
رضوی
इमाम काज़िम अलैहिस्सलाम और बीबी शतीता
इमाम काज़िम अलैहिस्सलाम के ज़माने मे नेशापुर के शियो ने मौहम्मद बिन अली नेशापुरी नामी शख़्स कि जो अबुजाफर खुरासानी के नाम से मशहूर था, को कुछ शरई रकम और तोहफे साँतवे इमाम काज़िम (अ.स) की खिदमत मे मदीने पहुँचाने के लिऐ दी।
उन्होंने तीस हज़ार दीनार, पचास हज़ार दिरहम, कुछ लिबास और कुछ कपड़े दिये और साथ ही साथ एक कापी भी दी कि जिस पर सील लगी हुई थी और उसके हर पेज पर एक मसला लिखा हुआ था और उस से कहा था कि जब भी इमाम की खिदमत मे पहुँचो सवालो की कापी इमाम को दे देना और अगले दिन उस कापी को उनसे वापस ले लेना अगर इस कापी की सील नही टूटी तो खुद इस की सील को तोड़ लेना और देख कि इमाम ने बग़ैर सील तोड़े हमारे सवालो के जवाब दिये है या नही? अगर सील तोड़े बग़ैर इन सवालो के जवाब लिख दिये गऐ है तो समझ लेना कि यही इमामे बर हक़ हैं और हमारे माल को लेने के लायक़ है वरना हमारे माल को वापस पलटा लाना।
इस तरह खुरासान के शिया ये चाहते थे कि हक़ीकी इमाम को पहचाने और उन पर यक़ीन करे और इसके ज़रीऐ से इमामत का झूठा दावा करने वालो के फरेब और धोके से बचे और जिस वक्त नेशापुर के रहने वालो का ये नुमाइंदा मौहम्मद बिन अली नेशापुरी अपने सफर के लिऐ चलने लगा तो एक बुज़ुर्ग खातून कि जिनका नाम शतीता था और वो अपने ज़माने के नेक और पारसा लोगो से एक थी, मौहम्मद बिन अली नेशापुरी के पास आई एक दिरहम और एक कपड़े का टुकड़ा उसे दिया और कहाः ऐ अबुजाफर मेरे माल मे से ये मिक़दार हक़्क़े इमाम है इसे इमाम की खिदमत मे पहुचां दे।
मौहम्मद बिन अली नेशापुरी ने उनसे कहाः मुझे शर्म आती है कि इतने थोड़े से माल को इमाम को दूँ।
जनाबे शतीता ने उस से कहाः खुदा वंदे आलम किसी के हक़ से शरमाता नही है (यानी ये कि इमाम के हक़ को देना ज़रूरी है चाहे वो कम ही क्यूं न हो) बस यही माल मेरे ज़िम्मे है और चाहती हूँ कि इस हाल मे परवरदिगार से मुलाक़ात करूँ कि हक़्क़े इमाम मे से कुछ भी मेरी गर्दन पर न हो।
मौहम्मद बिन अली नेशापुरी ने जनाबे शतीता की वो ज़रा सी रकम ली और मदीने चला गया और मदीने पहुँच कर अब्दुल्लाह अफतह1 का इम्तेहान लेकर ये समझ गया कि अब्दुल्लाह अफतह इमामत के क़ाबिल नही है और नाउम्मीदी की हालत मे उसके घर से निकला उसके बाद एक बच्चे ने उसे इमाम काज़िम के घर की तरफ हिदायत की।
मौहम्मद बिन अली नेशापुरी ने जब इमाम काज़िम (अ.स) की खिदमत मे पहुँचा तो इमाम (अ.स) ने उस से फरमाया कि ऐ अबुजाफर नाउम्मीद क्यो हो रहे हो?? मेरे पास आओ मैं वलीऐ खुदा और उसकी हुज्जत हुँ। मैने कल ही तुम्हारे सवालो के जवाब दे दिये है उन सवालो के मेरे पास लाओ और शतीता की दी हुई एक दिरहम को भी मुझे दो।
मौहम्मद बिन अली नेशापुरी कहता है कि मैं इमाम काज़िम (अ.स) की बातो और आपकी बताई हुई सही निशानीयो से हैरान हो गया और उनके हुक्म पर अमल किया।
इमाम काज़िम (अ.स) ने शतीता के एक दिरहम और कपड़े के टुकड़े को ले लिया और फरमायाः बेशक अल्लाह हक़ से शरमाता नही है और ऐ अबुजाफर शतीता को मेरा सलाम कहना और ये पैसो की थैली कि इसमे चालिस दिरहम हैं, और ये कपड़े का टुकड़ा कि जो मेरे कफन का टुकड़ा है, को भी शतीता को दे देना और उस से कहना कि इस कपड़े को अपने कफन मे रख ले कि ये हमारे ही खेत की रूई से बना हुआ है और मेरी बहन ने इस कपड़े को बनाया है और साथ ही साथ शतीता से कहना कि जिस दिन ये चीज़े हासिल करोगी उसके बाद से उन्नीस दिन से ज़्यादा ज़िन्दा नही रहोगी। मेरे तोहफे के दिये हुऐ चालिस दिरहम मे से सोलह दिरहम खर्च कर लो और चौबीस दिरहम को सदक़े और अपने कफन दफन के लिऐ रख लेना।
फिर इमाम काज़िम (अ.स) ने फरमाया कि उस से कहना कि उसकी नमाज़े जनाज़ा मैं खुद पढ़ाऊँगा।
और उसके बाद इमाम (अ.स) ने फरमाया कि बाक़ी माल को उनके मालिको को वापस दे देना और सवालो की कापी की सील को तोड़ कर देख कि मैंने उनके जवाबो को बग़ैर देखे दिया है या नही??
