رضوی
ज़ुहूर का रास्ता हमवार होना और ज़हूर की निशानियां
हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के ज़हूर की कुछ निशानियाँ और शर्तें हैं, उन्हीं को ज़हूर का रास्ता हमवार होना व ज़हूर की निशानियों के शीर्षक से याद किया जाता है। इन दोनों में फ़र्क यह है कि रास्ते का हमवार होना ज़हूर में प्रभावित है, अर्थात अगर रास्ता हमवार हो गया तो इमाम (अ. स.) का ज़हूर हो जायेगा और अगर रास्ता हमवार न हुआ तो ज़हूर नहीं हो होगा। इसके विपरीत निशानियाँ ज़हूर में प्रभावी नहीं हैं बल्कि सिर्फ़ ज़हूर की निशानी हैं और उनके द्वारा सिर्फ़ ज़हूर के ज़माने या ज़हूर के ज़माने के क़रीब होने का पहचाना जा सकता है।
इस फ़र्क को मद्दे नज़र रखते हुए अच्छी तरह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि ज़हूर की शर्तें और रास्ते का हमवार होना, ज़हूर की निशानियों से ज़्यादा महत्वपूर्ण है। अतः निशानियों को तलाश करने से पहले उन शर्तों पर ध्यान दें और अपनी ताक़त के अनुसार उन शर्तों को पैदा करने की कोशिश करें। इसी वजह से हम पहले ज़हूर के रास्तों के हमवार होने और ज़हूर की शर्तों की व्याख्या करते हैं और आख़िर में ज़हूर की निशानियों का संक्षेप में उल्लेख करेंगे।
संसार की हर चीज़ अपनी शर्तों के पूर्ण व रास्ते के हमवार होने से ही अस्तित्व व वजूद में आ जाती है। इन के बग़ैर कोई भी चीज़ वजूद में नहीं आती। हर ज़मीन दाने को उगाने व उसे परवान चढ़ाने की योग्यता नहीं रखती। प्रत्येक जल वायु हर फूल, फल के फलने व फूलने के लिए उचित नहीं होती है। एक किसान ज़मीन से अच्छी फसल काटने का उसी वक़्त उम्मीदवार हो सकता है जब उसने फसल काटने की ज़रूरी शर्तों को पूरा कर लिया हो।
इसी प्रकार कोई परिवर्तन और सामाजिक सुधार भी शर्तों के पूर्ण होने और रास्ते के हमवार होने पर ही आधारित होता है। जिस तरह ईरान का इस्लामी इन्केलाब शर्तों के पूरा होने और रास्तों के हमवार होने के बाद सफल हुआ है, इसी तरह हज़रत इमाम महदी (अ. स.) का विश्वव्यापी इन्क़ेलाब, जो कि दुनिया का सब से बड़ा इन्किलाब होगा, भी उसी क़ानून के अन्तर्गत आता है और जब तक उसका रास्ता हमवार न होगा और शर्तें पूरी न होंगी, उस वक़्त तक घटित नही हो सकता।
इस स्पष्टीकरण का उद्देश्य यह है कि हमारे दिमाग़ में यह ख़्याल न रहे कि हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के क़ियाम (आन्दोलन) व हुकूमत का मसला इस क़ानून से अलग है, और उनका यह समाज सुधार आन्दोलन किसी मोजज़े (चमत्कार) के आधार पर शर्तों व कारकों के बिना घटित हो जायेगा। बल्कि कुरआन व अहले बैत (अ. स.) की शिक्षाएं और अल्लाह की सुन्नत ये है कि संसार के तमाम काम साधारण रूप से और साधारण शर्तों व कारकों के आधार पर ही क्रियान्वित होते हैं।
हज़रत इमाम सादिक (अ. स.) ने फरमाया :
ख़ुदा वन्दे आलम सब कामों को उनके कारकों के आधार पर ही पूरा करता है...
एक रिवायत में मिलता है कि किसी इंसान ने हज़रत इमाम मुहम्मद बाकिर (अ. स.) से कहा कि मैंने सुना है कि जब हज़रत इमाम महदी (अ. स.) का ज़हूर होगा तो सारे काम उनकी मर्ज़ी के अनुसार होंगे।
इमाम (अ. स.) ने फरमाया : हरग़िज़ ऐसा नहीं है, उस ज़ात की क़सम जिस के क़ब्जें में मेरी जान है, अगर यह तय होता कि हर किसी का काम ख़ुद बख़ुद हो जायेगा तो फिर ऐसा रसूले इस्लाम (स.) के लिए होता...।
अलबत्ता इस बात का यह अर्थ नहीं है कि हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के ज़हूर के वक़्त ग़ैबी और आसमानी मदद नहीं होगी, बल्कि मक़सद यह है कि उस सहायता के साथ साथ आम शर्तों और रास्तों का हमवार होना ज़रुरी है।
इस बात के सेपष्ट हो जाने के बाद हमें चाहिए कि पहले ज़हूर की शर्तों को पहचाने और फिर उनके लिए रास्ता हमवार करने की कोशिश करें।
हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के आन्दोलन और विश्वव्यापी सुधार व परिवर्तन की शर्तों और भूमिकाओं में से निम्न लिखित चार चीज़ें महत्वपूर्ण हैं, हम इन के बारे में अलग अलग वार्तालाप व बहस करते हैं।
योजना व प्लान
यह बात पूर्ण रूप से स्पष्ट है कि प्रत्येक सुधार आन्दोलन के लिए दो चीज़ों की ज़रूरत होती हैः
अ- समाज में मौजूद बुराईयों का मुक़ाबेला करने के लिए एक पूर्ण योजना।
आ- समाज की ज़रुरतों के अनुरूप ऐसे पूर्ण और उचित क़ानून जो हुकूमत की न्याय व्यवस्था में समस्त व्यक्तिगत व सामाजिक अधिकारों के रक्षक हो और जिनके आधार पर समाज तरक्की कर के अपने उद्देश्यों तक पहुँच सके।
सच्चा इस्लाम अर्थात कुरआने करीम की शिक्षाएं और मासूमों (अ. स.) की सुन्नत बेहतरीन कानून के रूप में हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के पास होगी और वह अल्लाह के इसी अमर संविधान के आधार पर काम करेंगे...। कुरआन ऐसी किताब है जिसकी आयतों का ख़ज़ाना उस ख़ुदा वन्दे आलम की तरफ़ से नाज़िल हुआ जो इंसान के तमाम पहलुओं और उसकी समस्त भैतिक व आध्यात्मिक ज़रुरतों को जानता है। अतः इमामे ज़माना (अ. स.) का विश्वव्यापी आन्दोलन हुकूमत के क़ानून के लिहाज़ से बेमिसाल तथ्यों पर आधारित होगा और किसी भी दूसरे अन्दोलन से उसका मुक़ाबेला व उसकी तुलना करना संभव नही है। इस दावे की दलील यह है कि आज की दुनिया ने बहुत से तजर्बे करने के बाद इस बात को क़बूल किया है कि इंसानों द्वारा बनाये गये क़ानूनों में कमज़ोरियाँ पाई जाती हैं। इस लिए आज इंसान आहिस्ता आहिस्ता आसमानी क़ानूनों को क़बूल करने के लिए तैयार होता जा रहा है।
अमेरीकी का राजनीतिक सलाहकार आलवीन टाफलर, इंसानी समाज को गंभीर हालत से निकालने और इसमें सुधार लाने के लिए तीसरी लहर... ...का नज़रिया पेश करता है, लेकिन वह इस बारे में आश्चर्यजनक बातों का इकरार करता है।
हमारे पश्चिमी समाज में मुशकिलों और परेशानियों की लिस्ट इतनी लंबी है कि उसका कोई अन्त नहीं है। औद्योगिक अस्थिरता और अनियमित्ता के कारण अखलाक़ी व सदाचारिक बुराईयाँ इतनी बढ़ गई हैं कि उनकी दुर्गंध से परेशान हो कर इंसान अपने गुस्से को ज़ाहिर करने और समाज में परिवर्तन लाने की कोशिश में और उस पर इसके लिए हर वक़्त दबाव बढ़ रहा है। इस दबाव के जवाब में हज़ारों ऐसी योजनायें पेश की जा चुकी हैं, जिनके बारे में यह दावा किया जाता है कि यह आधारभूत व नई हैं, लेकिन बार बार देखने में आता है कि जो क़ानून और संविधान हमारी मुशकिलों के हल के लिए पेश किये जाते हैं वह हमारी परेशानियों को और ज़्यादा बढ़ा देते हैं। इस कारण इंसान में मायूसी और ना उम्मीदी का एहसास पैदा होता जा रहा है। इसी वजह से इंसान सोचता है कि इनका कोई फायेदा नहीं है किसी क़ानून का कोई असर नहीं होता है। चूँकि यह एहसास हर डिमोक्रेटिक निज़ाम व व्यवस्था के लिए खतरनाक है, इसी लिए मिसालों में बयान होने वाले सफेद घोड़े पर सवार मर्द, की ज़रुरत का बड़ी बेचैनी से इन्तेज़ार से किया जा रहा है...।
रहबरी व नेतृत्व
हर इंकेलाब व आन्दोलन में एक रहबर व नेतृत्व करने वाले की ज़रूरत आधारभूत ज़रूरतों में गिनी जाती है। इंन्केलाब का स्तर जितना अधिक व्यापक होगा और उसके उद्देश्य जितने अधिक उच्चय होंगे, उसी के अनुरूप उसके रहबर को भी ताक़तवर व उन उद्देश्यों को प्रप्त करने में समक्ष होना चाहिए।
विश्व स्तर पर ज़ुल्म व सितम से मुक़ाबेला करने वाला, न्याय व समानता पर आधारित विश्वव्यापी हुकूमत स्थापित करने वाला और पूरी ज़मीन पर समानता फैलाने की ताक़त रखने वाला, हर इल्म का जानने वाला और अपने दिल में इंसानियत का दर्द रखने वाला रहबर, उस इंकेलाब का असली स्तंभ है। ऐसा रहबर जो वास्तव में उस इंकेलाब का सही नेतृत्व कर सके। हज़रत इमाम महदी (अ. स.) जो सब नबियों व वलियों (अ. स.) का सार हैं, वह उस महान रहबर के रूप में ज़िन्दा और हाज़िर हैं। सिर्फ वही एक ऐसे रहबर हैं जो आलमे ग़ैब (अल्लाह, फ़रिश्तें व ......) से संबंध के आधार पर संसार की हर चीज़ के बारे में पूर्ण रूप से जानकारी रखते हैं और अपने ज़माने के सब से बड़े व महान आलिम व ज्ञानी हैं।
पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने फरमाया :
जान लो कि महदी (अ. स.) सारे इल्मों के वारिस होंगे, और सारे इल्मों पर उनका वर्चस्प होगा...।
वह ऐसे रहबर हैं जो हर तरह की पाबन्दियों से आज़ाद होंगे और सिर्फ़ उनका दिल अल्लाह की मर्ज़ी के तहत होगा।
अतः वह विश्वव्यापी इंकेलाब और हुकूमत के रहबर के लिहाज़ से भी बेहतरीन होंगे।
मददगार
हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के ज़हूर की ज़रुरी शर्तों मे से उन के अच्छे, उचित और ऐसे लायक मददगारों का वजूद भी है, जो इस इन्केलाब और हुकूमत के ओहदो पर रह कर इमाम (अ. स.) की मदद करें। ज़ाहिर सी बात है कि जब वह विश्वव्यापी इन्केलाब एक महान आसमानी रहबर के ज़रिये बर्पा होगा तो फिर उनके मददगार भी उसी स्तर के होंगे, ऐसा नहीं है कि जिस ने भी मदद करने का वादा कर लिया वही उन की मददगारों में शामिल हो जाये।
इस बारे में निम्न लिखित घटना पर ध्यान देने की ज़रूरत है :
हज़रत इमाम सादिक़ (अ. स.) का सुहैल पुत्र हसन खुरासानी नामक शिया इमाम (अ. स.) की खिदमत में अर्ज़ करता है :
आपके रास्ते में क्या चीज़ रुकावट है कि आप अपने हक़ (हुकूमत) के लिए क़ियाम (आन्दोलन) नहीं करते जबकि आपके एक लाख़ तलवार चलाने वाले घुड़सवार शिया मौजूद हैं ? इमाम (अ. स.) ने हुक्म दिया कि तन्दूर दहकाया जाये। इमाम के हुक्म से तन्दूर दहकाया गया और जब उसमें से आग के शोले बाहर निकलने लगे तो इमाम (अ.स.) ने सुहैल से फरमाया : ऐ खुरासानी ! उठो और इस तन्दूर में कूद जाओ। सुहैल समझे कि इमाम (अ. स.) उसकी बातों से नाराज़ हो गए हैं, अतः उन्हों ने इमाम से माफ़ी माँगते हुए कहा कि : मौला मुझे माफ़ कर दीजिये, मुझे आग में डाल कर सज़ा न दें। इमाम (अ. स.) ने फरमाया: मैं तुम्हें छोड़ता हूँ।
उसी वक़्त वहाँ पर इमाम (अ. स.) के एक सच्चे शिया हारुने मक्की आ गये, उन्होंने इमाम (अ. स.) को सलाम किया। इमाम ने सलाम का जवाब देने के बाद कुछ कहे सुने व बताये बग़ैर उन्हें हुक्म दिया कि इस तन्दूर में कूद जाओ।
हारुने मक्की यह सुनते ही फौरन उस तन्दूर में कूद गये और इमाम (अ. स.) उस खुरासानी से बात चीत करने में व्यस्त हो गये और उसे खुरासान की घटनाएं इस तरह सुनाने लगे जैसे इमाम (अ. स.) वहाँ ख़ुद मौजूद हों। कुछ देर के बाद इमाम (अ. स.) ने फरमाया : ऐ खुरासानी उठो और तन्दूर के अन्दर झाँक कर देखो ! जब सुहैल ने उठ कर तन्दूर के अन्दर झाँका तो देखा कि हारुने मक्की आग के शोलों के के बीच पलोथी मारे बैठे हुए हैं।
उस वक़्त इमाम (अ. स.) ने उस ख़ुरासानी से सवाल किया कि बताओ तुम खुरासान में हारुने मक्की जैसे कितने लोगों को पहचानते हो ? खुरासानी ने जवाब दिया : मैं तो ऐसे किसी इंसान को नहीं जानता !। इमाम (अ. स.) ने फरमाया : जान लो कि जब तक हमें पाँच मददगार नहीं मिलते, हम उस वक़्त तक क़ियाम (आन्दोलन) नहीं करते, हम बेहतर जानते हैं कि क़ियाम और इंकेलाब का कब वक़्त है...?
अतः उचित है कि हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के मददगारों की सिफ़तों व विशेषताओं को रिवायतों के आधार पर पहचानें ताकि हम उनके अनुरूप ख़ुद को परखें और अपने अन्दर पाई जाने वाली कमियों को पूरा करने की कोशिश करें।
क- इमामत की शनाख़्त व आज्ञापालन
हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के मददगारों को ख़ुदा वन्दे आलम और इमाम की गहरी शनाख्त है और वह पूरी जानकारी के साथ हक़ के मैदान में हाज़िर होते हैं।
हज़रत अली (अ. स.) उनके बारे में फरमाते हैं कि
"वह ऐसे इंसान हैं जो ख़ुदा को इस तरह पहचानते हैं कि जो उसे पहचानने का हक़ है।
इमाम की शनाख्त और इमामत का अक़ीदा भी उनके दिल की गहराइयों में अपनी जड़ें मज़बूत कर चुका है और उनके पूरे वजूद पर अपना वर्चस्व जमाये हुए है। उनकी इमामत के प्रति यह शनाख्त, इमाम (अ. स.) का नाम व नस्ब जानने से उच्च है। इमामत की शनाख़्त की वास्तविक्ता यह है कि इंसान इमाम के विलायत के हक़ और संसार में उनके बुलन्द मर्तबे को पहचानें। यही वह शनाख़्त है जिससे उनके दिल मुहब्बत से भर जाते हैं, और फिर वह उनकी आज्ञा पालन के लिए हर वक़्त और हर तरह से तैयार रहते हैं। क्योंकि वह जानते हैं कि इमाम (अ. स.) का हुक्म ख़ुदा का हुक्म है और उनकी इताअत (आज्ञा पालन) ख़ुदा की इताअत है।
पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने उनकी तारीफ़ में फरमाया कि
वह लोग अपने इमाम की आज्ञा पालन की पूरी कोशिश करते हैं...।
ख- इबादत और दृढ़ता
हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के मददगार इबादत में अपने इमाम को नमून ए अमल बनाते हैं और अपना हर दिन व हर रात अल्लाह के ज़िक्र में ग़ुज़ारते हैं।
हज़रत इमाम सादिक़ (अ. स.) ने उन के बारे में फरमाया :
वह रात भर इबादत करते हैं, और दिन में रोज़ा रखते हैं...।
और एक दूसरी हदीस में फरमाते हैं कि
वह घोड़ों पर सवारी की हालत में भी अल्लाह की तस्बीह करते हैं...।
यही अल्लाह का ज़िक्र है जिस से वह फ़ौलादी मर्द बनते हैं, अतः उनकी दृढ़ता और मज़बूती को कोई भी चीज़ खत्म नहीं कर सकती।
हज़रत इमाम सादिक़ (अ. स.) फरमाते हैं कि
वह ऐसे मर्द होंगे कि उनके दिल लोहे के टुक्ड़े जैसे होंगे...।
ग- शहादत की तमन्ना
हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के मददगारों की मअरेफ़त उन के दिलों को अपने इमाम की मुहब्बत से भर देती है, अतः वह जंग के मैदान में इमाम को अपने बीच में लेकर कर अपनी जान को इमाम की ढाल बना देंगे।
हज़रत इमाम सादिक़ (अ. स.) ने फरमाया :
हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के मददगार जंग के मैदान में उनके चारों तरफ़ हल्का बनाए होंगें और अपनी जान को उनकी ढाल बना कर अपने इमाम की हिफ़ाज़त करेंगे...।
हज़रत इमाम सादिक़ (अ. स.) ही ने दूसरी जगह फरमाया :
वह अल्लाह की राह में शहादत पाने की तमन्ना करेंगे...।
घ- बहादुरी और दिलेरी
हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के मददगार अपने मौला की तरह बहादुर और लोहपुरूष होंगे।
हज़रत अली (अ. स.) उनकी तारीफ़ में फरमाते हैं कि
"वह ऐसे शेर हैं जो अपने वन से बाहर निकल आये हैं और अगर चाहें तो पहाड़ों को भी हिला सकते हैं...।
ङ- सब्र और बुर्दबारी
स्पष्ट है कि विश्वव्यापी ज़ुल्म व सितम से मुक़ाबेला करने और विश्व स्तर पर न्याय व समानता पर आधारित हुकूमत की स्थापना करने में बहुत से मुशकिलों व परेशानियों का सामना होगा और इमाम (अ. स.) के मददगार अपने इमाम के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए मुशकिलों व परेशानियों को बर्दाश्त करेंगे, लेकिन इखलास व निस्वर्थता के आधार पर अपने काम को साधारण व बहुत छोटा मानेंगे।
हज़रत अली (अ. स.) ने फरमाया :
वह ऐसा गिरोह है जो अल्लाह की राह में काम करने पर अपनी बुर्दबारी और सब्र की वजह से अल्लाह पर एहसान नहीं जतायेंगे, और अपनी जान को हज़रते हक़ के सामने पेश करने पर अपने ऊपर गर्व नहीं करेंगे और उस चीज़ को महत्व नहीं देंगे...।
च- एकता
हज़रत अली (अ. स.) हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के मददगारों की एकता के बारे में फरमाते हैं कि
"वह लोग एक दिल और एक सूत्र में बंधे होंगे...।
उस एकता का कारण यह है कि उनके अन्दर स्वार्थता नहीं पाई जायेगी, वह सही अक़ीदे के साथ एक परचम के नीचे और एक मकसद को पाने के लिए क़ियाम (आन्दोलन) करेंगे, और यह दुशमन के मुक़ाबले में उनकी कामयाबी का एक राज़ है।
छ- ज़ोह्द व तक़वा
हज़रत अली (अ. स.) इमाम महदी (अ. स.) के यारो मददगारों के बारे में फरमाते हैं कि
वह अपने मददगारों से बैअत लेंगे कि सोना व चाँदी जमा न करें और गेहूँ व जौ का भण्डार इकठ्ठा न करें...
