
رضوی
इस्लाम में मुतआ और चार शादियों का स्थान
और कहते हैं कि मुतआ मर्दों की शारीरिक इच्छाओं की पूर्ति और अलग अलग महिला की चाहत के लिए हलाल किया गया है और यह एक प्रकार की अशलीलता है।
हम को यह याद रखना चाहिए कि इस्लाम ने इन्सानी समाज को एक आदर्श स्थिति दी है और वह चाहता है कि किसी भी सूरत में इन्सानी समाज की व्यवस्था भंग न होने पाए, और इसके लिए आवश्यक है कि समाज के हर व्यक्ति की हर आवश्यकता को पूरा किया जाए।
इस्लाम यह चाहता है कि समाज में कोई एक भी स्त्री अविवाहित न रह जाए इसीलिए इस्लाम ने कई शादियों और मुतआ के बारे में फ़रमाया है।
लोग यह समझते हैं कि यह मुतआ केवल मर्द को ध्यान में रखते हुए और उसकी इच्छाओं की पूर्ति के लिए रखा गया है लेकिन अगर घ्यान से देखा जाए तो यह मुतआ और कई शादियों का समअला महिलाओं के हक़ में है और उनके इससे अधिक लाभ है।
क्योंकि यह एक वास्तविक्ता है कि इस समाज की हम महिला की तीन आवश्यकताएं होती हैं
- शारीरिक आवश्यकता
- आत्मिक आवश्यकता
- आर्थिक आवश्यकता
और इन आवश्यकताओं की पूर्ति का सबसे बेहतरीन रास्ता शादि या मुतआ है, क्योंकि अगर कोई महिला शादी ता मुतआ करती है तो उसकी शारीरिक इच्छाओं की पूर्ति सही और हलाल तरीक़े से हो जाती है लेकिन अगर कोई महिला शादी या मुतआ न करे तो वह अपनी इस आवश्यकता को पूरा करने के लिए या तो बहुत मुत्तक़ी हो जाए जो कि बहुत ही कठिन है या फिर ग़लत रास्ते पर चल पड़े जिससे स्वंय उसको भी हानि होगी और उस समाज को भी।
दूसरी आत्मिक आवश्यकता है जब कोई महिला किसी रिश्ते में होती है तो वह रिश्ता उसकी आत्मिक आवश्यकताओं को भी पूरा करता है लेकिन अगर महिला शादी न करे तो वह डिप्रेस्ड हो जाएगी और अनःता उसको हास्पिटल जाना पड़ेगा।
तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता आर्थिक है, और इसका भी हल शादी से हो जाता है कि जब कोई महिला शादी करती है तो इसके भरण पोषण का ख़र्चा उसके पति पर वाजिब होता है, लेकिन अगर इस्लाम के इस क़ानून को स्वीकार न किया जाए तो उस महिला को नौकरी आदि करनी होगी जिसकी अनपी समस्याएं है जिनको उनके स्थान पर बयान किया जाएगा।
यह बता सदैव ध्यान रखना चाहिए कि इस्लाम इस समाज की किसी भी महिला को अविवाहित नहीं देखना चाहता है और मुतआ एवं कई शादियों की बात केवल वहीं पर व्यवहारिक है जब किसी समाज में महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक हो अगर किसी समाज में पुरुष 1000 और महिलाएं उससे 1200 हों तो अंत में 200 महिलाएं अविवाहित रह जाएंगी और अगर हम कई शादियों या मुतआ को हराम कर दें तो इन 200 महिलाओं की ऊपर बताई गई तीनों आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाला कोई नहीं होगा, और पूर्ती न होने की सूरत में ऊपर बताए गए नुक़साना को उठाना पड़ेगा, इसलिए आवश्यक है कि हम कई शादियों या मुतआ को हलाल मानें।
और एक बात यह भी है कि बहुत संभव है कि यह 200 महिलाएं जो पुरुषों से अधिक हैं उनमें से कुछ की आयु उस सीमा को पहुंच चुकी हो कि जब कोई आदमी उनसे शादी न करना चाहे या उनकी सूरत शकल ऐसी हो कि शादी के लिए कोई उनको न मिले, लेकिन उनकी तीनों आवश्यकताएं अपने स्थान पर बाक़ी हैं, इसलिए अगर हम मुतआ को हलाल मान लें जिसको इस्लाम ने बताया है तो बहुत संभव है कि इस प्रकार की महिलाओं को भी उनका कोई साथी मिल जाए, और इस प्रकार उनकी आवश्यकताएं पूरी हो जाएं।
मुतआ क़ुरआन में
مَا اسْتَمْتَعْتُم بِهِ مِنْهُنَّ فَآتُوهُنَّ أُجُورَهُنَّ فَرِيضَةً ۚ وَلَا جُنَاحَ عَلَيْكُمْ فِيمَا تَرَاضَيْتُم بِهِ مِن بَعْدِ الْفَرِيضَةِ ۚ إِنَّ اللَّـهَ كَانَ عَلِيمًا حَكِيمًا
फिर उनसे दाम्पत्य जीवन का आनन्द लो तो उसके बदले उनका निश्चित किया हुए हक़ (मह्रि) अदा करो और यदि हक़ निश्चित हो जाने के पश्चात तुम आपम में अपनी प्रसन्नता से कोई समझौता कर लो, तो इसमें तुम्हारे लिए कोई दोष नहीं। निस्संदेह अल्लाह सब कुछ जाननेवाला, तत्वदर्शी है (सूरा निसा आयत 24 अनुवाद फ़ारूक़ खान एवं अहमद)
मुतआ इस्लामी इतिहास में
इस्लामी समाज की हर सम्प्रदाय इस बात को मानता है कि मुतआ पैग़म्बर के युग में हलाल था और उनके सहाबी इस कार्य को अंजाम दिया करते थे, और यह मुतआ पैग़म्बर के पहले ख़लीफ़ा अबूबक्र के काल में भी हलाल था, लेकिन जब दूसरे ख़लीफ़ा उमर ने गद्दी संभाली तो कुछ कारणों से इस मुतआ को जिसको अल्लाह और उसके रसूल ने हलाल किया था हराम कर दिया और कहा कि दो मुतअे पैग़म्बर के युग में हलाल थे और आज में उनको हराम कर रहा हूँ और जो भी उसको करेगा उसको सज़ा दूंगा।
दूसरी तरफ़ हर मुसलमान सम्प्रदाय इस बात को भू स्वीकार करता है कि पैग़म्बर के अतिरिक्त किसी दूसरे को यह हक़ हासिल नहीं है कि वह दीन में कुछ दाख़िल करे या दीन से कुछ बाहर कर दे और इस्लाम में कुछ ज़्यादा या कम करना बिदअत है (जैसा कि स्वंय उमर ने किया है)
इसीलिए इमाम अली (अ) ने फ़रमाया है कि अगर मुतआ हराम न किया जाता तो कोई भी व्यक्ति ज़िना नहीं करता मगर यह कि वह शक़ी होता।
लेकिन इस सबके बावजूद वह चीज़ जो पैगम़्बर के युग में हलाल थी वह हराम कर दी गई, जब्कि इसको अगर देखा जाए तो यह हराम करने वाला यह कहना चाहता है कि जो कुछ मुझे समझ में आ रहा है वह अल्लाह और उसके रसूल को समझ में नहीं आया।
और इसका नतीजा यह हुआ कि जिन लोगों ने मुतआ को हराम किया और वही वहाबी लोग सेक्स जिहाद, लवात, समलैगिग्ता आदि को हलाल बता रहे हैं!!!!
