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खैबर पख्तूनख्वा में मुठभेड़ के दौरान 10 आतंकवादियों को पाकिस्तानी सेना ने मार गिराया
पाकिस्तान में खैबर पख्तूनख्वा के डेरा इस्माइल खान जिले में मुठभेड़ के दौरान एक प्रतिबंधित संगठन से जुड़े कम से कम 10 आतंकवादियों और पाकिस्तानी सेना के एक कैप्टन की मौत हो गई।
पाकिस्तान में खैबर पख्तूनख्वा के डेरा इस्माइल खान जिले में मुठभेड़ के दौरान एक प्रतिबंधित संगठन से जुड़े कम से कम 10 आतंकवादियों और पाकिस्तानी सेना के एक कैप्टन की मौत हो गई।पाकिस्तान सशस्त्र बलों की मीडिया और जनसंपर्क शाखा ‘इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस ने यह जानकारी दी।
सेना की मीडिया शाखा की ओर से जारी एक बयान में बताया गया कि इलाके में आतंकवादियों की मौजूदगी की जानकारी मिलने के बाद खुफिया जानकारी के आधार पर अभियान चलाया गया।
आईएसपीआर ने बताया कि मारे गए आतंकवादियों के पास से हथियार और गोला-बारूद जब्त किया गया है उसने बताया कि ये आतंकवादी विभिन्न कानून प्रवर्तन एजेंसी के खिलाफ कई हमले करने के साथ-साथ निर्दोष आम नागरिकों की हत्या में भी शामिल थे।उसने कहा इलाके में तलाश अभियान जारी है और सुरक्षा बल देश से आतंकवाद के खतरे को खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
अफगानिस्तान में 2021 में तालिबान के सत्ता में लौटने के बाद से पाकिस्तान में आतंकवादी हमलों में वृद्धि हुई है विशेष रूप से खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान के सीमावर्ती प्रांतों में कानून प्रवर्तकों और सुरक्षा बलों को निशाना बनाकर हमले किए जा रहे हैं।
क़ुम अल मुक़द्देसा में जाएरीन और मुजाविरो ने हज़रत मासूमा (स) मे नए साल की शुरुआत की
रमजान के महीने जैसे आध्यात्मिक माहौल में गुरुवार को सौर वर्ष 1404 हिजरी की शुरुआत हुई। वर्ष की शुरुआत के मुबारक समारोह में भाग लेने के लिए बड़ी संख्या में ज़ाएरीन और मुजावेरीन हजरत मासूमा (स) की दरगाह पर एकत्र हुए।
रमजान के महीने जैसे आध्यात्मिक माहौल में गुरुवार को सौर वर्ष 1404 हिजरी की शुरुआत हुई। वर्ष की शुरुआत के मुबारक समारोह में भाग लेने के लिए बड़ी संख्या में ज़ाएरीन और मुजावेरीन हजरत मासूमा (स) की दरगाह पर एकत्र हुए।
नवरोज के अवसर पर आए श्रद्धालुओं ने इस पवित्र और प्रकाशमय स्थान पर नववर्ष की शुरुआत की, जहां उनका उत्साह देखते ही बनता था। इस वर्ष, चूंकि नए साल की शुरुआत हज़रत अली (अ) की शहादत के दिन से हुई, इसलिए समारोह ने एक विशेष अलवी रंग ले लिया और ज़ाएरीन "या अली" की आवाज़ बुलंद करते रहे।
इस वर्षांत समारोह के दौरान विभिन्न सांस्कृतिक एवं धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किये गये। धार्मिक विद्वानों और वक्ताओं ने अमीरुल मोमिनीन हजरत अली (अ) के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला। पवित्र कुरान की तिलावत, प्रार्थना, दुआ और मध्यस्थता की दुआओं ने दरगाह को आध्यात्मिक माहौल से भर दिया।
ज़ुहर और अस्र की नमाज़ों का नेतृत्व आयतुल्लाह सय्यद मोहम्मद सईदी ने किया, जिसके बाद तीर्थयात्रियों ने "या मोक़ल्लेबल क़ोलूब वल अबसार " (हे दिलों और आँखों को चलाने वाले) जैसी दुआओं के साथ नए साल का स्वागत किया और इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता के नवरोज़ भाषण को ध्यान से सुना।
इसी प्रकार, क़ुम, कहक और जाफ़रिया में विभिन्न धार्मिक स्थलों, विशेष रूप से मस्जिदे मुकद्दस जमकरान और 40 से अधिक अन्य पवित्र स्थलों पर बड़ी संख्या में तीर्थयात्री मौजूद थे, जहां लोगों ने इमाम अल-असर (अ) के ज़ुहूर होने, दुश्मनों के विनाश, बीमारों की चिकित्सा और कठिनाइयों के समाधान के लिए दुआ की।
इस्लामिक वर्ल्ड लीग ने ग़ज़्ज़ा में इज़राईली आक्रमण की निंदा की
इस्लामिक वर्ल्ड लीग ने एक बयान जारी कर ग़ज़्ज़ा में ज़ायोनी शासन द्वारा आक्रामकता फिर से शुरू करने की निंदा की और इन अपराधों को रोकने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से तत्काल कार्रवाई की मांग की।
इस्लामिक वर्ल्ड लीग के सूचना आधार के अनुसार बताया कि, इस्लामिक वर्ल्ड लीग ने ज़ायोनी शासन द्वारा ग़ज़्ज़ा पट्टी पर बमबारी की फिर से शुरुआत की निंदा की जिसके कारण निर्दोष नागरिकों को भारी नुकसान हुआ।
इस्लामिक वर्ल्ड यूनियन के महासचिव शेख मुहम्मद बिन अब्दुल करीम ईसा के बयानों में उन्होंने ज़ायोनी शासन की क्रूरता की निंदा की, जो सभी अंतरराष्ट्रीय कानूनों का स्पष्ट उल्लंघन है।
उन्होंने इस नरसंहार को रोकने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता पर जोर दिया कि इजरायली शासन की युद्ध मशीन नागरिकों और नागरिक सुविधाओं के खिलाफ जारी है।
इज़रायली हमलों में 700 से अधिक फ़िलिस्तीनी शहीद
फिलिस्तीनी स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि पिछले मंगलवार से गाजा पट्टी पर इजरायली हवाई हमलों में 700 से अधिक फिलिस्तीनी मारे गए हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रवक्ता खलील अल-दकरान ने अनादोलु एजेंसी को बताया कि "पिछले मंगलवार से 710 शवों को अस्पतालों में स्थानांतरित किया गया है, जबकि 900 से अधिक घायल हैं।"
