رضوی

رضوی

जनाबे उम्मुल बनीन स.ल.अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली अलैहिस्सलाम की ज़ौजा और अलमदारे कर्बला हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम की माँ थीं इन की विलादत कूफ़ा शहर के नज़दीक हुईं थीं आप का असली नाम फ़ातिमा ए कलाबिया था।

जनाबे उम्मुल बनीन स.ल.अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली अलैहिस्सलाम की ज़ौजा और अलमदारे कर्बला हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम की माँ थीं इन की विलादत कूफ़ा शहर के नज़दीक हुईं थीं आप का असली नाम फ़ातिमा ए कलाबिया था।

जनाबे उम्मुल बनीन (स.ल.) के पिता हज़्ज़ाम बिन ख़ालिद बिन रबी कलाबिया थे तथा आप को अरब के प्रसिध्द बहादुरों में गिना जाता था एवं अपने क़बीले के सरदार भी थे और आप की माता का नाम समामा (ثمامه) था।

रिवायत में बयान हुआ है कि जनाबे फ़ातिमा ज़हरा (स.अ) की शहादत के कुछ महीनों बाद इमाम अली अलैहिस्सलाम ने अपने बड़े भाई जनाबे अक़ील को बुलाया जो कि उस समय के सबसे बड़े नसब शिनास थे और उन से कहा कि ऐ भाई अक़ील! मुझे किसी ऐसी औरत के बारे में बताओ कि जिससे मैं विवाह कर सकूं ताकि ख़ुदा उसके ज़रिए मुझे एक दिलेर और बहादुर बेटा दे। तब जनाबे अक़ील ने हज़रत अली (अ) को जनाबे उम्मुल बनीन (स) और उनके परिवार के बारे में बताया और कहा कि ऐ अली! तुम फ़ातिमा ए कलाबिया से विवाह करो। क्योंकि मैं अरब में उनके ख़ानदान से अधिक बहादुर किसी को नहीं जानता हूं। इमाम अली (अ) ने जनाबे अक़ील की बात से सहमत होकर जनाबे उम्मुल बनीन (स) से विवाह कर लिया।

विवाह के बाद जब जनाबे उम्मुल बनीन (स) हज़रत अली (अ) के घर में आईं तो आप ने इमाम अली (अ) से कहा कि ऐ मेरे आक़ा! आज से आप मुझे उम्मुल बनीन यानी बच्चों की माँ कहा करें ताकि ऐसा न हो कि आप मुझे फ़ातिमा कहकर पुकारें और हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स.अ) के बच्चे अपनी माँ को याद करके ग़मज़दा हो जायें।

जनाबे उम्मुल बनीन (स) ने जनाबे फ़ातिमा ज़हरा (स.अ) की औलाद को अपने बच्चों से अधिक मोहब्बत दी और सदा अपने बच्चों को नसीहत की कि देखो! तुम अली (अ) की औलाद ज़रूर हो लेकिन अपने आप को हमेशा फ़ातिमा ज़हरा (स.अ) के बच्चों का ग़ुलाम समझना।

जब करबला की घटना के बाद बशीर ने आपको आपके चारों बेटों (हज़रत अब्बास, जाफ़र, अब्दुल्लाह, उस्मान अ.) की शहादत की ख़बर दी तो जनाबे उम्मुल बनीन (स) ने कहा कि ऐ बशीर! तूने मेरे दिल के टुकड़े टुकड़े कर दिये और ज़ोर ज़ोर से रोना शुरू कर दिया।

बशीर ने कहा कि ख़ुदावंद आप को इमाम हुसैन (अ) की शहादत पर अजरे अज़ीम इनायत करें, तो उम्मुल बनीन (स) ने जवाब दिया, मेरे सारे बेटे और जो कुछ भी इस दुनिया में है सब मेरे हुसैन (अ) पर क़ुरबान...

आप के चार बेटे हज़रत अब्बास, अब्दुल्लाह, जाफ़र और उस्मान (अ) थे जो सब के सब करबला के मैदान में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथ शहीद हुए।

जनाबे उम्मुल बनीन (स) ने 13 जमादिस्सानी सन 64 या 70 हिजरी में मदीना शहर में वफ़ात पाई और आप की क़ब्र जन्नतुल बक़ी क़ब्रिस्तान में है।

आयतुल्लाहिल उज़्मा शेख अबुलक़ासिम क़ुम्मी रहमतुल्लाह अलैह का जन्म पवित्र क़ुम शहर में सन 1280 हिजरी में एक धार्मिक और विद्वान परिवार में हुआ। आपके अज़ीम पिता, मरहूम मुल्ला मुहम्मद तक़ी रहमतुल्लाह अलैह भी क़ुम के अज़ीम उलेमा में शुमार होते थे। हालांकि आपके जन्म का सही वर्ष किसी स्रोत में स्पष्ट रूप से उल्लेखित नहीं है, लेकिन चूँकि आप सन 1353 हिजरी में 70 वर्ष से अधिक आयु में इस दुनिया से रुख़सत हुए, इसलिए आपकी पैदाइश का साल लगभग 1280 हिजरी माना जाता है।

आयतुल्लाहिल उज़्मा शेख अबुलक़ासिम क़ुम्मी रहमतुल्लाह अलैह का जन्म पवित्र क़ुम शहर में सन 1280 हिजरी में एक धार्मिक और विद्वान परिवार में हुआ। आपके अज़ीम पिता, मरहूम मुल्ला मुहम्मद तक़ी रहमतुल्लाह अलैह भी क़ुम के अज़ीम उलेमा में शुमार होते थे। हालांकि आपके जन्म का सही वर्ष किसी स्रोत में स्पष्ट रूप से उल्लेखित नहीं है, लेकिन चूँकि आप सन 1353 हिजरी में 70 वर्ष से अधिक आयु में इस दुनिया से रुख़सत हुए, इसलिए आपकी पैदाइश का साल लगभग 1280 हिजरी माना जाता है।

