
رضوی
समझौते में गाजा युद्ध की पूर्ण समाप्ति को शामिल नहीं किया गया तो हमास समझौते को स्वीकार नहीं करेगा
हमास आंदोलन के एक नेता ने कहा है कि आंदोलन किसी भी समझौते को स्वीकार नहीं करेगा जिसमें स्पष्ट रूप से गाजा पर युद्ध की समाप्ति शामिल नहीं है।
आईआरएनए के अनुसार, इस अज्ञात हमास अधिकारी ने अल जज़ीरा को बताया कि कब्ज़ा करने वाली सरकार युद्ध जारी रखने पर जोर देकर युद्धविराम समझौते के रास्ते में खड़ी है, वह बिना कुछ दिए अपने कैदियों की रिहाई पर बातचीत करने की कोशिश कर रही है।
हमास के अधिकारी ने कहा कि ज़ायोनी शासन युद्ध को रोकने और गाजा से पूरी तरह से हटने के बजाय राफा के खिलाफ जमीनी हमले पर जोर देकर इसके परिणामों के लिए जिम्मेदार होगा, याहू कुछ व्यक्तिगत मुद्दों के कारण समझौते के रास्ते में खड़ा है हमास आंदोलन फिलिस्तीनी लोगों के त्याग और बलिदान के प्रति वफादार है और इसे किसी भी हालत में कम नहीं होने दिया जाएगा।
हमास के अधिकारी की यह टिप्पणी ज़ियोनिस्ट ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन द्वारा शनिवार रात को सूत्रों से मिली एक रिपोर्ट प्रसारित करने के तुरंत बाद आई, जिसमें कहा गया था कि संयुक्त राज्य अमेरिका ने हमास के साथ बातचीत करने के लिए इज़राइल पर एक प्रतिनिधिमंडल भेजा था
वाशिंगटन के मुक़ाबले में तेहरान की हक़ीक़त के बारे में पांच बिंदु
पिछले कुछ महीनों के दौरान अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन में ज़ायोनी अत्याचारों के बारे में वाशिंग्टन ने चुप्पी साध ली है।
पिछले कुछ दशकों के दौरान अमरीकी, इस्लामी गणतंत्र ईरान पर यह आरोप लगाते आए हैं कि वह इंटरनैश्नल मैकेनिज़्म की रेआयत नहीं कर रहा है। इसी आरोप को वे ईरान के विरुद्ध दबाव के हथकण्डे के रूप में प्रयोग कर रहे हैं। हालांकि पिछले कुछ महीनों के दौरान विश्व देख रहा है कि अमरीका, अवैध ज़ायोनी शासन को लेकर अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के प्रति कितनी उदासीनता दिखा रहा है।
पहली मई 2024 को हज़ारों अध्यापकों को संबोधित किया था जिसमें पश्चिमी एशिया के परिवर्तनों के बारे में एसे महत्वपूर्ण बिंदुओं का उल्लेख किया गया जिनकी गहन समीक्षा की जाने की आवश्यकता है। उन्होंने अपने संबोधन के एक भाग में कहा कि ज़ायोनी शासन के अत्याचारों को लेकर छात्रों के शांतिपूर्ण विरोध के साथ अमरीकियों का हिंसक व्यवहार, अमरीकी सरकार के प्रति ईरान की भ्रांति की पुष्टि करता है। अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन के हालिया महीनों के परिवर्तनों पर एक नज़र, उन विरोधाभासों को स्पष्ट करती है जिनमें अमरीकी राजेनता आज भी घिरे हुए हैं।
पिछले लगभग 45 वर्षों के दौरान जबसे तेहरान और वाशिंग्टन के बीच मतभेद जारी हैं, उस वक़्त से अमरीकी अधिकारी ईरान पर लगातार आरोप मढ़ते आ रहे हैं जिनके मुक़ाबले में इस्लामी गणतंत्र ईरान ने भी कुछ मुद्दे उठाए हैं। वर्तमान समय में विश्व जनमत के समक्ष वाशिंगटन के बारे में तेहरान के कुछ मुद्दे हैं जिनको नीचे विस्तार से पेश करने जा रहे हैं।
