
رضوی
ख़ुत्बाए फ़ातेहे शाम जनाबे ज़ैनब (सलामुल्लाहे अलैहा)
सानीए ज़हरा (स0) को उम्मुल मसाएब और शरीकुल हुसैन (अ0) कहा जाता है इसकी वजह है के ज़ैनब बिन्ते अली (अ0) अहलेबैत अलैहिस्सलाम और इमाम के दरमियान राबता थीं जिनका एक कान अहले हरम के नाले और दूसरा कान मैदाने जंग से हुसैन (अ0) की सदाएं सुनता था, एक आंख ख़ेमों पर तो दूसरी आंख हुसैन (अ0) की तरफ़ लगी थी, और बीबी का जिस्मे अतहर ख़ेमों में था।
पैग़ामात की नशर व इशाअत में जनाबे ज़ैनब (सलामुल्लाहे अलैहा) की खि़ताबत का एक अहम रोल है और यह बीबी की खि़ताबत ही थी के कूफ़े व शाम के माहौल को बदल दिया और तमाशाइयों को रोने पर मजबूर कर दिया और सय्यदा की बेटी का ख़ुतबा दर्द और तासीर में इस क़द्र डूबा था के सामेईन की आंखों में आंसू आ जाते थे इसी लिये आपको फ़सीहा व बलीग़ा कहा जाता है, बीबी ज़ैनब (अ0) की तक़ारीर और ख़ुत्बे जो बाज़ारे कूफ़ा और दरबारे शाम में दिये वह यह बावर कराने के लिये काफ़ी हैं के फ़न्ने खि़ताबत में बीबी ज़ैनब (अ0) का दर्जा बहुत बलन्द है और यह के बीबी आलेमा ग़ैर मोअल्लेमा हैं।
क़ाफ़ेला दमिश्क़ पहुंचा तो इमाम हुसैन (अ0) का सरे अक़दस नैज़े पर बलन्द करके तशहीर किया गया। जब वह एक मक़ाम से गुज़रा तो वहां एक शख़्स सूराए कहफ़ की तिलावत कर रहा था जब वह इस आयत पर पहुंचा ‘‘अम .....................’’ (क्या तुम जानते हो के असहाबे कहफ़ व रक़ीम हमारी क़ुदरत की अजीब निशानी थे)
तो इमाम हुसैन (अ0) का सर बहुक्मे ख़ुदा गोया (बोला) के
(मेरा क़त्ल और मेरे सर को नैज़े पर बलन्द करना और शाम लाना असहाबे कहफ़ के क़िस्से से कहीं ज़्यादा अजीब है)
इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ0) और मख़दूराते अहलेबैत (अ0) को यज़ीद के दरबार में जब लेकर जाया गया तो यज़ीद मलऊन शराब व शतरंज से फ़ारिग़ होने के बाद अली (अ0) की बेटी से बात करना चाहता था|
तब बीबी ने इरशाद फ़रमाया- ‘‘तमाम हम्द व सिपास सिर्फ़ अल्लाह तआला के लिये मख़सूस हैं जो तमाम आलमीन का परवरदिगार है और अल्लाह की तरफ़ से दुरूद व रहमत हो उसके रसूल सल्लल्लाहो अलैह व आलेही वसल्लम पर और उनकी तमाम अहलेबैत (अ0) पर, अल्लाह बुज़ुर्ग व बरतर ने सच फ़रमाया और वह इसी तरह फ़रमाता है।
‘‘जो लोग बदियों के मुरतकिब हुए वह अपने अन्जाम को पहुये, जिन्होंने अल्लाह तआला की आयात को झुठलाया और उनका तमसख़र उड़ाया’’
ऐ यज़ीदे मलऊन! क्या तू गुमान करता है के हमें क़ैद करके तूने हम पर ज़मीन व आसमान की फ़िज़ा को तंग कर दिया है? क्यों तूने हमें क़ैद करके बाज़ारों और शहरों में फिराया? क्या तू गुमान करता है के तेरे इस अमल से हम अल्लाह तआला के हुज़ूर ज़लील हुए हैं? और इस तरह क्या तूने अल्लाह के सामने एज़ाज़ व मन्ज़िलत हासिल की है? क्या तूने गुमान कर लिया है के अपने इस अमल से तूने अल्लाह के हुज़ूर इतना बड़ा काम सरे अन्जाम दिया है जिसने ग़ुरूर व तकब्बुर से तेरी नाक फुला दी है?
और तू बड़े ग़ुरूर से अपने चारों तरफ़ देखता है, दरआँ हालांके तू इन्तेहा से ज़्यादा ख़ुश और मसरूर है? क्या तू दुनिया को आबाद और अपनी मजीऱ् के मुताबिक़ पाता है? और क्या समझता है के दुनिया के तमाम उमूर तेरी मजीऱ् व मन्शा के मुताबिक़ अन्जाम पाते हैं? नीज़ क्या तू समझता है के हमारे मक़ाम व मन्सब को तूने दुरूस्त जाना है?
यज़ीद! ज़रा ग़ौर कर (और इन ख़यालाते बातिल से बच) क्या तू फ़रमाने अल्लाह बुज़ुर्ग व बरतर को भुला बैठा है जबके वह फ़रमाता है-
‘जो लोग कुफ्र व बेदीनी के मैदान में क़दम रखते हैं, यह गुमान न करें के जो मोहलत हमने उन्हें दी है वह उनके फ़ाएदे में है? बल्कि हमने उन्हें इसलिये मोहलत दी है के उन्हें अपने गुनाहों में इज़ाफ़े की मोहलत ज़्यादा मिले और ज़लील करने वाला अज़ाब उनके लिये मुहय्या है’’
ऐ हमारे आज़ाद किये हुए लोगों की औलाद! क्या यह इन्साफ़ है के तूने अपनी औरतों और कनीज़ों तक को तो पर्दे में बैठा रखा है लेकिन रसूल अल्लाह (स0) की बेटियों को नामहरमों के दरमियान क़ैदी बना रखा है, उनके पर्दाए हुरमत को तूने पारा पारा कर दिया है, उनके चेहरों और सूरतों को और उनके लिबास को ख़राब करके बेपर्दा कर दिया है, यहां तक के दुश्मनाने रब उन्हें देखते हैं, उन्हें तूने शहर ब शहर फिराया है, हत्ता के शहरों और देहातों के बाशिन्दे उन्हें देखते हैं और दूर व नज़दीक के लोगों ने उन्हें तमाशा बना रखा है।
ज़लील व शरीफ़ लोग इनकी तरफ़ अपनी आंखों को खोलते हैं, उनकी कैफ़ियत यह है के उनके मर्द उनकी सरपरस्ती के लिये मौजूद नहीं हैं, न वह सर परस्त व हिमायती रखते हैं, अलबत्ता ऐसे शख़्स की तरफ़ से कैसे अतफ़ व मेहरबानी की तवक़्क़ोअ की जा सकती है जो उनकी औलाद हो जिन्होंने इस्लाम के पाकीज़ा शहीदों के जिगर को चबाना पसन्द किया हो?
