
رضوی
ख़ुशी क्या है
हमारे जन्म के पहले दिन ही ईश्वर अपनी तत्वदर्शिता द्वारा हमसे कहता है कि जीवन मधुर है और हमें अपने जीवन काल में यह सीखने का प्रयास करना चाहिए कि उचित मार्ग कौन से हैं ताकि उसपर चलकर हम मधुर जीवन व्यतीत कर सकें। यदि हमारा मनोबल सुदृढ़ होगा और हम प्रसन्नचित रहें गे तो ईश्वर के इस वरदान द्वारा हम अपनी ख़ुशियों में दूसरों को भी भागीदार बना सकते हैं। परन्तु हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि शन्ति एवं प्रसन्नता की भावना उत्पन्न करने के लिए आन्तरिक अभ्यास की आवश्यकता है। ख़ुश और प्रसन्नचित रहना संभव है एक अल्प अवधि के लिए हमें ख़ुश करे हंसा दे परन्तु आन्तरिक अभ्यास के बिना यह बड़ी जल्दी ही हमारी आत्मिक परेशानी एवं उदासीनता का कारण बन जाता है।
जीवन में संभव है घर, गाड़ी या आधुनिक घरेलू उपकरण इत्यादि ख़रीदने पर हमें ख़ुशी हो परन्तु उल्लेखनीय है कि वास्तविक प्रसन्नता के लिए इन चीज़ों की आवश्यकता नहीं है। हमें ईश्वरिय वरदानों तथा विभूतियों को प्राप्त करके अधिक प्रसन्नता होनी चाहिए। दूसरों से प्रेम करना ,रिश्तेदारों से मिलना - जुलना, अपने परिवार और साथियों का सम्मान और नैतिक मूल्यों का पालन जीवन में वास्तविक प्रसन्नता का कारण बनता है। यहां पर हम मधुर जीवन व्यतीत करने की कुछ पद्धीतयों पर प्रकाश डाल रहे हैं।
हमें परिस्थितियों पर दृष्टि रखनी चाहिए। जैसे घर पर अपने परिवार वालों के साथ भोजन करते समय हमें अपने कल की परिक्षा की चिन्ता करने के स्थान पर अपने परिवार के सदस्यों के बारे में सोचना चाहिए, उनसे बात करनी चाहिए। जब हम किसी रोचक घटना को याद करके हंसते हैं तो प्रसन्नता उत्पन्न करने वाले हांरमोनों की संख्या में वृद्धि हो जाती है और तनाव उत्पन्न करने वाले हांरमोन कम हो हाते हैं।
वर्तमान समय में अधिकांश लोग पूरी नींद नहीं सो पाते। हमें अपने सोने का समय निर्धारित करना चाहिए। जो कार्य हमें पसन्द नहीं या उसमें रुचि नहीं है उन्हें अपनी गतिविधियों से निकाल देना ही उचित है। जो कार्य करने हैं उनकी सूची बनाएं। इनमें से जो जो कार्य कर चुके हैं उनपर निशान लगा दें। इससे मनुष्य को शान्ति का आभास होता है। एक समय में एक ही काम करें। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि जिन लोगों के कई व्यवसाय होते हैं उनको उच्च रक्त चाप का अधिक ख़तरा रहता है। यह याद रखिए कि टेलिफ़ोन पर बात करने के साथ साथ खाना बनाने या सफ़ाई करने से कहीं बेहतर यह है कि आप आराम से एक कुर्सी पर बैठ कर टेलिफ़ोन पर बात करें।
अपने बगीचे में रुचि लीजीए। इससे ताज़ी हवा मिलने और शरीरिक सक्रियता के अतिरिक्त तनाव कम होगा और आप प्रसन्नचित होंगे। अपने हाथ से लगाए हुए पौधों को फूलते फलते देख कर कौन है जिसका मन फूला नहीं समाए गा नए अनुसंधानों से पता लगा है कि सुगंध मनुष्य में तनाव को कम करती है फूलों के बगीचे में टहलने से मनुष्य को अपूर्व शन्ति का आभास होता है। आज के इस शोरशराबे के जीवन में पुस्तकालय, संग्रहालय, बाग़ या धार्मिक स्थल शान्त स्थान समझे जाते हैं। शान्ति प्राप्त करने के लिए इनमें से किसी का भी चयन किया जा सकता है।
दूसरों की सहायता करना, मनुष्य में सहायता की भावना उत्पन्न करने के अतिरिक्त हमारे भीतर यह भावना भी उत्पन्न करता है कि हम अपनी समस्याओं को महत्वहीन समझें। प्रसन्नचित लोग दूसरों की सहायता के लिए अधिक तत्पर रहते हैं और दूसरों की सहायता के लिए तत्पर रहने वाले अधिक प्रसन्नचित रहते हैं। नि:सन्देह किसी की सहायता करके जो आनन्द प्राप्त होता है उसको वार्णित नहीं किया जा सकता है।
आप अवश्य ही जानते होंगे कि तनाव को दूर करने के लिए व्यायाम हर दवा से बेहतर है। आप अकेले टहलकर अपने बारे में सोच कर लाभ उठा सकते हैं। धीरे धीरे पैदल चलने से हत्दय की गति सुचारु रुप से चलती है, रक्त चाप नियंत्रित रहता है। अपने निकट संबंधियों के साथ अपने संबंधों को महत्व देना चाहिए।
विभिन्न आयु के १,३०० पुरुष एवं महिलाओं पर अनुसंधान द्वारा पता चला है कि जिन लोगों के घनिष्ठ मित्रों की संख्या अधिक है उनमें रक्त चाप, रक्त की चर्बी, शरकरा तथा तनाव के हारमोन अपनी उचित सीमा में होते हैं। इसके विपरित अकेले रहने वाले या जिनके मित्र कम हैं ऐसे लोगों में समय से पूर्व मृत्यु का ख़तरा अधिक रहता है।
मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि जिन लोगों में मज़बूत धार्मिक आस्था है वे अधिक प्रसन्नचित होते हैं। ऐसे लोग कठिनाइयों का सामना करने में अधिक सक्षम होते हैं। ईश्वर पर आस्था द्वारा मनुष्य अपने जीवन का अर्थ समझ लेता है। यहां तक कि यदि मनुष्य को धर्म पर अधिक विश्वास न भी हो परन्तु आध्यात्मवाद में उसकी रुचि हो, फिर भी सकारात्मक विचारों द्वारा वो अपना जीवन मधुर बना सकता है।
अन्त में हम यह कहें गे कि हमारे पास जो ईश्वरीय विभूतियां हैं यदि हम उनकी गणना करें तो हम देखें गे कि वो कृपालु तथा दयालु ईश्वर हमसे कितना प्रेम करता है। हमारा स्वास्थय, हमारे मित्र, हमारा परिवार, हमारी स्वतन्त्रता और शिक्षा इत्यादि हर चीज़ उसी की प्रदान की हुई विमूति है। जो लोग इन विभूतियों को दृष्टिगत रखते हुए ईश्वर का आभार व्यक्त करते हैं, वे अपने जीवन में सुखी रहते हैं क्योंकि उन्हें ईश्वर पर पूरा भरोसा रहता है।
