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भारत ने मालदीव के पास खोला नया नौसैनिक अड्डा
भारत ने मालदीव के पास अपना "नया नौसैनिक अड्डा" खोल दिया है। भारत ने मालदीव से तनाव बढ़ने के बाद उसके पास अपना नया नौसैनिक अड्डा खोल दिया है।
अतीत में भारत के साथ मालदीव का परंपरागत रूप से घनिष्ठ संबंध रहा है मगर अक्टूबर में नए राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू के चुने जाने के बाद से संबंध बिगड़ गए हैं।
भारत ने मालदीव के पास अपना एक नया नौसैनिक अड्डा (नेवल बेस) बना दिया है, जहां से सभी तरह के समुद्री ऑपरेशन व युद्ध को अंजाम दिया जा सकता है। मालदीव और चीन दोनों वहां से भारत की जद में आ गए हैं। रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत ने मालदीव और चीन में बढ़ती घनिष्ठता का जवाब देने के लिए यह बड़ा कदम उठाया है।
मालदीव से तनावपूर्ण संबंधों के बीच और बीजिंग पर नजर रखते हुए भारत ने बुधवार को यह नया नौसैनिक अड्डा खोला है।
ज्ञात रहे कि भारत ने मालदीव के करीब अपने हिंद महासागर द्वीप पर इस नए नौसैनिक अड्डे को खोला है। ऐसा माले के साथ तनावपूर्ण संबंध बने होने और चीन के साथ मालदीव की निकटता बढ़ने के मद्देनजर किया गया है।
लक्षद्वीप द्वीपसमूह के मिनिकॉय द्वीप पर यह नया नेवल बेस वर्षों से निर्माणाधीन था। अब इसे बुधवार को पूरा कर लिया गया। यह नौसैनिक अड्डा भारत के पश्चिमी तट पर सबसे दूर का बेस है। हालांकि दशकों से द्वीप पर नौसेना की छोटी टुकड़ी की उपस्थिति रही है। मगर भारत ने अब ऐसे वक्त में इसका उद्घाटन किया है जब मालदीव ने भारत पर अपने लगभग 80 सैनिकों को वापस बुलाने के लिए दबाव डाला है। यह सैनिक भारत ने दक्षिणी पड़ोसी राष्ट्र मालदीव को दिए गए तीन विमानों पर तकनीकी और चिकित्सा सहायता प्रदान करने के लिए तैनात किए थे।
रमज़ान अलमुबारक में मस्जिदों में इफ्तार टेबल लगाने पर रोक
सऊदी अरब के सफाई और सुरक्षा मंत्री ने रमज़ानुल मुबारक में मस्जिदों में इफ्तार टेबल लगाने पर माना कर दिया हैं।
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,अरबी अलजरीरा का हवाला देते हुए सऊदी अरब ने खाना खाने के बाद मस्जिद क्षेत्र के अंदर सफाई की चिंताओं के कारण रमजान के पवित्र महीने से पहले मस्जिदों में इफ्तार की मेज पर प्रतिबंध लगा दिया है।
इस देश के इस्लामिक मामलों दावत और मार्गदर्शन के मंत्रालय ने एक बयान में घोषणा की कि स्वच्छता और स्वास्थ्य मुद्दों के कारण इफ्तार की योजना उनकी मस्जिदों के अंदर आयोजित नहीं की जानी चाहिए।
इस घोषणा में कहा गया है मंडलियों के इमामों और मुअज़्ज़िनों को मस्जिदों के प्रांगण में रोज़ा खोलने के लिए एक उपयुक्त जगह ढूंढनी चाहिए और इस उद्देश्य के लिए कोई अस्थायी कमरा या तम्बू नहीं बनाना चाहिए।
