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हफ्त ए मुकद्दसे दिफा के अवसर पर जनरल अब्दुल रहीम मूसवी ने कहा कि ईरानी सशस्त्र बल अपनी रक्षा क्षमताओं और आधुनिक तकनीक के दम पर किसी भी आक्रमण का पूरी ताकत से जवाब देने के लिए तैयार हैं।

तेहरान में हफ्त ए मुकद्दसे दिफा के अवसर के मौके पर एक संदेश में ईरानी सशस्त्र बलों के चीफ ऑफ स्टाफ मेजर जनरल अब्दुल रहीम मूसवी ने कहा कि ईरान हर प्रकार के खतरे का समय पर, निर्णायक और पूरी ताकत से जवाब देने के लिए पूरी तरह तैयार है।

जनरल मूसवी ने आठ साल की ईरान-इराक युद्ध का हवाला देते हुए कहा कि दुश्मन ईरान की सैन्य शक्ति, रक्षा क्षमताओं, क्षेत्रीय प्रभाव और सशस्त्र बलों के संतुलित जवाब से निपटने में असफल रहा।

उन्होंने कहा कि ईरान केवल रक्षात्मक स्थिति में नहीं है, बल्कि हर खतरे को राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और वैश्विक शक्ति के प्रदर्शन का अवसर बनाता है।

जनरल मूसवी ने आधुनिक रक्षा तकनीक के विकास और रक्षा क्षमताओं में वृद्धि की आवश्यकता पर जोर दिया, और खासकर हाइब्रिड युद्ध जैसे आधुनिक युद्ध तरीकों के खिलाफ तैयारी की अहमियत को उजागर किया।

उन्होंने ईरानी जनता को भरोसा दिलाया कि इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान के सशस्त्र बल अपनी रणनीतिक क्षमताओं और आधुनिक तकनीक के बल पर दुनिया भर के अत्याचारी और आक्रामक ताकतों की हर प्रकार की आक्रमण का समय पर और निर्णायक जवाब देने के लिए तैयार हैं।

फ़िलस्तीन राज्य को मान्यता देने की प्रक्रिया तेजी से बढ़ रही है और संयुक्त राष्ट्र के मंच पर इज़राइल के खिलाफ कड़े निंदाय बयान सामने आए हैं।

फ़िलस्तीन को मान्यता देने की प्रक्रिया तेजी से आगे बढ़ रही है और संयुक्त राष्ट्र के मंच पर इज़राइल के खिलाफ कड़ी निंदा की गई है।

फ्रांस, बेल्जियम, लक्ज़मबर्ग, माल्टा, मोनाको और एंडोरा ने आधिकारिक रूप से फ़िलस्तीन को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में मान्यता देने का ऐलान किया है। यह घोषणा ऐसे वक्त आई है जब एक दिन पहले ही ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और पुर्तगाल ने भी इसी प्रकार का फैसला किया था।

यह सब न्यूयॉर्क में आयोजित दो-राज्य समाधान" की अंतरराष्ट्रीय बैठक के दौरान हुआ जिसमें विश्व के नेताओं और प्रतिनिधियों ने इज़राइल द्वारा पिछले दो सालों से गाजा में चलाए जा रहे नरसंहार की कड़ी निंदा की हैं।

फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन ने सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में कहा, अब हम फ़िलस्तीन राज्य को मान्यता देने में और देरी नहीं कर सकते। उन्होंने माना कि मध्य पूर्व में न्यायपूर्ण शांति स्थापित करने में वैश्विक समुदाय अब तक असफल रहा है। मैक्रॉन ने कहा,फ़िलस्तीन में अरब राज्य के निर्माण का वादा अब तक पूरा नहीं हुआ। हमें शांति का मार्ग सुगम बनाने और दो-राज्य समाधान को सुनिश्चित करने के लिए हर संभव कदम उठाना होगा।

उन्होंने गाज़ा में इज़राइल की सैन्य कार्रवाइयों की भी आलोचना की और कहा,हज़ारों फ़िलस्तीनियों की जानें बर्बाद हो रही हैं। जो कुछ गाजा में हो रहा है, उसका कोई औचित्य नहीं है। युद्ध को खत्म करना और जान बचाना आवश्यक है।

