رضوی

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आयतुल्लाह हसनजादे अमोली (र) ने अल्लामा तबातबाई की असाधारण नैतिक ऊंचाई का वर्णन किया और कहा कि उन्होंने कभी भी व्यक्तिगत लाभ के लिए दुआ नहीं की।

आयतुल्लाह हसन ज़ादा आमोली (र) अपनी किताब हज़ार व यक नुक़्ता में अल्लामा तबातबाई (र) के एक वाकये का ज़िक्र करते हुए लिखते हैं: "मैंने इमामत के विषय पर एक रिसाला लिखा और उसे अपने उस्ताद अल्लामा तबातबाई की खिदमत में पेश किया। वो कुछ अरसे तक उस रिसाले को अपने पास रखे रहे और पूरा अध्ययन किया।"

आयतुल्लाह हसन ज़ादा आमिली मजीद लिखते हैं: "इस रिसाले में मैंने अपने लिए एक दुआ लिखी थी: 'ख़ुदाया! मुझे ख़िताब-ए-मुहम्मदी (स.) के फहम की सआदत अता फ़रमा।'

जब अल्लामा तबातबाई ने रिसाला वापस किया तो फ़रमाया: 'आका! जब से मैंने खुद को पहचाना है, मैंने कभी अपनी ज़ात के लिए दुआ नहीं की, मेरी तमाम दुआएं हमेशा उम्मत के लिए आम रही हैं।'"

आयतुल्लाह हसन ज़ादा आमोली के अनुसार, यह अख़लाक़ी नसीहत उनके दिल पर गहरा असर छोड़ गई और उनके लिए एक अज़ीम दर्स-ए-अख़लाक़ बन गई।

स्रोत: हज़ार व यक नुक़्ता, भाग 2, पेज 621, अज़ आयतुल्लाह हसन ज़ादा आमेली (र)

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन हुसैन रफीई ने कहा: विलायत-ए-फक़ीह किसी एक गिरोह से नहीं जुड़ी है बल्कि पूरी इंसानियत के लिए भलाई और सुधार का स्रोत है। हमें कोशिश करनी चाहिए कि हम सुप्रीम लीडर की हिदायतों के अनुयायी रहें और उनके रास्ते के सच्चे सिपाही बनें।

हौज़ा इल्मिया में तबलीगी व सांकृतिक मामलों के प्रमुख हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन हुसैन रफीई ने मदरसा मासूमिया क़ुम में आयोजित तुलेबा और हौज़ा इल्मिया के फारिग़-उत्तहसील छात्रो से खिताब करते हुए कहा: आज हम एक अज़ीम तहज़ीबी जंग के मरहले में हैं, जिसकी एक जानिब मग़रिबी तहज़ीब खड़ी है और दूसरी जानिब इस्लामी तहज़ीब। दोनों तहज़ीबें अपने तईं एक-दूसरे के मुकाबले में मआना रखती हैं।

उन्होंने हज़रत फातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की अज़मत और रूहानी मरकज़ियत की तरफ़ इशारा करते हुए कहा: इमाम ज़माना अजलल्लाहु तआला फरजहुश्शरीफ़ फर्माते हैं: "ली फी बिन्ति रसूलिल्लाह उस्वतुन हसना" यानी "हज़रत फातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा मेरे लिए उस्वा-ए-हसना हैं"। मालूम हुआ कि दुनिया की अस्ल महवरियत सय्यदा सलामुल्लाह अलैहा की है क्योंकि उनकी रज़ामंदी अल्लाह की रज़ामंदी और उनका ग़ज़ब खुदा के ग़ज़ब के बराबर है।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन रफीई ने सुप्रीम लीडर की सेहत व तुल-उम्र के लिए दुआ करते हुए कहा: विलायत-ए-फ़क़ीह किसी एक गिरोह से मुताल्लिक़ नहीं, बल्कि पूरी बशरीयत के लिए भलाई व सलाई का सरचश्मा है। हमारी कोशिश होनी चाहिए कि हम रहबर मुअज़्ज़म की हिदायतों के पैरवी रहें और उनके रास्ते के हकीकी सिपाही बनें।

उन्होंने कहा: हकीकत यह है कि हम अब भी जंग में हैं। जंग का लफ़्ज़ शऊरी ज़िम्मेदारियों के साथ आता है। जब जंग की बात होती है तो यह भी तय करना ज़रूरी होता है कि दुश्मन किस मैदान को निशाना बना रहा है और हमारा दिफाई व फिक्री सफ़ बंदी का निजाम क्या है? लिहाज़ा उसके लिए हमें हर वक्त तैयार रहना चाहिए।

