رضوی
हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) मज़हर-ए-इस्मत-ए-मुतलक और शफ़ी ए रोज़े जज़ा हैं
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन हुसैन अन्सारियान ने कहा है कि हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) का मक़ाम बहुत बुलंद और अज़मत वाला है, जो क़यामत के दिन खुदा की इजाज़त से अपने शियाओं की शफ़ाअत करेंगी।
क़ुरआन और अख़लाक़ के प्रसिद्ध अध्यापक, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन हुसैन अन्सारियान ने कहा है कि हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) का मक़ाम बहुत बुलंद और अज़मत वाला है, जो क़यामत के दिन खुदा की इजाज़त से अपने शियाओं की शफ़ाअत करेंगी।
उन्होंने हुसैनियह आयतुल्लाह अलवी में ख़िताब करते हुए कहा कि खुदा के तीन हज़ार नामों में से एक हज़ार नाम बंदगानों के लिए ज़ाहिर किए गए हैं, और ये तमाम नाम दरअसल उसी एक ज़ात की तजल्ली हैं। अगर कोई सिफ़ात को ज़ात से अलग समझे, तो वह हक़ीक़तन शिर्क का मुर्तकिब होता है।
उस्तादे अख़लाक़ ने कहा कि नबी ए अक़रम (स) के अनुसार उन हज़ार नामों में से 99 “अस्मा-ए-हुस्ना” हैं, जो अहले ईमान में भी झलक सकते हैं। इमाम बाक़िर (अ) और अमीरुल मोमेनीन (अ) दोनों ने फ़रमाया कि खुदा की सबसे बड़ी निशानी हम हैं, और पैग़म्बर ए अक़रम (स) ने फ़रमाया: “मैं और अली एक ही दरख़्त के दो तने हैं।” विलायत-ए-अली के बिना नबूवत का तसव्वुर एक सुखा दरख़्त है।
उन्होंने तारीख़ में दीन के मफ़हूम को बदलने वालों पर तनक़ीद करते हुए कहा कि बनी उमय्या और बनी अब्बास ने लोगों के लिए खुदा का झूठा तसव्वुर पेश किया, जबकि अहले बैत (अ) का खुदा वही है जिसे क़ुरआन ने पहचानवाया है बे-मिस्ल और बे-नज़ीर खुदा।
हुज्जतुल इस्लाम अन्सारियान ने बयान किया कि नामों के निर्धारण में भी खुदा का ख़ास इख़्तियार है, और हज़रत फ़ातिमा (स) के नाम के बारे में खुद खुदा ने रसूल (स) को हुक्म दिया कि अपनी बेटी का नाम “फ़ातिमा” रखें। इस नाम का मतलब है “अलग करने वाली”, यानी वो बुराइयों और आलूदगियों से पूरी तरह पाक और मुनज़्ज़ह हैं। आयत-ए-ततहीर इस हक़ीक़त की पुष्ठि करती है।
उन्होंने इमाम बाक़िर (अ) से नक़्ल किया कि जब हज़रत ख़दीजा (स) हज़रत फ़ातिमा (स) को दूध से अलग करना चाहती थीं, तो खुदा ने उनके वजूद को इल्म और मा’रिफ़त से भर दिया, यहाँ तक कि दो साल की उम्र में ही उन्हें दूध की ज़रूरत न रही। बाद में उनके दो ख़ुत्बे ऐसे हैं जिन पर सदियों से उलमा गुफ़्तगू कर रहे हैं।
आख़िर में उन्होंने कहा कि आइम्मा (अ) के अनुसार, रोज़े क़यामत हज़रत फ़ातिमा (स) खड़ी होंगी और शियाने अली (अ) को जहन्नम से नजात देती हुई फ़रमायेंगी: “ये मेरे शिया हैं, ये आग का ईंधन नहीं।” यह बात साबित करती है कि हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) मज़हर-ए-इस्मत-ए-मुतलक और निजात देने वाली हस्ती हैं।
हज़रत फातिमा ज़हेरा स.ल.का नाम "फातिमा" क्यों रखा गया?
हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व. ने एक रिवायत में बयान फरमाया है कि अल्लाह ताला हज़रत फातिमा स.ल.की अज़मत की पहचान कर रहा है।
इस रिवायत को "अलआमाली तूसी" पुस्तक से लिया गया है। इस रिवायत का पाठ इस प्रकार है:
:قال رسول اللہ صلى الله عليه وآله
إِنَّما سُمِّيَتِ ابْنَتِي فاطِمَةُ لِأَنَّ اللّهَ عَزَّوَجَلَّ فَطَمَها وَفَطَمَ مَنْ أَحَبَّهَا مِنَ النَّارِ.
