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ईरानी सवात टीम ने विश्व युवा चैंपियनशिप और सवात विश्व कप में 2 स्वर्ण, 1 रजत और 6 कांस्य पदक जीतकर शानदार सफलता हासिल की।

विश्व युवा चैंपियनशिप 15-17 वर्ष आयु वर्ग में ईरान की उपलब्धियां:

सज्जाद बलोची 65 किग्रा से कम - स्वर्ण पदक

 सज्जाद दारिनी 60 किग्रा से कम - कांस्य पदक

 महदी दारिनी 80 किग्रा से कम - कांस्य पदक

 असल अलीजानी लड़कियों का 48 किग्रा से कम - कांस्य पदक

 सवात विश्व कप वरिष्ठ वर्ग में ईरान की उपलब्धियां:

 मोहम्मद शहाब शहाबीनेजाद 48 किग्रा से कम - स्वर्ण पदक

 अमीरमोहम्मद पूरअश्रफ 33 किग्रा से कम - रजत पदक

 अमीरमोहम्मद रसूली अस्ल 37 किग्रा से कम रेजा तालेबी 42 किग्रा से कम और शीमा रहीमियान महिला 65 किग्रा से कम - कांस्य पदक

 इस प्रदर्शन ने ईरानी सवाते खिलाड़ियों की वैश्विक प्रतिस्पर्धा में बढ़ती क्षमता को प्रदर्शित किया है।

 ईरानी युवा सांडा खिलाड़ियों की एशियाई चैंपियनशिप में जीत का सिलसिला जारी

 

4 से 8 अगस्त तक चीन के जियांगयिन में आयोजित एशियाई युवा वुशू चैंपियनशिप के 12वें संस्करण में ईरानी खिलाड़ियों ने शानदार प्रदर्शन जारी रखा। रविवार के सत्र में पांच ईरानी सांडा खिलाड़ियों ने प्रतिस्पर्धा की, जिनमें से चार ने जीत दर्ज की:

 45 किग्रा: एहसान गोहरी ने तुर्कमनिस्तान के अब्दुल्ला मोहम्मदोव को लगातार दो राउंड में हराकर अगले दौर में प्रवेश किया।

 56 किग्रा: रज़ा खानकशी के प्रतिद्वंद्वी मकाऊ के चाई लेक मेंग ने मैच नहीं खेला, जिससे उन्हें बिना खेले जीत मिली।

 60 किग्रा: अमीरहुसैन मोहम्मदी ने अफ़ग़ानिस्तान के इरफ़ान ग़फूरी को डिस्क्वालीफाई कर अगले दौर में जगह बनाई।

 65 किग्रा: अली रेज़ाई ने फिलीपींस के जॉनी एलन फिल्टेंस को दो राउंड में श्रेष्ठ प्रदर्शन कर हराया और आगे बढ़े।

 ईरानी टीम ने इस प्रतियोगिता में अपनी तकनीकी श्रेष्ठता और मुकाबले के ज़ज्बे को साबित किया है। अगले दौर की तैयारियों को लेकर टीम के कोच ने संतोष जताया है।

 

 रूसी सोयुज रॉकेट द्वारा ईरानी उपग्रह "नाहीद-2" का प्रक्षेपण अंतरराष्ट्रीय मीडिया में व्यापक रूप से चर्चित हुआ है।

ईरानी उपग्रह "नाहीद-2" को शुक्रवार 25 जुलाई 2025 को रूसी प्रक्षेपण यान सोयुज के ज़रिए वोस्तोचन्य कॉस्मोड्रोम से अंतरिक्ष में भेजा गया।

"यूरोन्यूज़" ने ईरानी उपग्रह "नाहीद-2" के प्रक्षेपण को सफ़ल बताते हुए इसे ईरान और रूस के बीच मजबूत संबंधों का प्रतीक कहा है।

पाकिस्तानी समाचार पत्र "डॉन न्यूज़" ने इसे ईरान-रूस के बीच बढ़ते अंतरिक्ष सहयोग का सबूत बताया।

 एसोसिएटेड प्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक ईरानी उपग्रह "नाहीद-2" एक संचार उपग्रह है जिसकी परिचालन आयु दो साल है। अलजज़ीरा टीवी चैनल ने भी इस उपग्रह को ईरानी इंजीनियरों की नवीनतम उपलब्धि बताया है।

 एक भारतीय चैनल ने इस मिशन को रूसी बहु-उपग्रह कार्यक्रम का हिस्सा बताया जिसका उद्देश्य वैज्ञानिक, अनुसंधान और वाणिज्यिक उपग्रहों को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करना है।

 टाइम्स ऑफ इंडिया ने पश्चिमी देशों के नकारात्मक दृष्टिकोण की जानकारी देते हुए बताया: "पश्चिमी देशों का दावा है कि ईरान का अंतरिक्ष प्रयास मिसाइल कार्यक्रम के विकास के उद्देश्य से किया जा रहा है, जबकि तेहरान इस बात पर जोर देता है कि यह कार्यक्रम पूरी तरह से शांतिपूर्ण और वैज्ञानिक है!"