इसी सम्मेलन में लक्ज़मबर्ग के प्रधानमंत्री लोक फ्राइडेन, माल्टा के प्रधानमंत्री रॉबर्ट अबेला, और मोनाको के राजकुमार अल्बर्ट द्वितीय ने भी फ़िलस्तीन को आधिकारिक मान्यता देने की घोषणा की।

मोनाको के राजकुमार ने कहा,अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत हम फ़िलस्तीन को मान्यता देते हैं। शांति अब कोई दूर का सपना नहीं रहना चाहिए, दो राज्यों पर आधारित समाधान ही क्षेत्र में स्थिरता ला सकता है।

बेल्जियम के प्रधानमंत्री बार्ट दे वेवर ने कहा,इज़राइली बस्तियों का निर्माण, गाजा पर सैन्य कब्जा और इज़राइली सरकार का फ़िलस्तीन के अस्तित्व से इनकार करना ये सब कारण हैं जो हमें फ़िलस्तीन को मान्यता देने पर मजबूर करता हैं।

इसी तरह एंडोरा की विदेश मंत्री एमा टूर फॉस ने भी संयुक्त राष्ट्र की सभा में बोलते हुए अपनी सरकार की ओर से फ़िलस्तीन को मान्यता देने का ऐलान किया।

इस तरह सोमवार को छह देशों के नए फैसलों के बाद, फ़िलस्तीन को मान्यता देने वाले देशों की संख्या 193 सदस्य देशों में से 150 से अधिक हो गई है। याद रहे कि फ़िलस्तीन राज्य की आधिकारिक घोषणा पहली बार 1988 में यासिर अराफात ने अल्जीरिया में की थी।

लक्ज़मबर्ग और माल्टा के प्रधानमंत्रियों ने मंगलवार सुबह संयुक्त राष्ट्र में आयोजित "टू-स्टेट सॉल्यूशन" सम्मेलन के दौरान फिलिस्तीन को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में मान्यता देने की घोषणा की हैं।

लक्ज़मबर्ग और माल्टा के प्रधानमंत्रियों ने संयुक्त राष्ट्र में आयोजित सम्मेलन में भाग लेते हुए कहा कि फिलिस्तीन को मान्यता देना एक टिकाऊ शांति की दिशा में उठाया गया महत्वपूर्ण कदम है।

लक्ज़मबर्ग के प्रधानमंत्री लुक फ्राइडन ने कहा, दो-राष्ट्र समाधान ही टिकाऊ शांति का एकमात्र रास्ता है, इसी आधार पर हम फिलिस्तीन को मान्यता दे रहे हैं।उन्होंने यह भी कहा कि यह कदम वार्ता के आधार पर दो-राष्ट्र समाधान की उम्मीदों को जीवित रखेगा।

वहीं माल्टा के प्रधानमंत्री रॉबर्ट एबेला ने कहा, हम फिलिस्तीन को मान्यता देते हैं ताकि यह स्पष्ट किया जा सके कि केवल दो-राज्य समाधान ही क्षेत्र में शांति की गारंटी दे सकता है।

उन्होंने आगे कहा कि ग़ाज़ा में भूखमरी, नागरिकों और बुनियादी ढांचे पर हमले और वेस्ट बैंक में ज़ायोनी बस्तियों का हिंसक व्यवहार तुरंत बंद होना चाहिए।

क़ुम के इमाम जुमआ और हज़रत मासूमा (स.ल.) के पवित्र हरम के ट्रस्टी आयतुल्लाह सैयद मोहम्मद सईदी ने कहा कि ईमान, नेतृत्व का अनुसरण और एकता ही ईरानी जनता की सफलता का रहस्य है जिसे हमेशा ध्यान में रखना चाहिए।

आयतुल्लाह सईदी ने सोमवार रात को प्रांतीय योजना एवं विकास परिषद की बैठक में अपने संबोधन के दौरान कहा, 12 दिवसीय युद्ध ने यह सच्चाई स्पष्ट कर दी कि भले ही लोगों के बीच अलग-अलग रुचियाँ और प्रवृत्तियाँ मौजूद हों, लेकिन एकता के माध्यम से सफलता प्राप्त की जा सकती है।

