رضوی

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क़ुम अलमुकद्दस में इमामज़ादेह सैयद अली अ.स. के हरम में आयोजित 48वीं मआरिफ़ ए कुरआन, नहजुल बलाग़ा और सहीफा-ए-सज्जादिया प्रतियोगिताओं के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए, फ़िक़्ही आयम्मा ए अतहार अ.स. केंद्र के प्रमुख आयतुल्लाह जवाद फाज़िल लंकरानी ने कहा कि समाज के सुधार, शांति, नैतिकता और सामाजिक प्रगति का एकमात्र रास्ता कुरआन से वास्तविक लगाव है।

क़ुम अलमुकद्दस में इमामज़ादेह सैयद अली अ.स. के हरम में आयोजित 48वीं मआरिफ़ ए कुरआन, नहजुल बलाग़ा और सहीफा-ए-सज्जादिया प्रतियोगिताओं के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए, फ़िक़्ही आयम्मा ए अतहार अ.स. केंद्र के प्रमुख आयतुल्लाह जवाद फाज़िल लंकरानी ने कहा कि समाज के सुधार, शांति, नैतिकता और सामाजिक प्रगति का एकमात्र रास्ता कुरआन से वास्तविक लगाव है।

उन्होंने कहा कि कुरआन इंसान का सबसे मज़बूत मार्गदर्शक और सबसे अच्छा नसीहत करने वाला है, और जो व्यक्ति जीवन में कठिनाई या बाधा का सामना करे, उसे कुरआन से लगाव पैदा करना चाहिए।

आयतुल्लाह फाज़िल लंकरानी ने कहा कि इस्लामी क्रांति की बड़ी बरकतों में से एक यह है कि कुरआन, नहजुल बलाग़ा और सहीफा-ए-सज्जादिया समाज के व्यावहारिक जीवन में पहले से कहीं अधिक प्रवेश कर गया हैं। उन्होंने कहा कि कुरआन की तिलावत, तदब्बुर और मआरिफ़ की ओर रुझान में पिछले दशकों के दौरान उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

उन्होंने कहा कि कुरआन सिर्फ तिलावत की किताब नहीं है। अगर समाज, शैक्षणिक संस्थान, धार्मिक केंद्र या सरकारी व्यवस्था कुरआन से दूर रहेंगे तो नुकसान में रहेंगे।

उन्होंने कुरआन की आयत
"الَّذِينَ آتَيْنَاهُمُ الْكِتَابَ يَتْلُونَهُ حَقَّ تِلَاوَتِهِ"
जिन्हें हमने किताब दी है, वे उसके हक़ तिलावत के साथ पढ़ते हैं...का उच्चारण करते हुए कहा कि कुरआन का हक़-ए-तिलावत वही है जो रिवायतों में बयान हुआ है, यानी कुरआन के सभी आदेशों का व्यावहारिक पालन।

उन्होंने कहा कि ईमान की असली रूह कुरआन के आदेशों को जीवन में लागू करने में है, और इससे विमुखता, कुरआन से दूरी और नुकसान का कारण बनती है।

आयतुल्लाह फाजिल लंकरानी ने कहा,कुरआन आस्था, नैतिकता, राजनीति, सामाजिकता, शिक्षा और इंसान की सभी व्यक्तिगत व सामाजिक ज़रूरतों का सबसे व्यापक स्रोत है। कोई भी व्यक्ति कुरआन के बिना वास्तविक मार्गदर्शन तक नहीं पहुँच सकता।

उन्होंने कहा कि कुछ नए नामों से सामने आने वाली झूठी इरफ़ान की शिक्षाएँ लोगों को कुरआन और सुन्नत से दूर करती हैं, इंसान को रास्ते से भटकाती हैं।

उन्होंने कहा कि कुरआन से लगाव, इंसान के दिल में नूर-ए-हिदायत प्रवेश कराता है और बंदे को सिफ़ात-ए-इलाही का आईना बना देता है।

उनका कहना था कि सभी कुरआनी संस्थानों के प्रयासों के बावजूद, समाज के प्रतिष्ठित लोग अभी भी कुरआन की मूल हक़ीकत से पूरी तरह वाकिफ़ नहीं हैं।

उन्होंने कहा,तमस्सुक-ए-कुरआन का मतलब वाजिबात मुहर्रमात नैतिकता, राजनीति और सामाजिकता में व्यावहारिक पालन है। अगर कोई संस्था, सरकारी विभाग या विश्वविद्यालय कुरआन के आदेशों से ग़ाफ़िल है तो यही मूल समस्या है।