उनके उद्देश्य महान हैं और वह एक महान उद्देश्य के लिए ही क़ियाम (आन्दोलन) करेंगे। दुनिया का माल व धन उनको उस महान मक़सद से पीछे नहीं हटा सकता। अतः जिन लोगों की आँखें दुनिया की चमक दमक देख कर चौंधियां जाती हैं और जिनका दिल धन दौलत देख कर पानी पानी हो जाता है, उन लोगों को इमाम महदी (अ. स.) के ख़ास मददगारों में कोई जगह नहीं मिलेगी।
प्रियः पाठकों ! हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के मददगारों की जिन सिफ़तों व विशेषताओं का वर्णन हुआ है, इन्हीँ सिफ़तों व विशेषताओं की वजह से उन्हें रिवायतों में आदर व एहतेराम के साथ याद किया गया है और सभी मासूम इमामों (अ. स.) की ज़बानों पर उनकी तारीफ़ व प्रशंसा रही हैं।
पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने उनकी तारीफ़ में फरमाया :
”اُوْلَئِکَ ہُمْ خِیَارُ الاٴمَّةِ“
अर्थात वह लोग मेरी उम्मत के सब से अच्छे इंसान हैं।
हज़रत अली (अ. स.) फरमाते हैं कि
فَبِاَبِی وَ اُمّی مِنْ عِدّةٍ قَلِیْلَةٍ اَسْمَائُہُمْ فِی الاٴرْضِ مَجْہُولَة“
मेरे माँ बाप उस छोटे से गिरोह पर कुर्बान जो ज़मीन पर गुमनाम हैं।
अलबत्ता हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के मददगार अपनी योग्यता व सलाहियत के आधार पर विभिन्न दर्जों व श्रेणियों में बटे होंगे। रिवायतों में उल्लेख हुआ है कि हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के उन ख़ास 313 मददगारो (जिन के हाथों में क़ियाम का नक्शा होगा) के अलावा दस हज़ार लोगों की एक फ़ौज भी होगी और उनके अतिरिक्त इन्तेज़ार करने वाले मोमिनों की एक बहुत बड़ी संख्या उनकी मदद के लिए दौड़ पड़ेगी।
आम तैयारियाँ
मासूम इमामों (अ. स.) की ज़िन्दगी में विभिन्न अवसरों पर यह बात देखने में आई है कि लोग इमाम को मौजूद होने की सूरत में उनसे बेहतर फ़ायदा उठाने के लिए ज़रूरी तैयारी नहीं रखते थे। किसी भी ज़माने में मासूम इमाम (अ. स.) के मौजूद होने की क़दर नहीं की गई और उनकी हिदायत से उचित लाभ नहीं उठाया गया। अतः ख़ुदा वन्दे आलम ने अपनी आखरी हुज्जत को ग़ैबत में भेज दिया, ताकि जब सब लोग उनको क़बूल करने के लिए तैयार हो जायेंगे तो इमाम (अ. स.) को ज़ाहिर कर दिया जायेगा और तब सभी उनसे लाभान्वित होंगे।
इस आधार पर हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के ज़हूर के लिए तैयार रहना महत्वपूर्ण शर्तों में से एक है, क्योंकि इस तैयारी की वजह से इमाम (अ. स.) का समाज सुधार आन्दोलन अपने उद्देश्यों को प्राप्त कर सकता है।
कुरआने क़रीम में बनी इस्राईल के एक गिरोह का वर्णन हुआ है, उस गिरोह के लोग अपने ज़माने के ज़ालिम व आत्याचारी शासक जालूत के ज़ुल्म व अत्याचारों से बहुत ज़्यादा परेशान हो चुके थे, उन्होंने अपने ज़माने के नबी से निवेदन किया कि आप हमारे लिए एक ताक़तवर सरदार निश्चित कर दीजिये ताकि हम उसके आधीन रह कर जालूत से जंग कर सकें।
इस घटना का वर्णन कुरआने मजीद में इस प्रकार हुआ है :
< اٴَلَمْ تَرَ إِلَی الْمَلَإِ مِنْ بَنِی إِسْرَائِیلَ مِنْ بَعْدِ مُوسَی إِذْ قَالُوا لِنَبِیٍّ لَہُمْ ابْعَثْ لَنَا مَلِکًا نُقَاتِلْ فِی سَبِیلِ اللهِ قَالَ ہَلْ عَسَیْتُمْ إِنْ کُتِبَ عَلَیْکُمْ الْقِتَالُ اٴَلاَّ تُقَاتِلُوا قَالُوا وَمَا لَنَا اٴَلاَّ نُقَاتِلَ فِی سَبِیلِ اللهِ وَقَدْ اٴُخْرِجْنَا مِنْ دِیَارِنَا وَاٴَبْنَائِنَا فَلَمَّا کُتِبَ عَلَیْہِمْ الْقِتَالُ تَوَلَّوْا إِلاَّ قَلِیلًا مِنْہُمْ وَاللهُ عَلِیمٌ بِالظَّالِمِینَ>
क्या तुम ने मूसा के बाद बनी इस्राईल के उस गिरोह को नहीं देखा जिस ने अपने नबी से कहा कि हमारे लिए एक बादशाह निश्चित कर दीजिये ताकि हम अल्लाह की राह में जिहाद करें, नबी ने फरमाया कि मुझे यह अंदेशा है कि तुम पर जिहाद वाजिब हो जायेगा और तुम जिहाद नहीं करोगे, उन लोगों ने कहा कि हम क्यों जिहाद नहीं करेंगे जबकि हमें हमारे घरों बाहर निकाल दिया गया है और बाल बच्चों से अलग कर दिया गया है, इसके बाद जब उन पर जिहाद वाजिब कर दिया गया तो थोड़े से लोगों के अलावा सब अपनी बात से फिर गये और अल्लाह ज़ालमीन को अच्छी तरह जानता है।
जंग के लिए सरदार निश्चित करने का आवेदन एक तरह से इस बात को स्पष्ट करता था कि वह जंग के लिए तैयार हैं, जबकि रास्ते में एक बहुत बड़ी संख्या में लोग सुस्त पड़ गये और बहुत कम लोग जंग मैदान में हाज़िर हुए।
अतः इमाम महदी (अ. स.) का ज़हूर भी उसी वक़्त होगा जब सभी लोगों में समाजिक न्याय, अखलाक़ी व सदाचारिक स्वच्छता और आत्मीय शाँति के प्रति जागरूकता पैदा हो जायेंगी। जब लोग अनयाय और क़बीला परस्ती से थक जायेंगे, जब कमज़ोर लोगों के अधिकार मालदारों व ताक़तवरों के पैरों तले कुचले जायेंगे, जब माल व दौलत सिर्फ़ कुछ ख़ास लोगों के क़ब्ज़े में होगी और कुछ लोगों के पास रात में खाने के लिए रोटी भी न होगी, एक गिरोह अपने लिए महल बनाता हुआ दिखाई देगा और अपने परोग्रामों में बहुत ज़्यादा खर्च करेगा और उनके लिए ऐसे ऐसे खाने व ऐशो आराम के ऐसे ऐसे सामान उपलब्ध होंगे कि उन्हें देख कर आँखें चका चौंध होंगी, तो ऐसे मौक़े पर न्याय व समानता की प्यास अपने चरम बिन्दु पर पहुँच जायेगी।
जब समाज में विभिन्न बुराईयाँ फैलती जा रही हों और लोग बुरे काम करने में एक दूसरे से आगे बढ़ रहे हों, बल्कि अपने बुरे कामों पर गर्व कर रहे हो, इंसानी और इलाही उसूल से दूर भागा जा रहा हो, पवित्रता व पाकीज़गी के विपरीत कामों को कानूनी शक्ल दी जा रही हो जिसके नतीजे में पारिवारिक व्यवस्था चर मरा रही हो, लावारिस बच्चों को समाज के हवाले किया जा रहा हो, तो इस अवसर पर ऐसे रहबर के ज़हूर की अभिलाषा बहुत ज़्यादा की जायेगी जिसकी हुकूमत अखलाकी व आत्मीय सुख व शाँति का पैगाम ले कर आये। जिस वक़्त इंसान के पास मोज मस्ती के समस्त भौतिक साधन मौजूद हों लेकिन वह अपनी ज़िन्दगी से खुश न हो और उसे किसी ऐसी दुनिया की तलाश हो जो आध्यात्म से भरी हो तो उस मौक़े पर इंसान को उस महान इमाम की ज़रूरत का एहसास होगा।
स्पष्ट है कि इमाम (अ. स.) के हाज़िर होने को समझने का शौक़ उस वक़्त अपनी चरम सीमा पर होगा जब आदमी अपने व्यक्तिगत तजर्बे से इंसानी बुद्धिमत्ता के विभिन्न कारनामों को देख कर यह समझ जायेगा कि दुनिया को ज़ुलम व सितम और बुराईयों से छुटकारा दिलाने वाला ज़मीन पर अल्लाह के खलीफ़ा हज़रत इमाम महदी (अ. स.) ही हैं और इंसानों के लिए पाक व साफ और बेहतरीन ज़िन्दगी प्रदान करने वाला विधान सिर्फ़ और सिर्फ़ अल्लाह का क़ानून हैं। अतः उस मौक़े पर इंसान अपने पूरे वजूद से इमाम (अ. स.) की ज़रुरत का एहसास करेगा और इस एहसास की वजह से उनके ज़हूर के लिए रास्ता हमवार करने की कोशिश करते हुए उस राह में मौजूद रुकावटों को दूर करेगा। यह उसी वक़्त होगा जब फरज और ज़हूर का वक़्त पहुँच जायेगा।
पैग़म्बरे इस्लाम (स.) आख़िरी ज़माने अर्थात ज़हूर से पहले के ज़माने के बारे में फरमाते हैं कि
एक ज़माना ऐसा आयेगा जिसमें मोमिन को पनाह लेने की जगह नहीं मिलेगी ताकि ज़ुल्म व सितम और बर्बादी से छुटकारा मिल सके, अतः उस वक़्त ख़ुदा वन्दे आलम मेरी नस्ल से एक इंसान को भेजेगा...