उन्होंने इस्लाम में जिहाद के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जिहाद के विभिन्न रूप हैं, चाहे वह जान कुर्बान करना हो या धन देना। बहुत से लोग जो सीधे युद्ध में भाग नहीं ले सकते, लेकिन अपने धन के माध्यम से मातृभूमि की रक्षा में भूमिका निभाते हैं यह भी जिहाद का एक सुंदर उदाहरण है।

हज़रत मासूमा (स.ल.) के हरम के ट्रस्टी ने आगे कहा कि वैश्विक स्तर पर इस्लामी व्यवस्था के संदेश को पहुँचाना और शहीदों की स्मृति को जीवित रखना भी जिहाद का एक रूप है।

उन्होंने एक घटना का उल्लेख करते हुए कहा, जब राष्ट्रपति ने एक अंतरराष्ट्रीय बैठक के दौरान एक महिला से हाथ मिलाने से परहेज किया और उनकी बेटी ने सम्मानपूर्वक उस महिला से हाथ मिलाया, तो वास्तव में उस अवसर पर धार्मिक मूल्यों की रक्षा की गई।

उल्लेखनीय है कि मोहम्मद जाफर काएमपनाह ने 31 सितंबर को क़ुम के दौरे के दौरान योजना एवं विकास परिषद की बैठक में भाग लेने के साथ-साथ कई सामाजिक और कल्याणकारी परियोजनाओं का उद्घाटन और निरीक्षण किया और मरजा-ए-तकलीद एवं हौज़ा-ए-इल्मिया क़ुम के प्रमुख विद्वानों से भी मुलाकात की।

सामाजिक समीकरणों में स्त्री और पुरुष का स्थान और सामाजिक परिवर्तन में प्रत्येक की भूमिका, मानव चिंतन की प्राचीन चुनौतियों में से एक रही है।

इतिहास भर में, स्त्री और पुरुष की स्थिति के प्रति व्यक्तिगत और सामाजिक दृष्टिकोण में उल्लेखनीय परिवर्तन हुए हैं जो कभी-कभी लिंगों के बीच तीव्र टकराव तक पहुँच गए। जिस समाज में इस्लाम प्रकट हुआ वहाँ महिलाएँ अनेक बुनियादी मानवीय अधिकारों से वंचित थीं। अरब की अज्ञानता के युग में महिलाओं की स्थिति अत्यंत अनुचित थी और उन्हें वस्तु और सामान के रूप में देखा जाता था। इस्लाम में महिलाओं की स्थिति पर एक नज़र डाली है।

पूर्ण मानवीय आत्मा से संपन्न:

इस्लाम ने स्त्री को भी पुरुष की तरह पूर्ण मानवीय आत्मा, इच्छाशक्ति और स्वतंत्रता से युक्त माना है और उसे उसी मार्ग पर देखा है जो सृष्टि का उद्देश्य है अर्थात् पूर्णता की ओर अग्रसर होना। इसलिए दोनों को एक ही पंक्ति में रखकर «یا أَیهَا  النَّاسُ» (ए लोगों) और «یا أَیهَا الَّذِینَ آمَنُوا» (हे ईमान लाने वालों) जैसे संबोधनों से पुकारा है और उनके लिए नैतिक, शैक्षिक और वैज्ञानिक कार्यक्रमों को अनिवार्य किया है।

अल्लाह ने क़ुरआन में इस प्रकार की आयतों के माध्यम से, जैसे:
وَ مَنْ عَمِلَ صَالِحًا مِنْ ذَکَرٍ أَوْ أُنْثَی وَ هُوَ مُؤْمِنٌ فَأُوْلَئِک یدْخُلُونَ الْجَنَّةَ» 
और जिसने भी कोई नेक कार्य किया चाहे वह पुरुष हो या महिला जबकि वह ईमान वाला हो, तो वे लोग जन्नत में प्रवेश करेंगे और उन्हें बिना हिसाब रोज़ी दी जाएगी)दोनों लिंगों से पूर्ण सुख प्राप्ति का वादा किया है।

और आयत:

