رضوی
अरबईन हुसैनी; एकता और आधुनिक इस्लामी संस्कृति का एक व्यावहारिक उदाहरण
हौज़ा इल्मिया क़ुम के प्रोफ़ेसर सय्यद अब्दुल महदी तवक्कुल ने कहा है कि अरबईन हुसैनी दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक समागम है और इस्लामी उम्माह की एकता और एकजुटता का एक स्पष्ट उदाहरण है।
हौज़ा इल्मिया क़ुम के प्रोफ़ेसर सय्यद अब्दुल महदी तवक्कुल ने कहा है कि अरबईन हुसैनी दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक समागम है और इस्लामी उम्माह की एकता और एकजुटता का एक स्पष्ट उदाहरण है। उन्होंने कहा कि यह समागम न केवल मुसलमानों को, बल्कि अन्य धर्मों के अनुयायियों को भी एक लक्ष्य, अर्थात् धर्म के पुनरुत्थान के लिए एकजुट करता है, चाहे इसके लिए उन्हें अपनी जान ही क्यों न देनी पड़े।
उन्होंने अरबईन को पवित्र क़ुरआन की आयतों की रोशनी में धर्म और इस्लामी एकता को मज़बूत करने का एक प्रभावी माध्यम बताया और कहा कि यह समागम हज से कई गुना बड़ा है, इसलिए इसके प्रभाव भी व्यापक हैं। उनके अनुसार, अरबईन केवल एक धार्मिक कार्य नहीं है, बल्कि भाईचारे, त्याग, अहले-बैत (अ) के प्रति प्रेम और अत्याचार-विरोध पर आधारित एक जीवंत सभ्यतागत आदर्श है, जो दुनिया को इस्लाम के असली चेहरे से रूबरू कराता है।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन तवक्कुल ने अरबईन के पाँच बुनियादी व्यावहारिक लाभों का उल्लेख किया: इस्लामी एकता, ज़िम्मेदारी का निर्वहन, ईश्वरीय अनुष्ठानों का पुनरुद्धार, प्रतिरोध की भावना को मज़बूत करना और शुद्ध मुहम्मदी इस्लाम का प्रचार। उन्होंने कहा कि "हुसैन की मुहब्बत हमें एक साथ लाती है" के नारे के तहत यह सभा मुसलमानों को वली-ए-अस्र (अ) के प्रति अपनी निष्ठा को नवीनीकृत करने के लिए प्रोत्साहित करती है।
इस सभा को एक "व्यावहारिक अकादमी" बताते हुए उन्होंने कहा कि यह विनम्रता, सादगी, त्याग और आत्म-बलिदान का एक व्यावहारिक प्रशिक्षण स्थल है, और इसी तरह एक सभ्यता विकसित होती है जो उत्पीड़ितों का समर्थन करना और उत्पीड़क का सामना करना अपना आदर्श वाक्य बनाती है। उनके अनुसार, यह सभा न केवल उम्माह को जागृत करती है, बल्कि इमाम महदी (अ) के उदय का मार्ग प्रशस्त करने में भी भूमिका निभा सकती है।
उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि अगर कोई अरबईन में भाग लेने में असमर्थ भी है, तो उसे इन दिनों के दौरान हुसैनी विद्रोह को समझाने, आशूरा की शिक्षाओं का प्रसार करने और इन शिक्षाओं को व्यावहारिक जीवन में लागू करने का प्रयास करना चाहिए।
अर्बईन यात्रा के दौरान कोई घटना दर्ज नहीं हुई।इराक
इराक के मिलियन स्तरीय तीर्थयात्राओं के उच्च समन्वय समिति ने जोर देकर कहा कि अब तक कोई सुरक्षा उल्लंघन दर्ज नहीं हुआ है। वहीं, नजफ़ अशरफ़ हवाई अड्डे ने सोमवार को घोषणा की कि सफर महीने की शुरुआत से इमाम हुसैन (अ.स.) के अर्बईन समारोह में भाग लेने के लिए बडी संख्या में यात्री इस प्रांत में प्रवेश कर चुके हैं।
इराक के मिलियन स्तरीय तीर्थयात्राओं के उच्च समन्वय समिति ने जोर देकर कहा कि अब तक कोई सुरक्षा उल्लंघन दर्ज नहीं हुआ है। वहीं, नजफ़ अशरफ़ हवाई अड्डे ने सोमवार को घोषणा की कि सफर महीने की शुरुआत से इमाम हुसैन (अ.स.) के अर्बईन समारोह में भाग लेने के लिए बडी संख्या में यात्री इस प्रांत में प्रवेश कर चुके हैं।
इराक की उच्च समन्वय समिति ने सोमवार, (11 अगस्त) को बताया कि इराकी सुरक्षा बलों ने 16 दिन पहले से ही अर्बईन यात्रा की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सबसे बड़ी सुरक्षा योजना लागू की है।
समिति के प्रवक्ता मिक़दाद मीरी ने कर्बला में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा,16 दिन पहले से, सुरक्षा बलों ने धैर्य और सहनशक्ति के साथ इस योजना को शुरू किया है और सभी उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करके सुरक्षा उपायों को लागू कर रहे हैं।
उन्होंने कहा, अल्हम्दुलिल्लाह, अब तक कोई सुरक्षा उल्लंघन दर्ज नहीं हुआ है।मीरी ने स्पष्ट किया कि इस योजना में खुफिया क्षमताओं और थर्मल कैमरों का उपयोग किया जा रहा है।
साथ ही इस साल की योजना बिना हथियारों के लागू की गई है, परिवहन पिछले वर्षों की तुलना में बेहतर हुआ है और सेवाओं की गुणवत्ता भी अधिक है।
मीरी ने सुरक्षा बलों के लचीले रवैये का उल्लेख करते हुए कहा कि अफ़वाहों के साथ बुद्धिमानी, तेजी और गंभीरता से निपटा गया है।उन्होंने तीर्थयात्रियों को सुरक्षा और सेवाओं का साझेदार बताया और लोगों से सहयोग और एकजुटता की अपील की।
उनके अनुसार, तीर्थयात्रा का समग्र माहौल सकारात्मक है और इसे अफ़वाहों से बिगाड़ना नहीं चाहिए। साथ ही, आग से बचाव के लिए विशेष उपाय किए गए हैं। मीरी ने बताया कि खुफिया एजेंसी ने 30 लाख से अधिक विदेशी तीर्थयात्रियों के प्रवेश को सुगम बनाया है।
इज़राइल और अरबईन का डर
अरबईन हुसैनी प्रेम और प्रतिरोध का एक जीवंत यूनिवर्सिटी है जो लाखों अहले-बैत (अ) प्रेमियों की उपस्थिति में अहंकारी शासन के झूठे नियमों का पर्दाफ़ाश करके इस्लामी सभ्यता का ध्वजवाहक बन गया है। यह महान पदयात्रा एक ऐसे भविष्य का खाका प्रस्तुत करती है जिसमें "ईश्वरीय प्रतिज्ञा" पूरी होगी।
इस्लामी गणराज्य ईरान ने 12 दिनों के पवित्र रक्षा अभियान में दो देशों, इज़राइल और संयुक्त राज्य अमेरिका, जिनके पास घातक हथियार थे और जिनकी हार अकल्पनीय थी, का बहादुरी और प्रभावी ढंग से विरोध किया। इस दौरान, ईरानी राष्ट्र की आंतरिक एकता और विश्वास, क्रांति के सर्वोच्च नेता के दूरदर्शी नेतृत्व और सशस्त्र बलों के साहस और दृढ़ता ने यह साबित कर दिया कि इस्लामी क्रांति के संस्थापक इमाम खुमैनी (र) का ऐतिहासिक कथन, "हम कर सकते हैं," एक निर्विवाद सत्य है।
यह उपलब्धि ईरानी राष्ट्र की उपलब्धियों में एक स्वर्णिम पृष्ठ की तरह दर्ज की गई और इसने आधुनिक इस्लामी सभ्यता की ओर प्रगति को यथार्थवादी बना दिया।
आइए देखें कि इज़राइल को अरबईन से डरने वाले कौन से कारक हैं?