मंत्रालय ने इस बात पर भी जोर दिया कि मंडली के इमामों और मस्जिद मुअज्जिनों को इफ्तार कार्यक्रमों के लिए रोजेदारों से चंदा नहीं लेना चाहिए।
इन निषेधों के अलावा मस्जिद के अंदर कैमरों और फोटोग्राफी का उपयोग भी प्रतिबंधित है और ऑनलाइन मीडिया सहित किसी भी मीडिया में प्रार्थना प्रसारित करने की अनुमति नहीं है।
ज़ायोनी इलाक़ों पर हिज़बुल्लाह का बहुत बड़ा हमला
हिज़्बुल्लाह ने ज़ायोनी शासन की सामरिक बस्ती करियात शमूना पर दो कट्यूशा राकेटों और गाइडेड मिसाइलों से हमला किया। अफ़ीफ़ीम और कुछ दूसरी ज़ायोनी बस्तियों पर भी हिज़्बुल्लाह ने हमला किया।
यह हमला लेबनान के आवासीय क्षेत्रों पर ज़ायोनी शासन के हमलों के जवाब में किया गया। इस्राईली मीडिया ने एलान किया कि यह 2006 में होने वाले 33 दिवसीय युद्ध के बाद से अब तक का सबसे बड़ा हमला था।दक्षिणी लेबनान से इन ज़ायोनी बस्तियों पर 100 से अधिक मिसाइल फ़ायर किए गए।.....ज़ायोनी मीडिया के रिपोर्टर ने कहा कि हम नहीं चाहते कि 7 अक्तूबर जैसा हमला अब उत्तरी इलाक़ों में हो जाए। यहां सुरक्षा नाम की कोई चीज़ नहीं है किसी भी क्षण हिज़्बुल्लाह के मिसाइल गिरते हैं। हिज़्बुल्लाह ने अपने हमले जारी रखते हुए ज़ायोनी सैनिकों के एकत्रित होने की चार जगहों पर हमले किए। तैहात टीले पर ज़ायोनी सेना के दो मिरकावा टैंक भी हिज़्बुल्लाह के हमले का निशाना बने। शबआ और कफ़र शूबा में भी ज़ायोनी सेनाओं के ठिकानों पर हिज़्बुल्लाह के राकेट गिरे।....दक्षिणी लेबनान के एक नागरिक ने बहादुरी का परिचय देते हुए कहा कि हमारे इलाक़ों पर ज़ायोनी सेना के हमले होते हैं लेकिन हम अपने इलाक़ों को छोड़ने वाले नहीं हैं। हिज़्बुल्लाह ज़ायोनियों से हर हमले का इंतेक़ाम लेने में पूरी तरह सक्षम है।....दक्षिणी लेबनान में आठ जगहों पर ज़ायोनी सेना के युद्धक विमानों ने हमले किए। हौला पर इस बमबारी में एक परिवार के तीन लोग शहीद हो गए। एक अन्य हमले में चार लोग घायल हो गए। हिज़्बुल्लाह ने कहा है कि दक्षिणी लेबनान के आवासीय इलाक़ों पर ज़ायोनी सेना के हमलों के जवाब में हिज़्बुल्लाह ने कहा है मक़बूज़ा उत्तरी फ़िलिस्तीन के इलाक़ों में ज़ायोनी बस्तियों पर हमलों का दायरा बढ़ाया जाएगा।
चिली ने एयरोस्पेस प्रदर्शनी से ज़ायोनी शासन को हटाने की घोषणा की
चिली सरकार ने लैटिन अमेरिका की मुख्य एयरोस्पेस और रक्षा प्रदर्शनी से ज़ायोनी शासन की कंपनियों को हटाने की घोषणा की है।
ज़ायोनी कंपनियों को इस प्रदर्शनी से बाहर करने का मतलब इस्राईल और उसके समर्थकों विशेष रूप से अमरीका को बड़ा झटका लगा है।
7 अक्टूबर, 2023 से ग़ज़ा पट्टी पर ज़ायोनी सेना के हमलों में 30,717 फ़िलिस्तीनी शहीद और 72,156 अन्य घायल हो गए हैं। इन हमलों की दुनिया भर में व्यापक निंदा के बावजूद, ग़ज़ा में निर्दोष फ़िलिस्तीनियों पर हमले जारी हैं और उन्हें जानबूझकर भूखमरी का शिकार होने के लिए छोड़ दिया गया है।
