رضوی
इजरायली अख्बार ने ईरान की मिसाइल शक्ति को लोहा माना
एक इजरायली अखबार ने माना है कि ईरान के साथ संभावित नई झड़प सिर्फ समय की बात है, चाहे आज, कल या कुछ दिनों बाद, क्योंकि तेहरान ने न केवल अपने परमाणु कार्यक्रम को सुरक्षित रखा है बल्कि अपने मिसाइल भंडार की नवीनीकरण और विस्तार भी तेजी से जारी रखा हुआ है।
इजरायली स्रोतों ने कहा है कि ईरान और इजरायल के बीच आने वाला युद्ध निश्चित है, खासकर जब यह सबूत मौजूद हैं कि ईरान ने अमेरिकी हमलों के बावजूद अपने अधिकांश परमाणु भंडार को सुरक्षित रखा है।
अमेरिकी रोजनामा न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की अगुवाई में ईरान पर किए गए हमले उतने प्रभावी नहीं थे जितना पहले दावा किया गया था। रिपोर्ट में इजरायली स्रोतों के हवाले से कहा गया कि ईरान ने अपने यूरेनियम के भंडार को गुप्त स्थानों पर स्थानांतरित कर दिया है जबकि मिसाइल बनाने वाली फैक्ट्रियां रात-दिन काम कर रही हैं।
अली वीज़, जो "इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप" में ईरान प्रोजेक्ट के डायरेक्टर हैं, ने कहा कि ईरान इस बार अपनी कार्रवाई अलग तरीके से अंजाम देगा। उनके मुताबिक, आने वाली ईरानी प्रतिक्रिया में लगभग दो हज़ार मिसाइल एक साथ दागे जाएंगे, जून में हुए हमलों के विपरीत जब 12 दिनों में 500 मिसाइल दागे गए थे।
अमेरिकी न्यूज़ नेटवर्क सीएनएन की रिपोर्ट के अनुसार, ईरान ने बैलिस्टिक मिसाइलों का उत्पादन फिर से शुरू कर दिया है। रिपोर्ट में दावा किया गया कि सितंबर के अंत से अब तक ईरान ने चीन से 10 से 12 समुद्री जहाजों पर लगभग 2 हज़ार टन सोडियम परक्लोरेट प्राप्त किया है जो मिसाइल के ईंधन में इस्तेमाल होता है।
रिपोर्ट के मुताबिक, इजरायल की विरोध के बावजूद चीन इन सामग्रियों की आपूर्ति जारी रखे हुए है क्योंकि यह अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों में शामिल नहीं है।
खुफिया अनुमानों के मुताबिक ईरान ने अपने पिछले 2700 मिसाइलों में से आधा भंडार फिर से बना लिया है और नए चरण की तैयारी कर रहा है।
अंतरराष्ट्रीय परमाणु एजेंसी (IAEA) के डायरेक्टर जनरल राफेल ग्रूसी ने फाइनेंशियल टाइम्स से बातचीत में पुष्टि की कि ईरान का अधिकांश संवर्धित यूरेनियम युद्ध के प्रभावों से सुरक्षित है। उनके मुताबिक, ईरान के पास इस समय लगभग 400 किलोग्राम 60 फीसदी शुद्धता वाला यूरेनियम मौजूद है।
इजरायली स्रोतों के मुताबिक, मध्य पूर्व इस समय एक नए तनाव के कगार पर है जो किसी गुप्त परमाणु स्थापना या अचानक मिसाइल हमले से भड़क सकता है।
इज़राईली ड्रोन हमले में कई लेबनानी शहीद, दक्षिणी लेबनान में हिंसा बढ़ी
लेबनान के स्वास्थ्य मंत्रालय ने पुष्टि की है कि देश के दक्षिणी हिस्से में स्थित नबातिये जिले के होमीन अल-फौका गाँव में एक इजरायली ड्रोन द्वारा एक वाहन को निशाना बनाए जाने के परिणामस्वरूप कई लेबनानी नागरिक शहीद हो गए हैं।
इजरायली ड्रोन हमले में कई लेबनानी शहीद हो गए है। यह घटना रविवार को दक्षिणी लेबनान के इलाके होमीन अल-फौका में घटी। लेबनान के स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस घटना की पुष्टि करते हुए बताया कि इजरायली ड्रोन ने होमीन अल-फौका गाँव में एक वाहन को निशाना बनाया।
मीडिया पत्रकारों के मुताबिक, इजरायली ड्रोन ने उक्त वाहन पर तीन मिसाइल दागे थे। इससे पहले आज सुबह भी एक लेबनानी व्यक्ति को इजरायली ड्रोन हमले में अपनी जान से हाथ धोना पड़ा, जब अल-सवाना और खरबा सलम गाँव के बीच एक पिकअप वाहन को तीन मिसाइलों से निशाना बनाया गया।
पिछले दिन भी इजरायली हवाई हमलों में तीन लेबनानी नागरिक शहीद और लगभग छह घायल हुए थे। ये हमले बरअशीत, शबा और बिंत जबील के इलाकों में हुए।
गौरतलब है कि इजरायल नवंबर 2024 में युद्धविराम समझौते की लगातार उल्लंघन कर रहा है, खास तौर पर अधिकृत फिलिस्तीन से सटे सीमावर्ती कस्बों पर लगातार फायरिंंग और दखलंदाजी जारी है। इसके अलावा बक़ा इलाके और बेरूत के दक्षिणी उपनगरीय इलाकों पर भी हमले हो रहे हैं।
इंसाफ का तकाज़ा यह है कि तंज़ीमुल मकातिब की इल्मी खिदमात पूरे हिंदुस्तान में नुमायाँ हैं। मुक़र्ररीन
गोला गंज हिंदुस्तान में इदारा-ए-तंज़ीमुल मकातिब के तहत दो रोज़ा जश्न-ए-विला और वेबिनार की दो निशिस्तें गुज़िशता रोज़ मुनअक़िद हुईं जिन में मुल्क-ए-हिंदुस्तान के मुमताज उलेमा-ए-किराम ने शिरकत की और तंज़ीमुल मकातिब के बानी मौलाना गुलाम अस्करी की इल्मी व दीनी खिदमात को खिराज-ए-अकीदत पेश किया।
