
رضوی
ईरान पर प्रतिबंध लगाने में अमेरिका का नया दावा
अमेरिकी वित्तमंत्रालय ने अपने नये दावे में एलान किया है कि उसने उन कंपनियों और लोगों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है जिनका संबंध ईरान से है।
अमेरिकी वित्तमंत्रालय ने एक महीना पहले भी तीन व्यक्तियों और चार संस्थाओं के खिलाफ इसी प्रकार का दावा करके प्रतिबंध लगा दिया था।
अमेरिका ने हालिया चार दशकों में इस्लामी गणतंत्र ईरान के खिलाफ विभिन्न बहानों से जैसे बड़े पैमाने पर प्रतिबंध लगाकर, सैनिक धमकी देकर, राजनीतिक जंग छेड़कर और कूटनीतिक दबाव डालर मनोवैज्ञानिक जंग छेड़ रखा है।
ईरान के खिलाफ अमेरिका की एकपक्षीय कार्यवाहियों और राजनीति के बेनतीजा होने के बावजूद अमेरिका तेहरान के खिलाफ ग़ैर कानूनी और संयुक्त राष्ट्रसंघ के घोषणापत्र के खिलाफ कार्यवाहियों के जारी रखने पर आग्रह कर रहा है।
तेहरान सहित पूरे ईरान में विश्व अल-कुद्स दिवस की भव्य रैलियाँ
आज इस्लामी गणतंत्र ईरान की राजधानी तेहरान सहित पूरे देश में विश्व अल-कुद्स दिवस के जुलूस और रैलियाँ निकाली गईं, जो शुक्रवार की प्रार्थना केंद्रों पर पहुँचकर भव्य सभा में बदल गईं।
राजधानी तेहरान के विभिन्न इलाकों से विश्व अल-कुद्स दिवस की रैलियां तेहरान विश्वविद्यालय पहुंचकर एक भव्य सभा में बदल गईं। तेहरान के विभिन्न इलाकों से निकाली गई रैलियों में सभी उम्र और वर्ग के लोगों ने हिस्सा लिया.
राजधानी तेहरान में योम अल-कुद्स रैलियों में मुसलमानों और अन्य धर्मों के अनुयायियों सहित हजारों लोगों ने भाग लिया।
विश्व अल-कुद्स दिवस के अवसर पर तेहरान में हवाई हमले में शहीद हुए शहीदों के अंतिम संस्कार की रैलियों में राष्ट्रपति इब्राहिम रायसी सहित बड़ी संख्या में उच्च पदस्थ अधिकारियों और अधिकारियों ने भी भाग लिया। दमिश्क में ईरानी दूतावास पर भी ज़ायोनी सरकार का कब्ज़ा हो गया
ज़ायोनी सरकार ईरानी प्रतिशोध से भयभीत
ज़ायोनी सरकार के सूत्रों ने एक रिपोर्ट में कहा है कि हमले के डर से ज़ायोनी सरकार के सात दूतावासों को खाली करा लिया गया है।
प्राप्त रिपोर्ट के मुताबिक, इजराइल ने बहरीन, मिस्र, जॉर्डन, मोरक्को और तुर्की में अपने दूतावास खाली कर दिए हैं।
गौरतलब है कि ज़ायोनी सरकार ने पिछले सोमवार को कब्जे वाले गोलान क्षेत्र से सीरिया की राजधानी दमिश्क में इस्लामी गणतंत्र ईरान के दूतावास से सटे कांसुलर खंड की इमारत पर हमला किया था, जिसके बाद इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स ने एक बयान में घोषणा की थी कि आक्रामक ज़ायोनी सरकार के मिसाइल हमले में जनरल मोहम्मद रज़ा ज़ाहिदी, मोहम्मद हादी हज रहीमी और उनके पांच साथी शहीद हो गये।
ज़ायोनी सैनिकों का अल-विदा जुम्मा पर अल-अक्सा पर हमला
रमज़ान के पवित्र महीने के आखिरी शुक्रवार को, अंतर्राष्ट्रीय अल-कुद्स दिवस के अवसर पर, ज़ायोनी सैनिकों ने अल-अक्सा मस्जिद में फ़िलिस्तीनी उपासकों पर हमला किया और कई लोगों को गिरफ्तार कर लिया।
रमज़ान के पवित्र महीने के जुम्मा अल-वदा के अवसर पर, फ़िलिस्तीनियों ने विश्व अल-कुद्स दिवस रैली में व्यापक रूप से भाग लिया और अल-अक्सा मस्जिद में शुक्रवार की नमाज़ के लिए एकत्र हुए, लेकिन ज़ायोनी सैनिकों ने इन उपासकों पर हमला कर दिया। और कई फ़िलिस्तीनियों को मार डाला। ज़ायोनी सैनिकों ने इन उपासकों के ख़िलाफ़ आंसू गैस का भी इस्तेमाल किया। रिपोर्ट के मुताबिक, ज़ायोनी बलों ने आठ फ़िलिस्तीनियों को गिरफ़्तार कर लिया।
लेबनान में ज़ायोनी ठिकानों पर हिज़्बुल्लाह के हमले
हिज़्बुल्लाह लेबनान ने एक बयान में कहा है कि उसने ज़ायोनी सैनिकों और उनके बख्तरबंद वाहनों को निशाना बनाया।
हिजबुल्लाह ने एक बयान में कहा है कि उसने उत्तरी अधिकृत फिलिस्तीन में अल-मलिकी सैन्य अड्डे को मोर्टार गोले और गाइडेड मिसाइलों से निशाना बनाया है.