फ्रांस प्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, चिली के रक्षा मंत्रालय ने बुधवार को एक बयान जारी करके बताया कि चिली सरकार के निर्णय के बाद, 9 से 14 अप्रैल तक आयोजित होने वाली अंतर्राष्ट्रीय वायु और अंतरिक्ष प्रदर्शनी 2024, इस्राईली कंपनियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है।
हाल ही में, चिली उन देशों के समूह में शामिल हो गया है, जिन्होंने अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय से ग़ज़ा पट्टी में ज़ायोनी शासन के युद्ध अपराधों की जांच की मांग की है।
ईरानी सहायता ग़ज़ा तक पहुंचने से रोक रहा है इस्राईल
ईरानी रेड क्रिसेंट सोसाइटी के प्रमुख का कहना कि ग़ज़ा में पीड़ित फ़िलिस्तीनियों और विस्थापितों की मदद के लिए ईरान द्वारा भेजी गई 10 हज़ार टन खाद्य सामग्री और दवाईयों में से सिर्फ़ 25 फ़ीसद को ही ग़ज़ा में प्रवेश की अनुमति दी गई है।
इस्लामी गणतंत्र ईरान की रेड क्रिसेंट सोसाइटी के प्रमुख पीर हुसैन कूलीवंद ने बुधवार को कहा कि ज़ायोनी शासन ग़ज़ा में पीड़ितों तक मानवीय सहायता के मार्ग में रुकावटें डाल रहा है।
उन्होंने कहा कि वह सहायता को भी दंडात्मक कार्यवाही के रूप में उपयोग कर रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि ईरान ने अवैध ज़ायोनी शासन के 90 अपराधों को सूचिबद्ध किया है और इस संबंध में अंतर्राष्ट्रीय अदालत को एक पत्र लिखा है।
ग़ौरतलब है कि ग़ज़ा में युद्ध अपराधों और नरसंहार समेत 90 अपराधों के शिकायत पत्र पर अब तक 86 देश हस्ताक्षर कर चके हैं।
ईरान की रेड क्रिसेंट सोसाइटी के प्रमुख ने ग़ज़ा युद्ध में फ़िलिस्तीनियों के नरसंहार और मानवीय अधिकारों के हनन के विषय पर तेहरान में एक अंतरराष्ट्रीय कांफ़्रेंस आयोजित करने की घोषणा भी की।
ईरान ने अमरीकी तेल ले जाने वाले जहाज़ को ज़ब्त कर लिया
फ़ारस की खाड़ी में ईरान ने अमरीकी तेल ले जाने वाले एक टैंकर को अब आधिकारिक रूप से ज़ब्त कर लिया है।
अमरीकी तेल कार्गो फ़ारस की खाड़ी में मार्शल आइलैंड्स फ़्लैग वाले जहाज़ एडवांटेज स्वीट द्वारा ढोया जा रहा था। अप्रैल 2023 में एक ईरानी बोट से टकराने के बाद, ईरान ने इस तेल टैंकर को रोक लिया था।
प्राप्त रिपोर्ट के मुताबिक़, इस तेल कार्गो को ईरान की एक अदालत के आदेश के बाद ज़ब्द किया गया है, जिसने एपिडर्मोलिसिस बुलोसा (ईबी) से पीड़ित रोगियों या बटरफ्लाई रोगियों की शिकायत पर सुनवाई करते हुए यह फ़ैसला सुनाया था।
एक दुर्लभ त्वचा रोग से पीड़ित रोगियों ने अमरीकी प्रतिबंधों द्वारा उपचार में होने वाली समस्याओं को लेकर अदालत का दरवाज़ा खटखटाया था।
