رضوی
हज़रत ज़हरा (स) और गुनाहगारों की शफ़ाअत
हज़रत फ़ातिमा (सला मुल्ला अलैहा) ने एक रिवायत में अपने मक़ाम और मंज़िलत की ओर इशारा किया है।
निम्नलिखित रिवायत "अहक़ाक अल-हक़" किताब से ली गई है। इस रिवायत का पाठ इस प्रकार है:
قالت فاطمۃ سلام الله علیها:
إذا حُشِرتُ یَومَ القِیامَةِ أشفَعُ عُصاةَ اُمَّةِ النَّبِیّصلی الله علیه وآله
हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (सला मुल्लां अलैहा) ने फ़रमाया:
जब मैं क़यामत के दिन महशूर हूँगी, तो पैग़म्बर (सल्लल्लाहो अलैहे वा आलेहि व सल्लम) के गुनाहगारों की शफ़ाअत करूँगी?
अहक़ाक अल-हक़, भाग 19, पेज 129
अगर हमारे घरों और समाज में फ़ातिमी सिस्टम क़ायम हो जाए, तो हमारा समाज जन्नत जैसा बन सकता है
हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (सला मुल्ला अलैहा) पैग़म्बर (सल्लल्लाहो अलैहे वा आलेहि व सल्लम) की प्यारी, जन्नत की शहज़ादी की शहादत के मौके पर अमरोहा शहर में बड़े पैमाने पर मजलिसो का आयोजन किया गया।
हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (सला मुल्ला अलैहा) पैग़म्बर (सल्लल्लाहो अलैहे वा आलेहि व सल्लम) की प्यारी, जन्नत की शहज़ादी की शहादत के मौके पर अमरोहा शहर में बड़े पैमाने पर मजलिसो का आयोजन किया गया। इस मौके पर शहर का माहौल गमगीन था।
मौलाना सैयद शाहवर हुसैन नक़वी ने अज़ाखाना वज़ीर-ए-निसा मोहल्ला अल-मजनामीन, अज़ाखाना हक्कानी और अज़ाखाना मोहल्ला मजापुटा में मजलिसो को संबोधित किया।
उन्होंने सैयदा की सीरत के अलग-अलग पहलुओं पर विस्तार से रोशनी डाली और कहा कि अगर फातिमा ज़हरा (सला मुल्ला अलैहा) की सीरत को सही तरीके से माना जाए, तो हमारे घरों में कोई मतभेद नहीं हो सकता।
उन्होंने आगे कहा कि अय्याम ए फातिमा मनाने का मकसद इस पवित्र जीवन की खूबियों को दुनिया के सामने पेश करना है, ताकि लोग इस जीवन से फायदा उठा सकें और इसे प्रैक्टिकल जीवन में अपना सकें।
उन्होंने आगे कहा कि अगर हमारे घरों और समाज में फातिमी सिस्टम कायम हो जाए, तो हमारा समाज जन्नत जैसा बन सकता है।
मौलाना सैयद यूसुफ अहमद ने अज़ाखाना मोहल्ला जाफरी में पांच जलसों को संबोधित करते हुए राजकुमारी की खूबियों और गुणों पर रोशनी डाली।
इन पांच मजलिसो को सैयद अख्तर अब्बास अपो ने आयोजित किया
सुप्रीम लीडर की मौजूदगी में हज़रत ज़हरा (सला मुल्ला अलैहा) की शहादत दिवस पर शामे गरीबा का आयोजन
इमाम बाड़ा इमाम खुमैनी (र) में अज़ादारी की चौथी रात के साथ ही, हज़रत ज़हरा (सला मुल्ला अलैहा) की शहादत दिवस पर शामे गरीबा (सोमवार शाम) इस्लामिक क्रांति के लीडर और हज़ारों फ़ातिमी अज़ादारो और लोगों के अलग-अलग तबकों की मौजूदगी में ओयोजित हुई।
इस शामे ग़रीबा में, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मसऊद अली ने अपनी तक़रीर में समाज में और फ्रंट ऑफ़ ट्रुथ में सोशल और असरदार मशहूर और नेगेटिव लोगों के रोल को समझाते हुए कहा: हज़रत ज़हरा (सला मुल्ला अलैहा) ने फ्रंट ऑफ़ ट्रुथ के सबसे बड़े मशहूर इंसान, यानी हज़रत अमीरुल मोमेनीन अली (अलैहिस्सलाम) को अपने कामों और बयानों से बचाया, और सबसे बड़े नेगेटिव इंसान, फ्रंट ऑफ़ विलायत से भटकाव को रोककर, वह असल में "फ्रंट ऑफ़ ट्रुथ की रक्षक" बनीं।
साथ ही, इस मजलिस में, महमूद करीमी ने हज़रत सिद्दीका (सला मुल्ला अलैहा) के दुख में एक मरसिया और नौहा पढ़ा।
लेबनान के रक्षा के लिए प्रतिरोध ज़रूरी। हिज़्बुल्लाह
लेबनान की संसद में वफादारी ब्लॉक के एक सदस्य ने कहा कि वास्तविक संप्रभुता के बिना स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं है, प्रतिरोध कभी अपने हथियार नहीं छोड़ेगा।
लेबनान की संसद में प्रतिरोध से जुड़े वफादारी ब्लॉक के सदस्य इहाब हमादे ने कहा कि प्रतिरोध सभी लेबनानियों की रक्षा करता है न कि किसी एक संप्रदाय या क्षेत्र की, और जो भी इसके विपरीत सोचता है वह गलत है।
उन्होंने कहा,प्रतिरोध पूरे लेबनान और सभी लेबनानियों की बिना उनकी पहचान और संप्रदाय के रक्षा करता है।
हमादे ने कहा कि शहीद देश की मज़बूती के स्तंभ हैं। उनकी याद को ज़िंदा रखना, अपनी पहचान और स्थिरता को ताज़ा करना है। वे हमारे भविष्य की रक्षा करते हैं, और उन्हें याद रखना वास्तव में खुद को और अपने मूल्यों को ज़िंदा रखना है।
उन्होंने कहा कि हम स्वतंत्रता का जश्न मना रहे हैं, जबकि हमारी ज़मीन पर ज़ायोनी दुश्मन का कब्ज़ा है, हमारे आकाश पर दुश्मन के लगातार हमले हो रहे हैं। इसके बावजूद कुछ लोग संप्रभुता और स्वतंत्रता की बात करते हैं। जब कुछ समूहों के फैसले हमारे दुश्मन से जुड़े हों, तो ऐसी स्वतंत्रता का क्या अर्थ है?
