
رضوی
हज का सामूहिक और वैश्विक महत्व - मुस्लिम उम्माह की एकता का एक व्यावहारिक प्रदर्शन
हज केवल एक व्यक्तिगत इबादत ही नहीं है, बल्कि एक वैश्विक समागम भी है जो दुनिया भर के मुसलमानों को एक मंच पर लाता है। यह समागम न केवल धार्मिक है, बल्कि इसका सांस्कृतिक, सामाजिक, नैतिक और राजनीतिक महत्व भी है। हज मुस्लिम उम्माह के बीच एकता, भाईचारे, समानता और सार्वभौमिक भाईचारे का सबसे बड़ा प्रदर्शन है।
हज केवल एक व्यक्तिगत इबादत ही नहीं है, बल्कि एक वैश्विक समागम भी है जो दुनिया भर के मुसलमानों को एक मंच पर लाता है। यह समागम न केवल धार्मिक है, बल्कि इसका सांस्कृतिक, सामाजिक, नैतिक और राजनीतिक महत्व भी है। हज मुस्लिम उम्माह के बीच एकता, भाईचारे, समानता और सार्वभौमिक भाईचारे का सबसे बड़ा प्रदर्शन है।
- रंग और नस्ल से परे: समानता की अभिव्यक्ति
दुनिया की कोई भी ताकत इंसानों के बीच रंग, नस्ल, भाषा और सामाजिक स्थिति को पूरी तरह से खत्म करने में सफल नहीं हुई है, लेकिन हज एक ऐसी इबादत है जिसमें:
अरब और गैर-अरब एक साथ खड़े होते हैं, काले और गोरे एक जैसे कपड़े पहनते हैं, अमीर और गरीब एक ही धरती पर सोते हैं।
यह वह वास्तविकता है जिसे पवित्र पैगंबर (स) ने अपने विदाई उपदेश में कहा था: "एक अरब किसी गैर-अरब पर श्रेष्ठ नहीं है, न ही एक गैर-अरब किसी अरब पर, सिवाय धर्मपरायणता के।"
- मुस्लिम उम्मा की एकता: सार्वभौमिक भाईचारा
हज हर साल दुनिया भर के मुसलमानों को एक साथ लाता है। हर क्षेत्र, हर देश और हर भाषा के लोग एक जगह इकट्ठा होते हैं और अल्लाह के सामने झुकते हैं। यह जमावड़ा दर्शाता है कि:
मुस्लिम उम्मा एक शरीर की तरह है; उनके दर्द, खुशियाँ, लक्ष्य और मंज़िल एक हैं। हज इस एकता की व्यावहारिक अभिव्यक्ति है।
यह समागम उम्माह को राजनीतिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करता है।
- वर्तमान की भाषा से संदेश: हम एक हैं
चाहे कोई अंग्रेजी, अरबी, उर्दू, फारसी या स्वाहिली बोलता हो - तलबिया, तवाफ, नमाज़ और दुआएं एक ही तरीके से की जाती हैं। भाषाएं अलग-अलग हैं लेकिन दिलों की धड़कन एक है। यह सार्वभौमिक संदेश है जो दुनिया का कोई भी सम्मेलन, बैठक या संगठन इतनी तीव्रता से नहीं दे सकता।
- इस्लामी संस्कृति और सभ्यता का प्रदर्शन
हज के दौरान:
इस्लामी पोशाक (इहराम) प्रदर्शित की जाती है
तक़वा, धैर्य, सहनशीलता और सहिष्णुता की इस्लामी शिक्षाओं का व्यावहारिक रूप से प्रदर्शन किया जाता है
इस्लामी इतिहास और पूर्वजों को याद किया जाता है
ये सभी तत्व इस बात का प्रमाण देते हैं कि इस्लाम जीवित और स्वस्थ है।
- वैश्विक मुद्दों के बारे में जागरूकता
हज के दौरान, विभिन्न क्षेत्रों के मुसलमान एक-दूसरे से मिलते हैं, अपने-अपने क्षेत्रों की स्थितियों, कठिनाइयों और सफलताओं का वर्णन करते हैं। इस आदान-प्रदान से:
एक-दूसरे की समस्याओं के प्रति जागरूकता पैदा होती है
उम्माह में सहानुभूति, सहयोग और बौद्धिक जागरूकता पैदा होती है
वैश्विक एकता की दिशा में एक व्यावहारिक कदम उठाया जाता है
- एक आदर्श समाज का व्यावहारिक मॉडल
हज के दौरान, लाखों लोग कुछ दिनों के लिए एक ही स्थान पर रहते हैं:
कोई झगड़ा नहीं, कोई अव्यवस्था नहीं
हर कदम पर धैर्य, त्याग, समानता और भाईचारा दिखाई देता है
यह सब इस बात का संकेत है कि अगर इस्लामी शिक्षाओं को अपनाया जाए तो दुनिया में शांति, न्याय और भाईचारा कायम हो सकता है।
सारांश
हज मुस्लिम उम्माह के लिए एक वैश्विक अभ्यास है:
जहां व्यवहार में एकता का प्रदर्शन किया जाता है
जहां रंग और नस्ल की मूर्तियों को तोड़ा जाता है
जहां एक उम्माह की अवधारणा को पुनर्जीवित किया जाता है
यह वह भावना है जिसे अगर हम पूरे साल अपने जीवन में बनाए रखें तो न केवल मुस्लिम उम्माह मजबूत होगा, बल्कि दुनिया में शांति, प्रेम और न्याय का माहौल स्थापित हो सकता है।
हज के प्रभाव, लाभ और स्थायी संदेश - क़यामत के दिन के लिए एक निमंत्रण
हज इबादत का एक अस्थायी कार्य नहीं है, बल्कि एक व्यापक प्रशिक्षण है जिसका तीर्थयात्री के पूरे जीवन पर प्रभाव होना चाहिए। हज केवल एक तीर्थयात्रा नहीं है, बल्कि यह एक संदेश है - एक आह्वान - जो सदियों पहले पैगम्बर अब्राहम (उन पर शांति हो) के मुख से आया था, और आज भी दिलों को जगाता है, और क़यामत के दिन तक जारी रहेगा।
- व्यक्तिगत स्तर पर प्रभाव
(अ) पापों से शुद्धि
हज के दौरान पश्चाताप, प्रार्थना, रोना और विलाप करना, और अराफात के मैदान पर खड़े होना व्यक्ति को उसके पापों से शुद्ध करता है।
"जो कोई भी हज करता है और अश्लील भाषण और पापों से बचता है, वह उतना ही पवित्र होकर लौटता है, जैसे कि वह अपनी माँ के गर्भ से पैदा हुआ हो।" (सहीह बुखारी)
(ब) आध्यात्मिक विकास
हज व्यक्ति में ये गुण पैदा करता है:
अल्लाह पर भरोसा
विनम्रता
कृतज्ञता
त्याग की भावना
ये गुण जीवन के हर पहलू में सुधार लाते हैं।
(ज) अनुशासन
हज का हर तत्व हमें व्यवस्था और संगठन सिखाता है। एक निश्चित समय, स्थान, विधि और शिष्टाचार के साथ, हज की रस्में हमें अनुशासन, समय की पाबंदी और समुदाय की भावना सिखाती हैं।
- समुदाय स्तर पर प्रभाव
(अ) उम्माह की एकता का व्यावहारिक अभ्यास
जब दुनिया भर के मुसलमान एक ही पोशाक में और एक ही कलमा दोहराते हुए अल्लाह के घर की परिक्रमा करते हैं, तो यह दृश्य उम्माह के लिए आशा और शक्ति का स्रोत बन जाता है। यह समागम राष्ट्रों के बीच की दूरी को कम करता है और उम्माह को एक शरीर की तरह एकजुट करता है।
(ब) वैश्विक इस्लामी चेतना का जागरण
विभिन्न देशों के मुसलमानों का एक जगह एकत्र होना:
उम्माह की समस्याओं के बारे में जागरूकता पैदा करता है
बौद्धिक एकता को बढ़ावा देता है
एक साझा एजेंडे का मार्ग प्रशस्त करता है
- हज का स्थायी संदेश
(अ) एकेश्वरवाद की केंद्रीयता
काबा की परिक्रमा हमें याद दिलाती है कि जीवन का हर क्षेत्र अल्लाह के इर्द-गिर्द घूमना चाहिए। हज का संदेश हर रिश्ते, हर फैसले, हर काम को अल्लाह की रजा से जोड़ना है।
(ब) समय का महत्व
हज का हर तत्व समय से जुड़ा हुआ है। चाहे वह अराफात का दिन हो, या मुजदलिफा की तीर्थयात्रा हो, या जमरात फेंकना हो - हर काम एक निश्चित समय पर किया जाना चाहिए। यह प्रशिक्षण व्यक्ति को समय के महत्व को समझाता है।
(ज) त्याग की महानता
हज़रत इब्राहीम (अ.स.) और हज़रत इस्माइल (अ.स.) की कुर्बानी हमें सिखाती है कि अगर हमें अल्लाह की खुशी के लिए अपनी इच्छाएँ, बच्चे, धन, समय या यहाँ तक कि अपनी जान भी देनी पड़े तो संकोच न करें। यही आज्ञाकारिता है जिसकी हमसे अपेक्षा की जाती है।
- आज के मनुष्य के लिए
हज का संदेश
(अ) आत्म-नियंत्रण
हज हमें सिखाता है:
क्रोध पर नियंत्रण
अश्लीलता से बचें
झगड़ों से बचें
ये वे गुण हैं जो सामाजिक शांति का आधार बनते हैं।
(ब) सार्वभौमिक भाईचारा
आज की दुनिया, जो नफरत, पूर्वाग्रह, नस्लीय और जातीय विभाजन और राष्ट्रवाद से टूटी हुई है - हज एक व्यावहारिक उपाय है। हज का संदेश है: "तुम सब आदम की संतान हो, और आदम मिट्टी से बनाया गया था।"
(ज) स्थायी परिवर्तन
हज एक अवसर है जो हमें जीवन को नए सिरे से शुरू करने के लिए आमंत्रित करता है:
पुराने पापों को त्यागें
एक नई प्रतिबद्धता बनाएं
अल्लाह की सेवा में जीवन जिएं
निष्कर्ष
हज एक इबादत है, एक प्रशिक्षण है, एक समागम है, एक क्रांति है। यह दिलों को झकझोरता है, आत्माओं को शुद्ध करता है, उम्माह को एकजुट करता है, और हमें दुनिया के हर कोने में अल्लाह के धर्म को फैलाने के लिए आमंत्रित करता है। पैगम्बर इब्राहीम (उन पर शांति हो) का "अज़ान बिल-हज" (हज के लिए आह्वान) का आह्वान आज भी गूंजता है, और हर साल लाखों दिल "लब्बैक अल्लाहुम् लब्बैक" कहकर जवाब देते हैं।
सवाल यह है:
क्या हम इस हज से सिर्फ़ एक रस्म के तौर पर लौटते हैं?
