
رضوی
पड़ोसियों के अधिकारों का ख़्याल रखना वाजिब
आयतुल्लाहिल उज़्मा जवादी आमोली ने कहा कि अल्लाह तआला ने पड़ोसियों केअधिकारो का ख़्याल रखना वाजिब करार दिया है जो व्यक्ति इन हुक़ूक़अधिकारो का का ख़याल नहीं रखता, वह कुरआन की आयत "وَیَقْطَعُونَ مَا أَمَرَ اللَّهُ بِهِ أَنْ یُوصَلَ" (जो अल्लाह ने जोड़े रखने का हुक्म दिया है उसे तोड़ देते हैं,के दायरे में आता है।
,हुज्जतुल इस्लाम आयतुल्लाह जवादी आमोली ने कहा कि अल्लाह तआला ने पड़ोसियों के अधिकारो का ख़याल रखना वाजिब करार दिया है जो व्यक्ति इन अधिकारो की परवाह नहीं करता वह कुरआन के आयत "وَیَقْطَعُونَ مَا أَمَرَ اللَّهُ بِهِ أَنْ یُوصَلَ" (जो अल्लाह ने जोड़े रखने का हुक्म दिया है, उसे तोड़ देते हैं) के दायरे में आता है।
मुसलमान भाई का ख़याल रखना:
आयतुल्लाह जवादी आमोली ने लिखा कि मुसलमान आपस में भाई-भाई हैं जैसा कि कुरआन में कहा गया है: إِنَّمَا الْمُؤْمِنُونَ إِخْوَةٌ (सूरह हुजुरात, आयत 10)। अगर कोई मुसलमान अपने दूसरे मुसलमान भाई की इज़्ज़त और अधिकारो का ख़याल नहीं रखता, तो यह أَمَرَ اللَّهُ بِهِ أَنْ یُوصَلَ" (अल्लाह के जोड़े रखने का हुक्म) की खिलाफ़वरज़ी है।
दोस्ती और रिश्तेदारी का दर्जा:
इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया: जो कोई किसी के साथ बीस साल तक दोस्ती करता है, वह दोस्ती रिश्तेदारी का दर्जा हासिल कर लेती है" (बिहारुल अनवार, जिल्द 71, पृष्ठ 157)। इस तरह की दोस्ती पर रिश्तेदारी के अधिकार लागू होते हैं। इसलिए, कोई व्यक्ति अपने बीस साल पुराने दोस्त को तकलीफ नहीं पहुंचा सकता और न ही उससे रिश्ता तोड़ सकता है।
पड़ोसियों के अधिकार और उनका दायरा:
आयतुल्लाह जवादी आमोली ने कहा कि पड़ोसियों के अधिकार सिर्फ़ 40 घरों तक सीमित नहीं हैं। यह अधिकार न केवल क्षैतिज (horizontal) दिशा में हैं बल्कि ऊर्ध्वाधर (vertical) दिशा में भी हैं। इसका मतलब यह है कि बहुमंजिला इमारतों में ऊपर और नीचे के फ्लैटों में रहने वाले भी पड़ोसी माने जाएंगे, और उनके अधिकारों का सम्मान करना वाजिब है।
तफ़सीर-ए- तस्नीम, भाग 2, पेज 561
हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व. की बेसत का मक़सद
इंसान की अपनी बुध्दि और ज्ञान उसके जीवन की बहुत सी आवश्यकताओं को तो पूरा कर सकते हैं लेकिन व्यक्तिगत, सामाजिक, आध्यात्मिक, दुनिया और आख़ेरत के सुख और सफ़लता और निजात तक नहीं पहुँचा सकते पैग़म्बरे इस्लाम की बेसत का सबसे अहम मक़सद लोगों को हिदायत का रास्ता दिखाया जाना है, जिस से लोगों को असली सुख, सफ़लता और निजात प्राप्त हो सके।
