رضوی
अमेरिका के खिलाफ इस्तेकामत ही ईरान के साथ दुश्मनी की असली वजह
ईरान के पूर्वी अज़रबाइजान प्रांत में वली-ए-फकीह के प्रतिनिधि और तबरेज़ के इमाम-ए-जुमआ हुज्जतुल-इस्लाम वल-मुस्लिमीन अहमद मोत्तहेरी असल ने कहा कि इस्लामी व्यवस्था की दृढ़ता और स्वतंत्रतापसंद नीति ही वास्तव में वैश्विक अहंकारी ताकतों की दुश्मनी की मूल वजह है।
तबरेज़ के इमाम-ए-जुमआ ने कृषि मंत्री ग़ुलामरज़ा नूरी से मुलाकात में कहा कि हज़रत आदम (अ.स.) को सबसे पहला काम जिसकी शिक्षा फरिश्ते जिब्राईल ने दी, वह कृषि थी, जिससे स्पष्ट होता है कि मानव जीवन की शुरुआत ही भोजन की उपलब्धता से जुड़ी हुई है।
उन्होंने पैगंबर-ए-इस्लाम (स.अ.व.) का कथन बयान किया,ऐ अल्लाह! हमारी रोटी और रोज़गार को बंद न कर, क्योंकि हमारी इबादत इसी के सहारे है और फरमाया कि यही सच्चाई सरकारों की जिम्मेदारी को स्पष्ट करती है कि कोई भी व्यक्ति भूखा न रहे।
हुज्जतुल-इस्लाम वल-मुस्लेमीन अहमद मोहतरी-असल ने कहा कि जिहाद-ए-किशावरज़ मंत्रालय चूंकि आम लोगों की अर्थव्यवस्था से सीधे जुड़ा हुआ है, इसलिए हमेशा जनता का ध्यान और आलोचना का केंद्र रहता है।
उन्होंने पवित्र कुरआन की आयत
«وَ تَوَاصَوْا بِالْحَقِّ وَ تَوَاصَوْا بِالصَّبْرِ»
और एक-दूसरे को सच्चाई और सब्र की सलाह देते रहो) का हवाला देते हुए कहा कि सच बोलने के साथ-साथ धैर्य भी जरूरी है, लेकिन अफसोस आज धैर्य की सीख को कमजोरी समझा जाता है।
उन्होंने इस्लामी क्रांति की भावना की ओर इशारा करते हुए कहा कि ईरानी राष्ट्र ने जागरूकता के साथ क्रांति की और वह जानता था कि स्वतंत्रता और अहंकारी ताकतों का सामना करने में मुश्किलें आएंगी। अहंकारी ताकतों ने कभी दया नहीं दिखाई, जैसा कि आज फिलिस्तीन और गाजा में मासूम बच्चों के कत्लेआम से स्पष्ट है। इमाम ख़ुमैनी (र.ह.) का यह कथन कि अमेरिका बड़ा शैतान है, आज दिन के उजाले की तरह स्पष्ट हो चुका है।
तबरीज़ के इमाम-ए-जुमआ ने कहा कि ईरान ने इसी बड़े शैतान के सामने डटकर दृढ़ता दिखाई, और यही दृढ़ता दुश्मनी की असली वजह है। उन्होंने कहा कि दुश्मन हर संभव तरीके से ईरानी राष्ट्र को कमजोर करने की साजिश करता है, खासतौर पर भोजन के क्षेत्र में।
उन्होंने आगे कहा कि हाल ही में युद्ध के दिनों में जन सामान्य की शांति की एक बड़ी वजह यह थी कि देश में खाद्य आपूर्ति में कोई व्यवधान नहीं आया। दुश्मनों की कोशिश के बावजूद आज ईरान में भोजन और कृषि उत्पादों की भरमार है, जो सरकार और निजी क्षेत्र की ईमानदार कोशिशों का नतीजा है।
अंत में उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि अगर कभी धन तो हो लेकिन भोजन न हो तो यही असली खतरा है। सौभाग्य से आज ईरान में खाद्य सुरक्षा कायम है, और यही दुश्मन की सारी साजिशों के खिलाफ सबसे मजबूत हथियार है।
सय्यदा फातिमा जहरा स.अ.की सीरत को उजागर करना उम्मत की सामूहिक जिम्मेदारी है
हौज़ा ए इल्मिया के प्रमुख आयतुल्लाह अली रज़ा आराफी ने घोषणा की है कि मराजय ए इकराम हौज़ा ए इल्मिया की सुप्रीम काउंसिल और धार्मिक केंद्रों के समर्थन और समन्वय से, दूसरे फातिमी दिनों (अय्याम-ए-फातिमिया) में तब्लिग़ के लिए, हौज़ा ए इल्मिया के उच्च स्तरीय कोर्सेज (सुतूह-ए-आली) और दर्स-ए-ख़ारिज सहित सभी विशेषज्ञता केंद्र 29 जमादिल-अव्वल से 7 जमादिस-सानी 1447 हिजरी तक बंद रहेंगें।
हौज़ा ए इल्मिया के प्रमुख आयतुल्लाह अली रज़ा आराफी ने घोषणा की है कि मराजय ए इकराम हौज़ा ए इल्मिया की सुप्रीम काउंसिल और धार्मिक केंद्रों के समर्थन और समन्वय से, दूसरे फातिमी दिनों (अय्याम-ए-फातिमिया) में तब्लिग़ के लिए, हौज़ा ए इल्मिया के उच्च स्तरीय कोर्सेज (सुतूह-ए-आली) और दर्स-ए-ख़ारिज सहित सभी विशेषज्ञता केंद्र 29 जमादिल-अव्वल से 7 जमादिस-सानी 1447 हिजरी तक बंद रहेंगें।
