رضوی
कुरआन करीम की नज़र में इमाम महदी (अ) का वुजूद, ग़ैबत, और ज़हूर
हज़रत इमाम मेंहदी अलैहिस्सलाम के वुजूद, ग़ैबत, तूले उम्र और आपके ज़हूर के बाद तमाम अदयान के एक हो जाने से मुताअल्लिक़ 94 आयतें क़ुरआने मजीद में मौजूद हैं। जिनमें से अकसर को दोनों फ़रीक़ ने तसलीम किया है।
हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम के वुजूद, ग़ैबत, तूले उम्र और आपके ज़हूर के बाद तमाम अदयान के एक हो जाने से मुताअल्लिक़ 94 आयतें क़ुरआने मजीद में मौजूद हैं। जिनमें से अकसर को दोनों फ़रीक़ ने तसलीम किया है।
इसी तरह बेशुमार ख़ुसूसी अहादीस भी हैं। तफ़सील के लिए मुलाहेज़ा हो ग़ायतुल मक़सूद व ग़ायतुल मराम अल्लामा हाशिम बहरानी व यानाबि उल मवद्दाता।
मैं इस मक़ाम पर आपकी ग़ैबत से मुताअल्लिक़ सिर्फ़ दो तीन आयतें लिखता हूँ।
الم ذلك الكتاب لاريب فيه هدي للمتقين الذين يومنون بالغيب
हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि वसल्लम फ़रमाते है कि ईमान बिल ग़ैब से इमाम मेंहदी अलैहिस्सलाम मुराद है। नेक बख़्त हैं वह लोग जो उनकी ग़ैबत पर सब्र करें और मुबारक बाद के क़ाबिल हैं वह समझदार लोग जो ग़ैबत में भी उनकी मुहब्बत पर क़ायम रहेंगें।
(यनाबी उल मवद्दत सफ़ा 270 तबा बम्बई)
आपके मौजूद और बाक़ी होने के मुताअल्लिक़ “ وَجَعَلَهَا كَلِمَةً بَاقِيَةً فِي عَقِبِهِ इब्रहीम की नस्ल में कलमा बाक़िया को क़रार दिया है, जो बाक़ी और ज़िन्दा रहेगा। इस कलम -ए- बाक़िया से इमाम महदी अलैहिस्सलाम का बाक़ी रहना मुराद है। वही आले मुहम्मद अलैहिमु अस्लाम में बाक़ी हैं।
(तफ़सीरे हुसैनी अल्लामा हुसैन वाइज़ काशफ़ी सफ़ा 226)
आपके ज़हूर और ग़लबे के मुताअल्लिक़ “ لِيُظْهِرَهُ عَلَى الدِّينِ كُلِّهِ ” जब इमाम महदी ब हुक्मे ख़ुदा ज़हूर फ़रमाएगें तो तमाम दीनों पर ग़लबा हासिल कर लेगें। यानी दुनिया में दीने इस्लाम के अलावा कोई और दीन न होगा।
(नूरल अबसार, सफ़ा 153 तबा मिस्र)
इमाम महदी अलैहिस्सलाम का ज़िक्र कुतुबे आसमानी में
हज़रत दाऊद की ज़बूर की आयत 4, मरमूज़ 94 में है कि आख़री ज़माने में जो इन्साफ़ का मुजस्सेमा इंसान आयेगा, उसके सर पर अब्र साया फ़िगन होगा।
किताब सफ़या -ए- ग़म्बर के फ़सल 3, आयत न. 9 में है कि आख़री जमाने में तमाम दुनिया मुवह्हिद हो जायेगी।
किताब ज़बूर मरमूज़ 120 में है, जो आख़ेरुज़्ज़मान आयेगा उस पर आफ़ताब असर अन्दाज़ न होगा।
सहीफ़ -ए- शैया पैग़म्बर के फ़सल 11, में है कि जब नूरे ख़ुदा ज़हूर करेगा तो अदलो इँसाफ़ का डँका बजेगा। शेर और बकरी एक जगह रहेंगें। चीता और बुज़गाला एक साथ चरेगें। शेर और गौसाला एक साथ रहेंगें, गोसाला और मुर्ग़ एक साथ होंगे। शेर और गाय में दोस्ती होगी। तिफ़ले शीर ख़्वार सांप के बिल में हाथ डालेगा और वह नहीं काठेगा । इसी सफहे के फ़सल 27 में है कि यह नूर ज़ाहिर होगा तो तलवार के ज़रिये तमाम दुशमनों से बदला लेगा।
सहीफ़ा -ए- तनजास हरफ़े अलिफ़ में है कि ज़हूर के बाद सारी दुनिया के बुत मिटा दिये जायेंगें। ज़ालिम और मुनाफ़िक़ ख़त्म कर दिये जायेगें। यह ज़हूर करने वाला कनीज़े ख़ुदा (नरजिस) का बेटा होगा।
तौरात के सफ़रे अम्बिया में है कि महदी अलैहिस्सलाम ज़हूर करेंगें। हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम आसमान से उतरेंगें, दज्जाल को क़त्ल करेंगें।
इँजील में है कि महदी और ईसा अलैहिस्सलाम दज्जाल और शैतान को क़त्ल करेंगें।
इसी तरह मुकम्मल वाक़िया जिसमें शहादते इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और ज़हूर महदी अलैहिस्सलाम का इशारा है इनजील किताब दानियाल बाब 12, फ़सल9, आयत 24 रोया 2, में मौजूद है।
(किताब अल वसाएल, सफ़ा, 129 तबा बम्बई, 1339 हिजरी
इंतेज़ार करने वालो के कर्तव्य और जिम्मेदारियाँ