अपनी शिकायत में ईबी रोगियों ने अमरीकी प्रतिबंधों के कारण होने वाले नुक़सान की भरपाई किए जाने की मांग की थी।
शिकायत में रोगियों ने कहा था कि पश्चिमी प्रतिबंधों विशेष रूप से अमरीका के ग़ैर क़ानूनी और एकपक्षीय प्रतिबंदों ने स्वीडिश कंपनी द्वारा ईरान को दवाएं बेचने से रोक दिया है, जिससे उन्हें गंभीर शारीरिक और मानसिक नुक़सान पहुंच रहा है।
इस्राईली हमलों में 30800 से अधिक फिलिस्तीनी शहीद
फिलिस्तीन के स्वास्थ्यमंत्रालय ने आज गुरूवार को एलान किया है कि गत 24 घंटों के दौरान जायोनी सेना के हमलों में 83 फिलिस्तीनी शहीद और 182 घायल हुए हैं।
फिलिस्तीनी स्वास्थ्यमंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार इस प्रकार सात अक्तूबर से आरंभ होने वाले इस्राईल के बर्बर व पाश्विक हमलों में शहीद होने वाले फिलिस्तीनियों की संख्या 30800 हो गयी है जबकि 72 हज़ार 298 लोग घायल हुए हैं।
इसी प्रकार गज्जा पट्टी में सात हज़ार से अधिक लोग लापता और मलबे के नीचे दबे हुए हैं।
उल्लेखनीय मानवाधिकार की रक्षा का दम भरने वाले देश विशेषकर अमेरिका और ब्रिटेन खुलकर इस्राईल का समर्थन कर रहे हैं जिसके कारण वह किसी प्रकार के संकोच के बिना फिलिस्तीन के बेगुनाह लोगों का नरसंहार कर रहा है।
इस्राईल के ख़िलाफ़ दक्षिण अफ़्रीक़ा ने खटखटाया अंतरराष्ट्रीय अदालत का दरवाज़ा
दक्षिण अफ्रीक़ा ने अंतरराष्ट्रीय अदालत के नाम अपने एक बयान में कहा है कि ग़ज़ा में नए तथ्यों, विशेष रूप से व्यापक कुपोषण और भुखमरी के कारण वह एक बार फिर इस्राईल के ख़िलाफ़ अदालत का दरवाज़ा खटखटाने के लिए मजबूर है।
दक्षिण अफ़्रीक़ा ने कहा है कि इस्राईल नरसंहार की रोकथाम वाले कन्वेंशन का निरंतर उल्लंघन कर रहा है, जिससे जिसके कारण वह एक बार फिर अदालत का रुख़ करने के लिए मजबूर है।
क़ब्ज़े वाले फ़िलिस्तीनी क्षेत्रों में मानवाधिकार की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत फ्रांसेस्का अल्बनीज़ ने ग़ज़ा युद्ध से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) में दक्षिण अफ्रीक़ा की नई अपील के लिए उसका आभार व्यक्त किया है।
दक्षिण अफ्रीक़ा का कहना है कि उसने आईसीजे से इस्राईल को अतिरिक्त आपातकालीन उपायों का आदेश देने का आग्रह किया है, क्योंकि लोग ग़ज़ा में अब भूख से मर रहे हैं और समय तेज़ी से हाथ से निकलता जा रहा है।
दक्षिण अफ़्रीक़ा ने एक बयान में कहा है कि ग़ज़ा में सम्पूर्ण अकाल का ख़तरा बढ़ता जा रहा है। इस भयानक त्रासदी को रोकने के लिए अदालत को अब आगे आकर कार्यवाही करने की ज़रूरत है।
अमरीकी तेल ज़ब्त कर लिया जाए, ईरान की अदालत का फ़ैसला