हज़रत फातिमा ज़हेरा (सल्लल्लाहु अलैहा के शोक दिवसों के अवसर पर जारी एक बयान में उन्होंने कहा कि सिद्दीक़ा-ए-ताहिरा सल्लल्लाहु अलैहा के नाम और चरित्र को जीवित रखना और उनके जीवन-तरीके को दुनिया के सामने पेश करना हम सभी की जिम्मेदारी है।
आयतुल्लाह आराफी ने कहा कि हज़रत ज़हेरा सल्लल्लाहु अलैहा ने अपने चमकदार चरित्र से मानवता को जीवन के वास्तविक अर्थ और ईश्वरीय जीवन-शैली सिखाई। आज की दुनिया, विशेष रूप से महिलाओं, युवाओं और इस्लामी परिवारों को, आधुनिक अज्ञानता के हंगामों में उनके आदर्श चरित्र की सख्त जरूरत है।
उन्होंने जोर देकर कहा कि इस्लामी क्रांति द्वारा पाली-पोसी गई महिलाओं की उल्लेखनीय उपलब्धियों को दुनिया के सामने पेश किया जाए और मौजूदा कमियों और कमजोरियों को गंभीरता से दूर किया जाए।
आयतुल्लाह आराफी के अनुसार, इस्लामी समाज में पवित्र,और पाकीज़ा परिवार ही पश्चिमी मॉडल का सबसे अच्छा विकल्प हैं, जिसे बुद्धिमत्ता, साहस और समझदारी के साथ पेश करना जरूरी है।
उन्होंने आगे कहा कि आज दुनिया में सत्य और असत्य के बीच बौद्धिक और सांस्कृतिक युद्ध जारी है, और ऐसे में उलेमा की जिम्मेदारी है कि वह ईश्वरीय दायित्व का निर्वाह करते हुए प्रचार, जागरूकता और धार्मिक अंतर्दृष्टि के माध्यम से समाज को विचलन से बचाएं।
ईरान के हौज़ा ए इल्मिया के प्रमुख ने विलायत, मरजइयत और उम्मत की नेतृत्व शक्ति को धर्म और मिल्लत की महानता का स्तंभ बताते हुए कहा कि ईरानी राष्ट्र, युवा पीढ़ी और महिलाएं इस्लामी क्रांति की प्रतिष्ठा और दृढ़ता की वास्तविक वाहक हैं।
उन्होंने उलेमा, इमाम-ए-जुमआ व जमाअत, धार्मिक व सांस्कृतिक संस्थानों और मीडिया से आग्रह किया कि वे समन्वय और सामूहिक प्रयास के माध्यम से धर्म के प्रचार और नई पीढ़ी की शिक्षा में यद-ए-वहीदा की तरह काम करें।
अंत में, आयतुल्लाह आराफी ने देश के सभी जिम्मेदार अधिकारियों पर जोर दिया कि वे जनता की कठिनाइयों के समाधान, कार्यप्रणाली में सुधार और सामाजिक समस्याओं के निवारण के लिए गंभीर कदम उठाएं और लोगों की सेवा को अपनी स्थायी प्राथमिकता बनाएं।
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प्राचीन ईरान, चीन, मिस्र और भारत में महिलाओं का जीवन
प्राचीन भारत में औरतों को मासिक धर्म के दौरान नजिस और पलीद समझा जाता था, और उनके जिस्म या उनके इस्तेमाल की हुई चीज़ों को छूना भी नजिस होने का बाइस माना जाता था। उस ज़माने में औरत को न मुकम्मल इंसान समझा जाता था और न ही महज़ हैवान, बल्कि उसे एक ऐसी मख़लूक़ तसव्वुर किया जाता था जो दोनों के दरमियान है — बे-हक़, दूसरों पर मुनहसिर, और हमेशा मर्दों की सरपरस्ती व निगरानी में रहती थी, जिसे ज़िंदगी के किसी भी मरहले पर ख़ुदमुख्तियारी हासिल नहीं थी।
तफ़्सीर-ए-अलमीज़ान के लेखक, मरहूम अल्लामा तबातबाई (र) सूरा बक़रा की आयात 228 से 242 के ज़ेरे बयान में “इस्लाम और दीगर अक़वाम व मज़ाहिब में औरत के हक़ूक़, शख़्सियत और समाजी मुक़ाम” पर तफ़सीली चर्चा की है। सिलसिले का तीसरा भाग नीचे दिया गया है:
मुतमद्दिन अक़वाम में औरत का मुक़ाम: चीन, ईरान, मिस्र और हिंदुस्तान
अल्लामा (र) लिखते हैं कि “मुतमद्दिन अक़वाम” से मुराद वो क़ौमें हैं जो मुनज़्ज़म रसूम व रवाज और मूरूसी आदतों के तहत ज़िंदगी गुज़ारती थीं, अगरचे इनके ये क़वानीन किसी आसमानी किताब या क़ानूनसाज़ इदारे पर मबनी नहीं थे। ऐसी क़ौमों में चीन, ईरान, मिस्र और हिंदुस्तान शामिल थे।