मौहम्मद बिन अली नेशापुरी कहता है कि मैने कापी की सील को देखा उसे हाथ भी नही लगाया गया था और सील तोड़ने के बाद मैंने देखा सब सवालो के जवाब दिये जा चुके है।
जिस वक्त मौहम्मद बिन अली नेशापुरी खुरासान पलटा तो ताज्जुब के आलम मे देखता है कि इमाम काज़िम (अ.स) ने जिन लोगो के माल वापस पलटाऐ है उन सब ने अब्दुल्लाह अफतह को इमाम मान लिया है लेकिन जनाबे शतीता अब भी अपने मज़हब पर बाक़ी है।
मौहम्मद बिन अली नेशापुरी कहता है कि मैने इमाम काज़िम (अ.स) के सलाम को शतीता को पहुँचाया और वो कपड़ा और माल भी उसे दिया और जिस तरह इमाम काज़िम (अ.स) ने फरमाया था शतीता उन्नीस दिन बाद इस दुनिया से रूखसत हो गई।
और जब जनाबे शतीता इंतेक़ाल कर गई तो इमाम (अ.स) ऊँट पर सवार हो कर नेशापुर आऐ और जनाबे शतीता की नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई।
आज भी लोग इस मौहतरम खातून को बीबी शतीता के नाम से याद करते है और आपका मज़ारे मुक़द्दस नेशापुर (ईरान) मे मौजूद है कि जहाँ रोज़ाना हज़ारो चाहने वाले आपकी क़ब्र की ज़ियारत के लिऐ आते है।
- अब्दुल्लाह अफतह इमाम सादिक का एक बेटा था कि जिसने इमामत का दावा किया था।
हज़रत इमाम मूसा काज़िम अ.स की शहादत के मौके पर काज़मैन में ज़ायरीन का हुजूम
हज़रत इमाम मूसा बिन जाफर अ.स की शहादत के मौके पर काज़मैन शहर में अतबा ए अलवीया की तरफ से ज़ायरीन को सेवाएँ प्रदान की जा रही हैं इन सेवाओं में ज़ायरीन के लिए खाना, पानी और अन्य सुविधाओं की व्यवस्था शामिल है।
एक रिपोर्ट के अनुसार , अतबा अलवीया के सेवक अपनी पूरी मेहनत और ऊर्जा के साथ इमाम मूसा बिन जाफर अ.स की शहादत के अवसर पर काज़मैन आने वाले ज़ायरीन की सेवा में लगे हुए हैं।
अतबा अलवीया की ओर से लगाए गए मोअक़िब की प्रबंधन समिति के प्रमुख, सलाम अल-जुबूरी ने कहा,अतबा अलवीया के सचिवालय के निर्देश पर मोअक़िब के प्रबंधन के लिए एक समिति बनाई गई है और सेवाकारी दलों के आने के साथ ही हमने ज़ायरीन को सेवाएँ प्रदान करना शुरू कर दिया है।
उन्होंने आगे बताया,हमने हज़ारों खाने के पैकेट उपलब्ध कराए हैं जिनमें नाश्ता, दोपहर का भोजन और रात का खाना शामिल है। इसके अलावा, काज़मैन में सेवा करने वाले सभी मोअक़िब को साफ़ पीने का पानी भी उपलब्ध कराया गया है।
सलाम अलजुबूरी ने यह भी बताया,मोअक़िब की सेवाओं में ज़ायरीन के लिए आरामगाह का प्रबंध, चिकित्सा सुविधाएँ, साथ ही धार्मिक और शरई मार्गदर्शन शामिल हैं इसके अतिरिक्त, इमाम अली अ.स के हरम के टेलीविज़न के माध्यम से विशेष प्रोग्राम और लाइव प्रसारण भी प्रस्तुत किए जा रहे हैं।
उन्होंने ज़ोर देकर कहा,इस कार्यक्रम में 100 से अधिक सेवाकर्मी लगे हुए हैं और विभिन्न सेवाएँ प्रदान करने के लिए 20 से अधिक वाहन तैयार किए गए हैं। साथ ही ज़ायरीन की ज़रूरतों के लिए 2000 से अधिक सामान जैसे कालीन, कंबल और अन्य आवश्यक वस्तुएँ भी उपलब्ध कराई गई हैं।
सीरिया के शिया बहुल क्षेत्रों पर तहरीर अलशाम का हमला कई शहीद और घायल
सीरिया के हम्स प्रांत के शिया बहुल क्षेत्रों में तहरीर अलशाम नामक आतंकवादी समूह के हमलों में कम से कम 13 लोगों की शहादत हो गई और कई लोग घायल हो गए हैं।
सीरिया के हुम्स प्रांत के शिया बहुल क्षेत्रों में तहरीर अलशाम नामक आतंकवादी समूह के हमलों में कम से कम 13 लोग शहीद हो गए। सीरियन ऑब्जर्वेटरी फॉर ह्यूमन राइट्स के अनुसार, तहरीर अलशाम के विद्रोहियों ने पश्चिमी होम्स के ग्रामीण इलाकों में एक बड़े सैन्य अभियान को अंजाम दिया जिसमें कई गांवों में हिंसा की घटनाएं हुईं।
एक रिपोर्ट्स के अनुसार, अलग़र्बिया और अलहमाम गांवों में चार नागरिकों को अवैध रूप से फांसी दे दी गई जबकि दस लोग घायल हुए और पांच को गिरफ्तार कर लिया गया इसी तरह, अलकनिसा गांव में पांच लोगों को सुरक्षा बलों ने हिरासत में ले लिया।
तारीन गांव में तीन लोग गोली लगने से घायल हुए जबकि तीन अन्य को गिरफ्तार कर लिया गया। कफरनान गांव में 27 लोगों को हिरासत में लिया गया और कई लोगों के घायल होने की भी खबरें मिली हैं।
इसके अलावा तहरीर अलशाम के सशस्त्र लोगों ने स्थानीय आबादी के साथ अमानवीय व्यवहार किया जिसमें लोगों को जानवरों से बदतर व्यवहार किया
SOHR के अनुसार, अज्ञात सशस्त्र व्यक्तियों ने होम्स के उत्तरी ग्रामीण इलाके में तसनीन गांव में एक व्यक्ति के घर पर हमला करके उसे बेरहमी से मार डाला इसी तरह अल-शिनिया गांव में चार शव बरामद हुए हैं।
एक अन्य घटना में चार लोगों को उनके धार्मिक नेताओं की तस्वीरें हटाने से इनकार करने पर मार डाला गया जबकि दो अन्य घायल हो गए। मंगलवार को अलग़ोर अलग़र्बिया गांव में जो अधिकतर शिया आबादी वाला है कम से कम छह लोग तहरीर अलशाम के सशस्त्र विद्रोहियों के हमले में शहीद हो गए।