गोला गंज हिंदुस्तान में इदारा-ए-तंज़ीमुल मकातिब के तहत दो रोज़ा जश्न-ए-विला और वेबिनार की दो निशिस्तें गुज़िशता रोज़ मुनअक़िद हुईं जिन में मुल्क-ए-हिंदुस्तान के मुमताज उलेमा-ए-किराम ने शिरकत की और तंज़ीमुल मकातिब के बानी मौलाना गुलाम अस्करी की इल्मी व दीनी खिदमात को खिराज-ए-अकीदत पेश किया।
इस मौके पर मौलाना काज़िम मेंहदी उरोज ने खिताब करते हुए कहा कि अगर इंसाफ से देखा जाए तो तंज़ीमुल मकातिब का काम पूरे हिंदुस्तान में सब से ज्यादा मुअस्सिर है। तंज़ीम के बानी दूसरों के लिए काम कर रहे थे, इसी इख्लास की बरकत से उनकी जुबान में असर था।
निशिस्त में मौलाना हैदर अब्बास ने कहा कि इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम की विलादत के दिन तंज़ीमुल मकातिब की बुनियाद रखना इस बात की अलामत है कि इदारा ने तालीम व तरबियत के मिशन को इमाम अलैहिस्सलाम के नक्श-ए-कदम पर आगे बढ़ाया।
मौलाना मोहम्मद रज़ाई (जामिअतुल मुस्तफा अल-आलमिया) ने कहा कि इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम की जिंदगी गम से शुरू हुई, मगर उन्होंने तालीम व तरबियत को तरजीह दी यही पैगाम आज तंज़ीमुल मकातिब आम कर रहा है।
मौलाना सरताज हैदर ने कहा कि मौलाना गुलाम असकरी (अलैहिर रहमा) ने अपनी पूरी जिंदगी इल्म-ए-दीन के फ़रोघ के लिए वक़्फ कर दी, हालांकि उनके दौर में उनसे बड़ा कोई खतीब नहीं था, मगर उन्होंने शोहरत के बजाए खिदमत को तरजीह दी।
प्रोग्राम में तंज़ीमुल मकातिब के सक्रेटरी मौलाना सय्यद सफी हैदर, तंज़ीमुल मकातिब के नाइब सदर मौलाना सय्यद सबीहुल हुसैन, तंज़ीमुल मकातिब के जॉइंट सक्रेटरी मौलाना सय्यद नकी असकरी, मौलाना सय्यद सफदर हुसैन और मौलाना सय्यद हुसैन जाफर वहब और सैयद एजाज़ हुसैन के साथ-साथ दूसरे उलेमा ने शिरकत की।
कुरआन मे महदीवाद (भाग -4)
खुदा ने ज़मीन पर हुकूमत, दीन और मज़हब की श्रेष्ठता और पूर्ण शांति का वादा मोमिनों और नेक लोगों के एक गिरोह से किया है। लेकिन इस गिरोह से मुराद कौन लोग हैं, इस बारे में मुफस्सिरों में मत भेद पाया जाता है।
महदीवाद पर आधारित "आदर्श समाज की ओर" शीर्षक नामक सिलसिलेवार बहसें पेश की जाती हैं, जिनका मकसद इमाम ज़माना (अ) से जुड़ी शिक्षाओ को फैलाना है।
हज़रत महदी (अ) के ज़ुहूर और उनकी विश्वव्यापी क्रांति से जुड़ी कुछ आयते इस प्रकार हैंः
तीसरी आयत:
وَعَدَ اللَّهُ الَّذینَ آمَنُوا مِنْکُمْ وَ عَمِلُوا الصَّالِحاتِ لَیسْتَخْلِفَنَّهُمْ فِی الْأَرْض کَمَا اسْتَخْلَفَ الَّذینَ مِنْ قَبْلِهِمْ وَ لَیمَکِّنَنَّ لَهُمْ دینَهُمُ الَّذِی ارْتَضی لَهُمْ وَ لَیبَدِّلَنَّهُمْ مِنْ بَعْدِ خَوْفِهِمْ أَمْناً یعْبُدُونَنی لا یشْرِکُونَ بی شَیئاً وَ مَنْ کَفَرَ بَعْدَ ذلِکَ فَأُولئِکَ هُمُ الْفاسِقُونَ वआदल्लाहुल लज़ीना आमनू मिंकुम व अमेलुस सालेहाते लयस्तख़लेफ़न्नहुम फ़िल अर्ज़े कमस तख़्लफ़ल लज़ीना मिन क़ब्लेहिम व लयमक्केनन्ना लहुम दीनहोमुल लज़िर तज़ा लहुम व लयबद्देलन्नहुम मिन बादे ख़ौफ़ेहिम अमनन यअबोदूननी ला यशरेकूना बी शैअन व मन कफ़रा बाद ज़ालेका फ़उलाएका होमुल फ़ासेक़ून
खुदा ने आप में से जो ईमान लाए और नेक काम किए, उनसे वादा किया कि वे ज़मीन पर वही हुकूमत कायम करेंगे जैसा पहले के लोगों के साथ किया था। वह उनका दीन जो उनके लिए मंज़ूर है, मज़बूत करेगा और उनके डर को सुरक्षा में बदलेगा ताकि वे मुझ अकेले की ही इबाद करें और मेरे साथ किसी दूसरे को शरीक न ठहराएं। और जो इसके बाद इनकार करे बस वही फा़सिक है। (सूर ए नूर, आयत 55)
इस आयत से पहले की आयतों में अल्लाह और पैग़म्बर की हुकूमत की बात की गई है, और इस आयत में उस आदेश की पूरी व्याख्या दी गई है, जो कि एक वैश्विक हुकूमत है।
इस आयत का मतलब है कि अल्लाह ने अपने नेक और ईमानदार बंदों को तीन बड़ी खुशखबरी दी हैं:
- ज़मीन पर उनकी हुकूमत होगी
- उनका दीन पूरी दुनिया मे फैल जाएगा
- उनके डर और असुरक्षा का अंत हो जाएगा
इसका परिणाम यह होगा कि इस दौर में लोग पूरी आज़ादी के साथ अल्लाह की इबादत करेंगे, उसके आदेशों की पूरी तरह से पालन करेंगे, उसके लिए कोई साझेदार या उसके समान किसी को स्वीकार नहीं करेंगे, और खालिस तौहीद को हर जगह फैलाएंगे।
नुक्ते
1- इस आयत के अनुसार, मुसलमानों से पहले भी ज़मीन पर कुछ लोग सत्ता में थे। ये कौन लोग थे? कुछ मुफस्सेरीन ने हज़रत आदम, हज़रत दाऊद और हज़रत सुलैमान की ओर इशारा किया है, जैसा कि कुरआन में हज़रत आदम के लिए वर्णित है।
إِنِّی جاعِلٌ فِی الْأَرْضِ خَلِیفَة इन्नी जाऐलुन फ़िल अर्ज़े खलीफ़ा
मैं ज़मीन पर एक ख़लीफा बनाऊंगा। (सूर ए बक़रा, आयत 30)
हज़रत दाऊद के लिए कहा
یا داوُدُ إِنَّا جَعَلْناکَ خَلِیفَةً فِی الْأَرْض या दाऊदो इन्ना जाअलनाका ख़लीफ़तन फ़िल अर्ज़े