ईरान की एक अदालत के आदेश के बाद अमरीकी तेल ले जाने वाले एक टैंकर को आधिकारिक रूप से ज़ब्त कर लिया गया है। अमरीकी तेल कार्गो फ़ारस की खाड़ी में मार्शल आइलैंड्स फ़्लैग वाले जहाज़ एडवांटेज स्वीट द्वारा ढोया जा रहा था। अप्रैल 2023 में एक ईरानी बोट से टकराने के बाद, ईरान ने इस तेल टैंकर को रोक लिया था।
प्राप्त रिपोर्ट के मुताबिक़, इस तेल कार्गो को ईरान की एक अदालत के आदेश के बाद ज़ब्द किया गया है, जिसने एपिडर्मोलिसिस बुलोसा (ईबी) से पीड़ित रोगियों या बटरफ्लाई रोगियों की शिकायत पर सुनवाई करते हुए यह फ़ैसला सुनाया है ।
एक दुर्लभ त्वचा रोग से पीड़ित रोगियों ने अमरीकी प्रतिबंधों द्वारा उपचार में होने वाली समस्याओं को लेकर अदालत का दरवाज़ा खटखटाया था। अपनी शिकायत में ईबी रोगियों ने अमरीकी प्रतिबंधों के कारण होने वाले नुक़सान की भरपाई किए जाने की मांग की थी।
शिकायत में रोगियों ने कहा था कि पश्चिमी प्रतिबंधों विशेष रूप से अमरीका के ग़ैर क़ानूनी और एकपक्षीय प्रतिबंधों ने स्वीडिश कंपनी द्वारा ईरान को दवाएं बेचने से रोक दिया है, जिससे उन्हें गंभीर शारीरिक और मानसिक नुक़सान पहुंच रहा है।
हालिया वर्षों में इस्लामी गणतंत्र ईरान के अधिकारियों ने ईरान में कुछ रोगियों सहित लोगों के स्वास्थ्य पर अमरीकी प्रतिबंधों के प्रभाव के बारे में बार-बार चेतावनी दी है, और इस बात पर ज़ोर दिया है कि यह प्रतिबंध प्रतिदिन रोगियों की मृत्यु का कारण बन रहे हैं।
पश्चिमी देशों, विशेषकर अमरीका का दावा है कि यह दवा कभी भी प्रतिबंध सूची में नहीं थी; फ़ारस की खाड़ी में एक अमरीकी तेल कार्गो की ज़ब्ती की घोषणा के जवाब में, अमरीकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने एक बार फिर दावा किया है कि ईरान के खिलाफ़ अमरीकी प्रतिबंधों में कभी भी दवा शामिल नहीं थी, और अब भी नहीं है।
इस बीच, बैंकों पर प्रतिबंध और ईरान के मौद्रिक विनिमय में पैदा हुई समस्याओं ने विशेष और लाइलाज बीमारियों से पीड़ित लोगों के लिए दवा प्राप्त करना कठिन और कुछ मामलों में असंभव बना दिया है। इन प्रतिबंधों का परिणाम ईरान में बटरफ़्लाई रोगियों के साथ-साथ थैलेसीमिया और कैंसर से पीड़ित हज़ारों रोगियों के जीवन के लिए ख़तरा है।
घर परिवार- 1
आज के कार्यक्रम के पहले भाग में हम दपंति के बारे में कुछ मनोवैज्ञानिक बातों का उल्लेख कर रहे हैं।
वास्तव में विवाह, अपनी समस्या व जटिलताओं के साथ, उस पौधे की भांति होता है जिसे यदि सही दिशा न दी जाए और उसके लिए सही सहारे का इंतेज़ाम न किया जाए तो हो सकता है इस संबंध का वह परिणाम न निकले जिसकी इच्छा हो। हम दो लोगों के परियाय सूत्र में बंध जाने के बाद की स्थिति पर चर्चा कर रहे हैं क्योंकि उस समय सब कुछ स्पष्ट हो चुका होता है। सब से पहले तो पति और पत्नी को एक दूसरे की विविधता पर ध्यान देना चाहिए। पति और पत्नी के मध्य सब से पहला और बड़ा अंतर, लैंगिक होता है । आज आधुनिक मनोविज्ञान