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ईरान के विदेश मंत्री ने अपने पाकिस्तानी समकक्ष के साथ टेलीफोनिक वार्ता में द्विपक्षीय संबंधों और क्षेत्रीय स्थिति पर चर्चा की है।

इस्लामी गणतंत्र ईरान और पाकिस्तान के विदेश मंत्रियों ने टेलीफोनिक वार्ता में द्विपक्षीय संबंधों, अफगानिस्तान की स्थिति और क्षेत्रीय व अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर विचार-विमर्श किया। 

रिपोर्ट के मुताबिक, दोनों विदेश मंत्रियों ने द्विपक्षीय संबंधों की नवीनतम स्थिति की समीक्षा करते हुए इस बात पर जोर दिया कि ईरान और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी और भाईचारे वाले इस्लामी देशों के बीच संबंधों को और मजबूत करने के लिए उच्च स्तर पर परामर्श की प्रक्रिया जारी रखी जाएगी। 

इस्लामी गणतंत्र ईरान के विदेश मंत्री डॉ. अब्बास अराकची ने इस अवसर पर अपने पाकिस्तानी समकक्ष मिस्टर इसहाक दार को ईरान और अमेरिका के बीच चल रहे अप्रत्यक्ष वार्ता की प्रगति से भी अवगत कराया दोनों मंत्रियों ने अफगानिस्तान और क्षेत्र के अन्य देशों के संबंध में भी विचार-विमर्श किया।

अमेरिकी व्यापार संरक्षणवाद में तेज वृद्धि से अरब अर्थव्यवस्थायें भारी दबाव में है, जिससे 22 अरब अमेरिकी डॉलर के गैर-तेल निर्यात को खतरा है।

अमेरिकी व्यापार संरक्षणवाद में तेज वृद्धि से अरब अर्थव्यवस्थायें भारी दबाव में है, जिससे 22 अरब अमेरिकी डॉलर के गैर-तेल निर्यात को खतरा है।पश्चिमी एशिया के लिए संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक आयोग (ईएससीडब्ल्यूए) द्वारा शनिवार को जारी नीति विवरण में यह बात कही गयी हैं।

इस मामलें में जॉर्डन सबसे कमजोर के रूप में उभरा है, जिसके कुल निर्यात का लगभग एक चौथाई हिस्सा अमेरिका को जाता है। बहरीन भी अमेरिकी बाजार में एल्यूमीनियम और रासायनिक निर्यात पर अपनी भारी निर्भरता के कारण निशाने पर है।

विवरण में कहा गया, इस बीच, संयुक्त अरब अमीरात को अमेरिका में होने वाले लगभग 10 अरब डॉलर के पुनर्निर्यात में व्यवधान देखने को मिल सकता है, जो तीसरे देशों में मूल रूप से उत्पादित वस्तुओं पर अमेरिकी टैरिफ का परिणाम है।ईएससीडब्ल्यूए विवरण में खाड़ी सहयोग परिषद अर्थव्यवस्थाओं में बढ़ते वित्तीय तनाव की भी चेतावनी दी गई है, जो वैश्विक तेल की कीमतों में तेज गिरावट से जूझ रहे हैं।

गैर जीसीसी देशों के लिए आगे भी वित्तीय चुनौतियाँ हैं। ईएससीडब्ल्यूए का अनुमान है कि मिस्र, मोरक्को, जॉर्डन और ट्यूनीशिया को 2025 में सामूहिक रूप से अतिरिक्त 11 करोड़ 40 लाख डॉलर के सॉवरेन ब्याज भुगतान का सामना करना पड़ेगा।

ग़ाज़ा के चिकित्सा सूत्रों ने जानकारी दी है कि इज़राइल के हमलों में रविवार सुबह से अब तक कम से कम 31 फ़िलिस्तीनी शहीद हो चुके हैं।

ग़ाज़ा के चिकित्सा और अस्पताल सूत्रों ने पुष्टि की है कि रविवार सुबह से शाम तक इस्राइली सेना के विभिन्न इलाक़ों पर हमलों में कम से कम 31 फ़िलिस्तीनी नागरिक शहीद हो चुके हैं।

