رضوی
हज़रत फ़ातेमा ज़हेरा स.ल. तमाम फज़ीलतों की महवर हैं।
हज़रत फ़ातेमा ज़हेरा सभी गुणों और पूर्णताओं की स्वामिनी हैं।वह इस्लाम में सर्वोच्च नैतिक गुणों, ज्ञान, पवित्रता और बलिदान का प्रतिमान हैं।
हज़रत फ़ातेमा ज़ेहरा स.ल. और मवद्दते हज़रत फ़ातेमा ज़ेहरा स.ल. उन हज़रात में से हैं जिनकी मवद्दत और मुहब्बत तमाम मुसलमानों पर वाजिब की गई है जैसा कि ख़ुदा वंदे आलम ने फ़रमाया,आयत (सूरह शूरा आयत 23)
हज़रत फ़ातेमा ज़ेहरा स.ल.और मवद्दत:
हज़रत फ़ातेमा ज़ेहरा(स) उन हज़रात में से हैं जिनकी मवद्दत और मुहब्बत तमाम मुसलमानों पर वाजिब की गई है जैसा कि ख़ुदा वंदे आलम ने फ़रमाया,आयत (सूरह शूरा आयत 23)
तर्जुमा, आप कह दीजिए कि मैं तुम से कुछ नही चहाता कोई अज्र नही चाहता सिवाए इसके कि मेरे क़राबत दारों से मुहब्बत करो।
सुयूतीस इब्ने अब्बास से रिवायत करते हैं: जब पैग़म्बरे अकरम (स) पर यह आयत नाज़िल हुई तो इब्ने अब्बास ने अर्ज़ किया, या रसूलल्लाह आपके वह रिश्तेदार कौन है जिनकी मुहब्बत हम लोगों पर वाजिब है?
तो आँ हज़रत (स) ने फ़रमाया, अली, फ़ातेमा और उनके दोनो बेटे (अहयाउल मय्यत बे फ़ज़ायले अहले बैत (अ) पेज 239, दुर्रे मंसूर जिल्द 6 पेज 7, जामेउल बयान जिल्द 25 पेज 14, मुसतदरके हाकिम जिल्द 2 पेज 444, मुसनदे अहमद जिल्द 1 पेज 199)
हज़रत फ़ातेमा ज़ेहरा(स) और आयते ततहीर:
हज़रत फ़ातेमा ज़ेहरा(स) की शान में आयते ततहीर नाज़िल हुई है चुँनाचे ख़ुदा वंदे आलम का इरशाद है,आयत (सूरह अहज़ाब आयत 33)
ऐ (पैग़म्बर के) अहले बैत, ख़ुदा तो बस यह चाहता है कि तुम को हर तरह की बुराई से दूर रखे और जो पाक व पाकीज़ा रखने का हक़ है वैसा पाक व पाकीज़ा रखे।
मुस्लिम बिन हुज्जाज अपनी मुसनद के साथ जनाबे आयशा से नक़्ल करते हैं कि रसूले अकरम (स) सुबह के वक़्त अपने हुजरे से इस हाल में निकले कि अपने शानों पर अबा डाले हुए थे, उस मौक़े पर हसन बिन अली (अ) आये, आँ हज़रत (स) ने उनको अबा (केसा) में दाख़िल किया, उसके बाद हुसैन आये और उनको भी चादर में दाख़िल किया, उस मौक़े पर फ़ातेमा दाख़िल हुई तो पैग़म्बर (स) ने उनको भी चादर में दाख़िल कर लिया, उस मौक़े पर अली (अ) आये उनको भी दाख़िल किया और फिर इस आयते शरीफ़ा की तिलावत की।(आयते ततहीर)
(सही मुस्लिम जिल्द 2 पेज 331)
हज़रत फ़ातेमा ज़ेहरा(स) और आयते मुबाहला
ख़ुदा वंदे आलम फ़रमाता है:
आयत (सूरह आले इमरान आयत 61)
ऐ पैग़म्बर, इल्म के आ जाने के बाद जो लोग तुम से कट हुज्जती करें उनसे कह दीजिए कि (अच्छा मैदान में) आओ, हम अपने बेटे को बुलायें तुम अपने बेटे को और हम अपनी औरतों को बुलायें और तुम अपनी औरतों को और हम अपनी जानों को बुलाये और तुम अपने जानों को, उसके बाद हम सब मिलकर ख़ुदा की बारगाह में गिड़गिड़ायें और झूठों पर ख़ुदा की लानत करें।
मुफ़स्सेरीन का इस बात पर इत्तेफ़ाक़ है कि इस आयते शरीफ़ा में (अनफ़ुसना) से मुराद अली बिन अबी तालिब (अ) हैं, पस हज़रत अली (अ) मक़ामात और फ़ज़ायल में पैग़म्बरे अकरम (स) के बराबर हैं, अहमद बिन हंमल अल मुसनद में नक़्ल करते हैं: जब पैग़म्बरे अकरम (स) पर यह आयते शरीफ़ा नाज़िल हुई तो आँ हज़रत (स) ने हज़रत अली (अ), जनाबे फ़ातेमा और हसन व हुसैन (अ) को बुलाया और फ़रमाया: ख़ुदावंदा यह मेरे अहले बैत हैं। नीज़ सही मुस्लिम, सही तिरमिज़ी और मुसतदरके हाकिम वग़ैरह में इसी मज़मून की रिवायत नक़्ल हुई है।
तेल अवीव में हज़ारों की संख्या में लोगों ने नेतन्याहू के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन किया
शनिवार की शाम तेल अवीव में दसियों हज़ार लोगों ने बेंजामिन नेत्यान्यहू के विरुद्ध प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों ने नारे लगाते हुए तत्काल एक स्वतंत्र सरकारी सत्य-अन्वेषण समिति की स्थापना की माँग की, ताकि 7 अक्टूबर 2023 की विफलता की जाँच हो सके।