इस्लाम में बालिग़ होने से पहले भी शादी की जा सकती है बालिग़ होने के बाद एक मुस्तहेब कार्य है जिसकी बहुत ताकीद की गई है, लेकिन जैसे ही शादी न होने के कारण कोई पहला पाप होता है तो इस्लाम में शादी वाजिब हो जाती है। इस्लाम यह नहीं चाहता है कि इन्सान अपने जीवन के किसी भी समय में ईश्वर से दूर हो और पाप करे इसीलिए उसको रोकने के लिए कभी एक शादी कभी कई शादियाँ और कभी मुतआ जैसे रास्ते बताएं हैं।
मेरा मानना यह है कि जो लोग मुतआ को नहीं मानते हैं या कई शादियों को हराम समझते हैं वह एक आइडियल समाज बनाने के लिए कोई और रास्ता नही दिखा सकते हैं सिवाये इसके कि उस समाज में या तो वेश्ववृति हो या फिर शारीरिक इच्छाओं की पूर्ति के लिए सेक्स ट्वायज़ का सहारा लिया जाये जैसा कि पश्चिम में हो
सुअर का गोश्त क्यों हराम है
- सूअर के मांस का कुरआन में निषेध कुरआन में कम से कम चार जगहों पर सूअर के मांस के प्रयोग को हराम और निषेध ठहराया गया है। देखें पवित्र कुरआन 2:173, 5:3, 6:145 और 16:115 पवित्र कुरआन की निम्र आयत इस बात को स्पष्ट करने के लिए काफी है कि सूअर का मांस क्यों हराम किया गया है: ''तुम्हारे लिए (खाना) हराम (निषेध) किया गया मुर्दार, खून, सूअर का मांस और वह जानवर जिस पर अल्लाह के अलावा किसी और का नाम लिया गया हो। (कुरआन, 5:3)
- बाइबल में सूअर के मांस का निषेध ईसाइयों को यह बात उनके धार्मिक ग्रंथ के हवाले से समझाई जा सकती है कि सूअर का मांस हराम है। बाइबल में सूअर के मांस के निषेध का उल्लेख लैव्य व्यवस्था (Book of Leviticus) में हुआ है : ''सूअर जो चिरे अर्थात फटे खुर का होता है, परन्तु पागुर नहीं करता, इसलिए वह तुम्हारे लिए अशुद्ध है। '' इनके मांस में से कुछ न खाना और उनकी लोथ को छूना भी नहीं, ये तुम्हारे लिए अशुद्ध हैं। (लैव्य व्यवस्था, 11/7-8) इसी प्रकार बाइबल के व्यवस्था विवरण (Book of Deuteronomy) में भी सूअर के मांस के निषेध का उल्लेख है : ''फिर सूअर जो चिरे खुर का होता है, परंतु पागुर नहीं करता, इस कारण वह तुम्हारे लिए अशुद्ध है। तुम न तो इनका मांस खाना और न इनकी लोथ छूना। (व्यवस्था विवरण, 14/8)
- सूअर का मांस बहुत से रोगों का कारण है ईसाइयों के अलावा जो अन्य गैर-मुस्लिम या नास्तिक लोग हैं वे सूअर के मांस के हराम होने के संबंध में बुद्धि, तर्क और विज्ञान के हवालों ही से संतुष्ट हो सकते हैं। सूअर के मांस से कम से कम सत्तर विभिन्न रोग जन्म लेते हैं। किसी व्यक्ति के शरीर में विभिन्न प्रकार के कीड़े (Helminthes) हो सकते हैं, जैसे गोलाकार कीड़े, नुकीले कीड़े, फीता कृमि आदि। सबसे ज्य़ादा घातक कीड़ा Taenia Solium है जिसे आम लोग Tapworm (फीताकार कीड़े) कहते हैं। यह कीड़ा बहुत लंबा होता है और आँतों में रहता है। इसके अंडे खून में जाकर शरीर के लगभग सभी अंगों में पहुँच जाते हैं। अगर यह कीड़ा दिमाग में चला जाता है तो इंसान की स्मरणशक्ति समाप्त हो जाती है। अगर वह दिल में चला जाता है तो हृदय गति रुक जाने का कारण बनता है। अगर यह कीड़ा आँखों में पहुँच जाता है तो इंसान की देखने की क्षमता समाप्त कर देता है।
