رضوی

رضوی

पसमांदा क़ौमों में औरत को न कोई हक़ हासिल था और न ही ज़िंदगी में कोई इख़्तियार। उसे मर्द के ताबे समझा जाता था, और बाप या शौहर को उस पर मुकम्मल इख़्तियार हासिल होता था। मर्द अपनी बीवी को बेच सकता था, किसी को तोहफ़े में दे सकता था, या यहाँ तक कि क़त्ल भी कर सकता था। औरतों पर अंधी आज्ञाकारिता लाज़िम थी, वे सख़्त तरीन कामों पर मजबूर की जाती थीं और बदसलूकी बर्दाश्त करती थीं। उनके साथ एक बेहिस कीमत चीज़ या व्यापार की वस्तु की तरह बर्ताव किया जाता था।

मरहूम अल्लामा तबातबाई (र) जो अज़ीम तफ़्सीर अल–मीज़ान के मुसन्निफ़ हैं, उन्होंने सूर ए बक़रा की आयत 228 से 242 के ज़ेरे तफ़्सीर में औरत के हक़ूक़, मक़ाम और मुआशरती हैसियत के मौज़ू पर तफसीली गुफ़्तगू की है। नीचे उनके बयानात का ख़ुलासा पेश किया जा रहा है।

पसमांदा अक़वाम में औरत की ज़िंदगी

उन जाहिल क़ौमों और क़बीलों में औरत की ज़िंदगी मर्दों की नज़र में कोई मुस्तक़िल हैसियत नहीं रखती थी। वे औरत को सिर्फ़ मर्द की ज़िंदगी का ताबे समझते थे और यक़ीन रखते थे कि औरत सिर्फ़ मर्द की ख़ातिर पैदा की गई है।
यह अकीदा इतना सतही था कि इस पर ग़ौर–व–फ़िक्र तक नहीं किया जाता था।

उनके नज़दीक औरत की हस्ती और ज़िंदगी मर्द के वुजूद की पैरोकार थी; बिल्कुल जानवरों की तरह जिन्हें न कोई हक़ हासिल होता है और न ज़िंदगी में कोई इख़्तियार।

अगर औरत ग़ैर–शादीशुदा होती तो बाप की विलायत और इख़्तियार में रहती, और शादी के बाद शौहर के ज़ेरे तसल्लुत आ जाती — ऐसा तसल्लुत जो मुकम्मल और बेहद–ओ–शर्त था।

उन मुआशरों में मर्द अपनी बीवी को जिसे चाहे बेच सकता था, किसी को तौहफ़े में दे सकता था, या किसी दूसरे को वक़्ती तौर पर दे देता ताकि वो उससे फ़ायदा उठाए — चाहे वो फ़ायदा जिंसी हो, ख़िदमत के तौर पर हो या बच्चे पैदा करने के लिए।

मर्द को यह भी इख़्तियार था कि औरत को सज़ा दे, मारे–पीटे, क़ैद करे, भूखा–प्यासा रखे, या यहाँ तक कि क़त्ल कर दे — चाहे औरत ज़िंदा रहे या मर जाए, उसे कोई परवाह नहीं होती थी।

बल्कि कुछ क़बीलों में यह रस्म थी कि क़हत–साली या जश्न के मौक़े पर औरत को मोटा करके ज़बह कर देते और उसका गोश्त खाते थे। औरत की मिल्कियत में जो कुछ होता, मर्द उसे अपना माल समझता था।

औरत के तमाम हक़ूक़ मर्द के हक़ों के ताबे समझे जाते थे, ख़ास तौर पर माली मामलात में मर्द ही को पूरा इख़्तियार हासिल था।

सख़्त तरीन मर्दाना कामों की ज़िम्मेदार

औरत पर लाज़िम था कि मर्द — ”ख़्वाह बाप हो या शौहर“ — के हर हुक्म की अंधी तक़लीद करे, चाहे उसकी मर्ज़ी हो या न हो।
घर के तमाम काम, बच्चों की देखभाल, और शौहर की ज़रूरतें पूरी करना औरत की ज़िम्मेदारी समझी जाती थी।

इस पर यह बोझ भी था कि सख़्त से सख़्त काम बर्दाश्त करे, भारी सामान उठाए, मिट्टी के काम करे, और मामूली दर्जे के पेशों में काम करे।

कुछ क़बीलों में हालात यहाँ तक पहुँच गए थे कि अगर औरत हामिला हो और बच्चा पैदा करे तो फ़ौरन बाद वो दोबारा घर के कामों में लग जाती, जबके उसका शौहर — जो बिल्कुल सेहतमंद होता — बीमारी का बहाना बनाकर बिस्तर पर लेट जाता और औरत पर लाज़िम होता कि उसकी तैमर्दारी करे।

यह वो उमूमी हालात थे जिनमें औरत ज़िंदगी गुज़ारने पर मजबूर थी। वह मुआशरती तौर पर मज़लूम और इंसानी हक़ूक़ से महरूम थी।

हर क़ौम और क़बीले के रसूम–ओ–रवाज, माहौल और विरासती आदात के मुताबिक़ इन ज़ुल्मों की शक्लें मुख़्तलिफ़ थीं। जो कोई भी तारीख़–ए–अक़वाम या क़दीम तमद्दुनों की किताबें देखे, वो इन ज़ालिमाना रस्मों से बख़ूबी वाक़िफ़ हो जाएगा।

(जारी है...)

