رضوی

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आज मस्जिदों का वातावरण कुछ बदला हुआ है।

जवान मस्जिद की सफाई कर रहे हैं। मस्जिद में बिछे फर्शों को धुल रहे हैं उसकी दीवारों आदि पर जमी धूलों की सफाई कर रहे हैं। वास्तव में दिलों की सफाई करके बड़ी मेहमानी की तैयारी की जा रही है। मानो मस्जिदों की सफाई करके स्वयं को महान ईश्वर की मेहमानी के लिए तैयार किया जा रहा है। इस नश्वर संसार में यह एक प्रकार की छोटी सी चेतावनी है और हम यह सोचें कि एक दिन हमें अपने पालनहार की ओर पलट कर जाना है उसी जगह पलट कर जाना है जब हम मिट्टी से अधिक कुछ नहीं थे और महान व सर्वसमर्थ ईश्वर ने हमें जीवन प्रदान किया।

इमामे जमाअत की आवाज़ सुनकर सभी नमाज के लिए खड़े हो जाते हैं और नमाज़ की पंक्ति को सही करते हैं और पूरी निष्ठा के साथ महान ईश्वर को याद करते हैं। अल्लाहो अकबर की आवाज़ सुनाई देती है जिसका अर्थ होता है ईश्वर महान है यानी ईश्वर उससे भी बड़ा व महान है जिसकी विशेषता बयान की जाये। इस वाक्य की पुनरावृत्ति दिलों को मज़बूत बनाती है और यह बताती है कि केवल उस पर भरोसा करना चाहिये और उससे मदद मांगना चाहिये। नमाज़ खत्म हो जाने के बाद मस्जिद में धोरे -धीरे शोर होने लगता है, दस्तरखान बिछने लगता है, कोई कहता है आज रमज़ान तो नहीं है क्यों इफ्तारी देना चाहते हैं? उसके जवाब में एक जवान कहता है" आज बहुत से लोगों ने पवित्र रमज़ान महीने के स्वागत में रोज़ा रखा है। आज शाबान महीने की अंतिम तारीख़ है। पैग़म्बरे इस्लाम ने फरमाया है कि शाबान मेरा महीना है और रमज़ान ईश्वर का महीना है तो जो मेरे महीने में रोज़ा रखेगा मैं प्रलय के दिन उसकी शिफाअत करूंगा यानी उसे क्षमा करने के लिए ईश्वर से विनती करूंगा और जो रमज़ान महीने में रोज़ा रखेगा वह नरक की आग से सुरक्षित रहेगा।“

जो लोग महान ईश्वर की मेहमानी से लाभांवित होना चाहते हैं और उसकी प्रतीक्षा में रहते हैं वे शाबान महीने में रोज़ा रखकर रमज़ान महीने का स्वागत करते हैं।

इसी मध्य मस्जिद के लाउड स्पीकर से रमज़ान महीने का चांद हो जाने की घोषणा की जाती है। लोग पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों पर दुरुद व सलाम भेजते हैं। उसके बाद इमामे जमाअत सभी को रमज़ान महीने के आगमन की मुबारकबाद पेश करता है और मस्जिद में मौजूद लोग दुआओं की किताब “सहीफये सज्जादिया” की 44वीं दुआ के एक भाग को पढ़ते हैं जिसका अनुवाद है” समस्त प्रशंसा उस पालनहार व ईश्वर से विशेष है जिसने अपने महीने, रमज़ान को पथप्रदर्शन का माध्यम करार दिया है, रमज़ान का महीना रोज़ा रखने, नतमस्तक होने, उपासना करने, पापों से पवित्र होने और रातों को जागने का महीना है। रमज़ान वह महीना है जिसमें कुरआन नाज़िल हुआ है ताकि वह लोगों का पथ-प्रदर्शन करे और सत्य- असत्य के बीच स्पष्ट तर्क व प्रमाण को पेश करे”

रमज़ान के महीने पर सलाम हो, रमज़ान का महीना उस जल की भांति है जो बुराइयों और पापों की आग की लपटों को बुझा देता है। सलाम हो इस्लाम व ईश्वरीय आदेशों के समक्ष नतमस्तक होने के महीने पर, सलाम हो पवित्रता के महीने पर, सलाम हो उस महीने पर जो हर प्रकार के दोष व कमी से शुद्ध करता है, सलाम हो रातों को जागने और महान ईश्वर की उपासना करने वाले महीने पर, सलाम हो उस महीने पर जिसकी अनगिनत आध्यात्मिकता से बहुत से लोग लाभ उठाते हैं और उसके विशुद्ध व अनमोल क्षण, ज्ञान की प्यास बुझाने के लिए लोगों को आमंत्रित करते हैं। यह चरित्र निर्माण का बेहतरीन महीना है, यह इंसान बनने और मानवता को परिपूर्णता का मार्ग का तय करने का बेहतरीन महीना है। यह वह महीना है जिसमें इंसान हर दूसरे महीने की अपेक्षा बेहतर ढंग से स्वंय को सद्गुणों से सुसज्जित कर सकता है। इसी प्रकार यह वह महीना है जिसमें इंसान बुराइयों से दूर रहने का अभ्यास दूसरे महीनों की अपेक्षा बेहतर ढंग से कर सकता है।

महान व सर्वसमर्थ ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम को सबके लिए आदर्श बनाया है। जब वह रमज़ान महीने के चांद को देखते थे तो अपना पवित्र चेहरा किबले की ओर कर लेते थे और आसमान की ओर दुआ के लिए हाथ उठाते थे और प्रार्थना करते थेः हे पालनहार! इस महीने को हमारे लिए शांति, सुरक्षा, स्वास्थ्य, सलामती, रोज़ी को अधिक करने वाला और समस्याओं को दूर करने वाला करार दे। हे पालनहार! हमें इस महीने में रोज़ा रखने, उपासना करने और कुरआन की तिलावत करने की शक्ति प्रदान कर और इस महीने में हमें सेहत व सलामती प्रदान कर”

जब रमज़ान का पवित्र महीना आता था तो पैग़म्बरे इस्लाम बहुत अधिक प्रसन्न होते थे और रमज़ान के पवित्र महीने में नाज़िल होने वाली अनवरत बरकतों व अनुकंपाओं का स्वागत करते और उनसे लाभ उठाते और महान ईश्वर के उस आदेश पर अमल करते थे जिसमें वह कहता है” हे पैग़म्बर कह दीजिये कि ईश्वर की कृपा और दया की वजह से मोमिनों को प्रसन्न होना चाहिये और यह हर उस चीज़ से बेहतर है जिसे वे एकत्रित करते हैं।“

पैग़म्बरे इस्लाम रमज़ान के पवित्र महीने में हर दूसरे महीने से अधिक उपासना की तैयारी करते थे। इस प्रकार रमज़ान के पवित्र महीने का स्वागत करते थे कि अच्छा कार्य करना उनकी प्रवृत्ति बन जाये और पूरे उत्साह के साथ रमज़ान के महीने में महान ईश्वर की उपासना करते थे।

पैग़म्बरे इस्लाम रमज़ान के पवित्र महीने के आने से पहले कुछ महत्वपूर्ण कार्य अंजाम देते थे और यह कार्य उपासना करने में पैग़म्बरे इस्लाम की अधिक सहायता करते थे।