शनिवार की शाम तेल अवीव के केंद्र हबीमा चौक में भारी संख्या में लोग इकट्ठा हुए और इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के विरुद्ध नारे लगाए।
प्रदर्शनकारियों में मुख्यतः 7 अक्टूबर 2023 के हमले में मारे गए लोगों के परिजन, जीवित बचे लोग, सामाजिक कार्यकर्ता और राजनीतिक विपक्ष के समर्थक शामिल थे। उनका कहना था कि 7 अक्टूबर की घटनाओं में हुई विफलताओं की पूर्ण जाँच के लिए सरकारी स्तर पर एक स्वतंत्र सत्य-अन्वेषण समिति तुरंत गठित की जाए।
यह प्रदर्शन अक्टूबर परिषद नामक संगठन द्वारा आयोजित किया गया था, जिसमें मारे गए लोगों के परिवारों और पूर्व बंधकों के परिजन शामिल हैं। प्रदर्शनकारियों ने सरकारी सत्य-अन्वेषण समिति अब चाहिए! और “नेतन्याहू विफलता के ज़िम्मेदार हैं जैसे लिखे पोस्टर उठाए हुए थे। उन्होंने नेतन्याहू सरकार पर “सच्चाई छिपाने” और एक अनौपचारिक तथा नियंत्रित समिति बनाने का प्रयास करने का आरोप लगाया।
हिब्रू मीडिया संस्थानों, जैसे “कान” और “वाई-नेट”, की रिपोर्टों के अनुसार, यह प्रदर्शन नेतन्याहू सरकार के हालिया निर्णय के प्रत्यक्ष विरोध में था, जिसमें नवंबर 2025 की शुरुआत में घोषणा की गई थी कि सरकार एक “पूर्ण अधिकारों वाली” लेकिन गैर-सरकारी समिति गठित करेगी।
प्रदर्शनकारियों ने इसे सफ़ेद-पोश समिति” कहकर खारिज किया और कहा कि केवल उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की अध्यक्षता वाली एक स्वतंत्र समिति ही जन-विश्वास अर्जित कर सकती है।
प्रदर्शन में बोलने वालों में मारे गए लोगों के परिवारों के सदस्य भी शामिल थे। उन्होंने कहा कि नेतन्याहू ज़िम्मेदारी से बच रहा हैं। एक वक्ता ने कहा, “ढाई वर्ष बीत चुके हैं और अभी तक कोई वास्तविक जाँच नहीं हुई। नेतन्याहू, जो देश के इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदी के समय सत्ता में थे, सच्चाई से डरते हैं।
विपक्ष के नेता यायर लापिद ने एक अलग बयान में इस प्रदर्शन का समर्थन करते हुए कहा,सरकार हर संभव प्रयास कर रही है कि सच्चाई से भाग सके और ज़िम्मेदारी से बच सके। सरकारी सत्य-अन्वेषण समिति की मांग पर राष्ट्रीय सहमति है।
तेल अवीव पुलिस ने बताया कि प्रदर्शन बिना किसी बड़ी झड़प के समाप्त हुआ, हालांकि कुछ घंटों तक शहर के केंद्र में यातायात बाधित रहा। यह प्रदर्शन नवंबर के मध्य से तेज़ हुई उस नई विरोध-लहर का हिस्सा है, जिसमें पूर्व विपक्षी नेताओं जैसे नफ़्ताली बेनेट की उपस्थिति भी रही है।
नेतन्याहू सरकार अब भी व्यापक जन-समर्थन वाली समिति के गठन पर अड़ी हुई है और उसका कहना है कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के नेतृत्व वाली सरकारी समिति “पक्षपाती” होगी। इसके बावजूद हालिया जनमत-सर्वेक्षण दर्शाते हैं कि इसराइल के अधिकांश नागरिक (कुछ सर्वेक्षणों में 80 प्रतिशत से अधिक) सरकारी सत्य-अन्वेषण समिति के गठन का समर्थन करते हैं।
हज़रत ज़हेरा सलामुल्लाह अलैहा केवल एक नाम नहीं बल्कि एक मकतब हैं
इमाम ए जुमआ मरंद ने कहा,इस्लाम के दुश्मन मीडिया और सांस्कृतिक साधनों का उपयोग करके हज़रत फातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की नूरानी शख्सियत को विकृत करने और दोनों जहानों की सरदार के मकाम को कमज़ोर दिखाने की कोशिश कर रहे हैं।
ईरान के शहर मरंद के इमाम-ए-जुमा हुज्जतुल इस्लाम पुर मोहम्मदी ने हज़रत फातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की शहादत के मौके पर आयोजित मजलिस-ए-अज़ा में अपने संबोधन के दौरान कहा,हज़रत फातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा "उम्मे अबीहा" (अपने पिता की माँ) हैं और पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही की रिहलत के बाद विलायत और इमामत की रक्षा का झंडा उठाने वाली हैं।