हज़रत रसूल आल्लाह ने फ़रमाया:
"फ़ातिमा" का नाम "फ़ातिमा" इसलिए रखा गया क्योंकि अल्लाह तआला ने हज़रत फ़ातिमा (स) के प्रेमियों को नर्क की आग से मुक्त कर दिया था।
अलआमाली तूसी, पेंज 300
हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा और इबादत
इबादत जिन्नात और इंसान की पैदाइश का मक़सद और इंसानियत की मेराज है। लेकिन इस नुक्ते की तरफ़ ध्यान देना ज़रूरी है कि कमाल "आबिद" (इबादत करने वाला) होने में नहीं, बल्कि "अब्द" (बंदा बनने) होने में है। जैसा कि आरिफ़ बिल्लाह सालिक़ इलल्लाह हज़रत अल्लामा हसन ज़ादे आमुली रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया,आबिद मत बनो, अब्द बनो शैतान ने तक़रीबन 6000 साल तक इबादत की और "आबिद" बना लेकिन "अब्द" नहीं बन सका। मतलब ये कि जब तक "अब्द" नहीं बनोगे, इबादत से कोई फ़ायदा नहीं होगा।
इबादत जिन्नात और इंसान की पैदाइश का मक़सद और इंसानियत की मेराज है। लेकिन इस नुक्ते की तरफ़ ध्यान देना ज़रूरी है कि कमाल "आबिद" (इबादत करने वाला) होने में नहीं, बल्कि "अब्द" (बंदा बनने) होने में है। जैसा कि आरिफ़ बिल्लाह सालिक़ इलल्लाह हज़रत अल्लामा हसन ज़ादे आमुली रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया,आबिद मत बनो, अब्द बनो शैतान ने तक़रीबन 6000 साल तक इबादत की और "आबिद" बना लेकिन "अब्द" नहीं बन सका। मतलब ये कि जब तक "अब्द" नहीं बनोगे, इबादत से कोई फ़ायदा नहीं होगा। "अब्द" होना यानि ये देखना कि तुम्हारा ख़ुदा क्या चाहता है, ये नहीं कि तुम्हारा दिल क्या चाहता है।
अल्लाह ने जब अपने हबीब को मेराज अता की तो उन्हें "हबीब", "महबूब", "ताहा", "यासीन", "मुज़म्मिल", "मुदस्सिर", "नबी" या "रसूल" जैसे अलक़ाब से याद नहीं किया, बल्कि "अब्द" कहा। यानी मेराज "अब्द" को हुई। तो जब साहिबे मेराज "आबिद" नहीं बल्कि "अब्द" हैं, तो जो ज़ात मेराज का तोहफ़ा हो, बल्कि मक़सद-ए-मेराज हो उसकी इबादत पर बात करना न सिर्फ़ मेरे लिए बल्कि ख़ुदा और ख़ासान-ए-ख़ुदा के अलावा किसी के लिए भी मुमकिन नहीं।इस विषय पर जितना लिखा गया है कम लिखा गया है, जितना बयान हुआ है कम बयान हुआ है।
क्योंकि जो ज़ात "लैलतुल-क़द्र" जैसी हो, उसका इदराक (समझना) हर किसी के बस की बात नहीं। इसलिए इस बारे में सिर्फ़ वही बयान किया जा सकता है जो मासूमीन अलैहिमुस्सलाम से र'वायत हुई है।
ज़ाहिर है कि जो ज़ात "अब्द" हो, उसकी सिर्फ़ नमाज़ और रोज़ा ही इबादत नहीं होते बल्कि ज़िंदगी का हर लम्हा बंदगी ए परवरदिगार होता है, क्योंकि वो अपने माबूद के सामने पूरी तरह तस्लीम होती है।
इसलिए कहा जा सकता है कि हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा अगर मेहराब-ए-इबादत में खड़ी हैं तो इबादत में मशग़ूल हैं, और अगर मेहराब में नहीं बल्कि घर के दूसरे कामों को अंजाम दे रही हैं, तो भी बंदगी ए परवरदिगार में मशग़ूल हैं।
यहाँ ख़ास तौर पर नमाज़, रोज़ा और दुआ जैसी इबादतों का ज़िक्र है। जिस तरह आप दूसरे काम वक़्त पर अंजाम देती थीं, उसी तरह इबादतें भी अव्वले वक़्त अंजाम देती थीं। जब भी घरेलू कामों से फ़ारिग़ होतीं, इबादत में मशग़ूल हो जातीं — नमाज़, दुआ और ग़िरया व ज़ारी (रोना व गिड़गिड़ाना) में मशग़ूल रहतीं। आपकी दुआएं हमेशा दूसरों के लिए होती थीं, अपने लिए नहीं।
इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम से र'वायत है कि इमाम हसन मुज्तबा अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया:मेरी वालिदा (हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा) हर शबे जुमा सुबह तक मेहराब-ए-इबादत में खड़ी रहती थीं। जब दुआ के लिए हाथ उठातीं तो मोमिन मर्दों और औरतों के लिए दुआ करतीं, लेकिन अपने लिए कुछ नहीं माँगतीं। मैंने एक दिन अर्ज़ किया: 'वालिदा ए मोहतरमा! आप अपने लिए भी वैसे ही दुआ क्यों नहीं करतीं जैसे दूसरों के लिए करती हैं?' तो आपने फ़रमाया: 'बेटा! पहले पड़ोसी, फिर अपना घर।' (कश्फ़ुल-ग़ुम्मा, जिल्द 1, सफ़ा 468)