 चीनी मीडिया "शंघाई आई" ने बताया कि जिस आधार से ईरानी उपग्रह "नाहीद-2" लॉन्च किया गया था वह रूसी अंतरिक्ष एजेंसी के नियंत्रण में है और ग़ैर-सैन्य प्रक्षेपणों के लिए उपयोग किया जाता है - एक ऐसा मुद्दा जिसने पश्चिमी चिंताओं को बढ़ाया है।

 वाशिंगटन पोस्ट और इंडिपेंडेंट ने भी ईरानी उपग्रह "नाहीद-2" के प्रक्षेपण को ईरान और रूस के मजबूत संबंधों का संकेत बताया।

 अमेरिकी न्यूजवीक ने इन संबंधों को रणनीतिक सहयोग को गहरा करने और अमेरिका के नेतृत्व वाले पश्चिमी देशों के लिए चिंता का कारण बताया, जिसका कारण पश्चिमी प्रतिबंधों की अप्रभावीता को ठहराया। यह प्रक्षेपण पश्चिमी दबाव के बीच रूस-ईरान तकनीकी संबंधों की गहराई को दर्शाता है और ईरान की उपग्रह प्रौद्योगिकी में निरंतर प्रगति को उजागर करता है। इस उपलब्धि से ईरान ने न केवल अपनी क्षमताओं को बढ़ाया है बल्कि एक स्पष्ट राजनीतिक संदेश भी दिया है।

 इजराइली टाइम्स ने रूस-ईरान रणनीतिक सहयोग समझौते का हवाला देते हुए रूसी अंतरिक्ष केंद्र से ईरानी उपग्रह "नाहीद-2" के सफल प्रक्षेपण पर अपनी नाराज़गी व्यक्त की और याद दिलाया कि रूस ने ईरान पर इज़राइल और अमेरिकी हमलों की कड़ी निंदा की है। 

 

मिन्हाजुल कुरआन पाकिस्तान के प्रमुख डॉ. ताहिरूल कादरी ने ग्लासगो, स्कॉटलैंड में उम्मत की एकता और सद्भाव सम्मेलन में भाषण देते हुए कहा कि अगर विचार और दृष्टि में विस्तार हो तो हम एक जैसे न होते हुए भी एक हो सकते हैं। सभी मसलक अगर ज्ञान और शोध के आधार पर एक-दूसरे से स्वस्थ संवाद करते रहें, तो समाज में केवल भलाई ही फैलेगी इस्लाम दिलों को जोड़ने वाला दिव्य धर्म है।

मिन्हाजुल कुरआन के संस्थापक डॉ. मुहम्मद ताहिरूल कादरी ने ग्लासगो के जामिया अल फुरकान में बैन अलमसालिक सद्भाव और उम्मत की एकता सम्मेलन में कहा कि तकफ़ीर और तौहीन (अपमान) से उम्मत कमज़ोर हो रही है।

अगर हमारी सोच विस्तृत हो, तो हम एक जैसे न होते हुए भी एक हो सकते हैं इस सम्मेलन में सभी मकतब-ए-फिक्र के प्रमुख विद्वानों, धर्मशास्त्रियों, इमामों और शिक्षकों ने बड़ी संख्या में भाग लिया। 

यह स्कॉटलैंड में अपनी तरह का पहला और सबसे बड़ा सम्मेलन था जामिया अल फुरकान पहुंचने पर यूके इस्लामिक मिशन के प्रमुख सैयद तुफैल शाह और डॉ. जावेद नदवी ने अन्य विद्वानों के साथ डॉ. ताहिरूल कादरी का स्वागत किया। 

डॉ. ताहिरूल कादरी ने अपने भाषण में कहा,अगर सभी मसलक ज्ञान और शोध के आधार पर एक-दूसरे से स्वस्थ संवाद करें, तो समाज में केवल अच्छाई ही फैलेगी।

इस्लाम दिलों को जोड़ने वाला दिव्य धर्म है। अगर धर्म की शिक्षा, प्रचार और प्रसार से दिल जुड़ने की बजाय टूट रहे हैं, सुलह की जगह टकराव बढ़ रहा है, तो हमें तुरंत अपने नफ्स पर नियंत्रण करना चाहिए।

जिस तरह शरीर के सभी अंग मिलकर एक स्वस्थ शरीर बनाते हैं, उसी तरह उम्मत के विभिन्न मसलक इस्लाम के अलग-अलग पहलुओं को दर्शाते हैं कुछ मसलक दिल की तरह आध्यात्मिकता और प्रेम पर ज़ोर देते हैं, तो कुछ दिमाग की तरह ज्ञान और तर्क को महत्व देते हैं।