उन्होंने हज़रत ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की मज़लूमियत और बेमिसाल फज़ाइल का ज़िक्र करते हुए इस्लामी उम्मत की एकता में उनकी बुनियादी भूमिका को बयान करते हुए कहा, हज़रत ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा केवल एक नाम नहीं बल्कि एक मकतब हैं। उनकी अमली सीरत और उनके इरशादात जीवन के व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक सभी क्षेत्रों के लिए जीवंत और क़ाबिल-ए-अमल नमूना हैं।
हुज्जतुल इस्लाम पूर मोहम्मदी ने इस्लाम के दुश्मनों की उन साजिशों की ओर इशारा किया जिनका मकसद अहले बैत अलैहिमुस्सलाम की नूरानी सीरत को तहरीफ का शिकार बनाना है और कहा: दुश्मन सिनेमा, मीडिया और कई सांस्कृतिक हथियारों के ज़रिए खातून-ए-दो जहाँ हज़रत ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के मकाम को संदेहास्पद बनाने की कोशिश कर रहा है और हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम मआरिफ-ए-फातिमी (स) का इल्मी बचाव और सही तब्यीन करें।
इमाम-ए-जुमआ मरंद ने कहा, विलायत-ए-फकीह की पैरवी अंबिया और आइम्मा ए अतहार अलैहिमुस्सलाम के रास्ते की तसील्सुल है। वर्तमान दौर में वली-ए-फकीह हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा खामनेई की हिमायत समाज को इस्लाम-ए-नाबे मोहम्मदी सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही के रास्ते पर साबित-क़दम रखने की ज़मानत है।
हज़रत फ़ातेमा ज़हरा का वजूद इंसान को हैरत में डाल देता है
हज़रत ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के बारे में इंसान जितना सोचता है, इस महान हस्ती के हालात के बारे में ग़ौर करता है, उतना ही हैरत में पड़ जाता है।
,हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनेई ने फरमाया,हज़रत ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के बारे में इंसान जितना सोचता है, इस महान हस्ती के हालात के बारे में ग़ौर करता है, उतना ही हैरत में पड़ जाता है।
इंसान न सिर्फ़ इस आयाम से हैरत करता है कि किस तरह एक इंसान नौजवानी में अध्यात्मिक और भौतिक लेहाज़ से महानता के ऐसे दर्जे पर पहुंच सकता है!
यह अपने आप में एक हैरत अंगेज़ हक़ीक़त है, लेकिन इस आयाम से और ज़्यादा हैरत होती है कि इस्लाम तरबियत की इतनी हैरतअंगेज़ ताक़त से इतने ऊंचे स्थान पर है कि एक जवान महिला, इतने कठिन हालात में, इस ऊंचे स्थान को हासिल कर सकती है!
इस हस्ती, इस महान इंसान की अज़मत भी हैरतअंगेज़ है, उस मत की अज़मत भी हैरतअंगेज़ व आश्चर्यजनक है जिसने ऐसी महान व गरिमापूर्ण हस्ती को पैदा किया।
अमेरिका ने हिज़्बुल्लाह के कमांडर की हत्या की मंज़ूरी दी।अल जज़ीरा
अल जज़ीरा के अनुसार, इज़राइल ने कल बैरूत में हिज़्बुल्लाह के एक वरिष्ठ सैन्य कमांडर को अमेरिका के खुले संकेतों पर निशाना बनाया हैं।
इज़राइल द्वारा बैरूत के दक्षिणी क्षेत्र दहिया पर किए गए हवाई हमले में हिज़्बुल्लाह के प्रमुख सैन्य कमांडर हैथम अली अल-तबतबाई की शहादत के बाद यह सवाल उठने लगे हैं कि इस कार्रवाई से पहले तेल अवीव और वॉशिंगटन के बीच किस तरह की समन्वय और बातचीत हुई थी। इस घटना के बाद लेबनान के खिलाफ नए मोर्चे के खुलने की आशंका और बढ़ गई है।
फिलिस्तीन में अल जज़ीरा के ब्यूरो चीफ़ वलीद अल-उमरी ने कहा कि उपलब्ध सूचनाओं से स्पष्ट है कि लेबनान में अपनी कार्रवाइयों को तेज़ करने के लिए इज़राइल को अमेरिका का पूरा और स्पष्ट समर्थन प्राप्त है। इसके बदले अमेरिका की यह इच्छा भी सामने आई है कि ग़ाज़ा में तनाव कम हो।
उनके अनुसार, इज़राइली सुरक्षा एजेंसियाँ यह नहीं मान रहीं कि हिज़्बुल्लाह इस हमले के जवाब में कोई बहुत बड़ा या मूलभूत हमला करेगा।
हमले के बाद लेबनान के एक सुरक्षा स्रोत ने अल जज़ीरा को बताया कि हिज़्बुल्लाह के सैन्य कमांडर हैथम तबतबाई इज़राइली हमले में शहीद हो गए। लेबनान के स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, इस हमले में 5 लोग शहीद और 28 घायल हुए।