इसी दौरान, मानवाधिकार संगठन "नारविक" के डायरेक्टर ने अलजज़ीरा को इंटरव्यू में बताया कि "इस्राइल ने ग़ाज़ा के ज़्यादातर अस्पतालों को निशाना बनाया है।उन्होंने ज़ोर देते हुए कहा, "हम लगातार डर के माहौल में जी रहे हैं, और ख़ान यूनुस के यूरोपीय अस्पताल के बाहर कोई सुरक्षा नहीं है।

ग़ाज़ा की स्वास्थ्य मंत्रालय ने शनिवार को बताया था कि पिछले 24 घंटों में 189 फ़िलिस्तीनी या तो शहीद हुए हैं या घायल हुए हैं। इस नरसंहार जैसी जंग में अब तक कुल 51,201 लोग शहीद हो चुके हैं।

रिपोर्ट के अनुसार, 18 मार्च 2025 से अब तक ग़ज़ा में शहीदों की संख्या 1,827 और घायलों की संख्या 4,828 हो गई है।ये ताज़ा आंकड़े दिखाते हैं कि ग़ाज़ा में मानवीय संकट दिन-ब-दिन और गंभीर होता जा रहा है, और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की ओर से तुरंत कार्रवाई की ज़रूरत है।

जामिया अलमुस्तफा अलआलमिया खुरासान के प्रमुख प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन रूहुल्लाह सईदी फाज़िल ने मशहद में छात्रों और धार्मिक विद्वानों की एक सभा को संबोधित करते हुए कहा कि हमास और हिज़्बुल्लाह न केवल बचे हुए हैं, बल्कि पहले से अधिक शक्तिशाली हो गए हैं।

जामिया अलमुस्तफा अलआलमिया खुरासान के प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन रूहुल्लाह सईदी फाज़िल ने मशहद में छात्रों और धार्मिक विद्वानों की सभा को संबोधित करते हुए कहा कि हमास और हिज़्बुल्लाह न केवल बचे हुए हैं बल्कि पहले से ज़्यादा ताकतवर हो गए हैं। उन्होंने कहा कि गाजा और लेबनान की तबाही को युद्ध का मैदान समझना गलत है, असली मैदान ईमान और कुफ्र के बीच सभ्यतागत संघर्ष का है। 

उन्होंने ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह सैयद अली ख़ामेनेई के उस बयान का हवाला दिया जिसमें मौजूदा युद्ध को "अस्तित्व का युद्ध" बताया गया था, यानी ऐसा युद्ध जिसमें एक पक्ष का पूरी तरह खात्मा ज़रूरी है। 

हुज्जतुल इस्लाम सईदी फाज़िल ने दुश्मन की पांच बड़ी साजिशों की ओर इशारा किया: गाजा को तबाह करना, हिज़्बुल्लाह को निरस्त्र करने की कोशिश,ईरान पर बातचीत के लिए दबाव,सीरिया और यमन को कमज़ोर करना,इस्लामी प्रतिरोध को बेअसर दिखाना 

उन्होंने तीन खतरनाक बौद्धिक हथियारों की भी पहचान की,अर्जाफ़ (अफवाहें और डर फैलाना)साजिश (समझौते की कोशिश)तव्वीक़ (कार्रवाई में देरी)

उनके मुताबिक, ये तत्व इस्लामी उम्मत के भीतर से प्रतिरोध को कमज़ोर करते हैं। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि प्रतिरोध सिर्फ सैन्य नहीं बल्कि बौद्धिक और प्रचार के मैदान में भी होना चाहिए। उन्होंने धार्मिक विद्वानों, छात्रों और मीडिया से इस मोर्चे पर सक्रिय भूमिका निभाने का आह्वान किया।

