
رضوی
आयतुल्लाहिल उज़मा बहजत/इलाही इल्म के माहिर आलिम और विशिष्ट फक़ीह थे
इमाम ख़ुमैनी शैक्षिक और शोध संस्थान के सदस्य हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन अली मिसबाह यज़दी ने कहा है कि इंसानियत की हिदायत और फ़िक्री रौशनी, दीन के अलमबरदारी उलमा की ज़िम्मेदारी है और मरहूम आयतुल्लाहिल उज़मा बहजत उन अज़ीम उलमा में से थे जो इलाही मआरिफ़ के माहिर और एक बेमिसाल फक़ीह थे।
इमाम ख़ुमैनी शैक्षिक और शोध संस्थान के सदस्य हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन अली मिसबाह यज़दी ने कहा है कि इंसानियत की हिदायत और फ़िक्री रौशनी, दीन के अलमबरदारी उलमा की ज़िम्मेदारी है और मरहूम आयतुल्लाहिल उज़मा बहजत उन अज़ीम उलमा में से थे जो इलाही मआरिफ़ के माहिर और एक बेमिसाल फक़ीह थे।
उन्होंने यह बात बुधवार की रात फ़ूमन शहर की जामा मस्जिद में आयोजित आयतुल्लाह बहजत की सोलहवीं बरसी और शहीद छात्रों व उलमा की याद में आयोजित एक मजलिस को संबोधित करते हुए कही।
उन्होंने कहा कि इस्लामी इतिहास में कई बुज़ुर्ग और महान उलेमा गुज़रे हैं जिन्होंने इंसानियत की ख़िदमत की, लेकिन कुछ शख्सियतों का फ़ुक़्दान ऐसा होता है जिसे कभी पूरा नहीं किया जा सकता। रिवायतों के मुताबिक़ जब कोई बड़ा आलिम दुनिया से रुख़्सत होता है तो एक ऐसा ख़ला पैदा होता है जो क़यामत तक बाक़ी रहता है, क्योंकि ऐसे उलेमा का किरदार और मर्तबा इंसानी हिदायत के अज़ीम फ़रीज़े से जुड़ा होता है।
उन्होंने वाज़ेह किया कि इंसान की तख़लीक़ का मक़सद यह है कि वो हर सांस और हर कदम के साथ ख़ुदा के क़रीब होता चला जाए। और यह क़ुर्बे इलाही तभी हासिल होता है जब इंसान इस छोटी सी दुनियावी ज़िंदगी में रुश्द व कमाल (विकास और पूर्णता) के रास्ते पर चले।
हुज्जतुल इस्लाम मिसबाह यज़दी ने कहा कि इंसान के कमाल के सफ़र में एक राहशिनास (मार्गदर्शक) का होना ज़रूरी है और यह रहनुमा अंबिया, औलिया और उलमा होते हैं। हर आलिम अपने असर के दायरे में एक ख़ला को भरता है, लेकिन जब वो दुनिया से चला जाता है तो उसका खालीपन बाक़ी रह जाता है।
उन्होंने आयतुल्लाह बहजत की इल्मी और रुहानी ख़िदमात को ख़िराजे तहसीन पेश करते हुए कहा,वो एक ऐसे फक़ीह और आलिमे रब्बानी थे जिन्होंने अपनी पुरबरकत ज़िंदगी में लोगों की हिदायत और तर्बियत का फ़रीज़ा अंजाम दिया, और उनका इल्म और तक़्वा आज भी उम्मत के लिए एक मशअले राह (रौशनी का स्रोत) है।
उन्होंने यह भी कहा कि उलमा का फ़रीज़ा सिर्फ़ तालीम देना नहीं, बल्कि वो फ़िक्री और अकीदती हमले का जवाब देना भी है जो शैतानी ताक़तें वक़्तन फवक़्तन इंसानियत पर करती हैं। इसी वजह से उलमा, ख़ास तौर पर फुक़हा, को दुश्मनों की सख़्त मुख़ालिफ़त का सामना करना पड़ता है।
मिसबाह यज़दी ने कहा कि इंक़िलाबे इस्लामी ईरान आज के दौर की एक अज़ीम नेमत है। इमाम ख़ुमैनी की क़ियादत और मोमिन क़ौम की इस्तेक़ामत ने दीन और दीनदारी को दोबारा ज़िंदा किया, जिसे गुज़िश्ता दौर में फ़रामोशी के हवाले किया जा रहा था।
उन्होंने कहा कि आज भी इंक़िलाब को दुश्मनों की साज़िशों और फ़िक्री हमलों का सामना है सख़्त जंग, सकाफ़ती यलग़ार इस्लाम को बदनाम करना और लोगों के अकीदों को डगमगाना करना इन साज़िशों की मुख़्तलिफ़ शक्लें हैं। ऐसे हालात में रूहानियत की ज़िम्मेदारी पहले से कहीं ज़्यादा संगीन और हस्सास हो चुकी है।