हे दाऊद! हमने तुम्हें ज़मीन पर अपना ख़लीफा बनाया। (सूर ए साद, 26)
सूर ए नमल की आयत न 16 मे हज़रत सुलैमान भी पैग़म्बर दाऊद के शासन का वारिस और ख़लीफ़ा थे।
लेकिन कुछ मुफस्सिरो जैसे अल्लामा तबातबाई (र) का मानना है कि इस आयत में "الَّذینَ مِنْ قَبْلِهِمْ अल्लज़ीना मिन क़ब्लेहिम" से तात्पर्य पैग़म्बरों की बजाय उन पिछली उम्मतों का है जिनमें ईमान और अच्छे काम थे और जिन्होंने ज़मीन पर हुकूमत की।
कुछ दूसरो का मानना है कि यह आयत बनी इस्राईल की ओर इशारा करती है, जैसा कि उनके यकीन और अच्छे कामों के कारण, पैग़म्बर हज़रत मूसा (अ) के आने पर, फ़िरऔन की ताक़त टूटने के बाद उन्हें ज़मीन की हुकूमत मिली थी। जैसे कि कुरआन करीम मे आया हैः
وَ أَوْرَثْنَا الْقَوْمَ الَّذینَ کانُوا یسْتَضْعَفُونَ مَشارِقَ الْأَرْضِ وَ مَغارِبَهَا الَّتی بارَکْنا فیها व औरसनल क़ौमल लज़ीना कानू यस्तज़ऐफ़ूना मशारिकल अर्ज़े व मग़ारेबहल लती बारकना फ़ीहा
हमने उस क़ौम को जो दबाए गए थे, पूरब और पश्चिम के उन क्षेत्रों की हुकूमत दी, जिन्हें हम ने बरकत वाला बनाया था। (सूर ए आअराफ़ 137)
और यह भी उनके बारे मे कहा गया है
وَ نُمَکِّنَ لَهُمْ فِی الْأَرْض व नोमक्केना लहुम फ़िल अर्ज़ "हमने उन दबाए गए लोगों (जो मोमिन और कमजोर समझे जाते थे) को उस जमीन के पूरब और पश्चिम के हिस्सों का वारिस बनाया, जिसमें हमने बरकत की थी।"
2- यह इलाही वादा किन लोगो से है?
इस आयत में अल्लाह ने एक समूह के नेक और मोमिन लोगों को ज़मीन पर हुकूमत, धर्म की बढ़त, और पूरी सुरक्षा का वादा किया है, लेकिन इस समूह की पहचान को लेकर मुफ़स्सिरो में मतभेद है।
कुछ मुफ़स्सिरो का मानना है कि यह आयत हज़रत इमाम महदी (अ) की हुकूमत की ओर इशारा करती है, जहां दुनिया का पूरब और पश्चिम उनके शासन के अधीन हो जाएगा, धर्म दुनिया भर में फैलेगा, भय और असुरक्षा खत्म हो जाएगी, और सभी लोग बिना किसी को अल्लाह का शरीक करार दिए बिना केवल अल्लाह की इबादत करेंगे। (तफ़सीर अलमीज़ान, भाग 15, पेज 218)
बिना किसी संदेह के यह आयत प्रारम्भिक मुसलमानों के साथ-साथ हज़रत महदी (अ) की न्यायपूर्ण और सार्वभौमिक हुकूमत को भी दर्शाती है। आम मुस्लिम मत, चाहे वे शिया हों या सुन्नी, यह मानते हैं कि वह पूरी ज़मीन को न्याय और क़ानून से भर देंगे और वे इस आयत के सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं, हालांकि इसका मतलब केवल एक स्थान तक सीमित नहीं है।
कुछ लोगों का कहना है कि 'अर्ज़' शब्द का मतलब पूरी धरती है और यह केवल इमाम महदी (अ) की हुकूमत तक सीमित नहीं हो सकता क्योंकि 'کما استخلف कमस तख़लफ़ा' (जैसे कि उन्होंने पहले लोगों को दिया) से यह पता चलता है कि पहले की हुकूमत निश्चित रूप से पूरी धरती तक सीमित नहीं थी।
इसके अलावा, आयत की शाने नुज़ूल इस बात का संकेत है कि कम से कम पैगम्बर के समय मुसलमानों के लिए इस हुकूमत का एक नमूना मौजूद था।
तमाम पैग़म्बरों की मेहनत और लगातार प्रचार-प्रसार का फल, जैसे कि एक पूर्णता प्राप्त शासन जिसमें एकता, पूरी सुरक्षा और सच्चे इबादत के नमूने मौजूद हों, तब पूरा होता है जब हज़रत महीद (अ) का ज़ुहूर होगा। (तफ़सीर नमूना , भाग 14, पेजेज 530-532)
जैसा कि बताया गया है, यह व्याख्या आयत के विशेष उदाहरण तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका मतलब उस पूर्ण उदाहरण को दर्शाना है।अबू बसीन ने इमाम सादिक़ (अ) से रिवायत बयान की है कि उन्होंने इस आयत के संदर्भ में फरमाया:
نَزَلَتْ فِی اَلْمَهْدِیِّ عَلَیْهِ اَلسَّلاَمُ नज़लत फ़िल महदी अलैहिस सलामो
यह आयत कायम अज्जलल्लाहो तआला फ़रजहुश शरीफ़ और उनके साथियों के लिए नाजिल हुई है। (शेख तूसी, किताब अल ग़ैबा, पेज 177)
अल्लामा तबातबाई ने लिखा है: "यह स्वच्छ और पवित्र समाज, जिसकी विशेषताएँ नैतिकता और पवित्रता से भरी हुई हैं, अब तक दुनिया में कभी भी मौजूद नहीं हुआ है और न ही तब से जब से पैगंबर (स) रेसालत पर मबऊस हुए, ऐसी कोई समाज अस्तित्व में नही आया है। अगर इसका कोई वास्तविक उदाहरण होगा, तो वह हज़रत महदी (अ) के समय मे होगा। क्योंकि पैगंबर (स) और अहले बैत की मुतावातिर हदीस इस बात का संकेत हैं। यह रिवायत तब सही होगी जब हम इस आयत के संदर्भ में नेक समाज को समझें, न कि सिर्फ हज़रत महदी (अ) को।"
फिर वह आगे कहते हैं: "आप कहेंगे: इस सिद्धांत के अनुसार, इसका क्या मतलब है कि यह आयत अपने नुज़ूल के समय "उन लोगों को संबोधित है जो विश्वास करते हैं और नेक काम करते हैं", जबकि महदी उस दिन वहां नहीं थे (न तो वह स्वयं थे और न ही उनके समकालीनों में से कोई)?"