ज़ायोनी मीडिया ने कुछ समय पहले एक रिपोर्ट में कहा था कि उत्तरी क़ब्ज़े वाले फ़िलिस्तीन के अल-मल्किया और डिशोन टाउन में अलार्म सायरन सुना गया है।
ज़ायोनी शासन द्वारा गाजा में अपना आक्रमण शुरू करने के एक दिन बाद लेबनान के हिजबुल्लाह ने उत्तरी कब्जे वाले फिलिस्तीनी क्षेत्रों को निशाना बनाना शुरू कर दिया। जिसके बाद ज़ायोनीवादियों में दहशत की लहर फैल गई और प्रतिरोध के हमलों के डर से उत्तरी कब्जे वाले फ़िलिस्तीनी क्षेत्रों से हजारों लोग भागने को मजबूर हो गए - ज़ायोनी सरकार ने तोपखाने और हवाई हमलों से लेबनान के सीमावर्ती क्षेत्रों को भी निशाना बनाया।
माहे रमज़ान के पच्चीसवें दिन की दुआ (25)
माहे रमज़ानुल मुबारक की दुआ जो हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व.ने बयान फ़रमाया हैं।
أللّهُمَّ اجْعَلني فيہ مُحِبّاً لِأوْليائكَ وَمُعادِياً لِأعْدائِكَ مُسْتَنّاً بِسُنَّۃ خاتمِ أنبيائكَ يا عاصمَ قٌلٌوب النَّبيّينَ.
अल्लाह हुम्मज अलनी फ़ीहि मुहिब्बन ले औलियाएक, व मुआदियन ले आदाएक, मुस तनन बे सुन्नति ख़ातिमि अंबियाएक, या आसिमा क़ुलूबिन नबीय्यीन (अल बलदुल अमीन, पेज 220, इब्राहिम बिन अली)
ख़ुदाया! मुझे इस महीने में अपने औलिया और दोस्तों का दोस्त और अपने दुश्मनों का दुश्मन क़रार दे, मुझे अपने पैग़म्बरों के आख़री पैग़म्बर की राह व रविश पर चलने की सिफ़त से आरास्ता कर दे, ऐ अंबिया के दिलों की हिफ़ाज़त करने वाले.
अल्लाह हुम्मा स्वल्ले अला मुहम्मद व आले मुहम्मद व अज्जील फ़रजहुम.
बंदगी की बहार- 25
मज़ान के पवित्र महीने के अंतिम दिन चल रहे हैं और हम ईश्वरीय दया के असीम समुद्र के तट के निकट पहुंचते जा रहे हैं।
रमज़ान के महीने में रोज़ेदार की सांसें, उपासना के बराबर होती हैं और इसमें की जाने वाली उपासनाएं सबसे अधिक स्वीकृत होती हैं। ईश्वर ने अपने बंदों को आदेश दिया है कि वे दिन में खाने-पीने से दूर रहें, उसका डर पैदा करें और बुराइयों से दूर रहें ताकि अपने अस्तित्व पर ईश्वरीय प्रकाश के प्रभाव को महसूस कर सकें।
रोज़ेदार व्यक्ति पूरे महीने में ईश्वर का विशेष अतिथि होता है और इस व्यापक दस्तरख़ान पर सर्वोत्तम आध्यात्मिक क्षणों का अनुभव करता है। एक महीने का यह अभ्यास, ईश्वर की पहचान हासिल करने और उससे आत्मीयता का बहुत अच्छा अवसर है। पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम रोज़े को ईश्वर की बंदगी के शहर में प्रवेश का दरवाज़ा बताते हुए कहते हैं कि हर चीज़ का एक दरवाज़ा होता है और उपासना का दरवाज़ा, रोज़ा है। रोज़ा, भलाइयां करने के अभ्यास तक पहुंचने का पुल है। अतः हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि वह हमें बंदगी के संसार में प्रवेश का सामर्थ्य प्रदान करे।
रमज़ान के पवित्र महीने के कार्यक्रम इस प्रकार तैयार किए गए हैं कि मनुष्य अपना ध्यान रखने के साथ ही साथ दूसरों पर भी ध्यान दे सके। इस बात का अर्थ, दूसरे इंसानों के मामलों को देखना और उनके दुखों व समस्याओं को कम करना है। रमज़ान के महीने में लोगों को बहुत सी चीज़ों से दूर रहने के लिए कहा गया है ताकि वे अपनी आंतरिक इच्छाओं को नियंत्रित करके सक्षम हो सकें ग़रीबों व दरिद्रों का दुख भी बांट सकें। इस महीने में रोज़ेदार व्यक्ति उन लोगों के दुखों से अवगत होता है जो जीवन की समस्याओं में घिरे हुए हैं और अपनी आजीविका चलाने में सक्षम नहीं हैं।
जो लोग सुबह से लेकर रात तक कष्ट सहन करते हैं ताकि कुछ लेकर और सुखी मन से अपने घर लौट सकें लेकिन वे अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति की क्षमता नहीं रखते। इस तरह के लोगों की समस्याओं को किस तरह समझा जा सकता है? क्या वंचित की कठिन परिस्थितियों को समझने और महसूस करने के लिए रोज़ा रखने और भूख-प्यास सहन करने से अच्छा कोई दूसरा मार्ग है। रमज़ान का महीना लोगों के अध्यात्म व नैतिकता को बढ़ाने के अलावा उनके अंदर भलाई और सद्कर्म की भावना मज़बूत करता है।