इंसान की अपनी बुध्दि और ज्ञान उसके जीवन की बहुत सी आवश्यकताओं को तो पूरा कर सकते हैं लेकिन व्यक्तिगत, सामाजिक, आध्यात्मिक, दुनिया और आख़ेरत के सुख और सफ़लता और निजात तक नहीं पहुँचा सकते,
पैग़म्बरे इस्लाम की बेसत का सबसे अहम मक़सद लोगों को हिदायत का रास्ता दिखाया जाना है, जिस से लोगों को असली सुख, सफ़लता और निजात प्राप्त हो सके।
इंसान नबियों और अल्लाह की ओर से नबियों पर आने वाली ख़बरों के बिना उन सुख, सफ़लता और निजात तक नहीं पहुँत सकता क्योंकि इंसान की अपनी बुध्दि और ज्ञान उसके जीवन की बहुत सी आवश्यकताओं को तो पूरा कर सकते हैं लेकिन व्यक्तिगत, सामाजिक, आध्यात्मिक दुनिया और आख़ेरत के सुख और सफ़लता और निजात तक नहीं पहुँचा सकते, इसलिए अगर इंसानी बुध्दि और उसके निजी ज्ञान के अलावा इन तक पहुँचने के लिए कोई और रास्ता न हो तो अल्लाह की रचना पर सवाल खड़ा हो जाएगा।
ऊपर दिये गए विश्लेषण के बाद यह परिणाम सामने आता है कि अल्लाह की हिकमत ने इस आवश्यकता को समझते हुए इंसानी बुध्दि और ज्ञान से मज़बूत चीज़ को इंसान के जीवन के सभी क्षेत्र के विकास के लिए रखा, अब इंसान ख़ुद अपने आपको इतना पवित्र कर ले कि उस स्थान तक पहुँच जाए या कुछ दूसरे पवित्र लोगों द्वारा वह फ़ार्मूला हासिल कर ले और उस सिलसिले का नाम, वही,है, जिसको अल्लाह ने नबियों से विशेष कर रखा है।
नबी सीधे अल्लाह से और बाक़ी सभी नबियों के द्वारा अल्लाह के संदेश को हासिल करते हैं और वह सारी चीज़ें जो असली सुख, सफ़लता औल निजात के लिए अनिवार्य हैं उन्हें हासिल कर लेते हैं। (आमूज़िशे अक़ाएद, पेज 178)
आपकी बेसत का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य न्याय प्रणाली और समानता को स्थापित करना था, जैसा कि क़ुर्आन फ़रमाता है कि हम ने अपने पैग़म्बरों को लोगों की हिदायत और उन्हें सही दिशा दिखाने के लिए दलीलों और न्याय प्रणाली के साथ भेजा ताकि लोग न्याय और समानता के उसूलों पर चलें। (सूरए हदीद, आयत 25)
क्या आप जानते हैं कि अल्लाह ने नबियों और रसूलों को क्या लक्ष्य दे कर भेजा है? क्या बेसत का लक्ष्य यह था कि हर दौर से अन्याय अत्याचार और जेहालत को हमेशा के लिए उखाड़ कर इंसानी सभ्यता को स्थापित कर सकें? या लक्ष्य यह था कि लोगों को नैतिक सिध्दांत और समाजिक प्रावधानों से परिचित करा सकें जिस से लोग इसी आधार पर अपने जीवन संबंधों को सुधार सकें?