और इस प्रकार मनुष्य अपने जीवन की हर सफलता तथा विफलता को ईश्वर की इच्छा समझ कर स्वीकार कर लेता है और इस प्रकार मनुष्य का जीवन मधुर हो जाता है।
क़ुरआन की ख़ुसूसियत
कलामे इलाही, क़ुरआन तुम्हारे दरमियान ऐसा बोलने वाला है जिस की ज़बान हक़ कहने से थकती नही है, और हमेशा हक़ कहती है, और ऐसा घर है कि जिस के अरकान मुनहदिम नही होते हैं, और ऐसा साहिबे इज़्ज़त है कि जिस के साथी कभी शिकस्त नही खा सकते हैं।
आशकार नूर और मोहकम रस्सी:
तुम्हारे लिए ज़रूरी है कि क़ुरआन पर अमल करो कि ये अल्लाह की मोहकम रस्सी, आशकार नूर, और शिफ़ा बख़्श है कि जो तिश्नगी को ख़त्म नही करता है, जो उस से तमस्सुक करे उस को बचाने वाला और जो उस से मुतमस्सिक हो जाए उस को निजात देने वाला है, उस में बातिल को राह नही है कि उस से पलटा दिया जाए, तकरार और आयात की मुसलसल समाअत उस को पुराना नही बनाती है और कान उस को सुनने से थकते नही हैं।
क़ुरआन हिदायत है:
जान लो! क़ुरआन ऐसा नसीहत करने वाला है जो धोखा नही देता, और ऐसा हिदायत करने वाला है जो गुमराह नही करता, और ऐसा क़ाऍल करने वाला है जो झूठ नही बोलता, कोई भी क़ुरआन का हम नशीन नही हुआ मगर ये कि उस के इल्म में इज़ाफ़ा और दिल की तारीकी और गुमराही में कमी हुई ।
जान लो कि क़ुरआन के होते हुए किसी और चीज़ की ज़रूरत नही रह जाती और बग़ैर क़ुरआन के कोई बे नियाज़ नही है।
पस अपने दर्दों का इलाज क़ुरआन से करो और सख़्तियों में उस से मदद मांगो, कि क़ुरआन में बहुत बड़ी बीमारियों कुफ़्र, निफ़ाक़, सर कशी और गुमराही का इलाज मौजूद है।
पस क़ुरआन के ज़रिये से अपनी ख़्वाहिशों को ख़ुदा से तलब करो, और क़ुरआन की दोस्ती से ख़ुदा की तरफ़ आओ, और क़ुरआन के ज़रिये से ख़ल्क़े ख़ुदा से कुछ तलब न करो इस लिये कि ख़ुदा से क़ुरबत के लिए क़ुरआन से अच्छा कोई वसीला नही है, आगाह रहो!कि क़ुरआन की शिफ़ाअत मक़बूल, और उसका कलाम तस्दीक़ शुदा है। क़यामत में क़ुरआन जिस की शिफ़ाअत करो वह बख़्श दिया जाएगा, और क़ुरआन जिस की शिकायत करे वह महकूम है, क़यामत के दिन आवाज़ लगाने वाला आवाज़ लगाएगा
“जान लो! जिस के पास जो भी पूंजी है और जिस ने जो भी काटा है उस को क़ुरआन पर तौला जाएगा” पस तुम को क़ुरआन पर अमल करना चाहिये, क़ुरआन की पैरवी करो और उसके ज़रिए ख़ुदा को पहचानो, क़ुरआन से नसीहत हासिल करो और अपनी राए व नज़र को क़ुरआन पर अरज़ा करो और अपने मतलूबात को क़ुरआन के ज़रिए से नकार दो।
अहमियते क़ुरआन
क़ुरआन दिलों की बहार:
जान लो! ख़ुदावंदे आलम ने किसी को क़ुरआन से बेहतर कोई नसीहत नही फ़रमाई हैं, कि यही ख़ुदा की मोहकम रस्सी, और उस का अमानतदार वसीला है। उस में दलों की बहार का सामान और इल्म के सर चश्में हैं दिलों की बहार और इल्म व हिक्मत का चश्मा है...।
दिल के लिए क़ुरआन के जैसी रौशनी नही हो सकती, ख़ुसूसन उस मुआशरे में जहां दिलों के मरीज़, ग़ाफ़ेलीन और धोखा देने वाले रहते हैं।
क़ुरआन बंदों पर ख़ुदा की हुज्जत:
जान लो! क़ुरआन अम्र करने वाला भी है और रोकने वाला भी है और गोया भी, वह मख़लूक़ात पर ख़ुदा की हुज्जत है।
दर्दों की दवा:
क़ुरआन से बात करके देखो, ये ख़ुद नही बोलेगा बल्कि मैं तुम को उस के मआरिफ़ से मुत्तलअ करूगां। जान लो! क़ुरआन में आइन्दा का इल्म....तुम्हारे दर्दों का सामान है...।
फ़ुरक़ान :
क़ुरआन ऐसा नूर है जो मद्धम नही हो सकता, ऐसा चिराग़ है जो बुझ नही करता। वह समन्दर है जिस की थाह नही मिल करती और ऐसा रास्ता है जिस पर चलने वाला भटक नही सकता, ऐसी शोआ है जिसकी ज़ौ तारीक नही हो सकती, और ऐसा बातिल व हक़ का इम्तियाज़ है जिस का बुरहान कमज़ोर नही हो सकता,... और ऐसी शफ़ा है जिस में बीमारी का कोई ख़ौफ़ नही है, ऐसी इज़्ज़त है जिस के अंसार पसपा नही हो सकते हैं, और ऐसा हक़ है जिस के आवान बे यार व मददगार नही छोड़े जा सकते हैं।
उलूम का दरिया:
क़ुरआन ईमान की कान, इल्म का चश्मा और समन्दरे अदालत का बाग़ और हौज़, इस्लाम का संगे बुनियाद और असास, हक़ की वादी और उसका हमवार मैदान है, ये वह समन्दर है जिसे पानी निकालने वाले ख़त्म नही कर सकते हैं, और वह चश्मा है जिसे उलचने वाले ख़ुश्क नही कर सकते हैं। वह घाट है जिस पर वारिद होने वाले उस का पानी कम नही कर सकते हैं। और वह मंज़िल है जिस की राह पर चलने वाले मुसाफ़िर भटक नही सकते हैं, वह निशाने मंज़िल है जो राह गीरों की नज़रों से ओझल नही हो सकता है....।
फ़ैसला क़ुरआन कि बुनियाद पर हो न कि अश्ख़ास पर:
याद रखो! हम ने अफ़राद को हकम नही बनाया था बल्कि क़ुरआन को हकम क़रार दिया था
ये क़ुरआन वह मकतूब है जो दो जिल्दों के दरमियान छिपा है, लेकिन मुश्किल ये है कि ये ख़ुद नही बोलता है और उसे तरजुमान की ज़रूरत है और तरजुमान अफ़राद ही होते हैं उस क़ौम ने हमें दावत दी कि हम क़ुरआन से फ़ैसला कराएं तो हम तो क़ुरआन से रू गरदानी करने वाले नही थे।
