
رضوی
दक्षिण लेबनान में इस्राइली बलों द्वारा नागरिकों पर गोलीबारी, दर्जनों की मौत और कई घायल
"इस्राइली बलों ने दक्षिण लेबनान के कस्बों में अपने घर लौट रहे लेबनानी नागरिकों पर गोलियां चलाईं, जिसमें कम से कम तीन नागरिकों की मौत हो गई और 44 अन्य घायल हो गए।
लेबनान के सार्वजनिक स्वास्थ्य मंत्रालय ने रविवार को यह आंकड़े जारी किए।
इस बीच, लेबनान के अल-मयादीन टेलीविज़न चैनल ने रिपोर्ट दी कि इस्राइली बलों ने सीमा के पास स्थित हूला कस्बे से दो लेबनानी नागरिकों का अपहरण कर लिया।
अन्य रिपोर्टों में कहा गया है कि इस्राइली ड्रोन ने बानी हय्यान गांव के निवासियों को निशाना बनाया, जिससे कई लोग घायल हो गए।"
नवाब मिसाइल का सफल परीक्षण
इस्लामिक रिवोल्यूशन गार्ड कॉर्प्स (IRGC) की नौसेना के कमांडर ने बताया कि "मोहाजिर-6" और "अबाबील-5" ड्रोन को स्मार्ट तकनीक से लैस "कायम" और "अलमास" मिसाइलों से सुसज्जित किया गया है। उन्होंने कहा कि पहली बार "नवाब" मिसाइल का उपयोग शहीद सुलैमानी जहाज को हवाई सुरक्षा प्रदान करने के लिए किया गया, जिसने अपने लक्ष्यों को सफलतापूर्वक भेदा।
तस्नीम समाचार एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, यह बात बुशहर में पत्रकारों से बातचीत के दौरान एडमिरल अलीरेज़ा तंगसिरी ने कही। उन्होंने फारस की खाड़ी में आयोजित "रज़मायेश-ए-इक़्तेदार" (शक्ति प्रदर्शन सैन्य अभ्यास) का उल्लेख करते हुए बताया कि इस अभ्यास के दूसरे दिन, जिसे शहीद मन्ज़ज़ी के नाम पर रखा गया, विभिन्न रेंज की तट-से-समुद्र और सतह-से-सतह मिसाइलें दागी गईं।
इस अभ्यास के दौरान, पहली बार "नवाब" मिसाइल का उपयोग किया गया, जिसने शहीद सुलैमानी जहाज को हवाई सुरक्षा प्रदान करते हुए अपने लक्ष्यों को सफलता के साथ भेदा।
मेक्सिको की खाड़ी का नाम बदलने की अमेरिका की कार्रवाई के जवाब में सुप्रीम लीडर का नया ट्वीट
khamenei.ir मीडिया के एक्स अकाउंट ने मेक्सिको की खाड़ी का नाम बदलने के अमेरिका के कदम पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए गोल्फोडेमेक्सिको (GolfoDeMéxico) हैशटैग के साथ स्पेनिश भाषा में एक ट्वीट किया।
khamenei.ir के एक्स मीडिया अकाउंट ने इस ट्वीट में कहा कि अमेरिका दुनिया भर में, खासकर लैटिन अमेरिका और पश्चिम एशिया में अपने व्यवहार से सबसे खराब तरह का साम्राज्यवाद दिखा रहा है।
इस ट्वीट का अनुवाद इस प्रकार है:
"दुनिया भर में, विशेष रूप से लैटिन अमेरिका और पश्चिम एशिया में अपने व्यवहार के साथ, अमेरिका, लोगों के अधिकारों की रक्षा करने का दावा करते समय सबसे खराब प्रकार के साम्राज्यवाद का प्रदर्शन करता है, लोगों की इच्छाशक्ति इस साम्राज्यवाद पर विजय पा सकती है।"
अमेरिकी गृह मंत्रालय ने शुक्रवार को घोषणा की थी: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प के आदेश के अनुसार, इस मंत्रालय ने आधिकारिक तौर पर मैक्सिको की खाड़ी का नाम बदलकर अमेरिका की खाड़ी कर दिया है, एक ऐसी कार्रवाई जिसका व्यापक स्तर पर विरोध शुरु हो गया है।
रॉयटर्स समाचार एजेंसी के मुताबिक, इस तरह के नाम परिवर्तन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिलने की संभावना नहीं है।
मैक्सिकन सरकार का भी यह कहना है कि मैक्सिको की खाड़ी का नाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जाना पहचाना नाम है और इसका उपयोग सैकड़ों वर्षों से समुद्री नेविगेशन या जहाज़रानी के परिवहन के रूप में किया जाता रहा है।
लेबनान पर मंडराते ख़तरे के बादल, संघर्षविराम कल होगा ख़त्म
आने वाले कुछ घंटे खतरनाक हो सकते हैं क्योंकि इस्राइली सेना के अधिकारियों ने दक्षिणी लेबनान के कुछ हिस्सों में अपनी उपस्थिति की बात की है। हिज़बुल्लाह ने साफ़ तौर पर यह चेतावनी दी है कि 60 दिन के युद्धविराम के बाद अगले दिन इस्राइली सेना के लिए स्थिति अलग होगी।
अल-आलम के संवाददाता ने लेबनान सरकार की इस मामले में भूमिका निभाने की आवश्यकता पर जोर दिया और कहा कि प्रतिरोध किसी भी संभावित बदलाव का सामना करने के लिए पूरी तरह से तैयार है।
ग़ालिब अबू ज़ैनब, हिज़बुल्लाह के राजनीतिक परिषद के सदस्य ने अल-आलम से बात करते हुए कहा कि यह लेबनानी लोगों, विशेषकर गाँवों के निवासियों का अधिकार है कि वे इस इजरायली कब्जे को समाप्त करने के लिए प्रतिरोध सहित सभी संभव उपायों का उपयोग करें।
उन्होंने कहा: "एक प्रमुख कारण, जो इस्राइली दुश्मन की लेबनान पर आक्रमण की योजना को विफल करने में सहायक था, वह प्रतिरोध बल थे। इसका मतलब है कि हमें एक राष्ट्र और एक प्रतिरोध के रूप में सक्रिय होना होगा, और इस क्षेत्र को पुनः प्राप्त करने के लिए सभी उपायों का सहारा लेना होगा।"
अल-आलम के संवाददाता के अनुसार, दक्षिणी लेबनान के गाँवों के लोग, अपनी भूमि पर संप्रभुता का पालन करते हुए, सभी खतरों के बावजूद कल अपने घरों की ओर लौटेंगे।
सबसे पुराने फिलिस्तीनी क़ैदी को मिली आज़ादी
मुहम्मद अल-तौस, जो बेथलहम (पश्चिमी तट) के रहने वाले हैं, 1985 में ज़ायोनी सैनिकों के हमले में गिरफ्तार हुए थे और तब से वह कब्ज़े वालों के कब्ज़े में थे।
