رضوی
हज़रत मासूमा स.अ. का रूहानी दर्जा
अगर देखा जाए तो हर इमाम अ.स. का अलग हरम है किसी का कर्बला किसी का काज़मैन किसी का सामरा किसी का मशहद लेकिन फिर भी इमाम इमाम सादिक़ अ.स. ने अहलेबैत अ.स. के हरम को क़ुम कहा जो हमारा ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है, और फिर इमाम की इस हदीस के बाद ही हज़रत मासूमा स.अ. का दुनिया में आना और और क़ुम में दफ़्न होना और आपकी ज़ियारत का सवाब जन्नत होना इस बात ने हमारे ध्यान को और अधिक अपनी ओर खींच लिया है
आपकी आध्यात्मिकता और मानवियत पर सबसे बड़ी दलील यह है कि मासूम इमामों ने हदीसों में आपके दर्जे और रुत्बे को बयान किया है, आप की शख़्सियत कई प्रकार से अहम है, पहले यह कि इमाम अ.स. की सभी औलाद में से हज़रत मासूमा स.अ. की ज़ियारत पर सबसे अधिक ज़ोर दिया गया है।
दूसरे आप अपने घराने में अपने सभी भाईयों बहनों में सबसे अधिक अपने वालिद (इमाम काज़िम अ.स.) और भाई (इमाम रज़ा अ.स.) के क़रीब थीं, इसके अलावा दूसरे इमामों जैसे इमाम सादिक़ अ.स. और इमाम मोहम्मद तक़ी अ.स. से आपके किरदार और मानवियत की वजह से आपकी ज़ियारत के बारे में कई हदीसें नक़्ल हुई हैं,
जैसाकि इमाम सादिक़ अ.स. ने आपकी विलादत की ख़बर देत हुए आपकी मारेफ़त के साथ की गई ज़ियारत का सवाब जन्नत को बताया और फ़रमाया कि आपके द्वारा शियों के हक़ में की गई शफ़ाअत ज़रूर क़ुबूल होगी।
इमाम सादिक़ अ.स. की मंसूर दवानीक़ी द्वारा शहादत 148 हिजरी में हुई और हज़रत मासूमा 179 हिजरी में पैदा हुईं यानी इमाम अ.स. की शहादत से क़रीब 30 साल बाद आप पैदा हुईं लेकिन इमाम अ.स. हज़रत मासूमा स.अ. की विलादत से 30 साल पहले ही आपके मानवी दर्जे और मक़ाम के आधार पर आपके वुजूद की अहमियत को बयान किया जैसाकि आपने फ़रमाया अल्लाह का एक हरम है जो मक्के में है,
पैग़म्बर स.अ. का भी एक हरम है जो मदीने में है, इमाम अली अ.स. का भी एक हरम है जो कूफ़ा में है उसी तरह हम अहलेबैत अ.स. का भी हरम है जो क़ुम में है और बहुत जल्द वहां हमारी औलाद में से एक ख़ातून दफ़्न होगी जिसका नाम फ़ातिमा होगा, जिसने भी उनकी ज़ियारत की जन्नत उस पर वाजिब होगी, इमाम सादिक़ ने यह बात उस कही जब हज़रत मासूमा अभी दुनिया में नहीं आई थीं।
इस हदीस में इमाम अली अ.स. के बाद से सभी इमामों के हरम को इमाम सादिक़ अ.स. ने क़ुम बताया है, वैसे हदीस में कुल्लना का शब्द है जिसे देख कर कहा जा सकता है सभी चौदह मासूम अ.स. शामिल हैं,
जबकि अगर देखा जाए तो हर इमाम अ.स. का अलग हरम है किसी का कर्बला किसी का काज़मैन किसी का सामरा किसी का मशहद लेकिन फिर भी इमाम अ.स. ने अहलेबैत अ.स. के हरम को क़ुम कहा जो हमारा ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है, और फिर इमाम की इस हदीस के बाद ही हज़रत मासूमा स.अ. का दुनिया में आना और और क़ुम में दफ़्न होना और आपकी ज़ियारत का सवाब जन्नत होना इस बात ने हमारे ध्यान को और अधिक अपनी ओर खींच लिया है।
उलमा बयान करते हैं इस हदीस का मक़सद लोगों को हज़रत मासूमा स.अ. की ज़ियारत की तरफ़ शौक़ दिलाना है ताकि इंसान आपके हरम में जा कर अल्लाह से क़रीब हो सके और उस मानवियत को हासिल कर सके जिसकी ओर इमाम सादिक़ अ.स. ने इशारा किया है और फिर क़यामत में आपकी शफ़ाअत हासिल करते हुए जन्नत में जा सके।
ज़ियारत में आपके शफ़ाअत करने के अधिकार का ज़िक्र किया गया है और यह उसी के पास होगा जो ख़ुद अल्लाह से क़रीब हो, जिस से पता चलता है आप का आध्यात्मिक दर्जा कितना बुलंद है और हदीस में जो ज़ियारत के सवाब में जन्नत के वाजिब होने की बात कही गई हैंं