इंतेज़ार करने वालो के कर्तव्य और ज़िम्मेदारियाँ सिर्फ ग़ैबत के दौर के लिए नहीं हैं; शायद उनका ज़िक्र ग़ैबत के वक़्त के कर्तव्य में ताक़ीद के लिए किया गया है।
इंतेज़ार करने वालो की जिम्मेदारियों और कर्तव्यों के बारे में बहुत कुछ कहा गया है; लेकिन संक्षेप में कहा जा सकता है कि इस दौर में इंसान के कर्तव्य दो भागों में बंटे हुए हैं:
सामान्य कर्तव्य (आम फ़राइज़)
ये फ़र्ज, मासूमीन (अलैहिमुस्सलाम) की बातों में ग़ैबत के दौर के फ़र्ज के तौर पर याद किए गए हैं; लेकिन सिर्फ़ इस दौर के लिए नहीं हैं और हर दौर में अदा करना ज़रूरी है। शायद इनका ज़िक्र ग़ैबत के दौर के फ़र्ज के तौर पर ताक़ीद के लिए किया गया है।
इनमें से कुछ फ़र्ज इस तरह हैं:
1- हर दौर के इमाम को पहचानना
ऐसे फ़र्ज जो हर दौर में, खास तौर पर ग़ैबत के दौर में, इस्लामी तालीमात के पैग़म्बरों के फॉलोअर्स के लिए ताक़ीद के साथ कहा गया है, वो है उस वक्त के इमाम की पहचान और इल्म हासिल करना।
इमाम सादिक (अ) ने फ़रमाया:
إِعْرِفْ إِمَامَکَ فَإِنَّکَ إِذَا عَرَفْتَ لَمْ یَضُرَّکَ تَقَدَّمَ هَذَا الْأَمْرُ أَوْ تَأَخَّرَ एअरिफ़ इमामका फ़इन्नका इज़ा अरफ़ता लम यज़ुर्रोका तक़द्दमा हाज़ल अम्रो ओ तअख़्ख़रा
अपने इमाम को पहचानो, क्योंकि अगर तुमने अपने इमाम को पहचान लिया तो चाहे यह काम जल्दी हो या देर से, तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुँचेगा। (काफी, भाग 1, पेज 371)
बिल्कुल, इमाम की पहचान और अल्लाह तआला की पहचान अलग नहीं है; बल्कि यह उसकी एक पहलू है; जैसे कि दुआ-ए-मारेफ़त में हम अल्लाह तआला से अर्जी करते हैं:
اللَّهُمَّ عَرِّفْنِی نَفْسَکَ فَإِنَّکَ إِنْ لَمْ تُعَرِّفْنِی نَفْسَکَ لَمْ أَعْرِفْ نَبِیکَ اللَّهُمَّ عَرِّفْنِی رَسُولَکَ فَإِنَّکَ إِنْ لَمْ تُعَرِّفْنِی رَسُولَکَ لَمْ أَعْرِفْ حجّتکَ اللَّهُمَّ عَرِّفْنِی حجّتکَ فَإِنَّکَ إِنْ لَمْ تُعَرِّفْنِی حجّتکَ ضَلَلْتُ عَنْ دِینِی अल्लाहुम्मा अर्रिफ़्नि नफ़्सका इन लम तोअर्रिफ़्नि नफ़्सका लम आरिफ़ नबीयका अल्लाहुम्मा अर्रिफ़्नि रसूलका फ़इन्नका इन लम तोअर्ऱिफ़्नि रसूलका लम आरिफ़ हुज्जतका अल्लाहुम्मा अर्रिफ़्नि हुज्जतका फ़इन्नका इन लम तोअर्रिफ़्नि हुज्जतका ज़ललतो अन दीनी
बारे इलाहा! मुझे अपने आप से परिचित करा, क्योंकि अगर तूने अपने आप से परिचित नहीं कराया तो मैं तेरे नबी को नहीं जान पाऊंगा। बारे इलाहा! अपने रसूल को पहचनवा, क्योंकि अगर तूने अपने रसूल को नहीं पहचनवाया तो मैं तेरी हुज्जत को नहीं पहचान पाऊंगा। बारे इलाहा! अपनी हुज्जत को पहचनवा, क्योंकि अगर तूने अपनी हुज्जत को नहीं पहचनवाया तो मैं अपने धर्म से भटक जाऊंगा। (काफ़ी, भाग 1, पेज 342)
2- अहले-बैत (अ) से मोहब्बत में मजबूत रहना
हर दौर और समय में हमारी एक अहम ज़िम्मेदारी है, रसूल अल्लाह (स) के अहले-बैत से, जो खुदा के दोस्तों के मकाम पर हैं, मोहब्बत और दोस्ती रखना। ग़ैबत-ए-अख़ीरा के दौरान, जब इमाम ग़ायब हैं, तो ऐसे कारण हो सकते हैं जो इंसान को इस अहम फ़र्ज़ से दूर ले जाएं; इसलिए रिवायतों में बताया गया है कि उन पाक नूरानि हस्तियो से मोहब्बत में लगातार बने रहना ज़रूरी है।
यह मोहब्बत अल्लाह तआला का हुक्म है। उस शख्स के दुनियावी जीवन शुरू करने से कई साल पहले, पाक लोगों ने उनसे मोहब्बत का इज़हार किया। रसूल-ए-अकरम (स), जो अशरफ़-ए-अनबिया और आख़िरी रसूल हैं, जब अपने आख़िरी वसी (इमाम) की बात करते हैं, तो बहुत इज़्ज़त से "बे बि वा उम्मी" यानी "मेरे वालेदैन उस पर क़ुर्बान" जैसे अज़ीम श्ब्दो का इस्तेमाल करते हैं:
بِأَبِی وَ أُمِّی سَمِیی وَ شَبِیهِی وَ شَبِیهُ مُوسَی بْنِ عِمْرَانَ عَلَیهِ جُیوبُ النُّور... . बेअबि व उम्मी समी व शबीही व शबीहोहू मूसा बिन इमरान अलैहे जोयूबुन नूरे….