हमादे ने कहा कि लेबनान को खतरों का सामना करने के लिए एकजुट राष्ट्रीय रुख अपनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि जिस खतरे का हम सामना कर रहे हैं वह सिर्फ शिया समुदाय के खिलाफ नहीं, बल्कि पूरे लेबनान के अस्तित्व के खिलाफ है।
प्रतिरोध का विकल्प दृढ़ है और प्रतिरोध का हथियार राष्ट्रीय रक्षा की लक्ष्मण रेखा है, जिसे कमज़ोर नहीं किया जा सकता। हमादे ने कहा कि हम कभी अपने हथियार नहीं डालेंगे, हम दुश्मन से लड़ेंगे और जीतेंगे
नान की संसद में वफादारी ब्लॉक के एक सदस्य ने कहा कि वास्तविक संप्रभुता के बिना स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं है, प्रतिरोध कभी अपने हथियार नहीं छोड़ेगा।
लेबनान की संसद में प्रतिरोध से जुड़े वफादारी ब्लॉक के सदस्य इहाब हमादे ने कहा कि प्रतिरोध सभी लेबनानियों की रक्षा करता है न कि किसी एक संप्रदाय या क्षेत्र की, और जो भी इसके विपरीत सोचता है वह गलत है।
उन्होंने कहा,प्रतिरोध पूरे लेबनान और सभी लेबनानियों की बिना उनकी पहचान और संप्रदाय के रक्षा करता है।
हमादे ने कहा कि शहीद देश की मज़बूती के स्तंभ हैं। उनकी याद को ज़िंदा रखना, अपनी पहचान और स्थिरता को ताज़ा करना है। वे हमारे भविष्य की रक्षा करते हैं, और उन्हें याद रखना वास्तव में खुद को और अपने मूल्यों को ज़िंदा रखना है।
उन्होंने कहा कि हम स्वतंत्रता का जश्न मना रहे हैं, जबकि हमारी ज़मीन पर ज़ायोनी दुश्मन का कब्ज़ा है, हमारे आकाश पर दुश्मन के लगातार हमले हो रहे हैं। इसके बावजूद कुछ लोग संप्रभुता और स्वतंत्रता की बात करते हैं। जब कुछ समूहों के फैसले हमारे दुश्मन से जुड़े हों, तो ऐसी स्वतंत्रता का क्या अर्थ है?
हमादे ने कहा कि लेबनान को खतरों का सामना करने के लिए एकजुट राष्ट्रीय रुख अपनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि जिस खतरे का हम सामना कर रहे हैं वह सिर्फ शिया समुदाय के खिलाफ नहीं, बल्कि पूरे लेबनान के अस्तित्व के खिलाफ है।
प्रतिरोध का विकल्प दृढ़ है और प्रतिरोध का हथियार राष्ट्रीय रक्षा की लक्ष्मण रेखा है, जिसे कमज़ोर नहीं किया जा सकता। हमादे ने कहा कि हम कभी अपने हथियार नहीं डालेंगे, हम दुश्मन से लड़ेंगे और जीतेंगे
हज़रत फ़ातेमा ज़हरा का मरसिया
हज़रत फ़ातेमा ज़हरा पर दुखों के पहाड़ कब से टूटना आरम्भ हुए इसके बारे में यही कहा जा सकता है कि जैसे ही पैग़म्बरे इस्लाम ने इस संसार से अपनी आखें मूंदी, मुसीबतें आना आरम्भ हो गईं, और इन मुसीबतों का सिलसिला एक के बाद एक बढ़ता ही चला गया।
इतिहासकारों ने लिखा है कि पैग़म्बर की शहादत के बाद तीन दिन तक उनका जनाज़ा रखा रहा और मुसलमान सक़ीफ़ा नबी साएदा में अबूबक्र की ख़िलाफ़त में व्यस्त रहे, और यह केवल अली और उनके कुछ साथी ही थे जिन्होंने पैग़म्बर को दफ़्न किया।
आपके दफ़्न के बाद कुछ लोग हज़रते ज़हरा के पास आए और आपके सामने पैग़म्बर की वफ़ात पर शोक व्यक्त किया तो आपने फ़रमायाः कैसे तुम्हारे दिलों ने यह गवारा किया कि उनके पवित्र शरीर को दफ़्न कर दो? जब्कि वह नबी रहमत और لولاك لما خلقت الافلاك के मिस्दाक़ थे।
लोगों ने कहाः हे पैग़म्बर की बेटी हमें भी दुख हैं लेकिन ईश्वर की मर्ज़ी के आगे किसकी चलती है, यही वह समय था कि जब फ़ातेमा ने चीख़ मारी और पैग़म्बर की क़ब्र पर आईं और उसकी मिट्टी को उठाकर अपनी आँखों पर मली और आप बेताबी के साथ रोती जाती थी और आपकी क़ब्र के पास आपने इस प्रकार मरसिया पढ़ा।
قل للمغيّب تحت اثواب الثري
ان كنت تسمع صرختي و ندائيا
صبت علي مصائب لو انها
صبت علي الايام صرن لياليا
قد كنت ذات حميً بظلّ محمد
لا اخش من ضيم و كان حماليا
فاليوم اخضع للذليل و اتّقي
ضيمي و ادفع ظالمي بردائيا
فاذا بكت قمريّة في ليلها
شجنا علي غصن بكيت صباحيا
فلاجعلنّ الحزن بعدك مونسي
ولا جعلن الدمع فيك و شاحيا
अनुवादः जिसने अहमद (स) की पवित्र क़ब्र की ख़ुश्बू को सूंघा हैं उसको इत्र सूंघने की आवश्यकता नहीं है, मुझ पर वह मसाएब ढाए गए कि अगर दिनों पर पड़ते तो वह रात की तरह अंधेरे हो जाते, कह दो उससे जो मिट्टी के कपड़ों के नीचे छिप गया है, अगर होते तो मेरी फ़रियाद और नाले को सुनते, मैं मोहम्मद (स) के साये में समर्थित थी, और आपके परचम के नीचे मुझे किसी भी ज़ुल्म का डर नहीं था, लेकिन आज मैं तुच्छ लोगों से पामाल हो गई और मैं डरती हूं उस अत्याचार से जो मुझपर हो रहे हैं, और मैं अपनी चादर से ख़ुद की सुरक्षा कर रही हूं, और जिस प्रकार अंधेरी रात में चांद शाखाओं पर रोता है मैं भी ग़म के साथ सुबह और शाम रोती हूं, हे पिता आपके बाद मेरा हमदम मेरा ग़म है, यानी ग़म और दुखों को मैं आपके बाद आपना हमदम बना लिया है, और आपकी जुदाई में आसुओं को मैंने अपने गले की माला बना लिया है।
हज़रत फ़ातेमा ज़हरा उम्महातुल मोमिनीन की नज़र में
ख़ुदावन्दे आलम ने बज़्मे इंसानी के अंदर हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम से बेहतर किसी को ख़ल्क नहीं फरमाया। आप सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की ज़ात क़ुरआन के आईने में अख़्लाक़े करीमा का मुजस्समा है।
हज़रत फ़ातेमा ज़हरा उम्महातुल मोमिनीन की नज़र में