उन्होंने आयत "وَالَّذِينَ يُمَسِّكُونَ بِالْكِتَابِ" (और जो किताब को मज़बूती से थामने वाले हैं...) की रोशनी में कहा कि कुरआन स्पष्ट रूप से बताता है कि समाज का सुधार सिर्फ़ कुरआन के साथ व्यावहारिक लगाव से ही संभव है, न कि सिर्फ़ तिलावत से।

सरकार ने कल कहा था- सभी मोबाइल में इंस्टॉल होगा; आज बोली- डिलीट कर सकते हैं सभी मोबाइल फोन में साइबर सिक्योरिटी एप 'संचार साथी' को प्री-इंस्टॉल करने के दूरसंचार विभाग (DoT) के आदेश पर विवाद बढ़ने के बाद मंगलवार को केंद्र सरकार की सफाई आई। केंद्रीय संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि ये कंपलसरी नहीं है। चाहे तो यूजर इसे डिलीट कर सकते हैं।

केंद्र सरकार ने एक दिसंबर को स्मार्टफोन कंपनियों को आदेश दिया था कि वे स्मार्टफोन में सरकारी साइबर सेफ्टी एप को पहले से इंस्टॉल करके बेचें। इसके लिए 90 दिन का समय दिया था। इस फैसले का कांग्रेस समेत विपक्षी पार्टियों ने विरोध किया।

कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने कहा कि यह कदम लोगों की प्राइवेसी पर सीधा हमला है। यह एक जासूसी एप है। सरकार हर नागरिक की निगरानी करना चाहती है। साइबर धोखाधड़ी की रिपोर्टिंग के लिए सिस्टम जरूरी है, लेकिन सरकार का ताजा आदेश लोगों की निजी जिंदगी में अनावश्यक दखल जैसा है।

विपक्ष के नेताओं के बयान..

कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल ने भी सरकार के इस आदेश की आलोचना की है। वहीं, कांग्रेस सांसद रेणुका चौधरी ने मंगलवार को इस मुद्दे पर सदन स्थगन नोटिस भी दिया।

  • लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने कहा, मैं सदन में बहस के दौरान बोलूंगा अभी टिप्पणी नहीं करूंगा।
  • कांग्रेस सांसद शशि थरूर- संचार साथी एप उपयोगी हो सकता है, लेकिन इसे स्वैच्छिक होना चाहिए। जिसे जरूरत हो, वह खुद इसे डाउनलोड कर सके। किसी भी चीज़ को लोकतंत्र में जबरन लागू करना चिंता की बात है। सरकार को मीडिया के जरिए आदेश जारी करने के बजाय जनता को स्पष्ट रूप से बताना चाहिए कि इस फैसले के पीछे तर्क क्या है।
  • कांग्रेस सांसद केसी वेणुगोपाल- यह आम लोगों की प्राइवेसी पर सीधा हमला है। मदद के नाम पर BJP लोगों की निजी जानकारी तक पहुंच बनाना चाहती है। भारत में हमने पेगासस जैसे मामले देखे हैं। अब यह एप लगाकर देश के लोगों की निगरानी करने की कोशिश की जा रही है।
  • कांग्रेस सांसद रेणुका चौधरी- प्राइवेसी का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत हर नागरिक का मौलिक अधिकार है। संचार साथी एप लोगों की आजादी और प्राइवेसी पर सीधा हमला है।
  • CPI-M सांसद जॉन ब्रिटास- मोबाइल में इस एप डालना लोगों की प्राइवेसी का सीधा उल्लंघन है और सुप्रीम कोर्ट के 2017 के पुट्टास्वामी फैसले के खिलाफ है। यह ऐप हटाया भी नहीं जा सकता, यानी 120 करोड़ मोबाइल फोनों में इसे अनिवार्य किया जा रहा है।

अब हर मोबाइल में होगा साइबर सिक्योरिटी एप

केंद्र सरकार ने सोमवार को स्मार्टफोन कंपनियों को आदेश दिया था कि वे स्मार्टफोन में सरकारी साइबर सेफ्टी एप को पहले से इंस्टॉल करके बेचें। आदेश में एपल, सैमसंग, वीवो, ओप्पो और शाओमी जैसी मोबाइल कंपनियों को 90 दिन का समय दिया गया है। इस एप को यूजर्स डिलीट या डिसेबल नहीं कर सकेंगे। पुराने फोन पर सॉफ्टवेयर अपडेट के जरिए यह एप इंस्टॉल किया जाएगा।