जब्कि ख़ुदा ने फ़रमा दिया है कि अपने एख़्तिलाफ़ात को ख़ुदा और रसूल की तरफ़ मोड़ दो और ख़ुदा की तरफ़ मोड़ने का मतलब उसकी किताब से फ़ैसला कराना ही है और रसूल की तरफ़ मोड़ने का मक़सद भी सुन्नत का इत्तेबा है और ये तैय है कि अगर किताबे ख़ुदा से सच्चाई के साथ फ़ैसला लिया जाये तो उस के सब से ज़्यादा हक़दार हम ही हैं और इसी तरह सुन्नते पैग़म्बर के लिये सब से ज़्यादा अवला व अक़रब हम ही हैं।
जामईयते क़ुरआन:
क़ुरआन में तुम्हारे पहले की ख़बर, तुम्हारे बाद की पेशीनगोई और तुम्हारे दरमियानी हालात के अहकाम सब पाए जाते हैं।
क़ुरआन को भुला देना:
एक ऐसा वक़्त आएगा कि जब लोगों के दरमियान क़ुरआन क़ुरआन सिर्फ़ निशानी के तौर पर और इस्लाम सिवाये नाम के बाक़ी न रह जाएगा। उस की मस्जिदें आबाद होंगीं लेकिन हिदायत से ख़ाली होंगी...।
इन चंद नमूनों से हम को अच्छी तरह अंदाज़ा होता है कि अगर हम को क़ुरआन के बारे में और उसके उलूम व मआरिफ़ का अंदाज़ा लगाना है तो हमें ख़ुद क़ुरआन से पूछना होगा “जो कि ख़ुद ज़बान नही रखता है” या फ़िर उसके दर पर आना होगा जहां क़ुरआन नाज़िल हुआ और उस ज़बान से क़ुरआनियात और उलूमे क़ुरआन को अख़्ज़ करना होगा जो ये कहे कि सलूनी सलूनी क़ब्ला अन तफ़क़ेदूनी और जिसको क़ुरआन के हर असरार व रुमूज़ का इल्म हो और जो आयात के मकान, ज़मान और शान नुज़ूल से वाक़िफ़ हो। और उन सब के लिये हम को दरे अली (अ0) पर आना पड़ेगा और उनकी नज़र से हम को क़ुरआन को देखना होगा और उनके कलाम से क़ुरआन की हक़ीक़ी तफ़सीर मालूम करनी होगी जो हक़ीक़ी मुफ़स्सिरे क़ुरआन है।
और आप के इरशादात व फ़रमूदात को हालिन करने के लिये हम को उस किताब की तरफ़ रुजू करना होगा जो कलामे इलाही तो नही लेकिन लिसानुल्लाह के दहने मुबारक से निकले हुए पाक कलाम हैं जो तहता कलामिल ख़ालिक़ और फ़ौक़ा कलामिल मख़लूक़ है। हम ज़ेरे नज़र मक़ाले में इस बात की कोशिश करेंगे कि क़ारेईन की ख़िदमत में तफ़सीर क़ुरआन को नहजुल बलाग़ा के तनाज़ुर में पेश करें।
क़यामत के दिन हिसाब-किताब को आसान बना देने वाला काम
इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) ने एक रिवायत में एक ऐसे कार्य का वर्णन किया है जो क़यामत के दिन हिसाब-किताब को आसान बना देगा।
निम्नलिखित रिवायत "बिहार उल-अनवर" पुस्तक से ली गई है। इस रिवायत का पाठ इस प्रकार है:
قال الصادق علیه السلام:
اِنَّ صِلَةَ الرَّحِمِ تُهَوِّنُ الْحِسابَ يَوْمَ الْقِيامَةِ
इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) ने फ़रमाया:
निसंदेह, सिले रहम क़यामत के दिन हिसाब-किताब को आसान बना देती है।
बिहार उल-अनवार: भाग 74, पेज 102
9 रबीअ उल अव्वल इमाम (अ) के प्रति निष्ठा और मान्यता के नवीनीकरण का दिन
मौलाना सय्यद करामत हुसैन शऊर जाफ़री ने कहा है कि 9 रबीअ उल अव्वल मुस्लिम उम्माह के लिए निष्ठा के नवीनीकरण और आध्यात्मिक जागृति का दिन है, लेकिन यह कहना अफ़सोस की बात है कि कुछ जगहों पर इस दिन को इसके मूल उद्देश्य के विपरीत तुच्छ गतिविधियों और शब्दाडंबर के साथ मनाया जाता है, जो कुरान, सुन्नत और अहले-बैत (अ) की शिक्षाओं के बिल्कुल विपरीत है।
प्रसिद्ध विचारक, लेखक और दैनिक सदाक़त के प्रधान संपादक मौलाना सय्यद करामत हुसैन शऊर जाफ़री ने कहा है कि 9 रबीअ उल अव्वल मुस्लिम उम्माह के लिए निष्ठा के नवीनीकरण और आध्यात्मिक जागृति का दिन है, लेकिन यह कहना अफ़सोस की बात है कि कुछ जगहों पर इस दिन को इसके मूल उद्देश्य के विपरीत तुच्छ गतिविधियों और शब्दाडंबर के साथ मनाया जाता है, जो कुरान, सुन्नत और अहले-बैत (अ) की शिक्षाओं के बिल्कुल विपरीत है।
उन्होंने बताया कि इमाम हसन असकरी (अ) की शहादत के बाद, हज़रत हुज्जत बिन अल-हसन अल-महदी (अ) के व्यक्तित्व में इमामत जारी रही और इस लिहाज़ से यह दिन मोमिनों के लिए खुशी और संतुष्टि का स्रोत है, और अहले-बैत (अ) के चाहने वाले इसे "ईद-उल-ज़हरा (अ)" के रूप में मनाते हैं। हालाँकि, यह खुशी केवल बाहरी अभिव्यक्तियों का नाम नहीं है, बल्कि ज्ञान, आज्ञाकारिता और ज़िम्मेदारी का ऐलान है।
सय्यद करामत हुसैन शऊर जाफ़री ने कहा कि पवित्र क़ुरआन में मोमिनों का गुण भाषावाद से दूर रहना बताया गया है, जबकि इमाम जाफ़र सादिक (अ) ने कहा, "हमारे लिए शोभा का स्रोत बनो, शर्म और अपमान का स्रोत मत बनो।" इसी प्रकार, पवित्र पैगंबर (स) ने भी कहा कि उनके मिशन का उद्देश्य अख़लाक़ को पाय तकमील तक पहुचाना था।
उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि 9 रबीअ उल-अव्वल को, दुआ ए अहद, ज़ियारत आले-यासीन और ज़ियारत आशूरा के माध्यम से, इमाम अस्र (अ) के प्रति अपने लगाव को नवीनीकृत करना चाहिए। साथ ही, उन्होंने वैज्ञानिक और बौद्धिक सभाओं के आयोजन, युवाओं के धार्मिक प्रशिक्षण और गरीबों व अनाथों की सेवा को इस दिन की सच्ची भावना बताया।
उन्होंने कहा कि अगर हम इस दिन को केवल लहो लइब और खेल कूद में बर्बाद करते हैं, तो यह इमाम (अ) के सामने शर्म की बात होगी, लेकिन अगर हम इसे इबादत, सेवा और आज्ञाकारिता के साथ बिताएँ, तो यह दिन हमारी सामूहिक महानता का आधार बन सकता है। कुरान कहता है: "अल्लाह किसी कौम की हालत तब तक नहीं बदलता जब तक कि वे अपनी हालत न बदल लें।"