इस सवाल का जवाब इस प्रकार उचित होगा कि ऊपर जो भी कहा गया नबी का लक्ष्य और उद्देश्य इन सब से ऊँचे स्तर का होता है, ऊपर लक्ष्यों का नाम लिया गया है वह नबी के लक्ष्य और उद्देश्य का एक हिस्सा है, और वह लक्ष्य अत्याचार और अन्याय का सफ़ाया कर के व्यक्तिगत और समाजिक क्षेत्र में न्याय प्रणाली की स्थापना है।
और हक़ीकत में यह लक्ष्य दूसरे तमाम लक्ष्यों को हासिल करने का बुनियादी ढ़ाँचा और पेड़ है, बाकी लक्ष्य इसी के टहनी हैं, क्योंकि अल्लाह की इबादत, नैतिक सिध्दांत, समाजिक प्रावधान और इंसानी सभ्यता से दूरी का कारण सही न्याय प्रणाली का न होना है।
सीरिया के शिया बहुल गाँव 'ग़ोर ग़रबी' के निवासियों का दर्द
'ग़ोर ग़रबी' गांव, जो हुम्स शहर के बाहरी इलाके में स्थित है, पिछले कुछ दिनों से हिंसा और अत्याचार का सामना कर रहा है। लेकिन यह पीड़ा नई नहीं है। इसका आरंभ सीरियाई शासन के पतन के समय हुआ, जब गांव के निवासियों को अपने घरों को छोड़ने और लेबनान और सीरिया की सीमाओं की ओर पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ा। यह पलायन सुरक्षा की आशंका और संभावित खतरों से बचने के लिए था।
कुछ समय बाद, तहरीर अल-शाम, जिसने देश के प्रशासन की जिम्मेदारी संभाली, ने ग्रामीणों को आश्वासन दिया कि वे अपने घरों को लौट सकते हैं, हथियार जमा कर सकते हैं, और अपने हालात से प्रशासन को आगाह कर सकते हैं। इन आश्वासनों ने ग्रामीणों को लौटने के लिए प्रेरित किया।
हालिया घटनाएं:
गांव में अस्थायी शांति के बाद, पिछले मंगलवार को तहरीर अल-शाम के सशस्त्र लड़ाके गांव में घुस आए। स्थानीय सूत्रों के अनुसार, उन्होंने अत्यंत बर्बरता के साथ गांव में अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी। इसके साथ ही, उन्होंने गांव के आसपास चौकियां स्थापित कर दीं और ग्रामीणों को अपमानजनक संप्रदायिक गालियां दीं, जैसे "तुम काफिर हो" और "हम तुम्हें नहीं बख्शेंगे।"
नरसंहार:
इस हिंसा में गांव के कई निवासी मारे गए। पहले चरण में, बासिल क़ासिम और मोहम्मद सईद जुरूद, जो कि 69 वर्षीय सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी थे, को मार दिया गया। मोहम्मद सईद, जो 2011 में गृहयुद्ध शुरू होने से पहले ही सेवानिवृत्त हो चुके थे, एक छोटी सी स्टेशनरी की दुकान चलाते थे।
इसके बाद, अहमद जर्दो, एक अन्य ग्रामीण, को उनकी ही आंखों के सामने उनकी पत्नी और बच्चों के बीच मार डाला गया, क्योंकि उन्होंने अपने घर को ध्वस्त करने का विरोध किया था। उनके घर को ध्वस्त कर दिया गया, उनकी पत्नी का अपमान किया गया, और उनके शहीद भाई के सीरियाई सेना के मेडल को अपमानित किया गया।
महिलाओं और परिवारों पर अत्याचार:
उम्म सामी सालेह, जिन्होंने अपने बेटे को गिरफ्तार करने से रोकने की कोशिश की, उन्हें "तुम्हारा कत्ल जायज़ है" जैसी संप्रदायिक गालियों का सामना करना पड़ा।
मौजूदा हालातः
गांव इस समय पूरी तरह से घेराबंदी में है। न तो कोई खाद्य सामग्री, न सब्जियां, और न ही अन्य आवश्यक वस्तुएं गांव तक पहुंच रही हैं। इस स्थिति के जारी रहने से ग्रामीणों के बीच कुपोषण की गंभीर समस्या हो सकती है।
इस हिंसा को रोकने में नई सीरियाई सरकार की उदासीनता स्पष्ट है। स्थानीय सूत्रों के अनुसार, इन अत्याचारों को "अबू अल-बरा अल-अक्शी" और "अहमद बकोरी" द्वारा नेतृत्व किए गए समूहों ने अंजाम दिया है।