ख़ुदावन्दे आलम ने बज़्मे इंसानी के अंदर हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम से बेहतर किसी को ख़ल्क नहीं फरमाया।
आप सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की ज़ात क़ुरआन के आईने में अख़्लाक़े करीमा का मुजस्समा है।
जिसकी गवाही क़ुरआने मजीद ने यह कह कर दी है (इन्नका लअला खुलुक़िन अज़ीम) परवरदिगारे आलम ने आप सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की ख़िलक़त को
कायनात की ख़िलक़त का सबब क़रार दिया है। चुनाँचे एक मशहूर हदीस क़ुद्सी में आप सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की क़द्रो मंज़ेलत यूं बयान की गई है।
(लौ लाक लमा ख़लक्तुल अफलाक) ऐ मेरे हबीब अगर आप न होते तो मैं कायनात को ख़ल्क़ न करता।
इंसान अल्लाह की बेहतरीन मख़लूक है और अल्लाह ने उसे मर्दो ज़न के क़ालिब में ख़ल्क़ करने के बाद मुख्तलिफ़ ख़ानदान और क़बीले और रँगो नस्ल में ढाला है।
साथ ही उसकी हिदायत के लिए नबीयों और रसूलों का एक तूलानी सिलसिला क़ायम किया। राहे नूर की तरफ़ हिदायत
करने वाले ये अम्बिया व मुरसलीन इन्सानों को जेहालत की तारीकियों से निकाल कर इल्म और नूर की फिज़ा में लाते रहे और उन्हें खुदा से करीब करते रहे।
लेकिन उन्हीं के साथ साथ कुछ ऐसे अनासिर भी थे जो शैतान के फ़रेब में मुब्तला होकर गुमराह होते रहे या खुद शैतान बन कर दूसरे इन्सानों को गुमराहियों और तरीकियों में ढ़केलते रहे।
खुदावन्दे आलम ने मर्दो ज़न को अपनी इलाही फित्रत पर पैदा किया है और उनमें से हर एक के फरायज़ व वज़ायफ़ मुअय्यन किऐ हैं जो उनकी तबीयत,
मेज़ाज और जिस्मानी साख़्त से हम आहँगी रखते हैं। घर की साख़्त और पुर अम्न ख़ान्वादे की तश्कील के लिए बाज़ जेहतों से मर्द को फ़ौक़ीयत
देकर फरमाया कीः (अर रेजालो क़व्वामूना अलन निसा) और बाज़ जेहतों से दोनों की एक दूसरे पर सरपरस्ती को बयान किया।
(अल मोमेनूना वल मोमेनाते बाज़ो हुम अवलियाओ बाज़) इस तरह से ज़ेहन से ये बात दूर कर दी कि औरत मर्द से पस्त और हक़ीर कोई मख्लूक़ है।
जब आँ हज़रत सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की रेसालत का ज़हूर होने वाला था उस दौरान जाहिल अरबों के दरमियान औरत इन्तेहाई पस्त और हक़ीर वुजुद थी।
लूट मार और क़त्लो ग़ारत की ज़िन्दगी बसर करने वाले अरब अपनी शिकस्त के बाद झूठी बे इज़्ज़ती और बे आबरुई से बचने के लिए घरों में पैदा होने वाली लड़कियों को ज़िन्दा दफ्न कर देते थे।
परवरदिगारे आलम ने ऐसे माहौल में अपने हबीब रहमतुल लिल आलमीन और खुल्क़े अज़ीम पर फायज़ पैग़म्बर को मुरसले आज़म बना कर भेजा और अपनी ख़ास हिक्मत
के तहत आप सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम को बेटी अता फ़रमाई और उसके लिए आला हस्बो नस्ब से आरास्ता मक्का की
अज़ीम ख़ातून जनाबे ख़दीजा की आगोश का इन्तेख़ाब किया। आँ हज़रत सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की मशहूर व मारुफ़ हदीस जिसे
तमाम उलमा ए इस्लाम ने अपनी किताबों में नक्ल किया है यानी (फ़ातेमतो बज़अतो मिन्नी) फ़ातेमा मेरा टुकड़ा हैं।
मुम्किन है इसी हकीक़त के तहत हो की एक तरफ़ तो बेटी बाप के वुजुद का हिस्सा होती है
उस ऐतेबार से भी क़ाबिले ऐहतेराम है और दूसरी तरफ़ हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा,
आँ हज़रत सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम के वुजुद का हिस्सा होने के सबब पूरी उम्मत के लिए मोहतरत हैं।
इसलिए की क़ुरआने करीम पूरी वज़ाहत के साथ आँ हज़रत सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम को आम इन्सान के बजाय सिर्फ़ रसूल जानता है।
(वमा मुहम्मद इल्ला रसूल) ----- मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम रसूल के अलावा और कुछ नहीं हैं।
लेहाज़ा इस आयत की रौशनी में हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा जुज़् ए रेसालत हैं।
बहरहाल बेटी की हैसियत से औरत के मरतबे और उसकी मन्ज़ेलत को बज़्मे इन्सानी और ख़ुसुसन दुनिया ए इस्लाम में नुमायाँ करने के लिए क़ुदरत ने
आँ हज़रत सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम को फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा की शक्ल में ये गौहरे आबदार अता फरमाया था।
अब हम देखते हैं कि ये अज़ीम अतीया जो अल्लाह ने पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम को बख्शा कितना क़ीमती था।
हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा कितने सेफ़ात व कमालात की हामिल थीं और खुद पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम ने इस्लामी और कुरआनी
तालीम के गहवारे में अपनी बेटी की कैसी तरबीयत फरमाई थी।
सरेदस्त इस मक़ाले में उस ग्रान क़द्र शख्सीयत की अज़मत का जाएज़ा उम्महातुल मोमिनीन के अक़वाल में लेते हैं और ये देखते हैं कि हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा
अज़्वाजे पैग़म्बर की निगाह में किस फज़्लो शरफ़ की हामिल थीं।
जन्नत का मेवा
दामने इस्लाम में परवान चढ़ने वाली इस नौ मौलूद दुख्तर की अज़्मत और करामत के लिए हम यहाँ सबसे पहले उम्मुल मोमेनीन आयशा से हस्बे ज़ैल रिवायत नक्ल करते हैं जिसे शिया और अहले सुन्नत दोनों उलमा ने नक्ल किया है कि रसूले खुदा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम शफ़क़त और मुहब्बत से अपनी बेटी फ़ातेमा का बोसा लिया करते थे।