अगर वह जिगर में चला जाता है तो उसे भारी क्षति पहुँचाता है। इस प्रकार यह कीड़ा शरीर के अंगों को क्षति पहुँचाने की क्षमता रखता है। एक दूसरा घातक कीड़ा Trichura Tichurasis है। सूअर के मांस के बारे में एक भ्रम यह है कि अगर उसे अच्छी तरह पका लिया जाए तो उसके भीतर पनप रहे उपरोक्त कीड़ों के अंडे नष्ट हो जाते हैंं। अमेरिका में किए गए एक चिकित्सीय शोध में यह बात सामने आई है कि चौबीस व्यक्तियों में से जो लोग Trichura Tichurasis के शिकार थे, उनमें से बाइस लोगों ने सूअर के मांस को अच्छी तरह पकाया था। इससे मालूम हुआ कि सामान्य तापमान में सूअर का मांस पकाने से ये घातक अंडे नष्ट नहीं हो पाते।
4.सूअर के मांस में मोटापा पैदा करने वाले तत्व पाए जाते हैं सूअर के मांस में पुट्ठों को मज़बूत करने वाले तत्व बहुत कम पाए जाते हैं, इसके विपरीत उसमें मोटापा पैदा करने वाले तत्व अधिक मौजूद होते हैं। मोटापा पैदा करने वाले ये तत्व $खून की नाडिय़ों में दाखिल हो जाते हैं और हाई ब्लड् प्रेशर (उच्च रक्तचाप) और हार्ट अटैक (दिल के दौरे) का कारण बनते हैं। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि पचास प्रतिशत से अधिक अमेरिकी लोग हाइपरटेंशन (अत्यन्त मानसिक तनाव) के शिकार हैं। इसका कारण यह है कि ये लोग सूअर का मांस प्रयोग करते हैं।
- सूअर दुनिया का सबसे गंदा और घिनौना जानवर है सूअर ज़मीन पर पाया जाने वाला सबसे गंदा और घिनौना जानवर है। वह इंसान और जानवरों के बदन से निकलने वाली गंदगी को सेवन करके जीता और पलता-बढ़ता है। इस जानवर को खुदा ने धरती पर गंदगियों को साफ करने के उद्देश्य से पैदा किया है। गाँव और देहातों में जहाँ लोगोंं के लिए आधुनिक शौचालय नहीं हैं और लोग इस कारणवश खुले वातावरण (खेत, जंगल आदि) में शौच आदि करते हैं, अधिकतर यह जानवर सूअर ही इन गंदगियों को सा$फ करता है। कुछ लोग यह तर्क प्रस्तुत करते हैं कि कुछ देशों जैसे आस्ट्रेलिया में सूअर का पालन-पोषण अत्यंत सा$फ-सुथरे ढ़ंग से और स्वास्थ्य सुरक्षा का ध्यान रखते हुए अनुकूल माहौल में किया जाता है। यह बात ठीक है कि स्वास्थ्य सुरक्षा को दृष्टि में रखते हुए अनुकूल और स्वच्छ वातावरण में सूअरों को एक साथ उनके बाड़े में रखा जाता है। आप चाहे उन्हें स्वच्छ रखने की कितनी भी कोशिश करें लेकिन वास्तविकता यह है कि प्राकृतिक रूप से उनके अंदर गंदगी पसंदी मौजूद रहती है। इसीलिए वे अपने शरीर और अन्य सूअरों के शरीर से निकली गंदगी का सेवन करने से नहीं चुकते। 6. सूअर सबसे बेशर्म (निर्लज्ज) जानवर है इस धरती पर सूअर सबसे बेशर्म जानवर है। केवल यही एक ऐसा जानवर है जो अपने साथियों को बुलाता है कि वे आएँ और उसकी मादा के साथ यौन इच्छा पूरी करें। अमेरिका में प्राय: लोग सूअर का मांस खाते हैं परिणामस्वरूप कई बार ऐसा होता है कि ये लोग डांस पार्टी के बाद आपस में अपनी बीवियों की अदला-बदली करते हैं अर्थात् एक व्यक्ति दूसरे से कहता है कि मेरी पत्नी के साथ तुम रात गुज़ारो और तुम्हारी पत्नी के साथ में रात गुज़ारूँगा (और फिर वे व्यावहारिक रूप से ऐसा करते हैं) अगर आप सूअर का मांस खाएँगे तो सूअर की-सी आदतें आपके अंदर पैदा होंगी। हम भारतवासी अमेरिकियों को बहुत विकसित और साफ-सुथरा समझते हैं। वे जो कुछ करते हैं हम भारतवासी भी कुछ वर्षों के बाद उसे करने लगते हैं।
Island पत्रिका में प्रकाशित एक लेख के अनुसार पत्नियों की अदला-बदली की यह प्रथा मुम्बई के उच्च और सम्पन्न वर्गों के लोगों में आम हो चुकी है।
जन्नत उल बक़ीअ क्या है, क्यों होता है विरोध प्रदर्शन?