अल-तौस का नाम उन फिलिस्तीनी क़ैदियों की सूची में है, जो क़ैदी विनिमय समझौते के तहत आज शनिवार को रिहा होंगे।
40 साल की क़ैद के साथ, अल-तौस फिलिस्तीन के सबसे पुराने क़ैदी के रूप में जाने जाते हैं।
फिलिस्तीनी स्रोतों के अनुसार, रिहा होने के बाद, उन्हें फिलिस्तीन से बाहर जाना होगा क्योंकि कब्ज़े वालों ने पश्चिमी तट में उनके परिवार के पास लौटने का विरोध किया है।
उन क़ैदियों में से कुछ नाम जो आज रिहा होने वाले हैं, और जो ज़ायोनी जेलों में आजीवन क़ैद की सजा काट रहे थे, उनमें सलिम हज्जा, थाबित मर्दावी, शेख सालेह दर मोसा, महमूद शरीत, वाहिल अल-जागूब, रमजान मशहारा, वाहिल क़ासिम, विसाम अल-अबासी, खलील बराकी और मनीफ अबू अतवान शामिल हैं।"
हज़रत इमाम काज़िम का तशकीले हुकूमते इस्लामी का अरमान
तारीख़ी और रिवाई हक़ायक़ इस पर शाहिद हैं कि सरकारे मुरसले आज़म (स) और मौला ए कायनात (अ) की अज़ीमुश शान इलाही व इस्लामी हुकूमत के वुक़ू पज़ीर होने के बाद, इसी तरह इलाही अहकाम व हुदूद (दीन व शरीयत) के मुकम्मल निफ़ाज़ व इजरा की ख़ातिर इस्लामी हुकूमत की तशकील का अरमान हमारे हर इमामे मासूम (अ) के दिल में करवटें लेता रहा है। जिस के कसीर नमूने हमें आईम्म ए अतहार (अ) के बयानात व फ़रामीन में जा बजा नज़र आते हैं।
मसलन इमाम हसन (अ) अपने सुस्त व बे हौसला साथियों से ख़िताब करते हुए फ़रमाते हैं कि अगर मुझे ऐसे नासिर व मददगार मिल जाते जो दुश्मनाने ख़ुदा से मेरे हम रकाब हो कर जंग करते तो मैं हरगिज़ ख़िलाफ़त मुआविया के पास न रहने देता क्यो कि ख़िलाफ़त बनी उमय्या पर हराम है। [1]
इमाम हुसैन (अ) ने भी मुहम्मद हनफ़िया के नाम अपने वसीयत नामे में इसी अज़ीम अरमान का इज़हार यह कह कर फ़रमाया है:
ओरिदो अन आमोरा बिल मारूफ़ व अनहा अनिल मुन्कर......। [2]
इस्लाहे उम्मत, अम्र बिल मारुफ़, नही अनिल मुन्कर और सीरते रसूल (स) व अमीरुल मोमनीन (अ) का इत्तेबाअ, यह सब दर हक़ीक़त बनी उमय्या की ग़ैर इस्लामी और ज़ालेमाना हुकूमत की नाबूदी और इलाही व इस्लामी हूकूमत के क़याम ही की तरफ़ एक बलीग़ इशारा है।
इमाम सादिक़ (अ) ने सदीरे सैरफ़ी के ऐतेराज़ के जवाब में जो कुछ फ़रमाया है उस से भी यह ज़ाहिर होता है कि इस्लामी हुकूमत की तशकील व तासीस आप की दिली तमन्ना व आरजू़ थी।
सुदीर कहते हैं कि एक दिन मैं इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) की ख़िदमत में हाज़िर हो कर कहने लगा कि आख़िर आप क्यों बैठे हैं? (हुकूमत के लिये क्यों क़याम नही फ़रमाते) आप ने फ़रमाया: ऐ सुदीर, हुआ क्या?
मैं ने कहा कि आप अपने दोस्तों और शियों की कसरत तो देखिये। आप ने फ़रमाया कि तुम्हारी नज़र में उन की तादाद कितनी है?
मैं ने कहा एक लाख।
आप ने ताअज्जुब से फ़रमाया एक लाख।
मैं ने कहा जी बल्कि दो लाख।
मैं ने अर्ज़ किया जी हाँ.... बल्कि शायद आधी दुनिया।
मौला सुदीर के साथ यही गुफ़तुगू करते करते जब मक़ामे यनबअ में पहुचे तो वहाँ आप ने बकरियों के एक गल्ले (रेवड़) को देख कर सुदीर से फ़रमाया: अगर हमारे दोस्तों और शियों की तादाद इस गल्ले के बराबर भी होती तो हम ज़रूर क़याम करते। [3]
इस रिवायत से यह अंदाज़ा लगामा मुश्किल नही है कि इस्लामी हुकूमत के क़याम व तासीस की दिली तमन्ना व आरज़ू, असबाब व हालात की ना फ़राहमी की वजह से एक आह और तड़प में बदल कर रह गई थी।
अलावा अज़ इन तक़रीबन सारे ही आईम्म ए मासूमीन (अलैहिमुस सलाम) के यहाँ यह अहम और अज़ीम अरमान बुनियादी मक़सद व हदफ़ के तौर पर नुमायां अंदाज़ में नज़र आता है। लेकिन अब हम अपने मौज़ू की मुनासेबत से उस की झलकियां सिर्फ़ इमाम मूसा काज़िम (अ) की हयाते पुर बरकत में देखना चाहते हैं।
तारीख़ व सेयर का मुतालआ करने वाले बेहतर जानते हैं कि इस्लामी हुकूमत के क़याम व तशकील के लिये बा क़ायदा जिद्दो जिहद इमाम मूसा काज़िम (अ) की ज़िन्दगी में आप से पहले आईम्मा की ब निस्बत, ज़ाहिरन इंतेहाई दुश्वार बल्कि ना मुम्किन मालूम होती है। चूं कि आप का अहदे इमामत, अब्बासी हुकूमत शदायद व मज़ालिम के लिहाज़ से इंतेहाई बहरानी, हस्सास और ख़तरनाक दौर था। ऐसा ख़तरनाक कि आप की हर नक़्ल व हरकत पर हुकूमत की कड़ी नज़र रहती थी, लेकिन क्या कहना ऐसे संगीन और कड़े हालात पर भी यही नही कि इमाम काज़िम ने सिर्फ़ अपने पिदरे बुज़ुर्गवार इमाम सादिक़ (अ) के हौज़ ए इल्म व दानिश की शान व शौकत को बाक़ी रखा। [4] बल्कि इस्लामी हुकूमत के क़याम व तहक़्क़ुक़ के लिये भी आप हमा तन कोशां और फ़आल रहे और आप ने इस की तासीस व तशकील के लिये किसी भी मुमकिना जिद्दो जिहद से दरेग़ नही फ़रमाया। यहाँ तक कि अब्बासी ख़लीफ़ा हारून रशीद भी यह समझने लगा कि इमाम मूसा काज़िम (अ) और उन के शिया जिस दिन भी ज़रूरी क़ुदरत व ताक़त हासिल कर लेंगें उस दिन उस की ग़ासिब हुकूमत को नाबूद करने में देर नही लगायेगें। [5]