आयशा इस हालत को देख कर तअज्जुब किया करती थीं आख़िर उन्होंने आँ हज़रत सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम से सवाल कर लिया कि आप अपनी बेटी
फ़ातेमा से इस तरह मुहब्बत का बर्ताव करते हैं जैसे किसी से नहीं करते। मैंने नहीं देखा की कोई इस तरह अपनी बेटी से शफ़क़त व मुहब्बत का बर्ताव करता हो।
फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा रहमे मादर में
इमाम जाफ़रे सादिक अलैहिस्सलाम ने मुफज़्ज़ल बिन उमर से एक हदीस ब्यान करते हुऐ फरमाया कि जब पैग़म्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम
ने जनाबे खदीजा से शादी की तो मक्का की औरतों ने जनाबे ख़दीजा से राब्ता तोड़ लिया। न उनके घर जाती थीं और न उनको सलाम करती थी।
जब जनाबे ख़दीजा के बत्न में जनाबे फ़ातेमा आईं तो आप अपनी माँ से बातें करती थीं और उन्हें सब्र दिलाती थीं,
जनाबे ख़दीजा इस बात को पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम से छुपाती थीं।
एक रोज़ पैग़म्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम घर में दाख़िल हुए तो आपने ख़दीजा को किसी से बात करते हुए सुना।
हज़रत ने दरयाफ्त फ़रमाया कि ऐ खदीजा आप किस से बातें कर रही थीं तो उन्होंने कहाः या रसूलल्लाह मेरे शिक्म में जो बच्चा है वह मेरी तन्हाई का मुनीस है और मुझसे बातें करता है।
पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम ने फरमायाः ऐ खदीजा ये जिब्रईल हैं और मुझे ख़बर दे रहे हैं कि ये बच्चा दुख्तर है।
उससे पाकीज़ा नस्ल वुजुद में आयेगी और मेरी नस्ल भी उसी बेटी से होगी और उसकी नस्ल से अईम्मा पैदा होंगे।
मज़कूरा रिवायत से कई बातें मालूम होती हैं
एक यह की जनाबे ख़दीजा जैसी मक्का की बा अज़मत ख़ातून ने जब अख़लाक़ व किरदार के अज़ीम पैकर और बज़ाहीर माद्दी ऐतेबार से कमदर्जे के इंसान
हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम से शादी की तो दुनिया के ज़ाहरी शॉनो शौकत पर मरने वाली ख़्वातीन ने जनाबे ख़दीजा से रॉब्ता तोड़ लिया,
लेकिन जनाबे ख़दीजा ने इसका कोई मलाल न किया और अपने अज़ीम अख्लाक़ व किरदार के हामिल शौहर की वफादार रहीं। ये बात जनाबे ख़दीजा के आला किरदार की अक्कासी करती है।
दूसरे यह की ख़ुदा वन्दे आलम ने ऐसी पाकीज़ा ख़ातून की तन्हाई और अफ्सुर्दगी को दूर करने के लिए जनाबे फ़ातेमा
सलामुल्लाह अलैहा को उस वक्त उनका मूनिस बना दिया जब आप माँ के शिक्म में थीं।
तीसरी बात यह की जिब्रईल ने पैग़म्बर सलल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम को बेटी की बशारत दी जो खुदा की नज़र में औरत के मरतबे को ज़ाहिर करती है।
उसका ऐहसास बेटी या औरत के सिलसिले में आँ हज़रत सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम के हर उम्मती को होना चाहिए।
चौथी बात यह की अगरचे आँ हज़रत सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम को ख़ुदा ने एक बेटी दी लेकिन उससे आपकी पाकीज़ा नस्ल का सिल्सिला जारी है
और इस सिलसिले में उलमा ए इस्लाम ने बेशुमार रिवायतें नक्ल की हैं कि पैग़म्बर सलल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की नस्ल हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाहे अलैहा के
ज़रीऐ सुल्बे हज़रते अली अलैहिस्सलाम से चली।
और आख़िरी बात यह है की आप ही नस्ल से रूए ज़मीन पर अइम्मा और ख़ुलफ़ा ए इलाही वुजुद में आये।
वेलादते हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा
जब हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की वेलादत के ऑसार ज़ाहिर हुए तो हज़रत ख़दीजा ने मक्के की औरतों को मदद के लिए बुलाया लेकिन उन्होंने आने से इन्कार कर दिया,
जिस पर जनाबे ख़दीजा बहुत ग़मज़दा हुईं। उस वक्त परवरदिगारे आलम ने चार जन्नती औरतें ग़ैबी इम्दाद की शक्ल में जनाबे ख़दीजा के पास भेजीं,
उन ख़्वातीन ने आकर अपना तआरुफ़ कराया कि ऐ ख़दीजा आप परेशान न हों हम खुदावन्दे आलम की तरफ़ से आपकी मदद को आये हैं।
मैं सारा ज़ौजए हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम हूँ, ये आसीया बिन्ते मुज़ाहीम हैं जो जन्नत में आपकी हम नशीन हैं, वह मरियम बिन्ते इमरान हैं और वह कुलसूम ख़्वाहरे हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम हैं। इस तरह उन ख़्वातीन की मदद से हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की वेलादत के मराहिल तय हुए।
आपको आबे कौसर से ग़ुस्ल दिया गया और जन्नत का लिबास पहनाया गया, फिर वह ख़्वातीन आपसे हम कलाम हुईं। उस वक्त हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा ने फरमायाः
(मैं गवाही देती हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई और माबूद नहीं है और मेरे पेदरे बुज़ुर्गवार अल्लाह के रसूल और तमाम अम्बिया के सय्यदो सरदार हैं
मेरे शौहर सय्यदुल औसिया हैं और मेरे बेटे अम्बिया के बेहतरीन नवासे हैं। फिर आपने उन तमाम ख़्वातीन को सलाम किया और एक एक करके सब का नाम लिया...)
