رضوی

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 हुज्‍जतुल इस्‍लाम बरमाई ने कहा,अगर आप चाहते हैं कि आपके बच्चे की धार्मिक परवरिश अच्छी हो तो कभी भी उसे लोगों के सामने डांटें या अपमानित न करें क्योंकि इसका उल्टा असर होता है और इससे बच्चे में चिंता पैदा होती है।हमें बच्चों का सम्मान करना चाहिए और एक प्यार भरे माहौल में उन्हें सिखाना चाहिए।

हुज्‍जतुल इस्‍लाम बरमाई ने कहा,अगर आप चाहते हैं कि आपके बच्चे की धार्मिक परवरिश अच्छी हो तो कभी भी उसे लोगों के सामने डांटें या अपमानित न करें क्योंकि इसका उल्टा असर होता है और इससे बच्चे में चिंता पैदा होती है।हमें बच्चों का सम्मान करना चाहिए और एक प्यार भरे माहौल में उन्हें सिखाना चाहिए।

बच्चों के साथ खेलना माता-पिता की सबसे अच्छी इबादत है। बचपन में खेल-खेल में ही बच्चों को अच्छी शिक्षा दी जा सकती है।बच्चों को कभी भी सार्वजनिक रूप से डांटे या शर्मिंदा न करें, इससे उल्टा असर पड़ता है और उनमें घबराहट पैदा होती है।

बच्चों का सम्मान करें और उन्हें उनकी उम्र के अनुसार, प्यार के माहौल में धार्मिक अनुभव दें।बच्चों पर रोज़ा, नमाज़ आदि जबरदस्ती न थोपें। अगर बच्चा खेल रहा है और आप नमाज़ पढ़ना चाहते हैं, तो अपना समय बदलें, बच्चे को नहीं।

माता-पिता को अपने प्यार और अच्छे व्यवहार से धर्म की खूबसूरती बच्चों के सामने पेश करनी चाहिए।छह साल की उम्र में हिजाब (पर्दा) जबरदस्ती न करें, बल्कि उनमें शर्म और हया की भावना पैदा करें।बच्चों को गोद में लें और प्यार करें, इससे उनमें सुरक्षा और शांति की भावना आती है।

बच्चों की परवरिश में ज़्यादा सख्ती या परफेक्शनिस्ट न दिखाएं, इससे परिवार सिंगल चाइल्ड (एकल बच्चे) की तरफ बढ़ते हैं।

आखिर में उन्होंने गाजा में मारे गए बच्चों का जिक्र करते हुए कहा कि भविष्य की चिंता से डरकर बच्चे पैदा करने से पीछे नहीं हटना चाहिए।

मुख्य संदेश बच्चों की परवरिश प्यार, सम्मान और उनकी उम्र के अनुकूल तरीके से करें। जबरदस्ती और सार्वजनिक डांट-डपट से बचें। खेल-खेल में और अपने अच्छे व्यवहार से ही आप उन्हें अच्छी शिक्षा और संस्कार दे सकते हैं।

इज़राईली विमान ने अपने हमलों को जारी रखते हुए दक्षिणी लेबनान में नागरिक क्षेत्रों को निशाना बनाया है।

इज़राईली विमान ने अपने हमलों को जारी रखते हुए दक्षिणी लेबनान में नागरिक क्षेत्रों को निशाना बनाया है।

ड्रोन ने आधी रात से सुबह के शुरुआती घंटों तक होला सिटी पर चार लगातार हमले किए। पहला हमला सोनिक बम के माध्यम से किया गया जिसके बाद ड्रोन ने शहर के एक कैफे को निशाना बनाया और उसके बाद तीन और लगातार हमले किए गए।

यह तनाव इज़राइल द्वारा लेबनान के सीमावर्ती गाँवों और कस्बों को निशाना बनाने वाले हमलों की लगातार श्रृंखला का हिस्सा है। ज़ायोनी सरकार ने दक्षिणी लेबनान में तनाव कम करने के समझौते का हजारों बार उल्लंघन किया है।