फिलिस्तीनी स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि पिछले मंगलवार से गाजा पट्टी पर इजरायली हवाई हमलों में 700 से ज़्यादा फिलिस्तीनी मारे गए हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रवक्ता खलील अल-दकरान ने अनादोलु एजेंसी को बताया कि "पिछले मंगलवार से 710 शवों को अस्पतालों में पहुंचाया गया है, जबकि 900 से ज़्यादा लोग घायल हैं।" उन्होंने कहा कि इजरायली हमले में घायल हुए लोगों में 70 प्रतिशत बच्चे और महिलाएँ थीं। उन्होंने कहा कि "गाजा पर इजरायली घेराबंदी के कारण आवश्यक आपूर्ति और दवाओं की भारी कमी हो गई है, जिसके परिणामस्वरूप तत्काल चिकित्सा देखभाल के अभाव में कई घायल लोगों की मौत हो गई है।"
यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि इज़रायली सेना ने पिछले मंगलवार को गाजा पट्टी पर आश्चर्यजनक हवाई हमले किए, जिससे जनवरी में स्थापित युद्धविराम और कैदी विनिमय समझौते का उल्लंघन हुआ। UNRWA के आयुक्त-जनरल फिलिप लाज़ारिनी ने एक बयान में कहा, "पिछले कुछ दिनों में पाँच और UNRWA कर्मचारियों की मौत की पुष्टि हुई है, जिससे कुल मौतों की संख्या 284 हो गई है।" वे शिक्षक, नर्स और डॉक्टर थे, जो सबसे कमज़ोर तबके की सेवा कर रहे थे। उन्होंने कहा, "हमें डर है कि सबसे बुरा समय अभी आना बाकी है, क्योंकि ज़मीनी आक्रमण उत्तर को दक्षिण से अलग कर रहा है।"
गुरुवार को इजरायली सेना ने फिलिस्तीनियों के सलाह अल-दीन स्ट्रीट से यात्रा करने पर प्रतिबंध लगा दिया, जिसे तेल अवीव ने उत्तरी गाजा और दक्षिणी गाजा के बीच सुरक्षित मार्ग के रूप में बनाया था। सेना ने कहा कि यह कदम तब उठाया गया जब इजरायली सेना मध्य गाजा में नाजरिम कॉरिडोर में आगे बढ़ी, जो उत्तरी गाजा को दक्षिणी गाजा से अलग करता है। UNRWA प्रमुख ने कहा कि गाजा में फिलिस्तीनियों के लिए इजरायल के निकासी आदेशों से हजारों लोग प्रभावित हो रहे हैं। उन्होंने कहा, "अधिकांश लोग पहले से ही विस्थापित हैं, युद्ध शुरू होने के बाद से लगभग डेढ़ साल तक उनके साथ "पिनबॉल" जैसा व्यवहार किया गया है।" गाजा के लोग अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहे हैं, तथा उन पर अमानवीय यातनाओं का अंतहीन सिलसिला जारी है। ‘‘
लाजारिनी ने कहा, "अब समय नहीं बचा है, हमें अभी युद्ध विराम को नवीनीकृत करने, गाजा में सभी बंधकों की सम्मानजनक रिहाई तथा मानवीय सहायता और वाणिज्यिक वस्तुओं की निर्बाध आपूर्ति की आवश्यकता है।"
शबे क़द्र की तीन रातें क्यों हैं?
तेईसवीं रात को, अल्लाह जो चाहता है वह सब कुछ कर दिया जाता है। यह शबे क़द्र है, जिसके बारे में अल्लाह तआला ने फरमाया: (यह रात हज़ार महीनों से बेहतर है)।
हौज़ा न्यूज एजेंसी। सैयद इब्न ताऊस ने अपनी किताब (इकबाल अल-अमाल) में इमाम सादिक (अहैलिस्सलाम) से मुत्तसिल सनद के साथ एक रिवायत बयान की है कि: लोग अबू अब्दुल्ला इमाम जाफर सादिक (अहैलिस्सलाम) से पूछ रहे थे: क्या रमज़ान की 15 वीं रात को रिज़्क़ (जीविका) तकसीम होता है?
तो मैंने इमाम सादिक अलैहिस्सलाम को इन लोगों के जवाब में यह कहते हुए सुना: नहीं, खुदा की कसम, यह रमज़ान की उन्नीसवीं, इक्कीसवीं और तेईसवीं रातों को होता है, क्योंकि:
19 वीं "يلتقي الجَمْعان यलतक़ी अल-जमआन" की रात।
और इक्कीसवीं की रात को अल्लाह हर हिकमत वाले मामले को अलग कर देता है।
और तेईसवीं रात को वह सब कुछ हो जाता है जो अल्लाह चाहता था। यह शबे क़द्र है, जिसके बारे में अल्लाह तआला ने फरमाया: (यह रात हज़ार महीनों से बेहतर है)।
मैंने कहा: आपके कथन का क्या अर्थ है: ("यलतक़ी अल-जमआन")?
उन्होंने कहा: अल्लाह तकदीम और ताखीर के बारे मे जो चाहता हैं या जो कुछ भी उसका इरादा और फैसला हैं, उन्हें इकट्ठा करता है।
मैंने कहा: इसका क्या मतलब है कि अल्लाह इक्कीसवीं रात को हर हिकमत के मामले को अलग करता है?
इमाम (अ.स.) ने कहा: इक्कीसवीं रात में इसमें बदा होती है, और जबकि काम तेईसवीं रात को पूरा हो जाता है, यह उन अंतिम मामलों में से एक है जिसमें अल्लाह तबरक वा ताला की ओर से कोई बदा नहीं होती।
मालिके अशतर के नाम हज़रत अली का ख़त
जब पैगम़्बरे इस्लाम के उत्तराधिकारी और दुनिया के शियों के पहले इमाम हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने मालिके अशतर को मिस्र का शासन सौंपा तो उन्हें एक पत्र लिखा जो शासन शैली का अहदनामा है। इस ख़त में इस्लामी हुकूमत, इस्लामी शासक, नागरिकों के अधिकारों और सत्ता व नागरिकों के संबंध के बारे में बुनियादी उसूल और बिंदु बयान किए गए हैं।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम की ज़िंदगी पर एक संक्षेप नज़र
हज़रत अली (सन 23 हिजरत पूर्व- सन 40 हिजरी) शियों के पहले इमाम, पैग़म्बर के सहाबी, पैग़म्बर की हदीसों के रावी, इसी तरह पैग़म्बर के चचेरे भाई और उनके दामाद थे। वो क़ुरआन और वहि के कातिब भी थे। हज़रत अली अहले सुन्नत अक़ीदे के अनुसार चार ख़लीफ़ाओं में चौथे ख़लीफ़ा हैं। शिया इतिहासकारों और बहुत से सुन्नी धर्मगुरुओं के अनुसार हज़रत अली अलैहिस्सलाम का जन्म काबे के भीतर हुआ। पैग़म्बरे इस्लाम पर ईमान लाने वाले वह पहले शख़्स थे।
