رضوی

رضوی

माहे रमज़ानुल मुबारक की दुआ जो हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व.ने बयान फ़रमाया हैं।

اَللَّـهُمَّ اِنّي اَسْئَلُكَ فيهِ ما يُرْضيكَ، وَاَعُوذُبِكَ مِمّا يُؤْذيكَ، وَاَسْئَلُكَ التَّوْفيقَ فيهِ لاَِنْ اُطيعَكَ وَلا اَعْصِيَكَ، يا جَوادَ السّآئِلينَ...

अल्लाह हुम्मा इन्नी अस अलुका फ़ीहि मा युरज़ीक, व अऊज़ु बेका मिम्मा यूज़ीक, व अस अलुका अत्तौफ़ीक़ा फ़ीहि ले अन उतीअका व ला आसियक, या जवादस्साएलीन (अल बलदुल अमीन, पेज 220, इब्राहिम बिन अली)

ख़ुदाया! इस महीने में तेरे दर पर हर उस चीज़ का सवाली हूं जो तुझे ख़ूशनूद करती है, और हर उस चीज़ से तेरी पनाह का तलबगार हूं जो तुझे नाराज़ करती है, और तुझसे तौफ़ीक़ का तलबगार हूं कि मैं तेरा इताअत गुज़ार रहूं, और तेरी नाफ़रमानी न करूं, ऐ सवालियों को बहुत ज़ियादा अता करने वाले...

अल्लाह हुम्मा स्वल्ले अला मुहम्मद व आले मुहम्मद व अज्जील फ़रजहुम.

गुरुवार, 04 अप्रैल 2024 18:28

ईश्वरीय आतिथ्य- 24

एकता की रक्षा और फूट व विवाद से दूरी, पैगम्बरे इस्लाम , इमामों और धर्म के मार्गदर्शकों की शैली रही है।

कुरआने मजीद ने भी अपने विभिन्न आयतों में मुसलमानों को एकजुटता व एकता का आदेश दिया है और कहा है कि फूट व मतभेद से दूर रहो। सूरए आले इमरान की आयत नंबर 64 में कहा गया है कि अल्लाह की रस्सी को मज़बूती से पकड़ लो और फूट व मतभेद से दूर रहो।

क़ुरआने मजीद में कई आयतें ऐसी हैं जिनमें मुसलमानों के बीच एकता पर बल दिया गया है। शिया सुन्नी सभी समीक्षकों का यह मानना है कि कुरआने मजीद रमज़ान के महीने में  और " शबे क़द्र " कही जाने वाली रात में उतरा है। किसी भी मुसलमान को इस बात में संदेह नहीं है कि क़ुरआने मजीद विश्व के सभी लोगों के लिए मार्गदर्शन का साधन है। सूरए बक़रह की आयत नंबर 185 में कहा गया है कि, रमज़ान वह महीना है जिसमें कुरआन उतरा है, लोगों के मार्गदर्शन के लिए  और  सत्य व असत्य में फर्क के लिए ।  कुरआने मजीद की इस आयत के दृष्टिगत यह पूरी तरह से साबित होता है कि यह किताब पूरी दुनिया के मार्गदर्शन के लिए है अर्थात न केवल यह कि क़ुरआने मजीद एकता का कारण है बल्कि यह इस्लामी एकता के मार्ग भी सुझाता है।

क़ुरआने मजीद,पैग़म्बरे इस्लाम को एकता व भाईचारे का आह्वान करने वाला बताता है और उनके शिष्टाचार की सराहना करता है। पैगम्बरे इस्लाम की जीवनी एकता के लिए किये जाने वाले प्रयासों से भरी है। पैगम्बरे इस्लाम ने पलायन या हिजरत के पहले साल ही, अपने साथ पलायन करने वाले मुहाजिरों और मदीना के स्थाननीय लोगों अन्सार के मध्य " वधुत्व बंधन " बांधा और उन्हें एक दूसरे का भाई बनाया । यह दोनों लोग, जाति, वंश, वातावरण और आर्थिक स्थिति की दृष्टि से एक दूसरे से बहुत भिन्न थे। इसी लिए  जब मक्का से पैगम्बरे इस्लाम के साथ पलायन करने वाले मदीना नगर पहुंचे और वहां रहने लगे तो यह चिंता होने लगी कि कहीं उनमें आपस में फूट न पड़ जाए इसी लिए पैगम्बरे इस्लाम ने मदीने के स्थानीय लोगों और मक्का तथा अन्य नगरों से मुसलमान होकर मदीना पहुंचने वालों के बीच यह रिश्ता बनाया जिसका उन सब ने अंत तक निर्वाह भी किया। इसके साथ ही पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने इस काम से यह स्पष्ट कर दिया कि इस्लाम में एकता का क्या महत्व है।

मुसलमानों को पैगम्बरे इस्लाम का अनुसरण और क़ुरआने मजीद की शिक्षाओं का पालन करते हुए हमेशा, संयुक्त बिन्दुओं पर ध्यान देना चाहिए और फूट व मतभेद से दूर रहना चाहिए। कुरआने मजीद में एकता पैदा करने वाला एक अन्य साधन, रमज़ान का महीना है । रमज़ान को पूरी दुनिया के मुसलमानों के बीच एकता का एक मजबूत प्रतीक समझना चाहिए। रमज़ान के महीने में रोज़ा रखने का जो संस्कार है उसमें विभिन्न मतों और विचारों के साथ पूरी दुनिया के  सभी  मुसलमान, एक समान नज़र आते हैं । इस महीने में दुनिया के विभिन्न देशों में रहने वाले मुसलमानों के रीति व रिवाज दर्शनीय होते हैं और यदि उन पर ध्यान दिया जाए तो सब के काम एक समान नज़र आते हैं । दुनिया के सारे मुसलमान, रमज़ान में, भोर में एक निर्धारित समय पर " सहरी" खाने के लिए उठते हैं, नमाज़ पढ़ते, क़ुरआन पढ़ते हैं । मुसलमान, सुबह की अज़ान से लेकर मगरिब की अज़ान तक रोज़ा रखते हैं और भूखों को खाना खिलाने, अनाथों का ध्यान रखने और निर्धनों की मदद जैसे भले काम करके, ईश्वर को स्वंय से प्रसन्न रखने का प्रयास करते हैं।