अलमयादीन की रिपोर्ट के अनुसार, यह हमले न केवल नागरिकों के जीवन और संपत्ति के लिए खतरा हैं, बल्कि क्षेत्र में मौजूद तनाव और राजनीतिक अस्थिरता को भी बढ़ा रहे हैं। स्थानीय लोगों ने सुरक्षा एजेंसियों से तत्काल सुरक्षा प्रदान करने की अपील की है।

ग़ीबत एक ऐसा पाप है जो बहुत आसानी से ज़बान पर आ जाता है, लेकिन इसके परिणाम दुनिया और आख़िरत, दोनों में बेहद गंभीर होते हैं। ज़बान के ज़रिए होने वाले इस हक़्क़ुन नास से निजात के लिए चार बुनियादी क़दम मददगार साबित हो सकते हैं।

हुज़तुल इस्लाम वल मुस्लेमीन रज़ा मुहम्मदी शाहरूदी ने एक सवाल-जवाब की श्रृंखला में "ग़ीबत के ज़रिए दूसरों का हक़ जाने" के मुद्दे पर बात की, जिसका सारांश निम्नलिखित है:

सवाल: अगर हमने किसी की ग़ीबत की है तो उसका हक़ कैसे अदा करें और इस पाप की तलाफ़ी कैसे संभव है?

जवाब: ग़ीबत इस्लाम में गुनाहान-ए-क़बीरा में से एक है। क़ुरआन-ए-क़रीम और अहादीस में इससे सख्ती के साथ रोका गया है और इस पर अल्लाह के अज़ाब की वईद सुनाई गई है।

बहुत से पाप इंसान की ज़िंदगी में कभी-कभी ही आते हैं। जैसे किसी का माल चुराना, किसी की दीवार गिराना, या शराब पीना। लेकिन ग़ीबत एक ऐसा पाप है जो बहुत आसानी से हो जाता है, और अफ़सोस कि आज के समाज में इसकी बुराई का एहसास बहुत कम रह गया है, हालांकि यह पाप भी अन्य बड़े पापों जितना ही गंभीर है।

ग़ीबत की तलाफ़ी के लिए चार बुनियादी चरण हैं:

? पहला चरण: सच्ची तौबा

सबसे पहले इंसान को सच्ची तौबा करनी चाहिए। यानी दिल से निदामत महसूस करे, अपने किए पर पछताए और पक्का इरादा करे कि दोबारा कभी इस पाप की तरफ नहीं लौटेगा।

रिवायतों में आया है कि ग़ीबत करने वाला व्यक्ति अगर तौबा न करे तो सबसे पहले जहन्नुम में दाखिल होगा, और अगर तौबा कर ले तो सबसे आख़िर में जन्नत में दाखिल किया जाएगा।

? दूसरा चरण: ग़ीबत के असरात को ज़ायल करना

अगर ग़ीबत की वजह से किसी को नुकसान पहुंचा हो—चाहे वह माली, अख़लाक़ी, इज़्ज़त से मुताल्लिक हो या खानदानी भरोसे का नुकसान हो तो इंसान को अपनी हद तक उन असरात को ख़त्म करने की कोशिश करनी चाहिए।

जैसे अगर किसी ने किसी औरत की बुराई करके उसकी सास के दिल में बदगुमानी पैदा कर दी है, तो अब उसे चाहिए कि उस औरत की अच्छाइयां बयान करे, ताकि उसका मक़ाम और भरोसा बहाल हो जाए।

? तीसरा चरण: नेकियों का हदिया देना

ग़ीबत की तलाफ़ी के लिए यह भी बेहतर है कि ग़ीबत करने वाला शख्स, उसके लिए नेक अमल अंजाम दे जिसकी ग़ीबत की गई थी।

मसलन: सदक़ा देना, नमाज़-ए-मुस्तहब पढ़ना, क़ुरआन की तिलावत या ज़ियारत करना और सवाब उसे बख्श देना।