। इसका मतलब यह नहीं है कि इंसान गुनाह करता रहे और ज़ियारत कर ले उसके लिए भी जन्नत है, क्योंकि दूसरी और हदीसों में मारेफ़त के साथ ज़ियारत करने की शर्त है, ज़ाहिर है वह इंसान जिसको मारेफ़त होगी वह अच्छे तरह जानता होगा कि गुनाह को क़ुर्आन ने नजासत कहा और नजासत का अल्लाह ने अहलेबैत अ.स. के क़रीब न लाने का इरादा किया है।
हज़रत मासूमा ए कुम स.अ.फैज़ इलाही का दरवाज़ा
मदरसा ए एल्मिया सक़लैन कुम अल मुक़द्देसा की ओर से हज़रत मासूमा कुम सलामुल्लाह अलैहा की पुण्यतिथि के अवसर पर एक प्रभावशाली शोक सभा आयोजित की गई, जिसमें हुज्जतुल इस्लाम मौलाना मुहम्मद अली ग़यूरी ने संबोधित किया।
मदरसा ए एल्मिया सक़लैन कुम अल मुक़द्देसा की ओर से हज़रत मासूमा कुम सलामुल्लाह अलैहा की पुण्यतिथि के अवसर पर एक प्रभावशाली शोक सभा आयोजित की गई, जिसमें हुज्जतुल इस्लाम मौलाना मुहम्मद अली ग़यूरी ने संबोधित किया।
उन्होंने हज़रत मासूमा कुम स.ल. के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि बीबी मासूमा ए कुम चौदह मासूमीन अलैहिमुस्सलाम की सूची में नहीं हैं, फिर भी वह ईश्वरीय कृपा का द्वार बनीं, यहाँ तक कि उनकी पवित्र शख्सियत की फजीलत और ज़ियारत के संबंध में तीन मासूमीन अलैहिमुस्सलाम ने हदीसें बयान फरमाई हैं।
मदरसा सक़लैन कुम अल-मुक़द्देसा के प्रबंधक ने 10 रबीउस सानी, शुक्रवार को मदरसे में आयोजित शोक सभा को संबोधित करते हुए आयत शरीफ إِن تَنصُرُوا اللّهَ يَنصُرْكُمْ (सूरत मुहम्मद, आयत 7) से यह निष्कर्ष निकाला कि यदि कोई व्यक्ति ईश्वर के धर्म की सहायता करेगा, तो ईश्वर भी उसकी सहायता करेगा।
और ईश्वर का यह वादा केवल पैगंबर ए इस्लाम सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही के युग तक सीमित नहीं है, बल्कि आज के दौर में भी हम ईश्वर का वादा पूरा होते हुए अपनी आँखों से देख रहे हैं।
उन्होंने तालिबे इल्म को संबोधित करते हुए कहा कि हमें हज़रत मासूमा कुम सलामुल्लाह अलैहा से अधिक से अधिक आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करना चाहिए, ताकि हम भी उच्च स्थान प्राप्त कर सकें और ईश्वरीय धर्म की निष्कपट भावना से सहायता कर सकें जिसकी एक मिसाल आयतुल्लाह मरअशी नजफी व अन्य बड़े मरजय इकराम हैं।
शोक सभा के अंत में मातम और नौहा ख्वानी हुई, और तालिबे इल्म नौहा ख्वानी व मातम करते हुए हज़रत मासूमा कुम सलामुल्लाह अलैहा के पवित्र मज़ार पर श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए उपस्थित हुए।
हज़रत फ़ातेमा मासूमा स.अ. की शहादत के मौके पर संक्षिप्त परिचय
हज़रत फ़ातिमा मासूमा स.अ.का जन्म सन 173 हिजरी इस्लामी कैलेंडर के ग्यारहवे महीने ज़ीक़ादा की पहली तारीख में मदीना शहर में हुई, आपका पालन पोषण ऐसे परिवार में हुआ जिसका प्रत्येक व्यक्ति अख़लाक़ और चरित्र के हिसाब से अद्वितीय था, आप का घराना इबादत और बंदगी, तक़वा और पाकीज़गी, सच्चाई और विनम्रता, लोगों की मदद करने और सख़्त हालात में अपने को मज़बूत बनाए रखने और भी बहुत सारी नैतिक अच्छाइयों में मशहूर था।
हज़रत फ़ातिमा मासूमा (स.अ.)कि विलादत पहली ज़ीक़ादा सन 173 हिजरी में मदीना शहर में हुई, आपकी परवरिश ऐसे घराने में हुई जिसका हर शख़्स अख़लाक़ और किरदार के एतबार से बेमिसाल था, आप का घराना इबादत और बंदगी, तक़वा और पाकीज़गी, सच्चाई और विनम्रता, लोगों की मदद करने और सख़्त हालात में अपने को मज़बूत बनाए रखने और भी बहुत सारी नैतिक अच्छाइयों में मशहूर था ।
सभी अल्लाह के चुने हुए ख़ास बंदे थे जिनका काम लोगों की हिदायत था, इमामत के नायाब मोती और इंसानियत के क़ाफ़िले को निजात दिलाने वाले आप ही के घराने से थे।