रमज़ान का महीना ऐसा महीना है जिसमें मुसलमान एक प्रकार से आंतरिक रूप से बदलाव का आभास करते हैं और इस बदलाव के बाद उनके जीवन में सकारात्मकता अधिक हो जाती है। इस मुबारक महीने में पूरी दुनिया के मुसलमान एक राष्ट्र में बदल जाते हैं और एक साथ ईश्वर की उपासना करते हैं। विशेष कर " शबे क़द्र" कही जाने वाली रातों में ईश्वर के समक्ष अपने पापों के लिए उससे क्षमा मांगते हैं। जिस तरह से काबा, पूरी दुनिया के मुसलमानों को एकत्रित करता है उसी तरह रमज़ान का महीना भी मुसलमानों को एक दस्तरखान पर बिठाता है और उनके भीतर एकजुटता का आभास मज़बूत करता है।  दुनिया भर के मुसलमानों को " शबे क़द्र" की महानता के बारे में पता है।  यह पवित्र रमज़ान  की विशेष रातें हैं  जिन्हें शबे क़द्र कहा जाता है यह रातें  ईश्वर की कृपा का चरम बिन्दु समझी जाती हैं। इन रातों में ईश्वर अपने बंदों पर विशेष कृपा करता है ।  इन रातों की महानता का स्वंय ईश्वर ने क़द्र नामक सूरे में गुणगान करते हुए कहा है, "तुम क्या जानो शबे क़द्र क्या है।" इसके बाद ईश्वर ने इस रात को हज़ार महीनों से बेहतर बताया है और इस रात के शुरु होने से सुबह सवेरे तक की समयावधि को शांति  का समय कहा है।

वास्तव में ईश्वर ने शबे क़द्र के ज़रिए बंदों को यह अवसर दिया है कि वे अपने सद्कर्मों को परिपूर्ण करे। यह रातें 21 से 23 रमज़ान के बीच में हैं शिया मुसलमानों का यही मानना है किंतु सुन्नी मुसलमानों के अनुसार 27 रमज़ान की रात भी शबे क़द्र हो सकती है। यही वजह है कि शबे कद्र में उपासना के पुण्य के लिए मुसलमान, 21 , 23 और 27 रमज़ान की रातों को विशेष प्रकार से उपासना करते हैं।

रमज़ान में एकता प्रतीक एक अन्य उपासना  " एतेकाफ़" है। कुरआने मजीद के सूरए बक़रह की आयत नंबर 125 में कहा गया है कि हम ने इब्राहीम और इस्माईल को आदेश दिया कि मेरे घर  को तवाफ करने वालों, रहने वालों, रुक और सजदा करने वालों के लिए पवित्र करो। सभी इस्लामी मतों का कहना है कि मस्जिद में विशेष दिनों में रहना, जिसे " एतेकाफ़" कहा जाता है , एक पुण्य वाला कर्म है । " एतेकाफ़" दो भागों पर आधारित होता है, एक मस्जिद में ठहरना और रोज़ा रखना। हालांकि यह उपासना, व्यक्तिगत रूप से और अकेले होती है लेकिन पैगम्बरे इस्लाम की शैली के अनुसार एक सामूहिक रूप से भी अंजाम दिया जा सकता है और इसी लिए बहुत से इस्लामी देशों में एक उपासना सामूहिक रूप से अंजाम दी जाती है। निश्चित रूप से जब एक मुसलमान , रोजा रख कर तीन दिनों तक मस्जिद में रहता है और ईश्वर की उपासना करता है तो इसके उसके मन व मस्तिष्क पर बड़े सकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं और उसकी आत्मा पवित्र हो जाती है। इसके साथ ही चूंकि वह यह काम सामूहिक रूप से करता है इस लिए उसमें सामाजिक विषयों और समाज में अपने दूसरों भाइयों की समस्याओं के निपटारे में रूचि पैदा होती है।

इस्लाम ने , मुसलमानों को एक दूसरे का भाई बताया है और स्पष्ट रूप से कहा है कि लोगों को एक दूसरे पर वरीयता, उनकी धर्मपराणता के आधार पर ही दी जाएगी तो फिर यह इस्लाम धर्म अपने अनुयाइयों से यह आशा रखता है कि एकजुटता के लिए आगे बढ़ेंगे और इस्लामी देश एक दूसरे के साथ सहयोग करेंगे लेकिन इस्लामी जगत के बहुत से मुद्दों विशेषकर फिलिस्तीनी मुद्दे पर यदि गौर किया जाए तो यह कटु वास्तविकता स्पष्ट होती है कि बहुत से ताकतवर इस्लामी देश, इस मुद्दे के बारे में एकजुटता के साथ रुख अपनाने की क्षमता नहीं रखते और इस्लामी हितों के खिलाफ, इस्राईल व अमरीका के साथ संबंध बढ़ा रहे हैं। आज इस्लामी जगत की सब से बड़ी समस्या, आपसी झगड़े हैं जो हर मुसलमान के लिए दुख की बात है। यदि हम रमज़ान के महीने और उसकी विभूतियों पर चिंतन करें तो हमें यह महीना, इस्लामी जगत की समस्याओं के समाधान का अच्छ अवसर नज़र आएगा और निश्चित रूप से इस्लामी संयुक्त बिन्दुओं पर ध्यान देकर, मुसलमान महानता की चोटियों तक पहुंच सकते हैं।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई कहते हैं कि अब समय आ गया है कि इस्लामी जगत नींद से जागे और इस्लाम को एकमात्र ईश्वरीय मार्ग के रूप में चुन ले और उस पर मज़बूती के साथ क़दम बढ़ाए। अब समय आ गया है कि इस्लामी जगत, एकजुटता की रक्षा करे और संयुक्त दुश्मन के सामने, जिससे सभी इस्लामी संगठनों ने नुक़सान उठाया है अर्थात साम्राज्य और ज़ायोनिज्म के ख़िलाफ़ एकजुटता के साथ डट जाएं, एक नारा लगाए , एक प्रचार करें और एक ही राह पर चलें। इन्शाअल्लाह उन्हें ईश्वर की कृपा का पात्र बनाया जाएगा और ईश्वरीय परंपराओं और नियमों के अनुसार उनकी मदद भी होगी  और वह आगे बढ़ेंगे।

