
رضوی
अगली जंग में इस्राईल की हार तय है, हिज़्बुल्लाह उप प्रमुख
लेबनान के हिज़्बुल्लाह संगठन के उप महासचिव शैख़ नईम क़ासिम ने कहा है कि यह हिज़्बुल्लाह की व्यापक स्तर की तय्यारी है जिसने इस्राईल को लेबनान पर नए अतिक्रमण से रोक रखा है। इसके साथ ही उन्होंने चेतावनी भी दी कि भविष्य में इस तरह की जंग में ज़ायोनी शासन की हार निश्चित है।
शैख़ नईम क़ासिम ने गुरुवार को अलअख़बार से इंटर्व्यू में कहा, सभी संकेत इस सच्चाई का पता देते हैं कि इस्राईल भयभीत है। इस समय लेबनान के ख़िलाफ़ नए आक्रमण के बारे में उसने फ़ैसला नहीं किया है। इसका कारण यह नहीं है कि इस्राईल नैतिकता की बुनियाद पर ऐसा नहीं कर रहा है बल्कि उसे यह बात समझ में आ गयी है कि लेबनान के ख़िलाफ़ किसी भी प्रकार की जंग में इस्राईल की हार निश्चित है।
ग़ौरतलब है कि अतिग्रहित फ़िलिस्तीनी क्षेत्र के मध्य में स्थित हत्ज़र हवाई छावनी में ‘डेविड्स स्लिंग’ मीज़ाईल सिस्टम के इस्राईल द्वारा अनावरण किए जाने के बाद, 2 अप्रैल को लेबनानी प्रधान मंत्री साद हरीरी ने चेतावनी दी कि इस्राईल का हालिया क़दम यह दर्शाता है कि वह नए टकराव का इरादा रखता है।
गुरुवार को हिज़्बुल्लाह ने लेबनानी सीमा पर पत्रकारों को आमंत्रित किया ताकि वे इस बात को कवरेज दें कि इस्राईल द्वारा उठाए गए क़दम नई जंग की तय्यारी का पता देते हैं।
हिज़्बुल्लाह के प्रवक्ता मोहम्मद अफ़ीफ़ ने कथित ब्लू लाइन के बग़ल में एक पहाड़ी के ऊपर कहा, “इस दौरे का उद्देश्य दुश्मन द्वारा किए गए रक्षात्मक उपाय को दिखाना है।”
शिकागो विश्वविद्यालय में "मानवीयत" सप्ताह का आयोजन
अंतर्राष्ट्रीय कुरान समाचार एजेंसी ने "UChicago" समाचार एजेंसी के अनुसार बताया कि "मानवीयत" सप्ताह में विभिन्न कार्यक्रमों जुमे की नमाज, धर्मों और धार्मिक परंपराओं का तआरूफ मुसलमानों के इस विशेष समारोह का हिस्सा है।
"मानवीयत"सप्ताह के आयोजन का उद्देश्य विभिन्न धर्मों के अनुयायियों को धर्मों और धार्मिक परंपराओं से परिचित के लिए आमंत्रित किया है।
यह तैय है कि शनिवार 22 अप्रैल को भी दक्षिण एशिया में मुसलमानों और हिंदुओं के गठन को धार्मिक कला के विकास में उनकी भूमिका के लिए विश्वविद्यालय में सम्मानित करने के लिए कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा।
संयम और प्रतिरोध की पर्याय हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा
पैग़म्बरे इस्लाम की नवासी और हज़रत अली व हज़रत फ़ातेमा ज़हेरा अलैहिमुस्सलाम की पुत्री हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा की शहादत की बर्सी के अवसर पर हम हार्दिक संवेदना व्यक्त करते हैं और इसी उपलक्ष्य में एक विशेष चर्चा लेकर आपकी सेवा में उपस्थित हैं।
अच्छी मिट्टी हो तो वहां हरियाली उगती है और फूल महकते हैं, बंजर ज़मीन पर कंटीली झाड़ियां ही नज़र आती हैं। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा का जन्म एसे परिवार में हुआ जो पवित्रता का स्रोत था और जिसने मानवीय मूल्यों और महानताओं को सींचा। उनके नाना पैग़म्बरे इस्लाम को क़ुरआन मजीद ने सारी सृष्टि के लिए ईश्वर की दया व कृपा की संज्ञा दी है।
जब हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के जन्म का समय निकट आया तो ईश्वर के फ़रिश्ते हज़रत जिबरईल धरती पर उतरे और पैग़म्बरे इस्लाम से कहा कि आप इस बच्ची का नाम ज़ैनब रखिए। इसके बाद हज़रत जिबरईल रोने लगे। पैग़म्बरे इस्लाम ने उनसे रोने की वजह पूछी तो बताया कि यह बच्ची अपने जीवन के आरंभ से अंत तक दुखों और पीड़ाओं का सामना करती रहेगी। कभी आपकी जुदाई का ग़म मनाएगी, कभी हज़रत फ़ातेमा ज़हेरा की शहादत पर रोएगी और कभी अपने पिता हज़रत अली और भाई हसन का ग़म मनाएगी। सबसे बढ़कर इस बच्ची को कर्बला में दुखों और पीड़ाओं का सामना करना पड़ेगा और यह मुसीबतें उसे बूढ़ कर देंगी। यह सुनकर सब रोने लगे। हज़रत फ़ातेमा ज़हरा ने सवाल किया कि मेरी बेटी ज़ैनब पर रोने का क्या सवाब होगा तो पैग़म्बरे इस्लाम ने जवाब दिया कि उस पर रोने का सवाब हुसैन पर रोने के सवाब के बराबर होगा।