مَنْ عَمِلَ صَالِحًا مِنْ ذَکَرٍ أَوْ أُنْثَی وَ هُوَ مُؤْمِنٌ فَلَنُحْیِیَنَّهُ حَیَاةً طَیِّبَةً وَ لَنَجْزِیَنَّهُمْ أَجْرَهُمْ بِأَحْسَنِ مَا کَانُوا یعْمَلُونَ
जो कोई भी नेक कार्य  चाहे वह पुरुष हो या महिला – जबकि वह ईमान वाला हो, तो हम उसे एक पवित्र और स्वच्छ जीवन प्रदान करेंगे और हम उन्हें उनके श्रेष्ठतम कर्मों के अनुसार प्रतिफल देंगे।

यह स्पष्ट करती है कि स्त्री और पुरुष दोनों, इस्लामी कार्यक्रमों के पालन से भौतिक और आध्यात्मिक पूर्णता प्राप्त कर सकते हैं और एक पवित्र, स्वच्छ और शांति से परिपूर्ण जीवन की ओर बढ़ सकते हैं।

स्वतंत्र और आज़ाद:

इस्लाम स्त्री को भी पुरुष की तरह पूर्ण अर्थों में स्वतंत्र और आज़ाद मानता है। क़ुरआन भी इस स्वतंत्रता को सभी व्यक्तियों स्त्री और पुरुष के लिए आयतों जैसे:

«کُلُّ نَفْسٍ بِمَا کَسَبَتْ رَهِینَةٌ»
 हर व्यक्ति अपने कर्मों के बंधन में है

और  مَنْ عَمِلَ صَالِحًا فَلِیْنَفْسِهِ وَ مَنْ أَسَاءَ فَعَلَیْهَसूरह फ़ुस्सिलत, आयत 46 जो भी नेक काम करता है, उसका लाभ स्वयं उसे ही मिलेगा और जो भी बुरा काम करता है, उसका नुकसान भी उसी को होगा के माध्यम से स्पष्ट करता है।
दूसरी ओर चूँकि स्वतंत्रता, इच्छा और चयन की शर्त है, इस्लाम ने इस स्वतंत्रता को स्त्री के सभी आर्थिक अधिकारों में मान्यता दी है और स्त्री के लिए हर प्रकार के वित्तीय लेन-देन को वैध माना है तथा उसे अपनी आय और संपत्ति की मालकिन घोषित किया है।

सूरह निसा, आयत 32 में भी आया है:

لِلرِّجَالِ نَصِیبٌ مِّمَّا اکتَسَبُوا وَ لِلنِّسَاءِ نَصِیبٌ مِّمَّا اکتَسَبْنَ  
पुरुषों के लिए उनके अर्जित किए हुए का हिस्सा है और स्त्रियों के लिए भी उनके अर्जित किए हुए का हिस्सा है।

इक्तिसाब शब्द, कसब के विपरीत, उस संपत्ति के अर्जन के लिए प्रयोग होता है जिसका परिणाम अर्जन करने वाले व्यक्ति से संबंधित होता है। साथ ही इस सामान्य नियम को ध्यान में रखते हुए:  الناس مسلطون علی اموالهم (सब लोग अपनी संपत्ति पर अधिकार रखते हैं यह स्पष्ट हो जाता है कि इस्लाम ने स्त्री की आर्थिक स्वतंत्रता का किस प्रकार सम्मान किया है और स्त्री-पुरुष के बीच कोई भेद नहीं किया है।

कार्य विभाजन:

इस्लाम स्त्री और पुरुष को मानवीय दृष्टि से समान मानता है, लेकिन सामाजिक कर्तव्यों में उनके बीच कुछ भिन्नताएँ मौजूद हैं। ये भिन्नताएँ किसी प्रकार का भेदभाव या कानूनी असमानता नहीं हैं, बल्कि इनका उद्देश्य कार्यों का ऐसा विभाजन करना है जिससे प्रत्येक अपने कर्तव्यों को सर्वोत्तम रूप में निभा सके। ये भिन्नताएँ वास्तव में समाज में दोनों लिंगों के सामाजिक और प्राकृतिक कार्यों के अनुकूलन के लिए हैं।

अंततः क़ुरआन स्त्री के स्थान को एक ऐसे इंसान के रूप में देखता है जिसके अपने स्वतंत्र अधिकार और कर्तव्य हैं और यह ज़ोर देता है कि ईश्वर के दृष्टिकोण से मानवीय मूल्य में स्त्री और पुरुष के बीच कोई अंतर नहीं है। इसलिए, मनुष्यों की श्रेष्ठता का मापदंड ईश्वर के समक्ष केवल तक़वा अर्थात ईश्वरीय भय और उत्तम आचरण है, न कि लिंग।

 

 ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और पुर्तगाल ने हाल ही में फिलिस्तीन को एक राज्य के रूप में मान्यता दे दी है। इसके बाद सवाल उठता है कि किसी देश को मान्यता देने का मतलब क्या है? और इसका वैश्विक राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ता है?