ज़हूर की निशानियाँ
हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के विश्वव्यापी इंकेलाब और क़ियाम व आन्दोलन के लिए कुछ निशानियों का वर्णन हुआ हैं और उन निशानियों की पहचान बहुत से सकारात्मक प्रभाव रखती हैं। चूँकि यह महदी ए आले मुहम्मद स. के ज़हूर कि निशानियाँ है अतः इनमें से हर एक के प्रकट होने से इन्तेज़ार करने वालों के दिलों में उम्मीद की किरणों में वृद्धी होगी और दुश्मनों व भटके हुए लोगों के लिए ख़तरे की घन्टी बजेगी ताकि वह बुराईयों से दूर हो जायें। इसी तरह इन तरह निशानियों के ज़ाहिर होने से इन्तेज़ार करने वालों में अपने अन्दर इमाम (अ. स.) के साथ रहने और उनकी मदद करने की क्षमता प्राप्त करने का शौक पैदा होगा। इस के अलावा भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं का परिचय इंसान को भविष्य के लिए योजना बनाने में सहायक सिद्ध होगा और यह निशानियाँ महदवियत के सच्चे और झूटे दावेदारों को परखने की सबसे अच्छी कसौटी हैं। अतः अगर कोई महदवियत का दावा करे और उसके क़ियाम (आन्दोलन) में यह ख़ास निशानियाँ न पाई जाती हों तो उसके झूठे होने का आसानी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
हमारे मासूम इमामों (अ. स.) की रिवायतों में हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के ज़हूर की बहुत सी निशानियों का वर्णन हुआ हैं. उनमें से कुछ साधारण व प्रकृतिक हैं और कुछ असाधारण व चमत्कारिक हैं।
हम इन निशानियों में से पहले उन स्पष्ट और उच्च निशानियों का उल्लेख करते हैं जिनका वर्णन विश्वसनीय किताबों और विश्वसनीय रिवायतों में हुआ हैं और आखिर में कुछ अन्य निशानियों का संक्षेप में वर्णन करेंगे।
हज़रत इमाम सादिक़ (अ. स.) ने एक रिवायत के अन्तर्गत फरमाया :
क़ाइम (अ. स.) के ज़हूर की पाँच निशानियां है, सुफ़यानी का ख़रुज, यमनी का क़ियाम, आसमानी आवाज़, नफ्से ज़किय्या का क़तल और खस्फे बैदा... ... ।
प्रयः पाठकों ! अब हम उपरोक्त वर्णित इन पाँचो निशानियों के बारे में व्याख्या करते हैं इनका वर्णन अन्य बहुत रिवायतों में भी हुआ हैं, लेकिन इन घटनाओं से संबंधित समस्त व्याख्या हमारे लिए यक़ीनी नहीं है।
सुफ़यानी का ख़रुज (आक्रमण)
सुफ़यानी का आक्रमण उन निशानियों में से एक है जिनका वर्णन अनेकों रिवायतों में हुआ है। सुफ़यानी अबू सुफ़यान की नस्ल से होगा और ज़हूर से कुछ समय पहले शाम नामक स्थान से आक्रमण करेगा। वह ज़ालिम व अत्याचारी होगा और क़त्ल व ग़ारत में किसी तरह की कोई पर्वा नहीं करेगा। वह अपने दुशमनों से बहुत ही बुरा व्यवहार करेगा।
हज़रत इमाम सादिक़ (अ. स.) उसके बारे में फरमाते हैं कि
“अगर तुमने सुफ]यानी को देख लिया तो ऐसा है जैसे तुमने सब से नीच और बुरे इंसान को देख लिया हो...”
उसका आक्रमण रजब के महीने से शुरु होगा, वह शाम और उसके आस पास के इलाकों पर क़ब्ज़ा करने के बाद इराक़ पर हमला करेगा और वहाँ बड़े पैमाने पर कत्ल व ग़ारत करेगा।
कुछ रिवायतों में वर्णन मिलता है कि उसके आक्रमण और उसके क़त्ल होने तक की मुद्दत 15 महीने होगी...।
खस्फ़े बैदा
खस्फ़ का अर्थ फटना व गिरना हैं और बैदा मक्के व मदीने के बीच एक जगह का नाम है।
खस्फ़ बैदा से यह अभिप्रायः है कि सुफ़यानी इमाम महदी (अ. स.) से मुक़ाबले के लिए एक फ़ौज को मक्के की तरफ़ भेजेगा और जब उसकी यह फ़ौज बैदा नामक स्थान पर पहुँचेगी तो चमत्कारिक रूप से ज़मीन फट जायेगी और वह फ़ौज वहीँ ज़मीन में धँस जायेगी।
हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ. स.) ने इस बारे में फरमाया कि
“सुफ़यानी की फ़ौज के सरदार को खबर मिलेगी कि हज़रत इमाम महदी (अ. स.) मक्के की तरफ़ रवाना हो चुके हैं अतः वह उनके पीछे एक फ़ौज रवाना करेगा, लेकिन वह फ़ौज उनको नहीं पा सकेगी और जब सुफ़यानी की फ़ौज बैदा नामक ज़मीन पर पहुंचेगी तो एक आसमानी आवाज़ आयेगी कि ऐ बैदा की ज़मीन इनको भस्म कर दे। यह सुनने के बाद वह ज़मीन सुफ़यानी की फौज को अपने अन्दर खींच लेगी...।
यमनी का क़ियाम (आन्दोलन)
यमन नामक जगह का एक सरदार का आन्दोलन इमाम (अ. स.) के ज़हूर की निशानी है। यह निशानी इमाम के ज़हूर से कुछ ही दिनों पहले ज़ाहिर होगी। वह एक ऐसा नेक और मोमिन इंसान होगा, जो बुराइयों के खिलाफ़ आन्दोलन चलायेगा और अपनी पूरी ताक़त से बुराइयों व अश्लीलता का मुक़ाबला करेगा, परन्तु उसके आन्दोलन का पूर्ण विवरण हमारे लिए स्पष्ट नहीं है।
इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ. स.) उस बारे में फरमाते हैं कि
“हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के क़ियाम से पहले बुलन्द होने वाले झंड़ो के बीच यमनी का झंडा हिदायत करने वालों में सब से बेहतर होगा, क्यों कि वह लोगों को तुम्हारे मौला हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की तरफ़ बुलायेगा...।”
आसमान से आवाज़ का आना
इमाम (अ. स.) के ज़हूर की निशानियों में से एक निशानी आसमान से चीख़ की आवाज़ आना है। कुछ रिवायत के आधार पर यह आसमानी आवाज़ जनाबे जिब्रइल की आवाज़ होगी, जो रमज़ान के महीने में सुनाई देगी...।
और चूँकि पूर्ण समाज सुधारक का इंकेलाब एक विश्वव्यापी इंकेलाब होगा और सभी को उसका इंतेज़ार होगा, अतः दुनिया भर के लोगों को उसी आसमानी आवाज़ के ज़रिये खबर दी जायेगी।
हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ. स.) ने फरमाया :
“क़ाइम आले मुहम्मद (अ. स.) का ज़हूर उस वक़्त तक नहीं होगा जब तक आसमान से आवाज़ न दी जाये और उस आवाज़ को पूरब व पश्चिम के सभी निवासी सुनेंगे...।”
यह आवाज़ जिस तरह मोमिनों के लिए खुशी का पैग़ाम बनेगी उसी तरह बुरे लोगों के लिए ख़तरे की घन्टी होगी ताकि वह अपने बुरे कामों से दूर हो कर हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के मददगारों में शामिल हो जायें।
उस आवाज़ की व्याख्या का विभिन्न रिवायतों में वर्णन हुआ हैं, इसके बारे में हज़रत इमाम सादिक (अ. स.) ने फरमाया :
आसमान से आवाज़ देने वाला हज़रत इमाम महदी (अ. स.) को उनके और उनके पिता के नाम के साथ पुकारेगा...।
नफ़्से ज़किया का क़त्ल