इज़राइल ने अल तबतबाई जिन्हें सैयद अबू अली के नाम से भी जाना जाता है को हिज़्बुल्लाह के चीफ़ ऑफ स्टाफ के कार्यवाहक और संगठन की दूसरे नंबर की सबसे महत्वपूर्ण शख्सियत बताया।
बाद में हिज़्बुल्लाह ने आधिकारिक बयान में पुष्टि की:महान मुजाहिद कमांडर हैथम तबतबाई इज़राइली आक्रामकता के परिणामस्वरूप दक्षिणी दहिया में शहादत के दर्जे पर फ़ायज़ हुए।
हमले के तुरंत बाद अमेरिका ने एक बार फिर इज़राइली हमले को उचित ठहराने की कोशिश की। एक अमेरिकी अधिकारी ने अल जज़ीरा को बताया कि हिज़्बुल्लाह की सैन्य पुनर्निर्माण क्षमता ने इज़राइल को हालिया हफ्तों में लेबनान पर हमले बढ़ाने के लिए मजबूर किया है।
अमेरिकी अधिकारी के मुताबिक, हिज़्बुल्लाह की सैन्य क्षमताएँ घटने के बजाय बढ़ रही हैं, जिसने इज़राइल को संभावित युद्धविराम को लेकर गहरी चिंता में डाल दिया है।
हज़रत ज़हेरा स.ल. का हर हर इंतेखाब खालिस मारिफत,जागरूकता और ख़ुदा की रज़ा पर आधारित था
आयतुल्लाह सैयद हाशिम हुसैनी बुशहरी ने कहा कि हज़रत ए फ़ातिमा ज़हेरा की पूरी ज़िंदगी समझ, जागरूकता और सच्चाई का पूर्ण उदाहरण है। कुछ लोग अपने चुनाव लाभ के लिए करते हैं, कुछ डर पक्षपात या भावनाओं के दबाव में निर्णय लेते हैं, लेकिन हज़रत ज़हेरा का हर चुनाव चाहे विवाह से जुड़ा हो या सामाजिक रुख़ से सिर्फ़ ज्ञान, समझ और अल्लाह की प्रसन्नता के आधार पर था।
बुशहर के सरमस्तान क्षेत्र में एक अज्ञात शहीद के अंतिम संस्कार में आयतुल्लाह बुशहरी ने सभी संस्थाओं, ज़िम्मेदारों, विद्वानों, सेवकों और जनता का धन्यवाद किया और कहा कि आपकी उपस्थिति राष्ट्र की प्रतिष्ठा और शक्ति का प्रतीक है।
उन्होंने कहा कि हज़रते फ़ातिमा ज़हेरा की जीवन यात्रा इस बात की जीवंत मिसाल है कि हर निर्णय समझ-बूझ, जागरूकता और ईश्वर की इच्छा के अनुसार होना चाहिए।
आयतुल्लाह बुशहरी ने कहा कि दुश्मन कई वर्षों से लोगों में असंतोष फैलाने की कोशिश करता रहा है। छह साल की तीव्र प्रचार मुहिम के बाद उसे लगा था कि किसी बड़े घटना के समय जनता उसके साथ खड़ी होगी, लेकिन लोगों ने एकता और सर्वोच्च नेतृत्व के मार्गदर्शन का पालन करके ऐसा जवाब दिया जिसने दुनिया को आश्चर्यचकित कर दिया।
उन्होंने कहा कि दुश्मन लगातार नई साज़िशें कर रहा है और बच्चों, युवाओं व बुज़ुर्गों सहित हर व्यक्ति को लक्ष्य बना रहा है। लेकिन ईरानी जनता की समझदारी यह है कि वह दुश्मन का प्रचार सुनती है, समझती भी है, लेकिन व्यवहार में उसका साथ नहीं देती।
उन्होंने हज़रत फ़ातिमा ज़हरा को “जागरूक निर्णय का सर्वोत्तम उदाहरण बताते हुए कहा कि कुछ निर्णय लालच, कुछ डर और कुछ तात्कालिक भावनाओं से प्रभावित होते हैं, परंतु हज़रते ज़हरा का हर निर्णय विवाह से लेकर सामाजिक भूमिका तक केवल ज्ञान, समझ और ईश्वर की प्रसन्नता पर आधारित था। शहीदों ने भी इसी जागरूकता, ईमानदारी और धार्मिक निष्ठा के साथ सत्य के मार्ग का चयन किया।
उन्होंने कहा कि आज जिस अज्ञात शहीद को विदा किया जा रहा है, वह पूर्ण जागरूकता के साथ संघर्ष के मैदान में उतरा था। भले ही उसके माता-पिता यहाँ नहीं हैं, लेकिन इस क्षेत्र की महिलाएँ और लोग हुसैनी भावना के साथ उसके सम्मान में निकले यह जनता की गहरी समझ का प्रमाण है।
आयतुल्लाह बुशहरी ने पैग़ंबर मुहम्मद की अनेक कथनों का उल्लेख किया,फ़ातिमा मुझे सबसे अधिक प्रिय है।फ़ातिमा मेरे शरीर का हिस्सा है, जो उसे कष्ट देता है, वह मुझे कष्ट देता है; और जो मुझे कष्ट देता है, वह ईश्वर को कष्ट पहुँचाता है।
उन्होंने कहा कि हज़रते फ़ातिमा ज़हरा उपासना, पवित्रता और समझदारी में पूरी मानवता के लिए एक चमकता हुआ सितारा थीं।
अंत में उन्होंने हज़रत फ़ातिमा की शहादत की रात का ज़िक्र करते हुए दुख व्यक्त किया कि कुछ लोग आज भी उनकी शहादत को स्वीकार नहीं करते।
हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) को “सय्यदतुल निसाइल आलमीन” क्यों कहा जाता है?
