رضوی

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शुक्रवार, 10 अक्टूबर 2025 14:07

ज़बान से ही जन्नत और जहन्नम है

इमाम अली (अ.स.)

जो शख्स भी कोई चीज़ अपने दिल मे छुपाने की कोशिश करता है तो उसके दिल की बात उसकी जबानी ग़लतीयो और चेहरे से मालूम हो जाती है।
(नहजुल बलाग़ा, हदीस न. 25)

   رسول اكرم صلى الله عليه و آله

    مَنْ كانَ يُؤْمِنُ بِاللَّهِ وَ الْيَوْمِ الْآخِرِ فَلْيَقُلْ خَيْراً أَوْ لِيَسْكُتْ.
 

  1. रसूले अकरम (स.अ)

जो कोई भी खुदा और आखेरत पर ईमान रखता हो उसे चाहिये कि सिर्फ अच्छी बात बोले या खामोश रहे।
(उसूले काफी, जिल्द 2 पेज न. 667)

 امام باقر عليه السلام
    إِنَّ هذَا اللِّسانَ مِفتاحُ كُلِّ خَيرٍ و شَرٍّ فَيَنبَغى لِلمُؤمِنِ أَن يَختِمَ عَلى لِسانِهِ كَما يَختِمُ عَلى ذَهَبِهِ وَ فِضَّتِهِ

  1. इमाम बाक़िर (अ.स)

बेशक जबान हर अच्छाई और बुराई की चाबी है पस मोमीन के लिऐ ज़रूरी है कि अपनी जबान की निगरानी करे जैसे अपने सोने और चांदी की निगरानी करता है।

(तोहफुल उक़ूल, पेज न. 298)


    امام سجاد عليه السلام

    حَقُّ اللِّسَانِ إِكْرَامُهُ عَنِ الْخَنَى وَ تَعْوِيدُهُ الْخَيْرَ وَ تَرْكُ الْفُضُولِ الَّتِي لَا فَائِدَةَ

 

  1. इमाम सज्जाद (अ.स)

जबान का हक ये है कि इसे बुरी बातो के कहने से दूर रखो और इसे अच्छी बातो की आदत डालो और उन बातो क छोड़ दो कि जिन का कोई फायदा नही है।

(मकारिमुल अखलाक़, पेज न. 419)


 امام على عليه السلام

    اَللِّسانُ سَبُعٌ إِن خُلِّىَ عَنهُ عَقَرَ.

  1. इमाम अली (अ.स)
    ज़बान एक दरिन्दा है, ज़रा आजाद कर दिया जाए को काट खाएगा।
    (नहजुल बलाग़ा, हदीस न. 59)

    

امام على عليه السلام

    اِحبِس لِسانَكَ قَبلَ أَن يُطيلَ حَبسَكَ وَ يُردىَ نَفسَكَ فَلا شَىءَ أَولى بِطولِ سَجنٍ مِن لِسانٍ يَعدِلُ عَنِ الصَّوابِ و يَتَسَرَّعُ إِلَى الجَوابِ.

  1. इमाम अली (अ.स)

अपनी जबान को कैद कर दो इस से पहले की ये तुम्हे एक लम्बी क़ैद मे डाल दे क्योकि कोई चीज़ भी उस जबान से ज़्यादा कैद होने की हकदार नही है कि जो सही रास्ते को छोड़ दे और हमेशा जवाब देने को बेताब रहती है।

(गुरारुल हिकम, पेज न. 214, हदीस न. 4180)


رسول اكرم صلى الله عليه و آله

    يُعَذِّبُ اللَّهُ اللِّسَانَ بِعَذَابٍ لَا يُعَذِّبُ بِهِ شَيْئاً مِنَ الْجَوَارِحِ فَيَقُولُ أَيْ رَبِّ عَذَّبْتَنِي بِعَذَابٍ لَمْ تُعَذِّبْ بِهِ شَيْئاً فَيُقَالُ لَهُ خَرَجَتْ مِنْكَ كَلِمَةٌ فَبَلَغَتْ مَشَارِقَ الْأَرْضِ وَ مَغَارِبَهَا فَسُفِكَ بِهَا الدَّمُ الْحَرَامُ وَ انْتُهِبَ بِهَا الْمَالُ الْحَرَامُ وَ انْتُهِكَ بِهَا الْفَرْجُ الْحَرَامُ

  1. रसूले अकरम (स.अ)