मेरे वालेदैन उस पर कुर्बान जो मेरा नाम और शक्ल रखता है, और मूसा बिन इमरान जैसा है, जिस पर नूर की परतें हैं। (किफ़ायतु असर, पेज 156)
इसी तरह, जब अली बिन अबी तालिब (अ) आख़िरी इमाम के दौर को देखते हैं, फ़रमाते हैं:
فَانْظُرُوا أَهْلَ بَیتِ نَبِیکُمْ فَإِنْ لَبَدُوا فَالْبُدُوا، وَ إِنِ اسْتَنْصَرُوکُمْ فَانْصُرُوهُمْ، فَلَیفَرِّجَنَّ اللَّهُ الْفِتْنَةَ بِرَجُلٍ مِنَّا أَهْلَ الْبَیتِ. بِأَبِی ابْنُ خِیرَةِ الْإِمَاءِ फ़नज़ोरू अहला बैते नबीयोकुम फ़इन लबदू फ़लबोदू, व ऐनिनतंसरोकुम फ़नसोरूहुम, फ़लयफ़र्रेजन्नल्लाहुल फ़ित्नता बरजोलिन मिन्ना अहलल बैते, बेअबि इब्नो ख़ैरतिल एमाए
अपने नबी के अहले-बैत को देखो; अगर वे चुप हो गए और घर में बैठे तो तुम भी चुप रहो, लेकिन अगर मदद मांगें तो उनकी सहायता करो; बेशक अल्लाह तआला हमारी औलाद में से किसी शख्स के ज़रिये फितना दूर करेगा। मेरे पिता की कुर्बानी उस पर जो बेहतरीन नौकर की संतान है। (बिहार उल अनवार, भाग 34, पेज 118)
ख़ल्लाद बिन सफ़्फ़ार ने इमाम सादिक़ (अ) से पूछा: "क्या क़ायम (इमाम महदी) दुनिया में आ चुका है?" उन्होंने फ़रमाया:
لَا وَ لَوْ أَدْرَکْتُهُ لَخَدَمْتُهُ أَیامَ حَیاتِی ला वलौ अदरकतोहू लख़दमतोहू अय्यामा हयाती
नहीं, अगर मैं उसे पाता तो अपनी ज़िन्दगी के दिन उसकी सेवा में बिताता। (बिहार उल अनवार, भाग 51, पेज 148)
और इमाम बाक़िर (अ) ने फ़रमाया:
أَمَا إِنِّی لَوْ أَدْرَکْتُ ذَلِکَ لَأَبْقَیتُ نَفْسِی لِصَاحِبِ هَذَا الْأَمْر अमा इन्नी लौ अदरकतो ज़ालेका लअबक़.तो नफ़सी लेसाहेबे हाज़ल अम्र
ज़रूर, अगर मैं उस दिन को पाता तो अपनी जान इस काम के मालिक के लिए समर्पित करता। (बिहार उल अनवार, भाग 52, पेज 243)
इन रिवायतों से साफ़ होता है किअहले बैत (अ) से, खासकर अल्लाह की आख़िरी हुज्जत के प्रति मोहब्बत रखना, ग़ैबात के दौर में बहुत अहम और क़ीमती काम है।
3- खुदा की पारसाई और तक़वे की रिआयत
तक़वा ए इलाही हर वक्त जरूरी और फर्ज़ है; लेकिन ग़ैबत के दौर में खास हालात की वजह से इसकी अहमियत और बढ़ जाती है; क्योंकि इस दौर में कई ऐसे कारण होते हैं जो इंसानों को ग़लत राह पर ले जाते हैं और भटका देते है
इमाम सादिक़ (अ) ने फरमाया:
إِنَّ لِصَاحِبِ هَذَا اَلْأَمْرِ غَیْبَةً فَلْیَتَّقِ اَللَّهَ عَبْدٌ وَ لْیَتَمَسَّکْ بِدِینِهِ इन्ना लेसाहेबे हाज़ल अम्रे ग़ैबतन फ़लयत्तक़िल्लाहा अब्दुन वल यतामस्सक बेदीनेही
बिल्कुल इस काम के मालिक के लिए एक ग़ैबत है; इसलिए बन्दे को चाहिए कि वो खुदा से डरता रहे और अपने धर्म से मजबूती से बना रहे। (कमालुद्दीन, भाग 2, पेज 343)
4- मासूमीन (अ) के हुक्म और फरमान का पालन करना
क्योंकि सभी इमाम एक ही नूर (रोशनी) हैं, उनके हुक्म और फरमान भी एक ही मकसद की पूर्ति करते हैं; इसलिए किसी एक का पालन करने का मतलब सभी का पालन करना है। जब उनमे से कोई भी मौजूद नहीं होता, तो दूसरे इमामों के आदेश मार्गदर्शक की तरह होते हैं।
यूनुस बिन अब्दुर्रहमान ने मूसा बिन जाफ़र (अ) से पूछा:
يَا ابْنَ رَسُولِ اللَّهِ أَنْتَ الْقَائِمُ بِالْحَقِّ؟ या यब्ना रसूलिल्लाहे अंतल काएमो बिल हक़्क़े?