1-पिछले कुछ दशकों के दौरान ईरान जैसी स्वतंत्र सरकारों पर दबाव बनाने के लिए अमरीका की ओर से दबाव, वह विषय है जिसका तेहरान को दशकों से सामना रहा है।पिछले कुछ महीनों के दौरान हम अमरीका के उन दोहरे मानदंडों के साक्षी रहे हैं जो ईरान की बातों के सच होने की पुष्टि करते हैं। अमरीका की सरकार पिछले कुछ दशकों के दौरान मानवाधिकारों के उल्लंघन को लेकर विशव के दावेदार के रूप में सामने आई है। जबकि पिछले कुछ महीनों के दौरान अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन में ज़ायोनी अत्याचारों के बारे में वाशिंग्टन ने चुप्पी साध ली है।
यह एसी हालत में है कि जब अमरीकियों ने विभिन्न साक्ष्यों के आधार पर ग़ज़्ज़ा में ज़ायोनी सेना के अपराधों की बात को स्वीकार किया है।
2-अन्तर्राष्ट्रीय अधिकारों का सम्मानः यह वह विषय है जिसको अमरीकी अधिकारी पिछले कुछ दशकों से इस्लामी गणतंत्र ईरान के बारे में पेश करते आ रहे हैं। पिछले कुछ महीनों में हम कई बार अवैध ज़ायोनी शासन के समर्थन को लेकर इस विषय के उल्लंघन को देखते आ रहे हैं। इस समय विश्व जनमत, तेलअवीव को लेकर वाशिग्टन के दोहरे मानदंडों के साक्षी रहे हैं।
3-हालिया कुछ दशकों के दौरान अमरीका की ओर से इस्लामी गणतंत्र ईरान पर इंटरनैश्नल मैकेनिज़्म को अनदेखा करने का आरोप लगाए जाते रहे हैं। इसी दावे को वे ईरान के विरुद्ध दबाव डालने वाले हथकण्डे के रूप में प्रयोग करते हैं। हालांकि हो यह रहा है कि हालिया कुछ महीनों के परिवर्तनों को लेकर अमरीका, अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों को अनदेखा कर रहा है।
इसी आधार पर अमरीका के कुछ नीति निर्धारकों ने अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय की ओर से अवैध ज़ायोनी शासन के नेताओं को अपराधी घोषित किये जाने की संभावना के दृष्टिगत इस न्यायालय को प्रतिबंधित करने की धमकी दी है। अमरीका की दोहरी नीति का एक अन्य प्रतीक, अन्तर्राष्ट्रीय संगठन को प्रतिबंधित करना है जिसे इस समय विश्व जनमत देख रहा है।
4-वर्षों से अमरीका की यह नीति रही है कि वह मानवाधिकारों का दावा करते हुए विश्व जमनत में ईरान को मानविधकारों के हननकर्ता के रूप में पेश करे। हालांकि इस समय अमरीका के भीतर ही ग़ज़्ज़ा में ज़ायोनियों के अपराधों का विरोध कर रहे छात्रों को अमरीका की ओर से मानवाधिकारों के हनन का सामना करना पड़ रहा है। इस हिसाब से अमरीका स्वयं मानवाधिकारों के बारे में डबल स्टैंडर्ड अपनाए हुए है।
अमरीकी एसी हालत में छात्रों का दमन कर रहे हैं कि यही काम अगर किसी अन्य देश में हो रहा होता तो उसको प्रतिबंध लगाने, उसके विरुद्ध प्रस्ताव पारित करने और उसके विरुद्ध विश्व जनमत की राय को एकमत करने के प्रयास करते।
5- वह बिंदु जिसपर ध्यान दिया जाना चाहिए वह यह है कि ईरान ने पिछले कुछ दशकों के दौरान बल दिया है कि फ़िलिस्तीन, पश्चिमी एशिया का प्रमुख विषय है और तेलअवीव के साथ संबन्धों को सामान्य करने से किसी समस्या का समाधान नहीं हो पाएगा।