अपने ख़िताब के आख़िर में उन्होंने जिहादे तबीइन यानी दीन की सही और वाज़ेह तशरीह को आज की सबसे बड़ी ज़रूरत क़रार देते हुए कहा कि इस्लामी समाज की रहनुमाई किसी एक इलाक़े तक महदूद नहीं, बल्कि पूरी इंसानियत की हिदायत उलमा की आलमी ज़िम्मेदारी है।
अंत में उन्होंने याद दिलाया कि अगर आज हम शोहदा के खून, बाशऊर क़ौम और रहबर मुअज़्ज़म की क़ियादत की बदौलत इस्लामी निज़ाम में सांस ले रहे हैं, तो लाज़मी है कि इस नेमत को दिनी मआरिफ़ के फैलाव और शऊर की बेदारी के लिए भरपूर इस्तेमाल करें।
हमास के साथ अमेरिका की सीधी बातचीत को इस्राइल की रणनीतिक हार माना जा रहा है
एक ज़ायोनी विश्लेषक ने एक इस्राइली मीडिया में चेतावनी दी है कि अमेरिका और ज़ायोनी शास के बीच विशेष संबंध टूटने के कगार पर हो सकते हैं।
इस्राइल की हैफ़ा यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के प्रोफ़ेसर और इस्राइल -अमेरिका संबंधों के विशेषज्ञ अब्राहम बिन त्सवी ने इस्राइलीअख़बार यिस्राएल ह्यूम में लिखा: "छह दशकों से अमेरिका और इस्राइल के बीच जो गहरा, रणनीतिक और कूटनीतिक सहयोग रहा है वह साझा मूल्यों पर आधारित था और उसे विशेष संबंध कहा जाता था और अब वह एक संवेदनशील मोड़ पर पहुंच गया है जो इस गठबंधन के भविष्य को ख़तरे में डाल सकता है।"
बिन तसफ़ी ने लिखा: "डोनाल्ड ट्रंप और ज़ायोनी शासन के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू क्षेत्रीय और वैश्विक संवेदनशील मुद्दों पर सीधे टकराव की ओर तेज़ी से बढ़ रहे हैं।"
लेखक के अनुसार ग़ज़ा पट्टी में युद्ध का शीघ्र अंत डोनाल्ड ट्रंप के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा है जो उन्हें एक दृढ़ और निर्णायक नेता के रूप में स्थापित करने में मदद करेगा, ऐसा नेता जो लगातार बड़े संकटों को सुलझाने या कम से कम उन्हें नियंत्रित करने का प्रयास करता है। ट्रंप ख़ुद को एक मध्यस्थ के रूप में पेश करना चाहते हैं और ग़ज़ा युद्ध उनके लिए पश्चिमी एशिया को अमेरिका के नियंत्रण में पुनः डिज़ाइन करने के प्रयासों का हिस्सा माना जाता है।
बिन तसफ़ी ने आगे कहा: इस लक्ष्य की प्राप्ति वॉशिंगटन और फ़ार्स की खाड़ी क्षेत्र के अरब देशों के बीच आपसी समझौतों पर निर्भर है। अमेरिका इन देशों को उन्नत व विकसित हथियार दे रहा है बदले में उनसे अपनी अर्थव्यवस्था में भारी निवेश की अपेक्षा करता है ताकि क्षेत्र में उनके सैन्य प्रभाव और स्थिति को मज़बूत किया जा सके।
इस विश्लेषण व समीक्षा में बताया गया है: व्हाइट हाउस की इस नीति का अंतिम उद्देश्य एक व्यापक कूटनीतिक और रणनीतिक गठबंधन बनाना है जो अमेरिका के समर्थन से क्षेत्रीय और वैश्विक खतरों और चुनौतियों का सामना कर सके और नए क्षेत्रीय व्यवस्था के ख़िलाफ पैदा होने वाले ख़तरों को नियंत्रित कर सके।
बिन तसफ़ी ने चेतावनी दी कि अमेरिका और ज़ायोनी शासन के बीच विशेष संबंध अब अभूतपूर्व दबाव में हैं, क्योंकि डेमोक्रेटिक पार्टी के वामपंथी धड़े को इस संबंध के लिए एक गंभीर ख़तरे के रूप में देखा जा रहा है। वहीं रिपब्लिकन पार्टी के अलगाववादी धड़े में भी इस रिश्ते को लेकर बढ़ती उदासीनता के संकेत नज़र आ रहे हैं।
इस राजनीति विश्लेषक ने आगे कहा: "यह स्थिति व्हाइट हाउस के भीतर नेतन्याहू के प्रति बढ़ती निराशा और ग़ुस्से का कारण बनी है और अब यह असंतोष स्पष्ट रूप से सामने आ चुका है।"