हज़रत फातिमा ज़हरा की जिंदगी इस्लाम की हक्कानीयत पर सबूत
हौज़ा ए इल्मिया के संचार और अंतरराष्ट्रीय मामलों के प्रमुख ने कहा,
हौज़ा ए इल्मिया में प्रतिरोधी मोर्चे के समर्थन और सहायता के लिए बेहतरीन क्षमता और योग्यता मौजूद हैं।
एक रिपोर्ट के अनुसार,हौज़ा इल्मिया के संचार और अंतरराष्ट्रीय मामलों के प्रमुख, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद मुफीद हुसैनी कोहसारी ने केंद्र प्रबंधन हौज़ा इल्मिया के स्टाफ यूनिट के निदेशकों के साथ एक बैठक में बातचीत करते हुए कहा: मौजूदा परिस्थितियों और प्रतिरोधी मोर्चे की आवश्यकताओं को देखते हुए, हौज़ा इल्मिया के अधिकारियों ने निर्णय लिया है कि हौज़ा इल्मिया भी जनता के साथ मिलकर पूरी तरह से इस क्षेत्र में प्रवेश करे ताकि प्रतिरोधी मोर्चे को और मजबूत बनाया जा सके और उनकी सहायता के लिए संगठित नेटवर्क और गतिविधियों को अंजाम दिया जा सके।
अपनी बातचीत के दौरान उन्होंने शहीद सैयद हसन नसरल्लाह की कुछ विशेषताओं का उल्लेख करते हुए कहा,शहीद की प्रमुख विशेषताओं में से एक यह थी कि वे दो विपरीत चीजों को एक साथ लाने की क्षमता रखते थे यह विशेषता समाज और हौज़ा इल्मिया के लिए एक उदाहरण हो सकती है।
हौज़ा इल्मिया के संचार और अंतरराष्ट्रीय मामलों के प्रमुख ने आगे कहा, शहीद सैयद हसन नसरल्लाह ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण, शिया और इस्लामी उम्मत के समर्थन क्रांतिकारी भावना और राष्ट्रीय व क्षेत्रीय हितों और बौद्धिक व व्यावहारिक कार्यों के बीच संतुलन स्थापित किया और इन सभी द्वंद्वात्मक मामलों में सफलता से निपटे।
उन्होंने आगे कहा,सभी धर्मों के विद्वानों ने उन्हें अपने नेता के रूप में स्वीकार किया क्योंकि वे हमेशा सभी धर्मों के विद्वानों के बीच एकता और सामंजस्य स्थापित करने में सफल रहे।
हुज्जतुल इस्लाम कोहसारी ने शहीद सैयद हसन नसरल्लाह को आध्यात्मिकता के लिए एक पाठशाला करार देते हुए कहा,उनकी शख्सियत और विशेषताएं अंतरराष्ट्रीय हौज़ा के लिए एक आदर्श हो सकती हैं और उनसे बहुत कुछ सीखा जा सकता है।
रसूले अकरम की इकलौती बेटी
मुनाक़िब इब्ने शहर आशोब में है कि जनाबे ख़दीजा के साथ जब आं हज़रत (स.अ.व.व) की शादी हुई तो आप बाकरह थीं। यह तसलीम शुदा अमर है कि क़ासिम अब्दुल्ला यानी तैय्यब व ताहिर और फातेमा ज़हरा बतने ख़दीजा से रसूले इस्लाम की औलाद थीं। इस में इख़्तेलाफ़ है कि ज़ैनब , रूक़य्या , उम्मे कुल्सूम , आं हज़रत की लड़कियां थीं या नहीं , यह मुसल्लम है कि यह लड़कियां ज़हूरे इस्लाम से क़ब्ल काफ़िरों अतबा , पिसराने अबू लहब और अबू आस , इब्ने रबी के साथ ब्याही थीं। जैसा कि मवाहिबे लदुनिया जिल्द 1 स. 197 मुद्रित मिस्र व मुरव्वज उज ज़हब मसूदी जिल्द 2 स. 298 मुद्रित मिस्र से वाज़े है। यह माना नहीं जा सकता कि रसूले इस्लाम अपनी लड़कियों को काफ़रों के साथ ब्याह देते। लेहाज़ा यह माने बग़ैर चारा नहीं है कि यह औरतें हाला बिन्ते ख़वैला हमशीर जनाबे ख़दीजा की बेटियां थीं। इन के बाप का नाम अबू लहनद था। जैसा कि अल्लामा मोतमिद बदख़शानी ने मरजा उल अनस , में लिखा है। यह वाक़ेया है कि यह लड़कियां ज़माना ए कुफ़्र में हाला और अबू लहनद में बाहमी चपकलिश की वजह से जनाबे ख़दीजा के ज़ेरे केफ़ालत और तहते तरबीयत रहीं और हाला के मरने के बाद मुतलक़न उन्हीं के साथ हो गईं और ख़दीजा की बेटी कहलाईं। इसके बाद बा ज़रिया ए जनाबे ख़दीजा आं हज़रत से मुनसलिक हो कर उसी तरह रसूल (स.अ.व.व) की बेटियां कहलाईं। जिस तरह जनाबे ज़ैद मुहावरा अरब के मुताबिक़ रसूल के बेटे कहलाते थे। मेरे नज़दीक इन औरतों के शौहर मुताबिक़ दस्तूरे अरब के मुताबिक़ दामादे रसूल कहे जाने का हक़ रखते हैं। यह किसी तरह नहीं माना जा सकता कि रसूल की सुलबी बेटियां थीं क्यों कि हुज़ूरे सरवरे आलम (स.अ.व.