अंत में, उन्होंने अपील की कि 9 रबीअ उल अव्वल को न केवल ईद के रूप में मनाया जाना चाहिए, बल्कि अहद के नवीनीकरण के दिन के रूप में भी मनाया जाना चाहिए और जलसों को अल्लाह, कुरान, दुआ और मानवता की सेवा के स्मरण से सजाया जाना चाहिए ताकि दुनिया देख सके कि इमाम (अ) के अनुयायी एक प्रतिष्ठित और जागरूक राष्ट्र हैं।
हज़रत इमाम ए ज़माना अ.स.की ग़ैबत सुग़रा व कुबरा
हज़रत इमाम ए ज़माना अ.स. की गैबत की दो हैसियतें थीं एक सुग़रा और दूसरी कुबरा। ग़ैबते सुग़रा की मुद्दत 5 साल थी। उसके बाद ग़ैबते कुबरा शुरू हो गई। ग़ैबते सुग़रा के ज़माने में आपका एक नायबे ख़ास होते थे, जिसके ज़ेरे एहतमाम हर क़िस्म का निज़ाम चलता था। सवाल व जवाब ,ख़ुम्स व ज़क़ात और दिगर मराहिल उसी के वास्ते से तै होते थे। ख़ुसूसी मक़ामात पर उसी के ज़रिये और सिफ़ारिश से सुफ़रा मुक़र्र किए जाते थे।
हज़रत इमाम ए ज़माना अ.स. की गैबत की दो हैसियतें थीं एक सुग़रा और दूसरी कुबरा। ग़ैबते सुग़रा की मुद्दत 5 साल थी। उसके बाद ग़ैबते कुबरा शुरू हो गई। ग़ैबते सुग़रा के ज़माने में आपका एक नायबे ख़ास होते थे, जिसके ज़ेरे एहतमाम हर क़िस्म का निज़ाम चलता था। सवाल व जवाब ,ख़ुम्स व ज़क़ात और दिगर मराहिल उसी के वास्ते से तै होते थे। ख़ुसूसी मक़ामात पर उसी के ज़रिये और सिफ़ारिश से सुफ़रा मुक़र्र किए जाते थे।
हज़रत उस्मान बिन सईद अमरी सब से पहले जिन्हें नायबे ख़ास होने की सआदत नसीब हुई, उनका नामे नामी, व इस्मे गिरामी उस्मान बिन सईद अमरी था। आप हज़रत इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम और इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम के मोतमिद और मुख़लिस असहाब में से थे। आपका ताल्लुक़ क़बीला -ए- बनी असद से था। आपकी कुन्नियत अबू उमर थी और आप सामरा के क़रिय -ए- असकर के रहने वाले थे। वफ़ात के बाद आपको बग़दाद में दरवाज़ा जबला के क़रीब मस्जिद में दफ़्न किया गया।
मुहम्मद बिन उस्मान बिन सईद हज़रत उस्मान बिन सईद अमरी की वफ़ात के बाद इमाम अलैहिस्सलाम ने आपके फ़रज़न्द मुहम्मद बिन उस्मान बिन सईद इस अज़ीम मंज़िल पर फ़ाइज़ किया। आपकी कुन्नियत अबू जाफ़र थी। आपने वफ़ात से 2 माह क़ब्ल अपनी क़ब्र ख़ुदवा दी थी।
आपका कहना था कि मै यह इस लिए कर रहा हूँ कि मुझे इमाम अलैहिस्सलाम ने बता दिया है और मैं अपनी तारीख़े वफ़ात से भी वाक़िफ़ हूँ। आपकी वफ़ात जमादिल अव्वल सन् 305 हिजरी में वाक़े हुई और आप माँ के क़रीब बमक़ाम दरवाज़ा -ए- कूफ़ा सरे राह दफ़्न हुए।
हुसैन बिन रूह (र.)मुहम्मद बिन उस्मानकी वफ़ात के बाद हज़रत इमाम अलैहिस्सलाम के हुक्म से हज़रत हुसैन बिन रूह (र.) इस मनसबे अज़ीम पर फ़ाइज़ हुए।जाफ़र बिन मुहम्मद बिन उस्मान सईद का कहना है कि मेरे वालिद मुहम्मद बिन उस्मान ने मेरे सामने जनाब हुसैन बिन रौह को अपने बाद इस मनसब की ज़िम्मेदारी के मुताअल्लिक़ इमाम अलैहिस्सलाम का पैग़ाम पहुँचाया था।
जनाब हुसैन बिन रौह की कुन्नियत अबू क़ासिम थी। आप महल्ले नौ बख़्त के रहने वाले थे। आप ख़ुफ़िया तौर पर तमाम इस्लामी मुमालिक का दौरा किया करते थे। आप दोनों फ़िर्क़ों के नज़दीक मोतमिद, सिक़ा और सालेह क़रार दिये गये हैं। आपकी वफ़ात शाबान 326, हिजरी में हुई और आप महल्ले नौ बख़्त कूफ़े में दफ़न हुए।
अली बिन मुहम्मद अल समरी हुसैन बिन रौह (र0) की वफ़ात के बाद इमाम अलैहिस्सलाम के हुक्म से जनाब अली बिन मुहम्मद अल समरी इस ओहदा -ए- जलील पर फ़ाइज़ हुए। आपकी कुन्नियत अबुल हसन थी। आप अपने फ़राइज़ अंजाम दे रहे थे, जब वक़्त क़रीब आया तो आपसे कहा गया कि आप अपने बाद का क्या इन्तेज़ाम करेंगें। आपने फ़रमाया कि अब आईन्दा यह सिलसिला न रहेगा।
(मजालेसुल मोमेनीन, सफ़ा 89 व जज़ीर ?ए- ख़िज़रा, सफ़ा 6, व अनवार उल हुसैनिया, सफ़ा 55)
मुल्ला जामी अपनी किताब शवाहेदुन नुबूव्वत के सफ़ा 214 में लिखते है कि मुहम्मद समरी के इन्तेक़ाल से 6 दिन पहले इमाम अलैहिस्सलाम का एक फ़रमान नाहिया मुक़द्दसा से बरामद हुआ। जिसमें उनकी वफ़ात का ज़िक्र और सिलसिल ?ए- सिफ़ारत के ख़त्म होने का तज़किरा था। इमाम मेंहदी अलैहिस्सलाम के ख़त के अल्फ़ाज़ यह हैं।
بسم الله الرحمن الرحيم يا علي يابن محمداعظم الله اجرا خوائنك فيك فعنك ميت ما بينك و بين سنت ايام فاعظم امرك ولا ترض الي احد يا قوم مقامك بعد وفاتك فقد وقعت الغيبة التامة فلا ظهور الي بعد باذن الله تعالي و ذلك بعدة العامد
तर्जमाः- ऐ अली बिन मुहम्मद ! ख़ुदा वन्दे आलम तुम्हारे भाईयों और दोस्तों को अजरे जमील अता करे। तुम्हें मालूम है कि तुम 6, दिन में वफ़ात पाने वाले हो, तुम अपने इन्तेज़ामात कर लो और आइन्दा के लिये आपना कोई क़ायम मक़ाम तजवीज़ व तलाश न करो। इस लिए कि ग़ैबत कुबरा वाक़े हो गई होगी और इज़्ने ख़ुदा के बग़ैर ज़हूर ना मुमकिन होगा। या ज़हूर बहुत तवील अर्से के बाद होगा।
ग़रज़ कि 6, दिन गुज़रने के बाद हज़रत अबुल हसन अली बिन मुहम्मद अल समरी बतारीख़ 15 शाबान 329 हिजरी इन्तेक़ाल फ़रमा गये और फ़िर कोई ख़ुसूसी सफ़ीर मुक़र्र नही हुआ और ग़ैबते कुबरा शुरू हो गई