इस सवाल का जवाब यह है कि प्रश्नकर्ता ने व्यक्तिगत खिताब और सार्वजनिक खिताब में फ़र्क़ नहीं किया। क्योंकि बात दो तरह हो सकती है: कुछ लोगों को सीधे तौर पर संबोधित करना, जहां केवल उन व्यक्तियों की विशेषताएँ देखी जाएं। यहाँ पर वह सिर्फ उन पर ही लागु होता है, ना कि दूसरों पर। लेकिन दूसरी स्थिति में, वे लोग एक समूह के रूप में देखे जाते हैं जिनके पास कुछ खास गुण होते हैं। इस परिस्थिति में व्यक्ति का नाम जरूरी नहीं होता, बल्कि उनकी विशेषताओं को देखा जाता है, और ये बात दूसरे समान समूहों पर भी लागू होती है।
यह आयत उसी दूसरी किस्म के खिताब में आती है, जिसे हमने ऊपर समझाया था, और कुरआन में ज्यादातर बातें इसी प्रकार की होती हैं, जहां या तो मुमिनों को संबोधित किया जाता है या काफ़िरों को। (तफ़सीर अल मीज़ान, भाग 15, पेज 220)
मज्मा उल बयान में इस आयत के संदर्भ में कहा गया है कि मुफ़स्सिर इस बात पर मतभेद करते हैं कि "الذین آمنوا مِنکُم अल लज़ीना आमनू मिंकुम" कौन हैं मत भेद पाया जाता है, लेकिन अहले बैत (अ से रिवायत है कि इसका मतलब है महदी जो आल-मुहम्मद से हैं।
अय्याशी ने अली बिन अल-हसन से वर्णन किया है कि जब इस आयत की तिलावत की गई, तो उन्होंने कहा: अल्लाह की कसम! ये हमारे अहले-बैत (अ) के शिया हैं, जिनके लिए खुदा अपना यह वादा एक व्यक्ति के माध्यम से पूरा करेगा, और वह व्यक्ति इस उम्मत का महदी होगा। वे पैग़म्बर (स) की हदीस के अनुसार हैं: अगर इस दुनिया में एक दिन रह जाए, तो वह दिन इस हद तक बढ़ा दिया जाएगा जब तक कि मेरा नाम रखने वाला व्यक्ति, मेरी उम्मत से निकलेगा। वे ज़मीन को न्याय से भर देंगा जैसे वह अत्याचार और अन्याय से भरी होगी। इस जैसी रिवायत अबी जाफर और अबी अब्दुल्लाह ने भी बयान की हैं। (मज्मा उल बयान, भाग 7, पेज 52)
श्रृंखला जारी है ---
इक़्तेबास : "दर्स नामा महदवियत" नामक पुस्तक से से मामूली परिवर्तन के साथ लिया गया है, लेखक: खुदामुराद सुलैमियान
कुरआन मे महदीवाद (भाग -3)
क़ुरआन करीम की कुछ आयतें इस बात की ओर संकेत करती हैं कि कमज़ोर (मुस्तज़ऐफ़ीन) लोगों को ज़ालिम और घमण्डी लोगों पर जीत मिलेगी, और अंत में दुनिया उन्हीं योग्य और अच्छे लोगों की होगी।
महदीवाद पर आधारित "आदर्श समाज की ओर" शीर्षक नामक सिलसिलेवार बहसें पेश की जाती हैं, जिनका मकसद इमाम ज़माना (अ) से जुड़ी शिक्षाओ को फैलाना है।
क़ुरआन की कुछ आयतें हज़रत इमाम महदी (अ) और उनकी विश्वव्यापी क्रांति से जुड़ी हैं।
दूसरी आयत:
وَنُریدُ أنْ نَمُنّ عَلَی الّذینَ اسْتُضْعِفُوا فِی الارْضِ وَنَجْعَلَهُمْ أئمّْة وَنَجْعَلَهُمُ الْوارِثینَ व नोरीदो अन नमुन्ना अलल लज़ीनस तुज़्ऐफ़ू फ़िल अर्ज़े व नज्अलोहुम आइम्मतन व नज्अलोहुमुल वारेसीन
और हम चाहते हैं कि ज़मीन के दबे-कुचले लोगों (मुस्तज़ऐफ़ीन) पर कृपा करें, उन्हें इमामों का दर्जा दें और उन्हें ज़मीन का वारिस बना दें। (सूरा क़सस, आयत 5)
इमाम अली (अ) के नहजुल बलाग़ा और अन्य इमामों से रिवायत की गई बातों के अनुसार, यह आयत इस बात की ओर इशारा करती है कि अंत में कमज़ोर और सताए गए लोग ज़ालिमों पर जीत हासिल करेंगे और दुनिया का शासन योग्य और नेक लोगों के हाथ में होगा।
यह जो आयत है, वह केवल बनी-इज़राईल (यहूदियों) से सम्बन्धित किसी छोटे निजी कार्यक्रम के बारे में नहीं है, बल्कि यह हर जमाने और हर दौर के लिए एक आम और सार्वभौमिक नियम को बयान करती है। यह आयत हक और सच्चाई की जीत तथा कुफ्र और बुराई पर ईमान की सफलता की खुशखबरी देती है। इसका पहला और ज़ाहिर उदाहरण पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद (स) और उनके साथियों की हुकूमत है, जो इस्लाम के ज़ुहूर के बाद बनी।
सबसे बड़ा और आख़िरी उदाहरण, पूरी दुनिया में हक और इंसाफ़ की हुकूमत का क़ायम होना है, जो हज़रत इमाम महदी (अ) के हाथों होगा।
यह आयत उन आयतों में से है, जो साफ़ तौर पर एक ऐसे हुकूमत के ज़ुहूर का वादा और बशारत देती है। इसीलिए अहलेबैत (अ) ने भी अपनी तफ़सीर में, इसी बड़ी और आख़िरी क्रांति की तरफ इशारा किया है। इमाम अली (अ) ने 'नहजुल बलाग़ा' में इसका उल्लेख किया है।
لَتَعْطِفَنَّ الدُّنْیا عَلَینَا بَعْدَ شِمَاسِهَا عَطْفَ الضَّرُوسِ عَلَی وَلَدِهَا وَ تَلَا عَقِیبَ ذَلِکَ "وَ نُرِیدُ أَنْ نَمُنَّ عَلَی الَّذِینَ اسْتُضْعَفُوا فِی الْأَرْضِ وَ نَجْعَلَهُمْ أَئِمَّةً وَنَجْعَلَهُمُ الْوارِثِینَ लातअतेफ़न्नद दुनिया अलैना बादा शेमासेहा अत्फ़ज़ ज़रूसे अला वलदेहा वतला अक़ीबा ज़ालेका व नोरीदो अन नमुन्ना अलल लज़ीनस तुज़्ऐफ़ू फ़िल अर्ज़े व नजअलोहुम आइम्मतन व नज्अलोहोमुल वारेसीन