सीरियन ऑब्जर्वेटरी फॉर ह्यूमन राइट्स की रिपोर्ट के अनुसार, 2025 की शुरुआत से अब तक सीरिया के विभिन्न प्रांतों में 83 ऑपरेशनों को रिकॉर्ड किया गया है जिनमें 166 लोगों को धार्मिक अल्पसंख्यक होने के कारण शहीद किया गया जिनमें 5 महिलाएं भी शामिल हैं।
यह घटनाएं सीरिया में जारी हिंसा और मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघन की एक दुखद तस्वीर प्रस्तुत करती हैं।
यह हुसैन मज़लूम का माल है, अगर इसे खाओगे तो नष्ट हो जाओगेः
जो छोटा इमामबाड़ा, बड़ा इमामबाड़ा इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के माल को हड़प रहे हैं। हम उनसे न तो कोई गुज़ारिश करेंगे और न ही कोई दरख्वास्त करेंगे, हम उन्हें बस एक नसीहत दे रहे हैं: "होशियार हो जाओ! यह हुसैन मज़लूम का माल है, अगर तुम इसे खाओगे तो तुम नष्ट हो जाओगे।
24 जनवरी 2025 को शाहि आसफ़ी मस्जिद में जुमे की नमाज़ हुज्जतुल इस्लाम मौलाना सय्यद रज़ा हैदर ज़ैदी, प्रिंसिपल हौज़ा इल्मिया हज़रत गुफ़रानमाब (र) की इमामत में अदा की गई।
मौलाना सय्यद रज़ा हैदर ज़ैदी ने अमीरुल मोमिनीन अलीहिस्सलाम के ख़ुत्बा-ए-गदीर का ज़िक्र करते हुए फरमाया: "जो शख्स गदीर के दिन बिना किसी मांग के अपने भाई की मदद करता है, या दिल से अपनी इच्छा के साथ अपने भाई के साथ भलाई करता है, या उसे कर्ज़ देता है, तो मौला के कलाम की रौशनी में उसे वही सवाब मिलेगा जैसा उस शख्स को मिलेगा जिसने गदीर के दिन रोज़ा रखा हो।"
मौलाना सैयद रज़ा हैदर ज़ैदी ने क़ुरान की रौशनी में कर्ज़ की अहमियत को बयान करते हुए फरमाया: "जो भी अल्लाह के लिए उसके किसी बंदे को कर्ज़ देगा, तो अल्लाह उसके माल में इज़ाफ़ा करेगा और उसे इज्ज़त से जीविका अता करेगा।"
मौलाना सय्यद रज़ा हैदर ज़ैदी ने इस हफ्ते की पांच अहम मुनासबतो का ज़िक्र करते हुए फरमाया: 24 रजब फ़तह-ए-ख़ैबर, 25 रजब यौम-ए-शहादत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम, 26 रजब यौम-ए-मोहसिन इस्लाम हज़रत अबू तालिब अलीहिस्सलाम, 27 रजब यौम-ए-बेसत और 28 रजब आगाज़-ए-सफ़र इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम हैं।
मौलाना सय्यद रज़ा हैदर ज़ैदी ने बेसत का ज़िक्र करते हुए फरमाया: "रसूलुल्लाह (स) उस वक्त भी नबी थे जब हज़रत आदम अलैहिस्सलाम पानी और मिट्टी के बीच थे, और 27 रजब को पहली वही नाज़िल हुई। 27 रजब के खास आमाल हैं, इस दिन रसूलुल्लाह (स) और अमीरुल मोमिनीन अलैहिस्सलाम की ज़ियारत पढ़ें।"
मौलाना सय्यद रज़ा हैदर ज़ैदी ने फरमाया: "बेसत की हिफ़ाज़त इमामत से है। फ़तह-ए-ख़ैबर में अमीरुल मोमिनीन अलैहिस्सलाम की शजाअत और इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम की क़ैदी, मज़लूमियत और शहादत इसी सिलसिले की कड़ी हैं।"
मौलाना सय्यद रज़ा हैदर ज़ैदी ने आख़िर में फरमाया: "इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का मक़ाम और मर्तबा परवरदिगार की बारगाह में बहुत ऊँचा है, बहुत अज़ीम है। हमने यह इतिहास में देखा कि जो इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से टकराया, जिसने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का माल खाने की कोशिश की, वह नष्ट और बरबाद हो गया। दूर जाने की ज़रूरत नहीं है, बस पास के इतिहास में देख लीजिए, सद्दाम ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के हरम को नुकसान पहुँचाने की कोशिश की, आज उसका क्या हाल हुआ? वह नष्ट और बर्बाद हो गया। हो सकता है कुछ लोगों के दिल में हो कि जो छोटा इमामबाड़ा, बड़ा इमामबाड़ा इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के माल को हड़प रहे हैं। हम उनसे न तो कोई गुज़ारिश करेंगे और न ही कोई दरख्वास्त करेंगे, हम उन्हें बस एक नसीहत दे रहे हैं: "होशियार हो जाओ! यह हुसैन मज़लूम का माल है, अगर तुम इसे खाओगे तो तुम नष्ट हो जाओगे।"
पवित्र कुरान हमें अपमान से बाहर निकाल कर सम्मान प्रदान करता है
/डॉ. मसूद पिज़िश्कीयान ने कहा: यदि हम इस्लाम और शिया संप्रदाय को जीवन के एक तरीके और सम्मान प्राप्त करने के साधन के रूप में दुनिया के सामने पेश करना चाहते हैं, तो हमें कुरान के आदेशों और इमामों के जीवन का पालन करना चाहिए।
इस्लामी गणतंत्र ईरान के राष्ट्रपति डॉ. मसूद पिज़िश्कीयान ने अपनी तीसरी प्रांतीय यात्रा के दौरान खुज़स्तान प्रांत के बुद्धिजीवियों और प्रमुख हस्तियों के साथ एक बैठक को संबोधित करते हुए कहा: "यह कुरान ही है जिसने हमें अपमान से बाहर निकाल कर सम्मान दिया है।"
उन्होंने कहा: पवित्र कुरान सिर्फ पढ़ने के लिए नहीं बल्कि अमल के लिए है। मासूमीन (अ) ने भी फ़रमाया है, "हमारा शिया हमारे लिए श्रृंगार का स्रोत होना चाहिए।"
डॉ. मसूद पिज़िश्कीयान ने कहा: ज्ञान, ऊर्जा और रचनात्मकता मुफ्त में नहीं मिलती।