कुछ आँखों की तरह शरियत के बाहरी नियमों का पालन करते हैं, तो कुछ हाथों की तरह सेवा और समाज सुधार को धर्म की रूह मानते हैं।

अगर कोई मसलक खुद को ही सही मानकर दूसरों की तकफ़ीर करने लगे, तो इस्लाम को नुकसान होगा और उम्मत कमज़ोर होगी। एकता का मतलब एकरूपता नहीं, बल्कि विविधता में एकता ढूंढना है।इस प्रकार, उन्होंने मुस्लिम समुदाय के भीतर सहिष्णुता, संवाद और एकता की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।

 

 

एक अमेरिकी अख़बार ने रिपोर्ट दी कि वाइट हाउस का बेन्यामीन नेतन्याहू पर महत्वपूर्ण प्रभाव है, क्योंकि ज़ायोनी शासन के इस प्रधानमंत्री का मानना है कि अमेरिका ही उनके राष्ट्र के वजूद की एकमात्र वजह है।

अमेरिकी अख़बार वॉल स्ट्रीट जर्नल के अनुसार, एक वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारी ने स्पष्ट किया: वाइट हाउस का इज़राइल के साथ घनिष्ठ समन्वय है और नेतन्याहू पर उल्लेखनीय प्रभाव है, क्योंकि इज़राइल का प्रधानमंत्री जानता है कि अमेरिका वास्तव में इज़राइल के अस्तित्व का एकमात्र आधार है।

 अमेरिकी अख़बार ने लिखा: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प समस्याएं उठने पर सीधे इज़राइली प्रधानमंत्री बेन्यामीन नेतन्याहू से बात करते हैं। हाल ही में, ग़ज़ा पट्टी में एक कैथोलिक चर्च पर इस शासन के हमले के बाद, ट्रंप ने नेतन्याहू से बात की और उनसे घटना के बारे में एक बयान जारी करने को कहा।"

 अख़बार ने आगे लिखा: "लेकिन हाल की कुछ आक्रामक कार्रवाइयों, जैसे चर्चों पर हमले ने इज़राइल के प्रमुख सहयोगी (अमेरिका) की नाराज़गी भड़काई है, जिससे ट्रम्प प्रशासन को इस शासन की गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए हस्तक्षेप करना पड़ा।

 वॉल स्ट्रीट जर्नल ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि "हालिया दिनों में, ट्रम्प प्रशासन ने सीरिया और ग़ज़ा में इज़राइल की कार्रवाइयों पर नाराज़गी ज़ाहिर की थी।

वहीं, डोनल्ड ट्रम्प के समर्थकों ने "मैगा" (Make America Great Again) आंदोलन में इज़राइली प्रधानमंत्री के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति के समर्थन की आलोचना तेज़ कर दी है। उन्हें चिंता है कि इससे अमेरिका पहले से भी ज़्यादा गहरे तक क्षेत्रीय युद्धों में फँस सकता है।

इज़राइली सरकार ने इसी महीने सीरिया की राजधानी दमिश्क में सेना के मुख्यालय और राष्ट्रपति भवन पर बमबारी की, यह दावा करते हुए कि वह अल्पसंख्यक दुरूज़ कम्युनिटी को सांप्रदायिक हिंसा से बचा रही थी।

 वॉल स्ट्रीट जर्नल का विश्लेषण है कि ट्रम्प प्रशासन ज़ायोनी शासन की कुछ आक्रामक कार्रवाइयों से नाराज़ तो है, लेकिन पहले के समर्थन के कारण वह स्वयं इसकी हिम्मत बढ़ाने के लिए ज़िम्मेदार है।

अख़बार ने लिखा: हाल ही के दिनों में इज़राइल का अधिक मुखर होना काफ़ी हद तक ट्रम्प प्रशासन के समर्थन का नतीजा है। जून में ईरान के ख़िलाफ़ इज़राइली हमलों में अमेरिका के शामिल होने का ट्रंप का फ़ैसला पहली बार दोनों देशों को एक साथ युद्ध में ले आया, जिससे इज़राइल को यह विश्वास हो गया कि अमेरिका पश्चिम एशिया में उसके लक्ष्यों का समर्थन करेगा।

"डैन शापिरो" ने, जो बराक ओबामा के कार्यकाल में अमेरिका के इज़राइली राजदूत थे, कहा: "सीरिया और ग़ज़ा में हालिया बमबारी को लेकर तनाव आंशिक रूप से अमेरिका के मिश्रित संदेशों और इज़राइल की ग़लतफ़हमी की वजह से है।

अख़बार के अनुसार, "ट्रम्प प्रशासन ने पहले ग़ज़ा और लेबनान के ख़िलाफ़ इज़राइली कार्रवाइयों को हरी झंडी दिखाई थी, और पिछले महीने नेतन्याहू द्वारा ईरान पर हमला करने पर भी उसे रोका नहीं लेकिन सीरिया के मामले में, अमेरिका ने पहले इज़राइल की चिंताओं को स्वीकार किया, फिर उसे रोक दिया।