अब क्षेत्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बहुत से लोग इस्लामी गणतंत्र ईरान के दृष्टिकोणों की वास्तविकता को स्वीकार करने लगे हैं। इसी के साथ वे अवैध ज़ायोनी शासन की ओर से जातीय सफाए, जघन्य अपराधों, बच्चों के जनसंहार और अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों का सम्मान न करने जैसी घटनाओं के साक्षी हैं।
प्रतिरोध पर सीरिया का रुख नहीं बदला है, बल्कि मजबूत हुआ है: बशर असद
सीरिया के राष्ट्रपति बशर असद ने फिलिस्तीनी प्रतिरोध के लिए दमिश्क के समर्थन पर जोर दिया और स्पष्ट किया कि प्रतिरोध के संबंध में सीरिया की स्थिति नहीं बदली है, बल्कि यह पहले से अधिक मजबूत हो गया है।
अल-मयादीन टीवी चैनल के मुताबिक, सीरिया के राष्ट्रपति बशर असद ने कहा कि फ़िलिस्तीन को लेकर सीरिया की स्थिति 1948 की तुलना में अधिक स्थिर है। उन्होंने स्पष्ट किया कि उनकी सरकार फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध को बिना किसी देरी के हर संभव सहायता प्रदान करने के लिए हमेशा तैयार है और कभी भी संकोच नहीं करेगी।
सीरियाई राष्ट्रपति ने कहा कि उनका देश प्रतिरोध के समर्थन में पीछे नहीं हटेगा क्योंकि अत्याचारी का दुश्मन नहीं बदला है।
बशर असद ने कहा कि ज़ायोनी सरकार के साथ संघर्ष को समाप्त करने का एकमात्र तरीका सभी कब्ज़ा की गई भूमि फ़िलिस्तीनियों को सौंप देना है।
पश्चिमी देशों की आक्रामक और पक्षपातपूर्ण भूमिका की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा कि पश्चिमी देशों द्वारा ज़ायोनीवादियों का अंध समर्थन कोई नई समस्या नहीं है और जब तक स्थिति नहीं बदलती और फ़िलिस्तीनी और सीरियाई लोगों के अधिकार बहाल नहीं हो जाते सीरिया की स्थिति में कोई बदलाव नहीं होगा. अतीत में, सीरियाई राष्ट्रपति ज़ायोनी कब्जे के अंत तक फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध का समर्थन करने पर ज़ोर देते रहे हैं
धमकियों, हिंसा और गिरफ्तारियों के बावजूद, अमेरिकी विश्वविद्यालयों में छात्रों का विरोध व्यापक
पिछले दो महीनों के दौरान अमेरिकी पुलिस ने 40 विश्वविद्यालयों के 2,000 से अधिक छात्रों को हिरासत में लिया है.
सहर न्यूज़/दुनिया: फ़िलिस्तीन समर्थक छात्रों के विरोध को दबाने की अमेरिकी पुलिस की कोशिशें लगातार जारी हैं, ऐसे में अमेरिकी विश्वविद्यालयों के छात्रों के विरोध प्रदर्शन का दायरा लगातार व्यापक होता जा रहा है और अब यह संयुक्त राज्य अमेरिका से है अन्य देशों के विश्वविद्यालयों में फैल गया है।
अमेरिकी पुलिस ने विश्वविद्यालय के छात्रों के खिलाफ अपना हिंसक व्यवहार जारी रखते हुए न्यू स्कूल यूनिवर्सिटी के तैंतालीस छात्रों को उस समय गिरफ्तार कर लिया है जब वे धरने पर बैठे थे।
शिकागो यूनिवर्सिटी में पुलिस की घेराबंदी के बावजूद छात्र धरने पर बैठे हैं और फिलिस्तीन और गाजा में चल रहे युद्ध के समर्थन में प्रदर्शन जारी रखे हुए हैं। प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में छात्रों को धमकाते हुए धरने पर बैठे पंद्रह छात्रों को अमेरिकी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है.