इमामे ज़माना (अ) की मारफ़त और मुंतज़ेरान के फ़राइज़
इमामे जमाा (अ) की मारफ़त और मुंतज़ेरान के कर्तव्य " पुस्तक डॉ. इब्राहिम शफ़ीई सर्वस्तानी द्वारा लिखित एक मूल्यवान संकलन है, जो महदीवाद के सही सिद्धांतों को समझाने और गुप्तकाल के दौरान प्रतीक्षितों के कर्तव्यों का वर्णन करने का एक उत्कृष्ट प्रयास है।
इस पुस्तक में लेखक ने इमामे ज़माना (अ) की मारफ़त के आवश्यक सिद्धांतों की व्याख्या की है और साथ ही गुप्तकाल के दौरान प्रतीक्षित पर लगाए गए दायित्वों और कर्तव्यों पर भी प्रकाश डाला है।
नौवीं रबी-उल-अव्वल के अवसर पर, यह पुस्तक हज़रत हुज्जत बिन अल-हसन (अ) के संबंध में ज्ञान और अंतर्दृष्टि को बढ़ाने का एक साधन बनने हेतु पवित्र पैगंबर (स) के संबंध में एक मूल्यवान कृति के रूप में प्रस्तुत की गई है।
इस पुस्तक में, लेखक ने महदीवाद के विभिन्न पहलुओं को शोध-आधारित और प्रामाणिक दृष्टिकोण से परखने का प्रयास किया है। इसमें इमाम ज़माना (अ) की विशेषताएँ, ग़ैबत का इतिहास, प्रतीक्षारत लोगों के व्यक्तिगत और सामूहिक कर्तव्य, तथा इमाम ज़माना (अ) का ज़ुहूर, स्थापना और अंतिम क्रांति जैसे विषय शामिल हैं।
इस पुस्तक की संरचना निम्नलिखित सात भागों में विभाजित है:
- इमाम महदी (अ) का जीवन और व्यक्तित्व
- इमाम महदी (अ) की शनाख्त
- प्रतीक्षा के सिद्धांत और कार्य
- ज़ुहूर और आख़ेरुज़ ज़मान
- ज़ुहूर के वक्त का निर्धारण
- ज़ुहूर के बाद की दुनिया
- महदी संस्कृति के विस्तार और प्रतीक्षा की अभिव्यक्तियों के आवश्यक मुद्दे
यह पुस्तक महदीवाद और ज़माना (अ) के ग़ैबत के दौरान प्रतीक्षारत लोगों के कर्तव्यों के विषय में रुचि रखने वालों के लिए एक मूल्यवान स्रोत मानी जाती है।
बहरैन में इज़राइली राजदूत की वापसी पर जनता का गुस्सा और आक्रोश, सड़कों पर उग्र प्रदर्शन
बहरैन में इज़राइली राजदूत की वापसी के बाद पूरे देश में तनाव बढ़ गया है और जनता ने सरकार के इस फैसले का कड़ा विरोध किया है। मनामा समेत कई शहरों में लोग सड़कों पर उतर आए और इज़राइल के साथ संबंध सामान्य करने के खिलाफ जोरदार नारे लगाए। प्रदर्शनकारियों और सुरक्षा बलों के बीच झड़पों की भी खबरें आई हैं।
बहरैन में इज़राइली राजदूत की वापसी के बाद पूरे देश में तनाव बढ़ गया है और जनता ने सरकार के इस फैसले का कड़ा विरोध किया है। मनामा समेत कई शहरों में लोग सड़कों पर उतर आए और इज़राइल के साथ संबंध सामान्य करने के खिलाफ जोरदार नारे लगाए। प्रदर्शनकारियों और सुरक्षा बलों के बीच झड़पों की भी खबरें आई हैं।
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, प्रदर्शनकारियों ने देर शाम प्रदर्शनों के दौरान इज़राइल विरोधी नारे लगाए और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को यह संदेश देने की कोशिश की कि बहरीन के लोग इज़राइल समर्थक नीतियों के खिलाफ हैं। प्रदर्शनकारियों ने इस बात पर ज़ोर दिया कि "बहरैन राष्ट्र" सरकार के ज़ायोनी एजेंडे के लिए ज़िम्मेदार नहीं है।
यह विरोध प्रदर्शन तब शुरू हुआ जब बहरीन के विदेश मंत्री अब्दुल्लातिफ़ बिन राशिद अल-ज़यानी ने 27 अगस्त, 2025 को नए इज़राइली राजदूत "शमूएल रोएल" के परिचय पत्र स्वीकार किए। गौरतलब है कि 2023 में ग़ज़्ज़ा युद्ध के बाद बहरैन ने तेल अवीव से अपने राजदूत को वापस बुला लिया था और दोनों देशों के बीच संबंध निलंबित कर दिए गए थे।
दो साल बाद इज़राइली राजदूत की वापसी ने बहरैन के विभिन्न हिस्सों में जनाक्रोश को और भड़का दिया है। विरोध प्रदर्शन मनामा, दाराज़ और अन्य शहरों में फैल गए हैं, जहाँ प्रदर्शनकारियों ने सरकार के फैसले को खारिज कर दिया और इज़राइल के साथ संबंधों को "राष्ट्र-विरोधी नीति" बताया।
विरोध प्रदर्शनों के वीडियो सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से साझा किए जा रहे हैं, जिनमें सार्वजनिक नारेबाजी और सुरक्षा बलों द्वारा बल प्रयोग के दृश्य दिखाई दे रहे हैं।
यमन के सना में इजरायली आतंकवादी हमले में शहीद हुए लोगों का अंतिम संस्कार समारोह
गुरुवार को सना में इज़राईली शासन की हवाई हमले में शहीद हुए यमन के प्रधानमंत्री अहमद अलरहवी" और उनके साथियों के शवों का अंतिम संस्कार समारोह आज सुबह आयोजित किया गया।
अलमसीरा के हवाले से यमन के हज़ारों लोग देश के अधिकारियों, जिनमें प्रधानमंत्री और कई मंत्री शामिल हैं, के आधिकारिक अंतिम संस्कार समारोह में भाग लेने के लिए यमन की राजधानी के अलसबीन चौक की ओर जा रहे हैं, जो इजरायल के हवाई हमले में शहीद हुए थे।
वादा की गई विजय और सियोनिस्ट शासन के आतंकवादी हमले में शहीद हुए लोगों की अंतिम संस्कार प्रार्थना सना के "अल-शाब" मस्जिद में आयोजित की गई।
यमन के परिवर्तन और पुनर्निर्माण सरकार के कार्यवाहक प्रमुख "मोहम्मद मफ्ताह" ने शहीदों के अंतिम संस्कार समारोह में भाग लेते हुए कहा, हम जोर देकर कहते हैं कि हम एक सम्मानजनक स्थिति में हैं और हम गाजा का समर्थन करने से कभी पीछे नहीं हटेंगे। यमन ने आज सच्चाई के समर्थन में अपने लोगों को आगे बढ़ाया है और हम इस पर गर्व और संतुष्ट हैं, लेकिन इस संबंध में हम अभी भी अपर्याप्त महसूस करते हैं।