पाकिस्तान के शहर फैसलाबाद में नहजुल बलाग़ा का पैग़ाम फैलाने और समाज में सोच व अच्छे अख़लाक की जागरूकता पैदा करने के लिए मरकज़ अफ़कार-ए-इस्लामी और अंजुमन हुसैनिया बौस्तान ज़हरा के सहयोग से एक शानदार "नहजुल बलाग़ा कॉन्फ्रेंस" का आयोजन किया गया।

पाकिस्तान के शहर फ़ैसल आबाद मे  9 नवंबर 2025 को इतवार के दिन नहजुल बलाग़ा का पैग़ाम आम करने और समाज में फिक्र व अच्छे अख़लाक जगाने के लिए — मरकज़ अफ़कार-ए-इस्लामी और अंजुमन हुसैनीया बौस्तान ज़हरा के तआवुन (सहयोग) से एक शानदार "नहजुल बलाग़ा कॉन्फ्रेंस" का आयोजन किया गया। इस प्रोग्राम में बड़ी संख्या में उलमा, बुद्धिजीवी और अहल-ए-बैत (अ) के चाहने वालों ने शिरकत की।

कॉन्फ्रेंस में मरकज़ अफ़कार-ए-इस्लामी के सरपरस्त हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मक़बूल हुसैन अलवी, मौलाना लियाक़त अली अवान (निजामत), प्रोफेसर आबिद हुसैन, मौलाना तौसीफ कमेली, मौलाना महताब हुसैन सरवरी, मौलाना शेख़ बिलावल नक़वी, प्रोफेसर सैयद जाहिद हुसैन शम्सी और प्रोफेसर जफर अब्बास जोया ने मुख़तलिफ़ मौज़ूआत (विषयों) पर खिताबात (भाषण) किए.​

प्रोग्राम के आख़िर में शिरकत करने वालों के बीच कुरआंदाजी से 30 नहजुल बलाग़ा की किताबें तोहफ़े के तौर पर दी गईं।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन हामिद मल्की ने कहा, आज चूंकि आधुनिक प्रौद्योगिकियां और सोशल मीडिया मानव समाजों में प्रवेश कर चुका हैं, इसलिए कुरआन करीम के आदेश के अनुसार यह आवश्यक है कि हम उनके संभावित नुकसानों से अवगत हों और अपने आप को और अपने परिवार को उसके नुकसान से सुरक्षित रखें।

हौज़ा ए इल्मिया क़ुम के प्रमुख के उपाध्यक्ष हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लिमीन हामिद मलकी ने हौज़ा न्यूज़ के प्रतिनिधि से बातचीत के दौरान कहा, समाज, विशेष रूप से धार्मिक और हौज़ा वाले माहौल में यह जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है कि इन प्रौद्योगिकियों के प्रभावों और उनसे होने वाले असर से सुरक्षा की जाए और वैज्ञानिक व ईमानी जागरूकता को मजबूत रखा जाए।

उन्होंने कहा,जब सोशल मीडिया और डिजिटल माहौल समाज में घर कर जाता है, तो जरूरी है कि हम खुद को और अपने परिवार वालों को उनके नकारात्मक प्रभावों से बचाएं। कुरआन हकीम का स्पष्ट आदेश है कि केवल अपनी ही नहीं बल्कि अपने घर वालों और अपनी देखरेख में रहने वाले लोगों की सुरक्षा भी हम पर अनिवार्य है।

हौज़ा-ए-इल्मिया क़ुम के कार्यवाहक प्रमुख ने कहा,घर और परिवार, शिक्षा-दीक्षा और व्यक्तित्व निर्माण की बुनियादी कड़ी है। शिक्षक अपनी कक्षा का, गुरु अपने शिष्यों का और जिम्मेदार व्यक्ति अपनी निगरानी में रहने वाले लोगों का रक्षक है ताकि वे गुमराही और बौद्धिक व नैतिक प्रदूषण से बच सकें।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मल्की ने कहा, सोशल मीडिया के नुकसान का मुख्य निशाना सबसे ज्यादा "परिवार" है। कुरआन करीम ने शिक्षा-दीक्षा का केंद्र घर-परिवार को बनाया है, जैसा कि सूरह फुरकान की आयत नंबर 74 में दुआ मांगी गई है:

«رَبَّنَا هَبْ لَنَا مِنْ أَزْوَاجِنَا وَذُرِّيَّاتِنَا قُرَّةَ أَعْيُنٍ وَاجْعَلْنَا لِلْمُتَّقِينَ إِمَامًا»
यह कुरआन करीम की बहुत ही खूबसूरत दुआ है जिसमें परिवार की पवित्रता, शांति और आध्यात्मिक महानता का वर्णन है।

उन्होंने कहा,वह परिवार जिसमें पति-पत्नी के बीच का बंधन मजबूत रहे, माता-पिता और संतान के रिश्ते सही आधार पर कायम रहें और पारिवारिक व्यवस्था मजबूत हो, वही परिवार धर्म और फितरत के रास्ते पर अधिक टिकाऊपन के साथ चलता है।

 

दिल्ली में लाल क़िला के क़रीब एक ‘इको वैन’ में ज़ोरदार धमाका हुआ है, जिसने पूरे इलाक़े में अफरा–तफरी का माहौल पैदा कर दिया है। धमाके में कम–अज़–कम 8 लोगों की मौत की तस्दीक़ हो चुकी है, जबकि दर्जनों अफ़राद ज़ख़्मी भी हुए हैं।