व) का निकाह जब बीबी ख़दीजा से हुआ था तो आपके ऐलाने नबूवत से पहले इन लड़कियों का निकाह मुशरिकों से हो चुका था और हुज़ूर सरकारे दो आलम का निकाह 25 साल के सिन में ख़दीजा से हुआ और 30 साल तक कोई औलाद नहीं हुई और चालीस साल के सिन में आपने ऐलाने नबूवत फ़रमाया और इन लड़कियों का निकाह मुशरिक़ों से आप की चालीस साल की उम्र से पहले हो चुका था , और इस दस साल के अर्से में आपके फ़रज़न्द का भी पैदा होना और तीन लड़कियों का पैदा होना तहरीर किया गया है। जैसा कि मदारिज अल नबूवत में तफ़सील मौजूद है। भला ग़ौर तो कीजिए की दस साल की उमर में चार , पांच औलादें भी पैदा हो गईं और इतनी उमर भी हो गई के निकाह मुशरिक़ों से हो गया। क्या यह अक़ल व फ़हम में आने वाली बात है कि चार साल की लड़कियों का निकाह मुशरिक़ों से हो गया और हज़रत उस्मान से भी एक लड़की का निकाह हालते शिर्क ही में हो गया। जैसा कि मदारिज अल नबूवत में मज़कूर है। इस हक़ीक़त पर ग़ौर करने से मालूम होता है कि लड़कियां हुज़ूर की न थीं बल्कि हाला ही की थीं और इस उम्र में थीं कि इनका निकाह मुशरिक़ों से हो गया था।
(सवानेह हयाते सैय्यदा पृष्ठ 34)
जनाबे ज़हरा(स)की सवानेहे हयात
अल्लाह तबारक व तआला ने तमाम आलमें इंसानियत के रुश्द व हिदायत के लिये इस्लाम में कई ऐसी हस्तियों को पैदा किया जिन्होने अपने आदात व अतवार, ज़ोहद व तक़वा, पाकीज़गी व इंकेसारी, जुरअतमंदी, इबादत, रियाज़त, सख़ावत और फ़साहत व बलाग़त से दुनिया ए इस्लाम पर अपने गहरे नक्श छोड़े हैं, उन में बिन्ते रसूल (स), ज़ौज ए अली और मादरे गिरामी शब्बर व शब्बीर अलैहिमुस सलाम भी उन ख़ुसूसियात की हामिल हैं, जिन पर दुनिया ए इस्लाम को फ़ख़्र है हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) की इबादतों पर हक़्क़ानीयत को नाज़ है, उन की पाकीज़गी पर इस्मत को नाज़ है, उन के किरदार पर मशीयत को नाज़ है और इंतेहा यह है कि उन की शख़्सियत पर रिसालत को नाज़ है और मुख़्तसर यह कि उन पर शीईयत को नाज़ है।
फ़ातेमा ज़हरा (अ) वह ख़ातून है जिन के लिये ख़ुद रसूले ख़ुदा, ख़ातमुल अंबिया, अहमद मुजतबा हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा का फ़रमान है: फ़ातेमतो बज़अतुम मिन्नी, फ़ातेमा मेरे जिगर का टुकड़ा है। फ़ातेमा ज़हरा (स) जब कभी अपने बाबा की ख़िदमते अक़दस में हाज़िर हुईं तो एक कम एक लाख चौबीस हज़ार अंबिया के सरदार, बीबी की ताज़ीम के लिये खड़े हो जाते और उन्हे सफ़क़त से अपने पहलू में इनायत करते और निहायत ही मुहब्बत से उन से गुफ़तुगू फ़रमाते हैं। फ़ातेमा ज़हरा (स) की तारीख़े विलादत के बारे में मुवर्रेख़ीन की मुख़्तलिफ़ राय हैं कुछ मुवर्रेख़ीन ने रसूले ख़ुदा (स) की बेसत के एक साल बाद उन की पैदाईश दर्ज है।
बहवाल ए इब्ने ख़शाब दर्ज है कि हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) की विलादत का वक़्ते बेसत के पांच साल बाद (यअनी 615 हिजरी) क़रीब आया तो क़बीले के दस्तूर के मुताबिक़ हज़रत ख़दीजतुल कुबरा ने मदद के लिये औरतों को बुलवाया मगर औरतों ने यह कर आने से इंकार कर दिया कि अब हमारी बिरादरी से तुम्हारा क्या वास्ता? तुम ने सब से पयाम को रद्द कर के मुहम्मद (स) से शादी की है और हमारे मअबूदों को बुरा भला कहा है, क़बीले की औरतों का यह जवाब सुन कर हज़रत ख़दीजा (स) परेशान हो गई मगर उसी वक़्त अल्लाह की रहमत नाज़िल हुई और ग़ैब से चार औरतें घर में नमूदार हुईं। यह ख़्वातीन हज़रत सारा, हज़रत कुलसूम, हज़रत आसिया और हज़रत मरियम थीं। विलादत के बाद हुज़ूर ने अपनी चहेती बेटी को गोद में ले कर फ़रमाया: ख़दीजा यह तुम्हारी मेहनतों का सिला है मेरी बेटी फ़ातेमा ब रोज़े क़यामत मेरी उम्मत की सिफ़ारिश करेगी और गुनाहगारों को दोज़ख़ की आग से बचायेगी।
जैसे जैसे हज़रत फ़ातेमा (स) बड़ी होती गई उन के औसाफ़ व कमालात नुमायां होते चले गये, दुनिया ने हुस्न व हया और पाकीज़गी के पैकर को ख़ान ए रसूल (स) में बनते और सँवरते देखा। चुनाचे सुन्नी मुवर्रीख़ अपनी किताब फ़ातेमा ज़हरा में लिखता है कि अनस बिन मालिक से रिवायत है कि उन की वालिदा बयान करती थीं कि फ़ातेमा ज़हरा (स) चौदहवीं के चाँद और आफ़ताब के मानिन्द थीं। उस के अलावा ग़ैर मुस्लिम ख़्वातीन ने भी ऐतेराफ़ किया है। डाक्टर ऐथीनो कम, कनाडा की एक माहिर फ़लसफ़ी ख़ातून हैं वह अपने मज़मून में खा़तूने जन्नत फ़ातेमा ज़हरा (स) के बारे में लिखती हैं कि फ़ातेमा मुहम्मद की बेटी व आली शान ख़ातून हैं जिन के बारे में ख़ुद ख़ुदा ने बयान फ़रमाया कि आप पाकीज़ा ख़ातून हैं।
