رضوی

رضوی

जनाब फ़ातिमा ज़हरा (स) ऐसी ही एक शख़्सियत हैं। उनकी महानता कोई ऐलान नहीं, बल्कि मौजूदगी है; यह सबूत नहीं, एहसास है; यह कोई नारा नहीं, बल्कि एक खामोश दलील है। उनके बारे में सोचते ही दिल खुश हो जाता है, आँखें झुक जाती हैं और ज़बान अपने आप सावधान हो जाती है। उनकी जगह पहुँचकर इंसान सीखता है कि असली ऊँचाइयाँ क्या होती हैं और असली विनम्रता किसे कहते हैं।

लेखक: मौलाना सैयद करामत हुसैन शऊर जाफ़री

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी|

कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनकी महानता तर्क की दलीलों का इंतज़ार नहीं करती, वह दलील से पहले दिल में उतरती है। इंसान बस सोच रहा होता है कि यह महानता क्या है, यह कहाँ से शुरू होती है और कहाँ खत्म होती है—तभी अचानक दिल झुकने लगता है। एक अनजानी हालत रूह को घेर लेती है, इज़्ज़त एक कंपन बनकर वजूद में समा जाती है, और जुनून ऐसी तरफ़ बढ़ता है जहाँ शब्द कम और एहसास ज़्यादा हो जाते हैं। इंसान खुद को सजदे की आखिरी हद पर खड़ा पाता है, लेकिन उसी पल अंदर से एक आवाज़ उठती है और उसके कदम रोक देती है—यह सजदा नहीं, यह अदब है; यह गुलामी नहीं, यह प्यार है।

यह वह पल है जहाँ अक्ल चुप हो जाती है और दिल की गवाही सुनने लगती है, जहाँ प्यार अपनी हद तक पहुँच जाता है लेकिन उससे आगे नहीं बढ़ता, जहाँ भक्ति ही हद पार करने के बजाय हद बन जाती है। यह वह जगह है जहाँ इंसान को पहली बार समझ आता है कि कुछ महानताएँ झुकने के लिए नहीं, बल्कि हमें झुकना सिखाने के लिए होती हैं।

हज़रत फातिमा ज़हरा (स) ऐसी ही एक इंसान हैं। उनकी महानता कोई ऐलान नहीं, बल्कि एक मौजूदगी है; कोई सबूत नहीं, बल्कि एक एहसास है; कोई नारा नहीं, बल्कि एक खामोश दलील है। उनका ख्याल ही दिल को मोह लेता है, आँखें नीची हो जाती हैं, और ज़बान अपने आप सावधान हो जाती है। उनके मुकाम पर पहुँचकर इंसान सीखता है कि सच्ची ऊँचाई क्या है और सच्ची विनम्रता क्या है।

यह महानता इंसान को न सिर्फ़ अपनी ओर खींचती है बल्कि उसे अपनी गिरफ़्त में भी ले लेती है। एक दिशा दिल को अपनी ओर बुलाती है, और दूसरी दिशा उसे एक अल्लाह की ओर मोड़ देती है। यही वह दिमागी और रूहानी खूबसूरती है जहाँ प्यार भटकता नहीं है, और इबादत का जुनून उससे टकराकर साहित्य में मिल जाता है। फातिमा ज़हरा (स) का मक़ाम इंसान को यह सच समझाता है कि जब प्यार पवित्र हो जाता है, तो वह खुद इंसान को उसकी हदों का एहसास कराता है।

और शायद यही महानता की सबसे बड़ी पहचान है—कि यह इंसान को उसके रब के करीब जाने का रास्ता दिखाती है, बिना खुद इस रास्ते में रुकावट बने।

उनकी महानता सिर्फ़ इस रिश्ते का नाम नहीं है कि वह अल्लाह के रसूल (स) की बेटी हैं, बल्कि यह इस बात का इज़हार है कि उनका होना ही सच्चाई के संविधान का एक रूप है। वह सच्चाई के सिस्टम में इस तरह शामिल हैं कि उनसे प्यार तभी सही है जब वह सच्चाई के दायरे में हो। उनकी महानता दिल को बेचैन भी करती है और हमें सावधान रहना भी सिखाती है।

उनकी पवित्रता इस लेवल की है कि अगर धरती पर कोई भी कण सजदे के लायक माना जा सकता है, तो वह उनके पैरों की धूल होगी—लेकिन हज़रत ज़हरा (स) की जीवनी खुद कहती है कि सजदा सिर्फ़ अल्लाह के लिए है। इस तरह, उनका सार इंसान को प्यार की हद तक ले जाता है और उसे शरिया की सीमा पर रोक देता है। यह उनकी महानता का सबसे नाज़ुक और सबसे चमकदार पहलू है।

उनकी इज़्ज़त यह थी कि अल्लाह के रसूल (स) उनके सम्मान में खड़े रहते थे, और उनकी महानता यह थी कि वह खुद हर पल रसूल के हुक्म की रखवाली करती थीं। उनकी ज़िंदगी इस बात का सबूत है कि सबसे प्यारा इंसान भी भगवान के नियम से अलग नहीं है, बल्कि उसकी सबसे खूबसूरत तस्वीर है। उनकी शान में ऐसा कुछ भी नहीं है जो एकेश्वरवाद के बैलेंस को बिगाड़ सके—बल्कि, उनका होना ही एकेश्वरवाद की हिफ़ाज़त बन जाता है।

बेटी के तौर पर, वह ऐसी थीं कि बिना शब्दों के अपने पिता का दर्द और थकान समझ जाती थीं, और उनके माथे पर उठने वाले ख्यालों को वह चुपचाप दिलासा दे देती थीं। जब वह पत्नी की हैसियत में पहुँचीं, तो वह सफ़र में ऐसी साथी बन गईं कि उनके पति का इंसाफ़, उनका मकसद और उनका अकेलापन एक जैसे करीब थे। और माँ के तौर पर, वह ऐसी ट्रेनिंग ग्राउंड बन गईं कि उनकी गोद से निकले किरदारों ने कयामत के दिन तक धर्म को ज़िंदगी दी।

इस महानता को न तो किसी इंट्रोडक्शन की ज़रूरत है और न ही किसी नारे की; यह अपने होने से ही खुद बोलती है, खुद को साबित करती है—और चुपचाप इतिहास में सबूत के तौर पर बनी रहती है।

उनका शिकार होना भी इबादत की तरह ही खामोश और इज्ज़तदार है। वे चिल्लाकर सच नहीं मांगते, बल्कि ऐसी गवाही देते हैं कि झूठ बोलने से पहले ही कांपने लगते हैं। उनका सब्र उम्माह के लिए एक सबक बन जाता है कि खामोशी भी सच रहते हुए एक विरोध हो सकती है—अगर इज्ज़त के साथ हो।

जब कोई इंसान ऐसी महानता के सामने सजदा करना चाहता है, तो यह महानता उसे याद दिलाती है कि सजदा सिर्फ़ खुदा के सामने होता है। यह वह जगह है जहाँ प्यार हद में रहता है और भक्ति भटकती नहीं है। यह वह पैमाना है जो दिखाता है कि अहले बैत (अ) के लिए सच्ची मोहब्बत, खुदा की इताअत और रसूल (स) को मानने से अलग नहीं किया जा सकता।