नफ्से ज़किया का अर्थ ऐसा इंसान हैं जो कमाल के बुलन्द दर्जे पर पहुँचा हुआ हो या ऐसा पाक, पाक़ीज़ा व बेगुनाह इंसान जिसने किसी को क़त्ल न किया हो। नफ्से ज़किय्या के क़त्ल से यह अभिप्रायः है कि हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के ज़हूर से कुछ पहले एक उच्च और बेगुनाह इंसान को इमाम (अ. स.) के मुखालिफ़ो के द्वारा क़त्ल किया जायेगा।
कुछ रिवायतों के आधार पर यह घटना इमाम महदी (अ. स.) के ज़हूर से 15 दिन पहले घटित होगी।
इस बारे में हज़रत इमाम सादिक़ (अ. स.) ने फरमाया :
क़ाइमे आले मुहम्मद (स.) के ज़हूर और नफ्से ज़किय्या के क़त्ल में सिर्फ़ 15 दिन का फ़ासला होगा...।
प्रियः पाठकों ! उपरोक्त वर्णित निशानियों के अलावा भी कुछ अन्य निशानियों का वर्णन हुआ हैं उनमें से कुछ ख़ास निशानियाँ निम्न लिखित है :
दज्जाल का ख़रुज, दज्जाल एक ऐसा धोकेबाज़ और मक्कार आदमी होगा जिसने बहुत से लोगों को गुमराह किया होगा, रमज़ान के मुबारक़ महीने में सूरज ग्रहण होना, चाँद ग्रहण होना, उपद्रवों का फैलना और खुरासानी का आन्दोलन।
उल्लेखनीय है कि इन निशानियों का सविस्तार वर्णन बड़ी किताबों में मौजूद हैं।
स्पेन ने ग़ज़्ज़ा जाने वाले सहायता जहाजों को निशाना बनाने के खिलाफ इजरायल को चेतावनी दी
स्पेन के विदेश मंत्री, जोसे मैनुएल अलबार्स ने हाल की घोषणा में इज़राईल को चेतावनी दी कि कोई भी कार्रवाई जो "सुमूद फलुलीता" जहाज के खिलाफ होगी, जो ग़ज़्ज़ा के लोगों के लिए मानवीय सहायता लेकर जा रहा है, उसका गंभीर जवाब दिया जाएगा।
स्पेन के विदेश मंत्रालय द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है कि ग़ज़्ज़ा के लोगों के लिए मानवीय सहायता लेकर जाने वाले जहाज को किसी भी तरह की धमकी या हमला कड़ी कार्रवाई और जवाबी कदमों को जन्म देगा।
उन्होंने इस जहाज के शांतिपूर्ण और मानवीय मिशन पर जोर दिया और कहा कि मैड्रिड इस जहाज पर मौजूद सभी स्पेनिश नागरिकों की कांसुलर सुरक्षा कर रहा है। जहाज के यात्रियों के खिलाफ कोई भी कार्रवाई विश्व के खुले समुद्र में अंतरराष्ट्रीय कानूनों का स्पष्ट उल्लंघन होगी और संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय नियमों का भी। इससे सख्ती से निपटा जाएगा।
स्पेन के विदेश मंत्री ने ट्यूनिशिया के देश में अपने प्रतिनिधि को भी एसाम किया ताकि वह ड्रोन हमले की जांच कर सके, जो ग़ज़्ज़ा को मानवीय मदद पहुंचाने वाले जहाज के बेड़े पर हुआ था।
यमन द्वारा इजरायल पर सफल ड्रोन हमले की फिलिस्तीनी प्रतिरोध मोर्चा ने सराहना की
इज़राईली पर यमन द्वारा किए गए सफल ड्रोन हमलों पर ज़ायोनी कब्ज़े और अमेरिकी दमन के खिलाफ लड़ रहे फिलिस्तीनी प्रतिरोध ने बधाई दी है।
इज़राईली कब्ज़े और अमेरिकी दमन के खिलाफ लड़ रहे फिलिस्तीनी प्रतिरोध ने कब्जाए में लिए गए इलाकों में यमन के सफल ड्रोन हमलों पर बधाई दी है ध्यान रहे कि इन हमलों में ज़ायोनी कब्ज़े को भारी जानी नुकसान पहुंचा है।हिब्रू स्रोतों के अनुसार, कब्जा में लिए गए इलाकों पर यमनी ड्रोन हमले में घायलों की संख्या पचास हो गई है।
इन हमलों के बाद फिलिस्तीनी प्रतिरोध ने इस बात पर जोर दिया है कि यमनियों ने इज़राईली के घमंड और अहंकार को नष्ट कर दिया है और इजरायल की रक्षा, सैन्य और खुफिया प्रणालियों की नाजुकता और कमजोरी को उजागर किया है बयान में कहा गया है कि वे अपने मुजाहिद भाइयों और यमनी अधिकारियों को बधाई देते हैं।
फिलिस्तीनी प्रतिरोध आंदोलनों ने आगे कहा है कि ऐलात में यमनियों का बहादुरी भरा ऑपरेशन इस बात का सबूत है कि यमनी सशस्त्र बल रचनात्मक क्षमताओं, कौशल, सटीकता और विकास के उस स्तर पर पहुंच गए हैं जो उन्हें ज़ायोनियों के अहंकार और झूठे घमंड को चकनाचूर करने और नष्ट करने में सक्षम बनाता है।
बयान में आगे कहा गया कि यमन में धन्य ऑपरेशन, ईमानदारी से काम करने का संकल्प और यमनी सेना व जनता का दृढ़ और अटल संकल्प इस्लामी उम्माह की आवाज और प्रतिरोध का वास्तविक नमूना है।
फिलिस्तीनी प्रतिरोध आंदोलनों ने जोर देकर कहा है कि यमनियों का संकल्प और साहस साबित करता है कि यमनी लोग अजेय हैं और वे जो बलिदान और भारी कीमत चुका रहे हैं वह वास्तव में दुश्मनों को भारी नुकसान पहुंचाने का कारण बनते हैं।
बयान के अनुसार, ऑपरेशन ऐलात ने इजरायली सरकार के वायु रक्षा और पूरे सैन्य व खुफिया तंत्र की नाजुकता और कमजोरी को उजागर किया और यह दिखाया कि नेतन्याहू और उनकी नरसंहार करने वाली ज़ायोनी कैबिनेट में मौजूद अपराधी समूह ज़ायोनी जनता को धोखा दे रहे हैं।
बयान के अंत में जोर देकर कहा गया है कि हम जिहाद और प्रतिरोध की धरती यमन में अपने भाइयों और यमन की बहादुर सेना, अंसारूल्लाह आंदोलन और यमन की बहादुर नेतृत्व को सलाम करते हैं जो फिलिस्तीनी जनता और उनके प्रतिरोध के वास्तविक समर्थक हैं।
यह बयान यमनी सशस्त्र बलों के प्रवक्ता याहया सरीअ द्वारा पिछली रात एक बयान जारी करने के बाद सामने आया है, जिसमें घोषणा की गई थी कि यमनी सशस्त्र बलों ने दो ड्रोन से कब्जाए गए बंदरगाह में दो लक्ष्यों को सफलतापूर्वक निशाना बनाया है।ध्यान रहे कि पिछले 24 घंटों में यह यमन का दूसरा ऑपरेशन था।
यह बात गौरतलब है कि इजरायली मीडिया ने यमनी ड्रोन का मुकाबला करने में कई रक्षा प्रणालियों की विफलता को स्वीकार करते हुए इस विफलता के कारणों के बारे में कब्ज़े की सरकार की वायु सेना की जांच की सूचना दी।
आयरन डोम प्रणाली को रोकने के लिए दागे गए दो मिसाइल यमनी ड्रोन को निशाना बनाने में विफल रहे और ड्रोन कब्जाए में लिए गए इलाकों पर जा गिरा, जबकि कब्ज़े वाले हमेशा अपने हताहतों के आंकड़े छुपाते और सेंसर कर रहे हैं।हिब्रू स्रोतों ने सूचना दी है कि कब्जाए में लिए गए इलाकों पर यमनी ड्रोन हमले में घायलों की संख्या पचास हो गई है।
हिब्रू अखबार जेरूसलम पोस्ट ने इस संबंध में कहा है कि यमनियों को इजरायल की कमजोरियों का पता चल चुका है और उनका प्रभाव लगातार, विनाशकारी और अंततः घातक है।
ज़ायोनी अखबार ने इस बात का उल्लेख करते हुए कि यमनी ड्रोन की कीमत मिसाइलों से कम है, लेकिन उसने काफी नुकसान पहुंचाया है, लंबी हो रही जंग में खतरे विविध हो चुके हैं। यमनी इजरायल की रक्षा प्रणाली में खाली जगह को पार करने में सफल हो गए हैं।
कुरआन और उलेमा की मौजूदगी के बावजूद गुनाह और फसाद आम क्यों हैं?