पोर्टलैंड में अमेरिकी पुलिस ने बारह छात्रों को गिरफ्तार किया है. इस बीच, अमेरिकी पुलिस ने न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय से तेरह फ़िलिस्तीनी समर्थक और युद्ध-विरोधी छात्रों को गिरफ़्तार किया है। अमेरिकी विश्वविद्यालयों में फ़िलिस्तीनी समर्थक छात्र आंदोलन की शुरुआत के बाद से, संयुक्त राज्य अमेरिका के विभिन्न विश्वविद्यालयों से लगभग 2,300 छात्रों को गिरफ्तार किया गया है, जबकि अमेरिकी छात्रों का ज़ायोनी विरोधी विरोध प्रदर्शन जारी है, जो तेजी से बढ़ रहा है।
अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट ने अमेरिकी यूनिवर्सिटी के छात्रों की गिरफ्तारी के ताजा आंकड़ों का जिक्र करते हुए लिखा है कि पिछले दो महीनों के दौरान अमेरिकी पुलिस ने चालीस यूनिवर्सिटी के दो हजार से ज्यादा छात्रों को हिरासत में लिया है. इस बीच, अमेरिकी पुलिस ने न्यू हैम्पशायर, कैलिफ़ोर्निया और टेक्सास के विश्वविद्यालयों में फिलिस्तीन समर्थक सभाओं पर हमला किया और अब तक बड़ी संख्या में छात्रों को गिरफ्तार किया और दसियों छात्रों को घायल कर दिया।
कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय के कई प्रोफेसरों ने फ़िलिस्तीनियों के साथ एकजुटता प्रदर्शित करने के लिए काम करना बंद कर दिया है और विश्वविद्यालय छोड़ दिया है।
उधर, अमेरिकी सीनेटर बर्नी सैंडर्स ने गाजा में युद्ध का विरोध कर रहे अमेरिकी छात्रों की सराहना करते हुए कहा कि अमेरिकी विश्वविद्यालयों के छात्र इतिहास की सही दिशा में खड़े हैं. अमेरिकी सीनेटर बर्नी सैंडर्स ने अपने एक्स पेज पर लिखा कि हमने नस्लवादी नीतियों को खत्म करने के लिए 1962 में शिकागो विश्वविद्यालय में विरोध प्रदर्शन किया था और 1963 में नस्लवाद द्वारा बनाए गए स्कूल को अलग कर दिया गया था, गिरफ्तार कर लिया गया था जबकि अधिकार उनके पास थे। उन्होंने कहा कि यह गर्व की बात है कि अमेरिकी छात्र गाजा में युद्ध का विरोध कर रहे हैं. उन्होंने प्रदर्शनकारी छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि आप सही दिशा में खड़े हैं, बस शांत रहें.
ईरानी विदेश मंत्री ने ज़ायोनी शासन के साथ संबंध तोड़ने के तुर्की के कदम की सराहना की
ईरान के विदेश मंत्री ने ओआईसी बैठक के इतर अपने तुर्की समकक्ष के साथ बैठक में नरसंहारक ज़ायोनी शासन के साथ व्यापार संबंधों में कटौती करने के तुर्की के कदम की सराहना की है।
प्राप्त समाचार के अनुसार, ईरान के विदेश मंत्री होसैन अमीराब्दुल्लाहयान ने गाम्बिया की राजधानी बंजुल में इस्लामिक देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक के मौके पर तुर्की के विदेश मंत्री हकन फिदान के साथ बैठक में तुर्की सरकार के मुद्दों पर चर्चा की. उन्होंने कब्ज़ा करने वाली ज़ायोनी सरकार के साथ सहयोग को आर्थिक और व्यापारिक संबंधों को ख़त्म करने के हालिया फैसले को महत्वपूर्ण बताया।
अमीर अब्दुल्लाहियान ने गाजा में ज़ायोनी सरकार द्वारा किए गए अपराधों की निंदा की, और फिलिस्तीनी मुद्दे के समर्थन में इस्लामी देशों, विशेष रूप से ईरान और तुर्की को एक मजबूत और सक्रिय भूमिका निभाने की आवश्यकता को याद दिलाया इजराइल का नरसंहार शासन जिसे निष्ठा की शपथ कहा जाता है, आत्मरक्षा के ढांचे में चलाया गया था।