- दुनिया के लोगों को इमाम महदी (अ) के बारे में जागरूक करना
- ज़ायोनी शासन के प्रोटोकॉल को उजागर करना
- क्षेत्र और दुनिया के लोगों को ईरानी नेतृत्व और सशस्त्र बलों की शक्ति का एहसास कराना
- शैक्षणिक संस्थानों और मीडिया में अरबईन चर्चा का प्रचार करना
- दुनिया में पश्चिमी और अहंकारी लोकतंत्र के अंत का संदेश देना
- ग़ज़्ज़ा के लोगों का ध्यान संयुक्त राष्ट्र और अरब देशों के बजाय अहले-बैत (अ) के समर्थन की ओर मोड़ना
- लोगों को धार्मिक आस्था की प्रभावशीलता के बारे में बताना
- प्रतिभागियों के माध्यम से शहीदों की स्मृति को जीवित रखना और उनके साथ एक हार्दिक संबंध स्थापित करना
- आर्थिक कठिनाइयों और उनके कारणों के विरुद्ध प्रतिरोध को प्रोत्साहित करना
- "अत्याचारी का शत्रु और उत्पीड़ित का सहायक बनो" और "हमारे लिए, अपमान असंभव है" (کونا للظالم خصما و للمظوم عونا و هیهات مناالذله कूनू लिज़्ज़ालिमे ख़स्मन व लिलमज़लूमे औनन व हय्हात मिन्ना ज़िल्ला)
- उपदेशकों की धार्मिक और सामाजिक भूमिका का व्यवहार में परीक्षण करना
- मीडिया मंचों द्वारा कॉपीराइट के वादों की सत्यता का परीक्षण करना
- इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) के नारे "کُلُّ یَومٍ عاشوراء و کُلُّ أرضٍ کَربَلاء क़ुल्लो अर्ज़िन कर्बला व कुल्लो यौमिन आशूरा" को व्यवहार में लाना
- प्रतिभागियों के दिलों में ईश्वर, रसूल और मासूम इमाम के साथ एक आध्यात्मिक संबंध स्थापित करना
- धार्मिक आस्था की प्रभावशीलता को स्वतंत्रता के प्रचार का एक आदर्श बनाना
- धर्म, तर्क और कौशल के एक स्थायी संयोजन की प्रभावशीलता को समझना
- महदवी सरकार की आर्थिक प्रणाली प्रस्तुत करना
- इस्लाम और उसके प्रमुख व्यक्तियों के वास्तविक इतिहास से परिचित कराना
- अन्य राष्ट्रों और धर्मों की तुलना में इस्लाम में प्रेम और एकता के मानक को स्पष्ट करना
- ईरानी मिसाइलों की भौतिक और आध्यात्मिक ऊर्जा के संयोजन के बारे में जानकारी देना
- मीडिया और राजनेताओं को इस्लाम के विषैले प्रचार से प्रभावित लोगों का परिचय और पुनर्वास प्रदान करना
- शोधकर्ताओं और विचारकों के लिए एक व्यापक संज्ञानात्मक और मानवशास्त्रीय कक्षा आयोजित करना
- मनुष्य और फ़रिश्तों के बीच के संबंधों और मनुष्य के रहस्यमय स्थानों की वास्तविकता को उजागर करना
- नबियों और औलिया के एकेश्वरवादी संघर्ष के परिणामों को निष्पक्ष रूप से देखना
- इमाम खुमैनी के नारे "क़ुद्स की आज़ादी कर्बला से होकर गुज़रती है" को अमल में लाना
ये सभी पहलू इस तथ्य को उजागर करते हैं कि अरबईन हुसैनी की जागृति यात्रा का इस्लामी क्रांति से गहरा और अविभाज्य संबंध है क्योंकि ईरान की पवित्र रक्षा और अन्य प्रतिरोध मोर्चों के शहीदों का मिशन, जिसे आज पूरी दुनिया में मान्यता प्राप्त है, आशूरा के स्कूल से इसकी वैधता और मानक। यही कारण है कि अरबईन के संदेश युवाओं को अहंकार के सामने अजेय साहस, भविष्योन्मुखी मन और सत्य व वास्तविकता में दृढ़ विश्वास प्रदान करते हैं।
अरबईन हुसैनी ईसार और दीनी ग़ैरत का एक अज़ीम पैग़ाम है:
नजफ़ अशरफ़ से कर्बला तक पैदल यात्रा करते हुए मौलाना कमला हैदर खान ने कहा कि इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत केवल इबादत नहीं है, बल्कि यह इंसानीयत, ईसार और दीनी ग़ैरत का संदेश देने का एक व्यावहारिक माध्यम है।
क़ुम के प्रतिष्ठित विद्वान, हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लेमीन मौलाना कमाल हैदर खान ने हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के एक पत्रकार से बातचीत करते हुए अरबईन हुसैनी के आध्यात्मिक महत्व और इसमें छिपी शिक्षाओं और संदेशों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत में अनगिनत संदेश हैं, जिनमें सबसे बड़ा संदेश ईसार की भावना है। अगर कोई इंसान अपनी ज़रूरतों पर दूसरों को प्राथमिकता देता है, तो यही सच्ची इंसानियत की सबसे बड़ी सीख है।
मौलाना ने दीनी ग़ैरत के महत्व पर ज़ोर देते हुए कहा कि इतिहास गवाह है कि हर दौर में, चाहे आज हो या पिछली सदियों में, अल्लाह के रसूल (स) अलग-थलग रहे क्योंकि लोगों में बाहरी उत्साह तो था, लेकिन दीनी ग़ैरत नदारद थी। लोग अपनी ज़मीन, जायदाद और इज़्ज़त के लिए ग़ैरत दिखाते थे, लेकिन जब दीन का उल्लंघन होता था, तो उसे मामूली बात समझा जाता था। सरकार सय्यद उश शोहदा (अ) ने अपनी क़ुर्बानी के ज़रिए एक स्पष्ट संदेश दिया: "अल्लाह के दीन की रक्षा करना हर मुसलमान की पहली ज़िम्मेदारी है।"