हुकूमते इस्लामी की तशकील के सिलसिले में इमाम काज़िम (अ) के बुलंद अहदाफ़ व मक़ासिद का अंदाज़ा, इस मुकालमे से भी ब ख़ूबी लगाया जा सकता है जो मौला और हारून के दरमियान पेश आया है। जिस की तफ़सील कुछइस तरह है कि एक दिन हारून ने (शायद आप को आज़माने और आप के अज़ीम अरमान को परखने के लिये) इस आमादगी का इज़हार किया कि वह फ़िदक आप के हवाले करना चाहता है। आप ने इस पेशकश के जवाब में फ़रमाया कि मैं फिदक लेने को तैयार हूँ मगर शर्त यह है कि उस के तमाम हुदूद के साथ वापस किया जाये।
हारून ने पूछा उस के हुदूद क्या हैं? आप ने फ़रमाया कि अगर उस के हुदूद बता दूँ तो हरगिज़ वापस नही करोगे।
हारून ने इसरार किया और क़सम खाई कि मैं उसे ज़रूर वापस करूगा, आप हुदूद तो बयान करें, (यह सुन कर) मौला ने हुदूदे फिदक़ इस तरह बयान फ़रमा दें।
उस की पहली हद अदन है।
दूसरी हद समरकंद है।
तीसरी हद अफ़रीक़ा है।
चौथी हद अलाक़ाजाते अरमेनिया व बहरे ख़ज़र हैं।
यह सुनते ही हारून के होश उड़ गये बहुत बे चैन व परेशान हुआ, ख़ुद को कंट्रोल न कर सका और ग़ुस्से से बोला तो हमारे पास क्या बचेगा? इमाम (अ) ने फ़रमाया: मैं जानता था कि तुम क़बूल नही करोगे इसी लिये बताने से इंकार कर रहा था। [6] इमाम (अ) ने हारून को ख़ूब समझा दिया कि फ़िदक सिर्फ़ एक बाग़ नही है बल्कि इस्लामी हुकूमत के वसीअ व अरीज़ क़लमरौ का एक रमज़ो राज़ है।
असहाबे सकीफ़ा ने दुख़तरे व दामादे रसूल (स) से फिदक छीन कर दर हक़ीक़त अहले बैत (अ)का हक़्क़े हुकूमत व हाकेमियत ग़ज़ब व सल्ब किया था लिहाज़ा अब अगर अहले बैत (अ) को उनका हक़ दे दिया जाये तो इंसाफ़ यह है कि पूरे क़लमरौ ए हुकूमते इस्लामी को उन के सुपुर्द किया जाये।
हैरत की बात तो यह है कि सारी इस्लामी दुनिया पर अब्बासी हुकूमत का तसल्लुत व तसर्रुफ़ होने के बावजूद दूर व नज़दीक हर तरफ़ से अमवाले ख़ुम्स और दीगर शरई वुजूहात इमाम की ख़िदमत में पेश किये जाते थे और ऐसा लगता था कि जैसे आप ने संदूक़े बैतुल माल तशकील दे रखा है। [7] जो यक़ीनन इस बात की दलील है कि इस्लामी हुकूमत तशकील देने के लिये आप ने ऐसे इलाही, इस्लामी और अख़लाक़ी किरदार व असबाब अपना रखे थे जो इस्लामी दुनिया के समझदार और हक़ शिनास, हक़ीक़त निगर तबक़ा आप की तरफ़ मुतवज्जे किये हुए थे बल्कि उसे आप का मुतीअ व फ़रमां बरदार बनाये हुए थे। यब और बात है कि हुकूमती पावर उस अज़ीम तबक़े को बा क़ायदा खुलने और उभरने नही दे रहा था।
आख़िर कलाम में अल्लाह तबारक व तआला से ब हक़्क़े अहले बैते ताहेरीन (अ) से दुआ है कि अपने वली ए बरहक़ सरकारे इमाम अस्र का जल्द अज़ जल्द ज़हूर फ़रमा कर सारी कायनात पर हुकूमते इस्लामी को मुसतौली व मुसतदाम क़रार दे। आमीन।
हज़रत इमाम काज़िम अ.स. और जिंदान
हज़रत इमाम काज़िम अ.स. को हारून के हुक्म के बाद सन् 179 हिजरी में गिरफ़्तार किया गया और सन् 183 हिजरी में शहीद कर दिया गया था, आप बग़दाद और बसरा की जेलों में ईसा इब्ने जाफ़र, फ़ज़्ल इब्ने रबीअ, फ़ज़्ल इब्ने यह्या और सिंदी इब्ने शाहक की निगरानी में रहे, इमाम काज़िम अ.स. ने 14 साल ज़िंदगी के बहुत कठिन परिस्तिथियों का सामना किया।
हज़रत इमाम काज़िम अ.स. को हारून के हुक्म के बाद सन् 179 हिजरी में गिरफ़्तार किया गया और सन् 183 हिजरी में शहीद कर दिया गया था, आप बग़दाद और बसरा की जेलों में ईसा इब्ने जाफ़र, फ़ज़्ल इब्ने रबीअ, फ़ज़्ल इब्ने यह्या और सिंदी इब्ने शाहक की निगरानी में रहे, इमाम काज़िम अ.स. ने 14 साल ज़िंदगी के बहुत कठिन परिस्तिथियों का सामना किया।
ईसा इब्ने जाफ़र
बसरा के इस हाकिम ने हारून के हुक्म से इमाम अ.स. को एक साल अपनी निगरानी में रखा, लेकिन ईसा इब्ने जाफ़र इमाम अ.स. पर सख़्ती नहीं करता था, जिन दिनों इमाम अ.स. ईसा इब्ने जाफ़र की निगरानी में थे हारून ने उसे ख़त लिखा कि इमाम अ.स. को क़त्ल कर दे, ईसा ने अपने कुछ क़रीबी लोगों से मशविरा किया और उन लोगों ने इस जुर्म को अंजाम देने से उसे रोक दिया जिसके बाद ईसा ने हारून को ख़त का जवाब इस तरह लिखा कि मूसा इब्ने जाफ़र (इमाम काज़िम अ.स.) को मेरी निगरानी में क़ैद किए हुए काफ़ी समय बीत चुका है मैंने इतने समय में कई जासूसों द्वारा पता लगाया लेकिन हर बार हमारे जासूस यही ख़बर लाते कि इमाम अ.स. इबादत से थकते ही नहीं हैं वह केवल अल्लाह की इबादत करते रहते हैं और वह अपने लिए मग़फ़ेरत और रहमत के अलावा कोई दुआ नहीं करते, इसलिए अगर किसी को इन्हें मेरे पास से लेने भेजते हो तो ठीक वरना मैं उनको आज़ाद कर दूंगा क्योंकि मैं उन्हें क़ैद में रख कर ख़ुद बहुत परेशान हो गया हूं।
फ़ज़्ल इब्ने रबीअ
ईसा इब्ने जाफ़र इब्ने मंसूर के ख़त से हारून बौखला गया क्योंकि उसे डर था कि कहीं ईसा उनको रिहा न कर दे जिससे उसकी सारी साज़िशें बेकार हो जाएं, इसीलिए उसने अपने किसी आदमी को भेज कर इमाम अ.स. को बसरा से बग़दाद बुला कर फ़ज़्ल इब्ने रबीअ की निगरानी में क़ैद कर दिया, शैख़ मुफ़ीद र.ह. अपनी किताब अल-इरशाद में लिखते हैं कि इमाम काज़िम अ.स. काफ़ी समय फ़ज़्ल की जेल में रहे और इस बीच हारून ने कई बार फ़ज़्ल से इमाम अ.स. को मार देने को कहा लेकिन फ़ज़्ल हर बार किसी न किसी बहाने से हारून को मना कर देता था, फ़ज़्ल ने अब्दुल्लाह क़रवी से अपनी एक मुलाक़ात में कहा भी कि मुझ से हारून ने कई बार इमाम अ.स. को मारने का दबाव बनाया लेकिन मैं किसी क़ीमत पर उसका यह काम नहीं कर सकता चाहे मुझे अपनी जान ही क्यों न देनी पड़ जाए।