इल्मी माहौल
हज़रत मासूमा (स.अ) ने ऐसे परिवार में परवरिश पाई जो इल्म, तक़वा और नैतिक अच्छाइयों में अपनी मिसाल ख़ुद थे, आप के वालिद हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद आप के भाई इमाम अली रज़ा अलैहिस्सलाम ने सभी भाइयों और बहनों की परवरिश की ज़िम्मेदारी संभाली, आप ने तरबियत में अपने वालिद की बिल्कुल भी कमी महसूस नहीं होने दी, यही वजह है कि बहुत कम समय में इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के बच्चों के किरदार के चर्चे हर जगह होने लगे।
इब्ने सब्बाग़ मलिकी का कहना है कि इमाम मूसा काज़िम (अ) की औलाद अपनी एक ख़ास फ़ज़ीलत के लिए मशहूर थी, इमाम मूसा काज़िम (अ) की औलाद में इमाम अली रज़ा (अ) के बाद सबसे ज़ियादा इल्म और अख़लाक़ में हज़रत फ़ातिमा मासूमा (स.अ) ही का नाम आता है और यह हक़ीक़त को आप के नाम, अलक़ाब और इमामों द्वारा बताए गए सिफ़ात से ज़ाहिर है।
फ़ज़ाएल का नमूना:
हज़रत फ़ातिमा मासूमा (स.अ) सभी अख़लाक़ी फ़ज़ाएल का नसूना हैं, हदीसों में आपकी महानता और अज़मत को इमामों ने बयान फ़रमाया है, इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम इस बारे में फ़रमाते हैं कि जान लो कि अल्लाह का एक हरम है जो मक्का में है, पैग़म्बर (स) का भी एक हरम है जो मदीना में है, इमाम अली (अ) का भी एक हरम है जो कूफ़ा में है, जान लो इसी तरह मेरा और मेरे बाद आने वाली मेरी औलाद का हरम क़ुम है। ध्यान रहे कि जन्नत के 8 दरवाज़े हैं जिनमें से 3 क़ुम की ओर खुलते हैं, हमारी औलाद में से (इमाम मूसा काज़िम अ.स. की बेटी) फ़ातिमा नाम की एक ख़ातून वहां दफ़्न होगी जिसकी शफ़ाअत से सभी जन्नत में दाख़िल हो सकेंगे।
आपका इल्मी मर्तबा:
हज़रत फ़ातिमा मासूमा (स.अ) इस्लामी दुनिया की बहुत अज़ीम और महान हस्ती हैं और आप का इल्मी मर्तबा भी बहुत बुलंद है। रिवायत में है कि एक दिन कुछ शिया इमाम मूसा काज़िम (अ) से मुलाक़ात और कुछ सवालों के जवाब के लिए मदीना आए, इमाम काज़िम (अ) किसी सफ़र पर गए थे, उन लोगों ने अपने सवालों को हज़रत मासूमा (स.अ) के हवाले कर दिया उस समय आप बहुत कमसिन थीं (तकरीबन सात साल) अगले दिन वह लोग फिर इमाम के घर हाज़िर हुए लेकिन इमाम अभी तक सफ़र से वापस नहीं आए थे, उन्होंने आप से अपने सवालों को यह कहते हुए वापस मांगा कि अगली बार जब हम लोग आएंगे तब इमाम से पूछ लेंगे, लेकिन जब उन्होंने अपने सवालों की ओर देखा तो सभी सवालों के जवाब लिखे हुए पाए, वह सभी ख़ुशी ख़ुशी मदीने से वापस निकल ही रहे थे कि अचानक रास्ते में इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम से मुलाक़ात हो गई, उन्होंने इमाम से पूरा माजरा बताया और सवालों के जवाब दिखाए, इमाम ने 3 बार फ़रमाया: उस पर उसके बाप क़ुर्बान जाएं।
शहर ए क़ुम में दाख़िल होना:
क़ुम शहर को चुनने की वजह हज़रत मासूमा (स.अ) अपने भाई इमाम अली रज़ा (अ) से ख़ुरासान (उस दौर के हाकिम मामून रशीद ने इमाम को ज़बरदस्ती मदीना से बुलाकर ख़ुरासान में रखा था) में मुलाक़ात के लिए जा रहीं थीं और अपने भाई की विलायत के हक़ से लोगों को आशना करा रही थी। रास्ते में सावाह शहर पहुंची, आप पर मामून के जासूसों ने डाकुओं के भेस में हमला किया और ज़हर आलूदा तीर से आप ज़ख़्मी होकर बीमार हों गईं, आप ने देखा आपकी सेहत ख़ुरासान नहीं पहुंचने देगी, इसलिए आप क़ुम आ गईं, एक मशहूर विद्वान ने आप के क़ुम आने की वजह लिखते हुए कहा कि, बेशक आप वह अज़ीम ख़ातून थीं जिनकी आने वाले समय पर निगाह थी, वह समझ रहीं थीं कि आने वाले समय पर क़ुम को एक विशेष जगह हासिल होगी, लोगों के ध्यान को अपनी ओर आकर्षित करेगी यही कुछ चीज़ें वजह बनीं कि आप क़ुम आईं।