20वीं सदी की शुरुआत में, सऊदी सरकार ने जन्नतुल बाक़ी कि मकबरों को नष्ट कर दिया इस कब्रिस्तान में इस्लाम के कई महत्वपूर्ण शख्सियत, जैसे पैगंबर मोहम्मद के कुछ परिवार के सदस्य और साथियों की कब्रें हैं इस कब्रिस्तान को पुनर्निर्माण की मांग को लेकर धरना प्रदर्शन करते है।
जन्नतुल बाक़ी सऊदी अरब के मदीना में स्थित एक ऐतिहासिक कब्रिस्तान है। इस कब्रिस्तान में इस्लाम के कई महत्वपूर्ण शख्सियत, जैसे पैगंबर मोहम्मद के कुछ परिवार के सदस्य और साथियों की कब्रें हैं।
इसे इस्लाम की धार्मिक महत्ता का स्थान माना जाता है और हर साल कई पर्यटक यहां जाते हैं।20वीं सदी की शुरुआत में, सऊदी सरकार ने जन्नत उल बाक़ी के कई मकबरों को नष्ट कर दिया,
जिसमें फातिमा ज़हरा (स) की भी कब्र शामिल थी। इस तोड-फोड का कई मुस्लिमों और इस्लाम प्रेमियों के कड़े विरोध का सामना सउदी सरकार को करना पडा है।
आज भी अहेले बैत (अ.स.) के चहाने वाले मुसलमान दुनियाभर मे सउदी सरकार से रौज़ा फातेमा ज़हेरा (अ.स.)के पुनर्निर्माण की मांग को लेकर धरना-प्रदर्शन,करते है।
जन्नतुल बकी मे दफ्न अहम शख्सियात
जन्नतुल बकीअ मदीना मुनव्वरा, सऊदी अरब में एक बहुत ही पवित्र कब्रिस्तान है इसे "बकीउल गरक़द" भी कहा जाता है यहाँ इस्लाम की कई अहम और मुक़द्दस शख्सियतें दफ्न हैं।
जन्नतुल बकीअ मदीना मुनव्वरा, सऊदी अरब में एक बहुत ही पवित्र कब्रिस्तान है इसे "बकीउल गरक़द" भी कहा जाता है यहाँ इस्लाम की कई अहम और मुक़द्दस शख्सियतें दफ्न हैं।
जिसमें से
- जनाबे फातेमा ज़हरा (स.अ.) 11 हिजरी
इमाम हसन अलैहिस्सलाम 50 हिजरी
इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम 94 हिजरी
इमाम मौहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम 114 या 116 हिजरी
इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम 148 हिजरी
जनाबे इब्राहिम इब्ने रसूले खुदा (स.अ.व.व)
जनाबे मौहम्मदे हनफया इब्ने इमाम अली (अ.स) 80- हिजरी
जनाबे फातेमा बिन्ते असद
जनाबे अक़ील इब्ने अबुतालिब
10. जनाबे अब्दुल्लाह इब्ने जाफर इब्ने अबुतालिब 80 हिजरी
11. जनाबे इस्माईल इब्ने इमाम सादिक़
12. जनाबे अब्बास इब्ने अब्दुल मुत्तलिब 33 हिजरी
13. जनाबे सफीया बिन्ते अब्दुल मुत्तलिब
14. जनाबे आतेका बिन्ते अब्दुल मुत्तलिब
रसूले अकरम की बीवीया
15. जनाबे जैनब बिन्ते खज़ीमा 4 हिजरी
16. जनाबे रिहाना बिन्ते ज़ुबैर 8 हिजरी
17. जनाबे मारीया क़िब्तिया 16 हिजरी
18. जनाबे ज़ैनब बिन्ते जहश 20 हिजरी
19. उम्मे हबीबा बिन्ते अबुसुफयान 42 हिजरी
20. हफ्सा बिन्ते उमर 50 हिजरी
21. आयशा बिन्ते अबुबकर 57 या 58 हिजरी
22. जनाबे सफीया बिन्ते हई बिन अखतब 50 हिजरी
23. जनाबे जुवेरीया बिन्ते हारिस 50 या 56 हिजरी
24. जनाबे उम्मे सलमा 61 हिजरी
तारीखी किताबो मे मिलता है कि इन हज़रात के अलावा भी दूसरे सहाबा, ताबेईन और आले मौहम्मद की कब्रे भी जन्नतुल बक़ी मे मौजूद है।
लेकिन अफसोस के साथ कहना पढ़ता है कि आले सऊद की जो अस्ल मे खैबर के यहूदीयो की एक शाख़ है' ने 8 शव्वाल 1343 मुताबिक़ मई 1925 को इस अज़ीम क़ब्रिस्तान मे बनी हुई तमाम गुम्बदो और रोज़ो को शहीद कर दिया।
आगा हकीम इलाही का गर्मजोशी से स्वागत
हैदराबाद स्थित ईरान के महावाणिज्य दूतावास में आयोजित एक समारोह में भारत में इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता के पूर्व प्रतिनिधि आगा मेहदी महदवीपुर की 15 वर्षों की निस्वार्थ सेवा को श्रद्धांजलि दी गई, जबकि नए प्रतिनिधि आगा हकीम इलाही का गर्मजोशी से स्वागत किया गया तथा उनके लिए प्रार्थनाएं और शुभकामनाएं व्यक्त की गईं।
हैदराबाद स्थित इस्लामी गणतंत्र ईरान के महावाणिज्य दूतावास में एक गरिमापूर्ण और उत्साहपूर्ण समारोह आयोजित किया गया, जिसमें भारत में सर्वोच्च नेता के प्रतिनिधि के रूप में हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन आगा मेहदी महदवीपुर की 15 वर्षों की ईमानदार और प्रभावी सेवाओं को श्रद्धांजलि दी गई। इस अवसर पर, सर्वोच्च नेता सैय्यद अली खामेनेई के नए प्रतिनिधि, हुज्जतुल-इस्लाम वल-मुस्लिमीन आगा अब्दुल मजीद हकीम इलाही का गर्मजोशी से स्वागत किया गया और उनके लिए प्रार्थना और शुभकामनाएं व्यक्त की गईं।
समारोह की शुरुआत पवित्र कुरान के पाठ से हुई, जिसका नेतृत्व कारी डॉ. मुहम्मद नसरुद्दीन मिनशावी ने किया। ईरानी वाणिज्य दूतावास की जनसंपर्क अधिकारी सुश्री सईदा फातिमा नकवी ने अतिथियों का स्वागत किया और कार्यक्रम के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला।