वो तस्बीह जो "तस्बीह-ए-हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा" के नाम से मशहूर है, शिया और सुन्नी दोनों की किताबों में मौजूद है और सबके नज़दीक मोतबर (विश्वसनीय) है।
जो लोग दुआएं और सुन्नत पर अमल करते हैं, वो इस तस्बीह को हर नमाज़ के बाद पढ़ते हैं:
34 बार "अल्लाहु अकबर", 33 बार "सुब्हान अल्लाह" और 33 बार "अल्हम्दुलिल्लाह"।
इसी तरह आलिमे रब्बानी अल्लामा सैय्यद इब्ने ताऊस रहमतुल्लाह अलैह ने अपनी किताब "इक़बालुल-आमाल" में वो दुआएं नक़्ल की हैं जो हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा नमाज़-ए-ज़ोहर, अस्र, मग़रिब, इशा और सुबह के बाद पढ़ा करती थीं।इसके अलावा कुछ दूसरी दुआएं भी आप से मनक़ूल हैं जो परेशानियों या हाजत के मौक़े पर पढ़ी जाती हैं।
यह बात भी क़ाबिल-ए-ग़ौर है कि हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा और दूसरे मासूमीन अलैहिमुस्सलाम की इबादत में जहाँ "कसरत" (ज़्यादा अमल) दिखती है, वहीं "क़ैफ़ियत" (गुणवत्ता) पर ज़्यादा ध्यान रहता है — यानी उनकी तमाम इबादतों में सिर्फ़ माबूद नज़र आता है।
हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा ने फ़रमाया: "मन अस‘अदा इलल्लाह ख़ालिसा इबादतिही, अहबतल्लाहु इलैहि अफ़ज़ल मस्लहतिह" यानी जो शख़्स अपनी ख़ालिस इबादत अल्लाह की तरफ़ भेजता है, अल्लाह अपनी बेहतरीन भलाई उसकी तरफ़ भेजता है।(तहफ़ुल उक़ूल, सफ़ा 960)
बेशक हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामतुल्लाह अलैहा की इबादत वाली सीरत सारी इंसानियत के लिए सबसे बेहतरीन नमूना-ए-अमल है। रोज़ाना, ख़ास तौर पर जुमा की रात और सबसे बढ़कर शब-ए-क़द्र में आपकी इबादत, नमाज़, दुआ और मुनाजात बेमिसाल हैं।
जैसा कि पैग़म्बर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि वसल्लम ने फ़रमाया: "जब फ़ातिमा (सलामतुल्लाह अलैहा) मेहराब-ए-इबादत में खड़ी होती हैं तो आसमान के फ़रिश्तों के लिए एक चमकते सितारे की तरह रौशन होती हैं। अल्लाह तआला फ़रिश्तों से फ़रमाता है: ऐ मेरे फ़रिश्तो! देखो मेरी सबसे बेहतरीन इबादत गुज़ार फ़ातिमा को, वो मेरे सामने खड़ी है, मेरे ख़ौफ़ से उसका सारा जिस्म कांप रहा है, और वो पूरे ध्यान और दिल से मेरी इबादत में मशग़ूल है। गवाह रहो कि मैंने उनके चाहने वालों को जहन्नम की आग से आज़ाद कर दिया है।
(अमाली शैख़ सदूक़, सफ़ा 99-100)
ख़ुदा हमें हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की मारिफ़त (पहचान) अता करे और उनकी सीरत पर चलने की तौफ़ीक़ दे।
हज़रत फ़ातिमा ज़हरा की शहादत पर जामिया इमाम जाफ़र सादिक़ में चार रोज़ा मजलिसों का आयोजन
जामिया इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम, बेगमगंज में हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स.अ.) की शहादत की याद में आयोजित चार रोज़ा मज़लिसों का आग़ाज़ ग़मगीन माहौल में हुआ। इस सिलसिले की पहली मज़लिस का आग़ाज़ तिलावत-ए-क़ुरआन से हुआ, जिसके बाद मौलाना काज़िम मेहदी उरूज ने मज़लिस को खिताब किया।
जौनपुर /जामिया इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम, बेगमगंज में हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स.अ.) की शहादत की याद में आयोजित चार रोज़ा मज़लिसों का आग़ाज़ ग़मगीन माहौल में हुआ। इस सिलसिले की पहली मज़लिस का आग़ाज़ तिलावत-ए-क़ुरआन से हुआ, जिसके बाद मौलाना काज़िम मेहदी उरूज ने मज़लिस को खिताब किया।