ये सारे काम इस नीयत से हों कि अल्लाह तआला उस शख्स को ख़ुश करे जिसका हक़ पामाल हुआ।

अगर बाद में वो शख्स जान ले कि उसके लिए नेकियां की गई हैं, तो उसके दिल में नरम गोशा पैदा होगा और शायद वो राज़ी हो जाए।

? चौथा चरण: उज़्र ख़्वाही और हलालीयत तलब करना

अगर ग़ीबत की बात उस शख्स के कानों तक पहुंच चुकी है और उसे दुख या तकलीफ़ हुई है, तो ज़रूरी है कि गीबत करने वाला जाकर माफ़ी मांगे और हलालीयत तलब करे।

लेकिन अगर गीबत की बात अभी उसे मालूम नहीं हुई है, और जाकर बताने से नया फ़ितना या फ़साद पैदा होने का अंदेशा है, तो ऐसी सूरत में सामने जाकर माफ़ी मांगना ज़रूरी नहीं।

असल मक़सद यह है कि उसके दिल का हक़ अदा हो जाए और ताल्लुक़ात की खराबी दूर हो।

✳️ सारांश:

ग़ीबत की तलाफ़ी के लिए चार चरण ये हैं:

  1. सच्ची तौबा करना
  2. ग़ीबत के असरात को दूर करना
  3. ग़ीबत शुदा शख्स के लिए नेक अमल करना
  4. उज़्र ख़्वाही और हलालीयत तलब करना

इसके साथ-साथ, अपने लिए और उस शख्स के लिए इस्तिग़फ़ार करना भी बेहद प्रभावी है, क्योंकि दुआ और नेक नीयत से दिल साफ़ होते हैं और अल्लाह की रहमत जलील हो जाती है।

ये चार चरण इंसान को न सिर्फ़ ग़ीबत के पाप से पाक करते हैं, बल्कि समाज में भरोसा, मोहब्बत और भाईचारे को भी बहाल करते हैं।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मांदेगारी ने दीन में अक्ल के मक़ाम पर ज़ोर देते हुए कहा: तब्लीग़ और दीनी तालीम अक्ल और क़ुरआन पर मुस्तंद होनी चाहिए और हिजाब की पाबंदी समाज के लिए अनिवार्य आवश्यकताओ मे से है।

हौज़ा और यूनिवर्सिटी के शिक्षक हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मुहम्मद महदी मांदेगारी ने टेलीविज़न प्रोग्राम "समते ख़ुदा" में दीनी तालीमात में अक्ल की अहमियत पर ज़ोर देते हुए कहा: क़ुरआन-ए-क़रीम में है कि मसाइल का सामना अक्ल और फ़िक्र के हथियार से करना चाहिए और हमारी सारी तालीमात अक्ल या नक़्ल पर मुस्तंद होनी चाहिए। अगर अइम्मा ए मासूमीन अलैहेमुस्सलाम की कोई रिवायत ज़ाहिरी रूप से अक्ल से टकराए तो उसे रद्द कर देना चाहिए क्योंकि अक्ल एक इलाही हुज्जत है जो शरअ के हम पल्ला है और टकराव की सूरत में उस कलाम पर भरोसा नहीं किया जा सकता।

उन्होंने आगे कहा: ख़ुदा ही अक्ल और शरअ का ख़ालिक़ है और हमारी मुस्तंद भी क़ुरआन और अक्ल ही है।