इस पवित्र हस्ती पर शांति हो जिसकी महानता दिल को सजदा करना सिखाती है, लेकिन साथ ही हमें यह भी बताती है कि सजदा सिर्फ़ कायनात के रब के लिए होता है।

हज़रत फातिमा ज़हरा (स) वह पैमाना हैं; जिसके बिना प्यार अपना रास्ता खो देता है और महानता अपनी हद से आगे निकल जाती है।

इमाम रूहुल्लाह ख़ुमैनी बीसवीं सदी की उन महान हस्तियों में से हैं जिनका प्रभाव केवल ईरान तक सीमित नहीं रहा बल्कि पूरी दुनिया की राजनैतिक और आध्यात्मिक सोच पर गहरा असर पड़ा। वे एक धार्मिक विद्वान, क्रांतिकारी नेता, विचारक और विश्व-स्तरीय व्यक्तित्व थे जिन्होंने इस्लामी सिद्धांतों को आधुनिक राजनीति के साथ जोड़कर एक नए दौर की नींव रखी।

इमाम रूहुल्लाह ख़ुमैनी बीसवीं सदी की उन महान हस्तियों में से हैं जिनका प्रभाव केवल ईरान तक सीमित नहीं रहा बल्कि पूरी दुनिया की राजनैतिक और आध्यात्मिक सोच पर गहरा असर पड़ा। वे एक धार्मिक विद्वान, क्रांतिकारी नेता, विचारक और विश्व-स्तरीय व्यक्तित्व थे जिन्होंने इस्लामी सिद्धांतों को आधुनिक राजनीति के साथ जोड़कर एक नए दौर की नींव रखी।
उनकी जीवन-यात्रा इस बात का प्रमाण है कि किसी बड़े परिवर्तन की शुरुआत हमेशा एक सच्ची सोच, पवित्र उद्देश्य और जनता के अधिकारों की रक्षा से होती है। यह लेख इमाम ख़ुमैनी के जीवन-दर्शन, उनकी क्रांतिकारी सोच और उनके नेतृत्व के बुनियादी पहलुओं का अध्ययन है।

 जीवन-परिचय(Biographical Sketch)

इमाम ख़ुमैनी का जन्म 24 सितंबर 1902 को ईरान के शहर ख़ुमैन में हुआ।
उनके पिता आयतुल्लाह मुस्तफ़ा एक सम्मानित धार्मिक विद्वान थे।
कम उम्र में ही पिता का निधन हो गया, लेकिन माता और  (ख़ाला) मौसी ने परवरिश की उनमें दृढ़ता, साहस और धार्मिकता की बुनियाद मज़बूत कर दी।

शिक्षा
उन्होंने अपनी उच्च धार्मिक शिक्षा क़ुम में प्राप्त की जहाँ
फ़िक़्ह
उसूल
दर्शन
अखलाक़ 
से जुड़े महान उस्तादों से इस्तेफ़ादा किया۔
यहीं से उनकी फ़िक्री व्यक्तित्व की बुनियाद पड़ी  और वो एक गहरे  मज़हबी, और इंक़िलाबी के तौर पर उभरे

प्रारम्भिक सेवाएँ
जवानी से ही उन्होंने
समाज की नैतिक इसलाह
ज़ालिम शासन का विरोध
न्याय और इंसाफ की प्रचार
को अपना मक़सद बनाया۔
उनका स्वभाव नर्म लेकिन निर्णय दृढ़ होता था। यही विशेषता आगे चलकर उन्हें एक वैश्विक नेता बनाती है।
 

इमाम ख़ुमैनी का विचारात्मक निज़ाम (Ideological Framework)

इमाम ख़ुमैनी की फ़िकरी बुनियाद तीन उसूलों पर क़ायम थी:

(1) तौहीद और आध्यात्मिकता
वे मानते थे कि समाज की सच्ची कामयाबी तभी मुमकिन है जब व्यक्ति का राबेता ख़ुदा से मज़बूत हो۔
उनके अनुसार रूहानी जागरूकता राजनीतिक जागरूकता की मूल ताक़त है।

(2) इंसाफ और सामाजिक अदल

उनकी सोच का केंद्र कमज़ोरों की हिमायत, ज़ालिम का प्रतिरोध और समान अवसर था।
उन्होंने बार-बार कहा:
"जहाँ ज़ुल्म हो, वहाँ खामोशी सबसे बड़ा गुनाह है।"

(3) जनता का अधिकार और नेतृत्व की जिम्मेदारी

इमाम ख़ुमैनी के नज़रिए के मुताबिक़ 

हुकूमत अवाम की मालिक  नहीं बल्कि खादिम 

नेतृत्व का मेयर ताक़त नहीं बल्कि तक़्वा है

निर्णय सत्ता नहीं बल्कि राष्ट्र और नैतिकता के मुताबिक़ होने चाहिए


उनका सिद्धांत विलायत-ए-फ़क़ीह इन्हीं उसूलों की संगठित शक्ल है जिसमें धार्मिक न्याय, नैतिक ज़िम्मेदारी और जनता के अधिकार एक साथ महफूज़ रहते हैं।

इस्लामी क्रांति में इमाम ख़ुमैनी की भूमिका
बीसवीं सदी की सबसे बड़ी और अद्वितीय जन-क्रांति 1979 की इस्लामी क्रांति है, जो इमाम ख़ुमैनी की क़यादत में कामयाब हुई۔
यह क्रांति किसी राजनीतिक महत्वाकांक्षा का परिणाम नहीं थी, बल्कि यह
जनता के अधिकारों का दमन,
शाही शासन की तानाशाही,
सामाजिक असमानता,
और विदेशी शक्तियों के हस्तक्षेप के खिलाफ़  पूरी क़ौम का इज्तेमाई रद्दे अमल थी।
इमाम ख़ुमैनी ने ज़ालिम शासन को चुनौती दी,
जनता में आत्मविश्वास जगाया, और एक नैतिक, न्याय-आधारित शासन की राह दि खाई।
*क्रांति का प्रमुख संदेश*
इमाम ख़ुमैनी ने एक ऐसा निज़ाम क़ायम किया जिसके उसूल ये थे:

1. जनता की इच्छा सर्वोपरि है।
2. सत्ता का मक़सद सेवा है, शासन नहीं

3. धर्म और राजनीति अलग नहीं,  बल्कि एक-दूसरे को पूर्ण करते हैं।
4. विदेशी दखल और गुलामी से स्वतंत्रता
उनकी कयादत एक uztaad एक रहबर और एक संवेदनशील पिता की क़यादत  थी,  इस लिए इन्क़ेलाब सिर्फ राजनीतिक नहीं बल्कि  आध्यात्मिक इन्क़ेलाब भी था।

इमाम ख़ुमैनी का नेतृत्व-शैली (Leadership Style)
इमाम ख़ुमैनी का सब से नुमायां   वस्फ़ उनकी सादगी और दृढ़ता थी।
वह लाखों लोगों के नेता होने के बावजूद साधारण घर में  रहते, सदा लेबास पहनते और अपना वक़्त अध्ययन, इबादत  और  जनता की  रहनुमाई में गुज़ारते 
उनके नेतृत्व की खास बातें