खुदा वंदे आलम जबान पर ऐसा अज़ाब नाज़िल करेगा कि जो बदन के किसी दूसरे हिस्से पर नाज़िल नही किया होगा तो जबान परवरदिगार से शिकवा करेगी कि बारे इलाहा। तूने (क्यो) मुझ पर ऐसा अज़ाब नाज़िल किया जो जो बदन के किसी दूसरे हिस्से पर नाज़िल नही किया तो अल्लाह उसे जवाब देगा कि तुझसे ऐसी बाते निकली है कि जो पूरब से पश्चिम तक फैल गई और उनकी वजह से (बहुत से) खूने नाहक़ बहे और बहुत से माल नाहक़ गारत हुऐ।
(उसूले काफी,  जिल्द 2, पेज न.115, हदीस न. 16)


  پيامبر صلى ‏الله ‏عليه ‏و ‏آله

     إِنَّ لِسَانَ الْمُؤْمِنِ وَرَاءَ قَلْبِهِ فَإِذَا أَرَادَ أَنْ يَتَكَلَّمَ بِشَيْ‏ءٍ يُدَبِّرُهُ بِقَلْبِهِ ثُمَّ أَمْضَاهُ بِلِسَانِهِ وَ إِنَّ لِسَانَ الْمُنَافِقِ أَمَامَ قَلْبِهِ فَإِذَا هَمَّ بِالشَّيْ‏ءِ أَمْضَاهُ بِلِسَانِهِ وَ لَمْ يَتَدَبَّرْهُ بِقَلْبِه‏

  1. रसूले अकरम (स.अ)

मोमीन की जबान उसके दिल के पीछे है वो पहले सोचता है फिर बोलता है लेकिन मुनाफिक की जबान उसके दिल के आगे है जब भी बोलना चाहता है बोल देता है उसके बारे मे सोचता नही है।
(तंबीहुल खवातिर, जिल्द न. 1, पेज न. 106)


امام على علیه السلام

    وَرَعُ الْمُنَافِقِ لَا يَظْهَرُ إِلَّا عَلَى لِسَانِه‏

  1. इमाम अली (अ.स)

मुनाफिक़ की परहेज़गारी सिर्फ उसकी ज़बान से जाहिर होती है।
(गुरारुल हिकम, पेज न. 459, हदीस न. 10509)


   امام على علیه السلام

    عِلمُ المُنافِقِ في لِسانِهِ وَ عِلمُ المُؤمِنِ في عَمَلِهِ

  1. इमाम अली (अ.स)

मुनाफिक़ का इल्म उसकी ज़बान पर और मोमीन का इल्म उसके किरदार मे दिखाई देता है।

امام على عليه‏ السلام

     عَوِّدْ لِسَانَكَ لِينَ الْكَلَامِ وَ بَذْلَ السَّلَامِ يَكْثُرْ مُحِبُّوكَ وَ يَقِلَّ مُبْغِضُوك

  1. इमाम अली (अ.स)

अपनी ज़बान को मीठी बातो और सलाम करने की आदत डालो ताकि तुम्हारे दोस्त ज़्यादा और दुश्मन कम हो।
(गुरारुल हिकम, पेज न. 435, हदीस न. 9946)


 پيامبر صلی الله علیه و آله

 مَن دَفَعَ غَضَبَهُ دَفَعَ اللّه‏ُ عَنهُ عَذابَهُ وَ مَن حَفِظَ لِسانَهُ سَتَرَ اللّه‏ُ عَورَتَهُ

  1. रसूले अकरम (स.अ)

जो अपने गुस्से को कंट्रोल कर लेता है खुदा उससे अजाब को हटा लेता है और जो अपनी ज़बान को कंट्रोल कर लेता है खुदा उसके ऐबो को छुपा लेता है।

(नहजुल फसाहा, पेज न. 767, हदीस न. 3004)


  امام باقر عليه‏ السلام

    لا یَسلَمُ أحَدٌ مِنَ الذُّنوبِ حَتَّی یَخزُنَ لِسانَهُ

  1. इमाम बाक़िर (अ.स)
    जब तक इंसान अपनी ज़बान पर कंट्रोल नही कर लेता, गुनाहो से नही बच सकता।

(तोहफुल उक़ूल, पेज न. 298)

 امام صادق عليه‏ السلام
     إِنَّ أَبْغَضَ خَلْقِ اللَّهِ عَبْدٌ اتَّقَى النَّاسُ لِسَانَه‏

  1. इमाम सादिक़ (अ.स)

