رضوی

رضوی

लाल सागर में ज़ायोनिहितों को लगातार निशाना बना रहे यमन ने इस समंदर को इस्राईल और उसके पश्चिमी सहयोगी देशों के लिए काल का गाल बना दिया है।  पश्चिमी जगत के लिए खतरनाक बन चुके लाल सागर में ईरान और सऊदी अरब ने अपनी सेना उतारने की योजना बनाई है। 

प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार सऊदी अरब और ईरान जल्द ही लाल सागर में संयुक्त अभ्यास आयोजित करने जा रहे हैं।  न्यूज एजेंसी ISNA  की रिपोर्ट के मुताबिक़  ईरान की नौसेना के कमांडर एडमिरल शाहराम ईरानी ने कहा है कि दोनों देशों के अधिकारियों के बीच ड्रिल के लिए बातचीत चल रही है और जल्द ही इसका आयोजन किया जाएगा,” हालांकि उन्होंने ये नहीं बताया है कि ये ड्रिल कब की जाएगी। 

 

इस्लामी रेडियो और टेलीविज़न यूनियन के महासचिव, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन करीमीयन ने कहा कि शहीद यह्या सनावार ने अपनी पूरी ज़िंदगी जिहाद और जनता के समर्थन में गुज़ारी और फ़िलस्तीन की आज़ादी के लिए अनगिनत कुर्बानियाँ दीं हैं।

एक रिपोर्ट के अनुसार,तेहरान में शहीद यह्या सिनवार की याद में आयोजित समारोह के दौरान मीडिया से बात करते हुए हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन करीमीयन ने कहा कि शहीद सिनवार ने आशूराई जीवन जिया और उनकी शहादत भी आशूराई थी।

उन्होंने आगे कहा कि दुश्मन ने पिछले साल मानसिक युद्ध के ज़रिए शहीद सनावार को बदनाम करने की कोशिश की लेकिन यह प्रचार असफल साबित हुआ और उनकी आखिरी सांस तक जिहाद के मैदान में उनकी मजबूती दिखाई दी।

करीमीयन ने कहा कि शहीद सिनवार का जीवन शिक्षा और सबक से भरा हुआ था और उनकी शहादत ने उन्हें एक महान आदर्श व्यक्तित्व बना दिया, जिस पर युवा पीढ़ी गर्व करती है और उनसे मार्गदर्शन प्राप्त करेगी।

 

शाही ईदगाह और श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुस्लिम पक्ष को बड़ा झटका देते  हुए मुस्लिम पक्ष द्वारा सभी 15 वाद को अलग  अलग सुने जाने की मांग को खारिज कर दिया है। अब सभी 15 वाद को हाईकोर्ट एक साथ सुनवाई करेगा।

मुस्लिम पक्ष की तरफ से मथुरा कोर्ट में दाखिल 15 याचिकाओं की अलग-अलग सुनवाई की मांग की थी।  हिंदू पक्ष की तरफ से कहा गया था कि सभी मामलों की एक साथ सुनवाई की जा सकती है। उन्होंने कहा कि कोर्ट को दो या फिर इससे ज्यादा मामलों को एक साथ सुनने का हक है।

अमेरिकी सेना के एक पूर्व अफ़सर ने अलग़द टीवी चैनल के साथ साक्षात्कार में कहा है कि यहिया सिन्वार की शहादत के बाद हमास कमज़ोर नहीं हुआ है।

अलग़द टीवी चैनल के एंकर ने जब अमेरिकी सेना के पूर्व सैनिक अफ़सर Scott Ritter से ग़ज़ा में हमास के राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख यहिया सिन्वार की शहादत के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि अतिग्रहणकारी इस्राईली सैनिकों से लड़ते हुए यहिया सिन्वार शहीद हो गये। इस प्रकार की हालत में शहीद होने की वजह से वह नायक बन गये हैं।

अमेरिकी सेना के पूर्व सैनिक अफ़सर ने कहा कि यहिया सिन्वार अतिग्रहणकारी सैनिकों से मुक़ाबला करते हुए जंग के मैदान से नहीं भागे और साहस के साथ लड़ते हुए शहीद हुए। अतः इतिहास के अंधेरे में सिन्वार का नाम चमकेगा।