दिल्ली में लाल क़िला के क़रीब एक ‘इको वैन’ में ज़ोरदार धमाका हुआ है, जिसने पूरे इलाक़े में अफरा–तफरी का माहौल पैदा कर दिया है। धमाके में कम–अज़–कम 8 लोगों की हलाक़त की तस्दीक़ हो चुकी है, जबकि दर्जनों अफ़राद ज़ख़्मी भी हुए हैं। ज़ख़्मियों में कुछ लोगों की हालत बेहद संगीन बताई जा रही है। मृतकों की लाशें एल–एन–जेपी अस्पताल ले जाई गई हैं और बताया जा रहा है कि मरने वालों की तादाद बढ़ सकती है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ धमाका बहुत तेज़ था, और इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि क़रीब में खड़ी 5–6 गाड़ियों के परखच्चे उड़ गए। एनआईए की टीम जाय–ए–वाक़े पर पहुँच गई है और जांच भी शुरू कर दी गई है।

दिल्ली पुलिस ने भी अपनी तरफ़ से तहक़ीक़ात शुरू कर दी है। बताया जा रहा है कि फायर ब्रिगेड को धमाके की ख़बर शाम 6 बजकर 55 मिनट पर मिली थी। धमाके की वजह से आसपास की स्ट्रीट लाइटें भी टूट गईं।

प्राप्त सूचना के अनुलाप, लाल क़िला मेट्रो स्टेशन के गेट नंबर 1 के पास यह धमाका हुआ जिसमें कम–अज़–कम 24 अफ़राद के ज़ख़्मी होने की भी ख़बर है। धमाके के बाद पूरी दिल्ली में हाई अलर्ट का एलान कर दिया गया है, और एहतियातन चाँदनी चौक मार्केट को बंद कर दिया गया है। लाल क़िला के आसपास के पूरे इलाक़े और सड़कों को भी बंद कर दिया गया है।

 

कोलंबिया के राष्ट्रपति गुस्तावो पेत्रो ने अमेरिका के राष्ट्रपति और विदेश मंत्री पर झूठ बोलने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि कैरेबियन क्षेत्र में मादक पदार्थों के तस्करों की हत्या के बारे में उनकी बातें पूरी तरह झूठ हैं।

कोलंबिया के राष्ट्रपति गुस्तावो पेत्रो ने अमेरिका के राष्ट्रपति और विदेश मंत्री पर झूठ बोलने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि कैरेबियन क्षेत्र में मादक पदार्थों के तस्करों की हत्या के बारे में उनकी बातें पूरी तरह झूठ हैं।

अल-मयादीन टीवी की रिपोर्ट के अनुसार, कोलंबिया के राष्ट्रपति गुस्तावो पेत्रो ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और विदेश मंत्री मार्को रूबियो पर तीखा हमला करते हुए कहा, “ट्रम्प और रूबियो, तुम और तुम्हारे दोस्त झूठ बोल रहे हो, क्योंकि जिन लोगों को तुम मार रहे हो, वे मादक पदार्थों के तस्कर नहीं हैं।

पेत्रो ने आगे कहा कि आज की दुनिया में लोकतंत्र मर चुका है और अब बर्बरता का शासन स्थापित हो रहा है।

यह बयान अमेरिका द्वारा प्रशांत महासागर में अपनी सैन्य गतिविधियां बढ़ाने और उन नावों पर हमलों के दावे के बाद आया है, जिन पर नशे की तस्करी का आरोप लगाया गया था।

 

शिया और सुन्नी स्रोतों में मौजूद ऐतिहासिक दस्तावेज़ों से पता चलता है कि हज़रत मोहसिन इमाम अली (अ.) और हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स.) की संतान थे जो दूसरे ख़लीफ़ा उमर या क़ुनफ़ुज़ द्वारा हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स.) को दरवाज़े और दीवार की बीच दबा दिए जाने के कारण शहीद हो गए थे।

शिया और सुन्नी स्रोतों में मौजूद ऐतिहासिक दस्तावेज़ों से पता चलता है कि हज़रत मोहसिन इमाम अली (अ.) और हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स.) की संतान थे जो दूसरे ख़लीफ़ा उमर या क़ुनफ़ुज़ द्वारा हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स.) को दरवाज़े और दीवार की बीच दबा दिए जाने के कारण शहीद हो गए थे।(1) यहां पर इस नुक्ते पर ध्यान देना आवश्यक है कि हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स.) के घर का घेराव और उन पर हमला चाहे जिसके द्वारा भी किया गया हो लेकिन इस कार्य के करने वालों का उस समय की सत्ता से संबंध अवश्य था।

हम आपके सामने नमूने के तौर पर शिया और सुन्नी पुस्तकों से कुछ ऐतिहासिक दस्तावेज़ पेश कर रहे हैं ताकि पढ़ने वालों को इस घटनाक्रम और इसमें लिप्त लोगों के बारे में फैसला करने में आसानी हो सके।

शिया स्रोत

आगे जो भी रिवायतें बयान की जाएंगी उनसे पता चलता है कि हज़रत मोहसिन फ़ातेमा ज़हरा (स.) की औलाद थे जिनके शहीद कर दिया गया था।

  1. अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली (अ) ने फ़रमायाः अगर तुम्हारे सिक़्त (पेट में मर जाने वाले) होने वाले बच्चे तुम को क़यामत में देखें जब कि तुमने उनका कोई नाम न रखा हो तो सिक़्त हुआ बच्चा अपने पिता से कहेगाः मेरा कोई नाम क्यों नहीं रखा जब कि पैग़म्बर (स.) ने मोहसिन का नाम पैदा होने से पहले ही रख दिया था। (2)
  2. पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने फ़रमायाः फ़ातेमा ज़हरा (स) को मारा जाएगा जब कि वह गर्भवती होगी, इस मार से उसका बेटा पेट में मर जाएगा और वह ख़ुद भी उसी मार के कारण इन दुनिया से चली जाएंगी। (3)
  3. स्वर्गीय तबरेसी कहते हैः अबूबक्र ने क़ुनफ़ुज़ को आदेश दिया कि फ़ातेमा को मारो, इस आदेश के साथ ही शोर शराबा बढ़ गया और उन (फ़ातेमा) को अली से दूर कर दिया गया और क़ुनफ़ुज़ सामने आया उसने पूरी संगदिली और बर्बरता के साथ पैग़म्बर की बेटी को दरवाज़े और दीवार के बीच पीस दिया, उसका यह कार्य इतना तेज़ था कि उनका पहलू टूट गया और उनका बच्चा पेट में ही सिक़्त हो गया। (4)