बेशक खुदा वंदे आलम उस बंदे से सबसे ज़्यादा नफरत करता है जिसके ज़बान के शर से लोग उससे बचते हो।

(उसूले काफी,  जिल्द 2, पेज न. 323)


   امام علی عليه‏ السلام

     لا تَقُل ما لا تُحِبُّ أن يُقالَ لَكَ

  1. इमाम अली (अ.स)

किसी को ऐसी बात मत कहो कि जो तुम अपने बारे मे सुनना नही चाहते।
(तोहफुल उक़ूल, पेज न. 74)

 

हमास के वरिष्ठ नेता ने गाज़ा युद्धविराम पर सहमति के बाद ईरान समर्थक देशों का आभार जताया

हमास और इजरायली सरकार के बीच गाज़ा पट्टी में युद्धविराम पर सहमति बनने के बाद हमास ने ईरान सहित सभी समर्थक देशों का आभार जताया है।

हमास के वरिष्ठ वार्ताकार खालिद मिशअल ने कहा कि गाज़ा के लोगों ने "अद्वितीय साहस" का प्रदर्शन किया और संघर्ष विराम के लिए उनकी ओर से पूर्ण प्रयास किए गए।

समझौते के तहत मानवीय सहायता की आपूर्ति राफाह चौकी को पुनः खोलने और कैदियों के आदान-प्रदान पर सहमति बनी है। इसके तहत 1700 फिलिस्तीनी कैदियों को रिहा किया जाएगा, जिनमें 250 उम्रकैद कैदी शामिल हैं।

अमेरिका और मध्यस्थ देशों ने युद्ध की समाप्ति की पूर्ण गारंटी दी है। संघर्ष विराम की घोषणा "ऑपरेशन अलअक्सा तूफान" की पहली वर्षगांठ के अवसर पर की गई है।

 

हौज़ा ए इल्मिया अज़-ज़हरा (स.ल.) की शिक्षिका और प्रबंधक ने "हिजाब स्टाइल और धार्मिक पहचान का धीरे-धीरे इस्तेहाला" की प्रवृत्ति पर बात करते हुए कहा,हिजाब स्टाइल" लड़कियों के बीच नकारात्मक प्रतिस्पर्धा से लेकर पुरुषों की विविधता की चाहत तक, वर्तमान समाज का एक महत्वपूर्ण और विचारणीय मुद्दा है, जो हिजाब की वास्तविक अवधारणा के साथ स्पष्ट विरोधाभास रखता है।

हौज़ा ए इल्मिया अज़ज़हरा (स.ल.) की शिक्षिका और प्रबंधक सोग़रा नूर अफ़शान ने एक साक्षात्कार में हिजाब और स्टाइल के विषय पर चर्चा करते हुए कहा,"हिजाब" का अर्थ है श्रृंगार को छुपाना और दिखावे से परहेज करना, जबकि "स्टाइल" अधिकतर मामलों में दिखावा और ध्यान आकर्षित करने का पर्याय है जो हिजाब के दर्शन के बिल्कुल विपरीत है।

उन्होंने कहा,हिजाब स्टाइल" लड़कियों के बीच नकारात्मक प्रतिस्पर्धा से लेकर पुरुषों की विविधता की चाहत तक, वर्तमान समाज का एक महत्वपूर्ण और विचारणीय मुद्दा है जो हिजाब की वास्तविक अवधारणा के साथ स्पष्ट विरोधाभास रखता है।

सुश्री नूर अफ़शान ने कहा,हिजाब स्टाइल" के एक गंभीर नुकसान में लड़कियों के बीच नकारात्मक प्रतिस्पर्धा की प्रवृत्ति है जो पुरुषों में विविधता की चाहत को बढ़ावा देने के साथ-साथ जीवन में तलाक में वृद्धि का कारण बनती है।

हौज़ा ए इल्मिया अज़-ज़हेरा (स.ल.) अहवाज़ की शिक्षिका और प्रबंधक ने कहा,हिजाब स्टाइल" का एक और नुकसान उपभोक्तावादी संस्कृति में वृद्धि है। इसके अलावा जीवन में विफलता के कड़वे अनुभव और लगातार असंतुष्टि लड़कियों में नकारात्मक भावनाओं और बेचैनी को बढ़ाती हैं और कई मनोवैज्ञानिक और सामाजिक चुनौतियाँ पैदा करती हैं।

