رضوی

رضوی

यह आयत स्पष्ट करती है कि पैग़म्बर (स) के मार्गदर्शन से दूर हो जाना और ईमान वालों के मार्ग से भटक जाना विनाश का अंत है। अल्लाह तआला ऐसे व्यक्ति को उसी रास्ते पर छोड़ देता है जिसे उसने स्वयं चुना था, और अन्ततः वह नरक का पात्र बन जाता है। इसलिए, अल्लाह के रसूल (स) की आज्ञा का पालन करना और ईमान वालों के मार्ग पर चलना ही मोक्ष का एकमात्र साधन है।

بسم الله الرحـــمن الرحــــیم  बिस्मिल्लाह अल रहमान अल रहीम

وَمَنْ يُشَاقِقِ الرَّسُولَ مِنْ بَعْدِ مَا تَبَيَّنَ لَهُ الْهُدَىٰ وَيَتَّبِعْ غَيْرَ سَبِيلِ الْمُؤْمِنِينَ نُوَلِّهِ مَا تَوَلَّىٰ وَنُصْلِهِ جَهَنَّمَ ۖ وَسَاءَتْ مَصِيرًا. व मय युशाक़ेक़िर रसूला मिन बादे मा तबय्यना लहुल हुदा व यत्तबिग़ ग़ैरा सबीलिल मोमेनीना नवल्लेहि व नुसलेहि जहन्नमा व साआतुम मसीरा (नेसा 115)

अनुवाद: और जो शख्स रसूल से झगड़ने लगे, इसके बाद कि उस पर हिदायत खुल चुकी हो और ईमान वालों के रास्ते के अलावा किसी और रास्ते पर चले, तो हम उसे फिर उसी रास्ते पर फेर देंगे जिस पर वह फिर गया था और उसे जहन्नम में डाल देंगे, जो सबसे बुरी जगह है।

विषय:

यह आयत अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के प्रति विरोध, ईमान वालों के मार्ग से भटकाव और उसके परिणामों पर प्रकाश डालती है।

पृष्ठभूमि:

यह आयत सूरह अन-निसा से ली गई है, जो मदनी काल में अवतरित हुई थी। इसमें इस्लामी समाज, नियमों और पाखंडियों की भूमिका पर चर्चा की गई है। आयत 115 में विशेष रूप से उन लोगों का उल्लेख किया गया है जो सत्य स्पष्ट होने के बावजूद अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का विरोध करते हैं और ईमान वालों के मार्ग के अलावा कोई दूसरा मार्ग अपनाते हैं।

तफ़सीर:

सत्य और मार्गदर्शन स्पष्ट हो जाने के बाद, हठ और शत्रुता के कारण अल्लाह के रसूल (स) के आदेश का विरोध करना, तथा रसूल (स) की आज्ञाकारिता में ईमान वालों द्वारा अपनाए गए मार्ग के अलावा अपनी इच्छाओं के अनुसार दूसरा मार्ग खोजना, कुफ़्र और पथभ्रष्टता की निशानी है। यहां दो मुद्दे ध्यान देने योग्य हैं:

मैं। [व यत्तबिग ग़ैरा सबीलिल मोमेनीना] अर्थात् वह ईमान वालों का मार्ग छोड़कर किसी अन्य मार्ग पर चलता है। इस वाक्य में, कुछ टिप्पणीकारों ने तर्क दिया है कि सर्वसम्मति एक तर्क है कि जब विश्वासी एक मुद्दे पर सर्वसम्मति से एक रास्ता चुनते हैं, तो दूसरों के लिए उस सर्वसम्मति का पालन करना अनिवार्य है।

तथ्य यह है कि इस आयत का किसी इज्माअ से कोई संबंध नहीं है, बल्कि इसमें रसूल (स) की आज्ञाकारिता और विरोध न करने का उल्लेख है। इसका उद्देश्य यह बताना है कि जो कोई भी व्यक्ति अल्लाह के रसूल (स) का विरोध न करने और उनका अनुसरण करने में ईमान वालों द्वारा अपनाए गए दृष्टिकोण से भिन्न दृष्टिकोण अपनाता है, वह नरक में जाने वाला व्यक्ति है। जबकि इज्माअ विश्वासियों के अपने व्यवहार से संबंधित है।

द्वितीय. [नोवल्लेहि मा तवल्ला] इस वाक्य से यह स्पष्ट हो जाता है कि जबरदस्ती का सिद्धांत झूठा है। मनुष्य अपने कार्यों में स्वतंत्र है और किसी भी प्रकार का दबाव उस पर नियंत्रण नहीं करता। इस वाक्य पर [तफ़सीर अल-मनार] के लेखक की टिप्पणी, अशरी के जबरदस्ती के सिद्धांत की अमान्यता पर पढ़ने लायक है।

महत्वपूर्ण बिंदू:

  1. जो कोई रसूल का विरोध करेगा अल्लाह उसे उसके हाल पर छोड़ देगा: [वह उसे उसके हाल पर छोड़ देगा]...
  2. जिस किसी को अल्लाह अपने हाल पर छोड़ दे, उसके लिए यही बड़ी सज़ा है: [और उसका भाग्य बहुत बुरा है]...

