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हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन हुसैनज़ादेह ने कहा कि इस्लामी क्रांति की निरंतर प्रगति के लिए इमाम खुमैनी (र.ह.) के विचारधारा की स्पष्ट व्याख्या बेहद आवश्यक है।

क़ुरआनी शोधकर्ता और लेखक हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद मोहम्मद मेहदी हुसैनज़ादेह ने तेहरान में हौज़ा न्यूज़ से बातचीत के दौरान कहा,इमाम खुमैनी (रह.) एक बहुआयामी और संपूर्ण व्यक्तित्व के मालिक थे, जिनके विभिन्न पहलुओं का अध्ययन एक गंभीर शैक्षणिक और शोध कार्य की मांग करता है।

जिसे दिनी मदरसों और विश्वविद्यालयों में दीर्घकालिक योजनाओं के अंतर्गत अंजाम दिया जाना चाहिए।इमाम रहमतुल्लाह अलैह की याद, जीवनी और जीवनशैली का परिचय समाज में धर्मपरस्ती और क्रांतिकारी भावना को ज़िंदा रखने का एक प्रभावशाली माध्यम है।

उन्होंने इमाम खुमैनी र.ह.के क़ुरआनी व्यक्तित्व पर ज़ोर देते हुए कहा,इस्लामी क्रांति के महान नेता क़ुरआन के एक व्याख्याकार (मुफस्सिर) थे, और विलायत-ए-फक़ीह जैसे विषय की विद्वत्तापूर्ण व्याख्या भी उनकी इसी क़ुरआनी सोच का प्रतीक है।
इमाम खुमैनी (र.ह.) की तफ़सीरी कृतियाँ उनके गंभीर और गहरे क़ुरआनी ज्ञान की स्पष्ट मिसाल हैं।इस्लामी गणराज्य की प्रणाली में उनकी लोकप्रियता का कारण भी उनका क़ुरआनी व्यक्तित्व ही था।

हुज्जतुल इस्लाम हुसैनज़ादा ने आगे कहा,इमाम खुमैनी (रह.) ने हमेशा क़ुरआन के आधार पर जनता को विशेष महत्व दिया और उन्हें "वली-ए-नेमत समझा वे शासन और चुनाव की हर प्रक्रिया में जनता की उपस्थिति को निर्णायक मानते थे।इसी कारण इमाम खुमैनी (रह.) ने संसद मजलिस को सभी मामलों की बुनियाद और मूल करार दिया।

उन्होंने कहा,इमाम खुमैनी (रह.) के मकतब की व्याख्या इस्लामी क्रांति की निरंतर प्रगति के लिए बहुत ज़रूरी है।इस सिलसिले में सबसे अच्छा रास्ता यह है कि हम रहबर-ए-मुअज़्ज़म आयतुल्लाह ख़ामेनेई के बयानों और भाषणों का गहराई से अध्ययन करें।

ख़ासकर वे भाषण जो इमाम खुमैनी (रह.) की सालाना बरसी के अवसर पर दिए जाते हैं, क्योंकि उनमें इमाम खुमैनी (रह.) के विचारों और मकतब की एक संपूर्ण और गहन व्याख्या मौजूद होती है।

 

कुछ ज़ायोनी अधिकारियों का कहना है कि फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध पर अभूतपूर्व दबाव है जबकि ज़ायोनी मीडिया के विश्लेषक एक अलग नजरिए से जोर देते हैं कि हमास अभी भी ज़ोरदार तरीके से लड़ाई जारी रखे हुए है और उसमें गिरावट या आत्मसमर्पण के कोई संकेत नहीं दिख रहे हैं।

यदीओत अहारोनोत अखबार के विश्लेषक अविव यिसाखरोफ ने अमेरिका के पश्चिम एशिया क्षेत्र के विशेष दूत स्टीव व्हिटकॉफ़ द्वारा दिए गए प्रस्ताव के बारे में हमास की हालिया प्रतिक्रिया पर कहा: हमास का जवाब स्पष्ट रूप से दिखाता है कि इज़राइल के अंदर कुछ दावों के विपरीत, जिनमें कहा जाता है कि हमास भारी दबाव में है और गिरावट के करीब है, ऐसा कुछ अभी तक नहीं हुआ है।