हमारे मौजूदा काम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हमारे जीवनशैली, धार्मिक और सामाजिक समस्याओं के क्षेत्र में ऐसे बेहतरीन सहायक बनाना है जो इस्लामी सिद्धांतों पर आधारित हों और हमारे लक्षित लोगों को सही दिशा में मार्गदर्शन करें, क्योंकि पारंपरिक तरीके से संदेश देने का तरीका धीरे-धीरे खत्म हो रहा है।

नूर इस्लामिक कंप्यूटर रिसर्च सेंटर के प्रमुख हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन बहरामी ने कहा कि आधुनिक तकनीक, खासकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) ने धार्मिक प्रचार के तरीकों में बुनियादी बदलाव ला दिया है। उन्होंने बताया कि आज लोग अपने सवालों के जवाब सीधे डिजिटल माध्यमों और चैट बॉट्स से प्राप्त करते हैं और अक्सर उन्हीं जवाबों पर निर्भर रहते हैं। ऐसे में हौज़ा ए इल्मिया की जिम्मेदारी है कि वह इस माहौल को समझे और इस क्षेत्र में प्रभावी मौजूदगी बनाए।

संरक्षक ने यह भी कहा कि नए दौर के धर्म प्रचारक को डिजिटल टूल्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) से लैस होना चाहिए ताकि वह मजबूत और ठोस तरीके से अपना संदेश पहुंचा सके, बशर्ते उसे अपने श्रोताओं की भाषा, सोच और मानसिकता की समझ हो।

उन्होंने यह भी कहा कि आधुनिक युग में धार्मिक प्रचार के लिए आधुनिक तकनीक विशेषकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का उपयोग अनिवार्य है क्योंकि अब ज्ञान का बड़ा हिस्सा पारंपरिक संस्थानों से नहीं बल्कि डिजिटल प्लेटफार्मों से आ रहा है। इसलिए, यह जरूरी है कि धर्म प्रचारक उन जगहों पर मौजूद हों जहां आज का श्रोता रहता, सोचता और जानकारी प्राप्त करता है। इसी संदर्भ में, इस्लामी आधारों पर स्मार्ट धार्मिक सहायक विकसित करना आवश्यक है।

उन्होंने बताया कि इस दिशा में कार्य आरंभ हो चुका है। पहले से एक हदीस चैट बूट सक्रिय है जो सवालों के जवाब में धार्मिक परंपराओं की रोशनी में मदद करता है, और हाल ही में एक कुरआनी चैट बूट भी लॉन्च किया गया है जो कुरआन की व्याख्या और ज्ञान के अनुसार मार्गदर्शन करता है।

नूर इस्लामिक कंप्यूटर रिसर्च सेंटर का विजन है कि जल्द ही यह एक समग्र इस्लामी ज्ञान का श्रेष्ठ सहायक बनकर उभरे।

हुज्‍जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन हुसैन अन्सारियान ने कहा है कि हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) का मक़ाम बहुत बुलंद और अज़मत वाला है, जो क़यामत के दिन खुदा की इजाज़त से अपने शियाओं की शफ़ाअत करेंगी।

क़ुरआन और अख़लाक़ के प्रसिद्ध अध्यापक, हुज्‍जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन हुसैन अन्सारियान ने कहा है कि हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) का मक़ाम बहुत बुलंद और अज़मत वाला है, जो क़यामत के दिन खुदा की इजाज़त से अपने शियाओं की शफ़ाअत करेंगी।

उन्होंने हुसैनियह आयतुल्लाह अलवी में ख़िताब करते हुए कहा कि खुदा के तीन हज़ार नामों में से एक हज़ार नाम बंदगानों के लिए ज़ाहिर किए गए हैं, और ये तमाम नाम दरअसल उसी एक ज़ात की तजल्ली हैं। अगर कोई सिफ़ात को ज़ात से अलग समझे, तो वह हक़ीक़तन शिर्क का मुर्तकिब होता है।

उस्तादे अख़लाक़ ने कहा कि नबी ए अक़रम (स) के अनुसार उन हज़ार नामों में से 99 “अस्मा-ए-हुस्ना” हैं, जो अहले ईमान में भी झलक सकते हैं। इमाम बाक़िर (अ) और अमीरुल मोमेनीन (अ) दोनों ने फ़रमाया कि खुदा की सबसे बड़ी निशानी हम हैं, और पैग़म्बर ए अक़रम (स) ने फ़रमाया: “मैं और अली एक ही दरख़्त के दो तने हैं।” विलायत-ए-अली के बिना नबूवत का तसव्वुर एक सुखा दरख़्त है।