 "कर्ट मिल्स" ने, रूढ़िवादी पत्रिका "अमेरिकन कंज़र्वेटिव" के प्रमुख, जो ट्रंप की "अमेरिका फ़र्स्ट" नीति के समर्थक हैं, का कहना है : "वह (ट्रम्प) इज़राइल को और युद्धों की ओर धकेल रहा है, और अमेरिका को भी उसमें घसीट रहा है। नेतन्याहू जब फ़ैसले लेता है, तो वह हिम्मत (या बेबाकी) दिखाते हुए अमेरिका से समर्थन माँगता है। इससे एक अत्यधिक अस्थिर स्थिति पैदा होती है।"

 

 

बग़दाद इराक के प्रमुख धार्मिक नेता और बग़दाद के इमाम ए जुमआ आयतुल्लाह सैयद यासीन मूसवी ने इस सप्ताह के जुमआ के खुत्बे में कहा कि हश्शुद अलशाबी से संबंधित कानून पर अमेरिकी दबाव इराक की संप्रभुता का खुला उल्लंघन है।

इराक के प्रमुख धार्मिक नेता और बग़दाद के जुमआ के इमाम आयतुल्लाह सैयद यासीन मूसवी ने इस सप्ताह के जुमआ के खुत्बे में कहा कि हश्शुद अलशाबी से संबंधित कानून पर अमेरिकी दबाव इराक की संप्रभुता का खुला उल्लंघन है। 

अमेरिकी विदेश मंत्री द्वारा इराकी प्रधानमंत्री को हश्शुद अलशाबी कानून के बारे में चेतावनी दिए जाने पर आयतुल्लाह मूसवी ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा,क्या हम अमेरिका की कॉलोनी बन चुके हैं? सच्ची स्वतंत्रता सिर्फ नारों से नहीं, बल्कि साहसिक फैसलों से मिलती है। 

उन्होंने हश्शुद अलशाबी को इराक की सुरक्षा का स्तंभ बताते हुए कहा कि इस संगठन को कमजोर करने की कोई भी कोशिश देश की शांति और स्थिरता के साथ खिलवाड़ है उन्होंने इराकी सरकार से मांग की कि वह स्पष्ट रूप से अमेरिकी हस्तक्षेप को खारिज करे। 

खुत्बे में आयतुल्लाह मूसवी ने गाज़ा में जारी नरसंहार को अमेरिका और इसराइल की सुनियोजित साम्राज्यवादी साजिश बताया। उन्होंने कहा,गाजा में रोजाना बच्चों, महिलाओं और मासूमों की हत्या मानवता के लिए शर्म का दिन है, लेकिन संयुक्त राष्ट्र और सुरक्षा परिषद मौन धारण किए हुए हैं।

अंत में उन्होंने कहा,आयतुल्लाह सिस्तानी के मार्गदर्शन, हश्शुद अलशाबी के संघर्ष और प्रतिरोध की ताकत से हम अमेरिका और इसराइल की सभी साजिशों को विफल कर देंगे। इंशाअल्लाह, गाजा और पूरी इस्लामी उम्मत की जीत निश्चित है।

इस भाषण ने इराक और अन्य इस्लामी देशों में व्यापक प्रतिक्रिया पैदा की है, जहां अमेरिकी हस्तक्षेप और फिलिस्तीन संकट पर चर्चा तेज हो गई है।

 

बक़ीअ संगठन शिकागो, अमेरिका द्वारा इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) की शहादत पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय ऑनलाइन सम्मेलन में, पाँच देशों के विद्वानों और बुद्धिजीवियों ने मौलाना महबूब मेहदी आबिदी नजफ़ी के संरक्षण में बाकी आंदोलन का पुरज़ोर समर्थन किया और जन्नतुल बाकी में दरगाहों के पुनर्निर्माण की माँग की।

हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ) की शहादत पर मुंबई/ज़ूम के माध्यम से मौलाना सय्यद शमशाद हुसैन रिज़वी (नॉर्वे) की अध्यक्षता में बकीअ संगठन शिकागो, अमेरिका द्वारा एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया।

इस सम्मेलन में, पाँच देशों के विद्वानों और बुद्धिजीवियों ने अल-बकीअ संगठन के मौलाना महबूब महदी आबिदी नजफ़ी के आंदोलन का खुलकर समर्थन किया।

भारत से आए मौलाना असलम रिज़वी ने अल-बकीअ संगठन के उद्देश्यों की व्याख्या करते हुए कहा कि बकीअ आंदोलन को जीवित रखने और उसे मज़बूत करने के लिए मौलाना महबूब मेहदी आबिदी नजफ़ी की सरपरस्ती में इस तरह का सम्मेलन आयोजित किया जाता है ताकि अहले-बैत (अ) के चाहने वाले बकीअ को न भूलें और इसे आठ शव्वाल की एक बैठक तक सीमित न रखें। इंशाअल्लाह, बकीअ के निर्माण का यह आंदोलन रंग लाएगा और जन्नतुल बकीअ में एक बेहतर दरगाह का निर्माण होगा।