तुर्की के विदेश मंत्री ने सभी क्षेत्रों में ईरान के साथ संबंधों के विकास को अंकारा की प्राथमिकताओं में से एक घोषित किया और क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर तेहरान के साथ मजबूत सहयोग का स्वागत किया।
ईरान के भूतपूर्व विदेशमंत्री की नज़र से फ़ार्स की खाड़ी की तटवर्ती सरकारों की रणनीतिक ग़लतियां
जवाद ज़रीफ़ कहते हैं कि सुरक्षा कोई ख़रीदने वाली चीज़ नहीं है।
ज़रीफ़ कहते हैं कि अरब देशों के मन में अभी भी यह बेहूदा ख़याल बाक़ी है कि वे अवैध ज़ायोनी शासन के साथ संबन्ध सामान्य करके मध्यपूर्व में उनसे अपनी सुरक्षा ख़रीद सकते हैं।
ईरान के भूतपूर्व विदेशमंत्री मुहम्मद जवाद ज़रीफ़ ने फ़ार्स की खाड़ी से संबन्धित भू-राजनैतिक सम्मेलन में बोलते हुए फ़िलिस्तीन के युद्ध से संबन्धित कुछ घटनाओं की समीक्षा की।
ज़रीफ़ ने इस ओर संकेत किया कि सुरक्षा कोई ख़रीदने वाली चीज़ नहीं है। फ़ार्स की खाड़ी की तटवर्ती सरकारों के दिमाग़ में लंबे समय से यह बेहूदा विचार पनप रहा है कि सुरक्षा को ख़रीदा जा सकता है। इसी आधार पर उन्होंने थोपे गए युद्ध के दौरान सद्दाम का समर्थन किया था। जबकि सद्दाम उनका विश्वसनीय नहीं रहा और उसने कुवैत तथा सऊदी अरब पर हमला किया।
उन्होंने बल देकर कहा कि परमाणु समझौते का सऊदी अरब और ज़ायोनी शासन की ओर से विरोध करने का मुख्य कारण यही था कि वे चाहते थे कि अमरीका, मध्यपूर्व में अपनी उपस्थति को सुरक्षित करे।
ईरान के भूतपूर्व विदेशमंत्री ने इस ओर भी संकेत किया कि सद्दाम के बाद अरब शासक इस चक्कर में थे कि वे अमरीका से अपनी सुरक्षा ख़रीदें। उन्होंने कहा कि हक़ीक़त यह है कि विश्व में चीन के बढ़ते प्रभाव के दृष्टिगत अमरीका, अब मध्यपूर्व में अपना प्रभाव फैलाने के चक्कर में नहीं है। अब वह एक प्रकार से यह चाहता है कि इसको वह इस्राईल के हवाले कर दे। यही कारण है कि अरब सरकारें यह सोच रही हैं कि अवैध ज़ायोनी शासन के साथ अपने संबन्धों को विस्तृत करके मध्यपूर्व में अपनी सुरक्षा को ज़ायोनियों से ख़रीदें। हालांकि पूरे इतिहास मे कहीं भी एक स्थान पर यह नहीं मिलता कि इस्राईलियों ने किसी का समर्थन किया हो।
सऊदी अरब के एक पूर्व शासक के साथ अमरीका के एक युद्धप्रेमी भूतपूर्व राष्ट्रपति जार्ज बुश
ज़ायोनी शासन के साथ छह दिवसीय युद्ध में अरब सरकारों की पराजय की ओर संकेत करते हुए ज़रीफ़ ने स्पष्ट किया कि ज़ायोनी और उनके समर्थक, सात महीने से प्रतिरोध के मुक़ाबले में ग़ज़्ज़ा में कुछ भी नहीं कर पाए हैं।
अब हालत यह हो गई है कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कोई भी हमास के विनाश और ग़ज़्ज़ावासियों को किसी अन्य देश में भेजने के बारे में बात नहीं कर रहा है। इस समय तो यह स्थति है कि न केवल विश्व जनमत में इस्राईल की निंदा की जा रही है बल्कि और अब तो ग़ज़्ज़ा युद्ध, प्रतिरोध के पक्ष में पलटता जा रहा है।
ईरान और सऊदी अरब के विदेश मंत्रियों की बैठक में उन्होंने क्षेत्र और गाजा के हालात पर चर्चा की
ईरान और सऊदी अरब के विदेश मंत्रियों ने गाम्बिया में अपनी बैठक के दौरान क्षेत्र और विशेष रूप से गाजा की नवीनतम स्थिति पर चर्चा की है।
