رضوی

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नौ वर्ष की आयु तक हज़रत फ़ातिमा सला मुल्ला अलैहा अपने पिता के घर पर रहीं।जब तक उनकी माता हज़रत ख़दीजा स.ल. जीवित रहीं वह गृह कार्यों मे पूर्ण रूप से उनकी साहयता करती थीं। तथा अपने माता पिता की अज्ञा का पूर्ण रूप से पालन करती थीं

नौ वर्ष की आयु तक हज़रत फ़ातिमा सला मुल्ला अलैहा अपने पिता के घर पर रहीं।जब तक उनकी माता हज़रत ख़दीजा स.ल. जीवित रहीं वह गृह कार्यों मे पूर्ण रूप से उनकी साहयता करती थीं। तथा अपने माता पिता की अज्ञा का पूर्ण रूप से पालन करती थीं

आदर्श पुत्री:

नौ वर्ष की आयु तक हज़रत फ़ातिमा सला मुल्ला अलैहा अपने पिता के घर पर रहीं।जब तक उनकी माता हज़रत ख़दीजा जीवित रहीं वह गृह कार्यों मे पूर्ण रूप से उनकी साहयता करती थीं। तथा अपने माता पिता की अज्ञा का पूर्ण रूप से पालन करती थीं।

अपनी माता के स्वर्गवास के बाद उन्होने अपने पिता की इस प्रकार सेवा की कि पैगम्बर आपको उम्मे अबीहा कहने लगे। अर्थात माता के समान व्यवहार करने वाली। पैगम्बर आपका बहुत सत्कार करते थे। जब आप पैगम्बर के पास आती थीं तो पैगमबर आपके आदर मे खड़े हो जाते थे, तथा आदर पूर्वक अपने पास बैठाते थे।

जब तक वह अपने पिता के साथ रही उन्होने पैगमबर की हर आवश्यकता का ध्यान रखा। वर्तमान समय मे समस्त लड़कियों को चाहिए कि वह हज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा का अनुसरण करते हुए अपने माता पिता की सेवा करें।

आदर्श पत्नि:

हज़रत फ़तिमा संसार मे एक आदर्श पत्नि के रूप मे प्रसिद्ध हैं। उनके पति हज़रत अली ने विवाह उपरान्त का अधिकाँश जीवन रण भूमी या इस्लाम प्रचार मे व्यतीत किया। उनकी अनुपस्थिति मे गृह कार्यों व बच्चों के प्रशिक्षण का उत्तरदायित्व वह स्वंय अपने कांधों पर संभालती व इन कार्यों को उचित रूप से करती थीं।

ताकि उनके पति आराम पूर्वक धर्मयुद्ध व इस्लाम प्रचार के उत्तर दायित्व को निभा सकें। उन्होने कभी भी अपने पति से किसी वस्तु की फ़रमाइश नही की। वह घर के सब कार्यों को स्वंय करती थीं। वह अपने हाथों से चक्की चलाकर जौं पीसती तथा रोटियां बनाती थीं।

वह पूर्ण रूप से समस्त कार्यों मे अपने पति का सहयोग करती थीं। पैगम्बर के स्वर्गवास के बाद जो विपत्तियां उनके पति पर पड़ीं उन्होने उन विपत्तियों मे हज़रत अली अलैहिस्सलाम के सहयोग मे मुख्य भूमिका निभाई। तथा अपने पति की साहयतार्थ अपने प्राणो की आहूति दे दी।

जब हज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा का स्वर्गवास हो गया तो हज़रत अली ने कहा कि आज मैने अपने सबसे बड़े समर्थक को खो दिया।

आदर्श माता:

हज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा ने एक आदर्श माता की भूमिका निभाई उनहोनें अपनी चारों संतानों को इस प्रकार प्रशिक्षत किया कि आगे चलकर वह महान् व्यक्तियों के रूप मे विश्वविख्यात हुए। उनहोनें अपनी समस्त संतानों को सत्यता, पवित्रता, सदाचारिता, वीरता, अत्याचार विरोध, इस्लाम प्रचार, समाज सुधार, तथा इस्लाम रक्षा की शिक्षा दी।

वह अपने बच्चों के वस्त्र स्वंय धोती थीं व उनको स्वंय भोजन बनाकर खिलाती थीं। वह कभी भी अपने बच्चों के बिना भोजन नही करती थीं। तथा सदैव प्रेम पूर्वक व्यवहार करती थीं।

उन्होंने अपनी मृत्यु के दिन रोगी होने की अवस्था मे भी अपने बच्चों के वस्त्रों को धोया, तथा उनके लिए भोजन बनाकर रखा। संसार की समस्त माताओं को चाहिए कि वह हज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा का अनुसरण करे तथा अपनी संतान को उच्च प्रशिक्षण द्वारा सुशोभित करें

इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में शुक्रवार को एक दर्दनाक हादसा उस समय हुआ जब एक स्कूल परिसर के भीतर स्थित मस्जिद में जुमे की नमाज़ के दौरान अचानक धमाका हो गया। इस धमाके में 54 लोग घायल हो गए, जिनमें कई की हालत गंभीर बताई जा रही है। स्थानीय प्रशासन और बचाव दल ने तुरंत मौके पर पहुंचकर राहत कार्य शुरू किया।

इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में शुक्रवार को एक दर्दनाक हादसा उस समय हुआ जब एक स्कूल परिसर के भीतर स्थित मस्जिद में जुमे की नमाज़ के दौरान अचानक धमाका हो गया। इस धमाके में 54 लोग घायल हो गए, जिनमें कई की हालत गंभीर बताई जा रही है। स्थानीय प्रशासन और बचाव दल ने तुरंत मौके पर पहुंचकर राहत कार्य शुरू किया।

पुलिस के अनुसार, धमाके का कारण अभी तक स्पष्ट नहीं हो सका है। हालांकि, जांच के शुरुआती चरण में 17 वर्षीय एक युवक को संदिग्ध आरोपी के रूप में पहचाना गया है। स्थानीय पुलिस प्रमुख आसेप एदी सुहेरी ने बताया कि अब तक मिली प्रारंभिक जानकारी के मुताबिक लगभग 54 लोग इस धमाके से प्रभावित हुए हैं और तीन लोगो कि मौत हुई है। उन्होंने कहा कि “कुछ लोगों को हल्की चोटें आई हैं, कुछ को मध्यम चोटें हैं, जबकि कुछ को इलाज के बाद अस्पताल से छुट्टी भी दे दी गई है।

पुलिस और बम निरोधक दस्ते ने घटना स्थल की गहन जांच की। जांच के दौरान मस्जिद के पास कुछ खिलौना राइफलें और एक खिलौना बंदूक बरामद की गई हैं, जिससे यह संभावना जताई जा रही है कि धमाके की प्रकृति पारंपरिक विस्फोटक जैसी नहीं थी। पुलिस प्रमुख ने कहा कि यह पता लगाने के लिए जांच जारी है कि धमाका किसी रासायनिक प्रतिक्रिया, गैस लीक, या किसी अन्य वजह से हुआ।

इस घटना ने पूरे जकार्ता शहर में दहशत का माहौल पैदा कर दिया है। शुक्रवार की नमाज़ के समय मस्जिदें आम तौर पर भीड़ से भरी होती हैं, इसलिए प्रशासन ने सभी धार्मिक स्थलों की सुरक्षा बढ़ाने का निर्णय लिया है। पुलिस ने लोगों से अफवाहों पर ध्यान न देने और जांच पूरी होने तक धैर्य रखने की अपील की है।

गुरुवार, 06 नवम्बर 2025 15:35

हज़रत फ़ातेमा की शहादत

शाफीक मां हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की शहादत का दिन है। हालांकि इस महान हस्ती ने इस नश्वर संसार में बहुत कम समय बिताया किन्तु उनका अस्तित्व इस्लाम और मुसलमानों को बहुत से फ़ायदे पहुंचने का आधार बना। ऐसी महान हस्ती के जीवन व व्यक्तित्व की समीक्षा से किताबें भरी हुयी हैं और उनके जीवन से बहुत से पाठ मिलते हैं जैसे धर्मपरायणता, ईश्वर से भय तथा उन्हें जीवन को अल्लाह की राह में और इबादत में बिता देना।

शाफीक मां हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की शहादत का दिन है। हालांकि इस महान हस्ती ने इस नश्वर संसार में बहुत कम समय बिताया किन्तु उनका अस्तित्व इस्लाम और मुसलमानों को बहुत से फ़ायदे पहुंचने का आधार बना। ऐसी महान हस्ती के जीवन व व्यक्तित्व की समीक्षा से किताबें भरी हुयी हैं और उनके जीवन से बहुत से पाठ मिलते हैं जैसे धर्मपरायणता, ईश्वर से भय तथा उन्हें जीवन को अल्लाह की राह में और इबादत में बिता देना।

इस दुखद अवसर पर हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के जीवन के मूल्यवान आयाम पर चर्चा करेंगे और ईश्वर से अपने लिए इस महान हस्ती को आदर्श बनाने की कामना करते हैं।

पैग़म्बरे इस्लाम सबसे अधिक हज़रत फ़ातेमा ज़हरा से स्नेह करते थे और आपका पवित्र वंश हज़रत फ़ातेमा ज़हरा से चला। हज़रत फ़ातेमा ज़हरा का प्रशिक्षण ईश्वरीय दूत के घर में हुआ। उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम की ज़बान से क़ुरआन को सुना और उसके आदेशों को व्यवहार में उतार कर अपनी आत्मा को सुशोभित कर लिया।

हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के व्यक्तित्व ऐसे गुणों से सुसज्जित हैं कि कोई और महिला उनके स्तर तक पहुंचती ही नहीं। इसलिए पैग़म्बरे इस्लाम ने उन्हें लोक-परलोक की महिलाओं की सरदार का ख़िताब दिया। इसके साथ ही हज़रत फ़ातेमा ज़हरा अरब प्रायद्वीप की तत्कालीन कलाओं से परिचित थीं। जैसा कि कुछ युद्धों में अपने पिता पैग़म्बरे इस्लाम के जख़्मों पर बहुत ही अच्छे ढंग से मरहम-पट्टी करती थीं। घर का काम भी बिना किसी की सहायता के करती थीं।