बिन तसफ़ी ने कहा: "डोनाल्ड ट्रंप और उनके मध्य पूर्व मामलों के प्रतिनिधि Steve Witkoff यह समझने में असमर्थ हैं कि ज़ायोनी शासन ग़ज़ा के दलदल में अपनी मौजूदगी क्यों बनाए हुए है, क्योंकि उनकी दृष्टि में यह युद्ध न तो कोई स्पष्ट उद्देश्य रखता है और न ही कोई अर्थ।"
इस इस्राइली ज़ायोनी विश्लेषक ने क्षेत्र में हाल ही में हुए घटनाक्रमों की ओर इशारा किया जो अमेरिका और इस्राइली के बीच संबंधों को और अधिक बिगाड़ सकते हैं।
इनमें से एक उदाहरण दोहरी नागरिकता रखने वाले इस्राइली -अमेरिकी बंदी 'ईदान अलेक्ज़ेंडर' की रिहाई है जिसे हमास ने अमेरिका के साथ सीधी बातचीत के बाद आज़ाद किया।
उसने अंत में यह संभावना जताई कि निकट भविष्य में ग़ज़ा के बाद प्रशासन में हमास की राजनीतिक भूमिका को स्वीकार कर लिया जाये भले ही वह प्रतीकात्मक रूप में हो। इसके अलावा यह भी संभव है कि भविष्य में ईरान के साथ कोई परमाणु समझौता ज़ायोनी शासन से परामर्श के बिना किया जाए, और सऊदी अरब के असैन्य परमाणु कार्यक्रम को समर्थन देने का निर्णय भी इस्राइल की सहमति के बिना लिया जाए।
रहबर-ए इंक़ेलाब का संदेश एक सभ्यतागत घोषणापत्र है
ईरान के इमाम-ए जुमआ की पॉलिसी निर्माण परिषद के प्रमुख ने हौज़ा न्यूज़ के साथ बातचीत में इस्लामी क्रांति के रहबर, आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई के उस संदेश को अत्यंत व्यापक, गहन और रणनीतिक बताया, जो हौज़ा-ए इल्मिया क़ुम की स्थापना के 100 वर्ष पूरे होने पर जारी किया गया था।
ईरान के इमाम-ए जुमा की पॉलिसी निर्माण परिषद के प्रमुख ने हौज़ा न्यूज़ के साथ बातचीत में इस्लामी क्रांति के रहबर, आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई के उस संदेश को अत्यंत व्यापक, गहन और रणनीतिक बताया, जो हौज़ा-ए इल्मिया क़ुम की स्थापना के 100 वर्ष पूरे होने पर जारी किया गया था उन्होंने कहा कि यह संदेश एक सभ्यतागत घोषणापत्र है, जिसे सतही नज़रिए से नहीं, बल्कि गहन अध्ययन और विश्लेषण की आवश्यकता है।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मोहम्मद जवाद हाज अली अकबरी ने ज़ोर देकर कहा कि इस संदेश में उल्लिखित बिंदुओं को विशेषज्ञ समितियों द्वारा विभिन्न वैचारिक, शैक्षणिक और कार्यान्वयन पहलुओं से विश्लेषित, व्याख्यायित और लागू किया जाना चाहिए।
उनके अनुसार, इस संदेश के आधार पर हौज़ा-ए इल्मिया की भविष्य की रणनीति तय की जा सकती है।यह संदेश केवल एक सामान्य भाषण नहीं, बल्कि इस्लामी सभ्यता के पुनर्निर्माण और उम्मत-साज़ी का एक प्रस्ताव है।
इमाम-ए जुमा को चाहिए कि वे इस संदेश के विभिन्न पहलुओं को जनता तक पहुँचाने में सक्रिय भूमिका निभाएँ, क्योंकि वे हौज़ा और आम जनता के बीच बौद्धिक एवं धार्मिक कड़ी हैं। जुमा के ख़ुतबे को इस संदेश से प्रेरित होकर सामाजिक मार्गदर्शन का माध्यम बनाना चाहिए।
इस संदेश से युवाओं की बौद्धिक,आध्यात्मिक और धार्मिक शिक्षा के लिए महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश प्राप्त होते हैं।सभी धार्मिक, क्रांतिकारी और सांस्कृतिक संस्थानों को चाहिए कि वे इस संदेश को केवल विश्लेषण या चर्चा तक सीमित न रखें, बल्कि इसे व्यवहार में लाने के लिए विद्वतापूर्ण और सक्रिय कदम उठाएँ।