ऐ रसूल-अल्लाह के बेटे! क्या आप काइम-ए-हक़ हैं?"
उन्होंने जवाब दिया:
أَنَا الْقَائِمُ بِالْحَقِّ وَ لَکِنَّ الْقَائِمَ الَّذِی یُطَهِّرُ الْأَرْضَ مِنْ أَعْدَاءِ اللَّهِ عَزَّ وَ جَلَّ وَ یَمْلَؤُهَا عَدْلًا کَمَا مُلِئَتْ جَوْراً وَ ظُلْماً هُوَ الْخَامِسُ مِنْ وُلْدِی لَهُ غَیْبَةٌ یَطُولُ أَمَدُهَا خَوْفاً عَلَی نَفْسِهِ یَرْتَدُّ فِیهَا أَقْوَامٌ وَ یَثْبُتُ فِیهَا آخَرُونَ ثُمَّ قَالَ ع طُوبَی لِشِیعَتِنَا الْمُتَمَسِّکِینَ بِحَبْلِنَا فِی غَیْبَةِ قَائِمِنَا الثَّابِتِینَ عَلَی مُوَالاتِنَا وَ الْبَرَاءَةِ مِنْ أَعْدَائِنَا أُولَئِکَ مِنَّا وَ نَحْنُ مِنْهُمْ قَدْ رَضُوا بِنَا أَئِمَّةً وَ رَضِینَا بِهِمْ شِیعَةً فَطُوبَی لَهُمْ ثُمَّ طُوبَی لَهُمْ وَ هُمْ وَ اللَّهِ مَعَنَا فِی دَرَجَاتِنَا یَوْمَ الْقِیَامَةِ अनल क़ाएमो बिल हक़्क़े वलाकिन्नल क़ाएमल लज़ी योताहेरुल अर्ज़ा मिन आदाइल्लाहे अज़्ज़ा व जल्ला व यमलओहा अदलन कमा मोलेअत जौरन व ज़ुल्मन होवल ख़ामेसो मिन वुल्दी लहू ग़ैबतुन यतूलो अमदोहा ख़ौफ़न अला नफ़सेहि यरतद्दो फ़ीहा अक़वामुन व यस्बोतो फ़ीहा आख़ारूना सुम्मा क़ाला (अ) तूबा लेशीअतेना अल मुतामस्सेकीना बेहब्लेना फ़ी ग़ैबते क़ाएमेना अस साबेतीना अला मुवालातेना वल बराअते मिन आदाएना उलाएका मिन्ना व नहनो मिन्हुम क़द रज़ू बेना आइम्मतन व रज़ीना बेहिम शीअतन फ़तूबा लहुम सुम्मा तूबा लहुम व हुम वल्लाहे माअना फ़ी दरजातेना यौमल क़यामते
मैं हक़ के लिए काइम हूँ; लेकिन वह काइम जो ज़मीन को खुदा के दुश्मनों से साफ़ करेगा और न्याय से भर देगा, जैसे वह अन्याय से भरी है, वह मेरे बच्चों में पाँचवाँ है। उसकी ग़ैबत लंबी होगी क्योंकि वह अपने आप से खौफज़दा है। उस ग़ैबत में लोग पीछे हटेंगे और कुछ मजबूत रहेंगे।
फिर उन्होंने (अ) कहाःहमारे शिया जिनका हमारे रस्से से जमावड़ा ग़ैबत में भी कायम रहता है, जो हमारे साथ जुड़े रहते हैं और हमारे दुश्मनों से नफरत करते हैं, वे हमारे हैं और हम उनके हैं।उन्होंने आगे कहा:वे हमें अपनी इमामत के रूप में स्वीकार करते हैं और हम उन्हें अपने शिया के रूप में पसंद करते हैं। उन्हें खुशियाँ हों, और क़सम अल्लाह की, वे क़यामत के दिन हमारी साथियों में होंगे। (कमालुद्दीन व तमामुन नेअमा, भाग 2, पेज 361)
इक़्तेबास : "दर्स नामा महदवियत" नामक पुस्तक से से मामूली परिवर्तन के साथ लिया गया है, लेखक: खुदामुराद सुलैमियान
आख़िरी ज़माने के फितनों से अपने परिवार की रक्षा कैसे करें?