ऐसे शख़्स से किस तरह मेहरबानी की तवक़्क़ोअ की जा सकती है जिसका गोश्त शोहदा के ख़ून से बना हो? फिर वह शख़्स किस तरह अहलेबैत (अ0) के साथ अपने बुग़्ज़ व कीना में कमी कर सकता है जिसने हमेशा हम पर बुग़्ज़ व नफ़रत ही की नज़र डाली हो? और वह अपने एहसासे गुनाहकी बजाए अपनी ग़लती और जुर्म को बहुत बुरा जानते हुए भी कहता हो ‘‘के काश मेरे आबा व अजदाद मेरी इस शादमानी व ख़ुशहाली को देखते तो कहते ऐ यज़ीद! तेरे हाथ शल न हों’’
इसके साथ ही तू हज़रत अबाअब्दिल्लाह (इमाम हुसैन (अ0)) के दन्दाने मुबारक पर छुरी मारता है, वही हुसैन (अ0) जो जवानाने जन्नत के सरदार हैं, न सिर्फ़ यह फिर तू अपनी शान में शाएरी व नुक्ता आफ़रीनी भी कर रहा है के हमारे दिल के टुकड़े टुकड़े कर डाले और अपने दिल को ठण्डा करे।
मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैह व आलेही वसल्लम की ज़ुर्रियत के ख़ून को बहा कर, वह मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैह व आलेही वसल्लम के अल्लाह जिन पर और जिनके ख़ानदान पर दुरूद भेजता है? यह वही हज़रात हैं जो ख़ानदाने अब्दुल मुत्तलिब (अ0) के दरख़्शां सितारे थे फिर तू अपने आबा व अजदाद को पुकारता है और गुमान करता है के वह तेरे सवाल का जवाब भी देंगे, हालांके तू ख़ुद बहुत जल्द उनके पास पहुंच जाएगा और तू आरज़ू करेगा के
‘‘काश! मेरे हाथ मफ़लूज और ज़बान गूंगी होती ताके जो कुछ मैंने कहा वह न कह पाता और जो कुछ मैंने किया वह न करता’’
परवरदिगार! इन लोगों से हमारे हक़ को वसूल फ़रमा! इन ज़ालिमों से हमारा इन्तेक़ाम ले! अपने ग़ैज़ व ग़ज़ब को उन पर वारिद फ़रमा! इन्होंने हमारा ख़ून बहाया और हमारे हामियों को क़त्ल किया।
यज़ीद (मलऊन)! अल्लाह की क़सम! अपने इस अज़ीम गुनाह से तूने सिर्फ़ अपने गोश्त को पारा पारा किया है और इसके सिवा कुछ नही ंके तूने ख़ुद अपने बदन के गोश्त के टुकड़े टुकड़े किये हैं (रोज़े जज़ा के हिसाब की तरफ़ बीबी ने इशारा किया है)
बहुत जल्द तू परवरदिगार के हुक्म से रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व आलेही वसल्लम के सामने वारिद होगा और जबके उनकी ज़ुर्रीयत का ख़ून तेरी गर्दन पर होगा उनकी इतरत की हतक का गुनाह और उनके गोश्त पोस्त का अज़ाब तू अपनी गर्दन पर रखता होगा।
(व लानतुल्लाहे अला क़ौमिज़्ज़ालेमीन) –
इस्लाम को बचाने के लिए इमाम हुसैन अ.ह का बलिदान।
हज़रत इमाम हुसैन अ. ने अपने रिश्तेदारों और साथियों के साथ इस्लाम को क़यामत तक के लिये अमर बना देने के लिए महान बलिदान दिया है। इस रास्ते में इमाम किसी क़ुरबानी से भी पीछे नहीं हटे, यहां तक कि छः महीने के दूध पीते बच्चे को भी इस्लाम के लिए क़ुरबान कर दिया ताकि इस्लाम बच जाये।
इस्लाम को मिटाने की कोशिशें
इस्लाम को मिटाने की कोशिशें पैग़म्बरे अकरम स.अ. के आखें बंद करते ही शुरू हो गईं, बनी उमय्या ने इस्लाम के खिलाफ़ विद्रोह कर दिया,उसकी सीमाओं को तोड़कर उसके सारे नियमों को पारा पारा दिया था। नबवी इस्लाम पर अमवी इस्लाम का लबादा डाल दिया गया था। ज़ुल्म व बर्बरता,दरिंदगी व हैवानियत,अपमान व रुसवाई लोगों का भाग्य बन चुकी थी,वह इस्लाम में जाहेलियत के क़ानून लागू करने लगे थे,कुफ्र व शिर्क और पाखंड जैसे ख़तरनाक रोगों को हवा देने लगे थे,हर तरफ़ एक आतंक व डर का माहौल था, ऐसा लग रहा था जैसे ज़मीन और आसमान सब कुछ बदल गया है।
इतिहास कहता है कि: अबू सुफ़यान, सैयदुश् शोहदा हज़रत हमज़ा की क़ब्र पर ठोकर मारकर हास्यपद व मज़ाक भरे अपमानजनक लहजे में कहता है: इस्लाम की बागडोर अब हमारे हाथ में है वह हुकूमत (जिसकी हम और हमारे क़बीले वाले कामना करता थे) जिसे हम भाले व तलवार से तुमसे हासिल न कर पाए थे और तुमने हमें इस्लाम के शुरूआती दौर में बद्र व ओहद जैसी जंगों में अपमानित व रुसवा किया था, आज वह हमारे बच्चों के हाथ में आ गई! उठो ए बनी हाशिम के बुजुर्ग! देखो वह किस तरह से उससे खेल रहे हैं ... (تلقفوها تلقف الکرۃ) जैसे खेल में गेंद एक दूसरे को पास की जाती है उसी तरह यह भी हुकूमत को अपने बाद एक दूसरे के सुपुर्द कर रहे हैं। यह सही है कि इस्लामी हुकूमत है लेकिन बादशाहत जाहेलियत के ज़माने की है। इसलिए तुरंत (ऐ उस्मान तुम) सभी सरकारी पदों पर बनी उमय्या के लोगों को नियुक्त कर दो, देर न करो कि कहीं यह आई हुई हुकूमत हमारे हाथों से निकल न जाए। (अली व शहरे बी आरमान पेज 26)
मुआविया के षड़यंत्र:
मुआविया के दौर में उसके हाथ दो सबसे ख़तरनाक मामले तय पाये जिनकी शुरूआत रसूले इस्लाम स.अ के कूच करने के साथ ही हो चुकी थी। उन्हीं दो मामलों ने इस्लामी समाज को पस्ती व अपमान में ढ़केल दिया।
पहला:
रसूले अकरम की इतरत और अहलेबैत जो कि दीन के रक्षक व समर्थक थे और क़ुरआन के हम पल्ला थे उन्हें इस्लाम से पूरी तरह किनारे लगा दिया गया।
दूसरा:
इस्लामी हुकूमती सिस्टम को पूरी तरह बदल कर तानाशाही साम्राज्य में परिवर्तित कर दिया गया।
मुआविया ने इस्लामी राज्य पर क़ब्जा किया और अपने लिए मैदान खाली देखा तो अहलेबैत अ. के विरोध और उनके गुणों को लोगों के दिलों से हटाने को अपना कर्तव्य बना लिया,इब्ने अबिल हदीद के अनुसार मुआविया ने अपने सभी कर्मचारियों और अधिकारियों को इस तरह का आदेश भेजा:
(हर उस इंसान के लिए कोई अमान नहीं जो अबू तुराब और उनके परिवार के फ़ज़ाएल व गुण बयान करे) (शरहे इब्ने अबिल हदीद पेज 200)
साथ ही यह भी लिखा है कि सभी मस्जिदों के इमामों को आदेश दिया गया: (मिम्बरों से हज़रत अली अ.ह और उनके परिवार के साथअनुचित बातों को निस्बत दी जाए)। इसलिये इस आदेश के बाद हज़रत अली अ. और उनके परिवार पर गाली गलोच की जाने लगी।
मुआविया ने अपने सभी हाकिमों को संदेश भेजा:
(अगर किसी के बारे में अली अ. व रसूले इस्लाम स.अ के अहलेबैत अ. के शिया होने का पता चल जाए तो उसकी गवाही किसी मामले में स्वीकार न की जाए और अगर कोई अली अ. की किसी श्रेष्ठता को पैगम्बर स.अ की हदीस के हवाले से बयान करे तो तुरंत उसके मुक़ाबले में एक जाली हदीस गढ़वा कर बयान दी जाए)।
एक दूसरे आदेश में उसने लिखा:
ध्यान रहे कि अगर किसी के लिए साबित हो कि वह अली अ. का शिया है तो उसका नाम तुरंत रजिस्टर से काट दिया जाए और वेतन व वज़ीफ़ा ख़त्म कर दिया जाए)। (शरहे इब्ने अबिल हदीद)
इसी आदेश के साथ दूसरा आदेश भी था कि अगर किसी पर संदेह हो कि वह अहलेबैत का दोस्त है तो उसके घर के तबाह व बर्बाद करके उसे शिकंजे में कस दिया जाए ...) (शरहे इब्ने अबिल हदीद)
मुआविया के इन सभी प्रचारों, प्रोपगंडों का नतीजा यह हुआ कि लोग हज़रत अली पर पर गाली गलौच करने को एक इबादत समझने लगे और बहुत से ऐसे भी थे कि अगर एक दिन अली अ. को बुरा भला कहना भूल जाते तो अगले दिन उसकी क़ज़ा करते थे।
यज़ीद की ज़बरदस्ती बैअत:
मुआविया ने अंतिम प्रभावी प्रहार जो इस्लाम के पैकर पर लगाया वह यज़ीद की ज़बरदस्त बैअत थी। उसने अपने नालायक़ और पस्त बेटे यज़ीद के लिए लोगों से बैअत ली। इस्लामी खिलाफ़त को अपनी पारिवारिक विरासत घोषित कर दिया। सभी इतिहासकार सहमत हैं कि यज़ीद हुकूमत की जिम्मेदारियां उठाने के योग्य नहीं था।
यज़ीद विलासिता भरे जीवन का शौक़ीन था, हर समय शराब के नशे में मस्त रहता था, उसकी रातें मस्ती और दिन नशे में व्यतीत होते थे।
वह शराब और इश्क कुछ नहीं जानता था, ताहा हुसैन लिखते हैं कि वह खेल कूद,गुनाहों में मस्त रहता था और थकता नहीं था। (अली अ. व दो फ़रज़ंदश पेज 262)
याक़ूब लिखते है जब अब्दुल्लाह बिन उमर से यज़ीद की बैअत के लिए कहा गया तो उन्होंने यूं जवाब दिया उसकी बैअत करूँ जो बंदरो,कुत्तों से खेलने वाला है,शराबी है और गुनाहों के अलावा उसे कोई काम नहीं आता, अल्लाह तआला के सामने इस बैअत का क्या औचित्य पेश करूंगा कि क्यूं मैंने ऐसे आदमी की बैअत की। (तारीख़े यअक़ूबी जिल्द 2 पेज 165)
इमाम हुसैन अ. का यज़ीद की बैअत से इंकार:
इस्लाम व कुरआन के रक्षक हुसैन बिन अली अ. ने अपने आंदोलन से पहले लोगों को बनी उमय्या के षड़यंत्रों से परिचित कराया फिर यज़ीद बिन मुआविया की बैअत न करने की वजह बताते हुए दुनिया के सामने यज़ीद के गंदे चरित्र को पहचनवा कर मुसलमानों की अंतरात्मा को झकझोर दिया फिर आवाज दी कि ऐ लोगों: मुझे और अनैतिक व पापी यज़ीद को पहचानो! मैं कहां पैग़म्बर स.अ का बेटा और कहाँ आज़ाद किये बंदी का बेटा, कहां पैग़म्बर स.अ के कंधों पर सवार होने वाला और कहाँ कुत्तों से खेलने वाला, कहां रसूल की गोद में पलने वाला! और कहाँ शाम के अंधेरे का पला बढ़ा!
(انا اهل بیت النبوة و معدن الرسالة ومختلف الملائکة و بنافتح الله و بنا ختم الله )
(हम नबूव्वत का परिवार और रिसालत की कान हैं, हमारा घर फ़रिश्तों के आवागमन की जगह है, हमसे अल्लाह तआला की कृपा शुरू होती है और हम पर ही समाप्त होती है ...)
ऐ लोगों! तुम यह नहीं देखते कि कैसे हक़ व सत्य को छिपाया जा रहा है और न ही असत्य व झूठ पर अमल से लोगों को रोका जा रहा है?! ऐसे हालात में ऐ ईमान वालों आओ! अल्लाह के रास्ते में शहादत और उसकी मुलाकात के लिए तैयार हो जाओ! याद रखो अबू सुफ़यान का पोता मुआविया का बेटा यज़ीद!ऐसा इंसान है जो शराब पीने वाला,निर्दोष लोगों की हत्या करने वाला,खुलेआम गुनाह करने वाला है मुझ जैसा यज़ीद जैसे की बैअत कभी नहीं कर सकता!
( رجل فاسق ، شارب الخمر ، قاتل النفس المحترمة ، معلن بالفسق و مثلی لا یبایع مثله...)