उन्होंने अपने बच्चों का श्रेष्ठ ढंग से प्रिशिक्षण किया और ऐसे किसी मामलों में हस्तक्षेप नहीं करती थीं जिससे उनका और उनके परिवार का संबंध न हो। सिर्फ़ आवश्यकता पड़ने पर ही वे बात करती थीं और जब तक उनसे कोई कुछ नहीं पूछता उस समय तक उत्तर नहीं देती थीं।
हज़रत फ़ातेमा ज़हरा की महानता के बारे में बहुत से कथन पाए जाते हैं।

अबु अब्दिल्लाह मोहम्मद बिन इस्माईल बुख़ारी सुन्नी समुदाय की सबसे प्रसिद्ध किताबों से एक सही बुख़ारी में पैग़म्बरे इस्लाम के एक कथन का उल्लेख करते हैं जिसमें उन्होंने कहाः फ़ातेमा मेरा टुकड़ा है जिसने उन्हें क्रोधित किया उसने मुझे क्रोधित किया। बुख़ारी एक और स्थान पर कहते हैः फ़ातेमा स्वर्ग की महिलाओं की सरदार हैं।

सुन्नी समुदाय के एक और बड़े धर्मगुरु अहमद इब्ने हंबल कि जिनके मत के अनुसरण करने वाले हंबली कहलाते हैं, अपनी किताब के तीसरे खंड में मालिक बिन अनस के हवाले से एक कथन का उल्लेख करते हैः पैग़म्बरे इस्लाम पूरे छह महीने तक जब वे सुबह की नमाज़ के लिए जाते तो हज़रत फ़ातेमा के घर से गुज़रते और कहते थेः नमाज़ नमाज़ हे परिजनो! और फिर पवित्र क़ुरआन के अहज़ाब नामक सुरे की 33 वीं आयत की तिलावत करते थे जिसमें ईश्वर कह रहा हैः हे पैग़म्बर परिजनो!

ईश्वर का इरादा यह है कि आपसे हर बुराई को दूर रखे और इस तरह पवित्र रखे जैसा पवित्र होना चाहिए।पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम की एक पत्नी हज़रत आयशा के हवाले से इस्लामी इतिहास में आया है। वह कहती हैः मैंने बात करने में पैग़म्बरे इस्लाम से समानता में हज़रत फ़ातेमा जैसा किसी को नहीं देखा। वह जब भी अपने पिता के पास आती थीं तो पैग़म्बर उनके सम्मान में अपने स्थान से उठ जाते थे, उनके हाथ चूमते थे, उनका हार्दिक स्वागत करते थे और उन्हें अपने विशेष स्थान पर बिठाते थे और जब भी पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत फ़ातेमा के यहां जाते थे तो वह भी उनके साथ वैसा ही व्यवहार करती थीं।

प्रसिद्ध धर्म गुरु फ़ख़रूद्दीन राज़ी ने पवित्र क़ुरआन के कौसर नामक सूरे की व्याख्या में कौसर से तात्पर्य कई बातें बताई हैं जिनमें से एक हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के वंश से पैग़म्बरे इस्लाम के वंश का आगे बढ़ना है। वह कहते हैः यह आयत पैग़म्बरे इस्लाम के शत्रुओं की ताने के जवाब में है जो पैग़म्बरे इस्लाम को अबतर कहते थे जिसका अर्थ हैः निःसंतान। इस आयत का उद्देश्य यह है कि ईश्वर पैग़म्बरे इस्लाम को ऐसा वंश देगा जो सदैव बाक़ी रहेगा।

ध्यान देने से स्पष्ट हो जाता है कि पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजन बड़ी संख्या में मारे गए किन्तु अभी भी पूरे संसार में वे बाक़ी हैं। जबकि बनी उमय्या परिवार में कि जिनके बच्चों की संख्या बहुत थी इस समय कोई उल्लेखनीय व्यक्ति नहीं है किन्तु पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों के बच्चों को देखें तो इमाम मोहम्मद बाक़िर, इमाम जाफ़र सादिक़, इमाम मूसा काज़िम, इमाम रज़ा इत्यादि जैसे महाविद्वान व महान हस्तियां आज भी अमर हैं।

हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा का अस्तित्व विभिन्न आयामों से पूरी दुनिया के लोगों के लिए आदर्श है और शीया, सुन्नी तथा ईसाई विद्वानों तथा पूर्वविदों ने उनके जीवन की समीक्षा की है।
फ़्रांसीसी विचारक हेनरी कॉर्बेन की गिनती पश्चिम के बड़े दार्शनिकों में होती है। उन्होंने भी हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के जीवन की समीक्षा की है। हेनरी कॉर्बेन ने हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के जीवन को ईश्वर की पूर्ण पहचान का माध्यम बताया है। उन्होंने अपनी एक किताब में कि जिसका हिन्दी रूपांतर आध्यात्मिक दुनिया है, हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के बारे में लिखा हैः हज़रत फ़ातेमा के अस्तित्व की विशेषताओं पर यदि ध्यान दिया जाए तो यह कहा जा सकता है कि उनका अस्तित्व ईश्वर के अस्तित्व का प्रतिबिंबन है।

