष में तिबयान कुरानिक शोध संस्थान द्वारा "बलिदान, प्रेम और आशूरा की कलाकृतियाँ" नामक एक दिवसीय कला प्रदर्शनी का आयोजन किया गया, जिसमें स्थानीय कलाकारों की कलाकृतियाँ प्रस्तुत की गईं।

प्रदर्शनी से पहले कलाकृतियों की व्यवस्था और आयोजन ताबियान के युवाओं द्वारा किया गया, जबकि कश्मीर विश्वविद्यालय प्रशासन ने सहायता प्रदान की। उद्घाटन समारोह निर्धारित समय से कुछ देरी से आयोजित किया गया और इसका उद्घाटन कश्मीर विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार डॉ. रियाज़ ने रिबन काटकर किया।

प्रदर्शनी में प्रस्तुत कलाकृतियों में पवित्र कुरान की आयतों पर आधारित सुलेख भी शामिल थे। इस अवसर पर कलाकार अरशद सालेह ने कलाकृतियों की विशेषताओं और पृष्ठभूमि पर प्रकाश डाला।

समारोह के बाद, विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं, विभिन्न स्कूलों के बच्चों और आम नागरिकों ने प्रदर्शनी का अवलोकन किया। हुज्जतुल इस्लाम वा मुस्लेमीन आगा सैयद मुहम्मद हादी मूसावी और डॉ. पीरज़ादा समीर सिद्दीकी भी इस कार्यक्रम में शामिल हुए। इस अवसर पर कई सामाजिक और शैक्षणिक हस्तियों की उपस्थिति प्रमुख रही।

आगा सय्यद मुहम्मद हादी मूसावी के नेतृत्व में विश्वविद्यालय परिसर में ज़ुहर की नमाज़ अदा की गई। समापन सत्र में कलाकारों और आयोजकों को प्रमाण पत्र प्रदान किए गए, जबकि प्रोफेसर परवेज़ अहमद, प्रोफेसर आबिद गुलज़ार और कलाकार अरशद सालेह ने प्रतिभागियों और समर्थकों का धन्यवाद किया।

इज़राईली मीडिया के अनुसार, 12 दिनों के युद्ध के दौरान ईरान की जवाबी मिसाइल और ड्रोन हमलों की वजह से ज़ायोनी सरकार को कई अरबों डलर का नुकसान हुआ है।

इज़राईली अधिकारियों ने स्वीकार किया है कि ईरान के जवाबी हमलों ने 12 दिनों के युद्ध के दौरान इजराइल को अरबों डलर का नुकसान पहुँचाया। इस दौरान नुकसान की भरपाई के लिए 53 हज़ार से ज़्यादा आवेदन दाखिल किए गए।

इजराइली अखबार येदियोत अहरोनोत ने टैक्स अथॉरिटी के हवाले से लिखा है कि ईरान के हमलों से हुआ नुकसान रिकॉर्ड स्तर तक पहुँच गया है। सिर्फ 12 दिनों में 53,599 सीधे नुकसान के दावे दायर किए गए।

रिपोर्ट के अनुसार, वाइज़मैन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, जो ज़ायोनी गुप्त एजेंसी मोसाद से करीबी रूप से जुड़ा है, भारी नुकसान का शिकार हुआ, जबकि कई व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को लंबे समय के लिए बंद करना पड़ा।

इजराइली टैक्स अथॉरिटी के निदेशक शाई अहारोनोविच ने कहा कि अब तक सिर्फ सीधे नुकसान का अनुमान कम से कम 4 अरब शेकेल (1.1 अरब डॉलर) लगाया गया है, जबकि अप्रत्यक्ष नुकसान, जिनमें व्यावसायिक गतिविधियों में रुकावटें शामिल हैं, कई अरब और होंगे।

अब तक संपत्ति कर मुआवजा कोष ने सीधे नुकसान के दावों के तहत 1.6 अरब शेकेल (430 मिलियन डॉलर) वितरित किए हैं।