दुनिया हमारी तरफ उस समय मुड़ती है जब वह बागी और जिद्दी हो चुकी होती है — जैसे ऊँट दूध देने वाले से दूध छीन लेता है और अपने बच्चे के लिए बचा कर रखता है... फिर इसके बाद यह आयत पढ़ी जाती है: وَنُرِیدُ أَنْ نَمُنَّ عَلَی الَّذِینَ की तिलावत की। (हिकमत 209)
इमाम अली (अ) ने एक दूरसी हदीस में इस आयत की व्याख्या करते हुए फ़रमाया:
هُمْ آلُ مُحَمَّدٍ یبْعَثُ اللَّهُ مَهْدِیهُمْ بَعْدَ جَهْدِهِمْ فَیعِزُّهُمْ وَ یذِلُّ عَدُوَّهُمْ हुम आलो मुहम्मदिन यबहसुल्लाहो महदीयोहुम बादा जहदेहिम फ़यइज़्ज़ोहुम व यज़िल्लो अदुव्वहुम
वे (लोग) आले मुहम्मद हैं, जिनके महदी को अल्लाह उनके संघर्षों और कठिनाइयों के बाद भेजता है, वह उन्हें शक्ति देता है और उनके दुश्मनों को नीचा दिखाता है। (शेख़ तूसी, किताब अल-ग़ैबा, पेज 184)
श्रृंखला जारी है ---
इक़्तेबास : "दर्स नामा महदवियत" नामक पुस्तक से से मामूली परिवर्तन के साथ लिया गया है, लेखक: खुदामुराद सुलैमियान
इमाम सज्जाद (अ) की विलादत और आज का युवा, किरदार साज़ी का नया सफ़र
१५ जमादिल अव्वल का मुबारक दिन तारीख़ के सफ़हात पर एक नूरी चराग़ की मानिंद है। यह वह दिन है जिसने इंसानियत के सफ़र में इबादत की लतीफ़ खुशबू, दुआ की पाकीज़गी और किरदार के वक़ार का इज़ाफ़ा किया। इसी सआत में आग़ोश-ए-ज़हरा के घराने में इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अलैहिस सलाम) की विलादत हुई। वह हस्ती जिसकी ज़िंदगी ने कर्बला के दर्द को हिकमत-ए-इलाही के पयाम में बदल दिया और टूटे हुए मआशरे को सब्र, रज़ा और अख़लाक़ की नई बुनियाद अता की।
१५ जमादिल अव्वल का मुबारक दिन तारीख़ के सफ़हात पर एक नूरी चराग़ की मानिंद है। यह वह दिन है जिसने इंसानियत के सफ़र में इबादत की लतीफ़ खुशबू, दुआ की पाकीज़गी और किरदार के वक़ार का इज़ाफ़ा किया। इसी सआत में आग़ोश-ए-ज़हरा के घराने में इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अलैहिस सलाम) की विलादत हुई। वह हस्ती जिसकी ज़िंदगी ने कर्बला के दर्द को हिकमत-ए-इलाही के पयाम में बदल दिया और टूटे हुए मआशरे को सब्र, रज़ा और अख़लाक़ की नई बुनियाद अता की।
इमाम सज्जाद (अलैहिस सलाम) की विलादत सिर्फ़ एक तारीखी वाक़ेआ नहीं है। यह हर दौर के नौजवान को किरदारसाज़ी के नए सफ़र की दावत देती है—वह सफ़र जिसकी मंज़िल इंसानियत की तामीर, अख़लाक़ की बुलंदी और रूह की बेदारी है।
विलादत-ए-सज्जाद (अलैहिस सलाम): कर्बला के पस-ए-मनज़र में एक नूरी आग़ाज़
इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अहैलिस सलाम) की विलादत ऐसे ख़ानदान में हुई जो ईमान, अद्ल और वफ़ा का सरचश्मा था। आप की तर्बियत सैय्यदा ज़ैनब (अलैहिस सलाम), इमाम हुसैन (अलैहिस सलाम) और इमाम हसन (अलैहिस सलाम) जैसे अज़ीम किरदारों के माहौल में हुई। यही माहौल नौजवानी की वह पहली दरसगाह साबित होता है जिसमें किरदार की बुनियाद रखी जाती है।
जब किसी शख़्सियत की विलादत नूरानी हो, नसब पाकीज़ा हो, मशाहिदा कर्बलायी हो और किरदार अज़ीम हो तो उसकी हयात सिर्फ़ फ़र्द की नहीं, बल्कि ज़माने की दरसगाह बन जाती है।
इमाम सज्जाद (अलैहिस सलाम): नौजवानों के लिए किरदारसाज़ी का कामिल नमूना
नौजवानी ख़्वाहिशात, तवानाई और इमकानात का ज़माना है। इसी मरहले में इंसान की शख्सियत या तो बुलंदी हासिल करती है या सतहीत में खो जाती है। इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अलैहिस सलाम) की ज़िंदगी नौजवानों के लिए यह वाज़ेह करती है कि अस्ल अज़मत न तो जिस्म की ताक़त में है, न ज़बान के हुनर में, न सिर्फ़ तालीम के अतीए में, और न दौलत के दिखावे में। हक़ीक़ी अज़मत किरदार, बसीरत, इस्तिक़लाल और बातिनी पाकीज़गी में है।
इमाम (अलैहिस सलाम) का अंदाज़ नौजवान के अंदर मौजूद सलाहियतों को सिम्त देता है और उसकी शख्सियत को निखारता है।
किरदारसाज़ी का पहला स्तंभ: बंदगी और ख़ुदा से रिश्ता
इमाम सज्जाद (अलैहिस सलाम) सैय्यदुस्साजेदीन कहलाए। उनका सज्दा सिर्फ़ जिस्मानी मशक़्क़त या रोज़मर्रा के वज़ाइफ़ का नाम नहीं था। उनकी इबादत ख़ुज़ू से ख़ुदी की तामीर, रियाज़त से किरदार की पाकीज़गी और दुआ से बसीरत की बेदारी का नाम थी।
सहीफ़ा सज्जादिया नौजवान को बताता है कि दुआ महज़ माँगने का अमल नहीं बल्कि रूह और फ़िक्र को बुलंद अहदाफ़ के लिए तैयार करने का ज़रिया है। आज के नौजवान के लिए सफ़र यहीं से शुरू होता है — ख़ालिक़ की मआरिफ़त, दिल की हया और सोच की शफ़ाफ़ियत से।
किरदारसाज़ी का दूसरा स्तंभ: इल्म, फ़हम और बसीरत
इमाम सज्जाद (अलैहिस सलाम) का ज़माना फ़िक्री इन्तिशार का ज़माना था। आपने इबादत की आड़ में एक अ़मीक़ इल्मी इंक़लाब बरपा किया। सहीफ़ा सज्जादिया की दुआओं में तौहीद का फ़लसफ़ा, अख़लाक़ का निज़ाम, मआशरती हुक़ूक़, समाजी ज़िम्मेदारियाँ, मआशी तक़सीम और इंसानी अदब सब मौजूद हैं।