प्राप्त समाचार के अनुसार, गाम्बिया की राजधानी बंजुल में इस्लामिक सहयोग संगठन की 15वीं बैठक के अवसर पर ईरान और सऊदी अरब के विदेश मंत्रियों ने सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा की। गाजा, साथ ही आपसी संबंधों और सहयोग पर चर्चा की. क्षेत्र में संयुक्त राज्य अमेरिका की हालिया गतिविधियों का जिक्र करते हुए ईरानी विदेश मंत्री ने कहा कि हमारे ऐतिहासिक रिकॉर्ड और अनुभव बताते हैं कि संयुक्त राज्य अमेरिका अपने वादों को दोहराता है और अपने समझौतों और वादों का पालन नहीं करता है।
अमीर अब्दुल्लाहियान ने फिलिस्तीनी लोगों और क्षेत्र के देशों के हितों को ध्यान में रखते हुए गाजा में युद्ध को रोकने के लिए संयुक्त प्रयासों की आवश्यकता का उल्लेख करते हुए कहा कि हमारा मानना है कि क्षेत्र में स्थिरता और सुरक्षा की बहाली और युद्ध का खात्मा होगा। क्षेत्र की समाप्ति सभी देशों के हित में है।
सऊदी अरब के विदेश मंत्री फैसल बिन फरहान ने भी क्षेत्र में हो रहे बदलावों को लेकर अपने विचार व्यक्त किये और फिलिस्तीनी लोगों के अधिकारों की बहाली और एक स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना के लिए विशेष प्रयासों पर जोर दिया. फैसल बिन फरहान ने क्षेत्र में नेतन्याहू की युद्ध योजनाओं का मुकाबला करने के लिए ईरान और सऊदी अरब के बीच बातचीत जारी रखने को आवश्यक बताया।
इस्लाम, इंसान की ज़िंदगी के हर मैदान के लिए: आयतुल्ला ख़ामेनेई
इंसान के लिए सारे उसूल इस्लाम में मिलते हैं,अल्लाह के सामने गिड़गिड़ाने, उससे दुआ मांगने, उसके सामने रोने और नमाज़ पढ़ने से लेकर जिहाद तक यह इंसान के कामयाबी के राज़ हैं।
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने फरमाया,क़ुरआने मजीद में एक जगह कहा गया हैःऐ ईमान वालो! अल्लाह को बहुत ज़्यादा याद किया करो और सुबह शाम उसकी तस्बीह (गुण गान) किया करो।“ (सूरए अहज़ाब, आयत 41-42) ये चीज़ इंसान के दिल और तसव्वुर से संबंधित है लेकिन एक जगह कहा गया है।
जो लोग ईमान लाए हैं वो तो अल्लाह की राह में जंग करते हैं और जो काफ़िर हैं वो शैतान की राह में जंग करते हैं। तो तुम शैतान के हामियों (समर्थकों) से जंग करो। (सूरए निसा, आयत 76) ये भी है, यानी “अल्लाह को याद करो” से लेकर “शैतान के हामियों से जंग करो” तक का ये पूरा मैदान, दीन के दायरे में है।
एक जगह पैग़म्बर अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम से कहा गया हैः “(ऐ पैग़म्बर!) रात को (नमाज़ में) खड़े रहा कीजिए मगर (पूरी नहीं बल्कि) थोड़ी रात। यानी आधी रात या उसमें से भी कुछ कम कर दीजिए या उससे कुछ बढ़ा दीजिए। और क़ुरआन की ठहर ठहर का स्पष्ट तरीक़े से तिलावत कीजिए।(सूरए मुज़्ज़म्मिल, आयत 2,3,4) एक जगह पैग़म्बर से कहा गया है।
तो ऐ पैग़म्बर! आप अल्लाह की राह में जेहाद कीजिए, आप पर सिवाय अपनी ज़ात के कोई ज़िम्मेदारी नहीं डाली जाती और ईमान वालों को जेहाद के लिए तैयार कीजिए। (सूरए निसा, आयत 84) मतलब ये कि ज़िंदगी के ये सारे मैदान, आधी रात को जागने, अल्लाह के सामने गिड़गिड़ाने, उससे दुआ मांगने, उसके सामने रोने और नमाज़ पढ़ने से लेकर जेहाद और जेहाद के मैदान में शिरकत तक साब इस दायरे में हैं, पैग़म्बर की ज़िंदगी भी यही दिखाती है।