हौज़ा और यूनिवर्सिटी के इस शिक्षक ने हिजाब के विषय पर बात करते हुए कहा: एक व्यक्ति ने मुझसे पूछा कि आप पर्दे की पाबंदी पर क्यों ज़ोर देते हैं? मैंने कहा: अक्ल के हुक्म की वजह से। असफ़लता का फ़ॉर्मूला सादा है: आंख देखती है, दिल चाहता है लेकिन हाथ नहीं पहुंचता; यही असफलता है। ख़ुदा ने इंसान को सबसे सुंदर प्राणी बनाया है और जिंस-ए-मुख़ालिफ़ की कशिश भी साफ़ है। जब उचित वस्त्र न हो, तो आंखें देखती हैं, दिल की ख्वाहिश होती है और हाथ उस तक नहीं पहुंच पाते। यह अक्ल का हुक्म है और क़ुरआन ने इसकी तस्दीक़ की है।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मांदेगारी ने कहा: कुछ लोग यूरोपियन और अमेरिकियों की मिसाल देते हैं लेकिन उनकी तरक्की बेहयाई की वजह से नहीं बल्कि मेहनत और लगन, नियम व अनुशासन और क़ानून की पाबंदी की वजह से है। अगर अक्ली तौर पर क़ानून की पाबंदी न की जाए तो असफलता के अलावा, पारिवारिक जीवन भी संकट का शिकार हो जाता है। औरतें और मर्द आपस में मुक़ाबला करने लगते हैं और ख़ानदान का मरक़ज़ टूट जाता है।

हौज़ा और यूनिवर्सिटी के शिक्षक ने आगे कहा: दीनी तालीमात की व्याख्या में कमी परिवारो को नुकसान पहुंचा रही है। हमने तालिब-ए-इल्म, मीडिया, हौज़ा, यूनिवर्सिटी और मसाजिद के तौर पर ख़ुदा के क़ानूनों, ख़ास तौर पर हया, हिजाब और परिवार की व्याख्या में कमी की है। परिवारो के इस्तहक़ाम के लिए तालीम और तब्लीग़ मुस्तंद और क़ाबिले फ़हम होनी चाहिए।

दुनिया भर के लगभग 100 मानवाधिकार कार्यकर्ता अभी भी गाजा की ओर बढ़ रहे हैं ताकि सियोनी घेराबंदी को तोड़कर मजलूम फिलिस्तीनियों तक सहायता पहुँचाई जा सकें।

दुनिया भर के लगभग 100 मानवाधिकार कार्यकर्ता अभी भी गाजा की ओर जा रहे हैं ताकि सियोनी घेराबंदी को तोड़कर मजलूम फिलिस्तीनियों तक राहत सामग्री पहुंचा सकें।

सूत्रों के मुताबिक, "समूद बहरी बेड़ा" के कुछ जहाज अभी भी बाकी हैं जो गाजा के तटों की ओर बढ़ रहे हैं एक कार्यकर्ता ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर लिखा,हम गाजा के और करीब पहुंच रहे हैं।

यह कार्यकर्ता नौ नावों के जरिए इस कोशिश में लगे हुए हैं कि इजरायल की गैर-इंसानी घेराबंदी को तोड़कर कम से कम थोड़ी मात्रा में ही सही, मगर गाजा के बच्चों और लोगों तक साफ पानी और खाने का सामान पहुंचा सकें।

रिपोर्टों के मुताबिक, इजरायली सरकार ने अब तक इस राहती बेड़े के दर्जनों जहाजों को रोक लिया है और उन पर सवार लगभग 450 मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को हिरासत में लेकर शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना का निशाना बनाया है।

गौरतलब है कि सियोनी सरकार पिछले 18 सालों से 24 लाख आबादी वाले गाजा को घेराबंदी में रखे हुए है। इस घेराबंदी के नतीजे में बुनियादी इंसानी जरूरतों, जैसे पानी और खाना, तक पहुंच लगभग नामुमकिन बना दी गई है।

इसके अलावा, हालिया हमले में इजरायली फौज ने गाजा में 67 हजार से ज्यादा फिलिस्तीनियों को शहीद किया है, जिनमें महिलाएं, मर्द, बच्चे और यहां तक कि नवजात शिशु भी शामिल हैं।

किरमान में मजलिस ए ख़ुबरेगान-ए-रहबरी के प्रतिनिधि आयतुल्लाह शेख बहाई ने सय्यद हसन नसरुल्लाह र.ह. और तूफान-ए-अक्सा के शहीदों की बरसी पर कहा कि यह ऑपरेशन इतिहास का ऐसा मोड़ है जिसने क्षेत्र पर दुश्मन के वर्चस्व की सारी योजनाओं को नाकाम कर दिया हैं।