रमज़ान के पवित्र महीने में अच्छे ढंग से रोज़ा रखने के लिए पैग़म्बरे इस्लाम शाबान महीने में ही गैर अनिवार्य रोज़े रखते थे और अपने साथियों व अनुयाइयों को रमज़ान महीने में अधिक उपासना करने के लिए कहते थे। इस उद्देश्य को व्यवहारिक बनाने के लिए लोगों को पवित्र रमज़ान महीने की विशेषता बयान करते और इस महीने में किये जाने वाले कर्म के अधिक पुण्य पर ध्यान देते थे। शाबान महीने के अंतिम खुत्बे में पैग़म्बरे इस्लाम बल देकर कहते थे” हे लोगों! बरकत, दया, कृपा और प्रायश्चित का ईश्वरीय महीना आ गया है। यह एसा महीना है जो ईश्वर के निकट समस्त महीनों से श्रेष्ठ है। इसके दिन बेहतरीन दिन और इसकी रातें बेहतरीन रातें और उसके क्षण बेहतरीन क्षण हैं। यह वह महीना है जिसमें तुम्हें ईश्वरीय मेहमानी के लिए आमंत्रित किया गया है, ईश्वरीय सम्मान और प्रतिष्ठा प्रदान की गयी है, तुम्हारी सांसें ईश्वरीय गुणगान व तसबीह हैं, इसमें तुम्हारा सोना उपासना और तुम्हारे कर्म स्वीकार और तुम्हारी दुआयें कबूल हैं। इस महीने की भूख- प्यास से प्रलय के दिन की भूख- प्यास को याद करो, गरीबों, निर्धनों और वंचितों को दान दो, अपने से बड़ों का सम्मान करो और छोटों पर दया करो और सगे-संबंधियों के साथ भलाई करो। अपने पापों से प्रायश्चित करो, नमाज़ के समय अपने हाथों को दुआ के लिए उठाओ कि वह बेहतरीन क्षण है और ईश्वर अपने बंदों को दयादृष्टि से देखता है।“

इस आधार पर कहा जा सकता है कि रमज़ान के पवित्र महीने का रोज़ा और दूसरी उपासनायें केवल शारीरिक गतिविधियां नहीं हैं बल्कि उनका स्रोत बुद्धि और हृदय है। इसी कारण अगर कोई अमल अंजाम दिया जाये और उसका आधार बुद्धि और दिल न हो तो वह अमल प्राणहीन व परंपरागत है जिसने हमें स्वयं में व्यस्त कर रखा है और उसका कोई लाभ व प्रभाव नहीं है। अगर हम यह चाहते हैं कि हमारी शारीरिक गतिविधियों का आधार बुद्धि व दिल हो तो हमें चाहिये कि सोच- विचार करके अपनी बुद्धि से काम लें और अपने अमल को अर्थपूर्ण बनायें।

इस समय जीवन का आदर्श बदल गया है। दिलों में प्रेम, मोहब्बत और निष्ठा कम हो गयी है और जीवन में उपेक्षा की भावना का बोल- बाला हो गया है। ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई के शब्दों में हर साल रमज़ान महीने का आध्यात्मिक समय स्वर्ग के टुकड़े की भांति आता है और ईश्वर उसे भौतिक संसार के जलते हुए नरक में दाखिल करता है और हमें इस बात का अवसर देता है कि हम इस महीने में स्वयं को स्वर्ग में दाखिल करें। कुछ लोग इस महीने की बरकत से इसी तीस दिन में स्वर्ग में दाखिल हो जाते हैं, कुछ लोग इस 30 दिन की बरकत से पूरे साल और कुछ इस महीने की बरकत से पूरे जीवन लाभ उठाते और स्वर्ग में दाखिल होते हैं जबकि कुछ इस महीने से लाभ ही नहीं उठा पाते और वे सामान्य ढंग से इस महीने गुज़र जाते हैं जो खेद और घाटे की बात है।"

इस प्रकार अगर इंसान रोज़ा रखता है, भूख- प्यास सहन करता है, ईश्वर की राह में खर्च करता है और दूसरों से प्रेम करता है तो यह महान ईश्वर की प्रसन्नता है जो हर चीज़ से श्रेष्ठ है और इंसान महान ईश्वर का सामिप्य प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त करता है यहां तक कि स्वयं इंसान और महान ईश्वर के बीच में किसी प्रकार की कोई रुकावट व दूरी नहीं रह जाती है और यह महान ईश्वर से प्रेम करने वालों का स्थान है।

हदीसे कुद्सी में आया है कि रोज़ा रखने और कम खाने के परिणाम में इंसान को तत्वदर्शिता प्राप्त होती है और तत्वदर्शिता भी ज्ञान व विश्वास का कारण बनती है। जब जिस बंदे को विश्वास हो जाता है तो वह इस बात से नहीं डरता है कि दिन कठिनाई में गुजरेंगे या आराम में और यह प्रसन्नता का स्थान है। महान ईश्वर ने कहा है कि जो मेरी प्रसन्नता के अनुसार व्यवहार करेगा मैं उसे तीन विशेषताएं प्रदान करूंगा। प्रथम आभार प्रकट करने की विशेषता जिसके साथ अज्ञानता नहीं होगी। दूसरे एसी याद जिसे भुलाया नहीं जा सकता और तीसरे उसे एसी दोस्ती प्रदान करूंगा कि वह मेरी दोस्ती पर मेरी किसी रचना की दोस्ती को प्राथमिकता नहीं देगा। जब वह मुझे दोस्त रखेगा तो मैं भी उसे दोस्त रखूंगा। उसके प्रेम को अपने बंदों के दिलों में डाल दूंगा और उसके दिल की आंखों को खोल दूंगा जिससे वह मेरी महानता को देखेगा और अपनी सृष्टि के ज्ञान को उससे नहीं छिपाऊंगा और रात के अंधरे और दिन के प्रकाश में उससे बात करूंगा

पवित्र रमज़ान महीने के आगमन पर हम इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम की दुआ के एक भाग को पढ़ते हैं जिसमें इमाम महान ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहते हैं" पालनहार! मोहम्मद और उनके परिजनों पर दुरूद व सलाम भेज और रमज़ान महीने की विशेषता और उसके सम्मान को पहचानने की मुझ पर कृपा कर"

इस्लामी दुनिया को फिलिस्तीनी मुद्दे की संवेदनशीलता और महत्व को समझना चाहिए। यदि इस्लामी दुनिया कुद्स मुद्दे पर एकजुट नहीं होती है, तो उनके पास एकता का इससे बेहतर कोई केंद्र नहीं होगा।

पिछली आधी सदी से इजरायल लगातार फिलिस्तीन में दमन और बर्बरता का बर्बर कृत्य कर रहा है, लेकिन सभी तथाकथित मानवतावादी देश, मानवाधिकार संगठन और उत्पीड़ितों के ध्वजधारक मूक दर्शक बने हुए हैं। सच तो यह है कि अगर इस्लामी दुनिया ने एकजुट होकर इजरायल के अत्याचारों और आक्रमण का विरोध करने की कोशिश की होती तो आज स्थिति यहा तक नहीं पहुंचती। हालाँकि, इस्लामी दुनिया की उदासीनता, औपनिवेशिक शक्तियों की चापलूसी और मुस्लिम उम्मा के सामान्य हितों की अनदेखी करते हुए ज़ायोनी षड्यंत्रों और योजनाओं को पूरा करने में उनके सहयोग ने क़िबला अव्वल, उम्मा के हितों और उत्पीड़ित फ़िलिस्तीनी लोगों के अधिकारों को दुश्मन के हाथों में नीलाम कर दिया है। ‘सैंचुरी डील’ के लिए तत्परता और इसके कार्यान्वयन में कई इस्लामी देशों की भागीदारी तथा पिछले वर्ष संयुक्त अरब अमीरात द्वारा इजरायल के साथ संबंधों के विस्तार ने यह साबित कर दिया है कि इस्लामी दुनिया ‘कुद्स’ की वसूली के लिए गंभीर नहीं है। यह एक ऐसा राष्ट्र है जो दुश्मन के इरादों की सफलता में भागीदार होता है और मुस्लिम लाशों के ढेर पर बैठकर अपने हितों के लिए समझौता करता है। अन्यथा, यदि मुस्लिम देश एकजुट हो जाएं और यरूशलम को पुनः प्राप्त करने के लिए संघर्ष करें, तो यह असंभव है कि यरूशलम ज़ायोनी शक्तियों के कब्जे से मुक्त न हो। उत्पीड़ित फिलिस्तीनियों के मौखिक समर्थन और प्रच्छन्न ज़ायोनीवाद ने इजरायल को एक पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया है। आज यमन, सीरिया, इराक और फिलिस्तीन में जो अकल्पनीय परिस्थितियां हैं, वे दुश्मन की साजिशों और योजनाओं का परिणाम कम, बल्कि इस्लामी दुनिया की गुलामी और उदासीनता का परिणाम अधिक हैं।