उन्होंने स्वीकार किया कि हमास ने अभी तक आत्मसमर्पण करने या अपने हथियार छोड़ने का कोई संकेत नहीं दिखाया है।

 इसी संदर्भ में, इस अखबार के एक अन्य विश्लेषक "असाओ मीडानी" ने इज़राइली शासन की आंतरिक स्थिति को बेहद नाज़ुक बताया और कहा:

समस्या यह है कि इज़राइल अब और महीनों तक इस गतिरोध को सहन करने में सक्षम नहीं है न सैन्य क्षेत्र में, न दक्षिणी और उत्तरी इलाक़ों के पुनर्निर्माण में, न आंतरिक राजनीतिक मोर्चे पर और न ही पश्चिमी दबावों के सामने।

 उन्होंने आगे कहा: ये सभी समस्याएँ तब और गहरी हो गई हैं जब इज़राइल के प्रधानमंत्री बिनयामिन नेतन्याहू का एकमात्र लक्ष्य अपनी राजनीतिक सत्ता की स्थिरता बनाए रखना है।

 ये आकलन ऐसे समय में सामने आए हैं जब हमास और इज़राइली शासन के बीच संघर्ष विराम और बंधकों के आदान-प्रदान को लेकर वार्ता का गतिरोध जारी है और अमेरिका की मध्यस्थता अभी तक कोई ठोस परिणाम नहीं ला सकी है। इसी बीच, हमास ने अमेरिका के हालिया प्रस्ताव का जवाब देते हुए अपनी मुख्य मांगों पर दृढ़ता दिखाई है, खासकर स्थायी संघर्ष विराम और घेराव व प्रतिबंध हटाने की जबकि तेल अवीव ने अब तक ऐसी शर्तें मानने से इंकार किया है।

 हमास ने शनिवार की शाम घोषणा की कि उसने ग़ज़ा में संघर्ष विराम स्थापित करने के लिए विटकॉफ़ के प्रस्ताव का जवाब दिया है।

 वहीं, स्टीव विटकॉफ़ ने हमास के जवाब को "पूरी तरह अस्वीकार्य" बताया और दावा किया कि इस जवाब ने वार्ताओं को पिछली स्थिति में वापस लौटा दिया है।

 फिर भी, हमास ने प्रस्ताव अस्वीकार करने के आरोप को खारिज करते हुए कहा है: "हमारा जवाब बिल्कुल चर्चा के तहत समझौते के दायरे में था, लेकिन इज़राइली शासन ने ऐसे जवाब दिया जो समझौते की शर्तों के विपरीत था।"

 

हमास ने एक आधिकारिक बयान में स्पष्ट किया कि "विटकॉफ़ का हमास के प्रति रुख़ अन्यायपूर्ण और पूरी तरह पक्षपाती रहा है और उसने मध्यस्थ के रूप में आवश्यक निष्पक्षता का उल्लंघन किया है। 

 

 

 

हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने नहजुल बलाग़ा की हिकमत नंबर 44 में चार अहम सिफ़ात को सआदत और कामयाबी की बुनियाद क़रार दिया है यह मुख़्तसर मगर बलीग़ जुमले किसी भी मोमिन की ज़ेहनी और अमली ज़िंदगी के लिए मुकम्मल रहनुमाई करते हैं।

हज़रत इमाम  अली (अ.स.) ने नहजुल बलाग़ा की हिकमत नंबर 44 में चार ख़ास सिफ़तों (गुणों) को इंसान की खुशबख़्ती और कामयाबी की बुनियाद बताया है। ये मुख़्तसर लेकिन असरदार जुमले एक मोमिन की सोच और अमल दोनों के लिए मुकम्मल रहनुमाई करते हैं:

«طُوبَی لِمَنْ ذَکَرَ الْمَعَادَ، وَ عَمِلَ لِلْحِسَابِ، وَ قَنِعَ بِالْکَفَافِ، وَ رَضِیَ عَنِ اللَّهِ»

बशारत है उस इंसान के लिए जो आख़िरत को याद रखता है,हिसाब के लिए अमल करता है,कम में क़नाअत करता है,और अल्लाह के फैसले से राज़ी रहता है।

  1. याद-ए-मआद (आख़िरत की याद):