जब हज़रत ज़ैनब विवाह की आयु को पहुंची तो उनका विवाह चाचा के बेटे अब्दुल्लाह इब्ने जाफ़र से हुआ। अब्दुल्लाह को अरब जगत के धनवान लोगों में गिना जाता था। मगर हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा न कभी भी भौतिकवाद से ख़ुद को क़रीब नहीं किया। उनके सामने तो बहुत बड़ा ध्येय कर्बला में पेश की जाने वाली क़ुरबानी थी। उन्होंने अपने जीवन में यह पाठ सीखा था कि कभी भी सच्चाई को अत्याचारियों के स्वार्थों पर न्योछावर नहीं होने देना चाहि। इसी लिए उन्होंने अपने भाई इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के मिशन की ज़िम्मेदारी संभाली और धर्म के शुद्धिकरण और समाज के सुधार के लिए क़दम आगे बढ़ाया। शादी के समय हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा ने अपने पति हज़रत अब्दुल्लाह के सामने यह शर्त रखी थी कि वह सभी परिस्थितियों में अपने भाई इमाम हुसैन का साथ देंगी। अब्दुल्लाह ने यह शर्त मान ली। अतः जब इमाम हुसैन ने अपना एतिहासिक सफ़र शुरू किया और मदीना से कर्बला गए तो इस सफ़र में हज़रत ज़ैनब भी उनके साथ थीं और उन्होंने भ्रष्ट व अत्याचारी उमवी शासक यज़ीद के मुक़ाबले में कर्बला की महान शौर्यगाथा में एक नया रंग भरा।
यदि हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के गुणों की बात की जाए तो उनका त्याग, उपासना, कठिन परिस्थितियों का साहस और दृढ़ता से मुक़ाबला आदि बहुत स्पष्ट विशेषताएं हैं। वह मात्र छह साल की थीं जब उनकी माता हज़रत फ़ातेमा ज़हरा ने मस्जिदे नबी में फ़ेदक नामक बाग़ और हज़रत अली अलैहिस्सलाम के अधिकार के बचाव में अपना एतिहासिक ख़ुतबा दिया। हज़रत ज़ैनब को उसी समय यह ख़ुतबा याद हो गया। कूफ़े की प्रतिष्ठित हस्ती बशीर इब्ने ख़ुज़ैम असदी कहते हैं कि मैंने लज्जा की चादर ओढ़े रहने वाली किसी महिला को हज़रत ज़ैनब की तरह भाषण देते कभी नहीं सुना। वह जब भाषण देती थीं तो ऐसा लगता था कि हज़रत अली भाषण दे रहे हैं। उन्होंने भाषण की कला अपने पिता से सीखी थी। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा की सामाजिक स्थिति यह थी कि उनके पति अब्दुल्लाह भी उन्हें अली की बेटी और बनी हाशिम ख़ानदान की बुद्धिमान महिला कहकर पुकारते थे। कूफ़ा में हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के उस ख़ुतबे के बाद जिसमें उन्होंने सुनने वालों को हिलाकर रख दिया था, हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन ने कहा कि आप गुरू के बग़ैर ही महान विचारक और ज्ञानी हैं।
हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के व्यक्ति को समझने के लिए सबसे अच्छा तरीक़ा यह है कि कर्बला की घटना और इसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम के परिवार के लोगों को यज़ीद द्वारा क़ैदी बनाए जाने की घटना का जायज़ा लिया जाए। समय के अत्याचारियों से निपटने की शैली हज़रत अली अलैहिस्सलाम की बेटी की महानता की गवाही देती है। वह अपने पति अब्दुल्लाह की अनुमति से जो बीमारी के कारण यात्रा में इमाम हुसैन के साथ न जा सके इमाम हुसैन के साथ कर्बला गईं। उन्होंने कर्बला की घटना में भी महान साहस का परिचय दिया और इसके बाद चौथे इमाम हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम की रक्षा और देखभाल और साथ ही इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के मिशन के उद्देश्यों के प्रचार में अनुदाहरणीय भूमिका निभाई। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा वास्तव में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के मिशन की पूरक थीं। यदि ईश्वर ने हज़रत ईसा के साथ उनकी माता हज़रत मरियम को रखा, पैग़म्बरे इस्लाम के साथ उनकी बेटी हज़रत फ़ातेमा को रखा तो इमाम हुसैन के साथ उनकी बहन हज़रत ज़ैनब को रखा जिन्होंने ईश्वरीय मिशन में बड़ी केन्द्रीय भूमिका निभाई। यदि हज़रत ज़ैनब की भूमिका न होती तो इमाम हुसैन का कर्बला मिशन अपनी मंज़िल तक नहीं पहुंच पाता। वैसे इमाम हुसैन ने इस यात्रा में अपने घर वालों को साथ रखने का फ़ैसला इसी लक्ष्य के तहत किया था। कर्बला से दमिश्क़ की यात्रा में इमाम हुसैन और उनके साथियों के कटे हुए सिरों को भालों पर उठाया गया और पैग़म्बरे इस्लाम के ख़ानदान की महिलाओं और बच्चों को क़ैदी बनाया गया जो यज़ीद और उसके साथियों की दुष्टता को साबित करने के लिए काफ़ी है। इसी तरह हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा और हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने अलग अलग अवसरों पर जो ख़ुतबे दिए वह सच्चाई को सामने लाने में बहुत प्रभावी साबित हुए।
सत्य की रक्षा और कठिनाइयों को सहन करने के संबंध में एक मुसलमान महिला की क्या भूमिका होती है यह हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा ने अपने आचरण से दिखाया। पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम कहते हैं कि आज़ाद इंसान हर हाल में आज़ाद रहता है। यदि उस पर दुख पड़ता है तो संयम का परिचय देता है, यदि दुखों का सिलसिला जारी रहता है तो भी उसका संयम नहीं टूटता, यदि उसे क़ैदी बना लिया जाए, उसे परास्त कर दिया जाए और उसका आराम कठिनाइयों में बदल जाए तो हज़रत युसुफ़ की तरह उसकी स्वाधीनता पर क़ैद और दासता से भी कोई आंच नहीं आती।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि हज़रत ज़ैनब एक संपूर्ण मुस्लिम महिला का प्रतीक थीं। अर्थात इस्लाम ने महिलाओं के प्रशिक्षण के लिए जो आदर्श रखा है उसे हज़रत ज़ैनब ने दुनिया वालों के सामने पेश किया। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के व्यक्तित्व की कई पहलू हैं। वह ज्ञानी और बहुत महान हस्ती हैं, उनके सामने बड़े बड़े बुद्धिमान और ज्ञानी नत मस्तक हो जाता है। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा ने भावना और भावुकता को एक मोमिन इंसान के हृदय में पायी जाने वाली दृढ़ता और महानता से जोड़ दिया। उन्होंने अपना हृदय और अस्तित्व ईश्वर के सिपुर्द कर दिया जिसके नतीजे में वह इतनी महानता पर पहुंच गईं कि बड़ी से बड़ी घटना भी उनकी नज़र में तुच्छ थी, कर्बला जैसी घटना भी उनके हौसले को नहीं तोड़ सकी।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की कर्बला में शहादत के बाद हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा डेढ़ साल से ज़्यादा जीवित नहीं रहीं। वर्ष 62 हिजरी क़मरी में रजब के महीने में 56 साल की आयु में हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा इस दुनिया से चली गईं। बहरुल मसाएब पुस्तक के लेखक ने लिखा है कि कर्बला की घटना और इसके बाद के कठिन हालात ने हज़रत ज़ैनब को बूढ़ कर दिया। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के लिए अपने भाई इमाम हुसैन के बग़ैर जीवन व्यतीत करना बहुत कठिन था। वैसे तो कर्बला की घटना ही इतनी बड़ी घटना थी कि हज़रत ज़ैनब का इसके बाद एक पल के लिए भी जीवित रह पाना कठिन था लेकिन उन्होंने हालात को देखा, अपने ज़िम्मेदारी को समझा, अपने भाई के मिशन को पूरा करने के दायित्वों का आभास किया और एसे संयम का प्रदर्शन किया जिसका कोई और उदाहरण नहीं हो सकता। अपने दायित्व पूरा कर लेने और अपने भाई इमाम हुसैन का संदेश लोगों तक पहुंचा देने के बाद हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा ने इस दुनिया से विदा ली।