उन्होंने आगे कहा: हमें उस बाज की तरह होना चाहिए जो दुनिया पर अपनी नजर रखता है, न कि उस कीड़े की तरह जो यह भी नहीं देख सकता कि उसके सामने क्या है। जब हम यह स्वीकार कर लेंगे और यह विश्वास विकसित कर लेंगे कि हमें दूसरों से पीछे नहीं रहना चाहिए या उनसे कमतर नहीं होना चाहिए, तब हम आगे बढ़ने का रास्ता खोज लेंगे या अपना स्वयं का मार्ग बना लेंगे।
ईरानी राष्ट्रपति ने कहा: दुश्मन सोचता है कि वह विभिन्न प्रतिबंधों और घेराबंदी के माध्यम से हमें घुटने टेकने पर मजबूर कर सकता है, हालांकि यह उसकी गलती है। लेकिन हम दुनिया से झगड़ने के बजाय शांति और सुकून से रहना चाहते हैं। हमें पैगम्बर मुहम्मद (स) के उदाहरण का अनुसरण करना चाहिए तथा समस्याओं, मतभेदों और विवादों को समाप्त कर एक-दूसरे के साथ सहयोग करना चाहिए। यदि हम इस प्रकार कार्य करें तो वर्तमान समस्याओं के एक नहीं बल्कि सैकड़ों समाधान हैं।
तीन ऐसे इमाम जिनके पार्थिव शरीर का उनकी शहादत के बाद अपमान किया गया
आयतुल्लाह सईदी ने जुमे की नमाज़ के अपने ख़ुतबे में इमाम मूसा काज़िम (अ) की शहादत का ज़िक्र करते हुए कहा: तीन इमामों के पवित्र शरीरों को उनकी शहादत के बाद अपमान का सामना करना पड़ा, जिनमें से एक हज़रत इमाम मूसा इब्न जाफर' थे। आपके पार्थिव शरीर को शहादत के बाद जेल से बाहर निकाला गया और जंजीरों से बांधकर बिना ताबूत के तख्त पर ले जाया गया।
आयतुल्लाह सईदी ने जुमे की नमाज़ के अपने ख़ुतबे में इमाम मूसा काज़िम (अ) की शहादत का ज़िक्र करते हुए कहा: तीन इमामों के पवित्र शरीरों को उनकी शहादत के बाद अपमान का सामना करना पड़ा, जिनमें से एक हज़रत इमाम मूसा इब्न जाफर' थे। आपके पार्थिव शरीर को शहादत के बाद जेल से बाहर निकाला गया और जंजीरों से बांधकर बिना ताबूत के तख्त पर ले जाया गया और अहल-ए-बैत (अ) मे सो कोई भी आपकी शव यात्रा मे मौजूद नहीं था। इमाम हसन मुजतबा (अ) और इमाम हुसैन (अ) भी उन इमामों में शामिल हैं जिनके शवों को उनकी शहादत के बाद अपमान का सामना करना पड़ा।
इमाम जुमा ने अल्लाह के रसूल (स) के मिशन का उल्लेख करते हुए कहा: अल्लाह सर्वशक्तिमान ने मिशन के महान आशीर्वाद के बारे में कहा: "वास्तव में, अल्लाह ने विश्वासियों पर अनुग्रह किया है, जब उसने उनके बीच उनके ही बीच से एक रसूल भेजा अल्लाह ने ईमान वालों पर बड़ा उपकार किया, जब उसने उनके पास उन्हीं में से एक रसूल भेजा, जो उनके सामने अपनी आयतें पढ़कर सुनाता, उन्हें पवित्र करता और उन्हें किताब और तत्वदर्शिता की शिक्षा देता इस आयत में अल्लाह तआला ने मिशन का उद्देश्य आत्माओं की शुद्धि बताया है। अर्थात् मिशन का एक बाह्य पहलू व्यवस्था और सरकार की स्थापना करना है, जबकि इसका एक आंतरिक पहलू लोगों का शुद्धिकरण भी है; क्योंकि पैगम्बरों का मार्गदर्शन केवल शुद्ध आत्माओं पर ही प्रभाव डालता है।
पहले खुत्बे में आयतुल्लाह सईदी ने तकवा के प्रभावों में पश्चाताप और क्षमा मांगने के महत्व को समझाते हुए कहा: "मुत्तक़ी लोगों की विशेषता यह है कि पश्चाताप और क्षमा मांगना उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता है।" अल्लाह तआला ने इस बारे में कहा: "कहो: ऐ मेरे बन्दों, जिन्होंने अपने ऊपर अत्याचार किया है, अल्लाह की रहमत से निराश न हो। निस्संदेह अल्लाह सभी पापों को क्षमा कर देता है। निस्संदेह वह क्षमाशील, दयावान है।
सूर ए तौबा पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा: अल्लाह तआला सूर ए तौबा की आयत 112 में कहता है: "जो लोग पश्चाताप करते हैं, जो पूजा करते हैं, जो प्रशंसा करते हैं, जो यात्रा करते हैं, जो झुकते हैं, जो खुद को सजदा करते हैं, जो भलाई का आदेश देते हैं और बुराई से रोकते हैं और जो अल्लाह की सीमाओं का पालन करते हैं। और ईमान वालों को शुभ सूचना दे दो। (वे ईमानवाले) वे लोग हैं जो तौबा करते हैं, इबादत करते हैं, तारीफ़ करते हैं, रोज़ा रखते हैं, रुकू करते हैं, सजदा करते हैं, भलाई का हुक्म देते हैं, बुराई से रोकते हैं और अल्लाह की सीमाओं की रक्षा करते हैं। और ईमानवालों को (अल्लाह की दयालुता की) शुभ सूचना दे दो।
जेनिन कैंप की ताज़ा घटनाएं
इज़राइली सेना के लगातार दूसरे दिन जॉर्डन नदी के पश्चिमी तट पर स्थित जेनिन शहर और कैंप पर जारी हमलों में 12 फिलिस्तीनी शहीद हो गए और 100 से अधिक घायल हो गए।
ज़ायोनी सैनिकों ने मंगलवार की सुबह और ग़ज़ा में युद्धविराम के बाद, जॉर्डन नदी के पश्चिमी तट के विभिन्न क्षेत्रों, विशेष रूप से इस क्षेत्र के उत्तर में स्थित जेनिन पर बड़े पैमाने पर हमला शुरू कर दिये, और ये बर्बर हमले अभी तक जारी हैं।
जेनिन शहर पर ज़ायोनी शासन के हमले में शहर के सरकारी अस्पताल का बुनियादी ढांचा पूरी तरह तबाह हो गया।