हुज्जतुल इस्लाम हाज अली अकबरी ने हौज़ा न्यूज़ एजेंसी का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि मीडिया इस संदेश की व्याख्या और प्रसार में जो भूमिका निभा रहा है, वह हैज़ा-ए इल्मिया के वैश्विक और सभ्यतागत मिशन को पुनर्जीवित करने में महत्वपूर्ण योगदान देगा।
मैं अपने लिए नहीं, बल्कि लोगों के लिए हरम आया हूँ
महान आध्यात्मिक विद्वान और मरजा-ए तक़लीद आयतुल्लाह बहजत रह. की जीवन शैली का एक प्रमुख पहला उनकी निष्काम भक्ति और ज़ियारत थीं, जहाँ वे हमेशा अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं के बजाय मोमिनीन और दुआ के मुहताज लोगों को याद रखते थे।
किताब सोहबत-ए सालहा में वर्णित एक घटना के अनुसार, जब आयतुल्लाह बहजत हरम-ए मोतहर में ज़ियारत के लिए जाते तो कहा करते थे मैं यहाँ उन्हीं लोगों के लिए आया हूँ, जो मेरे आसपास मौजूद हैं।
वह ज़ियारत को कई बार अलग-अलग लोगों की नियाबत में पढ़ते थे और कहते थे कि उनके आसपास मौजूद सभी लोगों की ज़रूरतें उनके दिल में होती हैं।
15 साल पहले दुबई से आए एक शख्स का अनुभव, एक व्यक्ति ने बताया कि वह 15 साल पहले दुबई से आया था और आयतुल्लाह बहजत के पीछे हरम में चुपचाप बैठा रहा। जब आयतुल्लाह बहजत दुआ से फ़ारिग हुए, तो माफ़ी माँगते हुए बोले, माफ़ कीजिए, मैं व्यस्त था, लेकिन महसूस किया कि आप आए हैं, इसलिए आपको भी इबादत में शामिल कर लिया।
मरहूम नख़ोदकी की मज़ार पर एक और घटना,
एक बार ज़ियारत के बाद आयतुल्लाह बहजत मरहूम नख़ोदकी (रह.) की मज़ार पर फातिहा पढ़ रहे थे कि एक व्यक्ति ज़ोर-ज़बरदस्ती से उन तक पहुँचने की कोशिश कर रहा था। जब कारण पूछा गया, तो पता चला कि वह अपनी हाजत बताना चाहता है।
आयतुल्लाह बहजत ने कहा,मैं खुद भी इन सभी के लिए ही यहाँ आया हूँ, अपने किसी काम के लिए नहीं। मैं आया हूँ ताकि मरहूम नख़ोदकी, इमाम (अ.स.) की खिदमत में इनकी हाजत पेश करें।
ये शब्द और व्यवहार आयतुल्लाह बहजत के आध्यात्मिक और निस्वार्थ स्वभाव की जीती-जागती मिसाल हैं वह सिखाते हैं कि दुआ और इबादत का असली मक़सद दूसरों के लिए दिल से प्रार्थना करना है, न कि सिर्फ़ अपनी ज़रूरतों के लिए।
पूर्व जनरल की चेतावनी: इस्राईल अमेरिका के लिए एक संपत्ति से बोझ बन गया है
ग़ज़ा में ज़ायोनी शासन की सेना के एक पूर्व डिवीजन कमांडर ने अपने बयान में कहा है कि इस्राईल अब अमेरिका के लिए एक संपत्ति नहीं, बल्कि एक भारी बोझ बन गया है।
ज़ायोनी शासन की सेना के ग़ज़ा डिवीजन के पूर्व कमांडर यस्राईल ज़ीव ने सोमवार को कहा: "बिन्यामिन नेतन्याहू जिस राजनीतिक संकट में फंसे हुए हैं उसकी वजह से उन्होंने हमें एक अंतहीन युद्ध में धकेल दिया है और डोनाल्ड ट्रंप अब अपने तरीक़े से इस्राईल से पीछा छुड़ाना चाहते हैं।"
ज़ायोनी शासन के टेलीविजन चैनल 12 ने पहले एक रिपोर्ट में हमास और अमेरिकी सरकार के बीच हुए समझौते की ओर इशारा करते हुए कहा कि इस समझौते के ज़रिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ज़ायोनी प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू को एक क़रारा तमाचा मारा है।
इस चैनल ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि "हमास और अमेरिकी सरकार के बीच सीधे और अभूतपूर्व समझौते के तहत 'ईदन अलेक्ज़ेंडर' की रिहाई के बदले में ट्रंप ने न केवल नेतन्याहू को तमाचा मारा, बल्कि हमास को वैधता भी दी और उसे युद्ध की शुरुआत से अब तक की सबसे बड़ी जीत दिलाई।"
ट्रंप की सऊदी अरब यात्रा; क्या हैं चिंताएं और आपत्तियां?