उन्होंने कहा,धर्म इस्लाम और हमारी धार्मिक संस्कृति में पवित्रता और हिजाब के स्थान को सही ढंग से समझने के लिए व्यावहारिक और शैक्षणिक सामग्री तैयार करना, हमारी बेटियों को इस निंदनीय प्रवृत्ति से बचा सकता है और 'राष्ट्रीय मीडिया और साइबर स्पेस' भी इस संदर्भ में सकारात्मक रोल मॉडल स्थापित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता हैं।

 

यमन के अंसारुल्लाह आंदोलन के राजनीतिक कार्यालय के सदस्य मोहम्मद अलफ़रह ने कहा है कि गाज़ा से संबंधित कोई भी समझौता तब तक स्वीकार्य नहीं है जब तक कि वह संपूर्ण अधिकृत फिलिस्तीन में एक स्वतंत्र फिलस्तीनी राज्य की स्थापना और अल-कुद्स को उसकी राजधानी के रूप में मान्यता देने का परिणाम न दे।

यमन के अंसारुल्लाह आंदोलन के राजनीतिक कार्यालय के सदस्य मोहम्मद अल-फ़रह ने कहा है कि गाजा से संबंधित कोई भी समझौता तब तक स्वीकार्य नहीं है, जब तक कि वह संपूर्ण अधिकृत फिलिस्तीन में एक स्वतंत्र फिलस्तीनी राज्य की स्थापना और अल-कुद्स को उसकी राजधानी के रूप में मान्यता देने का परिणाम न दे।

मोहम्मद अल-फ़रह ने कहा कि यमनी जनता पूरी सजगता के साथ फिलस्तीनी गुटों और इज़राइली दुश्मन के बीच हो रहे हालिया समझौते को देख रही है।

उन्होंने अल-मयादीन से बातचीत में कहा,हम उस हर प्रयास का समर्थन करते हैं जो फिलस्तीनी जनता के दुख-दर्द कम करने, आक्रामकता रोकने, घेराबंदी हटाने और फिलस्तीनी कैदियों की रिहाई सुनिश्चित करने के लिए किया जा रहा है।

अंसारुल्लाह नेता ने आगे कहा कि उनका आंदोलन उस हर समझौते का स्वागत करता है जो फिलस्तीनियों के कानूनी अधिकारों और राष्ट्रीय सिद्धांतों की रक्षा करे।

उन्होंने फिलस्तीनी मुजाहिद संगठनों और प्रतिरोधी गुटों को श्रद्धांजलि देते हुए कहा,हम अपने उन भाइयों की कद्र करते हैं जो ईमानदारी और जिम्मेदारी के साथ फिलस्तीनी राष्ट्र के हितों के लिए सक्रिय हैं।

मोहम्मद अलफ़रह ने इज़राइल को आक्रामक और अपराधी पक्ष बताते हुए कहा कि वही फिलस्तीनी जनता के खिलाफ सभी अत्याचारों और युद्ध अपराधों का जिम्मेदार है।

उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि कोई भी समझौता पूरी तरह से आक्रामकता की समाप्ति, घेराबंदी के अंत, और फिलस्तीनी जनता की आज़ादी व स्वायत्तता के सपने की पूर्ति का कारण बनना चाहिए।

अंत में उन्होंने आशा व्यक्त की कि यह समझौता फिलस्तीनी पंक्तियों में एकता, प्रतिरोध की मजबूती, और फिलस्तीनी जनता की इज्जत व गरिमा की सुरक्षा का कारण बनेगा।

 

शरीअत के सभी वाजिब हुक्म और सभी हराम कामों से दूरी के हुक्म, इंसान की आत्मिक जड़ों को मज़बूत करने और लोक-परलोक के सभी मामलों को सुधारने के लिए हैं, चाहे वह व्यक्तिगत स्तर पर सुधार हो या सामाजिक स्तर पर सुधार हो।

हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने फरमाया,शरीअत के सभी वाजिब हुक्म और सभी हराम कामों से दूरी के हुक्म, इंसान की आत्मिक जड़ों को मज़बूत करने और लोक-परलोक के सभी मामलों को सुधारने के लिए हैं।

चाहे वह व्यक्तिगत स्तर पर सुधार हो या सामाजिक स्तर पर सुधार हो, ये अल्लाह की तरफ़ से निर्धारित दवाओं का पैकेज है, हाँ इतना ज़रूर है कि इस पैकेज में कुछ तत्व निर्णायक हैसियत रखते हैं और नमाज़ इन तत्वों में शायद सबसे बुनियादी तत्व है।