 

 

 

 

 

 

 

      

गुरुवार, 04 अप्रैल 2024 18:25

बंदगी की बहार- 24

हम रमज़ान के पवित्र महीने के अंतिम दशक में हैं।

अध्यात्म व नैतिकता से परिपूर्ण यह महीना तीव्र गति से गुज़र जाता है। विशेष कर इसके अंतिम दस दिन, जिनमें शबे क़द्र भी है, इस प्रकार से गुज़र जाते हैं कि आभास तक नहीं होता। रमज़ान के महीने में हम अपने पूरे अस्तित्व से ईमान की मिठास को महसूस कर सकते हैं। यह महीना ईश्वर के गुणगान और रातों को जाग कर उसकी उपासना और दुआ का महीना है। इस पवित्र महीने के हर क्षण से कृपालु ईश्वर से प्रार्थना और अपने पापों के प्रायश्चित के लिए लाभ उठाना चाहिए। यह महीना ईश्वर की अनंत विभूतियों और अनुकंपाओं के साथ आता है और पापियों की तौबा व प्रायश्चित के साथ चला जाता है। यही कारण है कि रोज़ेदार व्यक्ति, ईश्वर के साथ अपने आध्यात्मिक जुड़ाव के चलते अपनी आत्मा और अंतरात्मा में गहरे परिवर्तनों का आभास करता है।

मनुष्य अच्छे व सकारात्मक व्यवहार और उचित परिस्थितियों के माध्यम से सफलता का मार्ग समतल कर सकता है। ईश्वर के सच्चे दास, दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करते हैं जिसमें से एक, दूसरों के साथ विनम्रता है। वे बहुत विनम्र स्वभाव के होते हैं और अगर कोई उनकी बुराई करता भी है तो उसके उत्तर में वैसा ही व्यवहार नहीं करते बल्कि विनम्र रहते हैं। इस तरह उनके अच्छे व्यक्तित्व और नैतिक विशेषताओं का प्रदर्शन होता है। क़ुरआन मजीद के सूरए फ़ुरक़ान की कुछ आयतों में ईश्वर के अच्छे दासों की विशेषताओं का इस प्रकार उल्लेख किया गया है। ईश्वर के दास वे हैं जो बिना इतराए हुए सम्मानजनक ढंग से ज़मीन पर चलते हैं। और जब अज्ञानी लोग उन्हें संबोधित करते हैं तो वे उनसे अच्छी बात करते हैं। वे ऐसे लोग हैं जो अपने ईश्वर के सज्दों और उपासना में पूरी पूरी रात बिता देते हैं।

अगर मनुष्य सृष्टि और उसमें पाई जाने वाली वस्तुओं को ईश्वर की रचनाएं और उसकी शक्ति का प्रदर्शन माने तो फिर वह दूसरों के समक्ष घमंड नहीं करेगा बल्कि वह उनके साथ प्रेम से पेश आएगा। विनम्र व्यक्ति इस सोच के साथ दूसरों से मिलता है कि अगर उसमें कोई गुण है भी तो वह ईश्वर की कृपा है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि तीन बातें प्रेम का कारण हैं। क्षमा याचना, विनम्रता और धर्म का अनुसरण।

कभी कभी ऐसा भी होता है कि विनम्रता या अच्छे व्यवहार से अपराधी या पथभ्रष्ठ लोग सही मार्ग पर आ जाते हैं और उन्हें अपनी ग़लतियों का आभास हो जाता है। इसके बाद वे अच्छे कामों और सच्चाई की ओर उन्मुख हो जाते हैं। यहीं यह बात भी उल्लेखनीय है कि विनम्रता और अपने आपको नीचा दिखाने में बहुत अंतर है। इस्लामी शिक्षाओं और मनोविज्ञान के अनुसार अपने आपको नीचा दिखाना मनुष्य के व्यक्तित्व की कमज़ोरी का परिचायक है कि जो प्रशंसनीय नहीं है जबकि विनम्रता का अर्थात दूसरों के समक्ष अपनी बड़ाई न करना है जो सराहनीय है। उदाहरण स्वरूप अगर कोई धनवान व्यक्ति निर्धन लोगों के बीच जाए तो यह प्रकट न करे कि वह धनवान है। या अगर कोई ज्ञानी, आम लोगों के बीच हो तो उन पर अपने ज्ञान का रौब झाड़ने की कोशिश न करे।