उन्होंने तारीख़ में दीन के मफ़हूम को बदलने वालों पर तनक़ीद करते हुए कहा कि बनी उमय्या और बनी अब्बास ने लोगों के लिए खुदा का झूठा तसव्वुर पेश किया, जबकि अहले बैत (अ) का खुदा वही है जिसे क़ुरआन ने पहचानवाया है बे-मिस्ल और बे-नज़ीर खुदा।

हुज्‍जतुल इस्लाम अन्सारियान ने बयान किया कि नामों के निर्धारण में भी खुदा का ख़ास इख़्तियार है, और हज़रत फ़ातिमा (स) के नाम के बारे में खुद खुदा ने रसूल (स) को हुक्म दिया कि अपनी बेटी का नाम “फ़ातिमा” रखें। इस नाम का मतलब है “अलग करने वाली”, यानी वो बुराइयों और आलूदगियों से पूरी तरह पाक और मुनज़्ज़ह हैं। आयत-ए-ततहीर इस हक़ीक़त की पुष्ठि करती है।

उन्होंने इमाम बाक़िर (अ) से नक़्ल किया कि जब हज़रत ख़दीजा (स) हज़रत फ़ातिमा (स) को दूध से अलग करना चाहती थीं, तो खुदा ने उनके वजूद को इल्म और मा’रिफ़त से भर दिया, यहाँ तक कि दो साल की उम्र में ही उन्हें दूध की ज़रूरत न रही। बाद में उनके दो ख़ुत्बे ऐसे हैं जिन पर सदियों से उलमा गुफ़्तगू कर रहे हैं।

आख़िर में उन्होंने कहा कि आइम्मा (अ) के अनुसार, रोज़े क़यामत हज़रत फ़ातिमा (स) खड़ी होंगी और शियाने अली (अ) को जहन्नम से नजात देती हुई फ़रमायेंगी: “ये मेरे शिया हैं, ये आग का ईंधन नहीं।” यह बात साबित करती है कि हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) मज़हर-ए-इस्मत-ए-मुतलक और निजात देने वाली हस्ती हैं।

 

हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व. ने एक रिवायत में बयान फरमाया है कि अल्लाह ताला हज़रत फातिमा स.ल.की अज़मत की पहचान कर रहा है।

इस रिवायत को "अलआमाली तूसी" पुस्तक से लिया गया है। इस रिवायत का पाठ इस प्रकार है:

:قال رسول اللہ صلى الله عليه وآله

إِنَّما سُمِّيَتِ ابْنَتِي فاطِمَةُ لِأَنَّ اللّهَ عَزَّوَجَلَّ فَطَمَها وَفَطَمَ مَنْ أَحَبَّهَا مِنَ النَّارِ.

हज़रत रसूल आल्लाह ने फ़रमाया:

"फ़ातिमा" का नाम "फ़ातिमा" इसलिए रखा गया क्योंकि अल्लाह तआला ने हज़रत फ़ातिमा (स) के प्रेमियों को नर्क की आग से मुक्त कर दिया था।

अलआमाली तूसी, पेंज 300

 

 

इबादत जिन्नात और इंसान की पैदाइश का मक़सद और इंसानियत की मेराज है। लेकिन इस नुक्ते की तरफ़ ध्यान देना ज़रूरी है कि कमाल "आबिद" (इबादत करने वाला) होने में नहीं, बल्कि "अब्द" (बंदा बनने) होने में है। जैसा कि आरिफ़ बिल्लाह सालिक़ इलल्लाह हज़रत अल्लामा हसन ज़ादे आमुली रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया,आबिद मत बनो, अब्द बनो शैतान ने तक़रीबन 6000 साल तक इबादत की और "आबिद" बना लेकिन "अब्द" नहीं बन सका। मतलब ये कि जब तक "अब्द" नहीं बनोगे, इबादत से कोई फ़ायदा नहीं होगा।

इबादत जिन्नात और इंसान की पैदाइश का मक़सद और इंसानियत की मेराज है। लेकिन इस नुक्ते की तरफ़ ध्यान देना ज़रूरी है कि कमाल "आबिद" (इबादत करने वाला) होने में नहीं, बल्कि "अब्द" (बंदा बनने) होने में है। जैसा कि आरिफ़ बिल्लाह सालिक़ इलल्लाह हज़रत अल्लामा हसन ज़ादे आमुली रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया,आबिद मत बनो, अब्द बनो शैतान ने तक़रीबन 6000 साल तक इबादत की और "आबिद" बना लेकिन "अब्द" नहीं बन सका। मतलब ये कि जब तक "अब्द" नहीं बनोगे, इबादत से कोई फ़ायदा नहीं होगा। "अब्द" होना यानि ये देखना कि तुम्हारा ख़ुदा क्या चाहता है, ये नहीं कि तुम्हारा दिल क्या चाहता है।