इन तमाम अक़वाम में औरत के बारे में एक बात मुस्तरक थी:
औरत को किसी क़िस्म की आज़ादी या ख़ुदमुख़्तियारी हासिल नहीं थी — न अपनी मर्ज़ी में, न अपने आमाल में।
ज़िंदगी के तमाम मआमलात में वह मर्द के ज़ेरे फ़रमान थी। वह किसी काम का ख़ुद फ़ैसला नहीं कर सकती थी और न ही उसे मुआशरती उमूर (जैसे हुकूमत, क़ज़ावत या किसी और समाजी मैदान) में कोई हक़ हासिल था।
औरत पर ज़िम्मेदारियाँ, मगर हक़ नहीं
अगरचे औरत को कोई हक़ नहीं दिया गया था, मगर उस पर मर्दों जैसी सारी ज़िम्मेदारियाँ डाल दी गई थीं।
वह खेती-बाड़ी, मेहनत-मज़दूरी, लकड़ियाँ काटने और दीगर कामों की पाबंद थी। इसके साथ घर के तमाम उमूर और बच्चों की देखभाल भी उसी के ज़िम्मे थी।
उसे शोहर की हर बात और हर ख़्वाहिश के सामने इताअत करनी लाज़िम थी।
हाँ, इतना ज़रूर था कि मुतमद्दिन अक़वाम में औरत को कुछ हद तक बेहतर ज़िंदगी हासिल थी, क्योंकि वो ग़ैर मुतमद्दिन क़ौमों की तरह औरत को क़त्ल नहीं करते थे, न उसे खाने की चीज़ समझते थे, और न पूरी तरह मलकियत से महरूम रखते थे।
औरत कुछ हद तक मलकियत रख सकती थी, मिसाल के तौर पर विरासत या इज़्दिवाजी इख़्तियार, मगर उसकी ये आज़ादी भी हक़ीक़ी नहीं थी; तमाम फ़ैसले आख़िरकार मर्द के ताबे होते थे।
तअद्दुद-ए-इज़दवाज और समाजी इम्तियाज़
इन मुआशरों में मर्दों को ला-महदूद तादाद में बीवियाँ रखने की आज़ादी थी। मर्द जब चाहे किसी औरत को तलाक़ दे सकता था, मगर औरत को ये हक़ नहीं था।
शोहर के मरने के फ़ौरन बाद मर्द नई शादी कर लेता था, लेकिन औरत शोहर की वफ़ात के बाद न निकाह कर सकती थी और न आज़ादाना मुआशरत रख सकती थी।
अकसर औरतों को घर से बाहर मर्दों से मेलजोल की भी इजाज़त नहीं थी।
क़ौमी रसूम और औरत के लिए विशेष नियम
हर क़ौम ने अपने जगहगीर और समाजी हालात के मुताबक औरत से मुतअल्लिक ख़ास रस्में बना रखी थीं।
ईरान में:
ईरान में तबक़ाती फर्क़ बहुत नुमायां था। आला तबक़े की औरतों को कभी-कभार हुकूमत या सल्तनत में हिस्सा लेने का हक़ मिलता था।
उनमें ये रस्म भी थी कि वो अपने क़रीबी महरम, मसलन भाई या बेटे से भी शादी कर सकती थीं, लेकिन निचले तबक़े की औरतों को ऐसा कोई हक़ हासिल न था।
चीन में:
चीन में निकाह को ख़ुदफ़रोशी की एक सूरत समझा जाता था। औरत जब शादी करती तो गोया अपनी पूरी आज़ादी बेच देती थी।
वहाँ की औरतें ईरानी औरतों की निस्बत ज़्यादा बे-इख़्तियार थीं।
वो विरासत से महरूम थीं, और यहाँ तक कि अपने शोहर या बेटों के साथ एक ही दस्तरख़्वान पर बैठने की भी इजाज़त नहीं थी।
कुछ मौक़ों पर दो या ज़्यादा मर्द एक ही औरत से शादी कर लेते थे, और वह औरत उन सब की ख़िदमत व ज़रूरतें पूरी करती थी।
अगर उससे बच्चा पैदा होता तो आम तौर पर उसे उसी मर्द का बेटा समझा जाता जिससे उसकी शक्ल मिलती-जुलती होती।
हिंदुस्तान में औरत की हैसियत:
हिंदुस्तान में औरत की हालत और भी अफ़सोसनाक थी। वहाँ यह अक़ीदा था कि औरत, शोहर के जिस्म का एक हिस्सा है।
इसीलिए शोहर के मरने के बाद औरत के लिए दुबारा शादी हराम समझी जाती थी, बल्कि रवाज यह था कि औरत को भी शोहर की लाश के साथ ज़िंदा जला दिया जाता था।
अगर कोई औरत ज़िंदा रह भी जाती तो सारी ज़िंदगी ज़िल्लत और तन्हाई में गुज़ारती।
हिंदुस्तान में हाइज़ (मासिक धर्म) की हालत में औरत को नापाक और पलीद समझा जाता था।
उसके कपड़े, बर्तन और वो चीज़ें जिन्हें वह छू ले, सब नापाक मानी जाती थीं।
नतीजा: औरत — न इंसान, न हैवान
अल्लामा तबातबाई (र) के क़ौल में, इन अक़वाम में औरत की हैसियत कुछ इस तरह थी कि वह न पूरी इंसान समझी जाती थी न पूरी हयवान।