फ़ज़्ल इब्ने यह्या
तीसरी वह जगह जहां इमाम अ.स. को क़ैद में रखा गया वह फ़ज़्ल इब्ने यह्या का एक घर था, इब्ने शहर आशोब लिखते हैं कि जैसे ही इमाम काज़िम अ.स. को फ़ज़्ल के हवाले किया गया उसने तभी से इमाम अ.स. का सम्मान और अच्छे से पेश आना शुरू कर दिया था, और भी कुछ लोगों ने लिखा है कि इमाम अ.स. फ़ज़्ल के घर बहुत आराम से रह रहे थे और वह इमाम अ.स. की बहुत इज़्ज़त करता था तभी यह ख़बर हारून के पास पहुंच गई उसने इस ख़बर की सच्चाई का पता लगाने के लिए अपने जासूसों को भेजा, जैसे ही जासूसों ने इस ख़बर की पुष्टी की हारून ग़ुस्से से तिलमिला गया और उसने उसी समय सिंदी इब्ने शाहक और अब्बास इब्ने मोहम्मद को हुक्म दिया कि सौ कोड़े फ़ज़्ल को मारे जाएं।
सिंदी इब्ने शाहक
हारून पिछले तीनों हाकिमों के रवैये से मायूस हो चुका था इसलिए उसने इमाम अ.स. को एक नजिस और बहुत ही हिसंक स्वभाव के इंसान सिंदी इब्ने शाहक के हवाले किया, सिंदी हर बाच हारून की आंख बंद कर के सुनने वाला इंसान था, यह अपने जेल में सभी क़ैदियों पर तरह तरह के ज़ुल्म करता और कभी कभी तो इमाम अ.स. पर भी आम क़ैदियों जैसा ज़ुल्म करता, इमाम काज़िम अ.स. ने इस जेल में बहुत तकलीफ़ झेलीं और आपको बहुत ज़्यादा जिस्मानी और रूहानी दोनों तकलीफ़ दी गईं, इमाम अ.स. अपनी उम्र की आख़िरी सांस भी हथकड़ियों और बेड़ियों में गुज़ारी, हारून ने इमाम अ.स. को मानसिक तकलीफ़ देने के लिए जेल में बद किरदार औरत भेजी ताकि इमाम अ.स. का ध्यान अल्लाह की इबादत से हट कर उस औरत की ओर चला जाए लेकिन इतिहास में उस औरत का बयान दर्ज है कि उसके न केवल हर हथकंडे नाकाम हुए बल्कि वह इमाम अ.स. की इबादत से प्रभावित हो कर इमाम अ.स. के साथ जेल में ही इबादत करने लगी।
इमाम अ.स. की शहादत
आख़िरकार हारून ने इमाम काज़िम अ.स. को अपने रास्ते से हटाने के लिए सिंदी इब्ने शाहक को किसी भी तरह इमाम अ.स. को ज़हर हुक्म दिया, सिंदी ने हारून के हुक्म को मानते हुए इमाम अ.स. के खाने में ज़हर मिला दिया, कुछ लोगों ने लिखा है कि खजूर के दाने में ज़हर मिला कर खाने को पेश किया इमाम अ.स. ने दस खजूर के दाने खाने के बाद हाथ रोक लिया, सिंदी ने इमाम अ.स. से और खाने को कहा, इमाम अ.स. ने कहा तूने अपना काम कर दिया है और तूझे जिस काम का हुक्म दिया गया था वह तूने कर दिया अब और मुझे नहीं खाना है।
वह इमाम अ.स. को ज़हर देने के बाद 80 बुज़ुर्ग लोगों को इमाम अ.स. के पास लाया और हर एक से पूछता कि देखो मूसा इब्ने जाफ़र (अ.स.) को भला कोई तकलीफ़ पहुंचाई है क्या मैने? लेकिन इमाम अ.स. ने कहा ऐ लोगों जो कहा इसने वह ठीक है लेकिन मुझे ज़हर दिया गया है जिसके कारण कल मेरा चेहरा ज़हर के असर से हरा हो जाएगा और परसों मैं इस दुनिया से चला जाऊंगा।
और फिर क़यामत का वह दिन भी आ गया जब इमाम काज़िम अ.स. 25 रजब (कुछ रिवायत के अनुसार 5 रजब) सन् 183 हिजरी को हारून अब्बासी के हुक्म से सिंदी द्वारा दिए गए असर से शहीद हो गए, इमाम अ.स. के जनाज़े को बहुत ही मज़लूमियत के साथ बग़दाद के पुल पर रख दिया गया, फिर इमाम अ.स. के चाहने वाले शियों ने हारून के चचा सुलैमान इब्ने जाफ़र की सिफ़ारिश से उसे पुल से उठा कर शियों के बीच ले कर आए।
शैख़ क़ुम्मी र.ह. ने शैख़ सदूक़ र.ह. से रिवायत नक़्ल की है कि इमाम अ.स. के जनाज़े को शहादत के बाद हारून ने ऐसी जगह रखवाया जहां उसके हाकिम और सिपाही रहते थे और फिर चार लोगों को भेज कर पूरे शहर में ख़बर जिसे मुसा इब्ने जाफ़र (अ.स.) को देखना हो वह घर से बाहर निकल आए, उसी इलाक़े में हारून के चचा सुलैमान का घर था लोगों के शोर से वह भी घर से बाहर निकल आए जैसे ही देखा पैग़म्बर स.अ. के जनाज़े को किराए के मज़दूर उठाए हुए हैं
तुरंत अपने सर से अम्मामा फेका गरेबान चाक कर दिया और नंगे पांव दौड़े और ग़ुलामों को हुक्म दिया इन मज़दूरों से कहो ख़बरदार इमाम अ.स. का जनाज़ा यहीं रख दें, फिर उन्होंने आवाज़ दी कि जिसको पाक बाप के पाक बेटे का दीदार करना हो वह आए, उसके बाद चाहने वालों की भीड़ जमा हो गई और लोगों की अपने इमाम अ.स. की जुदाई में रोने की चीख़ें बुलंद हो गईं इसके बाद इमाम अ.स. को ग़ुस्ल और कफ़न देने के बाद दफ़्न कर दिया गया।
इमामे मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम
अब्बासी शासक हारून बड़ा अत्याचारी एवं अहंकारी शासक था। वह स्वयं को समस्त चीज़ों और हर व्यक्ति से ऊपर समझता था।
वह विश्व के बड़े भूभाग पर शासन करता और अपनी सत्ता पर गर्व करता और कहता था" हे बादलों वर्षा करो तुम्हारी वर्षा का हर बूंद मेरे ही शासन में गिरेगी चाहे वह पूरब हो या पश्चिम।
एक दिन हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्लाम को बाध्य करके हारून के महल में ले जाया गया। हारून ने इमाम से पूछा, दुनिया क्या है?