जो शख़्स हमेशा आख़िरत को याद रखता है और यह यक़ीन रखता है कि एक दिन उसके तमाम आमाल का हिसाब लिया जाएगा, वह गुनाहों से बचता है और नेकी की तरफ़ झुकता है।

आख़िरत का यक़ीन इंसान के दिल में अल्लाह का डर पैदा करता है और उसे किरदार वाला इंसान बनाता है।

  1. हिसाब के लिए अमल करना:

यानि इंसान अपने हर काम को इस नीयत से करे कि कल क़यामत के दिन इसका जवाब देना होगा।यह ईमान केवल ज़बानी इक़रार नहीं, बल्कि अमल पर आधारित होता है।इमाम जाफ़र सादिक़ (अ.स.) फ़रमाते हैं:ईमान सिर्फ़ बोलने का नाम नहीं, बल्कि पूरा का पूरा अमल है।

  1. क़नाअत (संतोष):

खुशक़िस्मत इंसान वह है जो अपनी बुनियादी ज़रूरतों के मुताबिक़ जो कुछ मिल जाए, उसी में संतुष्ट रहे।क़नाअत दिल का सुकून है और इंसान को लालच और तामाअ से बचाती है।

रसूल-ए-अकरम स.अ. ने फ़रमाया:थोड़ा हो लेकिन काफ़ी हो, ये बेहतर है उस दौलत से जो ज़्यादा हो मगर इंसान को ग़ाफ़िल बना दे।

  1. रज़ा बिल क़ज़ा (अल्लाह के फैसले पर राज़ी रहना):

अल्लाह के हर फैसले पर दिल से राज़ी रहना, चाहे वो हमारे हक़ में हो या खिलाफ़।

इमाम सादिक़ (अ.स.) ने इसे फ़रमाया:अल्लाह की इताअत (आज्ञा पालन) की सबसे ऊँची मंज़िल, अल्लाह के फैसलों पर राज़ी रहना है।

नतीजा:यह चार बुनियादी उसूल,आख़िरत की याद,हिसाब के लिए अमल,क़नाअत,और रज़ा बिल क़ज़ा,एक इंसान को न केवल दुनिया में सुकून और तसल्ली देते हैं, बल्कि उसे आख़िरत में भी कामयाबी दिलाते हैं।

जो इंसान इन उसूलों पर अमल करता है, वही असली मायनों में "खुशबख़्त" है।

अमेरिकी रक्षा मंत्री पिट हेगस्ट ने एशिया में हथियारों की बिक्री बढ़ाने के अपने देश के इरादे को ज़ाहिर करते हुए कहा है कि चीन के खतरों का सामना करने के लिए अमेरिका के एशियाई सहयोगियों को अपनी रक्षा और सैन्य खर्च बढ़ाना चाहिए।

पिट हेगस्ट ने शनिवार को चेतावनी दी कि चीन का ख़तरा वास्तविक और निकट भविष्य में हो सकता है। उन्होंने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका के सहयोगियों को अपनी रक्षा जरूरतों के लिए अधिक खर्च करने के लिए प्रोत्साहित किया।

 पहली बार सिंगापुर में आयोजित शांगरि-ला समिट में बोलते हुए हेगस्ट ने जोर देकर कहा कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की सरकार के लिए प्राथमिकता वाला क्षेत्र है।

 चीन के खिलाफ अपने एक कड़े बयान में उन्होंने कहा: "इस ख़तरे को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने की जरूरत नहीं है। चीन द्वारा उत्पन्न ख़तरा वास्तविक है और निकट भविष्य में हो सकता है।"

 उन्होंने आगे कहा कि चीन की ताइवान पर कब्ज़ा करने की कोई भी कोशिश हिंद-प्रशांत क्षेत्र और दुनिया के लिए विनाशकारी परिणाम लेकर आएगी।

 चीन ताइवान को अपनी भूमि का हिस्सा और अपना अंग मानता है और उसने वादा किया है कि जरूरत पड़ी तो बल का इस्तेमाल करके इस स्वायत्त द्वीप को "फिर से एकीकृत" करेगा। बीजिंग ने ताइवान के आस-पास युद्ध अभ्यासों की संख्या और तीव्रता भी बढ़ा दी है।