बल्कि वो एक दरमियानी मख़लूक़ थी — ऐसी हस्ती जो ख़ुद कोई हक़ नहीं रखती थी, बल्कि दूसरों की ख़िदमत के लिए पैदा हुई थी।
औरत का मुक़ाम एक नाबालिग़ बच्चे की तरह था, जो इंसानों की ख़िदमत तो कर सकता है मगर ख़ुद आज़ाद नहीं होता।
फर्क़ सिर्फ़ इतना था कि बच्चा जवां होने पर आज़ादी पा लेता था, मगर औरत सारी उम्र किसी न किसी की ज़ेरे विलायत रहती थी — कभी बाप की, कभी शोहर की और कभी बेटे की।
(जारी है...)
स्रोत: तरजुमा तफ़्सीर अल–मीज़ान, भाग 2, पेज 395
हज़रत फातेमा स.ल. के मकतब के अनुयायी शहीद और अत्याचार के खिलाफ डटे रहने के प्रतिमान हैं
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन नासिर रफीई जो एक धर्मशास्त्र और विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हैं, ने सावेह के शहीदों की स्मृति सभा में जोर देकर कहा कि हज़रत फातिमा ज़हेरा (स.अ.) शहादत के केंद्र और प्रतिरोध का प्रतीक हैं। उन्होंने कहा कि शहीदों ने फातिमा के मकतब से प्रेरणा लेकर बलिदान और नेतृत्व के प्रति समर्पण की भावना को जीवित रखा हैं।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन नासिर रफीई जो एक धर्मशास्त्र और विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हैं,उन्होने सावेह काउंटी के शहीदों की स्मृति सभा में जोर देकर कहा कि हज़रत फातिमा ज़हेरा (स.अ.) शहादत के केंद्र और प्रतिरोध का प्रतीक हैं। उन्होंने कहा कि शहीदों ने फातिमा के मकतब से प्रेरणा लेकर बलिदान और नेतृत्व के प्रति समर्पण की भावना को जीवित रखा।
उन्होंने कहा कि फातिमा (स.अ.) इस्लाम के इतिहास में प्रतिरोध और नेतृत्व का आधार स्तंभ हैं। शहीदों ने फातिमा ज़हेरा स.ल.के स्कूल से सीख लेकर समाज में बलिदान की संस्कृति को पुनर्जीवित किया है।
इस धर्मशास्त्र के प्रोफेसर ने अमीरूल मोमिनीन हज़रत अली (अ.स.) के इस कथन का उल्लेख किया कि पैगंबर की उम्मत के दो स्तंभ ले लिए गए पैगंबर और फातिमा (स.अ.)। उन्होंने कहा कि इन दो स्तंभों के खोने के बाद इमाम अली (अ.स.) के धैर्य और मौन की अवधि शुरू हुई और सत्य के मार्ग में प्रतिरोध की संस्कृति का निर्माण हुआ।
उन्होंने कहा कि फातमिया के दिनों में शहीदों की स्मृति सभाओं का आयोजन नेतृत्व के स्कूल, सत्य की रक्षा और अत्याचार के खिलाफ डटे रहने की पुनर्व्याख्या का एक अवसर है, जिसके शहीद सच्चे अनुयायी थे।
हुज्जतुल इस्लाम वाल मुस्लिमीन रफीई ने पवित्र कुरान में "फलाह"की अवधारणा को भी समझाया और तकवा (धर्मपरायणता), तवस्सुल (अल्लाह के निकट लाने वाले साधनों का सहारा) और जिहाद को मनुष्य के मोक्ष के तीन कारक बताए।
उन्होंने आगे शहीद हाजी कासिम सुलेमानी की वसीयतनामा का उल्लेख किया और इस शहीद की पांच स्थायी आध्यात्मिक पूंजियां बताईं: नेतृत्व की समझ, मुजाहिदीन के साथ साथ चलना, हज़रत फातिमा (स.अ.) के मार्ग पर चलना और इमाम हुसैन (अ.स.) पर आंसू बहाना।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन नासिर रफीई ने अंत में जोर देकर कहा,आज जिहाद का मैदान सैन्य क्षेत्र तक सीमित नहीं है, बल्कि सांस्कृतिक, मीडिया, आर्थिक और साइबर क्षेत्र भी जिहाद के मुख्य अखाड़े हैं और सभी का कर्तव्य है कि दुश्मन के दबाव के खिलाफ दृढ़ता और स्थिरता बनाए रखें।
हज़रत ज़हेरा स.अ.की रज़ा और ग़ज़ब का अल्लाह से संबंधित होना उनके महान स्थान का प्रमाण है