हालांकि यह आदेश फिलहाल पब्लिक नहीं किया गया है, बल्कि चुनिंदा कंपनियों को निजी तौर पर भेजा गया है। इसके पीछे सरकार का मकसद साइबर फ्रॉड, फर्जी IMEI नंबर और फोन की चोरी को रोकना है।

संचार साथी एप से अब तक 7 लाख से ज्यादा गुम या चोरी हुए मोबाइल वापस मिल चुके हैं। एक सीनियर सरकारी अधिकारी ने कहा, 'एप फर्जी IMEI से होने वाले स्कैम और नेटवर्क मिसयूज को रोकने के लिए जरूरी है।'

संचार साथी एप क्या है, कैसे करेगा मदद

  • संचार साथी एप सरकार का बनाया साइबर सिक्योरिटी टूल है, जो 17 जनवरी 2025 को लॉन्च हुआ था।
  • अभी यह एपल और गूगल प्ले स्टोर पर वॉलंटरी डाउनलोड के लिए उपलब्ध है, लेकिन अब नए फोन में यह जरूरी होगा।
  • एप यूजर्स को कॉल, मैसेज या वॉट्सएप चैट रिपोर्ट करने में मदद करेगा।
  • IMEI नंबर चेक करके चोरी या खोए फोन को ब्लॉक करेगा।

पाकिस्तान सरकार ने रावलपिंडी से लेकर इस्लामाबाद तक हाई अलर्ट जारी कर दिया है। रावलपिंडी में धारा 144 लागू है। यह फैसला पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के समर्थकों को विरोध प्रदर्शन करने से रोकने के लिए लिया गया है।

इसके तहत 1 से 3 दिसंबर तक कोई भी सार्वजनिक सभा, रैली, जुलूस, धरना, प्रदर्शन करने, 5 या उससे ज्यादा लोगों के इकट्ठे होने को पूरी तरह बैन कर दिया गया है। डिप्टी कमिश्नर डॉ. हसन वकार ने इसे लेकर एक आदेश जारी किया है।

आदेश में हथियार, लाठी, गुलेल, पेट्रोल बम, विस्फोटक सामग्री ले जाने पर रोक लगा दी गई है। इसके अलावा नफरत भरे भाषण देना, पुलिस की बैरिकेडिंग हटाने की कोशिश करना, दो लोगों के एक मोटरसाइकिल पर पीछे बैठने और लाउडस्पीकर के इस्तेमाल करने पर भी पूरी तरह से रोक लगा दी गई है।

 इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) ने मंगलवार को इस्लामाबाद हाई कोर्ट के बाहर और रावलपिंडी (अडियाला जेल) में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन करने का ऐलान किया था।

वेनेजुएला के राष्ट्रपति निकोलस मादुरो ने ट्रम्प से कहा कि वो सत्ता छोड़ने को तैयार हैं, लेकिन उन्हें और उनके परिवार को पूरी कानूनी छूट मिले।

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, मादुरो ने ट्रम्प से 21 नवंबर को फोन पर बातचीत की थी। मादुरो ने ट्रम्प से सुरक्षित जाने देने की गुहार लगाई थी।

उन्होंने कहा था कि अगर अमेरिका उन्हें और उनके पूरे परिवार को पूरी कानूनी छूट (इम्युनिटी) दे तो वो सत्ता छोड़ने को तैयार हैं।

इसके अलावा उन्होंने सारे प्रतिबंध हटाने, उनके ऊपर चल रहे अंतरराष्ट्रीय आपराधिक अदालत (ICC) का केस बंद करने और उनके 100 से ज्यादा अधिकारियों पर लगे भ्रष्टाचार, ड्रग तस्करी और मानवाधिकार उल्लंघन के आरोपों से जुड़े प्रतिबंध हटाने की मांग की ।

ट्रम्प ने सारी शर्तें सिरे से खारिज कर दी थी और मादुरो को सिर्फ एक हफ्ते का समय दिया कि वो अपने परिवार के साथ जहां चाहें चले जाएं। वह एक हफ्ते की डेडलाइन पिछले शुक्रवार को खत्म हो चुकी है।