महाराष्ट्र के मालेगांव शहर से मौलवी अमीर हमज़ा अशरफ़ी चिश्ती ने एक साहसिक भाषण देते हुए सऊदी अधिकारियों से जन्नतुल बकीअ में सौ साल पहले ध्वस्त की गई खूबसूरत दरगाह के पुनर्निर्माण की अनुमति देने की माँग की। उन्होंने कहा कि हमें केवल अनुमति चाहिए, सऊदी सरकार की संपत्ति की नहीं, क्योंकि अहले-बैत के चाहने वालों में इतनी क्षमता है कि वे अपने दम पर एक दरगाह बना सकते हैं।

कनाडा से मौलाना सय्यद अहमद रज़ा हुसैनी ने कहा कि मौलाना सय्यद महबूब महदी आबिदी द्वारा शुरू किया गया बक़ीअ आंदोलन बाक़ी में कब्रों के निर्माण तक जारी रहेगा। सऊदी परिवार ने बहुदेववाद की आड़ में बक़ीअ में जो अन्याय किया है, वह असहनीय है। इन अज्ञानी लोगों को यह जान लेना चाहिए कि बहुदेववाद और श्रद्धा में अंतर है। बहुदेववाद सबसे बड़ा पाप है और ईश्वरीय प्रतीकों का सम्मान सर्वोत्तम पुण्य है। कब्रों का सम्मान बहुदेववाद नहीं, बल्कि श्रद्धा है।

अमेरिका से मौलाना सय्यद अकील शाह आबिदी ने अंग्रेजी में एक प्रभावशाली भाषण दिया जिसमें उन्होंने इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ) की अन्यायपूर्ण शहादत पर शोक व्यक्त किया और कहा कि बाक़ी हर मुसलमान का है क्योंकि अहले बैत (अ) के साथ-साथ पैग़म्बर (स) के साथियों और पत्नियों और इस्लाम के सम्मानित व्यक्तियों की कब्रें वहाँ दफन हैं। इसलिए, सभी को इस आंदोलन के समर्थन में आगे आना चाहिए।

हम मौलाना महबूब मेहदी आबिदी और उनके साथियों को सलाम करते हैं जो इस मुहिम में सबसे आगे हैं।

अफ्रीका मॉरीशस से मौलाना मिर्ज़ा अली अकबर करबलाई ने अपने भावुक वक्तव्य में कहा कि जब हम मदीना जाते हैं, तो हमारा दिल छू जाता है कि हमारे दादाओं की कब्रें तो बहुत खूबसूरत हैं, लेकिन हमारे पोते-पोतियों की कब्रें वीरान हैं। इस लिहाज से, धर्म के सभी विद्वानों को यह सोचना चाहिए कि बाक़ी में पवित्र कब्रें कैसे बनाई जाएँ।

आज कर्बला की व्याख्या इस तरह की जा रही है कि कल कर्बला में शहीदों के शवों को रौंदने वालों के वंशजों ने, उनके वारिसों ने अहलुबैत की कब्रें गिरा दी हैं।

नॉर्वे, यूरोप से इस सम्मेलन के अध्यक्ष मौलाना सय्यद शमशाद हुसैन रिज़वी ने इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ) के जीवन पर विस्तृत भाषण देते हुए कहा कि हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ) हमारे इमाम नहीं थे, एक कमज़ोर इमाम, एक कमज़ोर इमाम, एक बीमार इमाम, जैसा कि देश के लोग या कुछ लोग कहते हैं। बल्कि, वह इंशाल्लाह आशूरा के दिन कर्बला में अस्थायी रूप से बीमार हो गए थे और यही ईश्वर की इच्छा थी। इस सभा के माध्यम से उन्होंने इस्लाम धर्म को घर-घर पहुँचाया, जिसकी नींव जनाब ज़ैनब (स) ने रखी थी।

एसएनएन चैनल के प्रधान संपादक मौलाना अली अब्बास वफ़ा ने इस महत्वपूर्ण और सफल सम्मेलन में संचालक का कार्यभार संभाला और विद्वानों और दर्शकों का आभार व्यक्त किया।

 

ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता "इस्माइल ब़काई" ने कहा कि तेहरान और तीन यूरोपीय देशों ब्रिटेन, फ्रांस व जर्मनी की इस्तांबुल बैठक ईरान के परमाणु मुद्दे पर इन देशों के रुख और दृष्टिकोण को सही करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है।

बक़ाई ने आशा व्यक्त की कि ये तीनों देश पिछली अरचनात्मक नीतियों को सुधारने के लिए इस अवसर का उपयोग करेंगे, जिन्होंने यूरोप की वार्ता विश्वसनीयता को कमजोर किया और उसे एक सीमांत खिलाड़ी बना दिया।