शियों के दृष्टिकोण से अल्लाह के फ़रमान के मुताबिक़ और पैग़म्बरे इस्लाम के बिल्कुल स्पष्ट एलान के अनुसार वो पैग़म्बर के बाद पहले ख़लीफ़ा हैं। क़ुरआन की कुछ आयतें उन्हें हर प्रकार के गुनाह और बुराइयों से पाक व पाकीज़ा और मासूम साबित करती हैं।
शिया किताबों और कुछ सुन्नी किताबों के अनुसार लगभग 300 आयतें क़ुरआन में ऐसी हैं जो हज़रत अली अलैहिस्सलाम की प्रशंसा में नाज़िल हुईं। वो हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के पति और शियों के बाक़ी 11 इमामों के पिता और दादा हैं।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम 19 रमज़ान 40 हिजरी को मस्जिदे कूफ़ा में ख़वारिज कही जाने वाली चरमपंथी विचारधारा से तअल्लुक़ रखने ववाले एक व्यक्ति के हमले में घायल हुए और 21 रमज़ान को शहीद हो गए।
नहजुल बलाग़ा
नहजुल बलाग़ा हज़रत अली अलैहिस्सलाम के ख़ुतबों, पत्रों और हिकमत से भरी बातों का संग्रह है जिसे चौथी हिजरी क़मरी के आख़िर में महान धर्मगुरू सैयद रज़ी ने एकत्रित किया। यह किताब साहित्यिक महानताओं और अर्थों की गहराई के कारण क़ुरआन का भाई कही जाती है।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम के बहुत मशहूर पत्रों में से एक वह पत्र है जो हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने मिस्र में अपने पसंदीदा गवर्नर मालिके अशतर नख़ई को लिखा।
यह एक तरह का अहदनामा है जिसका हर शब्द इल्म और मारेफ़त का ख़ज़ाना है, ख़ास तौर पर न्यायप्रेमी राजनेताओं और उन लोगों के लिए जो किसी भी क्षेत्र में कोई ज़िम्मेदारी संभाल रहे हैं।
हम इस पत्र के कुछ हिस्सों को यहां तीन भागों में पेश कर रहे हैं,
पहला हिस्साः
शासकों को हज़रत अली अलैहिस्सलाम की कुछ नसीहतें:
- इस्लामी शासक आम लोगों से हमदर्दी, प्रेम और कृपा के साथ पेश आए ख़ूंख़ार दरिंदों की तरह न हो कि लोगों खा जाना चाहिए।
- जहां मुमकिन हो लोगों की ग़लतियों को माफ़ और नज़रअंदाज़ करे क्योंकि आम लोगों से ग़लती की संभावना रहती है, शासक को चाहिए कि उन्हें माफ़ कर दे।
- शासक को चाहिए कि लोगों के अंदर से द्वेष और कुठा को दूर करे, लोगों के बारे में अच्छी सोच रखे क्योंकि अच्छी सोच लंबी कठिनाइयों को दूर कर देती है।
- इस्लामी शासक ख़ुद को लोगों की कमियों की तलाश में न रहे और इस इस आदत के लोगों को अपने से दूर रखे क्योंकि लोगों में कमियां होती हैं, शासन की ज़िम्मेदारी होती है कि उन्हें ढांके।
- शासक चुग़लख़ोर इंसान की बात की पुष्टि न करे चाहे वह भलाई ही क्यों न करना चाहता हो।
- इस्लामी शासक अल्लाह से किए गए वादे में तभी कामयाब हो सकता है जब वह अल्लाह से मदद मांगे और ख़ुद को हक़ का सम्मान करने के लए तैयार करे।
- शासक किसी को माफ़ करने के बाद पछताए नहीं और किसी को सज़ा देने के बाद ख़ुश न हो।
- शासक अपने दिन रात का बेहतरीन भाग अल्लाह से बातें करने के लिए रखे और ख़ुलूस की बुलंदी पर पहुंचने के लिए वाजिब कामों और सारी इलाही ज़िम्मेदारियों को बिना किसी कोर कसर के पूरा करे।
- शासक अपन वादों पर क़ायम रहे और उनसे पीछे न हटे।
- शासक अपनी बदगुमानी, कठोरता, रोब और ज़बान व हाथ के हमले को नियंत्रण में रखे और जान बूझकर किसी की हत्या से परहेज़ करे।
दूसरा भागः
दूसरा भाग हज़रत अली अलैहिस्सलाम की सामाजिक नसीहतों के बारे में है जो उन्होंने शासकों को की हैं:
- इस्लामी शासक के निकट सबसे पसंदीदा काम वह हो जो हक़ बात को सबसे स्पष्ट रूप में पहंचाए, न्याय के मामले में सबसे ज़्यादा व्यापक हो और समाज के सबसे ज़्यादा लोगों को संतुष्ट करने वाला हो।
- इस्लामी शासक के निकट सबसे ज़्यादा तरजीह उस व्यक्ति को हासिल हो जो हक़ को सबसे ज़्यादा कड़वे हालात में दूसरों से ज़्यादा स्पष्ट शब्दों में बयान करे।
- समाज के लोगों की बुराइयों और गुनाहों में जो पर्दे में छिपे हैं और इस्लामी हाकिम के इल्म में नहीं हैं उसके बारे में ख़ुद को बेतवज्जो ज़ाहिर करे।
- शासकों का फ़र्ज़ है कि जिस दिन उन्हें लोगों की ज़रूरतों के बारे में पता चले उसी दिन उन्हें पूरा करे। हर दिन का काम उसी दिन अंजाम दे क्योंकि हर दिन का अपना एक मौक़ा होता है।
- शासक ख़ुद को आम लोगों से दूर न रखे क्योंकि समाज के लोगों से शासक के दूर रहने का नतीजा यह है कि वह मामलों और मसलों से बेख़बर हो जाता है।
- शासक का फ़र्ज़ है कि अपने रिश्तेदारों को दूसरों पर तरजीह देने से कड़ाई से परहेज़ करे।
- शासक समाज के लोगों के साथ जो अच्छाइयां कर रहा है उसका एहसान न जताए और जो काम समाज की भलाई वाला हो उसे मद्देनज़र रखे।
तीसरा हिस्सा
शासकों को हज़रत अली अलैहिस्सलाम की कुछ राजनैतिक नसीहतें:
- शासक कंजूस, बुज़दिल, और लालची लोगों से मशिवरा करने से परहेज़ करे क्योंकि, कंजूसी, डर और लालच वह रजहान हैं जो आपस में मिल जाने के बाद अल्लाह के बारे में बदगुमानी को जन्म देते हैं।
- नेक और बुरे लोग शासक के निकट एक समान न हों क्योंकि इसका नतीजा यह होगा कि नेक इंसान को नेक कामों के लिए अपमान झेलना पड़ेगा और बुरे कर्म वाले को बुराई करने का और हौसला मिलेगा।
- कोई भी शासक उन परम्पराओं को न तोड़े जिन पर समाज के ज्ञानी लोगों ने अमल किया है और जिनसे समाज के लोगों के बीच एक तार्किक समन्वय पैदा हुआ है। ऐसा कोई कायदा लागू न करे जो लोगों की अच्छी पराम्पराओं को ख़त्म कर दे।