आयम-ए-फ़ातिमिया के मौके पर बोलते हुए, हुज्जतुल इस्लाम अली मुहम्मद मुज़फ़्फ़री ने कहा कि हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (सला मुल्ला अलैहा) असलियत, नबूवत और इमामत के बीच एक रोशन कड़ी हैं, इसलिए उनके ज्ञान और जीवन को ज़िंदा रखना उम्मा की बौद्धिक और आध्यात्मिक ज़िंदगी के लिए ज़रूरी है।
आयम-ए-फ़ातिमिया के मौके पर बोलते हुए, हुज्जत-उल-इस्लाम अली मुहम्मद मुज़फ़्फ़री ने कहा कि हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (सला मुल्ला अलैहा) असलियत, नबूवत और इमामत के बीच एक रोशन कड़ी हैं, इसलिए उनके ज्ञान और जीवन को ज़िंदा रखना उम्मा की बौद्धिक और आध्यात्मिक ज़िंदगी के लिए ज़रूरी है। हज़रत ज़हरा (सला मुल्ला अलैहा) अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहो अलैहे वा आलेहि वसल्लम) की रूह हैं। उन्होंने सूरह अल-अहज़ाब की आयत 21 का ज़िक्र किया, “बेशक, अल्लाह के रसूल में तुम्हारे लिए एक अच्छी मिसाल है…” और कहा कि अल्लाह ने अपने आखिरी रसूल, हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (सल्लल्लाहो अलैहे वा आलेहि वसल्लम) को पूरी दुनिया के लिए सबसे अच्छी मिसाल बनाया है। जबकि शुद्धि की आयत (सूरह अल-अहज़ाब की आयत 33) के बारे में, सभी शिया और सुन्नी कमेंट करने वाले इस बात पर सहमत हैं कि हज़रत फ़ातिमा (सला मुल्ला अलैहा) इसकी मिसालों में से एक हैं। अहमद इब्न हनबल और थलाबी ने अबू सईद खुदरी से रिवायत किया है कि पवित्रता की आयत, "असल में, अल्लाह बस तुमसे नापाकी दूर करना चाहता है, ऐ घर के लोगों, और तुम्हें पवित्रता से पवित्र करना चाहता है," अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहो अलैहे वा आलेहि वसल्लम), अली (अलैहिस्सलाम), हसन (अलैहिस्सलाम), हुसैन (अलैहिस्सलाम), और फातिमा (सला मुल्ला अलैहा) के बारे में उतरी थी।
“फातिमा मेरा एक हिस्सा है” और “असल में, फातिमा मेरा एक हिस्सा है।”
हुज्जतुल इस्लाम मुज़फ़्फ़री ने सय्यद इब्नने ताऊस की किताब “अत-तराईफ़” का ज़िक्र करते हुए कहा कि सहीह बुखारी और सहीह मुस्लिम के अनुसार, अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहो अलैहे वा आलेहि वसल्लम) ने कहा:
“फातिमा मेरा एक हिस्सा है, इसलिए जो कोई उसे गुस्सा दिलाता है, वह मुझे गुस्सा दिलाता है।”
यानी, फातिमा मेरा एक हिस्सा हैं, जो उन्हें गुस्सा दिलाता है, वह मुझे गुस्सा दिलाता है।
इसी तरह, हकीम निशाबुरी ने “अल-मुस्तदरक” में रसूल (सल्लल्लाहो अलैहे वा आलेहि वसल्लम) की यह बात कोट की: “बेशक, फातिमा मेरी एक डाली हैं जो जो पकड़ती हैं, उसे पकड़ लेती हैं और जो फैलाती हैं, उसे फैलाती हैं।”
हज़रत ज़हरा (सला मुल्ला अलैहा), अमीरुल मोमिनीन (अलैहिस्सलाम) के वजूद की नींव
शेख सदूक़ ने “मआनी अल-अखबर” में जाबिर बिन अब्दुल्लाह की रिवायत कोट की है कि रसूल (सल्लल्लाहो अलैहे वा आलेहि वसल्लम) ने अपनी शहादत से तीन दिन पहले अमीरुल मोमेनीन (अलैहिस्सलाम) से फ़रमाया:
“ऐ दो सरकंडों के बाप, मैं तुम्हें दुनिया से आज़ाद होने की सलाह देता हूँ, तो जैसा चाहो करो।” "थोड़ा सा ही तुम्हारा पिलर झुक जाएगा"
यानी, "ऐ अली! मैं तुम्हें दो खुशबू देता हूँ, जल्द ही तुम्हारे दोनों पिलर टूट जाएँगे।"
अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहो अलैहे वा आलेहि वसल्लम) की मौत के बाद, हज़रत अली (अलैहिस्सलाम) ने कहा कि यह पहला पिलर था जो टूटा। फिर, जब हज़रत फ़ातिमा (सला मुल्ला अलैहा) शहीद हुईं, तो उन्होंने कहा: “यह दूसरा पिलर है जिसके बारे में अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहो अलैहे वा आलेहि वसल्लम) ने कहा।”
मुबाहिला की आयत और हज़रत ज़हरा (सला मुल्ला अलैहा) का रुतबा
उन्होंने मुबाहिला की आयत का ज़िक्र किया: “आओ, हम अपने बेटों और तुम्हारे बेटों को, अपनी औरतों और तुम्हारी औरतों को, और खुद को और तुम्हें बुलाएँगे…” और कहा कि सभी कमेंट करने वाले इस बात पर सहमत हैं कि “हमारी रूह” का मतलब अली इब्न अबी तालिब (अलैहिस्सलाम) से है।
क्योंकि हज़रत ज़हरा (सला मुल्ला अलैहा) पैगंबर (सल्लल्लाहो अलैहे वा आलेहि वसल्लम) का हिस्सा हैं, जैसा कि इब्न अब्बास ने बताया कि पैगंबर (सल्लल्लाहो अलैहे वा आलेहि वसल्लम) ने फ़रमाया:
“फ़ातिमा… वह रूह है जो मेरे दोनों तरफ़ है”