डेडलाइन खत्म होने के तुरंत बाद ट्रम्प ने अचानक वेनेजुएला का पूरा हवाई क्षेत्र बंद करने का ऐलान कर दिया था। ट्रम्प ने 23 नवंबर को कहा था कि उनकी ​​​​​​ मादुरो से बात हुई है, लेकिन उन्होंने कोई और जानकारी देने से इनकार कर दिया। व्हाइट हाउस ने भी इस बारे में अब तक कोई जानकारी नहीं दी है।

यह बातचीत अमेरिकी नौसेना के कैरिबियन सागर और प्रशांत महासागर में 21 सैन्य कार्रवाइयों के बाद हुई। दरअसल, अमेरिका ड्रग तस्करी करने वाली नावों पर मिसाइल हमले कर उन्हें तबाह कर रहा है।

अमेरिका का दावा है कि ये नावें वेनेजुएला की ड्रग तस्करी गिरोह से जुड़ी हुई थीं, जिसे अमेरिका आतंकवादी संगठन घोषित कर चुका है। इन हमलों में अब तक कम से कम 83 लोगों की मौत हो चुकी है।

ट्रम्प ने बार-बार धमकी दी है कि जरूरत पड़ी तो अमेरिकी फौज वेनेजुएला की जमीन पर भी उतर सकती है। मादुरो और उनके साथी इन सारे आरोपों को सिरे से खारिज करते हैं और अमेरिका पर इल्जाम लगाते हैं कि वह वेनेजुएला के तेल और प्राकृतिक संसाधनों को हड़पने के लिए उन्हें पद से हटाना चाहते हैं।

शिया जामा मस्जिद जाफ़रिया रांची में उलेमाए किराम और मोमिनीन से संबोधित करते हुए, भारत में रहबर मोअज़्ज़म के प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन अब्दुल मजीद हकीम इलाही ने कहा कि शिया होना हमारे लिए गर्व की बात है, क्योंकि हमारा मज़हब अक्ल, इंसाफ और अख्लाक की नींव पर स्थापित है।

शिया जामा मस्जिद जाफ़रिया रांची में उलेमाए किराम और मोमिनीन से संबोधित करते हुए, भारत में रहबर मोअज़्ज़म के प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन अब्दुल मजीद हकीम इलाही ने कहा कि शिया होना हमारे लिए गर्व की बात है, क्योंकि हमारा धर्म बुद्धि, न्याय और नैतिकता की नींव पर स्थापित है।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन हकीम इलाही ने कहा कि बुद्धि और समझ की नींव पर धर्म को मानना शिया मत की विशेषता है। हमारे धर्म में सोचने, समझने और प्रश्न करने के लिए प्रोत्साहित किया गया है। न्यायप्रियता शिया शिक्षाओं का केंद्रीय हिस्सा है।

उन्होंने कहा कि इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कभी भी किसी लाभ या फ़ायदे के लिए अन्याय को स्वीकार नहीं किया। अहले बैत अ.स.के मार्ग पर चलना केवल एक ऐतिहासिक पहलू नहीं है, बल्कि यह ज्ञान, तक़्वा और सही मार्गदर्शन का रास्ता है। कर्बला का संदेश हमें अत्याचार के सामने डटकर खड़े रहने का साहस देता है और मानव निर्माण का पाठ पढ़ाता है।

रहबर मोअज़्ज़म के प्रतिनिधि ने आगे कहा कि एक शिया की पहचान तीन आधारों पर स्थापित है:

  1. मजबूत अकीदा: अर्थात् अल्लाह, पैग़म्बर (स.अ.व.), अहले बैत (अ.स.), क़यामत और अद्ल-ए-इलाही पर दृढ़ ईमान।
    2. अच्छा अख्लाक :जिसमें सच्चाई, ईमानदारी, साफ़ दिल, सेवा-ए-ख़ल्क़ और स्पष्टवादिता शामिल है।
    3. सामाजिक जुड़ाव :मस्जिद और इमामबाड़ा से संबंध, धार्मिक कार्यक्रमों में भागीदारी, और नई पीढ़ी की शिक्षा दीक्षा।

भारत में वली-ए-फक़ीह के प्रतिनिधि ने कहा कि आज की दुनिया में युवाओं को उनके धर्म और मूल्यों से दूर करने की बहुत कोशिशें हो रही हैं। यदि कोई समुदाय अपनी पहचान खो दे तो उसका भविष्य भी कमज़ोर हो जाता है।

उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि हमारे धार्मिक त्योहार, हमारा इतिहास और हमारी आस्थाएं ही हमारी असली ताकत हैं। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का पाठ हमें अत्याचार के विरुद्ध साहस देता है। इसी तरह, ग़दीर की घटना हमें अल्लाह की ओर से स्थापित सही नेतृत्व का बोध कराती है, और इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम की शिक्षाएँ ज्ञान और शोध की नींव प्रदान करती हैं।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन डॉ. अब्दुल मजीद हकीम इलाही ने भारतीय शियाओं के लिए कुछ महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ बताते हुए कहा कि बच्चों और युवाओं की धार्मिक शिक्षा को मजबूत करना, आपस में एकता बनाए रखना, मस्जिदों और धार्मिक केंद्रों में शैक्षिक गतिविधियाँ बढ़ाना, आशूरा, ग़दीर और अन्य धार्मिक कार्यक्रमों को बेहतर तरीके से आयोजित करना, उच्च शिक्षा और शैक्षणिक क्षेत्रों में पूरी भूमिका निभाना, साथ ही ऐसी पीढ़ी तैयार करना जो ज्ञान, नैतिकता और सेवा का आदर्श हो ये वर्तमान युग में शियाओं की महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ हैं।

अंत में उन्होंने कहा कि अपनी पहचान की सुरक्षा वास्तव में इस्लाम की मूल भावना की सुरक्षा है, और इसी से भारत में शिया समुदाय का उज्ज्वल भविष्य जुड़ा हुआ है।

यह सवाल सदियों से उठाया जाता रहा है कि अल्लाह दुनिया में ज़ुल्म को तुरंत क्यों नहीं रोकता? धर्मगुरुओं के अनुसार, इसका बेसिक जवाब यह है कि अल्लाह ने इंसान को समझ और अधिकार दिया है, और आज़ादी का ज़रूरी नतीजा यह है कि इंसान अच्छा और बुरा दोनों कर सकता है।

यह सवाल सदियों से उठाया जाता रहा है कि अल्लाह दुनिया में ज़ुल्म को तुरंत क्यों नहीं रोकता? धर्मगुरुओं के अनुसार, इसका बेसिक जवाब यह है कि अल्लाह ने इंसान को समझ और अधिकार दिया है, और आज़ादी का ज़रूरी नतीजा यह है कि इंसान अच्छा और बुरा दोनों कर सकता है।

शक:

कुछ लोग एतराज़ करते हैं: "अगर मैं सबसे ताकतवर होता और किसी बच्चे पर ज़ुल्म होते देखता, तो मैं उसे तुरंत रोक देता। अल्लाह उसे क्यों नहीं रोकता? क्या वह सिर्फ़ एक तमाशा देखने वाला है?"

जवाब:

इस एतराज़ का मकसद यह दिखाना है कि चूंकि नाइंसाफ़ी हो रही है और अल्लाह उसे नहीं रोकता, इसलिए अल्लाह (नाउज़ोबिल्लाह) मौजूद नहीं हैं या काबिल नहीं हैं।

लेकिन यह एतराज़ इंसान के बनाने के सिस्टम को नज़रअंदाज़ करता है।

धार्मिक जानकारों के मुताबिक:

  1. अल्लाह का इरादा इंसान को आज़ाद मर्ज़ी देना है।

अल्लाह ने ऐसे फ़रिश्ते बनाए जिनमें न तो हवस है और न ही गुस्सा, इसीलिए वे गुनाह नहीं कर सकता। फिर उन्होंने ऐसे जानवर बनाए जिनमें कोई समझ नहीं है।

बनाने के सिस्टम के लिए ज़रूरी था कि ऐसा जीव बने जिसमें समझ और इच्छाएँ दोनों हों—इसीलिए इंसान को बनाया गया और उसमें अच्छाई और बुराई दोनों की गुंजाइश रखी गई।

कुरान कहता है:

فَأَلْهَمَهَا فُجُورَهَا وَتَقْوَاهَا फ़अलहमाहा फ़ोजुरहा व तक़वाहा (सूर ए शम्स 8)

अल्लाह ने इंसान को अच्छाई और बुराई दोनों का ज्ञान दिया।

  1. इंसान को रास्ता दिखाया गया, मजबूर नहीं किया गया

अल्लाह ने कहा:

إِنَّا هَدَيْنَاهُ السَّبِيلَ إِمَّا شَاكِرًا وَإِمَّا كَفُورًا इन्ना हदयनाहुस सबीला इम्मा शाकेरव व इम्मा कफ़ूरा ( सूर ए इंसान 3)