इस्लामी जगत की उदासीनता अपनी जगह है, लेकिन कुछ मानवाधिकार संगठन फिलिस्तीन में जारी इजरायली आक्रमण और मानवता के विरुद्ध अपराधों पर शोध रिपोर्ट प्रस्तुत कर इजरायली अपराधों को उजागर करते रहे हैं। इन रिपोर्टों को लागू करना संभव नहीं हो सका है, लेकिन इनके महत्व को नकारा नहीं जा सकता। इन रिपोर्टों के संदर्भ में, दुनिया को कुछ हद तक फिलिस्तीनी लोगों के उत्पीड़न और इजरायल की बर्बरता के बारे में पता चला है। न्यूयॉर्क स्थित मानवाधिकार संगठन 'ह्यूमन राइट्स वॉच' ने अपनी ताजा रिपोर्ट में एक बार फिर इजरायल का क्रूर चेहरा उजागर किया है। ह्यूमन राइट्स वॉच ने अपनी 213 पृष्ठों की रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि इजरायल अपनी सीमाओं के भीतर तथा अपने नियंत्रण वाले क्षेत्रों में फिलिस्तीनियों के साथ जो व्यवहार कर रहा है, वह अंतर्राष्ट्रीय अपराध की श्रेणी में आता है। यदि हम इजराइल में अरब अल्पसंख्यक नागरिकों तथा गाजा पट्टी और पश्चिमी तट के स्थानीय निवासियों की कुल जनसंख्या को देखें तो यह संख्या इजराइल की आधी जनसंख्या के बराबर है। हालाँकि, अपनी नीतियों के माध्यम से, इज़रायली राज्य न केवल अपने अरब अल्पसंख्यक नागरिकों को, बल्कि गाजा पट्टी और पश्चिमी तट के फिलिस्तीनियों को भी यहूदी नागरिकों को प्राप्त बुनियादी अधिकारों से व्यवस्थित रूप से वंचित कर रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इजरायल जो नीतियां लागू कर रहा है, जो अंतरराष्ट्रीय अपराध की श्रेणी में आती हैं, वे मानवता के खिलाफ गंभीर अपराध की प्रकृति की हैं। मानवाधिकार संगठन ने रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि इस रिपोर्ट का उद्देश्य इजरायल और रंगभेद युग के दक्षिण अफ्रीकी राज्य की तुलना करना नहीं है, बल्कि यह निर्धारित करना है कि क्या विशिष्ट इजरायली नीतियों और कार्यों को मौजूदा अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत नस्लीय भेदभाव माना जा सकता है। इजराइल ने ह्यूमन राइट्स वॉच की इस तथ्य-खोज रिपोर्ट को खारिज कर दिया है, लेकिन फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने इसका गर्मजोशी से स्वागत किया है। उन्होंने रिपोर्ट के बिंदुओं की प्रशंसा करते हुए कहा, “इस समय अंतरराष्ट्रीय समुदाय (फिलिस्तीन और इजरायल के बीच) द्वारा हस्तक्षेप की तत्काल आवश्यकता है ताकि सभी देश, उनके संस्थान और संगठन यह सुनिश्चित करें कि वे किसी भी तरह से इन युद्ध अपराधों में न तो सहायता करें और न ही इनका हिस्सा बनें और न ही मानवता और फिलिस्तीन के खिलाफ किए जा रहे अपराधों का हिस्सा बनें।” इजराइल ने रिपोर्ट को एकतरफा और पक्षपातपूर्ण बताते हुए कहा कि मानवाधिकारों के लिए सक्रिय यह संगठन कई वर्षों से इजराइल का बार-बार बहिष्कार करने में सक्रिय रहा है। "काश, ऐसी रिपोर्ट किसी मुस्लिम देश के सरकारी या गैर-सरकारी संगठन द्वारा जारी की जाती, ताकि दुनिया फिलिस्तीनी लोगों के उत्पीड़न को करीब से देख पाती और इजरायल की आक्रामकता और युद्ध अपराधों की सच्चाई सामने आती। लेकिन मुस्लिम देशों में इतना गर्व और सम्मान नहीं है कि वे इजरायल का समर्थन कर सकें। वे गुलामी के बंधन को तोड़कर उसकी क्रूरता और बर्बरता के खिलाफ मजबूती से खड़े हो सकते हैं।

यह तथ्य कि न्यूयॉर्क स्थित ह्यूमन राइट्स वॉच, जिसने येरुशलम को इजरायल की राजधानी के रूप में मान्यता देने के लिए हर संभव प्रयास किया है, की रिपोर्ट सार्वजनिक कर दी गई है, कोई छोटी बात नहीं है। पिछले आधी सदी में फिलिस्तीनियों के उत्पीड़न और इज़रायली आतंकवाद पर मुस्लिम देशों के मानवीय संगठनों द्वारा कितनी जांच रिपोर्टें प्रस्तुत की गई हैं, यह बहुत चिंता का विषय है। फिलिस्तीनी इंतिफादा के प्रति इस्लामी दुनिया की उदासीनता दर्शाती है कि वे ‘कुद्स मुद्दे’ के प्रति कितनी चिंता रखते हैं। अधिकांश मुस्लिम देश फिलिस्तीन को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में नहीं देखना चाहते हैं। कुछ देशों ने खुले तौर पर और कुछ ने गुप्त रूप से इजरायल को पूर्ण राज्य के रूप में मान्यता दी है। ‘सेंचुरी डील’ के तहत वे यरूशलम और पूरे पश्चिमी तट को इजरायल को सौंपने के लिए तैयार हैं। यदि फिलिस्तीनी लोगों का प्रतिरोध और ईरानी नेतृत्व की प्रतिरोध की भावना न होती तो संभवतः आज फिलिस्तीन पूरी तरह से एक इजरायली राज्य में तब्दील हो चुका होता। फिलिस्तीनी लोगों का प्रतिरोध और फिलिस्तीनी लोगों के खिलाफ इजरायली आक्रमण का प्रतिरोध 

पीएलओ का प्रतिरोध ईरानी नेतृत्व का ऋणी है, जिसने अशांत परिस्थितियों में भी उत्पीड़ितों को समर्थन देने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। यदि यरुशलम का मुद्दा आज वैश्विक स्तर पर इतना महत्वपूर्ण हो गया है, तो यह इमाम खुमैनी और सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह खामेनेई की विद्वत्तापूर्ण अंतर्दृष्टि और विचारशील राजनीति के कारण है। मुझे उम्मीद है कि अन्य मुस्लिम देश भी यरुशलम को पुनः प्राप्त करने के लिए संघर्ष करेंगे और उत्पीड़ित फिलिस्तीनी लोगों की सहायता करना अपना धार्मिक और राष्ट्रीय कर्तव्य समझेंगे, ताकि इस्लामी दुनिया को ज़ायोनी षड्यंत्रों के कहर से बचाया जा सके।