(ऐसे) इस्लाम पर फ़ातिहा पढ़ देना चाहिए जिसकी बागडोर यज़ीद जैसे गुनहगार के हाथों में हो! मैंने अपने नाना हज़रत मुहम्मद स.अ से सुना है कि आप कहा करते थे कि अबू सुफ़यान की संतान पर ख़िलाफ़त हराम है। (लुहूफ़ पेज 11)
انا للہ و انا الیہ راجعون و علی الاسلام السلام اذ قد بلیت الامۃ براع مثل یزید ولقد سمعت جدی رسول اللہ یقول: الخلافۃ محرمۃ علی آل ابی سفیان )
अबू सुफ़यान की संतान का हुकूमत का मूल लक्ष्य और उद्देश्य इस्लाम को मिटाना और क़ौम व मिल्लत की गर्दन पर सवार होना था, जैसा कि यज़ीद मलऊन का यह कहना इस बात की स्पष्ट प्रमाण है कि
यह सब बनी हाशिम का ढोंग और खेल तमाशा था! कौन कहता है कि रसूल पर फ़रिश्ते नाज़िल हुआ करते थे और उन पर वही नाज़िल होती थी।
لعبتھاشم بالملک فلا خبر جاء ولا وحی نزل
इतिहास के अनुसार इमाम हुसैन अ. ने 28 रजब 61 हिजरी को अपने परिवार वालों के साथ मदीने से कूच किया और जब लोगों ने आपसे मदीना को अलविदा कहने का कारण पूछा तो आपने फ़रमायाः आदम की संतान के लिए मौत यूं है जैसे किशोरी के गले में हार होता है।
: ( خط الموت علی ولد آدم مخط القلادۃ علی جیدالفتاۃ...)
मुझे अपने बुजुर्गों से मिलने का वैसा ही शौक़ है जैसा याकूब को यूसुफ़ से मिलने के लिये था, मैं रेगिस्तान के दरिंदों (कूफ़े के सैनिक) को अपनी आँखों से देख रहा हूँ कि वह कर्बला की ज़मीन पर मेरे जिस्म के टुकड़े टुकड़े कर रहे हैं ... तुम्हें पता होना चाहिए कि आप में से जो भी हमारे रास्ते में अपनी जान को कुर्बान करने की कामना रखता है वह कल सुबह हमारे साथ कूच के लिए तैयार हो जाये। (सुख़नाने हुसैन इब्ने अली अज़ मदीना ता कर्बला पेज 57)
याद रहे!
मैं किसी मनोरंजन,बड़ा बनने, दंगा करने और अन्याय व अत्याचार के लिए अपने वतन को नहीं छोड़ रहा हूँ बल्कि मेरे मदीने से निकलने का उद्देश्य अपने नाना पैगम्बर स. की उम्मत का सुधार है,मैं अच्छाईयों की दावत और बुराईयों से रोकना (अम्र बिल मारूफ़ व नही अनिल मुनकर) चाहता हूँ, और चाहता हूँ कि अपने नाना और बाबा अली इब्ने अबी तालिब की सीरत पर अमल करूं।( बिहारूल अनवार जिल्द 44 पेज 329-334)
(انی لم اخرج اشرا ولا بطرا ولا مفسدا ولا ظالما وانما خرجت لطلب الاصلاح فی امۃ جدی رسول اللہ ارید ان آمر بالمعروف و انھی عن المنکر و اسیر بسیرۃ جدی و ابی علی بن ابیطالب ؑ )
देखना यह है कि इमाम अ. किस तरह का सुधार करना चाहते थे? क्या आर्थिक सुधार मुराद था कि लोग हराम खा रहे थे या बौद्धिक सुधार था,कि लोग झूठे अक़ीदों और अंधविश्वास के शिकार हो रहे थे आदि आदि।
इस स्थान पर ज़ियारते अरबईन का यह अनमोल वाक्य सुधार के प्रकार को दर्शाता है:
(ऐ अल्लाह तआला!) हुसैन ने अपना खूने जिगर तेरी राह में बहाया ताकि तेरे बंदों को जेहालत व गुमराही से बचाएं। (मफ़ातीहुल जेनान)
(و بذل مهجتة فیک لیستنقذ عبادک من الجهالة و حیرۃ الضلالة(
बनी उमय्या ने अल्लाह के बंदों को जेहालत व अज्ञानता,गुमराही और हैरत में रखा हुआ था। अगर इमाम हुसैन अ. का आंदोलन न होता तो अल्लाह जाने लोग कब तक इसी गुमराही और जेहालत में बाक़ी रहते!
इतिहासकारों के अनुसार कर्बला की घटना के बाद 30 साल के अंदर बनी उमय्या की ग़ासिब व तानाशाह हुकूमत को 20 क्रांतियों का सामना करना पड़ा कि जिसके कारण बनी उमय्या को अपना बोरिया बिस्तर लपेट लेना पड़ा और देखते ही देखते बनी उमय्या के अत्याचार व तानाशाही का अंत हुआ और हर तरफ उनका विरोध होने लगा और जो लोग समझदार हैं आज तक उनसे नफ़रत करते हैं और हर अन्याय व ज़ालिम हुकूमत व शासकों के खिलाफ़ (ہل من ناصر ینصرنا) की आवाज़ पर लब्बैक कहते हुए विरोध की आवाज़ बुलंद करते हैं।
हाल के शहीद; अल्लाह के प्रति वफादारी की मिसाल थें
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन ग़फूरी ने शहीदों के सम्मान समारोह में जोर देकर कहा, हम जो कुछ भी रखते हैं, वह शहीदों की कुर्बानियों की बदौलत है।
किरमानशाह में वली फकीह के प्रतिनिधि ने आज सुबह किरमानशाह में शहीदों के सम्मान में एक समारोह आयोजित किया गया, जिसमें वली फकीह के प्रतिनिधि और किरमानशाह के इमाम जुमा हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन ग़फूरी ने भाग लिया।
इस समारोह में हाल ही में इजरायली हमले में शहीद हुए लोगों, विशेष रूप से डॉ. मोहम्मद मेंहदी तेहरानची इस्लामिक आज़ाद यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रमुख को याद किया गया।
प्रतिनिधि ने कहा कि ईरानी राष्ट्र ने हाल के युद्ध में बुद्धिजीवियों, शिक्षाविदों, कमांडरों और बहादुर युवाओं की शहादत देखी उन्होंने कहा,हमारी गरिमा और महानता का हर कण शहीदों के बलिदान का परिणाम है।
उन्होंने शहीद तेहरानची को एक नैतिक, विनम्र और अपने क्षेत्र में शीर्ष विद्वान बताया और कहा कि उनकी शहादत इस्लामिक आज़ाद यूनिवर्सिटी के लिए गर्व का प्रतीक होगी। उन्होंने यह भी कहा कि तेहरानची और उनकी पत्नी ने शहादत की इच्छा पूरी की और वे सच्चे इबादत की मिसाल हैं।