इमाम ने दुनिया से हारून के प्रेम और उसके भ्रष्टाचार को ध्यान में रखते हुए उसे सचेत करने के उद्देश्य से कहा" दुनिया भ्रष्टाचारियों की सराय है" उसके पश्चात आपने सूरये आराफ़ की १४६वीं आयत की तिलावत की जिसका अनुवाद है" वे लोग जो ज़मीन पर अकारण घमंड करते हैं हम शीघ्र ही उनकी निगाहों को अपनी निशानियों से मोड़ देंगे" इमाम और हारून के बीच वार्ता जारी रही। हारून ने, जो अपने आपको इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के साथ बहस में फंसा हुआ देखा देख रहा था, पूछा हमारे बारे में आपका क्या दृष्टिकोण है? इमाम काज़िम अलैहिस्लाम ने पवित्र क़ुरआन की आयत को आधार बनाते हुए उसके उत्तर में कहा" तुम ऐसे हो कि ईश्वर कहता है कि क्या उन लोगों को नहीं देखा जिन्होंने ईश्वरीय विभूति का इंकार किया और अपनी जाति को तबाह व बर्बाद कर दिया" एक बार लोगों ने हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम को ख़ेत में काम करते हुए देखा। कठिन मेहनत व परिश्रम के कारण आपके पावन शरीर से पसीना बह रहा था।
लोगों ने आपसे कहा क्यों इस कार्य को दूसरे को नहीं करने देते?
इमाम काज़िम अलैहिस्सलाम ने उनके उत्तर में कहा" कार्य व प्रयास ईश्वरीय दूतों एवं भले लोगों की जीवन शैली है"
कभी देखने में आता है कि कुछ लोग संसार की विभूतियों से लाभांवित होने या परलोक की तैयारी में सीमा से अधिक बढ़ जाते जाते हैं या सीमा से अधिक पीछे रह जाने का मार्ग अपनाते हैं।
कुछ लोग इस तरह दुनिया में लीन हो जाते हैं कि परलोक को भूल बैठते हैं और कुछ लोग परलोक के कारण दुनिया को भूल बैठते हैं।
परिणाम स्वरुप संसार की विभूतियों, योग्यताओं एवं संभावनाओं से सही लाभ नहीं उठाते हैं।
हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्लाम कहते हैं" वह व्यक्ति हमसे नहीं है जो अपनी दुनिया को अपने धर्म के लिए या अपने धर्म को अपनी दुनिया के लिए छोड़ दे"
हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम की दृष्टि में लोक- परलोक एक दूसरे से संबंधित हैं।
धर्म, लोक व परलोक में मानव के कल्याण के मार्गों को दिखाता है। दुनिया धार्मिक आदेशों व शिक्षाओं के व्यवहारिक बनाने का स्थान है।
दुनिया का सीढ़ी के समान है जिसके माध्यम से लक्ष्यों तक पहुंच जा सकता है।
मनुष्यों को चाहिये कि वे अपनी भौतिक एवं आध्यात्मिक आवश्यकताओं के बीच संतुलन उत्पन्न करें ताकि अपनी योग्यताओं व क्षमताओं को परिपूर्णता तक पहुंचायें।
इस आधार पर हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्लाम लोगों से चाहते हैं कि वे लोक व परलोक के अपने मामलों में संतुलन स्थापित करें।
हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्लाम अपनी एक वसीयत में धर्म में तत्वदर्शिता पर बल देते हुए कहते हैं"
ईश्वर के धर्म के बारे में ज्ञान व जानकारी प्राप्त करो क्योंकि ईश्वरीय आदेशों का समझना तत्वदर्शिता की कुंजी है और वह धर्म एवं दुनिया के उच्च स्थानों तक पहुंचने का कारण है"
इमाम की वसीयत में यह वास्तविकता दिखाई पड़ती है कि इस्लाम धर्म, मानव कल्याण को सुनिश्चित बनाता है इस शर्त के साथ कि उसे सही तरह से समझा जाये।
अतः आप, सदैव लोगों के हृदय में तत्वदर्शिता का दीप जलाने के प्रयास में रहे।
समाज की राजनीतिक स्थिति संकटग्रस्त होने के बावजूद आप लोगों विशेषकर विद्वानों के विचारों एवं विश्वासों के सुधार के प्रयास में रहते।
हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के शैक्षिक एवं सांस्कृतिक प्रयास इस बात का कारण बने कि ग़लत विचारों के प्रसार के दौरान इस्लाम धर्म की शिक्षाएं फेर- बदल से सुरक्षित रहीं।
इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने इस दिशा में बहुत कठिनाइयां सहन कीं। उन्होंने बहुत से शिष्यों का प्रशिक्षण किया।
हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम अपने पिता इमाम काज़िम अलैहिस्सलाम की श्रेष्ठता व विशेषता के बारे में कहते हैं"
इसके बावजूद कि विभिन्न विषयों के बारे में मेरे पिता की सोच एवं विचार प्रसिद्ध थे फिर भी वे कभी-कभी अपने दासों से विचार - विमर्श करते हैं।
एक दिन एक व्यक्ति ने मेरे पिता से कहा क्या अपने सेवकों व दासों से विचार विमर्श कर लिया? तो उन्होंने उत्तर दिया ईश्वर शायद किसी समस्या का समाधान इन्हीं दासों की ज़बान
पर जारी कर दे" यह शैली समाज के विभिन्न वर्गों विशेषकर कमज़ोरों, वंचितों एवं ग़रीबों के मुक़ाबले में इमाम काज़िम अलैहिस्सलाम की विन्रमता की सूचक थी।
हज़रत इमाम काज़िम अलैहिस्सलाम लोगों विशेषकर दरिद्र और निर्धन लोगों के प्रति बहुत दयालु एवं दानी थे।
जो भी आपके घर जाता, चाहे आध्यात्मिक आवश्यकता के लिए या भौतिक, आवश्यकता के लिए वह संतुष्ट व आश्वस्त होकर आपके घर से लौटता।