इस कहानी में, फ़िरौन अपनी मुश्किल में कीमती अंगूरों के लालच में शैतान की परीक्षा में फंस जाता है। उसकी नादानी और महत्वाकांक्षा उसे शैतान के जाल में फंसा देती है। यह कहानी सिर्फ फ़िरौन और शैतान की लड़ाई नहीं है, बल्कि यह हमें इंसान की कमजोरियों और धोखे के जाल के बारे में भी सिखाती है।

"किताब रविश तब्लीग़ दर इस्लाम" एक ऐसा संग्रह है जिसमें अहले-बैत (अ) की हदीसों और कथाओं के आधार पर प्रचार के फल और पुण्यों का वर्णन किया गया है। यह किताब दिलचस्प कहानियों और घटनाओं से भरी हुई है, जिनमें मासूम इमामों के कथन, क़ुरआनी आयतें, और हदीसें शामिल हैं। ये प्रचार संबंधी कहानियाँ विद्वानों और जानकारों के लिए प्रस्तुत की गई हैं ताकि वे इस मार्गदर्शन से लाभान्वित हो सकें।

मरहूम सय्यद नेमतुल्लाह जज़ाएरी ने बयान कियाः एक दिन फ़िरौन -जो खुद को ख़ुदा समझता था- के पास एक आदमी आया और उसने एक अंगूर का गुच्छा दिया और कहा: "अगर तुम सच में ख़ुदा हो, तो इस अंगूर के गुच्छे को कीमती मोतियों में बदल दो।" फ़िरौन ने उसे लिया और जब रात हुई और अंधेरा छा गया, तो उसने अपने घर के दरवाजे बंद कर दिए और किसी को भी अंदर आने से मना किया। फिर वह सोचने लगा कि इस अंगूर को मोती में कैसे बदले।

तभी शैतान उसके घर आया और दरवाजा खटखटाया। शैतान ने फ़िरौन से कहा: "क्या तुम इस अंगूर के गुच्छे को मोतियों में बदल सकते हो?" फ़िरौन ने कहा: "नहीं।" शैतान ने जादू और चालाकी से उस अंगूर के गुच्छे को मोतियों में बदल दिया। फ़िरौन हैरान रह गया और कहा: "वाह! तुम कितने माहिर हो।"

तब शैतान ने फ़िरौन को थप्पड़ मारा और कहा: "मुझे इतनी कला और हुनर के बावजूद भी बंदगी स्वीकार नहीं हुई, और तुम इस मूर्खता के साथ खुद को ख़ुदा कहते हो?"

यह कहानी फ़िरौन की नादानी और शैतान की चालाकी को दिखाती है, जिससे फ़िरौन को ईश्वर भक्ति का सबक मिलता

फ़िरौन ने पूछा: "कौन है?"

उत्तर में कहा गया: "तुम कैसे खुद को ख़ुदा कहते हो और यह नहीं जानते कि दरवाज़े के पीछे कौन है?"

फ़िरौन ने उसे पहचान लिया और कहा: "हे शापित और अल्लाह के दरबार से निकाले गए, अंदर आओ।"

इबलीस (शैतान) अंदर आया और देखा कि फ़िरौन के सामने अंगूर का गुच्छा रखा है और वह हैरान है।

शैतान ने कहा: "मुझे यह अंगूर का गुच्छा दे दो।"

फ़िरौन ने वह अंगूर का गुच्छा उसे दे दिया। इब्लीस (शैतान) ने उस पर इस्मे आज़म पढ़ा, और फ़िरौन ने देखा कि अंगूर का गुच्छा बहुत अच्छे मोती में बदल गया है147

शैतान ने उससे कहा: "इंसाफ करो, ओ बे-इंसाफ़! मैंने इस ज्ञान और विद्या के साथ अल्लाह का एक बंदा बनने का फैसला किया, लेकिन मुझे उसकी सेवा में स्वीकार नहीं किया गया, और तुम अपनी अज्ञानता और बेवकूफी के साथ ख़ुदा बनने का इरादा रखते हो और इस महान पद का दावा करते हो?!"346

फ़िरौन ने कहा: "तुमने आदम को सजदा क्यों नहीं किया?"2

शैतान ने कहा: "इसलिए कि मैं जानता था कि तुम जैसा बुरा व्यक्ति उसकी संतान से आएगा, इसलिए मैंने उसे सजदा करने से इनकार कर दिया।"