 ताइवान की सरकार बीजिंग के क्षेत्रीय दावों को अस्वीकार करती है और कहती है कि इस द्वीप के भविष्य के बारे में केवल इसके निवासी ही निर्णय ले सकते हैं।

 हेगस्ट ने कहा: "यह सभी के लिए स्पष्ट होना चाहिए कि बीजिंग विश्वसनीय रूप से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सैन्य बल के संभावित इस्तेमाल की तैयारी कर रहा है ताकि शक्ति संतुलन को बदला जा सके।"

 उन्होंने इससे पहले यूरोपीय सहयोगियों की आलोचना की थी कि वे अपनी रक्षा के लिए अधिक खर्च नहीं कर रहे हैं। फरवरी में, उन्होंने ब्रसल्स में नाटो मुख्यालय में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में यूरोप को चेतावनी दी थी कि अमेरिका के साथ मूर्खतापूर्ण व्यवहार न करें।

 इसी बीच, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रां ने शुक्रवार को शांगरी-ला समिट में कहा कि हेगस्ट ने सही कहा है कि यूरोप को अपने रक्षा खर्च बढ़ाने चाहिए

 

अमेरिका ने भले ही 1979 में आधिकारिक तौर पर तीन संयुक्त घोषणाओं के तहत बीजिंग के साथ एक-चीन नीति को स्वीकार किया और ताइवान के साथ अपने राजनयिक संबंध तोड़ दिए, लेकिन हाल के वर्षों में अमेरिकी राष्ट्रपतियों ने इस नीति के विपरीत कदम उठाए हैं। उन्होंने ताइवान को सैन्य हथियार बेचे हैं, राजनयिक संपर्क बढ़ाए हैं और इस द्वीप के साथ संबंधों का विकास कर रहे हैं।

 

लेबनान की उच्च शिया परिषद के उपाध्यक्ष हज़रत हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन शेख अली अलखतीब ने हालिया सरकारी कार्रवाइयों पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि शिया समुदाय लेबनान का एक बुनियादी और अटल हिस्सा है जो तत्व उन्हें हवाई अड्डों, बंदरगाहों और अन्य स्थानों से बाहर निकालने की कोशिश कर रहे हैं, वे वास्तव में देश को एक खतरनाक अंजाम की ओर धकेल रहे हैं।

लेबनान की उच्च शिया परिषद के उपाध्यक्ष हज़रत हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन शेख अली अलखतीब ने हालिया सरकारी कार्रवाइयों पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि शिया समुदाय लेबनान का एक बुनियादी और अटल हिस्सा है जो तत्व उन्हें हवाई अड्डों, बंदरगाहों और अन्य स्थानों से बाहर निकालने की कोशिश कर रहे हैं, वे वास्तव में देश को एक खतरनाक अंजाम की ओर धकेल रहे हैं।

उन्होंने कहा कि आज लेबनान की सरकार देश की असल समस्याओं जैसे सियोनी कब्ज़ा, लगातार हो रही आक्रामकता, और संयुक्त राष्ट्र की प्रस्ताव 1701 के लागू करने से आंखें मूंदे हुए है, लेकिन पूरा ध्यान केवल प्रतिरोध और उसके हथियारों पर केंद्रित है। उनका कहना था कि सरकार दक्षिणी लेबनान के लोगों को निशाना बना रही है और यात्रियों के बहाने शिया समुदाय को सीमित कर रही है, जो कि बिलकुल अस्वीकार्य है।

शेख अलखतीब ने उन लोगों की भी कड़ी आलोचना की जो जानबूझकर प्रतिरोध और आतंकवाद के बीच अंतर को नज़रअंदाज़ करते हैं या बाहरी ताकतों को खुश करने के लिए ऐसा करते हैं।

उन्होंने कहा कि जो लोग शिया समुदाय को राजनीतिक और सामाजिक समीकरण से बाहर करना चाहते हैं, वे या तो भटकाव में हैं या जानबूझकर लेबनान को बर्बादी की ओर ले जा रहे हैं, क्योंकि शिया न तो झुकेंगे न चुप रहेंगे।

उन्होंने कहा कि शिया समुदाय कर्बला के अनुयायी हैं और अपनी शान और सम्मान पर कभी समझौता नहीं करेंगे।हम सब मर सकते हैं, लेकिन कभी भी हार नहीं मानेंगे।