मुल्क के नौजवान तबक़े में दूसरों से ज़्यादा नमाज़ को अहमियत दी जानी चाहिए।नमाज़ से नौजवान का दिल रौशन हो जाता है, उम्मीदों के दरीचे खुल जाते हैं,आत्मा में ताज़गी आ जाती है, सुरूर की कैफ़ियत आ जाती हैऔर यह स्थिति ज़्यादातर नौजवानों से मख़सूस है।

 

नौगाँवा सादात दीनी शिक्षण संस्थान हौज़ा ए इल्मिया जामिया अलमुनतज़िर में साप्ताहिक दर्स-ए-अख़लाक़ का आयोजन किया गया, जिसमें जामिया के शिक्षक हुज्जतुल इस्लाम मौलाना पैग़म्बर अब्बास आबिदी ने तालिबे इल्म को अख़लाक़ के महत्व से अवगत कराया।

सादात दीनी शिक्षण संस्थान हौज़ा ए इल्मिया जामिया अलमुनतज़िर में साप्ताहिक दर्स-ए-अख़लाक़ का आयोजन किया गया, जिसमें जामिया के शिक्षक हुज्जतुल इस्लाम मौलाना पैग़म्बर अब्बास आबिदी ने तालिबे इल्म को अख़लाक़ के महत्व से अवगत कराया।

अख़लाक़ के शिक्षक ने छात्रों को इल्म-ए-अख़लाक़ हासिल करने और इख़्लास  पर ज़ोर दिया तथा सहनशीलता और सब्र की भी नसीहत की।

मौलाना आबिदी ने छात्रों को सच बोलने और वादा पूरा करने पर भी ज़ोर देते हुए कहा कि पैग़म्बर-ए-इस्लाम (स.अ.व.व.) ने अपने बिस'अत का उद्देश्य ही अख़लाक़ (नैतिकता का उत्कृष्ट स्वरूप) बताया है। शिक्षक ने दर्स-ए-अख़लाक़ की उपयोगिता पर भी प्रकाश डाला।

बता दें कि जामिया अल-मुनतज़िर में हर हफ़्ते बुधवार के दिन दर्स-ए-अख़लाक़ का आयोजन होता है। दर्स-ए-अख़लाक़ में सभी छात्रों के साथ-साथ शिक्षकों ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।

अंत में, जामिया के प्रबंधक हुज्जतुल इस्लाम मौलाना कुर्रतुल ऐन मुजतबा आबिदी ने छात्रों को दर्स-ए-अख़लाक़ की प्रोत्साहन दिलाई और उनकी हाज़िरी पर उन्हें हौसला अफ़ज़ाई भी किया।

 

क़ुम अल मुक़द्देसा, हरम ए हज़रत ए मासूमा सल्लल्लाहु अलैहा में स्थित मस्जिद-ए-आज़म में अपने साप्ताहिक दर्स-ए-अख़लाक़ में आयतुल्लाहिल उज़्मा जवादी आमोली ने कहा कि कुरआन और अहले-ए-बैत अलैहिमुस्सलाम की हर रिवायत और सोकुत हक़ है, और अगर हम उन जैसे नहीं बन सकते तो कम से कम उनके मकतब के शागिर्द जरूर बनें यही हक़ीक़ी कामयाबी का रास्ता है।

हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा जवादी आमोली ने अपने दर्स-ए-अख़लाक़ में नहजुल बलागा के कलामात-ए-क़िसार की व्याख्या करते हुए फरमाया कि इमाम (अ.स.) ने नहजुल बलागा की हिकमत नंबर 182 में फरमाया,जहाँ हिक्मत भरी बात कहना ज़रूरी हो, वहाँ खामोशी में कोई भलाई नहीं जैसे किसी जाहिल से बात करने में भी कोई भलाई नहीं यानी जहाँ हक़ कहने की ज़रूरत हो वहाँ चुप रहना जायज़ नहीं।

उन्होंने कहा कि कुरआन कभी खामोश होता है और कभी बोलता है, लेकिन दोनों हालत में हक़ पर है। अहल-ए-बैत (अ.स.) भी ऐसे ही हैं उनका कलाम भी हक़ है और उनकी खामोशी भी हक़ है।

पैगंबर-ए-अकरम (स.अ.) के बारे में फरमाया गया है कि उनका कलाम बयान है और उनकी खामोशी ज़बान है यानी जब वे बोलते हैं तो हिदायत करते हैं और जब खामोश होते हैं तो उस खामोशी में भी एक पैगाम होता है।