सुन्नी स्रोत

  1. इब्राहीम बिन सय्यार नेज़ाम मअतज़ेली ने बहुत सी किताबों में फ़ातेमा ज़हरा (स) के घर पर लोगों के आने के बाद की घटनाओं के बारे में लिखा है। वह कहता हैः अबूबक्र के लिए बैअत लिए जाने के दिन उमर ने फ़ातेमा ज़हरा (स.) के पेट पर लात मारा जिसकी वजह से उनका बेटा जिसका नाम उन्होंने मोहसिन रखा था सिक्त हो गया। (5)
  2. अहमद बिन मोहम्मद जो इब्ने अभी दारम के नाम से प्रसिद्ध हैं और जिनको मोहद्दिस कूफ़ी कहा जाता है (357 निधन) जिनके बारे में मोहम्मद बिन अहमद बिन हम्माद कूफ़ी कहता हैं: वह अपने पूरे जीवनकाल में केवल सही रास्ते पर चले” कहते हैं: मेरे सामने यह ख़बर दी गई किः उमर ने फ़ातेमा को लात मारी और उनका बेटा मोहसिन उनके पेट में सिक़्त हो गया। (6)

3.इब्ने सअद अपनी पुस्तक तबक़ात और बलाज़री अनसाबुल अशराफ़ में लिखते हैं: वह संताने जिनकी माँ पैग़म्बर की बेटी हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स.ल.) हैं उनके नाम यह हैं,हसन, हुसैन मोहसिन, ज़ैनब कुबरा, उम्मे कुलसूम। और मोहसिन हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स.) के घर पर हमले वाली घटना में सिक़्त हो गए।
1.    अलमग़ाज़ी, इब्ने अभी शैबा जिल्द 8, पेज 572
2.    बेहारुल अनवार जिल्द 43 पेज 195
3.    बेहारुल अनवार जिल्द 28, पेज 62
4.    एहतेजाते तबरेसी जिल्द 1, पेज 83
5.    अलवाफ़ी बिलवफ़ीयात जिल्द 1, पेज 17, मेलल व नह्ल शहरिस्तानी जिल्द 1, पेज 57. « انّ عمر ضرب بطن فاطمة یوم البیعة حتى ألقت المحسن من بطنها.»
6.    मीज़ानुल एतेदाल जिल्द 3, पेज 459. «   انّ عمر رفس فاطمة حتى أسقطت بمحسن.»

 

मशहूर इतिहासकार ज़हबी ने अपनी किताब लिसानुल मीज़ान की पहली जिल्द पेज न. 268 में अहमद नाम के विषय पर लिखते हुए एक रिवायत पूरी सनद के साथ ज़िक्र करने के बाद कहते हैं कि मोहम्मद इब्ने अहमद हम्माद कूफ़ी जिनका शुमार अहले सुन्नत के बड़े मोहद्दिस में होता है बयान करते हैं कि बिना किसी शक के, उमर ने अपने पैरों से फ़ातिमा स.अ.की शान में ऐसी गुस्ताख़ी की थी कि मोहसिन शहीद हो गए

आज बहुत से मुसलमान हज़रत फ़ातिमा ज़हरा स.अ. की शहादत के बारे में तरह तरह की बातें करते हैं कोई बीमारी का ज़िक्र करता है तो कोई किसी और चीज़ का, इसी बात के चलते हम इस लेख में हज़रत ज़हरा स.अ. की शहादत को अहले सुन्नत के बड़े और ज्ञानी इतिहासकारों जैसे इब्ने क़ुतैबा, मोहम्मद इब्ने अब्दुल करीम शहरिस्तानी, इमाम शम्सुद्दीन ज़हबी, उमर रज़ा कोहाला, अहमद याक़ूबी, अहमद इब्ने यहया बेलाज़री, इब्ने अबिल हदीद, शहाबुद्दीन अहमद जो इब्ने अब्द अंदलुसी बुज़ुर्ग और अपने दौर के सबसे मशहूर और विशेष इतिहासकारों की किताबों से बयान कर रहे हैं।

पैग़म्बर स.अ. की वफ़ात के बाद उनकी बेटी हज़रत ज़हरा स.अ. पर ढ़हाए जाने वाले बेशुमार और बेहिसाब ज़ुल्म और फिर उन्हीं ज़ुल्म की वजह से आपकी शहादत इस्लामी इतिहास की एक ऐसी हक़ीक़त है जिसका इंकार कर पाना ना मुमकिन है,

इसलिए कि इतिहास गवाह है कि बहुत कोशिशें हुईं और बहुत मेहनत की गई, क़लम ख़रीदे गए और केवल यही नहीं बल्कि इंसाफ़ पसंद इतिहासकारों पर बहुत सारी हक़ीक़तें छिपाने के लिए दबाव भी बनाया गया, लेकिन ज़ुल्म, वह भी इस्मत के घराने की नूरानी ख़ातून पर छिप भी कैसे सकता था, इसीलिए कुछ इंसाफ़ पसंद इतिहासकार और उलमा आगे बढ़े और उन्होंने अपनी किताबों में ज़ुल्म की उस पूरी दास्तान को लिखा जिसे आज भी बहुत से मुसलमान भुलाए बैठे हुए हैं, और इन इतिहासकारों ने कुछ ऐसे हाकिमों की सच्चाई को ज़ाहिर किया जो ख़ुद को पैग़म्बर स.अ. का जानशीन बताते हुए उन्हीं के ख़ानदान पर ज़ुल्म के पहाड़ तोड़ रहे थे,