में भी यह सिद्ध हो चुका है कि महिला और पुरुष की मनोदशा समान नहीं होती और रचना और सृष्टि के लिहाज़ से भी दोनों में बुनियादी अंतर होता है जो उनके अनुभवों और संस्कारों से हट कर भी, उनके मध्य अंतर का कारण बनती है और इसी अंतर के कारण वह एक दूसरे की ओर आकृष्ट होते हैं। इस लिए ज़रूरी है कि पति पत्नी सब से पहले एक दूसरे की लैंगिक विशेषताओं के बारे में जानकारी प्राप्त करें और यह सीखें कि उनके मध्य जो मतभेद है उसका मूल कारण कहीं,उनका लैंगिक अंतर तो नहीं है? या वास्तव में यह अलग अलग सोच का नतीजा है? क्योंकि सोच के अंतर की वजह से पैदा होने वाला मतभेद खत्म हो सकता है और उसका निवारण संभव है मगर लैंगिक अंतर के कारण पैदा होने वाले मतभेद का अंत आसान नहीं होगा और उसका एक ही समाधान है और वह यह कि दोनों एक दूसरे को अच्छी तरह से समझें।
बेहतर यह है कि दंपति, संयुक्त जीवन के आरंभ में ही, अपने अपने कर्तव्यों का निर्धारण कर लें। उदाहरण स्वरूप यह तय कर लें कि पति या पत्नी की आय किस प्रकार से घर में खर्च होगी या किस तरह से बचत की जाएगी , घर का काम काज कैसे होगा और यह कि दोनों किस प्रकार से एक दूसरे की मदद कर सकते हैं। यदि यह सब कुछ बुद्धिमत्ता और सूझबूझ के साथ तय किया जाए तो फिर आगे चल कर दांपत्य जीवन में कोई समस्या नहीं खड़ी होगी और पति और पत्नी में से किसी को यह नहीं महसूस होगा कि उसके कांधे पर दूसरे का बोझ है। पैगम्बरे इस्लाम की बेटे हज़रत फातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा का जीवन एक सफल मुसलमान महिला के जीवन के लिए आदर्श है। इतिहास में लिखा है कि उनके पति हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने यह तय कर रखा था कि घर के लिए ज़रूरी कामों को आपस में बांट लिया जाए और घर के अंदर के काम जैसे खाना पकाना या आटा गूंथना आदि हज़रत फातेमा के ज़िम्मे था और ईंधन लाना और सामान खरीदना, हज़रत अली अलैहिस्सलाम की ज़िम्मेदारी थी। इसके साथ ही हज़रत अली घर के अंदर भी काम काज में अपनी पत्नी का हाथ बंटाते थे।
ईरान सहित पूरी दुनिया में परिवार के गठन की प्रक्रिया के बारे में हमने पिछले कार्यक्रम में बताया था कि समाज की सामूहिक दशा में किसी भी प्रकार का परिवर्तन, परिवार के ढांचे में परिवर्तन का कारण बनता है। जब समय के साथ साथ मनुष्य की ज़रूरतें और उद्देश्य, बदलते हैं तो परिवार का ढांचा भी बदल जाता है। उन्नीसवीं सदी के बाद से फैक्टरी और उद्योग के महत्व के कारण परिवार के ढांचे में भी बदलाव पैदा हुए। सामाजिक व्यवस्था में विकास और आधुनिक शिक्षा संस्थानों के गठन की वजह से, परिवार के कई महत्वपूर्ण काम, इन संस्थाओं को सौंप दिये गये और परिवार की भूमिका कम हो गयी और इसके साथ ही परिवार के सदस्यों की संख्या भी कम हुई और मुख्य सदस्यों पर आधारित परिवार के गठन का चलन बढ़ा।