घमंड के संबंध में एक घटना आपके सामने पेश कर रहे हैं। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम अपने साथियों के साथ बैठे हुए थे और उनके साथियों ने उन्हें इस प्रकार घेरे में ले रखा था मानो अंगूठी के बीच में नग हो। इस्लामी परंपरा के अनुसार जब कोई किसी बैठक या गोष्ठी में पहुंचे तो उसे जो ख़ाली स्थान दिखाई पड़े वहीं बैठ जाए चाहे वह जिस पद पर भी आसीन हो। एक ग़रीब मुसलमान, जिसके बाल बिखरे हुए और कपड़े फटे-पुराने थे, वहां आया और उसने इधर-उधर देखा और जो जगह ख़ाली दिखाई दी, वहीं पर बैठ गया। संयोग से वहीं पर एक धनवान व्यक्ति बैठा हुआ था। उस व्यक्ति ने अपने कपड़े समेटे और अपने स्थान से थोड़ा दूर खिसक गया। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने, जो बड़े ध्यान से यह बात देख रहे थे उस धनवान व्यक्ति की ओर मुख करके कहाः क्या तुम्हें यह भय हुआ कि उसकी दरिद्रता तुम से चिपक जाएगी? उसने कहाः नहीं, हे ईश्वर के दूत! पैग़म्बर ने फिर पूछाः क्या तुम्हें इस बात का डर लगा कि तुम्हारे धन का एक भाग उसके पास चला जाएगा? उस व्यक्ति ने उत्तर दियाः नहीं हे ईश्वर के पैग़म्बर। उन्होंने पूछाः क्या तुम इस बात से डर गए कि तुम्हारे कपड़े मैले हो जाएं? उसने कहाः नहीं या रसूल्लल्लाह। पैग़म्बर ने उससे पूछाः तो फिर तुम क्यों उसके पास से हट गए? वह धनवान व्यक्ति बहुत अधिक लज्जित हुआ। उसने कहा कि मैं स्वीकार करता हूं कि मुझसे बहुत बड़ी ग़लती हो गई। अब मैं इस ग़लती की भरपाई और अपने पाप के प्रायश्चित के लिए अपनी संपत्ति का आधा भाग अपने इस मुसलमान बंधु को देने के लिए तैयार हूं जिसके संबंध में मैंने यह ग़लती की है किंतु उसी समय वह दरिद्र व्यक्ति बोल पड़ा कि मैं इसके लिए तैयार नहीं हूं। लोगों ने आश्चर्य से इसका कारण पूछा। उसने कहा चूंकि मुझे भय है कि किसी दिन मैं भी घमंडी हो जाऊं और अपने मुसलमान भाई के साथ वैसा ही व्यवहार करूं जैसा आज इसने मेरे साथ किया है।

रमज़ान का पवित्र महीना हमें हर प्रकार के नैतिक गुण अपनाने के लिए प्रेरित करता है। इन्हीं में से एक दूसरों की बुराइयों पर पर्दा डालना है। इस्लाम ने इस बात पर अत्यधिक बल दिया है कि कोई भी किसी की बुराइयों और कमियों को दूसरों से बयान न करे। हर व्यक्ति चाहता है कि उसमें जो कमियां और अवगुण हैं, उनसे दूसरे अवगत न हों। तो जब उसे भी दूसरों की कमियों का ज्ञान हो जाए तो उसे छिपाए रखना चाहिए। इस संबंध में हदीसों में कहा गया है कि ईश्वर हर किसी की हर बात से पूरी तरह अवगत है लेकिन वह उन बातों को दूसरों के सामने प्रकट करके अपमानित नहीं करता बल्कि लोगों की बुराइयों पर पर्दा डाले रखता है कि शायद वे सुधर जाएं और उन बुराइयों से तौबा करे लें।

कहते हैं कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के काल में बनी इस्राईल में ज़बरदस्त अकाल पड़ा। लोग उनके पास आए और कहने लगे कि आप नमाज़ पढ़ कर ईश्वर से हमारे लिए प्रार्थन कीजिए कि वर्षा आ जाए। वे उठे और बड़ी संख्या में लोगों के साथ प्रार्थना के लिए बाहर निकले। फिर वे एक स्थान पर पहुंचे और प्रार्थना की किंतु उन्होंने जितनी भी दुआ की, बारिश नहीं आई। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने ईश्वर से कहाः प्रभुवर! वर्षा क्यों नहीं आ रही है, क्या तेरे निकट मेरा जो स्थान था वह अब नहीं रहा? ईश्वर की ओर से कहा गयाः नहीं मूसा! ऐसा नहीं है बल्कि तुम लोगों के बीच एक ऐसा व्यक्ति है जो चालीस वर्षों से मेरी अवज्ञा करते हुए पाप कर रहा है, उससे कहो कि भीड़ से अलग हो जाए तो मैं तुरंत वर्षा भेज दूंगा। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने ऊंची आवाज़ से कहा, जो व्यक्ति चालीस वर्षों से ईश्वर की अवज्ञा कर रहा है, वह उठ कर हमारे बीच से निकल जाए क्योंकि उसी के कारण ईश्वर ने अपनी दया के द्वार बंद कर दिए हैं और वर्षा नहीं भेज रहा है। उस पापी व्यक्ति ने इधर-उधर देखा, कोई भी भीड़ में से नहीं उठा, वह समझ गया कि उसे ही लोगों के बीच से उठ कर जाना होगा। उसने अपने आपसे कहा कि क्या करूं, यदि मैं उठ कर जाता हूं तो सभी लोग मुझे देख लेंगे और मैं अपमानित हो जाऊंगा और यदि नहीं जाता हूं तो ईश्वर बारिश नहीं भेजेगा। यह सोचते सोचते उसका दिल भर आया और उसने सच्चे मन से तौबा की और अपने किए पर पछताने लगा। फिर उसने आकाश की ओर देखा और मन ही मन कहाः प्रभुवर! इतने सारे लोगों के बीच मुझे अपमानित होने से बचा ले। कुछ ही क्षणों के बाद बादल उमड़ आए और ऐसी बारिश हुई कि हर स्थान पर जल-थल हो गया। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने ईश्वर से कहाः प्रभुवर! कोई भी उठ कर हमारे बीच से नहीं गया तो फिर किस प्रकार तूने वर्षा भेज दी? ईश्वर की ओर से कहा गयाः मैंने वर्षा उस व्यक्ति के कारण भेजी है जिसे मैंने भीड़ से अलग होने के लिए कहा था किंतु उसने सच्चे मन से तौबा कर ली है। हज़रत मूसा ने कहा कि प्रभुवर! मुझे उस व्यक्ति के दर्शन करा दे। ईश्वर ने कहाः हे मूसा! जब वह पाप कर रहा था तब तो मैंने उसे अपमानित नहीं किया तो अब जब वह तौबा कर चुका है तो मैं उसे अपमानित कर दूं?