हुज्जतुल इस्लाम ग़फूरी ने कुरआन की आयत मिनल मोमिनीना रिजालुन सदक़ू मा अहदुल्लाह अलैह (सूरह अहज़ाब: 23) का हवाला देते हुए कहा कि हाल के शहीद अल्लाह के साथ अपने वादे पर अडिग रहे उन्होंने कहा,शहीदों का स्थान इंसानी समझ से परे है, और वे ईरानी राष्ट्र पर सबसे बड़ा अधिकार रखते हैं।
समान नागरिक संहिता का सभी धर्म के लोग विरोध करें। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड
समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने एक अहम बैठक बुलाई जिसमें इस कानून का पुरजोर विरोध करने का फैसला किया गया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड पहले से ही समान नागरिक संहिता का विरोध करता रहा है लेकिन अब उसने सभी से औपचारिक विरोध दर्ज कराने की अपील की है।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की हुई बैठक में बोर्ड की ओर से क्यूआर कोड वाला एक पत्र जारी किया गया और लोगों से अपना विरोध दर्ज कराने का अनुरोध किया गया।
बोर्ड ने कहा,इस समय देश में समान नागरिक संहिता को लेकर माहौल बन रहा है अलग-अलग धर्मों और संस्कृतियों वाले देश में समान नागरिक संहिता के जरिए धार्मिक और सांस्कृतिक आजादी पर चोट पहुंचाने की कोशिश की जा रही है ऐसे में लोगों से अनुरोध है कि वे विधि आयोग द्वारा मांगी गई राय पर अपना विरोध दर्ज कराएं।
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की बैठक लखनऊ में हुई जिसमें बोर्ड के लगभग सभी सदस्यों ने हिस्सा समान नागरिक संहिता बैठक के बाद समान नागरिक संहिता के खिलाफ जोरदार आवाज उठाने का निर्णय लिया गया बोर्ड की ओर लोगों से जारी की गई अपील में एक लिंक भी दिया गया है और एक क्यूआर कोड भी उपलब्ध है. इसमें यह भी बताया गया है कि लोग लिंक पर क्लिक करने के बाद अपनी विरोध प्रतिक्रिया कैसे तैयार कर सकते हैं, जो सीधे विधि आयोग को भेजी जाएगी।
ग़ौरतलब है कि समान नागरिक संहिता का सभी धर्मों और समुदाय की तरफ से विरोध सुनने को मिल रहा है आदिवासी समुदाय इसे आदिवासी विरोधी बिल बता रहे हैं. यूसीसी आदिवासी विरोधी हैश टैग भी ट्वीटर पर ट्रेंड हो चूका है. समान नागरिक संहिता पर भाजपा सहयोगी दलों में भी मतभेद सुनने को मिल रहा है नेशनल पीपुल्स पार्टी और एआईएडीएमके भी अपना विरोध प्रकट कर चुकी हैं।
युद्ध की बर्बरता को समाप्त किया जाए
कैथोलिक ईसाइयों के नेता पोप लियो ने गाजा में कैथोलिक चर्च पर जायोनी सरकार के हमले के बाद प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए युद्ध के परिणामस्वरूप होने वाली बर्बरता के अंत की मांग की हैं।
,पोप फ्रांसिस ने गाजा के एकमात्र कैथोलिक चर्च पर बमबारी पर गहरा दुख व्यक्त करते हुए वैश्विक समुदाय से अपील की कि मानवता की रक्षा करने वाले कानूनों का पालन करें और आम नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की अपनी जिम्मेदारी निभाएँ। साथ ही उन्होंने सामूहिक सजा बल के अत्यधिक उपयोग और जबरन विस्थापन को रोकने पर जोर दिया।
गौरतलब है कि गुरुवार को जायोनी सरकार ने गाजा शहर में स्थित चर्च पर बमबारी की, जिसके परिणामस्वरूप तीन फिलिस्तीनी शहीद हो गए और एक पादरी घायल हो गया।
पोप लियो ने गाजा में हो रहे अपराध के खिलाफ आवाज उठाई है और संयुक्त राष्ट्र से तुरंत मांग की है कि इस जंग को खत्म किया जाए और वहां के सभी लोग को सुरक्षा सुनिश्चित की जाए
दुश्मन हमें फिरकों में बाँटने से नहीं, बल्कि एक उम्मत बनने से डरता है
मौलाना सय्यद करामत हुसैन जाफ़री ने कहा कि मेरा मानना है कि आज फिरक़ा परस्ति सिर्फ़ एक बौद्धिक मतभेद या अकादमिक मुद्दा नहीं है, बल्कि उम्मत को कमज़ोर करने की एक वैश्विक औपनिवेशिक साज़िश है। आज जो कोई भी उम्मत को बाँटने की कोशिश करता है, उसे यह जान लेना चाहिए कि वह उपनिवेशवाद की कतार में खड़ा है - चाहे वह कोई भी पोशाक पहने, किसी भी न्यायशास्त्र से जुड़ा हो या किसी भी समूह से जुड़ा हो।
आज का मुस्लिम समाज आंतरिक कलह, सांप्रदायिक नफ़रत और एक-दूसरे के ख़िलाफ़ फ़तवे जारी करने की ऐसी आग में जल रहा है कि उम्मत का अस्तित्व ही ख़तरे में पड़ता दिख रहा है। कभी अहले-बैत विचारधारा के अनुयायी निशाने पर हैं, तो कभी अहले सुन्नत बंधुओं के ख़िलाफ़ नफ़रत का माहौल बनाया जा रहा है। लेकिन सवाल यह है कि यह सब कौन कर रहा है? क्या ये वाकई हमारे बौद्धिक मतभेद हैं, या कोई और ताकत इस मतभेद को एक साज़िश का रूप दे रही है?
इस विषय पर भारत के प्रख्यात धार्मिक विद्वान, हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लेमीन मौलाना सय्यद करामत हुसैन जाफ़री से एक विशेष बातचीत की, जिन्होंने हमेशा शैक्षणिक, बौद्धिक और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उम्मत की एकता और जागृति का संदेश दिया है।
हम हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की ओर से आपका स्वागत करते हैं और आभारी हैं कि आपने उम्मत की एकता जैसे महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दे पर अपने बहुमूल्य विचार हमारे पाठकों के साथ साझा करने की इच्छा व्यक्त की है। आपने हमेशा उम्म्त की एकता पर ज़ोर दिया है, वर्तमान वैश्विक स्थिति के संदर्भ में आप इस मुद्दे को कैसे देखते हैं?