मुसलमानों की दिनचर्या की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि लोग नमाज़, रोज़ा और ज़कात तो अदा करते हैं, लेकिन सिर्फ़ एक आदत के तौर पर, दीनी ग़ैरत से रहित। इमाम हुसैन (अ) का अरबईन दीनी ग़ैरत, निस्वार्थता और त्याग की एक व्यावहारिक तस्वीर पेश करती है और हर कदम पर हमें इसे अपने जीवन में उतारने के लिए प्रेरित करती है ताकि कोई भी इमाम या अचूक अकेला न रहे।
मौलाना कमाल हैदर खान ने कहा कि सरकार सय्यद उश-शोहदा (अ) और हज़रत ज़ैनब (स) के दर से हमें जो आध्यात्मिक पोषण मिलता है, वह ईमानदारी, त्याग और दीनी ग़ैरत है। हज़रत ज़ैनब (स) ने दुश्मन के सामने क़ुरआन की तिलावत की और ऐलान किया कि दीन जीवित है, और अगर पर्दा हटा भी दिया जाए, तो दुश्मन क़ुरआन को नष्ट नहीं कर सकता और न ही अहले-बैत (अ) की याद को मिटा सकता है।
उन्होंने आगे कहा कि कर्बला का सबसे महत्वपूर्ण सबक यह है कि जुल्म के सामने निडर रहें, बहादुरी से लड़ें और अपनी बाहरी ताकत को न देखें, क्योंकि सफलता का असली दाता अल्लाह तआला है। यह हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी छोटी से छोटी शक्ति का भी उपयोग करें और अल्लाह तआला हमें बाकी शक्ति प्रदान करेगा।
मौलाना कमाल हैदर खान ने दुआ की कि अल्लाह तआला सभी जायरीन की जियारती सफर को स्वीकार करे और उन्हें कर्बला के द्वार से भर दे ताकि दीनी ग़ैरत और ईसार की यह शिक्षा हमारे दैनिक जीवन में व्यावहारिक रूप से लागू हो।
इश्क़े खुदा मे शराबोर, अरबाईन हुसैनी 2025 का सफ़र
अपने आक़ा और मौला, सय्यद उश शोहदा इमाम हुसैन (अ) की पवित्र दरगाह पर ज़ियारत करने के बाद, मैं अल्लाह के हुज़ूर मे, मुहम्मद और आले मुहम्मद (अ) की उपस्थिति में यह प्रतिज्ञा करता/करती हूँ कि मैं अपने चरित्र, शब्दों और कर्मों के माध्यम से हुसैन (अ) के संदेश का प्रतिनिधि बनूँगा/बनूँगी।
सफ़र उल-मुज़फ़्फ़र 1447 हिजरी/2025 के महीने का सूरज इराक के पवित्र स्थानों में अपनी पूरी तीव्रता के साथ चमक रहा है। तापमान पचास डिग्री के आसपास है, ज़मीन जलते हुए अंगारों की तरह है, और हवा झुलसा देने वाली है। लेकिन इन कठिन परिस्थितियों के बीच, एक दृश्य दुनिया भर की आँखों को मोहित कर रहा है—लाखों हुसैन (अ) प्रेमी, इश्क़े खुदा मे शराबोर, नजफ़ अशरफ़ से कर्बला की ओर बढ़ रहे हैं।
ये कारवाँ किसी सांसारिक लोभ, किसी भौतिक लाभ या क्षणिक अभिलाषा के लिए नहीं, बल्कि उस अल्लाह की रज़ा के लिए निकला था जिसने कहा था:
(कहो: यदि तुम अल्लाह से मुहब्बत करते हो, तो मेरा इत्तेबा करो, अल्लाह तुमसे मुहब्बत करेगा—आले-इमरान: 31)
और अल्लाह के प्रेम का सबसे बड़ा प्रकटीकरण मुहम्मद और आले मुहम्मद (अ) की रक्षा और उनके धर्म की विजय है। यही कारण है कि हुसैन (अ) के ये प्रेमी अपने शरीर की थकान, प्यास की तीव्रता और गर्मी की तपिश को भूलकर कदम दर कदम आगे बढ़ते हैं।
कठिनाइयों में लिपटा प्यार
जिन बुज़ुर्गों के पैर काँप रहे हैं, जिन माँओं को उनके बच्चे गोद में लिए हुए हैं, जिन नौजवानों के चेहरे चिलचिलाती धूप में भी मुस्कुरा रहे हैं—ये सभी इसी विश्वास के साथ चल रहे हैं कि:
यह सफ़र सिर्फ़ कर्बला तक ही नहीं, बल्कि जन्नत का रास्ता है।
इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) ने फ़रमाया: "जो कोई हुसैन (अ) की ज़ियारत के लिए पैदल निकलता है, अल्लाह उसके हर कदम पर एक नेकी लिखता है, एक गुनाह मिटा देता है, और उसे एक दर्जा देता है।"
(कामिल उज़-ज़ियारात)
ज़ायरीन की सेवा, इबादत की मेराज
सड़कों के किनारे हुसैन के मूकिब इसका एक उदाहरण है। कोई ठंडा पानी पिला रहा है, कोई खजूर चढ़ा रहा है, कोई गर्मी में पंखा झल रहा है, कोई मुसाफ़िरों के पैर दबा रहा है, कोई ज़ख़्मी पैरों पर मरहम लगा रहा है।
हुसैन के ज़ायर, कर्बला के राजदूत
जब ये खुशकिस्मत मोमिन अरबईन के काफिले में शामिल होकर हुसैन (अ) की दरगाह पर सलाम पेश करते हैं, तो ऐसा लगता है मानो इमाम हुसैन (अ) खुद उन्हें अपना दूत बना रहे हों—यानी हुसैन के संदेश के प्रतिनिधि, हुसैन के उद्देश्य के गवाह और हुसैन की खुशबू के संरक्षक।
इसलिए कर्बला से लौटने वाले ज़ायर के जीवन में एक स्पष्ट अंतर होना चाहिए। पहले वह एक साधारण मोमिन था, लेकिन अब वह कर्बला का राजदूत है—उसके हर शब्द और कर्म, हर शैली और व्यवहार में हुसैन (अ) का संदेश झलकना चाहिए।