अपने ख़िताब में मौलाना ने हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स.अ.) की सीरत, इस्लामी समाज में उनके किरदार और अहलेबैत अलैहिस्सलाम की तालीमात को आज की ज़िन्दगी में अपनाने की ज़रूरत पर तफ़सील से रौशनी डाली । उन्होंने कहा कि हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स.अ.) की ज़िन्दगी इंसानियत के लिए एक बेहतरीन उदाहरण है, जिसमें सबक़ है कि इंसाफ़, सब्र और अज़्म से हर मुश्किल का सामना किया जा सकता है।
मजलिस से पहले सोज़ख़ानी एहतिशाम जौनपुरी ने अंजाम दी, जिन्होंने रिवायती अंदाज़ से सोज़ के ज़रिए माहौल को ग़मगीन कर दिया। वहीं पेशख़ानी अख़्तर एजाज़ जलालपुरी ने की, जिन्होंने हज़रत फ़तिमा की यादों को ताज़ा किया।
मजालिस के आयोजक मौलाना सफ़दर हुसैन ज़ैदी ने बताया कि मज़लिसों का सिलसिला चार रोज़ तक जारी रहेगा, जिसमें नामवर ख़तीब हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स.अ.) की ज़िन्दगी और उनके पैग़ाम पर रोशनी डालेंगे।
क़ुम अल मुकद्दस में 13 अबान यौमुल्लाह पर भव्य रैली
क़ुम अलमुकद्दस के ईमानदार, नेता और और क्रांतिकारी लोगों ने ईरान के अन्य शहरों की तरह यौमुल्लाह 13 अबान के अवसर पर एक भव्य रैली में बड़ी संख्या में भाग लेकर इस्लामी क्रांति, क्रांति के नेताओं और शहीदों के खून के प्रति अपनी वफादारी का शानदार प्रदर्शन किया।
क़ुम अलमुकद्दस के ईमानदार, नेता और और क्रांतिकारी लोगों ने ईरान के अन्य शहरों की तरह यौमुल्लाह 13 अबान के अवसर पर एक भव्य रैली में बड़ी संख्या में भाग लेकर इस्लामी क्रांति, क्रांति के नेताओं और शहीदों के खून के प्रति अपनी वफादारी का शानदार प्रदर्शन किया।
ईरान के अन्य क्षेत्रों की तरह, क़ुम प्रांत की जनता ने भी यौमुल्लाह 13 अबान के मौके पर जोश और उत्साह के साथ रैलियों में हिस्सा लिया। इस अवसर पर पुरुषों, महिलाओं, छात्रों, शिक्षकों, धार्मिक छात्रों और विद्वानों ने रैली के दौरान अमेरिका और इसराइल विरोधी नारों के माध्यम से अहंकारी शक्तियों के प्रति अपनी घृणा और विरोध व्यक्त किया।
प्रतिभागियों के हाथों में विभिन्न बैनर और प्लेकार्ड थे, जिन पर नारे लिखे थे: "अमेरिका मुर्दाबाद", "मुनाफिकों पर लानत", "न झुकेंगे न समझौता करेंगे, अमेरिका के खिलाफ युद्ध की घोषणा", और "परमाणु ऊर्जा हमारा अधिकार है। लोगों ने इन नारों के माध्यम से इस्लामी क्रांति के सिद्धांतों, आत्मनिर्भरता और प्रतिरोध के संदेश को एक बार फिर दुनिया तक पहुंचाया।
रैली के दौरान विभिन्न स्कूलों के छात्र-छात्राओं ने क्रांतिकारी गीत और नग़मे पेश किए, जिससे सभा के जोश और उत्साह में और वृद्धि हुई।
13 अबान, इस्लामी क्रांति के इतिहास में तीन महत्वपूर्ण घटनाओं की याद दिलाता है:
- 1964 में इमाम ख़ुमैनी की निर्वासन,
2. 1978 में शाही शासन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में छात्रों की शहादत,
3. और 1979 में अमेरिकी दूतावास पर कब्ज़ा, जो ईरानी राष्ट्र की वैश्विक अहंकार के सामने दृढ़ता और ईमानी गर्व की चमकदार निशानी बने।
क्रांति के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनेई ने भी अपने हालिया संबोधन में इस दिन को ईरानी राष्ट्र के गर्व और सफलता का दिन बताते हुए कहा कि 13 अबान ने दुनिया के सामने अमेरिका का असली चेहरा बेनकाब किया और ईरानी राष्ट्र की जागरूकता और आत्मनिर्भरता का प्रतीक बन गया।
क़ुम अलमुकद्दस के ईमानदार, नेता और और क्रांतिकारी लोगों ने ईरान के अन्य शहरों की तरह यौमुल्लाह 13 अबान के अवसर पर एक भव्य रैली में बड़ी संख्या में भाग लेकर इस्लामी क्रांति, क्रांति के नेताओं और शहीदों के खून के प्रति अपनी वफादारी का शानदार प्रदर्शन किया।
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , क़ुम अलमुकद्दस के ईमानदार, नेता और और क्रांतिकारी लोगों ने ईरान के अन्य शहरों की तरह यौमुल्लाह 13 अबान के अवसर पर एक भव्य रैली में बड़ी संख्या में भाग लेकर इस्लामी क्रांति, क्रांति के नेताओं और शहीदों के खून के प्रति अपनी वफादारी का शानदार प्रदर्शन किया।