शेख अलखतीब ने सरकार को चेतावनी दी कि बाहरी ताकतों की मदद लेकर दबाव डालने, घेराव करने और शिया समुदाय को हाशिए पर डालने की जो नीति पहले असफल रही है, वह अब भी सफल नहीं होगी। अंत में उन्होंने जोर देकर कहा कि अगर देश को बचाना है तो शिया समुदाय को बाहर निकालने की बजाय उनके साथ न्याय और सम्मान से पेश आना होगा।

 

ईरान की परमाणु ऊर्जा एजेंसी के प्रमुख ने कहा कि देश और अमेरिका के बीच अप्रत्यक्ष परमाणु वार्ताओं में कुछ हद तक प्रगति हुई है लेकिन यूरेनियम को जमा करने में हम अपने राष्ट्र का पालन करेंगे

ईरान की परमाणु ऊर्जा एजेंसी के प्रमुख मोहम्मद इस्लामी ने कहा कि अमेरिका के साथ चल रही अप्रत्यक्ष बातचीत में कुछ सकारात्मक प्रगति देखने को मिली है।

उन्होंने यूरेनियम संवर्धन को देश की राष्ट्रीय नीति करार देते हुए कहा कि यह विषय वार्ताओं के एजेंडे का हिस्सा नहीं है। इस्लामी ने कहा कि इस मुद्दे पर अमेरिकी बयानों के पीछे यहूदी लॉबी का प्रभाव हो सकता है, जो वार्ताओं की प्रक्रिया को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहा है।

इससे पहले शनिवार को ईरानी विदेश उप मंत्री अब्बास अराक़ची ने कहा था कि वाशिंगटन के साथ परमाणु वार्ताओं में तेहरान का रुख 'दबाव और वर्चस्व की राजनीति को अस्वीकार करना' है।

उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि केवल अपने संदेहों के आधार पर कोई भी ईरानी जनता को उसके वैध अधिकारों से वंचित नहीं कर सकता।

इस्लामी ने कहा कि ईरान, देश के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई के मार्गदर्शन में दृढ़ता के साथ आगे बढ़ता रहेगा।ईरान और अमेरिका के बीच शुक्रवार को इटली की राजधानी रोम में ओमान की मध्यस्थता से बातचीत का पांचवां दौर आयोजित हुआ।

 

प्रसिद्ध सांस्कृतिक और क्रांतिकारी व्यक्ति सरदार अब्दुल हुसैन अल्लाह करम ने वर्तमान युग में हिजाब की बिगड़ती स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि आज का वातावरण न तो इस्लामी व्यवस्था के योग्य है और न ही ईरानी सभ्यता और संस्कृति के योग्य है। उनके अनुसार, हिजाब हमेशा ईरानी राष्ट्र के अभिजात वर्ग द्वारा समर्थित मूल्यों में से रहा है और ईरानी राष्ट्र की विनम्रता और शुद्धता को इतिहास में एक उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया गया है।

प्रसिद्ध सांस्कृतिक और क्रांतिकारी व्यक्ति सरदार अब्दुल हुसैन अल्लाह करम ने वर्तमान युग में हिजाब की बिगड़ती स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि आज का वातावरण न तो इस्लामी व्यवस्था के योग्य है और न ही ईरानी सभ्यता और संस्कृति के योग्य है। उनके अनुसार हिजाब हमेशा से ईरानी राष्ट्र के अभिजात वर्ग द्वारा समर्थित मूल्यों में से एक रहा है, और ईरानी राष्ट्र की विनम्रता और शुद्धता को इतिहास में एक उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया गया है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के संवाददाता से बात करते हुए उन्होंने कहा: "मौजूदा स्थिति में सुधार की ज़रूरत है। अगर हमारे देश के संविधान और कानूनों को सही तरीके से लागू किया जाए, तो इस्लामी हिजाब को बढ़ावा देना संभव है। ईरानी लोग खुद एक मज़बूत सभ्यता और धार्मिक सभ्यता के उत्तराधिकारी हैं। जब हिजाब के धार्मिक, नैतिक और सामाजिक आशीर्वाद उन्हें स्पष्ट हो जाएँगे, तो वे निश्चित रूप से इस कर्तव्य में आगे बढ़ेंगे।"