कर्बला के राजदूत के दायित्व
- किरदार में क्रांति
झूठ, चुगली, बेईमानी और क्रूरता से पूरी तरह बचना।
सत्य, विश्वसनीयता, पवित्रता और साहस को अपने व्यावहारिक जीवन का हिस्सा बनाना।
दैनिक निर्णयों में न्याय और निष्पक्षता को प्राथमिकता देना।
- हुसैन (अ) के संदेश का प्रचार करना।
कर्बला के सिद्धांतों और इमाम (अ) के उद्देश्य को समझाना।
अन्याय के विरुद्ध और सत्य की रक्षा के लिए आवाज़ उठाना।
युवा पीढ़ी को हुसैन की क़ुर्बानी से अवगत कराना।
- सृष्टि की सेवा को अपना आदर्श वाक्य बनाना।
ज़रूरतमंदों, अनाथों, बीमारों और उत्पीड़ितों की सहायता करना।
समाज में एकता, सहिष्णुता और भाईचारे को बढ़ावा देना।
अल्लाह और इमाम (अ) की रज़ा के लिए हर सेवा करना।
इमाम सादिक़ (अ) ने फ़रमाया:
हमारे लिए ज़ीनत बनो, शर्म का कारण मत बनो
कर्बला के दूत की शपथ
अपने आका और मौला, शहीद इमाम हुसैन (अ) की पवित्र दरगाह पर ज़ियारत करने के बाद, मैं अल्लाह के हुज़ूर में, मुहम्मद और आले मुहम्मद (अ) की उपस्थिति में शपथ लेता हूँ: मैं अपने चरित्र, शब्दों और कर्मों के माध्यम से हुसैन (अ) के संदेश का प्रतिनिधि बनूँगा। मैं हर परिस्थिति में, चाहे वह कितनी भी कठिन क्यों न हो, सत्य का साथ दूँगा और असत्य का विरोध करूँगा। मैं अपनी मातृभूमि, अपने समाज और अपने घर को कर्बला के सिद्धांतों पर बनाने का प्रयास करूँगा। मैं सृष्टि की सेवा को अपने जीवन का उद्देश्य और अत्याचार के विरुद्ध जिहाद को अपनी ज़िम्मेदारी मानूँगा। मैं कभी भी ऐसे किसी भी कार्य का हिस्सा नहीं बनूँगा जो हुसैन (अ) के उद्देश्य और अहले बैत (अ) के सम्मान के विरुद्ध हो।
ऐ अल्लाह! मेरी इस प्रतिज्ञा को स्वीकार कर, मुझे धैर्य प्रदान कर, और क़यामत के दिन मुझे हुसैन (अ) और उनके वफ़ादार साथियों के साथ इकट्ठा कर।
आमीन,या रब्बल आलामीन!
लेखक: मौलाना सय्यद ज़हीन अली काज़मी नजफ़ी
अरबाईन मुहब्बत, ईसार और इंसानियत का अज़ीम खज़ाना है
हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा मकारिम ने कहा: अरबईन केवल एक मार्च (परेड) नहीं है; यह प्यार, ईसार और इंसानियत का एक बड़ा खज़ाना है, जिसका इस दुनिया में कोई मुकाबला नहीं है।
आयतुल्लहिल उज़्मा नासिर मकारि शिराज़ी ने अपने लेख में अरबईन की महत्ता पर कहा: अरबईन केवल एक मार्च (परेड) नहीं है; यह प्यार, बलिदान और मानवता का एक बड़ा खजाना है। जिस आकर्षण की वजह से इमाम हुसैन (अ) हैं, वह ऐसी परिस्थितियाँ बनाता है जो दुनिया में कहीं और नहीं मिलती हैं।
आपने कहीं देखा है कि एक छोटी लड़की बैठ जाए, सिर पर सीनी रखे और उसमें ज़ायरों (यात्री) के लिए पानी या टिशू रखे? या बिना किसी दावे के जूते पालिश करे, ज़ायरों के पैर मसाज करे, बिना किसी उम्मीद के!
अरबईन में हर चीज़ सबसे बेहतरीन होती है: सबसे बड़ा इज्तेमाअ, सबसे अच्छा स्वागत, सबसे प्यार और सबसे गहरी एकता।
सय्यद उश शोहदा (अ) का असली मक़सद लोगो को शिक्षित और तज़किया करना था
हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा जवादी आमोली ने कहा: अरबईन की ज़ियारत (यात्रा) इंसान को बेचैनी और घबराहट से रोकती है। और सय्यद उश शोहदा (अ) का असली मकसद लोगों को शिक्षित और उनका तज़किया करना था। इस रास्ते में उन्होंने अपनी बातों और हाव-भाव से काम किया।
हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा जवादी आमोली ने एक लेख में अरबईन की ज़ियारत पर ध्यान देने की बात की और कहा:
हज़रत इमाम हसन असकरी (अ) ने फ़रमाया: "मोमिन और शिया की पाँच निशानियाँ हैं: 51 रकअत नमाज़ पढ़ना, ज़ियारत अरबईन हुसैनी, दाहिने हाथ में अंगूठी पहनना, मिट्टी पर सज्दा करना और जोर से 'बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्राहीम कहना।"
51 रकअत का मतलब है रोजाना के सत्रह रकअत वाजिब के साथ नाफ़्ला नमाज़ें, जो वाजिब नमाज़ की कमी और कमजोरियों को पूरा करती हैं; खासकर सहर के वक्त नमाज़ ए शब, जो बहुत फायदेमंद है। यह 51 रकअत नमाज़ शियो की खासियत है और पैग़म्बर (स) की मेराज का तोहफा है। शायद नमाज़ की इतनी तारीफ का रहस्य यही है कि इसका तरीका मेराज से आया है और यह इंसान को भी मेराज की तरफ ले जाती है।