आपकी ज़ियारत का सवाब:
आपकी ज़ियारत के सवाब के बारे में बहुत सारी हदीसें मौजूद हैं, जिस समय क़ुम के बहुत बड़े मोहद्दिस साद इब्ने साद इमाम अली रज़ा (अ) से मुलाक़ात के लिए गए, इमाम ने उनसे फ़रमाया: ऐ साद! हमारे घराने में से एक हस्ती की क़ब्र तुम्हारे यहां है, साद ने कहा, आप पर क़ुर्बान जाऊं! क्या आपकी मुराद इमाम मूसा काज़िम (अ) की बेटी हज़रत फ़ातिमा मासूमा (स.अ) हैं? इमाम ने फ़रमाया: हां! और जो भी उनकी मारेफ़त रखते हुए उनकी ज़ियारत के लिए जाएगा जन्नत उसकी हो जाएगी।
शियों के छठे इमाम हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं: जो भी उनकी ज़ियारत करेगा उस पर जन्नत वाजिब होगी।
ध्यान रहे यहां जन्नत के वाजिब होने का मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि इंसान इस दुनिया में कुछ भी करता रहे केवल ज़ियारत कर ले जन्नत मिल जाएगी, इसीलिए एक हदीस में शर्त पाई जाती है कि उनकी मारेफ़त रखते हुए ज़ियारत करे और याद रहे गुनाहगार इंसान को कभी अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम की हक़ीक़ी मारेफ़त हासिल नहीं हो सकती। जन्नत के वाजिब होने का मतलब यह है कि हज़रत मासूमा (स.अ) के पास भी शफ़ाअत का हक़ है।
हज़रत फातेमा मासूमा (अ.स) की हदीसे
हज़रत फातेमा मासूमा (अ.स) हज़रत इमाम सादिक़ (अ.स) की बेटीयो (फातेमा, ज़ैनब और उम्मेकुलसूम) से नकल करती है और इस हदीस की सनद का सिलसिला हज़रत ज़हरा (स.अ) पर खत्म होता हैः
حدثتنی فاطمة و زینب و ام کلثوم بنات موسی بن جعفر قلن : ۔۔۔ عن فاطمة بنت رسول الله صلی الله علیه و آله وسلم و رضی عنها : قالت : ”انسیتم قول رسول الله صلی الله علیه و آله و سلم یوم غدیر خم ، من کنت مولاه
فعلی مولاه و قوله صلی الله علیه و آله وسلم ، انت منی بمنزلة هارون من موسی“
हज़रत फातेमा ज़हरा (स.अ) ने फरमायाः क्या तुमने फरामोश कर दिया रसूले खुदा (स.अ.व.व) के इस क़ौल को जिसे आप ने गदीर के दिन इरशाद फरमाया था के जिस का मै मौला हूँ उसका ये अली मौला हैं।
और क्या तुम रसूले खुदा (स.अ.व.व) की इस हदीस को भूल गऐ कि आपने इमाम अली (अ.स) से फरमाया था कि ऐ अली तुम मेरे लिए ऐसे हो जैसे मूसा के लिऐ हारून थे।
हज़रत फातेमा मासूमा इसी तरह एक और हदीस इमाम सादिक की बेटी से नकल करती है और इस हदीस का सिलसिला-ए सनद भी हज़रते ज़हरा (स.अ) पर तमाम होता है हज़रत फातेमा ज़हरा (स.अ) ने फरमाया
عن فاطمة بنت موسی بن جعفر علیه السلام :
۔۔۔ عن فاطمة بنت رسول الله صلی الله علیه و آله و سلم : قالت :
قال رسول الله صلی اللہ علیه و آله وسلم :
«اٴلا من مات علی حب آل محمد مات شهیداً »
रसूले खुदा (स.अ.व.व) इरशाद फरमाया थाः आगाह हो जाओ कि जो अहलैबैत (अ.स) की मुहब्बत पर इस दुनिया से उठता है वो शहीद है।
अल्लामा मजलीसी शैख सुदूक़ से हज़रत फातेमा मासूमा की ज़ियारत की फज़ीलत के बारे मे रिवायत नक़ल करते है
قال ساٴلت ابا الحسن الرضا علیه السلام عن فاطمة بنت موسی ابن جعفر علیه السلام قال : ” من زارها فلة الجنة
रावी कहता है कि मैने हज़रत फातेमा मासूमा के बारे मे इमाम रज़ा (अ.स) से पूछा तो आपने फरमाया कि जो कोई भी हज़रत फातेमा मासूमा की क़ब्र की ज़ियारत करेगा उसपर जन्नत वाजिब हो जाऐगी।
वैश्विक सहायता बेड़े सुमूद पर हमला और सदस्यों की गिरफ्तारी अंतरराष्ट्रीय कानूनों के विरुद्ध है
चिली सरकार ने गाज़ा के लिए मानवीय सहायता ले जाने वाले वैश्विक बेड़े "सुमूद" को इजरायली सरकार द्वारा रोके जाने पर गहरी चिंता जताई है और इस कदम को अंतरराष्ट्रीय कानूनों के खिलाफ बताया है साथ ही उन्होंने मानवीय सहायता मार्ग को तुरंत खोलने की मांग की है।