अमेरिकी सेना के पूर्व सैनिक अफ़सर Scott Ritter ने सिन्वार की शहादत के बाद हमास की शक्ति के बारे में कहा कि सिन्वार की शहादत से न केवल फ़िलिस्तीन की आकांक्षा और हमास की ताक़त कम नहीं होगी बल्कि जंग जारी रखने और अपनी रक्षा हेतु हमास के मनोबल में और वृद्धि हो जायेगी।

इसी प्रकार उन्होंने कहा कि सिन्वार की शहादत लड़ाई में एक मोड़ सिद्ध होगी और इस्राईली सरकार अधिक कमज़ोर होगी और हमास अपनी पवित्र लड़ाई व जंग को जारी रखेगा। उन्होंने इस्राईल द्वारा ईरान पर संभावित हमले के बारे में भी कहा कि इसका संबंध ज़ायोनी अधिकारियों से है और व्यक्तिगत रूप से इसका लाभ नेतनयाहू को मिलेगा।

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए मदरसों की बंदी पर रोक लगा दी है इस फैसले के बाद जमीयतुल उलेमा ए हिंद ने इस निर्णय का स्वागत किया है और इसे धार्मिक स्वतंत्रता और शिक्षा के अधिकार की रक्षा की दिशा में एक बड़ा कदम बताया है।

एक रिपोर्ट के अनुसार ,नई दिल्ली/भारत की सुप्रीम कोर्ट ने गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों की मान्यता रद्द करने और छात्रों को सरकारी स्कूलों में स्थानांतरित करने के राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग (NCPCR) के आदेशों पर रोक लगा दी।

यह फैसला जमीयत उलेमा ए हिंद की याचिका पर सुनाया गया जिसमें मुस्लिम संगठन ने उत्तर प्रदेश और त्रिपुरा सरकारों द्वारा मदरसों के खिलाफ की जा रही कार्रवाई को चुनौती दी थी।

सुप्रीम कोर्ट की बेंच जिसमें मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल हैं, ने NCPCR के निर्देशों और राज्य सरकारों के आदेशों की समीक्षा के बाद यह निर्णय दिया। NCPCR ने 7 जून 2024 को उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया था कि जो मदरसे शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम का पालन नहीं कर रहे हैं उनकी मान्यता रद्द की जाए।

जमीयत उलेमा ए हिंद की ओर से वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने दलील दी कि यह कार्रवाई अन्यायपूर्ण है और इससे हजारों छात्र प्रभावित होंगे सुप्रीम कोर्ट ने माना कि फिलहाल NCPCR के निर्देशों पर कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी।

यह फैसला तब आया है जब आयोग ने मदरसों के लिए सरकारी फंडिंग रोकने का सुझाव दिया था यह कहते हुए कि यह संस्थान प्राथमिक शिक्षा प्रदान नहीं कर रहे हैं। NCPCR के अध्यक्ष प्रियांक कन्नगो ने स्पष्ट किया है कि उन्होंने कभी भी मदरसों को बंद करने की मांग नहीं की बल्कि उन्होंने सभी के लिए समान शैक्षिक अवसरों की वकालत की है।

इस अवसर पर जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत किया और इसे अल्पसंख्यकों के शैक्षिक अधिकारों की जीत बताया उन्होंने कहा कि यह फैसला मदरसों के हक में एक बड़ी कामयाबी है और उम्मीद जताई कि अंतिम फैसला भी मदरसों के पक्ष में आएगा।

यह मामला भारत में धार्मिक शिक्षा और प्राथमिक शिक्षा के अधिकारों से जुड़ा एक महत्वपूर्ण मोड़ है, जिस पर सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला आने वाले समय में अहम असर डाल सकता है।

 

 

 

 

 

हिज़्बुल्लाह ने एक आधिकारिक बयान में ज़ायोनी शासन के आपराधिक हमले में हिज़्बुल्लाह की कार्यकारी परिषद के प्रमुख सय्यद हाशिम सफ़ीउद्दीन की शहादत की पुष्टि की है।