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन हबीबुल्लाह फरहज़ादेह ने कहा,पैगंबर ए इस्लाम स.अ.व. ने फरमाया: यदि सारी सुंदरता, सौंदर्य और पूर्णता को एक व्यक्तित्व में एकत्रित कर दिया जाए, तो वह फातिमा ज़हेरा होंगी बल्कि फातिमा सुंदरता और सौंदर्य से भी ऊपर हैं क्योंकि वह सभी अच्छाइयों का स्रोत हैं।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन हबीबुल्लाह फरहजाद ने हरम हज़रत मासूमा (स.अ.) में फातिमिया के दिनों के अवसर पर संबोधन करते हुए कहा, यदि हम चाहते हैं कि हमें हज़रत फातिमा (स.अ.) की शफाअत प्राप्त हो, तो हमें अपने जीवन और कार्यों को ऐसा बनाना चाहिए जिससे उनकी खुशी हासिल हो।
उन्होंने हज़रत फातिमा (स.अ.) को दुनिया की सभी महिलाओं में अद्वितीय और बेमिसाल बताते हुए कहा,हालांकि बीबी (स.अ.) नबी या इमाम नहीं हैं, लेकिन ज्ञान, तक़्वा, इस्मत साहस और पवित्रता जैसे सभी गुण जो एक मासूम में होते हैं, आपके व्यक्तित्व में मौजूद हैं।
उन्होंने पवित्र कुरान और हदीसों में वर्णित हज़रत ज़हरा (स.अ.) के फज़ाइल का उल्लेख करते हुए कहा, पैगंबर ए इस्लाम (स.अ.व.) ने फरमाया कि यदि सारी सुंदरता, सौंदर्य और पूर्णता को एक व्यक्तित्व में एकत्रित कर दिया जाए, तो वह फातिमा होंगी; बल्कि फातिमा सुंदरता और सौंदर्य से भी ऊपर हैं, क्योंकि वह सभी अच्छाइयों का स्रोत हैं।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन फरहजाद ने शिया विद्वानों जैसे हज़रत आयतुल्लाह साफी गुलपायगानी, आयतुल्लाह बहाउद्दीनी, आयतुल्लाह फाज़िल लंकरानी और अन्य मरजा की कथनों को उद्धृत करते हुए कहा,हज़रत ज़हरा (स.अ.) की प्रसन्नता और क्रोध अल्लाह की प्रसन्नता और क्रोध से संबंधित है और यही उनके महान स्थान का प्रमाण है।
उन्होंने आगे कहा, फातिमिया के दिनों में भी उसी तरह सक्रिय रहना चाहिए जैसे ग़दीर के दिनों में सक्रियता देखी गई थी और हर मोमिन को अपने नफ्स से सवाल करना चाहिए मैंने हज़रत ज़हरा (स.अ.) के लिए क्या किया है?
हुज्जतुल इस्लाम फरहजाद ने कहा, नज़्र और इताम ,परचम लगाना, मजलिस और अज़ादारी का प्रबंध करना, मौकिब (जुलूस समूह) और सबील लगाना, जुलूसों में भाग लेना आदि, ये सभी शफाअत के रास्ते और हज़रत की प्रसन्नता का कारण हैं। जो व्यक्ति हज़रत ज़हरा (स.अ.) के लिए कदम उठाता है, अल्लाह, पैगंबर ए इस्लाम (स.अ.व.) और अहलेबैत के इमाम (अ.स.) उससे प्रसन्न होते हैं।
उन्होंने अंत में हदीस ए कसा की महानता पर जोर देते हुए कहा,आयतुल्लाह बहजत कहा करते थे कि हदीस ए कसा के वाक्य मोजिज़ा हैं। यदि कोई व्यक्ति अकेला भी इस हदीस को पढ़े तो फरिश्ते हाज़िर होते हैं और उसकी जरूरतें पूरी की जाती हैं। हदीस ए कसा अल्लाह की क़ुरबत और मुश्किलों के हल का सबसे अच्छा साधन है।
शांति के दुश्मन अपने नापाक इरादों में कभी कामयाब नहीं हो सकते: मौलाना सैयद अबुल कासिम रिज़वी
शिया उलमा कौंसिल ऑस्ट्रेलिया के सदर और इमाम-ए-जुमा मेलबर्न, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मौलाना सैय्यद अबुल क़ासिम रिज़वी ने दिल्ली धमाके की सख़्त अल्फ़ाज़ में मज़म्मत करते हुए कहा है कि यह बुज़दिलाना काररवाई मुल्क के अम्न व इस्तिहकाम पर हमला है। उन्होंने मुतास्सिरा ख़ानदानों से हमदर्दी का इज़हार करते हुए कहा कि हिंदुस्तान की तरक़्क़ी और भाईचारे के सफ़र को कोई ताक़त नहीं रोक सकती।
मेलबर्न / शिया उलमा कौंसिल ऑस्ट्रेलिया के अध्यक्ष और मेलबर्न के इमाम जुमा हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मौलाना सैय्यद अबुल क़ासिम रिज़वी ने दिल्ली में होने वाले हालिया धमाके की सख़्त अल्फ़ाज़ में पुरज़ोर मज़म्मत की है।