हज़रत इमाम काज़िम अलैहिस्सलाम कहते थे कि प्रेम, जीवन को अच्छा बनाता है, संबंधों को मज़बूत करता है और हृदयों को आशावान बनाता है"
हज़रत इमाम काज़िम अलैहिस्सलाम आत्मिक और व्यक्तिगत विशेषताओं की दृष्टि से बहुत ही महान व्यक्तित्व के स्वामी थे तथा एक शक्तिशाली चुंबक की भांति पवित्र हृदयों
अपनी ओर आकृष्ट कर लेते थे परंतु बुरे विचार रखने वाले और अत्याचारी, सदैव ही आपके वैभव तथा आध्यात्मिक आकर्षण से भयभीत थे।
हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम, पैग़म्बरे इस्लाम के उस कथन के चरितार्थ थे जिसमें आप कहते हैं" ईश्वर ने मोमिन अर्थात ईश्वर पर ईमान रखने वाले व्यक्ति
को तीन विशेषताएं प्रदान की हैं दुनिया में मान- सम्मान व प्रतिष्ठा, परलोक में सफलता व मुक्ति और अत्याचारियों के दिल में रोब।
इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ख़िलाफ़त और विलायत का ज़्यादा हक़दार मैं हूं।
आपने यह हदीस तो बार बार सुनी है, अलबत्ता इंसान जब हदीस को सुने तो ज़रूरी है कि उसके रुख़ को समझने की कोशिश करे, उसे इल्म होना चाहिए कि उसका रुख़ क्या है, किस चीज़ की ओर रुख़ है।
सुप्रीम लीडर ने फरमाया,आपने यह हदीस तो बार बार सुनी है, अलबत्ता इंसान जब हदीस को सुने तो ज़रूरी है कि उसके रुख़ को समझने की कोशिश करे, उसे इल्म होना चाहिए कि उसका रुख़ क्या है, किस चीज़ की ओर रुख़ है।
हारून हज के सफ़र पर जाता है जब वह मदीना पहुंचता है और पैग़म्बरे इस्लाम सल्लललाहो अलैहि व आलेही व सल्लम के रौज़े में दाख़िल होता है तो यह साबित करने के लिए कि उसकी ख़िलाफ़त की बुनियाद सही है, पैग़म्बरे इस्लाम सल्लललाहो अलैहि व आलेही व सल्लम को मुख़ातब करके कहता है,ऐ मेरे चचेरे भाई आप पर सलाम हो,
ज़ाहिर है कि चचेरे भाई की ख़िलाफ़त चचेरे भाई को मिलेगी, दूर के रिश्तेदारों को तो नहीं मिलेगी। यह बिलकुल स्वाभाविक सी बात है। बिलकुल साफ़ बात है चचेरा भाई क़रीबी होता है।
मुझे नहीं मालूम कि आप जानते हैं या नहीं कि बनी अब्बास का भी एक सिलसिला है बनी अली की तरह। हम कहते हैं कि मूसा इबने जाफ़र ने इमाम सादिक़ से हासिल किया,
उन्होंने इमाम बाक़िर से, उन्होंने इमाम ज़ैनुल आबेदीन से, उन्होंने इमाम हुसैन से, उन्होंने इमाम हसन से और उन्होंने अली इब्ने अबी तालिब अलैहेमुस्सलाम से और उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम से। बनी अब्बास ने भी रिवायतों के लिए अपना एक सिलसिला तैयार कर लिया था।
कहते थे कि मंसूर ने अब्दुल्लाह सफ़्फ़ाह अबुल अब्बास से हासिल किया, उसने अपने भाई इब्राहीम इमाम से, उसने अपने वालिद मोहम्मद से और उसने अपने वालिद अली से और उसने अपने वालिद अब्दुल्लाह से और उसने अपने वालिद अब्बास से और अब्बास ने पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम से! उन्होंने अपने लिए यह सिलसिला तैयार कर लिया था और वह ख़ुद को इमामत और ख़िलाफ़त का हक़दार ज़ाहिर करते थे।
हारून इसे साबित करने के लिए कहता हैः “सलाम हो आप पर ऐ मेरे चचेरे भाई इमाम मूसा इब्ने जाफ़र रौज़े में मौजूद हैं। आपने जैसे ही सुना कि हारून ने “सलाम हो आप पर ऐ मेरे चचेरे भाई” कहा है, आपने ऊंची आवाज़ में कहा, “सलाम हो आप पर ऐ वालिद” (बेहारुल अनवार, अल्लामा मोहम्मद बाक़िर मजलिसी, जिल्द-48, पेज 135, 136) सलाम हो आप पर ऐ वालिद! यानी आपने फ़ौरन हारून को मुंहतोड़ जवाब दिया कि तुम यह कहना चाहते हो कि पैग़म्बरे इस्लाम के चचेरे भाई हो इसलिए ख़िलाफ़त तुम्हारा हक़ है तो मैं पैग़म्बरे इस्लाम का फ़रज़ंद हूं।
अगर मानदंड यह है कि चचेरे भाई की ख़िलाफ़त क़रीबी रिश्तेदारी की वजह से चचेरे भाई को मिलती है तो फिर अपने वालिद की मीरास यानी ख़िलाफ़त और विलायत का ज़्यादा हक़दार मैं हूं।
इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम की शहादत के मौके पर संक्षिप्त परिचय
हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम 25 रजब 183 हिजरी क़मरी को अब्बासी ख़लीफ़ा हारुन रशीद के हाथों शहीद किए गए थे जिससे पूरा इस्लामी जगत शोकाकुल हो गया।
हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम 25 रजब 183 हिजरी क़मरी को अब्बासी ख़लीफ़ा हारुन रशीद के हाथों शहीद किए गए थे जिससे पूरा इस्लामी जगत शोकाकुल हो गया।
अधिक उपासना और त्याग के कारण इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम को अब्दुस्सालेह अर्थात नेक बंदे की उपाधि दी गयी। इसी प्रकार इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम अपने क्रोध को पी जाते थे जिसके कारण उनकी एक प्रसिद्ध उपाधि काज़िम है।