गांव 'ग़ोर ग़रबी' के निर्दोष नागरिकों पर हो रहे इन अत्याचारों ने इंसानियत को झकझोर कर रख दिया है। इस समस्या का समाधान और ग्रामीणों की सुरक्षा सुनिश्चित करना बेहद जरूरी है।
लेबनान, इस्राइल से संघर्ष के दौरान ईरानी और इराकी समर्थन को कभी नहीं भूलेगा।
हिज़बुल्लाह के प्रमुख शेख नईम क़ासिम ने कहा है कि लेबनान, इस्राइल के साथ हुए युद्ध के दौरान ईरान और इराक द्वारा दिये गये समर्थन को कभी नहीं भूलेगा। उन्होंने कहा इन देशों द्वारा दी गई सामग्री, सैन्य और राजनीतिक सहायता का आभार व्यक्त किया, जिसने लेबनान की प्रतिरोध और रक्षा प्रयासों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
ईरान की भूमिका
ईरान, जो हज़बुल्लाह का लंबे समय से साथी है, ने वित्तीय सहायता, उन्नत हथियारों और रणनीतिक मार्गदर्शन प्रदान किया।शेख नईम क़ासिम ने यह स्पष्ट किया कि अगर ईरान का समर्थन न होता, तो लेबनान के लिए इस्राइली आक्रमण का मुकाबला करना बहुत मुश्किल हो जाता।
इराक़ का योगदान
शेख नईम ने इराकी समूहों और नेताओं का भी उल्लेख किया, जिन्होंने अपनी आंतरिक चुनौतियों के बावजूद लेबनान को युद्ध के संकटपूर्ण क्षणों में अपना समर्थन दिया।
उन्होंने क्षेत्रीय चुनौतियों का सामना करने में एकजुटता और गठबंधनों की महत्वपूर्णता पर जोर दिया। नईम क़ासिम का बयान उस समय आया है जब मध्य पूर्व में तनाव बढ़ा हुआ है, और उनका यह संदेश हिज़बुल्लाह, ईरान और इराक के बीच गहरे रिश्तों को दर्शाता है।
ब्रिटेन ने ट्रंप के प्रस्ताव को ठुकरा दिया
ग़ज़्ज़ा में नरसंहार और तबाही के समर्थक ब्रिटेन ने ट्रंप की अपमानजनक सलाह पर प्रतिक्रिया व्यक्त की और डाउनिंग स्ट्रीट में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री के प्रवक्ता ने इसे खारिज कर दिया।
ब्रिटेन ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के उस प्रस्ताव को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने फ़िलिस्तीनियों को ग़ज़्ज़ा से पड़ोसी देशों में स्थानांतरित करने का सुझाव दिया था।
डाउनिंग स्ट्रीट में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री के प्रवक्ता ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में ट्रंप के प्रस्ताव को खारिज करते हुए कहा,फ़िलिस्तीनी नागरिकों को अपने घरों में लौटने और अपनी ज़िंदगी फिर से बनाने का मौका मिलना चाहिए।
हालांकि ग़ज़्ज़ा के पीड़ित लोगों के खिलाफ ज़ायोनी शासन के नरसंहार को ब्रिटेन द्वारा अंतरराष्ट्रीय मंचों पर समर्थन देने की हमेशा आलोचना होती रही हैं।
डाउनिंग स्ट्रीट ने आगे कहा,जैसा कि विदेश मंत्री ने कहा है ग़ज़्ज़ा के लोगों के लिए जिनमें से कई ने अपने प्रियजनों घरों या ज़िंदगियों को खो दिया है, पिछले 14 महीने संघर्ष का एक जीवित दुःस्वप्न रहे हैं। यही कारण है कि ब्रिटेन लगातार ग़ज़्ज़ा में संघर्ष का समाधान खोजने की कोशिश कर रहा है।
चीन के साथ एआई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) में मुकाबला कड़ा होगा
अमेरिका ने साफ कर दिया है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के मामले में चीन के साथ उसकी टक्कर बहुत गंभीर है। एआई एक ऐसी तकनीक है जो मशीनों को इंसानों की तरह सोचने और काम करने की ताकत देती है। यह आने वाले समय में हर देश की ताकत और तरक्की का सबसे बड़ा जरिया बन सकती है।
चीन और अमेरिका की ये रेस क्यों इतनी अहम है?