इस पवित्र महीने की एक अहम विशेषता पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम पर क़ुरआने मजीद का नाज़िल होना है और इसी लिए क़ुरआने मजीद को रमज़ान के महीने की आत्मा कहा जाता है जिसने इसकी महानता में चार चांद लगा दिए हैं। यह आसमानी किताब लोक-परलोक में मनुष्य के कल्याण को सुनिश्चित बनाती है और जीवन के हर चरण में मनुष्य का मार्गदर्शन करती है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम इस ईश्वरीय किताब के महत्व के बारे में कहते हैं। दिलों का बसंत और ज्ञान का सोता, क़ुरआन है और दिलों के लिए क़ुरआन के अलावा कोई प्रकाश नहीं है। क़ुरआने मजीद और रमज़ान के पवित्र महीने के अटूट रिश्ते के कारण ईरान में इस महीने में जगह जगह क़ुरआन की प्रदर्शनी लगाई जाती है।

इन्हीं में से एक क़ुरआन की अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी है जो हर साल तेहरान में आयोजित होती है। इस प्रदर्शनी में संसार के अनेक देश भाग लेते हैं। इस बार की प्रदर्शनी 11 से 25 मई तक आयोजित हुई जिसमें तुर्की, यमन, भारत, इराक़, ओमान, इंडोनेशिया, ट्यूनीशिया, फ़िलिस्तीन, अफ़ग़ानिस्तान और रूस जैसे देशों ने भाग लिया। प्रदर्शनी में ईरान की 18 सरकारी संस्थाएं, 24 जन संस्थाएं, विश्वविद्यालयों से संबंधित 18 संस्थाएं, धार्मिक शिक्षा केंद्रों की 8 संस्थाएं और प्रांतों की 12 संस्थाएं शामिल थीं। यह प्रदर्शनी 38 हज़ार वर्ग मीटर के भूभाग पर लगाई गई और शाम पांच बजे से रात 12 बजे तक लोग इसका निरीक्षण कर सकते थे।

इस प्रदर्शनी में भाग लेने वाले आयरलैंड के अहमद जोन्स का, जिन्होंने इस्लाम धर्म को स्वीकार कर लिया है, कहना है कि उनका जन्म एक ईसाई परिवार में हुआ। वे दस वर्ष की आयु में घूमने के लिए ट्यूनीशिया गए और संयोग से उनकी यह यात्रा रमज़ान के महीने में हुई थी। वे दो हफ़्ते वहां रहे और इस महीने की आध्यात्मिकता से बहुत प्रभावित हुए। वे कहते हैं कि इसके बाद मैं अपने एक इराक़ी मित्र के माध्यम से इस्लाम से परिचित हुआ और क़ुरआने मजीद पढ़ कर मुझे एक अभूतपूर्व अनुभव हुआ। इसने मेरे अंदर बहुत परिवर्तन पैदा किया। इसके बाद मुझे उन सवालों के जवाब भी मिलने लगे जो काफ़ी समय से मेरे मन में थे, जैसे कि जीवन का लक्ष्य क्या है? सामाजिक संबंधों का सही स्वरूप क्या है? और मनुष्य की ज़िम्मेदारियां क्या हैं? इन सवालों के क़ुरआने मजीद से मुझे जो जवाब मिले वह बहुत सरल और समझ में आने वाले थे। मैं ईश्वर का आभार प्रकट करता हूं कि उसने मुझे सही रास्ता दिखाया और इस्लाम स्वीकार करने का सामर्थ्य प्रदान किया।

 

फ़िलिस्तीन, फ़िलिस्तीनियों का है और उन्हीं के इरादे से संचालित होना चाहिए। फ़िलिस्तीन की सभी जातियों और सभी धर्मों के मानने वालों के रिफ़्रेंडम का प्रस्ताव, जिसे हमने लगभग 20 साल पहले पेश किया है, वह एकमात्र नतीजा है जो फ़िलिस्तीन की आज और कल की चुनौतियों से सामने आना चाहिए। यह प्रस्ताव दिखाता है कि यहूदी विरोध का दावा, जिसका पश्चिम वाले लगातार ढिंढोरा पीटते रहते हैं, पूरी तरह निराधार है। इस प्रस्ताव के मुताबिक़ यहूदी, ईसाई और मुसलमान फ़िलिस्तीनी एक दूसरे के साथ एक रिफ़्रेंडम में हिस्सा लेंगे और फ़िलिस्तीनी देश की राजनैतिक व्यवस्था का निर्धारण करेंगे। जिस चीज़ को निश्चित रूप से जाना चाहिए वह ज़ायोनी व्यवस्था है और ज़ायोनिज़्म ख़ुद, यहूदी धर्म में एक ग़लत उपज है और पूरी तरह उस धर्म से अलग है।