ब्रिटेन ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और पुर्तगाल ने हाल ही में फिलिस्तीन को एक राज्य के रूप में मान्यता दे दी है। इसके बाद सवाल उठता है कि किसी देश को मान्यता देने का मतलब क्या है? और इसका वैश्विक राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ता है?

फिलिस्तीन की स्थापना की औपचारिक घोषणा 1988 में हुई थी, जब तत्कालीन फिलिस्तीनी नेता यासिर अराफात ने अल्जीयर्स से स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना की घोषणा की। इसके तुरंत बाद दर्जनों देशों ने फिलिस्तीन को मान्यता दे दी। 2010 और 2011 में एक और लहर उठी, जबकि 7 अक्टूबर 2023 को गाजा में शुरू हुए विनाशकारी युद्ध के बाद 13 और देशों ने फिलिस्तीन को मान्यता दी।

अब तक संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों में से लगभग 145 ने फिलिस्तीन को मान्यता दे दी है, जबकि कम से कम 45 देश, जिनमें इजरायल, अमेरिका और उनके करीबी सहयोगी शामिल हैं, इसके विरोध में हैं। यूरोप में इस मुद्दे पर गहरा मतभेद है; कुछ देश जैसे स्वीडन, स्पेन, आयरलैंड, नॉर्वे और हाल ही में ब्रिटेन और पुर्तगाल ने फिलिस्तीन को मान्यता दे दी है, लेकिन जर्मनी और इटली जैसे देश अभी भी इस कदम का विरोध कर रहे हैं।

अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों के अनुसार, किसी राज्य को मान्यता देने का मतलब उसके अस्तित्व को बनाना या खत्म करना नहीं है। यानी अगर कोई देश फिलिस्तीन को मान्यता देता है, तो यह उसके निर्माण का कारण नहीं बनता, और अगर कोई मान्यता नहीं देता, तो यह उसके अस्तित्व को खत्म नहीं करता।

हालांकि, इस कदम का बहुत बड़ा राजनीतिक और प्रतीकात्मक प्रभाव होता है। लगभग तीन-चौथाई देशों का मानना है कि फिलिस्तीन एक पूर्ण राज्य के लिए आवश्यक सभी शर्तों को पूरा करता है, जैसे कि भूमि, आबादी, सरकार और अंतरराष्ट्रीय संबंध स्थापित करने की क्षमता।

फ्रांसीसी कानून विशेषज्ञ रोमन लुबोफ के अनुसार, किसी देश को मान्यता देना एक जटिल प्रक्रिया है और इसके लिए कोई औपचारिक वैश्विक कार्यालय मौजूद नहीं है। प्रत्येक देश स्वतंत्र है कि वह कब और कैसे किसी राज्य को मान्यता देता है।

दूसरी ओर, ब्रिटिश-फ्रांसीसी कानून विशेषज्ञ फिलिप सैंड्स के अनुसार, फिलिस्तीन को एक राज्य के रूप में मान्यता देना केवल एक प्रतीकात्मक कदम नहीं है, बल्कि यह खेल के नियमों को बदलने के बराबर है, क्योंकि इसके बाद फिलिस्तीन और इजरायल अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत एक स्तर पर खड़े होंगे।

इस प्रकार, फिलिस्तीन को मान्यता देना, हालांकि इसकी राज्य की स्थिति को जन्म नहीं देता है, लेकिन यह वैश्विक राजनीति में एक सशक्त संदेश है कि दुनिया का बहुमत अब फिलिस्तीनी लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार और एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना को वैध और कानूनी अधिकार मान रहा है।