(1) *निर्णय में दृढ़ता* दबाव के आगे कभी झुके नहीं।
(2) *जनता से सीधा संबंध* हर वर्ग ख़ुद को उनसे जुड़ा महसूस करता था।
(3) *अख्लाक़ी ताक़त* यानी  उनका व्यक्तित्व ही लोगों को प्रेरित कर देता था।
(4) दूरदर्शिता, विश्व राजनीति के गहरे तज्ज़िये रखते थे।
इमाम का नेतृत्व डर नहीं, बल्कि विश्वास, नैतिकता और साहस पर आधारित था।
इसीलिए उनके बाद भी उनका प्रभाव इस्लामी दुनिया में जिंदा है।

6. इमाम ख़ुमैनी की विरासत और वैश्विक प्रभाव

इमाम ख़ुमैनी की तालीमात और विचार आज भी पूरी दुनिया मैं एक मजबूत फिकरी तहरीr की शक्ल में  ज़िंदा है।
उनकी विरासत तीन बड़े क्षेत्रों में साफ दिखाई देती है:

(1) विचार और दर्शन
हुकूमत, इंसाफ, प्रतिरोध, और सामाजिक समानता के बारे में उनके नज़रियात  आज भी इल्मी बहस की बुनियाद हैं 
उन्होंने यह साबित किया कि मज़हब सिर्फ़ इबादत नहीं, बल्कि मूआशेरे की तामीर का मुकम्मल दस्तूर देता है 
(2) राजनीतिक प्रभाव
इस्लामी क्रांति ने दुनिया को दिखा दिया कि जनता जब एकजुट हो जाए और नेतृत्व ईमानदार हो
तो सबसे बड़ी ताक़तें भी बेबस हो जाती हैं।
दुनिया के कई देशों में आज भी इंसाफ की माँग, विदेशी दखल के खिलाफ आवाज़, और कमजोरों की हिमायत
इमाम ख़ुमैनी के नज़रियात प्रेरित है।
(3) सांस्कृतिक और आध्यात्मिक प्रभाव
उन्होंने इंसान के अंदर एक आध्यात्मिक जागृति पैदा की 
कि सिर्फ ज़िंदगी  का मक़सद दुनिया नहीं बल्कि अखलाक़, सत्य और ज़िम्मेदारी है।
उनकी यही सोच आज के युवाओं में एक नई जागरूकता पैदा कर रही है।

नतीजा
इमाम ख़ुमैनी सिर्फ एक धार्मिक नेता नहीं थे,
बल्कि वह एक वैचारिक क्रांतिकारी, दार्शनिक चिंतक और जनता के मार्गदर्शक थे।
उनकी सोच ने यह सिद्ध कर दिया कि न्याय हमेशा अत्याचार पर विजय पाता है,
जनता की शक्ति सबसे बड़ी शक्ति है,
और यदि नेतृत्व ईमानदार हो تو इतिहास की दिशा बदली जा सकती है।
इमाम ख़ुमैनी ने दुनिया को यह संदेश दिया कि
“क्रांति सबसे पहले इंसान के भीतर पैदा होती है, फिर समाज में फैलती है।”
उनकी विरासत आज भी नयी पीढ़ियों को शिक्षा देती है कि
सत्य का साथ देना, अत्याचार के सामने खड़े होना,
और इंसाफ़ के लिए संघर्ष करना सिर्फ राजनीतिक जिम्मेदारी नहीं, बल्कि इंसानी फ़र्ज़ भी है।

इसीलिए इमाम ख़ुमैनी का नाम इतिहास के पन्नों में 
सिर्फ एक नेता के तौर पर नहीं, बल्कि एक युग-निर्माता (Er Maker) के रूप में दर्ज है

 हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मोहम्मद तकी रहबर ने कहा,मुस्लिम महिलाओं को चाहिए कि वे अपने जीवन के सभी पहलुओं में मकतब ए फातेमी से सबक लें हज़रत फातेमा ज़हरा स.अ. ईमान, पवित्रता, ज्ञान और संघर्ष का सही नमूना हैं और मुस्लिम महिलाओं के लिए हर क्षेत्र में सबसे अच्छा आदर्श हैं।

इस्लामिक सलाहकार परिषद के प्रतिनिधि हुजतुल इस्लाम वलमुस्लिमीन मोहम्मद तकी रहबर ने हज़रत फातेमा ज़हरा स.अ.के उच्च दर्जे की ओर इशारा करते हुए कहा,सभी इस्लामी स्रोत, चाहे शिया हों या अहले सुन्नत, इस महान हस्ती के दर्जे और हैसियत पर एकमत हैं। प्रामाणिक अहले सुन्नत स्रोतों जैसे सहीह बुखारी और सहीह मुस्लिम में फज़ाइल-ए-फातेमा के शीर्षक से अलग अध्याय मौजूद हैं जो हज़रत ज़हरा (स.अ.) के उच्च दर्जे का सबूत हैं।

उन्होंने कहा, हज़रत फातेमा ज़हेरा स.अ. का दर्जा इतना ऊंचा है कि पैगंबर-ए-इस्लाम (स.अ.व.) ने फरमाया,

إنما فاطمه بضعة منی یؤذینی ما آذاها

यानी फातिमा मेरा एक टुकड़ा हैं, जो उन्हें तकलीफ देता है वह मुझे तकलीफ देता है। एक और रिवायत में है,फातिमतु ज़हरा सैय्यदतु निसाइ अहलिल जन्नह" यानी फातिमा जन्नत की औरतों की सरदार हैं। सहीह बुखारी के पांचवें खंड में हज़रत ज़हरा (स.अ.) की नमाज़ों के बाद और सहर (सुबह) के समय की दुआएं और मुनाजात भी दर्ज हैं जिन्हें बाद में एक अलग किताब के रूप में छापा गया है।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मोहम्मद तकी रहबर ने कहां,हज़रत ज़हेरा (स.अ.) की शख्सियत के वैश्विक प्रभाव की ओर इशारा करते हुए कहा, सऊदी अरब के एक बुद्धिजीवी डॉक्टर अब्दुह यमानी ने "इन्नहा फातिमतुज़ ज़हरा" नाम से किताब लिखी है जिसका फारसी अनुवाद उन्होंने खुद "फातिमतुज़ ज़हेरा" नाम से प्रकाशित किया।

उन्होंने इस किताब के दो चुने हुए वाक्यों का जिक्र करते हुए कहा, फातेमा का इतिहास बयान करना असल में इस्लामी उम्मत के बुनियादी इतिहास को पेश करना है; शुरुआत की पीड़ा और मुसीबतें, रिसालत के शुरुआती दौर की जद्दोजहद, कुरैश के ज़ुल्म के दौर में पैगंबर-ए-इस्लाम (स.अ.व.) के साथ डटे रहना, बाप के साथ हर कदम पर खड़ी वह बाअ़िज़्ज़त, बहादुर, आज्ञाकारी, अमानतदार और अदब वाली बेटी, जो मुस्तफा (स.अ.व.) की झलक थी और मदरसा-ए-नबूवत में तरबियत पाकर ऊंचे अखलाकी फज़ाइल के साथ फरिश्तों के हमदर्जा बन गई। इस्लामी उम्मत खासकर महिलाएं इस महान खातून-ए-इस्लाम से सबक लेती हैं।