फ़िलिस्तीन समस्या का इलाज क्या है? इलाज, साहसिक प्रतिरोध और डट कर मुक़ाबला है। फ़िलिस्तीनी राष्ट्र, फ़िलिस्तीनी संघर्षकर्ताओं और फ़िलिस्तीनी संगठनों को अपने बलिदानी जेहाद के ज़रिए ज़ायोनी दुश्मन और अमरीका को धूल चटा देनी चाहिए। उसका रास्ता सिर्फ़ यह है और पूरे इस्लामी जगत को भी इनकी मदद करनी चाहिए, सभी मुस्लिम राष्ट्रों को फ़िलिस्तीनियों का समर्थन करना चाहिए, उनका साथ देना चाहिए, यह इलाज है। अलबत्ता मेरा मानना है कि फ़िलिस्तीन के सशस्त्र संगठन डट जाएंगे, प्रतिरोध जारी रखेंगे, रास्ता, प्रतिरोध है।...

अलबत्ता फ़िलिस्तीन समस्या का बुनियादी और ठोस हल वही है जो हमने कुछ साल पहले बताया था और उसे अहम अंतर्राष्ट्रीय केंद्रों में दर्ज भी कराया गया है, फ़िलिस्तीन के सभी मूल निवासियों के बीच, न उन लोगों के बीच जो किसी देश से आ कर फ़िलिस्तीन के इलाक़े में बस गए हैं, बल्कि जो लोग फ़िलिस्तीनी हैं, चाहे किसी भी धर्म के हों, मुसलमान हों, ईसाई हों या यहूदी हों, क्योंकि कुछ फ़िलिस्तीनी मुसलमान हैं, कुछ ईसाई हैं, कुछ यहूदी हैं, इन सबके बीच रिफ़्रेंडम कराया जाए और उन्हें स्वीकार्य व्यवस्था सत्ता में आए और वही पूरे फ़िलिस्तीन पर शासन करे, केवल उस इलाक़े पर नहीं जो उन्हीं के शब्दों में अवैध अधिकृत इलाक़ा है, फ़िलिस्तीन के एक भाग को अवैध अधिकृत इलाक़ा कहते हैं, पूरे फ़िलिस्तीन में एक सरकार जनता के सार्वजनिक वोटों से सत्ता में आए जो फ़िलिस्तीन के मामलों के बारे में फ़ैसला करे। नेतनयाहू जैसे लोगों के बारे में भी वही लोग फ़ैसला करें, अधिकार उनके हाथ में है। यह एकमात्र रास्ता है जो फ़िलिस्तीन में शांति और फ़िलिस्तीन समस्या के हल के बारे में पाया जाता है।

 

ज़ायोनियों के हमले की सुरक्षा परिषद के बहुत से सदस्य देशों ने कड़ी आलोचना की है।

संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद की आपातकालीन बैठक में सीरिया में ईरान के दूतावास के काउन्सलेट विभाग पर इस्राईल की आतंकवादी कार्यवाही की देशों ने कड़ी निंदा की।

राष्ट्रसंघ में ईरान की प्रतिनिधि ज़हरा इरशादी ने कहा कि इस्लामी गणतंत्र ईरान इस भयानक अपराध और कार्यतापूर्ण आतंकवादी कार्यवाही की निंदा करता है।  उन्होंने कहा कि यह आतंकी काम करके ज़ायोनी शासन ने राष्ट्रसंघ के घोषणापत्र, अन्तर्राष्ट्रीय नियमों और सीरिया की संप्रभुता का उल्लंघन किया है।

पश्चिमी एशिया के मामले में राष्ट्रसंघ के सलाहकार मुहम्मद ख़ालिद अलख़ेयारी ने सीरिया में ईरान के दूतावास पर इस्राईल के हमले की निंदा की।  उनका कहना था कि हर हाल में सभी राजनयिकों, काउंसिल परिसरों और वहां के कर्मचारियों की अन्तर्राष्ट्रीय नियमों के अनुसार रक्षा की जानी चाहिए।

संयुक्त राष्ट्रसंघ में रूस के स्थाई प्रतिनिधि वासिली नेबेन्ज़िया ने भी सीरिया में ईरानी दूतावास पर इस्राईल के हमले की निंदा करते हुए कहा कि इस्राईल की कार्यवाहियां, स्वीकार योग्य नहीं हैं।  उन्होंने कहा कि हर परिस्थति में कूटनीतिक दल को सुरक्षा मिलनी चाहिए।

चीन के प्रतिनिधि ने इस्राईल की कार्यवाही को सीरिया की संप्रभुता का खुला उल्लंघन बताया।  उन्होंने ईरानी राष्ट्र और सरकार के प्रति सहानुभूति प्रकट की।

संयुक्त राष्ट्रसंघ में सीरिया के प्रतिनिधि क़ुसै अज़्ज़हाक ने सुरक्षा परिषद की बैठक में हमले की निंदा करते हुए स्पष्ट किया कि इस्राईल के हमले, फ़िलिस्तीनियों के समर्थन और गोलान की पहाड़ियों को वापस लेने के मार्ग की बाधा नहीं बन पाएंगे।

संयुक्त राष्ट्रसंघ में स्वीज़रलैण्ड के प्रतिनिधि ने कहा कि उनका देश, दमिश्क़ में ईरान के दूतावास पर हुए हमले की भर्त्सना करता है।  उनका कहना था कि इस प्रकार की कार्यवाहियों ने क्षेत्र में तनाव को बहुत बढ़ा दिया है।

इस बैठक में स्लोवानिया के प्रतिनिधि ने भी ईरान के दूतावास पर इस्राईल के हमले की निंदा करते हुए कहा कि सारे पक्षों को संयुक्त राष्ट्रसंघ के प्रस्ताव क्रमांक-2728 सहित सारे ही प्रस्तावों का सम्मान करना चाहिए।