इस्लामी शिक्षाओं और धर्मगुरुओं के चरित्र से हमें पता चलता है कि धार्मिक आदेशों व अनिवार्य उपासनाओं के पालन के बाद ईश्वर से सामिप्य का सबसे बड़ा साधन, ईश्वर के बंदों के साथ भलाई है। ईश्वर के प्रिय बंदे भी सदैव लोगों की सेवा करते थे और स्वयं उनकी समस्याएं दूर करने के लिए आगे आते थे। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम से पूछा गया कि सबसे प्रिय व्यक्ति कौन है? उन्होंने उत्तर दिया कि वह जिसका अस्तित्व लोगों के लिए अधिक लाभदायक हो।
स्नेह, लोगों की सेवा और उन्हें लाभ पहुंचाने की जड़ मनुष्य के अस्तित्व में है और मानवीय प्रवृत्ति के अनुसार है। इसके अलावा मनुष्य का सामाजिक जीवन भी इस बात की मांग करता है कि वह हमेशा दूसरों से संपर्क में रहे और उनके साथ लेन-देन करता रहे। लोगों के साथ भलाई उस पेड़ की तरह है जिसकी अनेक शाखाएं होती हैं। माता-पिता के साथ भलाई उन्हीं में से एक है। इसी तरह अपने परिजनों, अनाथों और दरिद्रों के साथ भलाई उन बातों में है जिन पर क़ुरआने मजीद में बहुत अधिक बल दिया गया है। सूरए नह्ल की आयत क्रमांक 90 में कहा गया है। ईश्वर तुम्हें न्याय, भलाई और निकटवर्तियों के साथ जुड़े रहने का आदेश देता है और व्यभिचार, बुराई व अत्याचार से रोकता है।
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम कहते हैं कि ज़मीन पर ईश्वर के कुछ ऐसे बंदे हैं जो लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति की कोशि करते हैं। वे लोग प्रलय में सुरक्षित हैं। भलाई का अर्थ है बिना किसी बदले की आशा के अच्छा काम करना। क़ुरआने मजीद की आयतें, ईश्वर की दया व कृपा का पात्र बनने का एक मार्ग भले कर्मों को बताती हैं क्योंकि भला कर्म ईश्वर की दया को जोश में ले आता है और ईश्वर भले कर्म करने वालों को पसंद करता है। भलाई के मनुष्य के जीवन पर अत्यंत सकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं और उसे अनेक समस्याओं व कठिनाइयों से मुक्ति दिलाते हैं। इसी प्रकार से भला काम, लोगों के मध्य मित्रता व सदभावना को भी बढ़ावा देता है। जो समाज यह चाहता है कि सांसारिक कल्याण और वास्तविक शांति का पात्र बने तो उसे चाहिए कि अपने सदस्यों के मध्य कृपा व मित्रता की भावना को मज़बूत बनाए। इस के लिए रमज़ान के पवित्र महीने में प्राप्त अनमोल अवसरों से लाभ उठाना चाहिए और विशेष कर वंचितों और निर्धनों की अपनी क्षमता भर मदद करना चाहिए।
एक दिन मदीना के रहने वाला सअलबा नामक एक व्यक्ति पैगम्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पास गया और उसने कहाः हे पैगम्बरे इस्लाम! ईश्वर से प्रार्थना करें कि वह मुझे ढेर सारा धन दे दे। पैगम्बरे इस्लाम ने कहा कि हे सअलबा! जाओ संतोष से काम लो और जो कुछ इस समय तुम्हारी रोज़ी है उस पर ईश्वर का आभार प्रकट करो क्योंकि तुम अधिक धन का आभार नहीं प्रकट कर पाओगे। सअलबा चला गया और कुछ दिन बाद फिर पैग़म्बरे इस्लाम के पास गया और दोबारा अपनी वही इच्छा दोहराई। पैग़म्बरे इस्लाम ने इस बार भी उसके लिए प्रार्थना करने से इन्कार कर दिया। कुछ दिनों के बाद सअलबा तीसरी बार पैग़म्बरे इस्लाम की सेवा में पहुंचा और अपनी पहले वाली इच्छा दोहराते हुए कहने लगाः हे ईश्वर के दूत! आप ईश्वर से प्रार्थना करें कि वह मुझे बहुत अधिक धन दे दे, अगर ईश्वर मुझे ढेर सारा धन देता है तो मैं उसमें से ईश्वर का अधिकार अदा करूंगा और निर्धनों और ज़रूरत रखने वाले रिश्तेदारों की मदद करूंगा। पैगम्बरे इस्लाम ने जब सअलबा का इतना आग्रह देखा तो उसकी बात मान ली और उसके लिए दुआ कर दी।