आज़ाद मीडिया लोकतांत्रिक व्यवस्था का चौथा और सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ है। हुज्जतुल इस्लाम सैयद अम्मार हकीम
हुज्जतुल इस्लाम सैयद अम्मार हकीम ने कहां,हम इराक और दुनिया भर के पत्रकारों के साथ मिलकर विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं, लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि स्वतंत्र मीडिया लोकतंत्र के सबसे महत्वपूर्ण स्तंभों में से एक है और किसी भी देश में चौथी सबसे बड़ी शक्ति मानी जाती है।
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,एक रिपोर्ट के मुताबिक , इराक की अलहिक्मा कौमी पार्टी के प्रमुख सैयद अम्मार हकीम ने विश्वास की स्वतंत्रता और बोलने की स्वतंत्रता को मजबूत करने की बात करते हुए इराक की अलहिक्मा कौमी पार्टी के प्रमुख सैयद अम्मार हकीम इराक ने स्वतंत्र मीडिया को किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था के सबसे महत्वपूर्ण स्तंभों में से एक बताया हैं।
उन्होंने विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर एक बयान में कहा आज हम इराक और दुनिया भर के पत्रकारों के साथ मिलकर विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि एक स्वतंत्र मीडिया लोकतंत्र के सबसे महत्वपूर्ण स्तंभों में से एक है और किसी भी देश की चौथी प्रमुख शक्ति मानी जाती हैं।
हुज्जतुल इस्लाम सैयद अम्मार हकीम ने आगे कहां,सरकार से मीडिया की स्वतंत्रता की गारंटी देने का आह्वान किया हैं। और कहा मीडिया को पूरी आजादी दी जानी चाहिए ताकि वह अपनी जिम्मेदारियों को ठीक से और स्वतंत्र रूप से निभा सके, साथ ही देश के सकारात्मक पहलुओं का मूल्यांकन भी कर सके।
उन्होंने स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तथा मीडिया की स्वतंत्रता को बढ़ावा देने का आह्वान किया और कहा कि मीडिया को सभी प्रकार की स्वतंत्रता दी जानी चाहिए ताकि वह अपने कर्तव्यों का पालन ठीक से कर सकें।
OIC की बैठक में ईरान के विदेश मंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियन का संबोधन
इस्लामी गणतंत्र ईरान के विदेश मंत्री होसैन अमीर अब्दुल्लाहियन ने ओआईसी बैठक में अपने संबोधन में ज़ायोनी सरकार के राजनयिक, राजनीतिक और आर्थिक बहिष्कार पर ज़ोर दिया है।
आईआरएनए की रिपोर्ट के अनुसार, ईरान के विदेश मंत्री होसैन अमीर अब्दुल्लाहियन ने अपने संबोधन में पश्चिमी जॉर्डन और कुद्स शरीफ में ज़ायोनी शासन के अपराधों को रोकने के लिए हड़पने वाली सरकार के साथ आर्थिक और राजनयिक संबंधों को तोड़ने का आह्वान किया। और गाजा में नरसंहार पर व्यापार और हथियारों पर प्रतिबंध लगाने पर जोर दिया गया है।
उन्होंने गाजा के उत्पीड़ित लोगों के खिलाफ ज़ायोनी सरकार के बर्बर अपराधों को रोकने के लिए इस्लामी देशों की एकता और एकतरफापन को मजबूत करने की आवश्यकता पर बल दिया।
उन्होंने गाजा युद्ध को लेकर मुस्लिम देशों के आचरण और व्यवहार को इतिहास में दर्ज करने पर जोर देते हुए कहा कि मुस्लिम देशों के लिए ज़ायोनी शासन के बर्बर युद्ध अपराधों, फ़िलिस्तीनी लोगों के नरसंहार और नरसंहार को रोकना भी आवश्यक है। गाजा में मानवीय सहायता के लिए अधिकतम एकता और एकजुटता दिखाएं।