 मजमा उलेमा और खुतबा हैदराबाद दक्कन की आम सभा में, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन सय्यद हन्नान रिज़वी को पुनः निर्वाचित किया गया, जबकि अन्य पदाधिकारियों का भी चुनाव हुआ। बैठक में एकता और एकजुटता पर ज़ोर दिया गया और दिवंगत ज़ाकिर अहलुल बैत मौलाना मेहदी अली हादी साहब की सेवाओं को श्रद्धांजलि दी गई।

हैदराबाद/मजमा उलेमा और खुतबा हैदराबाद दक्कन की आम सभा अत्यंत धार्मिक और आध्यात्मिक माहौल में आयोजित की गई। बैठक की शुरुआत पवित्र कुरान की तिलावत से हुई, जिसे मौलाना मिर्ज़ा अम्मार अली बेग ने अदा किया, जिसके बाद पवित्र पैगंबर हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स) की शान में नातिया कलाम पेश किए गए।

मजलिस  के अध्यक्ष हुज्जतुल इस्लाम व मुसलमीन सय्यद हन्नान रिज़वी ने अपनी दो साल की कार्य रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए सदस्यों का आभार व्यक्त किया और उलेमा और खुतबा से एकता और एकजुटता के साथ काम करने पर विशेष ज़ोर दिया। बाद में, हुज्जतुल इस्लाम वा मुसलमीन के मुख्य संरक्षक मौलाना अली हैदर फरिश्ता ने अपने संबोधन में मजलिस के सदस्यों की सेवाओं की सराहना की और उनकी आगे की सफलता के लिए दुआ की।

बैठक में नए निकाय का चुनाव भी हुआ, जिसके परिणाम घोषित किए गए:

अध्यक्ष: हुज्जतुल इस्लाम वा मुसलमीन सय्यद हन्नान रिज़वी (पुनः निर्वाचित)

उपाध्यक्ष: मौलाना मीर हुसैन अली रिज़वी
महासचिव: हुज्जतुल इस्लाम मीर जवाद आबिदी
संयुक्त सचिव: मौलाना सय्यद असद हुसैन आबिदी
कोषाध्यक्ष: मौलाना जाफ़र ख़िलजी
 इस अवसर पर, दिवंगत ज़ाकिर अहले बैत मौलाना महदी अली हादी की बहुमूल्य सेवाओं को याद किया गया और उनके शाश्वत पुरस्कार के लिए फ़ातेहा पढ़ी गई। बैठक का समापन अहलुल बैत-ए-इत्थार (उन पर शांति हो) की बारगाह में सलाम और दुआ के साथ अत्यंत आध्यात्मिक तरीके से हुआ।

 

 इतिहास गवाह है कि हज़रत फ़ातिमा मासूमा (स) ने अपने पिता, इमाम मूसा काज़िम (अ) की अनुपस्थिति में अहले बैत (अ) के शियो के विद्वत्तापूर्ण प्रश्नों के उत्तर देकर इमामत परिवार की विद्वत्तापूर्ण प्रतिष्ठा को उजागर किया।

इतिहास गवाह है कि हज़रत फ़ातिमा मासूमा (स) ने अपने पिता, इमाम मूसा काज़िम (अ) की अनुपस्थिति में अहले बैत (अ) के शियो के विद्वत्तापूर्ण प्रश्नों के उत्तर देकर इमामत परिवार की विद्वत्तापूर्ण प्रतिष्ठा को उजागर किया।

एक रिवायत के अनुसार, कुछ शिया इमाम काज़िम (अ) के समक्ष अपनी समस्याएँ प्रस्तुत करने मदीना आए, लेकिन चूँकि इमाम सफ़र पर थे, इसलिए उन्होंने अपने प्रश्न लिखकर लौटने से पहले अहले बैत इमाम (अ) को सौंप दिए। इस अवसर पर हज़रत मासूमा (स) ने उनके सभी प्रश्नों के विस्तृत उत्तर लिखित रूप में दिए।

कारवां मदीना से खुशी और संतुष्टि के साथ रवाना हुआ, लेकिन रास्ते में उनकी मुलाक़ात इमाम मूसा काज़िम (अ) से हुई। जब इन लोगों ने यह घटना सुनाई और इमाम ने अपनी बेटी के लिखित उत्तर पढ़े, तो उन्होंने तीन बार पुकारा: "फ़दाहा अबूहा" - उसके पिता उस पर क़ुर्बान हों।