इस्लामिक सलाहकार परिषद के प्रतिनिधि ने कहा,इस्लामी उम्मत खासकर मुस्लिम महिलाएं और बेटियां अपने जीवन के हर पहलू में हज़रत फातेमा ज़हरा (स.अ.) से सीख लें।

 चार जून सन 1989 ईसवी को दुनिया एक ऐसी महान हस्ती से बिछड़ हो गई जिसने अपने चरित्र, व्यवहार, हिम्मत, समझबूझ और अल्लाह पर पूरे यक़ीन के साथ दुनिया के सभी साम्राज्यवादियों ख़ास कर अत्याचारी व अपराधी अमरीकी सरकार का डटकर मुक़ाबला किए

चार जून सन 1989 ईसवी को दुनिया एक ऐसी महान हस्ती से बिछड़ हो गई जिसने अपने चरित्र, व्यवहार, हिम्मत, समझबूझ और अल्लाह पर पूरे यक़ीन के साथ दुनिया के सभी साम्राज्यवादियों ख़ास कर अत्याचारी व अपराधी अमरीकी सरकार का डटकर मुक़ाबला किया और इस्लामी प्रतिरोध का झंडा पूरी दुनिया पर फहराया।

इमाम खुमैनी की पाक और इलाही ख़ौफ़ से भरी ज़िंदगी इलाही रौशनी फ़ैलाने वाला आईना है और वह पैगम्बरे इस्लाम (स) की जीवनशैली से प्रभावित रहा है। इमाम खुमैनी ने पैगम्बरे इस्लाम (स) की ज़िंदगी के सभी आयामों को अपने लिये आदर्श बनाते हुये पश्चिमी और पूर्वी समाजों के कल्चर की गलत व अभद्र बातों को रद्द करके आध्यात्म एंव अल्लाह पर यक़ीन  की भावना समाजों में फैला दी और यही वह माहौल था जिसमें बहादुर और ऐसे जवानों का प्रशिक्षण हुआ जिन्होने इस्लाम का बोलबाला करने में अपने ज़िंदगी को क़ुरबान करने में भी हिचकिचाहट से काम नहीं लिया।

पैगम्बरे इस्लाम हजरत मोहम्मद (स) की पैगम्बरी के ऐलान अर्थात बेसत की तारीख़ भी जल्दी ही गुज़री है इसलिये हम इमाम खुमैनी के कैरेक्टर पर इस पहलू से रौशनी डालने की कोशिश करेंगे कि उन्होने इस युग में किस तरह पैगम्बरे इस्लाम (स) के चरित्र और व्यवहार को व्यवहारिक रूप में पेश किया।

पश्चिमी दुनिया में घरेलू कामकाज को महत्वहीन समझा जाता है। यही कारण है कि अनेक महिलायें अपने समय को घर के बाहर गुज़ारने में ज़्यादा रूचि रखती हैं। जबकि पैगम्बरे इस्लाम (स) के हवाले से बताया जाता है कि पैगम्बरे इस्लाम (स) ने एक दिन अपने पास मौजूद लोगों से पूछा कि वह कौन से क्षण हैं जब औरत अल्लाह से बहुत क़रीब होती है?

किसी ने भी कोई उचित जवाब नहीं दिया। जब हज़रत फ़ातिमा की बारी आई तो उन्होने कहा वह क्षण जब औरत अपने घर में रहकर अपने घरेलू कामों और संतान के प्रशिक्षण में व्यस्त होती है तो वह अल्लाह के बहुत ज़्यादा क़रीब होती है।  इमाम खुमैनी र.ह भी पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पदचिन्हों पर चलते हुये घर के माहौल में मां की भूमिका पर बहुत ज़्यादा ज़ोर देते थे।

कभी-कभी लोग इमाम ख़ुमैनी से कहते थे कि औरत क्यों घर में रहे तो वह जवाब देते थे कि घर के कामों को महत्वहीन न समझो, अगर कोई एक आदमी का प्रशिक्षण कर सके तो उसने समाज के लिये बहुत बड़ा काम किया है। मुहब्बत व प्यार औरत में बहुत ज़्यादा होता है और परिवार का माहौल और आधार प्यार पर ही होता है।

इमाम खुमैनी अपने अमल और व्यवहार में अपनी बीवी के बहुत अच्छे सहायक थे। इमाम खुमैनी की बीवी कहती हैः चूंकि बच्चे रात को बहुत रोते थे और सवेरे तक जागते रहते थे, इस बात के दृष्टिगत इमाम खुमैनी ने रात के समय को बांट दिया था। इस तरह से कि दो घंटे वह बच्चों को संभालते और मैं सोती थी और फिर दो घंटे वह सोते थे और मैं बच्चों को संभालती थी।

अच्छी व चरित्रवान संतान, कामयाब ज़िंदगी का प्रमाण होती है। माँ बाप के लिये जो बात बहुत ज़्यादा महत्व रखती है वह यह है कि उनका व्यवसाय और काम तथा ज़िंदगी की कठिनाइयां उनको इतना व्यस्त न कर दें कि वह अपनी संतान के पालन पोषण एवं प्रशिक्षण की अनदेखी करने लगें।

पैगम्बरे इस्लाम (स) की हदीस हैः अच्छी संतान, जन्नत के फूलों में से एक फूल है इसलिये ज़रूरी है कि माँ-बाप अपने बच्चों के विकास और कामयाबियों के लिये कोशिश करते रहें।

इमाम ख़ुमैनी बच्चों के प्रशिक्षण की ओर से बहुत ज़्यादा सावधान रहते थे। उन्होने अपनी एक बेटी से, जिन्होंने अपने बच्चे की शैतानियों की शिकायत की थी कहा थाः उसकी शैतानियों को सहन करके तुमको जो सवाब मिलता है उसको मैं अपनी सारी इबादतों के सवाब से बदलने को तैयार हूं। इस तरह इमाम खुमैनी बताना चाहते थे कि बच्चों की शैतानियों पर क्रोधित न हों, और संतान के पालने पोसने में मायें जो कठिनाइयां सहन करती हैं वह अल्लाह की निगाह में भी बहुत महत्वपूर्ण हैं और परिवार व समाज के लिये भी इनका महत्व बहुत ज़्यादा है।

इमाम खुमैनी र.ह के क़रीबी संबंधियों में से एक का कहना है कि इमाम खुमैनी का मानना था कि बच्चों को आज़ादी दी जाए। जब वह सात साल का हो जाये तो उसके लिये सीमायें निर्धारित करो। वह इसी तरह कहते थे कि बच्चों से हमेशा सच बोलें ताकि वह भी सच्चे बनें, बच्चों का आदर्श हमेशा माँ बाप होते हैं। अगर उनके साथ अच्छा व्यवहार करें तो वह अच्छे बनेंगे। आप बच्चे से जो बात करें उसे व्यवहारिक बनायें।

हजरत मोहम्मद (स) बच्चों के प्रति बहुत कृपालु थे। उन्हें चूमते थे और दूसरों से भी ऐसा करने को कहते थे। बच्चों से प्यार करने के संबंध में वह कहते थेः जो भी अपनी बेटी को ख़ुश करे तो उसका सवाब ऐसा है जैसे हजरत इस्माईल पैगम्बर की संतान में से किसी दास को ग़ुलामी से आज़ाद किया हो और वह आदमी जो अपने बेटे को ख़ुश करे वह ऐसे आदमी की तरह है जो अल्लाह के डर में रोता रहा हो और ऐसे आदमी का इनाम व पुरस्कार जन्नत है।

पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की ज़िंदगी बहुत ही साधारण, बल्कि साधारण से भी नीचे स्तर की थी।  हज़रत अली अलैहिस्सलाम उनके ज़िंदगी के बारे में बताते हैं कि पैग़म्बर (स) ग़ुलामों की दावत को स्वीकार करके उनके साथ भोजन कर लेते थे।  वह ज़मीन पर बैठते और अपने हाथ से बकरी का दूध दूहते थे।  जब कोई उनसे मिलने आता था तो वह टेक लगाकर नहीं बैठते थे लोगों के सम्मान में वह कठिन कामों को भी स्वीकार कर लेते और उन्हें पूरा करते थे।

इमाम ख़ुमैनी र.ह भी अपनी ज़िंदगी के सभी चरणों में चाहे वह क़ुम के फ़ैज़िया मदरसे में उनकी पढ़ाई का ज़माना रहा हो या इस्लामी रिपब्लिक ईरान की लीडरशिप का समय उनकी ज़िंदगी हमेशा, साधारण स्तर की रही है।  वह कभी इस बात को स्वीकार नहीं करते थे कि उनकी ज़िंदगी का स्तर देश के साधारण लोगों के स्तर से ऊपर रहे।


इमाम ख़ुमैनी के एक साथी का कहना है कि जब वह इराक़ के पाक शहर नजफ़ में रह रहे थे तो उस समय उनका घर, किराये का घर था जो नया नहीं था।  वह ऐसा घर था जिसमें साधारण स्टूडेंट्स रहते थे।  इस तरह से कहा जा सकता है कि इमाम ख़ुमैनी की जीवन स्तर साधारण स्टूडेंट्स ही नहीं बल्कि उनसे भी नीचे स्तर का था।  ईरान में इस्लामी इंक़ेलाब की कामयाबी के बाद हुकूमती सिस्टम का नेतृत्व संभालने के बाद से अपनी ज़िंदगी के अंत तक जमारान इमामबाड़े के पीछे एक छोटे से घर में रहे। 

उनकी ज़िंदगी का आदर्श चूंकि पैग़म्बरे इस्लाम (स) थे इसलिये उन्होंने अपने घर के भीतर आराम देने वाला कोई छोटा सा परिवर्तन भी स्वीकार नहीं किया और इराक़ द्वारा थोपे गए आठ वर्षीय युद्ध में भी वह अपने उसी साधारण से पुराने घर में रहे और वहीं पर अपने छोटे से कमरे में दुनिया के नेताओं से मुलाक़ात भी करते थे।

पैग़म्बरे इस्लाम के आचरण, व्यवहार और शिष्टाचार के दृष्टिगत इमाम ख़ुमैनी ने इस्लामी इंक़ेलाब के नेतृत्व की कठिनाइयों को कभी बयान नहीं किया और कभी भी स्वयं को दूसरों से आगे लाने की कोशिश भी नहीं की। वह हमेशा यही मानते और कहते रहे कि “मुझे अगर जनता का सेवक कहो तो यह इससे अच्छा है कि मुझे नेता कहो।

इमाम ख़ुमैनी जब भी जंग के जियालों के बीच होते तो कहते थे कि मैं जेहाद और शहादत से पीछे रह गया हूं इसलिये आपके सामने लज्जित हूं।  जंग में हुसैन फ़हमीदे नामक नौजवान के शहीद होने के बाद उसके बारे में इमाम ख़ुमैनी का यह कहना बहुत मशहूर है कि हमारा नेता बारह साल का वह किशोर है जिसने अपने नन्हे से दिल के साथ, जिसकी क़ीमत हमारी सैकड़ों ज़बानों और क़लम से बढ़कर है हैंड ग्रेनेड के साथ ख़ुद को दुश्मन के टैंक के नीचे डाल दिया, उसे उड़ा दिया और ख़ुद भी शहीद हो गया।

लोगों के प्यार का पात्र बनना और उनके दिलों पर राज करना, विभिन्न कारणों से होता है और उनकी अलग-अलग सीमाएं होती हैं।  कभी भौतिक कारण होते हैं और कभी निजी विशेषताएं होती हैं जो दूसरों को आकर्षित करती हैं और कभी यह कारण आध्यात्मिक एवं इलाही होते हैं और आदमी की विशेषताएं अल्लाह और धर्म से जुड़ी होती हैं।

अल्लाह ने पाक क़ुरआन में वचन दिया है कि जो लोग अल्लाह पर ईमान लाए और भले काम करते हैं, अल्लाह उनका प्यार दिलों में डाल देता है।  इस इलाही वचन को पूरा होते हम सबसे ज़्यादा हज़रत मुहम्मद (स) के कैरेक्टर में देखते हैं कि जिनका प्यार दुनिया के डेढ अरब मुसलमानों के दिलों में बसा हुआ है।

इमाम ख़ुमैनी भी पैग़म्बरे इस्लाम (स) के प्यार में डूबे हुए दिल के साथ इस ज़माने के लोगों के दिलों में बहुत बड़ी जगह रखते हैं।  इमाम ख़ुमैनी के बारे में उनके संपर्क में आने वाले ईरानियों ने तो उनके कैरेक्टर के बारे में बहुत कुछ कहा और लिखा है ही, विदेशियों ने भी माना है कि इमाम ख़ुमैनी समय और स्थान में सीमित नहीं थे।

दुनिया के विभिन्न नेताओं यहां तक कि अमरीकियों में भी जिसने इमाम ख़ुमैनी से मुलाक़ात की वह उनके कैरेक्टर और बातों से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका।  इमाम ख़ुमैनी पूरे संतोष के साथ साधारण शब्दों में ठोस और सुदृढ़ बातें करते थे।  उनके शांत मन और ठोस संकल्प को बड़ी से बड़ी घटनाएं और ख़तरे भी प्रभावित नहीं कर पाते थे।

दुनिया को वह अल्लाह का दरबार मानते थे और अल्लाह की कृपा और मदद पर पूरा यक़ीन रखते थे तथा यह विषय, नेतृत्व संबन्धी उनके इरादों के बारे में बहुत प्रभावी था।  इस बात को साबित करने के लिए बस यह बताना काफ़ी होगा कि जब सद्दाम की फ़ौज ने इस्लामी इंक़ेलाब की कामयाबी के फ़ौरन बाद ईरान पर अचानक हमला किया तो इमाम ख़ुमैनी ने जनता से बड़े ही सादे शब्दों में कहा था कि “एक चोर आया, उसने एक पत्थर फेंका और भाग गया”।

इमाम के यह सादे से शब्द, रौशनी और शांति का स्रोत बनकर लोगों में शांति तथा हिम्मत भरने लगे और चमत्कार दिखाने लगे।  हमारी दुआ है कि उनकी आत्मा शांत और उनकी याद सदा जीवित रहे।

हम इस घटना से बच्चों को शिक्षित करने के महत्व का अंदाज़ा लगा सकते हैं जब इमाम खुमैनी से पूछा गया: आपके पास न तो धन है, न ही शक्ति, न ही कोई सरकार, न ही कोई सेना, तो आप एक मजबूत सरकार के खिलाफ कैसे उठेंगे? इमाम खुमैनी ने जवाब दिया: मेरी सेना अभी भी गहवारे में है।