- अगर लोगों की तरफ़ से अन्याय का आरोप लगाया जा रहा है तो शासक अपने ऊपर से इस तरह के आरोप हटाए। अगर समाज के लोग शासक के बारे में सोचें कि वह ज़ुल्म कर रहा है तो अपनी उसे अमल और रवैए के बारे में सफ़ाई पेश करे जिसकी वजह से लोगों में बदगुमानी पैदा हुई है और लोगों की बदगुमानी दूर करे।
- शासक किसी भी मामले में उसका सही समय आने से पहले जल्दबाज़ी न दिखाए।
- शासक के लिए अगर कोई चीज़ स्पष्ट नहीं है और उसमें भ्रांति है तो भ्रांति दूर होने से पहले तक उसे हरगिज़ स्वीकार न करे।
- उन मामलों में जिनमें लोग एक समान होते हैं ख़ुद को दूसरों से बेहतर न समझे। यानी शासक जीवन के अधिकारी, मर्यादा के अधिकार और आज़ादी आदि के अधिकार में ख़ुद को दूसरो से श्रेष्ट न समझे।
- शासक उन मामलों में जिसकी ज़िम्मेदारी उस पर है और लोगों की निगाहें उस पर लगी हुई हैं हरगिज़ कोई ग़फ़लत न बरते और यह ज़ाहिर न करे कि वह समझ नहीं पा रहा है।
क्यों मारी गयी हज़रत अली पर तलवार
उन्नीस रमज़ान वह शोकमयी तिथि है जब हज़रत अली अलैहिस्सलाम के सिर पर विष भरी तलवार मारी गयी। हज़रत अली (अ) पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही वसल्लम के परिजनों में अत्यन्त वरिष्ठ व्यक्ति और इस्लामी शासक थे। वही अली जिनकी महानता की चर्चा इस्लामी जगत में ही नहीं बल्कि अन्य धर्मों के विद्वानों और इतिहासकारों द्वारा भी की जाती है। वही अली जिनकी सत्यता, अध्यात्म, साहस, वीरता, धैर्य, समाज सेवा एवं न्यायप्रियता आदि की गवाही, मित्र ही नहीं शत्रु भी देते थे। एक स्थान पर हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने कहा था कि ईश्वर की सौगन्ध नग्न शरीर के साथ मुझे कांटों पर लिटाया जाए या फिर ज़ंजीरों से बांध कर धरती पर घसीटा जाए तो मुझे यह उससे अधिक प्रिय होगा कि अल्लाह और पैग़म्बर से प्रलय के दिन ऐसी दशा में मिलूं कि मैंने किसी पर अत्याचार कर रखा हो।
अब प्रश्न यह उठता है कि ऐसे व्यक्ति से जो अत्याचार के ऐसे विरोधी और न्याय के इतने प्रेमी थे कि एक ईसाई विद्वान के कथनानुसार अली अपनी न्याय प्रियता की भेंट चढ़ गये। अब प्रश्न यह उठता है कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम से इतनी शत्रुता क्यों की गयी? इस प्रश्न के उत्तर के लिए हमें हज़रत अली (अ) के समय के इतिहास और सामाजिक स्थितियों को देखना होगा। पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास के पश्चाम के पच्चीस वर्षों में इस्लामी समाज कई वर्गों में बंट चुका था। एक गुट वह था जो बिना सोचे समझे सांसारिक दुःख सुख, कर्तव्य सब कुछ छोड़कर केवल नमाज़ और उपासना को ही वास्तविक इस्लाम समझता था और इस्लाम की वास्तविकता को समझे बिना कट्टरवाद को अपनाए हुए था। आज के समय में उस गुट को यदि देखना चाहें तो पाकिस्तान व अफ़ग़ानिस्तान के तालेबान गुट में "ख़वारिज" नामी उस रूढ़िवादी गुट की झलक मिलती है। दूसरा गुट वह था जो सोच समझकर असीम छल-कपट के साथ इस्लाम के नाम पर जनता को लूट रहा था, उन पर अत्याचार कर रहा था और स्वयं ऐश्वर्य से परिपूर्ण जीवन व्यतीत कर रहा था। यह दोनों की गुट हज़रत अली के शासन काल में उनके विरोधी बन गये थे। क्योंकि हज़रत अली को ज्ञान था कि मूर्खतापूर्ण अंधे अनुसरण को इस्लाम कहना, इस्लाम जैसे स्वभाविक धर्म पर अत्याचार है और दूसरी ओर चालबाज़ी करके जनता के अधिकारतं का दमन करने तथा बैतुलमाल अर्थात सार्वजनिक कोष को अपने हितों के लिए लुटाने वाला गुट भी इस्लामी शिक्षाओं के विपरीत कार्य कर रहा है। इस प्रकार वे ख़वारिज तथा मुआविया जो स्वयं को ख़लीफ़ अर्थात इस्लामी शासक कहलवाता था, दोनों की शत्रुता के निशाने पर आ गये थे। ख़वारिज का गुट उनके जैसे विद्वान और आध्यात्मिक को इस्लाम विरोधी कहने लगा था और मुआविया हज़रत अली के व्यक्तित्व से पूर्णता परिचित होते हुए भी उनके न्याय प्रेम के आधार पर उन्हें अपने हितों के लिए बहुत बड़ा ख़तरा समझता था।इस प्रकार ये दोनों ही गुट उन्हें अपने रास्ते से हटाना चाहते थे कई इतिहासकारों का कहना है कि खवारिज के एक व्यक्ति अब्दुर्रहमान इब्ने मुलजिम ने मुआविया के उकसावे में आकर हज़रत अली पर विष में डूबी हुई तलवार से वार किया था। 19 रमज़ान की रात हज़रत अली (अ) मस्जिद से अपने घर आये। आपकी पुत्री हज़रत ज़ैनब ने रोटी, नमक और एक प्याले में दूध लाकर पिता के सामने रखा ताकि दिन भर के रोज़े के पश्चात कुछ खा सकें। हज़रत अली ने जो ये भोजन देखा तो बेटी से पूछा कि मैं रोटी के साथ एक समय में दो चीज़ें कब खाता हूं। इनमें से एक उठा लो। उन्होंने नमक सामने से उठाना चाहा तो आपने उन्हें रोक दिया और दूध का प्याला ले जाने का आदेश दिया और स्वयं नमक और रोटी से रोज़ा इफ़्तार किया। हज़रत अली द्वारा इस प्रकार का भोजन प्रयोग किए जाने का यह कारण नहीं था कि वे अच्छा भोजन नहीं कर सकते थे बल्कि उस समय समाकज की परिस्थिति ऐसी थी कि अधिकतर लोग कठिनाईपूर्ण जीवन व्यतीत कर रहे थे और शासन की बागडोर हाथ में होने के बावजूद हज़रत अली का परिवार अपना सब कुछ ग़रीबों में बांटकर स्वयं अत्यन्त कठिन जीवन व्यतीत कर रहा था। हज़रत अली का विश्वास था कि शासक को चाहिए कि जनता के निम्नतम स्तर के लोगों जैसा जीवन व्यतीत करे ताकि जनता में तुच्छता और निराशा की भावना उत्पन्न न हो सके।