हवालाः अनवार उन नौमानिया, भाग 1, पेज 238

बांग्लादेशी अधिकारियों ने घोषणा की है कि नागरिकों के पासपोर्ट पर वह मशहूर वाक्यांश जो पहले लिखा होता था यह पासपोर्ट सभी देशों के लिए मान्य है सिवाय इज़राइल के उसे एक बार फिर से छापा जाएगा।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक, बांग्लादेशी अधिकारियों ने बताया है कि यह वाक्यांश जो पहले पासपोर्ट पर हुआ करता था, अब दोबारा शामिल किया जाएगा।

यह वाक्यांश अतीत में बांग्लादेश के पासपोर्टों पर लिखा होता था लेकिन साल 2021 में उस समय की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने इसे हटा दिया था, जिस पर देश के कई तबकों ने कड़ा विरोध जताया और इसकी वापसी की लगातार माँग करते रहे।

ढाका में इमिग्रेशन और पासपोर्ट विभाग के प्रमुख जनरल मोहम्मद नूरुल इस्लाम ने इस सिलसिले में कहा,हमारे इतिहास में वर्षों तक पासपोर्ट पर 'इज़राइल को छोड़कर सभी देशों के लिए' यह वाक्यांश मौजूद रहा लेकिन पूर्व सरकार ने बिना किसी स्पष्टीकरण के इसे अचानक हटा दिया।

उन्होंने आगे कहा,देश की जनता इस बदलाव से नाखुश थी और अब हम जनता की इच्छा के अनुसार इस वाक्य को फिर से शामिल कर रहे हैं।राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, इस वाक्य को हटाने के पीछे कुछ बांग्लादेशी नेताओं की ओर से इज़राइल के साथ संबंध बनाने की कोशिशें थीं जो देश में आम जनता के स्तर पर भारी विरोध का कारण बनीं।

गौरतलब है कि बांग्लादेश उन कुछ देशों में शामिल है जिन्होंने अब तक इज़राइल को मान्यता नहीं दी है और उसके साथ कोई भी राजनयिक या व्यापारिक संबंध स्थापित नहीं किया है।

19 अप्रैल, 2025 को इस्लामी गणतंत्र ईरान और अमेरिका के बीच, इटली की राजधानी रोम में परमाणु वार्ता का दूसरा दौर आयोजित हुआ।

विश्लेषकों का मानना ​​है कि रोम में ईरान-अमेरिका परमाणु वार्ता तनाव कम करने और मतभेदों को सुलझाने का कूटनीतिक प्रयास है। विश्लेषक इसे ईरान के शांतिपूर्ण परमाणु कार्यक्रम के अधिकार को साबित करने और अवैध प्रतिबंधों को हटाने के अवसर के रूप में देखते हैं। पार्स टुडे के अनुसार, एक्स पर अली नाम के एक यूज़र ने लिखाः रोम वार्ता ने दिखाया कि ईरान अधिकार के साथ वार्ता में शामिल हुआ है। हमारे परमाणु अधिकार एक लेड लाइन है। अमेरिका को प्रतिबंध हटाने होंगे, वरना कोई समझौता नहीं होगा।

रहमतुल्लाह बेगदिली नाम के एक दूसरे यूज़र ने अपने ट्वीट में ईरान-अमेरिका वार्ता के दूसरे दौर का ज़िक्र करतेह लिखाः राष्ट्रीय हितों की दिशा में एकजुटता के लिए नेतृत्व की पहल एक पथ-प्रदर्शक रही है। जब व्यवस्था के सभी स्तंभ इस रास्ते पर सहमत होते हैं और लोग एकजुट और ख़ुश होते हैं, तो इसका मतलब है कि व्यवस्था, राष्ट्र और देश सही रास्ते पर हैं।