तकनीक में आगे निकलने की होड़:
एआई का इस्तेमाल अब हर जगह हो रहा है – दवा बनाने में, स्कूलों में पढ़ाई में, और यहां तक कि सेनाओं में भी। जो देश एआई में सबसे आगे रहेगा, वही बाकी दुनिया पर दबदबा बना सकेगा।
सुरक्षा और हथियार:
अमेरिका और चीन एआई का इस्तेमाल अपनी सेनाओं को और स्मार्ट बनाने के लिए कर रहे हैं। इसमें रोबोट, ड्रोन और साइबर हमलों से बचाव की तकनीकें शामिल हैं।
आर्थिक फायदे:
एआई की मदद से देशों की फैक्ट्रियां तेज़ी से काम कर सकती हैं, बिज़नेस को बढ़ावा मिल सकता है, और नई नौकरियां पैदा हो सकती हैं।
अमेरिका को चिंता क्यों है? चीन की तेज़ी:
चीन एआई के विकास में बहुत पैसा लगा रहा है और उसने 2030 तक इस क्षेत्र में दुनिया में सबसे आगे निकलने का लक्ष्य रखा है।
डेटा का फायदा: चीन के पास बड़ी आबादी है, जिससे उसे काफी डेटा मिलता है। डेटा एआई को स्मार्ट बनाने के लिए सबसे जरूरी चीज है।
अमेरिका की बढ़त पर खतरा: अमेरिका अब तक एआई में सबसे आगे था, लेकिन चीन तेजी से उसकी बराबरी कर रहा है। अमेरिका क्या कर रहा है? ज्यादा पैसा लगा रहा है:
अमेरिका एआई के रिसर्च और विकास पर बड़ा बजट खर्च कर रहा है।
नियम-कानून बना रहा है:
अमेरिका चाहता है कि एआई का इस्तेमाल सही तरीके से हो। वो चीन पर आरोप लगाता है कि वह इसका गलत इस्तेमाल कर रहा है, जैसे लोगों की जासूसी और सेंसरशिप।
दोस्त देशों के साथ मिलकर काम: अमेरिका जापान, भारत और यूरोप जैसे अपने सहयोगियों के साथ मिलकर चीन को चुनौती देने की कोशिश कर रहा है।
चीन का मकसद क्या है?
चीन सिर्फ अमेरिका से आगे नहीं निकलना चाहता, बल्कि एआई की मदद से दुनिया में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहता है। वह अपनी टेक्नोलॉजी को हर जगह इस्तेमाल करने के लिए धकेल रहा है।
नतीजा:
अमेरिका और चीन की यह होड़ सिर्फ टेक्नोलॉजी तक सीमित नहीं है। यह आने वाले वक्त में तय करेगी कि दुनिया की सबसे ताकतवर और असरदार देश कौन होगा। एआई के इस मुकाबले का असर हर किसी की जिंदगी पर पड़ेगा।
क्या आप जानते हैं कि पैगंबर (स.) के आने से पहले कैसे थे, अरब के हालात?