इस प्रकार हज़रत अली नमक रोटी से अपनी भूख मिटाकर ईश्वर की उपासना में लग गये। आपकी पुत्री का कथन है कि उस रात्रि मेरे पिता बार-बार उठते, आंगन में जाते और आकाश की ओर देखने लगते। इसी प्रकार एक बेचैनी और व्याकुलता की सी स्थिति में रात्रि बीतने लगी। भोर समय हज़रत अली उठे, वज़ू किया और मस्जिद की ओर जाने के लिए द्वार खोलना चाहते थे कि घर में पली हुई मुरग़ाबियां इस प्रकार रास्ते में आकर खड़ी हो गयीं जैसे आपको बाहर जाने से रोकना चाहती हों। आपने स्नेह के साथ पछियों को रास्ते से हटाया और स्वयं मस्जिद की ओर चले गये। वहां आपने मुंह के बल लेटे हुए इब्ने मुल्जिम कत भी नमाज़ के लिए जगाया। फिर आप स्वयं उपासना में लीन हो गये। इब्ने मुल्जिम मस्जिद के एक स्तंभ के पीछे विष में डूबी तलवार लेकर छिप गया। हज़रत अली ने जब सजदे से सिर उठाया तो उसने तलवार से सिर पर वार कर दिया। तलवार की धार मस्तिष्क तक उतर गयी, मस्जिद की ज़मीन ख़ून से लाल हो गयी और नमाज़ियों ने ईश्वर की राह में अपनी बलि देने के इच्छुक हज़रत अली को कहते सुनाः काबे के रब की सौगन्ध मैं सफल हो गया। और फिर संसार ने देखा कि अली अपने बिछौने पर लेटे हुए हैं। मुख पर पीलाहट है, परिजनों और आपके प्रति निष्ठा रखने वालों के चेहरे दुःख और आंसूओं में डूबे हुए हैं कि इब्ने मुल्जिम को रस्सियों में बांध कर लाया जाता है। आपके चेहरे पर दुःख के लक्षण दिखाई देते हैं आप अपने पुत्र से कहते हैं कि इसके हाथ खुलवा दो और ये प्यासा होगा इसकी प्यास बुझा दो। फिर आपने अपने लिए लाया दूध का प्याला उसको दिला दिया। कुछ क्षणों के पश्चात उससे पूछा क्या मैं तेरा बुरा इमाम था? आपके इस प्रश्न को सुनकर हत्यारे की आंखों से पश्चाताप के आंसू बहने लगे। फिर आपने अपने सुपुत्र इमाम हसन से कहा कि यदि मैं जीवित रह गया तो इसके विषय में स्वयं निर्णय लूंगा और यदि मर गया तो क़ेसास अर्थात बदले में इस पर तलवार का केवल एक ही वार करना क्योंकि इसने मुझपर एक ही वार किया था।हम इस दुखदायी अवसर पर अपने न्यायप्रेमी सभी साथियों की सेवा में हार्दिक संवेदना प्रकट करते हैं और ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि सत्य और न्याय के मार्ग पर निडर होकर चलने में हमारी सहायता कर।
रमज़ान, बंदगी की बहार-1
रमज़ान अरबी कैलेंडर के उस महीने का नाम हैं जिस महीने में पूरी दुनिया में मुसलमान, रोज़ा रखते हैं।
अर्थात सुबह से पहले एक निर्धारित समय से, शाम को सूरज डूबने के बाद एक निर्धारित समय तक खाने पीने से दूर रहना होता है। कुरआने मजीद में इस संदर्भ में कहा गया है कि रमज़ान का महीना वह महीना है जिसमें क़ुरआन उतारा गया है जो लोगों के लिए मार्गदर्शन, सही मार्ग का चिन्ह और सत्य व असत्य के मध्य अंतर करने वाला है तो जो भी रमज़ान के महीने तक पहुंचे वह रोज़ा रखे और जो बीमार हो या यात्रा पर हो तो फिर वह कभी और रोज़े रखे, अल्लाह तुम्हारे लिए आराम चाहता है, तकलीफ नहीं चाहता, रमज़ान के महीने को रोज़ा रख कर पूरा करो और अल्लाह को इस लिए बड़ा समझो कि उस ने तुम्हारा मार्गदर्शन किया है और शायद इस प्रकार से तुम उसका शुक्र अदा कर सको। हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने शाबान महीने के अंतिम दिनों में रमज़ान महीने के बारे में एक भाषण दिया जिसमें उन्होंने कहा कि हे लोगो! अपनी विभूतियों व , कृपा के साथ रमज़ान का महीना आ गया यह महीना ईश्वर के निकट सब से अच्छा महीना है।ऐसा महीना है, जिसमें तुम्हें ईश्वर का अतिथि बनाने के लिए आमंत्रित किया गया है और तुम्हें ईश्वरीय बंदों में गिना गया है। इस महीने में तुम्हरी सांसें, ईश्वर का नाम जपती हैं, तुम्हारी नींद इबादत होती है, तुम्हारे ज्ञान और दुआओं को स्वीकार किया जाता है। अपने पालनहार से चाहो कि वह तुम्हें रोज़ा रखने और क़ुरान की तिलावत का अवसर प्रदान करे। रमज़ान की भूख प्यास से प्रलय के दिन की भूख प्यास को याद करो और गरीबों तथा निर्धनों की मदद करो , बड़ों का सम्मान करो, छोटों पर दया करो, रिश्तेदारों से मेल जोल रखो, ज़बान पर क़ाबू रखो और जिन चीज़ों को देखने से ईश्वर ने रोका है उन्हें न देखो जिन बातों को सुनने से उसने रोका है उन्हें न सुनो, अनाथों के साथ स्नेह से पेश आओ, ईश्वर से अपने पापों की क्षमा मांगो और नमाज़ के समय दुआ के लिए हाथ उठाओ कि यह दुआ का सब से अच्छा समय है। जान लो कि ईश्वर ने अपने सम्मान की सौगंध खायी है कि नमाज़ पढ़ने वालों और सजदा करने वालों को अपने प्रकोप का पात्र न बनाए और उन्हें प्रलय के दिन, नर्क की आग से न डराए। ... हे लोगो! इस महीने में स्वर्ग के द्वार खोल दिये जाते हैं ईश्वर से दुआ करो कि वह तुम्हारे लिए बंद न हों और नर्क के दरवाज़े बंद कर दिये जाते हैं ईश्वर से दुआ करो कि वह तुम्हारे लिए खोले न जाएं। इस महीने में शैतानों को बंदी बना लिया जाता है तो अपने ईश्वर से दुआ करो कि उन्हें अब कभी तुम पर अपने प्रभाव डालने का अवसर न दिया जाए। हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि इस अवसर पर मैंने खड़े होकर उनसे पूछा कि हे पैगम्बरे इस्लाम! इस महीने में सब से अच्छा कर्म क्या है? तो उन्होंने फरमाया कि हे अबुलहसन! इस महीने में सब से अच्छा काम, उन चीज़ों से दूरी है जिन्हें अल्लाह ने हराम कहा है।