इस्लामी गणतंत्र ईरान के महावाणिज्यदूत श्री मेहदी शाहरुखी ने अपने संबोधन में कहा कि आगा महदवीपुर की सेवाएं धार्मिक सीमाओं तक सीमित नहीं थीं, बल्कि उन्होंने ईरान और भारत के बीच सांस्कृतिक, सभ्यतागत और सामाजिक संबंधों को भी मजबूत किया। उन्होंने कहा कि आगा साहब की ईमानदारी और सक्रियता दोनों देशों के बीच निकटता का स्रोत बन गई।
मज्मा उलमा व खुत्बा के अध्यक्ष हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मौलाना डॉ. निसार हुसैन हैदर आगा ने आगा महदवीपुर की सेवाओं की प्रशंसा करते हुए उन्हें अद्वितीय बताया और कहा कि उनके नेतृत्व में भारतीय शियाो को मजबूत मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। उन्होंने नए प्रतिनिधि आगा हकीम इलाही का भी स्वागत किया तथा उनके लिए प्रार्थना की कि वे सर्वोच्च नेता के मिशन को सफलतापूर्वक आगे बढ़ाएं।
मजमा उलमा व खुत्बा हैदराबाद के संस्थापक और संरक्षक, हुज्जतुल इस्लाम मौलाना अली हैदर फरिश्ता साहिब किबला ने कहा कि आगा महदवीपुर ने विद्वानों, जाकिरों और युवाओं को मार्गदर्शन प्रदान किया और उनकी सर्वांगीण सेवाओं को हमेशा याद रखा जाएगा। उन्होंने नए प्रतिनिधि का स्वागत किया और कहा कि इससे निरंतरता और मार्गदर्शन मिलेगा।
दक्षिण भारत शिया उलेमा काउंसिल के अध्यक्ष मौलाना तकी आगा आबिदी ने भी अपने संबोधन में आगा महदवीपुर की करुणा, विद्वता और संगठनात्मक रणनीति की सराहना की और आशा व्यक्त की कि नए प्रतिनिधि इन्हीं सिद्धांतों का पालन करना जारी रखेंगे।
इस अवसर पर, प्रसिद्ध राजनीतिक नेता और एआईएमआईएम एमएलसी श्री मिर्जा रियाज-उल-हसन आफ़दी भी समारोह में शामिल हुए और कहा कि आगा महदवीपुर ने न केवल धार्मिक और धर्मनिरपेक्ष सेवाएं कीं, बल्कि विभिन्न विचारधाराओं के बीच एकता और सद्भाव के माहौल को भी बढ़ावा दिया। उन्होंने आगा हकीम इलाही को बधाई दी और उनकी सफलता के लिए प्रार्थना की।
उनके अलावा हैदराबाद की जानी-मानी हस्ती सज्जादा नशीन श्री शब्बीर नक्शबंदी ने भी आगा मेहदीपुर की खूब तारीफ की और आगा हकीम इलाही से अच्छी उम्मीदें जताईं। उन्होंने सर्वोच्च नेता की बुद्धिमत्ता और निर्भीकता के बारे में भी बात की और दोनों प्रतिनिधियों को अपनी खानकाह का विशेष आशीर्वाद प्रदान किया।
इसके अलावा, आंध्र प्रदेश शिया उलेमा बोर्ड के अध्यक्ष और सरकारी काजी मौलाना सैयद अब्बास बाकरी ने अपने राज्य के सभी विद्वानों और विश्वासियों का प्रतिनिधित्व करते हुए, आका महदवीपुर की पंद्रह वर्षों की सेवाओं की सराहना की और कहा कि भारत के सभी विद्वान और विश्वासी उनके प्यार, करुणा और उनके उदार चरित्र को कभी नहीं भूल सकते हैं और उन्होंने भारत भर में अपनी मिशनरी यात्राओं से सभी का दिल जीत लिया। इसके बाद मौलाना ने नए प्रतिनिधि आका हकीम इलाही का स्वागत किया और कहा कि हम वादा करते हैं कि हम हमेशा इसी तरह आपका साथ देंगे।
उनके बाद अल-बलाग संगठन अलीपुर, कर्नाटक का प्रतिनिधित्व करते हुए बैंगलोर से आए मौलाना सैयद कायम अब्बास आबिदी ने आगा मेहदी महदवीपुर की निस्वार्थ सेवाओं की सराहना की और नए प्रतिनिधि आगा हकीम इलाही का स्वागत किया और उन्हें अलीपुर आमंत्रित किया और कहा कि जब सुप्रीम लीडर भारत आए थे, तो वे अलीपुर आए थे।
समारोह में शहर और विदेश से बड़ी संख्या में गणमान्य व्यक्ति, विद्वान, धार्मिक विद्वान, बुद्धिजीवी, मीडिया प्रतिनिधि और आम लोग शामिल हुए। प्रतिभागियों ने आगा महदवीपुर के प्रति अपनी कृतज्ञता और समर्पण व्यक्त किया तथा नए प्रतिनिधि के लिए स्वागत और प्रार्थनाएं कीं। यह आयोजन मुस्लिम उम्माह की एकता, आध्यात्मिकता और आपसी एकजुटता का प्रकटीकरण बन गया और सभी प्रतिभागियों के दिलों में एक यादगार दिन के रूप में अंकित हो गया।
बक़ीअ के अपराधी नासेबी और ख़ारिजी हैं।
मौलाना ने कहा कि मदीना मुनव्वरा का प्रसिद्ध क़ब्रिस्तान जन्नतुल बक़ीअ जहां चार मासूम इमाम (अ.स.) और कुछ रिवायतों के मुताबिक हज़रत फातिमा ज़हरा स.अ.का पवित्र मज़ार मौजूद है आज से लगभग सौ साल पहले एक ऐसे गुमराह गिरोह के हाथों ढहा दिया गया जिसकी सोच इस्लाम के शुरुआती दौर के नासबी और ख़ारिजी तत्वों से मेल खाती है।
जन्नतुल बक़ीअ के विध्वंस के खिलाफ नवी मुंबई के बहिश्त-ए-ज़हरा (स.अ.) में आयोजित विरोध सभा को संबोधित करते हुए प्रसिद्ध ख़तीब हुज्जतुल इस्लाम मौलाना सैयद मोहम्मद ज़की हसन ने इस दर्दनाक घटना की कड़ी निंदा की है।
मौलाना ने कहा कि मदीना मुनव्वरा का प्रसिद्ध क़ब्रिस्तान जन्नतुल बक़ीअ, जहां चार मासूम इमाम (अ.स.) और कुछ रिवायतों के मुताबिक हज़रत फातिमा ज़हरा (स.अ.) का पवित्र मज़ार मौजूद है, आज से लगभग सौ साल पहले एक ऐसे गुमराह गिरोह के हाथों ढहा दिया गया, जिसकी सोच इस्लाम के शुरुआती दौर के नासबी और ख़ारिजी तत्वों से मेल खाती है।