हमने रास्ता दिखा दिया है; अब शुक्रगुजार होना है या एहसान फरामोश, यह इंसान का अपना फैसला है।

यानी, इंसान मजबूर नहीं है, बल्कि आज़ाद है।

  1. अगर अल्लाह हर नाइंसाफी को तुरंत रोक दे, तो चुनने का सिस्टम बेकार हो जाएगा

अगर हर अपराधी को जुर्म करने का इरादा करते ही आसमान से पत्थर मार दिया जाए, या उसका हाथ तुरंत पैरालाइज्ड कर दिया जाए, तो इंसान आज़ाद नहीं रहेगा। उसे रोबोट की तरह मजबूर किया जाएगा।

ऐसे में, न तो कोई टेस्ट बचेगा, न ही इनाम और सज़ा का कोई मतलब रह जाएगा।

  1. जज़ा और सज़ा का स्टैंडर्ड इंसान की पसंद है

जन्नत की जज़ा और जहन्नुम की सज़ा इंसान के अपनी मर्ज़ी से किए गए कामों पर आधारित हैं।

अगर सबसे बड़ा गुनाह नामुमकिन कर दिया जाए:

पापी और नेक इंसान में क्या फर्क होगा?

टेस्ट करने का मकसद क्या होगा?

इंसान की पर्सनैलिटी और कैरेक्टर कैसे डेवलप होगा?

  1. अल्लाह इंसान को बेसहारा नहीं छोड़ते

पैगंबर, संत, भगवान की किताबें, इंसानी समझ—सभी इंसान को अच्छाई के रास्ते पर ले जाने के लिए भेजे गए थे।

नतीजा:

अल्लाह तुरंत नाइंसाफी नहीं रोकते क्योंकि उन्होंने इंसान को आज़ादी और एजेंसी दी है, और एजेंसी का ज़रूरी नतीजा यह है कि इंसान अच्छा भी कर सकता है और बुरा भी।

इन कामों के आधार पर, उसे आखिरत में इनाम या सज़ा मिलती है।

यह सब अल्लाह की समझदारी और इंसानी टेस्टिंग के सिस्टम का हिस्सा है।

 

पोप लियो एक ऐतिहासिक यात्रा पर बैरूत के रफीक हरीरी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पहुंचे उनका धूमधाम से स्वागत हुआ।

अलमयादीन से रिपोर्ट के अनुसार, कैथोलिक चर्च के नेता पोप लियो चौदहवें अभी रफीक हरीरी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पहुंचे हैं।

उन्होंने लेबनान की अपनी यात्रा शुरू कर दी है, जो 2 दिसंबर तक जारी रहेगी।

लेबनान के लोगों ने देश की सड़कों पर पोप लियो चौदहवें और हिज़्बुल्लाह के महासचिव और लेबनान के शिया धार्मिक नेताओं में से एक सैयद हसन नसरल्लाह की तस्वीरें लगाई हैं।

इस यात्रा के कार्यक्रमों में आधिकारिक और मानवीय मुलाकातें शामिल हैं, जिनमें लेबनान के राष्ट्रपति जनरल जोसेफ औन द्वारा राष्ट्रपति भवन में आधिकारिक स्वागत और बेरूत केंद्र में एक बड़े जनसमूह वाली यूचरिस्ट समारोह शामिल है, जिसमें 120,000 से अधिक लोगों के भाग लेने की उम्मीद है।

तुर्की के विदेश मंत्री ने आज ईरान के विदेश मंत्री अराक़ची के साथ संयुक्त प्रेस वार्ता में ईरान के ख़िलाफ़ प्रतिबंध हटाने और ईरान के परमाणु मुद्दे को बातचीत के माध्यम से हल करने पर ज़ोर दिया हैं।

तुर्की के विदेश मंत्री ने आज ईरान के विदेश मंत्री अराक़ची के साथ संयुक्त प्रेस वार्ता में ईरान के ख़िलाफ़ प्रतिबंध हटाने और ईरान के परमाणु मुद्दे को बातचीत के माध्यम से हल करने पर ज़ोर दिया हैं।

फार्स न्यूज एजेंसी की विदेश नीति टीम के अनुसार, हाकान फिदान, तुर्की के विदेश मंत्री, जो ईरानी अधिकारियों और खासकर ईरान के विदेश मंत्री से मुलाक़ात और बातचीत के लिए अपने पहले द्विपक्षीय औपचारिक दौरे पर तेहरान आए हैं,रविवार, 30 नवंबर को ईरान के विदेश मंत्रालय में अराक़ची से मुलाक़ात और बातचीत के बाद संयुक्त प्रेस वार्ता में किए गए विचार-विमर्श की जानकारी दी।