ईरान के अन्य क्षेत्रों की तरह, क़ुम प्रांत की जनता ने भी यौमुल्लाह 13 अबान के मौके पर जोश और उत्साह के साथ रैलियों में हिस्सा लिया। इस अवसर पर पुरुषों, महिलाओं, छात्रों, शिक्षकों, धार्मिक छात्रों और विद्वानों ने रैली के दौरान अमेरिका और इसराइल विरोधी नारों के माध्यम से अहंकारी शक्तियों के प्रति अपनी घृणा और विरोध व्यक्त किया।
प्रतिभागियों के हाथों में विभिन्न बैनर और प्लेकार्ड थे, जिन पर नारे लिखे थे: "अमेरिका मुर्दाबाद", "मुनाफिकों पर लानत", "न झुकेंगे न समझौता करेंगे, अमेरिका के खिलाफ युद्ध की घोषणा", और "परमाणु ऊर्जा हमारा अधिकार है। लोगों ने इन नारों के माध्यम से इस्लामी क्रांति के सिद्धांतों, आत्मनिर्भरता और प्रतिरोध के संदेश को एक बार फिर दुनिया तक पहुंचाया।
रैली के दौरान विभिन्न स्कूलों के छात्र-छात्राओं ने क्रांतिकारी गीत और नग़मे पेश किए, जिससे सभा के जोश और उत्साह में और वृद्धि हुई।
13 अबान, इस्लामी क्रांति के इतिहास में तीन महत्वपूर्ण घटनाओं की याद दिलाता है:
- 1964 में इमाम ख़ुमैनी की निर्वासन,
2. 1978 में शाही शासन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में छात्रों की शहादत,
3. और 1979 में अमेरिकी दूतावास पर कब्ज़ा, जो ईरानी राष्ट्र की वैश्विक अहंकार के सामने दृढ़ता और ईमानी गर्व की चमकदार निशानी बने।
क्रांति के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनेई ने भी अपने हालिया संबोधन में इस दिन को ईरानी राष्ट्र के गर्व और सफलता का दिन बताते हुए कहा कि 13 अबान ने दुनिया के सामने अमेरिका का असली चेहरा बेनकाब किया और ईरानी राष्ट्र की जागरूकता और आत्मनिर्भरता का प्रतीक बन गया।
ईरान के विभिन्न शहरों में 13 अबान यौमुल्लाह के अवसर पर भव्य रैलियाँ आयोजित की गईं
13 अबान यौमुल्लाह के अवसर पर ईरान के विभिन्न शहरों में भव्य रैलियाँ आयोजित की गईं, जिनमें लाखों लोगों ने उत्साह के साथ भाग लिया और अमेरिका तथा इसराइल के खिलाफ नारे लगाते हुए इस्लामी क्रांति, क्रांति के नेताओं और शहीदों के प्रति अपनी निष्ठा की घोषणा की।
13 अबान, यौमुल्लाह के मौके पर पूरे ईरान में शानदार रैलियाँ निकाली गईं जिनमें आम लोगों ने अद्भुत जोश और उत्साह के साथ हिस्सा लिया। राजधानी तेहरान में केंद्रीय जमावड़ा हुआ, जहाँ छात्रों, शिक्षकों, विद्वानों, धार्मिक छात्रों और विभिन्न वर्गों के पुरुषों व महिलाओं ने एक बार फिर वैश्विक अहंकार के खिलाफ अपनी जागरूकता और एकजुटता का प्रदर्शन किया।
इसी तरह खुर्रमाबाद, बंदर अब्बास, सावेह, कोहबोनान, सोंदरेक, मीनाब, बुशहर और यासूज सहित ईरान के अन्य शहरों में भी बड़ी संख्या में लोग सड़कों पर उतर आए।
रैलियों में शामिल लोगों ने हाथों में बैनर और प्लेकार्ड लिए हुए थे, जिन पर नारे लिखे थे, "अमेरिका मुर्दाबाद", "इसराइल मुर्दाबाद", "न समझौता, न सरेंडर, अमेरिका से जंग जारी रहेगी"और "परमाणु ऊर्जा हमारा अधिकार है।
प्रतिभागियों ने अपने नारों के जरिए इस्लामी क्रांति के सिद्धांतों और इमाम खामेनेई व क्रांतिकारी नेता आयतुल्लाह सैयद अली खामेनेई के निर्देशों पर पूरी तरह अमल करने के संकल्प का इज़हार किया।
रैलियों के दौरान विभिन्न क्रांतिकारी गीत पेश किए गए, जिन्होंने माहौल को जोश और उत्साह से भर दिया। वक्ताओं ने अपने भाषणों में इस बात पर जोर दिया कि ईरानी राष्ट्र आज भी आत्मनिर्भरता, आज़ादी और प्रतिरोध के रास्ते पर चल रहा है और किसी भी कीमत पर ज़ुल्म और अहंकार के आगे सिर नहीं झुकाएगा।
यह दिन हर साल ईरानी राष्ट्र की ओर से अहंकार के खिलाफ संघर्ष, जागरूकता और आज़ादी के संकल्प के प्रतीक के रूप में जोश और उत्साह के साथ मनाया जाता है।
इस्तांबुल बैठक का संयुक्त बयान: गज्ज़ा का प्रशासन फिलिस्तीनियों को सौंपा जाए!