जवाद नाम के एक अन्य यूज़र का कहना था कि रोम वार्ता में ईरान ने अमेरिका और इज़रायल को दिखा दिया कि हमारे ऊपर उनकी ज़ोर ज़बरदस्ती नहीं चलेगी। हम 60 फ़ीसद संवर्धन जारी रखेंगे और प्रतिबंधों को बेअसर कर देंगे।

एक्स पर फ़ारसी भाषा के नाज़ी नाम के यूज़र ने लिखाः रोम वार्ता ईरान के सम्मान के लिए एक मंच है। हम सभी को अपनी वार्ता टीम का समर्थन करना चाहिए। न तो अंध आशावाद और न ही शुद्ध निराशावाद। परमाणु ऊर्जा हमारा अधिकार है और मुझे उम्मीद है कि इस अधिकार का दृढ़ता से बचाव किया जाएगा।

यासिर आग़ाई ने लिखाः ईरान के साथ वार्ता में अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख स्टीव विटकॉफ़ और उनके साथ आई टीम की ओर से कोई कठोर रुख़ नहीं देखा गया। यह दृष्टिकोण ईरान के संबंध में ट्रम्प प्रशासन के आधिकारिक और दिखावटी रुख़ से पूरी तरह अलग है।

अहमद ज़ैदाबादी ने ट्वीट किया कि अमेरिकी अधिकारियों ने रोम में इस्लामिक रिपब्लिक के अधिकारियों के साथ दूसरे दौर की वार्ता में व्याप्त माहौल के बारे में अभी तक कोई टिप्पणी नहीं की है। उनकी देरी कुछ हद तक संदिग्ध है, लेकिन यह तथ्य कि तीसरे दौर की वार्ता निर्धारित की गई है, भविष्य के लिए आशा की किरण दिखाता है।

महदिए अल्लाहयारी का कहना थाः रोम वार्ता ईरान के व्यापक कूटनीतिक प्रयासों का एक हिस्सा मात्र है। आंतरिक एकता बनाए रखते हुए, वार्ता दल को ईरान के प्रतिनिधियों के रूप में समर्थन दिया जाना चाहिए। ईरान अलग-थलग नहीं है, और शांतिपूर्ण परमाणु तकनीक हमारी रेड लाइन है।

ईरान के परमाणु कार्यक्रम को संरक्षित रखना, मज़बूती से बातचीत करना और वार्ता दल पर भरोसा करना, इन तीन बिंदुओं को दूसरे दौर की वार्ता में एक्स उपयोगकर्ताओं की सबसे महत्वपूर्ण राय माना जा सकता है। 

अमेरिका के सामने अपनी रेड लाइंस निर्धारित करने में ईरान की सफलता से खिन्न ज़ायोनी मीडिया ने वार्ता की पक्षपातपूर्ण कवरेज करके दर्शा दिया कि इज़राइल को हार के अलावा कुछ हासिल नहीं हुआ है।

ट्रम्प द्वारा परमाणु समझौते से निकलने के कारण उत्पन्न हुए तनाव के बाद एक बार फिर ईरान और अमेरिका वार्ता की मेज़ पर लौट आए हैं।

कल इटली की राजधानी रोम में ईरान के विदेश मंत्री सैय्यद अब्बास अराक़ची और पश्चिम एशिया के लिए ट्रम्प के विशेष प्रतिनिधि स्टीव विटकॉफ़ की अध्यक्षता में अप्रत्यक्ष वार्ता हुई।

दोनों पक्षों ने इन वार्ताओं को सकारात्मक और रचनात्मक क़रार दिया है और बताया कि वार्ता अगले सप्ताह भी जारी रखने का निर्णय लिया गया है।

हालिया वार्ता में ईरान ने स्पष्ट सफलता ऐसे समय में हासिल की है, जब ईरान और अमेरिका के बीच अप्रत्यक्ष वार्ता शुरू होने से पहले ज़ायोनी नेताओं और मीडिया ने दावा किया था कि वार्ता में ईरान का पक्ष कमज़ोर रहेगा।