पैग़म्बरे इस्लाम की दुआ के बाद, कुछ भेड़ों के स्वामी सअलबा की संपत्ति में अपार वृद्धि होने लगी। उसके पास भेड़ों की संख्या इतनी बढ़ गयी कि उसके लिए मदीना नगर में रहना कठिन हो गया। वह अपनी भेड़ों के लेकर मदीना नगर से बाहर चला गया और चूंकि वह स्वंय ही अपनी भेड़ें चराता था इस लिए नमाज़ के समय, पैगम्बरे इस्लाम के पास मस्जिद में आना उसके लिए कठिन हो गया इस लिए वह अकेले ही नमाज़ पढ़ने लगा। पैग़म्बरे इस्लाम की दुआ की वजह से उसकी भेड़ों की संख्या में दिन प्रतिदिन वृद्धि होती जा रही थी जिसकी वजह से सअलबा, मदीना नगर से और दूर चला गया। फिर इस संसारिक मोह माया में वह इतना फंसा कि उसके लिए हफ्ते में एक बार भी मदीना नगर जाना और नमाज़े जमाअत में भाग लेना संभव नहीं रह गया।
जब पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लाम को सअलबा की स्थिति का ज्ञान हुआ तो उन्होंने तीन बार कहाः धिक्कार हो सअलबा पर। कुछ समय बाद ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम के पास ज़कात की आयत भेजी और उन्हें आदेश दिया कि वे धनवानों से ज़कात लें और दरिद्रों को दें। उन्होंने सअलबा समेत मदीने के धनवान लोगों के पास अपने प्रतिनिधि भेजे। जब सअलबा ने पैग़म्बर का पत्र देखा तो कहा कि यह बात मुझ पर लागू नहीं होती, यह तो जिज़या टैक्स है जिसे ग़ैर मुस्लिमों को अदा करना चाहिए। तुम लोग दूसरों के पास जाओ, मैं इस बारे में विचार करूंगा।
पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के प्रतिनिधि पुनः सअलबा के पास गए और उसने फिर ज़कात देने से इन्कार कर दिया और कहा कि यह बात उस पर लागू नहीं होती। वे लोग लौट गए और उन्होंने पूरी घटना उन्हें बताई। उन्होंने कहा कि धिक्कार हो सअलबा पर। उसी समय सूरए तौबा की 75वीं और 76वीं आयतें नाज़िल हुई जिनमें ईश्वर ने कहा हैः और उनमें से कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने ईश्वर से प्रतिज्ञा की थी कि यदि तू अपनी कृपा से हमें प्रदान कर देगा तो निश्चित रूप से हम दान दक्षिणा करेंगे और भले लोगों में से हो जाएंगे। (9:75) तो जब ईश्वर ने अपनी कृपा से उन्हें प्रदान कर दिया तो उन्होंने उसमें कन्जूसी की और (प्रतिज्ञा को) पीठ दिखा कर मुंह फेर लिया।
सअलबा को किसी ने जा कर बताया कि ईश्वर ने ज़कात देने के संबंध में तुम्हारी अवज्ञा के बारे में कुछ आयतें भेजी हैं। यह सुन कर वह बहुत दुखी हुआ और मदीने में पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पास पहुंचा। उसने पछतावा प्रकट किया और ज़कात देने के लिए अपनी तैयारी की बात कही लेकिन पैग़म्बर ने कहा कि हे सअलबा! ईश्वर ने मुझे तुम्हारी ज़कात लेने से मना किया है। सअलबा उठा और अपने सिर पर मिट्टी डालते हुए रोने लगा लेकिन पैग़म्बर ने कहाः तूने ईश्वर के आदेश के पालन से इन्कार कर दिया था।
इतिहास में आया है कि ईरानी विद्वान बुज़ुर्गमेहर रोम के एक दार्शनिक और भारत के एक चिकित्सक के साथ कहीं बैठा हुआ था। वे लोग इस विषय पर बात कर रहे थे कि दुनिया की सबसे कष्टदायक चीज़ क्या है? रोम के दार्शिनक ने कहा कि मेरे विचार में ग़रीबी व दरिद्रता के साथ कमज़ोरी व बुढ़ापा सबसे अधिक कष्टदायक है। भारतीय चिकित्सक ने कहा कि मेरे विचार में रोगी शरीर व दुखी आत्मा से अधिक कष्टदायक कोई चीज़ नहीं है। इन बातों को सुनने के बाद बुज़ुर्गमेहर ने कहा। मेरे विचार में मनुष्य के लिए इस बात से कठिन कोई चीज़ नहीं है कि उसकी मौत निकट हो और उसका दामन सद्कर्मों से ख़ाली हो। उसकी बात सुन कर रोमी दार्शनिक और भारतीय चिकित्सक ने उसकी काफ़ी सराहना की।
ईश्वरीय आतिथ्य- 25
रमज़ान का महीना जारी है और हम सब ईश्वर के अतिथि हैं।