सरदार अल्लाहकरम ने इस्लामी क्रांति की नींव रखने वाले महान व्यक्तियों के बलिदानों का उल्लेख करते हुए कहा: "यह क्रांति हजरत इमाम खुमैनी (र), विद्वानों, शहीदों और ईरानी राष्ट्र की निस्वार्थता का फल है। अधिकांश शहीदों की वसीयत में दो बातें बार-बार दोहराई गई हैं: एक सर्वोच्च नेता की आज्ञाकारिता, और दूसरी इस्लामी हिजाब का पालन। हमें इन तथ्यों को नई पीढ़ी, खासकर हमारी बेटियों और बहनों तक पहुंचाना चाहिए। अनुभव से पता चलता है कि जब भी लोग शहीदों के जीवन से अवगत होते हैं, तो उनकी धार्मिक प्रतिबद्धता बढ़ जाती है।" सरदार अल्लाहकरम के अनुसार, अगर इस्लामी हिजाब को युवा पीढ़ी के सामने सिर्फ एक बाहरी दायित्व के रूप में नहीं बल्कि एक सम्मानजनक मानवीय और धार्मिक व्यवस्था के हिस्से के रूप में पेश किया जाए, तो वे खुद इसे अपनाने की पहल करेंगे।

 

फिलिस्तीनी प्रतिरोधी लड़ाकों ने दक्षिणी ग़ाज़ा के शहर खान यूनुस में ज़ायोनी फौज पर अत्याधुनिक रॉकेटों से हमला कर एक और ज़बरदस्त झटका दिया है।

फिलिस्तीनी प्रतिरोधी लड़ाकों ने दक्षिणी ग़ाज़ा के शहर खान यूनुस में ज़ायोनी फौज पर अत्याधुनिक रॉकेटों से हमला कर एक और ज़बरदस्त झटका दिया है। यह हमला खान यूनुस के पूर्वी क्षेत्र में किया गया, जहाँ ज़ायोनी सैनिकों को निशाना बनाया गया।

अलजज़ीरा की रिपोर्ट के मुताबिक, ह़मास की सैन्य शाखा अलक़स्साम ने एक बयान में बताया कि अल-क़ुद्स ब्रिगेड के साथ मिलकर एक संयुक्त ऑपरेशन में उनके मुजाहिदीनों ने एक रिहायशी मकान में छिपे ज़ायोनी सैनिकों की मौजूदगी की पहचान के बाद TBG रॉकेट और एंटी-पर्सनल रॉकेट से हमला किया।

बयान में यह भी कहा गया कि ये सैनिक एक मकान में छिपे हुए थे और उन्हें सीधे निशाना बनाकर भारी नुकसान पहुंचाया गया।

इस हमले से कुछ घंटे पहले ही अल-क़ुद्स ब्रिगेड ने एक और अभियान का दावा करते हुए बताया था कि उनके लड़ाकों ने एक अन्य मकान में मौजूद 10 ज़ायोनी सैनिकों पर घात लगाकर हमला किया, जिसमें कई सैनिक मारे गए और कई घायल हो गए।

 

सीरिया की राजधानी दमिश्क में ISIS (दाइश) का प्रसिद्ध काला झंडा सार्वजनिक स्थानों और दुकानों पर खुलेआम बिकते हुए देखा जा रहा है, और इस पर सरकार की ओर से कोई रोक टोक नज़र नहीं आती।

सीरिया की राजधानी दमिश्क में आतंकी संगठन ISIS  का काला झंडा खुलेआम दुकानों और सार्वजनिक स्थानों पर बिकते हुए देखा गया है। इस पर सरकार की कोई रोक-टोक नज़र नहीं आती।

सीरियन ऑब्जर्वेटरी फॉर ह्यूमन राइट्स नामक एक मानवाधिकार निगरानी संस्था ने शनिवार की रात एक रिपोर्ट में खुलासा किया कि ISIS का प्रसिद्ध झंडा "अल उक़ाब", जो इस आतंकी समूह की पहचान बन चुका है दमिश्क के कुछ बाज़ारों में संबंधित नारों और स्टिकर्स के साथ खुलेआम बेचा जा रहा है।