फ़िलिस्तीनी सूत्रों ने गुरुवार सुबह बताया कि प्रतिरोधकर्ताओं और फ़िलिस्तीनी युवाओं ने जेनिन शहर पर ज़ायोनी सैनिकों के हमलों का डटकर मुक़ाबला किया।
दूसरी ओर फ़िलिस्तीन के जिहादे इस्लामी आंदोलन की सैन्य शाखा "सराया अल-कुद्स" से संबद्ध जेनिन बटालियन ने इज़राइली सैनिकों का डटकर मुक़ाबला किया और उसे भारी नुक़सान पहुंचाया।
जेनिन बटालियन ने घोषणा की कि उसने अल-जलबूनी इलाक़े में ज़ायोनी सेना के एक सैन्य वाहन को "सिज्जील" गाइडेड बम से निशाना बनाया जिसमें कई सैनिक घायल हो गये।
फ़िलिस्तीनी सूत्रों के अनुसार, फ़िलिस्तीनी प्रतिरोधकर्ताओं द्वारा जेनिन कैंप में दो बड़े विस्फोट किए। इसके अलावा, फ़िलिस्तीनी प्रतिरोधकर्ताओं ने इज़राइली सैन्य वाहनों के रास्ते में एक बम विस्फोट भी किया।
ज़ायोनी सैनिकों ने वेस्ट बैंक के गांवों और क़स्बों पर छापे के दौरान कई फ़िलिस्तीनियों को गिरफ़्तार कर लिया।
इज़राइली सेना ने रामल्लाह के उत्तर में स्थित "अल-मज़रआ" गांव में एक फ़िलिस्तीनी के घर को एक सैन्य बैरक में बदल दिया और इस गांव पर छापे के दौरान आठ फ़िलिस्तीनियों को गिरफ्तार कर लिया।
जेनिन के गवर्नर कमाल अबुलरब्ब के अनुसार, ज़ायोनी शासन जेनिन को फ़िलिस्तीनी राष्ट्र के विरुद्ध युद्ध का एक नया केंद्र बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।
जेनिन के गवर्नर ने वेस्ट बैंक में ज़ायोनी शासन के सैनिकों की बड़े पैमाने पर तैनाती का उल्लेख करते हुए कहा कि ज़ायोनी शासन जेनिन प्रांत को एक छोटे और खंडहर बन चुके ग़ज़ा में बदलने की कोशिश कर रहा है।
जेनिन पर ज़ायोनी सेना के हमलों के बाद फ़िलिस्तीनी प्रतिरोधकर्ता गुट, क्षेत्रीय देशों और दुनिया से कड़ी प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं।
वेस्ट बैंक में इज़राइल के अपराधों के जवाब में फ़िलिस्तीनी आंदोलनों हमास, जेहादे इस्लामी और नेशनल फ़्रंट फ़ॉर द लिबरेशन ऑफ़ फ़िलिस्तीन ने इन अपराधों का मुकाबला करने के लिए एक सामान्य लामबंदी का आह्वान किया है।
हमास आंदोलन की सैन्य शाखा शहीद इज़्ज़ुद्दीन क़स्साम बटालियन ने भी वेस्ट बैंक में अपने दो मुजाहेदीन की शहादत की सूचना दी और ज़ोर दिया कि वे ज़ायोनियों का जीना हराम कर देंगे।
यमन के अंसारुल्लाह आंदोलन ने भी ज़ायोनी शासन को चेतावनी दी कि अगर जेनिन में आप्रेशन जारी रहा, तो वे अपने मिसाइल और ड्रोन हमले फिर से शुरू कर देंगे।
पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता शफक़त अली ख़ान ने जेनिन सहित वेस्ट बैंक के विभिन्न क्षेत्रों पर ज़ायोनी सैनिकों के हालिया हमले की निंदा की और चेतावनी दी कि इज़राइल के निरंतर हमलों से शांति, स्थिरता और ग़ज़ा युद्धविराम को ख़तरा होगा।
शफ़कत अली ख़ान ने कहा कि दुनिया को इज़राइल को उसके अपराधों के लिए जिम्मेदार ठहराना चाहिए क्योंकि फ़िलिस्तीनी जनता को पिछले सोलह महीनों में सबसे गंभीर आक्रमण और नरसंहार का सामना करना पड़ा है और अब ग़ज़ा में युद्धविराम के सही कार्यान्वयन का समय आ गया है।
सऊदी अरब के विदेश मंत्रालय ने गुरुवार सुबह जेनिन शहर पर ज़ायोनी सैनिकों के हमलों की निंदा की और एलान किया कि सऊदी अरब एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय समुदाय से इज़राइल द्वारा अंतरराष्ट्रीय कानूनों और संधियों व समझौतों के उल्लंघन को रोकने का ज़िम्मेदार बनाने की अपील करता है।
फ़्रांस के विदेशमंत्री "जॉन-नोएल बारू" ने जेनिन शहर पर ज़ायोनी सैनिकों के हमले पर चिंता व्यक्त करते हुए इन हमलों को रोकने की मांग की है।
ग़ज़्ज़ा प्रतिरोध; वैश्विक प्रभुत्व प्रणाली के सभी विरोधियों के लिए आदर्श
सांस्कृतिक और राजनीतिक विशेषज्ञों और टिप्पणीकारों के अनुसार, ग़ज़्ज़ा के लोगों और शूरीरो का प्रतिरोध वैश्विक वर्चस्व व्यवस्था के सभी विरोधियों के लिए एक आदर्श है।
हाल ही में ईरानी सुप्रीम लीडर ने देश के उद्यमियों और आर्थिक कार्यकर्ताओं के एक समूह के साथ मुलाकात के दौरान, राष्ट्रीय उत्पादन के समर्थन के महत्वपूर्ण पहलुओं पर चर्चा की और साथ ही ग़ज़्ज़ा की स्थिति पर भी बयान दिया। उन्होंने कहा, "जो कुछ दुनिया की आँखों के सामने हो रहा है, वह एक दास्तान जैसा है। अमेरिका जैसे बड़े युद्धक शक्ति ने बिना किसी मानवीय विचार के इजरायली शासन को भारी बमों से निशाना बनाया और उस शासन ने गाज़ा में 15,000 बच्चों को अस्पतालों और घरों में बमबारी करके मारा, लेकिन फिर भी अपने उद्देश्यों में सफलता नहीं प्राप्त कर पाया।"