प्रसिद्ध फ़्रांसीसी पूर्वविद व शोधकर्ता लुई मैसिन्यून ने अपने जीवन का एक कालखंड हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के व्यक्तित्व के बारे में शोध पर समर्पित किया और उन्होंने इस संदर्भ में बहुत प्रयास किए हैं। उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम और नजरान के ईसाइयों के बीच मुबाहेला नामक घटना के संबंध में एक शोधपत्र लिखा है जो मदीना में घटी थी। इस लेख में उन्होंने कुछ महत्वपूर्ण बिन्दुओं की ओर संकेत किया है। वे अपने शोध-पत्र में कहते हैः हज़रत इब्राहीम की प्रार्थना में हज़रत फ़ातेमा के वंश से बारह प्रकाश की किरणों का उल्लेख है... तौरैत में मोहम्मद सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम और उनकी महान सुपुत्री और हज़रत इस्माईल और हज़रत इस्हाक़ जैसे दो सुपुत्र हसन और हुसैन की शुभसूचना है और हज़रत ईसा की इंजील अहमद सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम के आने की शुभसूचना देती है जिनके एक महान बेटी होगी।

क़ाहेरा विश्वविद्यालय में इस्लामी इतिहास के शिक्षक डाक्टर अली इब्राहीम हसन भी हज़रत फ़ातेमा की प्रशंसा में कहते हैः हज़रत फ़ातेमा ज़हरा का जीवन इतिहास के स्वर्णिम पन्ने हैं।
उन पन्नों में उनके महान जीवन के विभिन्न पहलुओं को हम देखते हैं किन्तु वह बिलक़ीस या क़्लुपित्रा जैसी नहीं हैं कि जिनका वैभव उनके बड़े सिंहासन, अथाह संपत्ति व अद्वितीय सौंदर्य में दिखाई देता है और उनका साहस लश्कर भेजने और पुरुषों का नेतृत्व करने में नहीं है बल्कि हमारे सामने ऐसी हस्ती है जिनका वैभव पूरी दुनिया में फैला हुआ है। ऐसा वैभव जिसका आधार धन-संपत्ति नहीं बल्कि आत्मा की गहराई से निकला आध्यात्म है।

सुलैमान कतानी नामक ईसाई लेखक, कवि और साहित्यकार ने, जो इस्लामी हस्तियों को पहचनवाने से संबंधित बहुत सी प्रसिद्ध किताबें लिखी हैं, अपनी एक किताब में जिसका हिन्दी रुपान्तरः फ़ातेमा ज़हरा नियाम में छिपी तलवार है, लिखते हैः हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा का स्थान इतना ऊंचा है कि उसके लिए ऐतिहासिक दस्तावेज़ों का उल्लेख किया जाए। उनकी हस्ती के लिए इतना ही पर्याप्त है कि वह मोहम्मद सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम की बेटी, अली अलैहिस्सलाम की पत्नी, हसन और हुसैन अलैहेमस्सलाम की मां और संसार की महान महिला हैं।

सुलैमान कतानी अपनी किताब के अंत में हज़रत फ़ातेमा ज़हरा को संबोधित करते हुए कहते हैः हे मुस्तफ़ा की बेटी फ़ातेमा! हे धरती की सबसे प्रकाशमय हस्ती। आप ज़मीन पर केवल दो बार मुस्कुराईं। एक बार पिता के चेहरे पर जब वह परलोक सिधारने वाले थे और उन्होंने आपको इस बात की शुभसूचना दी थी कि तुम मुझसे मिलने वाली पहली हस्ती होगी और दूसरी बार आप उस समय मुस्कुराईं जब आप इस नश्वर संसार को छोड़ कर जा रही थीं।

आपका जीवन स्नेह से भरा रहा। आपने पवित्र व चरित्रवान जीवन बिताया। सबसे पवित्र मां जिसने दो फूल को जन्म दिए, उनका प्रशिक्षण किया और उन्हें दूसरों को क्षमा करना सिखाया। आपने इस धरती को व्यंग्यात्मक मुस्कुराहट के साथ विदा कहा और अमरलोक सिधार गयीं हे पैग़म्बर की बेटी! हे अली की पत्नी! हे हसन और हुसैन की मां! और हे सभी संसार व युग की महान महिला!

इस्लामी क्रान्ति के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के महान व्यक्तित्व की इन शब्दों में प्रशंसा करते हैः मुसलमान महिलाओं को चाहिए कि अपने व्यक्तिगत, सामाजिक और पारिवारिक जीवन में हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के जीवन को बुद्धिमत्ता और ईश्वरीय पहचान की दृष्टि से आदर्श बनाएं और प्रार्थना, उपासना, इच्छाओं से संघर्ष, मंच पर उपस्थिति, सामाजिक, पारिवारिक, दांपत्य जीवन और बच्चों के प्रशिक्षण से संबंधित बड़े फ़ैसलों में उनका अनुसरण करें क्योंकि इस्लाम की इस महान हस्ती का जीवन यह दर्शाता है कि मुसलमान महिला राजनैतिक व व्यवसायिक मंच पर उपस्थिति और साथ ही समाज में शिक्षा, उपासना, दांपत्य जीवन और बच्चों के प्रशिक्षण के साथ सक्रिय भूमिका निभाने में हज़रत फ़ातेमा ज़हरा की अनुसरणकर्ता बन सकती है और ईश्वर के महान पैग़म्बर की महान बेटी को अपना आदर्श बना दे