अल्लाह ने जब अपने हबीब को मेराज अता की तो उन्हें "हबीब", "महबूब", "ताहा", "यासीन", "मुज़म्मिल", "मुदस्सिर", "नबी" या "रसूल" जैसे अलक़ाब से याद नहीं किया, बल्कि "अब्द" कहा। यानी मेराज "अब्द" को हुई। तो जब साहिबे मेराज "आबिद" नहीं बल्कि "अब्द" हैं, तो जो ज़ात मेराज का तोहफ़ा हो, बल्कि मक़सद-ए-मेराज हो उसकी इबादत पर बात करना न सिर्फ़ मेरे लिए बल्कि ख़ुदा और ख़ासान-ए-ख़ुदा के अलावा किसी के लिए भी मुमकिन नहीं।इस विषय पर जितना लिखा गया है कम लिखा गया है, जितना बयान हुआ है कम बयान हुआ है।

क्योंकि जो ज़ात "लैलतुल-क़द्र" जैसी हो, उसका इदराक (समझना) हर किसी के बस की बात नहीं। इसलिए इस बारे में सिर्फ़ वही बयान किया जा सकता है जो मासूमीन अलैहिमुस्सलाम से र'वायत हुई है।

ज़ाहिर है कि जो ज़ात "अब्द" हो, उसकी सिर्फ़ नमाज़ और रोज़ा ही इबादत नहीं होते बल्कि ज़िंदगी का हर लम्हा बंदगी ए परवरदिगार होता है, क्योंकि वो अपने माबूद के सामने पूरी तरह तस्लीम होती है।

इसलिए कहा जा सकता है कि हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा अगर मेहराब-ए-इबादत में खड़ी हैं तो इबादत में मशग़ूल हैं, और अगर मेहराब में नहीं बल्कि घर के दूसरे कामों को अंजाम दे रही हैं, तो भी बंदगी ए परवरदिगार में मशग़ूल हैं।

यहाँ ख़ास तौर पर नमाज़, रोज़ा और दुआ जैसी इबादतों का ज़िक्र है। जिस तरह आप दूसरे काम वक़्त पर अंजाम देती थीं, उसी तरह इबादतें भी अव्वले वक़्त अंजाम देती थीं। जब भी घरेलू कामों से फ़ारिग़ होतीं, इबादत में मशग़ूल हो जातीं — नमाज़, दुआ और ग़िरया व ज़ारी (रोना व गिड़गिड़ाना) में मशग़ूल रहतीं। आपकी दुआएं हमेशा दूसरों के लिए होती थीं, अपने लिए नहीं।

इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम से र'वायत है कि इमाम हसन मुज्तबा अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया:मेरी वालिदा (हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा) हर शबे जुमा सुबह तक मेहराब-ए-इबादत में खड़ी रहती थीं। जब दुआ के लिए हाथ उठातीं तो मोमिन मर्दों और औरतों के लिए दुआ करतीं, लेकिन अपने लिए कुछ नहीं माँगतीं। मैंने एक दिन अर्ज़ किया: 'वालिदा ए मोहतरमा! आप अपने लिए भी वैसे ही दुआ क्यों नहीं करतीं जैसे दूसरों के लिए करती हैं?' तो आपने फ़रमाया: 'बेटा! पहले पड़ोसी, फिर अपना घर।' (कश्फ़ुल-ग़ुम्मा, जिल्द 1, सफ़ा 468)

वो तस्बीह जो "तस्बीह-ए-हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा" के नाम से मशहूर है, शिया और सुन्नी दोनों की किताबों में मौजूद है और सबके नज़दीक मोतबर (विश्वसनीय) है।
जो लोग दुआएं और सुन्नत पर अमल करते हैं, वो इस तस्बीह को हर नमाज़ के बाद पढ़ते हैं:
34 बार "अल्लाहु अकबर", 33 बार "सुब्हान अल्लाह" और 33 बार "अल्हम्दुलिल्लाह"।

इसी तरह आलिमे रब्बानी अल्लामा सैय्यद इब्ने ताऊस रहमतुल्लाह अलैह ने अपनी किताब "इक़बालुल-आमाल" में वो दुआएं नक़्ल की हैं जो हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा नमाज़-ए-ज़ोहर, अस्र, मग़रिब, इशा और सुबह के बाद पढ़ा करती थीं।इसके अलावा कुछ दूसरी दुआएं भी आप से मनक़ूल हैं जो परेशानियों या हाजत के मौक़े पर पढ़ी जाती हैं।