मजलिस ए ख़ुबरेगाने रहबरी में किरमान की जनता के प्रतिनिधि आयतुल्लाह शेख बहाई ने प्रांत के हौज़ा इल्मिया ख़्वाहरान के तत्वावधान में आयोजित दर्स-ए-अख़लाक़ को संबोधित करते हुए कहा कि तूफान-ए-अक्सा की कार्रवाई केवल एक सैन्य ऑपरेशन नहीं बल्कि क्षेत्र की तकदीर बदलने वाला ऐतिहासिक मोड़ साबित हुआ।

उन्होंने अपने पाठ में इल्म-ए-बदीए की बराअत-ए-इस्तेहलाल" नामक शैली पर चर्चा करते हुए अमीरूल-मोमिनीन हज़रत अली अलैहिस्सलाम के नहजुल-बलागा के ख़त नंबर 31 का उदाहरण पेश किया और फरमाया कि इमाम (अ.स.) ने दुनिया की नापाएदारी और धोखे को बयान करके शुरू में ही इंसान को ज़ुह्द और आख़िरत की ओर मोड़ दिया।

आयतुल्लाह शेख बहाई ने आगे स्पष्ट करते हुए कहा कि जब इंसान मारिफत के उस स्तर पर पहुंच जाता है कि दूसरों की मुसीबत को अपनी मुसीबत समझे तो वह सामाजिक और धार्मिक जिम्मेदारियों को पूरी गंभीरता से निभाता है।

उन्होंने हज़रत अमीरूल मोमिनीन (अ.स.) की नसीहतों में "तक़्वा", "दिल की आबादी ज़िक्र-ए-ख़ुदा से" और "रिसमान-ए-इलाही से मजबूती से थामने" को केंद्रीय संदेश बताते हुए कहा कि ज़िक्र केवल ज़बान से तस्बीह पढ़ना नहीं है, बल्कि नेमतों को खुदा की रज़ा में इस्तेमाल करना ही असली ज़िक्र है।

अंत में आयतुल्लाह शेख बहाई ने सय्यद हसन नसरुल्लाह (रह) और तूफान-ए-अक्सा के शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए कहा,इस ऑपरेशन ने इतिहास को दो हिस्सों में बांट दिया एक तूफान-ए-अक्सा से पहले का ज़माना और दूसरा उसके बाद का दुश्मन आज तक अपनी हार का बदला नहीं ले पाया है।

संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने सभी पक्षों से गाज़ा शांति समझौते का पालन करने का आग्रह किया है।

संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने सभी संबंधित पक्षों पर जोर दिया है कि वे गाजा शांति समझौते की सभी शर्तों का पूरी तरह से पालन करें।

उन्होंने मांग की कि स्थायी युद्धविराम स्थापित किया जाए, सभी कैदियों को रिहा किया जाए, और गाजा के सभी क्षेत्रों में मानवीय सहायता की बिना रुकावट पहुंच सुनिश्चित की जाए।

गुटेरेस ने गाज़ा में फिलिस्तीनियों की स्थिति को अमानवीय बताते हुए कहा कि स्थिति अवर्णनीय है।

महासचिव ने कहा कि मानवीय सहायता और आवश्यक वाणिज्यिक वस्तुओं की तत्काल और पूर्ण पहुंच आवश्यक है और संयुक्त राष्ट्र इस संदर्भ में मौजूदा समझौते के कार्यान्वयन का पूरा समर्थन करेगा।

गुटेरेस ने सभी संबंधित पक्षों से अपील की कि वे इस अवसर का उपयोग फिलिस्तीन पर कब्जा करने वाली शक्ति के अंत की दिशा में एक विश्वसनीय राजनीतिक रास्ता बनाने के लिए करें।