अमीरुल मोमिनीन अलैहिस्सलाम की विलायत और मज़लूमियत-ए-हज़रत फातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा इस्लाम की तारीख़ के वो दो रोशन बाब हैं जिनमें हक़ और बातिल की तमीज़ हमेशा वाज़ेह रही है। मगर सदा अफ़सोस कि इन्हीं दो हक़ीक़तों को उम्मत ने सबसे ज़्यादा फरामोश कर दिया।

अमीरुल मोमेनीन अलैहिस्सलाम की विलायत और मज़लूमियत-ए-हज़रत फातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा इस्लाम की तारीख के वो दो रोशन बाब हैं जिनमें हक़ और बातिल का फर्क़ हमेशा वाज़ेह रहा है। मगर सदा अफ़सोस कि इन्हीं दो हक़ीक़तों को उम्मत ने सबसे ज़्यादा फरामोश कर दिया।

आज हमारी हालत ये है कि अभी ग़दीर नहीं आती कि हम आशूरा के रोज़ों का शुमार शुरू कर देते हैं, मगर ग़दीर जो कि विलायत की ईद है, उसके लिए कोई एहतमाम नहीं। गोया हमें इस ईद की हक़ीक़त का शऊर ही नहीं।

हालाँकि ग़दीर वो दिन है जिसके लिए हज़रत ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा ने खुद को और अपने फ़र्ज़ंदों को क़ुर्बान कर दिया। ग़दीर उनके नज़दीक महज़ एक वाक़ेआ नहीं बल्कि ईमान का महवर थी — क्योंकि ये दिन अमीरुल मोमिनीन अलैहिस्सलाम की विलायत का एलान था, और यही विलायत दीन की रूह है।

मगर अफ़सोस! उम्मत ने इसी विलायत को भुला दिया और इसी के मुक़ाबिल क़ियाम करने वालों को मुक़द्दस बना दिया।

यही वो मक़ाम है जहां तारीख़ चीख़ चीख़ कर कहती है कि जब दलील खत्म हो जाती है, ज़ुबान गाली देने लगती है।

हज़रत ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा का मसअला महज़ एक तारीखी सानिहा नहीं बल्कि एक फ़िक्री आज़माइश है।

जिस तरह मसअला-ए-ग़दीर में गुफ़्तगू इल्मी बुनियादों पर हो सकती है — दलील के साथ, आयत के साथ, रिवायत के साथ — लेकिन जब बात फातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा पर ज़ुल्म की आती है, वहां मुख़ालिफ़ के पास कोई दलील बाक़ी नहीं रहती।

क्योंकि अगर वो हक़ीक़त को तस्लीम करे तो अपने अ़क़ीदे की बुनियाद हिल जाती है। इसी बेबसी में वो गाली का सहारा लेता है, और यही फ़ुक़दान-ए-बुरहान की अलामत है।

वो कहता है: "फातिमा (अ) के घर में अमवाल-ए-बैतुलमाल बंद थे!"

ये कितना बड़ा झूठ और कितना बड़ा बहुतान-ए-अज़ीम है। क़ुरआन ने ऐसे ही लोगों के बारे में फ़रमाया: "व बि कुफ़्रिहिम वा क़ौलिहिम अला मर्यम बहुतानन अज़ीमा" और हम भी कहते हैं: "व बि कुफ़्रिहिम वा क़ौलिहिम अला फातिमा बहुतानन अज़ीमा"

ये इल्ज़ाम सिर्फ़ नासिबी लगा सकते हैं। इब्ने तैमिया और उसके पैरोक़ारों ने इसी ज़ुबान में ज़हर उगला, और अब्दुलअज़ीज़ देहलवी जैसे लोगों ने उसे "फ़ज़ीलत" के लिबास में पेश किया।

ये वो लोग हैं जो एक तरफ़ तो आयशा (रज़ि) के नाम के ज़िक्र पर भी ग़ैरत दिखाते हैं, मगर दूसरी तरफ़ नबी (स) की बेटी पर तोहमत लगाने में आर महसूस नहीं करते।

तारीख़ में ये तज़ाद खुल कर सामने आता है।

सयूती नक़्ल करता है कि अगर कोई फ़क़ीह ये कहे कि "औरत की गवाही आधे मर्द के बराबर है, हत्ता कि अगर वो आयशा ही क्यों न हो" — तो उसके नज़दीक ये गुस्ताख़ी है, और ऐसे शख़्स का मुँह तोड़ देना चाहिए। मगर जब फातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की बात आती है, तो यही लोग उनके घर को "घर-ए-ओबाश" कहने से नहीं झिझकते!

ये वही दलील से महरूम ज़ेहन हैं जो तकद्दुस के मयार अपनी मरज़ी से बदल लेते हैं।

यही लोग कहते हैं: "यारान-ए-पैग़म्बर पर कोई तनक़ीद नहीं कर सकता, चाहे वो एक लमह के लिए ही रसूल (स) के क़रीब रहा हो।" मगर जब इन्हीं के हाथों नबी (स) की बेटी पर ज़ुल्म होता है, तो सब ख़ामोश रहते हैं।

अब्दुल्लाह बिन मुबारक, जो ताबेईन में से हैं, से पूछा गया:

"उमर बिन अब्दुलअज़ीज़ बेहतर हैं या मुआविया?"

उसने कहा: "तुमने बेअदबी की! मुआविया के घोड़े की नाक में जो ग़ुबार गया, वो सौ उमर बिन अब्दुलअज़ीज़ से बेहतर है!"