 यूरोपीय देशों द्वारा "स्नैपबैक" तंत्र का उपयोग करने की बार-बार की जाने वाली धमकियों के बारे में बक़ाई ने कहा: "ईरानी परमाणु मुद्दे को निर्धारित समय पर सुरक्षा परिषद की एजेंडा सूची से हटाने से इनकार करने का कोई औचित्य नहीं है।"

 "इन तीनों यूरोपीय देशों ने जेसीपीओए में अपने दायित्वों के प्रति अपने रुख और कार्यों के कारण, ऐसे तंत्र का सहारा लेने का अधिकार या योग्यता खो दी है।"

  1. पिछले एक महीने में ग़ाज़ा में 1000 फिलिस्तीनी बच्चों की शहादत

इज़रायली अख़बार हाअरेत्ज़ ने रिपोर्ट दी कि पिछले महीने ग़ाज़ा पट्टी पर हमलों के दौरान इज़राइली सेना ने लगभग 1000 फिलिस्तीनी बच्चों को शहीद कर दिया।

  1. पाकिस्तानी सेना प्रमुख की चीन के उच्चाधिकारियों से बैठक

पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल सैयद आसिम मुनिर ने शुक्रवार को बीजिंग में चीन के शीर्ष राजनीतिक-सैन्य अधिकारियों के साथ मुलाकात की। उन्होंने दोनों देशों के बीच रणनीतिक सहयोग को मजबूत करने और भू-राजनीतिक परिवर्तनों के तहत आपसी समर्थन के प्रति इस्लामाबाद की प्रतिबद्धता पर ज़ोर दिया।

  1. कोलंबिया के राष्ट्रपति का ज़ायोनी विरोधी रुख

कोलंबिया के राष्ट्रपति गुस्तावो पेट्रो ने शुक्रवार को घोषणा की कि वह सेना प्रमुख के रूप में हर उस जहाज़ को ज़ब्त करने का आदेश देंगे जो कोयला लेकर अवैध अधिकृत फिलिस्तीनी भूमि यानी इज़राइल की ओर जा रहा हो। उन्होंने बल देकर कहा कि उनका देश ग़ाज़ा में फिलिस्तीनियों के खिलाफ़ ज़ायोनी शासन के नरसंहार में किसी भी तरह की सहभागिता या साठगांठ नहीं करेगा।

  शंघाई सहयोग संगठन (SCO) का मीडिया सम्मेलन

23 से 27 जुलाई, 2025 तक चीन के हेनान प्रांत की राजधानी झेंग्झौ शहर में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के सदस्य देशों के मीडिया और थिंक टैंक्स का सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है। इसमें 400 से अधिक प्रतिनिधि-मीडिया, शोध संस्थानों और वार्ताकार देशों के विचारक शामिल हो रहे हैं। इसका उद्देश्य मीडिया सहयोग को मजबूत करना, जन-केंद्रित आदान-प्रदान बढ़ाना और "शंघाई की भावना" के तहत राष्ट्रों के बीच आपसी समझ को बढ़ावा देना है।

  1. ईरान के संचार उपग्रह "नाहीद-2" का सफ़ल प्रक्षेपण

ईरान के संचार एवं शोध उपग्रह "नाहीद-2" को रूसी प्रक्षेपण यान "सोयुज" के ज़रिए अंतरिक्ष में भेजा गया। यह प्रक्षेपण एक बहु-उपग्रह मिशन का हिस्सा था, जिसमें रूस के "आयनोस्फीयर-एम3" और "एम4" सहित 18 अन्य उपग्रह ईरान समेत कई देशों के शामिल थे।

  1. ग़ाज़ा नरसंहार के खिलाफ़ दुनियाभर में विरोध प्रदर्शन

ईरान, यमन, अमेरिका, लेबनॉन सहित दुनिया के कई भागों में लोगों ने ग़ाज़ा में नरसंहार और मानवीय संकट के खिलाफ़ प्रदर्शन किए। प्रदर्शनकारियों ने ग़ाज़ा में तत्काल मानवीय सहायता पहुँचाने की मांग की। यह विरोध तब जारी है जब मानवाधिकार संगठन ग़ाज़ा में बिगड़ती हालात को लेकर चेतावनी दे रहे हैं।

  1. लेबनानी क्रांतिकारी: प्रतिरोध को और मजबूत करना चाहिए

जॉर्ज अब्दुल्लाह, वरिष्ठ लेबनानी क्रांतिकारी जो 41 साल की फ्रांसीसी जेल के बाद रिहा होकर लेबनान लौटे हैं, ने शुक्रवार को प्रतिरोध को तेज़ करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा: "फिलिस्तीन में प्रतिरोध की ज्वाला को और भड़काना चाहिए।"