रमज़ान जिस तरह से रोज़ा रखने वाले के मन और आत्मा को बदलता और स्वच्छ करता है उसी तरह से इस्लामी देशों के शहरों को भी अलग रंग में रंग देता है । दुआओं की आवाज़ें, इफ्तार की तैयारी , दावतें और शाम के वक्त बाज़ारों में खास तरह की चहल पहल , ऐसी चीज़े हैं जो रमज़ान के महीने में ज़्यादा स्पष्ट रूप से और अलग तरह से नज़र आती हैं। ईरान में भी अन्य इस्लामी देशों की भांति रमज़ान का विशेष रूप हर नगर में देखने को मिलता है लेकिन मशहद और कुम जैसे पवित्र नगरों में अंदाज़ , ज़रा अलग होता है और अलग होने के साथ ही इतना मनमोहक होता है कि हर आस्थावान का मन मोह लेता है।
रमज़ान का ईरानियों के मध्य एक विशेष महत्व है लेकिन पैगम्बरे इस्लाम के पौत्र इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का जहां रौज़ा स्थित है अर्थात मशहद नगर में , रमज़ान गुज़ारने की बात ही और है। ईश्वर को तो अपने दासों की मनोकामना को पूरा करने के लिए बहाना चाहिए इसी लिए उसने विभिन्न दिन, महीने और स्थल विशेष किये हैं और कहा है कि इन जगहों पर दुआ करो तो तुम्हारी दुआ जल्दी कुबूल होगी तो फिर मशहद का क्या कहना जहां पैगम्बरे इस्लाम के परिवार से संबंध रखने वाली एक महान हस्ती दफ़्न है।
रमज़ान के पवित्र महीने में मशहद में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े का माहौल अधिक आध्यात्मिक हो जाता है और हर तरफ लोग दुआ व प्रार्थना में व्यस्त नज़र आते हैं। श्रद्धालुओं की भारी भीड़, जगह जगह बैठ कर कुरआन व दुआ पढ़ते लोग, कुरआने मजीद की तिलावत की आवाज़, मन को विचित्र प्रकार की शांति प्रदान करती है। इस जगह पहुंच कर मनुष्य को, कुरआने मजीद और पैगम्बरे इस्लाम के परिजनों के मध्य वास्तविक संबंध का पता चलता है और यहां पर लोगों को पैगम्बरे इसलाम की उस हदीस के अर्थ का पता चलता है जिसमें उन्होंने कहा कि ऐ लोगो मैं तुम्हारे मध्य दो चीज़े छोड़ कर जा रहा हूँ एक अल्लाह की किताब दूसरे मेरे परिजन यह दोनों एक साथ मेरे पास हौज़े कौसर पर आएंगे अगर तुम इन दोनों को थामे रहे तो कभी भी भटक नही सकते।
मशहद में इमाम रज़ा के रौज़े से संबंधित ट्रस्ट, आस्तानाए कु़द्स रज़वी का दारुलक़ुरआन, रमज़ान के महीने में कुरआने मजीद से संबंधित विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम आयोजित करता है ताकि इस पवित्र स्थल पर ज़ियारत के लिए जाने वाले उनका लाभ उठा सकें। इन कार्यक्रमों में रौज़े के विभिन्न भागों में हर दिन कुरआने मजीद के दस पारों अर्थात खंडों की तिलावत होती है और महिलाओं और पुरुषों के लिए भी अलग अलग कार्यक्रमों का आयोजन होता है।
इमाम रज़ा अलैहिस्लाम के रौज़े का वह भाग जिसे गौहरशाद प्रांगण कहा जाता है रमज़ान में विशेष रूप से श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केन्द्र बनता है क्योंकि पूरे रमज़ान के महीने में इस प्रांगण में कुरआने मजीद की तिलावत के कार्यक्रम में ईरान के विश्व विख्यात व प्रसिद्ध क़ारी भाग लेते हैं और कुरआने मजीद की तिलावत करते हैं। इन्हीं क़ारियों में से एक जवाद सुलैमानी हैं जिन्हें इस पवित्र स्थल में कुरआने मजीद की तिलावत का मौक़ा मिला है। वह इस बात का उल्लेख करते हुए कि इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े में तिलावत करना उनके लिए बहुत गौरव की बात है कहते हैं कि इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के श्रद्धालुओं के सामने और इस पवित्र स्थल पर कुरआने मजीद की तिलावत मेरे लिए बहुत गर्व की बात है और मेरे ख्याल में कुरआने मजीद के संदर्भ में मेरी अब तक की सभी गतिविधियों में यह सब से बड़ा और गौरवशाली अवसर है। वह कहते हैं कि इस पवित्र महीने में मनुष्य का जीवन, कुरआने मजीद के साथ मिल जाता है और निश्चित रूप से इस महीने की एक विशेषता यह भी है कि मनुष्य कुरआने मजीद से बेहद निकट हो जाता है वैसे साल के अन्य महीनों में भी इन्सान को कुरआने मजीद की तिलावत करते रहना चाहिए ताकि इसके लाभ उसे मिलते रहें।