इन इतिहासकारों ने बिना किसी कट्टरता के अहले सुन्नत के इतने अहम और मोतबर स्रोत द्वारा हज़रत ज़हरा पर होने वाले ज़ुल्म जिसके नतीजे में आपकी शहादत हुई उसे नक़्ल किया है जिसका इंकार कर पाना आज की जवान नस्ल और पढ़े लिखे और इंसाफ़ पसंद मुसलमान के लिए मुमकिन नहीं है।

अबू मोहम्मद अब्दुल्लाह इब्ने मुस्लिम इब्ने क़ुतैब दैनवरी जो इब्ने क़ुतैबा के नाम से मशहूर थे और जिनकी वफ़ात 276 हिजरी में हुई थी, उन्होंने अपनी किताब अल-इमामह वस सियासह की पहली जिल्द के पेज न. 12 (तीसरा एडीशन, जिसकी दोनें जिल्दें एक ही किताब में छपी थीं) में अब्दुल्लाह इब्ने अब्दुर्रहमान से नक़्ल करते हुए लिखते हैं कि अबू बक्र ने जिन लोगों ने उनकी बैअत से इंकार किया था और इमाम अली अ.स. की पनाह में चले गए थे उनका पता लगवाया और उमर को उनके पास भेजा, उन सभी लोगों ने घर से बाहर निकलमे से मना कर दिया, फिर उमर ने आग और लकड़ी लाने का हुक्म दिया और इमाम अली अ.स. के घर में पनाह लेने वालों को पुकार कर कहा, उस ज़ात की क़सम जिसके क़ब्ज़े में उमर की जान है, तुम सब घर से बाहर निकल आओ वरना मैं इस घर को घर वालों समेत जला दूंगा, वहीं मौजूद किसी ने उमर की इस बात को सुन कर कहा ऐ अबू हफ़्स, क्या तुम्हें मालूम नहीं इस घर में फ़ातिमा (स.अ.) हैं, उमर ने कहा मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता, मैं फिर भी आग लगा दूंगा।

उसी किताब की पहली जिल्द के पेज न. 13 पर रिवायत की सनद के साथ नक़्ल किया है कि, इस हादसे के कुछ दिन बाद उमर ने अबू बक्र से कहा, चलो फ़ातिमा (स.अ.) के पास चलें क्योंकि हमने उन्हें नाराज़ किया किया है,

यह दोनों आपसी मशविरे के बाद शहज़ादी की चौखट पर पहुंचे, लाख कोशिशें कर लीं लेकिन शहज़ादी ने इन लोगों से मुलाक़ात करने से मना कर दिया, फिर मजबूर हो कर इमाम अली अ.स. से कहा (ताकि वह इमाम अली अ.स. के कहने से हज़रत फ़ातिमा ज़हरा स.अ. उनसे बात करें, इस बात से यह समझा जा सकता है कि यह दोनों जानते थे कि अगर शहज़ादी नाराज़ रहीं तो आख़ेरत तो बाद में इनकी दुनिया भी बर्बाद है)

इमाम अली अ.स. के कहने के बाद शहज़ादी ने इजाज़त तो दी लेकिन जैसे ही यह लोग शहज़ादी की बारगाह में पहुंचे शहज़ादी ने मुंह मोड़ लिया, और फिर इन दोनों ने सलाम किया लेकिन शहज़ादी ने सलाम का जवाब नहीं दिया, फिर अबू बक्र ने कहा क्या आप इसलिए नाराज़ हैं कि हमने आपकी मीरास और आपके शौहर का हक़ छीन लिया, शहज़ादी ने जवाब दिया कि ऐसा कैसे हो सकता है कि तुम्हारे घर वाले तुम्हारी मीरास पाएं और हम पैग़म्बर स.अ. की मीरास से महरूम रहें? फिर आपने फ़रमाया, अगर मैं पैग़म्बर स.अ. से नक़्ल होने वाली हदीस सुनाऊं तब मान लोगे...., अबू बक्र ने कहा हां, फिर आपने फ़रमाया, तुम दोनों को अल्लाह की क़सम, सच बताना, क्या तुम लोगों ने पैग़म्बर स.अ. से नहीं सुना कि फ़ातिमा (स.अ.) की ख़ुशी मेरी ख़ुशी है, और फ़ातिमा (स.अ.) की नाराज़गी मेरी नाराज़गी है, जिसने फ़ातिमा (स.अ.) को राज़ी कर लिया उसने मुझे राज़ी कर लिया, जिसने फ़ातिमा (स.अ.) को नाराज़ किया उसने मुझे नाराज़ किया?