उन्होंने कहा कि जिस तरह इस्लाम के शुरुआती दौर में अहलेबैत (अ.स.) को क़ैद और शहादत का निशाना बनाया गया, उसी सोच के लोग आज के दौर में इन इलाही प्रतिनिधियों के मज़ारों को मिटाकर अहलेबैत (अ.स.) के ज़िक्र को खत्म करने की नासमझ कोशिशों में लगे हुए हैं।
ऐसे लोग मुसलमानों के बीच 'शिर्क' और 'बिदअत' के नारों की आड़ में इस्लाम के बुनियादी अकीदे को कमज़ोर करके उम्मत के दिमाग में शक और भ्रम पैदा कर रहे हैं।
मौलाना ने ज़ोर देकर कहा कि यह गिरोह सिर्फ अहलेबैत (अ.स.) से दूरी का ही कारण नहीं बन रहा है, बल्कि तौहीद और कुरआन से भी मुसलमानों को दूर करने की नाकाम कोशिश में जुटा हुआ है।
उन्होंने स्पष्ट किया कि इस्लाम के शुरुआती दौर में इस खारिजी सोच को शाम की ग़ासिब हुकूमत का समर्थन हासिल था और आज इसी गुमराह टोली को सऊदी हुकूमत की सरपरस्ती हासिल है, जो इस अपराध में बराबर की शरीक है।
अंत में मौलाना सैयद ज़की हसन ने जन्नतुल बक़ीअ की पुनर्निर्माण की आवाज़ उठाने वाले सच्चे मुसलमानों को क़ैद करने और उन पर ज़ुल्म व सितम ढाने की कड़ी निंदा की हैं।
जुहूर का मसला सिर्फ शियाओं तक ही सीमित नहीं है
मदरसा इल्मिया फातेमीया महल्लात की उस्ताद ने कहा, ज़ुहूर का मसला सिर्फ शियाओं से ही संबंधित नहीं है बल्कि सभी मुसलमान, अहले सुन्नत समेत यहां तक कि कुछ दूसरे धर्मों के लोग भी एक मुक्तिदाता के ज़ुहूर पर ईमान रखते हैं।
आराक से प्रतिनिधि की रिपोर्ट के अनुसार, मदरसा इल्मिया फातेमीया (स.ल.) महल्लात के सांस्कृतिक विभाग की ओर से एक आम अख़लाक़ी क्लास का आयोजन किया गया जिसमें इस मदरसे की उस्ताद मोहतरमा ताहिरा लतीफ़ी ने ख़िताब किया।
रिपोर्ट के मुताबिक इस सभा में मोहतरमा ताहिरा लतीफ़ी ने हज़रत इमाम हुज्जत अ.स. के ज़माना-ए-जुहूर की खूबियों और उस दौर की महानता और वैभव को लोगों के सामने बयान किया।
उन्होंने कहा,उस दौर में लोगों की सिर्फ एक हसरत (आकांक्षा) रह जाएगी और वह यह होगी कि काश उनके मरहूम (स्वर्गीय) लोग भी ज़िंदा होते ताकि वे भी उस दौर की नेमतों (बरकतों) और व्यापक सुख-सुविधाओं का स्वाद चख सकते।
मोहतरमा लतीफ़ी ने जुहूर के अकीदे को इस्लाम का एक मूल सिद्धांत बताते हुए कहा, जुहूर का मसला सिर्फ शियाओं तक सीमित नहीं है बल्कि सभी मुसलमान अहले सुन्नत समेत यहां तक कि कुछ अन्य धर्मों के लोग भी एक मुंज़ी के ज़ुहूर पर ईमान रखते हैं।
हालांकि, जो चीज़ शिया मक़तब को दूसरे गुटों से अलग और विशेष बनाती है, वह "रजअत" (पुनः लौटना) का अकीदा है।
उन्होंने आगे कहा,रजअत" का मतलब यह है कि कुछ मोमिन (सच्चे ईमान वाले) और काफ़िर (इन्कार करने वाले) इमाम मेंहदी (अ.ज.) के ज़ुहूर के बाद दोबारा इस दुनिया में लौटेंगे। यह एक विशेष शिया अकीदा (विश्वास) माना जाता है।
क्या जन्नतुल बक़ी सिर्फ एक कब्रिस्तान है या एक सम्पूर्ण इतिहास है?
मौलाना ग़ाफ़िर रिज़वी ने कहा: क्या यह मुसलमानों के लिए आत्मचिंतन का क्षण नहीं है कि उनके पैगम्बर की इतनी भव्य मज़ार बनाई गई है, और इस मज़ार के ठीक सामने पैगम्बर के परिवार की कब्रों पर छत तक नहीं है! इसकी चिंता करना हर मुसलमान का कर्तव्य होना चाहिए।
जन्नतुल बकी यानी 8 शव्वाल के विनाश के दिन के गमगीन माहौल का जिक्र करते हुए हुज्जतुल इस्लाम मौलाना सय्यद ग़ाफिर रिज़वी साहब क़िबला फ़लक छौलसी ने कहा: जब भी कल्पना का पक्षी मदीना के आसमान में उड़ता है, तो एक बार वह लाल सागर के गुंबद को देखकर मुस्कुराता है, अगले ही पल उसकी आँखें उस दर्दनाक दृश्य से भर जाती हैं जहाँ चार मासूम इमामों के साथ एक मासूम महिला भी दफन है, लेकिन इन व्यक्तियों की कब्रों पर एक शामियाना भी नहीं है, हालाँकि ये सभी कब्रें गुंबद ख़ज़रा के निवासियों के नेक वंशजों की हैं!
मौलाना ग़ाफ़िर रिज़वी ने अपनी चर्चा जारी रखते हुए कहा: क्या यह मुसलमानों के लिए चिंतन का क्षण नहीं है कि उनके पैगम्बर की इतनी भव्य मज़ार बनाई गई है, और इस मज़ार के ठीक सामने पैगम्बर के परिवार की कब्रों पर छत तक नहीं है! इसकी चिंता करना हर मुसलमान का कर्तव्य होना चाहिए।
मौलाना रिजवी ने कहा: जन्नतुल बक़ी सिर्फ एक कब्रिस्तान नहीं है, बल्कि एक पूरा इतिहास है जो दुनिया के सामने मुसलमानों की उदासीनता और पैगंबर के परिवार पर अत्याचार को पेश करता है; जब अन्य राष्ट्रों और जातियों के लोग यह दृश्य देखते हैं तो उनकी नजरों में मुसलमानों का महत्व कम होने लगता है।
मौलाना ग़ाफ़िर रिज़वी ने आगे कहा: क्या हम क़यामत के दिन पवित्र पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के सामने खड़े होने में सक्षम हैं? आखिर हमने उनके बच्चों के लिए क्या किया है जिससे हम उनका सामना कर सकें? क्या जन्नतुल बकी अपने ज़ुल्म का एलान नहीं कर रही? हमारे कानों पर से सत्ता के पर्दे कब हटेंगे ताकि हम जन्नतुल बकी की चीखें सुन सकें?