गज़्ज़ा की ताज़ा स्थिति पर तुर्की की राजधानी इस्तांबुल में आयोजित उच्च-स्तरीय बैठक के बाद 7 मुस्लिम देशों ने संयुक्त घोषणा जारी की है।
तुर्की की राजधानी इस्तांबुल में गाजा की ताजा स्थिति पर आयोजित उच्च-स्तरीय बैठक के बाद 7 मुस्लिम देशों ने एक संयुक्त बयान जारी किया है।
बयान में जोर देकर कहा गया है कि गाजा का प्रशासन फिलिस्तीनियों को सौंपा जाए, इजरायल तुरंत युद्धविराम का पूरी तरह से पालन करे और मानवीय सहायता के रास्ते में आने वाली सभी बाधाओं को हटाया जाए।
संयुक्त बयान में कहा गया कि फिलिस्तीनी लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार और राष्ट्रीय प्रतिनिधित्व को मान्यता दिए बिना क्षेत्र में स्थायी शांति संभव नहीं है। भाग लेने वाले देशों ने इस रुख पर सहमति जताई कि अंतर्राष्ट्रीय स्थिरता बल के गठन पर विचार किया जाएगा, ताकि युद्धविराम की निगरानी और मानवीय सहायता की आपूर्ति को प्रभावी बनाया जा सके।
बयान की प्रमुख बातें:
- गाजा का प्रशासन फिलिस्तीनियों को सौंपने पर पूर्ण सहमति: बैठक में शामिल सभी देशों ने इस बात पर जोर दिया कि गाजा का राजनीतिक और प्रशासनिक नियंत्रण किसी बाहरी शक्ति के बजाय स्थानीय फिलिस्तीनी प्राधिकरण के पास होना चाहिए।
2. युद्धविराम उल्लंघन पर चिंता: बयान में कहा गया कि इजरायली सेना द्वारा युद्धविराम के बाद भी हमले जारी हैं, जिनमें अब तक लगभग 250 फिलिस्तीनी शहीद हो चुके हैं।
3. मानवीय सहायता की तत्काल आवश्यकता: शामिल देशों ने मांग की कि कम से कम 600 सहायता ट्रक और 50 ईंधन वाहन गाजा में बिना रुकावट प्रवेश कराए जाएं।
4. अंतर्राष्ट्रीय स्थिरता बल पर विचार: बयान में प्रस्ताव दिया गया कि गाजा में एक तटस्थ बल का गठन किया जाए, जो शांति की निगरानी और मानवीय सहायता के संरक्षण को सुनिश्चित करे।
5. फिलिस्तीनी प्राधिकरण के सुधार प्रयासों का समर्थन: शामिल देशों ने फिलिस्तीनी नेतृत्व के सुधारात्मक कदमों और अरब लीग व इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) की परियोजनाओं के पूर्ण समर्थन की पुष्टि की।
यह महत्वपूर्ण बैठक तुर्की के विदेश मंत्री हकान फिदान की मेजबानी में इस्तांबुल के एक प्रसिद्ध होटल में आयोजित हुई, जिसमें इंडोनेशिया, पाकिस्तान, सऊदी अरब, जॉर्डन, कतर और संयुक्त अरब अमीरात के विदेश मंत्रियों या प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
बैठक के दौरान युद्धविराम की ताजा स्थिति, मानवीय संकट और भविष्य की कूटनीतिक कार्रवाइयों पर विस्तृत विचार-विमर्श किया गया।
बैठक के बाद मीडिया से बातचीत में तुर्की के विदेश मंत्री ने कहा कि इजरायल युद्धविराम का उल्लंघन कर रहा है। युद्धविराम की घोषणा के बाद से इजरायली हमलों में लगभग 250 फिलिस्तीनी शहीद हुए हैं। उन्होंने कहा,हम शांति के लिए हर बलिदान देने को तैयार हैं, लेकिन इजरायली आक्रामक कार्रवाइयां वैश्विक विवेक के लिए एक चुनौती हैं।
फिदान ने कहा कि तुर्की ने अपने सभी क्षेत्रीय भागीदारों के साथ संपर्क बढ़ा दिए हैं, ताकि युद्धविराम को स्थायी शांति में बदला जा सके। उन्होंने जोर देकर कहा कि अगर मानवीय सहायता के रास्ते नहीं खुले तो गाजा में मानवीय त्रासदी असहनीय हो जाएगी।
सूडान मे जारी नरसंहार इस्राईल और अमेरिकी योजना का नतीजा
सूडान में चल रही गृहयुद्ध और बेगुनाह लोगों का नरसंहार कोई अंदरूनी मुद्दा नहीं बल्कि एक वैश्विक साज़िश का हिस्सा है। पश्चिम एशिया के विशेषज्ञों के अनुसार, ज़ायोनी (इज़राइली) और अमेरिकी योजनाओं के तहत अफ्रीकी देशों को कमजोर और विभाजित करने की प्रक्रिया तेज़ी से जारी है।
पश्चिम एशियाई मामलों के विशेषज्ञों के अनुसार, सूडान में चल रही गृहयुद्ध और नरसंहार वास्तव में अमेरिका और इज़राइल की योजना का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य इस्लामी और अफ्रीकी देशों को कमजोर और विभाजित करना है।