आयतुल्लाहिल उज़्मा शेख अबुल क़ासिम ने प्रारंभिक शिक्षा, अदब और शुरुआती सतहों की शिक्षा क़ुम, काशान और इस्फ़हान में प्राप्त की। आप ने यह शिक्षा आयतुल्लाह शेख मुहम्मद हसन नादी रहमतुल्लाह अलैह (किताब रद्दुश शेखिया के लेखक), आयतुल्लाह हाज शेख मुहम्मद जवाद क़ुम्मी (क़ुम के जलीलुल-क़द्र आलिम), आयतुल्लाह मुल्ला मुहम्मद नराक़ी रहमतुल्लाह अलैह, आयतुल्लाह मीरज़ा फ़ख़रुद्दीन नराक़ी रहमतुल्लाह अलैह और आयतुल्लाह हाज आग़ा मुनीरुद्दीन बुरूजर्दी रहमतुल्लाह अलैह से हासिल की।

उसके बाद आप तेहरान गए और आयतुल्लाह मीरज़ा मुहम्मद हसन आशतियानी रहमतुल्लाह अलैह से किताब "र'साइल" पढ़ी। इसी दौरान आपने अदब और ख़ुशख़ती जैसे फ़न में भी महारत हासिल की।

नजफ़ अशरफ का सफर:

तेहरान में दीनी तालीम हासिल करने के बाद आप ने 'बाब-ए-मदीनतुल इल्म' अमीरुल मोमिनीन अली अलैहिस्सलाम के पवित्र शहर का रुख़ किया और सन 1305 हिजरी में नजफ़-ए-अशरफ़ के लिए रवाना हुए। वहाँ कई वर्षों तक गरीबी, तंगी और अन्य मुश्किलों के बावजूद आप ने अत्यंत मेहनत और लगन के साथ अपना इल्मी और दीनी सफर तय किया।

नजफ़ अशरफ़ में आपने आयतुल्लाहिल उज़्मा हाज आक़ा रज़ा हमदानी रहमतुल्लाह अलैह (किताब मिस्बाहुल फ़क़ीह फ़ी शरह शरीअतुल-इस्लाम के लेखक), आयतुल्लाहिल-उज़्मा हाज मीरज़ा हुसैन ख़लीली तेहरानी रहमतुल्लाह अलैह, आयतुल्लाहिल-उज़्मा मुहम्मद काज़िम ख़ुरासानी रहमतुल्लाह अलैह (किफ़ायतुल-उसूल और फ़वायदुल उसूल के लेखक), तथा आयतुल्लाहिल-उज़्मा सैय्यद मुहम्मद काज़िम तबातबाई यज़दी रहमतुल्लाह अलैह (ऊरवतुल-वुस्क़ा और हाशिया मकासिब के लेखक) जैसे महान उलमा और फ़ुक़हा से तालीम हासिल की और इज्तेहाद के दर्जे पर फ़ायेज़ हुए।

आयतुल्लाहिल उज़्मा हाज शेख अबुलक़ासिम क़ुम्मी रहमतुल्लाह अलैह ने इस्फ़हान, काशान और नजफ़ में अपनी शिक्षा के दौरान आयतुल्लाह मीरज़ा अबुल मआली कलबासी रहमतुल्लाह अलैह (अल-जबर वत्तफ़्वीज़ और अल-इस्तिश्फ़ा बिल-तुर्बतिल-हुसैनिया के लेखक), आयतुल्लाह मीरज़ा मुहम्मद हाशिम चहारसूक़ी इस्फ़हानी रहमतुल्लाह अलैह (मबानीउल-उसूल, उसूल आले रसूल के लेखक), आयतुल्लाह हाज आगा मुनीरुद्दीन बुरूजर्दी इस्फ़हानी रहमतुल्लाह अलैह, आयतुल्लाह सैय्यद मुहम्मद अलवी बुरूजर्दी काशानी रहमतुल्लाह अलैह, आयतुल्लाहिल-उज़्मा आख़ुंद मुल्ला मुहम्मद काज़िम ख़ुरासानी रहमतुल्लाह अलैह, और आयतुल्लाहिल-उज़्मा सैय्यद मोहम्मद काज़िम तबातबाई यज़दी रहमतुल्लाह अलैह जैसे महान उलमा और फ़ुक़हा से इजाज़ा-ए-र'वायत प्राप्त किया और हदीस व फ़िक़्ह के उलूम में उच्च स्थान प्राप्त किया।

आपकी शिक्षा के कठिन हालात के संबंध में आयतुल्लाहिल-उज़्मा सैय्यद मूसा शुबैरी ज़ंजानी दाम ज़िल्लुह ने आक़ा हाज मीरज़ा महदी वेलाई रहमतुल्लाह अलैह (जो आस्ताने क़ुद्स रज़वी की पुस्तकों के हस्तलिखित संस्करणों की सूची के विद्वान लेखक थे) के हवाले से एक वाक़्या बयान किया।

उन्होंने बताया कि एक बार आयतुल्लाहिल-उज़्मा शेख अबुलक़ासिम क़ुम्मी रहमतुल्लाह अलैह नजफ़-अशरफ़ आए और बातचीत के दौरान फ़रमाया: ‘आजकल आप तुल्लाब (स्टूडेंटस) का हाल बहुत आरामदायक और शाही है। हमारे ज़माने में आम छात्र हफ्ते में सिर्फ एक बार पका हुआ खाना खाते थे, अमीर छात्र हफ्ते में दो बार, और ग़रीब छात्र महीने में सिर्फ एक बार पका हुआ खाना खा पाते थे।