हज़रत पैगंबर-ए-इस्लाम स.ल.अ. ने आख़िरी ज़माने के फितनों से परिवारों को सुरक्षित रखने के लिए चार निर्देश दिए हैं,नेकी पर अमल करना, घर में अल्लाह की याद को जीवित रखना, और संतान की परवरिश नेकी का आदेश देने और बुराई से रोकने के माध्यम से करना। माता-पिता द्वारा संतान को मार्गदर्शन देना दखलअंदाजी नहीं समझना चाहिए, बल्कि यह एक ईश्वरीय जिम्मेदारी और ईमान वालों का कर्तव्य है जो ईमान और परिवार की नैतिक सुरक्षा के लिए आवश्यक है।
हुज्जतुल इस्लाम वाल मुस्लिमीन आली ने अपने एक तकरीर में पैगंबर-ए-इस्लाम स.अ.व. की वो चार अहम नसीहतें बयान कीं जो आप (स.अ.व.) ने खानदानों को आखिरी ज़माने के फितनों और हमलों से महफूज़ रखने के लिए फरमाई थीं।
पैगंबर-ए-इस्लाम (स.अ.व.) ने फरमाया,अपने खानदानों को आखिरी ज़माने में पेश आने वाले सख्त फितनों से महफूज़ रखने के लिए चार काम ज़रूर करो।
पहला फरमान,अफ़'अलूल-ख़ैर" यानी खुद नेक अमल करो।
माता-पिता! तुम खुद अमल-ए-सालेह करने वाले बनो। अगर तुम घर में नेकी और भलाई के नमूने बनोगे, तो तुम्हारे बच्चे तुम्हारे अच्छे रवैये और करदार से तरबीयत पाएंगे।
दूसरा फरमान:व ज़क्किरूहुम बिल्लाह" यानी अपने बच्चों को खुदा की याद दिलाओ।
तुम्हारे घरों का माहौल खुदा की याद से लबरेज़ होना चाहिए, न कि ग़फलत और बेरूही से भरपूर। वह घर जिसमें याद-ए-खुदा ज़िंदा हो, वहाँ अगर शादी या खुशी की तकरीब भी हो तो कोई गुनाह करने की जुरअत नहीं कर सकता।
तीसरा और चौथा फरमान:व आम्र बिल-मारूफ़ व नही अनिल-मुनकर" यानी अपने बच्चों को नेकी का हुक्म दो और बुराई से रोको।
भाइयो और बहनो! यह जुमला कि हमें बच्चों के मुआमलात में दखल नहीं देना चाहिए" दरअसल एक गलत और ग़ैर-इस्लामी फिक्र है जो हमें बिरूनी सकाफतों से दी जा रही है ताकि हम अपनी दीनी ज़िम्मेदारियों से ग़ाफिल हो जाएं।
यह दखलअंदाजी नहीं बल्कि "मुहब्बत" और दीनी फर्ज़ है।
कुरआन-ए-करीम में भी फरमाया गया है कि मोमिनीन को एक दूसरे के कामों की ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए, नेकी का हुक्म देना और बुराई से रोकना चाहिए फिर माता-पिता और औलाद के दरमियान तो यह ज़िम्मेदारी और भी ज़्यादा है।
शहीद नसरूल्लाह को एक व्यापक आदर्श के रूप में प्रस्तुत करना राष्ट्र की धार्मिक ज़िम्मेदारी
मजलिस ए खुबरेगान रहबरी के सदस्य आयतुल्लाह अब्बास काबी ने कहा है कि शहीद सय्यद हसन नसरूल्लाह न केवल लेबनान या हिज़्बुल्लाह के नेता थे, बल्कि वे नजफ़ और क़ुम के मदरसों के प्रशिक्षित पुत्र थे, जिन्होंने न्यायविद की देखरेख में प्राण त्यागकर, शुद्ध इस्लाम को दुनिया के सभी स्वतंत्र, उत्पीड़ित और न्यायप्रिय लोगों के लिए एक जीवंत और वैश्विक आदर्श बनाया।
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, मजलिस ए खुबरेगान रहबरी के सदस्य आयतुल्लाह अब्बास काबी ने कहा है कि शहीद सय्यद हसन नसरूल्लाह न केवल लेबनान या हिज़्बुल्लाह के नेता थे, बल्कि वे नजफ़ और क़ुम के मदरसों के प्रशिक्षित पुत्र थे, जिन्होंने न्यायविद की देखरेख में बलिदान देकर, शुद्ध इस्लाम को दुनिया के सभी स्वतंत्र, उत्पीड़ित और न्यायप्रिय लोगों के लिए एक जीवंत और वैश्विक आदर्श बनाया।
उन्होंने यह बात हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के केंद्रीय कार्यालय में आयोजित वृत्तचित्र फिल्म "शेम जाम" के परिचय समारोह को संबोधित करते हुए कही। यह समारोह "फ़िक़रत मीडिया" द्वारा आयोजित किया गया था और इसमें विद्वानों, शिक्षकों, छात्रों और सांस्कृतिक हस्तियों ने भाग लिया।
आयतुल्लाह काबी ने कहा कि शहीद नसरूल्लाह को एक व्यापक आदर्श के रूप में प्रस्तुत करना एक धार्मिक कर्तव्य है, क्योंकि उन्होंने इमाम खुमैनी के स्कूल से जुड़कर बौद्धिक, आध्यात्मिक और जिहादी प्रशिक्षण के उच्चतम चरणों को पार किया। उन्होंने अपना पूरा जीवन न्यायवादी की संरक्षकता की धुरी पर स्थापित किया और क्रांति के सर्वोच्च नेता और अधिकारियों के प्रति सदैव असाधारण सम्मान रखते थे।
विलायत, नसरूल्लाह के स्कूल का सार
उन्होंने कहा कि नसरूल्लाह के स्कूल का केंद्र विलायत और राष्ट्र का एकीकरण है। विलायत राष्ट्र को जोड़ने और सामाजिक एकता बनाने की वास्तविक धुरी है। इसके तीन पहलू हैं:
- सार्वजनिक पहलू - अर्थात प्रतिरोध को एक जन आंदोलन में बदलना।
- शत्रु से सीमांकन - अर्थात मानवता के शत्रुओं और अहंकारियों से अलगाव।
- नेतृत्व का पहलू - जो राष्ट्र को एक केंद्र के चारों ओर एकजुट रखता है, ठीक एक "इकट्ठी मोमबत्ती" की तरह।
इमाम मूसा सद्र से नसरूल्लाह तक; प्रतिरोध की बौद्धिक नींव
आयतुल्लाह काबी ने लेबनानी प्रतिरोध की बौद्धिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इस आंदोलन की बौद्धिक नींव इमाम मूसा सद्र ने रखी थी, जिन्होंने धार्मिक मतभेदों से परे, एकता और इस्लामी सम्मान की धुरी पर उत्पीड़ितों को एकजुट किया। यह विचार बाद में शहीद सय्यद अब्बास मूसवी और शहीद नसरूल्लाह के माध्यम से इमाम खुमैनी के विचारधारा में नई गहराई के साथ आगे बढ़ा।
उन्होंने कहा कि शहीद नसरूल्लाह ने क़ुम में अपने शैक्षणिक प्रवास के दौरान विलायत ए फ़कीह के सिद्धांत को इस्लामी राष्ट्र की एकता और सम्मान का गारंटर माना और इस संदेश को विश्व स्तर पर प्रसारित करना अपनी ज़िम्मेदारी समझा।
एक छोटे समूह से वैश्विक प्रतिरोध आंदोलन तक
आयतुल्लाह काबी ने कहा कि जब शहीद नसरूल्लाह ने हिज़्बुल्लाह का नेतृत्व संभाला था, तब यह एक सीमित समूह था, लेकिन उनके विश्वास, रणनीति और संरक्षकता के दृष्टिकोण ने इसे एक ऐसी ताकत में बदल दिया जो आज वैश्विक स्तर पर प्रतिरोध का प्रतीक है।
उन्होंने आगे कहा कि नसरूल्लाह हमेशा कहते थे: "हम न्यायवादी संरक्षकता वाले पक्ष हैं, और हमें इस पर गर्व है क्योंकि न्यायवादी संरक्षकता सम्मान, गरिमा और स्वतंत्रता की गारंटी है।"
नसरूल्लाह; इस्लामी सभ्यता के निर्माता
आयतुल्लाह काबी ने शहीद नसरूल्लाह को इस्लामी सभ्यता के निर्माण का एक आदर्श उदाहरण बताया और कहा कि उन्होंने न्यायवादी संरक्षकता को राष्ट्र निर्माण, न्याय की स्थापना और दुश्मन को पहचानने के तीन बुनियादी सिद्धांतों के साथ जोड़ा। उन्होंने अमेरिका और ज़ायोनी शासन को मानवता का असली दुश्मन माना और शहीद क़ासिम सुलेमानी के साथ मिलकर प्रतिरोध नेटवर्क का विस्तार इस क्षेत्र से परे पूरी दुनिया में किया।
महदीवाद के वादाशुदा मोमिन और सिपाही
उन्होंने कहा कि शहीद नसरूल्लाह महदीवाद के एक सच्चे मोमिन और सिपाही थे, जिनका दिल और दिमाग विलायत के मार्ग पर सक्रिय था और इमाम (अ) का इंतज़ार कर रहे थे। उनका मानना था कि अगर आशूरा और हुसैनी विचारों को सार्वभौमिक बना दिया जाए, तो इमाम के प्रकट होने का माहौल बनाया जा सकता है।
अंत में, आयतुल्लाह काबी ने मीडिया की ज़िम्मेदारी पर ज़ोर दिया और कहा कि इस्लाम के दुश्मन आज एनीमेशन और बच्चों के कार्यक्रमों के ज़रिए शहीद नसरूल्लाह के व्यक्तित्व को विकृत करने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि "नसरूल्लाह के स्कूल" की वैश्विक मान्यता ज़ायोनिज़्म के अस्तित्व को अवैध बना देती है। इसीलिए "शमा जाम" जैसी डॉक्यूमेंट्री का निर्माण उम्माह की एक बौद्धिक और सांस्कृतिक ज़रूरत है।
यह ध्यान देने योग्य है कि "फ़िक्रत मीडिया" द्वारा निर्मित वृत्तचित्र "शमा जामा" शहीद सय्यद हसन नसरूल्लाह के बौद्धिक, नैतिक और सांस्कृतिक जीवन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालता है - इस नेता ने हौज़ा ए इल्मिया और विलायत के स्कूल से एक वैश्विक प्रतिरोध आंदोलन को जन्म दिया जो आज मानवता, एकता और स्वतंत्रता का प्रतीक बन गया है।
यमनी मिसाइल ने लाखों इज़राइलियों को शरण लेने पर मजबूर किया
यमनी मिसाइलों ने लाखों इज़राइलियों की नींद उड़ा दी है और उन्हें शरणस्थलों की ओर भागने पर मजबूर कर दिया है।
यमन से दागी गई एक मिसाइल ने तेल अवीव और यरुशलम सहित, कब्ज़े वाले फ़िलिस्तीन के बड़े इलाकों में खतरे की घंटी बजा दी है, जिससे लाखों इज़राइलियों को शरणस्थलों की ओर भागने पर मजबूर होना पड़ा है।
इस बीच, बेन गुरियन हवाई अड्डे पर सभी गतिविधियाँ रोक दी गई हैं। इज़राइली सूत्रों ने पश्चिमी तट के ऊपर आसमान में कई विस्फोटों की आवाज़ें सुनने की भी सूचना दी है।
इज़राइली सेना ने एक बयान में दावा किया है कि उन्होंने मिसाइल को रोककर नष्ट कर दिया है, हालाँकि यमनी सूत्रों ने अभी तक इन रिपोर्टों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।