यह बात भी क़ाबिल-ए-ग़ौर है कि हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा और दूसरे मासूमीन अलैहिमुस्सलाम की इबादत में जहाँ "कसरत" (ज़्यादा अमल) दिखती है, वहीं "क़ैफ़ियत" (गुणवत्ता) पर ज़्यादा ध्यान रहता है — यानी उनकी तमाम इबादतों में सिर्फ़ माबूद नज़र आता है।

हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा ने फ़रमाया: "मन अस‘अदा इलल्लाह ख़ालिसा इबादतिही, अहबतल्लाहु इलैहि अफ़ज़ल मस्लहतिह" यानी जो शख़्स अपनी ख़ालिस इबादत अल्लाह की तरफ़ भेजता है, अल्लाह अपनी बेहतरीन भलाई उसकी तरफ़ भेजता है।(तहफ़ुल उक़ूल, सफ़ा 960)

बेशक हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामतुल्लाह अलैहा की इबादत वाली सीरत सारी इंसानियत के लिए सबसे बेहतरीन नमूना-ए-अमल है। रोज़ाना, ख़ास तौर पर जुमा की रात और सबसे बढ़कर शब-ए-क़द्र में आपकी इबादत, नमाज़, दुआ और मुनाजात बेमिसाल हैं।

जैसा कि पैग़म्बर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि वसल्लम ने फ़रमाया: "जब फ़ातिमा (सलामतुल्लाह अलैहा) मेहराब-ए-इबादत में खड़ी होती हैं तो आसमान के फ़रिश्तों के लिए एक चमकते सितारे की तरह रौशन होती हैं। अल्लाह तआला फ़रिश्तों से फ़रमाता है: ऐ मेरे फ़रिश्तो! देखो मेरी सबसे बेहतरीन इबादत गुज़ार फ़ातिमा को, वो मेरे सामने खड़ी है, मेरे ख़ौफ़ से उसका सारा जिस्म कांप रहा है, और वो पूरे ध्यान और दिल से मेरी इबादत में मशग़ूल है। गवाह रहो कि मैंने उनके चाहने वालों को जहन्नम की आग से आज़ाद कर दिया है।
(अमाली शैख़ सदूक़, सफ़ा 99-100)

ख़ुदा हमें हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की मारिफ़त (पहचान) अता करे और उनकी सीरत पर चलने की तौफ़ीक़ दे।

 

जामिया इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम, बेगमगंज में हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स.अ.) की शहादत की याद में आयोजित चार रोज़ा मज़लिसों का आग़ाज़ ग़मगीन माहौल में हुआ। इस सिलसिले की पहली मज़लिस का आग़ाज़ तिलावत-ए-क़ुरआन से हुआ, जिसके बाद मौलाना काज़िम मेहदी उरूज ने मज़लिस को खिताब किया।

जौनपुर /जामिया इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम, बेगमगंज में हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स.अ.) की शहादत की याद में आयोजित चार रोज़ा मज़लिसों का आग़ाज़ ग़मगीन माहौल में हुआ। इस सिलसिले की पहली मज़लिस का आग़ाज़ तिलावत-ए-क़ुरआन से हुआ, जिसके बाद मौलाना काज़िम मेहदी उरूज ने मज़लिस को खिताब किया।

अपने ख़िताब में मौलाना ने हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स.अ.) की सीरत, इस्लामी समाज में उनके किरदार और अहलेबैत अलैहिस्सलाम की तालीमात को आज की ज़िन्दगी में अपनाने की ज़रूरत पर तफ़सील से रौशनी डाली । उन्होंने कहा कि हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स.अ.) की ज़िन्दगी इंसानियत के लिए एक बेहतरीन उदाहरण है, जिसमें सबक़ है कि इंसाफ़, सब्र और अज़्म से हर मुश्किल का सामना किया जा सकता है।

मजलिस से पहले सोज़ख़ानी एहतिशाम जौनपुरी ने अंजाम दी, जिन्होंने रिवायती अंदाज़ से सोज़ के ज़रिए माहौल को ग़मगीन कर दिया। वहीं पेशख़ानी अख़्तर एजाज़ जलालपुरी ने की, जिन्होंने हज़रत फ़तिमा की यादों को ताज़ा किया।