या क्या हम वाकई इसके संदेश के ज़रिए अपनी और अपनी उम्माह की नियति बदलने के लिए निकल पड़ते हैं?
लेखक: मौलाना सययद ज़हीन काज़मी
लेबनानी सेना ने दक्षिण लेबनान में एक इस्राइली ड्रोन मार गिरा
लेबनान की सेना ने बताया है कि एक इस्राइली ड्रोन दक्षिण लेबनान में देखा गया जिसको हमारी सेना ने मार गिराया।
बुधवार रात लेबनानी मीडिया के हवाले से बताया कि सेना ने एक बयान में कहा है कि यह ड्रोन दक्षिण लेबनान के कफरकला (Kfarkela) कस्बे के पास मार गिराया।
बयान के अनुसार, सेना की एक गश्ती टीम ने मौके को घेर लिया और ड्रोन को आगे की जांच के लिए अपने कब्जे में ले लिया।
बुधवार इस्राइली सेना ने लेबनान की हवाई, समुद्री और जमीनी सीमा का उल्लंघन करते हुए एक लेबनानी मछुआरे को अगवा कर लिया।
इस्राइली सैनिकों ने लेबनान की समुद्री सीमा में घुसकर एक नाव को रोका और उस पर सवार मछुआरों में से एक को उठा लिया।
इसके अलावा इस्राइली लड़ाकू विमानों ने आज दोपहर बाअलबक (Baalbek) के हवाई क्षेत्र में बहुत ही कम ऊंचाई पर उड़ान भरी।इसी तरह, एक इस्राइली ड्रोन ने राजधानी बेरूत और उसके आसपास के इलाकों में गश्त लगाई।
रहबरे इंक़ेलाब आयतुल्लाह ख़ामेनेई का 2025 का पैग़ामे हजः
बिस्मिल्लाह अर्रहमान अर्रहीम सारी तारीफ़ पूरी कायनात के पालनहार के लिए है और दुरूद व सलाम हो अल्लाह की बेहतरीन मख़लूक़ मोहम्मद मुस्तफ़ा, उनकी पाकीज़ा नस्ल और चुने हुए सहाबियों और उन पर जो भलाई में उनका पालन करते हैं, क़यामत के दिन तक।
हज मोमिनों की आरज़ू, मुश्ताक़ लोगों की ईद और सौभाग्यशालियों की आध्यात्मिक रोज़ी है और अगर उसके गहरे अर्थों वाले इशारों की मारेफ़त के साथ अंजाम पाए तो न सिर्फ़ इस्लामी जगत बल्कि पूरी इंसानियत की मुख्य पीड़ाओं का इलाज है।
हज का सफ़र, दूसरे सफ़र की तरह नहीं है जो व्यापार या पर्यटन या दूसरे लक्ष्यों के लिए अंजाम पाते हैं और कभी कभार उसमें कोई इबादत या भला काम भी अंजाम पाता है; हज का सफ़र आम ज़िंदगी से वांछित ज़िंदगी की ओर हिजरत है। वांछित ज़िंदगी, तौहीद पर आधारित ज़िंदगी है कि जिसमें सत्य के ध्रुव पर निरंतर तवाफ़, कठिन चोटियों के दरमियान हमेशा कोशिश, हमेशा कंकरी मारकर दुष्ट शैतान को भगाना, 'वुक़ूफ़' की हालत में अल्लाह की याद और उसकी प्रार्थना, ग़रीब और सफ़र में मजबूर हो जाने वाले राहगीर को खाना खिलाना, इंसानों के रंग, नस्ल, ज़बान और भौगोलिक स्थिति को एक नज़र से देखना, सभी हालत में सेवा के लिए तैयार रहना, अल्लाह की पनाह चाहना और सत्य की रक्षा का ध्वज उठाना ज़िंदगी के मुख्य और स्थायी तत्व हैं।
हज के संस्कारों में इस ज़िंदगी के प्रतीक के नमूने मौजूद हैं और वे हज करने वालों को उससे परिचित कराते और उसे अपनाने की दावत देते हैं। इस दावत पर ध्यान देना चाहिए। दिल, आँख और अंतरात्मा को खोलना चाहिए। इस सबक़ को सीखना चाहिए और इसे उपयोग करने के लिए कमर कस लेना चाहिए। हर शख़्स अपनी क्षमता भर इस रास्ते की ओर क़दम बढ़ाए और ओलमा, बुद्धिजीवियों और राजनैतिक पदों पर बैठे और उच्च सामाजिक स्थिति से संपन्न लोगों की, दूसरों से ज़्यादा इस दिशा में क़दम बढ़ाने की ज़िम्मेदारी है।
इस्लामी जगत को आज हमेशा से ज़्यादा इस पाठ पर अमल करने की ज़रूरत है। यह दूसरा हज है जो ग़ज़ा और वेस्ट एशिया के दर्दनाक वाक़यों के दौरान अंजाम पा रहा है। फ़िलिस्तीन पर क़ाबिज़ अपराधी ज़ायोनी गैंग ने नाक़ाबिले यक़ीन दरिंदगी, अभूतपूर्व निर्दयता और दुष्टता के साथ ग़ज़ा की त्रासदी को ऐसी स्थिति में पहुंचा दिया है कि जिस पर यक़ीन नहीं आता। इस वक़्त फ़िलिस्तीनी बच्चे बमों, गोलों और मीज़ाइलों के अलावा भूख और प्यास से मर रहे हैं। अपने अज़ीज़ों, जवानों और माँ बाप को खोने वाले दुखी घरानों की तादाद दिन ब दिन बढ़ती जा रही है। इस मानव त्रासदी को रोकने के लिए किसे डटना चाहिए?