मौलाना सय्यद करामत हुसैन जाफ़री: मेरा मानना है कि आज सांप्रदायिकता केवल एक बौद्धिक मतभेद या शैक्षणिक मुद्दा नहीं है, बल्कि उम्मत को कमज़ोर करने की एक वैश्विक औपनिवेशिक साज़िश है। आज, जो कोई भी उम्माह को बाँटने की कोशिश करता है, उसे बता देना चाहिए कि वह उपनिवेशवाद की कतार में खड़ा है - चाहे वह कोई भी पोशाक पहने, किसी भी न्यायशास्त्र या पार्टी से जुड़ा हो।
क्या यह सिर्फ़ आपकी राय में एक विश्लेषण है या इसके कोई प्रमाण हैं?
मौलाना सय्यद करामत हुसैन जाफ़री: नहीं, यह सिर्फ़ मेरी राय नहीं है, बल्कि इसके स्पष्ट और प्रामाणिक प्रमाण मौजूद हैं। उदाहरण के लिए:
- 1982 में, ओडेड यिनोन नामक एक इज़राइली बुद्धिजीवी ने अपने प्रसिद्ध दस्तावेज़ "1980 के दशक में इज़राइल के लिए एक रणनीति" में खुले तौर पर लिखा था कि इज़राइल के अस्तित्व का रहस्य अरब और मुस्लिम दुनिया को राष्ट्रीयता, संप्रदाय, नस्ल और पंथ के आधार पर टुकड़ों में बाँटने में निहित है।
- हारेत्ज़ (जुलाई 2017) और टाइम्स ऑफ़ इज़राइल (2015) की रिपोर्टों के अनुसार, इज़राइल ने सीरिया में 1,600 से ज़्यादा सशस्त्र विद्रोहियों और चरमपंथियों का सफ़ाया किया।
- संयुक्त राष्ट्र की अनडोफ़ रिपोर्ट (2015) ने भी इज़राइल और आतंकवादी समूहों के बीच आपसी संबंधों को उजागर किया।
- अपनी पुस्तक "द डर्टी वॉर ऑन सीरिया" में, प्रसिद्ध विश्लेषक टिम एंडरसन ने वैश्विक स्तर पर इस उपनिवेशवादी परियोजना का वर्णन किया है कि कैसे आतंकवाद की आड़ में इस्लामी दुनिया को अंदर से तोड़ दिया गया।
यह सबूत हमें बताता है कि दुश्मन हमसे हमारा असली हथियार - एकता - छीनना चाहता है।
आप कुरान और सुन्नत की रोशनी में इस मुद्दे को कैसे समझाते हैं?
मौलाना सय्यद करामत हुसैन जाफ़री: कुरान स्पष्ट रूप से कहता है: "إِنَّمَا الْمُؤْمِنُونَ إِخْوَةٌ इन्नमल मोमेनून इख़्वाह" - (सूर ए हुजरात 49:10)
वास्तव में, सभी ईमान वाले एक-दूसरे के भाई-भाई हैं।
हम इस आयत को बार-बार पढ़ते हैं, लेकिन इसे अपनाते नहीं हैं। क़ुरान कहता है: "ولا تكونوا كالتي نقضت غزلها من بعد قوة أنكاثا... वला तकूनू कल्लति नक़ज़त ग़ज़्लहा मिन बादे क़ुव्वतिन अनकासन... "
अपनी ही बुनाई का धागा मत तोड़ो - सूर ए नहल
ये निर्देश हमें बताते हैं कि उम्मत बनाना अनिवार्य है, और संप्रदाय बनाना हराम है।
कुछ लोग संप्रदायवाद को ईमान, सच और झूठ की लड़ाई मानते हैं। इस पर आपकी क्या राय है?
मौलाना सय्यद करामत हुसैन जाफ़री: यह सब मनोवैज्ञानिक धोखा है। अगर हम इस्लाम के इतिहास का ध्यानपूर्वक अध्ययन करें, तो हम पाएंगे कि जिन लोगों ने सबसे पहले संप्रदायवाद को बढ़ावा दिया, वे या तो राजनीतिक हितों के लिए सक्रिय थे या उपनिवेशवाद के हथियार थे।
आज भी, जो तत्व शिया या सुन्नी के नाम पर हत्या और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं, उनके पीछे अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियां, ज़ायोनी निवेश और औपनिवेशिक शक्तियाँ हैं।
क्या हदीसों की रोशनी में संप्रदायवाद की निंदा की गई है?
मौलाना सय्यद करामत हुसैन जाफ़री: हाँ। सहीह बुखारी में, अल्लाह के रसूल (स) ने फ़रमाया: "یمرقون من الدین کما یمرق السہم من الرمیة... यमरेक़ूना मिनद दीने कमा यमरेक़ुस सहमे मिनर रमीयते ..."
वे धर्म से ऐसे विदा होंगे जैसे शिकारी के शरीर से तीर निकल जाता है
यह उन समूहों के बारे में है जो बाहरी तौर पर धार्मिक होने का दावा करते हैं, कुरान पढ़ते हैं और नमाज़ पढ़ते हैं, लेकिन वास्तव में वे देशद्रोह और भ्रष्टाचार के वाहक होंगे।
इसी तरह, नहजुल बलाग़ा में, हज़रत अली (अ) कहते हैं: "الناس صنفان: إمّا أخ لك في الدين أو نظير لك في الخلق अन्नासो सिंफ़ानः इम्मा अख़ुन लका फ़िद्दीन औ नज़ीरुन लका फ़िल ख़ल्क़ लोग दो प्रकार के होते हैं: या तो धर्म में तुम्हारे भाई या सृष्टि में तुम्हारे समकक्ष।"
यह कितना व्यापक वाक्य है जो दुनिया के हर इंसान के लिए प्रेम और न्याय का आधार प्रदान करता है।
इस स्थिति में मुस्लिम उम्माह को क्या करना चाहिए?
मौलाना सय्यद करामत हुसैन जाफ़री: हमें "शिया, सुन्नी, देवबंदी, अहले हदीस" के दायरे से बाहर निकलकर मुहम्मद की उम्मत बनना होगा।
हमारे नबी (स) का असली मिशन एक उम्मत बनाना था, उसे बाँटना नहीं। दुश्मन एक उम्मत बनने से डरता है, हमें फिरकों में बाँटने से नहीं।
अब समय आ गया है कि हम उपनिवेशवाद को उसका असली जवाब दें - एकता, अंतर्दृष्टि और एक राष्ट्र।
मौलाना साहब! राष्ट्र के लिए आपका अंतिम संदेश क्या होगा?