देखिए कैसा अंधा तअस्सुब है — एक ऐसा शख़्स जो फत्ह-ए-मक्का के बाद मजबूरन मुसलमान हुआ, उसके घोड़े का ग़ुबार भी मुक़द्दस ठहरता है, मगर फातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा, जो नबी (स) की रूह का हिस्सा हैं, उनके घर को "महल-ए-फ़साद" कहा जाता है!

क्या ये ईमान है? या बातिल के दिफ़ा का जुनून?

हज़रत फातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा का क़ियाम महज़ एक एहतिजाज नहीं था, बल्कि विलायत की बाक़ा का एलान था। उन्होंने दुनिया को बताया कि हक़ ख़ामोश नहीं रह सकता। उनका गरिया, उनकी फ़रियाद, उनका ख़ुत्बा — सब विलायत की सदा थे। और यही सदा थी जिससे बातिल लरज़ उठा। जब दलील उनके पास न रही, तो उन्होंने फातिमा (स) की आवाज़ को ख़ामोश करने की कोशिश की। मगर आज चौदह सदियाँ बाद भी ज़हरा (अ) की सदा-ए-हक़ ज़िंदा है, और उनके क़ियाम ने बातिल का चेहरा हमेशा के लिए बेनकाब कर दिया।

सलाम हो उस हस्ती पर, जिसने दलील-ए-हक़ बनकर बातिल की तमाम दलीलों को बातिल कर दिया। सलाम हो फातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा पर — महवर-ए-विलायत, मज़लूमा-ए-तारीख़, और सदा-ए-अबदी-ए-हक़।

लेखकः मौलाना सय्यद मंज़ूर अली नक़वी

शिया उलेमा काउंसिल ऑस्ट्रेलिया के सदर और इमाम जुमा मेलबर्न हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मौलाना सय्यद अबू अल-क़ासिम रिज़वी ने मलाइशिया की मार्कज़ी व कदीम तरीन इमाम बारगाह बाब अल-हिदायत में अय्याम-ए-अज़ा-ए-फातिमिया की मजलिसों से खिताब करते हुए कहा कि जनाब फातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की सीरत दुनिया की तमाम खवातीन के लिए बेहतरीन नमूना-ए-अमल है।

मलाइशिया की ऐतिहासिक इमाम बारगाह बाब अल-हिदायत में अय्याम-ए-अज़ा-ए-फातिमिया की मजलिसें जारी हैं, जिनमें हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मौलाना सय्यद अबू अल-क़ासिम रिज़वी, सदर शिया उलेमा काउंसिल ऑस्ट्रेलिया और इमाम जुमा मेलबर्न "फातिमा की जिंदगी: दुनिया की तमाम महिलाओं के लिए नमूना-ए-अमल" के शीर्षक से संबोधित कर रहे हैं।

मौलाना अबू अल-क़ासिम रिज़वी ने अपने भाषण में ज़ोर देते हुए कहा कि "जनाब फातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की सीरत पर बातचीत करना काफी नहीं है, बल्कि हमें उनकी तालीमात पर अमल करके अपनी दुनिया को जन्नत बनाना चाहिए।"

उन्होंने अफ़सोस का इज़हार करते हुए कहा कि "आज रिश्तों का एहतराम खत्म हो रहा है, तलाकें आम हो गई हैं, हुक़ूक़ पामाल किए जा रहे हैं, फिर भी हम खुद को फातिमी समाज कहते हैं।"

मौलाना ने वज़ाहत की कि "फातिमी समाज वही है जो दीन्दार और जिम्मेदार हो, जहां किसी का हक न पामाल हो। हम फदक की बात करते हैं मगर अपनी बहनों और बेटियों को उनके हकूक़ नहीं देते, ये रवैया फातिमी तर्ज़-ए-जिंदगी के खिलाफ है।"

उन्होंने आखिर में कहा कि "जनाब फातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा पहली शहीदा-ए-राह-ए-विलायत हैं, जिन्होंने अपने अमल और इस्तेक़ामत के ज़रिए मुनाफिक़ों को बेनकाब किया और विलायत के दिफ़ा की लाजवाल मिसाल क़ायम की।"

 

इस्लामी गणतंत्र ईरान की राष्ट्रीय सभा के अध्यक्ष डॉक्टर बाक़िर क़ालीबाफ़ इन दिनों पाकिस्तान की आधिकारिक यात्रा पर हैं।

पाकिस्तान की राष्ट्रीय सभा के अध्यक्ष अयाज़ सादिक़ ने ईरानी संसद के अध्यक्ष मोहम्मद बाक़िर क़ालीबाफ़ से मुलाकात के दौरान ईरान की मिसाइल रक्षा प्रणाली और सैन्य क्षमताओं की सराहना करते हुए कहा कि ईरान ने 'आयरन डोम' की कहानी का अंत कर दिया है, और युद्ध के अंतिम दिन ईरान ने जो कुछ किया, वह इज़राइल के लिए विनाशकारी साबित हुआ।

एक रिपोर्ट के अनुसार, ईरानी संसद के अध्यक्ष मोहम्मद बाक़िर क़ालीबाफ़ आधिकारिक यात्रा पर पाकिस्तान में हैं।