राष्ट्रसंघ में अल्जीरिया के प्रतिनिधि ने ईरान की सरकार और ईरानी राष्ट्र के प्रति सहानुभूति प्रकट करते हुए कहा कि ज़ायोनी शासन की ओर से की गई इस प्रकार की कार्यवाही का न तो किसी रूप में औचित्य दर्शाया जा सकता है और न ही यह सहन करने योग्य है।

उधर गुयाना के प्रतिनिधि ने भी सीरिया में ईरानी दूतावास पर इस्राईल के हमले की भर्त्सना करते हुए देशों की संप्रभुता के सम्मान पर बल दिया है।

इसी के साथ संयुक्त राष्ट्रसंघ में मोज़ांबीक के प्रतिनिधि ने भी इस्राईल के इस हमले को अन्तर्राष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन बताया।

संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद की आपातकालीन बैठक में ब्रिटेन, फ्रांस, जापान और दक्षिणी कोरिया ने अमरीका का साथ देते हुए अवैध ज़ायोनी शासन के हमले की निंदा नहीं की।  इन देशों ने केवल क्षेत्र में तनाव बढ़ने पर चिंता जताने को पर्याप्त समझा।

अवैध ज़ायोनी शासन ने सोमवार को अन्तर्राष्ट्रीय क़ानूनों का उल्लंघन करते हुए सीरिया की राजधानी दमिश्क़ में इस्लामी गणतंत्र ईरान के काउन्सलेट को अपने हमले का निशाना बनाया था।  इस आतंकी हमले में ईरान के कूटनयिकों और सैन्य परामर्शदाताओं सहित 13 लोग शहीद हो गए।

याद रहे कि सीरिया की सरकार के आधिकारिक निमंत्रण पर आतंकवाद विशेषकर दाइश के विरुद्ध संघर्ष में सहायता करने के लिए ईरान के सैन्य सलाहकार क़ुद्स ब्रिगेड के रूप में सीरिया में मौजूद हैं।

 

जनाज़े के जुलूस में शामिल लोगों ने कसम खाई कि वे पासबान हरम के शहीदों के पवित्र खून को कभी व्यर्थ नहीं जाने देंगे।

दमिश्क में ईरान के कांसुलर अनुभाग पर ज़ायोनी सरकार के आतंकवादी हमले में शहीद हुए सात सैन्य पर्यवेक्षकों का हज़रत रुकैया के दरगाह में जनाजे की नमाज अदा की

शहीदों के जनाज़े में शामिल लोगों ने साम्राज्यवादी और ज़ायोनी मोर्चे की हार तक शहीदों के रास्ते पर चलने का आग्रह किया और नकली ज़ायोनी सरकार के अपराधों का जवाब देने का वचन दिया। जनाज़े के जुलूस में भाग लेने वालों ने कसम खाई कि वे पासबान हरम के शहीदों के पवित्र खून को कभी व्यर्थ नहीं जाने देंगे और शहीदों का खून उनके लिए बैत-उल-मकदिस में प्रवेश करने और उसमें प्रार्थना करने के लिए प्रेरणा बनेगा।

शहीदों के जनाजे में शामिल लोगों ने इस बात पर जोर दिया कि ज़ायोनी दुश्मन असहाय हो गया है, इसीलिए वह अपराध करने पर उतर आया है क्योंकि वह गाजा के दलदल में फंस गया है और भागने का रास्ता तलाश रहा है।

सोमवार को ज़ायोनी शासन के युद्धक विमानों ने सीरिया की राजधानी दमिश्क में अल-मज़ा रोड पर ईरानी कांसुलर खंड को मिसाइल हमले से निशाना बनाया।

ज़ायोनी सरकार के इस आक्रामक हमले में रिवोल्यूशनरी गार्ड्स के कमांडर जनरल मुहम्मद रज़ा ज़ाहिदी और जनरल मुहम्मद हादी हाजी रहीमी, जो सीरिया में ईरान के सैन्य पर्यवेक्षक थे, अपने पांच सहयोगियों के साथ शहीद हो गए।

सभी मुसलमानों को एक साथ अपना विरोध दर्ज कराना चाहिए। इमाम खुमैनी ने जुम्मा अल-वादा से लेकर अल-कुद्स दिवस तक 45 वर्षों तक इस मुद्दे को जीवित रखा है। अल-कुद्स मनाना फिलिस्तीन को याद करने का एक शानदार तरीका है, इसलिए अपना नाम दर्ज करें इस दिन मुस्लिम विरोध प्रदर्शन करते हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, हैदराबाद/मौलाना तकी रज़ा आबिदी ने कहा कि गाजा नरसंहार पर मुसलमानों की चुप्पी सार्थक है, अब जबकि रमज़ान के पवित्र महीने में 23 लाख मुसलमानों की जान ख़तरे में है और आए दिन बमबारी जारी है दिन में। सबसे बड़ी बात यह है कि भूख और प्यास बहुत लगती है, चावल का एक दाना नहीं और पानी की एक बूंद भी नहीं।

ऐसे समय में जब वे मदद कर सकते हैं, यदि वे कुछ नहीं कर सकते हैं, तो कम से कम उन्हें अपनी प्रार्थनाओं में याद रखें, और उनके लिए प्रार्थना करें और इस कठिन समय में उनका समर्थन करें, इसलिए यह सभी मुसलमानों का कर्तव्य है। विशेष रूप से शुक्रवार और जुम्मा अल-वदा के बाद, सड़कों पर विरोध प्रदर्शन करें, और सम्मेलन आयोजित करें, अपनी बैठकों और मंडलियों में फिलिस्तीन का उल्लेख करें, गाजा के उत्पीड़न के बारे में बात करें, उन पर कैसे अत्याचार किए जा रहे हैं। और कैसे सदी का अकथनीय नरसंहार किया जा रहा है बाहर, नरसंहार, क्रूरता और हिंसा, अन्याय, अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन, और गाजा में जिस तरह की क्रूरता और क्रूरता हो रही है वह अभूतपूर्व है।