मजालिस के आयोजक मौलाना सफ़दर हुसैन ज़ैदी ने बताया कि मज़लिसों का सिलसिला चार रोज़ तक जारी रहेगा, जिसमें नामवर ख़तीब हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स.अ.) की ज़िन्दगी और उनके पैग़ाम पर रोशनी डालेंगे।

 

क़ुम अलमुकद्दस के ईमानदार, नेता और और क्रांतिकारी लोगों ने ईरान के अन्य शहरों की तरह यौमुल्लाह 13 अबान के अवसर पर एक भव्य रैली में बड़ी संख्या में भाग लेकर इस्लामी क्रांति, क्रांति के नेताओं और शहीदों के खून के प्रति अपनी वफादारी का शानदार प्रदर्शन किया।

क़ुम अलमुकद्दस के ईमानदार, नेता और और क्रांतिकारी लोगों ने ईरान के अन्य शहरों की तरह यौमुल्लाह 13 अबान के अवसर पर एक भव्य रैली में बड़ी संख्या में भाग लेकर इस्लामी क्रांति, क्रांति के नेताओं और शहीदों के खून के प्रति अपनी वफादारी का शानदार प्रदर्शन किया।

ईरान के अन्य क्षेत्रों की तरह, क़ुम प्रांत की जनता ने भी यौमुल्लाह 13 अबान के मौके पर जोश और उत्साह के साथ रैलियों में हिस्सा लिया। इस अवसर पर पुरुषों, महिलाओं, छात्रों, शिक्षकों, धार्मिक छात्रों और विद्वानों ने रैली के दौरान अमेरिका और इसराइल विरोधी नारों के माध्यम से अहंकारी शक्तियों के प्रति अपनी घृणा और विरोध व्यक्त किया।

प्रतिभागियों के हाथों में विभिन्न बैनर और प्लेकार्ड थे, जिन पर नारे लिखे थे: "अमेरिका मुर्दाबाद", "मुनाफिकों पर लानत", "न झुकेंगे न समझौता करेंगे, अमेरिका के खिलाफ युद्ध की घोषणा", और "परमाणु ऊर्जा हमारा अधिकार है। लोगों ने इन नारों के माध्यम से इस्लामी क्रांति के सिद्धांतों, आत्मनिर्भरता और प्रतिरोध के संदेश को एक बार फिर दुनिया तक पहुंचाया।

रैली के दौरान विभिन्न स्कूलों के छात्र-छात्राओं ने क्रांतिकारी गीत और नग़मे पेश किए, जिससे सभा के जोश और उत्साह में और वृद्धि हुई।

13 अबान, इस्लामी क्रांति के इतिहास में तीन महत्वपूर्ण घटनाओं की याद दिलाता है:

  1. 1964 में इमाम ख़ुमैनी की निर्वासन,
    2. 1978 में शाही शासन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में छात्रों की शहादत,
    3. और 1979 में अमेरिकी दूतावास पर कब्ज़ा, जो ईरानी राष्ट्र की वैश्विक अहंकार के सामने दृढ़ता और ईमानी गर्व की चमकदार निशानी बने।

क्रांति के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनेई ने भी अपने हालिया संबोधन में इस दिन को ईरानी राष्ट्र के गर्व और सफलता का दिन बताते हुए कहा कि 13 अबान ने दुनिया के सामने अमेरिका का असली चेहरा बेनकाब किया और ईरानी राष्ट्र की जागरूकता और आत्मनिर्भरता का प्रतीक बन गया।

 

क़ुम अलमुकद्दस के ईमानदार, नेता और और क्रांतिकारी लोगों ने ईरान के अन्य शहरों की तरह यौमुल्लाह 13 अबान के अवसर पर एक भव्य रैली में बड़ी संख्या में भाग लेकर इस्लामी क्रांति, क्रांति के नेताओं और शहीदों के खून के प्रति अपनी वफादारी का शानदार प्रदर्शन किया।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , क़ुम अलमुकद्दस के ईमानदार, नेता और और क्रांतिकारी लोगों ने ईरान के अन्य शहरों की तरह यौमुल्लाह 13 अबान के अवसर पर एक भव्य रैली में बड़ी संख्या में भाग लेकर इस्लामी क्रांति, क्रांति के नेताओं और शहीदों के खून के प्रति अपनी वफादारी का शानदार प्रदर्शन किया।

ईरान के अन्य क्षेत्रों की तरह, क़ुम प्रांत की जनता ने भी यौमुल्लाह 13 अबान के मौके पर जोश और उत्साह के साथ रैलियों में हिस्सा लिया। इस अवसर पर पुरुषों, महिलाओं, छात्रों, शिक्षकों, धार्मिक छात्रों और विद्वानों ने रैली के दौरान अमेरिका और इसराइल विरोधी नारों के माध्यम से अहंकारी शक्तियों के प्रति अपनी घृणा और विरोध व्यक्त किया।