उन्होंने अपने बयान में कहा कि इस अफ़सोसनाक वाक़ए में क़ीमती जानों का नुक़सान हुआ, जिस पर वह गहरे दुख और अफ़सोस का इज़हार करते हैं। उन्होंने कहा कि हम इस आज़माइश के वक़्त में मरने वालों के अहल-ए-ख़ाना के साथ हैं।
मौलाना रिज़वी ने कहा कि यह बुज़दिलाना काररवाई मुल्क के अम्न व इस्तिहकाम पर हमला है। अम्न के दुश्मन यह बात जान लें कि वह अपने नापाक अजाइम में कभी कामयाब नहीं हो सकते। हिंदुस्तान की तरक़्क़ी, खुशहाली और भाईचारे के इस सफ़र को कोई ताक़त नहीं रोक सकती।
उन्होंने कहा कि जो अनासिर मुल्क की फ़ज़ा को नफ़रत, तशद्दुद और बदअमनी से ज़हर आलूदा करना चाहते हैं, वह दरअस्ल हिंदुस्तान के इत्तेहाद और हमआहंगी पर हमला آور हैं। हालांकि हमारा अज़ीम वतन हमेशा से फ़िर्क़ावाराना हमआहंगी, आपसी मोहब्बत, एहतिराम और रवादारी का मज़हर रहा है, और यही इसकी असल ताक़त और ख़ूबसूरती है।
मौलाना सय्यद अबुल क़ासिम रिज़वी ने आखिर में इस अज़्म का इआदा किया कि “हम सब को मिल कर अम्न, भाईचारे और इंसानियत के पैग़ाम को मजीद मजबूती देनी होगी, ताकि ऐसे गिनौने वाक़े कभी कामयाब न हो सकें।”
ग्रेटर इस्राईल योजना ग़ज़्ज़ा नरसंहार से ज़्यादा ख़तरनाक हैं
हमास के नेता उसामा हमदान ने चेतावनी दी कि सबसे ख़तरनाक हमला ग़ज़्ज़ा में हो रही तबाही नहीं, बल्कि वह बयान है जो नेतन्याहू ‘ग्रेटर इस्राईल’ की योजना के बारे में दे रहा है।
हमास के वरिष्ठ नेता उसामा हमदान ने अपने ताज़ा बयान में कहा कि 7 अक्टूबर फ़िलिस्तीनी जनता और ज़ायोनी शासन दोनों के इतिहास में एक ऐतिहासिक मोड़ था, जिसने क्षेत्रीय समीकरणों को बदल दिया।
हमदान ने कहा कि ज़ायोनी शासन का मक़सद फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध को झुकाना था लेकिन दो साल की जंग में एक भी फ़िलिस्तीनी मुजाहिद ने सफ़ेद झंडा नहीं उठाया, हथियार नहीं डाले और न ही लड़ाई से पीछे हटा।
उन्होंने कहा अतिक्रमणकारियों का मक़सद प्रतिरोध को तोड़ना था, लेकिन फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध अब भी मज़बूती से खड़ा है।
हमदान के अनुसार, युद्धविराम समझौते की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि उसके पहले क़दम में ही युद्ध के अंत की घोषणा की गई जो ज़ायोनी उद्देश्यों के बिल्कुल विपरीत है।
उन्होंने कहा कि कई बार ग़ज़्ज़ा में युद्धविराम पर समझौता हुआ, लेकिन हर बार कब्ज़ाधारियों ने उसे तोड़ दिया। हमदान ने फ़िलिस्तीनी जनता की दृढ़ता पर ज़ोर देते हुए कहा कि दो साल की जनसंहारक जंग के बावजूद फ़िलिस्तीनियों ने अपने वतन में रहने के अधिकार को व्यवहारिक रूप से साबित किया।
शर्म अलशेख़ समझौते को उन्होंने प्रारंभिक समझौता बताते हुए कहा कि यह अभी पूरा नहीं है; इसके तीन चरण हैं, जिनमें से केवल पहला पूरा हुआ है।
हमदान ने पश्चिमी देशों और अमेरिका की नीति पर टिप्पणी करते हुए कहा कि “इन दोनों का साझा निष्कर्ष यह है कि ग़ज़्ज़ा पर जारी हमला अब खुद ज़ायोनी शासन के लिए भारी नुकसान का कारण बन रहा है।
अंत में उसामा हमदान ने चेतावनी दी कि सबसे ख़तरनाक हमला ग़ज़्ज़ा में हो रही तबाही नहीं, बल्कि वह बयान है जो नेतन्याहू ‘ग्रेटर इस्राईल’ की योजना के बारे में दे रहा है।
इजरायल गज़्ज़ा में दवाओं के प्रवेश में रुकावट डाल रहा है
संयुक्त राष्ट्र से जुड़े स्रोतों ने कहा है कि इजरायली गाज़ा में दवाओं के प्रवेश में अब भी बाधा डाल रहा हैं।
यूनिसेफ की फिलिस्तीन में प्रवक्ता ने अल जज़ीरा के साथ एक साक्षात्कार में कहा कि गाजा में मानवीय सहायता का वितरण गंभीर समस्याओं का सामना कर रहा है। पोषण संबंधी पूरक बहुत कम मात्रा में प्रवेश कर पा रहे हैं और केवल अंतरराष्ट्रीय समुदाय के दबाव में ही उन्हें प्रवेश की अनुमति मिल पाती है।