वर्तमान स्थिति यह है कि इज़रायली सेना हर दिन फिलिस्तीनी लोगों पर अत्याचार करती रहती है। उन्हें पहले क़िबला में नमाज़ पढ़ने की भी इजाज़त नहीं है। उनकी महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों के साथ बलात्कार किया जाता है। युवाओं को बिना किसी अपराध के गिरफ्तार कर लिया जाता है और मरने के लिए जेलों में डाल दिया जाता है या फिर मौके पर ही गोली मार दी जाती है। इजराइल फिलिस्तीनी लोगों के सभी अधिकार और शक्तियां अपने हाथों में लेना चाहता है। ‘शताब्दी के समझौते’ के कार्यान्वयन से फिलिस्तीनियों को बुनियादी अधिकारों से वंचित होना पड़ेगा, जिसके तहत उन्हें नागरिक सुरक्षा के लिए अपनी पुलिस और सीमा सुरक्षा के लिए अपनी सेना रखने का अधिकार नहीं होगा। नगर पालिकाओं से लेकर रक्षा मुद्दों तक हर चीज़ की ज़िम्मेदारी इज़राइल को सौंपी जाएगी। इसलिए इस्लामी जगत को फिलिस्तीनी मुद्दे की संवेदनशीलता और उसके महत्व को समझना चाहिए। अगर इस्लामी दुनिया कुद्स मुद्दे पर एकजुट नहीं होती है तो उनके पास एकता का इससे बेहतर कोई केंद्र नहीं है।

लेखक: आदिल फ़राज़

 

आयतुल्लाह मुस्तफा उलेमा ने कहा: रोज़े के प्रभाव कभी-कभी नग्न आंखों से दिखाई नहीं देते हैं, लेकिन आध्यात्मिक पहलू में इसकी वास्तविकता स्पष्ट होती है।

मजलिसे खुबरेगान रहबरी के सदस्य आयतुल्लाह मुस्तफा उलेमा ने क्रांति के सर्वोच्च नेता के कार्यालय, क़ोम में इमाम खुमैनी (र) हुसैनिया में आयोजित रमजान नैतिक पाठ को संबोधित किया।

अपने भाषण के दौरान, उन्होंने पवित्र कुरान की आयत का उल्लेख किया, "रोज़ा तुम्हारे लिए वाजिब है, जैसा कि तुमसे पहले के लोगों के लिए वाजिब था" (बक़रा: 183), और कहा: रोज़ा न केवल मुसलमानों के लिए वाजिब है, बल्कि सभी पूर्ववर्ती राष्ट्रों पर भी फ़र्ज़ था, जो मानव आत्मा और शरीर पर इस इबादत के गहन प्रभावों को दर्शाता है।

मजलिसे खुबरेगान रहबरी के एक सदस्य ने कहा: रोज़े के प्रभाव अक्सर नंगी आंखों से दिखाई नहीं देते, लेकिन आध्यात्मिक पहलू में इसकी वास्तविकता स्पष्ट होती है।

उन्होंने कहा: स्वर्गीय अल्लामा तबातबाई और स्वर्गीय हसनज़ादा अमोली ने रोज़े को बुद्धि और ज्ञान की कुंजी माना था।

हौज़ा ए इल्मिया के शिक्षक ने अमीरूल मोअमिनिन हज़रत अली (अ) की एक हदीस का हवाला देते हुए कहा, "बुद्धि एक पेड़ है जो दिल में बढ़ता है"  बुद्धि वह प्रकाश है जो उपवास व्यक्ति के दिल में पैदा करता है और उसकी जीभ को ईश्वरीय शब्द से सुशोभित करता है।

उन्होंने कहा: जिस प्रकार इमाम खुमैनी (र) और इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता, (दामा ज़िल्लोहुल आली) ने इलाही हिकमत के माध्यम से इस्लामी क्रांति का मार्गदर्शन किया, उसी प्रकार ईरानी राष्ट्र को भी ईश्वर के प्रति अंतर्दृष्टि और आज्ञाकारिता के साथ शहीदों के मार्ग पर चलना चाहिए।

 

वेनेजुएला सरकार ने एक बयान में कराकस से तेल और गैस खरीदने वाले देशों के खिलाफ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प की नई धमकियों की निंदा करते हुए जोर दिया: वेनेजुएला का रास्ता साफ़ है और कुछ भी नहीं और कोई भी हमें नहीं रोक सकता।

एक बयान में, वेनेज़ुएला सरकार ने कराकस से तेल और गैस खरीदने वाले देशों के खिलाफ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प की नई धमकियों पर प्रतिक्रिया व्यक्त की है।

वेनेजुएला सरकार के बयान में कहा गया है: तेल और गैस के क्षेत्र में काराकस के साथ व्यापार करने वाले किसी भी देश पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने का ट्रम्प का फ़ैसला, एक मनमाना और अवैध है जो हताशा से लिया गया था और इस तथ्य को उजागर करता है कि वेनेजुएला के खिलाफ पहले लगाए गए सभी प्रतिबंध निर्णायक विफलता की निशानी हैं।

वेनेजुएला सरकार इस बयान में कहती है: वाशिंगटन ने हमारे लोगों को घुटनों पर लाने की उम्मीद से, वेनेजुएला के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं, जो स्पष्ट रूप से अंतरराष्ट्रीय व्यापार कानूनों का उल्लंघन हैं।

वेनेजुएला सरकार के बयान में कहा गया है: वे नाकाम रहे क्योंकि वेनेजुएला एक स्वतंत्र देश है जिसके लोगों ने सम्मान के साथ विरोध किया है, और दूसरी ओर, हम एक ऐसे दौर में हैं जहां दुनिया के देशों पर अब किसी भी प्रकार की आर्थिक तानाशाही का बोझ नहीं पड़ेगा।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने पहले घोषणा की थी कि वह 2  अप्रैल से वेनेजुएला पर सेकेन्ड्री टैरिफ लगाएंगे, और अन्य देशों को धमकी दी कि अगर वे वेनेजुएला से तेल और गैस खरीदते हैं तो उन्हें अमेरिका को 25 प्रतिशत टैक्स देना पड़ेगा।

सोमवार को, डोनल्ड ट्रम्प ने अपने सोशल नेटवर्क जिसे ट्रुथ सोशल के नाम से जाना जाता है, पर फिर से घोषणा की कि वाशिंगटन वेनेजुएला पर सेकेन्ड्री टैरिफ लगाएगा।

 

यमनी सशस्त्र बलों के प्रवक्ता ने तेल अवीव के बेन-गुरिन हवाई अड्डे और अमेरिकी विमानवाहक पोत हैरी ट्रूमैन पर एक कामयाब मिसाइल हमले की सूचना दी है।

यमन के सशस्त्र बलों के प्रवक्ता ब्रिगेडियर जनरल यहिया सरी ने मंगलवार सुबह एक बयान में एलान किया कि यमनी सशस्त्र बलों ने मिसाइल जुल्फिक़ार और फिलिस्तीन-2 प्रकार की बैलिस्टिक मिसाइलों से तेल अवीव में बेन-गुरिन हवाई अड्डे को निशाना बनाया।

उन्होंने आगे कहा: एक अन्य ऑपरेशन में, यमन की नौसेना, मिसाइल और ड्रोन यूनिट्स ने अमेरिकी हैरी ट्रूमैन एयर क्राफ़्ट कैरियर और कई अन्य जहाजों पर क्रूज मिसाइलों और ड्रोन से हमला किया।

श्री यहिया सरी ने कहा: लाल सागर में पिछले 24 घंटों में अमेरिकी हमलावर जहाज़ों पर यह दूसरा हमला था जो कई घंटों तक चला।