युवाओं का निजी जीवन पूरी तरह से स्वतंत्र नहीं, बल्कि निर्देशित होना चाहिए। कमरों और डिजिटल उपकरणों के उपयोग को स्पष्ट रूप से सीमित करके, निजी स्थानों के निर्माण को रोककर, और क्रमिक पर्यवेक्षण के माध्यम से, माता-पिता न केवल बच्चे की स्वायत्तता को बढ़ावा दे सकते हैं, बल्कि माता-पिता की शैक्षिक पर्यवेक्षण के अधिकार को बनाए रखते हुए उसकी ज़िम्मेदारी और स्वस्थ विकास भी सुनिश्चित कर सकते हैं।

पारिवारिक मामलों के विशेषज्ञ हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन त्राश्यून ने अपनी एक बैठक में बच्चों के निजी जीवन पर माता-पिता की निगरानी के विषय पर एक महत्वपूर्ण प्रश्न का उत्तर दिया।

प्रश्न: मेरा बारह साल का बच्चा घंटों अपने कमरे में मोबाइल फ़ोन लिए बैठा रहता है और हमें अंदर नहीं आने देता। मैं उसके निजी जीवन और माता-पिता की निगरानी के बीच उचित संतुलन कैसे बनाऊँ?

उत्तर: सबसे पहले, एक महत्वपूर्ण बात समझना ज़रूरी है कि "बच्चों के निजी जीवन" की गलत अवधारणा में फंसने से गंभीर शैक्षिक नुकसान हो सकता है।

कुछ परामर्शदाता या सांस्कृतिक रुझान निजी जीवन की ऐसी अवधारणा प्रस्तुत करते हैं जो माता-पिता को पर्यवेक्षण और शिक्षाप्रद भूमिका निभाने से प्रभावी रूप से रोकती है, जिसके परिणामस्वरूप बच्चों के लिए गंभीर जोखिम पैदा हो सकते हैं।

धार्मिक दृष्टिकोण से, पवित्र कुरान स्पष्ट रूप से कहता है कि बच्चों को तीन मौकों पर अपने माता-पिता के कमरे में प्रवेश करने से पहले अनुमति लेनी चाहिए, लेकिन माता-पिता के लिए अपने बच्चों के कमरे में प्रवेश करने की ऐसी कोई आवश्यकता नहीं है।

इससे पता चलता है कि माता-पिता की अपने बच्चों पर विशेष ज़िम्मेदारी और निगरानी होती है। इसलिए, माता-पिता द्वारा अपने बच्चों को पूरा कमरा देना और फिर प्रवेश की अनुमति माँगना वास्तव में शैक्षिक लापरवाही है जिससे जोखिम पैदा हो सकते हैं।

परामर्श के अनुभव बताते हैं कि बच्चों को कमरे या संचार उपकरणों का पूरा स्वामित्व देने से कभी-कभी बहुत खतरनाक परिणाम सामने आते हैं।

उदाहरण के लिए, एक युवा व्यक्ति माता-पिता की जानकारी के बिना गुप्त संबंध स्थापित कर सकता है या ऐसे काम कर सकता है जिनके बारे में परिवार को पूरी तरह से पता नहीं होता।

इसके सामाजिक स्तर पर भी परेशान करने वाले परिणाम हुए हैं। उदाहरण के लिए, कुछ विकसित देशों में, ऐसी नरम और लापरवाह प्रशिक्षण नीतियों ने पारिवारिक संरचनाओं में गंभीर संकट पैदा कर दिए हैं।

समाधान:

  1. कमरों के उपयोग की स्पष्ट परिभाषा: कमरे का एक विशिष्ट उपयोग होना चाहिए, जैसे सोने या कपड़े बदलने के लिए। इसका मतलब यह नहीं है कि कमरा पूरी तरह से बच्चे को "सौंप" दिया जाए। माता-पिता को कमरे के वातावरण और वहाँ होने वाली गतिविधियों पर नज़र रखनी चाहिए। बच्चे को घंटों कमरे में बैठने और परिवार के लिए दरवाज़ा बंद करने का अधिकार नहीं है।
  2. बच्चों के उपकरणों और जगहों पर पूरी तरह से स्वामित्व से बचें: कोई भी ऐसी संपत्ति जो बच्चे के लिए संभावित रूप से हानिकारक हो, उसे नहीं दी जानी चाहिए। यह सिद्धांत मोबाइल फ़ोन, कंप्यूटर और यहाँ तक कि कमरे पर भी लागू होता है। उदाहरण के लिए, जिस तरह टीवी परिवार की एक साझा संपत्ति है, उसी तरह कंप्यूटर या टैबलेट भी परिवार के उपयोग के लिए होना चाहिए। इसे लिविंग रूम या किसी साझा जगह पर रखना बेहतर है ताकि बच्चे का उपयोग दिखाई दे।
  3. बच्चे के लिए "निजी जगह" बनाने से बचें: माता-पिता की उपस्थिति और निगरानी के बिना बच्चों के लिए बंद और निजी जगह आवंटित करने से छिपे हुए और हानिकारक व्यवहार को बढ़ावा मिल सकता है। बच्चा अभी उस मुकाम तक नहीं पहुँचा है जहाँ वह स्वस्थ व्यवहार की सीमाओं का प्रबंधन स्वयं कर सके, इसलिए उसे माता-पिता के मार्गदर्शन की आवश्यकता है।
  4. स्वतंत्रता की अवधारणा का क्रमिक प्रबंधन: बच्चे की स्वतंत्रता का विकास निर्देशित और क्रमिक तरीके से किया जाना चाहिए, न कि उसे पूरी तरह से स्वतंत्र छोड़कर। यदि बच्चे को शुरू से ही हर क्षेत्र में स्वतंत्र छोड़ दिया जाए, तो माता-पिता के प्रशिक्षण की कोई गुंजाइश नहीं बचती।

इसलिए, माता-पिता को बच्चे की गरिमा और सम्मान बनाए रखना चाहिए और गोपनीयता की झूठी अवधारणाओं के जाल में नहीं फँसना चाहिए। सूचित और व्यवस्थित पर्यवेक्षण न केवल बच्चे के स्वस्थ विकास के विपरीत है, बल्कि माता-पिता के प्रशिक्षण कर्तव्यों का एक अनिवार्य हिस्सा भी है।

 

हज़रत पैगंबर-ए-इस्लाम स.ल.अ. ने आख़िरी ज़माने के फितनों से परिवारों को सुरक्षित रखने के लिए चार निर्देश दिए हैं,नेकी पर अमल करना, घर में अल्लाह की याद को जीवित रखना, और संतान की परवरिश नेकी का आदेश देने और बुराई से रोकने के माध्यम से करना। माता-पिता द्वारा संतान को मार्गदर्शन देना दखलअंदाजी नहीं समझना चाहिए, बल्कि यह एक ईश्वरीय जिम्मेदारी और ईमान वालों का कर्तव्य है जो ईमान और परिवार की नैतिक सुरक्षा के लिए आवश्यक है।

हुज्जतुल इस्लाम वाल मुस्लिमीन आली ने अपने एक तकरीर में पैगंबर-ए-इस्लाम स.अ.व. की वो चार अहम नसीहतें बयान कीं जो आप (स.अ.व.) ने खानदानों को आखिरी ज़माने के फितनों और हमलों से महफूज़ रखने के लिए फरमाई थीं।

पैगंबर-ए-इस्लाम (स.अ.व.) ने फरमाया,अपने खानदानों को आखिरी ज़माने में पेश आने वाले सख्त फितनों से महफूज़ रखने के लिए चार काम ज़रूर करो।

पहला फरमान,अफ़'अलूल-ख़ैर" यानी खुद नेक अमल करो।

माता-पिता! तुम खुद अमल-ए-सालेह करने वाले बनो। अगर तुम घर में नेकी और भलाई के नमूने बनोगे, तो तुम्हारे बच्चे तुम्हारे अच्छे रवैये और करदार से तरबीयत पाएंगे।