इस बात में शक नहीं कि सबसे पहले यह इस्लामी हुकूमतों का फ़रीज़ा है और फिर क़ौमों का जो अपनी सरकारों से इस फ़रीज़े को अंजाम देने का मुतालेबा करें। मुसलमान सरकारें शायद मुख़्तलिफ़ मसलों में आपस में राजनैतिक मतभेद रखती हों लेकिन ये मतभेद ग़ज़ा के दर्दनाक मसले पर संयुक्त स्टैंड अपनाने और आज की दुनिया के सबसे मज़लूम इंसानों की रक्षा में सहयोग के सिलसिले में उनके आड़े न आएं। मुसलमान सरकारों को ज़ायोनी सरकार को मदद पहुंचाने वाले सारे रास्तों को बंद कर देना चाहिए और इस अपराधी को ग़ज़ा में उसकी निर्दयी करतूतों को जारी रखने से बाज़ रखना चाहिए। अमरीका, ज़ायोनी सरकार के अपराधों में निश्चित तौर पर भागीदार है, इस इलाक़े में और दूसरे इस्लामी क्षेत्रों में अमरीका के संपर्क में रहने वाले लोग, मज़लूम के सपोर्ट के सिलसिले में क़ुरआन मजीद की आवाज़ सुनें और अमरीका की साम्राज्यवादी सरकार को इस ज़ालेमाना व्यवहार को रोकने के लिए मजबूर करें। हज में बराअत का एलान, इस राह में एक क़दम है।
ग़ज़ा के अवाम के हैरतअंगेज़ प्रतिरोध ने फ़िलिस्तीन के मुद्दे को इस्लामी जगत और दुनिया के तमाम आज़ादी के समर्थक इंसानों के ध्यान का सबसे बड़ा केन्द्र बना दिया है। इस मौक़े से फ़ायदा उठाना चाहिए और इस मज़लूम क़ौम के सपोर्ट के लिए आगे आना चाहिए। फ़िलिस्तीन के मसले को भुला दिए जाने की साम्राज्यावादियों और ज़ायोनी सरकार के समर्थकों की कोशिशों के बावजूद इस सरकार के हुक्मरानों की दुष्ट प्रवृत्ति और उनकी मूर्खतापूर्ण नीति ने ऐसी स्थिति पैदा कर दी है कि आज फ़िलिस्तीन का नाम पहले से ज़्यादा उज्जवल है और ज़ायोनियों और उनके समर्थकों से नफ़रत, पहले से ज़्यादा है और यह इस्लामी जगत के लिए एक अहम मौक़ा है।
वक्ताओं और उच्च सामाजिक स्थिति के लोगों के लिए ज़रूरी है कि वे क़ौमों को जागरुक बनाएं, उन्हें संवेदनशील बनाएं और फ़िलिस्तीन से संबंधित मुतालबों को ज़्यादा से ज़्यादा फैलाएं। आप सौभाग्यशाली हाजी भी, हज के संस्कारों के दौरान दुआ और अल्लाह से मदद तलब करने के मौक़े को हाथ से जाने न दें और अल्लाह से ज़ालिम ज़ायोनियों और उनके समर्थकों पर विजय की दुआ कीजिए।
अल्लाह का दुरूद व सलाम हो पैग़म्बरे इस्लाम, उनकी पाकीज़ा नस्ल और सलाम व दुरूद हो ज़मीन पर अल्लाह की आख़िरी हुज्जत इमाम महदी पर अल्लाह उन्हें जल्द से जल्द ज़ाहिर करे।
सैयद अली ख़ामेनेई
3 ज़िलहिज्जा 1446 हिजरी क़मरी
30 मई 2025
अराफात के मैदान में निराशा का अंत
पैगम्बर मुहम्मद (स) ने एक रिवायत में बताया है कि जो व्यक्ति अराफात के मैदान से निराशा में लौटता है, वह सबसे बड़ा गुनाहगार होता है।
निम्नलिखित रिवायत को "बिहार उल-अनवार" पुस्तक से लिया गया है। इस रिवायत का पाठ इस प्रकार है:
قال رسول اللہ صلی اللہ عليه وآله:
أعظَمُ أهلِ عَرَفاتٍ جُرماً مِنِ انصَرَفَ وهُوَ یَظُنُّ أنَّهُ لَن یُغفَرَ لَهُ
पैग़म्बर (स) ने फ़रमाया:
अराफ़ात के लोगों का सबसे बड़ा गुनाह यह है कि वह भटक जाता है और सोचता है कि उसे माफ नहीं किया जाएगा।
बिहार उल-अनवार, भाग 99, पेज 248
अराफ़ात, इज्तेमाई इबादत से लेकर गुनाहों की माफ़ी तक का सुनहरा मौक़ा
हुज्जतुल इस्लाम वल-मुसलेमीन रहिमियान ने कहा: अरफात के दिन के लिए अल्लाह के रहस्यों और ज़रूरतों और गुनाहों की माफ़ी के लिए विशेष दुआ की सिफ़ारिशें हैं।
हुज्जतुल इस्लाम वल-मुसलेमीन अब्बास रहिमियान ने ज़िलहिज्जा की नौवीं तारीख़ यानी “अरफ़ात के दिन” की महानता और महत्व को बताया और इस दिन इबादत, दुआ और माफ़ी मांगने पर ज़ोर दिया।
अल्लाह तआला की ओर से एक आम निमंत्रण
उन्होंने कहा कि अराफात का दिन वह दिन है जब हाजी अरफ़ात के मैदान में खड़े होकर इबादत करते हैं, लेकिन यह दिन सिर्फ़ हाजियों के लिए नहीं है, बल्कि अल्लाह तआला ने अपने सभी बंदों के लिए अपनी रहमत का दस्तरखान बिछाया है और सभी को इबादत करने और अल्लाह के करीब आने का निमंत्रण दिया है।
शैतान की नाराज़गी और स्वर्गीय क्षमा का द्वार
हुज्जतुल इस्लाम रहिमियान ने आगे कहा: अरफा का दिन शैतान के लिए बहुत कठिन और क्रोध का स्रोत है, क्योंकि इस दिन, मानव पापों को क्षमा कर दिया जाता है, दुआए स्वीकार की जाती हैं, और बंदे अपने अल्लाह के करीब हो जाते हैं। यहां तक कि मां के गर्भ में पल रहे बच्चे भी इस दिन की बरकतों से वंचित नहीं रहते।
इमाम सज्जाद की चेतावनी: अल्लाह के अलावा किसी और से मदद न मांगें
उन्होंने इमाम सज्जाद (अ) की एक रिवायत की ओर इशारा करते हुए कहा: पैगंबर ने एक भिखारी को देखा जो अरफा के दिन लोगों से मदद मांग रहा था। इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ) ने उससे कहा: "हाय तुम पर! क्या तुम ऐसे दिन अल्लाह के अलावा किसी और से मदद मांगते हो?"
इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत; हज और जिहाद से भी बड़ा सवाब
यह धार्मिक विशेषज्ञ आगे कहते हैं: अरफा के दिन सबसे महत्वपूर्ण मुस्तहब आमाल में से एक इमाम हुसैन (अ) की जियारत करना है, जिस पर बहुत जोर दिया गया है। कुछ रिवायतों के अनुसार, इस दिन इमाम हुसैन (अ) की जियारत करने का सवाब एक हजार हज, एक हजार उमराह और एक हजार जिहाद के बराबर है, और कुछ रिवायतों में यह हज से भी बेहतर है। इस दिन अल्लाह तआला सबसे पहले सय्यद अल-शोहदा (अ) के हाजियों पर रहमत की निगाह से देखता है, फिर हाजियों पर।
अरफा की दुआ और दुआएँ: ग़ुस्ल, नमाज़ और इस्तगफ़ार
उन्होंने कहा कि अरफा के दिन की इबादतों में नमाज़ की दो रकत का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है, जिन्हें दुआ से पहले खुले आसमान के नीचे अदा किया जाना चाहिए, और जिसमें व्यक्ति अपने पापों का कबूल करता है। इस कार्य से व्यक्ति के पाप क्षमा हो जाते हैं और वह हज के सवाब में शामिल हो जाता है। दिन के दूसरे भाग में सांसारिक मामलों से दूर रहने और केवल पूजा, नमाज़ और पश्चाताप में संलग्न होने की सिफारिश की जाती है।
इमाम हुसैन (अ) की दुआ; प्रेमपूर्ण प्रार्थनाओं की पराकाष्ठा
अंत में, हुज्जतुल इस्लाम रहिमियान ने अरफात पर इमाम हुसैन (अ) की दुआ की ओर इशारा करते हुए कहा: यह दुआ रहस्यमय विषयों से भरी है, जिसे इमाम हुसैन (अ) ने अरफात के मैदान में खड़े होकर आंसू भरी आँखों से पढ़ा था। हम सभी के लिए दुआ में शामिल होना, क्षमा मांगना और अरफात की दोपहर को इस दुआ को पढ़ना उचित है, भले ही थोड़े समय के लिए ही क्यों न हो, क्योंकि कभी-कभी जीवन के कुछ क्षण किसी व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास के लिए सदियों के बराबर प्रभाव डालते हैं।
अमेरिका का पतन एक अटल हक़ीक़त है
राजनीतिक मामलों के विशेषज्ञ ने कहा, अमेरिका का पतन एक ऐसी सच्चाई है जिसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता और हम निकट भविष्य में उसके बदलाव और ज़वाल को देखेंगे।
फ़ोआद इज़दी जो एक राजनीतिक मामलों के विशेषज्ञ हैं, ने इमामैन-ए-इंक़लाब के गुफ़्तगू का विस्तार" शीर्षक से आयोजित एक राष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लिया यह सम्मेलन "इमाम खुमैनी (र.ह)" शैक्षिक और शोध संस्थान द्वारा "यावरे मदी कॉम्प्लेक्स" में आयोजित किया गया था।
उन्होंने अमेरिका की नीतियों को सही ढंग से समझने की अहमियत पर ज़ोर देते हुए कहा कि इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद अमेरिका की वैश्विक और ईरान में भूमिका का विश्लेषण करना इस बात की पहचान में मदद करता है कि सही रास्ता कौन-सा है और गुमराही का रास्ता कौन सा।
इज़दी ने कहा कि क्रांति के पहले दशक में इमाम खुमैनी (रह) का अमेरिका को लेकर दृष्टिकोण पूरी तरह स्पष्ट था यहाँ तक कि जो लोग आज सुधारवादी गुट से माने जाते हैं, उन्होंने भी उस समय अमेरिका के खिलाफ तीखे रुख अपनाए थे।
लेकिन समय के साथ कुछ लोगों ने अमेरिका के साथ संबंधों को लेकर एक काल्पनिक और अप्रामाणिक चित्र पेश किया और यहां तक कि अमेरिका की ईरान में निवेश की वकालत भी की, जिसके नतीजे में बाद में देश की नीति में कई समस्याएं पैदा हुईं।
उन्होंने यह भी कहा कि आयतुल्ला खामेनेई ने कई बार यह बात दोहराई है कि किसी व्यक्ति का अमेरिका के प्रति रवैया उसकी विश्वदृष्टि (worldview) को दर्शाता है।
उन्होंने चेताया कि आज भी कुछ विदेशी और फारसी भाषा के दुश्मन मीडिया यह कहकर एक ग़लतफ़हमी फैलाने वाला मनोवैज्ञानिक युद्ध चला रहे हैं कि अमेरिका वार्ता चाहता है लेकिन ईरान के सर्वोच्च नेता इसमें बाधा बन रहे हैं। यह एक योजना है जो तथ्यों को उल्टा करके पेश कर रही है।
इज़दी ने स्पष्ट किया कि ईरान और अमेरिका के बीच मूल समस्या यूरेनियम संवर्धन जैसी चीज़ों में नहीं है, बल्कि अमेरिका की नीतियों और उसके व्यवहार में है अमेरिका ने अंतरराष्ट्रीय संधियों का उल्लंघन किया है और ईरानी वैज्ञानिकों की हत्या जैसे कृत्यों से यह साबित किया है कि उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता।
उन्होंने कहा कि आज अमेरिका पतन के रास्ते पर है और यहाँ तक कि म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन की वार्षिक रिपोर्ट "पोस्ट-वेस्ट" (Post-West) के शीर्षक के साथ इस गिरावट को स्वीकार कर चुकी है उस रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक शक्ति और संपत्ति अब पूरब की ओर बढ़ रही है, जो वैश्विक व्यवस्था में परिवर्तन का संकेत है।
उन्होंने इस्लामी क्रांति की शुरुआत से ही पूरब और पश्चिम दोनों की सत्ता के खिलाफ थी और आज अमेरिका से दुश्मनी उसकी नीति के कारण है, न कि उसकी जातीय पहचान के कारण। सुप्रीम लीडर हमेशा इस बात पर ज़ोर देते रहे हैं कि अमेरिका का पतन वास्तविक है और यह वापसी का रास्ता नहीं है।
इज़दी ने कहा कि अमेरिका के नीति निर्माताओं की तरफ़ से चलाया जा रहा यह मनोवैज्ञानिक युद्ध” इस उद्देश्य से हो रहा है कि इस्लामी व्यवस्था को अकार्यक्षम साबित किया जा सके। इसलिए, हमें सजग रहना चाहिए और अमेरिका को लेकर अपने विश्लेषण को वास्तविकता और पिछले अनुभवों के आधार पर ही बनाना चाहिए।
अंत में उन्होंने कहा कि आज दुनिया भर, ख़ास तौर पर अमेरिका के विश्वविद्यालयों में फ़िलिस्तीन के समर्थन की जागरूकता तेज़ी से बढ़ रही है। यह बात दर्शाती है कि मुक़ावमत (प्रतिरोध) की सोच अब ताक़तवर हो चुकी है और पश्चिमी धुरी कमज़ोर होती जा रही है।
हज में महिलाओं की भूमिका
हज का वातावरण हज़रत हाजेरा और हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के काल से ही, पुरुषों के साथ महिलाओं को समान अधिकार प्रदान करता है और इस प्रक्रिया में मानवीय व लैंगिक दोनों आयामों को दृष्टि में रखा गया है...