उन्होंने तेहरान में आने पर खुशी जताई और कहा,बैठकें उपयोगी रहीं और हमने उन क्षेत्रों पर चर्चा की जो दोनों देशों को प्रभावित करते हैं। सीमा, लॉजिस्टिक्स और परिवहन के मामलों में हमने महसूस किया कि हम पीछे हैं।

तुर्की के विदेश मंत्री ने कहा,हमें सीमा द्वारों की संख्या बढ़ानी चाहिए और उन्हें सक्रिय रूप से इस्तेमाल करना चाहिए। हमारी संस्कृतियाँ एक-दूसरे के करीब हैं उन्होंने कहा कि आज की बैठक ईरान और तुर्की की 9वीं उच्चस्तरीय सहयोग परिषद की बैठक के लिए तैयारी का हिस्सा थी।

फिदान ने कहा,ईरान और तुर्की क्षेत्र के दो मजबूत देश हैं। हमने ग़ाज़ा और लेबनान और इज़रायल के आक्रामक कदमों पर चर्चा की, और इस आक्रामक और विस्तारवादी रुख से हम सभी को समस्या है। ग़ाज़ा में संघर्ष-विराम जारी रहना चाहिए और वेस्ट बैंक और पूर्वी यरुशलम में हमले बंद होने चाहिए।

उन्होंने कहा कि क्षेत्र में इज़रायल के विस्तार के मामलों में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को अपनी ज़िम्मेदारी निभानी चाहिए।

तुर्की के विदेश मंत्री ने आगे कहा,तुर्की हमेशा ईरान के साथ रहा है और रहेगा, और अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के तहत ईरान के परमाणु मुद्दे को बातचीत के ज़रिए हल किया जाना चाहिए। अन्यायपूर्ण प्रतिबंध हटाए जाने चाहिए। इंशाअल्लाह यह प्रक्रिया सफल होगी और हम अपनी तरफ़ से हर संभव प्रयास करेंगे। उन्होंने कहा कि रूस और यूक्रेन के बीच शांति हमारे लिए महत्वपूर्ण है।

 हाल ही में फ्रांस में एक सर्वेक्षण विशेष रूप से चर्चा का विषय बना जो यहूदी लॉबी और अंततः इज़राइल के समर्थन से मुसलमानों के खिलाफ तैयार किया गया था। हालाँकि, सामने आए साक्ष्य बताते हैं कि इज़राइल यूरोप के मुसलमानों की सामाजिक स्थिरता को अस्थिर करने की व्यवस्थित कोशिश में लगा हुआ है।

गज़्ज़ा में इज़राइल के मानवता विरोधी अपराधों पर उचित कार्रवाई न होने के कारण यह खूनखराबा करने वाली सरकार आगे बढ़कर दुनिया के अन्य हिस्सों में रहने वाले मुसलमानों के खिलाफ भी सक्रिय हो गई है, जिसके गंभीर परिणाम सभी समाजों को प्रभावित कर सकते हैं।

फ्रांसीसी जनमत इस समय भी उस बदनाम सर्वेक्षण के सदमे में है जो फ्रांसीसी संस्था इंस्टीट्यूट फ्रेंक्वा डी'ओपिनियन पब्लिक (Ifop) ने अतिवादी यहूदियों की निगरानी में मुसलमानों के बारे में तैयार किया था।

अब ऐसे साक्ष्य सामने आए हैं जिनसे पता चलता है कि मोसाद, फ्रांस में मौजूद यहूदी अतिवादियों के सहयोग से मुसलमानों के जीवन, रोजगार और सामाजिक स्थितियों से संबंधित गोपनीय जानकारी एकत्र करके इज़राइल को भेज रही है। कुछ अनुमानों के अनुसार, यह जानकारी विभिन्न सामाजिक और व्यावसायिक वर्गों से बड़े पैमाने पर एकत्र की गई है।

फ्रांस की मुस्लिम काउंसिल के अनुसार, यह शोध दो व्यक्तियों की निगरानी में हो रहा था, जिनमें से एक खुले तौर पर ज़ायोनी हितों का एजेंट है।