परिणाम:

यह आयत स्पष्ट करती है कि पैगम्बर (स) के मार्गदर्शन से विमुख होना तथा ईमान वालों के मार्ग से भटक जाना विनाश का अंत है। अल्लाह तआला ऐसे व्यक्ति को उसी रास्ते पर छोड़ देता है जिसे उसने स्वयं चुना था, और अन्ततः वह नरक का पात्र बन जाता है। इसलिए, अल्लाह के रसूल (स) की आज्ञा का पालन करना और ईमान वालों के मार्ग पर चलना ही मोक्ष का एकमात्र साधन है।

सूर ए नेसा की तफ़सीर

सीरिया में 5000 सीरियंस का खून बहाने वाले HTS के टेरेरिस्ट हों या पारा चिनार में शियो का खून बहाने वाले पाकिस्तानी टेरेरिस्ट हों कुरान की रौशनी में इन तमाम टेररिस्टों और इनको बनाने वालों को ठीक से पहचानिए?

सीरिया में 5000 सीरियंस का खून बहाने वाले HTS के टेरेरिस्ट हों या पारा चिनार में शियो का खून बहाने वाले पाकिस्तानी टेरेरिस्ट हों कुरान की रौशनी में इन तमाम टेररिस्टों  और  इनको बनाने वालों को ठीक से पहचानिए।

क़ुरान सिर्फ़ एक धार्मिक किताब नहीं है बल्कि इंसान की पूरी ज़िन्दगी का मार्गदर्शन है। क़ुरान मुसलमानों को सिर्फ़ पढ़ने का नहीं, बल्कि "गौर व फिक्र" (सोचने-समझने) का हुक्म देता है ताकि वे हक और बातिल (सच और झूठ) में फर्क कर सकें।

अफसोस की बात है कि मुसलमान क़ुरान को पढ़ते तो हैं, लेकिन न तो उस पर अमल करते हैं और न ही उसे समझते हैं कि कुरान ने किसे उनका असली दुश्मन कहा  है।

यही वजह है कि आज मुसलमान इस्लाम के भेस में छिपे  गद्दार मुस्लिम लीडरों और जिहाद के नाम पर इस्लामी खिलाफत कायम करने का ढोंग रचा कर इस्लाम को बदनाम करने वाले आतंकी संगठनों को नहीं पहचान पा रहे है। जो यहूद और नजारा के एजेंट हैं और यहूद और नसारा इनके जरिए से ही सब से ज्यादा इस्लाम को नुकसान पहुंचा रहे हैं।

क़ुरान ने बहुत साफ़ अल्फ़ाज़ में यहूद व नसारा को रहनुमा या सरपरस्त बनाने से मना किया है। सूरह मायदह (5:51) में अल्लाह फरमाता है:
"ऐ ईमान वालों! यहूदियों और नसाराओं को सरप्रस्त न बनाओ। वे आपस में एक-दूसरे के दोस्त हैं। और तुम में से जो कोई उनके कहने पर चलेगा, वह उन्हीं में से होगा ( यानी अल्लाह की निगाह में वो भी यहूदी और नसरानी होगा) । निःसंदेह अल्लाह ज़ालिम लोगों को हिदायत नहीं देता।(यानी वो मुसलमान जो कुरान के इस फैसले को न माने वो मुसलमान सिर्फ यहूदी और नसरानी ही नहीं है बलि अल्लाह की निगाह में वो ज़ालिम भी है) ये मेरा नहीं अल्लाह का फैसला है जो कुरान में लिखा हुआ है।

(सूरह मायदह: 51)

कुरान की इन आयात की रौशनी में खुद चेक कर लीजिए कि कितने मुस्लिम हुक्मरान, अमरीका, ब्रिटेन और इस्राईल और उनके जैसे मुल्कों के तलवे चाट रहे हैं और उनके हुक्म पर चल रहे हैं और अमरीका ब्रिटेन और इसराइल के खिलाफ एक लफ्ज़ भी नहीं बोलते,फिलिस्तीन में बरसों से और डेढ़ साल से तो रोज  ही मुसलमान मारे जा रहे हैं,बैतुल मुक़द्दस (अल-अक्सा मस्जिद) पर हमला हो रहा है मगर ये यहूदी एजेंट मुंह में दही जमाए हुए हैं।