उन्होंने यह भी कहा कि यदि अमेरिका की मदद न होती, तो इजरायली शासन पहले ही कुछ सप्ताह में नतमस्तक हो जाता। "इजरायली शासन ने एक साल और कुछ महीनों तक गाज़ा में जितना भी हो सका, युद्ध अपराध किए, लेकिन अंत में न केवल वह अपने उद्देश्य, यानी हमास को नष्ट करना और ग़ज़्ज़ा को बिना प्रतिरोध के नियंत्रित करना, हासिल नहीं कर सका, बल्कि उसे हमास से ही शांति वार्ता करनी पड़ी और उनके शर्तों पर संघर्ष विराम स्वीकार करना पड़ा।" वे मानते हैं कि ग़ज़्ज़ा की इस जीत से यह सिद्ध होता है कि जहाँ भी अल्लाह के नेक बंदे संघर्ष करते हैं, वहाँ विजय निश्चित है।
एक विश्वविद्यालय की शिक्षिका सय्यदा फातिमा सय्यद मुदल ललकार मानती हैं कि ग़ज़्ज़ा के लोगों के अद्वितीय प्रतिरोध को समझने के लिए, पहले हमें फिलिस्तीन के प्रतिरोधी व्यक्तित्व को पहचानना होगा। उन्होंने कहा, "ऐसे समय में जब दुनिया में सत्ता का अभ्युदय अपनी नापाक योजनाओं को पूरा करने की कोशिश कर रहा हो, ग़ज़्ज़ा की जनता का प्रतिरोध और उनकी जीत, खासकर एक वर्ष और छह महीने तक की असमान युद्ध और इजरायली अपराधों के बावजूद, एक अद्भुत घटना है, जो यह दिखाती है कि ईमानदारी और अल्लाह पर विश्वास के साथ कठिनाइयों और अन्यायों के बावजूद, विजय प्राप्त की जा सकती है और शत्रु को अपमानित किया जा सकता है।"
उन्होंने कहा कि "ऑपरेशन 'तुफान अल-अक़्सा' ने इस्राईली शासन को सैन्य और वैधता दोनों मोर्चों पर अस्तित्व संकट में डाल दिया।" इस्राईली सेना को अपने उच्चतम अधिकारियों के आदेश के बाद संघर्ष विराम स्वीकार करना पड़ा, जैसा कि हमास ने तय किया था।
अबुलफजल सफरी, राजनीतिक विश्लेषक, ने कहा कि गज़ाज़ा में लोगों की जीत, प्रतिरोध के बारे में गलत सोच और विश्लेषणों का अंत होना चाहिए, जो कभी यह मानते थे कि प्रतिरोध ढह जाएगा। "प्रतिरोध एक भौतिक उपकरण नहीं है, बल्कि यह एक विश्वास और धार्मिक मूल्यों से उत्पन्न होती है, और यह ग़ज़्ज़ा के लोगों की अद्वितीय जीत ने इस सिद्धांत को और स्पष्ट किया है।" प्रतिरोध मात्र संख्याओं का मामला नहीं है, बल्कि यह विश्वास और दृढ़ संकल्प पर आधारित है, और ग़ज़्ज़ा के लोग इसी का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। "गाज़ा के लोग न केवल पश्चिमी और इजरायली साजिशों से बल्कि कुछ अरब देशों के नापाक सहयोग से भी बच गए, और इसके परिणामस्वरूप गाज़ा में जातीय सफाई की साजिश विफल हो गई।"
हुज्जतुल इस्लाम सय्यद महमूद मूसवी ने कहा कि इस्राईली हार के इन पहलुओं को विभिन्न दृष्टिकोणों से विश्लेषित किया जाना चाहिए। "यद्यपि इस युद्ध में ग़ज़्ज़ा और लेबनान के लोगों पर अत्यधिक दुख और कठिनाइयाँ आईं, फिर भी यह शहीदों का खून है जो इस्लाम और अहले-बैत (अ) के रास्ते को मजबूत करता है और उनका बलिदान इस पवित्र मार्ग की सत्यता का प्रमाण है।"
उन्होंने यह भी कहा, "ग़ज़्ज़ा की जनता ने सबसे कठिन युद्ध में, जब पानी, भोजन और जीवन की आवश्यकताओं की कमी थी, ईश्वर के साथ अपने सच्चे विश्वास के बल पर अपनी ज़मीन पर मजबूती से खड़े रहकर यह सिद्ध किया कि ईश्वर का समर्थन उन लोगों के साथ है जो सही दिशा में संघर्ष करते हैं।" अंत में, उन्होंने कहा, "ग़ज़्ज़ा का संघर्ष विराम यह साबित करता है कि प्रतिरोध जीवित है और यह फिलिस्तीन की पूरी भूमि और क़ुद्स शरीफ की मुक्ति के लिए अपनी लड़ाई जारी रखेगा।"
इमामबाड़े, मस्जिदें और संस्थाएँ नई तकनीक से लैस होनी चाहिएः
भारत के शियों को तालीम के मामले में सबसे ऊपर देखना चाहते हैं।' हमारी ख्वाहिश है कि भारत का सबसे बड़ा डॉक्टर शिया हो, आईटी में जो सबसे ऊँचा हो वह शिया हो, जो सबसे बड़ा इंजीनियर हो वह शिया हो। लेकिन यह तभी होगा जब हम उन हीरों को खोजेंगे, उन जवाहिरात को तराशेंगे, जो बच्चे गरीबी की वजह से पीछे है।
मुंबई/ खोजा शिया इस्ना अशरी जामा मस्जिद पालागली में 24 जनवरी 2025 को जुमे की नमाज हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मौलाना सय्यद अहमद अली आबदी की इमामत में अदा की गई।
मौलाना सय्यद अहमद अली आबदी ने इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम की मजलूमियत का ज़िक्र करते हुए कहा: "यह हमारे एकमात्र इमाम हैं जिनकी शहादत क़ैदख़ाने में हुई। ये हमारे एकमात्र इमाम हैं जिनकी शहादत के बाद उनके शरीर से ज़ंजीरें अलग की गईं।"
मौलाना ने आगे कहा: "कल जब हमारे इमामों पर ज़ुल्म हो रहा था तो उम्मत-ए-इस्लामिया खामोश थी, कोई आवाज़ नहीं उठा रहा था कि ज़ालिम हुक्मरानों से कहे कि उनके साथ ज़ुल्म न करें। आज भी जब शिया मुसलमानों पर ज़ुल्म हो रहा है तो दुनिया खामोश तमाशाई बन जाती है, कोई नहीं बोलता कि शिया मुसलमानों पर ज़ुल्म न हो।"
मौलाना ने इस्लाम के मोहसिन हज़रत अबू तालिब अलैहिस्सलाम की भी मजलूमियत का ज़िक्र किया, उन्होंने कहा: "जो लोग जिनके पिता-दादा और पूरा परिवार जन्नत में नहीं हैं, उन्हें जन्नत में दाखिल होने वाला बताया गया, और जिनकी नस्ल जन्नत के नौजवानों की सरदार है, उनपर कुफ्र का फतवा लगाया गया। यह भी अहले बैत अलैहिस्सलाम पर ज़ुल्म है।"