आज सुबह का हमला ऐसे समय में हुआ है जब अल-अक्सा तूफ़ान और गाज़ा युद्ध की शुरुआत के बाद से यमनी लोग फ़िलिस्तीन का समर्थन और सहायता करते रहे हैं।
इस संबंध में, सय्यद अब्दुल मलिक अल-हौथी ने हाल ही में एक भाषण में कहा कि यमनी मोर्चे ने पिछले सप्ताह 18 ऑपरेशन किए, जिनमें मिसाइल और ड्रोन शामिल थे, जिनमें से कुछ फिलिस्तीन में गहरे लक्ष्यों पर, कुछ समुद्र में और कुछ इजरायली हमलों के जवाब में किए गए।
पत्नी को हमेशा याद रहने वाला वाक्य
पैग़म्बर मुहम्मद (स) ने एक हदीस में पति द्वारा अपनी पत्नी से कहे गए प्रेमपूर्ण शब्दों के प्रभाव का उल्लेख किया है।
निम्नलिखित रिवायत "वसाइल उश शिया" पुस्तक से ली गई है। इस रिवायत का पाठ इस प्रकार है:
قال رسول اللہ صلی اللہ علیه وآله:
قولُ الرَّجُلِ لِلمَرأَةِ: اِنّي أُحِبُّكِ لا يَذهَبُ مِن قَلبِها أبدا
पैग़म्बर मुहम्मद (स) ने फ़रमाया:
स्त्री अपने पति द्वारा अपनी पत्नी से कहे गए "मैं तुमसे प्यार करता हूँ" को कभी नहीं भूलती।
वसाइल उश शिया, भाग 14, पेज 10
गज़्ज़ा पर जारी सैन्य कार्रवाई / नेतन्याहू के झूठ को उजागर कियाः हमास
हमास ने एक बयान में कहा है कि कब्जे वाले इजरायली प्रधानमंत्री के झूठ उजागर हो रहा हैं।
गाज़ा पर सियोनी राज्य के हमलों और नागरिकों की हत्या ने इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के दावों को झूठा साबित कर दिया है।
हमास ने अपने बयान में कहा है कि नेतन्याहू के गाजा में सैन्य कार्रवाइयों में कमी करने के दावे महज धोखा हैं जबकि तथ्य इसके विपरीत हैं।
हमास के अनुसार, शनिवार की सुबह से अब तक सियोनी हमलों में 70 फिलिस्तीनी शहीद हो चुके हैं, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं।
यह सब कुछ ऐसे समय में हो रहा है जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने हमास की ओर से अपने शांति योजना पर सकारात्मक जवाब मिलने के बाद इजरायल से तुरंत हमले रोकने का आग्रह किया था, लेकिन तेल अवीव ने इस आग्रह को नजरअंदाज करते हुए बमबारी की नई लहर शुरू कर दी।
गज़्जा पर इजरायली आतंकवादी हमले जारी, ट्रम्प की युद्धविराम की अपील बेअसर
ज़ालिम इजरायली सरकार ने गाज़ा पर जमीनी और हवाई हमले जारी रखते हुए ट्रम्प की तत्काल युद्धविराम की अपील को नजरअंदाज कर दिया है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने हमास की ओर से शांति योजना का जवाब आने के बाद इजरायल से तुरंत गाजा पर हमले रोकने का अनुरोध किया था।
लेकिन रिपोर्टों के मुताबिक इजरायली हमले अभी भी जारी हैं। ट्रम्प के अनुरोध के बावजूद गाजा में कई नई हवाई और तोपखाने की कार्रवाइयाँ शुरू कर दी गई हैं।
सूत्रों के मुताबिक, कुछ ही क्षण पहले इजरायली विमानों ने गाजा के उत्तर-पूर्वी इलाके अत-तुफ़ाह के अल-मशाहरा मोहल्ले में एक घर को निशाना बनाया, जबकि शहर के पूर्व में भी कई हवाई हमला किया गया। इजरायली तोपखाने ने खान यूनिस के मुख्य इलाके को भी निशाना बनाया है।
इसके बावजूद इजरायली स्रोतों ने दावा किया था कि राजनीतिक हलकों ने कब्ज़े वाली सेना को निर्देश दिया था कि वह गाजा पर जारी हमले और कब्ज़े के अभियान को रोक दे।
क्या बार-बार तौबा करना व्यर्थ है? आयतुल्लाह खुशवक़्त का जवाब
स्वयं की इच्छाओं के विरुद्ध गिरने पर भी व्यक्ति को प्रयास करते रहना चाहिए, क्योंकि निरंतर संघर्ष इच्छाशक्ति को मज़बूत करता है, जबकि हार मानने से व्यक्ति नष्ट हो जाता है। इसी प्रकार, यदि पश्चाताप बार-बार टूट भी जाए, तो भी यह आवश्यक है, क्योंकि पश्चाताप छोड़ने से व्यक्ति और अधिक पापों की ओर अग्रसर होता है।
मरहूम आयतुल्लाह अज़ीज़ुल्लाह खुशवक़्त, जो हौज़ा-इल्मिया में नैतिकता के प्रसिद्ध शिक्षकों में से एक थे, ने अपने एक नैतिकता व्याख्यान में "स्वयं की दासता और बार-बार पश्चाताप तोड़ने का समाधान" शीर्षक से भाषण दिया था, जिसका सारांश इस प्रकार है:
प्रश्न: मैं अपनी इच्छाओं का कैदी हूँ, इसलिए मैं बहुत चिंतित हूँ। यह चिंता मुझे भीतर से खा रही है और मुझे आध्यात्मिक पीड़ा दे रही है।
पाप छोड़ने का मेरा इरादा कमज़ोर है। मैं बार-बार इरादा करता हूँ, लेकिन फिर मैं गिर जाता हूँ। क्या मुझे इसी तरह कोशिश करते रहना चाहिए या हार मान लेनी चाहिए?