“बच्चों को पढ़ाने की अहमियत का अंदाज़ा हम इस घटना से लगा सकते हैं जब इमाम खुमैनी से पूछा गया: ‘तुम्हारे पास न तो पैसा है, न ताकत, न सरकार, न सेना, तो तुम एक मज़बूत सरकार के खिलाफ़ कैसे खड़े होगे?’ इमाम खुमैनी ने जवाब दिया: ‘मेरी सेना अभी भी पालने में है।’

बेशक, इमाम खुमैनी की यह बात सच साबित हुई; वही बच्चे उन्नीस साल बाद उस समय की सरकार के खिलाफ़ खड़े हुए, उन्हीं नौजवानों ने सेना बनाई और उनमें से कुछ बड़े अफ़सर और कमांडर बने।

इमाम खुमैनी ने खुद शहीद मोहम्मद हुसैन फ़हमीदा के बारे में कहा था: ‘फ़हमीदा उन लोगों की लीडर हैं जो खड़े हैं।’

आज भी दुश्मन हमारे बच्चों से डरता है और नहीं चाहता कि हमारे बच्चे पढ़ें, क्योंकि यही बच्चे कल धर्म का झंडा उठाएंगे।

ग़ज़्ज़ा में सबसे ज़्यादा बच्चों के शहीद होने की मुख्य वजह यह थी कि दुश्मन को इस खतरे का अंदाज़ा हो गया था। गाज़ा के वही बच्चे, जो कुछ साल पहले गोलियों और पत्थरों की बारिश कर रहे थे इज़राइली सेना ने ही ‘अल-अक्सा तूफ़ान’ बनाया था।

इसलिए, इमाम खुमैनी की इस सोच को समझने की ज़रूरत है और हमें उस राज़ को समझना चाहिए जो इमाम खुमैनी को पता था।

जब इमाम खुमैनी से फिर पूछा गया कि वह अकेले क्या कर सकते हैं, तो उन्होंने कहा: ‘माँ, मैं कई बार अकेले दरबार में गया हूँ और सच बताया है।’

अगर इमाम खुमैनी की स्थापना की फ़िलॉसफ़ी को समझा जाए, तो इमाम खुमैनी ने वही काम किया जिसके लिए हज़रत ज़हरा (स) दरबार में गई थीं। यानी ‘इमामत की दिखने वाली सरकार स्थापित करना।’ लेकिन अल्लाह ने सैय्यदा का यह काम इमाम खुमैनी के ज़रिए पूरा किया।

इमाम खुमैनी सैय्यदा को ‘उम्माह की माँ’ मानते थे। वह अक्सर कहते थे कि सैय्यदा के दुनिया में दो तरह के बच्चे हैं: एक नस्ली बच्चा, जो सआदत के रूप में है, और एक रूहानी बच्चा, जो उनके सच्चे मानने वालों के रूप में है।

ऐ फातेमियूं! आपको दुनिया के ज़ुल्म के खिलाफ़ आवाज़ उठानी चाहिए क्योंकि आपकी माँ फातिमा ने भी आवाज़ उठाई थी।

लेखक: अशरफ सिराज गुलतारी

हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की सुपुत्री हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के शुभ जन्म दिवस के अवसर पूरे ईरान में कार्यक्रमों का सिलसिला जारी हैं।

20  जमादिउस्सानी सन 1447 हिजरी क़मरी को हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्ला अलैहा का शुभ जन्म दिवस है।वह पूरी दुनिया की महिलाओं के लिए आदर्श हैं।

ईरान में पैग़म्बरे इस्लाम (स.ल.) की सुपुत्री हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के शुभ जन्म दिवस को महिला दिवस और मदर डे के रूप में मनाया जाता है। बुधवार की रात अर्थात कल रात से ही ईरान में हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के शुभ जन्म दिवस से संबन्धित कार्यक्रम आरंभ हो चुके हैं।

बहुत से स्थानों पर मस्जिदों और इमामबाड़ों को सजाया गया है। बहुत से लोग अपने घरों पर उनके जन्म दिवस से संबन्धित कार्यक्रम कर रहे हैं। ईरान के सभी नगरों में हज़रत फ़ातेमा ज़हेरा का शुभ जन्म दिवस मनाया जा रहा है।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की महानता के बारे में कहते हैं कि उनका जीवन हर पहलू से एक मनुष्य के प्रयास, परिपूर्णता और आत्मिक उत्थान से भरा एक जीवन है।वह हमेशा मोर्चों पर और युद्ध के मैदानों में है लेकिन कठिनाइयों और समस्याओं के बावजूद हज़रत फ़ातेमा का घर और उनका जीवन आम लोगों और मुसलमानों की समस्याओं के समाधान के केंद्र की तरह है।

वह पैग़म्बरे इस्लाम की बेटी हैं और इन परिस्थितियों में भी जीवन को बड़े गौरवपूर्ण तरीक़े से आगे बढ़ाती हैं। इमाम हसन, इमाम हुसैन और हज़रत ज़ैनब जैसे बच्चों का प्रशिक्षण करती हैं, अली जैसे पति का ध्यान रखती हैं और पैग़म्बरे इस्लाम जैसे पिता को प्रसन्न रखती हैं।

युद्धों में इस्लाम की विजय का मार्ग खुल जाता है और बड़ी मात्रा में धन आने लगता है लेकिन पैग़म्बर की सुपुत्री सांसारिक आनंदों, ऐश्वर्य और दुनिया की चकाचौंध को तनिक भी अपने जीवन में आने नहीं देतीं। हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा की उपासना एक आदर्श उपासना है।

 

 

यमन की इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन "अंसारूल्लाह" के प्रमुख ने "तहरीर अल-शाम" द्वारा कब्जाधारी सियोनीस्ट सरकार के साथ संबंध स्थापित करने के प्रयासों की कड़ी भाषा में निंदा करते हुए इसे अमेरिका-परस्ती, पाखंड और मुस्लिम उम्मत के हितों के साथ स्पष्ट विश्वासघात बताया है।

यमन की इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन "अंसारूल्लाह" के प्रमुख सैय्यद अब्दुल मलिक बदरुद्दीन अल-हौसी ने "तहरीर अल-शाम" द्वारा कब्जाधारी सियोनीस्ट सरकार के साथ संबंध स्थापित करने के प्रयासों की कड़ी भाषा में निंदा करते हुए इसे अमेरिका-परस्ती, पाखंड और मुस्लिम उम्मा के हितों से स्पष्ट विचलन बताया है।

अब्दुल मलिक अल-हौसी ने हज़रत फातिमा जहरा (स.अ.) के जन्मदिन और "महिला दिवस" के अवसर पर अपने एक संदेश में कहा कि सीरिया पर कब्जा जमाए बैठे तकफीरी एक ऐसी अपमानजनक और पीछे हटने वाली सोच का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो वाशिंगटन की खुशामद और सियोनीस्ट सरकार के करीब जाने पर आधारित है।

यह लोग इस तथ्य के बावजूद तेल अवीव के करीब जा रहे हैं कि इजरायल लगातार सीरियाई भूमि पर हमले कर रहा है और उसके कुछ हिस्सों पर कब्जा भी किया हुआ है।