मौलाना सय्यद करामत हुसैन जाफ़री: मेरा अंतिम संदेश वही है जो क़ुरान ने हमें दिया है: "और सब मिलकर अल्लाह की रस्सी को मज़बूती से थामे रहो, और आपस में मत फूट डालो" — (आल इमरान 3:103)
अल्लाह की रस्सी को मज़बूती से थामे रहो और आपस में मत फूट डालो।
अगर हम इस आदेश का पालन नहीं करेंगे, तो याद रखना, हमारा हश्र उन राष्ट्रों जैसा होगा जो अराजकता के कारण धरती से मिट गए थे।
आओ, हम एक राष्ट्र बनें, वरना हम संप्रदायों की कब्र में दफ़न हो जाएँगे।
ग़ज़्ज़ा: आधुनिक समय का सबसे भीषण मानवीय अकाल
अमेरिका और ज़ायोनी सरकार की मिलीभगत से पैदा हुआ ग़ज़्ज़ा का भुखमरी का संकट आधुनिक समय की सबसे भीषण मानवीय आपदा बन गया है।
ग़ज़्ज़ा में जारी भीषण अकाल ने मानवीय त्रासदी का सबसे भयावह उदाहरण पेश किया है, जहाँ लाखों पुरुष, महिलाएँ और बच्चे भूख, प्यास और भीषण गर्मी में अपनी जान बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। अल जज़ीरा की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, इस समय गाजा में केवल दो चीज़ें समान हैं: भूख और जानलेवा गर्मी। अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, खासकर यूनिसेफ की बार-बार चेतावनियों के बावजूद, स्थिति दिन-ब-दिन बदतर होती जा रही है।
900 से ज़्यादा लोग भूख से हताहत
रिपोर्ट के अनुसार, भूख से मरने वालों की संख्या अब तक 900 से ज़्यादा हो गई है, जबकि हज़ारों लोग भोजन की तलाश में ज़ायोनी हमलों के कारण अपनी जान गंवा चुके हैं। वर्तमान में, 71,000 से ज़्यादा लोग मौत के कगार पर हैं और उन्हें भोजन और दवा की तत्काल आवश्यकता है।
भोजन केंद्र भी मृत्यु शिविर बन गए हैं
इज़राइली हमले न केवल रिहायशी इलाकों पर जारी हैं, बल्कि सहायता केंद्रों पर भी सीधे हमले किए जा रहे हैं। अल जज़ीरा के अनुसार, इज़राइली सेना इन केंद्रों को निशाना बनाती है जहाँ लोग भोजन पाने के लिए इकट्ठा होते हैं। कुछ लोग गोलियों से शहीद हो जाते हैं, कुछ मिसाइल हमलों में मारे जाते हैं, और कुछ भागती हुई भीड़ में कुचले जाते हैं।
यूनिसेफ: लाखों लोग भुखमरी के अंतिम चरण में पहुँच चुके हैं
यूनिसेफ के अनुसार, 470,000 से ज़्यादा लोग गंभीर भुखमरी से पीड़ित हैं और भोजन के सभी पाँच महत्वपूर्ण चरणों के अंतिम चरण में पहुँच चुके हैं। 71 बच्चे गंभीर कुपोषण से पीड़ित हैं, जबकि 17,000 महिलाएँ भी इसी समस्या से पीड़ित हैं।
विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफपी) के अनुसार, वर्तमान स्थिति पिछले कई दशकों में सबसे खराब मानवीय संकट बन गई है। चिकित्सा आपूर्ति की भारी कमी के कारण, ग़ज़्ज़ा के अस्पताल भारी दबाव में हैं और संक्रमित, घायल और कमज़ोर लोगों का इलाज करने में असमर्थ हैं।
कफ़न और दफ़न का संकट
अल जज़ीरा ने एक अन्य रिपोर्ट में बताया कि ग़ज़्ज़ा में कफ़न, बैग और कोल्ड स्टोरेज की कमी ने एक नया संकट पैदा कर दिया है। अगर पाँच दिनों के भीतर ज़रूरी आपूर्ति नहीं पहुँची, तो मुर्दाघर पूरी तरह से बंद हो जाएँगे। नासिर मेडिकल कॉम्प्लेक्स के एक कर्मचारी के अनुसार, उन्हें हर दिन 35 से 100 शहीदों के शव मिल रहे हैं और कफ़न की कमी के कारण उन्हें शवों को पुराने कपड़ों में लपेटना पड़ रहा है।
खाद्य पदार्थों की कीमतें आसमान छू रही हैं
अल अरबी अल-जदीद ने लिखा है कि खाद्यान्न की कमी और घेराबंदी ने ग़ज़्ज़ा निवासियों को पूरी तरह से असहाय बना दिया है। विश्व खाद्य संगठन के अनुसार, अक्टूबर 2023 में इज़राइली आक्रमण शुरू होने के बाद से आटे की कीमत 3,000 गुना बढ़ गई है।
दीवार के पीछे सहायता, लेकिन गाजा भूखा
विश्व खाद्य कार्यक्रम के एक वरिष्ठ अधिकारी कार्ल स्काउ ने कहा कि उन्होंने अपने जीवन में इतना भयानक मानवीय संकट कभी नहीं देखा। उनके अनुसार, सहायता सामग्री सीमाओं के पास पहुँच गई है, लेकिन इज़राइल ने 2 मार्च से ग़ज़्ज़ा पर पूर्ण नाकाबंदी कर दी है और किसी भी खाद्य सामग्री को अंदर नहीं आने दे रहा है।
दुनिया भर में अभूतपूर्व खाद्य संकट
"डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स" संगठन का कहना है कि ग़ज़्ज़ा में कुपोषण का स्तर दुनिया में अभूतपूर्व है। गर्भवती महिलाओं में कुपोषण के कारण, समय से पहले जन्मों में वृद्धि हुई है, और बच्चों के लिए विशेष इकाइयाँ इतनी भरी हुई हैं कि एक ही बिस्तर पर चार से पाँच बच्चों को रखा जा रहा है।
यह मानवीय स्थिति अंतर्राष्ट्रीय चेतना को झकझोरने के लिए पर्याप्त है, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की चुप्पी इस दुखद परिदृश्य को और भी गंभीर बना रही है।
क्या ब्राज़ील का फिलिस्तीन समर्थकों की पक्ति में शामिल होना महत्वपूर्ण मोड़ है
हाल ही में एक बड़ी और चर्चा में रहने वाली कूटनीतिक पहल के तहत, ब्राज़ील ने भी उन देशों का साथ दिया है जो इज़राइल के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में की गई दक्षिण अफ्रीका की शिकायत का समर्थन कर रहे हैं। इससे पता चलता है कि इज़राइल के अपराधों को लेकर दुनिया भर में चिंता बहुत गंभीर हो गई है।
ब्राज़ील के विदेश मंत्री माउसरो विएरा ने ब्राज़ील के मीडिया से कहा है कि ब्राज़ील फिलहाल प्रशासनिक कार्यवाही पूरी करने की कोशिश कर रहा है ताकि दक्षिण अफ़्रीका द्वारा इज़राइल के खिलाफ दायर की गई युद्ध अपराधों की शिकायत में शामिल हो सके।
उन्होंने यह भी कहा कि ब्राज़ील ने कई महीनों तक ग़ज़्ज़ा युद्ध में शांति और युद्धविराम के लिए प्रयास किए, लेकिन इज़राइली पक्ष केवल हिंसा बढ़ाने के लिए तैयार रहा। इस हिंसा के बढ़ने के कारण ब्राज़ील सरकार ने इज़राइल के खिलाफ अपने भविष्य के कदमों में अधिक सख्त कानूनी रुख अपनाने का निर्णय लिया है।
ब्राज़ील लैटिन अमेरिका का छठा देश है जो इस मामले का समर्थन करने वालों में शामिल हुआ है। यह मामला असल में कानूनी रास्तों और अंतरराष्ट्रीय कार्रवाइयों के जरिए ग़ज़्ज़ा युद्ध की बेइंतेहा हत्याओं की जांच करवाने की मांग करता है।
यह घटना लैटिन अमेरिकी देशों में नैतिक कूटनीति के बढ़ते हुए रुख को दर्शाती है।
ईरान एजेंसी (IAEA) की निगरानी में लेकिन ज़ायोनी सरकार किस संधि में शामिल है!?