हालांकि, दो दौर की वार्ता के दौरान, हमने देखा कि ईरानी विदेश मंत्री सैय्यद अब्बास अराक़ची और दूसरे ईरानी अधिकारियों के बयानों के अनुसार, वार्ता अप्रत्यक्ष रूप से जारी रही और वार्ता समाप्त होने के बाद, राजनयिक शिष्टाचार का पालन करने के लिए ईरानी और अमेरिकी प्रतिनिधिमंडलों ने एक-दूसरे के साथ एक संक्षिप्त बैठक की।

दूसरी ओर, वार्ता से पहले ही यह स्पष्ट हो गया था कि वाशिंगटन ने दोनों देशों के बीच मध्यस्थ के रूप में ओमान को शामिल करने की ईरान की मांग को स्वीकार कर लिया है, और मध्यस्थ के लिए वाशिंगटन की पसंद यूएई को तेहरान ने स्वीकार नहीं किया है।

बिना किसी धमकी और परस्पर सम्मान के माहौल में निष्पक्ष वार्ता ईरान की मांगों में से एक थी। अंतर्राष्ट्रीय और घरेलू मीडिया में प्रकाशित रिपोर्टों के अनुसार, वार्ता के सम्मानजनक माहौल के अलावा, पश्चिम एशियाई मामलों के लिए अमेरिकी प्रतिनिधि स्टीव विटकॉफ़ ने अराक़ची को दिए गए मसौदे में ईरान की परमाणु सुविधाओं को नष्ट करने या देश के ख़िलाफ़ किसी भी ख़तरे का उल्लेख नहीं किया है।

हालांकि, प्रतिष्ठित वैश्विक मीडिया की रिपोर्टों के विपरीत, ज़ायोनी शासन के मीडिया ने तेहरान पर कमज़ोर पड़ने और वाशिंगटन की मांगों के आगे झुकने का आरोप लगाया है।

वार्ता की शुरुआत और तेहरान और वाशिंगटन के बीच कूटनीतिक प्रयासों के इस दौर की सफलता के बारे में कई रिपोर्टों के प्रकाशन के बावजूद, ज़ायोनी शासन से जुड़े मीडिया आउटलेट्स ईरान की छवि को ख़राब करने में लग गए।

इन मीडिया संस्थानों द्वारा प्रकाशित सभी रिपोर्टों को तेहरान और वाशिंगटन ने ख़ारिज कर दिया है और दोनों पक्षों ने घोषणा की है कि वार्ता सफल रही और अगले हफ़्ते भी जारी रहेगी।

अपने राष्ट्रीय मूल्यों और हितों के लिए खड़े होने में ईरान का दृष्टिकोण इतना सफल रहा कि तेहरान के राजनीतिक दृष्टिकोण को कमज़ोर करने के ज़ायोनियों के प्रयासों के बावजूद, वैश्विक मीडिया ने वार्ता को ईरान के लिए कूटनीतिक जीत के रूप में संदर्भित किया है।

इस संबंध में अल-जज़ीरा ने ईरान और अमेरिका के बीच अप्रत्यक्ष वार्ता के बारे में कहा कि ओमान में जो कुछ हुआ वह क्षेत्र के सबसे जटिल मामलों में से एक है, जो ईरानी कूटनीति और प्रभाव के लिए एक बड़ी जीत है।

इन व्याख्याओं के संदर्भ में कहा जा सकता है कि वार्ता प्रक्रिया के दौरान जो भी हो, लेकिन अमेरिका से अपनी रेड लाइंस मनवाने में ईरान ने सफलता हासिल की है। इसके अलावा, कूटनीति की जीत को देखते हुए, ज़ायोनी शासन के मीडिया द्वारा इन घटनाक्रमों का पक्षपातपूर्ण कवरेज उसके लिए अपमान से ज़्यादा कुछ नहीं है। 

 एक हिब्रू भाषा की वेबसाइट ने बताया है कि इसराइली सेना गाज़ा पट्टी को दो हिस्सों में बाँटने की योजना बना रही है, ताकि उनके अनुसार हमास पर दबाव डाला जा सके।