हज का वातावरण हज़रत हाजेरा और हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के काल से ही, पुरुषों के साथ महिलाओं को समान अधिकार प्रदान करता है और इस प्रक्रिया में मानवीय व लैंगिक दोनों आयामों को दृष्टि में रखा गया है। हज एक ऐसा मंच है जो महिलाओं को समाजिक स्तर पर नये अनुभव प्राप्त करने और अन्य लोगों के साथ व्यवहार की शैलियों से परिचित कराता है। इस्लाम के सब से बड़े प्रशिक्षण कार्यक्रम के रूप में हज अधिवेशन, वर्ष में एक बार आयोजित होता है। हज के नियम व संस्कार कुछ इस प्रकार से हैं कि उसमें, लिंगभेद, जाति , पद व सामाजिक स्थिति पर ध्यान दिए बिना सभी लोगों को समान समझा गया है। सभी को हज के संस्कार करना होते हैं और स्वार्थ व अहंकार से निकलना होता है ताकि ईश्वर से निकट हुआ जा सके और स्वंय को एक नये मनुष्य के रूप में ढाला जा सके। हज संस्कारों में महिलाओं की प्रभावशाली व सराहनीय भूमिका स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। ईश्वरीय धर्म के प्राचीन इतिहास में जिन महिलाओं को ईश्वर पर आस्था, उसके प्रति ज्ञान व उसकी पहचान का प्रतीक समझा गया, उनके साथ हज संस्कारों को कुछ इस प्रकार से जोड़ दिया गया है कि आज भी हज के बहुत से संस्कार और नियमों में उनकी झलक देखी जा सकती है। हज अत्यन्त प्राचीन संस्कार है। मक्का नगर में काबा, पृथ्वी के पहले मुनष्य हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के युग में बनाया गया था और उस समय से अब तक, एकेश्वरवादियों और ईश्वर में आस्था रखने वालों का उपासनास्थल रहा है। हज़रत इब्राहीम के युग में कि जब हज के अधिकांश संस्कारों की आधारशिला रखी गयी, सब से मुख्य भूमिका हज़रत हाजेरा नामक एक महान महिला ने निभाई। वे हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की पत्नी और हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम की माता हैं। उनकी महानता वास्तव में उन परीक्षाओं, संघर्षों, ईश्वर पर भरोसा और उसमें आस्था का परीणाम है जो उनके जीवन में जगह जगह देखने को मिलती है जिनकी याद मक्का के वातावरण और हज के संस्कार से दिलायी गयी है। मक्का के सूखे मरुस्थल में ईश्वर पर भरोसा और अपने पुत्र इस्माईल के लिए एक घूंट पानी के लिए इधर इधर व्याकुलता में हज़रत हाजरा का दौड़ना ईश्वरीय चिन्हों में गिना गया है। हज में हाजियों को सफ़ा और मरवा नामक दो पहाड़ियों के मध्य दौड़ कर हज़रत हाजरा के उसी संघर्ष को याद करना और ईश्वर पर भरोसे में का पाठ लेना होता है। हज़रत हाजेरा ने यह सिखा दिया कि अकेलेपन और बेसहारा हो जाने के बाद किस प्रकार से कृपालु ईश्वर से आशा रखनी चाहिए। यह कहा जा सकता है कि हज़रत इब्राहीम के साथ हज़रत हाजेरा की जीवनी, वास्तव में उपासना और ईश्वर पर आस्था का इतिहास है। निसंदेह हर मनुष्य किसी न किसी प्रकार इस तरह की परीक्षा का सामना करता है और यह परीक्षा कभी कभी बहुत कठिन होती है। इस स्थिति में संकटों और समस्याओं से निकलने के लिए, हज़रत इब्राहीम और हज़रत हाजेरा जैसे आदर्शों के पदचिन्हों पर चलना चाहिए। कु़रआने मजीद के सूरए मुमतहेना की आयत नंबर चार में कहा गया है कि तुम ईश्वर पर आस्था रखने वालों के लिए अत्यन्त सराहनीय व अच्छी बात यह है कि इब्राहीम और उनके साथ रहने वालों का अनुसरण करो।
हज़रत हाजेरा की महानता का एक अन्य आयाम, ईश्वरीय आदेशों के सामने नतमस्तक होना है। जब उन्हें अपने बेटे इस्माईल की बलि चढ़ाने के ईश्वरीय आदेश का ज्ञान हुआ तो शैतानी बहकावा अपनी चरम सीमा पर पहुंच गया। शैतान उनके पास गया कहने लगा कि इब्राहीम तुम्हारे बेटे को मार डालना चाहते हैं। हज़रत हाजेरा ने कहा कि क्या विश्व में एसा कोई है जो अपने ही बेटे को मार डाले? शैतान ने कहा वह दावा करते हैं कि यह ईश्वर का आदेश है। हज़रत हाजेरा ने कहा कि चूंकि यह ईश्वर का आदेश है इस लिए उसका पालन होना चाहिए। जो ईश्वर को पसन्द है मैं उसी में खुश हूं। ईश्वर के प्रति आस्था से परिपूर्ण हज़रत हाजेरा की इस बात ने उनकी महानता में चार चांद लगा दिये। आज हज़रत हाजेरा और हज़रत इस्माईल की क़ब्रें, हजरे इस्माईल नामक स्थान पर ईश्वरीय दूतों के साथ हैं। यह स्थान काबे के पास ही गोलार्ध आकार में मौजूद है। जो हाजी काबे की परिक्रमा करना चाहते हैं उन्हें काबे के साथ ही इस स्थान की भी परिक्रमा करनी होती है इस प्रकार से वह महिला जो ईश्वरीय आदेश के कारण मरुस्थल में अकेली रही और जिसने ईश्वरीय आदेश को सह्रदय स्वीकार किया, अन्य लोगों के लिए आदर्श बन गयी। हज़रत हाजेरा पहली महिला हैं जिन्होंने काबे के प्रति अपनी आस्था प्रकट करने के लिए उसके द्वार पर पर्दा डाला। इस्लामी संस्कृति में यदि मनुष्य पवित्रता की सीढ़िया तय कर ले और महानता प्राप्त करने में सफल हो जाए तो वह अन्य लोगों के लिए आदर्श बन सकता है और इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि वह महिला है या पुरुष। कु़रआने मजीद में चार आदर्श महिलाओं की बात की गयी है जिन्हें ईश्वर ने धर्म में आस्था रखने वालों के लिए आदर्श कहा है। सूरए तहरीम की आयत नंबर ११ में कहा गया है और ईश्वर ने मोमिनों के लिए फिरऔन की पत्नी का उदाहरण दिया है जब उसने कहा हे पालनहार! तू मेरे लिए स्वर्ग में एक घर बना और मुझे नास्तिक फिरऔन, उसके चरित्र और अत्याचारी जाति से छुटकारा दिला। इसके बाद की आयत में ईश्वर हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की माता हज़रत मरयम को, जिनकी एसी विशेषताए हैं जो किसी अन्य में नहीं हैं, सभी महिलाओं व पुरुषों का आदर्श बताया गया है। काबे के एक कोने में जिसे रुक्ने यमानी कहा जाता है, फातेमा बिन्ते असद नाम की एक अत्यन्त पवित्र महिला का चिन्ह देखा जा सकता है। वे हज़रत अली अलैहिस्सलाम की माता हैं जिन्होंने अपने पुत्र के जन्म में सहायता के लिए काबे को सहारा बनाया था। इतिहासकारों ने प्रत्यक्षदर्शियों के हवाले से लिखा है कि अचानक काबे की दीवार फटी और फातेमा बिन्ते असद काबे के भीतर चली गयीं और तीन दिन बाद, अपने बच्चे को गोद में लिए उसी स्थान से बाहर निकलीं । यह वास्तव में ईश्वरीय संदेश के स्थान और काबे में महिलाओं के लिए एक अन्य सम्मान व गौरव है तथा इस से पवित्र महिलाओं की महानता व महत्व का भी पता चलता है।
इस्लाम के उदय के बाद कुछ तथ्य, महिलाओं के हज से परोक्ष व अपरोक्ष रूप से संबंध को दर्शाते हैं। हज़रत ख़दीजा वह एकमात्र महिला हैं जो इस्लाम के उदय के कठिन समय में पैग़म्बरे इस्लाम और हज़रत अली अलैहिस्सलाम के साथ काबे में जाकर उपासना करती थीं। इन तीन हस्तियों ने क़ुरैश क़बीले की अनेकेश्वरवादी रीति रिवाजों के विपरीत एक नयी परंपरा की आधार शिला रखी और उसका प्रदर्शन किया। इस संस्कृति में महिला व पुरुष कांधे से कांधा मिलाकर अनन्य ईश्वर के घर काबे में जाते हैं। इस्लाम के विशेष नियमों के संकलन के यह आंरभिक क़दम, भविष्य में हज के व्यापक संस्कारों की भूमिका बने। इतिहास में महिलाओं के लिए यह भी एक गौरव लिख लिया गया है कि इस्लाम के उदय के दिनों में महिलाओं ने इस्लाम के विस्तार में पैगम्बरे इस्लाम के साथ भूमिका निभाई और काबे में इस्लामी संस्कृति की आधारशिला रखी। हज के दौरान महिलाओं द्वारा पैगम्बरे इस्लाम के समक्ष आज्ञापालन की प्रतिज्ञा भी महिलाओं की महानता का एक अन्य चिन्ह है। मक्का नगर में पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने ७३ साथियों के साथ मक्का के लोगों के साथ अक़बा नामक दूसरा जो समझौता किया था उस समय ७३ लोगों में कई महिलाएं शामिल थीं। इन लोगों ने आज्ञापालन की प्रतिज्ञा के लिए पैगम्बरे इस्लाम से समय मांगा। पैग़म्बरे इस्लाम ने मिना के मैदान में आज्ञापालन की प्रतिज्ञा का समय निर्धारित किया। उन लोगों ने १३ ज़िलहिज्जा की रात पैगम्बरे इस्लाम से बात की
हज क्या है?