उमर और अबू बक्र दोनों ने कहा, हां हमने यह हदीस पैग़म्बर (स.अ.) से सुनी है, फिर शहज़ादी ने फ़रमाया, मैं अल्लाह और उसके फ़रिश्तों को गवाह बना कर कहती हूं कि तुम दोनों ने मुझे नाराज़ किया और मैं तुम दोनों से राज़ी नहीं हूं, और जब पैग़म्बर स.अ. से मुलाक़ात करूंगी तुम दोनों की शिकायत करूंगी, यह सुनते ही अबू बक्र ने रोना शुरू कर दिया जबकि शहज़ादी यह कह रही थीं कि अल्लाह की क़सम ऐ अबू बक्र तेरे लिए हर नमाज़ में बद दुआ करूंगी।

मशहूर इतिहासकार ज़हबी ने अपनी किताब लिसानुल मीज़ान की पहली जिल्द पेज न. 268 में अहमद नाम के विषय पर लिखते हुए एक रिवायत पूरी सनद के साथ ज़िक्र करने के बाद कहते हैं कि मोहम्मद इब्ने अहमद हम्माद कूफ़ी (जिनका शुमार अहले सुन्नत के बड़े मोहद्दिस में होता है) बयान करते हैं कि बिना किसी शक के, उमर ने अपने पैरों से फ़ातिमा (स.अ.) की शान में ऐसी गुस्ताख़ी की थी कि मोहसिन शहीद हो गए थे। (अदब की वजह से मुझ में हिम्मत नहीं कि वह शब्द लिखूं जिसका इस्तेमाल किया गया है बाक़ी मतलब तो आप ख़ुद समझ गए होंगे)

उमर रज़ा कोहाला हालिया अहले सुन्नत के उलमा में से हैं, जिन्होंने अपनी किताब आलामुन निसा के पांचवे एडीशन (1404 हिजरी) में उसी रिवायत को सनद के साथ ज़िक्र किया है जिसे इब्ने क़ुतैबा ने भी नक़्ल किया है जिसका ऊपर ज़िक्र किया जा चुका है।

याक़ूबी अपनी इतिहास की किताब जो तारीख़े याक़ूबी के नाम से मशहूर है उसकी दूसरी जिल्द पेज न. 137 (बैरूत एडीशन) में अबू बक्र की हुकूमत के हालात के विषय पर चर्चा करते हुए लिखा है कि जिस समय अबू बक्र ज़िंदगी के आख़िरी समय में बीमार पड़े तो अब्दुर रहमान इब्ने औफ़ देखने के लिए गए और पूछा, ऐ पैग़म्बर (स.अ.) के ख़लीफ़ा कैसी तबीयत है तो उन्होंने जवाब दिया, मुझे पूरी ज़िंदगी में किसी चीज़ का पछतावा नहीं है, लेकिन तीन चीज़ें ऐसी हैं जिन पर अफ़सोस कर रहा हूं कि ऐ काश ऐसा न किया होता...., पूछने पर बताया कि ऐ काश ख़िलाफ़त की मसनद पर न बैठा होता, ऐ काश फ़ातिमा (स.अ.) के घर की तलाशी न हुई होती, ऐ काश फ़ातिमा (स.अ.) के घर में आग न लगाई होती..., चाहे वह मुझसे जंग का ऐलान ही क्यों न कर देतीं।

अहमद इब्ने यहया जो बेलाज़री के नाम से मशहूर हैं और जिनकी वफ़ात 279 हिजरी में हुई है वह अपनी किताब अन्साबुल अशराफ़ (मिस्र एडीशन) की पहली जिल्द के पेज न. 586 पर सक़ीफ़ा के मामले पर बहस करते हुए लिखते हैं कि, अबू बक्र ने इमाम अली अ.स. से बैअत लेने के लिए कुछ लोगों को भेजा, लेकिन इमाम अली अ.स. ने बैअत नहीं की, इसके बाद उमर आग के शोले लेकर इमाम अली अ.स. के घर की तरफ़ गया, दरवाज़े के पीछे हज़रत फ़ातिमा (स.अ.) मौजूद थीं उन्होंने कहा ऐ उमर क्या तेरा इरादा मेरे घर को आग लगाने का है? उमर ने जवाब दिया, हां, बेलाज़री लिखते हैं कि उमर ने शहज़ादी से यह जुमला कहा कि मैं अपने इस काम को अंजाम देने के लिए उतना ही मज़बूत ईमान और अक़ीदा रखता हूं जितना आपके वालिद अपने लाए हुए दीन पर अक़ीदा और ईमान रखते थे।

बेलाज़री उसी किताब के पेज न. 587 में इब्ने अब्बास से रिवायत नक़्ल करते हैं कि जिस समय इमाम अली अ.स. ने बैअत करने से इंकार कर दिया, अबू बक्र ने उमर को हुक्म दिया कि जा कर अली (अ.स.) को घसीटते हुए मेरे पास लाओ...., उमर पहुंचा और फिर इमाम अली अ.स. से कुछ बातचीत हुई, फिर इमाम अली अ.स. ने एक जुमला उमर से कहा कि ख़ुदा की क़सम तुमको अबू बक्र के बाद कल हुकूमत की लालच यहां तक ख़ींच कर लाई है।

इब्ने अबिल हदीद मोतज़ली ने अपनी शरह की बीसवीं जिल्द पेज 16 और 17 में लिखते हैं कि जो लोग यह कहते हैं कि हज़रत फ़ातिमा ज़हरा स.अ. के घर पर हमला कर के बैअत का सवाल इसलिए किया गया ताकि मुसलमानों में मतभेद और फूट न पैदा हो और इस्लाम का निज़ाम महफ़ूज़ रहे, क्योंकि अगर बैअत न ली जाती तो मुसलमान दीन से पलट जाते....., इब्ने अबिल हदीद कहते हैं कि उन लोगों को यह बात क्यों समझ में नहीं आती कि जंगे जमल में भी तो हज़रत आएशा मुसलमानों के हाकिम को ख़िलाफ़ जंग करने क्यों आईं थीं..... ?? लेकिन उसके बाद भी इमाम अली अ.स. ने हुक्म दिया कि उनको पूरे सम्मान के साथ घर वापस पहुंचाओ....।