अल्लाह ने ये भी फर्माया है कि जो लोग अल्लाह के फैसले के खिलाफ हुक्म देते हैं, वह भी काफिर, फ़ासिक़ और ज़ालिम हैं:और जो लोग अल्लाह के उतारे हुए हुक्म के अनुसार फैसला न करें, वही तो काफ़िर हैं।
(सूरह मायदह: 44)

और जो लोग अल्लाह के उतारे हुए हुक्म के अनुसार फैसला न करें, वही तो ज़ालिम (अत्याचारी) हैं।(सूरह मायदह: 45)और जो लोग अल्लाह के उतारे हुए हुक्म के अनुसार फैसला न करें, वही तो फासिक (आज्ञा भंग करने वाले) हैं।

(सूरह मायदह: 47)

यानी जो भी अल्लाह और उसके रसूल के हुक्म के खिलाफ चले,चाहे वो मुसलमान कहलाए, वो असल में काफ़िर, ज़ालिम और फासिक है।
क़ुरान ने सच्चे मुसलमानों की पहचान बताते हुए ये भी कहा है:तुम्हारे दोस्त तो बस अल्लाह, उसका रसूल और ईमान वाले हैं, जो नमाज़ क़ायम करते हैं, ज़कात देते हैं और अल्लाह के आगे झुकते हैं।(सूरह मायदह: 55)

इस आयत की रौशनी में देख कीजिए अल्लाह रसूल पर ईमान रखने वाले फिलिस्तीनियों के साथ कौन है कौन उनकी मदद कर रहा है और कौन फिलिस्तीनियों का साथ नहीं दे रहा बल्कि इसराइल के और अमरीका के साथ है और गाज़ा का रस्ता खुलवा के वहां मदद पहुंचाने के बजाए फिलिस्तीनियों की मदद रोकने और भूखा प्यासा मारने वाले इसराइल को अपनी सरजमीन से मदद पहुंचा रहे हैं।

इसलिए जो यहूद व नसारा के दोस्त बने हुए हैं, उनके साथ खड़े हैं, वो कुरान के फैसले के मुताबिक मुसलमान नहीं हो सकते।
इसके अलावा, क़ुरान ये भी बता चुका है कि इस्लाम का सबसे बड़ा दुश्मन कौन है:

"ईमानवालों! तुम पाओगे कि सबसे ज्यादा दुश्मनी करने वाले यहूदी और मुशरिक हैं,(सूरह मायदह: 82)

यानि यहूदी  मुसलमानों के असली दुश्मन हैं।

आज जो तरह तरह के जिहादी संगठन हैं जो "जिहाद" के नाम पर मुसलमानों का खून बहा रहे हैं वो चाहे तालिबान, अल-कायदा, दाइश (ISIS) हो,या HTS का जुलानी ये सब यहूद व नसारा के एजेंट हैं।

इन संगठनों ने भी कभी  फिलिस्तीन के लिए आवाज़ नहीं उठाई और कभी इसराइल के खिलाफ़ नहीं खड़े हुए और किसी ने भी बैतूल मुकद्दस और फ़िलीस्तीन की आज़ादी में कोई हिस्सा नहीं लिया  उनका मकसद सिर्फ मुसलमानों में फूट डालना मुस्कानों के गले काटना मुस्लिम मुमालिक को कमजोर करना और इस्लाम को बदनाम कर के यहूद नसारा और इस्लाम दुश्मन ताकतों को फायदा पहुंचाना है।

ये सारे दहशत गर्द संगठन अमरीका इसराइल ब्रिटेन और अमरीका इसराइल नवाज़ मुस्लिम मुमालिक के पैसों ट्रेनिंग और हथियारों पर पल रहे हैं।

यानी इन सारे आतंकी गिरोहों ने भी अपना सर प्रस्त अमरीका ब्रिटेन और इसराइल को बना रखा है मतलब अमरीका इसराइल और ब्रिटेन के तलवे चाटने वाले मुस्लिम मुमालिक हों या उनके इशारों पर नाचने वाले आतंकवादी संगठन हों दोनों कुरान की रौशनी में यहूदी और नसरानी हैं