इमाम रज़ा अलैहिस्लाम के रौज़े में तिलावत के इस कार्यक्रम में भाग लेने वाले यदुल्लाह सुबहानी का संबंध ईरान के इस्फहान प्रान्त से है वह कहते हैं कि मैं इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े में दर्शन के लिए आया तो मैंने वहां तिलावत का कार्यक्रम देखा और जब मैं ने उस कार्यक्रम में भाग लिया तो मुझे ऐसा आभास हुआ जैसे ईश्वरीय तेज मेरी आत्मा में उतर गया है। इस कार्यक्रम में तिलावत के साथ ही कुरआनी आयतों के अर्थों का भी वर्णन होता है जो बहुत लाभ दायक है।
मशहद नगर में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की ज़ियारत के लिए जाने वालों को इफ्तार भी करायी जाती है और यह कार्यक्रम हर साल, रमज़ान के महीने में आयोजित होता है। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े में हर साल आयोजित होने वाले इस कार्यक्रम में हर रोज़ 13 हज़ार लोगों को इफ़्तार दी जाती है और इफ्तार में बुलाने का यह तरीका है कि रोज़ै के सेवक मशहद में ज़ियारत के लिए जाने वालों को , होटलों बसों और अन्य स्थानों पर , इफ्तारी का कूपन बांटते हैं जिसे लेकर लोग , इफ्तार के कार्यक्रम में भाग लेते हैं । यह सम्पूर्ण इफ्तारी का कार्यक्रम होता है जबकि रौज़े में हर रोज़ एक लाख से अधिक रोज़ादारों को हल्की इफ्तारी बांटी जाती है। इस प्रकार से रमज़ान के एक महीने के भीतर लगभग तीस लाख लोगों को इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े में इफ्तार करायी जाती है।
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़ै की आध्यात्मिकता इस सीमा तक है कि बहुत से गैर मुस्लिम भी वहां ज़ियारत के लिए जाते और फिर इतना प्रभावित होते हैं कि धर्म परिवर्तन करके मुसलमान बन जाते हैं। नव मुस्लिमों का एक गुट दक्षिणी कोरिया और अलजीरिया से ईरान आया था। उस गुट में शामिल दक्षिण कोरिया के एक युवा ने कहा कि मैं ईसाई था लेकिन मुझे संतुष्टि नहीं मिली इसी लिए मैं वह्हाबियों की एक मस्जिद में गया और इस्लाम स्वीकार कर लिया लेकिन वहाबियों के पास तर्क की कोई शक्ति नहीं है इसी लिए वह मुझे मेरे सवालों का सही जवाब नहीं दे पाए इस लिए मैंने विभिन्न इस्लामी मतों का अध्ययन किया और अंत में शिया मत के बारे में मुझे पता चला और मैं इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े में आकर शिया मुसलमान बन गया। मेरी नज़र में शिया मत सब से अधिक तार्किक मत है।
बेलारूस की भाषा विद , ओल्का ओन्सेतविच ने दो बार इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े का दर्शन करने के बाद, इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया। उन्होंने अपना नया नाम " हदीस" रखा। वह कहती हैंः मैंने अरबी सीखी और कु़रआन पढ़ा, मैंने इस्लाम धर्म को मित्रता और शांति का धर्म पाया और इसी लिए मैंने इस्लाम धर्म को स्वीकार किया। मैं बहुत खुश हूं कि ईश्वर में इस प्रकार से मुझ पर कृपा की विशेष कर इस लिए भी कि यह कृपा मुझ पर इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े में हुई।
इस्लाम और सभी धर्मों में पवित्र स्थलों का महत्व इसी लिए होता है क्योंकि यह स्थल मनुष्य को अध्यात्मिकता से निकट और भौतिकता से दूर करते हैं इस लिए इन स्थानों पर जाकर मनुष्य को चितंन मनन का अवसर मिलता है। धर्म की दृष्टि में, मनुष्य को अपने सभी मामलों में, पहचान व जानकारी की आवश्यकता होती है क्योंकि जानकारी व सही विचारों के बिना मनुष्य महत्वपूर्ण लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर सकता। इस्लाम में, सही रूप से चिंतन करने का इतना अधिक महत्व है कि एक घंटा चिंतन करने को , ७० वर्ष की उपासना से अधिक श्रेष्ठ बताया गया है। क्योंकि सृष्टि के अचरजों में चितंन व विचार , मनुष्य के ह्रदय में तत्वदर्शिता व ज्ञान के सोते जारी कर देता है । पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र इमाम हसन अलैहिस्सलाम कहते हैः