प्रतिभागियों के हाथों में विभिन्न बैनर और प्लेकार्ड थे, जिन पर नारे लिखे थे: "अमेरिका मुर्दाबाद", "मुनाफिकों पर लानत", "न झुकेंगे न समझौता करेंगे, अमेरिका के खिलाफ युद्ध की घोषणा", और "परमाणु ऊर्जा हमारा अधिकार है। लोगों ने इन नारों के माध्यम से इस्लामी क्रांति के सिद्धांतों, आत्मनिर्भरता और प्रतिरोध के संदेश को एक बार फिर दुनिया तक पहुंचाया।

रैली के दौरान विभिन्न स्कूलों के छात्र-छात्राओं ने क्रांतिकारी गीत और नग़मे पेश किए, जिससे सभा के जोश और उत्साह में और वृद्धि हुई।

13 अबान, इस्लामी क्रांति के इतिहास में तीन महत्वपूर्ण घटनाओं की याद दिलाता है:

  1. 1964 में इमाम ख़ुमैनी की निर्वासन,
    2. 1978 में शाही शासन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में छात्रों की शहादत,
    3. और 1979 में अमेरिकी दूतावास पर कब्ज़ा, जो ईरानी राष्ट्र की वैश्विक अहंकार के सामने दृढ़ता और ईमानी गर्व की चमकदार निशानी बने।

क्रांति के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनेई ने भी अपने हालिया संबोधन में इस दिन को ईरानी राष्ट्र के गर्व और सफलता का दिन बताते हुए कहा कि 13 अबान ने दुनिया के सामने अमेरिका का असली चेहरा बेनकाब किया और ईरानी राष्ट्र की जागरूकता और आत्मनिर्भरता का प्रतीक बन गया।

 

13 अबान यौमुल्लाह के अवसर पर ईरान के विभिन्न शहरों में भव्य रैलियाँ आयोजित की गईं, जिनमें लाखों लोगों ने उत्साह के साथ भाग लिया और अमेरिका तथा इसराइल के खिलाफ नारे लगाते हुए इस्लामी क्रांति, क्रांति के नेताओं और शहीदों के प्रति अपनी निष्ठा की घोषणा की।

13 अबान, यौमुल्लाह के मौके पर पूरे ईरान में शानदार रैलियाँ निकाली गईं जिनमें आम लोगों ने अद्भुत जोश और उत्साह के साथ हिस्सा लिया। राजधानी तेहरान में केंद्रीय जमावड़ा हुआ, जहाँ छात्रों, शिक्षकों, विद्वानों, धार्मिक छात्रों और विभिन्न वर्गों के पुरुषों व महिलाओं ने एक बार फिर वैश्विक अहंकार के खिलाफ अपनी जागरूकता और एकजुटता का प्रदर्शन किया।

इसी तरह खुर्रमाबाद, बंदर अब्बास, सावेह, कोहबोनान, सोंदरेक, मीनाब, बुशहर और यासूज सहित ईरान के अन्य शहरों में भी बड़ी संख्या में लोग सड़कों पर उतर आए।

रैलियों में शामिल लोगों ने हाथों में बैनर और प्लेकार्ड लिए हुए थे, जिन पर नारे लिखे थे, "अमेरिका मुर्दाबाद", "इसराइल मुर्दाबाद", "न समझौता, न सरेंडर, अमेरिका से जंग जारी रहेगी"और "परमाणु ऊर्जा हमारा अधिकार है।

प्रतिभागियों ने अपने नारों के जरिए इस्लामी क्रांति के सिद्धांतों और इमाम खामेनेई व क्रांतिकारी नेता आयतुल्लाह सैयद अली खामेनेई के निर्देशों पर पूरी तरह अमल करने के संकल्प का इज़हार किया।

रैलियों के दौरान विभिन्न क्रांतिकारी गीत पेश किए गए, जिन्होंने माहौल को जोश और उत्साह से भर दिया। वक्ताओं ने अपने भाषणों में इस बात पर जोर दिया कि ईरानी राष्ट्र आज भी आत्मनिर्भरता, आज़ादी और प्रतिरोध के रास्ते पर चल रहा है और किसी भी कीमत पर ज़ुल्म और अहंकार के आगे सिर नहीं झुकाएगा।