यह जिलहिज का महीना है। यह महीना, मक्का में लाखों तीर्थयात्रियों के एकत्रित होने का काल है जिसमें वे सुन्दर एवं अद्वितीय उपासना हज के संसकार पूरे करते हैं........... यह जिलहिज का महीना है। यह महीना, मक्का में लाखों तीर्थयात्रियों के एकत्रित होने का काल है जिसमें वे सुन्दर एवं अद्वितीय उपासना हज के संसकार पूरे करते हैं। इस समय
यह जिलहिज का महीना है। यह महीना, मक्का में लाखों तीर्थयात्रियों के एकत्रित होने का काल है जिसमें वे सुन्दर एवं अद्वितीय उपासना हज के संसकार पूरे करते हैं...........
यह जिलहिज का महीना है। यह महीना, मक्का में लाखों तीर्थयात्रियों के एकत्रित होने का काल है जिसमें वे सुन्दर एवं अद्वितीय उपासना हज के संसकार पूरे करते हैं। इस समय लाखों की संख्या में मुसलमान ईश्वरीय संदेश की भूमि मक्के में एकत्रित हो रहे हैं। विश्व के विभिन्न क्षेत्रों से लोग गुटों और जत्थों में ईश्वर के घर की ओर जा रहे हैं और एकेश्वरवाद के ध्वज की छाया में वे एक बहुत व्यापक एकेश्वरवादी आयोजन का प्रदर्शन करेंगे। हज में लोगों की भव्य उपस्थिति, हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की प्रार्थना के स्वीकार होने का परिणाम है जब हज़रत इब्राहमी अपने बेटे इस्माईल और अपनी पत्नी हाजरा को इस पवित्र भूमि पर लाए और उन्होंने ईश्वर से कहाः प्रभुवर! मैंने अपनी संतान को इस बंजर भूमि में तेरे सम्मानीय घर के निकट बसा दिया है। प्रभुवर! ऐसा मैंने इसलिए किया ताकि वे नमाज़ स्थापित करें तो कुछ लोगों के ह्रदय इनकी ओर झुका दे और विभिन्न प्रकार के फलों से इन्हें आजीविका दे, कदाचित ये तेरे प्रति कृतज्ञ रह सकें।शताब्दियों से लोग ईश्वर के घर के दर्शन के उद्देश्य से पवित्र नगर मक्का जाते हैं ताकि हज जैसी पवित्र उपासना के लाभों से लाभान्वित हों तथा एकेश्वरवाद का अनुभव करें और एकेश्वरवाद के इतिहास को एक बार निकट से देखें। यह महान आयोजन एवं महारैली स्वयं रहस्य की गाथा कहती है जिसके हर संस्कार में रहस्य और पाठ निहित हैं। हज का महत्वपूर्ण पाठ, ईश्वर के सम्मुख अपनी दासता को स्वीकार करना है कि जो हज के समस्त संस्कारों में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। इन पवित्र एवं महत्वपूर्ण दिनों में हम आपको हज के संस्कारों के रहस्यों से अवगत करवाना चाहते हैं। मनुष्य की प्रवृत्ति से इस्लाम की शिक्षाओं का समन्वय, उन विशेषताओं में से है जो सत्य और पवित्र विचारों की ओर झुकाव का कारण है। यही विशिष्टता, इस्लाम के विश्वव्यापी तथा अमर होने का चिन्ह है। इस आधार पर ईश्वर ने इस्लाम के नियमों को समस्त कालों के लिए मनुष्य की प्रवृत्ति से समनवित किया है। हज सहित इस्लाम की समस्त उपासनाएं, हर काल की परिस्थितियों और हर काल में मनुष्य की शारीरिक, आध्यात्मिक, व्यक्तिगत तथा समाजी आवश्यकताओं के बावजूद उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति करती हैं। इस्लाम की हर उपासना का कोई न कोई रहस्य है और इसके मीठे एवं मूल्यवान फलों की प्राप्ति, इन रहस्यों की उचित पहचान के अतिरिक्त किसी अन्य मार्ग से कदापि संभव नहीं है। हज भी इसी प्रकार की एक उपासना है। ईश्वर के घर के दर्शन करने के उद्देश्य से विश्व के विभिन्न क्षेत्रों से लोग हर प्रकार की समस्याएं सहन करते हुए और बहुत अधिक धन ख़र्च करके ईश्वरीय संदेश की धरती मक्का जाते हैं तथा “मीक़ात” नामक स्थान पर उपस्थित होकर अपने साधारण वस्त्रों को उतार देते हैं और “एहराम” नामक हज के विशेष कपड़े पहनकर लब्बैक कहते हुए मोहरिम होते हैं और फिर वे मक्का जाते हैं। उसके पश्चात वे एकसाथ हज करते हैं। पवित्र नगर मक्का पहुंचकर वे सफ़ा और मरवा नामक स्थान पर उपासना करते हैं। उसके पश्चात अपने कुछ बाल या नाख़ून कटवाते हैं। इसके बाद वे अरफ़ात नामक चटियल मैदान जाते हैं। आधे दिन तक वे वहीं पर रहते हैं जिसके बाद हज करने वाले वादिये मशअरूल हराम की ओर जाते हैं। वहां पर वे रात गुज़ारते हैं और फिर सूर्योदय के साथ ही मिना कूच करते हैं। मिना में विशेष प्रकार की उपासना के बाद वापस लौटते हैं उसके पश्चात काबे की परिक्रमा करते हैं। फिर सफ़ा और मरवा जाते हैं और उसके बाद तवाफ़े नेसा करने के बाद हज के संस्कार समाप्त हो जाते हैं। इस प्रकार हाजी, ईश्वरीय प्रसन्नता की प्राप्ति की ख़ुशी के साथ अपने-अपने घरों को वापस लौट जाते हैं।हज जैसी उपासना, जिसमें उपस्थित होने का अवसर समान्यतः जीवन में एक बार ही प्राप्त होता है, क्या केवल विदित संस्कारों तक ही सीमित है जिसे पूरा करने के पश्चात हाजी बिना किसी परिवर्तन के अपने देश वापस आ जाए? नहीं एसा बिल्कुल नहीं है। हज के संस्कारों में बहुत से रहस्य छिपे हुए हैं। इस महान उपासना में निहित रहस्यों की ओर कोई ध्यान दिये बिना यदि कोई हज के लिए किये जाने वाले संस्कारों की ओर देखेगा तो हो सकता है कि उसके मन में यह विचार आए कि इतनी कठिनाइयां सहन करना और धन ख़र्च करने का क्या कारण है और इन कार्यों का उद्देश्य क्या है? पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पौत्र इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के काल में इब्ने अबिल औजा नामक एक बहुत ही दुस्साहसी अनेकेश्वरवादी, एक दिन इमाम सादिक़ (अ) की सेवा में आकर कहने लगा कि कबतक आप इस पत्थर की शरण लेते रहेंगे और कबतक ईंट तथा पत्थर से बने इस घर की उपासना करते रहेंगे और कबतक उसकी परिक्रमा करते रहेंगे? इब्ने अबिल औजा की इस बात का उत्तर देते हुए इमाम जाफ़र सादिक़ अ. ने काबे की परिक्रमण के कुछ रहस्यों की ओर संकेत करते हुए कहा कि यह वह घर है जिसके माध्यम से ईश्वर ने अपने बंदों को उपासना के लिए प्रेरित किया है ताकि इस स्थान पर पहुंचने पर वह उनकी उपासना की परीक्षा ले। इसी उद्देश्य से उसने अपने बंदों को अपने इस घर के दर्शन और उसके प्रति सम्मान व्यक्त करने के लिए प्रेरित किया और इस घर को नमाज़ियों का क़िब्ला निर्धारित किया। पवित्र काबा, ईश्वर की प्रसन्नता की प्राप्ति का केन्द्र और उससे पश्चाताप का मार्ग है अतः वह जिसके आदेशों का पालन किया जाए और जिसके द्वारा मना किये गए कामों से रूका जाए वह ईश्वर ही है जिसने हमारी सृष्टि की है। इसलिए कहा