पैगंबर के समय दुनिया में बड़े साम्राज्य खत्म हो रहे थे, जैसे सासानी और रोमन साम्राज्य। उस समय बड़े धर्म जैसे ईसाई और ज़रोस्त्रियन धर्म भी गलत मान्यताओं से मिल गए थे। लोग अज्ञानता और ज़ुल्म का शिकार थे, जगह-जगह हंगामे और धोखाधड़ी थी। समाज में बुरे कानून, वर्ग भेद, जनजातीय लड़ाईयाँ, गलत भेदभाव, और महिलाओं के साथ खराब व्यवहार था। इसलिए, क़ुरआन ने उस समय को "स्पष्ट गुमराही" कहा है। इसे इस्लामी स्रोतों में "जाहिलियत का दौर" कहा जाता है।
पैग़म्बर के आने से पहले अरब के हालात
राजनीतिक स्थिति: अरब में कोई एक बड़ा राज्य नहीं था। लोग क़बीले (जनजातियों) में रहते थे और हर क़बीले का अपना नेता होता था। मक्का में क़ुरैश क़बीला का प्रभुत्व था, और मदीना में भी कई क़बीले थे। इस समय कोई केंद्रीय सरकार नहीं थी, और लोग अपने-अपने क़बीले के अनुसार चलते थे।
धार्मिक स्थिति: अधिकांश लोग कीअसनाम की पूजा करते थे। मक्का में काबा में कई ख़ुदा रखे जाते थे, जिनकी लोग इबादत करते थे। इसके अलावा, कुछ लोग यहूदी और ईसाई थे, लेकिन उनकी संख्या कम थी। किताबों में यह बताया गया है कि लोग असली धर्म से भटक चुके थे और बहुत सी गलत बातें फैल चुकी थीं।
आर्थिक स्थिति: अरब की ज्यादातर अर्थव्यवस्था व्यापार और खेती पर आधारित थी। मक्का एक प्रमुख व्यापारिक शहर था, क्योंकि यह दो बड़े व्यापार मार्गों के बीच था। यहाँ पर व्यापार से क़ुरैश क़बीला को बहुत फायदा होता था।
सामाजिक स्थिति: समाज में असमानताएँ थीं। लोग अपने क़बीले के हिसाब से जीवन जीते थे, और महिलाओं की स्थिति बहुत कमजोर थी। किताबों में बताया गया है कि इस समय कुछ क़बीले अपनी बेटियों को ज़िंदा दफन कर देते थे, जो एक बहुत ही खराब प्रथा थी। इसके अलावा, लोग ज्यादातर अनपढ़ थे और बहुत सी गलत बातें मानते थे।
इस स्थिति को बदलने के लिए, इस्लाम आया और पैगंबर ने लोगों को एक नया और सही रास्ता दिखाया।
आज ईरान सही दुनिया भर के मुसलमान ईद ए बेसत मना रहे
आज 28 जनवारी 27रजब हैं,जिस दिन हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व. के ईश्वरीय दूत होने की घोषणा की गई।
आज 28 जनवारी 27रजब हैं,जिस दिन हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व. के ईश्वरीय दूत होने की घोषणा की गई।
27 रजब को जब पैग़म्बरे इस्लाम की आयु 40 वर्ष थी, हिरा नामक ग़ुफ़ा में जिबरईल ने अल्लाह की ओर से उन्हें ईश्वरीय दूत घोषित किया।