यह दिन हर साल ईरानी राष्ट्र की ओर से अहंकार के खिलाफ संघर्ष, जागरूकता और आज़ादी के संकल्प के प्रतीक के रूप में जोश और उत्साह के साथ मनाया जाता है।

 

गज़्ज़ा की ताज़ा स्थिति पर तुर्की की राजधानी इस्तांबुल में आयोजित उच्च-स्तरीय बैठक के बाद 7 मुस्लिम देशों ने संयुक्त घोषणा जारी की है।

तुर्की की राजधानी इस्तांबुल में गाजा की ताजा स्थिति पर आयोजित उच्च-स्तरीय बैठक के बाद 7 मुस्लिम देशों ने एक संयुक्त बयान जारी किया है।

बयान में जोर देकर कहा गया है कि गाजा का प्रशासन फिलिस्तीनियों को सौंपा जाए, इजरायल तुरंत युद्धविराम का पूरी तरह से पालन करे और मानवीय सहायता के रास्ते में आने वाली सभी बाधाओं को हटाया जाए।

संयुक्त बयान में कहा गया कि फिलिस्तीनी लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार और राष्ट्रीय प्रतिनिधित्व को मान्यता दिए बिना क्षेत्र में स्थायी शांति संभव नहीं है। भाग लेने वाले देशों ने इस रुख पर सहमति जताई कि अंतर्राष्ट्रीय स्थिरता बल के गठन पर विचार किया जाएगा, ताकि युद्धविराम की निगरानी और मानवीय सहायता की आपूर्ति को प्रभावी बनाया जा सके।

बयान की प्रमुख बातें:

  1. गाजा का प्रशासन फिलिस्तीनियों को सौंपने पर पूर्ण सहमति: बैठक में शामिल सभी देशों ने इस बात पर जोर दिया कि गाजा का राजनीतिक और प्रशासनिक नियंत्रण किसी बाहरी शक्ति के बजाय स्थानीय फिलिस्तीनी प्राधिकरण के पास होना चाहिए।
    2. युद्धविराम उल्लंघन पर चिंता: बयान में कहा गया कि इजरायली सेना द्वारा युद्धविराम के बाद भी हमले जारी हैं, जिनमें अब तक लगभग 250 फिलिस्तीनी शहीद हो चुके हैं।
    3. मानवीय सहायता की तत्काल आवश्यकता: शामिल देशों ने मांग की कि कम से कम 600 सहायता ट्रक और 50 ईंधन वाहन गाजा में बिना रुकावट प्रवेश कराए जाएं।
    4. अंतर्राष्ट्रीय स्थिरता बल पर विचार: बयान में प्रस्ताव दिया गया कि गाजा में एक तटस्थ बल का गठन किया जाए, जो शांति की निगरानी और मानवीय सहायता के संरक्षण को सुनिश्चित करे।
    5. फिलिस्तीनी प्राधिकरण के सुधार प्रयासों का समर्थन: शामिल देशों ने फिलिस्तीनी नेतृत्व के सुधारात्मक कदमों और अरब लीग व इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) की परियोजनाओं के पूर्ण समर्थन की पुष्टि की।

यह महत्वपूर्ण बैठक तुर्की के विदेश मंत्री हकान फिदान की मेजबानी में इस्तांबुल के एक प्रसिद्ध होटल में आयोजित हुई, जिसमें इंडोनेशिया, पाकिस्तान, सऊदी अरब, जॉर्डन, कतर और संयुक्त अरब अमीरात के विदेश मंत्रियों या प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

बैठक के दौरान युद्धविराम की ताजा स्थिति, मानवीय संकट और भविष्य की कूटनीतिक कार्रवाइयों पर विस्तृत विचार-विमर्श किया गया।

बैठक के बाद मीडिया से बातचीत में तुर्की के विदेश मंत्री ने कहा कि इजरायल युद्धविराम का उल्लंघन कर रहा है। युद्धविराम की घोषणा के बाद से इजरायली हमलों में लगभग 250 फिलिस्तीनी शहीद हुए हैं। उन्होंने कहा,हम शांति के लिए हर बलिदान देने को तैयार हैं, लेकिन इजरायली आक्रामक कार्रवाइयां वैश्विक विवेक के लिए एक चुनौती हैं।

फिदान ने कहा कि तुर्की ने अपने सभी क्षेत्रीय भागीदारों के साथ संपर्क बढ़ा दिए हैं, ताकि युद्धविराम को स्थायी शांति में बदला जा सके। उन्होंने जोर देकर कहा कि अगर मानवीय सहायता के रास्ते नहीं खुले तो गाजा में मानवीय त्रासदी असहनीय हो जाएगी।