बता दें कि हिज़्बुल्लाह की ओर से इस खबर की पुष्टि से पहले ही अवैध राष्ट्र की ज़ायोनी सेना ने कहा था कि 4 अक्टूबर को ज़ाहियाह क्षेत्र में हिज़्बुल्लाह के खुफिया मुख्यालय को निशाना बनाया गया था, अब यह पुष्टि की जा सकती है कि लगभग तीन हफ्ते पहले हुए इस हमले में हिज़्बुल्लाह की कार्यकारी परिषद के चीफ हाशिम सफ़ीउद्दीन और हिज़्बुल्लाह के खुफिया विभाग के प्रमुख अली हुसैन के साथ हिज़्बुल्लाह के कई कमांडर मारे गए हैं।

 

 

मंगलवार, 22 अक्टूबर 2024 17:22

सबसे बड़ी ईद, ईदे ग़दीर।

ग़दीर मक्के से 64 किलोमीटर दूरी पर स्थित अलजोहफ़ा घाटी से तीन से चार किलोमीटर दूर एक जगह थी जहां तालाब था। इसके आस पास पेड़ थे। क़ाफ़िले वाले इसकी छाव में अपने सफ़र की थकान उतारते और साफ़ और मीठे पानी से अपनी प्यास बुझाते थे। समय बीतने के साथ यह छोटा सा तालाब एक अथाह झील में तब्दील हो गया कि जहां से ह

सबसे बड़ी ईद,ईदे ग़दीर।

अहलेबैत न्यूज़ एजेंसी अबना: ग़दीर मक्के से 64 किलोमीटर दूरी पर स्थित अलजोहफ़ा घाटी से तीन से चार किलोमीटर दूर एक जगह थी जहां तालाब था। इसके आस पास पेड़ थे। क़ाफ़िले वाले इसकी छाव में अपने सफ़र की थकान उतारते और साफ़ और मीठे पानी से अपनी प्यास बुझाते थे। समय बीतने के साथ यह छोटा सा तालाब एक अथाह झील में तब्दील हो गया कि जहां से हजरत अली अलैहिस्सलाम को पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलिही वसल्लम का जानशीन (उत्तराधिकारी) बनाए जाने की घटना का मैसेज पूरी दुनिया में फैल गया। हज़रत अली की पैग़म्बरे इस्लाम स.अ. के उत्तराधिकारी के रूप में नियुक्ति की इतिहासिक घटना ग़दीरे ख़ुम की ज़मीन पर घटी इसलिए यह नाम इतिहास में अमर हो गया। दस हिजरी क़मरी की अट्ठारह ज़िलहिज्ज को हज से लौटने वाले क़ाफ़लों को पैग़म्बरे इस्लाम (स.अ.) के आदेश पर रोका गया। सब ग़दीरे में जमा हुए। हाजी हाथों को माथे पर रखकर आंखों के लिए छांव बनाए हुए थे। उनके मन का जोश आंखों से झलक रहा था। सब एक दूसरे को देख कर यह पूछ रहे थे कि पैग़म्बर (स.अ.) को क्या काम है? अचानक चेहरे रौशनी में डूब गए। पैग़म्बरे इस्लाम ने ऊंटों की काठियों से बने ऊंचे मिम्बर पर खड़े होकर हज़रत अली (अ.) को अपने बाद अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया और दीन के आख़री मैसेज को लोगों तक पहुंचाया। लोग इस तरह हज़रत अली अलैहिस्सलाम को मुबारकबाद देने व उनके हाथों को चूमने के लिए उनकी ओर लपक लपक कर बढ़ रहे थे कि हज़रत अली (अ.) उस भीड़ में दिखाई नहीं दे रहे थे। वह सबके मौला व पैग़म्बरे इस्लाम के जानशीन (उत्तराधिकारी) नियुक्त हुए थे। पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के सहाबियों (साथियों) ने कहा ऐ अली आपको मुबारकबाद हो! आप सभी मोमिनों के मौला हैं! ग़दीर दिवस को ईद मानना और इसके ख़ास संस्कार को अंजाम देना इस्लामी दुनिया की रस्मों में है यह केवल शिया समुदाय से मख़सूस नहीं है। इतिहास के अनुसार पैग़म्बरे इस्लाम सल्लललाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के दौर में इस दिन को मुसलमानों की बड़ी ईद माना गया और पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के पाक अहलेबैत व इस्लाम पर विश्वास रखने वालों ने इस परंपरा को जारी रखा। इस्लामी दुनिया के बड़े आलिम अबु रैहान बैरूनी ने अपनी किताब आसारुल बाक़िया में लिखा हैः ग़दीर की ईद इस्लाम की ईदों में है। इस हवाले से सुन्नी समुदाय के मशहूर आलिम इब्ने तलहा शाफ़ई लिखते हैः यह दिन इसलिए ईद है कि पैग़म्बर इस्लाम (स.) ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम को लोगों का मौला चुना और उन्हें पूरी दुनिया पर वरीयता दी। ग़दीर की घटना इतनी मशहूर है कि बहुत ही कम ऐसे इतिहासकार होंगे जिन्होंने इसको न लिखा हो । ईरान के मशहूर आलिम अल्लामा अमीनी ने ग़दीर के संबंध में अपनी कितबा अल-ग़दीर में शिया आलिमों के अलावा सुन्नी समुदाय की मोतबर (विश्वस्त) किताबों से 360 गवाह इकट्ठा किए हैं। ग़दीर कई पहलुओं से महत्वपूर्ण है। इसका एक महत्वपूर्ण पहलू हज़रत अली अलैहिस्सलाम की बेमिसाल विशेषता व नैतिक महानता पर आधारित है। ग़दीर नामक घाटी में मौजूद बहुत से लोगों ने, जो इस घटना के गवाह थे, हज़रत अली की विशेषताओं को नज़दीक से देखा था और वह जानते थे कि वह बहादुरी, ईमान, निष्ठा व न्याय की निगाह से लोगों के मार्गदर्शन के लिए सबसे अच्छा विकल्प हैं।