यमन के सशस्त्र बलों के प्रवक्ता ने ग़ज़ा पट्टी पर अतिक्रमण समाप्त होने और इस क्षेत्र की नाकाबंदी हटने तक ज़ायोनी शासन से संबंधित जहाजों के मार्ग को रोकने और मक़बूज़ा क्षेत्रों के अंदर तक हमले करने के लिए इस देश के अभियानों को जारी रखने पर ज़ोर दिया है।

 अमेरिकी हमले में यमन का कैंसर अस्पताल पूरी तरह तबाह

 

इस बीच, यमन के सादा प्रांत में कैंसर के इलाज का विशेष अस्पताल अमेरिकी युद्धक विमानों के हमले में पूरी तरह नष्ट हो गया। इस अस्पताल पर भी छह दिन पहले अमेरिकी युद्धक विमानों ने हमला किया था।

उत्तरी यमन में सादा प्रांत के मानवाधिकार कार्यालय ने कल सोमवार को घोषणा की कि इस हमले में अस्पताल के पूरी तरह नष्ट होने के अलावा कई नागरिक भी घायल हुए हैं।

 यमन की सर्वोच्च परिषद के सचिव: हम फ़िलिस्तीन के साथ किए गये वादे से जुड़े हैं

 इन हमलों के बाद यमन की सर्वोच्च राजनीतिक परिषद के सचिव यासिर अल-हूरी ने मंगलवार सुबह इर्ना से बातचीत में कहा: यमन का राष्ट्र, नेता और सशस्त्र बल, फ़िलिस्तीनी राष्ट्र और फिलिस्तीनी प्रतिरोध के साथ किए गए वादों पर क़ायम हैं।

यासिर अल-हूरी ने कहा: यमनी राष्ट्र मज़लूम फिलिस्तीनी राष्ट्र के नरसंहार का दर्शक नहीं बन सकता है और अन्य अरब देशों की तरह, फिलिस्तीन के समर्थन में बेकार बयानों से संतुष्ट नहीं हो सकता है। उन्होंने कहा: यमन की सैन्य क्षमताएं और सुविधाएं, दिन-प्रतिदिन प्रगति और विकास कर रही हैं, और अमेरिकी हमलों का इस क्षमता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है।

इस यमनी अधिकारी ने कहा: फ़िलिस्तीन के मक़बूज़ा क्षेत्रों में ज़ायोनी शासन के ठिकानों पर प्रतिदिन होने वाले हमले और लाल सागर में अमेरिकी एयर क्राफ़्ट कैरियर से जंग में यमनी सशस्त्र बलों की उच्च तत्परता और क्षमता को दर्शाता है।

 तेल अवीव में एमरजेंसी सायरन बज उठा

 ज़ायोनी मीडिया ने यमन की ओर से मक़बूज़ा फ़िलिस्तीनी क्षेत्रों की ओर रॉकेट दागे जाने की ख़बरें भी जारी की हैं। इसके बाद, तेल अवीव सहित मक़बूज़ा फिलिस्तीनी क्षेत्रों के बड़े क्षेत्रों में ख़तरे का सायरन बजने लगा। 

 

आयतुल्लाहिल उज़्मा नूरी हमदानी ने क़ुद्स दिवस के अवसर पर जारी अपने संदेश में दुनिया भर के मुसलमानों से अपील की है कि वे सियोनी अत्याचार और बर्बरता के ख़िलाफ़ एकता और एकजुटता का व्यावहारिक प्रदर्शन करें।

आयतुल्लाहिल उज़्मा नूरी हमदानी ने क़ुद्स दिवस के अवसर पर जारी अपने संदेश में दुनिया भर के मुसलमानों से अपील की है कि वह इज़राईली अत्याचार और बर्बरता के ख़िलाफ़ एकता और एकजुटता का व्यावहारिक प्रदर्शन करें। 

आयतुल्लाहिल नूरी हमदानी के संदेश का पाठ निम्नलिखित है:

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

माह-ए-रमज़ानुल मुबारक के आख़िरी जुमआ को इमाम ख़ुमैनी रह.के आदेश के अनुसार यौम-अल-क़ुद्स के रूप में मनाया जाता है जिसका उद्देश्य दुनिया भर के मुस्तज़ाफ़ीन (पीड़ितों) को एक दिन में सियोनी क़ब्ज़ेकार सरकार के ख़िलाफ़ अपनी नफ़रत व्यक्त करने का अवसर देना है। 

इस साल भी इस नाजायज़ सरकार के जुर्म अपनी चरम सीमा पर पहुँच चुके हैं और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं की ख़ामोशी या अप्रभावी कार्रवाइयों के कारण मज़लूमों ख़ासकर मासूम बच्चों का क़त्लेआम जारी है। 

इंशाअल्लाह, एक बार फिर दुनिया भर के मुसलमान इस ज़ालिम सरकार और उसके संरक्षकों के ख़िलाफ़ अपनी एकता और एकजुटता का व्यावहारिक प्रदर्शन करेंगे और अपनी नफ़रत का खुलकर इज़हार करेंगे। 

हुसैन नूरी हमदानी

 

बगदाद के इमाम जुमा आयतुल्लाह सय्यद यासीन मूसवी ने इराक में संयुक्त राज्य अमेरिका और इजरायल के बढ़ते प्रभाव के खिलाफ कड़ी चेतावनी जारी की और देश की स्थिरता और राष्ट्रीय संप्रभुता की रक्षा के लिए एकजुट होने का आग्रह किया।

बगदाद के इमाम जुमा आयतुल्लाह सय्यद यासीन मूसवी ने इराक में संयुक्त राज्य अमेरिका और इजरायल के बढ़ते प्रभाव के खिलाफ कड़ी चेतावनी जारी की और देश की स्थिरता और राष्ट्रीय संप्रभुता की रक्षा के लिए एकजुट होने का आग्रह किया।

अपने जुमा के खुत्बे में आयतुल्लाह मूसवी ने चल रहे वैश्विक संकटों और क्षेत्र पर उनके प्रभाव पर चर्चा करते हुए कहा कि आज दुनिया में अराजकता वैश्विक शांति और स्थिरता के बारे में गंभीर सवाल उठा रही है।

उन्होंने अमेरिकी और ज़ायोनी नीतियों को युद्ध और विनाश का कारण बताते हुए कहा, "हम शांति चाहते हैं, लेकिन जब से ट्रम्प सत्ता में आए हैं, दुनिया में हिंसा और हत्या में वृद्धि ही देखी गई है।" उन्होंने पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति को एक आपराधिक गिरोह का नेता बताया जो किसी भी मानवीय या कानूनी मूल्यों की परवाह किए बिना अपराध करता है।

आयतुल्लाह सय्यद यासीन मूसवी ने इराक में विदेशी हस्तक्षेप को देश की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बताते हुए कहा, "कुछ अधिकारी अपने ही लोगों को धमका रहे हैं, जैसा कि इराकी विदेश मंत्री ने हाल के दिनों में किया, जो एक अस्वीकार्य कृत्य है।"

उन्होंने चेतावनी दी कि संयुक्त राज्य अमेरिका और इजरायल इस क्षेत्र के एक नए विभाजन की योजना पर काम कर रहे हैं, जिसका अनुभव सूडान और यमन में पहले ही हो चुका है, और अब इराक में एक अलग कुर्द राज्य स्थापित करने के प्रयास किए जा रहे हैं।