आयतुल्लाह अज़ीजुल्लाह खुशवक्त र.ह. ने कहा कि कुरआन और उलेमा होने के बावजूद समाज में गुनाह और फसाद का असली कारण यह है कि लोग केवल पढ़ते हैं लेकिन अमल नहीं करते।दीन के आदेश तभी असर दिखाते हैं जब फरायज़ पर अमल किया जाए और हराम से बचा जाए।
आयतुल्लाह अज़ीज़ुल्लाह ख़ुशवकत ने कहा कि कुरआन और उलेमा के होने के बावजूद समाज में पाप और भ्रष्टाचार का मुख्य कारण यह है कि लोग सिर्फ पढ़ते हैं, अमल नहीं करते। धर्म के नियम तभी प्रभाव दिखाते हैं जब अनिवार्य आदेशों का पालन किया जाए और निषिद्ध चीजों से बचा जाए।
विवरण के अनुसार, मरहूम आयतुल्लाह अज़ीज़ुल्लाह ख़ुशवकत, जो हौज़ा इल्मिया के प्रतिष्ठित नैतिक शिक्षक थे, ने एक नैतिकता के पाठ में शैतान की मनुष्य से दुश्मनी" के विषय पर बात करते हुए कहा कि क़यामत के दिन ईश्वर मनुष्यों को संबोधित करेगा हे आदम की संतानों! क्या मैंने तुम्हें यह आदेश नहीं दिया था कि शैतान की उपासना न करो? यहाँ उपासना से अर्थ आज्ञापालन है।
उन्होंने स्पष्ट किया कि ईश्वर ने बार-बार पैगंबरों के माध्यम से मनुष्यों को आदेश दिया है कि शैतान का अनुसरण न करें बल्कि सिरातुल मुस्तकीम यानी अनिवार्यताओं का पालन और निषेधों से परहेज के मार्ग पर चलें।
आयतुल्लाह ख़ुशवक्त ने कहा कि सीधा मार्ग एक हरे-भरे बगीचे की तरह है जहाँ सब कुछ मौजूद है लेकिन कोई हानिकारक चीज नहीं है। केवल अच्छे कर्म और धार्मिक लोग ही इसमें जगह पाते हैं।
उन्होंने आगे कहा कि कुरान और ईश्वरीय आदेशों की बहुलता इसलिए है क्योंकि दुनिया में तरह-तरह के फितने और वहम मौजूद हैं। जब इंसान नमाज, रोज़ा या कुरान पढ़ने की नियत करता है तो शैतान उसे रोकने की कोशिश करता है, इसीलिए ईश्वर ने फरमाया है,जब तुम कुरान पढ़ो तो शैतान से ईश्वर की शरण मांगो।
उनके अनुसार, धार्मिक शिक्षा का सिद्धांत सरल है, ईश्वर के आदेशों पर अमल लेकिन जब लोग सिर्फ सुनते और पढ़ते हैं, अमल नहीं करते तो धर्म के सकारात्मक प्रभाव प्रकट नहीं होते। इसीलिए आज कुरान, धार्मिक विद्वान और हौज़ा इल्मिया मौजूद हैं, लेकिन बड़े पाप, अत्याचार और सामाजिक भ्रष्टाचार खत्म नहीं हुए हैं।
आयतुल्लाह ख़ुशवकत ने अंत में कहा कि हज़रत अली के कथन के अनुसार, आज्ञाकारी बंदे हमेशा संख्या में कम होंगे, और जब तक लोग वास्तव में अमल नहीं करेंगे, न ही अनुचित हत्याएं रुकेंगी और न ही अत्याचार समाप्त होंगे। यदि पूरा शहर ईश्वर के आदेश पर चले तो वहाँ न अपराध होगा न हत्या। आज जो कुछ दिखाई देता है, वह सब लोगों की अवज्ञा और लापरवाही का परिणाम है।
गज़्ज़ा में इज़राईली आक्रामकता आवासीय मकान पर हमला, 11 फिलिस्तीनी शहीद
इज़राइली सेना के हवाई हमले में गाज़ा के मध्य इलाके में एक आवासीय मकान को निशाना बनाया गया, जिसमें कम से कम 11 लोग शहीद और कई घायल हो गए।
इस्राइली सेना के इस क्रूर हवाई हमले में गाज़ा के मध्य इलाके में एक आवासीय मकान को निशाना बनाया गया जिसके परिणामस्वरूप कम से कम 11 लोग शहीद हुए और कई घायल हो गए।
फिलिस्तीनी स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, 7 अक्टूबर 2023 से अब तक इस्राइली हमलों में शहीदों की संख्या 65,419 से अधिक हो चुकी है, जबकि घायल लोगों की कुल संख्या 1,67,160 तक पहुंच गई है।
स्वास्थ्य मंत्रालय ने यह भी बताया कि 18 मार्च 2025 से शुरू हुई नई आक्रामकता में अब तक 12,823 फिलिस्तीनी शहीद और 54,944 घायल हो चुके हैं।
तक़्वा के बगै़र इल्म हकीकी हासिल नहीं होता
आयतुल्लाहिल उज़मा जवादी आमोली ने कहां,कई ऐसे उलूम होते हैं, चाहे वो हौज़ा में हों या विश्वविद्यालय में जो इसलिए कारगर नहीं होते क्योंकि वे केवल उस मूल सिद्धांत «مَن فَقَدَ حسّاً فَقَدْ فَقَدَ علماً» पर ही भरोसा करते हैं, लेकिन वे हिदायत की राह यानी तक्वा को नजरअंदाज कर देते हैं। जबकि वास्तव में यह होना चाहिए कि «مَن فَقَدَ تقوی فَقَدْ فَقَدَ علماً» यानी बिना तक्वा के असली ज्ञान प्राप्त नहीं होता।
आयतुल्लाहिल उज़मा जवादी आमोली ने नए शैक्षणिक वर्ष की शुरुआत पर हौज़ा और विश्वविद्यालय की शैक्षणिक जिंदगी में विज्ञान की प्रभावशीलता के विषय पर बात करते हुए कहा,कुरआन करीम ने ज्ञान और समझ के क्षेत्र में एक नया रास्ता खोला है।
مَن فَقَدَ حسّاً فَقَدْ فَقَدَ علماً
यानी जो व्यक्ति अपनी कोई इंद्रिय संवेदना खो देता है, वह इस रास्ते से ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता। यह बात सही है।
लेकिन कुरआन और नबी अकरम का पैगाम यह है कि,
«مَن فَقَدَ تقوی فَقَدْ فَقَدَ علماً»
यानी तकवा ही असली ज्ञान का दरवाज़ा है।
हक़ और बातिल, सच्चाई और झूठ, भलाई और बुराई में फर्क सिर्फ तक्वा के माध्यम से संभव है।
إِن تَتَّقُوا اللّهَ یجْعَل لَکُمْ فُرْقَاناً
अगर तुम अल्लाह से तकवा अपनाओगे, तो वह तुम्हें हक़ और बातिल में फर्क करने की ताकत देगा। (सूरह अल-अनफ़ाल: 29)
इसलिए कई ऐसे विज्ञान, चाहे वे हौज़ा में हों या विश्वविद्यालय में केवल इंद्रिय ज्ञान पर निर्भर होने के कारण कारगर नहीं हैं, क्योंकि उन्होंने वही यानी तक्वा को अपनी नींव नहीं बनाया।
सोत्र: दरस ए अख़्लाक, 4/7/1392
अगर इल्म अख़लाक़ और माअनवियत से ख़ाली है, तो यह मानवता के लिए लाभकारी नहीं हो सकता
हौज़ा ए इल्मिया की सर्वोच्च परिषद के सदस्य, आयतुल्लाह सय्यद मोहम्मद ग़रवी ने कहा है कि अख़लाक़ और माअनवियत से अलग होने पर इल्म वास्तविक लाभ प्रदान नहीं कर सकता है, और कुछ भौतिकवादी देशों में इसकी विफलता के उदाहरण स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं।
हौज़ा ए इल्मिया की सर्वोच्च परिषद के सदस्य, आयतुल्लाह सय्यद मोहम्मद ग़रवी ने कहा है कि अख़लाक़ और मअनवियत से अलग होने पर इल्म वास्तविक लाभ प्रदान नहीं कर सकता है, और कुछ भौतिकवादी देशों में इसकी विफलता के उदाहरण स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं।
विवरण के अनुसार, हौज़ा ए इल्मिया हुर्मुज़गान के नए शैक्षणिक वर्ष के उद्घाटन समारोह में बोलते हुए, आयतुल्लाह ग़रवी ने पवित्र रक्षा सप्ताह के अवसर पर इस्लामी क्रांति, पवित्र रक्षा और बारह दिवसीय युद्ध के शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की।