और अमीरुल मोमेनीन (अलैहिस्सलाम) के होने का भी हिस्सा हैं, इसलिए उन्हें सही मायने में पैगंबर (सल्लल्लाहो अलैहे वा आलेहि वसल्लम) की “रूह” कहा जा सकता है। इस आधार पर, वह “दुनिया की औरतों की औरत, पहली से आखिरी तक” हैं।
फ़ातिमी रस्मों की स्थापना: कुरान की रोशनी में तीन ज़रूरी काम
- अल्लाह का प्यार पाना
उन्होंने सूरह अन-निसा की आयत 148 को कोट किया, “अल्लाह बुराई के ख़िलाफ़ बोलना पसंद नहीं करता, सिवाय उस इंसान के जो नाइंसाफ़ करने वाला हो…” और कहा कि अल्लाह को दबे-कुचले लोगों के हक में ज़ोर-ज़ोर से आवाज़ उठाना पसंद है।
सय्यद इब्ने ताऊस ने हज़रत ज़हरा (सला मुल्ला अलैहा) से अपनी मुलाक़ात में लिखा है:
السَّلامُ عَلَیْکَ أَیَّتُهَا الْمَظْلُومَةُ الْمَمْنُوعَةُ حَقُّها अस्सलामो अलैके अय्यतोहल मज़लूमतुल ममनूआतो हक़्क़ोहा “तुम पर शांति हो, तुम पर ज़ुल्म हो, तुम पर, तुम पर हराम है, उसका हक़।”
शिया और सुन्नी परंपराओं में यह साबित है कि फ़दक पर कब्ज़ा किया गया, घर पर हमला किया गया, और पैगंबर (सल्लल्लाहो अलैहे वा आलेहि वसल्लम) के कुछ साथियों को नाइंसाफ़ी में शहीद कर दिया गया।
इसलिए, उनके ज़ुल्म को याद करना कुरान के अनुसार “बुराई के ख़िलाफ़ बोलने” का एक उदाहरण है, और यह काम इंसान को भगवान के प्यार के और करीब लाता है।
- इनाम देना
सूरह शूरा की आयत 23 कहती है:
قُلْ لا أَسْئَلُکُمْ عَلَیْهِ أَجْراً إِلاَّ الْمَوَدَّةَ فِی الْقُرْبی क़ुल ला अस्अलोकुम अलैहे अजरन इल्लल मवद्दता फ़िल क़ुर्बा “कहो, मैं तुमसे नज़दीकी में प्यार के अलावा कोई इनाम नहीं माँगता।”
अहमद बिन हनबल ने बताया कि जब पूछा गया:
مَنْ قَرَابَتُکَ الَّذِینَ وَجَبَتْ مَوَدَّتُهُم؟ मन क़राबतोकल लज़ीना वजबत मवद्दतोहुम ?“उन लोगों के रिश्तेदार कौन हैं जिन्होंने अपना समय लिया?”
अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहो अलैहे वा आलेहि वसल्लम) ने कहा:
عَلِیٌّ وَ فَاطِمَةُ وَ ابْنَاهُمَا अलीयुन व फ़ातेमतो वबनाहोमा "अली और फातिमा और उनके बच्चे"
इसलिए, फातिमी रस्मों का फिर से शुरू होना असल में अहल अल-बैत के प्यार और 23 साल की नबूवत की वजह से है।
- दोबारा ज़िंदा होने में बरकत के बारे में सवाल का जवाब
अल्लाह ने सूरह इब्राहिम आयत 7 में कहा:
لَئِنْ شَکَرْتُمْ لَأَزِیدَنَّکُمْ… लइन शकरतुम लअज़ीदन्नकुम "
इमाम बाकिर (अलैहिस्सलाम) ने सूर ए तकासुर की आयत 8 की तफ़सीर में फ़रमाया:
उसके बारे में "نَحْنُ النَّعِیمُ الَّذِی تُسْأَلُونَ عَنْه नहनो अन नईमुल लज़ी तुस्अलूना अन्हो"।
इमाम सादिक (अलैहिस्सलाम) ने सुदीर के सवाल के जवाब मे फ़रमाया: حُبُّ عَلِیٍّ وَ عِتْرَتِهِ یَسْأَلْهُمُ اللَّهُ یَوْمَ الْقِیَامَةِ کَیْفَ کَانَ شُکْرُکُمْ… हुब्बो अलीइन व इत्रतेहि यस्अलोहोमुल्लाहो यौमल क़ियामते क़ैफ़ा काना शुक्रोकुम ...”
यानी, अली (अलैहिस्सलाम) और अहले-बैत (अलैहिस्सलाम) की हिफ़ाज़त का प्यार अल्लाह की एक बड़ी नेमत है, जिसका राज़ मातम और फ़ातिमी रस्मों को फिर से शुरू करना है।
महिलाओं के लिए खुत्बा ए फ़दकिया की शिक्षाएँ!
हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (सला मुल्ला अलैहा) का फ़दक वाला खुत्बा न सिर्फ़ राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर रोशनी डालता है, बल्कि इसमें महिलाओं के लिए आध्यात्मिक, नैतिक और सामाजिक शिक्षाएँ भी शामिल हैं।
हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (सला मुल्ला अलैहा) का फ़दक वाला ख़ुत्बा न सिर्फ़ राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर रोशनी डालता है, बल्कि इसमें महिलाओं के लिए आध्यात्मिक, नैतिक और सामाजिक शिक्षाएँ भी शामिल हैं।
फ़दक वाले खुतबे में महिलाओं को दिए गए भाषण की मुख्य बातें इस तरह हैं:
- ईमान और नेकी पर ज़ोर
- सही और गलत में फर्क करना
- सब्र और लगन
- ज्ञान और जागरूकता का महत्व
- सामाजिक भूमिका और न्याय और निष्पक्षता स्थापित करने की ज़िम्मेदारी
- ईमान और नेकी पर ज़ोर
हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सला मुल्ला अलैहा ने सबसे पहले महिलाओं को ईमान और नेकी पर टिके रहने की शिक्षा दी।
"يَا نِسَاءَ الْمُؤْمِنِينَ اتَّقِينَ اللَّهَ وَاحْفَظْنَ أَمَانَاتِكُنَّ" या नेसाअल मोमेनीनत तक़ीनल्लाहा वहफ़ज़्ना अमानातेकुन्ना
ऐ ईमान वाली महिलाओं! अल्लाह से डरो और अपनी अमानतों की रक्षा करो!