बगदाद के इमाम जुमा ने कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका शिया ताकतों को कमजोर करने की योजना पर काम कर रहा है, जिसका उद्देश्य इराकी सेना और पॉपुलर मोबिलाइजेशन फोर्सेज (पीएमएफ) की शक्ति को सीमित करना है, ताकि इराक, फिलिस्तीनी प्राधिकरण की तरह, एक कमजोर संस्था बनी रहे जो केवल इजरायल के हितों की रक्षा करे।

 

मंगलवार, 25 मार्च 2025 20:08

ईश्वरीय आतिथ्य- 4

ईश्वरीय आतिथ्य- 4

रमज़ान का पवित्र महीना, आत्मनिर्माण और पापों से स्वयं को बचाने का बहुत अच्छा अवसर है।

यही कारण है कि बहुत से मुसलमान इस अवसर से लाभ उठाने का प्रयास करते हैं।  रमज़ान का महीना विशेष महत्व का रखता है।  यह महीना अपनी आत्मा को पवित्र करने का बेहतरीन अवसर है।  यह लोगों के जीवन को गहराई से प्रभावित करता है।  इस महीने में जो कुछ हासिल होता है वह कठिन उपासना का परिणाम होता है।  ईश्वर चाहता है कि मनुष्य, पवित्र रमज़ान में इबादत करके ईश्वर से डरता रहे ताकि उसे कल्याण प्राप्त हो सके।

इस्लामी शिक्षाओं में बताया गया है कि ईश्वर की उपासना करके मनुष्य का अन्तिम लक्ष्य, कल्याण व सफलता प्राप्त करना है।  पवित्र क़ुरआन की बहुत सी आयतों में तक़वा अर्थात ईश्वर से भय की बात कही गई है।  तक़वे का भी लक्ष्य, कल्याण हासिल करना है।  सूरए बक़रा की आयत संख्या 130 में ईश्वर कहता है कि और ईश्वर से डरते रहो ताकि तुम्हें फ़लाह या कल्याण प्राप्त हो जाए।  क़ुरआन की आयतों में 40 बार फ़लाह शब्द का प्रयोग उसके विभिन्न रूपों में किया गया है।

फ़लाह का अर्थ होता है सामने मौजूद रुकावटों को दूर करना और उस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए समस्याओं को नियंत्रित करना जो कल्याण व सफलता का कारण बनता है।  ईमान वाले ईश्वर पर भरोसा करते हुए लक्ष्य तक पहुंचने का हर संभव प्रयास करते हैं और संसार की क्षमता के अनुसार सफलताएं प्राप्त करते हैं किंतु उनके प्रयासों का संपूर्ण पारितोषिक प्रलय में दिया जाएगा और वे ईश्वरीय दया की छाया में और पवित्र व भले लोगों के साथ स्वर्ग में सदा के लिए रहेंगे।  क़ुरआन के अनुसार वे स्वतंत्र लोग जो ईश्वर को दिल की गहराइयों से मानते हैं उनका ईश्वर पर अटूट भरोसा होता है।  ऐसे लोग कठिन परिश्रम करके अच्छाइयां प्राप्त करते हैं।  सूरे तौबा की 20वीं आयत में कहा गया है कि वे लोग जो ईमान और अमल अर्थात आस्था एवं कर्म को साथ-साथ रखते हैं, सफल रहते हैं।

मनुष्य के हर कार्य को अच्छा काम नहीं कहा जा सकता।  केवल वही काम अच्छा काम माना जाएगा जो बुद्धि के आधार पर और पूरी निष्ठा के साथ किया गया हो।  इस प्रकार से ईश्वर, ऐसा काम करने का निमंत्रण देता है जिसे पूरी निष्ठा के साथ किया जाए।  अपने व्यवहार के बारे में मनुष्य के सतर्क रहने से वह अच्छे काम की ओर अग्रसर रहता है।  ऐसे में वह केवल वे काम ही करता है जिससे ईश्वर नाराज़ न हो।  जिन लोगों को इस बात पर विश्वास है कि ईश्वर हमें देख रहा है और हमारे सारे कर्मों से अवगत है वे सच्चाई के साथ भले काम करते हैं जो तक़वे का कारण बनते हैं।

अब जबकि रमज़ान का महीना चल रहा है एसे में हम यह काम बड़ी सरलता से कर सकते हैं।  रोज़ा रखकर आंतरिक इच्छाओं पर नियंत्रण किया जा सकता है।  रमज़ान के महीने में पवित्र क़ुरआन पढ़ने पर अधिक से अधिक बल दिया गया है।  जितना भी संभव हो सके मनुष्य इस महीने में क़ुरआन पढ़ता रहे।  यहां पर यह बात ध्यान योग्य है कि केवल क़ुरआन का पढ़ना की पर्याप्त नहीं है बल्कि इसका मुख्य लक्ष्य, क़ुरआन की बातों को समझकर उनपर अमल करना है।

रमज़ान के महीने के बारे में ईश्वर सूरे बक़रा की आयत संख्या 185 में कहता हैः रमज़ान का महीना वह महीना है जिसमें क़ुरआन ईश्वर की ओर से उतरा है, जो लोगों का मार्गदर्शक है तथा, असत्य से सत्य को अलग करने हेतु स्पष्ट तर्कों व मार्गदर्शन को लिए हुए है, तो तुम में से जो कोई भी ये महीना पाए तो उसे रोज़ा रखना चाहिए और जो कोई बीमार या यात्रा में हो तो वह उतने ही दिन किसी अन्य महीने में रोज़ा रखे, ईश्वर तुम्हारे लिए सरलता चाहता है, कठिनाई नहीं, तो तुम रोज़ा रखो यहां तक कि दिनों की संख्या पूरी हो जाए और तुम्हें मार्गदर्शन देने के लिए ईश्वर का महिमागान करो और शायद तुम (ईश्वर के प्रति) कृतज्ञ हो।

पवित्र क़ुरआन का तेइसवां सूरा, मोमेनून है।  इसमें मोमिनों के बारे में बताया गया है ताकि उनकी सफलता को देखकर अन्य लोग भी कामयाबी के रास्ते पर आगे बढ़ें।  बाद में सफलता के लिए कुछ विशेषताएं बयान की गई हैं।  यह वे विशेषताए हैं जिनको व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर लागू किया जा सकता है।  आरंभ में ईश्वर, मोमिनों को सफल बताता है।  पहली आयत एक संक्षिप्त वाक्य में स्पष्ट रूप से लोक परलोक में ईमान वालों के निश्चित कल्याण व सफलता की सूचना देती है। इस आयत में फ़लाह शब्द का प्रयोग किया गया है।  आयत में प्रयोग होने वाले शब्द फ़लाह का अर्थ होता है सामने मौजूद रुकावटों को दूर करना और उस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए समस्याओं को नियंत्रित करना जो विजय व सफलता का कारण बनता है।  ईमान वाले ईश्वर पर भरोसा करते हुए लक्ष्य तक पहुंचने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं और संसार की क्षमता के अनुसार सफलताएं प्राप्त करते हैं किंतु उनके प्रयासों का संपूर्ण पारितोषिक प्रलय में दिया जाएगा और वे ईश्वरीय दया की छाया में और पवित्र व भले लोगों के साथ स्वर्ग में सदा के लिए रहेंगे।

सूरे मोमेनून में मोमिनों की प्रशंसा करते हुए ईश्वर पहले नमाज़ का उल्लेख करता है।  नमाज़, ईश्वर से संपर्क का सबसे अच्छा माध्यम है।  ईश्वर कहता है कि मोमिन वे लोग हैं जो पूरी विनम्रता के साथ नमाज़ पढ़ते हैं।  विनम्रता ऐसी स्थिति है जिसका प्रभाव शरीर पर भी दिखाई देता है। रमज़ान के पवित्र महीने में रोज़ा रखने वाले के लिए सबसे अच्छा काम अपने ईश्वर की उपासना करना है।  रोज़ेदार बड़ी ही श्रद्धा के साथ रमज़ान में अपने ईश्वर को याद करता है।