इस्लाम अमन, इंसाफ़ और भाईचारे का मज़हब है, लेकिन ये दोनों इस्लाम के भेस में छिपे इस्लाम के गद्दार इस्लाम को खून-खराबे और दहशत गर्दका मज़हब दिखाकर यहूद व नसारा की इस्लाम विरोधी चालों को कामयाब बना रहे हैं।

इसलिए, हर मुसलमान को चाहिए कि रमजान के महीने में क़ुरान को समझे, उस पर गौर करे, और अपने अंदर के इन दुश्मनों को पहचान कर उनका पर्दाफाश करे। जब तक हम क़ुरान की रौशनी में हक और बातिल की पहचान नहीं करेंगे, तब तक मुसलमानों की जमात मुत्ताहिद नहीं हो सकती।

निष्कर्ष,आज मुसलमानों के सामने सबसे बड़ा फर्ज़ यही है कि वो अपने बीच छिपे गद्दार मुस्लिम हुक्मरानों और आतंकवादियों को बेनकाब करें।

जो यहूद व नसारा के एजेंट बनकर इस्लाम को बदनाम कर रहे हैं,और यहूदियों से ज्यादा मुस्कानों का खून बहा रहे हैं। दो दिनों के अन्दर जुलानी के आतंकवादी संगठन HTS ने 5000 सीरियाई मुसलमानो की जान ले कर बता दिया कि ये यहूदी और नसरानी तकफिरी HTS के आतंकवादी अपने आका मुल्ला उमर और अबूबकर  बगदादी की तरह दूसरे मुसलमानों को काफिर समझते हैं और अपने अलावा किसी को मुसलमान नहीं समझते और इसी लिए अपने अलावा दूसरे मुसलमानों का कतले आम करते रहते है ऐसे लोगों को रोकना हर सच्चे मुसलमान की जिम्मेदारी है।

आप लोग देख लीजिए इसराइल सीरिया पर कब से कब्जा कर रहा है जुलानी ने इसराइल के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया मगर HTS के दहशत गर्द अलवाइट्स और शियो का खुले आम कत्ल कर रहे हैं।

क़ुरान का साफ़ हुक्म है जो अल्लाह के हुक्म के खिलाफ चले, वो काफ़िर, ज़ालिम और फासिक है, चाहे वो मुस्लिम मुमालिक के सरब्राहान हों या मुसलमान के नाम पर बने आतंकी संगठन हों ये चाहे जितना अपने आप को मुस्लिम कहें कुरान की रौशनी में ये सब यहूदी,नसरानी और ज़ालिम हैं और अल्लाह खुद कुरान में जगह जगह ज़लीमों पर लानत करता है।

(शौकत भारती)

 

हौज़ा इल्मिया की सुप्रीम काउंसिल के सदस्य ने तीनों राष्ट्रीय राज्य संस्थानों की हिजाब कानून के प्रवर्तन में ज़िम्मेदारियों पर जोर देते हुए कहा,हिजाब न केवल एक शरीयत का फर्ज़ है बल्कि यह इस्लामी गणराज्य ईरान की संसद द्वारा कानून भी है।

हौज़ा इल्मिया की सुप्रीम काउंसिल के सदस्य आयतुल्लाह महमूद रजब़ी ने एक प्रतिनिधि से बातचीत के दौरान कहा,आज हमारे समाज में एक महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि इस्लाम मक़तबे अहल बैत (अ.ल.) और इस्लामी क्रांति के दुश्मन हर अवसर को इस्लामी व्यवस्था के खिलाफ साजिश के रूप में इस्तेमाल करते हैं।

उन्होंने कहां,हिजाब एक अनिवार्य शरीयत का आदेश है जिसका पालन सभी पर आवश्यक है। अल्हमदुलिल्लाह हमारे समाज का अधिकांश भाग धार्मिक है और शरीयत के आदेशों का पालन करता है। कभी कभी उत्पन्न होने वाली कुछ बुराइयों को दुश्मन के प्रचार का साधन नहीं बनने देना चाहिए ताकि वह यह धारणा न बना सके कि हमारा समाज हिजाब का विरोधी है।

उन्होंने आगे कहा,दुनिया ने देखा कि विभिन्न घटनाओं में जब दुश्मन ने हिजाब के मुद्दे को अपने लाभ के लिए इस्तेमाल करना चाहा तो स्वयं महिलाओं ने इसका सामना किया और दुश्मनों ने भी यह स्वीकार किया कि वे इससे कोई लाभ नहीं उठा सके।