तो अब यहां मेरा सारे मुसलमानों से सवाल है कि अगर इस्लाम और दीन की हिफ़ाज़त के चलते और मुसलमानों में फूट न पड़ने को दलील बनाते हुए किसी पर जलता दरवाज़ा ढ़केलना सही हो सकता है उसके घर में आग लगाना सही हो सकता है, उस घर में रहने वाली एक ख़ातून को जलते दरवाज़े और दीवार के बीच में दबाया जा सकता है, उसके बाज़ू पर तलवार के ग़िलाफ़ से वार किया जा सकता है, वग़ैरगह वग़ैरह तो क्या यही काम उम्मत को आपसी मतभेद और आपसी फूट से बचाने और उनको दीने इस्लाम से वापस पिछले दीन पर पलटने से रोकने के लिए जंगे जमल में हज़रत आएशा के साथ मुसलमानों के ख़लीफ़ा नहीं कर सकते थे? 

लेकिन मुसलमानों इतिहास पढ़ो तो इस नतीजे पर पहुंचोगे कि मुसलमानों के ख़लीफ़ा की शान होती क्या है... दो किरदार आपके सामने हैं, दोनों में मुसलमानों ही किताबों के हिसाब से मुसलमानों के ख़लीफ़ा और दूसरी तरफ़ उनकी बैअत न करने वाले लोग, एक तरफ़ पैग़म्बर स.अ. की बेटी और एक तरफ़ पैग़म्बर स.अ. की बीवी, लेकिन फ़र्क़ देखिए मुसलमानों के पहले ख़लीफ़ा ने दूसरे ख़लीफ़ा के साथ मिल कर पैग़म्बर स.अ. की बेटी के घर में आग लगाई, पैग़म्बर स.अ. की बेटी को ज़ख़्मी किया, पैग़म्बर स.अ. के नवासे को दुनिया में आने से पहले ही शहीद कर दिया, पैग़म्बर स.अ. की बेटी की आंखों के सामने उनके शौहर को खींच कर और घसीट कर ले जाया गया..... और दूसरी तरफ़ पूरी कोशिश की गई कि पैग़म्बर स.अ. की बीवी मुसलमानों के ख़लीफ़ा की बैअत न करने के बावजूद जंग में न आएं लेकिन वह आईं, लेकिन उसके बावजूद चौथे ख़लीफ़ा ने उन्हें पूरे सम्मान के साथ घर वापस भेजवाया.....

कोई भी अक़्लमंद और इंसाफ़ पसंद इंसान इस बात को क़ुबूल नहीं करेगा कि किसी की भी नामूस के साथ ऐसा सुलूक किया जाए..... लेकिन उसके बावजूद पैग़म्बर स.अ. की बेटी के साथ वह हुआ जिसे बयान करते हुए ज़ुबान लरज़ती है और जिसे लिखते हुए हाथ कांपते हैं।

शहाबुद्दीन अहमद जो इब्ने अब्दे रब अंदलुसी के नाम से मशहूर हैं अपनी किताब अल अक़्दुल फ़रीद की चौथी जिल्द के पेज न. 260 पर लिखते हैं कि जिस समय अबू बक्र ने उमर को यह कर बैअत के लिए भेजा कि अगर वह लोग बाहर न आए तो उनसे जंग करना उस समय इमाम अली अ.स., अब्बास और ज़ुबैर सभी हज़रत फ़ातिमा ज़हरा स.अ. के घर में मौजूद थे, उमर हाथ में आग ले कर हज़रत ज़हरा स.अ. के घर की तरफ़ बढ़ा, दरवाज़े पर हज़रत ज़हरा मौजूद थीं, शहज़ादी ने कहा ऐ ख़त्ताब के बेटे, मेरा घर जलाने आए हो? उमर ने कहा अगर अबू बक्र की बैअत नहीं की तो आग लगा दूंगा।

अहले सुन्नत के इतने बड़े बड़े आलिमों और इतिहासकारों की इस चर्चा के बाद अब सब के लिए बिल्कुल साफ़ हो गया होगा कि शहज़ादी के घर में आग किसने लगाई।

 

उड़ी,जम्मू और कश्मीर की तहसील उड़ी जिला बारामूला के इलाके घाटी में अय्याम-ए-फातिमिया के अवसर पर एक भव्य शोक जुलूस निकाला गया, जिसमें घाटी, छोलां और आसपास के गांवों से बड़ी संख्या में मोमिनीन और अहलेबैत के शोकमनाने वालों ने हिस्सा लिया।

उड़ी,जम्मू और कश्मीर की तहसील उड़ी जिला बारामूला के इलाके घाटी में अय्याम-ए-फातिमिया के अवसर पर एक भव्य शोक जुलूस निकाला गया, जिसमें घाटी, छोलां और आसपास के गांवों से बड़ी संख्या में मोमिनीन और अहलेबैत के शोकमनाने वालों ने हिस्सा लिया।

इस भव्य शोक जुलूस का उद्देश्य रसूल स.अ.व. की बेटी, सैय्यदा फातिमा जहरा(स.अ.) की मज़लूमियत को याद करना, उनकी पवित्र सीरत को उजागर करना और उनके सत्य एवं न्याय के संदेश को आम लोगों के दिलों तक पहुंचाना था।

जुलूस के दौरान माहौल "या फातिमा अज़-जहरा स.अ."लब्बैक या जहरा(स.अ.)" और "या हुसैन(अ.स.)" के नारों से गूंज उठा।

इस मौके पर उलेमा ए किराम ने सैय्यदा-ए-कायनात(स.अ.) के फज़ाइल और मसाइब पर रौशनी डाली।