एक बार ऐसा भी हुआ कि मैंने दो महीनों तक गोश्त वाला खाना नहीं खाया था। एक दिन मैं एक छात्र के कमरे के पास से गुज़र रहा था। देखा कि वह हांडी से गोश्त का क़ोरमा कटोरे में निकाल रहा है। गोश्त के क़ोरमे की खुशबू हवा में फैल गई, जिससे मेरे कदम लड़खड़ा गए। उस छात्र ने मुझे खाने की दावत दी, लेकिन मैंने स्वीकार नहीं किया और कहा: 'मैं दोपहर का खाना खा चुका हूँ' — जबकि उस से पहले मैंने केवल कुछ मूली खाकर अपनी भूख मिटाई थी।

क़ुम वापसी:

हौज़ा-ए-इल्यामिया नजफ़-अशरफ़ में उच्च वैज्ञानिक और फ़िक़्ही स्थान प्राप्त करने के बाद आप क़ुम-ए-मुक़द्दसा वापस आ गए। क़ुम के उलमा और मोमिनीन ने आपका गर्मजोशी से स्वागत किया और आपको अपना धार्मिक पेशवा मान लिया। आप ने मस्जिद इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम क़ुम में नमाज़-ए-जमात स्थापित की, फ़िक़्ह और उसूल की तालीम दी, लोगों के मसाइल किए, और हज़रत मासूमा सलामुल्लाह अलैहा की ज़रीह, हरम और नफ़ीसात के ख़ज़ाने की निगरानी जो एक पैतृक जिम्मेदारी थी आपके सुपुर्द की गई। इसी वजह से आपका एक मशहूर लक़ब ‘ख़ाज़िनुल हरम’ भी है। क़ुम और उसके आसपास के लोग आपकी तक़्लीद करने लगे।

आप ने क़ुम-ए-मुक़द्दसा में लंबे समय तक फ़िक़्ह की तालीम दी, यहाँ तक कि पढ़े-लिखे व्यापारियों को भी "मकासिब" किताब पढ़ाया करते थे। आप आयतुल्लाहिल-उज़्मा मीरज़ा मुहम्मद हसन शीराज़ी रहमतुल्लाह अलैह की तरह इस अंदाज़ में पढ़ाते थे कि आपके शागिर्द आपसे खुलकर बहस-मुबाहिसा करते थे। हौज़ा-ए-इल्मिया क़ुम के संस्थापक आयतुल्लाहिल-उज़्मा शेख अब्दुलकरीम हायरी रहमतुल्लाह अलैह अपने उसूल की क्लास में आपके विचारों का ज़िक्र करते थे और उनमें से कुछ को स्वीकार भी करते थे।

आपके शिष्यों की लंबी सूची है, जिनमें रहबरे कबीर इंक़ेलाब आयतुल्लाहिल-उज़्मा सैय्यद रू़हुल्लाह मूसवी ख़ुमैनी क़ुद्दिस सर्रहु और आयतुल्लाहिल-उज़्मा सैय्यद मुहम्मद रज़ा मूसावी गुलपायगानी रहमतुल्लाह अलैह के सम्मानित नाम सबसे अग्रणी हैं।

इसी तरह आपने विभिन्न धार्मिक और वैज्ञानिक विषयों पर पुस्तकें भी लिखीं। बताया जाता है कि आपने अपना "रेसाला-ए-अमलिया" छपाई के लिए प्रेस में भेजा था, लेकिन जैसे ही आयतुल्लाहिल-उज़्मा शेख अब्दुलकरीम हायरी रहमतुल्लाह अलैह के क़ुम आने की खबर मिली, तो आपने उसे तुरंत वापस मँगवा लिया ताकि लोग केवल एक ही मरजा-ए-तक़लीद की पैरवी करें।

 

यह भी एक ऐतिहासिक तथ्य है कि हौज़ा-ए-इल्मिया क़ुम की स्थापना के लिए आयतुल्लाहिल-उज़्मा शेख अब्दुलकरीम हायरी रहमतुल्लाह अलैह को क़ुम में स्थायी रूप से रहने की पहली दावत भी आप ने ही दी थी, और जब वे यहाँ ठहरे तो हौज़ा ए इल्मिया की स्थापना में आप ने उनकी पूरी सहायता और मदद की।

इसी तरह यह भी बताया जाता है कि जब ईद-ए-ग़दीर के दिन मोमिनीन आपको मुबारकबाद देने के लिए आपके घर आये, तो आपने उनसे कहा: ‘लोगों! हम जहाँ जा रहे हैं, आप भी वहीं चलें।

हमारा अलम और हमारी पहचान एक ही है—(आयतुल्लाहिल-उज़्मा शेख अब्दुलकरीम हायरी रहमतुल्लाह अलैह) उन्हीं के साए में रहें और उन्हीं से जुड़े रहें।’ फिर आप सभी को साथ लेकर आयतुल्लाहिल-उज़्मा शेख अब्दुलकरीम हायरी रहमतुल्लाह अलैह के पास गए।

आयतुल्लाहिल-उज़्मा हाज शेख अबुलक़ासिम क़ुम्मी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िंदगी बेहद सादी थी। अपने उच्च वैज्ञानिक और धार्मिक स्थान के बावजूद उनके यहाँ कोई नौकर नहीं था। सारे काम, यहाँ तक कि बाज़ार से ख़रीदारी और सामान लाना भी वे स्वयं ही करते थे।

हाँ, वे छात्रों के समय को बहुत महत्व देते थे। बताया जाता है कि जब वे नजफ़-अशरफ़ आये और हौज़ा-ए-इल्मिया नजफ़ के छात्रों ने उनसे मुलाकात की इच्छा जताई, तो उन्होंने अपने पुत्र के माध्यम से संदेश भेजा कि जिस समय आप लोग चाय पीते हैं, हम उसी समय आपसे मिलने आएँगे, ताकि आपके दर्स और बहस में कोई बाधा न आए।