नमाज़, बंदगी का रहस्य और आज़ादी की पहचान है।  इस सूरे में नमाज़ के अतिरिक्त एक अन्य विशेषता की ओर संकेत किया गया है जो लगभग सात आयतों में मिलता है।  रोज़ेदार, इन विशेषताओं का अध्ययन करके अपनी अच्छी विशेषताओं में अधिक से अधिक वृद्धि कर सकते हैं।  इन विशेषताओं को हमें ध्यान से पढ़ना चाहिए।  निश्चित रूप से ईश्वर पर ईमान रखने वाले सफल रहे कि जो अपनी नमाज़ों में विनम्र रहते हैं।  और जो लोग व्यर्थ बातों व कार्यों से मुंह मोड़ लेते हैं। और जो ज़कात अदा करते हैं।  और जो स्वयं को व्यभिचार से बचाते हैं। सिवाय अपनी पत्नियों या (ख़रीदी हुई) दासियों के, कि इस पर वे निन्दनीय नहीं हैं। तो जो कोई इसके अतिरिक्त कुछ और चाहे तो ऐसे ही लोग सीमा लांघने वाले है। और जो लोग अपनी अमानतों और अपनी प्रतिज्ञा का पालन करते हैं। और जो सदैव अपनी नमाज़ों की रक्षा करते हैं। यही लोग तो वारिस हैं। जो स्वर्ग की विरासत पाएँगे (और) वे उसमें सदैव रहेंगे।

रमज़ान का महत्व समझाते हुए इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम कहते हैं कि ईश्वर ने पवित्र रमज़ान को जागरूकता का प्रमुख कारक बताते हुए कहा कि यह महीना, ईश्वर के मार्ग पर चलने का बहुत अच्छा ज़माना है।  इस महीने में कुछ लोग भलाई में एक-दूसरे से आगे बढ़ जाते हैं।  इसी महीने में कुछ लोग उदंडता करके अपना नुक़सान कर लेते हैं।  आश्चर्य है उन लोगों पर जो बहुत हंसते हैं और अपना समय खेल में गुज़ारते हैं।  उस दिन जब भलाई करने वालों को उनकी भलाई का बदला दिया जाएगा, एसे में बुराई करने वाले घाटा उठाएंगे।  ईश्वर के कथनानुसार वास्तविक कल्याण पाने वाले प्रकाश में रहेंगे।

मंगलवार, 25 मार्च 2025 20:06

ईश्वरीय आतिथ्य- 3

रमज़ान के महीने को ईश्वर की मेज़बानी का महीना और उत्कृष्टता तक पहुंचने का मार्ग कहा जाता है।

पूरे इतिहास में ईश्वरीय दूतों ने लोगों को ईश्वर की ओर आमंत्रित किया है। ईश्वरीय दूत हज़रत नूह ने कहा था, हे ईश्वर, मैंने अपनी उम्मत को रात-दिन तुझ पर ईमान लाने की दावत दी। अंतिम ईश्वरीय दूत हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स) ने ईश्वर के आदेशानुसार लोगों से कहा, कह दो, यह मेरा मार्ग है, मैं समझदारी और जागरुकता से ईश्वर की ओर दावत देता हूं।

ईश्वर की ओर दावत की कुछ विशेषताएं हैं, जो उसे अन्य दावतों से अलग करती हैं। इस दावत की महत्वपूर्ण विशेषता, बुद्धिमत्ता और अच्छी बात है। क़ुराने मजीद में उल्लेख है, हे पैग़म्बर, लोगों को दृढ़ संकल्प, अच्छे एवं सुन्दर उपदेशों से अपने ईश्वर की ओर बुलाओ, और उनसे बहुत ही अच्छे अंदाज़ में वार्ता करो। निःसंदेह तुम्हारा पालनहार उन लोगों के बारे में अधिक जानता है जो उसके रास्ते से भटक जाते हैं या वे सही रास्ता अपना लेते हैं।

तीन साल तक गोपनीय रूप से लोगों का मार्गदर्शन करने के बाद, पैग़म्बरे इस्लाम (स) सफ़ा की पहाड़ी पर गए और पहली बार स्पष्ट रूप से लोगों को पुकार कर कहा, हे लोगो, कहो अल्लाह के अलावा और कोई ईश्वर नहीं है, ताकि तुम्हारा कल्याण हो जाए।

यह कल्याण या मोक्ष क्या है और किस तरह से प्राप्त किया जा सकता है? कल्याण का अर्थ है, भलाई और स्वास्थ्य के साथ लक्ष्य तक पहुंचना। जो व्यक्ति अपने लक्ष्य तक पहुंचना चाहता है, उसे चाहिए कि उसके लिए तैयारी करे और उस तक पहुंचने के लिए भूमि प्रशस्त करे। मोक्ष प्राप्ति के मार्ग में उतार चढ़ाव आते हैं, कभी यह अस्थायी होते हैं और इंसान के लिए चुनौतियां उत्पन्न करते हैं। मोक्ष प्राप्ति का कारण, एक ज़ीने की भांति है, जिसकी हर सीढ़ी लक्ष्य तक पहुंचाने में मदद करती है।

मोक्ष का मार्ग पैग़म्बरे इस्लाम (स) और शुरूआत में इस्लाम स्वीकार करने वालों की दावत से जुड़ा हुआ है, जो मक्के के गली कूचों में गूंजी थी और उसने इंसान के विवेक को जगाया था। क़ुराने मजीद के सूरए मोमेनून में हम पढ़ते हैं, वास्तव में मोमेनीन सफल हो गए। इस आयत के आधार पर, इंसान जब ईश्वर और उसके वादों पर ईमान ले आते हैं, तो वे मोक्ष के मार्ग पर क़दम बढ़ाते हैं, हालांकि संभव है इस मार्ग में उन्हें गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़े।

क़ुराने करीम की अन्य आयतों में आत्मा की शुद्धि को भी मोक्ष प्राप्ति का एक कारण बताया गया है। सूरए शम्स में ईश्वर कहता है, जिस किसी ने भी अपनी आत्मा को शुद्ध किया, निश्चित रूप से वह सफल हो गया, और जिसने अपनी आत्मा को गुनाहों से दूषित किया वह नुक़सान में रहा।

नैतिकता और रहस्यवाद के अनुसार, आत्मा की शुद्धि का अर्थ है, अनैतिकता और बुराईयों से आत्मा का शुद्धिकरण करना। जिसके परिणाम स्वरूप, कल्याण और मोक्ष प्राप्त होता है। क़ुरान के मुताबिक़, शुरू में इंसान की आत्मा एक सफ़ेद तख़्ती की तरह होती है, जिसे गुणों से सुसज्जित भी किया जा सकता है और बुराईयों से प्रदूषित भी। इन दोनों स्थितियों के चुनाव में इंसान आज़ाद होता है। अगर कोई व्यक्ति ख़ुद को बुराईयों से पाक रखता है, मानवीय गुणों को प्राप्त करता है और ईश्वर तक पहुंचने के लिए प्रयास करता है तो वह सफल हो जाता है। दूसरे शब्दों में ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण और सही कार्य अंजाम देना, आत्मनिर्माण है, न कि सामाजिक गतिविधियों को बंद कर देना और एक कोने में बैठकर ईश्वर तक पहुंचने की आशा रखना।