स्पष्टीकरण:
सच्चाई और अमानत में नेकी हर ईमान वाली महिला के लिए बुनियादी उसूल हैं।
महिलाओं से अपने अधिकारों और ज़िम्मेदारियों के प्रति सावधान रहने की अपील की जाती है।
यह शिक्षा महिलाओं की घरेलू और सामाजिक दोनों भूमिकाओं के लिए गाइडेंस देती है।
- सही और गलत में फर्क करना
फ़दक के खुतबे में औरतों को दी गई बात में सबसे ज़रूरी बात है सही और गलत की पहचान करना और उसके लिए खड़ा होना।
"فَإِنَّ اللَّهَ يَرْضَى لَكُنَّ بِالْحَقِّ وَيَنْهَى عَنِ الْبَاطِلِ" फ़इन्नल्लाहा यरज़ा लकुन्ना बिल हक़्क़े व यन्हा अनिल बातेले
अल्लाह चाहता है कि तुम सच पर खड़े रहो और झूठ से बचो!
स्पष्टीकरण:
सच पर खड़े रहना और झूठ का विरोध करना औरतों की नैतिक और रूहानी ज़िम्मेदारी है।
औरतों को समाज में इंसाफ़ और इंसाफ़ कायम करने का मैसेज दिया गया है।
एतिहासिक बैकग्राउंड:
पैगंबर (सल्लल्लाहो अलैहे वा आलेहि वसल्लम) की मौत के बाद फ़दक पर कब्ज़ा करना एक पॉलिटिकल घटना थी।
हज़रत फ़ातिमा (सला मुल्ला अलैहा) ने औरतों को मैसेज दिया कि समाज में नाइंसाफ़ी के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाना ज़रूरी है।
- सब्र और हिम्मत
खुतबे में औरतों से ज़ुल्म और अत्याचार का सामना करने के लिए सब्र और मज़बूत रहने की अपील की गई।
"وَاصْبِرْنَ عَلَى الظُّلْمِ وَثِقْنَ بِاللَّهِ" वस्बिरना अलज़ ज़ुल्मे वसिक़्ना बिल्लाहे
ज़ुल्म के सामने सब्र रखें और अल्लाह पर भरोसा रखें!
स्पष्टीकरण:
सब्र और हिम्मत औरतों की रूहानी ताकत की निशानी है।
समाज में उनकी मज़बूती न सिर्फ़ परिवार को बनाए रखती है, बल्कि सामाजिक न्याय और निष्पक्षता भी बनाए रखती है।
प्रैक्टिकल पहलू:
ज़ुल्म या नाइंसाफ़ी के हालात में भी सच्चे रहना।
किसी भी सामाजिक या घरेलू मामले में सच्चे रहना।
- ज्ञान और जागरूकता का महत्व
हज़रत फ़ातिमा ने औरतों से ज्ञान हासिल करने और जागरूकता बढ़ाने की अपील की, ताकि वे सही और गलत में फ़र्क कर सकें।
"وَتَعَلَّمْنَ مَا يَهْدِيكُنَّ إِلَى الْحَقِّ وَالْعَدْلِ" व तअल्लम्ना मा यहदीकुन्ना एलल हक़्क़े वल अद्ले
ज्ञान हासिल करो! वह जो तुम्हें सच और इंसाफ़ की तरफ़ ले जाए।
स्पष्टीकरण:
ज्ञान और जागरूकता के बिना सही और गलत में फ़र्क करना मुमकिन नहीं है।
महिलाओं की सामाजिक, नैतिक और धार्मिक भूमिकाओं के लिए ज्ञान ज़रूरी है।
ऐतिहासिक पहलू:
उस समय, महिलाओं के ज्ञान और जागरूकता का महत्व कम माना जाता था।
हज़रत फ़ातिमा ने महिलाओं को सच और इंसाफ़ की तरफ़ ले जाने के लिए तैयार किया।
- न्याय स्थापित करने के लिए सामाजिक भूमिका और ज़िम्मेदारी
हज़रत फ़ातिमा ने महिलाओं को समाज में न्याय और इंसाफ़ स्थापित करने की ज़िम्मेदारी भी दी।
فَاتَّقِينَ اللَّهَ وَأَقِيمْنَ الْحَقَّ وَلا تَخْشَيْنَ فِي سَبِيلِهِ أَحَدًا फ़त्तक़ीनल्लाहा व अक़ीमनल हक़्क़ा वला तख़शयना फ़ी सबीलेही अहदन
अल्लाह से डरो, सच को स्थापित करो, और उसके रास्ते में किसी से मत डरो!