सुनने में आ रहा है कि ट्रंप की नजर अरब देशों के संसाधनों और भारी भरकम धनराशि पर है, जबकि बदले में खाड़ी देशों को उनकी मौजूदगी के अलावा कोई खास फायदा नहीं दिख रहा है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मध्य पूर्व के अपने क्षेत्रीय दौरे की शुरुआत रियाज़ से की, जो उनके राष्ट्रपति पद के कार्यकाल के दौरान उनकी आधिकारिक यात्रा का दूसरा गंतव्य है और रियाज़ के बाद उनकी योजना कतर और संयुक्त अरब अमीरात जाने की है।
डोनाल्ड ट्रंप इस क्षेत्र की अपनी यात्रा पर गर्व महसूस कर रहे हैं, जिससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था और हथियार उत्पादन के लिए 3 ट्रिलियन डॉलर का राजस्व मिलता है, लेकिन वे इन तीनों देशों से कोई वादा नहीं करने जा रहे हैं।
सोशल मीडिया यूजर्स अरबी कॉफी को खारिज करने पर दिलचस्प टिप्पणियां कर रहे हैं और यह भी कहा जा रहा है कि यह अरब संस्कृति का स्पष्ट अपमान है।
ट्रम्प ने राष्ट्रपति के रूप में सऊदी अरब की अपनी पहली आधिकारिक यात्रा करने के लिए सऊदी अरब के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया है, इसलिए रियाद सरकार ने उन सभी मांगों को पूरा करने की कोशिश की है, जिन्हें ट्रम्प पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन के कार्यकाल में पूरा करने में विफल रहे थे।
हालांकि, किस्मत सऊदी के पक्ष में नहीं थी और दुनिया के कैथोलिक नेता पोप फ्रांसिस की मृत्यु के बाद डोनाल्ड ट्रम्प की इटली यात्रा ने सऊदी अरब की यात्रा के साथ-साथ उनकी दूसरी विदेश यात्रा को चिह्नित किया।
हालांकि यात्रा की घोषणा के बाद से दो महीने बीत चुके हैं, लेकिन वाशिंगटन के अनुरोधों के जवाब में सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के विचारों को समझने के लिए यह समय पर्याप्त नहीं है।
बिन सलमान ने अनिवार्य रूप से तेल अवीव को ग़ज़्ज़ा में युद्ध रोकने के लिए मजबूर करने की कोशिश की है, यहां तक कि जनता के दबाव के परिणामस्वरूप ज़ायोनी शासन के साथ संबंधों को सामान्य बनाने जैसे मुद्दों को अस्थायी रूप से कम कर दिया है। बिन सलमान संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ एक रक्षा संधि की पुष्टि करने और देश के परमाणु कार्यक्रम को मंजूरी देने के साथ-साथ इजरायल को एक फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता देने के लिए प्रतिबद्ध करने की भी कोशिश कर रहे हैं, लेकिन वह ट्रम्प और नेतन्याहू से ऐसी गारंटी नहीं प्राप्त कर सकते हैं। हालांकि डोनाल्ड ट्रंप मौखिक रूप से यह घोषणा कर सकते हैं कि विदेशी हमलों की स्थिति में वे सऊदी अरब का बचाव करेंगे।
परमाणु कार्यक्रम के संबंध में, हालांकि संयुक्त राज्य अमेरिका सऊदी अरब के यूरेनियम संवर्धन और ऊर्जा उत्पादन के लिए इसके उपयोग पर सहमत हो सकता है, अमेरिकी रिपोर्ट संकेत देती है कि व्हाइट हाउस रियाद को सैन्य उद्देश्यों के लिए परमाणु कार्यक्रम का उपयोग करने की अनुमति नहीं देगा और यूरेनियम संवर्धन पर प्रतिबंध बनाए रखने के प्रयास के रूप में अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी द्वारा देश का पूर्ण निरीक्षण करेगा।
इस प्रकार, ट्रंप की पिछली यात्रा की तरह, सऊदी को इस यात्रा से कुछ भी हासिल नहीं होगा और रियाद के अधिकारियों को ट्रंप से केवल कुछ वादे और प्रशंसा ही मिलेगी।
हालांकि संयुक्त राज्य अमेरिका ने सऊदी अरब से वादे किए थे, लेकिन अरामको सुविधाओं पर बड़े यमन हमलों के सामने वह चुप रहा। इस बार, डोनाल्ड ट्रंप सऊदी अरब और उसके अन्य अरब सहयोगियों के लिए 3 ट्रिलियन डॉलर से अधिक के वादों के साथ इस क्षेत्र में प्रवेश कर रहे हैं, इसलिए सऊदी अरब के लिए यह स्वाभाविक है कि वह अमेरिकी अर्थव्यवस्था में निवेश करने के लिए जो धन देने का वादा कर रहा है, उसके बारे में शेखी बघारना स्वाभाविक है, क्योंकि यह राशि ट्रंप को अपनी पिछली यात्रा पर सऊदी से प्राप्त राशि से दोगुनी है।