उस कार्रवाई पर गहरी चिंता जताई जिसमें उसने वैश्विक बेड़े "अल-समूद" को रोका, जो गाजा के नागरिकों के लिए मानवीय सहायता ले जा रहा था।
बयान में कहा गया है कि अल-समूद काफिले के जहाजों का उद्देश्य युद्ध और नाकेबंदी से प्रभावित गाजा के निर्दोष नागरिकों, विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों तक तत्काल सहायता पहुंचाना था। इजरायल सरकार की यह कार्रवाई समुद्री कानून सम्मेलन के तहत मान्यता प्राप्त नौवहन की स्वतंत्रता का स्पष्ट उल्लंघन और अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून के सिद्धांतों के विरुद्ध है।
चिली सरकार ने स्पष्ट किया कि मानवाधिकारों और कानून के अनुसार, सभी सरकारें इस बात के लिए बाध्य हैं कि वे नागरिक आबादी तक मानवीय सहायता की बिना रुकावट पहुंच सुनिश्चित करें अल-समूद" काफिले को रोकना एक गैर-कानूनी कार्य और अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारियों का उल्लंघन है।
इसके अलावा चिली ने "अल-समूद" बेड़े के स्वयंसेवकों और चालक दल की सुरक्षा तत्काल सुनिश्चित करने और गाजा पट्टी तक मानवीय सहायता के मुक्त और तत्काल मार्ग प्रदान करने की मांग की। साथ ही उसने वैश्विक समुदाय से ऐसे गैर-कानूनी कार्यों के खिलाफ मजबूत और प्रभावी प्रतिक्रिया देने की अपील की।
शहीद नसरुल्लाह का जीवन; शिया धर्म के लिए एक उज्ज्वल उदाहरण
शहीद सय्यद हसन नसरुल्लाह की बरसी के अवसर पर शनिवार, 27 सितंबर, 2025 को हैदराबाद की हुसैनी दार अल-शिफा मस्जिद में एक शोक सभा आयोजित की गई; जिसे मौलाना तकी रज़ा आबिदी ने संबोधित किया।
शहीद ए मुक़ावेमत सय्यद हसन नसरुल्लाह की बरसी के अवसर पर शनिवार, 27 सितंबर, 2025 को हैदराबाद की हुसैनी दार अल-शिफा मस्जिद में एक शोक सभा आयोजित की गई; जिसे मौलाना तकी रज़ा आबिदी ने संबोधित किया।
उन्होंने शहीद सय्यद हसन नसरूल्लाह के जीवन को शिया विचारधारा के लिए एक उज्ज्वल उदाहरण बताया और कहा कि यह केवल एक व्यक्ति की शहादत नहीं है, बल्कि अंतर्दृष्टि, ईमानदारी, धार्मिक समझ और नेतृत्व का वह दीपक बुझ गया है, जिसके प्रकाश ने न केवल लेबनान में, बल्कि पूरे शिया जगत में जागृति की लहर फैला दी थी।
राष्ट्र के युवाओं को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि हमें शहीद नसरूल्लाह के जीवन से निष्ठा, त्याग, धैर्य और दृढ़ता सीखने की आवश्यकता है। आज, जब राष्ट्र विभाजन, भय और कमजोरी से ग्रस्त है, शहीद का जीवन हमें एकजुट करता है, हमें जागृत करता है और प्रतिरोध का आह्वान करता है।
मौलाना ने स्पष्ट किया कि यदि हम शहीदों के संदेश को जीवित नहीं रखेंगे, तो यह उपेक्षा अहल-अल-बैत (अ.स.) के मत के लिए एक नुकसान बन जाएगी।
तंज़ीम-ए-जाफ़री हैदराबाद द्वारा आयोजित इस जागरूकता कार्यक्रम में बड़ी संख्या में धर्मावलंबियों ने भाग लिया और शहीद को श्रद्धांजलि अर्पित की।
गौरतलब है कि यह शोक समारोह तंजीम-ए-जाफरी हैदराबाद द्वारा आयोजित किया गया था।
फिलिस्तीन के मामले पर हमारा मौकिफ वही है जो क़ायद ए आज़म का था
पाकिस्तान के विदेश मंत्री इस्हाक दार ने कहा कि फिलिस्तीन के मुद्दे पर हमारा वही रुख है जो कायदे ए आज़म का था।
पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इस्हाक दार ने राष्ट्रीय सभा में बयान देते हुए कहा,हमारी जानकारी के अनुसार पूर्व सीनेटर मुश्ताक अहमद को इजरायली बलों ने गिरफ्तार किया है हमारी पूरी कोशिश है कि जितने भी पाकिस्तानी हैं उन्हें सुरक्षित वापस लाया जाए।