आज का नौजवान मुख़्तलिफ आवाज़ों और बेशुमार इत्तिलाआत के हुजूम में मुंतशिर होता है। ऐसे माहौल में इमाम सज्जाद (अलैहिस सलाम) का पैग़ाम यह बनता है कि तालीम हासिल करो मगर फ़हम के साथ, सुनो मगर शउर के साथ, देखो मगर बसीरत के साथ। इल्म जब किरदार का हिस्सा बन जाए तो इंसान भी मजबूत होता है और मआशरा भी।
किरदारसाज़ी का तीसरा स्तंभ: अख़लाक़-ए-सज्जाद (अलैहिस सलाम) और इंसानी वक़ार
इमाम सज्जाद (अलैहिस सलाम) के अख़लाक़ का हर बाब नौजवान के लिए रौशनी का चराग़ है। दुश्मन के साथ हिल्म, ग़ुलामों पर मेहरबानी, यतीमों व फ़क़ीरों की रातों में ख़ुफ़िया मदद, वालिदैन के हुक़ूक़ में बे-मिसाल एहतराम, बाज़ार में ग़लती करने वाले ताजिर को दरगुज़र, और ज़ालिम के सामने वक़ार के साथ खड़ा रहना — यह सब बताता है कि अख़लाक़ कमज़ोरी नहीं बल्कि ताक़त है। अख़लाक़ ही वह दरवाज़ा है जिससे मआशरे के दिल खुलते हैं और शख्सियत निखरती है।
किरदारसाज़ी का चौथा स्तंभ: सब्र, इस्तिक़ामत और हौसला
कर्बला के बाद जो कुछ इमाम सज्जाद (अलैहिस सलाम) पर गुज़रा, वह तारीख़ की सबसे सख़्त आज़माइशों में से था — कैद, भूख, ज़ख़्म, तज़हीक, मेहनत। मगर आपने सब्र का दामन नहीं छोड़ा। यही सबक़ नौजवान को मुश्किलात में क़ुव्वत बख़्शता है।
इम्तेहान आए तो हिम्मत न हारो। नाकामी हो तो गिर कर नहीं बल्कि उठकर देखो। रास्ता रुके तो क़दम बदल दो मगर सफ़र जारी रखो। लोग तंज़ करें तो उनकी बात नहीं, अपने हदफ़ को देखो। हालात इंसान को नहीं बदलते — इंसान हालात को बदलता है।
किरदारसाज़ी का पाँचवाँ स्तंभ: मआशरती ख़िदमत और ज़िम्मेदारी
इमाम सज्जाद (अलैहिस सलाम) रातों को मदीना के फ़ुक़रा की मदद किया करते थे। कोई नहीं जानता था पर आसमान गवाह था कि सज्जाद (अलैहिस सलाम) इबादत के साथ ख़िदमत का भी सबक़ दे रहे हैं। आज का नौजवान जब अपने माहौल में कमज़ोर तलबा की मदद, बीमारों की तीमारदारी, समाजी बेदारी, दीनी ख़िदमत और तालीमी रहनुमाई का किरदार अदा करता है, तो गोया इमाम सज्जाद (अलैहिस सलाम) के रास्ते पर चल रहा होता है। ख़िदमत वह ज़बान है जो नौजवान को दिलों में महबूब बना देती है।
आज का नौजवान और किरदारसाज़ी का नया सफ़र
दुनिया की तेज़ रफ़्तार ज़िंदगी नौजवान को ज़हनी इन्तिशार, अख़लाक़ी दबाव, समाजी तनहाई और रूहानी कमज़ोरी की तरफ़ ढकेलती है। इमाम सज्जाद (अलैहिस सलाम) की विलादत हमें यह समझाती है कि अगर नौजवान अपने अंदर इबादत की पाकीज़गी, इल्म की रौशनी, अख़लाक़ की नरमी और ख़िदमत की गर्मी पैदा कर ले, तो वह न सिर्फ़ अपनी ज़िंदगी बल्कि पूरे मआशरे की राह बदल सकता है।
यही वह नया सफ़र है जिसकी दावत आज का दिन देता है — एक ऐसा सफ़र जिसकी मंज़िल इंसान के बाहर नहीं बल्कि उसके अंदर है। जहां जीत दूसरों पर नहीं, अपने नफ़्स पर है। जहां बुलंदी शोहरत में नहीं, बल्कि किरदार में है।
इमाम सज्जाद (अलैहिस सलाम) की विलादत नौजवानों को याद दिलाती है कि हक़ीक़ी अज़मत किरदारसाज़ी में है — वह किरदार जो सज्दे की रौशनी से चमकता हो, वह बसीरत जो दुआ से परवान चढ़ती हो, वह इल्म जो ख़िदमत में ढल जाए और वह अख़लाक़ जो दिलों को जोड़ने की सलाहियत रखता हो।
आज का नौजवान अगर इस रास्ते का इन्तिख़ाब कर ले तो उसका सफ़र कोई नया कर्बला नहीं लाता, बल्कि एक नई मदीना-ए-हिदायत बसाता है।
लेखकः मौलाना अक़ील रज़ा तुराबी
मोमिन की खुशी और ग़म अहले बैत अलैहेमुस्सलाम के अनुसरण में है
मुंबई की ख़ोजा शिया इसना अशरी जामा मस्जिद में हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मौलाना सय्यद अहमद अली आबिदी ने नमाज़े जुमा के ख़ुत्बे में कहा कि मोमिन की खुशी और ग़म अहले बैत अलैहेमुस्सलाम के अनुसरण में होते हैं, और हमारी फ़त्ह उस अज़ान और नमाज़ के सिलसिले में है जो फ़त्ह-ए-हुसैनी का ऐलान है।
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, मुंबई / ख़ोजा शिया इसना अशरी जामा मस्जिद पालागली मुंबई में नमाज़े जुमा 7 नवम्बर 2025 को हुज्जतुल-इस्लाम वल मुस्लेमीन मौलाना सय्यद अहमद अली आबिदी के नेतृत्व में अदा की गई।
मौलाना सय्यद अहमद अली आबिदी ने इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम की हदीस शरीफ़ “हमारे शिया हमारी खुशी में खुश होते हैं और हमारे ग़म में ग़मगीन होते हैं।” बयान करते हुए फ़रमाया: हमारी न अपनी कोई खुशी है और न ही अपना कोई ग़म है। हम अहले बैत अलैहिमुस्सलाम की खुशी में खुश होते हैं और उनके ग़म में ग़मगीन होते हैं। कल हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा का यौमे शहादत था इसलिए हमने ग़म मनाया, आज इमाम ज़ैनुल आबिदीन अलैहिस्सलाम का यौमे विलादत है लिहाज़ा हम खुश हैं।