यह घटना हज़रत मासूमा (अ) की उच्च बौद्धिक स्थिति और इस तथ्य का स्पष्ट प्रमाण है कि उन्हें न केवल अहले-बैत (अ) के परिवार द्वारा शिक्षित किया गया था, बल्कि वे बौद्धिक विरासत की प्रतिनिधि भी थीं।

 

 इमाम रज़ा अ.स.ने एक हदीस में अहले क़ुम को शियों के बीच मुमताज़ और जन्नत में एक ख़ास मुक़ाम के हामिल अफ़राद क़रार दिया है।

मासूमीन और अहले बैत अ.स की रिवायतों में इमाम रज़ा अ.स.के अहले क़ुम से मुतअल्लिक़ इर्शादात, ईमान और विलायत के बहुत मज़बूत रिश्ते की रौशन मिसालें हैं।

इमाम रज़ा अ.स.ने मोहब्बत भरे अंदाज़ में इस सरज़मीन और इसके निवासियों की अज़मत (महानता) को बयान फ़रमाया और उनके लिए रज़ा-ए-इलाही की दुआ की।

सफ़वान बिन याहया फरमाते हैं,एक दिन मैं इमाम रज़ा (अ.स) की ख़िदमत में हाज़िर था। गुफ़्तगू के दौरान क़ुम और अहले क़ुम का ज़िक्र आया और उनकी इमाम मेहदी (अ.स) से मोहब्बत का तज़किरा हुआ।

हज़रत इमाम रज़ा अ.स ने उन्हें मोहब्बत से याद किया और फ़रमाया,ख़ुदावंद उनसे राज़ी हो।

इसके बाद फ़रमाया,जन्नत के आठ दरवाज़े हैं, जिनमें से एक दरवाज़ा अहले क़ुम के लिए है। वे दूसरे शहरों के मुक़ाबले में हमारे शियों के मुमताज़ और बरग़ूज़ीदा अफ़राद हैं। ख़ुदावंद मुतआअल ने हमारी विलायत को उनकी फ़ितरत (स्वभाव) के साथ मिला दिया है।

 

बोलपुर स्थित हज़रत अली असग़र (अ) ख़ानक़ाह क़द्रिया में आयोजित समारोह में लगभग 200 पुरुष और महिलाओं ने भाग लिया, जिसमें छोटे बच्चों ने नात और मनक़बत पेश की और वक्ताओं ने क़ुरान और अहले बैत (अ) की शिक्षाओं और इमाम जाफ़र सादिक (अ) की शैक्षणिक सेवाओं पर प्रकाश डाला।

कर्बला नगर स्थित इमामबारगाह हज़रत अली असग़र (अ) ख़ानक़ाह क़द्रिया में श्रद्धा और सम्मान के साथ जश्न-ए-सादेक़ैन (अ) का आयोजन किया गया, जिसमें लगभग 200 पुरुष और महिलाओं ने भाग लिया।

समारोह की अध्यक्षता हज़रत पीर-ए-तरीक़त मौलाना रशादत अली कादरी ने की, जबकि विशिष्ट अतिथियों में मौलाना शब्बीर मोलाई और हुज्जतुल इस्लाम डॉ. रिज़वान-उल-इस्लाम ख़ान शामिल थे। अन्य वक्ताओं में मौलवी मुजीब-उर-रहमान, मौलाना नसीरुद्दीन रिज़वी और शांति निकेतन विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर एजाज हुसैन शामिल थे।

कार्यक्रम की शुरुआत पवित्र क़ुरआन की तिलावत से हुई और नन्हे-मुन्ने लड़कों और लड़कियों ने पैग़म्बर (स) और इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) की शान में नात और मनक़बत पेश की। ईरान से अपनी यात्रा के बाद, हज़रत पीर-ए-तरीक़त का भी गर्मजोशी से स्वागत किया गया।

अपने भाषणों में, वक्ताओं ने पवित्र क़ुरआन और अहले बैत (अ) की शिक्षाओं, हज़रत अबू तालिब (अ) की भूमिका, पैग़म्बर (स) के मिशन के उद्देश्य और इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) की वैज्ञानिक सेवाओं पर प्रकाश डाला।