एक हिब्रू भाषा की वेबसाइट ने बताया है कि इसराइली सेना गाज़ा पट्टी को दो हिस्सों में बाँटने की योजना बना रही है, ताकि उनके अनुसार हमास पर दबाव डाला जा सके।

इस योजना को अमल में लाने के लिए इसराइली एक हिब्रू भाषा की वेबसाइट ने बताया है कि इसराइली सेना गाज़ा पट्टी को दो हिस्सों में बाँटने की योजना बना रही है, ताकि उनके अनुसार हमास पर दबाव डाला जा सके सेना को लेबनान, सीरिया और वेस्ट बैंक जैसे इलाकों से बड़ी संख्या में सैनिकों को बुलाना होगा।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इसराइली सेना अब तक गाज़ा पर 1300 से ज़्यादा हमले कर चुकी है और गाज़ा के करीब 40% हिस्से पर उसका नियंत्रण है।

इसके बावजूद फिलिस्तीनी प्रतिरोध बल पूरी तरह घेराबंदी में होने के बावजूद इसराइली सैनिकों पर अचानक हमले कर रहे हैं और अब भी सक्रिय हैं।यह पूरी स्थिति इस बात को दर्शाती है कि गाज़ा में हालात लगातार तनावपूर्ण हैं और संघर्ष दोनों ओर से जारी है।

यज़्द प्रांत में महिला मदरसों की प्रबंधकों ने कहा,छात्राओं की सही परवरिश बहुत ज़रूरी है और मदरसों के प्रबंधकों का सबसे अहम मकसद यह होना चाहिए कि वे इस्लामी क्रांति के आदर्शों के अनुसार तलबा को तैयार करें।

यज़्द प्रांत में महिला मदरसों की प्रबंधकों ने कहा,छात्राओं की सही परवरिश बहुत ज़रूरी है और मदरसों के प्रबंधकों का सबसे अहम मकसद यह होना चाहिए कि वे इस्लामी क्रांति के आदर्शों के अनुसार तलबा को तैयार करें।

मदरसों का सबसे ज़रूरी मकसद यह है कि वे ऐसे छात्र और छात्राएं (तलबा) तैयार करें जो इस्लामी क्रांति के आदर्शों के अनुसार हों यानी सोचने-समझने वाले, समझदार और समाज के लिए फायदेमंद लोगो हैं।

अच्छे नतीजे के लिए दोनों तरफ से मेहनत चाहिए शिक्षक को सक्रिय होना चाहिए और छात्र को सीखने के लिए तैयार होना चाहिए।उन्होंने कहा कि खुदा ने इंसान के विकास के लिए इस दुनिया को खास बनाया है, ताकि इंसान इसमें तरक्की कर सके और अपनी काबिलियत को उभार सके।

अगर इंसान को सिर्फ आँख-कान नाक के ज़रिए तालीम दी जाए और उसे सोचने की आदत न डाली जाए, तो वह सिर्फ मौज-मस्ती और आसानी की तलाश करेगा। ऐसी पीढ़ी तैयार हो रही है जो बिना दिमाग लगाए चल रही है और यही एक चिंता की बात है।

आजकल के तलबा लंबी भाषणों या भारी किताबों से दूर भागते हैं, इसलिए उन्हें छोटी-छोटी अच्छी कहानियों और प्रेरणादायक उदाहरणों से सिखाना चाहिए। उन्हें सोचने की आदत डालनी चाहिए, क्योंकि आज की सबसे बड़ी कमी यही है लोग सोचते नहीं।

किताबें ऐसी होनी चाहिए जो तलबा को सोचने पर मजबूर करें, न कि उन्हें सिर्फ रटने की मशीन बना दें।उन्होंने कहा कि नौजवानों का दिल एक बहुत कीमती अमानत है, और उनकी परवरिश ऐसे होनी चाहिए कि वे अपने टीचरों से भी आगे सोच सकें।बैठक में मौजूद प्रिंसिपल्स और मैनेजर्स ने अपनी परेशानियाँ भी बताईं, और इब्राहीमीयन साहब ने उनके सवालों के जवाब दिए।