उन्होंने कहा,हम एक बड़े और प्रभावी युद्ध में शामिल हो गए हैं और अमेरिका से टकरा गए हैं यह युद्ध केवल सैन्य नहीं था बल्कि एक आर्थिक युद्ध था और दुश्मन ने हर लक्ष्य पर हमला किया।
यमन के कार्यवाहक प्रधानमंत्री ने कहा,दुश्मन ने यमन को घेरने के लिए यमन के बंदरगाहों को निशाना बनाया लेकिन उसके लक्ष्य विफल रहे क्योंकि बंदरगाह अभी भी सक्रिय हैं और कोई संकट पैदा नहीं हुआ है। सरकार की गतिविधियों के बारे में कोई चिंता नहीं है और शहीदों का खून हमें अपने मिशन और कर्तव्यों को पूरा करने के लिए प्रेरित और दृढ़ करता है। सरकार की गतिविधियाँ बाधित नहीं हुई हैं।
मोहम्मद मिफ्ताह ने कहा,स्थिति अच्छी है और दुश्मन हार गया है। हम यमन के लोगों की हर मोर्चे पर उपस्थिति की सराहना करते हैं और यह उपस्थिति है जिसने दुश्मन को हराया है। जो कुछ भी देशद्रोही, भाड़े के लोग प्रचार कर रहे हैं वह बिना किसी आधार के है।
यमन सरकार के शहीदों के अंतिम संस्कार समारोह शुरू होने से पहले, यमन सशस्त्र बलों के प्रवक्ता ब्रिगेडियर जनरल "यहया सरीय" ने एक बयान जारी कर घोषणा की थी कि देश की मिसाइल इकाई ने लाल सागर में एक इजरायली तेल टैंकर को निशाना बनाया है।
उन्होंने अपने बयान में जोर देकर कहा कि यमन सशस्त्र बलों ने गाजा के समर्थन में इस ऑपरेशन को बैलिस्टिक मिसाइल से किया है।
गुरुवार को सियोनिस्ट कब्जे वाले शासन के सना पर हवाई हमले में, परिवर्तन और पुनर्निर्माण सरकार के प्रधानमंत्री "अहमद गालिब नासिर अल-रहवी" उनके साथ कई मंत्री शहीद हो गए।
यमन के अंसार अल्लाह आंदोलन ने आज घोषणा की कि पिछले गुरुवार को सना में सियोनिस्ट शासन के हवाई हमले में प्रधानमंत्री और 9 मंत्री, जिनमें न्याय, अर्थव्यवस्था, विदेश मामले और सूचना मंत्री शामिल हैं शहीद हो गए
छात्रों को सोशल मीडिया की क्षमता का भरपूर उपयोग करना चाहिए
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन जाफ़र ज़ादेह ने कहा,हालाँकि मिम्बर मस्जिद में उपदेश देने का स्थान महत्वपूर्ण है, लेकिन सोशल मीडिया पर भी ध्यान देना चाहिए।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मंसूर जाफ़र ज़ादेह क़ुम के हौज़ा ए इल्मिया के एक शिक्षक, ने हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के संवाददाता के साथ बातचीत में, अधिक प्रभावी प्रचार के लिए हौज़े को मौके देने की आवश्यकता की ओर इशारा करते हुए कहा, हमने पिछले दंगों में दुश्मन का हाथ साफ़-साफ़ देखा।वह दुश्मन जो पुलिस की गला काटता है।
विश्वविद्यालयों और शैक्षणिक केंद्रों में अशांति फैलाता है शिया महिला से हिजाब खींचता है। ये घटनाएँ हमारे लिए एक सबक होनी चाहिए, हमने देखा कि महिला महसा अमीनी की मृत्यु के बाद कुछ लोगों ने भावुकतापूर्ण व्यवहार किया और दुश्मन का हाथ नहीं देखा।
उन्होंने कहा,उन साधनों में से एक जिसका दुश्मन ने भरपूर फायदा उठाया, वह "सोशल मीडिया" है। कई युवा इस प्लेटफॉर्म पर थे जिन्होंने इस खुले और बिना सीमा वाले माहौल में धोखा खाया और नुकसान उठाया, एक ऐसा मंच जहाँ अच्छा काम भी किया जाए तो उसे महत्वहीन दिखाया जाता है।
सोशल मीडिया को बिना नियंत्रण और उपेक्षित छोड़कर उसमें अच्छा काम नहीं किया जा सकता। हमारे युवा पिछले कुछ वर्षों में गहराई से नकारात्मक रूप से प्रभावित हुए हैं और हम इसके नुकसान देख रहे हैं।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन जाफ़र ज़ादेह ने कहा,सार्वजनिक संस्कृति में विभिन्न संस्थाएँ शामिल थीं हौज़ा ए इल्मिया की भूमिका को भी इन संस्थाओं में से एक के रूप में जाँचा जाना चाहिए, हालाँकि यह नहीं कहा जा सकता कि हौज़ा ने अपनी सारी क्षमताओं का उपयोग किया है, लेकिन वास्तव में हौज़ा ए इल्मिया ने अपने पास मौजूद क्षमता के आधार पर बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है। हौज़े ने अलग-अलग समय पर विभिन्न तरीकों से विभिन्न प्रचारों को व्यवस्थित किया है जो उसकी सकारात्मक भूमिका को दर्शाता है।
उन्होंने जोर देकर कहा, हालाँकि मिम्बर (मस्जिद में उपदेश देने का स्थान) महत्वपूर्ण है, लेकिन सोशल मीडिया पर भी ध्यान देना चाहिए।
क़ुम के हौज़ा ए इल्मिया के शिक्षक ने यह सवाल उठाते हुए कहा,क्या प्रचार का महत्वपूर्ण मंच हौज़ा के हाथ में है कि हम हौज़ा से इतनी उम्मीद रखें? उन्होंने कहा,जो लोग काम कर सकते हैं, वे विश्वविद्यालय, इस्लामी प्रचार मंत्रालय और इस तरह की अन्य संस्थाएँ हैं।
हाँ, हममें कमियाँ हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम कुछ न करें। प्रचार का मंच और महत्वपूर्ण नीतियाँ हौज़े के हाथ में नहीं हैं; अगर वे देते तो हौज़ा अधिक प्रभावी ढंग से काम करता। हौज़े से उम्मीद उतनी ही होनी चाहिए जितनी सुविधाएँ उसे दी गई हैं, लेकिन इस सीमा के भीतर भी उसने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है और और भी बेहतर कर सकता है।