अमीर जमात-ए-इस्लामी पाकिस्तान ने एक उच्च-स्तरीय प्रतिनिधिमंडल के साथ विश्व इस्लामी विचारधारा सभा के महासचिव से मुलाकात की और विश्व एकता एवं फ़िलिस्तीन के समर्थन के महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की।

अमीर जमात-ए-इस्लामी पाकिस्तान हाफ़िज़ नईम-उर-रहमान ने एक उच्च-स्तरीय प्रतिनिधिमंडल के साथ विश्व इस्लामी विचारधारा सभा और फ़िलिस्तीन के समर्थन के महासचिव, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन डॉ. हामिद शहरियारी से विश्व इस्लामी विचारधारा सभा और फ़िलिस्तीन के समर्थन के महासचिव के रूप में मुलाकात की।

रिपोर्ट के अनुसार, इस बैठक में, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन हामिद शहरियारी ने 12 दिनों के युद्ध के बाद ईरान के हालात का ज़िक्र करते हुए, ईरान में आयोजित 49वें अंतर्राष्ट्रीय इस्लामी एकता सम्मेलन की ओर इशारा किया और कहा: ईरान के राष्ट्रपति भी इस वर्ष के सम्मेलन में भाग लेंगे और हम आपको भी 49वें इस्लामी एकता सम्मेलन में भाग लेने के लिए ईरान आने का निमंत्रण देते हैं।

जमात-ए-इस्लामी पाकिस्तान की स्थिति का ज़िक्र करते हुए, हुज्जत-उल-इस्लामी वल-मुस्लिमीन के शहरियारी ने कहा: यह पार्टी उपमहाद्वीप की सबसे प्रमुख पार्टियों में से एक है और इसके संस्थापक सैयद अबुल-आला मौदूदी के विचार इमाम खुमैनी (र) के विचारों के बहुत करीब थे।

विश्व इस्लामी विचारधारा सभा के महासचिव ने भी इस्लाम के तीन महत्वपूर्ण मूल्यों की ओर इशारा किया और कहा: इस्लामी विचारधाराएँ तीन मूलभूत सिद्धांतों पर आधारित हैं: शांति, न्याय और मानवीय गरिमा। और इन्हीं सिद्धांतों ने मुसलमानों को फ़िलिस्तीन के मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरित किया है।

अपने भाषण के एक हिस्से में, उन्होंने जमात-ए-इस्लामी पाकिस्तान के फ़िलिस्तीन के समर्थन में रुख़ की सराहना की और कहा: यह एक मानवीय कर्तव्य है और पाकिस्तान में 12 दिनों के युद्ध के बाद, जो लोग पहले हमारे साथ नहीं थे, वे भी हमारे पक्ष में बयान देने लगे और यह अपने आप में एक बड़ी सफलता थी।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन शहरयारी ने आगे कहा: सऊदी अरब ने घोषणा की है कि वह ईरान के ख़िलाफ़ अपने देश से अमेरिकी विमानों को उड़ान भरने की अनुमति नहीं देगा और इस्लामी जगत में इज़राइल के ख़िलाफ़ जो एकता और एकजुटता उभरी है, वह बेहद क़ीमती है, हम इसे एक ख़ज़ाना मानते हैं और इसे बढ़ाने की कोशिश करेंगे।

जमात-ए-इस्लामी पाकिस्तान के अमीर हाफ़िज़ नईम-उर-रहमान ने भी इस बैठक में ईरान को हाल ही में हुए 12 दिनों के युद्ध की ईश्वरीय परीक्षा में सफल बताया और मुसलमानों के बीच एकता बनाने के लिए सभा के प्रयासों की सराहना की।

उन्होंने कहा: जो लोग पहले एकता के पक्ष में नहीं थे, उन्हें गाज़ा युद्ध के बाद एहसास हुआ कि उनके पास एकजुट होने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

इस्लामी विचारधारा के विश्व सम्मेलन के निमंत्रण पर ईरान आए जमात-ए-इस्लामी पाकिस्तान के अमीर ने भी पाकिस्तान में धार्मिक एकता के महत्व और मुसलमानों के बीच विभाजनकारी भावना से निपटने तथा एकता को मजबूत करने के लिए ईरान के साथ सहयोग पर जोर दिया।