ज़ियारत अरबईन की अहमियत सिर्फ़ इसलिए नहीं है कि यह ईमान के निशानों में से है, बल्कि इस हदीस के मुताबिक़ यह वाजिब और नफ़्ल नमाज़ की तरह अहम है। जैसे नमाज़ दीन और शरियत का स्तंभ है, वैसे ही ज़ियारत अरबईन और कर्बला का वाकया विलायत का स्तंभ है।
दूसरे शब्दों में, पैग़म्बर मोहम्मद (स) के फ़रमान के अनुसार: नबूवत का सार (निचोड़) क़ुरआन और इतरत है। إنی تارک فیکم الثقلین... کتاب الله و... عترتی أهل بیتی इन्नी तारेकुन फ़ीकुमुस सक़्लैन ... किताबल्लाह व ... इतरती अहलो बैती किताब खुदा का खुलासा दीने इलाही है उसका एक स्तंभ (मजबूत आधार) नमाज़ है। और इतरत का सार ज़ियारत अरबईन है। ये दोनों स्तंभ इमाम असकरी (अ) हदीस में साथ में बताये गए हैं। लेकिन सबसे जरूरी यह समझना है कि नमाज़ और ज़ियारत अरबईन इंसान को कैसे सच्चा धार्मिक और ईमानदार बनाते हैं।
नमाज़ के बारे में खुद अल्लाह ने बहुत सारी बातें बताई हैं। जैसे कि उसने कहा है: इंसान की फितरत में खुदा पर एकता होनी चाहिए, लेकिन जब बुरी घटनाएं होती हैं तो इंसान बेचैन हो जाता है और जब अच्छी बातें होती हैं तो वह खुश होने से भी खुद रोकता है, सिवाय उन नमाज़ पढने वालों के। ये लोग अपनी फितरत की बुरी आदतों को कंट्रोल कर सकते हैं और बेचैनी, जल्दी गुस्सा होना और रोकने वाली आदतों से दूर रहते हैं और खास दुआओं के हकदार होते हैं।
अल्लाह ने फ़रमाया है: "إنّ الإنسان خلق هلوعاً إذا مسّه الشرّ جزوعاً و إذا مسّه الخیر منوعاً إلّا المصلّین इन्नल इनसाना ख़ोलेक़ा हुलूअन इज़ा मस्सहुश शर्रो जुज़ूआन व इज़ा मस्सहूल ख़ैरो मनूअन इल्लल मुसल्लीन "
ज़ियारत अरबईन भी इंसान को बेचैनी, जल्दबाजी और खुद रोकने वाली आदतों से बचाती है। और कहा गया है कि सय्यद उश शोहदा (अ) का असली मकसद लोगों को शिक्षित और उनका तज़किया करना था। उन्होंने यह काम न केवल अपनी बातों और हाव-भाव से किया, बल्कि अपने जान देने वाले बलिदान से भी। ये दोनों रास्ते मिलकर उनकी खास पहचान हैं।
शुकुफ़ाई अक़्ल दर परतौ ए नहज़त ए हुसैनी, २२७-२२९
ज़ियारते अरबईन
सलाम हो हुसैन पर, सलाम हो कर्बला के असीरों पर, सलाम हो कटे हुए सरों पर, सलाम हो प्यासे बच्चों पर, सलाम हो टूटे हुए कूज़ों पर,
सलाम हो उन थके हुए क़दमों पर जो चेहलुम पर हुसैन की माँ कायनात की शहज़ादी हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के सामने शोक व्यक्त करने के लिए कर्बला की तरफ़ पैदल चले जा रहे हैं।
सलाम हो उन अज़ादारों पर जो इश्के हुसैन में पैरों में पड़े हुए छालों के साथ पैदल चल रहे है
चेहलुम शीअत और इन्सानियत के इतिहास का ऐसा दिन है जब हर हुसैन का चाहने वाला यह सोंचता है कि चेहलुम के दिन आपके हरम में पहुँच कर आपको पुरसा दे आपके सामने शोक व्यक्त करे।
और यही वह दिन है जिसके बारे में हमारी दुआओं की पुस्तकों में एक ज़ियारत के बारे में लिखा गया है कि इस ज़ियारत को उस दिन पढ़ना चाहिए और वह ज़ियारत है
ज़ियारते अरबईन
ज़ियारते अरबईन के बारे में इमाम हसन अस्करी (अ) फ़रमाते हैं:
मोमिन की पाँच निशानियाँ है
- एक दिन में 51 रकअत नमाज़ पढ़ना।
- दाहिने हाथ में अंगूठी पहनना।
- मिट्टी पर सजदा करना।
- बिस्मिल्लाह को तेज़ आवाज़ में पढ़ना।
- ज़ियारते अरबई पढ़ना।
तो यह वह ज़ियारत है जो मोमिन की निशानियों में से है, अब प्रश्न यह उठता है कि आख़िर इस ज़ियारत में है क्या जो इसको मोमिन की निशानियों में से कहा गया है।
इस लेख में हम संक्षिप्त रूप में ज़ियारते अरबईन के बार में और उसमें क्या बयान किया गया है बताएंगे।
इमाम हुसैन (अ) के मक़ामात
यह वह महान ज़ियारत है जिसमें इमाम हुसैन (अ) के मक़ामात के बयान किया गया है कि इमाम हुसैन कौन थे और उनके क्या मक़ामात थे।
आपके बारे में कहा गया है कि हुसैन ख़ुदा के वली है, इमाम हुसैन अल्लाह के हबीब है हुसैन अल्लाह के ख़लील है।
अब यहा पर यह संदेह न पैदा हो कि यह कैसे हो सकता है कि हुसैन ख़लील और हबीब हों क्योंकि यह तो इब्राहीम और पैग़म्बर थे, तो याद रखिए कि हुसैन को नबियों का वारिस कहा गया है तो जो विशेषताएं पहले के नबियों में थी वही हुसैन में भी मौजूद हैं, अगर इब्राहीम ख़लील हुए तो वह हुसैन का सदक़ा है क्योंकि आयत में कहा गया है कि
وَإِنَّ مِن شِیعَتِهِ لَإِبْرَاهِیمَ.
इब्राहीम उनके शियों में से थे।
फिर कहा गया है कि हुसैन शहीद हैं, शहीद का महत्व क्या है ? शहादत वह स्थान है जो ख़ुदा हर एक को नही देता है
हुसैन असीरे कुरोबात हैं,
यह असीरे कुरोबात क्या है?