हौज़ा इल्मिया की सुप्रीम काउंसिल के सदस्य ने कहा,अल्हमदुलिल्लाह हमारा समाज धार्मिक है और इस्लाम, मक़तबे अहल-बैत अ.स. इस्लामी व्यवस्था और नेतृत्व के प्रति वफादार है। लेकिन इसके बावजूद, हमें सतर्क रहना चाहिए और दुश्मनों की साजिशों से होशियार रहना चाहिए ताकि वे किसी भी परिस्थिति का गलत फायदा न उठा सकें।

 

 

ईरान के विदेश मंत्री ने जोर देकर कहा, हम किसी भी तरह के दबाव या धमकी के तहत बातचीत नहीं करेंगे और ऐसी किसी भी वार्ता को विचार योग्य तक नहीं मानते चाहे उसका विषय कुछ भी हो।

ईरान के विदेश मंत्री सैयद अब्बास इराक़ची ने एक्स पर लिखा,ईरान का परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम हमेशा पूरी तरह से शांतिपूर्ण रहा है और रहेगा इसलिए इसकी तथाकथित ‘संभावित सैन्यीकरण’ जैसी कोई बात ही नहीं है।

हम किसी भी दबाव या धमकी के तहत बातचीत नहीं करेंगे। हम ऐसी किसी भी वार्ता को विचार योग्य तक नहीं मानते चाहे उसका विषय कुछ भी हो बातचीत और धौंस में अंतर होता है।

हम इस समय तीन यूरोपीय देशों के साथ और अलग से रूस और चीन के साथ समान परिस्थितियों और आपसी सम्मान के आधार पर विचार-विमर्श कर रहे हैं।

इसका उद्देश्य अधिक विश्वास और पारदर्शिता बढ़ाने के उपाय खोजना है ताकि ईरान के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम को लेकर अधिक स्पष्टता हो सके और बदले में अवैध प्रतिबंध हटाए जा सकें।

अतीत में जब भी अमेरिका ने ईरान के साथ सम्मानपूर्वक संवाद किया उसे सम्मान ही मिला। लेकिन जब भी उसने धमकीभरी भाषा अपनाई, तो उसे ईरान के प्रतिरोध का सामना करना पड़ा हर क्रिया की अनिवार्य रूप से एक प्रतिक्रिया होती है।

ब्रिटेन सरकार द्वारा ईरान सरकार के कर्मचारियों के खिलाफ निगरानी उपायों को कड़े करने की घोषणा और इस देश के सुरक्षा मंत्री के उस बयान जिसमें उन्होंने विदेशी प्रभाव पंजीकरण योजना में ईरान को उन्नत श्रेणी में शामिल करने की बात कही, जिस पर गुरुवार 6 मार्च को ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता इस्माइल बक़ाई की प्रतिक्रिया सामने आई है।

ब्रिटेन सरकार द्वारा ईरान सरकार के कर्मचारियों के खिलाफ निगरानी उपायों को कड़े करने की घोषणा और इस देश के सुरक्षा मंत्री के उस बयान जिसमें उन्होंने विदेशी प्रभाव पंजीकरण योजना में ईरान को उन्नत श्रेणी में शामिल करने की बात कही, जिस पर गुरुवार 6 मार्च को ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता इस्माइल बक़ाई की प्रतिक्रिया सामने आई है।

इस संबंध में उन्होंने एक संदेश में कहा कि ब्रिटेन सरकार ईरानियों के प्रति अपनी अव्यावहारिक और द्वेषपूर्ण मानसिकता पर अड़ी हुई है, ताकि वह अपने अपराधों को छुपा सके चाहे वह फिलिस्तीनी जनता के खिलाफ नरसंहार का समर्थन हो या फिर ईरान विरोधी आतंकवाद को बढ़ावा देना जिसकी जड़ें 1953 ईरान तख्तापलट तक जाती हैं, जब ब्रिटेन ने जनता द्वारा चुनी गई सरकार के खिलाफ साजिश रची थी और यह घटना कभी भी हमारी यादों से मिट नहीं सकती।

बक़ाई ने ब्रिटिश अधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा,यह एक घटिया बचाव है कि आप ईरान पर उसी चीज का आरोप लगाएं जिसमें खुद आप निपुण हैं यानी राष्ट्रों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप! विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने आगे कहा, लेकिन अब उन्नीसवीं सदी नहीं रही जो भी सरकार ईरानी जनता पर बेबुनियाद आरोप लगाएगी या उनके खिलाफ शत्रुतापूर्ण कदम उठाएगी उसे जवाबदेह होना पड़ेगा।