मुख्य सदस्यों पर आधारित वह परिवार होता है जो माता पिता और संतान पर ही आधारित होता है। इस प्रकार के परिवारों का चलन, पश्चिम में औद्योगिक क्रांति के बाद आम हुआ। इस प्रकार के परिवार में पति, पत्नी अपने बच्चों के साथ रहते हैं और उनके साथ उनका कोई दूसरा रिश्तेदार नहीं रहता। इस प्रकार के परिवार में माता, पिता या दोनों मिल कर परिवार के खर्च का बोझ उठाते हैं और अपने कामों में वह परिवार से बाहर किसी से सलाह नहीं लेते और प्रायः फैसले एक दूसरे से बात चीत करके कर लेते हैं।
पारसंस जैसै समाज शास्त्रियों की नज़र में परमाणु परिवार बौद्धिक होता है क्योंकि इस प्रकार के परिवार में बुद्धि व तर्क से काम लिया जाता है और फैसलों में परिवार का हर सदस्य शामिल होता है और फैसला करने का अधिकार उसी को होता है जो तर्क व बुद्धि में सब से अधिक शक्तिशाली होता है। न्यू क्लियर फैमिली कभी बढ़ती नहीं, क्योंकि बच्चे जैसे ही बड़े होते हैं अपना जीवन जीने के लिए माता पिता से अलग हो जाते हैं और एक दूसरे परिवार का गठन करते हैं। इस प्रकार के परिवार को इस समय दुनिया के बहुत से देशों में देखा जा सकता है।
हम रहीमी और उनकी पत्नी को ईरान में परमाणु परिवार का एक उदाहरण बना कर पेश कर रहे हैं । इस काल्पनिक परिवार में तीन बेटियां और दो बेटे हैं जिन्होंने शादी के बाद अपने पिता का घर छोड़ दिया है और हरेक की अपनी अलग दुनिया है। इस परिवार में माता पिता वर्षों गुज़र जाने के बाद भी एक दूसरे से प्रेम करते हैं और एक दूसरे के साथ रहते हैं। वह सत्तर मीटर के दो बेडरूम वाले फ्लैट में रहते हैं। छुट्टियों के दिन चूंकि उनके बच्चे भी उनसे मिलने आते हैं इस लिए घर में काफी चहल पहल रहती है लेकिन आम दिनों में पूरे घर में खामोशी छाई रहती है। उनके बच्चों के घर उनसे काफी दूरी पर हैं इस लिए वह आसानी से उनके घर नहीं जा सकते इसी लिए उनके लिए फोन सब से अच्छा संपर्क साधन है। रहीमी साहब और उनकी पत्नी अनुभवी हैं इस लिए पूरे मोहल्ले के लोग उन्हें जानते हैं और उनसे सलाह मशिवरा करते हैं। मस्जिद में जाना भी उनके लिए अन्य लोगों से संपर्क का एक अच्छा अवसर होता है। उनकी मुख्य समस्या, बेटे और बहू में मतभेद है । उनके बेटे का 6 साल का एक बेटा भी है लेकिन इस बच्चे के बावजूद वह अपनी पत्नी के साथ नहीं रह सकता। अब दादा दादी को अपने पोते की चिंता है जो, माता पिता के मध्य अलगाव के बाद, अकेला पड़ जाएगा। हालांकि मोहल्ले में वह इस प्रकार के बहुत से परिवारों की समस्याओं का निवारण करते रहते हैं मगर उन्होंने अभी तक अपने बेटे और बहू के मामले में दखल नहीं दिया है । उन्हें लगता है कि कहीं यह न समझा जाए कि वह अपने बेटे का समर्थन कर रहे हैं जिससे मामला अधिक खराब हो जाए। वह अपने बेटे की पारिवारिक समस्या के निवारण के साधन की खोज में जुटे हैं। रहीमी साहब का दूसरा बेटा यारी दोस्ती में व्यस्त है और माता पिता से मिलने का उसे कम ही समय मिलता है मगर फिर भी रहीमी साहब खुश हैं कि वह अपनी पत्नी के साथ खुशी से ज़िंदगी गुज़ार रहा है।