मौलाना सय्यद अहमद अली आबिदी ने अपने उस्ताद आलिमे दीन अल्लामा सय्यद वसी मोहम्मद (आ) का तज़किरा करते हुए फ़रमाया: जब उनकी वालिदा का इंतक़ाल हुआ और हम सब दफ़्न के बाद वापस आए तो वह रात किसी मासूम की विलादत की रात थी। लिहाज़ा मरहूम उस्ताद ने फ़रमाया “आज हम ग़म नहीं मनाएँगे, आज हम मजलिस नहीं करेंगे बल्कि आज की रात महफ़िल होगी जिसमें मैं खुद भी पढ़ूँगा।” क्योंकि हमारे ग़म और खुशी को आले मोहम्मद अलैहिमुस्सलाम की खुशी और ग़म पर कोई फौक़ियत नहीं है। हम उनके ताबे हैं, वे जब खुश होंगे तो हम भी खुश होंगे, और जब वे ग़मगीन होंगे तो हम भी सोगवार होंगे।
इमाम ज़ैनुल आबिदीन अलैहिस्सलाम के दौर-ए-इमामत के पर-आशूब माहौल का ज़िक्र करते हुए मौलाना सैय्यद अहमद अली आबिदी ने फ़रमाया: वह ऐसा पर-आशूब दौर था कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत हो चुकी थी, मक्का और मदीना की हरमतें पामाल हो चुकी थीं, ज़ुल्म का हर तरफ बोलबाला था। लेकिन इमाम ज़ैनुल आबिदीन अलैहिस्सलाम ने ऐसे माहौल में भी दीन की इस तरह तबलीग़ और तहफ़्फ़ुज़ फ़रमाया कि आज दीन हम तक पहुँच गया।
अबदुल्लाह बिन जुबैर का ज़िक्र करते हुए मौलाना सैय्यद अहमद अली आबिदी ने कहा कि यह वही अबदुल्लाह है जो अपने बाप की गुमराही का सबब बना। उसको आले मोहम्मद अलैहिमुस्सलाम से इतनी दुश्मनी थी कि यह जुमा के ख़ुत्बों में अहले बैत अलैहिमुस्सलाम का नाम तक नहीं लेता था। इसलिए ऐसी औलाद से पनाह माँगनी चाहिए जो अपने वालिदैन की गुमराही का सबब बने।
मौलाना सय्यद अहमद अली आबिदी ने आगे फ़रमाया: यही अबदुल्लाह बिन जुबैर ने इमाम ज़ैनुल आबिदीन अलैहिस्सलाम से वाक़ेआ-ए-कर्बला के बाद पूछा: कौन जीता? तो इमाम ज़ैनुल आबिदीन अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया: जब अज़ान का वक़्त हो और अज़ान दी जाए और नमाज़ पढ़ी जाए तो समझ जाना कि हम आले मोहम्मद (अलैहिमुस्सलाम) जीत गए हैं। यह अज़ान हमारी फ़तेह का ऐलान है, यानी यह अज़ान फ़तेहे हुसैनी का ऐलान है।
ग़ज़्ज़ा में मानवीय त्रासदी तेज, सहायता संगठनों ने इजरायली नाकाबंदी हटाने का आह्वान किया
विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफपी) के अनुसार, फिलहाल रोज़ाना औसतन 145 इमदादी ट्रक ग़ज़्ज़ा में दाख़िल हो रहे हैं, हालाँकि समझौते के अनुसार यह संख्या कम से कम 600 ट्रक होनी चाहिए।
ग़ज़्ज़ा में सर्दी ने पहले से मौजूद मानवीय त्रासदी को और ज़्यादा संगीन बना दिया है। अंतर्राष्ट्रीय सहायता संगठन मुसलसल मांग कर रहे हैं कि इसराईल फ़ौरी तौर पर ग़ज़्ज़ा पर लगी पाबंदियाँ खत्म करे ताकि इमदादी सामान की पहुंच बिना रुकावट मुमकिन हो सके। हज़ारों बेघर फलस्तीनी इस वक़्त ख़ैमों में सख़्त खाद्य सामाग्री की किल्लत और बुनियादी सहूलतों की कमी से दोचार हैं।
संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) की वक्ता अबीर अतीफ़ा के अनुसार, “हम वक़्त के ख़िलाफ़ दौड़ में हैं, सर्दी क़रीब है और लोग भूख से तड़प रहे हैं।” उनका कहना है कि युद्ध विराम के बावजूद इमदाद की मिक़दार ज़रूरत के मुकाबले में निहायत कम है। ग़ज़्ज़ा अधिकारियी के अनुसार, युद्ध विराम के बाद रोज़ाना औसतन 145 ट्रक इमदादी सामान लेकर दाख़िल हो रहे हैं, जबकि निर्धारित समझौते के तहत यह तादाद कम से कम 600 ट्रक होनी चाहिए।
उधर अरब मीडिया के अनुसार, हमास ने एक इसराईली क़ैदी की लाश इंटरनेशनल कमेटी ऑफ़ रेड क्रॉस के ज़रिए इसराईल के हवाले कर दी है। इसराईल के प्रधानमंत्री के कार्यलाय ने इसकी पुष्टि करते हुए बताया कि अब भी छः मजीद क़ैदियों की लाशें ग़ज़्ज़ा में मौजूद हैं। इसराईली हुकूमत का कहना है कि जब तक तमाम लाशें वापस नहीं मिलतीं, इंसानी इमदाद की आज़ादाना फराहमी के वादे पर अमल नहीं किया जाएगा।
इसी दौरान इसराईली फौज ने केंद्रीय ग़ज़्ज़ा में दो फलस्तीनियों को इस आरोप में शहीद कर दिया कि वे युद्ध विरीम की सीमा के क़रीब पहुँच गए थे। इसराईल का दावा है कि हमास ने मुआहदे की ख़िलाफ़वर्ज़ी की है, जबकि हमास का कहना है कि तबाहशुदा इलाक़ों में लाशों की तलाश मुश्किल है और इसराईल खुद भारी मशीनरी और इमदादी साज़ो-सामान के दाख़िले की इजाज़त नहीं दे रहा।
मानवधिकार संगठनो ने ख़बरदार किया है कि अगर इमदादी रास्ते फ़ौरी तौर पर न खोले गए तो ग़ज़्ज़ा में अकाल और बीमारियों का ख़तरा संगीन सूरत इख़्तियार कर सकता है।
बहरैनी बलों द्वारा अल देराज़ शहर की घेराबंदी
बहरैन सरकार ने लगातार 57वें हफ्ते भी अल देराज़ क्षेत्र में केंद्रीय जुमआ की नमाज के आयोजन पर रोक लगा दी। आंतरिक मंत्रालय से जुड़े सशस्त्र बलों और अर्ध-सैन्य बलों के कर्मियों ने शहर को पूरी तरह से घेर कर शिया नागरिकों को इमाम सादिक मस्जिद में जुमआ की नमाज अदा करने से मना कर दिया।