इतिहास में बयान हुआ है कि राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के जीवन का समय बहुत कठिन था। उस समय दो अत्याचारी शासकों की सरकारें रहीं। एक अब्बासी ख़लीफ़ा मंसूर और दूसरा हारून रशीद था।
उस समय इन अत्याचारी शासकों ने लोगों की हत्या करके बहुत से जनआंदोलनों का दमन कर दिया था। दूसरी ओर इन्हीं अत्याचारी शासकों के काल में जिन क्षेत्रों पर विजय प्राप्त की गयी वहां से प्राप्त होने वाली धन- सम्पत्ति इन शासकों की शक्ति में वृद्धि का कारण बनी। इसी प्रकार उस समय समाज में बहुत से मतों की गतिविधियां ज़ोर पकड़ गयीं थीं इस प्रकार से कि धर्म और संस्कृति के रूप में हर रोज़ एक नई आस्था समाज में प्रविष्ट हो रही थी और उसे अब्बासी सरकारों का समर्थन प्राप्त था।
शेर, कला, धर्मशास्त्र, कथन और यहां तक कि तक़वा अर्थात ख़ुदाई भय का दुरुपयोग सरकारी पदाधिकारी करते थे। घुटन का जो वातावरण व्याप्त था उसके कारण बहुत से क्षेत्रों के लोग सीधे इमाम से संपर्क नहीं कर सकते थे। इस प्रकार की परिस्थिति में जो चीज़ इस्लाम को उसके सहीह रूप में सुरक्षित कर सकती थी वह इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम का सहीह दिशा निर्देश और अनथक प्रयास था।
इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने समय की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए अपने पिता इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के मार्ग को जारी रखा। इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने इस्लामी संस्कृति में ग़ैर इस्लामी चीज़ों के प्रवेश को रोकने तथा अपने अनुयायियों के सवालों के उत्तर देने को अपनी गतिविधियों का आधार बनाया।
इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम समाज की आवश्यकताओं से पूर्णरूप से अवगत थे इसलिए उन्होंने विभिन्न विषयों के बारे में शिष्यों की प्रशिक्षा की। सुन्नी मुसलमानों के प्रसिद्ध विद्वान और मोहद्दिस अर्थात पैग़म्बरे इस्लाम (स) और उनके अहलेबैत (परिजनों) के कथनों के ज्ञाता इब्ने हज्र हैसमी अपनी किताब "सवाएक़ुल मुहर्रेक़ा" में लिखते हैं: इमाम मूसा काज़िम, इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के उत्तराधिकारी हैं।
ज्ञान, परिपूर्णता और दूसरों की ग़लतियों की अनदेखी कर देने तथा बहुत अधिक धैर्य करने के कारण उनका नाम काज़िम रखा गया। इराक़ के लोग उनके घर को 'बाबुल हवाएज' के नाम से जानते थे क्योंकि उनके घर से लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति की जाती थी। इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम अपने समय के सबसे बड़े आबिद (उपासक) थे। उनके समय में कोई भी ज्ञान और दूसरों को क्षमा कर देने में उनके समान नहीं था।
भलाई का आदेश देना और बुराई से रोकना ख़ुदाई धर्म इस्लाम के दो महत्वपूर्ण सिद्धांत हैं। पवित्र क़ुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम (स) के अहलेबैत (परिजनों) ने इसके बारे में बहुत अधिक बातें की हैं। इस प्रकार से कि इन दो सिद्धांतों के बारे में इस्लाम के अलावा दूसरे आसमानी धर्मों में भी बहुत बल दिया गया है। इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने भी अपने पावन जीवन में इन चीज़ों पर बहुत बल दिया है।
बिश्र बिन हारिस हाफ़ी की कहानी को इस संबंध में एक अनुपम आदर्श के रूप में देखा जा सकता है। बिश्र बिन हारिस हाफ़ी ने कुछ समय तक अपना जीवन ख़ुदा की अवज्ञा एवं पाप में बिताया। एक दिन इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम उस गली से गुज़रे जिसमें बिश्र बिन हारिस हाफ़ी का घर था।
जिस समय इमाम बिश्र के दरवाज़े के सामने पहुंचे संयोगवश उनके घर का द्वार खुला और उनकी एक दासी घर से बाहर निकली। इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने उस दासी से पूछा: तुम्हारा मालिक आज़ाद है या ग़ुलाम? दासी ने उत्तर दिया आज़ाद है।
इमाम ने अपना सिर हिलाया और कहा: ऐसा ही है जैसे तुमने कहा। क्योंकि अगर वह दास होता तो बंदों की भांति रहता और अपने ख़ुदा के आदेशों का पालन करता। इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने यह बातें कहीं और रास्ता चल दिये। दासी जब घर में आई तो बिश्र ने उससे देर से आने का कारण पूछा। उसने इमाम के साथ हुई बातचीत को बताया तो बिश्र नंगे पैर इमाम के पीछे दौड़े और उनसे कहा: ऐ मेरे आक़ा! जो कुछ आपने इस महिला से कहा एक बार फिर से बयान कर दीजिए। इमाम ने अपनी बात फिर दोहराई।
उस समय ब्रिश्र के हृदय पर ख़ुदाई प्रकाश चमका और उन्हें अपने किये पर पछतावा हुआ। उन्होंने इमाम का हाथ चूमा और अपने गालों को ज़मीन पर रख दिया इस स्थिति में कि वह रोकर कह रहे थे कि हां मैं बंदा हूं! हां मैं बंदा हूं!
इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने अच्छाई का आदेश देने और बुराई से रोकने के लिए बहुत ही अच्छी शैली अपनाई। इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने एक छोटे से वाक्य से बिश्र का ध्यान उनकी ग़लती की ओर केन्द्रित किया और वह इस प्रकार बदल गये कि उन्होंने अपनी ग़लतियों व पापों से प्रायश्चित किया और अपना शेष जीवन सहीह तरह से व्यतीत किया।
अब्बासी ख़लीफ़ा अपनी लोकप्रियता और अपनी सरकार की वैधता तथा इसी प्रकार लोगों के दिलों में आध्यात्मिक प्रभाव के लिए स्वयं को पैग़म्बरे इस्लाम (स) का उत्तराधिकारी और उनका वंशज बताते थे। अब्बासी ख़लीफ़ा, पैग़म्बरे इस्लाम (स) के चाचा जनाबे अब्बास इब्ने अब्दुल मुत्तलिब के वंश से थे और इसका वे प्रचारिक लाभ उठाते और स्वयं को पैग़म्बरे इस्लाम (स) का उत्तराधिकार बताते थे।
वे दावा करते थे कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पवित्र परिजन हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स.अ) के वंशज से हैं और हर इंसान का संबंध उसके पिता और दादा के वंश से होता है इसलिए वे पैग़म्बरे इस्लाम (स) के वंश नहीं हैं। इस प्रकार की बातें करके वास्तव में वे आम जनमत को दिग्भ्रमित करने के प्रयास में थे।
इसलिए इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने पवित्र क़ुरआन का सहारा लेकर उन लोगों का मुक़ाबला किया। इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने हारून रशीद से जो शास्त्रार्थ किये हैं वह ख़िलाफ़त के बारे में अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम का स्थान समझने के लिए काफ़ी है।
एक दिन हारून रशीद ने इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम से पूछा आप किस प्रकार दावा करते हैं कि आप पैग़म्बरे इस्लाम (स) की संतान हैं जबकि आप अली की संतान हैं? इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने उसके उत्तर में पवित्र क़ुरआन के सूरए अनआम की आयत नंबर ८५ और ८६ की तिलावत की जिसमें अल्लाह फ़रमाता है: इब्राहीम की संतान में से दाऊद और सुलैमान और अय्यूब और यूसुफ़ और मूसा और हारून और ज़करिया और यहिया और ईसा हैं और हम अच्छे लोगों को इस प्रकार प्रतिदान देते हैं।"
उसके बाद इमाम ने फ़रमाया: जिन लोगों की गणना इब्राहीम की संतान में की गयी है उनमें एक ईसा हैं जो मां की तरफ़ से उनकी संतान में से हैं जबकि उनका कोई बाप नहीं था और केवल अपनी मां जनाबे मरियम की ओर से उनका रिश्ता पैग़म्बरों तक पहुंचता है। इस आधार पर हम भी अपनी मां जनाबे फ़ातिमा ज़हरा (स.अ) की ओर से पैग़म्बरे इस्लाम (स) की संतान हैं।
हारून रशीद इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम का तार्किक जवाब सुनकर चकित रह गया और उसने इस संबंध में इमाम से अधिक स्पष्टीकरण मांगा। इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने मुबाहेला की घटना का उल्लेख किया जिसमें अल्लाह ने सूरए आले इमरान की ६१वीं आयत में पैग़म्बरे इस्लाम (स) को आदेश दिया है कि जो भी आप से ईसा के बारे में बहस करें इसके बाद कि आपको उसके बारे में जानकारी प्राप्त हो जाये तो उनसे आप कह दीजिये कि आओ हम अपनी बेटों को लायें और तुम अपने बेटों को लाओ और हम अपनी स्त्रियों को लायें और तुम अपनी स्त्रियों को लाओ और हम अपने नफ़्सों (आत्मीय) लोगों को ले आयें और तुम अपने आत्मीय लोगों को ले आओ उसके बाद हम मुबाहेला (शास्त्रार्थ) करते हैं और झूठों पर अल्लाह की लानत (प्रकोप) व धिक्कार की प्रार्थना करते हैं।" इस आयत में पैग़म्बरे इस्लाम (स) के बेटों से तात्पर्य हज़रत हसन और हुसैन तथा स्त्री से तात्पर्य हज़रत फ़ातिमा और अपने नफ़्स (आत्मीय) लोगों के रूप में हज़रत अली थे।” हारून रशीद यह जवाब सुनकर संतुष्ट हो गया और उसने इमाम की प्रशंसा की।
इंसान की मुक्ति व सफ़लता के लिए पवित्र कुरआन सबसे बड़ा ख़ुदाई उपहार है। इंसान को कमाल (परिपूर्णता) तक पहुंचने में इस आसमानी किताब की रचनात्मक भूमिका सब पर स्पष्ट है। पवित्र क़ुरआन पैग़म्बरे इस्लाम (स) का ऐसा मोजिज़ा (चमत्कार) है जो क़यामत तक बाक़ी रहेगा और उसने अरब के भ्रष्ट समाज में राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन उत्पन्न कर दिया। यह परिवर्तन इस प्रकार था कि सांस्कृतिक पहलु से उसने मानव समाज में प्राण फूंक दिया।
हदीसे सक़लैन नाम से प्रसिद्ध हदीस में पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने अपने पवित्र अहलेबैत (परिजनों) को क़ुरआन के बराबर बताया है और मुसलमानों को आह्वान किया है कि जब तक वे इन दोनों से जुड़े रहेंगे तब तक कदापि गुमराह नहीं होंगे और यह दोनों एक दूसरे से अलग नहीं होंगे। इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम लोगों को अल्लाह की इस किताब से अवगत कराने के लिए विशेष ध्यान देते थे। इमाम लोगों को आह्वान न केवल इस किताब की तिलावत के लिए करते थे बल्कि इस कार्य में स्वयं दूसरों से अग्रणी रहते थे।
मशहूर धर्मगुरू शेख़ मुफ़ीद ने अपनी एक किताब "इरशाद" में इस प्रकार लिखा है: इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम अपने काल के सबसे बड़े धर्मशास्त्री, सबसे बड़े कुरआन के ज्ञाता और लोगों की अपेक्षा सबसे अच्छी ध्वनि में क़ुरआन की तिलावत करने वाले थे।”
इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम पवित्र क़ुरआन पर जो विशेष ध्यान देते थे वह केवल व्यक्तिगत आयाम तक सीमित नहीं था। इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम का एक महत्वपूर्ण कार्य पवित्र क़ुरआन की तफ़सीर (व्याख्या) करना था। इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम समाज के लोगों के ज्ञान का स्तर बढ़ाने के लिए बहुत प्रयास करते थे। इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम पवित्र क़ुरआन की आयतों की व्याख्या में उन स्थानों पर विशेष ध्यान देते थे जहां पर पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पवित्र अहलेबैत (परिजनों) के स्थान की ओर संकेत किया गया है।
उदाहरण स्वरूप सूरए रूम की १९ वीं आयत में अल्लाह कहता है: "हम ज़मीन को मुर्दा होने के बाद पुनः जीवित करेंगे।" इमाम से पूछा गया कि ज़मीन के ज़िन्दा करने से क्या तात्पर्य है? इमाम ने इसके उत्तर में फ़रमाया: ज़मीन का जीवित होना वर्षा से नहीं है बल्कि ख़ुदा ऐसे लोगों को चुनेगा जो न्याय को जीवित करेंगे और ज़मीन न्याय के कारण जीवित होगी और ज़मीन में ख़ुदाई क़ानून का लागू होना चालीस दिन वर्षा होने से अधिक लाभदायक है।
हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम इस रिवायत में समाज में न्याय स्थापित होने को ज़मीन के जीवित होने से अधिक लाभदायक मानते हैं। वास्तव में पवित्र क़ुरआन की आयतों की इस प्रकार की व्याख्या इमामत के स्थान को बयान करने के लिए थी कि जो स्वयं इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम का एक सांस्कृतिक कार्य था।