मौलाना ग़ाफ़िर ने अपने भाषण के अंतिम चरण में कहा: यदि हम चाहते हैं कि लोग हमें सच्चे मुसलमान के रूप में पहचानें और हम इस दुनिया और आख़िरत में प्रमुख बने रहें, तो हमें रसूल और रसूल के परिवार के प्रति संवेदनशील होना होगा।.
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जन्नत उल-बक़ीअ और इस्लामी दुनिया
अगर किसी राष्ट्र या लोगों के निशान मिट जाएं तो उन्हें मृत मान लिया जाता है। इस्लाम का दुश्मन इन अवशेषों को मिटाकर मुस्लिम उम्माह को मरा हुआ समझ रहा है, लेकिन यह उसकी भूल है। मुसलमान जिंदा हैं और कब्रिस्तान बनने तक चुप नहीं बैठेंगे।
21 अप्रैल 1925 (8 शव्वाल 1344 हिजरी) को सऊदी नरेश अब्दुलअजीज बिन सऊद के आदेश पर जन्नत उल-बकीअ की दरगाहो को ध्वस्त कर दिया गया। इस घटना से दुनिया भर के मुसलमानों में गहरी चिंता और दुख है, क्योंकि यह स्थान कई महत्वपूर्ण ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों का घर है।
जन्नत उल-बक़ीअ के विध्वंस के बाद, दुनिया भर के मुसलमानों ने विरोध प्रदर्शन किया, जिसका उद्देश्य इस स्थल की ऐतिहासिक स्थिति और धार्मिक महत्व को उजागर करना था। प्रदर्शनकारियों ने "जन्नत उल बक़ीअ की बहाली" की मांग की। इस घटना से न केवल ऐतिहासिक धरोहर को नुकसान पहुंचा है, बल्कि मुसलमानों की भावनाओं को भी ठेस पहुंची है। मुसलमान आज भी इस घटना को याद करते हैं। दुनिया भर के मुसलमान इस घटना की निंदा करते हैं और हर साल 8 शव्वाल को इसके पुनर्निर्माण का आह्वान करते हैं।
यह स्पष्ट है कि जन्नत उल-बक़ीअ के विनाश ने मुस्लिम जगत की भावनाओं और दिलों को ठेस पहुंचाई है, क्योंकि यह वह कब्रिस्तान है जहां लगभग 10,000 सहाबा दफन हैं, जिनका सभी मुसलमानों के दिलों में बहुत सम्मान है और यह सम्मान कयामत के दिन तक बना रहेगा। यह उम्मे क़ैस बिन्त मुहसिन के कथन से समर्थित है, जिन्होंने कहा: "एक बार मैं पैगंबर (स) के साथ बक़ीअ पहुंची, और आप (स) ने फ़रमाया: इस कब्रिस्तान से सत्तर हज़ार लोग इकट्ठा होंगे जो बिना किसी जवाबदेही के स्वर्ग में प्रवेश करेंगे, और उनके चेहरे चांद की तरह चमकेंगे" (सुनन इब्न माजा, खंड 1, पृष्ठ 493)
इसलिए जन्नत उल बक़ीअ में ऐसे पुण्यात्मा और महान व्यक्तित्व दफन हैं जिनकी महानता और गरिमा को सभी मुसलमान सर्वसम्मति से स्वीकार करते हैं। इस कब्रिस्तान में पैगंबर मुहम्मद (स), उनके परिवार, उम्मेहात उल मोमेनीन, अज़ीम सहाबा , ताबेईन और अन्य महत्वपूर्ण व्यक्ति जैसे उसमान इब्न अफ्फान और मालिकी विचारधारा के इमाम अबू अब्दुल्ला मलिक इब्न अनस (र) के पूर्वज दफन हैं। यहां पवित्र पैगंबर (स) की बेटी हज़रत फातिमा (स), इमाम हसन, इमाम ज़ैनुल आबेदीन, इमाम मुहम्मद बाकिर, इमाम सादिक और पवित्र पैगंबर (स) की पत्नियां जैसे आयशा बिन्त अबी बक्र, उम्मे सलमा, ज़ैनब बिन्त खुज़ैमा और जुवैरिया बिन्त हारिस की कब्रें भी हैं। इसके अलावा, यहाँ अन्य महत्वपूर्ण हस्तियों की कब्रें भी हैं, जैसे हज़रत इब्राहीम (अ), हज़रत अली (अ) की माँ फातिमा बिन्त असद, उनकी पत्नी उम्म उल-बनीन, हलीमा सादिया, हज़रत अतीका बिन्त अब्दुल मुत्तलिब, अब्दुल्लाह बिन जाफ़र और मुआज़ बिन जबल (र)।
यह खेद की बात है कि इस्लामी शिक्षाओं के नाम पर जन्नत उल बक़ीअ को ध्वस्त कर दिया गया। इस्लामी दुनिया इन इस्लामी शिक्षाओं से अच्छी तरह परिचित है और इस गैर-इस्लामी कृत्य को कभी बर्दाश्त नहीं कर सकती। इसलिए जब तक जन्नत उल बक़ीअ बहाल नहीं हो जाती, मुसलमानों के दिल घायल रहेंगे और वे विरोध प्रदर्शन करते रहेंगे।
अगर आज इस्लाम हम तक पहुंचा है तो वह जन्नत उल बक़ीअ में विश्राम करने वाली हस्तियों की बदौलत पहुंचा है। यदि इन व्यक्तियों ने इस्लाम की शिक्षाओं को हम तक पहुंचाने का प्रयास न किया होता तो इस्लाम इतिहास की गहराइयों में लुप्त हो गया होता और हम मुसलमान नहीं होते। इसलिए मुसलमान अपने उपकारकर्ताओं की मजारों पर छाया के लिए विरोध प्रदर्शन जारी रखेंगे। याद रखें, केवल वे ही क़ौम जीवित रहती हैं जो अपनी राष्ट्रीय और धार्मिक विरासत का सम्मान और संरक्षण करती हैं। यदि किसी क़ौम या लोगों के निशान मिट जाएं तो उन्हें मृत मान लिया जाता है। इस्लाम का दुश्मन इन अवशेषों को मिटाकर मुस्लिम उम्माह को मरा हुआ समझ रहा है, लेकिन यह उसकी भूल है। मुसलमान जिंदा हैं और कब्रिस्तान बनने तक चुप नहीं बैठेंगे। हम इस अन्याय के खिलाफ अपनी आवाज उठाते रहेंगे और सऊदी अरब की वर्तमान सरकार से कब्रिस्तान का पुनर्निर्माण कराने की मांग करेंगे। अल्लाह तआला शीघ्र ही इन महान पुरुषों की कब्रों और दरगाहो का पुनर्निर्माण करें, तथा हमें सत्य का साथ देने की क्षमता प्रदान करें, आमीन। वलहम्दो लिल्लाहे रब्बिल आलमीन।