शनिवार की रात पश्चिम एशियाई मामलों के विशेषज्ञ सैयद रज़ा सदर हुसैनी ने बातचीत में कहा कि सूडान में 2019 से जारी अशांति अब एक बड़े मानवीय संकट में बदल चुकी है और देश में खुलेआम नरसंहार हो रहा है। उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र और मानवाधिकार संगठनों ने चिंता जताई है, लेकिन बड़ी ताकतें खामोश दर्शक बनी हुई हैं।
हुसैनी के अनुसार, इज़राइल और अमेरिका खुले तौर पर सूडान के विद्रोही समूहों का समर्थन कर रहे हैं, जबकि ईरान, मिस्र और सऊदी अरब जैसे देश अब भी सूडान की वैध सरकार और राष्ट्रीय एकता का समर्थन कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि अब तक करीब 1 करोड़ 20 लाख से ज्यादा लोग बेघर हो चुके हैं और देश के बड़े हिस्से पर हथियारबंद समूहों का कब्जा है।
उन्होंने कहा कि सूडान के तेल और सोने के भंडार पर कब्जा करने की लालच ने अमेरिका, इज़राइल और कुछ अरब देशों को इस संकट में शामिल कर रखा है। उनका कहना था कि ज़ायोनी शासन (इज़राइल) इस हालात से खुश है क्योंकि सूडान की तबाही के कारण दुनिया का ध्यान अस्थायी तौर पर ग़ज़ा में हो रहे इज़राइली अपराधों से हट गया है।
ईरान के विदेश मंत्रालय के उत्तरी अफ्रीका मामलों के निदेशक जनरल, महदी शोश्तरी ने एक टेलीफोनिक बातचीत में कहा कि सूडान का विभाजन एक खुली औपनिवेशिक साज़िश है और ईरान ने इसका कड़ा विरोध किया है। उन्होंने कहा कि इस्लामी दुनिया चुप नहीं रहेगी और संयुक्त राष्ट्र को चाहिए कि इन अपराधों के खिलाफ ठोस कदम उठाए।
सैयद रज़ा सदर हुसैनी ने आगे कहा कि सूडान पहले भी विभाजित हो चुका है और अब वही योजना दोहराई जा रही है ताकि एक स्वतंत्र मुस्लिम देश को पूरी तरह से खत्म कर दिया जाए। उन्होंने इसे अमेरिकी योजना का हिस्सा बताते हुए कहा कि इसी योजना के तहत क्षेत्र के बड़े देशों को भी तोड़ने की तैयारी चल रही है।
दूसरी ओर, ईरान के विदेश मंत्री सैयद अब्बास अराकची ने भी सूडान में आम नागरिकों के नरसंहार की निंदा करते हुए कहा कि आतंकवाद और बेगुनाह लोगों पर हिंसा किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं है। उन्होंने सूडान के विदेश मंत्री से बातचीत में ईरान की तरफ से पूरी सहानुभूति और एकजुटता का संदेश दिया।
सूडान के अल फाशिर शहर में खून की दरिया सिर्फ़ दो दिनों में 300 महिलाओं की हत्या
सूडान की सामाजिक कल्याण मंत्री सलीमा इसहाक ने खुलासा किया है कि केवल 48 घंटों के भीतर अल-फाशर शहर में तेजी से कार्रवाई करने वाली रैपिड सपोर्ट फ़ोर्स (RSF) नामक अर्धसैनिक बल ने 300 महिलाओं की बेरहमी से हत्या कर दी।
सूडान की सामाजिक कल्याण मंत्री सलीमा इसहाक ने खुलासा किया है कि सिर्फ़ 48 घंटों के भीतर रैपिड सपोर्ट फ़ोर्स (RSF) नामक अर्धसैनिक बल ने अल-फाशिर शहर में 300 महिलाओं की बेरहमी से हत्या कर दी।
मंत्री सलीमा इस्हाक ने बताया कि इन महि
लाओं को हत्या से पहले यौन उत्पीड़न, हिंसा और अपमानजनक व्यवहार का शिकार बनाया गया।
तुर्की समाचार एजेंसी अनादोलु के अनुसार, उन्होंने कहा,जो कोई भी अल-फाशर से उत्तरी दारफ़ुर के तवेला इलाके की ओर यात्रा करता है, वह मौत के ख़तरे में है क्योंकि अल-फाशिर-तवेला हाईवे अब ‘मौत की सड़क’ बन चुकी है।”
मंत्री ने आगे बताया कि कई परिवार अब भी अल-फाशर में फंसे हुए हैं और यौन हिंसा, यातना और अपमान का सामना कर रहे हैं। उनके अनुसार, अल-फाशिर में हो रही घटनाएँ संगठित नरसंहार हैं और मानवता के खिलाफ अपराध हैं। उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चुप्पी इस अपराध में साझेदारी के समान है।
डॉक्टर्स विदआउट बॉर्डर्स (MSF) ने भी चेतावनी दी है कि हजारों आम नागरिकों को शहर से बाहर निकलने से रोका जा रहा है और उनकी जानें खतरे में हैं। संगठन ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से फौरन कार्रवाई की अपील की है ताकि अल-फाशर में जारी सामूहिक हत्याओं को रोका जा सके।