मौलाना ने आगे कहा: "आज भी जो लोग हज़रत अबू तालिब पर कुफ्र का फतवा लगा रहे हैं, उनके दिलों पर पुरानी चोटें हैं, वे अपने बेईमान और नास्तिक पुरखों को ईमानदार और जन्नती नहीं बना सकते। इसलिए वे हज़रत अबू तालिब, जिनके बेटे अमीरुल मोमिनीन अलैहिस्सलाम जन्नत और जहन्नम को बाँटेंगे, जिनकी बहु जन्नत की औरतों की सरदार हैं, जिनके पोते जन्नत के नौजवानों के सरदार हैं, उनपर कुफ्र का फतवा लगा रहे हैं।"
मुम्बई के इमाम जुमा ने कहा: "नबी ए करीम हज़रत मोहम्मद मुस्तफा (स) के परदादा में से किसी ने भी मूर्तिपूजा नहीं की, वे सभी नबी, वली या ओसिया थे, जबकि दूसरों के बाप-दादा बड़े-बड़े पुजारी थे। खैर, किसी के कहने से कुछ नहीं होता, जब क़यामत आएगी तो ये साफ़ हो जाएगा कि कौन कहाँ जाएगा। क़यामत के दिन लोग देखेंगे कि हज़रत अबू तालिब के बेटे अमीरुल मोमिनीन जन्नत और जहन्नम को बाँटेंगे।"
मौलाना ने बेसत का ज़िक्र करते हुए कहा: "ख़ुदा ने पहली और आख़िरी उम्मत को वह नेमत नहीं दी जो हमें दी है, और वह नबी हज़रत मोहम्मद मुस्तफा हैं।"
मौलाना ने नमाज़ियों से कहा: "रिवायत में है कि ख़ुदा की सबसे बड़ी तजल्लि बेसत-ए-रसूल अक़राम है। ख़ुदा ने हमें सबसे महान नबी, सबसे महान किताब और सबसे महान दीन दिया है। ख़ुदा ने किसी और उम्मत को इतना महान नबी और किताब नहीं दी, जितना हमें दी है।"
जामेअतुल इमाम अमीरुल मोमेनीन (अ) के प्रिंसिपल ने कहा: "अगर कोई इंसान किसी ख़ास मकसद के लिए आए और उसी मकसद में अपनी जान दे दे, तो उसके मानने वालों का सही इज़्ज़त क्या होगी? क्या उसका चित्र फ्रेम में लगाना? उसका नाम सोने से लिखना? उसका नाम कड़ा पहनना? या उसकी तालीमात पर अमल करना? तो सब यही कहेंगे कि सही इज़्ज़त उस इंसान की तालीमात पर अमल करना है। इसी तरह हज़रत मोहम्मद मुस्तफा से सच्ची मोहब्बत यही है कि हम उनकी तालीमात पर अमल करें, उनकी इताअत और इत्तेबा करें।"
मौलाना ने कहा: "बेसत का एक अहम मकसद तालीम है, हमारे इमामबाड़े, मस्जिदें और संस्थाएँ नई तकनीक से लैस होनी चाहिए।"
मौलाना ने मरजए तकलीद आयतुल्लाह सैयद अली सीस्तानी दामा ज़िल्लहु की नसीहत का ज़िक्र करते हुए कहा: "हम जिनकी तकलीद करते हैं, उन्होंने कहा, 'हम भारत के शियों को सिर्फ़ पढ़ा-लिखा नहीं देखना चाहते, हम भारत के शियों को तालीम के मामले में सबसे ऊपर देखना चाहते हैं।' हमारी ख्वाहिश है कि भारत का सबसे बड़ा डॉक्टर शिया हो, आईटी में जो सबसे ऊँचा हो वह शिया हो, जो सबसे बड़ा इंजीनियर हो वह शिया हो। लेकिन यह तभी होगा जब हम उन हीरों को खोजेंगे, उन जवाहिरात को तराशेंगे, जो बच्चे गरीबी की वजह से पीछे हैं लेकिन उनमें तरक्की की चिंगारी है, उन्हें हवा देनी होगी।"
जंगे ख़ैबर और क़िला ए ख़ैबर
रजब महीने की चौबीस तारीख़ सन सात हिजरी मई 628 ईस्वी में रसूले ख़ुदा स.ल.व. की क़यादत में मुसलमानों और यहूदियों के बीच यह जंग हुई जिसको ख़ैबर की जंग कहते हैं जिसमें मुसलमान फ़तहयाब हुए।
रजब महीने की चौबीस तारीख़ सन सात हिजरी मई 628 ईस्वी में रसूले ख़ुदा स.ल.व. की क़यादत में मुसलमानों और यहूदियों के बीच यह जंग हुई जिसको ख़ैबर की जंग कहते हैं जिसमें मुसलमान फ़तहयाब हुए।
ख़ैबर यहूदियों का मरकज़ था जो मदीना से डेढ़ सौ से दो सौ किलोमीटर अरब के शुमाल मग़रिब (उत्तर पश्चिम) में था जहां से वह दूसरे यहूदी क़बीलों के साथ मुसलमानों के ख़िलाफ़ लगातार साज़िशें करते रहते थे चुनांचे मुसलमानों ने इस मसले को ख़त्म करने के लिए एक जंग शुरू की।
ख़ैबर का क़िला ख़ास कर उसके कई क़िले यहूदी फ़ौज की ताक़त के मरकज़ थे जो हमेशा मुसलमानों के लिए ख़तरा बने रहे और मुसलमानों के ख़िलाफ़ कई साज़िशों में शरीक रहे इन साज़िशों में खंदक की जंग और जंगे ओहद के दौरान यहूदियों की कार्रवाइयाँ शामिल है इसके अलावा ख़ैबर के यहूद ने क़बीला ए बनी नज़ीर को भी पनाह दी थी जो मुसलमानों के ख़िलाफ़ होने वाली साज़िश और जंग में शामिल थे।
ख़ैबर के यहूदियों के तअल्लुक़ात बनी कुरैज़ा के साथ भी थे जिन्होंने जंगे ख़ंदक में मुसलमानों से वादा ख़िलाफ़ी करते हुए उन्हें सख़्त मुश्किल से दो चार कर दिया था और ख़ैबर वालों ने फ़दक के यहूदियों के अलावा नज्द के क़बीला बनी ग़तफ़ान के साथ भी मुसलमानों के ख़िलाफ़ मोआहिदे (अग्रीमेंट) किए थे।
सन 7 हिजरी (मई 628 ईस्वी) में हज़रत मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि व आलेही व सल्लम ने 1600 की फ़ौज के साथ जिनमें से 100 से कुछ ज़ियादा घुड़सवार थे ख़ैबर की तरफ़ जंग की नियत से रवाना हुए और 5 छोटे क़िले फ़तह करने के बाद ख़ैबर क़िले का मुहासिरा कर लिया जो दुश्मन का सबसे बड़ा और मज़बूत क़िला था। एक ऊंची पहाड़ी पर बना हुआ था और उसका सुरक्षा का इंतज़ाम बहुत मज़बूत था।