 "अरब देशों का फिलिस्तीनियों और ग़ाज़ा के निवासियों के दर्द को मूक दर्शक बने रहना शर्मनाक है।"

  1. 12-दिवसीय युद्ध में ईरान की जीत के तीन मुख्य कारण

ईरानी सशस्त्र बलों के जनरल स्टाफ़ के प्रवक्ता ब्रिगेडियर जनरल अबुलफज़ल शिकारची ने गुरुवार रात कहा कि एकता, नेतृत्व की दूरदर्शिता और जनता की दृढ़ता ईरान की 12-दिवसीय युद्ध में जीत के तीन प्रमुख कारण थे। उन्होंने बताया:

 "यह युद्ध इस्लामी व्यवस्था को उखाड़ फेंकने के उद्देश्य से शुरू किया गया था, लेकिन ज़ायोनियों और उनके वैश्विक समर्थकों की शर्मनाक हार के साथ समाप्त हुआ।"

 यमन: "हमारे पास पश्चिम को हैरान करने के लिए चीज़ें हैं

यमन की रक्षा एवं सुरक्षा समिति के अध्यक्ष ब्रिगेडियर यहिया मुहम्मद अल-महदी ने शुक्रवार को अमेरिका और पश्चिम की ओर से यमन को धमकियों के जवाब में चेतावनी दी: "यदि अमेरिका और यूरोप फ़िर से सैन्य टकराव की ओर बढ़ते हैं, तो यमन द्वारा तैयार की गई योजनाओं से वे आश्चर्यचकित रह जाएंगे।"

 "यमन आज एक शक्ति बन चुका है और उसके पास अमेरिका व पश्चिम के आधुनिकतम हथियारों को निष्क्रिय करने के लिए पर्याप्त साधन हैं। हमने उनके लिए कई आश्चर्य तैयार किए हैं।"

 लाल सागर में पिछला आश्चर्य

उन्होंने याद दिलाया कि लाल सागर में पहले ही यमन ने दुनिया को दिखा दिया था कि कैसे 24 घंटे के भीतर दो युद्धपोतों को डुबोया गया। उन्होंने कहा:

 बड़ी शक्तियों के बेड़े, विमानवाहक जहाज़ और बचाव दल भी उन जहाजों को नहीं बचा सके।"

 "यदि अमेरिका यमन पर हमला करने की ग़लती करता है तो उसे और भी बड़े आश्चर्य' का सामना करना पड़ेगा।

 

माज़ंदरान के इस्लामिक तबलीगात के कुरआनी मामलों के प्रमुख ने कहा,मार्गदर्शन केवल अल्लाह के अधिकार में है और समाज की मुक्ति का रास्ता कुरआन और रहबर के आचरण की ओर लौटने में है।

माज़ंदरान में इस्लामिक तबलीगात के कुरआनी मामलों के प्रमुख हुज्जतुल इस्लाम इस्माइल रमज़ानी ने शनिवार सुबह आयात के साथ जीवन परियोजना की कार्यकारी समूह की बैठक में इस्लामी क्रांति के ऐतिहासिक अनुभवों का हवाला देते हुए कहा, जहां भी क्रांति के रास्ते में काम खालिस नीयत और अल्लाह पर भरोसे के साथ आगे बढ़ा, वहां समाज में बरकत और सुकून पैदा हुआ।

लेकिन जब गैर-अल्लाह पर निर्भरता ने भरोसे (तवक्कुल) की जगह ले ली तो इबादत का संतुलन बिगड़ गया और नेमतें एक एक करके हमसे छिन गईं। 

उन्होंने कुरआन और रहबर के आचरण की ओर लौटने की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा अब समय आ गया है कि एकता, भरोसा और समझ बसीरत के साथ अपना रास्ता कुरआन और क्रांति के नेता के मार्गदर्शन से प्राप्त करें यह कोई नारा नहीं, बल्कि इस्लामी ईरान की मुक्ति का एक व्यावहारिक और प्रभावी कार्यक्रम है। 

हुज्जतुल इस्लाम रमज़ानी ने कुरआन की आयत «إِنَّکَ لَا تَهْدِی مَنْ أَحْبَبْتَ وَلَٰکِنَّ اللَّهَ يَهْدِی مَنْ يَشَاءُ»
(सूरा अल-कसस: 56) का हवाला देते हुए कहा, मार्गदर्शन केवल अल्लाह तआला के अधिकार में है; न पूर्व, न पश्चिम, न कोई सम्प्रदाय और न ही कोई ताकतें इसकी हकदार हैं।

जो लोग दूसरों को जबरदस्ती अपने धार्मिक विचारों पर थोपने की कोशिश करते हैं, वह उसी रास्ते पर चलते हैं जो जहन्नमियों का था क्योंकि उन्होंने भी दावत के बजाय जबरदस्ती का रास्ता अपनाया। 