ईरानी संसद के अध्यक्ष की इस यात्रा में पाकिस्तान की राष्ट्रीय सभा और सीनेट के अध्यक्षों और सदस्यों, प्रधानमंत्री मोहम्मद शहबाज शरीफ़ सहित उच्च-स्तरीय राजनीतिक नेताओं के साथ बातचीत शामिल है।

प्रतिनिधिमंडल में फ़दाहुसैन मालिकी, मोहम्मद नूर दहानी, रहमदल बामरी, मेहरदाद गूदरज़वंद और फ़ज़लुल्लाह रंजबर भी मोहम्मद बाक़ेर क़ालीबाफ़ के साथ हैं।

एमडब्ल्यूएम कराची डिवीजन के अध्यक्ष मौलाना सादिक जाफरी ने सूडान में जारी गृहयुद्ध, मानवीय त्रासदी और मजलूम लोगों पर हो रहे भीषण अत्याचारों पर गहरी चिंता और अफसोस जताया है। उन्होंने कहा कि पिछले दो साल से सूडान के विभिन्न शहरों, विशेष रूप से दारफुर और अल-फाशिर में सैन्य गुटों के बीच जारी खूनी संघर्षों ने पूरे देश को तबाही के कगार पर पहुँचा दिया है।

मौलाना सादिक जाफरी ने कहा कि हज़ारों निर्दोष नागरिक, महिलाएं और बच्चे मारे गए हैं या विस्थापित हुए हैं; लाखों लोग भूख, प्यास और बिना चिकित्सा सुविधाओं के शिविरों में जीवन बिताने को मजबूर हैं। अस्पताल,इबादत स्थल और आवासीय क्षेत्र निशाना बनाए जा रहे हैं।

उन्होंने कहा कि यह स्थिति स्पष्ट रूप से मानवाधिकारों, अंतरराष्ट्रीय कानूनों और इस्लामी मूल्यों की स्पष्ट उल्लंघन है।

मौलाना सादिक जाफरी ने कहा कि मजलिस-ए-वहदत-ए-मुस्लिमीन वैश्विक संस्थाओं, विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र, ओआईसी, अफ्रीकी यूनियन और मानवाधिकार संगठनों से मांग करती है कि वे तुरंत युद्धविराम के लिए दबाव डालें और मानवीय आधार पर सहायता के रास्ते खोलें।

उनका कहना था कि निर्दोष नागरिकों के नरसंहार और युद्ध अपराधों की पारदर्शी जांच की जाए, प्रभावित क्षेत्रों में संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में शांति मिशन तैनात किया जाए, ताकि नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके, वैश्विक विवेक को जगाया जाए, ताकि दुनिया सूडान के मजलूम लोगों के साथ खड़ी हो, न कि चुप दर्शक बनी रहे।

उन्होंने कहा कि मजलिस-ए-वहदत-ए-मुस्लिमीन इस बात पर विश्वास रखती है कि दुनिया के किसी भी क्षेत्र में अत्याचार और आक्रामकता के खिलाफ आवाज उठाना ईमान की मांग है, सूडान के मजलूम लोग आज मुस्लिम उम्मा की सामूहिक समर्थन के मुंतज़िर हैं।

हम हर स्तर पर उनकी आवाज बनने और मानवीय सहानुभूति के आधार पर मदद और एकजुटता जारी रखने के संकल्प को दोहराते हैं। हम सूडान के मजलूम लोगों के साथ हैं, इंशाअल्लाह जुल्म के महल एक दिन जरूर लरजेंगे और न्याय की सुबह जरूर होगी।

अमेरिकी दबाव के तहत गूगल ने इज़राइली युद्ध अपराधों से संबंधित 700 से अधिक वीडियो इंटरनेट से हटा दीं, जिनमें पत्रकार शिरीन अबू अक़िला की हत्या की वीडियो भी शामिल थीं।

अमेरिकी टेक कंपनी गूगल पर आरोप लगाया गया है कि उसने फिलिस्तीन के खिलाफ इज़राइली युद्ध अपराधों की दस्तावेजी वीडियो इंटरनेट से हटा दी हैं।

मीडिया स्रोतों के अनुसार, मिडिल ईस्ट स्पेक्टेटर ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में खुलासा किया है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की सरकार के दबाव पर गूगल ने अक्टूबर की शुरुआत से अब तक 700 से अधिक वीडियो हटाई हैं, जिनमें इज़राइली सेना के अपराधों को स्पष्ट रूप से दिखाया गया था।

रिपोर्ट में बताया गया है कि इन हटाई गई वीडियो में अलजजीरा की प्रसिद्ध फिलिस्तीनी मूल की अमेरिकी पत्रकार शिरीन अबू अक़िला की हत्या की फुटेज भी शामिल है। अमेरिकी जांच एजेंसियां इस बात को मानती हैं कि उन्हें इज़राइली सेना ने जानबूझकर निशाना बनाया था।

गूगल ने इज़राइली प्रचार को बढ़ावा देने के लिए 45 मिलियन डॉलर का समझौता भी किया, जिसके तहत गाजा में अकाल के इनकार और ईरान के खिलाफ युद्ध प्रचार से संबंधित विज्ञापनों को प्रमोट किया गया।