यहूदियों ने अपनी औरतों और बच्चों को एक क़िले में और खाने पीने के दीगर सारे सामान एक और क़िले में रख दिये और हर क़िले पर तीरंदाज़ खड़े कर दिए जो क़िले में घुसने की कोशिश करने वालों पर तीरों की बारिश कर देते थे।
मुसलमानों ने पहले 5 क़िलों को एक-एक करके फ़तह किया जिसमें 50 मुजाहिदीन जख़्मी और एक शहीद हुआ, यहूदी रात के तारीकी में एक से दूसरे के क़िले तक अपना माल, सामान और लोगों को मुन्तक़िल करते रहे बाक़ी 2 क़िलों में, क़िला ए कमूस सबसे बुनियादी और बड़ा था और यह एक पहाड़ी पर बना हुआ था।
हुज़ूरे अकरम स.ल.व. ने बारी-बारी हज़रत अबू बकर, उमर और सअद बिन उबादा की क़यादत में फ़ौज को इस क़िले को फ़तह करने के लिए भेजा मगर यह सभी जान के ख़ौफ़ से मैदान छोड़कर भाग आएं और कामयाब ना हो सके। यह सिलसिला तक़रीबन 39 दिन चला। सहाबा जाते फिर मरहब जंगजू के ख़ौफ़ से भाग आते।
आख़िर में रसूले ख़ुदा (स.ल.व.) ने इरशाद फ़रमाया कि कल मैं अलम (इस्लामी फ़ौज का झंडा) उसे दूंगा जो अल्लाह और उसके रसूल से मोहब्बत करता है और अल्लाह और उसका रसूल उससे मोहब्बत करते हैं, वह शिकस्त खाने वाला और भागने वाला नहीं है, ख़ुदा उसके दोनों हाथों से फ़तह अता करेगा।
यह सुनकर तमाम सहाबा ख़्वाहिश करने लगे कि इस्लाम के अलम की अलमबरदारी की यह सआदत उन्हें नसीब हो। अगले दिन हुज़ूरे अकरम (स) ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम को तलब किया। सहाबा इकराम ने बताया कि उन्हें आशूबे चश्म (आंखों का दर्द) है लेकिन हज़रत अली अलैहिस्सलाम हुज़ूरे काएनात (स) के फ़रमान पर लब्बैक कहते हुए आये तो हुज़ूर (स) ने अपना लो आबे दहन (थूंक) उनकी आंखों में लगाया जिसके बाद पूरी ज़िंदगी उन्हें कभी आशूबे चश्म नहीं हुआ।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम क़िला ए ख़ैबर पर हमला करने के लिए पहुंचे तो यहूदियों के मशहूर पहलवान और जंगजू मरहब का भाई मुसलमानों पर हमलावर हुआ मगर हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने उसे क़त्ल कर दिया और उसके साथी भाग गए उसके बाद मरहब रजज़ पढ़ता हुआ मैदान में उतरा उसने ज़िरह बख़्तर और खोद (फ़ौलादी हेलमेट) पहना हुआ था उसके साथ एक ज़बरदस्त लड़ाई के दौरान हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने उसके सर पर तलवार का ऐसा वार किया कि उसका खोद और सर दरमियान में से दो टुकड़े हो गया।
उसके हलाकत पर ख़ौफ़ज़दा होकर उसके साथी भागकर क़िले में पनाह लेने पर मजबूर हो गए। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने क़िले का मज़बूत बड़ा दरवाज़ा जिसे चंद आदमी मिलकर खोलते और बंद करते थे उसे उखाड़ लिया और उस ख़ंदक पर रख दिया जो यहूदियों ने क़िले के आस पास खोद रखी थी ताकि कोई क़िले के अंदर ना आ सके।
इस फ़तह में 93 यहूदी मौत के घाट उतरे और क़िला फ़तह हो गया। मुसलमानों को हज़रत अली अलैहिस्सलाम की बदौलत शानदार फ़तह नसीब हुई। हुज़ूरे अकरम (स) ने यहूदियों को उनकी ख़्वाहिश पर पहले की तरह क़िला ए ख़ैबर में रहने की इजाज़त दे दी और उनके साथ मुआहेदा (अग्रिमेंट) किया कि वह अपनी आमदनी का आधा हिस्सा बतौर जीज़िया मुसलमानों को देंगे और मुसलमान जब मुनासिब समझेंगे उन्हें ख़ैबर से निकाल देंगे।
इस जंग में बनी नज़ीर के सरदार हई बिन अख़तब की बेटी सफ़िया भी क़ैद हुई जिनको आज़ाद करके हुज़ूरे करीम (स) ने उन की फ़रमाइश पर उनसे निकाह कर लिया।
इस जंग से मुसलमानों को एक हद तक यहूदियों की घिनौनी साज़िशों से निजात मिल गई और उन्हें मआशी फ़ायदा भी हासिल हुआ।
इस जंग के बाद बनी नज़ीर की एक यहूदी औरत ने रसूले ख़ुदा (स) को भेड़ का गोश्त पेश किया जिसमें एक सरी उल सर ज़हर मिला हुआ था। पैग़म्बरे अकरम (स) ने उसे महसूस होने पर थूक दिया कि उसमें ज़हर है मगर उनके एक सहाबी जो उनके साथ खाने में शरीक थे शहीद हो गए।
एक सहाबी की रिवायत के मुताबिक़ बिस्तरे वफ़ात पर हुज़ूर (स) ने फ़रमाया कि उनकी बीमारी उस ज़हर का असर है जो ख़ैबर में दिया गया था। मुसलमानों को इस जंग से भारी तादाद में जंगी सामान और हथियार मिले जिससे मुसलमानों की ताक़त बढ़ गई। उसके 18 महीने बाद मक्का फ़तह हुआ उस जंग के बाद हज़रत जाफ़र तैयार हबशा (अफ़्रीका) से वापस आए तो हुज़ूरे अकरम (स) ने फ़रमाया कि समझ में नहीं आता कि मैं किस बात के लिए ज़ियादा ख़ुशी मनाऊं! फ़तह ख़ैबर के लिए या जाफ़र की वापसी पर।
हवाला: मग़ाज़ी, जिल्द 2, पेज 637 / तारीख़ इब्ने कसीर, जिल्द 3 / इनसाइक्लोपीडिया ऑफ़ इस्लाम, अल मग़ाज़ी, वाक़दी, जिल्द 2, पेज 700 / तारीख़ इब्ने कसीर, जिल्द 3, पेज 375 / अल सीरत नबविया अज़ इब्ने हिशाम, पेज 144 ता 149 / सहीह बुख़ारी, जिल्द 2, पेज 35