इसका अर्थ समझने के लिए इस मिसाल को देखें , कभी आपने किसी भेड़िये को देखा है भेड़िये की आदत यह होती है कि अगर वह किसी भेड़ के गल्ले पर हमला कर दे तो वह आख़िर कितनी भेड़ों को खा सकता है एक या दो इससे अधिक नही लेकिन अगर वह हलमा कर दे तो वह जितनी भेड़ों को पाता है मार देता है खा पाए या न खा पाए, यानी भेड़िये का गुण यह है कि जिसको पाए क़त्ल कर दो अगर एक बेड़िये की यह आदत होती है तो आप सोंचें कि अगर किसी एक भेड़ पर दस भेड़िये हमला कर दें तो उस भेड़ का क्या होगा उसमें क्या बचेगा।
इसी प्रकार इमाम हुसैन (अ) भी थे जब यज़ीदी भेड़ियों ने इमाम हुसैन पर हमला किया तो हुसैन में कुछ नहीं बचा जिसके बताया जा सकता, एक लाश ती जिसका सर कटा हुआ था लिबास नहीं था, जिस्म घोड़ों की टापों से पामाल था, जिस्म टुकड़े टुकड़े हो चुका था।
फ़ातेमा का वह हुसैन कहां था.... जिसे उन्होंने बहुत प्यार से चक्कियां पीस पीस कर पाला था।
हुसैन क़तीले अबरात हैः यानी हुसैन की शहादत रहती दुनिया तक के लिए लोगों के रिए इबरत बन गई।
फ़िर इस ज़ियारत में ज़ियारत पढ़ने वाला कहता है कि मैं गवाही देता हूँ कि हुसैन ख़ुदा के वही हैं उनको शहादत के माध्यम से सम्मान दिया गया.... और हुसैन नबियों के वारिस हैं
हुसैन नबियों के वारिस हैं हर चीज़ में अगर नूह ने अपने ज़माने में तूफ़ान देका तो वारिसे नूह ने हुमराही के तूफ़ान से मुक़ाबला किया अगर मूसा ने अपने ज़माने के फ़िरऔन को ग़र्क़ किया तो वारिसे मूसा ने युग के फ़िरऔर यज़ीद को डिबो दिया, अगर याबूक़ ने अपने यूसुफ़ को खो दिया तो वारिसे याक़ूब हुसैन ने अपने यूसुफ़ अली अक़बर के सीने पर भाला लगा देखा।
फिर इसके बाद इस ज़ियारत में उन लोगों के बारे में कहा गया है जो हुसैन के दुश्मन थे।
किन लोगों ने हुसैन से शत्रुता की
हुसैन के शत्रु वह लोग हैं जिनको इस दुनिया ने धोखा दिया, उन्होंने इस दुनिया के चार दिन के जीवन के लिए रसूल ने नवासे को शहीद कर दिया और सदैव के लिए ख़ुदा का क्रोध ख़रीद लिया, यह लोग दुनिया की चकाचौंध में खो गए और आख़ेरत को भूल गए और उसके बाद
न ख़ुदा ही मिला न विसाले सनम
यह दुनिया क्या है?
दुनिया एक बूढ़ी कुवांरी औरत की तरह है जिसने श्रंगार कर लिया है और इस संसार के सारे लोगों से शादी की है लेकिन किसी हो भी स्वंय पर हावी नहीं होने दिया है और अपने सारे पतियों की हत्या कर दी है।
यह है दुनिया की वास्तविक्ता
न दुनिया मिली और न ही आख़ेरत दुनिया में लानती क़रार पाए और आख़ेरत में नर्क की आग उनका ठिकाना बनी।
यह ज़ियारत बता रही है कि हुसैन के शत्रु सभी आरम्भ से ही बेदीन नहीं थे बल्कि कुछ वह लोग भी थे जो ईश्वर की इबादत करने वाले थे लेकिन जब इम्तेहान का मौक़ा आया तो वह फ़ेल हो गए।
आपने बलअम बाऊर का वाक़ेआ तो सुना ही होगा, वह बलअम जिसके पास इसमे आज़म था जिससे वह बड़े बड़े काम कर सकता था लेकिन उसने इस इसमें आज़म को ख़ुदा के नबी मूसा के मुक़ाबले में प्रयोग किया और हमेशा के लिए ख़ुदा के क्रोध का पात्र बन गया।
इसी प्रकार वह इबादत करने वाले जो ख़ुदा के वली हुसैन के मुक़ाबले में आ गए वह हमेशा के लिए ख़ुदा के क्रोध का पात्र बन गए।
इसके बाद ज़ियारत पढ़ने वाला हुसैन पर सलाम भेजता है, सलाम हो तुम पर हे पैग़म्बर के बेटे मैं गवाही देता हूँ कि आप ख़ुदा की अमानत के अमानतदार हैं... आप मज़लूम शहीद किए गए, ख़ुदा आपका साथ छोड़ देने वालों पर अज़ाब करेगा और उन पर जिन्होंने आपको क़त्ल किया।
फिर कहता है, ख़ुदा लानत करे उस उम्मत पर जिन्होंने आपको क़त्ल किया और उस उम्मत पर जिन्होंने इसको सुना और इस पर राज़ी रहे।
हे ख़ुदा मैं मुझे गवाह बनाता हूँ कि मैं उसका दोस्त हो जिसने उनसे दोस्ती रखी और उनका दुश्मन हो जिन्होंने उनसे शत्रुता दिखाई।
मेरी सहायता आपके लिए तैयार है।
और यही कारण है कि आज जैसा जैसा समय व्यतीत होता जा रही है हुसैन का चेलहुल और अज़ीम होता जा रहा है यह पैदल चलने वालों का काफ़िला बढ़ता जा रहा है आज लोग 1000 से भी अधिक किलोमीटर का फ़ासेला पैदल तै कर के आ रहे हैं ख़तरा है, मौत का डर हैं लेकिन हुसैन के इन आशिक़ों पर किसी चीज़ का असर नहीं है, और इसीलिए कहा गया है कि इमामे ज़माना के ज़ुहूर का समय जितना पास आता जाएगा हुसैन का चेहलुम उनता ही अधिक शानदार और अज़ीम होता जाएगा।
मैं गवाही देता हूँ कि मैं आप पर विश्वास रखता हूँ और आपके पलट कर आने पर मेरा अक़ीदा है मेरा दिल आपके साथ है, मैं आपके साथ हूँ आपके साथ हूँ, आपके शत्रुओं के साथ नहीं हूँ।
ख़ुदा का सलाम हो आपकी आत्मा पर आपके शरीर पर आपके अपस्थित पर अनुपस्थित पर आपके ज़ाहिर और बातिन पर।
अंत में ईश्वर से यही प्रार्थना है कि हमको हुसैन के सच्चे मानने वालों में शुमार करे
जनाबे ज़ैनब का भाई की लाश पर रोना
या मौहम्दा सल्ला अलैका मलाएकातुस् समा व हाज़ल हुसैनो मुरम्मेलुम बिद्देमा। मुक़त्तेउल आज़ा व बिनातोका सबाता।
रावी कहता है खुदा की क़सम मैं हज़रत ज़ैनब के वो बैन फरामोश नही करूँगा। जो उन्होने अपने भाई हुसैन की लाश पर किऐ। आप ग़मनाक अन्दाज़ मे बैन करती थी।
या मौहम्मद ऐ जददे बुर्जुगवार आप पर आसमान के फरिशते दरुद भेजते है और ये आप हुसैन है कि जो रेत पर अपने खून मे ग़लता है। इसके आज़ा एक दुसरे से जुदा हो चुके है और ये तेरी बेटियाँ है जो क़ैदी बनी हुई है। मैं इन मज़ालिम पर खुदा, मुस्तुफा, अली ए मुरतुज़ा, फातेमा ज़हरा और हमज़ा सैय्यदुश शोहदा की बारग़ाह में शिकायत करती हूँ या मौहम्मदा ये आप का हुसैन है जो सर ज़मीने करबला पर बरहना व उरया पड़ा है औऱ बादे सबा इस पर खाक डाल रही है। ये आपका हुसैन है जो ज़िनाज़ादो के जुल्मो सितम की बिना पर कत्ल किया गया।