बक़ाई का यह इशारा 19वीं सदी के ब्रिटिश साम्राज्य की ओर था जिसे “वह दौर जब ब्रिटेन में सूरज नहीं डूबता था कहा जाता था और इसे ब्रिटिश साम्राज्य के स्वर्ण युग के रूप में देखा जाता है।

विदेशी प्रभाव पंजीकरण योजना ब्रिटेन में विदेशी सरकारों के एजेंटों की गतिविधियों की निगरानी के लिए बनाई गई है इस नए कदम के तहत, ईरानी सरकार के कर्मचारी या जो भी ब्रिटेन में ईरान सरकार की ओर से गतिविधियां कर रहे हैं उन्हें इस योजना के तहत अपना नाम पंजीकृत कराना होगा।

ब्रिटिश सरकार के अनुसार, यदि ईरान सरकार के कर्मचारी इस नियम का पालन नहीं करते हैं, तो यह एक आपराधिक कृत्य माना जाएगा, जो अधिकतम 5 साल की कैद तक की सजा का कारण बन सकता है।

इस्माइल बक़ाई ने ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा ईरान पर लगाए गए उस आरोप को बेबुनियाद बताया था, जिसमें कहा गया था कि ईरान ब्रिटेन की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करने की कोशिश कर रहा है। उन्होंने ब्रिटिश अधिकारियों को सलाह दी कि वे ईरान के खिलाफ शत्रुतापूर्ण नीतियों और निराधार आरोपों पर जोर देने के बजाय, ईरानी जनता के खिलाफ अपनी गलत नीतियों को त्यागें और आतंकवाद को बढ़ावा देने व उसे प्रोत्साहित करने से बाज आ

तालिबान का कहना है कि उनके नियंत्रण वाले अफ़ग़ानिस्तान में महिलाएं शारीरिक और मानसिक रूप से पूरी तरह सुरक्षित हैं और उनके खिलाफ किसी भी तरह की हिंसा नही हुई हैं।

तालिबान के उप प्रवक्ता हामिदुल्लाह फ़ितरत ने शनिवार (18 हुत, 8 मार्च – अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस) को अपने एक्स (पूर्व में ट्विटर) अकाउंट पर लिखा कि महिलाओं की इज्जत, गरिमा और उनके धार्मिक अधिकारों की रक्षा इस्लामी अमीरात की प्राथमिकता है। उन्होंने दावा किया कि अफ़ग़ान महिलाएं पूरी सुरक्षा में हैं और किसी भी तरह की हिंसा से मुक्त जीवन जी रही हैं।

तालिबान प्रवक्ता ने यह भी कहा कि कोई भी व्यक्ति महिलाओं के अधिकारों का हनन नहीं कर सकता और न ही उन्हें अपमानित कर सकता है। उनके मुताबिक, तालिबान की अदालतें और अन्य संबंधित संस्थाएं इस बात को सुनिश्चित करने के लिए काम कर रही हैं कि महिलाओं को उनके विवाह, दहेज, संपत्ति और अन्य धार्मिक अधिकार मिलें और इनकी निगरानी और सुरक्षा की जाए।

उन्होंने आगे कहा कि अफ़ग़ान महिलाओं के अधिकार इस्लामी शरीयत, अफ़ग़ानी संस्कृति और परंपराओं के अनुसार सुनिश्चित किए गए हैं। साथ ही, उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि अफ़ग़ान समाज एक इस्लामी समाज है, जो पश्चिमी समाज और उसकी संस्कृति से पूरी तरह अलग है।

हालांकि, हकीकत इसके विपरीत है। तालिबान के शासन के तहत अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं को उनके मौलिक अधिकारों से वंचित कर दिया गया है। उन्हें शिक्षा और काम करने के अधिकार से भी वंचित कर दिया गया है, जो कि न केवल शरीयत की व्याख्या बल्कि अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों के भी खिलाफ़ है।

हमास आंदोलन ने एक बयान में बताया कि उसके एक प्रतिनिधिमंडल ने मिस्र की खुफिया एजेंसी के प्रमुख से मुलाकात की और युद्धविराम समझौते के लिए तीन अहम शर्ते रखी हैं।

फ़िलस्तीनी संगठन हमास के प्रवक्ता ने अलजज़ीरा मुबाशिर चैनल को बताया कि हमास ने युद्धविराम वार्ता जारी रखने के लिए तीन मुख्य शर्तें रखी हैं