यह कहा जा सकता है कि न्यू क्लियर फैमिली, के आधारों को वर्तमान उद्योगिक परिस्थितियों ने जनम दिया है। इस प्रकार के परिवार का मक़सद, शांति व मौन व प्रेम होता है। आज के काल में ईरान सहित विश्व के अधिकांश देशों में इसी प्रकार के परिवारों का चलन है और सन 2011 के आंकड़ों के अनुसार ईरान में 60 प्रतिशत से अधिक परिवार, परमाणु परिवारों के रूप में रहते हैं। वास्तव में परिवारों के रूप में बदलाव के साथ ही परिवार के गठन की शैली भी बदल गयी है और लोग स्वंय ही अपने जीवन साथी का चयन करने लगे हैं।
इस्लाम समाज में एकता को , परिवार के भीतर एकता का परिणाम समझता है और परिवार के सदस्यों की रुचियों को समाज में सार्वाजनिक रूप से प्रचारित किये जाने योग्य समझता है। इस्लाम की नज़र में परिवार, भौतिकता से परे आध्यात्मक व नैतिकता के आधार पर बनाया जाता है इस लिए यह संभव नहीं है कि कोई परिवार, दिखावा करे, भौतिकता में डूबा रहे और उसके बाद यह आशा रखे कि उसके परिवार में उच्च आध्यात्मिक मूल्यों का विकास होगा। ईरान में इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद, इस्लामी जीवन शैली के कई सफल आदर्श नज़र आते हैं जिनमें से किसी भी आदर्श पर गौर करके इन्सान अपने परिवार को उच्च स्थान तक ले जा सकता है।
शहीद मेहदी ज़ैनुद्दीन की पत्नी कहती हैं: हम सब उनके पिता के घर में थे, सब लोग खाना खा रहे थे, तभी में कोई चीज़ लाने के लिए किचन में गयी और जब वापस आयी तो देखा, मेहदी साहब, हाथ रोके मेरा इंतेज़ार कर रहे हैं ताकि मेरे साथ ही खाना शुरु करें। मुझे उनका यह काम इतना अच्छा लगा कि आज भी मुझे अच्छीतरह से याद है।
शहीद सैयद मीर सईद की पत्नी अपने पति के बारे में कहती हैंः
उस रात बहुत बारिश हो रही थी, दूसरे दिन ही उनका इम्तेहान था, मैं आंगन में जाकर कपड़े धोने लगी। तभी मैंने देखा कि वह मेरे पीछे आकर खड़े हो गये। मैंने कहा, यहां क्या कर रहे हैं आप? कल आप का इम्तेहान नहीं है क्या? वह आंगन में बने हौज़ के पास घुटनों के बल बैठ गये, बर्फ जैसे ठंडे मेरे हाथों को टब से बाहर निकाला और कहा मुझे तुम से शर्म आ रही है, मैं तुम्हारे लिए वह सब कुछ नहीं कर सका जिसकी तुम योग्य हो, जिस लड़की के घर में कपड़े धोने की मशीन हो वह मेरे घर में इस ठंडक में बैठ कर ... मैंने उनकी बात काट दी और कहा: किसी ने मुझे मजबूर नहीं किया है, मैं दिल से यह काम करती हूं यह जो आप समझते हैं और मेरी क़द्र करते हैं वही मेरे लिए काफी है।