रिपोर्ट के अनुसार, गूगल के आंतरिक ईमेल्स से यह बात भी सामने आई है कि कंपनी ने बार-बार इस बात से इनकार किया कि इज़राइली विज्ञापन उनकी नीतियों का उल्लंघन करते हैं, हालांकि इन विज्ञापनों में गाजा की मानवीय तबाही को झुठलाया जा रहा था।

रिपोर्ट के अंत में कहा गया है कि यह कदम अमेरिकी टेक कंपनियों की ओर से इज़राइल की लगातार समर्थन और फिलिस्तीनी लोगों के खिलाफ जारी अत्याचारों पर पर्दा डालने की एक और कोशिश है।

इज़राईली सेना ने गाज़ा के पूर्वी क्षेत्रों पर लगातार हमले करते हुए कई फिलिस्तीनी घरों को तबाह कर दिया, जबकि खान यूनिस और अन-नसीरात भी भारी गोलाबारी की चपेट में आए।

इजरायली कब्जे वाली सेना ने गाजा पट्टी पर हवाई और तोपखाने से हमले जारी रखते हुए पूर्वी गाजा में फिलिस्तीनी नागरिकों के घरों को पूरी तरह से नष्ट कर दिया है।

समाचार एजेंसी शहाब के अनुसार, कब्जाधारी इजरायली तोपखाने ने पिछली रात और आज सुबह पूर्वी खान यूनिस के इलाकों को निशाना बनाया, जबकि इन हमलों के साथ-साथ हवाई बमबारी भी की गई।

जायोनी सैन्य इकाइयों ने पूर्वी गाजा शहर में फिलिस्तीनी घरों को विस्फोटों से उड़ा दिया और तबाही फैलाई, जबकि जायोनी लड़ाकू वाहनों ने अन-नुसेरात के मध्य इलाके की ओर भी फायरिंग की।

इसी तरह, गाजा शहर के अत-तुफ़ाह इलाके के पूर्वी हिस्से में भी कब्जाधारी इजरायली सेना ने कई फिलिस्तीनी घरों को गिरा दिया, जिससे नागरिकों में भारी डर और दहशत फैल गई है।

 ईरान के ख़ुरासान रज़वी प्रांत में वली-ए-फ़क़ीह के प्रतिनिधि आयतुल्लाह सय्यद अहमद अल्मुलहुदा ने कहा कि हज़रत फातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की सीरत, इस्तिकबार के मुक़ाबले में मोमिनाना मज़ाहमत का वाज़ेह और अमली नमूना है, और उम्मत-ए-इस्लामी को अपनी मज़ाहिती हिकमत-ए-अमली इसी मंतिक-ए-जिहाद से अख़ज़ करनी चाहिए।

आयतुल्लाह सय्यद अहमद अल्मुलहुदा ने मशहद-ए-मुक़द्दस में वाक़े जामिया उलूम-ए-इस्लामी रज़वी में अय्याम-ए-फातिमिया की अवसर पर आयोजित मजलिस-ए-अज़ा में ख़िताब करते हुए कहा कि हज़रत फातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की ज़ात तमाम कमालात व फज़ायल का मज़हर है। रसूल-ए-अकरम सल्लल्लाहो अलैहि वा आलेहि वसल्लम ने फ़रमाया कि अगर तमाम नेकियों को एक शख्सियत में समो दिया जाए तो वो फातिमा (सलामुल्लाह अलैहा) होंगी।

उन्होंने कहा कि हज़रत ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा न सिर्फ़ फज़ीलत का मज़हर हैं बल्कि तमाम मोमिनीन ख़ुसूसन मुहिब्बान-ए-अहले बैत अलैहिमुस्सलाम के लिए तर्बियत और रहनुमाई का सरचश्मा हैं।

आयतुल्लाह अल्मुलहुदा ने वाज़ेह किया कि हज़रत ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की जिद्दोजहद का मकसद सिर्फ़ फदक का मुतालिबा नहीं था बल्कि उनका अस्ल हद्फ़ नज़ाम-ए-इमामत को तहरीफ़ से बचाना और क़ियादत को वही के रास्ते पर बाक़ी रखना था। उनके मुताबिक अगर फातिमी क़ियाम का मुहर्रिक सिर्फ़ मादी मफ़ाद होता तो वो ख़ुत्बा-ए-फदक और जानिसाराना मुक़ावमत क़ाबिल-ए-फ़हम न होती।

उन्होंने मज़ीद कहा कि फदक अहले बैत अलैहिमुस्सलाम के लिए एक समाजी और ख़ैराती हैसियत रखता था लेकिन सैय्यदा की जिद्दोजहद का महवर दिफ़ा-ए-विलायत था। उनके नज़दीक इमामत दरअसल वही के तसल्सुल का नज़ाम है, और उम्मत की क़ियादत को अपनी क़ानूनी हैसियत हमेशा इसी वही के रास्ते से हासिल होती है।

आयतुल्लाह अल्मुलहुदा ने आखिर में कहा कि हज़रत फातिमा सलामुल्लाह अलैहा ने अमली तौर पर इस्तेक़ामत दिखाई, अपने मौक़िफ पर डटी रहीं और आख़िरकार शहादत तक सब्र व ससबात का मज़हर किया। यही सिद्दीका ताहिरा की सीरत है जो उम्मत को हर ताग़ूती क़ुव्वत के मुक़ाबले में जिहाद व मज़ाहमत का दरस देती है।