इस प्रकार, आमुल फ़ील के 40वें वर्ष में मोहम्मद मुस्तफ़ा अंतिम ईश्वरीय दूत घोषित हुए, ताकि लोगों को जिहालत से निकालकर नैतिकता का पाठ पढ़ाएं और इंसानियत को नई ऊंटाईयों पर लेकर जाएं।
पैग़म्बरे इस्लाम को अंतिम ईश्वरीय दूत घोषित करने की घटना को इस्लाम में बेसत कहा जाता है, जो दुनिया में इस्लामी और नैतिक सभ्यता की शुरूआत का दिन है।
पैग़म्बरे इस्लाम ने मानवता के मार्गदर्शन के लिए आदर्श के रूप में अपने आचरण के साथ ही ईश्वरीय किताब क़ुरान को पेश किया, ताकि रहती दुनिया तक लोग इसके प्रकाश में सही मार्ग पर आगे बढ़ सकें।
आज के दिन ईरान और दुनिया भर में मुसलमान ईदे बेसत मना रहे हैं और मिठाईयों के साथ ही एक दूसरे को बधाई प्रस्तुत कर रहे हैं।
इस मौके पर हम आपकी खिदमत में अपनी पूरी टीम की तरफ से ईद ए बेसत की बहुत सारी बधाई पेश करते हैं।
मैराजे पैग़म्बर
किताबे मुन्तहल आमाल मे बयान किया गया है कि आयाते क़ुराने करीम और अहादीसे मुतावातिरा से साबित होता है कि परवरदिगारे आलम ने रसुले अकरम स.अ.व.व. को मक्का ए मोअज़्ज़मा से मस्जिदे अक़सा और वहा से आसमानो और सिदरतुल मुन्तहा व अर्शे आला की सैर कराई और आसमानो की अजीबो ग़रीब मख़्लुक़ात रसुले अकरम स.अ.व.व. को दिखाई और पोशीदा राज़ो और न तमाम होने वाले मआरिफ आपको अता किये।
रसूले अकरम स.अ.व.व. ने बैते मामूर मे खुदा वंदे आलम की इबादत की और तमाम अंबिया से मुलाक़ात की और जन्नत मे दाखिल हुऐ और अहले बहीश्त की मंज़िलो को देखा।
शिया और सुन्नी दोनो की अहादीसे मुतावातिरा मे आया है की रसूले अकरम स.अ.व.व. की मैराज जिस्मानी थी न कि रुहानी।
किताबे चौदह सितारे मे नजमुल हसन कर्रारवी साहब ने तफसीरे क़ुम्मी के हवाले से नक़ल किया कि बैसत के बारहवे साल मे सत्ताइस रजब को खुदा वंदे आलम ने जिबरईल को भेज कर बुर्राक़ के ज़रीऐ रसूले अकरम स.अ.व.व. को क़ाबा क़ौसेन की मंज़िल पर बुलाया और वहा इमाम अली (अ.स.) की खिलाफतो इमामत के बारे मे हिदायते दीं।
उसुले काफी मे इमाम सादिक़ (अ.स.) से रिवायत है कि जो शख्स भी चार चीज़ो का इंकार करे वो हमारे शियो मे से नही हैः
मैराजे रसूले अकरम स.अ.व.व.
खिलक़ते जन्नतो जहन्नम
क़र्ब मे होने वाले सवाल जवाब
शिफाअत
और इसके बाद इमाम रज़ा (अ.स.) से रिवायत है कि जो भी मैराजे रसूले अकरम स.अ.व.व.
को झूठ मानता है उसने रसूले अकरम स.अ.व.