उन्होंने शहीद सय्यद हसन नसरूल्लाह को याद करते हुए कहा कि आज भी प्रतिरोध और हिज़्बुल्लाह उत्पीड़न और अहंकार के विरुद्ध लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं और मदरसों की यह ज़िम्मेदारी है कि वे इस मार्ग का यथासंभव समर्थन और प्रचार करने में अपनी भूमिका निभाएँ।
हौज़ा ए इल्मिया क़ुम के सदस्य, जामिया मुदर्रेसीन ने धार्मिक ज्ञान को मानवता के मार्गदर्शन का आधार बताया और कहा कि सभी मनुष्य समान हैं और वास्तविक उत्कृष्टता केवल धर्मपरायणता और धार्मिक ज्ञान में ही निहित है। उन्होंने कहा कि सच्चा ज्ञान वह है जो ईश्वर के ज्ञान, जीवन की वास्तविकता और दिव्य कलाओं से जुड़ा हो और जो मनुष्य को मोक्ष और सुख की ओर ले जाए।
उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि यदि ज्ञान के साथ नैतिकता और विनम्रता न हो, तो उसकी प्रभावशीलता नहीं रहेगी। अहंकार और अहंकार से दूर रहते हुए, धार्मिक ज्ञान को व्यक्तिगत और सामूहिक स्तर पर परिवर्तन का माध्यम बनाना आवश्यक है।
आयतुल्लाह ग़रवी ने आगे कहा कि कठिनाइयों और मुश्किलों के बावजूद ज्ञान प्राप्त करने की प्रक्रिया में बहुत बड़ा गुण है। इस मार्ग पर ईमानदारी से चलने की आवश्यकता है ताकि मदरसे इस्लामी सभ्यता के निर्माण में अपनी सच्ची भूमिका निभा सकें।
यह समारोह प्रांतीय अधिकारियों, शिक्षकों और छात्रों की उपस्थिति में आयोजित किया गया और अंत में, होर्मोज़गन मदरसे द्वारा शैक्षणिक और सांस्कृतिक स्तर को ऊपर उठाने के लिए किए गए प्रयासों की सराहना की गई।
अल्लामा तबातबाई की बदौलत हौज़ा ए इल्मिया में फ़लसफ़े को नया जीवन मिला
अतीत में, धार्मिक विद्वान दर्शनशास्त्र (फ़लसफ़े) के प्रति बहुत आशावादी नहीं थे, और कुछ दार्शनिकों के विचार न्यायविदों की स्पष्ट धार्मिक समझ के अनुरूप नहीं थे। हालाँकि, इमाम खुमैनी और फिर अल्लामा तबातबाई द्वारा दर्शनशास्त्र की शिक्षा, उनकी विनम्रता, भक्ति और शरिया के पालन के कारण, न्यायविदों का दृष्टिकोण बदल गया, और दर्शनशास्त्र ने मदरसों में अपना उचित स्थान प्राप्त किया, विशेष रूप से पश्चिमी दुनिया के साथ बौद्धिक संवाद की आवश्यकता को देखते हुए।
मरहूम हुज्जतुल इस्लाम अहमद अहमदी ने अल्लामा तबातबाई की शैक्षणिक सेवाओं और मदरसे में दर्शनशास्त्र के विकास के बारे में विस्तार से एक लेख में लिखा है कि अतीत में, सामान्य धार्मिक हलकों में दर्शनशास्त्र के प्रति कोई नरम रुख नहीं था। कुछ दार्शनिक ऐसे भी थे जो कभी-कभी धार्मिक घोषणापत्र पर आपत्ति या विद्रोह करते थे।
लेकिन जब इमाम खुमैनी ने दर्शनशास्त्र पढ़ाना शुरू किया और उसके बाद अल्लामा तबातबाई ने अपनी विनम्रता और समर्पण के साथ शिक्षा देना शुरू किया, तो स्थिति बदल गई। हुज्जतुल इस्लाम अहमदी के अनुसार, अल्लामा तबातबाई का धार्मिक दृष्टिकोण इतना विनम्र था कि उन्होंने अक्सर देखा कि अल्लामा हरम में प्रवेश करते समय उसके द्वार को चूम लेते थे।
उन्होंने कहा कि अल्लामा तबातबाई दर्शनशास्त्र पढ़ाते समय हमेशा शरीयत के नियमों को पूरी तरह से स्वीकार करते थे और उनका पालन करते थे, जिसके परिणामस्वरूप न्यायविदों के मन में दर्शनशास्त्र के प्रति विश्वास पैदा हुआ।
इसके अलावा, समय की मांग थी कि मदरसे में दर्शनशास्त्र को और अधिक विस्तार दिया जाए। अल्लामा तबातबाई की पुस्तक "उसुल फ़लसफ़ा वा रोश यथार्थवाद" और उस पर शहीद मुर्तज़ा मोतहारी द्वारा लिखे गए व्याख्यानों ने वह कर दिखाया जो उस दौर के मार्क्सवादी विचारों की तुलना में किसी भी व्यावहारिक पुस्तिका से संभव नहीं था।
हुज्जतुल इस्लाम अहमदी ने कहा था कि पश्चिमी दुनिया के साथ हमारा संपर्क जितना बढ़ेगा, दर्शन और रहस्यवाद का महत्व उतना ही बढ़ेगा, क्योंकि किसी नास्तिक या गैर-मुस्लिम से सिर्फ़ धार्मिक तर्कों, हदीस या कुरान के आधार पर बात करना संभव नहीं है। इसके लिए ऐसे स्थापित तर्कसंगत आधारों की आवश्यकता होती है जो दोनों पक्षों को स्वीकार्य हों, और यही बात दर्शन को मदरसे में अपरिहार्य बनाती है।
स्रोत: पासदार इस्लाम पत्रिका, अंक 120
इमाम ज़ामाना (अ) को "ख़लीफ़तुल्लाह" और "वली युल्लाहिल आज़म" क्यो कहते है?
इमाम ज़माना (अ) जीवित और मौजूद हैं और हमारे बीच हैं। कुरआन के असरार, पैग़म्बरों और सभी नबीयों का राज उनके पास है। वे वही हकीकत हैं जिसे "إنا أنزلناه فی لیلة القدر इन्ना अंज़लनाहो फ़ी लैलतिल क़द्र" कहा गया है। इसलिए दुनिया कभी भी हुज्जत से खाली नहीं रहती और वे "वली युल्लाहिल आज़म" और "खलीफ़तुल्लाह" के रूप में हमेशा महवरे हस्ती और उसका नगीना है।
मरहूम अल्लामा हसन ज़ादा आमोली द्वारा इमाम ज़माना (अ) की शख्सियत के बारे में कुछ बयान आपके सामने प्रस्तुत किए जा रहे हैं।
एक जीवित और मौजूद शख्सियत, जो अल्लाह के सभी नामों का मज़्हर है, इंसान-ए-कामिल, कुरआन के असरार, जिसका शरीर वही वैसा ही है जैसा हमारे पास है, इमाम हसन अस्करी (अ) का बेटा, हज़रत बक़ीयतुल्लाहिल आज़म, अब भी उसी शरीर के साथ जीवित और मौजूद हैं।
वे अपने उसी शरीर से ज़मीन और हवा दोनों में सफर कर सकते हैं।
कुरआन के असरार उनके पास हैं; بسمالله बिस्मिल्लाह से लेकर سینِ منالجنة والناس मिनल जिन्नते वन्नास की सीन तक।
कुरान का राज़ उनके पास है, पैग़म्बर (स) और सभी नबीयों के राज़ उनके इख़्तियार में हैं।
वे ख़लीफ़तुल्लाह हैं। إنا أنزلناه فی لیلة القدر इन्ना अंज़लनाहो फ़ी लैलातिल क़द्र का राज़ उनके पास है, बल्कि वे खुद उसका राज़ और हकीकत हैं।
वे इंसान-ए-कामिल और इमाम हैं, और दुनिया कभी भी बिना इमाम के नहीं रहती।
अब वे जीवित और मौजूद हैं, अपने उसी शरीर के साथ, हमारे इमाम हैं।
जब हम पुकारते हैं, तो वे सुनते हैं; हमारे दिलों के हाल जानते हैं; उनकी रूह हमारी रूहों से जुड़ी हुई है।
वे हमेशा उस अंगूठी के नगीन की तरह जो इंसान के हाथ में होती है, हमारे सामने और हमारे पास मौजूद रहते हैं।
हम पढ़ते हैं, देखते हैं, जानते हैं, और ज़मीनें और दूसरे मकाम उनके सामने हैं; वे वलीयुल्लाहिल आज़म और ख़लीफ़तुल्लाह हैं।
ये बातें रहस्यमय और नेक हालात वाली हैं।
इंसान-ए-कामिल की तुलना अपने आप से करना सही नहीं है; उनका ज़ाहिर रूप इंसान है और हम भी इंसान हैं, लेकिन उनकी हकीकत ऐसी नहीं है।
उनकी जान अल्लाह के सभी नामों का मज़हर है।
आप इस कुरआन को कैसे देखते हैं?