"बाल्टीमोर" में अमेरिका के मुसलमानों की बड़ी सभा आयोजित की गई
अंतर्राष्ट्रीय कुरान समाचार एजेंसी खबर साइट«बाल्टीमोर सन»के अनुसार,इस साल की सभा, "सच्ची सफलता के लिए प्रास: मूसा, ईसा और मुहम्मद (PBUH) के दिव्य संदेश" विषय के साथ आयोजित की गई।
इस सम्मेलन में जो उत्तरी अमेरिका के इस्लामी ब्यूरो (ICNA) द्वारा आयोजन किया गया है प्रमुख आंकड़ों सहित 150 से भी अधिक वक्ताओं ने भाग लिया।
इस तीन दिवसीय बैठक में जो आज, 16 अप्रैल को समाप्त होरही है, सामाजिक और मनोरंजक गतिविधियां भी आयोजित की गई।
बच्चों के लिए कुरान प्रतियोगिता, बाजार और मनोरंजक गतिविधियां, हर साल इस सभा का हिस्सा होती हैं।
इस वर्ष भी इसी तरह विभिन्न धर्मों के समूहों और बाल्टीमोर इस्लामिक सोसायटी के सहयोग से, 750 से अधिक सहायता पैकेज बेघरों के लिए और 1000 गर्म भोजन के पैकेज जरूरतमंद लोगों को वितरित किऐ गऐ।
इस तरह की बैठकें "इस्लामोफोबिया से मुक़ाबला", "राष्ट्रपति ट्रम्प के समय अपने अधिकारों की रक्षा" और "कठिन समय में सक्रिय होना" जैसे विषयों के साथ आयोजित की गईं और उनमें मुसलमानों के खिलाफ नफरत के आधार पर अपराधों में वृद्धि और ट्रम्प सरकार की इस्लामी देशों के नागरिकों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने की कार्रवाइयों पर भी चर्चा की गई।
"सूतबी'लंदन की नीलामी बाज़ार में ख़त्ती कुरान+ तस्वीरें
अंतर्राष्ट्रीय कुरान समाचार ऐजेंसी खबर "अल्यौमुस्साबेअ" के अनुसार, लंदन का सूदबी नीलामी मार्केट 26 अप्रेल को "इस्लामी दुनिया की कला" शीर्षक के साथ नीलामी का आयोजन करेगा और उसमें कुरान की पांडुलिपियां और सैकड़ों वर्षों पुराने कुरानों को नीलामी के लिऐ पेश किया जाऐगा।
इस नीलामी में दुआओं की पुस्तकें और चौदहवीं शताब्दी ई से संबंधित आयतों को भी नीलामी के लिऐ पेश किया जाऐगा और उनकी कीमत 6 से 8 हजार पाउंड घोषणा की गई है।
इसी तरह फारसी कवि अब्दुर्रहमान जामी के हाथ से लिखी कुरान की पांडुलिपि कि सोलहवीं सदी के अंतर्गत आता है इस नीलामी में मूल्य 2 से 3 हजार पाउंड तक बेचने के लिऐ रखा जाऐगा।
सूतबी नीलामी बाज़ार इसी तरह मुस्तफ़ा अज़्ज़हनी के हाथ का लिखा दौरे उस्मानी का क़ीमती क़ुरआन जो कि 18वीं शताब्दी ई के अंतर्गत आता है 20 से 30 हज़ार पाउंड और ऐक क़ुरआन इस्तांबूल का 1124 से 1712 शताब्दी के अंतर्गत 180 से 250 हज़ार पाउंड की कीमत पर नीलामी के लिऐ रखेगा।
अमरीका ने अफ़ग़ानिस्तान को टेस्टिंग ग्राउंड बना दिया हैः हामिद करज़ई
अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करज़ई ने अमरीकी कार्यवाही को अमानवीय कार्यवाही बताया है।
अफ़ग़ानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करज़ई ने अपने ट्वीट में अमरीकी सेना की ओर से अफ़ग़ानिस्तान में सबसे बड़े ग़ैर परमाणु बम गिराए जाने की कड़े शब्दों में निंदा की है।
उन्होंने कहा कि अमरीका ने जो किया है वह आतंकवादियों के विरुद्ध युद्ध नहीं बल्कि अमानीय कार्यवाही है। अफ़ग़ानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करज़ई ने कहा कि अमरीका, अफ़ग़ानिस्तान को नये और ख़तरनाक हथियारों के टेस्टिंग ग्राउंड के रूप में प्रयोग कर रहा है। उन्होंने कहा कि अमरीका की इस प्रकार की कार्यवाही के विरुद्ध अफ़ग़ानिस्तान को उठ खड़ा होना होगा और उसे रोकना होगा।