इस संबंध में, रियाज़ ने अगले 10 वर्षों में अमेरिकी अर्थव्यवस्था में 1 ट्रिलियन डॉलर का निवेश करने का वादा किया है, जिसमें से 100 बिलियन डॉलर का उपयोग हथियार खरीदने के लिए किया जाएगा। सऊदी क्राउन प्रिंस से मुलाकात के बाद, ट्रम्प दोहा की यात्रा करेंगे, जहाँ वे बोइंग विमान खरीदने के लिए कतरी अधिकारियों के साथ 1 बिलियन डॉलर के सौदे का अनावरण करेंगे, साथ ही MQ-9 रीपर ड्रोन की बिक्री की घोषणा करेंगे, जिन्हें हाल ही में यमनियों द्वारा बड़ी संख्या में मार गिराया गया है, जिसकी कीमत 2 बिलियन डॉलर है। कतरियों ने पहले विभिन्न अमेरिकी औद्योगिक क्षेत्रों, विशेष रूप से कृत्रिम बुद्धिमत्ता और माइक्रोचिप्स में भारी निवेश करने की अपनी योजनाओं की घोषणा की है। इसके अलावा, वे ट्रम्प को एक विशेष उपहार, 400 मिलियन डॉलर से अधिक मूल्य का एक लक्जरी बोइंग 747 विमान भेंट करने के लिए तैयार हैं। प्रारंभिक अनुमानों से संकेत मिलता है कि कतर को इस यात्रा के लिए अमेरिका को 250 बिलियन डॉलर से अधिक का भुगतान करने की उम्मीद है, जो निश्चित रूप से रियाद और अबू धाबी से मिलने वाले दान से बहुत कम है। इस अवधि में ट्रंप की तीसरी यात्रा भी खरबों डॉलर की है और वह ऐसे समय में अबू धाबी पहुंचेंगे, जब यूएई पहले ही घोषणा कर चुका है कि वह अगले दशक में अमेरिकी अर्थव्यवस्था में 1.4 ट्रिलियन डॉलर का निवेश करेगा, जिसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और माइक्रोचिप्स, ऊर्जा और अन्य अमेरिकी औद्योगिक क्षेत्रों के बुनियादी ढांचे के क्षेत्र शामिल हैं। ट्रंप के मौजूदा और पिछले कार्यकाल में एकमात्र अंतर यह है कि पिछले कार्यकाल में बिन सलमान ने फारस की खाड़ी के देशों के नेताओं सहित अरब और इस्लामी देशों के अधिकांश नेताओं को लगातार तीन बैठकों के लिए रियाद आमंत्रित किया था। हालांकि, आज रियाद में ऐसा कोई दृश्य नहीं दिख रहा है और ट्रंप दो अन्य फारस की खाड़ी देशों की अलग-अलग यात्रा करेंगे। हालांकि ट्रंप की रियाद में मौजूदगी के दौरान खाड़ी सहयोग परिषद शिखर सम्मेलन होने वाला है, लेकिन इन लोगों के साथ बैठक करने का ट्रंप का नजरिया भी उनसे व्यक्तिगत रूप से लाभ प्राप्त करने पर आधारित है और यह स्पष्ट नहीं है कि ये देश इससे लाभ उठा पाएंगे या नहीं। सुना है कि श्री ट्रम्प की नज़र अरब देशों के संसाधनों और भारी मात्रा में धन पर है, जबकि बदले में खाड़ी देशों को उनकी उपस्थिति के अलावा कोई विशेष लाभ होता नहीं दिख रहा है।
याद रहे कि रूसी राष्ट्रपति आने वाले दिनों में तेहरान आ रहे हैं और उनकी यात्रा ट्रम्प की यात्रा के तुरंत बाद होगी। विश्लेषकों की नजर में यह कदम एक बड़ी सफलता है, लेकिन तथ्य क्या हैं, यह तो समय ही बताएगा।
ग़दीर इस्लामी जीवन शैली के लिए एक व्यापक और उत्कृष्ट मॉडल है
मदरसा इल्मिया अल-ज़हरा (स) सारी के एक शिक्षक ने कहा: ग़दीर दिवस का संदेश वर्तमान समाज में एकता, न्याय, सहानुभूति और शांति के संदेश को जीवंत, उजागर और सक्रिय करता है और सभी के लिए सद्भाव और प्रगति का एक उज्ज्वल मार्ग प्रदान करता है।
मदरसा इल्मिया अल-ज़हरा (स) सारी की एक शिक्षिका सुश्री सैय्यदा अतिया ख़ातमी ने कहा: ईद ग़दीर ख़ुम एक ऐतिहासिक और धार्मिक घटना है जो 18 ज़िल-हिज्जा, 10 हिजरी को हुई थी, जिसमें पैगंबर मुहम्मद (स) ने हज़रत अली (अ) को इस्लामी उम्माह के उत्तराधिकारी और नेता के रूप में पेश किया। यह घटना मक्का और मदीना के बीच ग़दीर ख़ुम के स्थान पर हुई और इसके बाद आय ए इकमाल नाजिल हुई, जिसने इस्लाम धर्म के पूरा होने की घोषणा की।
उन्होंने कहा: ग़दीर का संदेश विलायत और सद्गुणी नेतृत्व पर जोर देता है। हज़रत अली (अ) का नेतृत्व योग्यता और ईश्वरीय आदेश के आधार पर घोषित किया गया था, जो आज के समाज में प्रबंधकों और नेताओं के चयन के लिए सभ्य शासन और नैतिकता का एक मॉडल है।
मदरसा इल्मिया ज़हरा (स) की शिक्षिका सरी ने कहा: ग़दीर इस्लामी उम्माह की एकता और एकजुटता का प्रतीक है, और वर्तमान परिस्थितियों में जब समाज विभाजित हैं, ग़दीर का एकीकृत संदेश एक उद्धारकर्ता बन सकता है।
उन्होंने कहा: ईद ग़दीर सामाजिक न्याय और वंचितों के समर्थन का एक मजबूत संदेश देता है, जो आज के मुद्दों जैसे न्याय और भ्रष्टाचार का मुकाबला करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यह आयोजन धर्म और राजनीति के अंतर्संबंध को भी दर्शाता है; धर्म को समाज और राजनीति के केंद्र में सक्रिय रूप से मौजूद होना चाहिए ताकि समाज में न्याय और निष्पक्षता स्थापित हो सके।