काउंसिल ने अपने बयान में इस घटना को "खतरनाक और अभूतपूर्व" बताते हुए कहा,यह जानकारी एक अत्यंत संवेदनशील दौर में सामने आई है, वही दौर जब मुसलमानों के खिलाफ किए गए विवादास्पद सर्वेक्षण का हंगामा जारी था।

काउंसिल के अनुसार, यह कार्रवाई अत्यंत व्यवस्थित ढंग से ज़ायोनी योजना का हिस्सा है जिसके माध्यम से मीडिया को मुसलमानों और इस्लाम के खिलाफ नस्लीय भेदभाव और घृणास्पद प्रचार की ओर धकेला जा रहा है।

इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर एक वीडियो व्यापक पैमाने पर साझा की गई जिसमें एक व्यक्ति, जो खुद को "डिडिएर लांग" बता रहा था, स्वीकार करता है कि वह वर्ष 2023 की शुरुआत से फ्रांसीसी मुसलमानों के खिलाफ मीडिया संकट पैदा करने की योजना पर काम कर रहा है और इस उद्देश्य के लिए मुसलमानों के विभिन्न प्रमुख और जिम्मेदार व्यक्तियों से मुलाकातें भी कर चुका है।

 हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम रिज़्क, शिफ़ा और बारिश को केवल भौतिक कारणों का नतीजा नहीं समझते थे, बल्कि इसे सीधे ख़ुदा का काम मानते थे। क़ुरआन करीम भी इंसान के दिल में यही यक़ीन पक्का करना चाहता है कि असली कार्य करने वाला केवल ख़ुदा है, जबकि ज़ाहिरी कारण हमेशा कारगर नहीं करते। इसीलिए इंसान को चाहिए कि अपने दिल में ईमान को ख़ालिस और मज़बूत करे।

मरहूम अल्लामा मिस्बाह यज़्दी ने एक ख़िताब में रोज़ी, शिफ़ा और बारिश के असली कारणों और कारकों पर बात करते हुए फ़रमाया कि जिस दर्जे की तौहीद की मारिफ़त हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम रखते थे, वह आम इंसानों की सोच से बहुत ऊँची है।

उन्होंने आयत ए करीमा

"وَالَّذِی هُوَ یُطْعِمُنِی وَیَسْقِینِ»

(सूरह शुआरा, आयत 79) की तफ़सीर करते हुए कहा कि हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं,मेरा रब वह है जो मुझे खिलाता है, जो पानी मेरे होठों तक पहुँचाता है। वह यह नहीं कहते कि अल्लाह खाना पैदा करता है, बल्कि कहते हैं कि अल्लाह मुझे खुद खिलाता है।

इसी तरह जब वह बीमार होते हैं तो फ़रमाता हैं कि मेरा रब ही शिफ़ा देता है न कभी-कभार, बल्कि हर मर्तबा वही शिफ़ा देने वाला है।

यह वह ख़ास दरक (समझ) है जो हमारी आम सोच से मेल नहीं खाता, और अक्सर हम इन तसव्वुरात को केवल तआरुफ़ या निस्बत के तौर पर लेते हैं, जबकि हक़ीक़तन हम असबाब-ए-तबीई को असल समझते हैं।

अल्लामा मिस्बाह ने कहा कि जब बारिश होती है तो हम फ़ौरन साइंसी वजूहात गिनवाते हैं कि बुख़ारात (भाप) उठते हैं, बादल बनते हैं, ठंडक से पानी बनता है और फिर ज़मीन की कशिश से बारिश हो जाती है। लेकिन क़ुरआन चाहता है कि मुसलमान का यक़ीन हो कि बारिश अल्लाह ही नाज़िल करता है।

पुराने ज़माने के लोग और किसान इस हक़ीक़त को दिल से मानते थे। जब वह खेती करते थे तो उनका हक़ीक़ी इतमाद ख़ुदा पर होता था कि बारिश वही बरसाएगा।

टेक्नोलॉजी के ज़रिए बादलों को बारिश के क़ाबिल बनाने से हमेशा बारिश नहीं होती कभी बारिश आ जाए तो भी फ़सलें आफ़त का शिकार हो जाती हैं।बरसों से सूखे इलाक़े में अचानक बर्फ़बारी हो जाती है।

ऐसे वाक़ियात इंसान को यक़ीन दिलाते हैं कि असबाब के पीछे एक और निज़ाम भी कारफ़र्मा है जिसे हम नहीं जानते।

इसीलिए ज़रूरी है कि हम अपने दिल में इस ख़ालिस और साफ़ ईमान को दोबारा ज़िंदा करें।