उत्तर: अगर आप कोशिश करते रहेंगे, तो अंततः आप बेहतर हो जाएँगे।
लेकिन अगर आप हार मान लेंगे, तो आपकी हालत और बिगड़ जाएगी।
एक हफ़्ते तक दृढ़ रहें। अगर फिर भी आप असफल होते हैं, तो फिर से उठें और एक हफ़्ते तक फिर से कोशिश करें।
इससे आपका संकल्प और दृढ़ निश्चय मज़बूत होगा, और अंततः सफलता ही आपकी नियति होगी।
लेकिन अगर आप हार मान लेंगे, तो आप बर्बाद हो जाएँगे।
प्रश्न: अगर आपने बार-बार किसी पाप से तौबा किया है, लेकिन हर बार आपकी तौबा टूट गई है, और अब आपको डर है कि कहीं वही पाप दोबारा न हो जाए - तो क्या ऐसे तौबा से कोई फ़ायदा है?
उत्तर: हाँ, आपको तौबा करना चाहिए। क्योंकि अगर आप तौबा नहीं करेंगे, तो आपके पाप बढ़ जाएँगे।
क़ुम शहर में जीवन व्यतीत करना औलिया (अ) की इच्छा थी
हौज़ा ए इल्मिया क़ुम के शिक्षक ने कहा कि हज़रत फ़ातिमा मासूमा (स) की ज़ियारत करने से दुख और मुश्किलें दूर होती हैं, औलिया (अ) भी क़ुम अल-मुक़द्देसा में रहने की कामना करते हैं।
हुज्जतुल-इस्लाम वल-मुस्लेमीन सैयद हुसैन मोमिनी ने हजरत फातिमा मासूमा की पवित्र मजार पर झंडा फहराने की रस्म को संबोधित करते हुए इस दरगाह को लोगों के लिए शांति का स्थान बताया और कहा कि इमाम मुहम्मद तकी (अ) ने फ़रमाया: हज़रत मासूमा (स) की ज़ियारत कठिनाइयों और दुखों को समाप्त करने का कारण है।
यह कहते हुए कि बहुत से लोगों ने हज़रत फ़ातिमा मासूमा (स) की दरगाह से अपनी ज़रूरतें पूरी कर ली हैं और उनका जीवन बदल गया है, उन्होंने कहा कि इमाम रज़ा (अ) फ़रमाते हैं: जो कोई भी मेरी बहन की क़ुम मे ज़ियारत करता है वह ऐसा है जैसे उसने मेरी ज़ियारत की । एक अन्य हदीस में, उन्होंने कहा: जिसने मेरी बहन मासूमा की ज़ियारत की, उसके लिए जन्नत अनिवार्य हो जाएगी।
अपने संबोधन मे इमाम रज़ा (अ.स.) के बयान की ओर इशारा किया, जिसमें उन्होंने (अ.स.) ने कहा: "हमारी कब्रों में से एक तुम्हारे पास है, और जो कोई भी उस पर जाता है, उस पर जन्नत अनिवार्य है। " इमाम (अ.स.) ने अपने बयान को जारी रखा और कहा: यदि आप इस कब्र की ज़ियारत करना चाहते हैं, तो इन शब्दों के साथ जाएं और फिर हज़रत मासूमा (स) की ज़ियारत पढ़ें।
यह कहते हुए कि हज़रत मासूमा का हरम, वह स्थान है जहाँ स्वर्ग के 8 द्वारों में से एक खुलता है, उन्होंने कहा कि यह वर्णित है कि इमाम (अ.स.) ने कहा: क़ोम हमारा शहर है और हमारे शियाओं का शहर। इसी तरह, एक अन्य परंपरा में पाया जाता है कि क़ुम को क़ुम इसलिए कहा जाता है क्योंकि क़ुम के लोग इमाम अल-ज़माना (अ) के साथ रहेंगे और इमाम के ज़ुहूर के लिए जमीन प्रदान करेंगे।
हुज्जतुल इस्लाम वाल-मुस्लिमीन मोमिनी ने क़ुम शहर में रहने को औलिया (अ) की इच्छा बताते हुए कहा कि क़ुम अहले-बेत का केंद्र और घर है। अहले-बैत (अ) के दुश्मनों ने हमेशा लोगों को अहले-बैत (अ) से दूर रखने के लिए इस शहर के खिलाफ साजिश रची है।
यह कहते हुए कि क़ुम इस्लामिक क्रांति की धुरी रही है, उन्होंने कहा कि सर्वशक्तिमान ईश्वर ने हज़रत मासूमा को विकास की संरक्षकता दी है और वह क़यामत के दिन अपने सभी शियाओं के लिए हस्तक्षेप करेगी।
हौज़ा ए इल्मिया के शिक्षक ने आगे कहा कि हज़रत मासूमा का हरम एक शरण है। जानिए इस शहर के खिलाफ और इस्लामिक व्यवस्था के खिलाफ साजिश रचने वालों को! कि वे अपनी महत्वाकांक्षाओं में कभी सफल नहीं होंगे और ईरान में अहले-बेत (अ) का झंडा हमेशा ऊंचा रहेगा।