ईरानी विदेश मंत्रालय के कानूनी एवं अंतर्राष्ट्रीय मामलों के उप-मंत्री ने संयुक्त राष्ट्र में 110 से अधिक देशों के प्रतिनिधियों के साथ एक ब्रीफिंग सत्र में कहा: ईरान पर हमला एक स्पष्ट अपराध है और सुरक्षा परिषद के लिए एक ऐतिहासिक परीक्षा।
काज़िम ग़रीबाबादी ने संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों के प्रतिनिधियों के साथ न्यूयॉर्क में आयोजित इस बैठक में कहा कि ज़ायोनी शासन पिछले आठ दशकों से इस क्षेत्र में अस्थिरता और असुरक्षा का मुख्य कारण रहा है।" उन्होंने ज़ोर देकर कहा: "यह वही शासन है जिसने अब तक 3000 से अधिक आतंकवादी हमले किए हैं, 70 लाख से अधिक फिलिस्तीनियों को विस्थापित किया है, सैकड़ों हजारों लोगों को शहीद किया है और 10 लाख से अधिक फिलिस्तीनियों को गिरफ्तार किया है।
ईरानी विदेश मंत्रालय के उप-मंत्री काज़िम ग़रीबाबादी ने ज़ायोनी शासन के ख़तरनाक परमाणु शस्त्रागार का जिक्र करते हुए स्पष्ट किया: "येरुशलम पर कब्ज़ा जमाए बैठा यह शासन न तो किसी निरस्त्रीकरण संधि का सदस्य है और न ही सामूहिक विनाश के हथियारों के प्रसार-रोकथाम समझौतों का। इसके पास सैकड़ों परमाणु वारहेड्स का अवैध भंडार है।
उन्होंने आगे कहा: जबकि ईरान का परमाणु कार्यक्रम हमेशा से शांतिपूर्ण रहा है और IAEA की कड़ी निगरानी में है फ़िर भी ज़ायोनी शासन तीन दशकों से झूठे दावों के जरिए ईरान के 'परमाणु बम' का भ्रम फैलाकर अमेरिकी सरकार और वैश्विक जनमत को गुमराह कर रहा है।
ईरान के वरिष्ठ राजनयिक ने हालिया परमाणु प्रतिष्ठानों पर हमलों पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाओं को लेकर कहा: "अधिकांश देशों ने इस्राइल और अमेरिका की ईरानी सीमा की संप्रभुता के उल्लंघन की निंदा की, लेकिन तीन यूरोपीय देशों, सुरक्षा परिषद, IAEA बोर्ड ऑफ गवर्नर्स और यहां तक कि एजेंसी के महानिदेशक ने न केवल अपने कानूनी-नैतिक दायित्वों को ऩजरअंदाज़ किया, बल्कि अपनी चुप्पी और पक्षपाती रुख से इस जघन्य अपराध को अनदेखा कर दिया।"
इराक और ईरान एक ही मोर्चे में खड़े हैं: अलसूदानी
इराक के प्रधानमंत्री मोहम्मद शोया अलसूदानी ने एक ईरानी संसदीय प्रतिनिधिमंडल के साथ बैठक के दौरान कहा कि ईरान और इराक दोनों एक साझा दुश्मन के खिलाफ एक ही मोर्चे में हैं।
इराकी प्रधानमंत्री ने ईरानी संसदीय प्रतिनिधिमंडल के साथ मुलाकात में कहा कि ईरान और इराक एक ही मोर्चे में खड़े हैं और अमेरिका तथा इस्राइल द्वारा थोपे गए युद्ध में इराकी सरकार ने स्पष्ट और दृढ़ रुख अपनाते हुए इस्राइल की कड़ी निंदा की है।
विस्तार से जानकारी के अनुसार, ईरानी संसदीय प्रतिनिधिमंडल ने आज सुबह बगदाद में इराकी प्रधानमंत्री मोहम्मद शोया अलसूदानी से मुलाकात की, जिसमें दोनों देशों के बीच एकजुटता, क्षेत्र की स्थिति और जायोनी अत्याचारों पर चर्चा हुई।
इराकी प्रधानमंत्री ने इस्लामी गणतंत्र ईरान को जायोनी सरकार के खिलाफ हालिया युद्ध में सफलता पर बधाई दी और शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि यह सफलता ईरान के सर्वोच्च नेता की बुद्धिमान नेतृत्व का परिणाम है।
उन्होंने कहा कि जायोनी सरकार अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन कर रही है। इस्राइल के खिलाफ इराक, ईरान के कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है।
उन्होंने यह भी कहा कि ईरान को शांतिपूर्ण परमाणु ऊर्जा के उपयोग का पूरा अधिकार है और कोई भी देश इस अधिकार पर रोक नहीं लगा सकता। हालिया इस्राइली हमले का लक्ष्य सिर्फ परमाणु सुविधाएं नहीं थीं, बल्कि ईरान की समग्र प्रगति को रोकना था जो विफल रहा।
उन्होंने आगे कहा कि जायोनी सरकार उन सभी देशों को निशाना बना रही है जो उसे मान्यता नहीं देते या फिलिस्तीन के प्रतिरोध और शिया सरकारों का समर्थन करते हैं, इसलिए यह स्पष्ट है कि यह युद्ध अभी खत्म नहीं हुआ है।
बैठक के दौरान ईरानी प्रतिनिधिमंडल ने ईरान पर थोपे गए युद्ध में मिली सफलताओं के संदर्भ में इराक के लोगों, अधिकारियों और धार्मिक नेताओं के रुख का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि जायोनी सरकार को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपराधी घोषित किया जाना चाहिए अमेरिका और इस्राइल में अब कोई अंतर नहीं रह गया है।