आयतुल्लाहिल-उज़्मा हाज शेख अबुलक़ासिम क़ुम्मी रहमतुल्लाह अलैह ईमान और ख़ुलूस का पूर्ण नमूना थे, कि विद्वानों और निरीक्षकों ने कहा कि उन्हें देखकर लोग आचार-संहिता का पाठ सीखते थे। आप सादात (पैग़ंबर के वंशज) का अत्यंत सम्मान करते थे, धनिकों और हुकूमत के लोगों से दूर रहते थे और उनके उपहार भी स्वीकार नहीं करते थे।

बताया जाता है कि एक बार क़ुम के हाकिम ने आपको कुछ रक़म (पैसा) भेजी, जिसे आपने लौटा दिया। तब आपके पुत्र ने कहा: 'बाबा! आपने रक़म लौटा दी जबकि हमारी हालत अच्छी नहीं है।' आपने फ़रमाया: 'अल्लाह हमें अक़्ल दे और तुम्हें दीनी दे। यह हमें पैसा देते हैं और उसके बाद हमसे कुछ अपेक्षा रखते हैं, इसलिए हम उनका पैसा नहीं ले सकते।

ख़ुलूस और दुनिया से दूरी आपकी खासियत थी। एक दिन आप नमाज़-ए-जमाअत के लिए गए और देखा कि नमाज़ी बड़ी संख्या में मौजूद हैं। बिना जमाअत क़ायम किए तुरंत घर लौट आए। जब लोगों ने पूछा, तो आपने फ़रमाया: 'नमाज़ियों की बहुतायत से मैं खुश हो गया था, मैंने महसूस किया कि आज क़स्द-ए-क़ुरबत नहीं है, इसलिए वापस आ गया।

आखिरकार 11 जुमादीउस्सानी सन 1353 हिजरी को यह इल्म, फ़िक़्ह और ख़ुलूस का यह सूरज क़ुम-ए-मुक़द्दसा में डूब गया। ग़ुस्ल, कफ़न और नमाज़ के बाद, आप को करीमा-ए-अहल-ए-बैत हज़रत फ़ातिमा मासूमा सलामुल्लाह अलैहा के पवित्र रौज़ा में दफनाया गया।

मौलाना सैयद अली हाशिम आब्दी

बुधवार, 03 दिसम्बर 2025 18:10

हज़रत उम्मुल बनीन से तवस्सुल

सवर्गीय मौलाना जनाब रब्बानी ख़लख़ाली अपनी किताब " हज़रते अब्बास अलैहिस्सलाम का नूरानी चेहरा पेज न0 69 " में इस तरह लिखते है:

हमारे समाज मे सिर्फ हज़रते अब्बास अलैहिस्सलाम से तवस्सुल नहीं बल्कि उन की माँ से भी तवस्सुल बहुत ज़्यादा प्रचलित है। बहुत सारे लोग अपनी कठिनाईयों को दूर करने के लिए हज़रते उम्मुल बनीन सलामुल्लाहे अलैहा से तवस्सुल करते हैं और जल्दी ही उन की मनोकामना पूरी हो जाती है यह उस महान हस्ती का ईश्वर के समक्ष सम्मान है ।

यह एक तरह का चिल्ला है जो किताबे “इल्मे जिफर” में लिखा है जिस को नमाज़े सुबह के बाद या फिर नमाज़े इशा के बाद या अगर महीने के अरम्भ में करे तो सब से अच्छा है ।

पहले दिन हज़रते मोहम्मद (स0अ0) की नीयत से और दूसरे दिन हज़रते अली अलैहीस्सलाम की नीयत से और तीसरे दिन हज़रते फातिमा ज़हरा सलामुल्लाहे अलैहा की नीयत से और चौथे दिन हज़रते इमाम हसन अलैहिस्स्लाम की नीयत से और पाँचवे दिन हज़रते इमाम हुसैन अलैहिस्स्लाम की नीयत से और छठे दिन हज़रते इमाम ज़ैनुलआबदीन अलैहिस्स्लाम की नीयत से और सातवे दिन इमाम-ए- बाक़िर अलैहिस्स्लाम की नीयत से और आठवे दिन इमाम जाफरे सादिक़ अलैहिस्स्लाम की नीयत से और इसी तरह हर इमाम की नीयत से हर दिन इमाम-ए-ज़माना अलैहिस्स्लाम तक एक हज़ार (1000) सलवात पढ़े, उस के बाद पंद्राहंवे दिन हज़रते अब्बास अलैहिस्स्लाम की नीयत से और सोलहवें दिन हज़रत उम्मुल बनीन सलामुल्लाहे अलैहा की नीयत से और सत्राहवें दिन हज़रते ज़ैनब सलामुल्लाहे अलैहा की नीयत कर के हर दिन सलवात पढ़े और अंतिम दिन सलवात के बाद मफातीहुल जिनान में जो दूआए तवस्सुल लिखी है उस को पढ़े जो यह है :

اللھم انی اسئلک و اتوجہ الیک بنبیک نبی الرحمۃ............