ज्ञात रहे कि अमरीका ने दाइश पर हमले का बहाना बनाकर गुरुवार की शाम लगभग सात बजे अफ़ग़ानिस्तान में नंगरहार के अचन ज़िले में 16 वर्षीय युद्ध के दौरान पहली बार सबसे बड़ा ग़ैर परमाणु ख़तरनाक बम का प्रयोग किया।
भारत में कुरआनी समारोह में इराकी कारीयों ने कुरान की तिलावत किया
अंतर्राष्ट्रीय कुरान एजेंसी ने अल-कफील इंटरनेशनल वेबसाइट के अनुसार बताया कि यह कुरआनी समारोह पांचवें "इमाम अली (अ0) वार्षिक सांस्कृतिक महोत्सव के अवसर पर इमाम हुसैन,इमाम अली,हज़रत अब्बास,असकरीएन के पवित्र हरम के कारीयों ने कुराने मजीद की तिलावत किया।
यह कुरआनी समारोह "कोलकाता" के इमामबाड़ा "फज़्लुन्निसा" में आयोजित किया गया जिसमें इमाम हुसैन अ0 के पवित्र हरम के क़ारी और मोअज़्ज़िन मुस्तफा अल-ग़ालबी ने इराकी शैली में तिलावत किया।
समारोह में इमाम अली अ0 के पवित्र हरम के "शेख मोहम्मद जाससिम" और असकरीएन के पवित्र हरम के क़ारी "कैसर अल ज़ोहैरी" ने कुरान के आयतों की तिलावत किया।
मोहब्बते इमाम अली (अ0) पर तवाशीह और हरमे हज़रत अब्बास के कारी "सैयद हैदर जोलु ख़ां ने दुआए कुमैल की तिलावत किया।
पांचवें "इमाम अली (अ0) वार्षिक सांस्कृतिक महोत्सव 13 अप्रैल से भारत के शहर कलकत्ता में शुरू हुआ जो 16 अप्रैल तक जारी रहेग़ा।
पांचवें "इमाम अली (अ0) वार्षिक सांस्कृतिक महोत्सव में पुस्तक मेला, भारत में अनाथ धार्मिक स्थल की यात्रा है।
हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम का शुभ जन्म दिवस
पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के चचेरे भाई, दामाद और उत्तराधिकारी हज़रत अली अलैहिस्सलाम के ज्ञान के बारे में बात करना किसी ज़बान और क़लम के लिए संभव नहीं है।
वे वही हैं जिनके बारे में पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा हैः ईश्वर ने अली को इतना ज्ञान व बुद्धि प्रदान की है कि अगर उसे धरती के समस्त लोगों में बांटा जाए तो वह सभी अपने दामन में ले लेगी और सभी लोग बुद्धिमान और ज्ञानी हो जाएंगे।
रजब के महीने का दूसरा शुक्रवार था, हिरा पर्वत से चलने वाली ठंडी हवा के झोंके काबे तक पहुंच रहे थे जहां कुछ लोग इस पवित्र स्थल की परिक्रमा करने में व्यस्त थे। अबू तालिब की पत्नी फ़ातेमा, थके हुए चेहरे के साथ ईश्वर के घर की परिक्रमा कर रही थीं। आंखों से टपकने वाले आंसू उनके चेहरे को भिगा रहे थे, उन्होंने गिड़गिड़ा कर अपने ईश्वर को पुकाराः हे मेरे पालनहार, मैं तुझ पर ईमान रखती हूं, इसी तरह मैं अपने पूर्वज इब्राहीम अलैहिस्सलाम के धर्म पर, जो काबे की आधारशिला रखने वाले थे, पूरा ईमान रखती हूं। प्रभुवर! हे शक्तिशाली व सर्वसक्षम ईश्वर! मैं तुझे इस घर की आधारशिला रखने वाले और इस बच्चे की सौगंध देती हूं जो मेरी कोख में है कि इस प्रसव को मेरे लिए सरल बना दे।
सहसा ही लोगों की आंखें खुली की खुली रह गईं, काबे की दीवार फटी और उसमें दरवाज़ा बन गया, जैसे ही फ़ातेमा बिन्ते असद काबे में गईं, दीवार पहले की तरह जुड़ गई। लोग आश्चर्य से चीख़ पड़े और फिर हर तरफ़ एक अर्थपूर्ण सन्नाटा पसर गया, सभी के चेहरे आश्चर्य की मूर्ति बन गए, अंदर की सांस अंदर रह गई, किसी में भी उस मौन को तोड़ने और यह कहने की हिम्मत नहीं थी कि अभी क्षण भर पहले काबे की दीवार फटी और ईश्वर ने एक गर्भवती महिला को अंदर बुला लिया।
किस को विश्वास हो सकता था कि अत्यंत कठोर पत्थरों की दीवार फट कर एक गर्भवती महिला को अंदर आने का निमंत्रण दे सकती है? लोगों का आश्चर्य उस समय दुगना हो गया जब काबे की देख-भाल करने वालों ने, जिनके पास उसकी चाबी थी, काबे का ताला खोलने का प्रयास किया और विफल रहे। अब वहां लोगों की भीड़ बढ़ती चली जा रही थी और हर एक को जिज्ञासा थी कि आगे क्या होगा ?