आयतुल्लाह जवादी आमोली ने कहा कि अहल-ए-बैत (अ.स.) कुरआन की मूजस्म रूप हैं उनकी ज़िंदगी सरापा वही और हक़ है और हमें भी चाहिए कि अपने गुफ्तार (वचन), किरदार और यहाँ तक कि खामोशी को भी कुरआनी बनाएँ।

उन्होंने हज़रत ज़ैनब कुबरा स.अ.के कथन ""فَوَاللّٰهِ لَا تَمْحُوا ذِکْرَنَا وَ لَا تُمیْتُ وَحْیَنَا"
अल्लाह की क़सम! तुम हमारे ज़िक्र को मिटा नहीं सकते और न ही हमारी वही को मार सकते हो) का ज़िक्र करते हुए फरमाया कि उस ज़माने में न अर्बेन था न मातम की महफिलें, मगर सैय्यदा ज़ैनब (स.अ.) ने जो हक़ कहा वह ज़िंदा-ओ-जावेद है, क्योंकि हक़ कभी मिटता नहीं है।

आयतुल्लाह जवादी आमोली ने कहा,राह-ए-वही अब भी खुली है। हमसे यह उम्मीद नहीं कि हम आहल-ए-बैत (अ.स.) जैसे बन जाएँ, मगर हम उनके मकतब के शागिर्द बन सकते हैं। सबसे बेहतर रास्ता यह है कि इंसान खुद को परखे, अगर बुलंदी पाए तो शुक्र करे और अगर कमी देखे तो इस्लाह की कोशिश करे।

आख़िर में उन्होंने दुआ की कि खुदावंद ए मुतआल इस्लाम व मुस्लिमीन को इज़्ज़त अता करे, मज़लूमान ए ग़ाज़ा की मदद फरमाए।

 

 

 आयतुल्लाह हसन ज़ादेह आमोली ने मन्क़ूल किया है कि जब उन्होंने खिल्क़त-ए-इंसान (इंसान की पैदाइश) के मक़सद और इबादत व मारिफ़त के आपसी तअल्लुक़ के बारे में अल्लामा तबातबाई से सवाल किया तो उन्होंने बेहद मुख्तसर लेकिन अमीक जुमले में फ़रमाया,हगर चे एक नफर यानी,भले ही सिर्फ़ एक ही शख्स क्यों न हो।

आयतुल्लाह हसन ज़ादेह आमोली ने मन्क़ूल किया है कि जब उन्होंने खिल्क़त-ए-इंसान (इंसान की पैदाइश) के मक़सद और इबादत व मारिफ़त के आपसी तअल्लुक़ के बारे में अल्लामा तबातबाई से सवाल किया तो उन्होंने बेहद मुख्तसर लेकिन अमीक जुमले में फ़रमाया,हगर चे एक नफर यानी,भले ही सिर्फ़ एक ही शख्स क्यों न हो।

आयतुल्लाह हसन ज़ादेह बयान करते हैं:

एक रात मैं सोच रहा था कि आख़िर अल्लाह ने इंसान को पैदा क्यों किया? कुरआन की आयत وما خلقت الجن والانس الا لیعبدون
और मैंने जिन्न और इंसान को केवल इसलिए पैदा किया है कि वे मेरी इबादत करें।पर और भी ग़ौर किया इसकी तफ़सीर में कहा गया है 'लिया'बुदून' यानी 'लितअरिफ़ून लेकिन एक शक यह था कि मारिफ़त के बिना इबादत मुमकिन नहीं है, और जब हमारी मारिफ़त अल्लाह के मुक़ाबले में कुछ भी नहीं है, तो फिर इबादत कैसे होगी?

सुबह सबसे पहले मैं अल्लामा तबातबाई की ख़िदमत में हाज़िर हुआ और अर्ज़ किया,हज़रत उस्ताद! तो फिर आख़िर कौन है जो अल्लाह की इबादत करेगा?