किताबों में यह लिखा है कि कुछ लोगो ने इस तरह किया तो अंतिम दिन हज़रते अब्बास अलैहिस्सलाम की ज़ियारत हुई और आप ने कहा:

حاجاتکم مقضیہ

 यानी: तुम लोगो की मनोकामना पूरी हुई ।

 

कैथोलिक चर्च के प्रमुख पोप लियो ने स्वतंत्र फ़िलिस्तीन की स्थापना के मुद्दे पर अपनी स्पष्ट राय को दोहराते हुए कहा कि, फिलिस्तीनियों और इज़रायल के बीच दशकों से जारी संघर्ष को समाप्त करने का एकमात्र व्यावहारिक रास्ता दो-राज्य समाधान, यानी स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना ही है।

कैथोलिक चर्च के प्रमुख पोप लियो ने स्वतंत्र फ़िलिस्तीन की स्थापना के मुद्दे पर अपनी स्पष्ट राय को दोहराते हुए कहा कि, फिलिस्तीनियों और इज़रायल के बीच दशकों से जारी संघर्ष को समाप्त करने का एकमात्र व्यावहारिक रास्ता दो-राज्य समाधान, यानी स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना ही है।

रविवार को अपने बयान में पोप ने कहा कि वेटिकन ने बार-बार स्पष्ट रूप से इस समाधान का समर्थन किया है। उन्होंने ज़ोर देते हुए कहा कि, दो राज्यों की स्थापना ही वह यथार्थवादी मार्ग है जो इस खूनी संघर्ष को समाप्त कर स्थायी शांति की नींव रख सकता है।

पोप लियो ने आगे कहा कि हम अच्छी तरह जानते हैं कि इस समय इज़रायल इस समाधान को स्वीकार करने से इनकार कर रहा है। इसके बावजूद हम इसे ही एकमात्र ऐसा मार्ग मानते हैं जो इस लगातार होने वाले अत्याचार को रोक सकता है और पीड़ित फिलिस्तीनी जनता को शांति और स्वतंत्रता के पल दे सकता है।

इस दौरान पोप लियो ने रविवार को बेरुत पहुँचने के तुरंत बाद लेबनानी नागरिकों से आग्रह किया कि वे अपने देश में रहने का साहस दिखाएँ, जो आर्थिक और राजनीतिक संकट में डूबा हुआ है और जिसके कारण युवाओं का पलायन बढ़ गया है। उन्होंने साझा भविष्य के लिए समझौते और मेल-मिलाप की अहमियत पर जोर दिया।

रविवार को पोप लियो लेबनान की राजधानी बेरुत में भी थे, जहाँ उन्होंने लेबनान की सरकार और जनता को महत्वपूर्ण सलाह दी। बेरुत के पास राष्ट्रपति भवन में अधिकारियों के सामने अपने पहले भाषण में पोप ने कहा कि कुछ पल ऐसे होते हैं जब भाग जाना आसान लगता है या कहीं और चले जाना बेहतर होता है। देश में रहना या लौटना साहस और दूरदर्शिता मांगता है।

पोप लियो के पहुँचने से कुछ घंटे पहले एयरपोर्ट से राष्ट्रपति भवन जाने वाली सड़कों पर बड़ी संख्या में लोग जमा थे। लोग लेबनान और वेटिकन के झंडे लहरा रहे थे। 70 वर्षीय पोप मंगलवार तक लेबनान के पाँच शहरों और कस्बों का दौरा करेंगे और फिर रोम वापस जाएंगे।

लेबनान के शियो की सुप्रीम इस्लामिक काउंसिल के उप प्रमुख ने पोप के साथ मीटिंग में कहा: हमारी स्पिरिचुअल कल्चर इंसानी भाईचारे पर आधारित है और हम इसे इस्लाम के उन सिद्धांतों से लेते हैं जो इंसानों के बीच कोई फर्क नहीं करते।

लेबनान के शियो की सुप्रीम इस्लामिक काउंसिल के उप प्रमुख हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन शेख अली अल-खतीब ने "शियाओं की सुप्रीम इस्लामिक काउंसिल" और सभी शिया मुसलमानों की तरफ से पोप लियो 14 का स्वागत करते हुए कहा: हम लेबनान में आपके आने की तारीफ़ करते हैं, हमारे देश के मुश्किल हालात में आपके उठाए गए कदमों की तारीफ़ करते हैं, और आपका इस्लामिक स्वागत करते हैं जो पैगंबर ईसा (अ) को एक मैसेंजर, पैगंबर, अच्छी खबर लाने वाले और गाइड के तौर पर पहचानता है।

सेंट्रल बेरूत के मार्टर्स स्क्वायर में हुई एक इंटरफेथ मीटिंग में बोलते हुए, जिसमें पोप लियो भी शामिल हुए थे, उन्होंने कहा: "घायल लेबनान की तरफ से नमस्ते और दुआएं, जिसे वेटिकन ने हमेशा इतिहास के हाशिये पर पड़ा देश नहीं, बल्कि दुनिया के लिए एक मैसेज माना है। इस नज़रिए से, हमें उम्मीद है कि आपकी यात्रा सभी सफलताएं लाएगी और इस देश की कमज़ोर राष्ट्रीय एकता को मज़बूत करने में असरदार होगी, जो लगातार "इज़राइली" हमले की वजह से ज़ख्मों से भर गया है।"

लेबनान के शियो की सुप्रीम इस्लामिक काउंसिल के उप प्रमुख ने कहा: "हम सरकार बनाना ज़रूरी मानते हैं, लेकिन इसके न होने पर, हमें उस कब्ज़े का विरोध करना पड़ा जिसने हमारे देश पर हमला किया। हम न तो हथियार उठाने के लिए उत्सुक हैं और न ही अपने बच्चों की कुर्बानी देने के लिए।" इन बातों को देखते हुए, हम लेबनान का मामला आपको सौंपते हैं और उम्मीद करते हैं कि आपके ग्लोबल असर की वजह से, दुनिया हमारे देश को उसके लगातार संकटों, खासकर "इज़राइली" हमले और उसके नुकसान पहुंचाने वाले असर से निकलने में मदद करेगी।

ईरान की बिजली कंपनी तवानीर के सांस्कृतिक और डिजिटल विभाग के प्रमुख रज़ा काकावंद ने कहा कि जनता धार्मिक संस्थानों से जुड़े समाचार माध्यमों पर गहरा विश्वास रखती है। उनके अनुसार, जब हौज़ा न्यूज़ जैसी धार्मिक समाचार एजेंसी कोई जानकारी प्रकाशित करती है, तो समाज में भरोसा और संतोष पैदा होता है, क्योंकि लोग जानते हैं कि यहाँ दी जाने वाली जानकारी प्रमाणित और सही होती है।