काफ़ी समय बीत गया और फिर अचानक ही काबे की दीवार, दोबारा दरवाज़ा बन गई और उसमें से दमकते चेहरे और गोद में अपने लाल को लिए फ़ातेमा बिन्ते असद बाहर आईं। नवजात का प्रकाशमयी चेहरा सभी को मोहित कर रहा था, उसके पिता अबू तालिब ने चमकती आंखों और ख़ुशी भरे स्वर में चिल्ला कर कहाः हे लोगो! मेरे बेटे अली ने, ईश्वर के घर में जन्म लिया है। सृष्टि के इतिहास की यह अनुपम और अद्वीतीय घटना, आमुल फ़ील (जिस साल अबरहा ने हाथियों के साथ काबे पर हमला किया था) के तीसवें साल के रजब महीने की तेरहवीं तारीख़ को शुक्रवार के दिन घटी थी।
जिस दिन हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने काबे में आंखें खोलीं, सभी आश्चर्यचकित रह गए क्योंकि तब तक किसी ने भी काबे में जन्म नहीं लिया था और उसके बाद से आज तक भी ऐसा नहीं हुआ है और यह उस बच्चे की महानता का एक चिन्ह था। आज हम एक ऐसे सपूर्ण मनुष्य का शुभ जन्म दिन मना रहे हैं जिसे उसके ईश्वर और पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के अलावा किसी ने भी सही तरीक़े से नहीं पहचाना। पैग़म्बरे इस्लाम ने उन्हें संबोधित करते हुए कहा थाः हे अली! ईश्वर को मेरे और तुम्हारे अलावा किसी ने भी नहीं पहचाना, मुझे ईश्वर और तुम्हारे सिवा किसी ने नहीं पहचाना और तुम्हें ईश्वर और मेरे अलावा किसी ने भी नहीं पहचाना लेकिन इसके बावजूद अली, इतिहास के पन्नों में सूरज की तरह चमक रहे हैं।
सातवीं शताब्दी हिजरी में अहले सुन्नत के प्रख्यात विद्वान इब्ने अबील हदीद, जिन्होंने हज़रत अली अलैहिस्सलाम के कथनों पर आधारित किताब नहजुल बलाग़ा की व्याख्या लिखी है, हज़रत अली के गुणों का वर्णन करते हुए कहते हैं। “मैं उस व्यक्ति के बारे में क्या कहूं जिसके गुणों को उसके शत्रु भी मानते हैं और वे कभी भी उनकी प्रतिष्ठा और सद्गुणों का न तो इन्कार कर सके और न ही उन्हें छिपा सके।“ इसके बाद वे कहते हैं कि बनी उमय्या ने धरती के पूरब और पश्चिम में इस्लामी शासन हासिल कर लिया और हर प्रकार के हथकंडे और चाल के माध्यम से हज़रत अली अलैहिस्सलाम के प्रकाशमयी अस्तित्व की छवि बिगाड़ने की कोशिश की, उन पर तरह तरह के आरोप लगाए गए, उनकी सराहना और गुणगान करने वाले हर व्यक्ति को धमकाया गया, उनकी प्रशंसा में किसी भी प्रकार की हदीस को बयान करने से रोका गया, यहां तक कि उनके नाम पर बच्चों का नाम रखने पर प्रतिबंध लगाया गया लेकिन इन सब कुप्रयासों के बावजूद उनकी महानता और प्रतिष्ठा और अधिक निखर कर और उभर कर सामने आने के कुछ और परिणाम नहीं निकला। वास्तव में बनी उमय्या की ये सारी कोशिशें हथेली से सूरज को छिपाने जैसी थीं। मैं उस व्यक्ति के बारे में क्या कह सकता हूं जिस पर जा कर सारे सद्गुण समाप्त हो जाते हैं और हर मत व गुट अपने आपको उससे जोड़ने की कोशिश करता है, हां अली ही सारे सद्गुणों के स्वामी हैं।
सच्चाई तो यह है कि ख़ुद हज़रत अली अलैहिस्सलाम से बेहतर कोई भी उनका परिचय नहीं करा सकता। नहजुल बलाग़ा के 175वें भाषण में उन्हें ईश्वर द्वारा प्रदान किए गए ज्ञान के एक भाग की ओर संकेत किया गया है। वे कहते हैं। ईश्वर की सौगंध! अगर मैं चाहूं तो तुममें से हर एक को उसके जीवन के आरंभ और अंत और ज़िंदगी के सभी मामलों के बारे में अवगत करा सकता हूं लेकिन इस बात से डरता हूं कि इस तरह की बातों के कारण तुम लोग पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम का इन्कार न कर बैठो। जान लो कि मैं इन मूल्यवान राज़ों को अपने विश्वस्त दोस्तों के हवाले करूंगा। उस ईश्वर की सौगंध! जिसने मुहम्मद (सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम) को सत्य के साथ पैग़म्बर बना कर भेजा, मैं सत्य के अलावा कुछ नहीं कहता।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम की यह बात इस बात को स्पष्ट करती है कि उनके ज्ञान का जो भाग हम तक पहुंचा है वह उनके ज्ञान के अनंत सागर की केवल एक बूंद है क्योंकि अगर उनका सारा ज्ञान हम तक पहुंच जाता तो कुछ लोग इस प्रकार के ज्ञान को संभालने की क्षमता न रखने के कारण, सच्चे मार्ग से दूर हो जाते और वैचारिक व आस्था की दृष्टि से उनमें गहरा मतभेद पैदा हो जाता।
पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम इस संबंध में कहते हैं। हे अली! तुम (दुनिया के त्याग और ईश्वर की उपासना की दृष्टि से) मरयम के पुत्र ईसा जैसे हो अगर मुझे इस बात का भय न होता कि मेरी जाति का एक गुट तुम्हारे बारे में अतिशयोक्ति से काम लेगा और वही कहेगा जो ईसा के बारे में कहा गया, तो मैं तुम्हारे बारे में ऐसी बात कहता कि तुम जब भी लोगों के पास से गुज़रते तो वे तुम्हारे पैरों के नीचे की मिट्टी को उठा कर चूमते।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम का ज्ञान इतना व्यापक था कि वे विभिन्न ज्ञानों के सभी रहस्यों और छोटी-बड़ी बातों को पूरी दक्षता से जानते थे। वे कभी भी किसी भी सवाल या मामले पर परेशान नहीं होते थे और अविलम्ब उसका उत्तर देते थे या उसे हल कर देते थे। सुन्नी मुसलमानों के एक वरिष्ठ धर्मगुरू इब्ने ख़ारज़मी अपनी किताब मनाक़िब में लिखते हैं कि एक दिन दूसरे ख़लीफ़ा हज़रत उमर ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम से पूछा कि किस प्रकार आप किसी भी सवाल या समस्या का बिना सोचे तुरंत उत्तर दे देते हैं। उन्होंने जवाब में पहले अपनी हथेली उनके सामने की और पूछा कि इसमें कितनी उंगलियां हैं? उन्हों ने तुरंत जवाब दियाः पांच। हज़रत अली ने पूछा कि तुमने सोचा क्यों नहीं? उमर ने कहा कि इसमें सोचने की क्या बात है, पांचों उंगलियां मेरे सामने हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने कहाः सभी बातें, धार्मिक आदेश और ज्ञान मेरे लिए इसी हथेली की तरह स्पष्ट हैं अतः मैं सवालों का अविलम्ब जवाब देता हूं।
इसके बाद हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने उस महान गुरू की ओर जिसने उन्हें ये ज्ञान सिखाएं हैं, संकेत किया और कहा कि पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम) ने सभी सूचनाएं और ज्ञान मुझे प्रदान किए हैं और मुझे बताया है कि कौन कहां मरेगा? किसे कहां मुक्ति मिलेगी? किसके शासन का अंत किस प्रकार होगा, उन्होंने हर घटना की मूझे सूचना दे दी है। एक अन्य स्थान पर वे कहते हैं। पैग़म्बरे इस्लाम ने प्रलय तक के हर हलाल या हराम, अच्छी या बुरी बात और ईश्वर की अवज्ञा या आज्ञापालन की सूचना मुझे दे दी है और मैंने उन्हें याद कर लिया है, मैं इन बातों का एक शब्द भी भूला नहीं हूं। इसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम ने अपना हाथ मेरे सीने पर रखा और ईश्वर से प्रार्थना की कि वह मेरे हृदय को ज्ञान, बुद्धि, तत्वदर्शिता और प्रकाश से भर दे और मुझे इस प्रकार ज्ञान प्रदान करे कि उसमें अज्ञानता घुस न पाए और मैं इस तरह बातों को याद रखूं कि कभी न भूलूं। यही कारण है कि दूसरे ख़लीफ़ा हज़रत उमर जब भी किसी समस्या में ग्रस्त होते और कोई उसे हल नहीं कर पाता तो वे हज़रत अली अलैहिस्सलाम के पास जाते। उन्होंने अनेक अवसरों पर कहा है कि अगर अली न होते तो उमर तबाह हो जाता।
पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम से ज्ञान अर्जित करने के हज़रत अली अलैहिस्सलाम के प्रयास, अथक व निरंतर थे और पैग़म्बर के जीवन के अंतिम क्षण तक जारी रहे और हज़रत अली उनके ज्ञान के अथाह सागर से तृप्त होते रहे। अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन आस का कहना है कि जब पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम अपने जीवन के अंतिम दिनों में थे तो उन्होंने हज़रत अली को बुलाया और जब वे आ गए तो उन्हें अपना कपड़ा ओढ़ाया और उनकी ओर झुक कर कुछ कहा। जब हज़रत अली बाहर निकले तो किसी ने उनसे पूछा कि पैग़म्बर ने आपसे क्या कहा? उन्होंने जवाब दियाः पैग़म्बर ने मुझे ज्ञान के एक हज़ार दरवाज़े सिखाए जिनमें से हर दरवाज़े से हज़ार दरवाज़े खुलते हैं।