अल्लामा तबातबाई ने बेहद मुख्तसर जवाब दिया,हगर चे एक नफर यानी!(भले ही सिर्फ़ एक ही शख़्स क्यों न हो)।

यह सुनकर मेरे दिल को सुकून मिला। फ़ौरन ज़हन में इमाम ए ज़माना अ.स.की ज़ाते गरामी याद आई और याद आया कि ज़मीन कभी भी उस कामिल व मासूम हस्ती से ख़ाली नहीं रहती।

दूसरे सभी इंसान,इंसान ए कामिल के साए में हैं और ख़ल्क़त का हक़ीक़ी मक़सद उसी कामिल मौजूद की हस्तियत की तरफ लौटता है।यही वह नुक्ता है जिसे अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने वाज़ेह फ़रमाया,
فَإِنَّا صَنَائِعُ رَبِّنَا وَالنَّاسُ بَعْدُ صَنَائِعُ لَنَا

निस्संदेह हम अपने रब की सीधी रचना हैं और उसके बाद के लोग हमारी रचना (सनअत) हैं। यानी, बाक़ी सभी लोग हम अहलेबैत के लिए पैदा किए गए हैं।

 

 ग़ज़्ज़ा पर इजरायली आक्रमण के 2 साल पूरे हो चुके हैं। 7 अक्टूबर 2023 से लेकर आज तक इजरायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने ग़ज़्ज़ा पर हमले जारी रखने और "वैश्विक सहानुभूति" हासिल करने के लिए कई झूठ बोले हैं। वैश्विक मीडिया, इजरायली मीडिया और सोशल मीडिया एल्गोरिदम के जरिए इजरायल अपने झूठ को "सच" साबित करने के लिए बड़े पैमाने पर विज्ञापन अभियान चला रहा है।

ग़ज़्ज़ा पर इजरायली आक्रमण के 2 साल पूरे हो चुके हैं। 7 अक्टूबर 2023 से लेकर आज तक इजरायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने ग़ज़्ज़ा पर हमले जारी रखने और "वैश्विक सहानुभूति" हासिल करने के लिए कई झूठ बोले हैं। वैश्विक मीडिया, इजरायली मीडिया और सोशल मीडिया एल्गोरिदम के जरिए इजरायल अपने झूठ को "सच" साबित करने के लिए बड़े पैमाने पर विज्ञापन अभियान चला रहा है, लेकिन इस दौरान वैश्विक संस्थाओं, मीडिया और मानवाधिकार संगठनों ने इन झूठ का पर्दाफाश किया है। जानिए नेतन्याहू के 9 बड़े झूठ के बारे में:

झूठ नंबर एक:

हमास ने 40 इजरायली बच्चों के सिर कलम किए।
हक़ीक़त:
किसी भी बच्चे के सिर कलम होने का कोई सबूत या तस्वीर कभी पेश नहीं की गई। यह झूठ इजरायली सेना और मीडिया के जरिए फैलाया गया, बाद में खुद इजरायली अधिकारियों ने स्वीकार किया कि यह प्रचार था।

झूठ नंबर 2:

हमास ने 7 अक्टूबर को सामूहिक बलात्कार और यौन हिंसा की।
हक़ीक़त:
इजरायली स्वयंसेवी संगठन ZAKA के एक सदस्य ने बाद में स्वीकार किया कि उसके दावे के कोई सबूत नहीं थे। इसके विपरीत, इजरायली सैनिकों के हाथों फिलीस्तीनी कैदियों के साथ यौन हिंसा के सबूत मौजूद हैं।

झूठ नंबर 3:

हमास फ़िलीस्तीनी नागरिकों को मानवीय ढाल के तौर पर इस्तेमाल करता है।
हक़ीक़त:
इस आरोप के कोई सबूत नहीं हैं। अंतर्राष्ट्रीय निरीक्षकों और डॉक्टरों ने बताया कि अस्पतालों या नागरिक इलाकों में हमास की सैन्य उपस्थिति नहीं थी। इसके विपरीत, इजरायली सेना खुद फ़िलीस्तीनियों को मानवीय ढाल बनाती रही है।

झूठ नंबर 4:हमास इंसानी सहायता चुराता है।

हक़ीक़त:
अमेरिकी एजेंसी USAID और खुद इजरायली सेना ने स्वीकार किया कि हमास द्वारा इंसानी सहायता चुराने का कोई सबूत नहीं है। बाद में नेतन्याहू ने स्वीकार किया कि सहायता वास्तव में आपराधिक गिरोहों द्वारा लूटी जा रही थी।

झूठ नंबर 5:फ़िलीस्तीनी पत्रकार हमास के लिए काम करते हैं।

हक़ीक़त:
अल-जज़ीरा और अन्य मीडिया संस्थानों ने इन आरोपों का खंडन किया। इजरायल ने बाद में उन्हीं पत्रकारों को मार डाला। रॉयटर्स ने भी साबित किया कि जिन कैमरों को इजरायल ने निशाना बनाया, वे हमास के नहीं, बल्कि उनके अपने थे।