मिस वरकन हौल, न्यूयार्क की एक ख़ातून हैं वह अपनी मशहूर व मारुफ़ किताब (the holy daughter of holy prophet) कि जिस का तर्जुमा मुक़द्दस पैग़म्बर (स) की मुक़द्दस बेटी में लिखती हैं कि वह पैग़म्बर (स) की महबूब बेटी थीं जिन के अंदर अपने बाप के तमाम औसाफ़ व कमालात जमा थे। फ़ातेमा ज़हरा वह आली मक़ाम ख़ातून थीं जिन के फ़रिश्ते भी नौकर थे, कभी फ़रिश्ते आप की चक्की चलाने आते, कभी आप के बेटों का झूला झुलाने आते। ख़ातूने जन्नत ने रिसालत के साये में परवरिश पाई। कई हज़रात ने आप से निकाह की ख़्वाहिश ज़ाहिर की मगर हुज़ूर अकरम (स) ने जवाब में ख़ामोशी ज़ाहिर की लेकिन जब हज़रत अली (अलैहिस सलाम) ने अपने ख़्वाहिश ज़ाहिर की तो उस वक़्त आमँ हज़रत (स) ने इरशाद फ़रमाया कि ख़ुद मुझे ख़ुदा ने हुक्म दिया है कि हम ने फ़ातेमा की शादी आसमान पर अली से कर दी है लिहाज़ा तुम भी फ़ातेमा की शादी ज़मीन पर अली से कर दो। उस वक़्त रसूले ख़ुदा (स) ने यह भी इरशाद फ़रमाया कि अगर अली न होते तो फ़ातेमा का कोई हमसर (कुफ़्व) न होता।
चुनाचे ब हुक्मे ख़ुदा वंदे आलम रसूले आज़म (स) ने अपनी बेटी का निकाह हज़रत अली (अ) से कर दिया, यह शादी जिस अंदाज़ में हुई उस की मिसाल सारे आलम में नहीं मिलती। आज हम अपने नाम व नमूद के लिये, अपनी शान व शौकत के लिये, अपने रोब व दबदबे के इज़हार के लिये अपनी बेटियों की शादी में हज़ारो लाखों रूपये नाच गाने, डेकोरेशन, मुख़्तलिफ़ खाने और न जाने कितनी ग़ैर इस्लामी रस्मो रिवाज पर बे धड़क ख़र्च कर देते हैं, लड़कियों के जहेज़ में अपनी शान व शौकत को मलहूज़े ख़ातिर रखते हैं, जब दीन व इस्लाम गवाह है कि दीन की सब से आली मकतबत शख़्सीयत ने अपनी बेटी को जहेज़ के नाम पर एक चक्की, एक चादर, एका चारपाई, खजूर के पत्तों से भरा हुआ एक गद्दा, मिट्टी के दो घड़े, एक मश्क, मिट्टी का कूज़ा, दो थैलियां और नमाज़ पढ़ने के लिये हिरन की खाल दी बस यह कुल असासा था जो बीबी ए दो आलम अपने जहेज़ में ले कर हज़रत अली (अ) के घर आईं।
घर के सारे काम ख़ुद अपने कामों से अंजाम देतीं थी, हज़रत अली (अ) घर का पानी भरते और जंगल की लकड़ी वग़ैरह लाते थे और हज़रत ज़हरा (स) अपने हाथों से चक्की चला कर आटा पीसतीं, जारूब कशी करतीं, खाना पकाती, कपड़े धोती, शौहर की ख़िदमत अंजाम देतीं और बच्चों की हिफ़ाज़त व परवरिश करतीं मगर उस के बावजूद कभी अपने शौहर से शिकायत नही की, जब कि अगर वह चाहतीं तो सिर्फ़ एक इशारे की देर होती जन्नत की हूरें और ग़ुलामान, दस्त बस्ता उन की ख़िदमत में हाज़िर हो जाते मगर उन्होने कभी ऐसा नही किया क्यो कि उन्हे अपने बाबा के चमन की आबयारी करनी थी, अपने हर अमल को दीन के मानने वालों के लिये मशअले राह बनाना था। चुनाचे एक मरतबा हुज़ूर अक़दस की ख़िदमत में बहुत से जंग में असीर किये क़ैदी पेश किये जिन में कुछ औरतें भी शामिल थीं। हज़रत अली (अ) ने इस बात की इत्तेला हज़रत ज़हरा (स) को देते हुए फ़रमाया कि तुम भी अपने लिये एक कनीज़ मांग तो ता कि काम में आसानी हो जाये, बीबी ने पैग़म्बरे अकरम (स) की ख़िदमत में अपना मुद्दआ पेश किया तो हुज़ूर ने अपनी लाडली बेटी की बात सुन कर इरशाद फ़रमाया कि मैं तुम को वह बात बताना चाहता हूँ कि जो ग़ुलाम और कनीज़ से ज़्यादा नफ़अ बख़्श है तब हुज़ूर ने अपनी बेटी को एक तसबीह की तालीम फ़रमाई जो आज सारे आलमे इस्लाम में मशहूर है जिसे तसबीहे हज़रत फ़ातेमा ज़हरा कहते हैं। अल्लाह के रसूल ख़ातमुल मुरसलीन (स) ने अपनी लाडली बेटी को बतूल, ताहिरा, ज़किय्या, मरज़िया, सैयदतुन निसा, उम्मुल हसन, उम्मे अबीहा, अफ़ज़लुन निसा और ख़ैरुन निसा के अलक़ाब से नवाज़ा। सुन्नी मुवर्रिख़ अपनी किताब में लिखता है कि अल्लाह के