उन्होंने कहा, गाज़ा में सहायता लाने के लिए परमिट प्राप्त करना हमारे लिए एक वास्तविक समस्या बन गया है। इजरायल अभी भी कई दवाओं के प्रवेश पर उनके गैर-जरूरी होने का बहाना देकर प्रतिबंध लगा रहा है।
यूनिसेफ के प्रवक्ता ने कहा,अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को केवल निंदा करने के बजाय ठोस और वास्तविक कार्रवाई करनी चाहिए।
इसी बीच, UNRWA के आयुक्त फिलिप लज़ारिनी ने चेतावनी दी,गाज़ा में कोई सुरक्षित स्थान नहीं बचा है और कोई भी सुरक्षित नहीं है; फिलिस्तीनियों के जीवन और पहचान पर व्यापक हमलों का कोई औचित्य नहीं है। स्वास्थ्य कर्मचारियों, पत्रकारों और राहतकर्मियों को अभूतपूर्व संख्या में मारा गया है, जैसा किसी अन्य आधुनिक संघर्ष में नहीं देखा गया।
उन्होंने कहा,भूख गाजा के सभी निवासियों को परेशान कर रही है चाहे वह धीमी और चुपचाप मौत के रूप में हो या भोजन की तलाश में मरने के रूप में। अस्पतालों, स्कूलों, आश्रयों और घरों पर दैनिक हमले किए जा रहे हैं और गाजा में मानवीय स्थिति दिन-ब-दिन खराब होती जा रही है।
अगर हौज़ा और यूनिवर्सिटी धर्मनिष्ठा के मार्ग पर चलते रहेंगे तो समाज भी सुधार के मार्ग पर आगे बढ़ेगा
आयतुल्लाहfल उज़्मा जवाद आमोली ने फ़रमाया कि तक़वा, तौहीद, अक़्लानियत और अद्ल ही वे बुनियादें हैं जो न सिर्फ़ मुआशरे बल्कि हौज़ा और यूनिवर्सिटी को भी संभाले रखती हैं। अगर ये दोनों इल्मी मराकिज़ दीनदारी के रास्ते पर दुरुस्त सिम्त में गामज़न रहें तो पूरा मुआशरा भी दुरुस्त सिम्त में आगे बढ़ेगा।
आयतुल्लाह जवाद आमोली ने इंसानी हयात और मौत के फ़लसफ़े पर बात करते हुए फ़रमाया: “हम दुनिया में मिटने के लिए नहीं आए बल्कि खोल से निकलने के लिए आए हैं। हम इसलिए आए हैं कि मौत को मार दें, न कि ख़ुद मर जाएँ। यह पैग़ाम अम्बिया अलैहिमुस्सलाम का है। दुनिया में कोई और विचारधारा ऐसी नहीं जो यह कहे कि इंसान मौत को मग़लूब करता है।”
उन्होंने क़ुरआन करीम की आयत का हवाला देते हुए कहा: “अल्लाह तआला ने फ़रमाया — کُلُّ نَفْسٍ ذَائِقَةُ الْمَوْتِ (कुल्लो नफ़्सिन ज़एक़तुल मौत), यानी नफ़्स को मौत का स्वाद चखना है, न कि मौत हमें चखती है। स्वाद लेने वाला चीज़ को हज़्म करता है। हम मौत को चखते हैं और उसे मग़लूब कर देते हैं। मौत हमें फ़ना नहीं करती बल्कि हम मौत को फ़ना कर देते हैं।”
हज़रत आयतुल्लाह जवाद आमोली ने आख़िर में ज़ोर दिया कि “हमेशा रहने वाली हकीकत तक़वा, तौहीद, फ़ज़ीलत, अक़्लानियत और अद्ल है। यही अक़दारे मुआशरे, हौज़ा और यूनिवर्सिटी को संभालती हैं। अगर ये दोनों इदारें इन उसूलों पर अमलपेरा रहें तो पूरा समाज सही सिम्त में हरकत करेगा।”
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अगर आपका बच्चा अकेले सोने से डरता है तो वालिदैन, ख़ास तौर पर माँ को चाहिए कि अपने पुरसुकून रवैये और एतिमाद बख़्श मौजूदगी से उसे सुरक्षा का एहसास दें। और दिन के वक़्त खेल और गतिविधियों के ज़रिए उसकी ऊर्जा को ख़र्च होने में मदद करें, ताकि उसके रात के डर कम हों और वह सुकून से सो सके।
फैमिली काउंसलर हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद अलीरज़ा तराशियों ने एक वालिदैन के सवाल का जवाब देते हुए "परेशान और ख़ौफ़ज़दा बच्चे को ज़हनी सुकून और इतमिनान कैसे दिया जाए?" के विषय पर गुफ़्तगू की है।
? सवाल: मेरा आठ साल का बेटा घर बदलने के बाद बहुत बेचैन रहता है। वह अकेले सोने से डरता है और माँ से बहुत ज़्यादा वाबस्तगी रखता है। मैं उसकी कैसे मदद कर सकता हूँ?