जाता है कि हज का एक बाह्य रूप है और एक भीतरी रूप। ईश्वर एसे हज का इच्छुक है जिसमें हाजी उसके अतिरिक्त किसी अन्य से लब्बैक अर्थात हे ईश्वर मैंने तेरे निमंत्रण को स्वीकार किया न कहे और उसके अतिरिक्त किसी अन्य की परिक्रमा न करे। हज के संस्कारों का उद्देश्य, हज़रत इब्राहीम, हज़रत इस्माईल, और हज़रत हाजरा जैसे महान लोगों के पवित्र जीवन में चिंतन-मनन करना है। जो भी इस स्थान की यात्रा करता है उसे ईश्वर के अतिरिक्त किसी अन्य की उपासना से मुक्त होना चाहिए ताकि वह हज़रत इब्राहीम और हज़रत इस्माईल जैसे महान लोगों की भांति ईश्वर की परीक्षा में सफल हो सके। इस्लाम में हज मानव के आत्मनिर्माण के एक शिविर की भांति है जिसमें एक निर्धारित कालखण्ड के लिए कुछ विशेष कार्यक्रम निर्धारित किये गए हैं। एक उपासना के रूप में हज, मनुष्य पर सार्थक प्रभाव डालती है। हज के संस्कार कुछ इस प्रकार के हैं जो प्रत्येक मनुष्य के अहंकार और अभिमान को किसी सीमा तक दूर करते हैं। अल्लाहुम्म लब्बैक के नारे के साथ अर्थात हे ईश्वर मैंने तेरे निमंत्रण को स्वीकार किया, ईश्वर के घर की यात्रा करने वाले लोग अन्य क्षेत्रों में भी एकेश्वर की बारगाह में अपनी श्रद्धा को प्रदर्शित करने को तैयार हैं। लब्बैक को ज़बान पर लाने का अर्थ है ईश्वर के हर आदेश को स्वीकार करने के लिए आध्यात्मिक तत्परता का पाया जाना।इस प्रकार हज के संस्कार, मनुष्य को उच्च मानवीय मूल्यों और भौतिकता पर निर्भरता को दूर करने के लिए प्रेरित करते हैं। इस मानवीय यात्रा की प्रथम शर्त, हृदय की स्वच्छता है अतःहृदय को ईश्वर के अतिरिक्त हर चीज़ से अलग करना चाहिए। जबतक मनुष्य पापों में घिरा रहता है उस समय तक ईश्वर के साथ एंकात की मिठास का आभास नहीं कर सकता। ईश्वर से निकटता के लिए पापों से दूरी का संकल्प करना चाहिए। हज के स्वीकार होने की यह शर्त है। जब दैनिक गतिविधियां मनुष्य को हर ओर से घेर लेती हैं और उच्चता क
हज के शुभ अवसर पर विशेष कार्यक्रम- 5
बाप- बेटे मक्का के पहाड़ से काले पत्थर के कुछ टुकड़ों को लाये थे और उन्हें तराश कर उन्होंने काबे की आधारशिला रखी थी। बाप-बेटे ने महान व सर्वसमर्थ ईश्वर के आदेश से बड़े और सादे घर का निर्माण किया। इस पावन घर का नाम उन्होंने काबा रखा। यही साधारण घर काबा समूची दुनिया में एकेश्वरवाद का प्रतीक और पूरी दुनिया का दिल बन गया। जिस तरह आकाशगंगा महान ईश्वर का गुणगान कर रही है ठीक उसी तरह यह पावन घर है जिसकी दुनिया के लाखों मुसलमान परिक्रमा करते हैं। हज महान ईश्वर की प्रशंसा व गुणगान का प्रतिबिंबन है। हज महान हस्तियों की बहुत सी कहानियों की याद दिलाता है।
हज एक ऐसा धार्मिक संस्कार है जो जाति और राष्ट्र से ऊपर उठकर है यानी इसमें सब शामिल होते हैं चाहे उनका संबंध किसी भी जाति या राष्ट्र से हो। ग़रीब, अमीर, काला, गोरा, अरब और ग़ैर अरब सब इसमें भाग लेते हैं। हज के अंतरराष्ट्रीय आयाम हैं और एकेश्वरवाद का नारा समस्त आसमानी धर्मों के मध्य निकटता का कारण बन सकता है।
पवित्र कुरआन की आयतों के अनुसार हज़रत इब्राहीम अलैहस्सलाम ने महान ईश्वर के आदेश से हज की सार्वजनिक घोषणा कर रखी है। महान ईश्वर पवित्र कुरआन में कहता है” और हे पैग़म्बर! हज के लिए लोगों के मध्य घोषणा कर दीजिये ताकि लोग हर ओर से सवार और पैदल, दूर और निकट से तुम्हारी ओर आयें और उसके बाद हज को अंजाम दें, अपने वचनों पर अमल करें और बैते अतीक़ यानी काबे की परिक्रमा करें।“
केवल कुछ संस्कारों को अंजाम देना हज नहीं है बल्कि हज के विदित संस्कारों के पीछे एक अर्थपूर्ण वास्तविकता नीहित है। अतः हज का अगर केवल विदित रूप अंजाम दिया जाये तो वह अपने वास्तविक अर्थ व प्रभाव से खाली होगा। यानी वह नीरस और बेजान हज होगा। एक विचारक व बुद्धिजीवी ने हज की उपमा शिक्षाप्रद एसी महाप्रदर्शनी से दी है जिसके पास बोलने की ज़बान है और उस कहानी व महाप्रदर्शनी में कुछ मूल हस्तियां हैं। हज़रत इब्राहीम, हज़रत हाजर और हज़रत इस्माईल इस कहानी के महानायक हैं। हरम, मस्जिदुल हराम, सफा और मरवा, मैदाने अरफात, मशअर और मेना में कुछ संस्कार अंजाम दिये जाते हैं। रोचक बात यह है कि इन संस्कारों को सभी अंजाम दे सकते हैं चाहे वह मर्द हो या औरत, धनी हो या निर्धन, काला हो या गोरा। जो भी हज के महासम्मेलन में भाग लेता है वह हज संस्कारों को अंजाम देता है और मुख्य भूमिका निभाता है। सभी उन महान ऐतिहासिक हस्तियों के स्थान पर होते हैं जिन्होंने महान ईश्वर की उपासना की और अनेकेश्वरवाद से मुकाबला किया ठीक उसी तरह हाजी एकेश्वरवाद का एहसास और अनेकेश्वरवाद से मुकाबले का अनुभव करते हैं।
जो लोग हज करने जाते हैं सबसे पहले वे मीक़ात नाम की जगह पर एहराम नाम का सफेद वस्त्र धारण करते हैं। एहराम में सफेद कपड़े के दो टुकड़े होते हैं। इसका अर्थ हर प्रकार के गर्व, घमंड को त्याग देना है। इसी प्रकार हर प्रकार के बंधन से मुक्त करके दिल को महान व सर्वसमर्थ की याद में लगाना है।
हज करने वाला जब एहराम का सफेद वस्त्र धारण करता है तो वह अपने कार्यों के प्रति सजग रहता है, उन पर नज़र रखता है लोगों के साथ अच्छे व मृदु स्वभाव में बात करता है, जब बोलता है तो सही बात करता है। इसी तरह वह संयम व धैर्य का अभ्यास करता है। एहराम की हालत में कुछ कार्य हराम हैं और इस कार्य से इच्छाओं से मुकाबला करने में इंसान के अंदर जो प्रतिरोध की शक्ति है वह मज़बूत होती है। जैसे एहराम की हालत में शिकार करना, जानवरों को कष्ट पहुंचाना, झूठ बोलना, महिला से शारीरिक संबंध बनाना और दूसरों से बहस करना आदि हराम हैं।
पैग़म्बरे इस्लाम जब मेराज पर जा रहे थे यानी आसमानी यात्रा पर थे तो एक आवाज़ ने उन्हें संबोधित करके कहा कि क्या तुम्हारे पालनहार ने तुम्हें अनाथ नहीं पाया और तुम्हें शरण नहीं दी और तुम्हें गंतव्य से दूर नहीं पाया और तुम्हारा पथप्रदर्शन नहीं किया? उस वक्त पैग़म्बरे इस्लाम ने लब्बैक कहा। महान व सर्वसमर्थ ईश्वर की बारगाह में कहा” अल्लाहुम्मा लब्बैक, इन्नल हम्दा वन्नेमा लका वलमुल्का ला शरीका लका लब्बैक” अर्थात हे पालनहार तेरी आवाज़ पर लब्बैक कहता हूं, बेशक समस्त प्रशंसा, नेअमत और बादशाहत तेरी है। तेरा कोई भागीदार व समतुल्य नहीं है। (पालनहार!) तेरी आवाज़ पर लब्बैक कहता हूं।