ज़ाहिर में वे हमारे जैसे इंसान हैं, मांस, त्वचा और हड्डियों के साथ हमारे शरीर में शरीक हैं।
लेकिन कुरआन ने अल्लाह के रहस्यों को लाया है, पहले और आखिरी को जीवित किया और प्रकट किया।
मैंने कहा: बिंदु, दायरे का पहला वुजूद है और यही बिंदु है जो दायरे के अंदर घूमता है।
1- इस रास्ते में, अम्बिया (नबी) उस सारबान (साँभर) की तरह हैं।
2- वे कारवां के मार्गदर्शक हैं।
3- और उनके बीच, हमारा सय्यद सबसे बड़ा सालार है।
4- वही इस सफ़र मे पहला और वही आखिरी है।
जो उसाका उत्तराधिकारी है, वही قیةالله बक़ीयतुल्लाह है।
वही बड़ी शख्सियत है जिसकी आज हम रअय्यत हैं।
दुनिया कभी भी हुज्जत से खाली नहीं होती, इंसान-ए-कामिल और इमाम से खाली नहीं होती।
दुनिया हमेशा इमाम और ख़लीफ़तुलल्लाह रखती है, और यह चिराग हमेशा जलता रहता है।
हज़रत महदी (अ) के सच्चे चाहने वालों का दर्जा और सम्मान
इंतेज़ार के आसार जो लोगों पर खास हालात है, अगर वे हक़ीक़ी इंतेज़ार करने वाले हों, तो वे बहुत ही अहम और बहूमूल्य स्थान और सम्मान रखते हैं।
मासूमीन (अ) की बहूमूल्य शिक्षाओं में, इमाम महदी (अ) के सच्चे इंतेज़ार करने वालों के लिए इतनी बड़ा स्थान और सम्मान बताया गया है कि यह सच में आश्चर्यजनक और हैरान करने वाला है। इससे यह सवाल उठता है कि ऐसी हालत कैसे इतनी बड़ी क़ीमत रख सकते है।
अब हम मासूमीन (अ) की हदीसों के माध्यम से इंतेज़ार करने वालों की कुछ खूबियों और फज़ीलतों का उल्लेख करेंगे।
- सबसे अच्छे लोग
विशेष हालात जो इंतेज़ार के दौर के लोगों पर हैं, अगर वे हक़ीक़ी इंतेज़ार करने वाले हों, तो उनका स्थान बहुत ही क़ीमती होता है।
इमाम सज्जाद अलेहिस्सलाम इस बारे में फ़रमाते हैं:
إِنَّ أَهْلَ زَمَانِ غَیْبَتِهِ وَ الْقَائِلِینَ بِإِمَامَتِهِ وَ الْمُنْتَظِرِینَ لِظُهُورِهِ عجل الله تعالی فرجه الشریف أَفْضَلُ مِنْ أَهْلِ کُلِّ زَمَان لِأَنَّ اللَّهَ تَعَالَی ذِکْرُهُ أَعْطَاهُمْ مِنَ الْعُقُولِ وَ الْأَفْهَامِ وَ الْمَعْرِفَةِ مَا صَارَتْ بِهِ الْغَیْبَةُ عَنْهُمْ بِمَنْزَلَةِ الْمُشَاهَدَةِ इन्ना अहल ज़माने ग़ैबतेहि वल क़ाएलीना बेइमामतेहि वल मुंतज़ेरीना लेज़ोहूरेहि अज्जल्लाहो तआा फ़रजहुश शरीफ़ अफ़ज़लो मिन अहले क़ुल्ले ज़मान लेअन्नल्लाहा तआला ज़िक्रोहू आताहुम मेनल ओक़ूले वल अफ़्हामे वल मअरफ़ते मा सारत बेहिल ग़ैबतो अंहुम बेमंज़ेलतिल मुशाहदते
उस इमाम की ग़ैबत के समय के लोग, जो उनकी इमामत पर यकीन करते हैं और उनके ज़ुहूर का इंतेज़ार करते हैं, सभी समय के लोगों से बेहतर हैं; क्योंकि अल्लाह ने उन्हें ऐसी समझ, बुद्धि और मारफ़त दी है कि ग़ैबत उनके लिए देखने के समान है। (कमालुद्दीन तमानुन नेअमा, भाग 1, पेज 319)
- ज़ुहूर के समय ख़ैमे मे उपस्थित लोग
दुनिया के सभी अच्छे लोगों की सबसे बड़ी ख्वाहिश होती है कि वे उस दौर में मौजूद हों जहाँ कोई भ्रष्टाचार, अत्याचार या बर्बादी न हो। यह खास स्थान तब पूरी तरह महत्वपूर्ण बनता है जब वह दिन आए, और वह उस समय, जो नेतृत्व कर रहा हो, उसके सबसे करीब हो, यानी उस शख्स के ख़ैमे मे मौजूद हो।
इमाम सादिक़ (अ) ने उन सच्चे इंतेज़ार करने वालों के लिए जो ज़ुहूर का वक्त न देख सकें, फ़रमाया:
مَنْ مَاتَ مِنْکُمُ عَلی هَذا الْاَمْرِ مُنتَظِراً کانَ کَمَنْ هُوَ فِی الفُسْطَاطِا الَّذِی لِلْقائم मन माता मिंकुम अला हाज़ल अम्रे मुंतज़ेरन काना कमन होवा फ़िल फ़ुस्तातन अल लज़ी लिलक़ाएम
जो कोई भी आप में से इस अम्र का इंतेज़ार करते हुए दुनिया से चला जाए, वह उस शख्स के ख़ैमे में मौजूद होने के समान है। (काफ़ी, भाग 5, पेज 23)
3.उनका सवाब नमाज़ और रोज़ा रखने वालों के सवाब के समान है
सबसे बेहतरीन इबादतों में से नमाज़ और रोज़ा है। हदीसों से पता चलता है कि अगर कोई अपनी ज़िंदगी इंतेज़ार में बिताता है तो वो उस इंसान के समान है जो नमाज़ और रोज़ा कर रहा हो।
इमाम बाक़िर (अ) इस बारे में फ़रमाते हैं:
وَاعْلَمُوا اَنَّ المُنتَظِرَ لِهذا الاَمْرِ لَهُ مِثْلُ اَجْرِ الصَّائِمِ القائِمِ वअलमू अन्नल मुंतज़ेरा लेहाज़ल अम्रे लहू मिस्लो अज्रिस साएमिल का़एमे
जान लो कि इस अम्र का इंतेज़ार करने वाले को रोज़ा रखने वाले और रात भर नमाज़ पढ़ने वाले जैसा ही सवाब मिलेगा। (काफ़ी, भाग 2, पेज 222)
- सबसे सम्मानित राष्ट्र और पैग़म्बर (स) के साथी
इंसानों में सबसे मुकर्रम कौन है? निश्चित रूप से हज़रत रसूल ए इस्लाम (स) जो अल्लाह के सबसे बड़े नबी और सबसे प्यारी मख़लूक़ हैं। अब जो कोई भी दौर-ए-इंतजार में वैसा ज़िन्दगी गुज़ारे जैसा उसकी शोहरत के लायक़ हो, वह रसूल के सबसे मुकर्रम उम्मत का हिस्सा होगा। खुद हज़रत ने फरमाया:
... اُولئِکَ رُفَقائی وَاکْرَمُ اُمَّتی عَلَی उलाएका रोफ़ाक़ाई व अकरमो उम्ती अला ...
यानी वे मेरे दोस्त हैं और मेरी उम्मत में सबसे मुकर्रम हैं। (कमालुद्दीन तमानुन नेअमा, भाग 1, पेज 286)
- अल्लाह के रास्ते मे जंग करने वालो और रसूल अल्लाह की रक़ाब मे जंग करने वाले
अल्लाह के रास्ते में जंग करने वाले लोग भी सबसे मुकर्रम इंसान होते हैं। यह फज़ीलत तब पूरी होती है जब यह जंग इंसान-ए-कामिल और हज़रत रसूल (स) के साथ रहते हुए हो।
इमाम हुसैन (अ) फ़रमाते हैं:
إِنَّ الصَّابِرَ فِی غَیْبَتِهِ عَلَی الْأَذَی وَ التَّکْذِیبِ بِمَنْزِلَةِ الْمُجَاهِدِ بِالسَّیْفِ بَیْنَ یَدَیْ رَسُولِ اللَّهِ ص इन्नस साबेरे फ़ी ग़ैबतेहि अलल अज़ा वत तकज़ीबे बेमंज़िलतिल मुजाहिदे बिस सैफ़े बैना यदय रसूलिल्लाह (स)
जो शख्स ग़ैबत के दौर में तंग किए जाने और झूठा कहे जाने पर सब्र करता है, वह उस जंगजू के बराबर है जिसने तलवार के साथ हज़रत रसूल के साथ लड़ाई की हो। (ओयून अख़बार अल रज़ा, भाग 1, पेज 68)
- प्रारंभिक इस्लाम के शहीदों से एक हजार शहीदों का सवाब
सच्चे और स्थिर इंतेज़ार करने वालों की विलायत अहले-बैत पर इतनी बड़ी फज़ीलत है कि उन्हें इस्लाम के शुरूआती दौर के हज़ारों शहीदों के बराबर सवाब मिलता है।
इमाम सज्जाद (अ) इस बारे में फ़रमाते हैं:
مَن ثَبَتَ عَلی مُوالاتِنا فِی غَیْبَةِ قائِمِنا اَعْطاهُ اللَّهُ عَزَّوَجَلَّ اَجْرَ اَلْفَ شَهیدٍ مِنْ شُهَداءِ بَدْرٍ وَاُحُدٍ मन सबता अला मुवालातेना फ़ी ग़ैबते क़ाऐमेना आताहुल्लाहो अज़्ज़ा व जल्ला अज्रा अल्फ़ा शहीदिन मिन शोहदाए बदरिन वा ओहदिन
जो कोई हमारे क़ायम की ग़ैबत के दौर में वफादार और मजबूत रहे, अल्लाह उसे इस्लाम के शुरूआती दौर के बदर और ओहद के हज़ार शहीदों का सवाब देगा। (कमालुद्दीन तमानुन नेअमा, भाग 1, पेज 323)
श्रृंखला जारी है ---
इक़्तेबास : "दर्स नामा महदवियत" नामक पुस्तक से से मामूली परिवर्तन के साथ लिया गया है, लेखक: खुदामुराद सुलैमियान