 

मौलाना फसाहत हुसैन ने कहा कि हमें हर स्थिति में सच्चाई और न्याय का साथ देना चाहिए, चाहे किसी भी देश की समस्या क्यों न हो। उन्होंने बताया कि जब भी दुनिया के किसी भी कोने में अन्याय और अत्याचार होगा, हम अपनी आवाज उठाते रहेंगे।

क़ुम शहर के प्रसिद्ध धार्मिक मदरसा इमाम खुमैनी (र) के शहीद सैयद आरिफ अल-हुसैनी हॉल में अल-मुस्तफा फाउंडेशन ट्रस्ट द्वारा एक सम्मेलन का आयोजन किया गया। जिसमें हाफिज सैयद मोहम्मद फरजान रिजवी ने पवित्र कुरान और शहीदों के सम्मान में कविताएं पढ़कर खराजे अक़ीदत पेश किया।

हक़ की हिमायत करना और मजलूमों का साथ देना हमारा धार्मिक, नैतिक और मानवीय कर्तव्य है

बाद में इस्लामिक विद्वान और शोधकर्ता मौलाना फसाहत हुसैन ने अपने भाषण में शोक व्यक्त किया और नेक रास्ते के शहीदों के जीवन पर प्रकाश डाला और उनके साहस और बलिदान की सराहना की। उन्होंने कहा कि हमें हमेशा मजलूमों का साथ देना चाहिए और उनके हक में आवाज उठाना हमारा धार्मिक, शरई और नैतिक कर्तव्य होना चाहिए। मौलाना ने आगे कहा कि अगर आज वे ईरान, यमन, इराक, फिलिस्तीन और गाजा जैसे विभिन्न देशों का समर्थन कर रहे हैं तो यह उनका धार्मिक, नैतिक और मानवीय कर्तव्य है जिसे वे बखूबी निभा रहे हैं।

विश्व राजनीति पर चर्चा करते हुए मौलाना ने एक प्रसिद्ध वाक्यांश उद्धृत किया कि "इजरायल दुनिया का एकमात्र अत्याचारी देश है जिसने खुद को दुनिया के सामने उत्पीड़ित के रूप में प्रस्तुत किया है, भले ही उसने 70-75 वर्षों में लाखों निर्दोष फिलिस्तीनियों को मार डाला हो।" उन्हें शहीद कर दिया, लेकिन उनके संकल्प और इच्छाशक्ति को कमजोर नहीं कर सके।”

 

मौलाना ने यह भी कहा कि जो लोग फिलिस्तीनियों को आतंकवादी मानते हैं, उन्हें सोचना चाहिए कि जब अंग्रेजों ने भारत पर कब्जा कर लिया, तो क्या भारतीयों द्वारा अंग्रेजों को मारने की कार्रवाई को आतंकवाद कहा जाएगा? नहीं बिलकुल नहीं। यही हाल फ़िलिस्तीनियों का है जो अपनी कब्ज़ा की गई ज़मीनों को पाने के लिए इज़रायलियों से लड़ रहे हैं, यह उनका अधिकार है।