उन्होंने स्पष्ट किया,हम देख रहे हैं कि हौज़ा ने सामग्री के निर्माण में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है और काम आगे बढ़ाया है लेकिन समस्या युवाओं और अधिकारियों तक संदेश पहुँचाने में है, यह काम सूचना तंत्र, रेडियो-टेलीविजन और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स द्वारा किया जाना चाहिए।
आज के युवाओं से संवाद का माध्यम सिनेमा, टेलीग्राम, इंस्टाग्राम और इस तरह के अन्य प्लेटफॉर्म हैं। समस्या यह नहीं है कि हमारे पास शासन संबंधी इस्लामी न्यायशास्त्र (फ़िक़्ह) नहीं है; समस्या यह नहीं है कि सामग्री का निर्माण नहीं हुआ है, बल्कि समस्या यह है कि यह सामग्री युवाओं तक अच्छी तरह से नहीं पहुँच पा रही है।
इमामे असकरी अलैहिस्सलाम की शहादत
उस समय अब्बासी शासक मोतमिद के हाथ में सत्ता थी। वह सोचता या कि इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम को अपने मार्ग से हटाकर वह उनकी याद को भी लोगों के मन से मिटा देगा और वे सदैव के लिए भुला दिए जाएंगे किन्तु जिस दीपक को पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम और उनके परिजनों ने जलाया हो वह कभी बुझ नहीं सकता बल्कि वह मानवता का सदैव मार्गदर्शन करता रहे गा।
जैसाकि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने फ़रमाया हैं: मेरे परिजन नूह की नौका की भांति हैं जिसने उनके दामन में पनाह ली वह मुक्ति पाएगा और जो उनसे दूर होगा वह डूब जाएगा।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की शहादत के अवसर पर पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों पर ईश्वर का सलाम हो हम इस बात के लिए ईश्वर का आभार व्यक्त करते हैं कि उसने मानवता के मार्गदर्शन के लिए इस महान हस्ती को संसार में भेजा।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम धार्मिक बंधुओं के अधिकारों की पहचान और उनके समक्ष विनम्रता के बारे में कहते हैं: जिसे अपने धार्मिक बंधुओं के अधिकारों की अधिक पहचान हो और वह उसके लिए अधिक प्रयास करे, ईश्वर के निकट उसका स्थान बहुत ऊंचा होगा। जो अपने धार्मिक बंधुओं से विनम्रता से मिले तो ईश्वर के निकट उसकी गणना सत्यवादियों व सत्य के अनुयाइयों में होगी।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की इमामत अर्थात ईश्वरीय आदेशानुसार जनता के मार्गदर्शन का काल, अब्बासी शासन श्रृंखला का सर्वाधिक हिंसाग्रस्त काल था। अब्बासी शासकों की अयोग्यता और दरबरियों में आपस में अंतरकलह, जनता में असंतोषत और निरंतर विद्रोह, दिगभ्रमित विचारों का प्रसार, उस काल की राजनैतिक व सामाजिक उथल पुथल के कारणों में थे। शासक, जनता का शोषण कर रहे थे और वंचितों व बेसहारा लोगों की संपत्ति बलपूर्वक हथि रहे थे। वे जनता के पैसों से भव्य महलों का निर्माण करते थे और जनता की निर्धनता व समस्याओं की ओर तनिक भी ध्यान नहीं देते थे।
अब्बासी शासक अपने अत्याचारी शासन को चलाने के लिए किसी भी अपराध की ओर से संकोच नहीं करते थे और समाज के सभी वर्गों के साथ उनका व्यवहार कठोर था। उस दौरान पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के परिजनों को और अधिक घुटन भरे वातावरण का सामना था। क्योंकि ये हस्तियां अत्याचार व भ्रष्टाचार के समक्ष मौन धारण नहीं करती थीं बल्कि उनके विरुद्ध आवाज़ उठाती थीं।
अब्बासी शासकों ने इमाम हसन अस्करी और उनके पिता इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम को मदीना नगर से जो पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों का केन्द्र था, तत्कालीन अब्बासी शासन की राजधानी सामर्रा नगर पलायन के लिए विवश किया। सामर्रा नगर में इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम अब्बासी शासन के अधिकारियों के नियंत्रण में थे। उन्हें सप्ताह में कुछ दिन अब्बासी शासन के दरबार में उपस्थित होना पड़ता था। अब्बासी शासक, इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम पर विभिन्न शैलियों से दबाव डालते थे क्योंकि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम का यह कथन सब को याद था कि विश्व को उत्याचार से मुक्ति दिलाने वाला उन्हीं का पौत्र होगा। वह मानवता को मुक्ति दिलाने वाले वही मोक्षदाता हैं जिन के प्रकट होने से संसार से अत्याचार जड़ से समाप्त हो जाएगा। ऐसे किसी शिशु के जन्म की कल्पना, अत्याचारी अब्बासी शासकों को अत्यधिक भयभीत करने वाली थी।
अब्बासी शासकों के व्यापक स्तर पर प्रयासों के बावजूद इस शिशु के जन्म लेने का ईश्वर का इरादा व्यावहारिक हुआ और इमाम महदी अलैहिस्सलाम ने इस संसार में क़दम रखा। इमाम मेहदी अलैहिस्सलाम के जन्म के पश्चात, इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने कठिन भविष्य का सामना करने के लिए समाज को तैयार करने का बीड़ा उइया।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम उचित अवसरों पर ग़ैबत अर्थात इमाम मेहदी अलैहिस्सलाम के लोगों की दृष्टि से ओझल रहने के काल की विशेषताओं तथा संसार के भावी नेतृत्व में अपने सुपुत्र की प्रभावी भूमिका का उल्लेख करते थे।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम बल दिया करते थे कि उनके सुपुत्र के हातों पूरे विश्व में न्याय व शांति स्थापित होगी।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम का व्यक्तित्व इतना आकर्षक था कि जिसकी भी दृष्टि उन पर पड़ती वह ठहर कर उन्हें देखने लगता और बरबस उनकी प्रशंसा करता था।