उन्होंने कहा,हमारे इजरायल के साथ राजनयिक संबंध नहीं हैं इसलिए हम किसी तीसरे देश के माध्यम से उनकी रिहाई की कोशिश कर रहे हैं।
विदेश मंत्री इस्हाक दार ने गाज़ा में शांति समझौते के बारे में कहा,जब हमें 20-सूत्री एजेंडा दिया गया, तो इस्लामी देशों की ओर से हमने संशोधित 20-सूत्री योजना दी लेकिन जो 20-सूत्री मसौदा अंतिम हुआ, उसमें बदलाव कर दिए गए और मौजूदा 20-सूत्री मसौदे में किए गए बदलाव हमें स्वीकार्य नहीं हैं।
उन्होंने आगे कहा,प्रधानमंत्री ने ट्रम्प के पहले ट्वीट के जवाब में ट्वीट किया था और उस समय तक हमें पता नहीं था कि मसौदे में बदलाव कर दिया गया हैं। फिलिस्तीन के मुद्दे पर हमारा वही रुख है जो कायदे-आजम का था।
उप प्रधानमंत्री ने कहा,संयुक्त राष्ट्र यूरोपीय संघ और अरब देश गाजा में युद्धविराम कराने में विफल हो चुके हैं ट्रम्प के साथ बातचीत का उद्देश्य गाजा में युद्धविराम था। संयुक्त राष्ट्र की बैठक में प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान के मुद्दों को उठाया और इजरायल का नाम लेकर उसकी आलोचना भी की।
कोलंबिया ने इजरायली राजनयिकों को देश छोड़ने का दिया आदेश
कोलंबिया के राष्ट्रपति गुस्तावो पेत्रो ने इजरायल सरकार द्वारा वैश्विक नौका बेड़ा अल-समूद" को रोकने और उसके राहतकर्मियों की गिरफ्तारी के जवाब में इजरायली राजनयिकों को देश छोड़ने का आदेश दिया है और साथ ही इजरायल के साथ मुक्त व्यापार समझौता (TLC) भी रद्द कर दिया है।
कोलंबिया के राष्ट्रपति ने घोषणा की है कि सभी इजरायली राजनयिकों को कोलंबिया की भूमि छोड़नी होगी। यह फैसला ऐसे समय में लिया गया है जब मई 2024 से ही बोगोटा और तेल अवीव के बीच राजनयिक संबंध राष्ट्रपति पेत्रो के आदेश से टूटे हुए हैं।उन्होंने आगे कहा,इजरायल के साथ मुक्त व्यापार समझौता तुरंत समाप्त किया जाता है।
राष्ट्रपति पेत्रो ने इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की कड़ी आलोचना करते हुए कहा, अगर यह खबर सही है, तो हम इजरायली प्रधानमंत्री द्वारा किए गए एक नए अंतरराष्ट्रीय अपराध के गवाह हैं, जिसे मैं कई बार अपराधी और नरसंहार करार दे चुका हु।उन्होंने आगे कहा,अंतरराष्ट्रीय वकील कोलंबिया के वकीलों के साथ मिलकर इस मामले को कानूनी तौर पर आगे बढ़ाएं।
उसी दिन बोगोटा के वित्तीय जिले में फिलिस्तीन के समर्थक कुछ कार्यकर्ताओं ने विरोध प्रदर्शन किया और जहाज के कर्मियों की गिरफ्तारी के खिलाफ नारे भी लगाए।
उल्लेखनीय है कि व्यापार समझौते की रद्दगी के संबंध में विशेषज्ञों ने कहा है कि इस समझौते की धारा 15.4 के अनुसार, दोनों पक्षों में से कोई भी पक्ष राजनयिक नोट के माध्यम से इसे समाप्त कर सकता है और घोषणा की प्राप्ति के छह महीने बाद यह समाप्ति प्रभावी हो जाती है। यह समझौता 2013 में तय हुआ था और अगस्त 2020 में लागू हुआ था।
राष्ट्रपति पेत्रो ने इससे पहले भी इजरायल को कोयले के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया था, हालांकि उन्होंने हाल ही में स्वीकार किया कि कोयला ले जाने वाले जहाज अभी भी कोलंबिया से इजरायल की ओर जा रहे हैं, जिसे उन्होंने अपनी सरकार के लिए एक चुनौती बताया।
गौरतलब है कि कोलंबिया की ओर से यह रुख इजरायल सरकार द्वारा "वैश्विक नौका बेड़ा अल-समूद" नामक राहत जहाज को रोकने की कार्रवाई के जवाब में सामने आया है, जो गाजा के नागरिकों के लिए खाद्य और चिकित्सा सहायता ले जा रहा था। इस घटना में कई अंतरराष्ट्रीय कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया, जिनमें दो कोलंबियाई नागरिक "मनुआला बदेविया" और "लूना बार्टो" भी शामिल हैं।