 

हक़ की हिमायत करना और मजलूमों का साथ देना हमारा धार्मिक, नैतिक और मानवीय कर्तव्य है

 

एक सवाल के जवाब में मौलाना फसाहत हुसैन ने कहा कि हमें हर स्थिति में सत्य और न्याय का साथ देना चाहिए, चाहे वह किसी भी देश की समस्या क्यों न हो। उन्होंने बताया कि जब भी दुनिया के किसी भी कोने में अन्याय और अत्याचार होगा, हम अपनी आवाज उठाते रहेंगे।

 

 

 

 

 

 

वक़्फ़ बिल को लेकर देश में जारी विवाद के बीच जमीयत उलेमा-ए-हिंद के चीफ मौलाना अरशद मदनी ने कहा है कि वक़्फ़ बिल की आड़ में देश में फैली वक़्फ़ की बहुमूल्य संपत्ति को हड़पने की साज़िश रची जा रही है।

जमीयत उलेमा-ए-हिंद के चीफ मौलाना अरशद मदनी ने रविवार को दावा किया कि वक्फ अमेंडमेंट बिल के जरिए वक्फ संपत्तियों को हड़पने की साजिश की जा रही है इसका पर्दाफाश करना बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा कि इस तरह के खतरों से निपटने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए, इस पर गहन चर्चा के लिए अगले महीने एक कॉन्फ्रेंस आयोजित की जाएगी।

जमीयत की तरफ से जारी एक बयान में मौलाना मदनी ने कहा कि जमीयत ने 1923 से 2013 तक वक्फ प्रपर्टीज की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी कदम उठाए हैं और "हम उस प्रतिबद्धता के साथ आगे बढ़ रहे हैं।  मौलाना मदनी ने कहा कि इंसानियत के बुनियाद पर समानता और हमदर्दी की भावना को बढ़ावा देने, लोकतंत्र को बचाए रखने और देश के संविधान की रक्षा के लिए तीन नवंबर 2024 को दिल्ली में जमीयत उलेमा-ए-हिंद (एएम ग्रुप) की एक कॉन्फ्रेंस आयोजित की जाएगी।

ज़ायोनी सरकार ने शनिवार को उत्तरी बैरूत में हमला किया जिसमें एक ईरानी नागरिक अपनी लेबनानी पति के साथ शहीद हो गया।

शहीदा मासूमा कर्बासी एक ईरानी महिला थी जो अपने लेबनानी पति डाक्टर रज़ा अवाज़ा के साथ इस्राईल के ड्रोन हमले में उत्तरी बैरूत में शहीद हो गयी।

इस्राईल के इस अपराध को लेबनान में टारगेट किलिंग के रूप में याद किया जा रहा है।

ईरानी राजदूत की पत्नी के अनुसार

जो ख़बरें प्रकाशित हुई हैं उसके अनुसार शनिवार को इस्राईली ड्रोन आरंभ में ईरानी नागरिक मासूमा कर्बासी और उसके लेबनानी पति रज़ा अब्बास अवाज़ा के वाहन की ओर मिसाइल फ़ायर करता है जो वाहन के किनारे लगता है। उसके बाद उसका पति रज़ा अब्बास अवाज़ा उसे वाहन से बाहर निकालता है परंतु ड्रोन दोबारा फ़ायरिंग करता है जिससे दोनों व्यक्ति शहीद हो जाते हैं।

लेबनान में ईरानी राजदूत की पत्नी नरगिस क़दीरियान ने मासूमा कर्बासी और उनके साथ अपने परिचय के बारे में सोशल प्लेटफ़ार्म पर लिखा कि  मेरी प्रिय सहेली श्रीमती मासूमा कर्बासी को ज़ायोनी सरकार ने शहीद कर दिया। बहुत सी शबे जुमा में होने वाली दुआये कुमैल और अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम के लिए होने वाली शोक सभाओं में हम एक साथ बैठते और आंसू बहाते थे। क़दीरियान ने इसी प्रकार लिखा कि उनके पांच बच्चे थे और वह हमेशा अपनी दो साल की बच्ची के साथ दुआओं के कार्यक्रम में आती थीं। शहादत का मीठा जाम उन्हें नसीब हुआ। ..