सुश्री सैय्यदा अतिया ख़ातमी ने निष्कर्ष निकाला: ग़दीर इस्लामी जीवन शैली के लिए एक व्यापक मॉडल है जो धर्मपरायणता और मानवीय पूर्णता की छाया में मानवीय भौतिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक विकास को सक्षम बनाता है। यह आयोजन इस्लामी समाज में एकता, नैतिकता, ज्ञान, अर्थव्यवस्था और शक्ति की रीढ़ है और इसे इस्लामी समाज की स्थापना के लिए एक बुनियादी मानदंड माना जाता है।
इल्म के बगैर अमल निजात बख्श नहीं
आयतुल्लाह महमूद रजबी ने मंगलवार रात हौज़ा-ए इल्मिया क़ुम के शिक्षकों और छात्रों की उपस्थिति में मस्जिद-ए मासूमिया में आयोजित एक नैतिक व्याख्यान दर्स-ए अख़लाक़ में ज्ञान, ईमान और कर्म के आपसी संबंध को समझाते हुए कहा कि केवल ज्ञान और मारिफ़त अनन्त कल्याण के लिए पर्याप्त नहीं है। यहाँ तक कि यक़ीनी मारिफ़त भी, अगर वह आस्था (अक़ीदा) और अच्छे कर्म में न बदले, तो इंसान को मुक्ति नहीं दिला सकती।
आयतुल्लाह महमूद रजबी ने मंगलवार की रात हौज़ा इल्मिया क़ुम के उस्तादों और छात्रों की उपस्थिति में मस्जिद-ए-मआसूमिया में दिए गए अपने अख़लाक़ी (नैतिकता पर आधारित) बयान में ज्ञान, ईमान और अमल के आपसी संबंध को स्पष्ट करते हुए कहा,सिर्फ़ जानकारी या ज्ञान, इंसान की हमेशा की सफलता के लिए काफ़ी नहीं है क्योंकि यदि पक्की समझ और यक़ीन भी विश्वास और अमल (कर्म) में न बदले, तो वह इंसान को नजात नहीं दे सकता।
फिरऔन जैसे लोग जिन्हें यक़ीन था, फिर भी जहन्नम के हक़दार बना
उन्होंने क़ुरआन की सूरा नम्ल की आयत 14 और उन्होंने (हक़ को) झुठलाया, हालांकि उनके दिल उसे पहचान चुके थे का हवाला देते हुए कहा कि फिरऔन और उसके साथियों को दिल से हज़रत मूसा (अ) की सच्चाई का यक़ीन था, लेकिन उन्होंने उस पर अमल नहीं किया, इसलिए अल्लाह के ग़ज़ब का शिकार हो गए।
नजात की त्रिकोणीय कुंजी: तौहीद, नुबूवत, मआद और उनके साथ विलायत
आयतुल्लाह रजबी ने कहा कि तौहीद नुबूवत (पैग़म्बरी), और मआद की पहचान ज़रूरी है, मगर यह काफ़ी नहीं है। इनके बीच वलायत एक सेतु का काम करती है जो ज्ञान को ईमान में बदलती है। जैसा कि ज़ियारत-ए-इमाम हुसैन (अस.) में कहा गया है,मैं गवाही देता हूँ कि आप एक पाक नूर थे ऊँचे नस्लों में...
अल्लाही इम्तिहान ईमान को मज़बूत करने वाली चीज़
उन्होंने हज़रत इब्राहीम (अ.स. द्वारा अपने बेटे इस्माईल (अ) की क़ुरबानी की घटना और उहुद और अहज़ाब की लड़ाइयों का ज़िक्र करते हुए कहा कि अल्लाह मोमिनों को अमल के मैदान में आज़माता है, ताकि उनका ईमान मज़बूत हो।
क़ुरआन ज़िंदा मोज़िज़ा जो ईमान को रौशन करता है
उन्होंने सूरा अनफाल की आयत 2 का हवाला दिया,सच्चे मोमिन वे हैं जिनके दिल अल्लाह का ज़िक्र सुनकर काँप उठते हैं, और जब उनके सामने उसकी आयतें पढ़ी जाती हैं, तो उनका ईमान और बढ़ जाता है।
उन्होंने कहा कि क़ुरआन से लगाव न केवल ईमान बढ़ाता है बल्कि इंसान को अल्लाह पर भरोसे की ऊँची मंज़िल तक पहुँचाता है। इमाम खुमैनी (रह.) ने भी गिरफ़्तारी और वतन वापसी के कठिन लम्हों में क़ुरआन से सुकून पाया।
अपने बयान के अंत में उन्होंने ज़ोर दिया कि क़ुरबत-ए-इलाही और उच्च स्तर के ईमान तक पहुँचने का एकमात्र रास्ता लगातार अच्छे कर्म का अंजाम देना है।
आयतुल्लाह हायरी शिराजी: बच्चों की आखिरत के लिए भी खर्च करें
मरहूम आयतुल्लाह हायरी शिराजी ने बच्चों की तरबियत पालन-पोषण में सिर्फ़ इल्मी पहलू पर भरोसा करने को नाकाफ़ी बताते हुए ज़ोर दिया कि एक अच्छा और दीनदार इंसान बनाने के लिए माता-पिता को दीन और तक़वा के मैदान में भी निवेश करना चाहिए।
मरहूम आयतुल्लाह हायरी शिराजी ने कहा कि ज़्यादातर माता-पिता अपने बच्चों की तालीम (शिक्षा) पर खूब खर्च करते हैं ताकि वे डॉक्टर या इंजीनियर बनें, लेकिन यह सिर्फ़ आधी तरबियत है। उन्होंने एक मिसाल देते हुए कहा,अगर बच्चा पानी की डोल (बाल्टी) है और इल्म उसमें से निकाला जाने वाला पानी, तो तक़वा उसकी मज़बूत रस्सी है। जितना इल्म बढ़ेगा, उतनी ही तक़वा की रस्सी मज़बूत होनी चाहिए, वरना पानी नीचे गिर जाएगा!