की बिजली कंपनी तवानीर के सांस्कृतिक और डिजिटल विभाग के प्रमुख रज़ा काकावंद ने कहा कि जनता धार्मिक संस्थानों से जुड़े समाचार माध्यमों पर गहरा विश्वास रखती है। उनके अनुसार, जब हौज़ा न्यूज़ जैसी धार्मिक समाचार एजेंसी कोई जानकारी प्रकाशित करती है, तो समाज में भरोसा और संतोष पैदा होता है, क्योंकि लोग जानते हैं कि यहाँ दी जाने वाली जानकारी प्रमाणित और सही होती है।

यह बात उन्होंने हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के कार्यालय के दौरे के दौरान संपादक तथा अन्य अधिकारियों के साथ विशेष बैठक में कही।उन्होंने बताया कि देश में पानी और बिजली से संबंधित कई गंभीर मुद्दे और चुनौतियाँ हैं, जिन पर सामान्य समाचार माध्यमों में बहुत कम ध्यान दिया जाता है।

काकावंद ने कहा कि यदि देश के पहाड़ी और रेगिस्तानी क्षेत्रों को देखा जाए तो यह स्पष्ट होता है कि वहाँ पानी और बिजली पहुँचाने के लिए बहुत बड़े स्तर पर कार्य किए गए हैं, लेकिन इन कार्यों की जानकारी जनता तक पर्याप्त रूप से नहीं पहुँच पाती।

उन्होंने यह भी कहा कि मीडिया सही जानकारी पहुँचाने के लिए सबसे प्रभावी साधन है।हौज़ा न्यूज़ के प्रति जनता के विश्वास का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि इस एजेंसी की खबरें जिम्मेदारी के साथ और पूरी जाँच पड़ताल के बाद प्रकाशित की जाती हैं, इसलिए लोग इन्हें भरोसे के साथ स्वीकार करते हैं।

उन्होंने बताया कि पिछले कुछ वर्षों में धार्मिक संस्थानों की सफलता में मीडिया और सांस्कृतिक गतिविधियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।आज के समय में सही, स्पष्ट और सुव्यवस्थित सामग्री तैयार करना अत्यंत आवश्यक है, ताकि आध्यात्मिक संदेश और ज्ञान को सही रूप में जनता तक पहुँचाया जा सके।

काकावंद ने कहा कि मीडिया की शक्ति इतनी ज्यादा होती है कि यह तकनीकी क्षेत्रों में कार्य करने वाले विशेषज्ञ लोगों को भी प्रभावित कर सकती है। इससे सिद्ध होता है कि मीडिया समाज पर कितना गहरा प्रभाव डालता है।

मीडिया समाज में वास्तविकता तक बदलने की क्षमता रखता है

उन्होंने कहा कि इतिहास में भी मीडिया ने अनेक व्यक्तियों और घटनाओं को प्रभावित किया है।उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि कई बड़े ऐतिहासिक व्यक्तित्व भी नकारात्मक प्रचार का निशाना बने।

मीडिया क्षेत्र की गतिविधियों को अत्यंत महत्वपूर्ण बताते हुए उन्होंने कहा कि जनता को सही जानकारी देने के लिए उठाया गया हर कदम एक महत्वपूर्ण कार्य है।आज के दौर में सबसे बड़ा हथियार मीडिया है, जो सीधे लोगों के मन और विचारों को प्रभावित करता है।

अंत में उन्होंने कहा कि यदि मीडिया मजबूत हो तो नई पीढ़ी का हर युवा समाज में सकारात्मक और सक्रिय भूमिका निभा सकता है।एक प्रभावी मीडिया इस पीढ़ी को जागरूक, समझदार और जिम्मेदार नागरिक बना सकता है।

इस्माईल बक़ाएई ने कहा,क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत तेज़ी से परिवर्तन हो रहा हैं फिलिस्तीन और लेबनान सहित पूरे क्षेत्र को इज़राइली सरकार की ओर से खतरा है।

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता इस्माईल बकाई ने अपनी साप्ताहिक प्रेस ब्रीफिंग के दौरान वेनेज़ुएला सहित दुनिया के विभिन्न देशों के खिलाफ अमेरिका और उसके राष्ट्रपति के धमकी भरे रवैये की कड़ी आलोचना की और कहा,अमेरिका वैश्विक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बन चुका है।

उन्होंने कहा, सियोनिस्ट सरकार फिलिस्तीन में अपने अपराध जारी रखे हुए है और दूसरी ओर लेबनान को उकसावे और युद्धपूर्ण कार्रवाइयों का निशाना बना रही है और यह ऐसी स्थिति में है कि इन दोनों मोर्चों पर सतही तौर पर युद्धविराम हो चुका है।

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने वेनेज़ुएला को अमेरिकी राष्ट्रपति की धमकियों और गाजा में नरसंहार के लिए ट्रम्प की ओर से समर्थन के बारे में पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए कहा, अमेरिका ने अपने बेशर्म कार्यों और धमकी भरे रवैये से साबित कर दिया है कि वह वैश्विक शांति और सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बन चुका है।

जिसका जीता-जागता सबूत दुनिया के पश्चिमी हिस्से में वाशिंगटन की ओर से वेनेज़ुएला, क्यूबा, निकारागुआ, ब्राज़ील यहां तक कि मैक्सिको को मिलने वाली लगातार धमकियां हैं।

उन्होंने वेनेज़ुएला के वायु स्थान को बंद करना या फिर जी20 बैठक में भाग लेने से दक्षिण अफ्रीका को रोकने को अमेरिका के इसी अवैध रवैये की निरंतरता करार दिया।