पैग़म्बर (स) की सीरत के जलते चराग़
1- हमेशा ग़ोर व फ़िक्र करते थे।
2- ज़्यादा तर चुप रहते थे।
3- अच्छे अख़लाक़ के मालिक थे।
4- किसी का भी अपमान नहीं करते थे।
5- दुनिया की मुशकिलात पर कभी ग़ुस्सा नहीं करते थे।
6- अगर किसी का हक़ पामाल होता देखते थे तो जब तक हक़ न मिल जाऐ ग़ुस्सा रहते थे और उन को कोई पहचान नहीं पाता था।
7- इशारा करते समय पूरे हाथ से इशारा करते थे।
8- जब वह खुश होते थे तो पलकों को बन्द कर लिया करते थे।
9- ज़ौर से हसने की जगह आप सिर्फ़ मुसकुराते थे।
10- फ़रमाते थे जो कोई ज़रूरत मन्द मुझ तक नहीं पहुंच सकता तुम उस तक पहुंचो।
11- जिस के पास जितना ईमान होता था रसूल उसका उतना ही ऐहतेराम किया करते थे।
12- लोगों से प्रेम करते थे और उन को कभी अपने आप से दूर नहीं करते थे।
13- हर काम में ऐतेदाल पसन्द थे और कमी और ज़्यादती का परहेज़ करते थे।
14- बिला वजह की बातों से परहेज़ करते थे।
15- ज़िम्मेदारी को अंजाम देने में किसी भी तरह की सुसती नहीं करते थे।
16- रसूल (स.) के नज़दीक सब से अच्छा शख़्स वोह है जो लोगों की भलाई चाहता है।
17- पैग़म्बर (स.) किसी मेहफ़िल, अंजुमन, और जलसे में नहीं बेठते थे जो यादे ख़ुदा से ख़ाली हो।
18- मजलिस में अपने लिये कोई ख़ास जगह मोअय्यन नहीं करते थे।
19- जब किसी मजमे में जाते थे तो ख़ाली जगह ठूंड कर बैठ जाते थे और अपने असहाब को भी हुक्म देते थे कि इस तरह किया करें।
20- जब कोई ज़रूरत मन्द आप के पास आता था तो उसकी ज़रूरत को पूरा करते थे या फिर अपनी बातों से उसको राज़ी कर लेते थे।
21- आप का तर्ज़े अमल इतना अच्छा था कि लोग आपको एक शफ़ीक़ बाप समझते थे और सब लोग उन के नज़दीक एक जैसे थे
22- आप की नशिस्त व बरख़्वास्त बुर्दबारी, शर्म व हया, सच्चाई और अमानत पर होती थी।
23- किसी की बुराई नहीं करते थे और न किसी की ज़्यादा तारीफ़ करते थे।
24- रसूले ख़ुदा (स.) तीन चीज़ों से परहेज़ करते थे झगड़ा, बिला वजह बोलना, बिना ज़रूरत के बात करना।
25- कभी किसी को बुरा भला नहीं कहते थे।
26- लोगों की बुराईयों को तलाश नहीं करते थे।
27- बिना किसी ज़रूरत के गुफ़तगू नहीं करते थे।
28- किसी की बात नहीं काटते थे मगर यह कि ज़रूरत से ज़्यादा हो।
29- बड़े इतमेनान और आराम के साथ क़दम उठाते थे।
30- आप की गुफ़तगू मुख़तसर, जामे और पुर सुकून और मझी हुई होती थी और आप की आवाज़ तमाम लोगों से अच्छी और दिल नशीन होती थी।
31- रसूले ख़ुदा (स.) सब से ज़्यादा बहादुर, और सब से ज़्यादा सख़ी थे।
32- पैग़म्बर (स.) तमाम मुशकिलात में सब्र से काम लिया करते थे।
33- पैग़म्बर (स.) ज़मीर पर बैठ कर ख़ाना ख़ाते थे।
34- अपने हाथों से अपने जूते टांकते और कपड़े सिलते थे।
35- इतना ख़ुदा से डरते थे कि आंसूओं से जानमाज़ भीग जाया करती थी।
36- हर रोज़ सत्तर बार इसतग़फ़ार पढ़ते थे।
37- अपनी ज़िन्दगी का एक लमहा भी बेकार नहीं गुज़ारा।
38- तमाम लोगों के बाद रसूल को ग़ुस्सा आता था और सब से पहले राज़ी होते थे।
39- आप मालदार और फ़क़ीर दोनों से एक ही तरह से मिलते थे और मुसाफ़ेहा (हाथ मिलाते) करते थे और अपने हाथ को दूसरों से पहले नहीं खींचते थे।
40- आप लोगों से मिज़ाह (हसी मज़ाक) फ़रमाते थे ताकि लोगों को ख़ुश कर सकें
इमामे सादिक़ अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः मैं उसको पसन्द नहीं करता कि जिस इंसान को मौत आ जाऐ और वह रसूल (स.) की सीरत पर अमल न करता हो।