रसूल (स) ने इरशाद फ़रमाया कि फ़ातेमा क्या इस बात पर ख़ुश नही हो कि तुम जन्नत की औरतों की सरदार हो। आप की सख़ावत की मिसाल सारे जहान में ढ़ूढ़ने से नही मिलती। यह बात तो हदीसों की किताबों में नक़्ल हैं लेकिन ग़ैर मुस्लिम मुबल्लेग़ा, अंग़्रज़ी अदब की मशहूर किताब (GOLDE DEEDS) के सफ़हा नंबर 115 पर तहरीर करती हैं कि जिस की तर्जुमा यह है कि एक मर्तबा मैं यूरोप का तबलीग़ी दौरा कर रही थी जब मैं मानचेस्टर पहुचीं तो कुछ ईसाई औरतों ने मेरे सामने बाज़ मुख़य्यरा व सख़ी मसतूरात की तारीफ़ में मुबालेग़े से काम लिया तब मैं ने कहा कि यह ठीक है कि दुनिया में सख़ावत करने वालों की कमी नही है लेकिन मुझे तो रह रह कर एक अरबी करीमा याद आती है कि जिस का नाम फ़ातेमा है उस की सख़ावत का आलम यह था कि मांगने वाले दरे अक़दस पर हाज़िर होता तो जो कुछ घर में मौजूद होता उस आने वाले को दे देती और ख़ुद फ़ाक़े में ज़िन्दगी बसर करती, उस के हालात में सख़ावत व करीमी की ऐसी मिसालें हैं जिन को पढ़ कर इंसानी अक़्ल दंग रह जाती है। और मैं यह सोचने पर मजबूर हूँ कि जैसी ख़ैरात फ़ातेमा ज़हरा (स) ने की वह यक़ीनन बशरी ताक़त से बाहर है। एक जापानी ख़ातून चायचिन 1954 ईसवी में तमाम आलमी ख़्वातीन के हालत पर तबसेरा करते हुए अपनी किताब काले साचिन में कि जिस का अरबी और फ़ारसी ज़बान में भी तर्जुमा हो चुका है, लिखती है कि फ़ातेमा ज़हरा अरब के मुक़द्दस रसूल की इकलौती साहिबज़ादी थीं जो बहुत ही ज़ाहिदा, आबिदा, पाकीज़ा, ताहिरा और साबिरा थीं। उन के शौहर मालदार नही थे जो भी मुशक़्क़त कर के कमाते वह फ़ातेमा ख़ैरात कर देतीं और मासूम बच्चे भी इसी तरह ख़ैरात करते, ऐसा लगता है कि अली, फ़ातेमा और उन के बच्चों को ज़िन्दगी की ज़रुरियात की एहतियाज नही थी और यह नूरानी हस्तियां पोशाक व ख़ोराक भी ग़ैब से पातीं होगीं, वर्ना इंसानी लवाज़ेमात इस अम्र के मोहताज होते हैं कि जब भी माली मुश्किलात हायल हों तो सख़ावत से दस्त कशी की जाये। मगर फ़ातेमा के घर महीना महीना भर चूल्हा गर्म नही होता था अकसर सत्तू या चंद खजूरें खा कर और पानी पी कर घर के सारे लोगरह जाया करते थे, इसी लिये फ़ातेमा ने मख़दूम ए आलम का लक़्ब पाया।
हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) फ़साहत व बलाग़त में भी आला दर्जे पर फ़ायज़ थीं। जैसा कि मशहूर है कि आप की कनीज़ जनाबे फ़िज़्ज़ा जो कि हबशी थीं, उन्होने क़ुरआन के लब व लहजे में बीस साल बात की, अब आप अंदाज़ा लगायें कि शहज़ादी की क्या मंज़िलत होगी। आप की पाँच औलाद थीं इमाम हसन, इमाम हुसैन, जनाबे मोहसिन, जनाबे उम्मे कुलसूम और जनाबे ज़ैनब। आप की इस्मत व तहारत का यह आलम था कि आप ने वक़्ते आख़िर वसीयत की थी मेरा जनाज़ा रात की तारीकी में उठाना।
आप की इबादत का यह हाल था कि आप ने हुजर ए इबादत ही में इंतेक़ाल फ़रमाया। आप की वफ़ात यक शंबा 3 जमादिस सानिया 11 हिजरी को हुई। आप का किरदार तमाम आलमे इंसानियत की औरतों के लिये नमून ए अमल है और यह ऐसा अहसान है जो क़यामत तक उम्मत की तमाम औरतों पर रहेगा।
हज़रत ज़हेरा स.ल.का हक़ ग़स्ब करने वालों का अंजाम
हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व. ने एक रिवायत में हज़रत ज़हेरा स.ल.का हक़ ग़स्ब करने वालों के अंजाम की ओर इशारा किया है
इस रिवायत को "बिहारूल अनवार" पुस्तक से लिया गया है। इस रिवायत का पाठ इस प्रकार है:
:قال رسول الله صلی الله علیه وآله
یَا فَاطِمَةُ! لَوْ أَنَّ کُلَّ نَبِیٍّ بَعَثَهُ اللَّهُ وَ کُلَّ مَلَکٍ قَرَّبَهُ- شَفَعُوا فِی کُلِّ مُبْغِضٍ لَکِ غَاصِبٍ لَکِ مَا أَخْرَجَهُ اللَّهُ مِنْ النَّارِ أَبَداً
हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व. ने फरमाया:
ऐ फ़ातिमा! अगर अल्लाह के भेजे हुए तमाम नबी और उसके दरबार के मुक़र्रब तमाम फ़रिश्ते भी तुम्हारे दुश्मन जिसने तुम्हारा हक़ छीना है की सिफ़ारिश करें, तब भी अल्लाह तआला उसे कभी भी दोज़ख़ की आग से नहीं निकालेंगा।
बिहारूल अनवार,भाग 76,पेज 354