हज के आध्यात्मिक वातावरण में दिल को छू जाने वाली आवाज़ लब्बैक अल्ला हुम्मा लब्बैक गूंज रही है। यह वह आवाज़ है जो हर हाजी की ज़बान पर है। यह आवाज़ इस बात की सूचक है कि हाजी महान ईश्वर के आदेशों के समक्ष नतमस्तक हैं वे पूरे तन- मन से महान ईश्वर के आदेशों को स्वीकार करते और उसकी मांग का उत्तर दे रहे हैं। समस्त हाजियों की ज़बान पर है कि हे ईश्वर तेरा कोई समतुल्य नहीं है और हम तेरे घर की परिक्रमा करने के लिए तैयार हैं।
काबे की परिक्रमा हज का पहला संस्कार है। हाजी जब सामूहिक रूप से काबे की परिक्रमा करते हैं तो वे इस बात को स्वीकार करते हैं कि महान ईश्वर ही ब्रह्मांड का स्रोत व रचयिता है और जो कुछ भी है सबको उसी ने पैदा और अस्तित्व प्रदान किया है। जो हाजी तवाफ़ व परिक्रमा कर रहे हैं वे पूरी तरह महान ईश्वर की याद में डूबे हुए हैं। मानो ब्रह्मांड का कण- कण उनके साथ हो गया है। सब उनके साथ तवाफ कर रहे हैं। तवाफ के बाद वे नमाज़े तवाफ़ पढ़ते हैं, अपने कृपालु व दयालु ईश्वर के सामने सज्दा करते हैं और उसकी सराहना व गुणगान करते हैं।
हज का एक संस्कार सफा व मरवा नामक दो पहाड़ों के बीच सात बार चक्कर लगाना है।
हज का एक संस्कार सई करना है। सई उस महान महिला के प्रयासों की याद दिलाता है जो अपने पालनहार की असीम कृपा से कभी भी निराश नहीं हुई और सूखे व तपते हुए मरुस्थल में अपने प्यासे बच्चे के लिए पानी की खोज में दौड़ती रही। जब हज़रत इस्माईल की मां हज़रत हाजर अपने बच्चे के लिए पानी के लिए दौड़ती रहीं और सात बार वे सफा और मरवा का चक्कर लगा चुकीं तो महान ईश्वर की असीम कृपा से पानी का सोता फूट पड़ा जिसे आबे ज़मज़म के नाम से जाना जाता है। महान ईश्वर सूरे बकरा की 158वीं आयत में कहता है” सफा और मरवा ईश्वर की निशानियों में से है। इस आधार पर जो लोग अनिर्वाय या ग़ैर अनिवार्य हज करते हैं उन्हें चाहिये कि वे सफा और मरवा के बीच सई करें यानी उनके बीच चक्कर लगायें।
सई करके हाजी उस महान ऐतिहासिक घटना की याद ताज़ा करके महान ईश्वर पर धैर्य और भरोसा करने और एकेश्वरवाद का पाठ लेते हैं और महान ईश्वर की असीम कृपा को देखते हैं।
ज़िलहिज्जा महीने की नवीं तारीख़ की सुबह को हाजियों का जनसैलाब अरफात नामक मैदान की ओर रवाना होता है। अरफ़ात पहचान का मैदान है। एक पहचान यह है कि इंसान अपने पालनहार को पहचाने। अरफात के मैदान में हाजी का ध्यान स्वयं की ओर जाता है। हाजी अपना हिसाब- किताब करता है और अगर वह देखता है कि उसने कोई पाप या ग़लती की है तो उससे सच्चे दिल से तौबा व प्रायश्चित करता है। अरफात के विशाल मैदान में प्रलय के बारे में सोचता है और प्रलय की याद करके हिसाब- किताब करता है और हाजी दुआ करता है। कहा जाता है कि अगर इंसान का दिल और आत्मा अरफात के मैदान में परिवर्तित हो जाते हैं तो मशअर नामक मैदान में बैठने से महान ईश्वर की याद इस हालत को शिखर पर पहुंचा देती है और हज करने वाले ने एसा हज अंजाम दिया है जिसे महान व सर्वसमर्थ ईश्वर ने स्वीकार कर लिया है।
अपने अंदर से शैतान को भगाना हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की एक शैली है और वह हज संस्कार का भाग है। मिना नामक मैदान में कंकर फेंकने का अर्थ स्वयं से शैतान को भगाना है और केवल महान ईश्वर की उपासना और उसके आदेशों के समक्ष नतमस्तक होना है। हाजियों ने जो कंकरी मशअर के मैदान से एकत्रित की है उससे वे शैतान के प्रतीक को मारते हैं और हज़रत इब्राहीम की भांति महान ईश्वर के आदेशों के समक्ष नतमस्तक रहते हैं और कभी भी वे अपने नफ्स या शैतानी उकसावे पर अमल नहीं करते हैं।
हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहस्सलाम फरमाते हैं” इसी जगह पर” यानी जहां हाजी कंकरी फेंकते हैं” शैतान हज़रत इब्राहीम के समक्ष प्रकट हुआ था और उन्हें उकसाया था कि हज़रत इस्माईल को कुर्बानी करने का इरादा छोड़ दें परंतु हज़रत इब्राहीम ने पत्थर फेंक कर उसे स्वयं से दूर किया था।“
वास्तव में कंकरी का फेंकना दुश्मन की पहचान और उससे संघर्ष का प्रतीक है। दुनिया की वर्चस्ववादी शक्तियां विभिन्न शैलियों के माध्यम से मुसलमानों के खिलाफ शषडयंत्र रचती रहती हैं इन दुश्मनों और उनकी चालों को पहचानना बहुत ज़रूरी है। इसलिए कि जब तक दुश्मन और उसकी चालों को नहीं पहचानेंगे तब तक उसका मुकाबला नहीं कर सकते। दुश्मन और उसकी चालों से बेखबर रहना बहुत बड़ी ग़लती है और यह एसी ग़लती है जिसकी भरपाई नहीं की जा सकती और उसकी चालें मुसलमानों के बीच फूट या इस्लामी जगत की शक्ति को आघात पहुंचने का कारण बन सकती हैं।
कुर्बानी कराना हज का अंतिम संस्कार है। जिस दिन कुर्बानी कराई जाती है उसे ईदे कुर्बान कहा जाता है। ईदे कुरआन के दिन सर मुंडवाया जाता है या फिर सिर के बाल और नाखून को छोटा कराया जाता है। हज के दिन महान ईश्वर की बारगाह में स्वीकार हज अंजाम देने वाले प्रसन्न होते हैं और वे अपने पालनहार का आभार व्यक्त करते हैं कि उसने उन्हें हज करने का सामर्थ्य प्रदान किया। उसके बाद हाजियों का जनसैलाब एक बार फिर काबे का तवाफ करता है और उसके बाद नमाज़े तवाफ पढ़ता है। जब वे काबे का तवाफ कर रहे होते हैं तो जिस तरह से चुंबक लोहे या उसके कण को अपनी ओर खींचता है उसी तरह खानये काबा हर हाजी को अपनी ओर खींचता व आकर्षित करता है।
इस प्रकार हज संस्कार समाप्त हो जाते हैं और हाजी अपने अंदर आत्मिक शांति व सुरक्षा का आभास करता है। वह भीतर से परिवर्तित हो चुका होता है। महान ईश्वर की याद उसके सामिप्य का कारण बनती है और महान विधाता व परम-परमेश्वर की याद सांसारिक बंधनों से मुक्ति का कारण बनती है। इसी प्रकार महान व कृपालु ईश्वर की याद इंसान के महत्व और उसकी प्रतिष्ठा को अधिक कर देती है। पैग़म्बरे इस्लाम हाजियों द्वारा अंजाम दिये गये हज संस्कारों के गूढ़ अर्थों पर ध्यान देते हुए फरमाते हैं” नमाज़, हज, तवाफ और दूसरे संस्कारों के अनिवार्य होने से तात्पर्य ईश्वर की याद को कायेम व जीवित करना है। तो जब तुम्हारा दिल ईश्वर की महानता को न समझ सके जो हज का मूल उद्देश्य है तो ज़बान से ईश्वर को याद करने का क्या लाभ है?