आयतुल्लाह ख़ामेनई ने की सीरिया पर अमरीकी हमले की कड़ी निंदा।
इस्लामी गणतंत्र ईरान के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह ख़ामेनई ने सेना के वरिष्ठ अधिकारियों से मुलाक़ात करते हुए सीरिया पर अमेरिकी हमलों की कड़ी निंदा करते हुए कहा, यह हमले अमेरिका की रणनीतिक भूल हैं । उन्होंने कहा कि अमेरिका पूर्व में की गयी अपनी गलतियों को दोहराने में लगा हुआ है । सुप्रीम लीडर ने कहा कि अतिक्रमण, हमला, अत्याचार, प्रताड़ना यह सब अमेरिका की घुट्टी में मिला हुआ है, अमेरिका से यही अपेक्षा है वह दुनिया भर में यह कुकृत्य करता रहा है बस हर बार मैदान बदल जाता है । उन्होंने कहा कि ईरान गणतंत्र ने दिखा दिया है कि खुदा पर भरोसा और आत्मविश्वास के साथ सफलतापूर्वक इन चुनौतियों का सामना किया जा सकता है । सुप्रीम लीडर ने कहा कि अमेरिका के तत्कालीन अधिकारीयों ने दाइश का गठन किया तथा समय - समय पर उसकी मदद की, यही काम वर्तमान अधिकारी कर रहे हैं। सुप्रीम लीडर ने कहा कि यूरोप आज आतंकी संगठनों की सहायता का अंजाम भुगत रहा है यूरोपियन लोगों में असुरक्षा की भावना घर कर गयी है, अमेरिका भी उसी गलती को दोहराने में लगा हुआ है । उन्होंने यूरोप कि दोहरी पॉलिसी पर कटाक्ष करते हुए कहा कि आज सीरिया में रासायनिक हमलों का शोर मचाने वाले यूरोप ने ईरान के विरुद्ध प्रयोग करने के लिए सद्दाम को भारी मात्रा में केमिकल हथियार उपलब्ध कराये थे ।
ईरान को भीतर से खोखला करना चाहता है दुश्मनः वरिष्ठ नेता
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने इस्लामी व्यवस्था के दुष्ट शत्रुओं के बड़े मोर्चे का लक्ष्य, इस्लामी व्यवस्था को नष्ट करना या भीतर से खोलना करना बताया है।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने सोमवार को व्यवस्था के कुछ अधिकारियों से नौरोज़ की मुलाक़ात में इस्लामी व्यवस्था के गठन और उसकी रक्षा के लिए बहने वाले मूल्यवान ख़ून और बलिदानों की ओर संकेत करते हुए कहा कि इस्लामी व्यवस्था को कमज़ोर करने में दुश्मनों को धूल चटाने के लिए हर प्रकार के प्रयास वास्तव में ईश्वर से सामिप्य प्राप्त करना ही है।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने इस्लामी क्रांति के विभिन्न मंचों पर त्याग व बलिदान के पीछे जनता का मुख्य उद्देश्य, धार्मिक लक्ष्य बताया और कहा कि आज कुछ जवान उन्हीं पवित्र उद्देश्यों और लक्ष्यों के साथ तकफ़ीरी धड़ों से मुक़ाबले और रौज़ों की रक्षा के लिए रणक्षेत्र में जाने पर बल देते हैं और यह त्याग की निशानी और अधिकारियों से जनता के आगे रहने का स्पष्ट चिन्ह है।
उन्होंने ईश्वरीय दूतों के निष्ठापूर्ण प्रयासों का लक्ष्य, धार्मिक व्यवस्था का गठन और सत्य की स्थापना बताया और कहा कि इस्लामी व्यवस्था में इस्लामी नियमों और इस्लामी जीवन शैली को लागू होना चाहिए और समाज के हर वर्ग की संस्कृति, क़ुरआनी शिक्षाओं के अनुसार होनी चाहिए।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने नये वर्ष का नाम प्रतिरोधक अर्थव्यवस्था, पैदावार और रोज़गार रखे जाने की ओर संकेत करते हुए कहा कि पैदावार और रोज़गार के अवसर उपलब्ध कराए जाने के लिए गंभीर निरिक्षण और निरंतर प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। उनका कहना था कि उन उत्पादों पर प्रतिबंध होना चाहिए जिनके चलते ईरानी कारख़ाने बंद हो जाते हैं।