" चिंतन, तत्वदर्शिता के द्वार की कुंजी है।" और चिंतन मनन का समय पवित्र स्थलों में अधिक मिलता है। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े पर यदि कोई रमज़ान के महीने में जाए तो फिर उसका लाभ निश्चित रूप से अन्य दिनों की तुलना में बहुत अधिक है। ईश्वर हम सब को यह अवसर प्रदान करें।
इमाम ख़ुमैनी और विश्व पवित्र अल-कुद्स दिवस
इमाम ख़ुमैनी बैत अल-मकदिस को पवित्र और इस्लामी स्थानों में से एक मानते थे और इसमें प्रार्थना करने की सिफारिश की गई थी। 1962 में इस्लामिक मूवमेंट की शुरुआत के बाद से ही उन्हें कुद्स शरीफ की चिंता थी. कुद्स पर इमाम खुमैनी का रुख उस स्थिति में था जब वैश्विक ज़ायोनीवाद फ़िलिस्तीन और कुद्स के मुद्दे को अरब दुनिया तक सीमित करने की कोशिश कर रहा था। 1962 में ईरान में इस्लामी आंदोलन की शुरुआत के साथ, इमाम खुमैनी ने ईरानी सरकार से इज़राइल और बहाइयों के साथ संबंध तोड़ने के लिए कहा और आंदोलन को जारी रखते हुए, उन्होंने यरूशलेम को मुसलमानों को वापस करने पर जोर दिया।इज़राइल के साथ अपने संबंधों को छिपाने के लिए, पहलवी सरकार के एजेंटों ने यह समझाने की कोशिश की कि इज़राइल और बहाई; ईसाई राज्यों से अलग नहीं हैं और वे सभी एक जैसे हैं। इमाम ख़ुमैनी ने इस मुद्दे को क़ुरान के पाठ के विरुद्ध और इस हड़पने वाले देश की पहचान और बहाई के झूठे संप्रदाय के समर्थन की घोषणा की और इज़राइल के साथ संबंधों को धर्म की आवश्यकताओं के विपरीत घोषित किया और ईरानी राष्ट्र माना। इस महान पाप से मुक्त हो जाओ.
इस्लामी क्रांति के चरम पर, ईरानी लोकप्रिय आंदोलन के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन की आवश्यकता के बावजूद, उन्होंने यरूशलेम और फिलिस्तीन को याद किया और मिस्र के राष्ट्रपति अनवर अल-सादात और मेनकेम बेगिन के बीच कैंप डेविड समझौते (1357/1979) की निंदा की। मिस्र ने यरूशलेम से मुसलमानों की वापसी की मांग की।
इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद यरूशलेम की आजादी का मुद्दा इमाम खुमैनी की विदेश नीति की प्राथमिकताओं में शामिल हो गया और 17 फरवरी 1979 को फिलिस्तीनी प्रतिनिधिमंडल और यासर अराफात के साथ बैठक में उन्होंने यरूशलेम की आजादी के बारे में बात की। जेरूसलम. और उनसे कहा कि दुश्मन पर जीत और बैत-उल-मकदिस की आजादी के लिए खुदा पर भरोसा रखें।वह सभी शक्तियों से परे है. 12 सितंबर 1980 को उन्होंने फिलिस्तीनी लोगों के खिलाफ इजराइल के अपराधों का जिक्र करते हुए इजराइल की राजधानी को येरूशलम ले जाने की चेतावनी दी थी. इस्लामी क्रांति के शुरुआती दिनों में, फ़िलिस्तीनी दूतावास ने इज़रायली दूतावास का स्थान ले लिया।
इमाम खुमैनी ने 7 अगस्त, 1979 को ईरान और दुनिया के मुसलमानों को एक संदेश में फिलिस्तीनी लोगों के समर्थन और अल-कुद्स की मुक्ति के लिए दुनिया भर के मुसलमानों की एकता के लिए 13/रमज़ान 1399 हिजरी का आह्वान किया। उन्होंने रमज़ान के आखिरी शुक्रवार को जश्न मनाने की घोषणा की और उन्होंने लोगों और इस्लामी सरकारों से हड़पने वाले इज़राइल के हाथ को कम करने के लिए समर्थन देने को कहा। और रमज़ान के आखिरी शुक्रवार को, जो क़यामत के दिन में से एक था और फ़िलिस्तीनी लोगों के भाग्य का निर्धारण कर सकता था, फ़िलिस्तीनी लोगों के कानूनी अधिकारों के समर्थन में हमारी एकजुटता की घोषणा करते हैं।