झूठ नंबर 6:हमास युद्ध विराम समझौतों में बाधा डाल रहा है।

हक़ीक़त:
हमास ने कतर, मिस्र, तुर्की और अमेरिका की मध्यस्थता में पेश किए गए कई युद्ध विराम समझौते स्वीकार किए, लेकिन नेतन्याहू ने बार-बार उन्हें अस्वीकार कर दिया ताकि वह अपनी राजनीतिक बचाव के लिए युद्ध जारी रख सके।

झूठ नंबर 7:फ़िलीस्तीनियों की मौतों के आंकड़े बढ़ा-चढ़ाकर पेश किए जा रहे हैं।
हक़ीक़त:
फ़िलीस्तीनी स्वास्थ्य मंत्रालय, संयुक्त राष्ट्र और स्वतंत्र निरीक्षकों के अनुसार अब तक 67,000 से अधिक फ़िलीस्तीनी शहीद हो चुके हैं, जबकि वास्तविक संख्या 2 लाख के करीब हो सकती है।

झूठ नंबर 8:

इजरायली सेना सिर्फ हमास के ठिकानों पर सटीक हमले करती है।
हक़ीक़त:
दर्जनों रिपोर्ट्स साबित करती हैं कि इजरायल ने स्कूलों, अस्पतालों, घरों और शरणार्थी शिविरों पर अंधाधुंध बमबारी की है, जिसमें अधिकांश नागरिक, महिलाएं और बच्चे मारे गए।

झूठ नंबर 9:

इजरायली सेना दुनिया की सबसे नैतिक सेना है।

हक़ीक़त:
एमनेस्टी इंटरनेशनल और ह्यूमन राइट्स वॉच ने इजरायली सेना पर युद्ध अपराध, लूटपाट, कैदियों पर अत्याचार और सामूहिक हत्या के आरोप लगाए हैं। वीडियो में सैनिकों को फिलीस्तीनी घरों को लूटते और नागरिकों को मारते देखा जा चुका है।

 

 हमीद हस्साम की किताब "वक्ती महताब-ए-गुम शुद से लिया गया यह वाकया उस माँ के यक़ीन और मजबूती की तस्वीर पेश करता है, जो बेटे की शहादत की ख़बर सुनते वक़्त भी कुरआन से सुकून पाती है और ईमान के चिराग़ से सब्र का रास्ता रौशन करती है।

हमीद हस्साम की किताब "वक्ती महताब-ए-गुम शुद से लिया गया यह वाकया उस माँ के यक़ीन और मजबूती की तस्वीर पेश करता है, जो बेटे की शहादत की ख़बर सुनते वक़्त भी कुरआन से सुकून पाती है और ईमान के चिराग़ से सब्र का रास्ता रौशन करती है।

अली ख़ुशलफ़ बयान करते हैं,मेरी माँ कुरआन पढ़ रही थी और उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे मैंने धीरे से कहा कि जफ़र को मामूली चोट लगी है और उसे अस्पताल ले जाया गया है। माँ ने पूरी शांति से मेरी आँखों में देखा और कहा,जफ़र शहीद हो गया है।

मैंने घबरा कर पूछा:किसने कहा?

माँ ने मुस्कुरा कर जवाब दिया:कुरआन ने!

फिर उसने यह आयत तिलावत की:और तुम हरगिज़ उन लोगों को मुर्दा न समझो जो अल्लाह की राह में मारे गए....(सूरह आल-ए-इमरान, आयत 169)

माँ ने कहा:ख़ुदा कह रहा है कि वह शहीद हुआ है और तू कहता है नहीं?

बेटे ने लिखा कि:माँ के ईमान ने मेरे दिल को सुकून दिया, मगर मैं यह कहने की हिम्मत नहीं कर सका कि तुम्हारे बेटे का शव नहीं मिला।

यह वाकया न सिर्फ़ एक शहीद की वालिदा के ईमान और सब्र की दास्तान बयान करता है बल्कि इस हक़ीक़त की भी गवाही देता है कि कुरआन पर यक़ीन रखने वाला दिल, मुसीबत के वक़्त भी नहीं डगमगाता।

स्रोत: हमीद हुसाम, "वक्त-ए-महताब-ए-गुम शुद", पृष्ठ .642