दूसरा फरमान:व ज़क्किरूहुम बिल्लाह" यानी अपने बच्चों को खुदा की याद दिलाओ।

तुम्हारे घरों का माहौल खुदा की याद से लबरेज़ होना चाहिए, न कि ग़फलत और बेरूही से भरपूर। वह घर जिसमें याद-ए-खुदा ज़िंदा हो, वहाँ अगर शादी या खुशी की तकरीब भी हो तो कोई गुनाह करने की जुरअत नहीं कर सकता।

तीसरा और चौथा फरमान:व आम्र बिल-मारूफ़ व नही अनिल-मुनकर" यानी अपने बच्चों को नेकी का हुक्म दो और बुराई से रोको।

भाइयो और बहनो! यह जुमला कि हमें बच्चों के मुआमलात में दखल नहीं देना चाहिए" दरअसल एक गलत और ग़ैर-इस्लामी फिक्र है जो हमें बिरूनी सकाफतों से दी जा रही है ताकि हम अपनी दीनी ज़िम्मेदारियों से ग़ाफिल हो जाएं।

यह दखलअंदाजी नहीं बल्कि "मुहब्बत" और दीनी फर्ज़ है।

कुरआन-ए-करीम में भी फरमाया गया है कि मोमिनीन को एक दूसरे के कामों की ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए, नेकी का हुक्म देना और बुराई से रोकना चाहिए फिर माता-पिता और औलाद के दरमियान तो यह ज़िम्मेदारी और भी ज़्यादा है।

 

अल-अक्सा तूफ़ान" अभियान के दो वर्ष पूरे होने पर जारी अपने बयान में, हिज़्बुल्लाह लेबनान ने फ़िलिस्तीनी जनता और सभी प्रतिरोध मोर्चों के प्रति अपना अटूट समर्थन व्यक्त करते हुए कहा कि इज़राइली आक्रमण ने दुनिया के सामने अपना असली चेहरा उजागर कर दिया है। हिज़्बुल्लाह ने ज़ोर देकर कहा कि क्षेत्र की सुरक्षा अरब और इस्लामी देशों की एकता और इज़राइल के विरुद्ध प्रतिरोध का रुख अपनाने पर निर्भर करती है।

हिज़्बुल्लाह लेबनान ने "अल-अक्सा तूफ़ान" अभियान के दो वर्ष पूरे होने पर एक बयान में फ़िलिस्तीनी जनता और प्रतिरोध आंदोलनों के प्रति अपने पूर्ण समर्थन पर ज़ोर दिया।

बयान में कहा गया है कि "अल-अक्सा तूफ़ान" अभियान ने इज़राइली राज्य का असली चेहरा उजागर कर दिया है, जो मानवीय मूल्यों से रहित है और अमेरिका द्वारा समर्थित है।

हिज़्बुल्लाह ने ज़ोर देकर कहा कि इस क्षेत्र की सुरक्षा और स्थिरता अरब और इस्लामी देशों की आपसी एकता और इस दुश्मन के ख़िलाफ़ प्रतिरोध को उनके समर्थन पर निर्भर करती है, जो सिर्फ़ बल की भाषा समझता है।

समूह ने फ़िलिस्तीनी जनता, सभी प्रतिरोध समूहों और ईरान, यमन और इराक सहित उन सभी देशों और राष्ट्रों को श्रद्धांजलि अर्पित की जो गाज़ा में उत्पीड़ितों का समर्थन करने में सक्रिय हैं।

इसने यह कहते हुए समापन किया कि फ़िलिस्तीनी जनता के बलिदान और संघर्ष इतिहास के पन्नों में हमेशा ज़िंदा रहेंगे, और ईश्वर की कृपा और दया से वह दिन दूर नहीं जब फ़िलिस्तीन अपने असली उत्तराधिकारियों को वापस मिल जाएगा।