उन्होंने सियोनीस्ट सरकार की आक्रामकता को स्पष्ट करते हुए कहा कि इजरायल वैश्विक शक्तियों की गारंटी से तय होने वाले अंतरराष्ट्रीय समझौतों का बार-बार उल्लंघन कर चुका है, जिसकी स्पष्ट मिसालें आज गाजा और लेबनान में जारी हत्याकांड और लूटपाट के रूप में पूरी दुनिया के सामने हैं। ये कार्रवाइयां इजरायल की आपराधिक मानसिकता और विस्तारवादी नीतियों का निर्विवाद सबूत हैं।

सैय्यद अब्दुल मलिक अल-हौसी ने मुस्लिम उम्मा को संबोधित करते हुए जोर दिया कि वह अत्याचारी और घमंडी ताकतों पर निर्भरता के बजाय अपने असली मिशन की ओर लौटे, जिसमें न्याय की स्थापना, मजलूमों की रक्षा और ताकतवर ताकतों के सामने दृढ़ता से खड़ा होना शामिल है।

उम्मा को अपनी बौद्धिक और नैतिक नींव को मजबूत करते हुए सम्मान, प्रतिष्ठा और वैश्विक भूमिका की बहाली के लिए गंभीर कदम उठाने होंगे।

उन्होंने सियोनीस्ट अत्याचारों का विशेष उल्लेख करते हुए कहा कि फिलिस्तीन में हजारों मुस्लिम महिलाएं, जिनमें गर्भवती महिलाएं, नाबालिग लड़कियां, युवतियां और बुजुर्ग महिलाएं शामिल हैं, सियोनीस्ट आक्रामकता का शिकार हो चुकी हैं।उन्होंने इस स्थिति को मानवीय मूल्यों और वैश्विक विवेक के लिए एक कठिन परीक्षा बताया।

आयतुल्लाह अहमद जन्नती ने कहा कि इस्लाम ने महिला को सर्वोच्च स्थान दिया है, और इमाम ख़ुमैनी (र.ह.) और क्रांति के नेता ने भी अपने भाषणों में महिलाओं की शान और महानता के संबंध में बार बार उल्लेख किया है।

आयतुल्लाह जन्नती ने गार्जियन काउंसिल की बैठक में हज़रत फातिमा ज़हरा (स.अ.) के जन्मदिन के अवसर पर बोलते हुए कहा कि हज़रत ज़हेरा (स.अ.) का संपूर्ण जीवन सत्य, साहस और पवित्रता का अनुपम उदाहरण है।

उन्होंने बताया कि आज कुछ भौतिकवादी विचारधाराएं इस्लाम की पारिवारिक व्यवस्था को कमजोर कर रही हैं और वैश्विक शक्तियां इन्हीं विकृत विचारों को दुनिया भर में फैलाने की कोशिश कर रही हैं।

आयतुल्लाह जन्नती ने कहा कि पैगंबर हज़रत मुहम्मद (स.अ.व.) और इमामों (अ.स.) ने हज़रत ज़हरा (स.अ.) का जिस तरह सम्मान किया, वह इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि इस्लाम महिला को उच्च स्थान देता है।

उन्होंने कहा कि ईरान का संविधान भी इस्लामी शिक्षाओं के आधार पर महिलाओं के लिए सम्मान का पक्षधर है और मजबूत रुख रखता है।

उन्होंने हज़रत ज़हरा (स.अ.) के विशिष्ट गुणों का वर्णन करते हुए कहा कि आप (स.अ.) ईमान, सत्य की रक्षा, दृढ़ता, उत्तम तरीके से सत्य बात पहुंचाने और आशा के साथ संघर्ष करने की जीवंत मिसाल हैं।

आयतुल्लाह जन्नती ने कहा कि इस्लाम ने हमेशा महिला का सम्मान किया है, आज देश में बौद्धिक और विचारशील महिलाओं की संख्या बहुत अधिक है, क्रांति के महान नेता के अनुसार आज ईरान में जितनी शिक्षित, विचारशील और शोधकर्ता महिलाएं मौजूद हैं, उसकी इतिहास में मिसाल नहीं मिलती।

उन्होंने कहा कि भौतिकवादी विचारधारा वाली सभ्यताएं केवल विशेष समूहों के हित को देखती हैं, इसीलिए उनके समाज गंभीर समस्याओं में घिरे रहते हैं, जिनमें सबसे बड़ी समस्या परिवार की नींव का टूट जाना है।

उन्होंने कहा कि वैश्विक साम्राज्यवाद इन्हीं समस्याओं को दुनिया में फैलाना चाहता है और विशेष रूप से महिलाओं के बारे में गलत और विनाशकारी मॉडल थोप रहा है।

…………

इज़रायली बलों ने पूर्वी येरुशलम में संयुक्त राष्ट्र की सहायता एजेंसी यूएनआरडब्ल्यूए के मुख्यालय पर छापा मारकर यूएन का झंडा जबरदस्ती हटा दिया और फिर इजराइल का झंडा लगाया।

इज़रायली बलों ने पूर्वी येरुशलम में संयुक्त राष्ट्र की सहायता एजेंसी यूएनआरडब्ल्यूए के मुख्यालय पर छापा मारकर यूएन का झंडा जबरदस्ती हटा दिया इज़राइली सेना ने संयुक्त राष्ट्र के फिलिस्तीन में मानवीय कार्यों में सक्रिय एजेंसी के मुख्य कार्यालय पर छापा मारा, छापे के दौरान इज़रायली बलों ने संपर्क के सभी साधनों को काट दिया ताकि कार्यालय की सीमा में हो रही इस कार्रवाई को दुनिया से छुपाया जा सके। छापे के बाद इज़रायली सेना ने कार्यालय की इमारत से संयुक्त राष्ट्र का झंडा हटा कर इज़रायली ध्वज लहरा दिया।

रायटर्स के अनुसार, सोमवार को इज़रायली अधिकारियों ने संयुक्त राष्ट्र की फिलिस्तीनी शरणार्थी एजेंसी (यूएनआरडब्ल्यूए) के पूर्वी येरुशलम स्थित कार्यालयों में प्रवेश किया और छापे के दौरान इज़रायल का झंडा फहराया। इज़रायली अधिकारियों ने दावा किया कि यह कार्रवाई करों का भुगतान न करने के कारण की गई।

यूएनआरडब्ल्यूए के कमिश्नर जनरल फिलिप लाज़ारिनी ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर इस घटना के संबंध में बयान में कहा कि एक यूएन सदस्य देश के रूप में इज़रायल पर जिम्मेदारी है कि वह यूएन के अधिकार क्षेत्र में आने वाले कार्यालय की सुरक्षा सुनिश्चित करे और उसका सम्मान करे।

यह स्पष्ट है कि संयुक्त राष्ट्र की राहत और कार्य एजेंसी पर इज़रायल पक्षपात का आरोप लगाता रहा है। इस एजेंसी ने इस वर्ष की शुरुआत से इस इमारत का उपयोग नहीं किया, क्योंकि इज़रायल ने इसे सभी स्थान खाली करने और अपनी गतिविधियों को रोकने का आदेश दिया हुआ है।

संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने इस छापे की कड़ी निंदा की और कहा कि, यह परिसर यूएन की संपत्ति है और इसे किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप से अपवाद प्राप्त है।