बंदियों का आदान-प्रदान ,ग़ाज़ा से इसरायली क़ब्ज़ा करने वाली सेनाओं की पूरी तरह वापसी,इसरायल की ओर से युद्ध दोबारा शुरू न करने की प्रतिबद्धता उन्होंने स्पष्ट किया कि मध्यस्थों के साथ दूसरी चरण की वार्ता शुरू करने को लेकर बातचीत जारी है, और आने वाले दिनों में कूटनीतिक गतिविधियों में बढ़ोतरी की उम्मीद है।

साथ ही हमास के प्रतिनिधिमंडल ने मिस्र की योजना को स्वीकार कर लिया है जिसमें एक स्वतंत्र फ़िलस्तीनी शख्सियतों वाली जन समर्थन समिति बनाई जाएगी जो ग़ाज़ा का प्रशासन संभालेगी।

यह समिति तब तक ग़ाज़ा का प्रबंधन करेगी जब तक फ़लस्तीनी गुट अपने आपसी मतभेदों को हल नहीं कर लेते और संसदीय एवं राष्ट्रपति चुनाव नहीं हो जाते।

ग़ौरतलब है कि इस योजना का इसरायली शासन, अमेरिका और फ़िलस्तीनी अथॉरिटी ने विरोध किया है।

इसी बीच, इसरायली चैनल 12 ने दावा किया है कि हमास ने युद्धविराम की मौजूदा स्थिति को बढ़ाने पर सहमति जताई है और आगामी हफ्तों में युद्ध फिर से शुरू होने की संभावना नहीं है।

 

राजनीतिक विशेषज्ञों और विश्लेषकों ने फिलिस्तीन के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हमास के साथ बातचीत के अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प के फ़ैसले का विश्लेषण किया।

इस्राईली मुद्दों के विशेषज्ञ "फ़ेरास याग़ी" ने अमेरिका और हमास के बीच सीधी बातचीत का ज़िक्र करते हुए इसे ट्रम्प प्रशासन के दृढ़ विश्वास का परिणाम क़रार दिया कि सीधी बातचीत से क़ैदियों की रिहाई में तेजी आएगी और यह क्षेत्र में व्यापक योजनाओं की प्रस्तावना है।

दूसरी ओर, एक अन्य फ़िलिस्तीनी विश्लेषक "हसन लाफ़ी" ने कहा: हमास के साथ अमेरिकी बातचीत के दो नकारात्मक और सकारात्मक पहलू हैं।

इसका सकारात्मक पक्ष यह है कि ट्रम्प प्रशासन इस बात को लेकर आश्वस्त है कि हमास के बिना क़ैदियों की समस्या का समाधान संभव नहीं है और यह नेतन्याहू के सैन्य दबाव की हार जैसा है।

 उनके अनुसार, नकारात्मक पहलू युद्ध रोकने की प्रतिबद्धता दिए बिना, अधिक कैदियों को रिहा करने की हमास के ख़िलाफ़ अमेरिकी चाल है।

फ़िलिस्तीन के राजनीतिक विश्लेषक अय्याद अल-क़रा ने कहा कि हमास के साथ अमेरिकी वार्ता एक व्यापक बातचीत शुरू करने के लिए एक महत्वपूर्ण क़दम है जो क़ैदियों के मुद्दे से परे है और ग़ज़ा में युद्ध को रोकने और क़ब्ज़ा करने वालों को अपने दायित्वों को पूरा करने के लिए मजबूर करने की संभावना की ओर ले जाती है।

उन्होंने कहा: ये वार्ताएं इज़राइली क़ब्ज़े में वाशिंगटन के विश्वास में गिरावट और हमास पर क़ाबू पाने या इसे राजनीतिक रूप से हाशिए पर डालने में उनकी नाकामी को ज़ाहिर करती हैं।

इस दौरान; अरब जगत के एक प्रमुख विश्लेषक अब्दुल बारी अतवान ने कहा, अरब मध्यस्थों के माध्यम से डोनल्ड ट्रम्प का बातचीत का रुख़, हमास के लिए शर्तें तय करने में सरकार और उनके दूत की निराशा का नतीजा है।

इस संबंध में इज़राइली टीवी चैनल "i24" ने भी हमास के ख़िलाफ़ डोनल्ड ट्रम्प और बेन्यामीन नेतन्याहू की निराधार धमकियों की ओर इशारा किया और कहा कि अमेरिका के राष्ट्रपति और ज़ायोनी प्रधानमंत्री अपनी धमकियों पर अमल करने में सक्षम नहीं हैं और अब हमास के साथ दोस्ती की कोशिश कर रहे हैं।