? जवाब: मैं अपनी बात का आग़ाज़ अमीरुल मोमेनीन हज़रत अली (अलैहिस सलाम) के फ़रमान से करता हूँ: "ख़ौफ़ का फल, अमान (अमन) है।"
यानि डर दरअसल एक फ़ितरी और ख़ुदाई निज़ाम है जो इंसान को ख़तरों से महफ़ूज़ रखता है। इसलिए अगर बच्चा डरे तो वालिदैन को घबराना नहीं चाहिए। यह कोई ग़ैर–मामूली कैफ़ियत नहीं बल्कि ज़हनी सेहत की निशानी है।
वालिदैन के बयान से ज़ाहिर है कि यह ख़ानदान पहले किसी नाख़ुशगवार या सदमा देने वाले वाक़ए से गुज़रा है। जाहिर है कि आठ या नौ साल का बच्चा ऐसी सूरत में ख़ौफ़ और बेचैनी का शिकार हो सकता है।
? पहला उसूल:
बच्चे के डर पर पुरसुकून रद्दे–अमल दिखाएँ, मंतक़ी (तर्कभरी) बातों से नहीं।
अकसर वालिदैन उसे तसल्ली देते हुए कहते हैं — "फ़िक्र न करो, हमारा नया मोहल्ला महफ़ूज़ है", या "दरवाज़ा बंद है, कोई नहीं आएगा", या "छत का रास्ता बंद कर दिया है"।
ये बातें ऊपर से तसल्ली–बख़्श लगती हैं, मगर असल में बच्चे के ज़हन में पुरानी डरावनी यादों को ताज़ा कर देती हैं।
बेहतर यह है कि वालिदैन अपने रवैये से उसे इतमिनान दें। अगर बच्चा सिर्फ़ तब पुरसुकून होता है जब माँ पास हो, तो माँ कुछ वक़्त के लिए मेहमानी तौर पर उसके कमरे में सो सकती है।
ज़रूरी नहीं कि माँ अपना पूरा बिस्तर वहाँ ले जाए, ताकि बच्चे को न लगे कि वह हमेशा यहीं रहेगी।
बस एक हल्का बिस्तर और तकिया लेकर कहना चाहिए: "चूँकि तुम इस वक़्त डर रहे हो, मैं तुम्हारे साथ हूँ ताकि तुम्हें सुकून मिले।"
यह आरज़ी (अस्थायी) क़ुरबत बच्चे के अंदर एतिमाद (भरोसा) और ज़हनी सुकून पैदा करती है।
? दूसरा उसूल:
बच्चे की ज़्यादा तवानाई (ऊर्जा) को दिन में ख़र्च करने का मौक़ा दें।
अकसर ऐसे बच्चे जो रात को सोने में मुश्किल महसूस करते हैं, दिन भर कम सरगर्म रहते हैं। उनके जिस्म में तवानाई जमा रहती है जो सोते वक़्त बेचैनी पैदा करती है।
इसलिए वालिदैन को चाहिए कि दिन के औक़ात में खेल, दौड़ या जिस्मानी (शारीरिक) सरगर्मी के मौक़े मुहैया कराएँ ताकि बच्चा शाम तक थक जाए।
ऐसा बच्चा जब बिस्तर पर सर रखता है तो बग़ैर किसी परेशानी के जल्दी सो जाता है।
✳️ ख़ुलासा:
बच्चे के रात के डर को दूर करने के लिए दो बुनियादी उसूल याद रखें:
- माँ या वालिदैन की मौजूदगी से बच्चे में एतिमाद और ज़हनी सुकून पैदा करें।
- दिन के वक़्त खेल और सरगर्मियों के ज़रिए उसकी तवानाई को ख़र्च होने दें।
अगर वालिदैन सब्र और नरमी से इन उसूलों पर अमल करें तो बच्चे का रात का डर धीरे–धीरे ख़त्म हो जाएगा और वह फिर से पुरसुकून नींद लेने लगेगा।