बहरैन सरकार ने लगातार 57वें हफ्ते भी अद्दीराज क्षेत्र में केंद्रीय जुमा की नमाज के आयोजन पर रोक लगा दी। आंतरिक मंत्रालय से जुड़े सशस्त्र बलों और अर्ध-सैन्य बलों के कर्मियों ने शहर को पूरी तरह से घेर कर शिया नागरिकों को इमाम सादिक मस्जिद में जुमआ की नमाज अदा करने से मना कर दिया।
7 नवंबर, 2025 की सुबह से ही अद्दीराज के आसपास बख्तरबंद वाहनों, सशस्त्र कर्मियों और सुरक्षा बलों की बड़ी संख्या में तैनाती कर दी गई ताकि किसी भी सार्वजनिक विरोध प्रदर्शन को रोका जा सके। यह कदम इस आशंका के तहत उठाए गए कि नागरिक धार्मिक घेराबंदी, गाजा के लोगों के साथ एकजुटता जताने और इजरायल के साथ संबंधों को सामान्य करने के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर सकते हैं।
देश के विभिन्न क्षेत्रों में बहरैनी लोगों ने जोरदार विरोध प्रदर्शन करते हुए सरकार द्वारा धार्मिक स्वतंत्रताओं पर लगाई गई पाबंदियों और शिया मुसलमानों के धार्मिक प्रतीकों को सीमित करने की नीतियों की निंदा की। प्रदर्शनकारियों ने स्पष्ट किया कि वे धार्मिक मामलों पर सरकारी दखल और लंबे समय से जारी सांप्रदायिक दबाव को किसी भी हालत में स्वीकार नहीं करेंगे।
प्रतिभागियों ने राजनीतिक कैदियों की तत्काल रिहाई और जेलों में कैदियों पर जारी व्यवस्थित उत्पीड़न की नीति के खात्मे की मांग की। उन्होंने केंद्रीय जेल "जो" में शिया मुसलमानों की आस्थाओं का अपमान और समुदाय विरोधी व्यवस्थित कार्रवाइयों की भी कड़ी निंदा की।
विरोध प्रदर्शनकारियों ने गाजा के लोगों पर इजरायली घेराबंदी और भूखमरी की भी कड़े शब्दों में निंदा की, और बहरीन सरकार से मांग की कि वह इजरायल के साथ संबंध तुरंत तोड़े, कब्जे वाले राज्य के राजदूत को देश से निकाले और मनामा में इजरायली दूतावास बंद करे।
विरोध प्रदर्शन में शामिल प्रतिभागियों ने अंत में लेबनान, गाजा, यमन और इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान में इस्लामिक प्रतिरोध धुरी का पूर्ण समर्थन करने की घोषणा की और हिजबुल्लाह के शहीद महासचिव सैय्यद हसन नसरुल्लाह के प्रति अपनी वफादारी दोहराई।
पश्चिमी जीवन शैली ने पारिवारिक व्यवस्था को नष्ट कर दिया
जामिअतुल मुस्तफा अल आलमिया के उस्ताद और ईरान के प्रसिद्ध धार्मिक विद्वान हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन डॉ. नासिर रफीई ने कहा कि पारिवारिक जीवन शैली और आपसी प्यार ही इस्लामी समाज की मजबूती की नींव है, जबकि पश्चिमी जीवन शैली ने दुनिया भर में पारिवारिक व्यवस्था को विनाश के कगार पर पहुँचा दिया है।
जामिअतुल मुस्तफा अल-आलमिया के तरीख के प्रिंसिपल और ईरान के प्रसिद्ध धार्मिक विद्वान हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन डॉ. नासिर रफीई ने कहा कि पारिवारिक जीवन शैली और आपसी प्यार ही इस्लामी समाज की मजबूती की नींव है, जबकि पश्चिमी जीवन शैली ने दुनिया भर में पारिवारिक व्यवस्था को विनाश के कगार पर पहुँचा दिया है।
उन्होंने खुमैन शहर में अय्याम-ए-फातिमिया की चौथी रात की मजलिस को संबोधित करते हुए कहा कि यह दिन रहमत और मग़फिरत के हैं और हमें चाहिए कि हज़रत फातिमा जहरा सल्लल्लाहो अलैहा की शफाअत के तलबगार रहें। उन्होंने कहा कि आज के समाज को "फातिमी जीवन शैली" के अध्ययन और उसे व्यवहार में लाने की सख्त जरूरत है।
हुज्जतुल इस्लाम रफीई ने स्पष्ट किया कि हज़रत जहरा सल्लल्लाहो अलैहा इबादत, घर की जिम्मेदारी, समाज, अर्थव्यवस्था और राजनीति के मैदान में पूरा इस्लामी नमूना हैं। इस्लाम ने परिवार को सुकून और प्यार का केंद्र बनाया है जबकि पश्चिम ने आज़ादी और आधुनिकता के नाम पर इस व्यवस्था को कमजोर कर दिया है, जिसका नतीजा तलाक, बेराहवी और औलाद से बेरगबी के रूप में सामने आया है।
उन्होंने कुरान की कई आयतों जैसे आयत-ए-तत्हीर, मुबाहिला, मावद्दत, सूरह कौसर और सूरह दहर का हवाला देते हुए कहा कि ये सभी आयतें अहल-ए-बैत अलैहिमुस्सलाम के परिवार की अज़मत और पाकीज़गी को साफ करती हैं और बताती हैं कि परफेक्ट पारिवारिक व्यवस्था इसी घराने से सीखी जा सकती है।
हौज़ा के शिक्षक ने कहा कि ज़ुबानी और अमली मुहब्बत, तआवुन, हया और एहतराम, सादगी, माफी और दरगुजर, और शुक्रगुज़ारी वो तत्व हैं जो परिवार को कायम रखते हैं, और ये सभी खूबियाँ हज़रत अली अलैहिस्सलाम और हज़रत जहरा सल्लल्लाहो अलैहा की ज़िंदगी में नुमायाँ हैं। उन्होंने आगे कहा कि अगर पति-पत्नी आपसी प्यार, कुर्बानी, सब्र और सादा जीवन शैली को अपनाएँ तो खुदावंद-ए-आलम उनकी ज़िंदगी में बरकत और सुकून नाज़िल करता है।
अंत में हुज्जतुल इस्लाम रफीई ने जोर देकर कहा कि फातिमी परिवार ही मिसाली इस्लामी समाज का परफेक्ट नमूना है, और जो शख्त सुकून और इज़्ज़त भरी ज़िंदगी चाहता है, उसे इसी जीवन शैली को अपनी अमली ज़िंदगी का हिस्सा बनाना चाहिए।