रमज़ान का महीना, हिजरी क़मरी कैलैंडर का नवां और सब से श्रेष्ठ महीना है। इस महीने में ईश्वरीय आथित्य की छाया में अल्लाह के सारे बंदे, उसकी नेमतों से लाभान्वित होते हैं रमज़ान का महीना, सुनहरे अवसरों का समय है। पैगम्बरे इस्लाम के शब्दों में इस महीने में मनुष्य के साधारण कर्मों का भी बहुत अच्छा फल मिलता है और ईश्वर छोटी सी उपासना के बदले में भी बड़ा इनाम देता है। थोड़े से प्रायश्चित से बड़े बड़े पाप माफ कर देता है और उपासना व दासता द्वारा कल्याण व परिपूर्णता तक पहुंचने के रास्ते आसान बना देता है । इस प्रकार से धार्मिक दृष्टि से इस महीने में जिस प्रकार का अवसर मनुष्य को मिलता है वैसा साल के अन्य किसी महीने में नहीं मिलता इसी लिए इन ईश्वरीय विभूतियों से भरपूर लाभ उठाने पर बल दिया गया है और यह भी निश्चित है कि यदि कोई सच्चे मन से इस महीने में रोज़ा रखे, उपासना करे और सही अर्थों में इस आथित्य से लाभ उठाए तो उसे एेसा आध्यात्मिक लाभ मिलेगा जिसकी उसने कल्पना भी न की होगी। पैगम्बरे इस्लाम के पौत्र इमाम हसन अलैहिस्सलाम कहते हैं कि ईश्वर ने रमज़ान के महीने को अपने बंदों के लिए मुक़ाबले का मैदान बनाया है जहां वे ईश्वर की दासता और उपसना में एक दूसरे को पीछे छोड़ने का प्रयास करते हैं।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने कहा है कि सही अर्थों में अभागा वह है जो रमज़ान का महीना गुज़ार दे और उसके पाप माफ न किये गये हों। इस प्रकार से हम देखते हैं कि रमज़ान, ईश्वर पर आस्था रखने वाले के लिए किस हद तक अहम है। ईश्वर ने इस महीने में लोगों को अपना मेहमान बनाया है और उन्हें अपने अतिथि गृह में जगह दी है इसी लिए बुद्धिजीवी कहते हैं कि इस ईश्वरीय अतिथि गृह में रहने के अपने नियम हैं जिन का पालन करके ही रोज़ा रखने वाला , आघ्यात्म की चोटी पर चढ़ सकता है। हमें इस महीने में पापों से बच कर ईश्वरीय आथित्य का सम्मान करना चाहिए और इस अवसर को ईश्वर से मन में डर पैदा करने का अवसर समझना चाहिए। ईश्वरीय भय या धर्म की भाषा में तक़वा, निश्चित रूप से धर्म में आस्था रखने वाले के लिए एक बहुत बड़ा चरण है कि जिस पर पहुंचने के बाद उपासना का वह आनंद मिलता है जिसकी कल्पना भी उसके बिना करना संभव नहीं होता। तक़वा अर्थात ईश्वर का भय , अर्थात हमेशा यह बात मन में रखना कि हमारे हर एक काम को एक एक गतिविधि को ई्श्वर देख रहा है। वह ऐसा शक्तिशाली है जो उसी क्षण जो चाहे कर सकता है। यदि सही अर्थों में मनुष्य इस पर विश्वास कर ले कि ईश्वर उसे हमेशा देखता है तो फिर निश्चित रूप से पाप और भ्रष्टाचार से कोसों दूर हो जाएगा, रमजा़न का एक लाभ यह भी है कि वह मनुष्य को मोह माया और सांसारिक झंझटों से छुटकारा दिलाता है और एक महीने के लिए उसे आत्मा के पोषण के आंनद से अवगत कराता है।
पैगम्बरे इस्लाम के कथनों के अनुसार, रमज़ान में ईश्वर की उपासना को चार हिस्सों में बांंटा जा सकता है, दुआ, क़ुरआने मजीद की तिलावत, अल्लाह की याद , और तौबा व मुस्तहब नमाज़ , वह उपासना है जिसका पुण्य, रमज़ान के महीने में कई गुना बढ़ जाता है। पैग़म्बरे इस्लाम और उनके परिजनों ने रमज़ान के लिए विशेष दुआएं बतायी हैं जिन्हें पढ़ने का आंनद ही अलग है। इन दुआओं में जहां ईश्वर से पापों की क्षमा मांगी गयी है वहीं, इन दुआओं को इस्लामी शिक्षाओं और दर्शन का भंडार भी कहा जाता है। पैगम्बरे इस्लाम के कथनों में है कि हर चीज़ की एक बहार होती है और कु़रान की बहार, रमज़ान का महीना है।
वास्तव में ईश्वर मनुष्य को किसी भी एेसे काम का आदेश नहीं देता जिसमें उसका हित न हो अर्थात ईश्वर के हर आदेश का उद्देश्य मनुष्य के हितों की रक्षा होता है। यदि ईश्वर लोगों को किसी काम से रोकता है तो इसका अर्थ यह है कि उस काम से मनुष्य को हानि होती है। इसी तथ्य के दृष्टिगत ईश्वर ने मनुष्य के लिए उन कामों को अनिवार्य किया है जिनकी सहायता से वह परिपूर्णता के चरण तक पहुंच सकता है और जिनके बिना परिपूर्णता के गतंव्य की ओर उसकी यात्रा अंसभव है। इस प्रकार के कामों को छोड़ने पर ईश्वर ने दंड की बात कही है। वास्तव में इस प्रकार से ईश्वर ने मनुष्य को एसे कामों को करने पर बाध्य किया है जिसका लाभ स्वंय मनुष्य को ही होने वाला है और उसे छोड़ने तथा शैतान के बहकावे में आने की दशा में हानि भी उसे ही होने वाली है। रोज़ा भी ईश्वर के इसी प्रकार के आदेशों में से एक है क्योंकि रोज़ा रखने का मनुष्य को आध्यात्मिक व शारीरिक व मानसिक हर प्रकार का लाभ पहुंचता है।
रमज़ान के महीने में मनुष्य अपना आध्यात्मिक , मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य बेहतर करके, स्वंय को इस योग्य बनाता है कि वह ईश्वर से निकट हो सके। रमज़ान में एक विशेष दुआ में रोज़ा रखने वाला जब ईश्वर के सामने गिड़गिड़ा कर कहता है कि हे ईश्वर! मेरी मदद कर कि मैं संसारिक मोहमाया से मुक्त होकर तेरी तरफ आ जाऊं तो निश्चित रूप से इससे ईश्वर की दासता की वह चोटी नज़र आती है जिस पर पहुंचना हर मनुष्य के लिए बहुत कठिन काम है। इस प्रकार से दास, अपने पालनहार के सामने अपनी असमर्थता व अयोग्यता को स्वीकार करते हुए उससे मदद मांगता है और ईश्वर से निकट होने में अपनी रूचि भी दर्शाता है ताकि ईश्वर उसकी मदद करे और वह इस मायाजाल से निकल कर सुख के अस्ली रूप से परिचित हो सके।
पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैही व आलेही व सल्लम ने रोज़ेदार के मन में विश्वास उत्पन्न होने के सब से महत्वपूर्ण चिन्ह के रूप में ईश्वर से भय व मन व आत्मा में पवित्रता उत्पन्न होने के बारे में इस प्रकार से कहा हैः
दास उसी समय ईश्वर से भय रखने वाला होगा जब उस वस्तु को ईश्वर के मार्ग में त्याग दे जिसके लिए उसने अत्यधिक परिश्रम किया हो और जिसे बहुत परिश्रम से प्राप्त किया हो। ईश्वर से वास्तिविक रूप में भय रखने वाला वही है जो यदि किसी मामले में संदेह ग्रस्त होता है तो उसमें धर्म के पक्ष को प्राथमिकता देता है।
हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम की शहादत के मौके पर शोक में डूबा ईरान
ईरान मे मोमनीन ने 19 रमज़ान की रात इबादतों, दुआओं और हज़रत अली अलैहिस्सलाम के शोक में मजलिसों और नौहों में गुज़ारी।
ईरान मे मोमनीन ने 19 रमज़ान की रात इबादतों, दुआओं और हज़रत अली अलैहिस्सलाम के शोक में मजलिसों और नौहों में गुज़ारी।
रमज़ान महीने की 19 तारीख़ शबे क़द्र है। क़द्र की रात इस्लाम धर्म के अनुसार बेहद महत्वपूर्ण रात है जिसमें पूरा विश्व आध्यात्मिक नूर से भर जाता है। इस रात को इबादत और दुआओं में बसर करने की ताकीद की गई है।
इस्लामी गणतंत्र ईरान के सभी शहरों और गावों में लोगों ने रात भर जाग कर इबादत की। इबादतों और दुआओं का सबसे मनमोहक नज़ारा पवित्र नगरों मशहद और क़ुम में देखने में आया जबकि पूरे देश की मस्जिदों और इमाम बाड़ों में इसके अलावा घरों में लोगों ने इबादतें कीं।
चूंकि यही रात हज़रत अली अलैहिस्सलाम पर कूफ़ा की मस्जिद में नमाज़ के दौरान होने वाले हमले की रात भी है इसलिए इस रात में हज़रत अली अलैहिस्सलाम का शोक भी मनाया जाता है।
शबे क़द्र की इबादतें, दुआएं और हज़रत अली अलैहिस्सलाम की अज़ादारी ईरान के साथ ही इराक़, भारत और पाकिस्तान सहित अनेक देशों में पैग़म्बरे इस्लाम और उनके परिवार से श्रद्धा रखने वालों ने अंजाम दी जिससे अदभुत माहौल पैदा हो गया।
इमाम ख़ामेनेई का नए ईरानी साल 1404 के आग़ाज़ पर पैग़ाम:
हज़रत आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने अपने नौरोज़ के पैग़ाम में पिछले हिजरी शम्सी साल के अहम वाक़यों का ज़िक्र किया और नए हिजरी शम्सी साल में कोशिशों और योजनाओं की दिशा निर्धारित करने के लिए नारा तय फ़रमायाः "उत्पादन के लिए पूंजीनिवेश
हज़रत आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने अपने नौरोज़ के पैग़ाम में पिछले हिजरी शम्सी साल के अहम वाक़यों का ज़िक्र किया और नए हिजरी शम्सी साल में कोशिशों और योजनाओं की दिशा निर्धारित करने के लिए नारा तय फ़रमायाः "उत्पादन के लिए पूंजीनिवेश"
ईरानी नया साल 1404 शुरू होने की मुनासेबत से
बिस्मिल्लाह अर्रहमान अर्रहीम
ऐ दिलों और निगाहों को बदलने वाले,
ऐ रात और दिन को चलाने वाले
ऐ हालात को बदलने वाले
हमारी हालत को बेहतरीन हालत में बदल दे।
नए साल का आग़ाज़ शबे क़द्र और अमीरुल मोमेनीन अलैहिस्सलाम के शहादत के दिनों के साथ हुआ है। मुझे उम्मीद है कि इन रातों की बर्कतें और परहेज़गारों के मौला की नज़रे करम पूरे साल हमारे अज़ीज़ अवाम, हमारी क़ौम, हमारे मुल्क और उन सभी लोगों के शामिले हाल होगी जिनका नया साल नौरोज़ से शुरू होता है।
पिछला साल बड़ी घटनाओं से भरा हुआ था। पिछले साल एक के बाद एक होने वाले वाक़ए 1980 के दशक के वाक़यों जैसे और हमारे अवाम के लिए सख़्तियों और कठिनाइयों वाले थे। साल के शुरू में, ईरानी राष्ट्र के लोकप्रिय राष्ट्रपति मरहूम आक़ाए रईसी रहमतुल्लाह अलैह की शहादत हुयी। उससे पहले दमिश्क़ में हमारे कुछ सलाहकार शहीद हुए।
उसके बाद तेहरान और फिर लेबनान में अनेक वाक़ए हुए कि जिसके नतीजे में ईरानी क़ौम और इस्लामी जगत ने क़ीमती रत्न खो दिए। ये कटु घटनाएं थीं। इसके अलावा पूरे साल ख़ास तौर पर दूसरे छह महीनों में आर्थिक मुश्किलों से अवाम पर दबाव बढ़ा, आर्थिक कठिनाइयां, अवाम के लिए मुश्किलें पैदा करती रहीं।
ये कठिनाइयां पूरे साल मौजूद थीं लेकिन इसके मुक़ाबले में एक अज़ीम और अजीब घटना घटी और वह ईरानी क़ौम की संकल्प की ताक़त, ईरानी क़ौम के आध्यात्मिक मनोबल, ईरानी क़ौम की एकता और ईरानी क़ौम की बड़े स्तर पर तैयारी का ज़ाहिर होना था। पहले राष्ट्रपति के खोने की घटना पर अवाम ने शानदार तरीक़े से उन्हें अलविदा किया, अवाम ने जो नारे लगाए
अपनी ओर से जिस ऊंचे मनोबल का परिचय दिया, उससे पता चला कि अगरचे मुसीबत बड़ी थी लेकिन वह ईरानी क़ौम को कमज़ोरी का एहसास नहीं करा सकी। उसके बाद बड़ी तेज़ी से क़ानूनी तौर पर निर्धारित मुद्दत में चुनाव का आयोजन कर सके, नए राष्ट्रपति को चुन सके, सरकार का गठन कर सके और मुल्क के प्रशासन को शून्य की हालत से बाहर निकाल सके।