क़ुम अलमुकद्दस में इमामज़ादेह सैयद अली अ.स. के हरम में आयोजित 48वीं मआरिफ़ ए कुरआन, नहजुल बलाग़ा और सहीफा-ए-सज्जादिया प्रतियोगिताओं के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए, फ़िक़्ही आयम्मा ए अतहार अ.स. केंद्र के प्रमुख आयतुल्लाह जवाद फाज़िल लंकरानी ने कहा कि समाज के सुधार, शांति, नैतिकता और सामाजिक प्रगति का एकमात्र रास्ता कुरआन से वास्तविक लगाव है।

क़ुम अलमुकद्दस में इमामज़ादेह सैयद अली अ.स. के हरम में आयोजित 48वीं मआरिफ़ ए कुरआन, नहजुल बलाग़ा और सहीफा-ए-सज्जादिया प्रतियोगिताओं के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए, फ़िक़्ही आयम्मा ए अतहार अ.स. केंद्र के प्रमुख आयतुल्लाह जवाद फाज़िल लंकरानी ने कहा कि समाज के सुधार, शांति, नैतिकता और सामाजिक प्रगति का एकमात्र रास्ता कुरआन से वास्तविक लगाव है।

उन्होंने कहा कि कुरआन इंसान का सबसे मज़बूत मार्गदर्शक और सबसे अच्छा नसीहत करने वाला है, और जो व्यक्ति जीवन में कठिनाई या बाधा का सामना करे, उसे कुरआन से लगाव पैदा करना चाहिए।

आयतुल्लाह फाज़िल लंकरानी ने कहा कि इस्लामी क्रांति की बड़ी बरकतों में से एक यह है कि कुरआन, नहजुल बलाग़ा और सहीफा-ए-सज्जादिया समाज के व्यावहारिक जीवन में पहले से कहीं अधिक प्रवेश कर गया हैं। उन्होंने कहा कि कुरआन की तिलावत, तदब्बुर और मआरिफ़ की ओर रुझान में पिछले दशकों के दौरान उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

उन्होंने कहा कि कुरआन सिर्फ तिलावत की किताब नहीं है। अगर समाज, शैक्षणिक संस्थान, धार्मिक केंद्र या सरकारी व्यवस्था कुरआन से दूर रहेंगे तो नुकसान में रहेंगे।

उन्होंने कुरआन की आयत
"الَّذِينَ آتَيْنَاهُمُ الْكِتَابَ يَتْلُونَهُ حَقَّ تِلَاوَتِهِ"
जिन्हें हमने किताब दी है, वे उसके हक़ तिलावत के साथ पढ़ते हैं...का उच्चारण करते हुए कहा कि कुरआन का हक़-ए-तिलावत वही है जो रिवायतों में बयान हुआ है, यानी कुरआन के सभी आदेशों का व्यावहारिक पालन।

उन्होंने कहा कि ईमान की असली रूह कुरआन के आदेशों को जीवन में लागू करने में है, और इससे विमुखता, कुरआन से दूरी और नुकसान का कारण बनती है।

आयतुल्लाह फाजिल लंकरानी ने कहा,कुरआन आस्था, नैतिकता, राजनीति, सामाजिकता, शिक्षा और इंसान की सभी व्यक्तिगत व सामाजिक ज़रूरतों का सबसे व्यापक स्रोत है। कोई भी व्यक्ति कुरआन के बिना वास्तविक मार्गदर्शन तक नहीं पहुँच सकता।

उन्होंने कहा कि कुछ नए नामों से सामने आने वाली झूठी इरफ़ान की शिक्षाएँ लोगों को कुरआन और सुन्नत से दूर करती हैं, इंसान को रास्ते से भटकाती हैं।

उन्होंने कहा कि कुरआन से लगाव, इंसान के दिल में नूर-ए-हिदायत प्रवेश कराता है और बंदे को सिफ़ात-ए-इलाही का आईना बना देता है।

उनका कहना था कि सभी कुरआनी संस्थानों के प्रयासों के बावजूद, समाज के प्रतिष्ठित लोग अभी भी कुरआन की मूल हक़ीकत से पूरी तरह वाकिफ़ नहीं हैं।

उन्होंने कहा,तमस्सुक-ए-कुरआन का मतलब वाजिबात मुहर्रमात नैतिकता, राजनीति और सामाजिकता में व्यावहारिक पालन है। अगर कोई संस्था, सरकारी विभाग या विश्वविद्यालय कुरआन के आदेशों से ग़ाफ़िल है तो यही मूल समस्या है।

उन्होंने आयत "وَالَّذِينَ يُمَسِّكُونَ بِالْكِتَابِ" (और जो किताब को मज़बूती से थामने वाले हैं...) की रोशनी में कहा कि कुरआन स्पष्ट रूप से बताता है कि समाज का सुधार सिर्फ़ कुरआन के साथ व्यावहारिक लगाव से ही संभव है, न कि सिर्फ़ तिलावत से।

सरकार ने कल कहा था- सभी मोबाइल में इंस्टॉल होगा; आज बोली- डिलीट कर सकते हैं सभी मोबाइल फोन में साइबर सिक्योरिटी एप 'संचार साथी' को प्री-इंस्टॉल करने के दूरसंचार विभाग (DoT) के आदेश पर विवाद बढ़ने के बाद मंगलवार को केंद्र सरकार की सफाई आई। केंद्रीय संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि ये कंपलसरी नहीं है। चाहे तो यूजर इसे डिलीट कर सकते हैं।

केंद्र सरकार ने एक दिसंबर को स्मार्टफोन कंपनियों को आदेश दिया था कि वे स्मार्टफोन में सरकारी साइबर सेफ्टी एप को पहले से इंस्टॉल करके बेचें। इसके लिए 90 दिन का समय दिया था। इस फैसले का कांग्रेस समेत विपक्षी पार्टियों ने विरोध किया।

कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने कहा कि यह कदम लोगों की प्राइवेसी पर सीधा हमला है। यह एक जासूसी एप है। सरकार हर नागरिक की निगरानी करना चाहती है। साइबर धोखाधड़ी की रिपोर्टिंग के लिए सिस्टम जरूरी है, लेकिन सरकार का ताजा आदेश लोगों की निजी जिंदगी में अनावश्यक दखल जैसा है।

विपक्ष के नेताओं के बयान..

कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल ने भी सरकार के इस आदेश की आलोचना की है। वहीं, कांग्रेस सांसद रेणुका चौधरी ने मंगलवार को इस मुद्दे पर सदन स्थगन नोटिस भी दिया।

  • लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने कहा, मैं सदन में बहस के दौरान बोलूंगा अभी टिप्पणी नहीं करूंगा।
  • कांग्रेस सांसद शशि थरूर- संचार साथी एप उपयोगी हो सकता है, लेकिन इसे स्वैच्छिक होना चाहिए। जिसे जरूरत हो, वह खुद इसे डाउनलोड कर सके। किसी भी चीज़ को लोकतंत्र में जबरन लागू करना चिंता की बात है। सरकार को मीडिया के जरिए आदेश जारी करने के बजाय जनता को स्पष्ट रूप से बताना चाहिए कि इस फैसले के पीछे तर्क क्या है।
  • कांग्रेस सांसद केसी वेणुगोपाल- यह आम लोगों की प्राइवेसी पर सीधा हमला है। मदद के नाम पर BJP लोगों की निजी जानकारी तक पहुंच बनाना चाहती है। भारत में हमने पेगासस जैसे मामले देखे हैं। अब यह एप लगाकर देश के लोगों की निगरानी करने की कोशिश की जा रही है।
  • कांग्रेस सांसद रेणुका चौधरी- प्राइवेसी का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत हर नागरिक का मौलिक अधिकार है। संचार साथी एप लोगों की आजादी और प्राइवेसी पर सीधा हमला है।
  • CPI-M सांसद जॉन ब्रिटास- मोबाइल में इस एप डालना लोगों की प्राइवेसी का सीधा उल्लंघन है और सुप्रीम कोर्ट के 2017 के पुट्टास्वामी फैसले के खिलाफ है। यह ऐप हटाया भी नहीं जा सकता, यानी 120 करोड़ मोबाइल फोनों में इसे अनिवार्य किया जा रहा है।

अब हर मोबाइल में होगा साइबर सिक्योरिटी एप

केंद्र सरकार ने सोमवार को स्मार्टफोन कंपनियों को आदेश दिया था कि वे स्मार्टफोन में सरकारी साइबर सेफ्टी एप को पहले से इंस्टॉल करके बेचें। आदेश में एपल, सैमसंग, वीवो, ओप्पो और शाओमी जैसी मोबाइल कंपनियों को 90 दिन का समय दिया गया है। इस एप को यूजर्स डिलीट या डिसेबल नहीं कर सकेंगे। पुराने फोन पर सॉफ्टवेयर अपडेट के जरिए यह एप इंस्टॉल किया जाएगा।

हालांकि यह आदेश फिलहाल पब्लिक नहीं किया गया है, बल्कि चुनिंदा कंपनियों को निजी तौर पर भेजा गया है। इसके पीछे सरकार का मकसद साइबर फ्रॉड, फर्जी IMEI नंबर और फोन की चोरी को रोकना है।

संचार साथी एप से अब तक 7 लाख से ज्यादा गुम या चोरी हुए मोबाइल वापस मिल चुके हैं। एक सीनियर सरकारी अधिकारी ने कहा, 'एप फर्जी IMEI से होने वाले स्कैम और नेटवर्क मिसयूज को रोकने के लिए जरूरी है।'

संचार साथी एप क्या है, कैसे करेगा मदद

  • संचार साथी एप सरकार का बनाया साइबर सिक्योरिटी टूल है, जो 17 जनवरी 2025 को लॉन्च हुआ था।
  • अभी यह एपल और गूगल प्ले स्टोर पर वॉलंटरी डाउनलोड के लिए उपलब्ध है, लेकिन अब नए फोन में यह जरूरी होगा।
  • एप यूजर्स को कॉल, मैसेज या वॉट्सएप चैट रिपोर्ट करने में मदद करेगा।
  • IMEI नंबर चेक करके चोरी या खोए फोन को ब्लॉक करेगा।

पाकिस्तान सरकार ने रावलपिंडी से लेकर इस्लामाबाद तक हाई अलर्ट जारी कर दिया है। रावलपिंडी में धारा 144 लागू है। यह फैसला पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के समर्थकों को विरोध प्रदर्शन करने से रोकने के लिए लिया गया है।

इसके तहत 1 से 3 दिसंबर तक कोई भी सार्वजनिक सभा, रैली, जुलूस, धरना, प्रदर्शन करने, 5 या उससे ज्यादा लोगों के इकट्ठे होने को पूरी तरह बैन कर दिया गया है। डिप्टी कमिश्नर डॉ. हसन वकार ने इसे लेकर एक आदेश जारी किया है।

आदेश में हथियार, लाठी, गुलेल, पेट्रोल बम, विस्फोटक सामग्री ले जाने पर रोक लगा दी गई है। इसके अलावा नफरत भरे भाषण देना, पुलिस की बैरिकेडिंग हटाने की कोशिश करना, दो लोगों के एक मोटरसाइकिल पर पीछे बैठने और लाउडस्पीकर के इस्तेमाल करने पर भी पूरी तरह से रोक लगा दी गई है।

 इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) ने मंगलवार को इस्लामाबाद हाई कोर्ट के बाहर और रावलपिंडी (अडियाला जेल) में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन करने का ऐलान किया था।