इस्लामी उम्मत को केवल प्रतिरोध से ही बचाया जा सकता है: आयतुल्लाह आराफ़ी
क़ुम के इमाम जुमा आयतुल्लाह अली रज़ा आराफ़ी ने अपने जुमे के ख़ुत्बे में कहा कि स्नैपबैक अमेरिका और पश्चिम की अहंकारी नीति का हिस्सा है जो सभ्यतागत युद्ध के ज़रिए इस्लामी उम्मत को कमज़ोर करने की कोशिश कर रही है, और ईरान और इस्लामी उम्मत का अस्तित्व केवल प्रतिरोध में निहित है, और यही मुक्ति का एकमात्र रास्ता है।
क़ुम के इमाम जुमा आयतुल्लाह अली रज़ा आराफ़ी ने अपने जुमे के ख़ुत्बे में कहा कि स्नैपबैक अमेरिका और पश्चिम की अहंकारी नीति का हिस्सा है जो सभ्यतागत युद्ध के ज़रिए इस्लामी उम्मत को कमज़ोर करने की कोशिश कर रही है। उन्होंने चेतावनी दी कि ईरानी राष्ट्र और इस्लामी उम्मत को सतर्क रहना चाहिए क्योंकि आज इतिहास का एक बहुत ही संवेदनशील समय है।
क़ुरआन की आयत "अल्लाह का डर ही हक़ है की रौशनी में उन्होंने कहा कि तक़वा सिर्फ़ गुनाहों से बचने का नाम नहीं है, बल्कि निरंतर प्रगति के ज़रिए ऊँचे मुकाम हासिल करने की एक यात्रा है। सुख तभी संभव है जब इंसान अपने जीवन के अंतिम क्षण तक नेक बना रहे।
हज़रत फ़ातिमा मासूमा (स) के वफ़ात दिवस के अवसर पर आयतुल्लाह आराफ़ी ने कहा कि उन्होंने क़ुम को ज्ञान, जिहाद और अध्यात्म का केंद्र बनाया और यह इस्लाम में महिलाओं के उच्च स्थान का प्रतीक है। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि इस्लाम में महिलाएँ इच्छाओं की बंदी नहीं हैं, बल्कि हज़रत ख़दीजा, हज़रत फ़ातिमा ज़हरा, हज़रत ज़ैनब और हज़रत मासूमा (स) जैसी चरित्र निर्माण करने वाली हस्तियों की उत्तराधिकारी हैं।
उन्होंने सय्यद हसन नसरूल्लाह, सय्यद हाशिम सफीउद्दीन और प्रतिरोध के शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि सय्यद हसन नसरूल्लाह वर्तमान युग में प्रतिरोध के सबसे बड़े प्रतीक थे।
क़ुम के इमाम जुमा ने कहा कि दुश्मन इस्लामी उम्मत को उसकी रक्षात्मक शक्ति, राजनीतिक स्वतंत्रता और आर्थिक स्वतंत्रता से वंचित करके अपनी अधीनता में रखना चाहते हैं। लेकिन एक कदम पीछे हटने का मतलब है कि दुश्मन सौ कदम आगे बढ़ेगा।
उन्होंने इस्लामी उम्मत के लिए तीन रणनीतिक रास्ते बताए: पहला, दृढ़ता और धैर्य के साथ बौद्धिक और सामाजिक क्षेत्रों में अपनी ताकत बढ़ाना, दूसरा, अर्थव्यवस्था को मजबूत करना और अपनी रक्षा शक्ति को बनाए रखना, और तीसरा, विवेकपूर्ण कूटनीति के साथ प्रतिरोध और राजनीति की संस्कृति को अपनाना।
अंत में, आयतुल्लाह आराफ़ी ने इस बात पर ज़ोर दिया कि ईरान और इस्लामी उम्मत का अस्तित्व केवल प्रतिरोध में निहित है, और यही मुक्ति का एकमात्र मार्ग है।
इमामों (अ) की ख़िलक़त का उद्देश्य: ज्ञान और इबादत का प्रचार
इमाम जुमा तारागढ़ अजमेर, भारत ने हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ) को उनके पावन जन्मदिवस पर बधाई दी और कहा कि इमामों (अ) की ख़िलक़त का उद्देश्य ज्ञान और इबादत का प्रचार है।
तारागढ़, अजमेर के इमाम जुमा हुज्जतुल इस्लाम मौलाना सैयद नकी मेहदी ज़ैदी ने खुत्बा देते हुए,नमाज़ियों को नेक और धर्मनिष्ठ होने की सलाह देते हुए इमाम हसन अस्करी (अ) की इच्छा की व्याख्या की। भाईचारे और बहनचारे के बारे में उन्होंने कहा कि इमाम जाफ़र सादिक (अ) ने कहा है: "भाईचारे के लिए आपस में तीन चीज़ों की ज़रूरत होती है, इसलिए इनका इस्तेमाल करो वरना तुम आपस में फूट डालोगे और एक-दूसरे से नफ़रत करोगे: न्याय, दया और ईर्ष्या का निषेध।"