यह बहुत अहमियत रखता है और यह ईरानी क़ौम के ऊंचे मनोबल, ऊंची क्षमता और उसकी आध्यात्मिक ताक़त का पता देता है। इस बात पर अल्लाह का शुक्र अदा करना चाहिए। इसके अलावा हालिया महीनों की घटनाओं में कि जिसके दौरान लेबनान में बड़ी तादाद में हमारे भाई, हमारे लेबनानी धार्मिक भाई मुश्किलों का शिकार हुए, ईरानी क़ौम ने दिल खोलकर उनकी मदद की।
इस संबंध होने वाले वाला वाक़ेया यानी अपने लेबनानी और फ़िलिस्तीनी भाइयों की मदद के लिए अवाम का सैलाब उमड़ पड़ना, यह हमारे मुल्क के इतिहास के अमर वाक़यों में से एक है। हमारी महिलाओं और औरतों ने दानशीलता दिखाते हुए अपने ज़ेवरात इस राह में दे दिए और हमारे अवाम ने और हमारे मर्दों ने जो मदद की, ये सब बहुत अहम मसले हैं।
ये क़ौम के इरादे की ताक़त और उसके दृढ़ संकल्प को दर्शाते हैं। यह मनोबल, यह मौजूदगी, यह तैयारी, यह आध्यात्मिक ताक़त मुल्क के भविष्य और हमारे प्यारे ईरान की ज़िंदगी के लिए हमेशा एक संपत्ति है। इस संपत्ति से मुल्क इंशाअल्लाह ज़्यादा से ज़्यादा फ़ायदा उठाएगा और अल्लाह भी अपनी कृपा क़ौम पर जारी रखेगा।
पिछले साल के नारे में हमने उत्पादन में छलांग के लिए अवाम की भागीदारी की बात कही थी कि यह मुल्क के लिए ज़रूरी थी बल्कि एक लेहाज़ से निर्णायक थी। पिछले साल के अनेक वाक़यों की वजह से यह नारा पूरी तरह व्यवहारिक नहीं हो पाया। अलबत्ता अच्छी कोशिशें हुयीं, सरकार की तरफ़ से भी, अवाम की तरफ़ से भी, निजी सेक्टर, पूंजीपतियों, उद्यमियों इन सबने अच्छा काम किया। लेकिन जो हुआ और जिसकी अपेक्षा थी, दोनों के बीच फ़ासला था।
इसलिए इस साल भी हमारा मुख्य मुद्दा आर्थिक मुद्दा है। मैं जो सम्मानीय सरकार, सम्मानीय अधिकारियों और अपने अज़ीज़ अवाम से अपेक्षा के तौर पर पेश कर रहा हूं वह एक बार फिर आर्थिक मुद्दा ही है। यह इस नए साल का नारा होगा क्योंकि हमारी आर्थिक मुश्किल का संबंध इस क्षेत्र में पूंजीनिवेश से है।
मुल्क में अर्थव्यवस्था के अहम मुद्दों में से एक उत्पादन के क्षेत्र में पूंजीनिवेश है। उत्पादन के क्षेत्र में उस वक़्त रौनक़ आती है जब पूंजीनिवेश हो। अलबत्ता पूंजीनिवेश का बड़ा भाग अवाम की ओर से होना चाहिए। सरकार इसकी मुख़्तलिफ़ शैलियों के बारे में योजना बनाए। लेकिन जिस क्षेत्र में अवाम का रुझान न हो या वे पूंजीनिवेश की क्षमता न रखते हों, उसमें सरकार मैदान में आ सकती है।
अवाम के प्रतिस्पर्धी के तौर पर नहीं बल्कि अवाम के विकल्प के तौर पर, जिस क्षेत्र में अवाम भागीदारी नहीं करते, सरकार मैदान में आए और पूंजीनिवेश करे। बहरहाल उत्पादन के क्षेत्र में पूंजीनिवेश, मुल्क की अर्थव्यवस्था और अवाम की आर्थिक मुश्किल को दूर करने के लिए अनिवार्य मसलों में से एक है।
अवाम की आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए योजनाबंदी की ज़रूरत है। लेकिन यह योजनाबंदी, इस संबंध में बिना तैयारी के मुमकिन नहीं है। निश्चित तौर पर सरकार भी, अवाम भी इरादे और ऊंचे मनोबल के साथ उत्पादन के क्षेत्र में पूंजीनिवेश को गंभीरता से लें और कोशिश करें। सरकार का काम पृष्ठिभूमि बनाना और रुकावटों को दूर करना है।
अवाम का काम यह है कि अपनी छोटी और बड़ी पूंजी को उत्पादन के क्षेत्र में लगाएं। अगर पूंजी को उत्पादन में लगाया गया, तो फिर वह सोना और विदेशी मुद्रा ख़रीदने जैसे नुक़सानदेह कामों की ओर नहीं जाएगी। केन्द्रीय बैंक भी इस संबंध में योगदान दे सकता है, सरकार भी बहुत प्रभावी योगदान दे सकती है।
इसलिए इस साल का नारा "उत्पादन के लिए पूंजीनिवेश" है जो इंशाअल्लाह अवाम की आर्थिक स्थिति को बेहतर करने का आधार बनेगा और सरकार की योजना अवाम की भागीदारी से इंशाअल्लाह मुश्किल को दूर कर देगी।
हालिया कुछ दिनों के वाक़यों की ओर भी इशारा करता चलूं। ग़ज़ा पर क़ाबिज़ ज़ायोनी शासन का दोबारा हमला, बहुत बड़ा अपराध और त्रासदी को जन्म देने वाला है। इस्लामी जगत इसके मुक़ाबले में एकजुट होकर डट जाए। अनेक मुद्दों पर अपने मतभेदों को नज़रअंदाज़ करे।
यह इस्लामी जगत का मसला है। इसके अलावा पूरी दुनिया में आज़ाद विचार के लोग ख़ुद अमरीका में, पश्चिमी और योरोपीय देशों में और दूसरे देशों में अवाम पूरी गंभीरता से ग़द्दारी से भरी और त्रास्दी को जन्म देने वाली इस करतूत का मुक़ाबला करें। एक बार फिर बच्चे मारे जा रहे हैं, घर तबाह हो रहे हैं, लोग बेघर हो रहे हैं, इस त्रास्दी को अवाम ज़रूर रोकें। अलबत्ता अमरीका भी इस त्रास्दी में शरीके जुर्म है।
दुनिया में राजनैतिक टीकाकार, सबका यह मानना है कि यह कृत्य अमरीका के इशारे पर या कम से कम अमरीका की सहमति और उसकी ओर से दी गयी हरी झंडी से हुआ है। इसलिए अमरीका भी इस जुर्म में शरीक है। यमन की घटनाएं भी इसी तरह हैं। यमन के अवाम, यमन के लोगों पर यह हमला, यह भी अपराध है जिसे अवश्य रोका जाना चाहिए।
मुझे उम्मीद है कि अल्लाह ने नए साल में इस्लामी जगत के मुक़द्दर में भलाई, हित और कामयाबी को लिखा होगा और ईरानी क़ौम भी अभी शुरू होने जा रहे इस साल का ख़ुशी, संतोष, पूरी एकता और कामयाबी के साथ इंशाअल्लाह आग़ाज़ करेगी और इस सिलसिले को साल के अंत तक ले जाएगी। मुझे उम्मीद है कि इमाम महदी अलैहिस्सलाम का पाकीज़ा दिल कि उन पर हमारी जाने क़ुर्बान! और हमारे महान इमाम और हमारे शहीदों की पाकीज़ा रूह हमसे राज़ी और ख़ुश होगी।
आप सब पर सलाम और अल्लाह की रहमत और बर्कत हो।