लेखक: मौलाना सय्यद रज़ी हैदर फंदेड़वी
बक़ीअ का निर्माण और शिया-सुन्नी एकता
बक़ीअ का निर्माण न केवल एक ऐतिहासिक स्थल का कब्रिस्तान नही है, बल्कि यह मुस्लिम उम्माह के लिए सम्मान और प्रतिष्ठा के साथ-साथ एकता, भाईचारे और आपसी सम्मान का भी स्रोत है। यदि शिया और सुन्नी मुसलमान इस साझा लक्ष्य के लिए एकजुट हो जाएं तो इससे न केवल बाकी का पुनर्निर्माण होगा बल्कि उनके बीच गलतफहमियों को दूर करने और एक मजबूत और एकजुट उम्माह बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका होगी।
बक़ीअ मदीना में स्थित एक बड़ा और प्राचीन मुस्लिम कब्रिस्तान है। यहां, पवित्र पैगंबर (स) के परिवार, विशेष रूप से पवित्र पैगंबर (स) की इकलौती बेटी, हज़रत फातिमा ज़हरा (स), और इमाम हसन, इमाम ज़ैनुल आबेदीन, इमाम मुहम्मद बाकिर और इमाम जाफ़र सादिक (अ) की कब्रों पर शानदार मकबरे बनाए गए थे। इसके अतिरिक्त, सहाबीयो और अन्य प्रतिष्ठित व्यक्तियों को भी यहीं दफनाया गया है। सदियों से यह स्थान मुसलमानों के लिए ज़ियारत और श्रद्धा का केंद्र रहा है। हालाँकि, बीसवीं सदी की शुरुआत में, आले सऊद के अभिशाप से इसे नष्ट कर दिया गया और लूट लिया गया, और इस महान पवित्र स्थान को अपवित्र कर दिया गया। इस घटना से सम्पूर्ण मुस्लिम समुदाय को गहरा सदमा लगा। शिया और सुन्नी दोनों संप्रदायों के मुसलमानों ने पूरे विश्व में बड़े दुःख और गुस्से के साथ विरोध प्रदर्शन किया।
बक़ीअ का विध्वंस एक दुखद घटना है जिसका दर्द और पीड़ा आज भी मुसलमानों के दिलों में ताज़ा है। इस घटना के बाद से, शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच इस पवित्र स्थल के पुनर्निर्माण और इसके पूर्व गौरव को बहाल करने की वैध और अनिवार्य मांग तीव्र हो गई है। "बक़ीअ का पुनर्निर्माण केवल एक कब्रिस्तान के पुनर्निर्माण की मांग नहीं है, बल्कि मुस्लिम उम्माह की साझी विरासत को बहाल करने और सभी मुसलमानों की भावनाओं का सम्मान करने का एक महत्वपूर्ण संदेश है।" इसलिए विश्व की न्यायप्रिय सरकारों को इसे बनाने के लिए सऊद हाउस पर कड़ा दबाव डालना चाहिए।
अब बक़ीअ के निर्माण की मांग शिया और सुन्नी मुसलमानों की पवित्र और न्यायपूर्ण मांग है, जिस पर दोनों विचारधाराएं सहमत हैं। इस साझा लक्ष्य की दिशा में मिलकर काम करने से एकता और एकजुटता का माहौल मजबूत होगा तथा एक-दूसरे के बीच अधिक निकटता और आत्मीयता का अवसर मिलेगा।
इस संबंध में शिया और सुन्नी विद्वानों और बुद्धिजीवियों को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए। उन्हें अपने शांतिपूर्ण विरोध उपदेशों, लेखों और भाषणों के माध्यम से बकीअ के निर्माण के महत्व पर प्रकाश डालना चाहिए और मुसलमानों को एकजुट होकर इस साझा लक्ष्य के लिए प्रयास करना चाहिए। उन्हें पारस्परिक सम्मान और सहिष्णुता को बढ़ावा देना चाहिए तथा सांप्रदायिकता और घृणा से बचना चाहिए।
अंतर्राष्ट्रीय इस्लामी संगठनों को भी सामूहिक रूप से मांग करनी चाहिए कि वे इस मामले में ईमानदारी से भूमिका निभाएं। उन्हें बाक़ी के पुनर्निर्माण के लिए प्रयास करने तथा यह सुनिश्चित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए कि सभी मुसलमानों के धार्मिक स्थलों का सम्मान किया जाए।
बक़ीअ का निर्माण न केवल एक ऐतिहासिक स्थल का जीर्णोद्धार है, बल्कि यह मुस्लिम उम्माह के लिए सम्मान और प्रतिष्ठा के साथ-साथ एकता, भाईचारे और आपसी सम्मान का भी स्रोत है। यदि शिया और सुन्नी मुसलमान इस साझा लक्ष्य के लिए एकजुट हो जाएं तो इससे न केवल बाकी का पुनर्निर्माण होगा बल्कि उनके बीच गलतफहमियों को दूर करने और एक मजबूत और एकजुट उम्माह बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका होगी।
आइये हम सब मिलकर प्रार्थना करें कि अल्लाह सऊद के घराने के गुलाम अमेरिका के कलंकित इस्लाम को न्याय के कटघरे में लाये तथा हमें बाकी के निर्माण का आशीर्वाद तथा शिया-सुन्नी एकता को और मजबूत करने की क्षमता प्रदान करे।
लेखक: मौलाना सफ़दर हुसैन ज़ैदी