स्पष्टीकरण:
महिलाओं के लिए यह संदेश सच को स्थापित करने में डर को दूर करना है।
समाज में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी सच और इंसाफ़ स्थापित करने में मददगार साबित होती है।
काम की बातें:
- समाज में ज़ुल्म या नाइंसाफ़ी के खिलाफ़ आवाज़ उठाना।
- घर और बाहर, दोनों जगहों पर इंसाफ़ और सही माहौल बनाना।
- जानकारी, सब्र और लगन से समाज में अपनी भूमिका निभाना।
नतीजा
फ़दक के खुत्बे में औरतों को संबोधित करते हुए, हज़रत फ़ातिमा अल-ज़हरा (उन पर शांति हो) ने ये बातें साफ़ कीं:
- ईमान और तक़वा में पक्के रहें
- सही और गलत में फ़र्क करें
- सब्र और पक्के रहें
- जानकारी और जागरूकता से सच को पहचानें
- समाज में इंसाफ़ और सही माहौल बनाना
यह खुत्बा आज भी औरतों को रूहानी, नैतिक और समाज में रास्ता दिखाता है और इस्लाम में औरतों की एक्टिव भूमिका पर रोशनी डालता है।
लेखक: सय्यदा बुशरा बतूल नक़वी
तेहरान के इमाम ख़ुमैनी (र) इमामबाड़े में हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) की शहादत के मौके पर मजलिस का आयोजन
हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के शहादत के मौके पर शुक्रवार 21 नवम्बर 2025 की रात को तेहरान के इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लहिल उज़मा ख़ामेनेई सहित हज़ारों की तादात में मोमनीन पहली मजलिस मैं उपस्थित हुए।
हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के शहादत के मौके पर शुक्रवार 21 नवम्बर 2025 की रात को तेहरान के इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लहिल उज़मा ख़ामेनेई सहित हज़ारों की तादात में मोमनीन पहली मजलिस मैं उपस्थित हुए।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन जनाब रहीम शरफ़ी ने मजलिस पढ़ी। उन्होंने पवित्र क़ुरआन की आयतों के हवाले से इस्लामी समाज में दुश्मन की योजना और लक्ष्यों की व्याख्या करते हुए कहा, "फूट और मतभेद""शक पैदा करना" और "आर्थिक पाबंदियां" वे चीज़ें हैं जिनके ज़रिए दुश्मनों ने इस्लामी समाज के रेज़िस्टेंस और दृढ़ता को तोड़ने की हमेशा कोशिश की है, इसलिए दुश्मन के लक्ष्यों की ओर से सावधान रहना चाहिए।
मजलिस में जनाब सईद हद्दादियान ने हज़रत ज़हरा की शान का नौहा और मर्सिया पढ़ा
हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) ने विलायत का बचाव किया
अय्याम ए फ़ातमिया के मौके पर, ईरान की आर्म्ड फ़ोर्सेज़ के ज्यूडिशियल इंस्टीट्यूशन में एक मजलिस का आयोजन किया गया, जिसमें हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन ताहेरी ने बात की और कहा कि हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (सला मुल्ला अलैहा) के जीवन की सबसे बड़ी नेकी यह थी कि उन्होंने विलायत का बचाव किया, और यह बचाव सिर्फ़ उनके परिवार के लिए ही नहीं था, बल्कि इसलिए भी था ताकि समाज में एक धार्मिक सरकार बन सके।
ईरान की आर्म्ड फ़ोर्सेज़ के ज्यूडिशियल इंस्टीट्यूशन में एक मजलिस का आयोजन किया गया, जिसमें हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन ताहेरी ने बात की।
उन्होंने कहा कि हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (सला मुल्ला अलैहा) की ज़िंदगी की सबसे बड़ी नेकी यह थी कि उन्होंने अपने हुक्म की हिफ़ाज़त की, और यह हिफ़ाज़त सिर्फ़ अपने परिवार के लिए नहीं थी, बल्कि इसलिए भी थी ताकि समाज में एक धार्मिक सरकार बन सके।
उन्होंने कहा कि अल्लाह ने लोगों को रास्ता दिखाने के लिए अक्ल और रोशनी दी, और नबी भेजे ताकि लोग सच्चाई के रास्ते पर चल सकें।
उन्होंने अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहो अलैहे वा आलेहि व सल्लम) के इस हदीस का ज़िक्र किया, “बेशक, मैं तुम्हारे बीच वज़नी चीज़ छोड़ जाऊँगा…” और कहा कि कुरान और अहले बैत (अ) ही ऐसे रास्ते हैं जिन पर चलकर इंसान मुक्ति पा सकता है।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन ताहेरी ने कहा कि जो इंसान अल्लाह के हुक्मों को जानता है, वही राज करने के काबिल है। अगर दुनिया में ऐसा होता, तो न गरीबी होती, न भ्रष्टाचार होता, और न इतनी हत्या और तबाही होती।
उन्होंने कहा कि हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (सला मुल्ला अलैहा) ने इसी मकसद से गार्डियनशिप की हिफ़ाज़त की और इसी रास्ते में शहीद हुईं। “उनकी हिफ़ाज़त सिर्फ़ उनके पति या रिश्तेदारों या उनके परिवार की वजह से नहीं थी, बल्कि इसलिए थी ताकि अमीरुल मोमेनीन (अलैहिस्सलाम) के ज़रिए अल्लाह की सरकार बन सके और इंसानियत को फ़ायदा हो।”
मजलिस की शुरुआत अहले बैत (अलैहेमुस्सलाम) के एक चाहने वाले बहरामी के एक दुख भरे मरसिय से हुई।
बाद में, संस्था के हेड के साथ एक मीटिंग में, होज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन ताहेरी ने इस इवेंट में मज़दूरों की ऑर्गनाइज़्ड और जोश से भरी हिस्सेदारी की तारीफ़ की और कहा कि इस संस्था में एक धार्मिक और क्रांतिकारी भावना है, जिसका सबसे अच्छा उदाहरण आज की मीटिंग में देखा गया।