उन्होंने आगे कहा कि हज़रत इमाम जाफ़र सादिक (अ) से रिवायत है: "अल्लाह के लिए मोमिन के हक़ अदा करने से बेहतर कोई इबादत नहीं है।" कई रिवायतों में मोमिन भाई के हक़ का ज़िक्र किया गया है। उनमें से कुछ का उल्लेख इस प्रकार है: 1. उसे भूखा न रखना, 2. ज़रूरत पड़ने पर उसे कपड़े उपलब्ध कराना, 3. उसके दुःख को कम करना, 4. उसका कर्ज़ चुकाना, 5. उसकी मृत्यु होने पर उसके बच्चों की देखभाल करना, 6. अत्याचारी के विरुद्ध उसकी सहायता करना, 7. उसकी अनुपस्थिति में उसकी ओर से मुसलमानों में बाँटी गई चीज़ें प्राप्त करना, 8. उसकी सहायता करना न छोड़ना, 9. उसके बारे में शिकायत न करना, 10. यदि वह बीमार हो तो उससे मिलने जाना, 11. उसका निमंत्रण स्वीकार करना, 12. जब वह छींके तो उसके लिए प्रार्थना करना, 13. अपनी ज़रूरतों से ज़्यादा उसकी ज़रूरतों को प्राथमिकता देना, 14. उसे बैठने की जगह देना, 15. जब वह आपसे बात कर रहा हो तो उस पर ध्यान देना, 16. जब वह उठकर जाना चाहे तो उसे अलविदा कहना, 17. यदि आपके पास कोई नौकर हो और उसके पास कोई न हो, तो अपने नौकर को उसकी सेवा के लिए भेज दें।
तारागढ़ के इमाम जुमा ने कहा कि इमाम हसन अस्करी (अ) ने फ़रमाया: तुम्हारे भाइयों में सबसे अच्छा वह है जो तुम्हारी गलतियों को भूल जाता है और तुम्हारे अच्छे कामों को याद रखता है।
उन्होंने इमाम हसन अस्करी (अ) को उनके जन्म के शुभ अवसर पर बधाई दी और कहा कि वह इमाम अली नक़ी (अ) के पुत्र और इमाम महदी (अ) के पिता हैं। ग्यारहवें इमाम का जन्म 8 या 10 रबी अल-थानी 232 हिजरी को मदीना में हुआ था। उनका नाम हसन रखा गया और "अस्करी" उपाधि इसलिए ज़्यादा प्रसिद्ध हुई क्योंकि जिस मोहल्ले में वे रहते थे, "सरमन राय", उसे अस्कर कहा जाता था। दूसरा कारण यह है कि एक बार उस समय के ख़लीफ़ा ने इमाम से इसी स्थान पर अपनी सेना और सैन्य टुकड़ी का निरीक्षण करवाया था और इमाम ने उन्हें अपनी दिव्य सेना अपनी दो उंगलियों के बीच दिखाई थी।
तारागढ़ के इमाम जुमा ने आगे कहा कि मुहद्दिस क़ुमी से रिवायत है कि अहमद बिन उबैदुल्लाह (जो अब्बासिद ख़लीफ़ाओं की ओर से क़ोम में दान और दान के ट्रस्टी थे) ने कहा: "मैंने सामरा में इमाम हसन अस्करी (अ) जैसा ज्ञान, तप, गरिमा, शुद्धता, विनम्रता और महानता वाला कोई नहीं देखा। इन्हीं गुणों के कारण उन्हें इमामत के योग्य समझा गया।" इमाम अली नक़ी (अ) ने भी अपने बेटे इमाम हसन अस्करी (अ) की महानता का वर्णन इस प्रकार किया: "मेरा बेटा अबू मुहम्मद मुहम्मद के वंशजों में सबसे सम्मानित, कुलीन और इमामत के योग्य है। बेहतर है कि आप धार्मिक मामलों में उसकी ओर रुख करें।" यह गवाही इस बात का प्रमाण है कि इमाम हसन अस्करी (अ) ज्ञान, धैर्य, साहस और कुलीनता में अद्वितीय थे।
हुज्जतुल इस्लाम मौलाना नकी महदी ज़ैदी ने कहा कि इमाम हसन अस्करी (अ) ने बच्चों में ज्ञान और जागरूकता के प्रति प्रेम पैदा करने का प्रयास किया। एक घटना में, उन्होंने बहलुल से कहा: "हमें खेलने के लिए नहीं, बल्कि ज्ञान और उपासना के लिए बनाया गया है।" यह वाक्य बच्चों को अपनी सृष्टि के उद्देश्य को समझने के लिए प्रेरित करता है। इमाम हसन अस्करी (अ) का जीवन एक अनुकरणीय उदाहरण है, जो हमें ज्ञान, धर्मपरायणता, साहस और दृढ़ता की शिक्षा देता है। उनकी शिक्षाएँ और उपदेश आज भी हमें मार्गदर्शन और दिशा प्रदान करते हैं।
अंत में, तारागढ़ के इमाम जुमा ने कहा, "हे अल्लाह! हमें हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ) की शिक्षाओं पर चलने की क्षमता प्रदान करें और युग के इमाम के प्रकट होने में शीघ्रता प्रदान करें। अल्लाह हमें शीघ्र स्वास्थ्य लाभ प्रदान करे, ताकि हम उनके सहायकों और समर्थकों में शामिल हो सकें।"