रिपोर्ट में बताया गया है कि यह शहर हाल ही में संयुक्त अरब अमीरात समर्थित RSF के कब्जे में आ गया है। संगठन ने कहा है कि उसके कार्यकर्ता उत्तरी दारफ़ुर के तवेला क्षेत्र में बड़ी संख्या में घायल और विस्थापित लोगों की मदद की तैयारी कर रहे हैं।
दूसरी ओर, सूडानी सरकार ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को एक रिपोर्ट सौंपी है, जिसमें RSF के हाथों हुए मानवाधिकार उल्लंघनों और अपराधों का विवरण दिया गया है।
गौरतलब है कि 26 अक्टूबर को RSF ने अल-फाशिर पर पूरी तरह नियंत्रण कर लिया था, जिसके बाद नागरिकों के खिलाफ बड़े पैमाने पर क़त्लेआम शुरू हो गया। अब तक के आंकड़ों के मुताबिक, 2500 से अधिक नागरिकों की हत्या या फांसी दी जा चुकी है, जिनमें 460 गर्भवती महिलाएं अस्पतालों में मारी गईं।
यह भी ध्यान देने योग्य है कि अप्रैल 2023 से सूडान में सेना और रैपिड सपोर्ट फ़ोर्स के बीच खूनी युद्ध जारी है, जिसमें अब तक दसियों हजार लोग मारे जा चुके हैं और लगभग 1.3 करोड़ लोग बेघर हो चुके हैं।
यमनी जनता का इस्राइली दुशमन को दो टूक संदेशः
यमन के मुख्तलिफ़ इलाक़ों इमरान, रीमा, हज्जा, मआरिब, अल-महवीत, तअज़ और अल-बैज़ामें वसी’ अवामी रेलियों और क़बाइली इज्तिमा’आत ने फ़लस्तीन के प्रति यकजहती और हिमायत का वाज़ेह पैग़ाम दिया और ऐलान किया कि अगर ग़ज़्ज़ा पर हमले जारी रहे तो वह हर किस्म के मुक़ाबले के लिए तैयार हैं।
यमन के मुख्तलिफ़ इलाक़ों इमरान, रीमा, हज्जा, मआरिब, अल-महवीत, तअज़ और अल-बैज़ामें वसी’ अवामी रेलियों और क़बाइली इज्तिमा’आत ने फ़लस्तीन के प्रति यकजहती और हिमायत का वाज़ेह पैग़ाम दिया और ऐलान किया कि अगर ग़ज़्ज़ा पर हमले जारी रहे तो वह हर किस्म के मुक़ाबले के लिए तैयार हैं।
मक़ामी रिपोर्टों के अनुसार जुमे के दिन होने वाली रेलियों और इज्तिमा’आत में शिरक़ा ने शुहदा की तस्वीरों और नारों के साथ वफ़ादारी का इज़हार किया और दुश्मन को ख़बरदार किया कि हर जारिहाना मनसूबे का सख़्त जवाब दिया जाएगा। अवामी बयानियों में जंगबंदी के बावजूद फ़लस्तीनियों की हिमायत जारी रखने और मूक़ाविमती कोशिशों से यकजहती दिखाने पर ज़ोर दिया गया।
इमरान और दूसरे अज़लाअ में क़बाइली और शहरी रेलियों में अवाम ने मिल कर इत्तेहाद का मज़ाहिरा किया और राहे शुहदा पर गामज़न रहने के अज़्म को उजागर किया। रीमा और तअज़ में शिरक़ा ने क़ौमी इत्तेहाद पर ज़ोर दिया। मआरिब, अल-महवीत और अल-बैज़ा में भी बड़े पैमाने पर मुसल्लह और ग़ैर मुसल्लह इज्तिमा’आत नज़र आए, जहाँ मक़ामी रहनुमाओं ने दिफ़ाई तैयारी और फ़ौजी ट्रेनिंग बढ़ाने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया और मआरिब को मुस्तहकम क़िला क़रार दिया।
हज्जा में होने वाले इज्तिमा’आत में शिरक़ा ने मुल्क के तहफ़्फ़ुज़, क़ौमी खुदमुख्तियारी और इज़्ज़ते इंसानी के दिफ़ा का अहद किया और ख़ायनों व साज़िशी अनासिर को वार्निंग दी कि यमन दाख़िली महाज़ को कमज़ोर करने की किसी भी कोशिश के सामने मज़बूती से खड़ा रहेगा। तअज़ के मुज़ाहिरीनों ने बाबुल-मनदब की गज़रगाहों की हस्सासियत की तरफ़ इशारा करते हुए कहा कि जब तक ग़ज़्ज़ा महासिरे में रहेगा, दुश्मन के लिए समुंदरी रास्ते भी महफ़ूज़ नहीं रहेंगे।
मजमूई तौर पर जारी बयानों ने बैनुल अक़वामी बिरादरी और इंसानी हुक़ूक़ की तंज़ीमों से मुतालिबा किया कि वो सायोनी और अमरीकी हमलों के ख़िलाफ़ ख़ामोशी तोड़ें और फ़लस्तीनियों की हिमायत करें। यमनी अवाम ने वाज़ेह किया कि वो शुहदा के रास्ते पर साबित क़दम रहेंगे और हर ऑप्शन के लिए तैयार हैं ताकि दीन, वतन और मज़लूमीन के दिफ़ा को यक़ीनी बनाया जा सके।