हज का विशेष कार्यक्रम- 4
एक बार की बात है एक व्यक्ति बहुत दूर से बड़ी कठिनाइयों के साथ हज करने मक्का पहुंचा।
ईश्वर से प्रेम और पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम की क़ब्र का दर्शन करने के उत्साह ने उसके लिए कठिनाइयों को आसान कर दिया था। उसने हज के संस्कार बहुत उत्साह से अंजाम दिए। उसे इस बात की मनोकामना थी कि ईश्वर उसके कर्म को स्वीकार कर ले। दूसरे हाजियों के साथ वह भी मिना नामक स्थान पर गया ताकि वहां के विशेष संस्कार अंजाम दे। जो रात मिना में बिताते हैं वहां उसने स्वप्न में देखा कि ईश्वर ने दो फ़रिश्ते भेजे जो हाजियों के सिरहाने खड़े हें। फ़रिश्ते कुछ लोगों की ओर इशारा करते हुए कहते हैः "यह व्यक्ति हाजी है" अर्थात इसका हज ईश्वर ने स्वीकार कर लिया है लेकिन कुछ दूसरे लोगों की ओर इशारा करते हुए कहते हैः "यह हाजी नहीं है।" उस व्यक्ति ने देखा कि दो फ़रिश्ते उसके भी सिरहाने खड़े होकर कह रहे हैं "यह व्यक्ति हाजी नहीं है।"
इस व्यक्ति की डर के मारे आंख खुल गयी। उसने अपने आस-पास देखा। दिल पर काफ़ी बोझ महसूस कर रहा था। उसने ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहाः "हे ईश्वर! इतनी कठिनाइयां सहन करते हुए आया हूं कि तेरा हज अंजाम दूं। आख़िर किस वजह से मेरा हज क़ुबूल नहीं है?" वह अपने कर्म के बारे में सोच रहा था। विगत के बारे में सोच रहा था कि किस बुरे कर्म की वजह से वह ईश्वर की कृपा से दूर हो गया है। जिस जगह हाजियों के पाप क्षमा किए जाते हैं, उससे कौन सा ऐसा पाप हुआ है कि जो क्षमा योग्य नहीं है।
कुछ सोचने के बाद उसे लगा कि उसने ख़ुम्स और ज़कात नामक विशेष कर नहीं दिए है। उसने अपने बच्चों को ख़त लिखा और कहाः "मैं इस साल मक्के में रह जाउंगा। मेरी पूरी संपत्ति का हिसाब करो और संपत्ति में ख़ुम्स या ज़कात बाक़ी हो तो निकाल दो।"
जब उस व्यक्ति का ख़त उसके बेटों को मिला तो उन्होंने पिता के आदेश पर अमल किया। अगले साल फिर उस व्यक्ति ने हज के संस्कार शुरु किये। पिछली बार कि तरह जब वह मिना में रात में रुकने के लिए ठहरा तो उसने स्वप्न में उन्हीं दो फ़रिश्तों को देखा जो हाजियों के सिरहाने खड़े होकर कह रहे हैं कि अमुक व्यक्ति हाजी है और अमुक व्यक्ति हाजी नहीं है। जब फ़रिश्ते उसके सिरहाने पहुंचे तो उन्होंने फिर कहा कि वह हाजी नहीं है। वह व्यक्ति नींद से जागा तो बहुत दुखी व हैरान था। वह जानना चाहता था कि किस वजह से उसका हज क़ुबूल नहीं हो रहा है। उसे याद आया कि उसका पड़ोसी जो ग़रीब था और उसका घर छोटा था। जिस वक़्त उसने चाहा कि अपना घर बनाए तो पड़ोसी ने उससे कहा था कि घर को ज़्यादा ऊंचा न करे कि सूरज की रौशनी आना रुक जाए और उसके घर में अंधेरा छा जाए। लेकिन उस व्यक्ति ने पड़ोसी की बात को अहमियत न दी और कई मंज़िला घर बना लिया। उसे लगा कि शायद इस वजह से उसका हज क़ुबूल नहीं हुआ।
इस व्यक्ति ने एक बार फिर अपने घर वालों को ख़त लिखा जिसमें उसने कहाः "मैं इस साल भी मक्के में रुकुंगा। तुम अमुक पड़ोसी से बात करो कि वह अपना घर बेच दे और अगर न बेचे तो घर की दो मंज़िलों को गिरा दो ताकि पड़ोसी के घर में अंधेरा न रहे।" इस व्यक्ति के परिवार वाले पड़ोसी के पास गए उससे बात की तो वह घर बेचने के लिए तय्यार न हुआ। मजबूर होकर उन्होंने अपने घर के दो मंज़िले गिरा दिए ताकि पड़ोसी राज़ी हो जाए। फिर हज का महीना आ पहुंचा। उस व्यक्ति ने मिना नामक स्थान में स्वप्न में उन्हीं दोनों फ़रिश्तों को देख़ा लेकिन इस बार मामला अलग था। जब दोनों फ़रिश्ते उस व्यक्ति के सिरहाने पहुंचे तो कई बार कहाः "यह व्यक्ति हाजी है। यह व्यक्ति हाजी है।" पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमायाः "ईश्वर उस व्यक्ति पर प्रलय के दिन कृपा नहीं करेगा जो अपने रिश्तेदारों से संबंध विच्छेद करे और पड़ोसी के साथ बुराई करे।"
अब्दुर्रहमान बिन सय्याबा नामक व्यक्ति कूफ़े में रहता था। जवानी में उसके पिता की मौत हो गयी। जब उसके पिता की मौत हुयी तो उसे मीरास में पिता से कुछ नहीं मिला। एक ओर पिता की मृत्यु दूसरी ओर निर्धनता व बेरोज़गारी से अब्दुर्रहमान की चिंता दुगुनी हो गयी थी। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे। किस तरह अपनी और अपनी मां की ज़िन्दगी के सफ़र को आगे बढ़ाए। एक दिन इसी सोच में बैठा हुआ था कि किसी व्यक्ति ने घर का दरवाज़ा खटखटाया। जब उसने दरवाज़ा खोला तो देखा कि उसके पिता के दोस्त खड़े हैं। पिता के दोस्त ने उसे पिता के मरने पर सांत्वना दी और पूछा कि पिता से मीरास में कुछ धन मिला है जिससे अपना जीवन निर्वाह कर सके। अब्दुर्रहमान ने सिर नीचे किया और कहाः नहीं।
उस व्यक्ति ने पैसों से भरा एक थैला अब्दुर्रहमान को दिया और कहाः "यह एक हज़ार दिरहम हैं। इससे व्यापार करो और व्यापार से हासिल मुनाफ़े से जीवन चलाओ।" वह व्यक्ति यह कह कर अब्दुर्रहमान से विदा हुआ। अब्दुर्रहमान ख़ुशी ख़ुशी अपनी मां के पास आया और पैसों की थैली मां को दिखाते हुए पूरी घटना बतायी।
अब्दुर्रहमान ने अपने पिता के दोस्त की नसीहत पर अमल करने का फ़ैसला किया। उसने उसी दिन पैसों से कुछ चीज़ें ख़रीदी और एक दुकान लेकर व्यापार शुरु कर दिया। ज़्यादा समय नहीं गुज़रा था कि अब्दुर्रहमान का व्यापार चल निकला। उसने उन पैसों से अपने जीवन यापन के ख़र्च निकालने के साथ साथ पूंजि भी बढ़ायी। जब उसे लगा कि अब वह हज का ख़र्च उठा सकता है तो उसने हज करने का फ़ैसला किया। वह मां के पास गया और मां को अपने इरादे के बारे में बताया। मां ने कहा कि पहले पिता के दोस्त का क़र्ज़ लौटाओ जिसने तुम्हें क़र्ज़ दिया था। उनका पैसा हमारे लिए बर्कत का कारण बना। पहले उनका क़र्ज़ लौटाओ फिर मक्का जाओ।
अब्दुर्रहमान अपने पिता के दोस्त के पास गया। एक हज़ार दिरहम से भरी थैली उनके सामने रखी तो उन्होंने उस थैले को देखकर पूछा कि यह क्या है?
अब्दुर्रहमान ने कहा कि ये वही हज़ार दिरहम हैं जो आपने मुझे क़र्ज़ दिए थे। उस व्यक्ति ने कहा कि अगर हज़ार दिरहम से तुम्हारी मुश्किल हल नहीं हुयी और तुम अपने लिए उचित कारोबार न कर सके तो मैं और पैसे देता हूं। अब्दुर्रहमान ने कहाः नहीं पैसे कम नहीं थे बल्कि इन पैसों से बहुत बर्कत हुयी अब मुझे इन पैसों की ज़रूरत नहीं है। मैं आपका बहुत शुक्रगुज़ार हूं। चूंकि हज करने जाना चाहता हूं इसलिए आपके पास आया कि पहले आपका क़र्ज़ अदा करूं। वह व्यक्ति ख़ुश हुआ और उसने अब्दुर्रहमान को दुआ दी।
अब्दुर्रहमान हज के लिए गया। हज के संस्कार के बाद वह पैग़म्बरे इस्लाम के परपौत्र इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम की सेवा में मदीना पहुंचा। इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के घर पर बहुत भीड़ थी। अब्दुर्रहमान सबसे पीछे बैठ गया और इंतेज़ार करने लगा कि लोगों की भीड़ कुछ कम हो। इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने अब्दुर्रहमान की ओर इशारा किया और वह उनके निकट गया। इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने पूछाः कोई काम है? अब्दुर्रहमान ने कहाः मैं कूफ़े के निवासी सय्याबा का बेटा अब्दुर्रहमान हूं। इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने अब्दुर्रहमान से उसके पिता का कुशलक्षेम पूछा कि वह कैसे हैं। अब्दुर्रहमान ने कहा कि वह तो परलोक सिधार गए। इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहाः ईश्वर उन पर अपनी कृपा करे। क्या पिता की मीरास से कुछ बचा है। अब्दुर्रहमान ने कहाः नहीं, उनकी मीरास से कुछ नहीं बचा है। इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने पूछाः फिर किस तरह तुम हज का ख़र्च वहन कर सके?
अब्दुर्रहमान ने अपनी ग़रीबी और पिता के दोस्त की ओर से मदद की घटना का वर्णन किया और कहाः "मैं ने उन पैसों से हासिल हुए मुनाफ़े से हज किया है।"
जैसे ही अब्दुर्रहमान ने यह कहा इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने उससे पूछाः तुमने पिता के दोस्त के हज़ार दिरहम का क्या किया?
अब्दुर्रहमान ने कहाः मां से बात करके मैंने हज पर रवाना होने से पहले ही क़र्ज़ चुका दिया।
इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः "शाबाश! हमेशा सच बोलो और ईमानदार रहो। ईमानदार व्यक्ति की लोग अपने धन से मदद करते हैं।"