ग़ज़ा में युद्ध के लक्ष्यों को प्राप्त करने में नेतन्याहू की असमर्थता को जारी रखते हुए, अमेरिका और हमास के बीच सीधी बातचीत के बाद, ज़ायोनी शासन के चैनल 13 ने कुछ ज़ायोनी अधिकारियों के हवाले से एक रिपोर्ट में कहा है कि: यदि डोनल्ड ट्रम्प हमास के साथ एक समझौते पर पहुंचते हैं, तो बेंजामिन नेतन्याहू के लिए इसका विरोध करना बहुत मुश्किल होगा और अमेरिकी इस पर कार्रवाई करेंगे।

इस बीच, फिलिस्तीन का इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन "हमास" अपनी सभी मांगों पर अमल किए जाने पर जोर दे रहा है जिसमें कैदियों की अदला-बदली, ग़ज़ा से क़ाब्ज़ि सेनाओं की पूर्ण वापसी और वार्ता जारी रखने के लिए युद्ध फिर से शुरू न करने की ज़ायोनी शासन की प्रतिबद्धता शामिल है।

इस्लाम में औरत को एक माँ, बेटी, बहन और पत्नी के रूप में विशेष दर्जा दिया गया है। कुरआन और हदीस में महिलाओं के अधिकार, सम्मान और सुरक्षा पर ज़ोर दिया गया है,इस्लाम औरत को सम्मान की नज़र से देखता है।

हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने फरमाया,इस्लाम में औरत को एक माँ, बेटी, बहन और पत्नी के रूप में विशेष दर्जा दिया गया है। कुरआन और हदीस में महिलाओं के अधिकार, सम्मान और सुरक्षा पर ज़ोर दिया गया है,इस्लाम औरत को सम्मान की नज़र से देखता है।

इस्लाम चाहता है कि औरत में इतनी इज़्ज़त और शान रहे कि उसे इस बात की तनिक भी परवाह न हो कि कोई मर्द उसे देख रहा है या नहीं। यानी औरत में आत्म-सम्मान ऐसा हो कि उसे इस बात की परवाह नहीं होनी चाहिए कि कोई मर्द उसे देख रहा है या नहीं देख रहा है।

यह स्थिति कहाँ और यह बात कहाँ कि औरत अपना लेबास, अपना श्रंगार, अपनी चाल और अपने बातचीत के अंदाज़ को किस तरह का अपनाए कि लोग उसे देखें?ग़ौर कीजिए इन दोनों बातों में कितना अंतर है!

सोशल साइट X के एक यूज़कर्ता और राजनीतिक कार्यकर्ता ने ब्रिटेन को ग़ज़ा पट्टी में इस्राईल द्वारा किये जा रहे अपराधों में उसका भागीदार बताया है।

सोशल साइट X के एक यूज़कर्ता और राजनीतिक कार्यकर्ता जेर्मी कोर्बिन ने इस्राईल द्वारा ग़ज़ा पर किये गये हमले का उल्लेख किया है।

उन्होंने लिखा कि वह ब्रिटेन द्वारा ग़ज़ा पट्टी में निभाई जा रही भूमिका व योगदान के बारे में स्वतंत्र और एक पूर्णरूप जांच कराये जाने के इच्छुक हैं। उन्होंने लिखा कि हमारी सरकार नस्ली सफ़ाये में इस्राईल की भागीदार है और हम उसके समस्त पहलुओं व आयामों को जानने का अधिकार रखते हैं।

टैरिफ़ युद्ध में कोई पक्ष विजेता नहीं है

सोशल साइट X के एक अन्य यूज़कर्ता एलेक्स कोल ने ट्रम्प के टैरिफ़ युद्ध की उपमा गड्ढा खोदने से दी है।

उन्होंने ट्रम्प को संबोधित करते हुए लिखा कि हे मूर्ख कमीने, उस गड्ढे का खोदना जारी रख और वह भी यह काम जारी रखेगा। कोई भी टैरिफ़ युद्ध में विजयी नहीं होगा।

नैटो, जूलानी सरकार के कृत्यों का अस्ली कारण व ज़िम्मेदार

सोशल साइट X के एक अन्य यूज़र जैक्सन हिंकल ने इस समय सीरिया में होने वाली लड़ाइयां और जूलानी सरकार के तत्वों द्वारा अलवियों के आम नागरिकों के मारे जाने की ओर संकेत किया और लिखा कि सीरिया में आतंकवादी अकारण ही आम लोगों के मकानों पर हमले कर रहे हैं! यह वही चीज़ है जिसका ज़िम्मेदार नैटो है।

तुर्किये और क़तर 14 साल से सीरिया को बर्बाद व ख़त्म करने की चेष्टा में थे .