अब्बासी शासन की इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम से शत्रुता के बावजूद इस शासन का एक मंत्री इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के महान व्यक्तित्व का उल्लेख इन शब्दों में करता है। मैंने सामर्रा में हसन बिन अली के जैसा किसी को न पाया। गरिमा, सुचरित्र और उदारता में कोई उनके जैसे नहीं मिला।लांकि वह युवा हैं किन्तु बनी हाशिम उन्हें अपने वृद्धों पर वरीयता देते हैं। वह इतने महान हैं कि मित्र और शत्रु दोनों ही प्रशंसा किए बिना नहीं रह सकते।
वंचितों और बेसहारों पर इमाम की कृपादृष्टि उनके लिए आशा की किरण थी इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की कृपा से लाभान्वित होने वाला एक व्यक्ति कहता है: मेरी और मेरे पिता की आर्थिक स्थिति इतनी दयनीय हो चुकी थी कि लोगों की दान दक्षिणा से बड़ी मुश्किल से जीवन व्यतीत हो रहा था। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम से भेंट करना बहुत कठिन था क्योंकि अब्बासी शासन ने उन पर बहुत रोकटोक लगा रखी थी। इमाम हसन अलैहिस्सलाम की उदारता विख्यात थी। वे समस्याओं में घिरे लोगों की सहायता के लिए जाने जाते थे। इसलिए मुझे आशा थी कि वे मेरी आर्थिक समस्या का निदान करेंगे। मार्ग में पिता ने मुझसे कहा कि यदि इमाम पॉच सौ दिरहम दे दें तो मेरी बहुत सी समस्याओं का निदान हो जाएगा। मैं भी मन ही मन सोच रहा था कि यदि इमाम मुझे तीन सौ दिरहम दे दें तो में जबल नगर जाकर अपना नया जीवन आरंभ करुंगा। हम लोग इमाम के घर में प्रविष्ट हुए और एक कमरे में प्रतीक्ष करने लगे। उनके एक संबंधी, कमरे में आए और पॉंच सौ और तीन सौ दिरहम की दो थेलियां पिता को और मुझे दे दीं। में आश्चर्य में पड़ गया, समझ में नहीं आ रहा था कि क्या कहूं। मैं और पिता आश्चर्य की स्थिति में थे कि इमाम के दूत ने मुझसे कहा: इमाम ने तुम्हें जबल नगर जाने से रोका है बल्कि जीवन यापन के लिए सूरा नगर का सुझाव दिया है। ईश्वर का आभार व्यक्त करते हुए बहुत प्रसन्न हो कर इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के घर से निकला मैं इमाम के सुझाव के अनुसार सूरा नगर गया और इमाम की सहायता से वहॉ अच्छा जीवन व्यतीत करने लगा। यह सब पैग़म्बरे इस्लाम के महान पौत्र इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की कृपा दृष्टि का फल था।
उस समय लोगों के विचारों पर संकीर्णता छाई हुई थी और धर्म में नई नई बातें शामिल की जा रही थीं, ऐसी स्थिति में इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने धर्म के वास्तविक रुप को लोगों के सामने स्पष्ट किया। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के पास भी पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेहि व सल्लम के अन्य परिजनों की भांति ज्ञान का अथाह सागर था। लोगों की ज़बान पर इमाम अलैहिस्सलाम के ज्ञान की चर्चा रहती थी। वे सत्य के मार्ग की खोज करने वालों का मार्गदर्शन करते थे। शास्त्रार्थों में इमाम ऐसे प्रभावी र्तक देते थे कि तत्कालीन अरब दार्शनिक याक़ूब बिन इस्हाक़ कन्दी ने इमाम से शास्त्रर्थ के पश्चात उस किताब को जला दिया जिसमें उसने कुछ धार्मिक बातों की आलोचना की थी। उस समय इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम को लोगों तक अपना दृष्टिकोण पहुंचाने में भी कठिनाइयों का सामना था। इसलिए इमाम अनेक शैलियों तथा अपने विश्वस्नीय प्रतिनिधियों के माध्यम से जनसंपर्क बनाते थे और सुदूर क्षेत्रों के मुसल्मानों की स्थिति से अवगत होते थे।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ईश्वर की इतनी उपासना करते थे कि बहुत से पथभ्रष्ट उनकी उपासना को देखकर सत्य के मार्ग पर आ जाते थे। ऐसे ही लोगों में सालेह बिन वसीक़ नामक जेलर भी था। जिस समय इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम को जेल ले जाया गया उस समय सालेह बिन वसीक़ जेलर था। वह इमाम के व्यक्तित्व से इतना प्रभावित हुआ कि उसकी गणना उस समय के महाउपासकों व धर्मनिष्ठों में होने लगी। वह कहता है:जैसे ही में इमाम को देखता हूं, मेरे भीतर ऐसा परिवर्तन होने लगता है कि मैं स्वंय पर नियंत्रण नहीं रख पाता और ईश्वर की उपासना करने लगता हूं।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम फ़र्माते हैं: मिथ्या, व्यक्ति को झूठ , बेइमानी, वचन तोड़ने और छल कपट की ओर ले जाती है और सत्य के मार्ग से दूर कर देती है। मिथ्याचारी व्यक्ति भरोसे के योग्य नहीं है। जान लो कि मिथ्या को समझने के लिए पैनी दृष्टि और बहुत चेतना की आवश्यक्ता होती है।
एक अन्य स्थान पर फ़रमाते हैं: तुम्हारा जीवन बहुत सीमित और इसके दिन निर्धारित है और मृत्यु अचानक आ पहुंचती है। जो सदकर्म करता है उससे लाभानिवत होता है और जो बुराई करता उसके परिणाम में उसे पछतावा होता है तुम्हें धर्म को समझने, शिष्टाचार अपनाने, और सदकर्म की अनुशंसा करता हूं।