वा हुज़्ना।
वा अकबरा।
गोया आज के दिन मेरे जद्दे बुज़ुर्गवार रसूले खुदा इस दुनिया से चले गऐ है।
ऐ मौहम्मद के अस्हाब। ये तुम्हारे पैग़म्बर की औलाद है। जिन को कैदीयो की तरह क़ैद करके ले जा रहे है।
दूसरी रिवायत मे मनकूल है कि हज़रत जैनब ने फरमायाः ऐ रसूल अल्लाह आज आपकी बेटीयाँ क़ैदी है और बेटे क़त्ल हो गऐ और बादे सबा उनपर खाक डाल रही है। ये आपका हुसैन है कि जिसका सिर पसे गर्दन से जुदा किया गया है और उसका अमामा और चादर लूट ली गई है। मेरे माँ बाप इस पर कुरबान हो उस पर कि जिसके लश्कर को सोमवार के दिन जुल्मो सितम का निशाना बनाया गया। मेरे माँ बाप कुरबान को उस पर कि जिसके खेमो को जला दिया गया।
मेरे बाबा कुरबान हो उस पर कि जिसकी वापसी की उम्मीद नही की जा सकती। और जिस के जख्म ऐसे नही कि जिसका इलाज किया जा सके। मेरे माँ बाप उस पर कुरबान हो जिसपर मैं खुद भी फिदा होना पसंद करती हूँ।
मेरे माँ बाप उस पर कुरबान कि जिसका दिल ग़मो गुस्सा से भरा हुआ था और इसी हाल मे दुनिया से चला गया।
मेरे माँ बाप उस पर फिदा कि जिसको तिशना लब शहीद कर दिया गया।
मेरे माँ बाप फिदा उस पर कि जिसके जद पैगंबरे खुदा हज़रते मौहम्मदे मुस्तुफा है।
इसके बाद रावी कहता है कि जनाबे ज़ैनब के गिरयाओ बुका ने दोस्तो दुश्मन सब को रूला दिया।
(लहूफ)
जनाबे ज़ैनब (अ) का शहादत दिवस
हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा का जीवन तथा उनका व्यक्तित्व विभिन्न आयामों से समीक्षा योग्य है। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम, हज़रत अली अलैहिस्सलाम और हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा जैसी हस्तियों के साथ रहने से हज़रत ज़ैनब के व्यक्तित्व पर इन हस्तियों का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। हज़रत ज़ैनब ने प्रेम व स्नेह से भरे परिवार में प्रशिक्षण पाया। इस परिवार के वातावरण में, दानशीलता, बलिदान, उपासना और सज्जनता जैसी विशेषताएं अपने सही रूप में चरितार्थ थीं। इसलिए इस परिवार के बच्चों का इतने अच्छे वातावरण में पालन - पोषण हुआ। हज़रत अली अलैहिस्सलाम व फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह के बच्चों में नैतिकता, ज्ञान, तत्वदर्शिता और दूर्दर्शिता जैसे गुण समाए हुए थे, क्योंकि मानवता के सर्वश्रेष्ठ प्रशिक्षकों से उन्होंने प्रशिक्षण प्राप्त किया था।
हज़रत ज़ैनब में बचपन से ही ज्ञान की प्राप्ति की जिज्ञासा थी। अथाह ज्ञान से संपन्न परिवार में जीवन ने उनके सामने ज्ञान के द्वार खोल दिए थे। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के परिजनों के कथनों के हवाले से इस्लामी इतिहास में आया है कि हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा को ईश्वर की ओर से कुछ ज्ञान प्राप्त था। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पौत्र हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने अपने एक भाषण में हज़रत ज़ैनब को संबोधित करते हुए कहा थाः आप ईश्वर की कृपा से ऐसी विद्वान है जिसका कोई शिक्षक नहीं है। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा क़ुरआन की आयतों की व्याख्याकार थीं। जिस समय उनके महान पिता हज़रत अली अलैहिस्सलाम कूफ़े में ख़लीफ़ा थे यह महान महिला अपने घर में क्लास का आयोजन करती तथा पवित्र क़ुरआन की आयतों की बहुत ही रोचक ढंग से व्याख्या किया करती थीं। हज़रत ज़ैनब द्वारा शाम और कूफ़े के बाज़ारों में दिए गए भाषण उनके व्यापक ज्ञान के साक्षी हैं। शोधकर्ताओं ने इन भाषणों का अनुवाद तथा इनकी व्याख्या की है। ये भाषण इस्लामी ज्ञान विशेष रूप से पवित्र क़ुरआन पर उस महान हस्ती के व्यापक ज्ञान के सूचक हैं।
हज़रतज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के आध्यात्मिक स्थान की बहुत प्रशंसा की गई है। जैसा कि इतिहास में आया है कि इस महान महिला ने अत्यंत प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अनिवार्य उपासना के साथ साथ ग़ैर अनिवार्य उपासना करने में भी तनिक पीछे नहीं रहीं। हज़रत ज़ैनब को उपासना से इतना लगाव था कि उनकी गणना रात भर उपासना करने वालों में होती थी और किसी भी प्रकार की स्थिति ईश्वर की उपासना से उन्हें रोक नहीं पाती थी। इमाम ज़ैनुलआबेदीन अलैहिस्सलाम बंदी के दिनों में हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के आध्यात्मिक लगाव की प्रशंसा करते हुए कहते हैः मेरी फुफी ज़ैनब, कूफ़े से शाम तक अनिवार्य नमाज़ों के साथ - साथ ग़ैर अनिवार्य नमाज़ें भी पढ़ती थीं और कुछ स्थानों पर भूख और प्यास के कारण अपनी नमाज़े बैठ कर पढ़ा करती थीं। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने जो अपनी बहन हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के आध्यात्मिक स्थान से अवगत थे, जिस समय रणक्षेत्र में जाने के लिए अंतिम विदाई के लिए अपनी बहन से मिलने आए तो उनसे अनुरोध करते हुए यह कहा थाः मेरी बहन मध्यरात्रि की नमाज़ में मुझे न भूलिएगा।