मुसलमान वर्षों से हो रहे अत्याचारों पर चुप हैं और फ़िलिस्तीन पर लगातार ज़ुल्म हो रहे हैं, अन्याय लगातार हो रहा है और उनके अधिकारों का लगातार उल्लंघन हो रहा है, लेकिन फ़िलिस्तीनियों ने उन मिसाइलों का जवाब पत्थरों से दिया है, और जब वे हथियार डालते हैं, तो कोई भी समर्थन करने के लिए तैयार नहीं होता है उनकी कोई भी मदद करने के लिए तैयार नहीं है, और वे ऐसे समय में अकेले रह गए हैं जब उन्हें मदद की सख्त जरूरत है, और पूरे इजराइल के अरब देशों से लेकर यूरोपीय देशों तक, सभी इजराइल की मदद कर रहे हैं।

इस समय, सभी मुसलमानों को एक साथ अपना विरोध दर्ज कराना जरूरी है। इमाम खुमैनी, भगवान की दया और आशीर्वाद उन पर हो, उन्होंने इस मुद्दे को जुम्मा अल-वादा से लेकर अल-कुद्स के दिन तक 45 वर्षों तक जीवित रखा है। अन्यथा , यह मुद्दा कब शांत होता? फिलिस्तीन को याद करने का एक अच्छा तरीका अल-कुद्स दिवस मनाना है, इसलिए इस दिन मुस्लिम विरोध प्रदर्शन के माध्यम से अपना नाम दर्ज कराएं।

 

 

 

 

 

हड़पने वाली ज़ायोनी सरकार ने गाजा के विभिन्न क्षेत्रों के साथ-साथ पश्चिमी जॉर्डन के विभिन्न क्षेत्रों पर क्रूर आक्रमण किया।

फ़िलिस्तीनी सूत्रों ने बताया है कि कब्ज़ा करने वाली ज़ायोनी सरकार के आक्रामक सैनिकों ने बुधवार सुबह पश्चिमी जॉर्डन के तुबास क्षेत्र में अल-फ़रा'आ शिविर पर हमला किया। ज़ायोनी सैनिकों ने नब्लस शहर और अल-माजिन की आवासीय इमारत पर भी हमला किया। ज़ायोनी सेनाओं ने रामल्लाह के पश्चिम में बेइटोनिया, अल-बलुआ और अल-मासिफ़ पर भी हमला किया।

कब्जे वाले सैनिकों ने कब्जे वाले यरूशलेम के उत्तर में हाजमा में फिलिस्तीनियों के खिलाफ आंसू गैस का इस्तेमाल किया और कल्किल्या में कफरसाबा पर हमला किया।

बेथलेहम के हसन क्षेत्र और रामल्ला के अल-मासयुन क्षेत्र पर भी लगातार आक्रमण किया गया और दसियों फिलिस्तीनियों को गिरफ्तार किया गया। ज़ायोनी सैनिकों ने नब्लस में तावोन रोड पर एक घिरी हुई इमारत में भी बम विस्फोट किया।

सीरिया में इस्लामी गणतंत्र ईरान के राजदूत ने चेतावनी दी है कि हम कब्ज़ा करने वाली ज़ायोनी सरकार के हमले का वैसा ही जवाब देंगे और समय हम ख़ुद चुनेंगे।

सीरिया में इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान के राजदूत होसैन अकबरी ने अपने सोशल मीडिया एक्स पेज पर लिखा कि ज़ायोनीवादियों ने सभी अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन करते हुए मेरे निवास और हमारे वाणिज्य दूतावास भवन पर हमला किया। के सैन्य अताशे को शहीद कर दिया है इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान। सीरिया में इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान के राजदूत ने ज़ायोनी सरकार को चेतावनी दी है कि हम अपनी पसंद के समय पर हमले का जवाब देंगे।

 

भारत निर्वाचन आयोग ने चुनाव को लेकर कानून प्रवर्तन एजेंसियों की बैठक बुलाई है.

नई दिल्ली से प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार चुनाव आयोग ने आम चुनाव के दौरान कानून व्यवस्था की स्थिति की समीक्षा के लिए बुधवार को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की पुलिस और अन्य कानून प्रवर्तन एजेंसियों की बैठक बुलाई है. .

भारत निर्वाचन आयोग के एक अधिकारी ने कहा है कि बैठक का उद्देश्य चुनाव के दौरान कानून व्यवस्था बनाए रखने और सभी प्रकार की अवैध गतिविधियों की रोकथाम की समीक्षा करना है.

उक्त अधिकारी ने कहा है कि आयोग के सदस्य आज से राज्यों का दौरा भी शुरू कर रहे हैं.

भारत निर्वाचन आयोग ने चुनावों को प्रभावित करने के लिए किसी भी वस्तु या धन के वितरण पर प्रतिबंध लगा दिया है और घोषणा की है कि ऐसी कोई भी गतिविधि अवैध है और ऐसी वस्तुओं और धन को जब्त कर लिया जाएगा।

गौरतलब है कि भारत में चुनाव आयोग ने 19 अप्रैल से 1 जून तक सात चरण के संसदीय चुनाव की घोषणा की है.

भारतीय संसद के निचले सदन लोकसभा की पांच सौ तैंतालीस सीटों के लिए चुनाव के नतीजे 4 जून को घोषित किए जाएंगे।