विश्व कुद्स दिवस की विशेषताएं
1979 में, विश्व कुद्स दिवस के अवसर पर, इमाम खुमैनी ने विभिन्न वर्गों के लोगों को अपने संबोधन में, कुद्स दिवस को इस्लाम के पुनरुद्धार का दिन, इस्लामी सरकार का दिन, उत्पीड़ितों के लिए अहंकारियों के खिलाफ लड़ने का दिन कहा। महाशक्तियाँ. उत्पीड़ित राष्ट्रों के भाग्य के निर्धारण का दिन और अहंकारियों पर उत्पीड़ितों की जीत का दिन, साहस का दिन, सभी देशों में मुसलमानों को कुद्स को बचाने और पहचानने के लिए इस्लामी गणतंत्र का झंडा उठाना चाहिए। प्रतिबद्ध लोगों में से पाखंडी और याद रखें कि प्रतिबद्ध व्यक्ति वे हैं जो यौम-ए-कुद्स पर विश्वास करते हैं
रमज़ान में एकता प्रतीक एक अन्य उपासना " एतेकाफ़"
रमज़ान में एकता प्रतीक एक अन्य उपासना " एतेकाफ़" है। कुरआने मजीद के सूरए बक़रह की आयत नंबर 125 में कहा गया है कि हम ने इब्राहीम और इस्माईल को आदेश दिया कि मेरे घर को तवाफ करने वालों, रहने वालों, रुक और सजदा करने वालों के लिए पवित्र करो। सभी इस्लामी मतों का कहना है कि मस्जिद में विशेष दिनों में रहना, जिसे " एतेकाफ़" कहा जाता है , एक पुण्य वाला कर्म है । " एतेकाफ़" दो भागों पर आधारित होता है, एक मस्जिद में ठहरना और रोज़ा रखना। हालांकि यह उपासना, व्यक्तिगत रूप से और अकेले होती है लेकिन पैगम्बरे इस्लाम की शैली के अनुसार एक सामूहिक रूप से भी अंजाम दिया जा सकता है और इसी लिए बहुत से इस्लामी देशों में एक उपासना सामूहिक रूप से अंजाम दी जाती है। निश्चित रूप से जब एक मुसलमान , रोजा रख कर तीन दिनों तक मस्जिद में रहता है और ईश्वर की उपासना करता है तो इसके उसके मन व मस्तिष्क पर बड़े सकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं और उसकी आत्मा पवित्र हो जाती है। इसके साथ ही चूंकि वह यह काम सामूहिक रूप से करता है इस लिए उसमें सामाजिक विषयों और समाज में अपने दूसरों भाइयों की समस्याओं के निपटारे में रूचि पैदा होती है।
इस्लाम ने , मुसलमानों को एक दूसरे का भाई बताया है और स्पष्ट रूप से कहा है कि लोगों को एक दूसरे पर वरीयता, उनकी धर्मपराणता के आधार पर ही दी जाएगी तो फिर यह इस्लाम धर्म अपने अनुयाइयों से यह आशा रखता है कि एकजुटता के लिए आगे बढ़ेंगे और इस्लामी देश एक दूसरे के साथ सहयोग करेंगे लेकिन इस्लामी जगत के बहुत से मुद्दों विशेषकर फिलिस्तीनी मुद्दे पर यदि गौर किया जाए तो यह कटु वास्तविकता स्पष्ट होती है कि बहुत से ताकतवर इस्लामी देश, इस मुद्दे के बारे में एकजुटता के साथ रुख अपनाने की क्षमता नहीं रखते और इस्लामी हितों के खिलाफ, इस्राईल व अमरीका के साथ संबंध बढ़ा रहे हैं। आज इस्लामी जगत की सब से बड़ी समस्या, आपसी झगड़े हैं जो हर मुसलमान के लिए दुख की बात है। यदि हम रमज़ान के महीने और उसकी विभूतियों पर चिंतन करें तो हमें यह महीना, इस्लामी जगत की समस्याओं के समाधान का अच्छ अवसर नज़र आएगा और निश्चित रूप से इस्लामी संयुक्त बिन्दुओं पर ध्यान देकर, मुसलमान महानता की चोटियों तक पहुंच सकते हैं।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई कहते हैं कि अब समय आ गया है कि इस्लामी जगत नींद से जागे और इस्लाम को एकमात्र ईश्वरीय मार्ग के रूप में चुन ले और उस पर मज़बूती के साथ क़दम बढ़ाए। अब समय आ गया है कि इस्लामी जगत, एकजुटता की रक्षा करे और संयुक्त दुश्मन के सामने, जिससे सभी इस्लामी संगठनों ने नुक़सान उठाया है अर्थात साम्राज्य और ज़ायोनिज्म के ख़िलाफ़ एकजुटता के साथ डट जाएं, एक नारा लगाए , एक प्रचार करें और एक ही राह पर चलें। इन्शाअल्लाह उन्हें ईश्वर की कृपा का पात्र बनाया जाएगा और ईश्वरीय परंपराओं और नियमों के अनुसार उनकी मदद भी होगी और वह आगे बढ़ेंगे।