आत्मशुद्धता और आत्मनिर्माण का परिणाम, ईश्वर की बंदगी है। बंदगी यानी ईश्वर के सामने पूर्ण रूप से नतमस्तक होना, इसका अर्थ व्यापक है जो इबादत से अधिक विस्तृत है। ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए किसी भी काम को अपनी इच्छा से छोड़ना या उसे अंजाम देना बंदगी का ही भाग है। अगर इंसानों को मोक्ष प्राप्ति और कल्याण प्राप्ति के लिए नमाज़ पढ़ने और रोज़ा रखने का आदेश दिया गया है तो वह इसलिए कि इन कार्यों में बंदगी भी उन्हें अन्य इबादतों की भांति लक्ष्य की ओर मार्गदर्शित करती है। 

बंदगी, ईश्वर के ज़िक्र और उसके गुणगान के साथ होती है, यही ज़िक्र मोक्ष प्राप्ति का एक ज़रिया है। क़ुरआन के अनुसार, अल्लाह का अधिक ज़िक्र करो, शायद तुम्हें मोक्ष प्राप्त हो जाए। जो लोग ईश्वर का ज़िक्र करते हैं, वे जानते हैं कि ईश्वर के नामों से ज़बान और दिल को प्रकाशमय करने से ईश्वर के साथ संपर्क स्थापित होता है और ईश्वर की पहचान हासिल होती है। इंसान की आत्मा ईश्वर के गणगान से शुद्ध होती है और इससे पारदर्शिता प्राप्त होती है। ईश्वर अपने गुणगान को दिलों को प्रकाशमय करने का कारण मानता है।

निराशा और मायूसी, इंसान को अँधेरे में डुबो देती है, इस प्रकार से कि हज़रत अली (अ) अपने बड़े को पहली नसीहत करते हुए दिल को तरो-ताज़ा रखने पर बल देते हुए कहते हैं, मेरे प्यारे बेटे, मैं तुम्हें बुराईयों से दूर रहने, ईश्वर के आदेशों का पालन करने, दिल और आत्मा को तरो-ताज़ा रखने और ईश्वरीय रस्सी को मज़बूती से पकड़े रहनी की नसीहत करता हूं।

क़ुरआने मजीद की व्याख्या करते हुए अल्लामा तबातबायी कहते हैं, ईश्वर का ज़िक्र करने से दिलों को शांति प्राप्त होती है। इसलिए कि इंसान के जीवन का उद्देश्य मोक्ष प्राप्ति और कल्याण प्राप्ति के अलावा कुछ नहीं है और उसे किसी अचानक आने वाली आफ़त का कोई भय नहीं होता है। एकमात्र वह हस्ती कि जिसके हाथ में उसका कल्याण और अभिशाप है, वह वही ईश्वर है। समस्त मामले उसकी ही ओर पलटकर जाते हैं, वह वही है जो पालनहार है, जो चाहता है वह करता है और मोमिनों का स्वामी और उन्हें शरण देने वाला है। इसलिए उसका ज़िक्र और गुणगान ऐसे व्यक्ति के लिए जो मुसीबतों में घिरा हुआ है और किसी मज़बूत सहारे की तलाश में है कि जो उसका कल्याण कर सके, वह उसकी ख़ुशी और शांति का कारण है।

रमज़ान का महीना दुआओं के क़बूल होने का महीना और शरीर एवं आत्मा के शुद्धिकरण का महीना है। क़ुराने मजीद के अनुसार, ईश्वरीय अनुकंपाओं के ज़िक्र का एक फल, कल्याण एवं मोक्ष प्राप्ति है। सूरए आराफ़ की आयत 69 में उल्लेख है, ईश्वर की अनुकंपाओं को याद करो, क्योंकि तुम्हें कल्याण प्राप्त होगा।

ध्यान योग्य है कि ईश्वर इंसान को साइप्रेस पेड़ की भांति सिर बुलन्द होने की दावत देता है, इसलिए कि साइप्रेस एकमात्र ऐसा पेड़ है कि जो सीधा आसमान की ओर बढ़ता है, जबकि अन्य पेड़ों की डालियां चारो ओर फैलती हैं।

रमज़ान के महीने में ईश्वर का ज़िक्र और गुणगान हो रहा है, यह आत्मनिर्माण और बंदगी का महीना है, इस महीने में रोज़ेदार ईश्वर की मेज़बानी और प्रेम का लुत्फ़ उठाते हैं। इस महीने में उन लोगों को इस मूल्यवान दावत का फल मिलता है। इसका मूल्यवान फल, स्वयं से संपर्क, ईश्वर से संपर्क और उसके बंदों से संपर्क करना है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) के मुताबिक़, यह महानता, गौरव और सम्मान का महीना है और इसे अन्य महीनों पर प्राथमिकता दी गई है। बेहतर होगा प्रेम और शुद्ध नीयत के साथ इससे लाभान्वित हों और उसके सुन्दर दिनों और आध्यात्मिक सुबहों को ईश्वर से बातचीत एवं प्रेमपूर्वक दुआओं के लिए लाभ उठाएं और कल्याण प्राप्त करें।                           

 

 

इज़रायल द्वारा संयुक्त राष्ट्र के फिलिस्तीन स्थित परिसरों पर हमले और पांच अंतरराष्ट्रीय कर्मियों की मौत के बाद गाजा पट्टी में तैनात संयुक्त राष्ट्र के लगभग 30 अंतरराष्ट्रीय कर्मचारी सुरक्षा चिंताओं के कारण इस क्षेत्र को छोड़ दिए।

संयुक्त राष्ट्र ने स्थानीय समयानुसार सोमवार को घोषणा की कि वह इजरायल के नए हमलों के बाद गाजा में अपने कर्मचारियों की संख्या कम करने की योजना बना रहा है।

संयुक्त राष्ट्र के गाजा में 13,000 से अधिक कर्मचारी हैं, जिनमें से अधिकांश फिलिस्तीनी हैं और चिकित्सा, नर्सिंग, ड्राइविंग जैसे महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत हैं। पिछले 15 महीनों में इनमें से 250 से अधिक कर्मचारी मारे गए हैं।

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा कि स्थिति इतनी खतरनाक हो गई है कि गाजा में तैनात 100 अंतरराष्ट्रीय कर्मचारियों में से एक तिहाई को हटाया जाएगा। इसके तहत लगभग 30 कर्मचारी अपनी सुरक्षा के लिए गाजा छोड़ दिए।

 

संयुक्त राष्ट्र के प्रवक्ता स्टीफन डुजारिक ने कहा कि पिछले हफ्ते इजरायल ने गाजा में भीषण हमले किए जिनमें सैकड़ों नागरिकों और संयुक्त राष्ट्र कर्मियों की जानें गईं।उन्होंने कहा कि मार्च के शुरू से ही इजरायल ने गाजा में मानवीय सहायता रोक दी है। डुजारिक ने जोर देकर कहा,संयुक्त राष्ट्र गाजा नहीं छोड़ेगा, लेकिन सुरक्षा जोखिमों के कारण उसे अपनी उपस्थिति कम करनी पड़ रही है।

19 मार्च को इजरायली टैंक द्वारा दीर अलबलाह में संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय पर हमला किया गया, जिसमें एक बुल्गारियाई कर्मचारी की मौत हो गई और छह अन्य घायल हो गए।डुजारिक ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के स्थान युद्धरत पक्षों को पूरी तरह पता हैं फिर भी उन पर हमले किए जा रहे हैं।संयुक्त राष्ट्र ने इन हमलों की कड़ी निंदा की है और एक स्वतंत्र जांच की मांग की है।

गाजा में हिंसा और मानवीय संकट बढ़ता जा रहा है, जिसके चलते संयुक्त राष्ट्र को अपने कर्मचारियों की संख्या कम करनी पड़ रही है। हालांकि, संगठन ने स्पष्ट किया है कि वह फिलिस्तीनी नागरिकों की सहायता जारी रखेगा।