हौज़ा ए इल्मिया इमाम हादी(अ.स.) नूरख़्वाह उड़ी के मुनीम (प्रबंधक) हुज्जतुल इस्लाम वाल मुस्लिमीन सैय्यद दस्त-ए-अली नकवी ने विशेष संबोधन में कहा कि सैय्यदा फातिमा जहरा(स.अ.) न केवल नबी-ए-अकरम(स.अ.व.) की लख़्त-ए-जिगर थीं, बल्कि आप(स.अ.) का चरित्र इस्लामी समाज में इफ्फत तहारत (शुद्धता), शजाअत (साहस) और विलायत-ए-अली(अ.स.) से वफादारी की सबसे चमकदार निशानी है।

उन्होंने मोमिनीन को सैय्यदा जहरा(स.अ.) की शिक्षाओं पर अमल करने की सीख दी और कहा कि अय्याम-ए-फातिमिया केवल दुःख के दिन नहीं हैं, बल्कि विलायत के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को नवीकरण करने का अवसर भी हैं।शोक जुलूस के समापन पर इस्लाम के शहीदों और मुक़ाविमत के शहीदों को याद किया गया।

आयतुल्लाहिल उज़्मा जवादी आमोली ने कहा कि "ला इलाहा इल्लल्लाह" और "विलायत-ए-अली इब्न अबी तालिब (अ.स.) एक ही वास्तविकता के दो नाम हैं। यह वह किला है जिसका रक्षक स्वयं अल्लाह है और जिसके दरबान अली अ.स.और उनकी संतान हैं। जो ज्ञान इस किला-ए-विलायत से न गुजरे, वह बे-बरकत ज्ञान है, जो न तो इंसान के काम आता है और न दुनिया के।

आयतुल्लाहिल उज़्मा जवादी आमोली ने अपने एक दर्स-ए-अख़लाक में "हिक्मत-ए-हकीकी" के विषय पर बात करते हुए कहा कि अगर ज्ञान विलायत के रास्ते से हासिल न हो तो वह ज्ञान नहीं बल्कि चोरी है।

उन्होंने पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम का यह वचन बयान किया: "أنا مدینة العلم و علی بابها" (मैं ज्ञान का शहर हूं और अली उसका दरवाजा हैं)

उन्होंने स्पष्ट किया कि अगर कोई व्यक्ति इस दरवाजे से दाखिल न हो और दीवार फांद कर ज्ञान हासिल करे तो वह "चोरी" है, और चोरी के ज्ञान का कभी असर नहीं होता। ऐसा ज्ञान न इंसान के दर्द का इलाज है और न समाज की समस्याओं का समाधान।

आयतुल्लाहिल उज़्मा जवादी आमोली ने आगे कहा,जो व्यक्ति विलायत से कट कर ज्ञान हासिल करे, उसका ज्ञान उसका रक्षक नहीं बनता। चाहे वह फकीह हो, मुफस्सिर हो या हकीम, अगर विलायत के रास्ते से न आया तो उसके ज्ञान में खैर व बरकत नहीं।

उन्होंने कहा कि असली ज्ञान वही है जो ईमान और अहल-ए-बैत (अ.स.) की शिक्षाओं की छत्रछाया में हासिल किया जाए, क्योंकि विलायत ही वह दरवाजा है जो इंसान को निजात देने वाले ज्ञान तक पहुंचाता है।

स्रोत: दर्स-ए-अख़लाक, सूरत-ए-मुबारक तूर, तारीख 12 बहमन 1395 हिजरी शम्सी

 

कुआलालंपुर: रोहिंग्या भाषा में पवित्र कुरआन का अनुवाद पिछले कई वर्षों से मुसलमानों की धार्मिक और इस्लामी पहचान की बहाली के उद्देश्य से जारी है, हालांकि म्यांमार सरकार इस कोशिश को लगातार दबाती रही है।

म्यांमार के मज़लूम रोहिंग्या मुसलमान पिछले एक दशक से सख्त सरकारी ज़ुल्म और हिंसा का सामना कर रहे हैं। रिपोर्टों के मुताबिक, 2014 से अब तक 7 लाख 40 हज़ार से ज़्यादा मुसलमान अपने गांवों के जलाए जाने के बाद बांग्लादेश पलायन करने पर मजबूर हुए हैं।

रोहिंग्या भाषा हिंद-आर्य भाषा परिवार से संबंध रखती है और समय बीतने के साथ इसकी लिखित प्रणाली लगभग खत्म हो गई थी। हालांकि 2018 में मोहम्मद हनीफ नामक एक प्रमुख शोधकर्ता ने इस भाषा के लिए एक नई लिपि - 'ख़त-ए-हनीफी' - का आविष्कार किया, जिसे बाद में अंतरराष्ट्रीय भाषाई संस्थानों में एक अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में पंजीकृत कराया गया।

रोहिंग्या भाषा में पवित्र कुरआन के अनुवाद की योजना सबसे पहले उन लोगों के लिए शुरू की गई थी जो पढ़ना नहीं जानते, इसलिए शुरुआती चरण में ऑडियो और वीडियो अनुवाद तैयार किया गया। बाद में, इसका लिखित संस्करण भी 'ख़त-ए-हनीफी' में तैयार किया गया है जिसमें कुरआन के पहले पांच सूरे (अध्याय) शामिल हैं।

रिपोर्ट के अनुसार, इस परियोजना के तहत दो हज़ार प्रतियां प्रकाशित की जा रही हैं जिन्हें सऊदी अरब, मलेशिया और बांग्लादेश में वितरित किया जाएगा ताकि रोहिंग्या मुसलमानों तक कुरआन का संदेश उनकी अपनी भाषा में पहुंच सके।