हज़रतज़ैनब के पति हज़रत अब्दुल्लाह बिन जाफ़र की गण्ना अपने काल के सज्जन व्यक्तियों में होती थी। उनके पास बहुत धन संपत्ति थी किन्तु हज़रत ज़ैनब बहुत ही सादा जीवन बिताती थीं भौतिक वस्तुओं से उन्हें तनिक भी लगाव नहीं था। यही कारण था कि जब उन्हें यह आभास हो गया कि ईश्वरीय धर्म में बहुत सी ग़लत बातों का समावेश कर दिया गया है और वह संकट में है तो सब कुछ छोड़ कर वे अपने प्राणप्रिय भाई हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथ मक्का और फिर कर्बला गईं।
न्होंने मदीना में एक आराम का जीवन व्यतित करने की तुलना में कर्बला की शौर्यगाथा में भाग लेने को प्राथमिकता दी। इस महान महिला ने अपने भाई इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथ उच्च मानवीय सिद्धांत को पेश किया किन्तु हज़रत ज़ैनब की वीरता कर्बला की त्रासदीपूर्ण घटना के पश्चात सामने आई। उन्होंने उस समय अपनी वीरता का प्रदर्शन किया जब अत्याचारी बनी उमैया शासन के आतंक से लोगों के मुंह बंद थे। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत के पश्चात किसी में बनी उमैया शासन के विरुद्ध खुल कर बोलने का साहस तक नहीं था ऐसी स्थिति में हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा ने अत्याचारी शासकों के भ्रष्टाचारों का पिटारा खोला। उन्होंने अत्याचारी व भ्रष्टाचारी उमवी शासक यज़ीद के सामने बड़ी वीरता से कहाः हे यज़ीद! सत्ता के नशे ने तेरे मन से मानवता को समाप्त कर दिया है। तू परलोक में दण्डित लोगों के साथ होगा। तुझ पर ईश्वर का प्रकोप हो । मेरी दृष्टि में तू बहुत ही तुच्छ व नीच है। तू ईश्वरीय दूत पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के धर्म को मिटाना चाहता, मगर याद रख तू अपने पूरे प्रयास के बाद भी हमारे धर्म को समाप्त न कर सकेगा वह सदैव रहेगा किन्तु तू मिट जाएगा।
हज़रतज़ैनब सलामुल्लाहअलैहा की वीरता का स्रोत, ईश्वर पर उनका अटूट विश्वास था। क्योंकि मोमिन व्यक्ति सदैव ईश्वर पर भरोसा करता है और चूंकि वह ईश्वर को संसार में अपना सबसे बड़ा संरक्षक मानता है इसलिए निराश नहीं होता। जब ईश्वर पर विश्वास अटूट हो जाता है तो मनुष्य कठिनाइयों को हंसी ख़ुशी सहन करता है। ईश्वर पर विश्वास और धैर्य, हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के पास दो ऐसी मूल्यवान शक्तियां थीं जिनसे उन्हें कठिनाईयों में सहायता मिली। इसलिए उन्होंने उच्च - विचार और दृढ़ विश्वास के सहारे कर्बला - आंदोलन के संदेश को फैलाने का विकल्प चुना। कर्बला से लेकर शाम और फिर शाम से मदीना तक राजनैतिक मंचों पर हज़रत ज़ैनब की उपस्थिति, अपने भाइयों और प्रिय परिजनों को खोने का विलाप करने के लिए नहीं थी। हज़रत ज़ैनब की दृष्टि में उस समय इस्लाम के विरुद्ध कुफ़्र और ईमान के सामने मिथ्या ने सिर उठाया था। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा का आंदोलन बहुत व्यापक अर्थ लिए हुए था। उन्होंने भ्रष्टाचारी शासन को अपमानित करने तथा अंधकार और पथभ्रष्टता में फंसे इस्लामी जगत का मार्गदर्शन करने का संकल्प लिया था। इसलिए इस महान महिला ने हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत के पश्चात हुसैनी आंदोलन के संदेश को पहुंचाना अपना परम कर्तव्य समझा। उन्होंने अत्याचारी शासन के विरुद्ध अभूतपूर्व साहस का प्रदर्शन किया। उन्होंने अपने जीवन के इस चरण में पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों के अधिकारों की रक्षा की तथा शत्रु को कर्बला की त्रासदीपूर्ण घटना से लाभ उठाने से रोक दिया। हज़रत ज़ैनब के भाषण में वाक्पटुता इतनी आकर्षक थी कि लोगों के मन में हज़रत अली अलैहिस्सलाम की याद ताज़ा हो गई और लोगों के मन में उनके भाषणों का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। कर्बला में हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके साथियों की शहादत के पश्चात हज़रत ज़ैनब ने जिस समय कूफ़े में लोगों की एक बड़ी भीड़ को संबोधित किया तो लोग उनके ज्ञान एवं भाषण शैली से हत्प्रभ हो गए। इतिहास में है कि लोगों के बीच एक व्यक्ति पर हज़रत ज़ैनब के भाषण का ऐसा प्रभाव हुआ कि वह फूट फूट कर रोने लगा और उसी स्थिति में उसने कहाः हमारे माता पिता आप पर न्योछावर हो जाएं, आपके वृद्ध सर्वश्रेष्ठ वृद्ध, आपके बच्चे सर्वश्रेष्ठ बच्चे और आपकी महिलाएं संसार में सर्वश्रेष्ठ और उनकी पीढ़ियां सभी पीढ़ियों से श्रेष्ठ हैं।
कर्बलाकी घटना के पश्चात हज़रत ज़ैनब ने हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन को इतिहास की घटनाओं की भीड़ में खोने से बचाने के लिए निरंतर प्रयास किया। यद्यपि कर्बला की त्रासदीपूर्ण घटना के पश्चात हज़रत ज़ैनब अधिक जीवित नहीं रहीं किन्तु इस कम समय में उन्होंने इस्लामी जगत में जागरुकता की लहर दौड़ा दी थी। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा ने अपनी उच्च- आत्मा और अटूट संकल्प के सहारे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन को अमर बना दिया ताकि मानव पीढ़ी, सदैव उससे प्रेरणा लेती रही। यह महान महिला कर्बला की घटना के पश्चात लगभग डेढ़ वर्ष तक जीवित रहीं और सत्य के मार्ग पर अथक प्रयास से भरा जीवन बिताने के पश्चात वर्ष 62 हिजरी क़मरी में इस नश्वर संसार से सिधार गईं।
एकबार फिरहज़रत ज़ैबन सलामुल्लाह अलैहा की शहादत की पुण्यतिथि पर हम सभी श्रोताओ की सेवा में हार्दिक संवेदना व्यक्त करते हैं। कृपालु ईश्वर से हम यह प्रार्थना करते हैं कि वह हम सबको इस महान हस्ती के आचरण को समझ कर उसे अपनाने का साहस प्रदान करे।