मैं इज़रायल से आग्रह करता हूं कि वह तुरंत सभी आवश्यक कदम उठाए ताकि यूएनआरडब्ल्यूए के परिसर की गरिमा को बहाल, सुरक्षित और बनाए रखा जा सके और इन परिसरों से संबंधित किसी भी और कार्रवाई से बचा जाए।यूएनआरडब्ल्यूए के प्रमुख फिलिप ला ज़ारिनी ने एक्स पर लिखा कि इज़रायल की यह कार्रवाई ख़तरनाक हो सकती है।

 हज़रत सिद्दीका ताहिरा फ़ातिमा ज़हरा (स) की जन्म जयंती के मौके पर अहलुल बैत (स) के चाहने वालों और शायरों के साथ एक मीटिंग में, इस्लामिक क्रांति के लीडर अयातुल्ला खामेनेई ने हज़रत ज़हरा की खूबियों और फ़ायदों को इंसानी समझ और समझ से परे बताया।

गुरुवार, 11 दिसंबर, 2025 की सुबह इमाम खुमैनी हुसैनिया में हुई इस मीटिंग में, इस्लामिक क्रांति के लीडर ने कहा कि हमें फ़ातिमी बनना चाहिए और हर तरह से हज़रत ज़हरा का अनुसरण करना चाहिए, जिसमें नेकी, इंसाफ़, समझाने और ज़ाहिर करने का जिहाद, पति का काम और बच्चों की परवरिश शामिल है।

उन्होंने नेशनल रेजिस्टेंस को हेजेमन्स के खिलाफ मजबूती से खड़े होने के तौर पर बताया, और कहा कि कभी-कभी प्रेशर मिलिट्री नेचर का होता है, और कभी-कभी यह इकोनॉमिक, प्रोपेगैंडा, कल्चरल और पॉलिटिकल नेचर का होता है।

इस्लामिक क्रांति के लीडर ने वेस्टर्न मीडिया एजेंट्स और पॉलिटिकल और मिलिट्री अधिकारियों द्वारा किए जा रहे आंदोलनों को दुश्मन के प्रोपेगैंडा प्रेशर का संकेत बताया, और कहा कि हेजेमन्स के देशों पर प्रेशर का मकसद, और उनमें सबसे आगे ईरानी देश, कभी ज्योग्राफिकल एक्सपेंशन होता है, जैसा कि आज अमेरिकी सरकार लैटिन अमेरिका में कर रही है, और कभी-कभी मकसद अंडरग्राउंड रिज़र्व पर कब्ज़ा करना होता है, और कभी-कभी मकसद लाइफस्टाइल बदलना होता है, और उससे भी ज़्यादा, पहचान बदलना होता है, जो हेजेमन्स के प्रेशर का असली मकसद है।

ईरानी राष्ट्र की धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहचान को बदलने के लिए दुनिया की ताकतवर ताकतों की 100 साल से ज़्यादा पुरानी कोशिशों की ओर इशारा करते हुए, अयातुल्ला खामेनेई ने कहा कि इस्लामी क्रांति ने इन सभी कोशिशों को बेकार कर दिया है, और हाल के दशकों में, ईरानी राष्ट्र ने भी अपने घुटने टेके बिना, अपनी मज़बूती और लगन से उन्हें कुचल दिया है।

उन्होंने ईरान से क्षेत्रीय देशों और कुछ दूसरे देशों में विरोध के विचार के फैलने को एक सच्चाई बताया, और कहा कि दुश्मन ने ईरान और ईरानी राष्ट्र के खिलाफ कुछ ऐसे काम किए हैं जो अगर उसने किसी दूसरे देश और राष्ट्र के खिलाफ किए होते, तो उसका नामोनिशान मिट जाता।

शहीदों की याद को ज़िंदा और अमर रखने और देश में विरोध के विचार को बढ़ावा देने और बढ़ाने में तारीफ़ के ज़ैनबी असर की ओर इशारा करते हुए, क्रांति के नेता ने कहा कि आज, आपने जो सैन्य झड़प देखी, उससे कहीं ज़्यादा हम एक प्रोपेगैंडा और मीडिया युद्ध के केंद्र में हैं क्योंकि दुश्मन समझ गया है कि इस पवित्र और आध्यात्मिक देश और ज़मीन को न तो सैन्य दबाव से जीता जा सकता है और न ही कब्ज़ा किया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि हालांकि कुछ लोग बार-बार मिलिट्री झड़पों की संभावना जताते रहते हैं, और कुछ लोग जानबूझकर इस मुद्दे को हवा देते हैं ताकि लोग शक और हिचकिचाहट में रहें, लेकिन, अल्लाह ने चाहा तो वे कामयाब नहीं होंगे।

इस्लामिक क्रांति के लीडर ने दुश्मन के डायमेंशन, खतरे और टारगेट, क्रांति के लक्ष्यों, कॉन्सेप्ट और निशानों, और इमाम खुमैनी (र) की याद को मिटाने के बारे में बताया, और कहा कि अमेरिका इस बड़े और एक्टिव फ्रंट के सेंटर में है, और कुछ यूरोपियन देश इसका सपोर्ट कर रहे हैं, जबकि कुछ कायर, गद्दार और धोखेबाज यूरोप में चंद पैसे कमाने के लिए इस फ्रंट के मोहरे बन गए हैं।

उन्होंने कहा कि दुश्मन के टारगेट और उसकी फ्रंटलाइन की पहचान करना ज़रूरी है, और कहा कि मिलिट्री फ्रंट की तरह, इस प्रोपेगैंडा झड़प में भी, हमें दुश्मन की साज़िशों और लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए सही टकराव करना चाहिए, और उन चीज़ों पर पूरा ध्यान देना चाहिए जिन्हें दुश्मन ने टारगेट किया है, यानी इस्लामिक, शिया और क्रांतिकारी ज्ञान और शिक्षाएँ।

इस्लामी क्रांति के लीडर ने पश्चिम के प्रोपेगैंडा वॉर और मीडिया वॉर के सामने विरोध को मुश्किल लेकिन पूरी तरह मुमकिन बताया, और कहा कि इस तरह, अहल-उल-बैत के चाहने वालों और कवियों को अपने संगठनों को क्रांति के मूल्यों की रक्षा के सेंटर में बदलना चाहिए। चाहने वाले और संगठन आज विरोध साहित्य के कलेक्शन, प्रमोशन और ट्रांसमिशन के ज़रिए इस बहुत ही बुनियादी ज़रूरत को मज़बूत कर रहे हैं।

अपने भाषण के आखिरी हिस्से में, अयातुल्ला खामेनेई ने अहल-उल-बैत के चाहने वालों और कवियों को कुछ सलाह दीं, जिसमें सभी इमामों (उन पर शांति हो) की ज़िंदगी को ध्यान में रखते हुए धार्मिक शिक्षाओं और विरोध की शिक्षाओं की व्याख्या करना, दुश्मन की कमज़ोरियों पर हमला करना और साथ ही अपनी तरफ से शक पैदा होने से असरदार तरीके से बचाव करना, व्यक्तिगत, सामूहिक और राजनीतिक क्षेत्रों में कुरान की अवधारणाओं की व्याख्या करना, और दुश्मन से टकराव की प्रकृति शामिल है।