उन्होंने पैगंबर-ए-इस्लाम स.अ.व.व. के आचरण का उदाहरण देते हुए कहा,रसूल-ए-इस्लाम "बशीर व नज़ीर" थे, लेकिन उन्होंने कभी किसी को इस्लाम कबूल करने के लिए मजबूर नहीं किया आज भी अगर हम कुरआनी मार्गदर्शन से दूर हो जाएंगे, तो बातिल संतुलन और खतरनाक फितनों में फंस जाएंगे। 

 

संयुक्त राष्ट्र के वर्ल्ड फ़ूड प्रोग्राम ने चेतावनी दी है कि ग़ाज़ा में हर तीन में से लगभग एक व्यक्ति कई दिनों से बिना खाए रह रहा है।

संयुक्त राष्ट्र के वर्ल्ड फ़ूड प्रोग्राम ने चेतावनी दी है कि ग़ाज़ा में हर तीन में से लगभग एक व्यक्ति कई दिनों से बिना खाए रह रहा है।

वर्ल्ड फूड प्रोग्राम (डब्ल्यूएफ़पी) ने एक बयान जारी कर कहा,कुपोषण बढ़ रहा है और 90 हज़ार महिलाओं और बच्चों को तुरंत इलाज की ज़रूरत है।

एजेंसियों का मानना है कि ग़ाज़ा में इस हफ़्ते भुखमरी और भी ज़्यादा होने वाली है ग़ाज़ा के हमास संचालित स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक़, कुपोषण से आज नौ और लोगों की मौत हो गई।

मंत्रालय के मुताबिक़, इसराइल के साथ युद्ध शुरू होने के बाद से अब तक कुपोषण से मरने वालों की कुल संख्या 122 हो गई है।

ग़ाज़ा में आने-जाने वाली सभी चीज़ों पर अपना नियंत्रण रखने वाले इसराइल का कहना है कि इस इलाक़े में कोई भी सहायता पहुंचने से वह नहीं रोक रहा है साथ ही इसराइल ने ग़ाज़ा में कुपोषण के लिए हमास को ज़िम्मेदार ठहराया है।

हमास की ओर से संचालित स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक़, 7 अक्तूबर 2023 से ग़ाज़ा में 59 हज़ार से ज़्यादा लोग मारे गए हैं।

 

एमडब्ल्यूएम पाकिस्तान के उपाध्यक्ष ने ग़ाज़ा की वर्तमान स्थिति और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चुप्पी पर गहरा दुख और अफसोस जताते हुए कहा है कि ग़ाज़ा में दर्जनों मासूम बच्चों की भूख से मौत सिर्फ एक मानवीय त्रासदी नहीं बल्कि क़यामत से पहले की एक चुनौती है।

मजलिस ए वहदत ए मुस्लिमीन पाकिस्तान के उपाध्यक्ष मौलाना सैयद अहमद इक़बाल रिज़वी ने अपने बयान में कहा है कि ग़ाज़ा में दर्जनों मासूम बच्चों की भूख से मौत सिर्फ एक मानवीय त्रासदी नहीं, बल्कि क़यामत से पहले की एक चुनौती है।

संयुक्त राष्ट्र ने पुष्टि की है कि कब्ज़ाधारी इज़राइल ने 80% से अधिक मानवीय सहायता को रोक रखा है, और यह अब कोई दावा नहीं, बल्कि हकीकत है कि भूख को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है।

यह एक ऐसा कृत्य है जिसे ह्यूमन राइट्स वॉच और एमनेस्टी इंटरनेशनल जैसे संगठन पहले ही युद्ध अपराध घोषित कर चुके हैं। इन ज़ालिमाना हथकंडों के पीछे अमेरिका की सियोनी लॉबी की आर्थिक और राजनीतिक समर्थन मौजूद है, जबकि दुनिया की बड़ी ताकतें और उनके राजनेता चुपचाप तमाशाई बने बैठे हैं। 

उन्होंने कहा,सवाल यह है कि पाकिस्तान, जो कलमा-ए-तैय्यबा की बुनियाद पर अस्तित्व में आया और जिसके संस्थापक क़ायद-ए-आज़म मुहम्मद अली जिन्ना ने फिलिस्तीन के साथ खुला समर्थन जताया था, आज इस ज़ुल्म के खिलाफ कहाँ खड़ा है?

जिन बच्चों की लाशें भूख से तड़पकर गिरती हैं, उनका खून सिर्फ कब्ज़ाधारी इज़राइल पर ही नहीं, बल्कि उन सभी चुप भाषाओं पर भी होगा जो बोल सकती थीं मगर बोली नहीं! 

मुस्लिम देशों के शासकों को चाहिए कि उम्मत-ए-मुस्लिमा की नेतृत्व की भूमिका निभाते हुए अब चुप्पी तोड़ें, वरना इतिहास और आने वाली नस्लें उनकी लापरवाही को कभी माफ नहीं करेंगी।