एक रिपोर्ट के अनुसार, यह झंडे और प्रतीक हथियारों की दुकानों और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर बिना किसी प्रतिबंध के उपलब्ध हैं, और सरकारी एजेंसियों द्वारा कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया है।

इस संगठन ने चेतावनी दी है कि सरकारी बेरुखी और चुप्पी से ऐसे प्रतीकों की सार्वजनिक स्वीकृति और आदत बढ़ सकती है, जो आने वाले समय में गंभीर और खतरनाक परिणामों  का कारण बन सकती है।

यह खबर ऐसे समय सामने आई है जब इस साल की शुरुआत में कुछ स्थानीय मीडिया ने ऐसी तस्वीरें प्रकाशित की थीं, जिनमें देखा गया कि शामी विद्रोही नेता अबू मोहम्मद अलजौलानी के समर्थक दमिश्क के उपनगर "सहनाया" में प्रवेश करते समय बाज़ू पर ISIS का झंडा लगाए हुए थे।

अबू मोहम्मद अलजोलानी, जो पहले अलकायदा की सीरियाई शाखा "जभात अलनुसरा" का संस्थापक था और बाद में "हयात तहरीर अलशाम" का नेतृत्व करता रहा, अब दमिश्क में अपनी प्रभावी स्थिति बना चुका है।

2024 के अंत में उसने अपना राजनीतिक चेहरा बदलते हुए अहमद अल-शराअ नाम अपनाया, और कुछ ही समय बाद उसका नाम अमेरिका समेत कुछ देशों की प्रतिबंध सूची से हटा दिया गया।

विशेषज्ञों का मानना है कि ISIS जैसे आतंकी समूह के झंडे की खुलेआम बिक्री सीरिया की आंतरिक स्थिति में एक नई और चिंताजनक दिशा की ओर इशारा करती है, जो भविष्य के लिए बहुत ख़तरनाक साबित हो सकती है।

 

संयुक्त राष्ट्र की बाल संरक्षण एजेंसी यूनिसेफ़ ने जानकारी दी है कि ग़ाज़ा पट्टी में 7 अक्टूबर 2023 से अब तक 50,000 से ज़्यादा फ़िलिस्तीनी बच्चे शहीद या घायल हो चुके हैं। यह आँकड़ा इस बात की गवाही देता है कि हर 20 मिनट में एक बच्चा या तो मारा जा रहा है या घायल हो रहा है।

संयुक्त राष्ट्र की बाल संरक्षण एजेंसी यूनिसेफ़ ने जानकारी दी है कि ग़ाज़ा पट्टी में 7 अक्टूबर 2023 से अब तक 50,000 से ज़्यादा फ़िलिस्तीनी बच्चे शहीद या घायल हो चुके हैं। यह आँकड़ा इस बात की गवाही देता है कि हर 20 मिनट में एक बच्चा या तो मारा जा रहा है या घायल हो रहा है।

यूनिसेफ़ द्वारा जारी आंकड़े यह दिखाते हैं कि इस समय ग़ाज़ा पट्टी में बच्चे किस भयावह संकट का समाना कर रहे हैं।18 मार्च 2025 को युद्धविराम के उल्लंघन के बाद से 309 बच्चे शहीद और 3,738 घायल हुए हैं।

यूनिसेफ़ ने यह भी बताया कि ग़ाज़ा इस समय भुखमरी،मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघन,मानवीय सहायता की भारी कमी,और स्कूलों व अस्पतालों की तबाही जैसे हालात से गुजर रहा है।

यूनिसेफ़ के कार्यकारी निदेशक पहले ही इस बात पर ज़ोर दे चुके हैं कि अमेरिका और इस्राईल की ओर से तैयार किया गया ग़ाज़ा को मदद पहुंचाने का नया प्लान ग़ाज़ा के लिए विनाशकारी है।

ग़ाज़ा के बच्चों की हालत दुनिया के सामने एक गंभीर मानवीय त्रासदी बन चुकी है, और ज़रूरत इस बात की है कि वैश्विक समुदाय तुरंत हस्तक्षेप करे ताकि बच्चों की जानें बचाई जा सकें और उन्हें एक सुरक्षित भविष्य मिल सके।