आयतुल्लाह हायरी के मुताबिक, इल्म के साथ-साथ ज़िम्मेदारी और दीनदारी भी ज़रूरी है, और इन पर भी वैसा ही खर्च होना चाहिए जैसा तालीम पर होता है। अगर कोई दीनी मदरसा बच्चे को इल्म के साथ नमाज़, इबादत और खिदमत-ए-दीन (धर्म की सेवा) की तरफ मोड़े, तो चाहे इसका खर्च दोगुना हो यह खर्च करना वाजिब-उल-इहतराम (सम्मान के योग्य) और क़ाबिल-ए-तर्जीह (प्राथमिकता वाला) है।
उन्होंने माता-पिता से कहा,जब तुम दुनिया के लिए खर्च करते हो, तो क्या आखिरत (परलोक) के लिए खर्च करना ज़रूरी नहीं? सालिह (नेक) बनाना, सिर्फ़ पढ़ा-लिखा बनाने से अलग है।
(किताब: तमसीलात-ए-आयतुल्लाह हायरी शिराजी)
अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इस्राईल द्वारा मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघनों को रोकने के लिए कार्रवाई करनी चाहिए
ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने फ़िलिस्तीन में ज़ायोनी शासन द्वारा किये जा रहे मानवाधिकारों के हनन और अभूतपूर्व हमले की निंदा करते हुए, युद्ध अपराधियों पर अंतरराष्ट्रीय न्यायालयों में शीघ्र मुक़दमा चलाने और ग़ज़ा पट्टी पर हमलों को रोकने तथा मानवीय सहायता भेजने के लिए वैश्विक स्तर पर तुरंत कार्यवाही किये जाने की मांग की है।
ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता इस्माईल बक़ाई ने मंगलवार की सुबह ज़ायोनी शासन द्वारा जबालिया और ख़ान युनुस में फ़िलिस्तीनी शरणार्थियों के शिविरों और टेंटों पर किए गए बर्बर हमलों की कड़ी निंदा की जिनमें कई मासूम फ़िलिस्तीनी शहादत हो गयी और दर्जनों घायल हो गये। शहीद होने वालों में कुछ दूधमुंहे बच्चे भी शामिल थे।
बक़ाई ने अतिग्रहित फ़िलिस्तीन में ज़ायोनी शासन द्वारा किए जा रहे मानवाधिकार और मानवीय कानूनों के व्यापक और अभूतपूर्व उल्लंघनों को "अंतरराष्ट्रीय क़ानून के मूलभूत सिद्धांतों और नियमों पर गंभीर हमला" करार दिया।
ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने यह याद दिलाते हुए कि प्रत्येक देश और साथ ही संयुक्त राष्ट्र संघ की एक कानूनी और नैतिक ज़िम्मेदारी है कि वह नरसंहार को रोके और मानवीय कानूनों के नियमों के पालन को सुनिश्चित करे, इस बात पर ज़ोर दिया कि युद्ध अपराध, नरसंहार और मानवता के विरुद्ध अपराधों के कारण ज़ायोनी शासन और उसके अधिकारियों के विरुद्ध अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) और अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) में लंबित मामलों की तेज़ी से सुनवाई की जाए।
ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने फ़िलिस्तीन के मज़लूम लोगों के साथ एकजुटता व्यक्त करते हुए अंतरराष्ट्रीय समुदाय और क्षेत्रीय देशों से ज़ायोनी शासन के आपराधिक हमलों को तुरंत रोकने, ग़ज़ा पट्टी में जल्द से जल्द खाद्य पदार्थों और दवाओं की आपूर्ति सुनिश्चित करने, इस आपराधिक शासन के अधिकारियों को दंडित करने और अतिग्रहणकारी सैनिकों को पूरी तरह से कब्ज़ा किए गए क्षेत्रों से बाहर निकालने तथा सीरिया, लेबनान और यमन सहित क्षेत्रीय देशों के विरुद्ध ज़ायोनी शासन की दुष्ट गतिविधियों का मुक़ाबला करने के लिए ठोस उपाय किये जाने की मांग की।